उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

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Trains like Vande Bharat, Namo Bharat and Amrit Bharat are laying the foundation for the next generation of Indian Railways: PM Modi in Varanasi
November 08, 2025
Trains like Vande Bharat, Namo Bharat, and Amrit Bharat are laying the foundation for the next generation of Indian Railways: PM
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Holy pilgrimage sites are now being connected through the Vande Bharat network, reflecting a convergence of India’s culture, faith and development journey, while transforming heritage cities into symbols of national progress: PM

हर-हर महादेव!

नम: पार्वती पतये!

हर-हर महादेव!

उत्तर प्रदेश के ऊर्जावान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी और विकसित भारत की मजबूत नींव रखने के लिए जो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आज बहुत उत्तम कार्य हो रहा है, उसका नेतृत्व संभालने वाले भाई अश्विनी वैष्णव जी, टेक्नोलॉजी के जरिए हमारे साथ इस कार्यक्रम में जुड़े एर्नाकुलम से केरला के राज्यपाल श्री राजेन्द्र अर्लेकर जी, केंद्र में मेरे साथी सुरेश गोपी जी, जॉर्ज कुरियन जी, केरला के इस कार्यक्रम में उपस्थित अन्य सभी मंत्री, जनप्रतिनिधिगण, फिरोज़पुर से जुड़े केंद्र में मेरे साथी, पंजाब के नेता रवनीत सिंह बिट्टू जी, वहां उपस्थित सभी जनप्रतिनिधि, लखनऊ से जुड़े यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक जी, अन्य महानुभाव, और यहां उपस्थित काशी के मेरे परिवारजन।

बाबा विश्वनाथ के इ पावन नगरी में, आप सब लोगन के, काशी के सब परिवारजन के हमार प्रणाम! हम देखनीं, देव दीपावली पर केतना अद्भुत आयोजन भईल, अब आज क दिन भी बड़ा शुभ ह, हम इ विकास पर्व के आप सब लोग के शुभकामना देत हईं!

साथियों,

दुनिया भर के विकसित देशों में, आर्थिक विकास का बहुत बड़ा कारण वहां का इंफ्रास्ट्रक्चर रहा है। जिन भी देशों में बड़ी प्रगति, बड़ा विकास हुआ है, उनके आगे बढ़ने के पीछे बहुत बड़ी शक्ति वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट की है। अब मान लीजिए कोई इलाका है, लंबे समय से वहां रेल नहीं जा रही है, रेल की पटरी नहीं है, ट्रेन नहीं आती है, स्टेशन नहीं है। लेकिन जैसे ही वहां पटरी लग जाएगी, स्टेशन बन जाएगा, उस नगर का अपने आप विकास शुरू हो जाता है। किसी गांव के अंदर सालों से रोड ही नहीं है, कोई रास्ता ही नहीं, कच्चे मिट्टी के रास्ते पर लोग जाते-आते रहते हैं। लेकिन जैसे ही एक छोटा सा रोड बन जाता है, किसानों की आवा-जाही, किसानों का माल वहां से बाजार में जाना शुरू हो जाता है। मतलब इंफ्रास्ट्रक्चर यानी, बड़े-बड़े ब्रिज, बड़े-बड़े हाईवेज, इतना ही नहीं होता है। कहीं पर भी, जब ऐसी व्यवस्थाएं विकसित होती हैं, तो उस क्षेत्र का विकास शुरू हो जाता है। जैसा हमारा गांव का अनुभव है, जैसा हमारे कस्बे का अनुभव है, जैसा हमारे छोटे नगर का अनुभव है। वैसा ही पूरे देश का भी होता है। कितने एयरपोर्ट बनें, कितनी वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं, दुनिया के कितने देशों से हवाई जहाज आते हैं, ये सारी बातें विकास के साथ जुड़ चुकी है। और आज भारत भी बहुत तेज गति से इसी रास्ते पर चल रहा है। इसी कड़ी में, आज देश के अलग-अलग हिस्सों में नई वंदे भारत ट्रेनों की शुरुआत हो रही है। काशी से खजुराहो वंदेभारत के अलावा, फिरोजपुर-दिल्ली वंदेभारत, लखनऊ-सहारनपुर वंदेभारत और एर्नाकुलम-बेंगलुरू वंदेभारत, इसको भी हरी झंडी दिखाई गई है। इन चार नई ट्रेनों के साथ ही, अब देश में एक सौ साठ से ज्यादा नई वंदे भारत ट्रेनों का संचालन होने लगा है। मैं काशीवासियों को, सभी देशवासियों को इन ट्रेनों की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

आज वंदे भारत, नमो भारत और अमृत भारत जैसी ट्रेनें भारतीय रेलवे की अगली पीढ़ी की नींव तैयार कर रही हैं। ये भारतीय रेलवे को ट्रांसफॉर्म करने का एक पूरा अभियान है। वंदे भारत भारतीयों की, भारतीयों द्वारा, भारतीयों के लिए बनाई हुई ट्रेन है, जिस पर हर भारतीय को गर्व है। वरना पहले हम तो, ये हम कर सकते हैं क्या? ये तो विदेश में हो सकता है, हमारे यहां होगा? होने लगा कि, नहीं होने लगा? हमारे देश में बन रहा है, कि नहीं बन रहा है? हमारे देश के लोग बना रहे हैं, कि नहीं बना रहे हैं? ये हमारे देश की ताकत है। और अब तो विदेशी यात्री भी वंदेभारत को देखकर अचंभित होते हैं। आज जिस तरह से भारत ने विकसित भारत के लिए अपने साधनों को श्रेष्ठ बनाने का अभियान शुरू किया है, ये ट्रेनें उसमें एक मील का पत्थर बनने जा रही हैं।

साथियों,

हमारे भारत में सदियों से तीर्थ यात्राओं को देश की चेतना का माध्यम कहा गया है। ये यात्राएँ केवल देवदर्शन का मार्ग नहीं हैं, बल्कि भारत की आत्मा को जोड़ने वाली पवित्र परंपरा हैं। प्रयागराज, अयोध्या, हरिद्वार, चित्रकूट, कुरुक्षेत्र, ऐसे अनगिनत तीर्थक्षेत्र हमारी आध्यात्मिक धारा के केंद्र हैं। आज जब ये पावन धाम वंदे भारत के नेटवर्क से जुड़ रहे हैं, तो एक तरह भारत की संस्कृति, आस्था और विकास की यात्रा को जोड़ने का भी काम हुआ है। ये भारत की विरासत के शहरों को, देश के विकास का प्रतीक बनाने की तरफ एक अहम कदम है।

साथियों,

इन यात्राओं का एक आर्थिक पहलू भी होता है, जिसकी उतनी चर्चा नहीं होती। बीते 11 वर्षों में, यूपी में हुए विकास कार्यों ने तीर्थाटन को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। पिछले साल बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए 11 करोड़ श्रद्धालु काशी आए थे। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद 6 करोड़ से ज्यादा लोग रामलला के दर्शन कर चुके हैं। यूपी की अर्थव्यवस्था को इन श्रद्धालुओं ने हजारों करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाया है। इन्होंने यूपी के होटलों, व्यापारियों, ट्रांसपोर्ट कंपनियों, स्थानीय कलाकारों, नाव चलाने वालों को निरंतर कमाई का अवसर दिया है। इसके कारण अब बनारस के सैकड़ों नौजवान, अब ट्रांसपोर्ट से लेकर बनारसी साड़ियों तक, हर एक चीज में नए-नए व्यापारों को शुरू कर रहे हैं। इन सबकी वजह से यूपी में, काशी में समृद्धि का द्वार खुल रहा है।

साथियों,

विकसित काशी से विकसित भारत का मंत्र साकार करने के लिए, हम लगातार यहां भी इंफ्रास्ट्रक्चर के अनेक काम कर रहे हैं। आज काशी में, अच्छे अस्पताल, अच्छी सड़कें, गैस पाइपलाइन से लेकर इंटरनेट कनेक्टिविटी की व्यवस्थाएं लगातार विस्तार भी हो रहा है, विकास भी हो रहा है, और क्वालिटेटिव इंप्रूवमेंट भी हो रहा है। रोप वे पर तेजी से काम हो रहा है। गंजारी और सिगरा स्टेडियम जैसे स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर भी अब हमारे पास है। हमारा प्रयास है कि बनारस आना, बनारस में रहना और बनारस की सुविधाओं को जीना सबके लिए एक खास अनुभव बने।

साथियों,

हमारी सरकार का प्रयास काशी में स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार का भी है। 10-11 साल पहले स्थिति ये थी कि गंभीर बीमारी का इलाज कराना हो, तो लोगों के पास सिर्फ बीएचयू का विकल्प होता था, और मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा होती थी कि पूरी-पूरी रात खड़े रहने के बाद भी इन्हें इलाज नहीं मिल पाता था। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने पर इलाज के लिए लोग जमीन और खेत बेचकर मुंबई जाते थे। आज काशी के लोगों की इन सारी चिंताओं को हमारी सरकार ने कम करने का काम किया है। कैंसर के लिए महामना कैंसर अस्पताल, आंख के इलाज के लिए शंकर नेत्रालय, बीएचयू में बना अत्याधुनिक ट्रॉमा सेंटर, और शताब्दी चिकित्सालय, पांडेयपुर में बना मंडलीय अस्पताल, ये सारे अस्पताल आज काशी, पूर्वांचल समेत आसपास के राज्यों के लिए भी वरदान बने हैं। इन अस्पतालों में आयुष्मान भारत और जनऔषधि केंद्र की वजह से आज गरीबों को लाखों लोगों के करोड़ों रुपयों की बचत हो पा रही है। एक तरफ इससे लोगों की चिंता खत्म हुई है, दूसरी तरफ काशी इस पूरे क्षेत्र की हेल्थ कैपिटल के रूप में जाना जाने लगा है।

साथियों,

हमें काशी के विकास की ये गति, ये ऊर्जा बनाए रखनी है, ताकि भव्य काशी तेजी से समृद्ध काशी भी हो, और पूरी दुनिया से जो भी काशी आए, वो बाबा विश्वनाथ की इस नगरी में, सभी को एक अलग ऊर्जा, एक अलग उत्साह और अलग आनंद मिल सके।

साथियों,

अभी मैं वंदे भारत ट्रेन के अंदर कुछ विद्यार्थियों से बात कर रहा था। मैं अश्विनी जी को बधाई देता हूं, उन्होंने एक अच्छी परंपरा शुरू की है, जहां वंदेभारत ट्रेन का शुभारंभ होता है, उस स्थान पर, बच्चों के बीच में अलग-अलग विषयों पर कंपटीशन होती है, विकास के संबंध में, वंदेभारत के संबंध में, अलग-अलग विकसित भारत की कल्पना के चित्रों के संदर्भ में, कविताओं को लेकर के। और मैं आज क्योंकि ज्यादा समय नहीं मिला था बच्चों को, लेकिन दो-चार दिन के भीतर- भीतर उनकी जो कल्पकता थी, उन्होंने एक विकसित काशी के जो चित्र बनाए थे, विकसित भारत के जो चित्र बनाए थे, सुरक्षित भारत के जो चित्र बनाए थे, जो कविताएं सुनने को मिली मुझे, 12-12, 14 साल तक के बेटे-बेटियां इतनी बढ़िया कविताएं सुना रहे थे, काशी के सांसद के नाते मुझे इतना गर्व हुआ, इतना गर्व हुआ, कि मेरी काशी में ऐसे होनहार बच्चे हैं। मैं अभी यहां कुछ बच्चों को मिला, एक बच्चे को मिला, उसको तो हाथ की भी तकलीफ है, लेकिन जो चित्र उसने बनाया है, मैं वाकई बहुत ही मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है। यानी, मैं यहां की स्कूलों के टीचरों को भी हृदय से बहुत बधाई देता हूं कि उन्होंने बच्चों को ये प्रेरणा दी, उनका मार्गदर्शन किया। मैं इन बालकों के माता-पिता को भी बधाई देता हूं, जरूर उन्होंने भी कोई न कोई योगदान किया होगा, तब इतना सुंदर कार्यक्रम इन्होंने किया होगा। मेरे तो मन में विचार आया, कि एक बार यहां इन बच्चों का कवि सम्मेलन करें, और उसमें से 8-10 जो बढ़िया बच्चे हो उनको देश भर में ले जाए, उनसे कविताएं करवाएं। इतना, यानी इतना प्रभावी था, मैं मेरे मन को एक काशी के सांसद के नाते आज एक बहुत विशेष मुझे सुखद अनुभव हुआ, मैं इन बच्चों का हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं।

साथियों,

आज मुझे ढेर सारे कार्यक्रमों में जाना है। इसलिए एक छोटा सा कार्यक्रम ही आज रखा था। मुझे जल्दी निकलना भी है, और सुबह-सुबह इतनी बड़ी मात्रा में आप लोग आ गए, ये भी एक खुशी की बात है। एक बार फिर, आज के इस आयोजन के लिए और वंदे भारत ट्रेनों के लिए आप सभी को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्यवाद!

हर-हर महादेव!