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उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

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India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection: PM Modi
June 05, 2023
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“On one hand, we have banned single-use plastic while on the other hand, plastic waste processing has been made mandatory”
“India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection”
“In the last 9 years, the number of wetlands and Ramsar sites in India has increased almost 3 times as compared to earlier”
“Every country in the world should think above vested interests for protection of world climate”
“There is nature as well as progress in the thousands of years old culture of India,”
“The basic principle of Mission LiFE is changing your nature to change the world”
“This consciousness towards climate change is not limited to India only, the global support for the initiative is increasing all over the world”
“Every step taken towards Mission LiFE will become a strong shield for the environment in the times to come

नमस्कार।

विश्व पर्यावरण दिवस पर आप सभी को, देश और दुनिया को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस वर्ष के पर्यावरण दिवस की थीम- सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान है। और मुझे खुशी है कि जो बात विश्व आज कर रहा है, उस पर भारत पिछले 4-5 साल से लगातार काम कर रहा है। 2018 में ही भारत ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति के लिए दो स्तर पर काम शुरु कर दिया था। हमने एक तरफ, सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगाया और दूसरी तरफ Plastic Waste Processing को अनिवार्य किया गया। इस वजह से भारत में करीब 30 लाख टन प्लास्टिक पैकेजिंग की रीसाइकिल कंपलसरी हुई है। ये भारत में पैदा होने वाले कुल सालाना प्लास्टिक वेस्ट का 75 परसेंट है। और आज इसके दायरे में लगभग 10 हज़ार प्रोड्यूसर्स, इंपोर्टर और Brand Owners आ चुके हैं।

साथियों,

आज 21वीं सदी का भारत, क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत स्पष्ट रोडमैप लेकर चल रहा है। भारत ने Present Requirements और Future Vision का एक Balance बनाया है। हमने एक तरफ गरीब से गरीब को ज़रूरी मदद दी, उसकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का भरसक प्रयास किया, तो दूसरी तरफ भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए बड़े कदम भी उठाए हैं।

बीते 9 वर्षों के दौरान भारत ने ग्रीन और क्लीन एनर्जी पर अभूतपूर्व फोकस किया है। सोलर पावर हो, LED बल्बों की ज्यादा से ज्यादा घरों में पहुँच बने, जिसने देश के लोगों के, हमारे गरीब और मध्यम वर्ग के पैसे भी बचाए हैं और पर्यावरण की भी रक्षा की है। बिजली का बिल निरंतर कम हुआ है। भारत की लीडरशिप को दुनिया ने इस वैश्विक महामारी के दौरान भी देखा है। इसी Global Pandemic के दौरान भारत ने मिशन ग्रीन हाइड्रोजन शुरु किया है। इसी Global Pandemic के दौरान भारत ने मिट्टी और पानी को केमिकल फर्टिलाइज़र से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती नैचुरल फार्मिंग की तरफ बड़े कदम उठाए।

भाइयों और बहनों,

ग्रीन फ्यूचर, ग्रीन इकॉनॉमी के अभियान को जारी रखते हुए, आज दो और योजनाओं की शुरुआत हुई है। बीते 9 सालों में भारत में वेटलैंड्स की, रामसर साइट्स की संख्या में पहले की तुलना में लगभग 3 गुणा बढ़ोतरी हुई है। आज अमृत धरोहर योजना की शुरुआत हुई है। इस योजना के माध्यम से इन रामसर साइट्स का संरक्षण जनभागीदारी से सुनिश्चित होगा। भविष्य में ये रामसर साइट्स इको-टूरिज्म का सेंटर बनेंगी और हज़ारों लोगों के लिए Green Jobs का माध्यम बनेंगी। दूसरी योजना देश की लंबी कोस्टलाइन और वहां रहने वाली आबादी से जुड़ी है। 'मिष्ठी योजना' के माध्यम से देश का मैंग्रूव इकोसिस्टम रिवाइव भी होगा, सुरक्षित भी रहेगा। इससे देश के 9 राज्यों में मैंग्रूव कवर को restore किया जाएगा। इससे समंदर का स्तर बढ़ने और साइक्लोन जैसी आपदाओं से तटीय इलाकों में जीवन और आजीविका के संकट को कम करने में मदद मिलेगी।

साथियों,

World Climate के Protection के लिए ये बहुत जरूरी है कि दुनिया का हर देश निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचे। लंबे समय तक दुनिया के बड़े और आधुनिक देशों में विकास का जो मॉडल बना, वो बहुत विरोधाभासी है। इस विकास मॉडल में पर्यावरण को लेकर बस ये सोच थी कि पहले हम अपने देश का विकास कर लें, फिर बाद में पर्यावरण की भी चिंता करेंगे। इससे ऐसे देशों ने विकास के लक्ष्य तो हासिल कर लिए, लेकिन पूरे विश्व के पर्यावरण को उनके विकसित होने की कीमत चुकानी पड़ी। आज भी दुनिया के विकासशील और गरीब देश, कुछ विकसित देशों की गलत नीतियों का नुकसान उठा रहे हैं। दशकों-दशक तक कुछ विकसित देशों के इस रवैये को न कोई टोकने वाला था, न कोई रोकने वाला था, कोई देश नहीं था। मुझे खुशी है कि आज भारत ने ऐसे हर देश के सामने Climate Justice का सवाल उठाया है।

साथियों,

भारत की हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति के दर्शन में ही प्रकृति भी है और प्रगति भी है। इसी प्रेरणा से आज भारत, इकॉनॉमी पर जितना जोर लगाता है, उतना ही ध्यान इकॉलॉजी पर भी देता है। भारत आज अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभूतपूर्व इंवेस्ट कर रहा है, तो Environment पर भी उतना ही फोकस है। अगर एक तरफ भारत ने 4G और 5G कनेक्टिविटी का विस्तार किया, तो दूसरी तरफ अपने forest cover को भी बढ़ाया है। एक तरफ भारत ने गरीबों के लिए 4 करोड़ घर बनाए तो वहीं भारत में WildLife और WildLife Sanctuaries की संख्या में भी रिकॉर्ड वृद्धि की। भारत आज एक तरफ जल जीवन मिशन चला रहा है, तो दूसरी तरफ हमने Water Security के लिए 50 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर तैयार किए है। आज एक तरफ भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है तो वो रीन्यूएबल एनर्जी में टॉप-5 देशों में भी शामिल हुआ है। आज एक तरफ भारत एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट बढ़ा रहा है, तो वहीं पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल ब्लेंडिंग के लिए भी अभियान चला रहा है। आज एक तरफ भारत Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI जैसे संगठनों का आधार बना है तो वहीं भारत ने International Big Cat Alliance की भी घोषणा की है। ये Big Cats के संरक्षण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है।

साथियों,

मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत सुखद है कि मिशन LiFE यानि Lifestyle for environment आज पूरे विश्व में एक Public Movement, एक जनआंदोलन बनता जा रहा है। मैंने जब पिछले वर्ष गुजरात के केवड़िया- एकता नगर में मिशन लाइफ को लॉन्च किया था, तो लोगों में एक कौतुहल था। आज ये मिशन, क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए लाइफस्टाइल में परिवर्तन को लेकर एक नई चेतना का संचार कर रहा है। महीना भर पहले ही मिशन LiFE को लेकर एक कैंपेन भी शुरु किया गया। मुझे बताया गया है कि 30 दिन से भी कम समय में इसमें करीब-करीब 2 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं। Giving Life to My City, इस भावना के साथ, कहीं रैलियां निकलीं, कहीं क्विज़ कंपीटीशन हुए। लाखों स्कूली बच्चे, उनके शिक्षक, इको-क्लब के माध्यम से इस अभियान से जुड़े। लाखों साथियों ने Reduce, Reuse, Recycle का मंत्र अपने रोज़मर्रा के जीवन में अपनाया है। बदले स्वभाव तो विश्व में बदलाव, यही मिशन लाइफ का मूल सिद्धांत है। मिशन लाइफ, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए, पूरी मानवता के उज्ज्वल भविष्य के लिए उतना ही जरूरी है।

साथियों,

ये चेतना सिर्फ देश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में भारत की इस पहल को लेकर समर्थन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष पर्यावरण दिवस पर मैंने विश्व समुदाय से एक और आग्रह किया था। आग्रह ये था कि व्यक्तियों और कम्यूनिटी में climate friendly behavioral change लाने के लिए इनोवेटिव समाधान शेयर करें। ऐसे समाधान, जो measurable हों, scalable हों। ये बहुत खुशी की बात है कि दुनिया भर के लगभग 70 देशों के हज़ारों साथियों ने अपने विचार साझा किए। इनमें स्टूडेंट्स हैं, रिसर्चर हैं, अलग-अलग डोमेन से जुड़े एक्सपर्ट हैं, प्रोफेशनल्स हैं, NGOs हैं और सामान्य नागरिक भी हैं। इनमें से कुछ विशिष्ठ साथियों के आइडियाज़ को थोड़ी देर पहले पुरस्कृत भी किया गया है। मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

मिशन LiFE की तरफ उठा हर कदम और वही आने वाले समय में पूरे विश्व में पर्यावरण का मजबूत कवच बनेगा। LiFE के लिए थॉट लीडरशिप का संग्रह भी आज जारी किया गया है। मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयासों से ग्रीन ग्रोथ का हमारा प्रण और सशक्त होगा। एक बार फिर सभी को पर्यावरण दिवस की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ, हृदय से बहुत-बहुत मंगलकामना।

धन्यवाद!