भाईयों और बहनों,

आप सबका स्‍वागत है। दो दिन बड़ी विस्‍तार से चर्चा होने वाली है। इस मंथन में से कई महत्‍वपूर्ण बाते उभरकर के आएगी जो आगे चलकर के नीति या नियम का रूप ले सकती है और इसलिए हम जितना ज्‍यादा एक लम्‍बे विजन के साथ इन चर्चाओं में अपना योगदान देंगे तो यह दो दिवसीय सम्‍मेलन अधिक सार्थक होगा। इस विषय में कुछ बातें बताने का आज मन करता है मेरा। Climate के संबंध में या Environment के संबंध में प्रारंभ से कुछ हमारी गलत अभिव्‍यक्ति रही है और हम ऐसे जैसे अपनी बात को दुनिया के आगे प्रस्‍तुत किया कि ऐसा लगने लगा कि जैसे हमें न Climate की परवाह है न Environment की परवाह है। और सारी दुनिया हमारी इस अभिव्‍यक्ति की गलती के कारण यह मानकार के बैठी कि विश्‍व तो Environment conscious हो रहा है। विश्‍व climate की चिंता कर रहा है कि यह देश है जो कोई अडंगे डाल रहा है और इसका मूल कारण यह नहीं है कि हमने environment को बिगाड़ने में कोई अहम भूमिका निभाई है। climate को बर्बाद करने में हमारी या हमारे पूर्वजों की कोई भूमिका रही है। हकीकत तो उल्‍टी है। हम उस परंपरा में पले है, उन नीति, नियम और बंधनों में पले-बढ़े लोग हैं, जहां प्रकृति को परमेश्‍वर के रूप माना गया है, जहां पर प्रकृति की पूजा को सार्थक माना गया है और जहां पर प्रकृति की रक्षा को मानवीय संवेदनाओं के साथ जोड़ा गया है। लेकिन हम अपनी बात किसी न किसी कारण से, एक तो हम कई वर्षों से गुलाम रहे, सदियों से गुलाम रहने के कारण एक हमारी मानसिकता भी बनी हुई है कि अपनी बात दुनिया के सामने रखते हुए हम बहुत संकोच करते हैं। ऐसा लगता है कि यार कहीं यह आगे बढ़ा हुआ विश्‍व हम Third country के लोग। हमारी बात मजाक तो नहीं बन जाएगी। जब तक हमारे भीतर एक confidence नहीं आता है, शायद इस विषय पर हम ठीक से deal नहीं कर पाएंगे।

और मैं आज इस सभागृह में उपस्थित सभी महानुभावों से आग्रहपूर्वक कहना चाहता हूं हम जितने प्रकृति के विषय में संवेदनशील है। दुनिया हमारे लिए सवालिया निशान खड़ा नहीं कर सकती है। आज भी प्रति व्‍यक्ति अगर carbon emission में contribution किसी का होगा तो कम से कम contribution वालों में हम है। लेकिन उसके बाद भी आवश्‍यकता यह थी कि विश्‍व में जब climate विषय में एक चिंता शुरू हुई, भारत ने सबसे पहले इसका नेतृत्‍व करना चाहिए था। क्‍योंकि दुनिया में अधिकतम वर्ग यह है कि जो climate की चिंता औरों पर restriction की दिशा में करता रहता है, जबकि हम लोग सदियों से प्रकृति की रक्षा करते-करते जीवन विकास की यात्रा में आगे बढ़ने के पक्षकार रहे हैं। दुनिया जो आज climate के संकट से गुजर रही है, Global Warming के संकट से गुजर रही है, उसको अभी भी रास्‍ता नहीं मिल रहा है कि कैसे बचा जाए, क्‍योंकि वो बाहरी प्रयास कर रहे हैं। और मैंने कई बार कहा कि इन समस्‍या की जड़ में हम carbon emission को रोकने के लिए जो सारे नीति-नियम बना रहे हैं, विश्‍व के अंदर एक बंधनों की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम कोई अपनी Life Style बदलने के लिए तैयार नहीं है। समस्‍या की जड़ में मानवजात जो कि उपभोग की तरफ आगे बढ़ती चली गई है और जहां ज्‍यादा उपभोग की परंपरा है, वहां सबसे ज्‍यादा प्रकृति का नुकसान होता है, जहां पर उपभोग की प्रवृति कम है, वहां प्रकृति का शोषण भी कम होता है और इसलिए हम जब तक अपने life style के संबंध में focus नहीं करेंगे और दुनिया में इस एक बात को केंद्र बिंदु में नहीं लाएंगे हम शायद बाकी सारे प्रयासों के बावजूद भी, लेकिन यह जो बहुत आगे बढ़ चुके देश है, उनके गले उतारना जरा कठिन है। वो माने न माने हम तो इन्‍हीं बातों में पले-बढ़े लोग हैं। हमें फिर से अगर वो चीजें भूला दी गई है, तो हमें उस पर सोचना चाहिए। मैं उदाहरण के तौर पर कहता हूं आजकल दुनिया में Recycle की बडी चर्चा है और माना जाता है कि यह दुनिया में कोई नया विज्ञान आया है, नई व्‍यवस्‍था आई है। जरा हमारे यहां देखों Recycle, reuse और कम से कम उपयोग करने की हमारी प्रकृति कैसी रही है। पुराना जमाना की जरा अपने घर में दादी मां उनके जीवन को देखिए। घर में कपड़े अगर पुराने हो गए होंगे, तो उसमें से रात को बिछाने के लिए गद्दी बना देंगे। वो अब उपयोगी नहीं रही तो उसमें से भी झाडू-पौचे के लिए उस जगह का उपयोग करेंगे। यानी एक चीज को recycle कैसे करना घर में हर चीज का वो हमारे यहां सहज परंपरा थी। सहज प्रकृति थी।

मैंने देखा है गुजरात के लोग आम खाते हैं, लेकिन आम को भी इतना Recycle करते हैं, Reuse करते हैं शायद कोई बाहर सोच नहीं सकता है। कहने का तात्‍पर्य है कि कोई बाहर से borrow की हुई चीज नहीं है। लेकिन हमने दुनिया समझे उस terminology में उन चीजों को आग्रहपूर्वक रखा नहीं। विश्‍व के सामने हम अपनी बातों को ढंग से रख नहीं पाए। हमारे यहां पौधे में परमात्‍मा है। जगदीश चंद्र बोस ने विज्ञान के माध्‍यम से जब Laboratory में जब सिद्ध किया कि पौधे में जीव होता है, उसके बाद ही हमने जीव है ऐसा मानना तय किया, ऐसा नहीं है। हम सहस्‍त्रों वर्ष से गीता का उल्‍लेख करे, महाभारत का उल्‍लेख करे हमें तभी से मानते हुए आए हैं कि पौधे में परमात्‍मा होता है। और इसलिए पौधे की पूजा, पौधे की रक्षा यह सारी चीजें हमें परंपराओं से सिखाई गई थी। लेकिन काल क्रम में हमने ही अपने आप को कुछ और तरीके से रास्‍ते खोजने के प्रयास किए। कभी-कभी मुझे लगता है.. यहां urban secretaries बहुत बड़ी संख्‍या में है हम परंपरागत रूप से चीजों को कैसे कर सकते हैं। मैं जानता हूं मैं जो बातें बताऊंगा, ये जो so called अंग्रेजीयत वाले लोग हैं, वो उसका मजाक उड़ाएंगे 48 घंटे तक। बड़ा मजाक उड़ाएंगे, आपको भी बड़ा मनोरंजन मिलेगा टीवी पर, क्‍योंकि एक अलग सोच के लोग हैं। जैसे मैं आपको एक बात बताऊं। आपको मालूम होगा यहां से जिनका गांव के साथ जीवन रहा होगा। गांव में एक परंपरा हुआ करती थी कि जब full moon होता था, तो दादी मां बच्‍चों को चांदनी की रोशनी में सुई के अंदर धागा पिरोने के लिए प्रयास करते थे, क्‍यों eye sight तो थी, लेकिन उस चांदनी की रोशनी की अनुभूति कराते थे।

आज शायद नई पीढ़ी को पूछा जाए कि आपने चांदनी की रोशनी देखी है क्‍या? क्‍या पूर्णिमा की रात को बाहर निकले हो क्‍या? अब हम प्रकृति से इतने कट गए हैं।

अगर हमारी urban body यह तय करे, लोगों को विश्‍वास में लेकर के करें कि भई हम पूर्णिमा की रात को street light नहीं जलाएंगे। इतना ही नहीं उस दिन festival मनाएंगे पूरे शहर में, सब मोहल्‍ले में लोग स्‍पर्धा करेंगे, सुई में धागा डालने की। एक community event हो जाएगा, एक आनंद उत्‍सव हो जाएगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। चीज छोटी होती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि सभी Urban Body में महीने में एक बार इस चांदनी रात का उपयोग करते हुए अगर street light बंद की जाए तो कितनी ऊर्जा बचेगी? कितनी ऊर्जा बचेगी तो कितना emission हम कम करेंगे? लेकिन यही चीज इस carbon emission के हिसाब से रखोगे, तो यह जो so called अपने आप को पढ़ा-लिखा मानता हैं, वो कहे वाह नया idea है, लेकिन वही चींज हमारी गांव की दादी मां कहती वो सुई और धागे की कथा कहकर के कहेंगे, अरे क्‍या यह पुराने लोग हैं इनको कोई समझ नहीं है, देश बदल चुका है। क्‍या यह हम हमारे युवा को प्रेरित कर सकते हैं कि भई Sunday हो, Sunday on cycle मान लीजिए, हो सकता है कोई यह भी कह दें कि मोदी अब cycle कपंनियों के agent बन गया हैं। यह बड़ा दुर्भाग्‍य है देश का। पता नहीं कौन क्‍या हर चीज का अर्थ निकालता है। जरूरी नहीं कि हर कोई लोग cycle खरीदने जाए, तय करे कि भई मैं सप्‍ताह में एक दिन ऊर्जा से उपयोग में आने वाले साधनों का उपयोग में नहीं करूंगा। अपनी अनुकूलता है।

समाज मैं जो life style की बात करता हूं हम पर्यावरण की रक्षा में इतना बड़ा योगदान दें सकते हैं। सहज रूप से दे सकते हैं और थोड़ा सा प्रयास करना पड़ता है। एक शिक्षक के जीवन को मैं बराबर जानता हूं। मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो उन पिछड़े इलाकों में चला जाता था, जून महीने में कि जहां पर girl child education बहुत कम हो। 40-44 डिग्री Temperature रहा करता था जून महीने में और मैं ऐसे गांव में जाकर तीन दिन रहता था। जब तक मैं मुख्‍यमंत्री रहा वो काम regularly करता था। एक बार मैं समुद्री तट के एक गांव में गया। एक भी पेड़ नहीं था, पूरे गावं में कहीं पर नहीं, लेकिन जो स्‍कूल था, वो घने जंगलों में जैसे कोई छोटी झोपड़ी वाली स्‍कूल हो, ऐसा माहौल था। तो मेरे लिए आश्‍चर्य था। मैंने कहा कि यार कहीं एक पेड़ नहीं दिखता, लेकिन स्‍कूल बड़ी green है, क्‍या कारण है। तो वहां एक teacher था, उस teacher का initiative इतना unique initiative था, उसने क्‍या किया – कहीं से भी bisleri की बोतल मिलती थी खाली, उठाकर ले आता था, पेट्रोल पम्‍प पर oil के जो टीन खाली होते थे वो उठाकर ले आता था और लाकर के students को एक-एक देता था, साफ करके खुद और उनको कहता था कि आपकी माताजी जो kitchen में बर्तन साफ करके kitchen का जो पानी होता है, वो पानी इस बोतल में भरकर के रोज जब स्‍कूल में आओगे तो साथ लेकर के आओ। और हमें भी हैरानी थी कि सारे बच्‍चे हाथ में यह गंदा दिखने वाला पानी भरकर के क्‍यों आते हैं। उसने हर बच्‍चे को पेड़ दे दिया था और कह दिया था कि इस बोतल से daily तुम्‍हें पानी डालना है। Fertilizer भी मिल जाता था। एक व्‍यक्ति के अभिरत प्रयास का परिणाम था कि वो पूरा स्‍कूल का campus एकदम से हरा-भरा था। कहना का तात्‍पर्य है कि इन चीजों के लिए समाज का जो सहज स्‍वभाव है, उन सहज स्‍वभाव को हम कितना ज्‍यादा प्रेरित कर सकते हैं, करना चाहिए।

मैं एक बार इस्राइल गया था, इस्राइल में रेगिस्‍तान में कम से कम बारिश, एक-एक बूंद पानी का कैसे उपयोग हो, पानी का recycle कैसे हो, समुद्री की पानी से कैसे sweet water बनाया जाए, इन सारे विषयों में काफी उन्‍होंने काम किया है। काफी प्रगति की है। इस्राइल तो इस समय एक अभी भी रेगिस्‍तान है जहां हरा-भरा होना बाकी है और एक है पूर्णतय: उन्‍होंने रेगिस्‍तान को हरा-भरा बना दिया है।

बेन गुरियन जो इस्राइल के राष्‍ट्रपिता के रूप में माने जाते हैं, तो मैं जब इस्राइल गया था तो मेरा मन कर गया कि उनका जो निवासा स्‍थान है वो मुझे देखना है, उनकी समाधि पर जाना है। तो मैंने वहां की सरकार को request की थी बहुत साल पहले की बात है। तो मैं गया, उनका घर उस रेगिस्‍तान वाले इलाके में ही था, वहीं रहते थे वो। और दो चीजें मेरे मन को छू गई – एक उनके bedroom में महात्‍मा गांधी की तस्‍वीर थी। वे सुबह उठते ही पहले उनको प्रणाम करते थे और दूसरी विशेषता यह थी कि उनकी जो समाधि थी, उन समाधि के पास एक टोकरी में पत्‍थर रखे हुए थे। सामान्‍य रूप से इतने बड़े महापुरूष के वहां जाएंगे तो मन करता है कि फूल रखें वहां, नमन करे। लेकिन चूंकि उनको green protection करना है, greenery की रक्षा करनी है। फूल-फल इसको नष्‍ट नहीं करना, यह संस्‍कार बढ़ाने के लिए बेन बुरियन की समाधि पर अगर आपको आदर करना है तो क्‍या करना होता था उस टोकरी में से एक पत्‍थर उठाना और पत्‍थर रखना और शाम को वो क्‍या करते थे सारे पत्‍थर इकट्ठे करके के फिर टोकरी में रख देते थे। अब देखिए environment की protection के लिए किस प्रकार की व्‍यवस्‍थाओं को लोग विकसित करते हैं। हम अपने आपसे बाकी सारी बातों के साथ-साथ हम अपने जीवन में इन चीजों को कैसे लाए उसके आधार पर हम इसको बढ़ावा दे सकते हैं। हमारे स्‍कूलों में, इन सब में किस प्रकार से एक माहौल बनाया जाए प्रकृति रक्षा, प्रकृति पूजा, प्रकृति संरक्षण यह सहज मानव प्रकृति का हिस्‍सा कैसे बने, उस दिशा में हमको जाना होगा। और हम वो लोग है जिनका व्‍येन तक्‍तेन मुंजिता। यही जिनके जीवन का आदर्श रहा है। जहां व्‍येन तक्‍तेन मुंजिता का आदर्श रहा हो, वहां पर हमें प्रकृति का शोषण करने का अधिकार नहीं है। हमें प्रकृति का दोहन करने से अधिक प्रकृति को उपयोग, दुरूपयोग करने का हक नहीं मिलता है। दुनिया में प्रकृत‍ि का शोषण ही प्रवृति है, भारत में प्रकृति को दोहन एक संस्‍कार है। शोषण ही हमारी प्रवृति नहीं है और इसलिए विश्‍व इस संकट से जो गुजर रहा है, मैं अभी भी मानता हूं कि दुनिया को इस क्षेत्र में बचाने के लिए नेतृत्‍व भारत ने करना चाहिए। और उस दिमाग से भारत ने अपनी योजनाएं बनानी चाहिए। दुनिया climate change के लिए हमें guide करे और हम दुनिया को follow करें। दुनिया parameter तय करे और हम दुनिया को follow करे, ऐसा नहीं है। सचमुच में इस विषय में हमारी हजारों साल से वो विरासत है, हम विश्‍व का नेतृत्‍व कर सकते हैं, हम विश्‍व का मार्गदर्शन कर सकते हैं और विश्‍व को इस संकट से बचाने के लिए भारत रास्‍ता प्रशस्‍त कर सकता है। इस विश्‍वास के साथ इस conference से हम निकल सकते हैं। हम दुनिया की बहुत बड़ी सेवा करेंगे। उस विजन के साथ हम अपनी व्‍यवस्‍थाओं के प्रति जो भी समयानुकूल हम बदलाव लाना है, हम बदलाव लाए। जैसे अभी अब यह तो हम नहीं कहेंगे..

अच्‍छा, कुछ लोगों ने मान लिया कि पर्यावरण की रक्षा और विकास दोनों कोई आमने-सामने है। यह सोच मूलभूत गलत है। दोनों को साथ-साथ चलाया जा सकता है। दोनों को साथ-साथ आगे बढ़ाया जा सकता है। कुछ do’s and don’ts होते हैं, इसका पालन होना चाहिए। अगर वो पालन होता है तो हम उसकी रखवाली भी करते हैं और उसके लिए कोई चीजें, जैसे अभी हमने कोयले की खदानें उसकी नीलामी की, लेकिन उसके साथ-साथ उनसे जो पहले राशि ली जाती थी environment protection के लिए वो चार गुना बढ़ा दी, क्‍योंकि वो एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। आवश्‍यक है तो वो भी बदलाव किया। हमारी यह कोशिश रहनी चाहिए कि हम इस प्रकार से बदलाव लाने की दिशा में कैसे प्रयास करे और अगर हम प्रयास करते तो परिणाम मिल सकता है। दूसरी बात है, ज्‍यादातर भ्रम हमारे यहां बहुत फैलाया जाता है। अभी Land Acquisition Bill की चर्चा हुई है। इस Land Acquisition Bill में कहीं पर भी एक भी शब्‍द वनवासियों की जमीन के संबंध में नहीं है, आदिवासियों की जमीन के संबंध में नहीं है, Forest Land के संबंध में नहीं है। वो जमीन, उसके मालिक, Land Acquisition bill के दायरे में आते ही नहीं है, लेकिन उसके बावजूद भी जिनको इन सारी चीजों की समझ नहीं है। वो चौबीसों घंटे चलाते रहते हैं। पता ही नहीं उनको कहीं उल्‍लेख तक नहीं है। उनको भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। मैं समझता हूं कि समाज का गुमराह करने का इस प्रकार का प्रयास आपके लिए कोई छोटी बात होगी, आपके राजनीतिक उसूल होंगे लेकिन उसके कारण देश को कितना नुकसान होता है और कृपा करके ऐसे भ्रम फैलाना बंद होना चाहिए, सच्‍चाई की धरा पर पूरी debate होनी चाहिए। उसमें पक्ष विपक्ष हो सकता है, उसमें कुछ बुरा नहीं है, लोकतंत्र है। लेकिन आप जो सत्‍य कहना चाहते हो, उसमें दम नहीं है, इसलिए झूठ कहते रहो। इससे देश नहीं चलता है और इसलिए मैं विशेष रूप से वन विभाग से जुड़े हुए मंत्री और अधिकारी यहां उपस्थित हैं तो विशेष रूप से इस बात का उल्‍लेख करना चाहता हूं कि Land Acquisition Act के अंदर कहीं पर जंगल की जमीन, आदिवासियों की जमीन उसका कोई संबंध नहीं है। उस दायरे में वो आता नहीं है, हम सबको मालूम है कि उसका एक अलग कानून है, वो अलग कानूनों से protected है। इस कानून का उसके साथ कोई संबंध नहीं है, लेकिन झूठ फैलाया जा रहा है और इसलिए मैं चाहूंगा कि कम से कम और ऐसे मित्रों से प्रार्थना करूंगा कि देशहित में कम से कम ऐसे झूठ को बढ़ावा देने में आप शिकार न हो जाएं यह मेरा आग्रह रहेगा।

आज यह भी यहां बताया गया कि Tiger की संख्‍या बढ़ी है। करीब 40% वृद्धि हुई है। अच्‍छा लगता है सुनकर के वरना दुनिया में Tiger की संख्‍या कम होती जा रही है और दो-तिहाई संख्‍या हमारे पास ही है तो एक हमारा बहुत बड़ा गौरव है और यह गौरव मानवीय संस्‍कृति का भी द्योतक होता है। इन दोनों को जोड़कर हमें इस चीज का गौरव करना चाहिए। और विश्‍व को इस बात का परिचय होना चाहिए कि हम किस प्रकार की मानवीय संस्‍कृतियों को लेकर के जीते हैं कि जहां पर इतनी तेज गति से tiger की जनसंख्‍या का विकास हो रहा है। हमारे पूरब के इलाके में खासकर के हाथी को लेकर के रोज नई खबरें आती है। हा‍थी को लेकर के परेशानियां आती है। अभी मैं कोई एक science magazine पढ़ रहा था। बड़ी interesting चीज मैंने पहली बार पढ़ी, आप लोग तो शायद उसके जानकारी होगी। जब खेत में हाथियों का झुंड आ जाता है, तो बड़ी परेशानी रहती कैसे निकालना है, यह forest department के लोग भांति-भांति के सशत्र लेकर पहुंच जाते हैं और दो-दो दिन तक हो हल्‍ला हो जाता है। मैंने एक science magazine पढ़ा, कहीं पर लोगों ने प्रयोग किया है बड़ा ही Interesting प्रयोग लगा मुझे। वे अपने खेत के बाढ़ पर या पैड है उस पर Honey Bee को भी Developed करते हैं मधुमक्‍खी को रखते हैं और जब हाथी के झुंड आते हैं तो मधुमक्‍खी एक Special प्रकार की आवाज करती है और हाथी भाग जाता है। अब ये चीजे जो हैं कहीं न कहीं सफल हुई हैं आज भी शायद हमारे यहां हो सकता है कुछ इलाकों में करते भी होंगे। हमें इस प्रकार की व्‍यवस्‍थाओं को भी समझना होगा ताकि हमें हाथियों से संघर्ष करना पड़ सके। मानव और हाथी के बीच जो संघर्ष के जो समाचार आते हैं, उससे हम कैसे बचें। हम हाथी की भी देखभाल करें, अपने खेत की भी देखभाल कर सकें। अगर ऐसे सामान्‍य व्‍यवस्‍थाएं विकसित हो सकती है और अगर यह सत्‍य है तो मैंने कहीं पढ़ा था, लेकिन किसी प्रत्‍यक्ष मेरी किसान से बात हुई नहीं है लेकिन मैं कभी असम की तरफ जाऊंगा तो पूछूंगा सबसे बात करूंगा कि क्‍या है जानकारी लाने का प्रयास करूंगा मैं, लेकिन आपसे में उस दिशा में काम करने वाले जहां हाथी की जनसंख्‍या हैं और गांवों में कभी-कभी चली आती हैं तो उनके लिए शायद हो सकता है कि ये अगर इस प्रकार का प्रयोग हुआ हो तो यह काम आ सकता है। मेरा कहने का तात्‍पर्य यह है कि यह जगत सब समस्‍याओं से जुड़ा हुआ होगा हम ही पहली बार गुजर रहे हैं ऐसा थोड़ी है और हरेक ने अपने-अपने तरीके से उसके उपाय खोजे होंगे। उनको फिर से एक बार वैज्ञानिक तरीके से वैज्ञानिक तराजू से देखा जाए कि हम इन चीजों को कैसे फिर से एक बार प्रयोग में ला सकते हैं। थोड़ा उसे Modify करके उसे प्रयोग में ला सकते हैं। इन दिनों जब पर्यावरण की रक्षा की बात आती है, तो ज्‍यादातर कारखानें और ऊर्जा उसके आस-पास चर्चा रहती है। भारत उस अर्थ में ईश्‍वर की कृपा वाला राष्‍ट्र रहा है कि जिसके पास Maximum solar Radiation वाली संभावना वाला देश है। इसका हमें Maximum उपयोग कैसे करना है और इसलिए सरकार ने Initiative लिया है कि हम Solar Energy हम Wind Energy Biomass Energy उस पर कितना ज्‍यादा बल दें ताकि हम जो विश्‍व की चिंता है उसमें हम मशरूफ हों। लेकिन मजा देखिए, जो दुनिया Climate के लिए Lead करती है, दुनिया को पाठ पढ़ाती है अगर हम उनको कहें कि हम Nuclear Energy में आगे जाना चाहते हैं कि Nuclear Energy Environment protection का एक अच्‍छा रास्‍ता है और हम उनको जब कहते हैं कि Nuclear Energy के लिए आवश्‍यक Fuel दो तो मना कर देते हैं यानी हम दुनिया की इतनी बड़ी सेवा करना चाहते हैं लेकिन आप सेवा करों यह नियम पालन करो व‍ह नियम पालन करो। मैं दुनिया के सभी उस देशवासियों से यह निवेदन करना चाहूंगा कि भारत जैसा देश जिस प्रकार से नेतृत्‍व करने के लिए तैयार है Environment protection के लिए Civil Nuclear की तरफ हमारा बल है। हम Nuclear Energy पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं, हम उसे करने के लिए तैयार हैं क्‍योंकि हमें पता है कि पर्यावरण की रक्षा में अच्‍छे सा अच्‍छा रास्‍तों में महत्‍वपूर्ण है। लेकिन वही लोग जो हमें Environment के लिए भाषण देते हैं वो Nuclear के लिए Fuel देने के लिए तैयार नहीं है। ये दो तराजू से दुनिया नहीं चल सकती है और इसलिए विश्‍व पर हमें भी यह दबाव पैदा करना पड़ेगा और मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में यह दबाव दिखने वाला है, लोग अनुभव करेंगे हम Solar Energy की तरफ जा रहे हैं। Biomass की तरफ जा रहे हैं। लेकिन मैं Urban Bodies को कहना चाहूंगा अगर हम स्‍वच्‍छ भारत की चर्चा करें तो भी और अगर हम Environment की चर्चा करें तो भी। Waste Water & Solid waste Management की दिशा में हम लोंगों को आग्रहपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। Public Private Partnership Model को लेकर आगे बढ़ना चाहिए। Solid Waste Management की ओर हमने पूरा ध्‍यान देना चाहिए। और आज Waste Wealth का एक सबसे बड़ा Business है। Waste में से Wealth create करना एक बहुत बड़ा Entrepreneurship शुरू हुआ है। हम अपने Urban Bodies में इसको कैसे जोड़े। Urban Bodies में Waste में से Wealth को create पैदा करने में स्‍पेशल फोकस करें। और आप देखिए कि बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। एक छोटा सा प्रयोग है मैं Urban Bodies से आग्रह करूंगा मान लीजिए हम हिंदुस्‍तान में पांच सौ शहर पकड़े, जहां एक लाख से ज्‍यादा आबादी है और वहां पर हम तय करें अब देखिए आज जो शहर का कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए जो जगह जमीन की जो जरूरत है हजारों एकड़ भूमि की जरूरत पड़ेगी अगर ये कचरों के ढेर करने हैं तो अब गमिल लाओंगे कहां से और अब जमीन नहीं हैं तो क्‍या मतलब है कि कूड़ा-कचरा पड़ा रहेगा क्‍या और इसलिए हमारे लिए उस पर Process करना Recycle करना Waste Management करना यह अनिवार्य हो गया है। अब वैज्ञानिक के तरीके उपलब्‍ध हैं अगर हम Urban Body Waste Water Treatment करें और पानी को ठीक करके अगर किसानों को वापिस दे वरना एक समय ऐसा आएगा शहर और गांव के बीच संघर्ष होगा पानी के लिए। गांव कहेगा कि मैं शहर को पानी नहीं देने दूंगा और शहर बिना पानी मरेगा। लेकिन जो अगर शहर पानी प्रयोग करता है उसको Recycle करके गांव को वापस दे देता है खेतों में तो यह संघर्ष की नौबत नहीं आएगी और एक प्रकार से Treated Water होगा तो Fertilizer की दृष्टि से उपयोग इस प्रकार से पानी को इस प्रकार से बनाकर दिया जा सकता है। और Urban Body जो होता है उसके गांव जो होते हैं वो ज्‍यादातर सब्‍जी की खेती करते हैं और वही सब्‍जी उनके शहर के अंदर बिकने के लिए आती हैं रोजमर्रा की उनकी आजीविका उससे चलती है। हम इन्‍हीं को Solid Waste Management करके Solid Waste में से हम मानव Fertilizer बनाएं और वो Fertilizer हम उनको दें तो Organic सब्‍जी शहर में आएगी कि नहीं आएगी। इतनी बड़ी मात्रा में अगर हम Fertilizer देते हैं शहरों के कूड़े-कचरों से बनाया हुआ तो अच्‍छी Quality का विपुल मात्रा में सब्‍जी शहर में आएगी तो सस्‍ती सब्‍जी मिलेगी या नहीं मिलेगी? सस्‍ती सब्‍जी गरीब से गरीब व्‍यक्ति खाएगा तो Nutrition के Problem का Solution होगा कि नहीं होगा। Vegetable Sufficient खाएगा तो Health सेक्‍टर का बजट कम होगा कि नहीं होगा। एक प्रयास कितने ओर चीजों पर इफैक्‍ट कर सकता है इसका अगर हम एक Integrated approach करें तो हम हमारे गांवों को भी बचा सकते हैं हमारे शहरों को भी बचा सकते हैं। कभी-कभार अज्ञान का भी कारण होता है। हमारे यहां देखा है कि फसल होने के बाद अब जैसे Cotton है Cotton लेने के बाद बाकी जो है उसको जला देते हैं। लेकिन उसी को अगर टुकड़े कर करके खेत में डाल दें तो वहीं चीज Nutrition के रूप में काम आती है Fertilizer के रूप में काम आती है। मैंने एक प्रयोग देखा था केले की खेती हमारे यहां हो रही थी तब केला उतारे के बाद केला देने की क्षमता जब कम हो जाती है तो वो जो पेड़ का हिस्‍सा होता है उसके टुकड़े कर कर के उन्‍हें जमीन में डाले और मैंने अनुभव किया कि उसके अंदर इतना Water Content होता है केले के Waste Part में कि 90 दिन तक आपको फसल को पानी नहीं देना पड़ता है वो उसी में से फसल पानी ले लेती है। अब हम थोड़ा सा इनका प्रयोग चीजों को सीखें, समझें। इसको अगर Popular करें तो हम पानी को भी बचा सकते हैं, फसल को भी बचा सकते हैं। हम चीजों को किस प्रकार से और इसके लिए बहुत बड़ा आधुनिक से आधुनिक बड़ा विज्ञान की जरूरत होती है ऐसा नहीं है। सहज समझ का विषय होता है इनको हम जितना आगे बढ़ाएंगे हम इन चीजों को कर सकते हैं। Urban Body आग्रहपूर्वक Public Private Partnership Model उसमें Vibrating Gap funding का भी रास्‍ता निकल सकता है। आप जो इन Waste खेतों के किसानों को उसके कारण अगर Chemical Fertilizer का उपयोग कम होता है तो Chemical Fertilizer में से जो सब्सिडी बचेगी मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं वो सब्सिडी जो बचेगी वो Vibrating Gap Funding के लिए शहरों को दे देंगे, यानी आपके देश में से Wealth Create होगी और जो आप खाद्य तैयार करोगे वो खाद्य उपयोग करने के कारण Chemical Fertilizer की सब्सिडी बचेगी वो आपको मिलेगी। आप गैस पैदा करोगे, गैस दोगो तो जितनी मात्रा में गैसा पैदा करोगे जो गैस सिलेंडर की जो सब्सिडी है वो बचेगी तो वो सब्सिडी हम आपको Transfer करेंगे आपके Vibrating Gap Funding में काम आएगी। हम एक उसका Finance का Model कर सकते हैं, लेकिन भारत सरकार, राज्‍य सरकार और Local Self Government ये तीनों मिल करके हम Environment को Priority देते हुए हमारे नगरों को स्‍वच्‍छ रखते हुए, वहां के कूड़े-कचरे को Waste में Wealth Create करें और बहुत Entrepreneur मिले हैं। उनको हम कैसे प्रयोग में हम करें मैंने एक जगह देखा है जहां पर Waste में से ईंटे बना रहे हैं और इतनी बढि़या ईंटे मजबूत बन रही हैं कि बहुत काम आ रही है। आपने देखा होगा पहले जहां पर बिजली के थर्मल प्‍लांट हुआ करते थे वहां पर बाहर कोयले की Ash जो होता है उसके ढेर लगे रहते थे। आज Recycle और Chemical में से ईंटे बनने के कारण सीमेंट में उपयोग आने के कारण वो निकलते ही Contract हो जाता है और दो-दो साल का Contract और निकलते ही हम उठाएंगे यानी कि जो किसी पर्यावरण को बिगाड़ने के लिए संकट था वो ही आज Property में Convert हो गया है हम थोड़ा इस दिशा में प्रयास करें, initiative लें, हम इसमें काफी मदद कर सकते हैं और मेरा सबसे आग्रह है कि हम इन चीजों को बल मानते हुए आने वाले दिशों में दो दिन जब आप चर्चा करेंगे। गंगा की सफाई उसके साथ जुड़ा हुआ है गंगा के किनारे पर रहने वाले, गंगा किनारे के गांव और शहर मैं उन संबंधित राज्‍य सरकारों से आग्रह करूंगा इसमें कोई Comprise मत कीजिए। बैंकों से हम आग्रह करेंगे उनको हम कम दर से लोन दें। लेकिन Approved Plant उनमें वो लगाये जाएं Sewerage Treatment plant किये जाएं। एक बार हमने सफलतापूर्वक ढाई हजार किलोमीटर लम्‍बी गंगा के अंदर जाने वाले प्रदूषण को रोक लिया पूरे दुनिया के सामने और पूरे हिंदुस्‍तान के सामने एक नया विश्‍वास पैदा कर सकता है कि हम सामान्‍य अपने तौर तरीकों से पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं। यह विश्‍वास पैदा करने के लिए Model की तरह इस काम को खड़ा करना और ये एक बार काम खड़ा हो गया तो और काम अपने आप खड़े हो जाएंगे। एक विश्‍वास पैदा करने की आवश्‍यकता है और किया जा सकता है। एक बार हम किसी चीज को हाथ लगाएं पीछे लग जाएं परिणाम मिल सकता है और मैं चाहूंगा ज्‍यादातर इन पांच राज्‍यों से कि जो गंगा के किनारे की उनकी जिम्‍मेवारी है छह हजार के करीब गांव है, एक सौ 18000 किलोमीटर हैं कोई आठ सौ के करीब Industries हैं जो Pollution के लिए तैयार है इसको Target करते हुए एक बार गंगा के किनारे पर हम तय कर ले वहां से कोई भी दूषित पानी या कूड़ा-कचरा गंगा में जाने नहीं देंगे। आप देखिए अपने आप में बदलाव शुरू हो जाएगा। फिर तो गंगा की अपनी ताकत भी है खुद को साफ रखने की। और वो हमने आगे निकल जाएगी लेकिन हम तय करे कि हम गंदा नहीं करेंगे तो गंगा को साफ करने के लिए तो हमें गंदा नहीं करना पड़ेगा गंगा अपना खुद कर सकती है। लेकिन हम गंदा न करे इतना तो संकल्‍प करना पड़ेगा और उस काम को ले करके आप जब यहां पर बैठे है जो गंगा किनारे को जो इस विभाग के मंत्री हैं वो विशेष रूप से आधा-पौना घंटा बैठ करके उन चीजों को कैसे आगे बढ़ाया जाए। विशेष रूप से चर्चा करें मेरा आग्रह रहेगा फिर एक बार मैं इस प्रयास का स्‍वागत करता हूं और मुझे विश्‍वास है कि इस सपने के साथ फिर एक बार मैं दोहराता हूं ये एक ऐसा विषय है जो हमारी बपौती है, हमारा डीएनए है। हमारे पूर्वजों ने इन मानव जाति की बहुत बड़ी सेवा की है। विश्‍व का नेतृत्‍व हमारे पास ही होना चाहिए Climate के मुद्दे पर ये मिजाज होना चाहिए। पूरे विश्‍व को हम दिखा सकते हैं कि यह हमारा विषय है। हमारी परंपरा है। दुनिया को हम सीखा सकते हैं इतनी ताकत के साथ हम यहां से निकले यही अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं धन्‍यवाद।

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India will never compromise on the interests of its farmers: PM Modi
August 07, 2025
QuoteDr. Swaminathan led the movement to make India self-reliant in food production: PM
QuoteDr. Swaminathan went beyond biodiversity and gave the visionary concept of bio-happiness: PM
QuoteIndia will never compromise on the interests of its farmers: PM
QuoteOur government has recognised farmers' strength as the foundation of the nation's progress: PM
QuoteBuilding on the legacy of food security, the next frontier for our agricultural scientists is ensuring nutritional security for all: PM

My Cabinet colleague, Shri Shivraj Singh Chouhan; Chairperson of the M. S. Swaminathan Research Foundation, Dr Soumya Swaminathan; Member of NITI Aayog, Dr Ramesh Chand; I also see that many members of the Swaminathan family are present here—I extend my respectful greetings to them as well. All scientists, distinguished guests, ladies and gentlemen!

There are certain personalities whose contributions are not confined to a specific era or a particular geography. Professor M. S. Swaminathan was one such eminent scientist, a devoted son of Maa Bharati. He transformed science into a medium of public service. He dedicated his life to ensuring the nation’s food security. He awakened a consciousness that will continue to shape Bharat's policies and priorities for centuries to come.

I extend my greetings to all of you on the occasion of the Swaminathan Centenary Celebrations.

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Friends,

Today, 7th August, also marks National Handloom Day. Over the past ten years, the handloom sector has gained new recognition and strength across the country. I convey my greetings to all of you and to those associated with the handloom sector on this National Handloom Day.

Friends,

My association with Dr Swaminathan dates back many years. Many are aware of the earlier conditions in Gujarat—agriculture there often faced severe challenges due to droughts and cyclones, and the desert of Kutch was steadily expanding. During my tenure as Chief Minister, we began work on the Soil Health Card scheme. I vividly recall that Professor Swaminathan had shown immense interest in the initiative. He generously offered his suggestions and guided us. His contributions greatly helped in the success of this effort. It was nearly twenty years ago that I visited the centre of his research foundation in Tamil Nadu. In 2017, I had the opportunity to release his book 'The Quest for a World Without Hunger'. In 2018, when the Regional Centre of the International Rice Research Institute was inaugurated in Varanasi, we once again benefited from his guidance. Every meeting with him was a learning experience for me. He once said, “Science is not just about discovery, but delivery,” and he demonstrated this through his actions. He did not limit himself to research; he also inspired farmers to adopt new agricultural practices. Even today, his approach and ideas are visible across Bharat's agriculture sector. He was, in the truest sense, a jewel of Maa Bharati. I consider it my honour that our government had the opportunity to confer upon Dr Swaminathan the Bharat Ratna.

Friends,

Dr Swaminathan launched a mission to make Bharat self-reliant in food production. Yet, his identity extended beyond the Green Revolution. He continuously raised awareness among farmers about the rising use of chemicals in farming and the risks of monoculture farming. In other words, while he worked to increase grain production, he was equally concerned about the environment and Mother Earth. To strike a balance between the two and to address these challenges, he introduced the concept of the Green Revolution. He proposed the idea of 'bio-villages', which could empower rural communities and farmers. He promoted concepts like 'community seed banks' and 'opportunity crops'.

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Friends,

Dr Swaminathan believed that the solution to challenges like climate change and nutrition lies in the very crops we have forgotten. His focus was on drought tolerance and salt tolerance. He began work on millets—Shree Anna—at a time when no one gave them much importance. Years ago, Dr Swaminathan had recommended that the genetic traits of mangroves be transferred to rice, so that crops would become more climate-resilient. Today, as we speak of climate adaptation, we realise just how far ahead he was in his thinking.

Friends,

Today, biodiversity is a global concern, and governments around the world are taking numerous measures to protect it. But Dr Swaminathan went a step further and gave us the idea of 'biohappiness'. Today, we are here to celebrate that very concept. Dr Swaminathan used to say that the power of biodiversity could bring about a significant transformation in the lives of local communities; that through the use of local resources, new means of livelihood could be created. True to his nature, he was an expert at implementing his ideas on the ground. Through his research foundation, he consistently strove to bring the benefits of new discoveries to the farmers. Our small-scale farmers, our fishermen, our tribal communities—all have benefitted immensely from his efforts.

Friends,

Today, I am particularly pleased that the 'M. S. Swaminathan Award for Food and Peace' has been instituted to honour Professor Swaminathan’s legacy. This international award will be presented to individuals from developing countries who have made significant contributions in the field of food security. Food and peace—the relationship between the two is not only philosophical but also deeply practical. In our Upanishads, it is stated: अन्नम् न निन्द्यात्, तद् व्रतम्। प्राणो वा अन्नम्। शरीरम् अन्नादम्। प्राणे शरीरम् प्रतिष्ठितम्। That is, one must not disrespect food. Food supports life.

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Therefore, friends,

If there is a crisis of food, then there is a crisis of life. And when the lives of lakhs are at risk, global unrest naturally follows. This is why the ‘M. S. Swaminathan Award for Food and Peace’ is of utmost importance. I heartily congratulate the first recipient of this award, the talented scientist from Nigeria, Professor Akinwumi Adesina.

Friends,

Today, Indian agriculture has reached great heights, and I am certain that wherever Dr Swaminathan is, he would be proud. Today, Bharat ranks first in the production of milk, pulses, and jute. Bharat is second in the production of rice, wheat, cotton, fruits, and vegetables. Bharat is also the world's second-largest producer of fish. Last year, Bharat recorded its highest-ever food grain production. We are also setting new records in oilseeds. The production of soybean, mustard, and groundnut has risen to record levels.

Friends,

For us, the welfare of our farmers is of the highest priority. Bharat will never compromise on the interests of its farmers, livestock rearers, and fishermen. And I am fully aware that I may have to pay a very heavy price personally, but I am prepared for it. For the farmers of my country, for the fishermen of my country, for the livestock rearers of my country, Bharat stands ready today. We are continuously working towards increasing farmers’ incomes, reducing their agricultural expenditure, and creating new sources of income.

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Friends,

Our government has regarded the strength of farmers as the foundation of the nation's progress. That is why the policies framed in recent years have not merely extended assistance, but have also sought to build trust among farmers. The direct financial support provided through the PM-KISAN Samman Nidhi has empowered small farmers with self-confidence. The PM Fasal Bima Yojana has given them protection from risk. Issues related to irrigation have been addressed through the PM Krishi Sinchai Yojana. The creation of 10,000 FPOs has enhanced the collective strength of small farmers. Financial support to cooperatives and self-help groups has given fresh momentum to the rural economy. Thanks to e-NAM, it has become easier for farmers to sell their produce. The PM Kisan Sampada Yojana has accelerated the establishment of new food processing units and storage infrastructure. Recently, the PM Dhan Dhanya Yojana has also been approved. Under this scheme, 100 districts where agriculture has remained backward have been selected. By providing infrastructure and financial assistance to farmers in these districts, a new sense of confidence is being instilled in farming.

Friends,

21st-century Bharat is working with full dedication to become a developed nation. And this goal will be achieved only through the contribution of every class, every profession. Taking inspiration from Dr Swaminathan, our scientists now have yet another opportunity to create history. The scientists of the previous generation ensured food security—now there is a need to focus on nutritional security. We must promote bio-fortified and nutrition-rich crops on a large scale to improve people’s health. We must also demonstrate greater urgency in reducing the use of chemicals and promoting natural farming.

Friends,

You are well aware of the challenges related to climate change. We must develop as many varieties of climate-resilient crops as possible. The focus must be on drought-tolerant, heat-resistant, and flood-adaptive crops. More research is required on crop rotation, and on identifying which crops are best suited to which soil types. Alongside this, we must also develop affordable soil testing tools and effective methods of nutrient management.

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Friends,

We need to do much more in the field of solar-powered micro-irrigation. We must make drip systems and precision irrigation more widespread and effective. Can we integrate satellite data, AI, and machine learning? Can we develop a system that can forecast crop yields, monitor pests, and guide sowing? Can such a real-time decision support system be made available in every district? All of you must continue guiding agri-tech startups. Today, a large number of innovative young people are working to solve the problems faced in agriculture. If you, with your experience, continue to mentor them, the products they develop will be more impactful and more user-friendly.

Friends,

Our farmers and farming communities possess a treasure trove of traditional knowledge. By integrating traditional Indian agricultural practices with modern science, a holistic knowledge base can be created. Crop diversification is today a national priority. We must explain to our farmers its significance. We must convey what the benefits are, and also what the consequences of not adopting it might be. And in this task, you are best placed to make a real impact.

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Friends,

Last year, when I visited the Pusa campus on 11th August, I had urged that efforts be increased to take agricultural technology from the 'lab to the land'. I am pleased that the Viksit Krishi Sankalp Abhiyan was launched during May–June. For the first time, scientists' teams—around 2,200 in number—participated across more than 700 districts in the country. Over 60,000 programmes were conducted, and, more importantly, direct engagement was established with around 1.25 crore aware and informed farmers. This effort by our scientists to reach more and more farmers is truly commendable.

Friends,

Dr M. S. Swaminathan taught us that agriculture is not just about crops—agriculture is life itself. The dignity of every individual connected to the field, the well-being of every farming community, and the protection of nature—these form the very strength of our government's agricultural policy. We must weave together science and society, place the interests of the small farmer at the heart of our efforts, and empower the women who work in the fields. Let us move ahead with this very goal in mind, with the inspiration of Dr Swaminathan guiding us all.

Once again, I extend my heartfelt congratulations to all of you on this special occasion.

Thank you very much.