भाईयों और बहनों,

आप सबका स्‍वागत है। दो दिन बड़ी विस्‍तार से चर्चा होने वाली है। इस मंथन में से कई महत्‍वपूर्ण बाते उभरकर के आएगी जो आगे चलकर के नीति या नियम का रूप ले सकती है और इसलिए हम जितना ज्‍यादा एक लम्‍बे विजन के साथ इन चर्चाओं में अपना योगदान देंगे तो यह दो दिवसीय सम्‍मेलन अधिक सार्थक होगा। इस विषय में कुछ बातें बताने का आज मन करता है मेरा। Climate के संबंध में या Environment के संबंध में प्रारंभ से कुछ हमारी गलत अभिव्‍यक्ति रही है और हम ऐसे जैसे अपनी बात को दुनिया के आगे प्रस्‍तुत किया कि ऐसा लगने लगा कि जैसे हमें न Climate की परवाह है न Environment की परवाह है। और सारी दुनिया हमारी इस अभिव्‍यक्ति की गलती के कारण यह मानकार के बैठी कि विश्‍व तो Environment conscious हो रहा है। विश्‍व climate की चिंता कर रहा है कि यह देश है जो कोई अडंगे डाल रहा है और इसका मूल कारण यह नहीं है कि हमने environment को बिगाड़ने में कोई अहम भूमिका निभाई है। climate को बर्बाद करने में हमारी या हमारे पूर्वजों की कोई भूमिका रही है। हकीकत तो उल्‍टी है। हम उस परंपरा में पले है, उन नीति, नियम और बंधनों में पले-बढ़े लोग हैं, जहां प्रकृति को परमेश्‍वर के रूप माना गया है, जहां पर प्रकृति की पूजा को सार्थक माना गया है और जहां पर प्रकृति की रक्षा को मानवीय संवेदनाओं के साथ जोड़ा गया है। लेकिन हम अपनी बात किसी न किसी कारण से, एक तो हम कई वर्षों से गुलाम रहे, सदियों से गुलाम रहने के कारण एक हमारी मानसिकता भी बनी हुई है कि अपनी बात दुनिया के सामने रखते हुए हम बहुत संकोच करते हैं। ऐसा लगता है कि यार कहीं यह आगे बढ़ा हुआ विश्‍व हम Third country के लोग। हमारी बात मजाक तो नहीं बन जाएगी। जब तक हमारे भीतर एक confidence नहीं आता है, शायद इस विषय पर हम ठीक से deal नहीं कर पाएंगे।

और मैं आज इस सभागृह में उपस्थित सभी महानुभावों से आग्रहपूर्वक कहना चाहता हूं हम जितने प्रकृति के विषय में संवेदनशील है। दुनिया हमारे लिए सवालिया निशान खड़ा नहीं कर सकती है। आज भी प्रति व्‍यक्ति अगर carbon emission में contribution किसी का होगा तो कम से कम contribution वालों में हम है। लेकिन उसके बाद भी आवश्‍यकता यह थी कि विश्‍व में जब climate विषय में एक चिंता शुरू हुई, भारत ने सबसे पहले इसका नेतृत्‍व करना चाहिए था। क्‍योंकि दुनिया में अधिकतम वर्ग यह है कि जो climate की चिंता औरों पर restriction की दिशा में करता रहता है, जबकि हम लोग सदियों से प्रकृति की रक्षा करते-करते जीवन विकास की यात्रा में आगे बढ़ने के पक्षकार रहे हैं। दुनिया जो आज climate के संकट से गुजर रही है, Global Warming के संकट से गुजर रही है, उसको अभी भी रास्‍ता नहीं मिल रहा है कि कैसे बचा जाए, क्‍योंकि वो बाहरी प्रयास कर रहे हैं। और मैंने कई बार कहा कि इन समस्‍या की जड़ में हम carbon emission को रोकने के लिए जो सारे नीति-नियम बना रहे हैं, विश्‍व के अंदर एक बंधनों की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम कोई अपनी Life Style बदलने के लिए तैयार नहीं है। समस्‍या की जड़ में मानवजात जो कि उपभोग की तरफ आगे बढ़ती चली गई है और जहां ज्‍यादा उपभोग की परंपरा है, वहां सबसे ज्‍यादा प्रकृति का नुकसान होता है, जहां पर उपभोग की प्रवृति कम है, वहां प्रकृति का शोषण भी कम होता है और इसलिए हम जब तक अपने life style के संबंध में focus नहीं करेंगे और दुनिया में इस एक बात को केंद्र बिंदु में नहीं लाएंगे हम शायद बाकी सारे प्रयासों के बावजूद भी, लेकिन यह जो बहुत आगे बढ़ चुके देश है, उनके गले उतारना जरा कठिन है। वो माने न माने हम तो इन्‍हीं बातों में पले-बढ़े लोग हैं। हमें फिर से अगर वो चीजें भूला दी गई है, तो हमें उस पर सोचना चाहिए। मैं उदाहरण के तौर पर कहता हूं आजकल दुनिया में Recycle की बडी चर्चा है और माना जाता है कि यह दुनिया में कोई नया विज्ञान आया है, नई व्‍यवस्‍था आई है। जरा हमारे यहां देखों Recycle, reuse और कम से कम उपयोग करने की हमारी प्रकृति कैसी रही है। पुराना जमाना की जरा अपने घर में दादी मां उनके जीवन को देखिए। घर में कपड़े अगर पुराने हो गए होंगे, तो उसमें से रात को बिछाने के लिए गद्दी बना देंगे। वो अब उपयोगी नहीं रही तो उसमें से भी झाडू-पौचे के लिए उस जगह का उपयोग करेंगे। यानी एक चीज को recycle कैसे करना घर में हर चीज का वो हमारे यहां सहज परंपरा थी। सहज प्रकृति थी।

मैंने देखा है गुजरात के लोग आम खाते हैं, लेकिन आम को भी इतना Recycle करते हैं, Reuse करते हैं शायद कोई बाहर सोच नहीं सकता है। कहने का तात्‍पर्य है कि कोई बाहर से borrow की हुई चीज नहीं है। लेकिन हमने दुनिया समझे उस terminology में उन चीजों को आग्रहपूर्वक रखा नहीं। विश्‍व के सामने हम अपनी बातों को ढंग से रख नहीं पाए। हमारे यहां पौधे में परमात्‍मा है। जगदीश चंद्र बोस ने विज्ञान के माध्‍यम से जब Laboratory में जब सिद्ध किया कि पौधे में जीव होता है, उसके बाद ही हमने जीव है ऐसा मानना तय किया, ऐसा नहीं है। हम सहस्‍त्रों वर्ष से गीता का उल्‍लेख करे, महाभारत का उल्‍लेख करे हमें तभी से मानते हुए आए हैं कि पौधे में परमात्‍मा होता है। और इसलिए पौधे की पूजा, पौधे की रक्षा यह सारी चीजें हमें परंपराओं से सिखाई गई थी। लेकिन काल क्रम में हमने ही अपने आप को कुछ और तरीके से रास्‍ते खोजने के प्रयास किए। कभी-कभी मुझे लगता है.. यहां urban secretaries बहुत बड़ी संख्‍या में है हम परंपरागत रूप से चीजों को कैसे कर सकते हैं। मैं जानता हूं मैं जो बातें बताऊंगा, ये जो so called अंग्रेजीयत वाले लोग हैं, वो उसका मजाक उड़ाएंगे 48 घंटे तक। बड़ा मजाक उड़ाएंगे, आपको भी बड़ा मनोरंजन मिलेगा टीवी पर, क्‍योंकि एक अलग सोच के लोग हैं। जैसे मैं आपको एक बात बताऊं। आपको मालूम होगा यहां से जिनका गांव के साथ जीवन रहा होगा। गांव में एक परंपरा हुआ करती थी कि जब full moon होता था, तो दादी मां बच्‍चों को चांदनी की रोशनी में सुई के अंदर धागा पिरोने के लिए प्रयास करते थे, क्‍यों eye sight तो थी, लेकिन उस चांदनी की रोशनी की अनुभूति कराते थे।

आज शायद नई पीढ़ी को पूछा जाए कि आपने चांदनी की रोशनी देखी है क्‍या? क्‍या पूर्णिमा की रात को बाहर निकले हो क्‍या? अब हम प्रकृति से इतने कट गए हैं।

अगर हमारी urban body यह तय करे, लोगों को विश्‍वास में लेकर के करें कि भई हम पूर्णिमा की रात को street light नहीं जलाएंगे। इतना ही नहीं उस दिन festival मनाएंगे पूरे शहर में, सब मोहल्‍ले में लोग स्‍पर्धा करेंगे, सुई में धागा डालने की। एक community event हो जाएगा, एक आनंद उत्‍सव हो जाएगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। चीज छोटी होती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि सभी Urban Body में महीने में एक बार इस चांदनी रात का उपयोग करते हुए अगर street light बंद की जाए तो कितनी ऊर्जा बचेगी? कितनी ऊर्जा बचेगी तो कितना emission हम कम करेंगे? लेकिन यही चीज इस carbon emission के हिसाब से रखोगे, तो यह जो so called अपने आप को पढ़ा-लिखा मानता हैं, वो कहे वाह नया idea है, लेकिन वही चींज हमारी गांव की दादी मां कहती वो सुई और धागे की कथा कहकर के कहेंगे, अरे क्‍या यह पुराने लोग हैं इनको कोई समझ नहीं है, देश बदल चुका है। क्‍या यह हम हमारे युवा को प्रेरित कर सकते हैं कि भई Sunday हो, Sunday on cycle मान लीजिए, हो सकता है कोई यह भी कह दें कि मोदी अब cycle कपंनियों के agent बन गया हैं। यह बड़ा दुर्भाग्‍य है देश का। पता नहीं कौन क्‍या हर चीज का अर्थ निकालता है। जरूरी नहीं कि हर कोई लोग cycle खरीदने जाए, तय करे कि भई मैं सप्‍ताह में एक दिन ऊर्जा से उपयोग में आने वाले साधनों का उपयोग में नहीं करूंगा। अपनी अनुकूलता है।

समाज मैं जो life style की बात करता हूं हम पर्यावरण की रक्षा में इतना बड़ा योगदान दें सकते हैं। सहज रूप से दे सकते हैं और थोड़ा सा प्रयास करना पड़ता है। एक शिक्षक के जीवन को मैं बराबर जानता हूं। मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो उन पिछड़े इलाकों में चला जाता था, जून महीने में कि जहां पर girl child education बहुत कम हो। 40-44 डिग्री Temperature रहा करता था जून महीने में और मैं ऐसे गांव में जाकर तीन दिन रहता था। जब तक मैं मुख्‍यमंत्री रहा वो काम regularly करता था। एक बार मैं समुद्री तट के एक गांव में गया। एक भी पेड़ नहीं था, पूरे गावं में कहीं पर नहीं, लेकिन जो स्‍कूल था, वो घने जंगलों में जैसे कोई छोटी झोपड़ी वाली स्‍कूल हो, ऐसा माहौल था। तो मेरे लिए आश्‍चर्य था। मैंने कहा कि यार कहीं एक पेड़ नहीं दिखता, लेकिन स्‍कूल बड़ी green है, क्‍या कारण है। तो वहां एक teacher था, उस teacher का initiative इतना unique initiative था, उसने क्‍या किया – कहीं से भी bisleri की बोतल मिलती थी खाली, उठाकर ले आता था, पेट्रोल पम्‍प पर oil के जो टीन खाली होते थे वो उठाकर ले आता था और लाकर के students को एक-एक देता था, साफ करके खुद और उनको कहता था कि आपकी माताजी जो kitchen में बर्तन साफ करके kitchen का जो पानी होता है, वो पानी इस बोतल में भरकर के रोज जब स्‍कूल में आओगे तो साथ लेकर के आओ। और हमें भी हैरानी थी कि सारे बच्‍चे हाथ में यह गंदा दिखने वाला पानी भरकर के क्‍यों आते हैं। उसने हर बच्‍चे को पेड़ दे दिया था और कह दिया था कि इस बोतल से daily तुम्‍हें पानी डालना है। Fertilizer भी मिल जाता था। एक व्‍यक्ति के अभिरत प्रयास का परिणाम था कि वो पूरा स्‍कूल का campus एकदम से हरा-भरा था। कहना का तात्‍पर्य है कि इन चीजों के लिए समाज का जो सहज स्‍वभाव है, उन सहज स्‍वभाव को हम कितना ज्‍यादा प्रेरित कर सकते हैं, करना चाहिए।

मैं एक बार इस्राइल गया था, इस्राइल में रेगिस्‍तान में कम से कम बारिश, एक-एक बूंद पानी का कैसे उपयोग हो, पानी का recycle कैसे हो, समुद्री की पानी से कैसे sweet water बनाया जाए, इन सारे विषयों में काफी उन्‍होंने काम किया है। काफी प्रगति की है। इस्राइल तो इस समय एक अभी भी रेगिस्‍तान है जहां हरा-भरा होना बाकी है और एक है पूर्णतय: उन्‍होंने रेगिस्‍तान को हरा-भरा बना दिया है।

बेन गुरियन जो इस्राइल के राष्‍ट्रपिता के रूप में माने जाते हैं, तो मैं जब इस्राइल गया था तो मेरा मन कर गया कि उनका जो निवासा स्‍थान है वो मुझे देखना है, उनकी समाधि पर जाना है। तो मैंने वहां की सरकार को request की थी बहुत साल पहले की बात है। तो मैं गया, उनका घर उस रेगिस्‍तान वाले इलाके में ही था, वहीं रहते थे वो। और दो चीजें मेरे मन को छू गई – एक उनके bedroom में महात्‍मा गांधी की तस्‍वीर थी। वे सुबह उठते ही पहले उनको प्रणाम करते थे और दूसरी विशेषता यह थी कि उनकी जो समाधि थी, उन समाधि के पास एक टोकरी में पत्‍थर रखे हुए थे। सामान्‍य रूप से इतने बड़े महापुरूष के वहां जाएंगे तो मन करता है कि फूल रखें वहां, नमन करे। लेकिन चूंकि उनको green protection करना है, greenery की रक्षा करनी है। फूल-फल इसको नष्‍ट नहीं करना, यह संस्‍कार बढ़ाने के लिए बेन बुरियन की समाधि पर अगर आपको आदर करना है तो क्‍या करना होता था उस टोकरी में से एक पत्‍थर उठाना और पत्‍थर रखना और शाम को वो क्‍या करते थे सारे पत्‍थर इकट्ठे करके के फिर टोकरी में रख देते थे। अब देखिए environment की protection के लिए किस प्रकार की व्‍यवस्‍थाओं को लोग विकसित करते हैं। हम अपने आपसे बाकी सारी बातों के साथ-साथ हम अपने जीवन में इन चीजों को कैसे लाए उसके आधार पर हम इसको बढ़ावा दे सकते हैं। हमारे स्‍कूलों में, इन सब में किस प्रकार से एक माहौल बनाया जाए प्रकृति रक्षा, प्रकृति पूजा, प्रकृति संरक्षण यह सहज मानव प्रकृति का हिस्‍सा कैसे बने, उस दिशा में हमको जाना होगा। और हम वो लोग है जिनका व्‍येन तक्‍तेन मुंजिता। यही जिनके जीवन का आदर्श रहा है। जहां व्‍येन तक्‍तेन मुंजिता का आदर्श रहा हो, वहां पर हमें प्रकृति का शोषण करने का अधिकार नहीं है। हमें प्रकृति का दोहन करने से अधिक प्रकृति को उपयोग, दुरूपयोग करने का हक नहीं मिलता है। दुनिया में प्रकृत‍ि का शोषण ही प्रवृति है, भारत में प्रकृति को दोहन एक संस्‍कार है। शोषण ही हमारी प्रवृति नहीं है और इसलिए विश्‍व इस संकट से जो गुजर रहा है, मैं अभी भी मानता हूं कि दुनिया को इस क्षेत्र में बचाने के लिए नेतृत्‍व भारत ने करना चाहिए। और उस दिमाग से भारत ने अपनी योजनाएं बनानी चाहिए। दुनिया climate change के लिए हमें guide करे और हम दुनिया को follow करें। दुनिया parameter तय करे और हम दुनिया को follow करे, ऐसा नहीं है। सचमुच में इस विषय में हमारी हजारों साल से वो विरासत है, हम विश्‍व का नेतृत्‍व कर सकते हैं, हम विश्‍व का मार्गदर्शन कर सकते हैं और विश्‍व को इस संकट से बचाने के लिए भारत रास्‍ता प्रशस्‍त कर सकता है। इस विश्‍वास के साथ इस conference से हम निकल सकते हैं। हम दुनिया की बहुत बड़ी सेवा करेंगे। उस विजन के साथ हम अपनी व्‍यवस्‍थाओं के प्रति जो भी समयानुकूल हम बदलाव लाना है, हम बदलाव लाए। जैसे अभी अब यह तो हम नहीं कहेंगे..

अच्‍छा, कुछ लोगों ने मान लिया कि पर्यावरण की रक्षा और विकास दोनों कोई आमने-सामने है। यह सोच मूलभूत गलत है। दोनों को साथ-साथ चलाया जा सकता है। दोनों को साथ-साथ आगे बढ़ाया जा सकता है। कुछ do’s and don’ts होते हैं, इसका पालन होना चाहिए। अगर वो पालन होता है तो हम उसकी रखवाली भी करते हैं और उसके लिए कोई चीजें, जैसे अभी हमने कोयले की खदानें उसकी नीलामी की, लेकिन उसके साथ-साथ उनसे जो पहले राशि ली जाती थी environment protection के लिए वो चार गुना बढ़ा दी, क्‍योंकि वो एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। आवश्‍यक है तो वो भी बदलाव किया। हमारी यह कोशिश रहनी चाहिए कि हम इस प्रकार से बदलाव लाने की दिशा में कैसे प्रयास करे और अगर हम प्रयास करते तो परिणाम मिल सकता है। दूसरी बात है, ज्‍यादातर भ्रम हमारे यहां बहुत फैलाया जाता है। अभी Land Acquisition Bill की चर्चा हुई है। इस Land Acquisition Bill में कहीं पर भी एक भी शब्‍द वनवासियों की जमीन के संबंध में नहीं है, आदिवासियों की जमीन के संबंध में नहीं है, Forest Land के संबंध में नहीं है। वो जमीन, उसके मालिक, Land Acquisition bill के दायरे में आते ही नहीं है, लेकिन उसके बावजूद भी जिनको इन सारी चीजों की समझ नहीं है। वो चौबीसों घंटे चलाते रहते हैं। पता ही नहीं उनको कहीं उल्‍लेख तक नहीं है। उनको भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है। मैं समझता हूं कि समाज का गुमराह करने का इस प्रकार का प्रयास आपके लिए कोई छोटी बात होगी, आपके राजनीतिक उसूल होंगे लेकिन उसके कारण देश को कितना नुकसान होता है और कृपा करके ऐसे भ्रम फैलाना बंद होना चाहिए, सच्‍चाई की धरा पर पूरी debate होनी चाहिए। उसमें पक्ष विपक्ष हो सकता है, उसमें कुछ बुरा नहीं है, लोकतंत्र है। लेकिन आप जो सत्‍य कहना चाहते हो, उसमें दम नहीं है, इसलिए झूठ कहते रहो। इससे देश नहीं चलता है और इसलिए मैं विशेष रूप से वन विभाग से जुड़े हुए मंत्री और अधिकारी यहां उपस्थित हैं तो विशेष रूप से इस बात का उल्‍लेख करना चाहता हूं कि Land Acquisition Act के अंदर कहीं पर जंगल की जमीन, आदिवासियों की जमीन उसका कोई संबंध नहीं है। उस दायरे में वो आता नहीं है, हम सबको मालूम है कि उसका एक अलग कानून है, वो अलग कानूनों से protected है। इस कानून का उसके साथ कोई संबंध नहीं है, लेकिन झूठ फैलाया जा रहा है और इसलिए मैं चाहूंगा कि कम से कम और ऐसे मित्रों से प्रार्थना करूंगा कि देशहित में कम से कम ऐसे झूठ को बढ़ावा देने में आप शिकार न हो जाएं यह मेरा आग्रह रहेगा।

आज यह भी यहां बताया गया कि Tiger की संख्‍या बढ़ी है। करीब 40% वृद्धि हुई है। अच्‍छा लगता है सुनकर के वरना दुनिया में Tiger की संख्‍या कम होती जा रही है और दो-तिहाई संख्‍या हमारे पास ही है तो एक हमारा बहुत बड़ा गौरव है और यह गौरव मानवीय संस्‍कृति का भी द्योतक होता है। इन दोनों को जोड़कर हमें इस चीज का गौरव करना चाहिए। और विश्‍व को इस बात का परिचय होना चाहिए कि हम किस प्रकार की मानवीय संस्‍कृतियों को लेकर के जीते हैं कि जहां पर इतनी तेज गति से tiger की जनसंख्‍या का विकास हो रहा है। हमारे पूरब के इलाके में खासकर के हाथी को लेकर के रोज नई खबरें आती है। हा‍थी को लेकर के परेशानियां आती है। अभी मैं कोई एक science magazine पढ़ रहा था। बड़ी interesting चीज मैंने पहली बार पढ़ी, आप लोग तो शायद उसके जानकारी होगी। जब खेत में हाथियों का झुंड आ जाता है, तो बड़ी परेशानी रहती कैसे निकालना है, यह forest department के लोग भांति-भांति के सशत्र लेकर पहुंच जाते हैं और दो-दो दिन तक हो हल्‍ला हो जाता है। मैंने एक science magazine पढ़ा, कहीं पर लोगों ने प्रयोग किया है बड़ा ही Interesting प्रयोग लगा मुझे। वे अपने खेत के बाढ़ पर या पैड है उस पर Honey Bee को भी Developed करते हैं मधुमक्‍खी को रखते हैं और जब हाथी के झुंड आते हैं तो मधुमक्‍खी एक Special प्रकार की आवाज करती है और हाथी भाग जाता है। अब ये चीजे जो हैं कहीं न कहीं सफल हुई हैं आज भी शायद हमारे यहां हो सकता है कुछ इलाकों में करते भी होंगे। हमें इस प्रकार की व्‍यवस्‍थाओं को भी समझना होगा ताकि हमें हाथियों से संघर्ष करना पड़ सके। मानव और हाथी के बीच जो संघर्ष के जो समाचार आते हैं, उससे हम कैसे बचें। हम हाथी की भी देखभाल करें, अपने खेत की भी देखभाल कर सकें। अगर ऐसे सामान्‍य व्‍यवस्‍थाएं विकसित हो सकती है और अगर यह सत्‍य है तो मैंने कहीं पढ़ा था, लेकिन किसी प्रत्‍यक्ष मेरी किसान से बात हुई नहीं है लेकिन मैं कभी असम की तरफ जाऊंगा तो पूछूंगा सबसे बात करूंगा कि क्‍या है जानकारी लाने का प्रयास करूंगा मैं, लेकिन आपसे में उस दिशा में काम करने वाले जहां हाथी की जनसंख्‍या हैं और गांवों में कभी-कभी चली आती हैं तो उनके लिए शायद हो सकता है कि ये अगर इस प्रकार का प्रयोग हुआ हो तो यह काम आ सकता है। मेरा कहने का तात्‍पर्य यह है कि यह जगत सब समस्‍याओं से जुड़ा हुआ होगा हम ही पहली बार गुजर रहे हैं ऐसा थोड़ी है और हरेक ने अपने-अपने तरीके से उसके उपाय खोजे होंगे। उनको फिर से एक बार वैज्ञानिक तरीके से वैज्ञानिक तराजू से देखा जाए कि हम इन चीजों को कैसे फिर से एक बार प्रयोग में ला सकते हैं। थोड़ा उसे Modify करके उसे प्रयोग में ला सकते हैं। इन दिनों जब पर्यावरण की रक्षा की बात आती है, तो ज्‍यादातर कारखानें और ऊर्जा उसके आस-पास चर्चा रहती है। भारत उस अर्थ में ईश्‍वर की कृपा वाला राष्‍ट्र रहा है कि जिसके पास Maximum solar Radiation वाली संभावना वाला देश है। इसका हमें Maximum उपयोग कैसे करना है और इसलिए सरकार ने Initiative लिया है कि हम Solar Energy हम Wind Energy Biomass Energy उस पर कितना ज्‍यादा बल दें ताकि हम जो विश्‍व की चिंता है उसमें हम मशरूफ हों। लेकिन मजा देखिए, जो दुनिया Climate के लिए Lead करती है, दुनिया को पाठ पढ़ाती है अगर हम उनको कहें कि हम Nuclear Energy में आगे जाना चाहते हैं कि Nuclear Energy Environment protection का एक अच्‍छा रास्‍ता है और हम उनको जब कहते हैं कि Nuclear Energy के लिए आवश्‍यक Fuel दो तो मना कर देते हैं यानी हम दुनिया की इतनी बड़ी सेवा करना चाहते हैं लेकिन आप सेवा करों यह नियम पालन करो व‍ह नियम पालन करो। मैं दुनिया के सभी उस देशवासियों से यह निवेदन करना चाहूंगा कि भारत जैसा देश जिस प्रकार से नेतृत्‍व करने के लिए तैयार है Environment protection के लिए Civil Nuclear की तरफ हमारा बल है। हम Nuclear Energy पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं, हम उसे करने के लिए तैयार हैं क्‍योंकि हमें पता है कि पर्यावरण की रक्षा में अच्‍छे सा अच्‍छा रास्‍तों में महत्‍वपूर्ण है। लेकिन वही लोग जो हमें Environment के लिए भाषण देते हैं वो Nuclear के लिए Fuel देने के लिए तैयार नहीं है। ये दो तराजू से दुनिया नहीं चल सकती है और इसलिए विश्‍व पर हमें भी यह दबाव पैदा करना पड़ेगा और मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में यह दबाव दिखने वाला है, लोग अनुभव करेंगे हम Solar Energy की तरफ जा रहे हैं। Biomass की तरफ जा रहे हैं। लेकिन मैं Urban Bodies को कहना चाहूंगा अगर हम स्‍वच्‍छ भारत की चर्चा करें तो भी और अगर हम Environment की चर्चा करें तो भी। Waste Water & Solid waste Management की दिशा में हम लोंगों को आग्रहपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। Public Private Partnership Model को लेकर आगे बढ़ना चाहिए। Solid Waste Management की ओर हमने पूरा ध्‍यान देना चाहिए। और आज Waste Wealth का एक सबसे बड़ा Business है। Waste में से Wealth create करना एक बहुत बड़ा Entrepreneurship शुरू हुआ है। हम अपने Urban Bodies में इसको कैसे जोड़े। Urban Bodies में Waste में से Wealth को create पैदा करने में स्‍पेशल फोकस करें। और आप देखिए कि बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। एक छोटा सा प्रयोग है मैं Urban Bodies से आग्रह करूंगा मान लीजिए हम हिंदुस्‍तान में पांच सौ शहर पकड़े, जहां एक लाख से ज्‍यादा आबादी है और वहां पर हम तय करें अब देखिए आज जो शहर का कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए जो जगह जमीन की जो जरूरत है हजारों एकड़ भूमि की जरूरत पड़ेगी अगर ये कचरों के ढेर करने हैं तो अब गमिल लाओंगे कहां से और अब जमीन नहीं हैं तो क्‍या मतलब है कि कूड़ा-कचरा पड़ा रहेगा क्‍या और इसलिए हमारे लिए उस पर Process करना Recycle करना Waste Management करना यह अनिवार्य हो गया है। अब वैज्ञानिक के तरीके उपलब्‍ध हैं अगर हम Urban Body Waste Water Treatment करें और पानी को ठीक करके अगर किसानों को वापिस दे वरना एक समय ऐसा आएगा शहर और गांव के बीच संघर्ष होगा पानी के लिए। गांव कहेगा कि मैं शहर को पानी नहीं देने दूंगा और शहर बिना पानी मरेगा। लेकिन जो अगर शहर पानी प्रयोग करता है उसको Recycle करके गांव को वापस दे देता है खेतों में तो यह संघर्ष की नौबत नहीं आएगी और एक प्रकार से Treated Water होगा तो Fertilizer की दृष्टि से उपयोग इस प्रकार से पानी को इस प्रकार से बनाकर दिया जा सकता है। और Urban Body जो होता है उसके गांव जो होते हैं वो ज्‍यादातर सब्‍जी की खेती करते हैं और वही सब्‍जी उनके शहर के अंदर बिकने के लिए आती हैं रोजमर्रा की उनकी आजीविका उससे चलती है। हम इन्‍हीं को Solid Waste Management करके Solid Waste में से हम मानव Fertilizer बनाएं और वो Fertilizer हम उनको दें तो Organic सब्‍जी शहर में आएगी कि नहीं आएगी। इतनी बड़ी मात्रा में अगर हम Fertilizer देते हैं शहरों के कूड़े-कचरों से बनाया हुआ तो अच्‍छी Quality का विपुल मात्रा में सब्‍जी शहर में आएगी तो सस्‍ती सब्‍जी मिलेगी या नहीं मिलेगी? सस्‍ती सब्‍जी गरीब से गरीब व्‍यक्ति खाएगा तो Nutrition के Problem का Solution होगा कि नहीं होगा। Vegetable Sufficient खाएगा तो Health सेक्‍टर का बजट कम होगा कि नहीं होगा। एक प्रयास कितने ओर चीजों पर इफैक्‍ट कर सकता है इसका अगर हम एक Integrated approach करें तो हम हमारे गांवों को भी बचा सकते हैं हमारे शहरों को भी बचा सकते हैं। कभी-कभार अज्ञान का भी कारण होता है। हमारे यहां देखा है कि फसल होने के बाद अब जैसे Cotton है Cotton लेने के बाद बाकी जो है उसको जला देते हैं। लेकिन उसी को अगर टुकड़े कर करके खेत में डाल दें तो वहीं चीज Nutrition के रूप में काम आती है Fertilizer के रूप में काम आती है। मैंने एक प्रयोग देखा था केले की खेती हमारे यहां हो रही थी तब केला उतारे के बाद केला देने की क्षमता जब कम हो जाती है तो वो जो पेड़ का हिस्‍सा होता है उसके टुकड़े कर कर के उन्‍हें जमीन में डाले और मैंने अनुभव किया कि उसके अंदर इतना Water Content होता है केले के Waste Part में कि 90 दिन तक आपको फसल को पानी नहीं देना पड़ता है वो उसी में से फसल पानी ले लेती है। अब हम थोड़ा सा इनका प्रयोग चीजों को सीखें, समझें। इसको अगर Popular करें तो हम पानी को भी बचा सकते हैं, फसल को भी बचा सकते हैं। हम चीजों को किस प्रकार से और इसके लिए बहुत बड़ा आधुनिक से आधुनिक बड़ा विज्ञान की जरूरत होती है ऐसा नहीं है। सहज समझ का विषय होता है इनको हम जितना आगे बढ़ाएंगे हम इन चीजों को कर सकते हैं। Urban Body आग्रहपूर्वक Public Private Partnership Model उसमें Vibrating Gap funding का भी रास्‍ता निकल सकता है। आप जो इन Waste खेतों के किसानों को उसके कारण अगर Chemical Fertilizer का उपयोग कम होता है तो Chemical Fertilizer में से जो सब्सिडी बचेगी मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं वो सब्सिडी जो बचेगी वो Vibrating Gap Funding के लिए शहरों को दे देंगे, यानी आपके देश में से Wealth Create होगी और जो आप खाद्य तैयार करोगे वो खाद्य उपयोग करने के कारण Chemical Fertilizer की सब्सिडी बचेगी वो आपको मिलेगी। आप गैस पैदा करोगे, गैस दोगो तो जितनी मात्रा में गैसा पैदा करोगे जो गैस सिलेंडर की जो सब्सिडी है वो बचेगी तो वो सब्सिडी हम आपको Transfer करेंगे आपके Vibrating Gap Funding में काम आएगी। हम एक उसका Finance का Model कर सकते हैं, लेकिन भारत सरकार, राज्‍य सरकार और Local Self Government ये तीनों मिल करके हम Environment को Priority देते हुए हमारे नगरों को स्‍वच्‍छ रखते हुए, वहां के कूड़े-कचरे को Waste में Wealth Create करें और बहुत Entrepreneur मिले हैं। उनको हम कैसे प्रयोग में हम करें मैंने एक जगह देखा है जहां पर Waste में से ईंटे बना रहे हैं और इतनी बढि़या ईंटे मजबूत बन रही हैं कि बहुत काम आ रही है। आपने देखा होगा पहले जहां पर बिजली के थर्मल प्‍लांट हुआ करते थे वहां पर बाहर कोयले की Ash जो होता है उसके ढेर लगे रहते थे। आज Recycle और Chemical में से ईंटे बनने के कारण सीमेंट में उपयोग आने के कारण वो निकलते ही Contract हो जाता है और दो-दो साल का Contract और निकलते ही हम उठाएंगे यानी कि जो किसी पर्यावरण को बिगाड़ने के लिए संकट था वो ही आज Property में Convert हो गया है हम थोड़ा इस दिशा में प्रयास करें, initiative लें, हम इसमें काफी मदद कर सकते हैं और मेरा सबसे आग्रह है कि हम इन चीजों को बल मानते हुए आने वाले दिशों में दो दिन जब आप चर्चा करेंगे। गंगा की सफाई उसके साथ जुड़ा हुआ है गंगा के किनारे पर रहने वाले, गंगा किनारे के गांव और शहर मैं उन संबंधित राज्‍य सरकारों से आग्रह करूंगा इसमें कोई Comprise मत कीजिए। बैंकों से हम आग्रह करेंगे उनको हम कम दर से लोन दें। लेकिन Approved Plant उनमें वो लगाये जाएं Sewerage Treatment plant किये जाएं। एक बार हमने सफलतापूर्वक ढाई हजार किलोमीटर लम्‍बी गंगा के अंदर जाने वाले प्रदूषण को रोक लिया पूरे दुनिया के सामने और पूरे हिंदुस्‍तान के सामने एक नया विश्‍वास पैदा कर सकता है कि हम सामान्‍य अपने तौर तरीकों से पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं। यह विश्‍वास पैदा करने के लिए Model की तरह इस काम को खड़ा करना और ये एक बार काम खड़ा हो गया तो और काम अपने आप खड़े हो जाएंगे। एक विश्‍वास पैदा करने की आवश्‍यकता है और किया जा सकता है। एक बार हम किसी चीज को हाथ लगाएं पीछे लग जाएं परिणाम मिल सकता है और मैं चाहूंगा ज्‍यादातर इन पांच राज्‍यों से कि जो गंगा के किनारे की उनकी जिम्‍मेवारी है छह हजार के करीब गांव है, एक सौ 18000 किलोमीटर हैं कोई आठ सौ के करीब Industries हैं जो Pollution के लिए तैयार है इसको Target करते हुए एक बार गंगा के किनारे पर हम तय कर ले वहां से कोई भी दूषित पानी या कूड़ा-कचरा गंगा में जाने नहीं देंगे। आप देखिए अपने आप में बदलाव शुरू हो जाएगा। फिर तो गंगा की अपनी ताकत भी है खुद को साफ रखने की। और वो हमने आगे निकल जाएगी लेकिन हम तय करे कि हम गंदा नहीं करेंगे तो गंगा को साफ करने के लिए तो हमें गंदा नहीं करना पड़ेगा गंगा अपना खुद कर सकती है। लेकिन हम गंदा न करे इतना तो संकल्‍प करना पड़ेगा और उस काम को ले करके आप जब यहां पर बैठे है जो गंगा किनारे को जो इस विभाग के मंत्री हैं वो विशेष रूप से आधा-पौना घंटा बैठ करके उन चीजों को कैसे आगे बढ़ाया जाए। विशेष रूप से चर्चा करें मेरा आग्रह रहेगा फिर एक बार मैं इस प्रयास का स्‍वागत करता हूं और मुझे विश्‍वास है कि इस सपने के साथ फिर एक बार मैं दोहराता हूं ये एक ऐसा विषय है जो हमारी बपौती है, हमारा डीएनए है। हमारे पूर्वजों ने इन मानव जाति की बहुत बड़ी सेवा की है। विश्‍व का नेतृत्‍व हमारे पास ही होना चाहिए Climate के मुद्दे पर ये मिजाज होना चाहिए। पूरे विश्‍व को हम दिखा सकते हैं कि यह हमारा विषय है। हमारी परंपरा है। दुनिया को हम सीखा सकते हैं इतनी ताकत के साथ हम यहां से निकले यही अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं धन्‍यवाद।

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PM Modi urges states to unite as ‘Team India’ for growth and development by 2047

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Quoteऑपरेशन सिंदूर सिर्फ सैन्य अभियान नहीं है, यह हमारे संकल्प, साहस और बदलते भारत की तस्वीर है और यह तस्वीर पूरे देश में छा गई है: पीएम मोदी
Quoteएशियाई शेरों की आबादी में वृद्धि दर्शाती है कि जब समाज में स्वामित्व की भावना मजबूत होती है, तो अद्भुत परिणाम सामने आते हैं: पीएम मोदी
Quoteआज ऐसी कई महिलाएं हैं जो खेतों में काम करने के साथ-साथ आसमान की ऊंचाइयों को भी छू रही हैं। वे ड्रोन दीदी के रूप में ड्रोन उड़ा रही हैं और कृषि में नई क्रांति ला रही हैं: पीएम मोदी
Quoteकुछ स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड’ लगाए जा रहे हैं। CBSE की इस अनूठी पहल का उद्देश्य बच्चों को उनके चीनी सेवन के प्रति जागरूक करना है: पीएम मोदी
Quote‘विश्व मधुमक्खी दिवस’ एक ऐसा दिन है जो हमें याद दिलाता है कि शहद सिर्फ मिठास नहीं है, यह स्वास्थ्य, स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता का भी उदाहरण है: पीएम मोदी
Quoteमधुमक्खियों की सुरक्षा सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा नहीं है, बल्कि हमारी कृषि और आने वाली पीढ़ियों की भी सुरक्षा है: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो,

नमस्कार | आज पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, आक्रोश से भरा हुआ है, संकल्पबद्ध है | आज हर भारतीय का यही संकल्प है, हमें आतंकवाद को खत्म करना ही है | साथियो, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान हमारी सेनाओं ने जो पराक्रम दिखाया है, उसने हर हिंदुस्तानी का सिर ऊँचा कर दिया है | जिस Precision के साथ, जिस सटीकता के साथ, हमारी सेनाओं ने सीमा पार के आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया, वो अद्भुत है | ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दुनिया-भर में आतंक के खिलाफ़ लड़ाई को नया विश्वास और उत्साह दिया है |

साथियो,

‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक सैन्य मिशन नहीं है, ये हमारे संकल्प, साहस और बदलते भारत की तस्वीर है और इस तस्वीर ने पूरे देश को देश-भक्ति के भावों से भर दिया है, तिरंगे में रंग दिया है | आपने देखा होगा, देश के कई शहरों में, गावों में, छोटे-छोटे कस्बों में, तिरंगा यात्राएं निकाली गई | हजारों लोग हाथों में तिरंगा लेकर देश की सेना, उसके प्रति वंदन-अभिनंदन करने निकल पड़े | कितने ही शहरों में Civil Defense Volunteer बनने के लिए बड़ी संख्या में युवा एकजुट हो गए, और हमने देखा, चंडीगढ़ के Videos तो काफी viral हुए थे | Social media पर कविताएँ लिखी जा रही थीं, संकल्प गीत गाये जा रहे थे | छोटे-छोटे बच्चे Paintings बना रहे थे जिनमें बड़े सन्देश छुपे थे | मैं अभी तीन दिन पहले बीकानेर गया था | वहाँ बच्चों ने मुझे ऐसी ही एक Painting भेंट की थी | ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने देश के लोगों को इतना प्रभावित किया है कि कई परिवारों ने इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है | बिहार के कटिहार में, यूपी के कुशीनगर में, और भी कई शहरों में, उस दौरान जन्म लेने वाले बच्चों का नाम ‘सिंदूर’ रखा गया है |

साथियो,

हमारे जवानों ने आतंक के अड्डों को तबाह किया, यह उनका अदम्य साहस था और उसमें शामिल थी, भारत में बने हथियारों, उपकरणों और Technology की ताकत | उसमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ का संकल्प भी था | हमारे Engineers, हमारे Technician हर किसी का पसीना इस विजय में शामिल है | इस अभियान के बाद पूरे देश में ‘Vocal for Local’ को लेकर एक नई ऊर्जा दिख रही है | कई बातें मन को छू जाती हैं | एक माँ-बाप ने कहा – “अब हम अपने बच्चों के लिए सिर्फ भारत में बने खिलौने ही लेंगे | देश-भक्ति की शुरुआत बचपन से होगी |” कुछ परिवारों ने शपथ ली है – “हम अपनी अगली छुट्टियाँ देश के किसी खूबसूरत जगह में ही बिताएंगे |” कई युवाओं ने ‘Wed in India’ का संकल्प लिया है, वो देश में ही शादी करेंगे | किसी ने ये भी कहा है – “अब जो भी Gift देंगे, वह किसी भारतीय शिल्पकार के हाथों से बना होगा |”

साथियो,

यही तो है, भारत की असली ताकत ‘जन-मन का जुड़ाव, जन-भागीदारी’ | मैं आप सबसे भी आग्रह करता हूँ, आइए, इस अवसर पर एक संकल्प लें - हम अपने जीवन में जहाँ भी संभव हो, देश में बनी चीजों को प्राथमिकता देंगे | यह सिर्फ़ आर्थिक आत्मनिर्भरता की बात नहीं है, यह राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी का भाव है | हमारा एक कदम, भारत की प्रगति में बहुत बड़ा योगदान बन सकता है |

साथियो,

बस से कहीं आना-जाना कितनी सामान्य बात है | लेकिन मैं आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताना चाहता हूं, जहां पहली बार एक बस पहुंची | इस दिन का वहां के लोग वर्षों से इंतजार कर रहे थे | और जब गांव में पहली बार बस पहुंची तो लोगों ने ढ़ोल-नगाड़े बजाकर उसका स्वागत किया | बस को देखकर लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था | गांव में पक्की सड़क थी, लोगों को जरूरत थी, लेकिन पहले कभी यहां बस नहीं चल पाई थी | क्यों, क्योंकि ये गांव माओवादी हिंसा से प्रभावित था | यह जगह है महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में, और इस गांव का नाम है, काटेझरी | काटेझरी में आए इस परिवर्तन को आसपास के पूरे क्षेत्र में महसूस किया जा रहा है | अब यहां हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं | माओवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई से अब ऐसे क्षेत्रों तक भी बुनियादी सुविधाएं पहुंचने लगी है | गांव के लोगों का कहना है कि बस के आने से उन लोगों का जीवन बहुत आसान हो जाएगा |

साथियो,

‘मन की बात’ में हम छत्तीसगढ़ में हुए बस्तर Olympics और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में Science Lab पर चर्चा कर चुके हैं | यहां के बच्चों में Science का Passion है | वो Sports में भी कमाल कर रहे हैं | ऐसे प्रयासों से पता चलता है कि इन इलाकों में रहने वाले लोग कितने साहसी होते हैं | इन लोगों ने तमाम चुनौतियों के बीच अपने जीवन को बेहतर बनाने की राह चुनी है | मुझे यह जानकार भी बहुत खुशी हुई कि 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में दंतेवाड़ा जिले के नतीजे बहुत शानदार रहे हैं | करीब Ninety Five Percent Result के साथ ये जिला 10वीं के नतीजों में Top पर रहा | वहीं 12वीं की परीक्षा में इस जिले ने छत्तीसगढ़ में छठा स्थान हासिल किया | सोचिए! जिस दंतेवाड़ा में कभी माओवाद चरम पर था, वहां आज शिक्षा का परचम लहरा रहा है | ऐसे बदलाव हम सभी को गर्व से भर देते हैं |

मेरे प्यारे देशवासियो,

अब मैं Lions, शेरों से जुड़ी एक बड़ी अच्छी खबर आपको बताना चाहता हूं | पिछले केवल पाँच वर्षों में गुजरात के गिर में शेरों की आबादी 674 से बढ़कर 891 हो गई है | Six Hundred Seventy Four से Eight Hundred Ninety One! Lion Census के बाद सामने आई शेरों की ये संख्या बहुत उत्साहित करने वाली है | साथियो, आप में से बहुत से लोग यह जानना चाह रहे होंगे कि आखिर ये Animal Census होती कैसे है? ये exercise बहुत ही चुनौतीपूर्ण है | आपको यह जानकर हैरानी होगी कि Lion Census 11 जिलों में, 35 हजार वर्ग किलोमीटर के दायरे में की गई थी | Census के लिए टीमों ने Round the Clock यानी चौबीसों घंटे इन क्षेत्रों की निगरानी की | इस पूरे अभियान में verification और cross verification दोनों किए गए | इससे पूरी बारीकी से शेरों की गिनती का काम पूरा हो सका |

साथियो,

Asiatic Lion की आबादी में बढ़ोतरी ये दिखाती है कि जब समाज में ownership का भाव मजबूत होता है, तो कैसे शानदार नतीजे आते हैं | कुछ दशक पहले गिर में हालात बहुत challenging थे | लेकिन वहां के लोगों ने मिलकर बदलाव लाने का बीड़ा उठाया | वहां latest technology के साथ ही global best practices को भी अपनाया गया | इसी दौरान गुजरात ऐसा पहला राज्य बना, जहां बड़े पैमाने पर Forest Officers के पद पर महिलाओं की तैनाती की गई | आज हम जो नतीजे देख रहे हैं, उसमें इन सभी का योगदान है | Wild Life Protection के लिए हमें ऐसे ही हमेशा जागरुक और सतर्क रहना होगा |

मेरे प्यारे देशवासियो,

दो-तीन दिन पहले ही, मैं, पहली Rising North East Summit में गया था | उससे पहले हमने North East के सामर्थ्य को समर्पित ‘अष्टलक्ष्मी महोत्सव’ भी मनाया था | North East की बात ही कुछ और है, वहां का सामर्थ्य, वहां का talent, वाकई अद्भुत है | मुझे एक दिलचस्प कहानी पता चली है crafted fibers की | Crafted fibers ये सिर्फ एक brand नहीं, सिक्किम की परंपरा, बुनाई की कला, और आज के fashion की सोच - तीनों का सुन्दर संगम है | इसकी शुरुआत की डॉ० चेवांग नोरबू भूटिया ने | पेशे से वो Veterinary Doctor हैं और दिल से सिक्किम की संस्कृति के सच्चे Brand Ambassador. उन्होंने सोचा क्यूं न बुनाई को एक नया आयाम दिया जाए! और इसी सोच से जन्म हुआ Crafted fibers का | उन्होंने पारंपरिक बुनाई को modern fashion से जोड़ा और इसे बनाया एक Social Enterprise. अब उनके यहां केवल कपड़े नहीं बनते, उनके यहां ज़िंदगियाँ बुनी जाती हैं | वे local लोगों को skill training देते हैं, उन्हें आत्मनिर्भर बनाते हैं | गांवों के बुनकर, पशुपालक और self-help groups इन सबको जोड़कर डॉ० भूटिया ने रोजगार के नए रास्ते बनाए हैं | आज, स्थानीय महिलाएं और कारीगर अपने हुनर से अच्छी कमाई कर रहे हैं | crafted fibers के शॉल, स्टोल, दस्ताने, मोज़े, सब, local handloom से बने होते हैं | इसमें जो ऊन का इस्तेमाल होता है, वो सिक्किम के खरगोशों और भेड़ों से आता है | रंग भी पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं - कोई chemical नहीं, सिर्फ प्रकृति की रंगत | डॉ० भूटिया ने सिक्किम की पारंपरिक बुनाई और संस्कृति को एक नई पहचान दी है | डॉ० भूटिया का काम हमें सिखाता है कि जब परंपरा को passion से जोड़ा जाए, तो वो दुनिया को कितना लुभा सकती है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज मैं आपको एक ऐसे शानदार व्यक्ति के बारे में बताना चाहता हूँ जो एक कलाकार भी हैं और जीती-जागती प्रेरणा भी हैं | नाम है - जीवन जोशी, उम्र 65 साल | अब सोचिए, जिनके नाम में ही जीवन हो, वो कितनी जीवंतता से भरे होंगे | जीवन जी उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहते हैं | बचपन में पोलियो ने उनके पैरों की ताकत छीन ली थी, लेकिन पोलियो, उनके हौसलों को नहीं छीन पाया | उनके चलने की रफ्तार भले कुछ धीमी हो गई, लेकिन उनका मन कल्पना की हर उड़ान उड़ता रहा | इसी उड़ान में, जीवन जी ने एक अनोखी कला को जन्म दिया - नाम रखा ‘बगेट’ | इसमें वो चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली सूखी छाल से सुंदर कलाकृतियाँ बनाते हैं | वो छाल, जिसे लोग आमतौर पर बेकार समझते हैं - जीवन जी के हाथों में आते ही धरोहर बन जाती है | उनकी हर रचना में उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू होती है | कभी पहाड़ों के लोक वाद्ययंत्र, तो कभी लगता है जैसे पहाड़ों की आत्मा उस लकड़ी में समा गई हो | जीवन जी का काम सिर्फ कला नहीं, एक साधना है | उन्होंने इस कला में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है | जीवन जोशी जैसे कलाकार हमें याद दिलाते हैं कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर इरादा मजबूत हो, तो, नामुमकिन कुछ नहीं | उनका नाम जीवन है और उन्होंने सच में दिखा दिया कि जीवन जीना क्या होता है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज कई ऐसी महिलाएं हैं, जो खेतों के साथ ही, अब, आसमान की ऊंचाइयों पर काम कर रही हैं | जी हाँ ! आपने सही सुना, अब गाँव की महिलाएं drone दीदी बनकर drone उड़ा रही हैं और उससे खेती में नई क्रांति ला रही हैं |

साथियो,

तेलंगाना के संगारेड्डी जिले में, कुछ समय पहले तक जिन महिलाओं को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था, आज वे ही महिलाएं drone से 50 एकड़ जमीन पर दवा के छिड़काव का काम पूरा कर रही हैं | सुबह तीन घंटे, शाम दो घंटे और काम निपट गया | धूप की तपन नहीं, जहर जैसे chemicals का खतरा नहीं | साथियो, गाँववालों ने भी इस परिवर्तन को दिल से स्वीकार किया है | अब ये महिलाएं ‘drone operator’ नहीं, ‘sky warriors’ के नाम से जानी जाती हैं | ये महिलाएं हमें बता रही हैं - बदलाव तब आता है जब तकनीक और संकल्प एक साथ चलते हैं |

मेरे प्यारे देशवासियो,

‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ में अब एक महीने से भी कम समय बचा है | ये अवसर याद दिलाता है कि अगर आप अब भी योग से दूर हैं तो अब योग से जुड़ें | योग आपका जीवन जीने का तरीका बदल देगा | साथियो, 21 जून 2015 में ‘योग दिवस’ की शुरुआत के बाद से ही इसका आकर्षण लगातार बढ़ रहा है | इस बार भी ‘योग दिवस’ को लेकर दुनिया-भर में लोगों का जोश और उत्साह नजर आ रहा है | अलग-अलग संस्थान अपनी तैयारियां साझा कर रहे हैं | बीते वर्षों की तस्वीरों ने बहुत प्रेरित किया है | हमने देखा है अलग-अलग देशों में किसी साल लोगों ने Yoga Chain बनाई, Yoga Ring बनाई | ऐसी बहुत ही तस्वीरें हैं जहां एक साथ चार generation मिलकर योग कर रही हैं | बहुत से लोगों ने अपने शहर की iconic places को योग के लिए चुना | आप भी इस बार कुछ interesting तरीके से योग दिवस मनाने के बारे में सोच सकते हैं |


साथियो,

आंध्र प्रदेश की सरकार ने YogAndhra अभियान शुरू किया है | इसका उद्देश्य पूरे राज्य में योग संस्कृति को विकसित करना है | इस अभियान के तहत योग करने वाले 10 लाख लोगों का एक pool बनाया जा रहा है | मुझे इस वर्ष विशाखापत्तनम में ‘योग दिवस’ कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिलेगा | मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि इस बार भी हमारे युवा साथी, देश की विरासत से जुड़ी iconic places पर योग करने वाले हैं | कई युवाओं ने नए रिकार्ड बनाने और Yoga Chain का हिस्सा बनने का संकल्प लिया है | हमारे Corporates भी इसमें पीछे नहीं हैं | कुछ संस्थानों ने office में ही योग अभ्यास के लिए अलग स्थान तय कर दिया है | कुछ start-ups ने अपने यहाँ ‘office योग hours’ तय कर दिए हैं | ऐसे भी लोग हैं जो गांवों में जाकर योग सिखाने की तैयारी कर रहे हैं | Health और Fitness को लेकर लोगों की ये जागरूकता मुझे बहुत आनंद देती है |

साथियो,

‘योग दिवस’ के साथ-साथ आयुर्वेद के क्षेत्र में भी कुछ ऐसा हुआ है, जिसके बारे में जानकर आपको बहुत खुशी होगी | कल ही यानि 24 मई को WHO के Director General और मेरे मित्र, तुलसी भाई की मौजूदगी में एक MoU sign किया गया है | इस agreement के साथ ही International Classification of Health Interventions के तहत एक Dedicated Traditional Medicine Module पर काम शुरू हो गया है | इस पहल से, आयुष को पूरी दुनिया में वैज्ञानिक तरीके से अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी |

साथियो,

आपने स्कूलों में blackboard तो देखा होगा, लेकिन अब कुछ स्कूलों में ‘sugar board’ भी लगाया जा रहा है – blackboard नहीं sugar board ! CBSE की इस अनोखी पहल का उद्देश्य है - बच्चों को उनके sugar intake के प्रति जागृत करना | कितनी चीनी लेनी चाहिए, और कितनी चीनी खाई जा रही है - ये जानकर बच्चे खुद से ही healthy विकल्प चुनने लगे हैं | यह एक अनोखा प्रयास है और इसका असर भी बड़ा positive होगा | बचपन से ही स्वस्थ जीवनशैली की आदतें डालने में यह काफी मददगार साबित हो सकता है | कई अभिभावकों ने इसे सराहा है और मेरा मानना है - ऐसी पहल दफ्तरों, कैन्टीनों और संस्थानों में भी होनी चाहिए आखिरकार, सेहत है तो सब कुछ है | Fit India ही strong India की नींव है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

स्वच्छ भारत की बात हो और ‘मन की बात’ के श्रोता पीछे रहें ऐसा कैसे हो सकता है भला | मुझे पूरा विश्वास है कि आप सब अपने-अपने स्तर पर इस अभियान को मजबूती दे रहे हैं | लेकिन आज मैं आपको एक ऐसी मिसाल के बारे में बताना चाहता हूँ जहां स्वच्छता के संकल्प ने पहाड़ जैसी चुनौतियों को भी मात दे दी | आप सोचिए, कोई व्यक्ति बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ाई कर रहा हो, जहाँ सांस लेना मुश्किल हो, कदम-कदम पर जान को खतरा हो और फिर भी वो व्यक्ति वहाँ सफाई में जुटा हो | ऐसा ही कुछ किया है, हमारी ITBP की टीमों के सदस्यों ने | ये टीम, माउंट मकालू जैसे, विश्व की सबसे कठिन चोटी पर चढ़ाई के लिए गई थी | पर साथियो, उन्होंने सिर्फ पर्वतारोहण नहीं किया, उन्होंने अपने लक्ष्य में एक मिशन और जोड़ा ‘स्वच्छता’ का | चोटी के पास जो कचरा पड़ा था, उन्होंने उसे हटाने का बीड़ा उठाया | आप कल्पना कीजिए, 150 किलो से ज्यादा non-biodegradable waste इस टीम के सदस्य अपने साथ नीचे लाए | इतनी ऊंचाई पर सफाई करना कोई आसान काम नहीं है | लेकिन यह दिखाता है कि जहाँ संकल्प होता है, वहाँ रास्ते अपने आप बन जाते हैं |

साथियो,

इसी से जुड़ा एक और जरूरी विषय है - Paper waste और recycling | हमारे घरों और दफ्तरों में हर दिन बहुत सारा paper waste निकलता है | शायद, हम इसे सामान्य मानते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, देश के landfill waste का लगभग एक चौथाई हिस्सा कागज से जुड़ा होता है | आज जरूरत है, हर व्यक्ति इस दिशा में जरूर सोचे | मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि भारत के कई Start-Ups इस sector में शानदार काम कर रहे हैं | विशाखापत्तनम, गुरुग्राम ऐसे कई शहरों में कई Start-Up paper recycling के innovative तरीके अपना रहे हैं | कोई recycle paper से packaging board बना रहा है, कोई digital तरीकों से newspaper recycling को आसान बना रहा है | जालना जैसे शहरों में कुछ Start-Up 100 percent recycled material से packaging roll और paper core बना रहे हैं | आप ये भी जानकर प्रेरित होंगे, एक टन कागज की recycling से 17 पेड़ कटने से बचते हैं और हजारों लीटर पानी की बचत होती है | अब सोचिए, जब पर्वतारोही इतने कठिन हालात में कचरा वापस ला सकते हैं तो हमें भी अपने घर या दफ्तर में पेपर को अलग करके recycling में अपना योगदान जरूर देना चाहिए | जब देश का हर नागरिक ये सोचेगा कि देश के लिए मैं क्या बेहतर कर सकता हूँ, तभी मिलकर, हम, बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं |

साथियो,

बीते दिनों खेलों इंडिया गेम्स की बड़ी धूम रही | खेलों इंडिया के दौरान बिहार के पाँच शहरों ने मेजबानी की थी | वहाँ अलग-अलग category के मैच हुए थे | पूरे भारत से वहाँ पहुंचे athletes की संख्या पाँच हजार से भी ज्यादा थी | इन athletes ने बिहार की sporting spirit की, बिहार के लोगों से मिली आत्मीयता की, बड़ी तारीफ की है |

साथियो,

बिहार की धरती बहुत खास है, इस आयोजन में यहाँ कई unique चीजें हुई हैं | खेलों इंडिया यूथ गेम्स का ये पहला आयोजन था, जो Olympic channel के जरिए दुनिया-भर में पहुंचा | पूरे विश्व के लोगों ने हमारे युवा खिलाड़ियों की प्रतिभा को देखा और सराहा | मैं सभी पदक विजेताओं, विशेषकर top के तीन winners - महाराष्ट्र, हरियाणा और राजस्थान को बधाई देता हूँ |

साथियो,

इस बार खेलो इंडिया में कुल 26 रिकार्ड बने | Weight Lifting स्पर्धाओं में महाराष्ट्र की अस्मिता धोने, ओडिशा के हर्षवर्धन साहू और उत्तर प्रदेश के तुषार चौधरी के शानदार प्रदर्शन ने सबका दिल जीत लिया | वहीं महाराष्ट्र के साईराज परदेशी ने तो तीन record बना डाले | athletics में उत्तर प्रदेश के कादिर खान और शेख जीशान और राजस्थान के हंसराज ने शानदार प्रदर्शन किया | इस बार बिहार ने भी 36 medals अपने नाम किए | साथियो, जो खेलता है, वही खिलता है | Young Sporting Talent के लिए tournament बहुत मायने रखता है | इस तरह के आयोजन भारतीय खेलों के भविष्य को और सँवारने वाले हैं |

मेरे प्यारे देशवासियो,

20 मई को ‘World Bee Day’ मनाया गया, यानि एक ऐसा दिन जो हमें याद दिलाता है कि शहद सिर्फ मिठास नहीं, बल्कि सेहत, स्वरोजगार, और आत्मनिर्भरता की मिसाल भी है | पिछले 11 वर्षों में, मधुमक्खी पालन में, भारत में एक sweet revolution हुआ है | आज से 10-11 साल पहले भारत में शहद उत्पादन एक साल में करीब 70-75 हज़ार मीट्रिक टन होता था | आज यह बढ़कर करीब-करीब सवा-लाख मीट्रिक टन के आसपास हो गया है | यानि शहद उत्पादन में करीब 60% की बढ़ोतरी हुई है | हम Honey Production और export में दुनिया के अग्रणी देशों में आ चुके हैं | साथियो, इस positive impact में ‘राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन’ और ‘शहद मिशन’ की बड़ी भूमिका है | इसके तहत मधुमक्खी पालन से जुड़े हजारों किसानों को Training दी गई, उपकरण दिए गए, और बाजार तक, उनकी, सीधी पहुँच बनाई गई |

साथियो,

ये बदलाव सिर्फ आंकड़ों में नहीं दिखता, ये गाँव की जमीन पर भी साफ नजर आता है | छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का एक उदाहरण है, यहाँ आदिवासी किसानों ने ‘सोन हनी’ नाम से एक शुद्ध जैविक शहद brand बनाया है | आज वह शहद GeM समेत अनेक Online Portal पर बिक रहा है, यानि गाँव की मेहनत, अब, Global हो रही है | इसी तरह उत्तर प्रदेश, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश में हजारों महिलाएं और युवा अब honey उद्यमी बन चुके हैं | साथियो, और अब शहद की केवल मात्रा नहीं, उसकी शुद्धता पर भी काम हो रहा है | कुछ Start-up अब AI और Digital Technology से शहद की गुणवत्ता को प्रमाणित कर रहे हैं | आप अगली बार जब भी शहद खरीदें तो इन Honey उद्यमियों द्वारा बनाए गए शहद को जरूर आजमाएं, कोशिश करें कि किसी local किसान से, किसी महिला उद्यमी से भी शहद खरीदें | क्योंकि उस हर बूंद में स्वाद ही नहीं, भारत की मेहनत और उम्मीदें घुली होती हैं | शहद की ये मिठास – आत्मनिर्भर भारत का स्वाद है |

साथियो,

जब हम शहद से जुड़े देशों के प्रयासों की बात कर रहे हैं, तो मैं आपको एक और पहल के बारे में बताना चाहता हूँ | ये हमें याद दिलाती है कि Honeybees की सुरक्षा सिर्फ पर्यावरण की नहीं, हमारी खेती और future generation की भी जिम्मेदारी है | ये उदाहरण है पुणे शहर का, जहाँ एक Housing society में मधुमक्खियों का एक छत्ता हटाया गया - शायद सुरक्षा के कारण या डर की वजह से | लेकिन इस घटना ने किसी को कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया | अमित नाम के एक युवा ने तय किया कि bees को हटाना नहीं, उन्हें बचाना चाहिए | उन्होंने खुद सीखा, मधुमक्खियों पर search की और दूसरों को भी जोड़ना शुरू किया | धीरे-धीरे उन्होंने एक टीम बनाई, जिसे उन्होंने नाम दिया Bee Friends, यानि ‘बी-मित्र’ | अब ये Bee Friends, मधुमक्खियों के छत्तों को एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित तरीके से transfer करते हैं, ताकि लोगों को खतरा न हो और Honeybees भी ज़िंदा रहें | अमित जी के इस प्रयास का असर भी बड़ा शानदार हुआ है | Honeybees की colonies बच रही हैं | Honey production बढ़ रहा है, और सबसे जरूरी है, लोगों में awareness भी बढ़ रही है | ये पहल हमें सिखाती है कि जब हम प्रकृति के साथ ताल-मेल में काम करते हैं, तो उसका फायदा सबको मिलता है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

‘मन की बात’ के इस episode में इस बार इतना ही, आप इसी तरह देश के लोगों की उपलब्धियों को समाज के लिए उनके प्रयासों को, मुझे भेजते रहिए | ‘मन की बात’ के अगले episode में फिर मिलेंगे, कई नए विषयों और देशवासियों की नई उपलब्धियों की चर्चा करेंगे | मुझे आपके संदेशों का इंतजार है | आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद, नमस्कार |