Quoteതെരഞ്ഞെടുപ്പു രാഷ്ട്രീയത്തിനു പുറത്തുള്ളവര്‍ക്കും രാജ്യത്തിനും വികസനത്തിനും സംഭാവന അര്‍പ്പിക്കുന്നതിനു രാജ്യസഭ അവസരം നല്‍കുന്നു: പ്രധാനമന്ത്രി
Quoteരാജ്യസഭയ്ക്ക് എന്നും രാഷ്ട്രതാല്‍പര്യത്തിനായി അവസരത്തിനൊത്ത് ഉയരാന്‍ കഴിഞ്ഞിട്ടുണ്ട്: പ്രധാനമന്ത്രി
Quoteരാഷ്ട്രതാല്‍പര്യത്തിനായി പ്രവർത്തിക്കാൻ നമ്മുടെ ഭരണഘടന നമ്മെ പ്രചോദിപ്പിക്കുന്നു. സംസ്ഥാനങ്ങളുടെ ക്ഷേമത്തിനായി പ്രവർത്തിക്കാനും ഇത് നമ്മളെ പ്രേരിപ്പിക്കുന്നു: പ്രധാനമന്ത്രി മോദി

आदरणीय सभापति जी और सम्‍मानीय गृह, आपके माध्‍यम से इस 250वें सत्र के निमित्‍त मैं यहां मौजूद सभी सासंदों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, लेकिन इस 250 सत्रों के दरम्‍यान ये जो यात्रा चली है, अब तक जिन-जिन ने योगदान दिया है, वे सभी अभिनंदन के अधिकारी हैं, मैं उनका भी आदरपूर्वक स्‍मरण करता हूं।

सभापति जी, आप जब बहुत ही articulate way में दो अलग-अलग घटनाओं को जोड़ करके अभी प्रस्‍तुत कर रहे थे, मुझे जरूर लगता है कि देश में जो लोग लेखन के शौकीन हैं, वे जरूर इस पर अब गौर करेंगे, लिखेंगे कि 250 सत्र, यह अपने-आप में समय व्‍यतीत हुआ ऐसा नहीं है; एक विचार यात्रा भी रही है। जैसा आपने कहा कि कभी एक बिल ऐसा आया था तो जाते-जाते उसी के बिल्कुलअलग सा नया बिलइस प्रकार से आया। समय बदलता गया, परिस्थितियां बदलती गईं और इस सदन ने बदली हुई परिस्थितियों को आत्‍मसात करते हुए अपने को ढालने का प्रयास किया। मैं समझता हूं यह बहुत बड़ी चीज है और इसके लिए सदन के सभी सदस्‍य जिन्‍होंने तब तक काम किया, बधाई के पात्र हैं, वरना किसी को लग सकता है भई 20 साल पहले मैंने तो ये stand लिया था अब मैं stand कैसे बदल सकता हूं। लेकिन आपने जिस प्रकार से articulate करके इस बात को प्रस्‍तुत किया, वह हमारी विचार यात्रा का प्रतिबिम्‍ब है, भारत की विकास यात्रा का प्रतिबिम्‍ब है और वैश्विक परिवेश में भारत किस प्रकार से नई-नई बातों को लीड करने का सामर्थ्‍य रखता है, उसका उसमें प्रतिबिम्‍ब है। और ये काम इस सदन से हुआ है, इसलिए सदन अपने-आप में गौरव अनुभव करता है।

मेरे लिए सौभाग्‍य का विषय है कि आज इस महत्‍वपूर्ण अवसर का साक्षी बनने का और इसमें शरीक होने का मुझे अवसर मिला है। ये साफ कह सकते हम कि कभी चर्चा चल रही थी संविधान निर्माताओं के बीच में कि सदन एक हो या दो हों, लेकिन अनुभव कहता है कि संविधान निर्माताओं ने जो व्‍यवस्‍था दी, वो कितनी उपयुक्‍त रही है और कितना बढ़िया contribution किया है। अगर निचला सदन जमीन से जुड़ा हुआ है तो ऊपरी सदन दूर तक देख सकता है। और इस प्रकार से भारत की विकास यात्रा में निचले सदन से जमीन से जुड़ी हुई तत्‍कालीन चीजों का अगर प्रतिबिम्‍ब व्‍यक्‍त होता है तो यहां बैठे हुए महानुभावों से क्‍योंकि ऊपर है, ऊपर वाला जरा दूर का देख सकता है, तो दूर की दृष्टि का भी अनुभव, इन दोनों का combination इन हमारे दोनों सदनों से हमको देखने को मिलता है।

इस सदन ने कई ऐतिहासिक पल देखे हैं। इतिहास बनाया भी है और बनते हुए इतिहास को देखा भी है और जरूरत पड़ने पर उस इतिहास को मोड़ने में भी इस सदन ने बहुत बड़ी सफलता पाई है। उसी प्रकार से इस देश के गणमान्‍य दिग्‍गज महापुरुषों ने इस सदन का नेतृत्‍व किया है, इस सदन में सहभागिता की है और इसके कारण हमारे देश की इस विकास यात्रा को और आजादी के बाद की बहुत सी चीजें गढ़नी थीं। अब तो 50-60 साल के बाद बहुत सी चीजों ने शेप ले ली है, लेकिन वो शुरूआत काल में fear of unknown से हमें गुजरना पड़ता था। उस समय जिस maturity के साथ सबने नेतृत्‍व किया है, दिया है; ये अपने-आप में बहुत बड़ी बात है।

आदरणीय सभापति जी ये सदन की बड़ी विशेषता है और दो पहलू खास हैं- एक तो उसका स्‍थायित्‍व permanent कहें या eternal कहें, और दूसरा है विविधता diversity. स्‍थायित्‍व इसलिए है, eternal इसलिएहै कि लोकसभा तो भंग होती है, इसका जन्‍म हुआ न अब तक कभी भंग हुई है न भंग होना है, यानी ये eternal है। लोग आएंगे, जाएंगे लेकिन ये व्‍यवस्‍था eternal रहती है। ये अपनी उसकी एक विशेषता है। और दूसरा है विविधता- क्‍योंकि यहां राज्‍यों का प्रतिनिधित्‍व प्राथमिकता है। एक प्रकार से भारत के फेडरल स्ट्रक्चर की आत्‍मा यहां पर हर पल हमें प्रेरित करती है। भारत की विविधता, भारत के अनेकता में एकता के जो सूत्र है, उसकी सबसे बड़ी ताकत इस सदन में नजर आती है और वो समय-समय पर ये reflect भी होती रहती है। उसी प्रकार से उन विविधताओं के साथ हम जब आगे बढ़ते हैं तब, इस सदन का एक और लाभ भी है कि हर किसी के लिए चुनावी अखाड़ा पार करना बहुत सरल नहीं होता है, लेकिन देश हित में उनकी उपयोगिता कम नहीं होती है। उनका अनुभव, उनका सामर्थ्‍य उतना ही मूल्‍यवान होता है। तो ये एक ऐसी जगह है कि जहां इस प्रकार के सामर्थ्‍यवान महानुभाव, भिन्‍न-भिन्‍न क्षेत्रों के अनुभवी लोग, उनका लाभ देश के राजनीतिक जीवन को, देश के नीति-निर्धारण के अंदर उनका बहुत बड़ा लाभ मिलता है और समय-समय पर मिला है। वैज्ञानिक हों, खेल जगत के लोग हों, कला जगत के लोग हों, कलम के धनी हों, ऐसे अनेक महानुभावों का लाभ जिनके लिए चुनावी अखाड़े से निकल करके आना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन इस व्‍यवस्‍था के कारण हमारी इस बौद्धिक संपदा की भी एक richness हमें इससे प्राप्‍त हुई है।

और इन 250 सत्रों में और मैं मानता हूं इसका सबसे बड़ा उदाहरण बाबा साहेब अम्‍बेडकर स्‍वयं हैं। क्‍योंकि किसी न किसी कारण से उनको लोकसभा में पहुंचने नहीं दिया गया। लेकिन यही तो राज्‍यसभा थी जहां बाबा साहेब अम्‍बेडकर के कारण देश को बहुत लाभ मिला और इसलिए हम इस बात पर गर्व करते हैं कि ये सदन है जहां से देश को बाबा साहेब अम्‍बेडकर जैसे अनेक महापुरुषों का हमें बहुत ही लाभ मिला। ये भी देखा गया है कि एक लंबा कालखंड ऐसा था कि जहां विपक्ष जैसा कुछ खास नहीं था, विरोध भाव भी बहुत कम था- ऐसा एक बहुत बड़ा कालखंड रहा है। और उस समय जो शासन व्‍यवस्‍था में जो लोग बैठे थे उनका वो एक सौभाग्‍य रहा कि उनको इसका बहुत बड़ा सौभाग्‍य भी मिला जो आज नहीं है। आज डगर-डगर पर संघर्ष रहते हैं, डगर-डगर पर विरोध भाव व्‍यक्‍त रहता है। लेकिन उस समय जबकि विरोध पक्ष न के बराबर था, इस सदन में ऐसे बहुत ही अनुभवी और विद्वान लोग बैठे थे कि उन्‍होंने शासन व्‍यवस्‍था में कभी भी निरंकुशता नहीं आने दी। शासन में बैठे हुए लोगों को सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करने के कठोर काम इसी सदन में हुए हैं। ये एक यानी कितनी बड़ी सेवा हुई है, इसका हम गर्व कर सकते हैं और ये हम सबके लिए‍ स्‍मरणीय है।

आदरणीय सभापति जी, हमारे प्रथम उप-राष्‍ट्रपति जी डॉक्‍टर सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन जी ने इस सदन के संबंध में जो बात कही थी, मैं उसको आपके सामने प्रस्‍तुत करना चाहूंगा। डॉक्‍टर राधाकृष्‍णन जी ने कहा था, इसी चेयर पर बैठकर उन्‍होंने कहा था और वो आज भी उतना ही उपयुक्‍त है। और आप आदरणीय प्रणब मुखर्जी की बात का उल्‍लेख करते हों या स्‍वयं अपना दर्द व्‍यक्‍त करते हों, ये सारी बातें उसमें हैं और उस समय राधा कृष्‍णन जी ने कहा था- हमारे विचार, हमारा व्‍यवहार, और हमारी सोच ही दो सदनों वाली हमारी संसदीय प्रणाली के औचित्‍यको साबित करेगी। संविधान का हिस्‍सा बनी इस द्विसदनीय व्‍यवस्‍था की परीक्षा हमारे कामों से होगी। हम पहली बार अपनी संसदीय प्रणाली में दो सदनों की शुरूआत कर रहे हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपनी सोच, सामर्थ्‍य और समझ से देश को इस व्‍यवस्‍था का औचित्‍य साबित करें।

250 सत्र की यात्रा के बाद, अनुभव का इतना संपूर्ण होने के बाद वर्तमान की ओर आने वाली पीढ़ियों का दायित्‍व और बढ़ जाता है कि डॉक्‍टर राधाकृष्‍णन जी ने जो अपेक्षा की थी, कहीं हम उससे नीचे तो नहीं जा रहे हैं, क्‍या हम उन अपेक्षाओं को पूरा कर रहे हैं, या बदलते हुए युग में हम उन अपेक्षाओं को भी और अच्‍छा value addition कर रहे हैं, ये सोचने का समय है। और मुझे विश्‍वास है कि सदन की वर्तमान पीढ़ी भी और आने वाली पीढ़ी भी डॉक्‍टर राधाकृष्‍णन जी की अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लिए निरंतर प्रयास करती रहेगी और उसे आने वाले दिनों में देश को...।

अगर अब, जैसा अभी आदरणीय सभापति जी ने कहा, अगर हम पिछले 250 सत्रों की विवेचना करें तो कई महत्‍वपूर्ण ऐतिहासिक बिल यहां पास हुए हैं जो एक प्रकार से देश के कानून बने, देश के जीवन को चलाने का आधार बने हैं। और मैं भी पिछले अगर पांच साल का हिसाब-किताब देखूं तो मेरे लिए बड़े सौभाग्‍य की बात है कि ऐसी अनेक महत्‍वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बनने का अवसर मुझे भी मिला है। विद्ववतापूर्ण हर किसी के विचार सुनने कामुझे सौभाग्‍य मिला है और कई बातों को नए सिरे से देखने का अवसर इसी सदन से मिला है। और इसके लिए मैं खुद लाभान्वित हुआ हूं, और मैं सबका आभारी भी हूं और ये अगर हम चीजों को अगर सीखें, समझें तो बहुत कुछ मिलता है और वो मैंने यहां अनुभव किया है। तो मेरे लिए आप सबके बीच कभी-कभी आ करके सुनने का मौका मिलता है, वो अपने-आप में एक सौभाग्‍य है।

अगर हम पिछले पांच साल की ओर देखें, यही सदन है जिसने तीन तलाक का कानून होगा कि नहीं होगा, हरेक को लगता था यहीं पर अटक जाएगा, लेकिन इसी सदन की maturity है कि उसने एक बहुत बड़ा महत्‍वपूर्ण women empowerment का काम इसी सदन में किया गया। हमारे देश में आरक्षण का विरोध करके हर पल संघर्ष के बीज बोए गए हैं। उसमें से तनाव पैदा करने के भरसक प्रयास भी किए गए हैं। लेकिन ये गर्व की बात है कि इसी सदन ने सामान्‍य वर्ग के गरीब परिवार का दस प्रतिशत आरक्षण का निर्णय किया, लेकिन देश में कहीं तनाव नहीं हुआ, विरोध भाव पैदा नहीं हुआ, सहमति का भाव बना, ये भी इसी सदन के कारण संभव हुआ है।

इस प्रकार से हम जानते हैं जीएसटी- लंबे अर्से से जो भी कोई, शासन में जिसकी जिम्‍मेदारी है, हरेक ने मेहनत की। कमियां हैं, नहीं है, सुधरनी चाहिए-नहीं सुधरनी चाहिए- ये सारी debate चलती रही लेकिन One Nation One Tax System की ओर इसी सदन ने सर्व-सम्‍मति बना करके देश को दिशा देने का काम किया है और उसी के कारण एक नए विश्‍वास के साथ विश्‍व में हम अपनी बात रख पा रहे हैं।

देश की एकता और अखंडता- इसी सदन में 1964 में जो वादे किए गए थे कि एक साल के भीतर-भीतर इस काम को कर दिया जाएगा, जो नहीं हो पाया था; वो धारा 370 और 35(ए) इसी सदन में और देश को दिशा देने का काम इस सदन में पहले किया बाद में लोकसभा ने किया है और इसलिए ये सदन अपने-आप में देश की एकता-अखंडता के लिए इतने महत्‍वपूर्ण निर्णय के अंदर इतनी जो भूमिका अदा की है, वो अपने आप में। और ये भी एक विशेषता है कि इस सदन इस बात के लिए जिस बात को याद करेगा कि संविधान के अंदर धारा 370 आई, उसको introduce करने वाले मिस्‍टर एन गोपालास्‍वामी, वो इस सदन के प‍हले नेता थे, फर्स्‍ट लीडर थे वो, तो उन्‍होंने इसको रखा था और इसी सदन ने उसको निकालने का काम भी बड़े गौरव के साथ करके- वो एक घटना अब एक इतिहास बन चुकी है, लेकिन यहीं पर हुआ है।

हमारे संविधान निर्माताओं ने हमको जो दायित्‍व दिया है, हमारी प्राथमिकता है कल्‍याणकारी राज्‍य, लेकिन उसके साथ एक जिम्‍मेदारी है- राज्‍यों का कल्‍याण। यानी भारत as such हम कल्‍याणकारी राज्‍य के रूप में काम करें लेकिन at the same time हम लोगों का दायित्‍व है- राज्‍यों का भी कल्‍याण। और ये दोनों मिल करके, राज्‍य और केन्‍द्र मिल करके ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं और उस काम को करने में इस सदन ने क्‍योंकि ये राज्‍य का representation पूरी ताकत के साथ करते हैं, बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और हमारी संवैधानिक संस्‍थाओं को ताकत देने का भी हमने काम किया है। हमारा संघीय ढांचा, हमारा देश के विकास के लिए अहम शर्त है और राज्‍य और केंद्र सरकारें मिल करके काम करें, तभी प्रगति संभव होती है।

राज्‍यसभा इस बात को सुनिश्चित करती है कि देश में केंद्र और राज्‍य सरकारें प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। लेकिन हम प्रतिभागी बन करके, सहभागी बन करके देश को आगे ले जाने का काम करते हैं। यहां जिन विचारों का आदान-प्रदान होता है, उसका जो अर्क है, जो यहां के प्रतिनिधि अपने राज्‍य में ले जाते हैं, अपने राज्‍य की सरकारों को बताते हैं। राज्‍य की सरकारों को उसके साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करने का काम जाने-अनजाने भी सतर्क रूप में हमें करने की आवश्‍यकता होती है।

देश का विकास और राज्‍यों का विकास- ये दो अलग चीजें नहीं हैं। राज्‍य के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है और देश के विकास का नक्‍शा राज्‍यों के विकास के विपरीत होगा, तो भी राज्‍य विकास नहीं कर पाएंगे। और इन बातों को ये सदन सबसे ज्‍यादा प्रतिबिम्बित करता है, जीवंतता के साथ प्रतिबिम्बित करता है। बहुत सी नीतियां केंद्र सरकार बनाती है। उस नीतियों में राज्‍यों की अपेक्षाएं, राज्‍यों की स्थिति, राज्‍यों का अनुभव, राज्‍यों की रोजमर्रा की दिक्‍कतें- उन बातों को सरकार के नीति-निर्धारण में बहुत ही सटीक तरीके से कोई ला सकता है तो ये सदन ला सकता है, इस सदन के सदस्‍य लाते हैं। और उसी का लाभ federal structure को भी मिलता है। सब काम एक साथ होने वाले नहीं हैं, कुछ काम इस पांच साल होंगे तो कुछ अगले पांच साल होंगे, लेकिन दिशा तय होती है और वो काम यहां से हो रहा है, यह अपने-आप में...।

आदरणीय सभापति जी, 2003 में जब इस सदन के 200 साल हुए थे, तब भी एक समारंभ हुआ था और तब भी सरकार एनडीए की थी और अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। तो उस 200वें सत्र के समय आदरणीय अटलजी का जो भाषण था, बड़ा interesting था। उनका बात करने का अपना एक लहजा था। उन्‍होंने कहा था कि हमारे संसदीय लोकतंत्र की शक्ति बढ़ाने के लिए second chamber मौजूद है और उन्‍होंने ये भी चेतावनी दी थी कि second house को कोई secondary house बनाने की गलती न करें। ये चेतावनी अटलजी ने दी थी कि second house को कभी भी secondary house बनाने की गलती न करें।

अटलजी की उन बातों को जब मैं पढ़ रहा था तो मुझे भी लगा कि इसको आज के संबंध में कुछ नए तरीके से अगर प्रस्‍तुत करना है तो मैं कहूंगा कि राज्‍यसभा second house है, secondary house कभी भी नहीं है और भारत के विकास के लिए इसे supportive house बने रहना चाहिए।

जब हमारी संसदीय प्रणाली के 50 साल हुए तब अटलजी का एक भाषण हुआ था, संसदीय प्रणाली के 50 साल पर और उस भाषण में बड़े कवि भाव से उन्‍होंने एक बात बताई थी। उन्‍होंने कहा था- एक नदी का प्रवाह तभी तक अच्‍छा रहता है जब तक कि उसके किनारे मजबूत होते हैं। और उन्‍होंने कहा था कि भारत का संसदीय जो प्रवाह है वो हमारा जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया है- एक किनारा लोकसभा है, दूसरा किनारा राज्‍यसभा है। ये दो मजबूत रहेंगे, तभी जा करके लोकतांत्रिक परम्‍पराओं का प्रवाह बहुत ही सटीक तरीके से आगे बढ़ेगा। ये बात आदरणीय अटलजी ने उस समय कही थी।

ये एक बात निश्चित है कि भारत federal structure है, विविधताओं से भरा हुआ है, तब ये भी अनिवार्य शर्त है कि हमें राष्‍ट्रीय दृष्टिकोण से ओझल नहीं होना है। राष्‍ट्रीय दृष्टिकोण को हमें हमेशा केंद्रवर्ती रखना ही होगा। लेकिन हमें राष्‍ट्रीय दृष्टिकोण के साथ क्षेत्रीय जो हित है इसका संतुलन भी बहुत सटीक तरीके से बनाना पड़ेगा, तभी जा करके हम उस भाव को, उस संतुलन के द्वारा आगे बढ़ा पाएंगे। और ये काम सबसे अच्‍छे ढंग से कहीं हो सकता है तो इस सदन में हो सकता है, यहां के माननीय सदस्‍यों के द्वारा हो सकता है और मुझे विश्‍वास है कि वो काम करने में हम निरंतर प्रयासरत हैं।

राज्‍यसभा एक प्रकार से checks and balance का विचार उसके मूल सिद्धांतों के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। लेकिन checking और clogging, इसके बीच अंतर बनाए रखना बहुत आवश्‍यक होता है। Balance and blocking, इसके बीच भी हमें बैलेंस बनाए रखना बहुत आवश्‍यक होता है। एक प्रकार से हमारे अनेक महानुभाव ये बात बार-बार कहते हैं कि भई सदन चर्चा के लिए होना चाहिए, संवाद के लिए होना चाहिए, विचार-विमर्श के लिए होना चाहिए। तीखे से तीखे स्‍वर में विवाद हो, कोई उससे नुकसान होने वाला नहीं है, लेकिन आवश्‍यक है कि रुकावटों के बजाय हम संवाद का रास्‍ता चुनें।

मैं आज, हो सकता है मैं जिनका उल्‍लेख कर रहा हूं, इसके सिवाय भी लोग होंगे, लेकिन मैं दो दलों का आज मैं उल्‍लेख करना चाहूंगा- एक एनसीपी और दूसरा बीजेडी। और किसी का नाम छूट जाए तो मुझे क्षमा करना, लेकिन मैं दो का उल्‍लेख कर रहा हूं। इन दोनों दलों की विशेषता देखिए- उन्‍होंने खुद ने discipline तय किया है कि हम well में नहीं जाएंगे और मैं देख रहा हूं कि एक बार भी उनके एक भी सदस्‍य ने नि‍यम को तोड़ा नहीं है। हम सभी राजनीतिक दलों को सीखना होगा कि including my party. हम सबको सीखना होगा कि ये नियम का पालन करने के बावजूद भी न एनसीपी की राजनीतिक विकास यात्रा में कोई रुकावट आई है और बीजेडी की राजनीतिक विकास यात्रा में रुकावट आई है। मतलब well में न जा करके भी लोगों के दिल जीत सकते हैं, लोगों का विश्‍वास जीत सकते हैं। ये और इसलिए मैं समझता हूं including treasury bench हम लोगों ने ऐसी जो उच्‍च परम्‍पराएं जिन्‍होंने निर्माण की हैं, उनका कोई राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ है, क्‍यों न हम उनसे कुछ सीखें। हमारे सामने वो मौजूद हैं और मैं चाहूंगा कि हम भी वहां बैठे तो हमने भी वो काम किया है। और इसलिए मैं इस सारे सदन के लिए कह रहा हूं कि हम एनसीपी, बीजेडी- दोनों ने जो ये बहुत उत्‍तम तरीके से इस चीज को discipline follow किया, ये जो कभी न कभी इसकी चर्चा भी होनी चा‍हिए, उनका धन्‍यवाद करना चाहिए। और मैं मानता हूं आज जब 250 सत्र कर रहे हैं तो ऐसी उत्‍तम जो घटना है, उसका जिक्र होना चाहिए और लोगों के ध्‍यान में लानी चाहिए।

मुझे विश्‍वास है कि सदन की गरिमा की दिशा में जो भी आवश्‍यक है उसको करने में सभी सदस्‍य अपनी भूमिका अदा करते रहते हैं। आपकी वेदना, व्‍यथा प्रकट होती रहती है। हम सब कोशिश करेंगे, इस 250वें सत्र पर हम सब संकल्‍प लेंगे, विशेष करके हम लोग भी लेंगे ताकि आपको कम से कम कष्‍ट हो, आपकी भावनाओं का आदर हो और आप जैसा चाहते हैं वैसा ही ये सदन चलाने में हम आपके साथी बन करके सारे discipline को follow करते हुए करने का प्रयास करें।

इस संकल्‍प के साथ मैं फिर एक बार इस महत्‍वपूर्ण पड़ाव पर सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और जिन्‍होंने यहां तक पहुंचाया है, उन सबका धन्‍यवाद करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!