Published By : Admin |
November 2, 2015 | 21:55 IST
Share
NDA's 6 sutras for development of Bihar-for people: Education, Employment, Medical facilities; for state: Power, Water, Roads: PM
If hitting out at Modi develops Bihar, then I'm ready to take all allegations: PM Modi
For NDA biggest of the grounds seem minute while for 'Mahaswarthbandhan' even a small pandal becomes huge: PM Modi
People of Bihar do not spare the one's who betrays the state. Nitish Kumar would be wiped off in the elections: PM
Lies spread by Nitish & Lalu are unveiling the truth of reservation: PM Modi
People of Bihar would press the button of development. They would vote for the NDA: PM
The term 'Darbhanga Module' was used after blasts in Mumbai & Pune, innocent policewoman had to face consequences: PM
मंच पर विराजमान यहाँ के सभी वरिष्ठ नेतागण। चुनाव में कुशेश्वर स्थान से लोजपा के उम्मीदवार धनंजय कुमार, लोजपा के उम्मीदवार विनोद साहनी, बेनीपुर से भाजपा के उम्मीदवार गोपाल जी ठाकुर, अलीनगर से भाजपा के उम्मीदवार लाल जी यादव, दरभंगा ग्रामीण से हम पार्टी के उम्मीदवार नौशाद आलम जी, दरभंगा नगर से भाजपा के उम्मीदवार संजय जी, हयागढ़ से लोजपा के उम्मीदवार आर। के। चौधरी जी, बहादूरपुर से भाजपा के उम्मीदवार हरीश साहनी, और केवटी से भाजपा के उम्मीदवार अशोक यादव, झाले से भाजपा के उम्मीदवार द्विवेश कुमार मिश्रा, विशाल संख्या में पधारे हुए मेरे भाईयों एवं बहनों।
दरभंगा के ई पावन मिथिला भूमि के नमन करै छी। बाबा कुशेश्वर के ई पावन धरती पर आई के गौरवान्वित महसूस काय रहल छी। दरभंगा की जो पहचान है – पग-पग पोखर पान मखान, सरस बोल मुस्की मुस्कान; विद्या, वैभव, शांति प्रतीक, ललित नगर मिथिला ठीक। आप सबके दिल से अभिनंदन करै छी।
|
आज मैं सबसे पहले अपने प्रिय मित्र कीर्ति आज़ाद के खिलाफ़ शिकायत करना चाहता हूँ। मेरी शिकायत ये है कि जब कीर्ति स्वयं चुनाव लड़ रहे थे, मैं लोकसभा का चुनाव लड़ रहा था, तब तो आधी भीड़ भी नहीं थी और आज क्या कमाल कर दिया आप लोगों ने। जहाँ भी मेरी नज़र पहुँचती है, लोग ही लोग नज़र आते हैं। दरभंगा का मैदान भी छोटा पड़ गया है, ये चुनाव ऐसा है कि एनडीए वालों के लिए मैदान छोटा पड़ता है और महास्वार्थबंधन वालों के लिए पंडाल भी बड़ा हो जाता है।
भाईयों-बहनों, इस चुनाव अभियान का ये मेरा आखिरी कार्यक्रम है। पिछली बार मैं जब दरभंगा आया था, समय-सीमा के कारण 12-15 मिनट ही बोल पाया था, मेरे मन में भी कसक थी कि जिस मिथिला की भूमि को अटल जी इतना प्यार करते थे, वहां इतनी कम देर लेकिन आज मैं आपसे जी भर कर मिलने आया हूँ। मुझे बिहार के हर कोने में जाने और एक से बढ़कर एक रैलियों को संबोधित करने का अवसर मिला। इसे क्या कहें, चुनाव सभा, जन सभा, रैली, रैला कहें, मुझे तो लगता है कि ये मेला है, परिवर्तन का मेला है।
दिल्ली में बैठकर पॉलिटिकल पंडित हिसाब लगाते हैं कि 2% इधर जाएगा तो ये होगा, 2% उधर जाएगा तो ये होगा। पंडित जी, अपने पुराने हिसाब-किताब बंद कर दो, बिहार नया इतिहास लिखने जा रहा है। ये पुराने समीकरण और नई गिनतियाँ अब नहीं चलेंगी। बिहार की जनता ने बिहार की तो सेवा की है, इस चुनाव के माध्यम से देश की बहुत बड़ी सेवा की है। जातिवाद और संप्रदायवाद का ज़हर हमारे लोकतंत्र में खरोच पैदा कर रहा है लेकिन इस चुनाव में बिहार का नौजवान नेतृत्व कर विकास के मुद्दे पर लड़ रहा है। इस चुनाव के बाद हिन्दुस्तान की सभी पॉलिटिकल पार्टियों को विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और इसका क्रेडिट बिहार के लोगों को जाता है। इस चुनाव में बिहार का माहौल देश के भविष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मैं आज सार्वजनिक रूप से प्रधान देवक के रूप में बिहार के नागरिकों का सर झुका कर अभिनंदन करता हूँ। मैं जहाँ-जहाँ गया, एनडीए के लोग जहाँ-जहाँ गए, बिहार की जनता ने पलकें बिछाकर हम सभी का स्वागत किया, इसलिए मैं आप सभी को सर झुका कर धन्यवाद करता हूँ। दूसरी बात कि पहले के मतदान के सारे रिकॉर्ड बिहार के चार चरणों ने तोड़ दिए, भारी मतदान किया, माओवादियों के बम-बंदूक की धमकी के बावजूद अभूतपूर्व मतदान किया। इससे लोकतंत्र में जो विश्वास बढ़ा है, इसके लिए मैं बिहार की जनता को नमन करता हूँ। तीसरी बात, पहले बिहार में जब भी चुनाव होता था तो ये ख़बर आती थी कि इतने पोलिंग बूथ लूटे गए, इतनी गोलीबारी हुई, इतनी हत्याएं हुईं लेकिन इस बार के शांतिपूर्ण चुनाव के लिए बिहार के मतदाताओं का ह्रदय से अभिनंदन करता हूँ।
|
भाईयों-बहनों, इस चुनाव में हम विकास का मुद्दा लेकर पहले दिन से चले, लोकसभा के चुनाव में भी हमारा मुद्दा विकास था लेकिन हम आशा करते थे कि जिन्होंने यहाँ 60 साल राज किया, मैडम सोनिया जी ने 35 साल राज किया, 15 साल तक लालू जी और 10 साल तक नीतीश जी ने राज किया; ये हमारे साथ विकास के मुद्दों पर चर्चा करते, बिहार की बर्बादी के कारण और बिहार से नौजवानों के पलायन का जवाब देते लेकिन अभी भी वे 1990 के कालखंड में जी रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि ये 21वीं सदी चल रही है और 1990 में पैदा हुआ बच्चा आज बिहार का भाग्य बदलने को लालायित है।
दो महीने से चुनाव का अभियान चल रहा है लेकिन लालू जी हो या नीतीश जी या मैडम सोनिया जी, ये लोग बिहार के विकास पर कुछ भी नहीं बोलते। बिहार के भविष्य की किसी योजना के बारे में बात नहीं करते। 25 साल इन्होंने सरकार चलाई, ये कोई कम समय नहीं होता। एक बालक में भी 25 साल के बाद अपने माँ-बाप का पेट भरने की ताक़त आ जाती है। आप मुझे बताईये, 25 साल की इनकी सरकार में किसी का भी कोई भला हुआ? मेरी सरकार को अभी 25 महीने नहीं हुए हैं और ये लोग मेरा हिसाब मांग रहे हैं। ख़ुद का 25 साल का हिसाब देने का तैयार नहीं हैं; और हमसे हिसाब मांग रहे हैं।
चुनाव लोकतंत्र का पर्व होता है और यह पर्व लोकतंत्र को ताक़तवर बनाता है। सभी राजनीतिक दलों को अपनी बात और अपनी नीतियां बतानी होती हैं और जो सरकार में हैं उन्हें अपना हिसाब देना होता है। 2019 में जब मैं लोकसभा चुनाव के लिए आपसे वोट मांगने आऊंगा, तो मेरा फ़र्ज बनता है कि मैं आपको अपने 5 सालों का हिसाब दूँ और आपका हक़ बनता है कि आप मुझसे हिसाब मांगें। लेकिन इन लोगों को देखो, इन्हें मोदी पर कीचड़ उछालने के सिवा और कोई काम ही नहीं है। रोज नए-नए आरोप और गालियां गढ़ी जाती है, क्या इससे बिहार का भला होगा क्या? लालू जी, नीतीश जी, अगर मोदी पर आरोप लगाने से या कीचड़ उछालने से बिहार का भला होता है तो मैं मौजूद हूँ, आपको जो कहना है कहिये। बिहार का भला हो तो मैं ये झेलने के लिए तैयार हूँ।
मेरा जीवन बिहार के काम आए, इससे बड़ा भाग्य मेरा क्या हो सकता है। लालू जी, नीतीश जी, कान खोलकर सुन लीजिये, अहंकार ने आपके आँखों पर ऐसी पट्टी बांध दी है कि आप देख नहीं पाओगे, आप जितना कीचड़ उछालोगे, कमाल उतना ही ज्यादा खिलने वाला है। पहले चरण से लेकर चौथे चरण तक लगातार मतदान करने वालों की संख्या बढ़ी है और एक बात जो बाहर नहीं आई है, मुझे भी आश्चर्य लगा कि हर चरण के बाद 12-15 पोलिंग बूथ ऐसे थे जहाँ मतदान के बाद लालू जी और नीतीश जी के कार्यकर्ताओं के बीच झगड़े हुए, कहीं हाथापाई हुई, धमकियाँ हुई; मतदान पूरा होने के बाद अगर ये तुरंत लड़ना शुरू कर देते हैं तो आगे क्या होगा, आप समझ सकते हैं।
पिछले दो महीनों से चुनाव अभियान चल रहा है लेकिन क्या आपने लालू जी, नीतीश जी और राहुल जी को एक साथ मंच पर देखा, पत्रकार परिषद् में देखा, कार्यकर्ता की मीटिंग में देखा? आप उनसे सवाल पूछिये, उनके दरबारी तो पूछेंगे नहीं। जो तीन लोग चुनावी अभियान में एकसाथ नहीं आए, वो बाद में क्या साथ आएंगे और साथ में चलेंगे। जिन्हें ख़ुद पर विश्वास नहीं है, वो आपका भला नहीं कर सकते।
मुझे अपने विश्वस्त सूत्रों से पता चला, उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने उनसे पूछा कि क्या हमारा मुख्यमंत्री नहीं बन सकता है, क्या आपका बेटा नहीं बन सकता है, लालू जी के मुंह में पानी आ गया, उनको ख़ुशी होने लगी कि हाँ, संभावना दिखती है; दूसरे ने पूछा कि अगर चुनाव हार जाते हैं तो विपक्ष का नेता कौन बनेगा; इस पर लालू जी ने जवाब दिया कि मैंने तो नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने पर समर्थन देने का वाद किया है न कि विपक्ष के नेता बनने का वादा। लालू जी ने कहा कि चुनाव हारने पर तो विपक्ष का नेता हमारा बेटा बनेगा। मैं सार्वजनिक रूप से मैं लालू जी से पूछना चाहता हूँ कि आप बिहार की जनता को बताओ कि विपक्ष का नेता कौन होगा, लालू जी का बेटा होगा या नीतीश बाबू होंगे, क्योंकि आपका चुनाव हारना तय है। ये मेरी मांग है आपसे।
मैं आपको एक पुरानी घटना याद कराना चाहता हूँ। जब मुंबई में बम धमाके हुए तो हमारे देश में आतंकी दुनिया के लिए एक शब्द चल पड़ा था - दरभंगा मॉड्युल, और कारण ये थे कि कुछ लोग यहाँ बैठ कर हिन्दुस्तान में आतंकवाद फ़ैलाने का षड़यंत्र रच रहे हैं। यहाँ पर एक जाबांज पुलिस अधिकारी महिला थी, दलित कन्या थी, उसने हिन्दुस्तान के निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकवादी गतिविधि करने वाले लोगों की कार ढूंढने की कोशिश की। इस महास्वार्थबंधन के निकट के नेता के घर तक आतंकवाद के तार जाने लगे थे, तब सरकार में बैठे लोगों ने आतंकवाद से जुड़े नेताओं पर कदम नहीं उठाया लेकिन उस पुलिस अफसर को यहाँ से जाने और बिहार छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया। आप देश की रक्षा के साथ समझौता करने वाले और आतंकवादियों पर कृपा करने वाले लोगों को पटना में सरकार में बिठाएंगे क्या?
बिहार का भाग्य बदलने के लिए भाजपा, एनडीए का आप समर्थन करें, इसके लिए मैं आपके पास वोट मांगने आया हूँ। भाईयों-बहनों, मेरे पास एक जानकारी है, सही है या गलत पता नहीं क्योंकि समय के अभाव के कारण मैं वेरीफाई नहीं कर पाया, 1990 में लालू जी की सरकार ने बिहार के लोक सेवा आयोग से मैथिलि भाषा को निकाल दिया था, लालू जी ने मैथिलि भाषा का अपमान किया लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली में एनडीए की सरकार बनने के तुरंत बाद 2002 में संविधान की 8वीं सूची में इसे स्थान दिया गया। हम अपमानित करना नहीं बल्कि सम्मानित करना जानते हैं।
हमने 1 लाख 25 हज़ार करोड़ का पैकेज और 40 हज़ार करोड़ पुराना वाला जो कागज़ पर पड़ा था जिसकी न कोई फाइल थी, न बजट था लेकिन बिहार के प्रति मेरा यह प्यार है, बिहार के लिए हमें कुछ करना है, हमने निर्णय लिया इसे देने का। हमने सब मिलाकर 1 लाख 65 हज़ार करोड़ का पैकेज दिया जो बिहार का भाग्य बदलने और यहाँ के लोगों का जीवन बदलने की ताकत रखता है। विकास के बिना बिहार की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। बिहार एक ज़माने में हिन्दुस्तान का सिरमौर हुआ करता था लेकिन 25 साल में जंगलराज और जंतर-मंतर ने बिहार को बर्बाद कर दिया। इन दोनों की जुगलबंदी वो भी बर्बाद कर देगी जो कुछ बिहार में अब बचा हुआ है।
कोई स्कूटर अगर छोटे से गड्ढ़े में फंस जाए तो 3-4 लोग निकालें तो निकल जाता है लेकिन अगर स्कूटर कुएं में गिरा हो तो उसको निकालने के लिए ट्रेक्टर की ज़रुरत होती है। 25 साल की इनकी सरकार ने बिहार को ऐसे गड्ढ़े में डाल दिया है जिसे निकालने के लिए दो-दो इंजन की जरुरत है। पटना और दिल्ली के दो इंजन लगेंगे तब यह बिहार गड्ढ़े में से बाहर आएगा। एक इंजन बिहार में जो नई सरकार बनेगी वो और दूसरा इंजन दिल्ली में मेरी सरकार जो आपने बनाई है।
भाईयों-बहनों, हम चुनाव के मैदान में विकास के मुद्दे को लेकर आए थे। लालू जी और नीतीश जी के पास विकास का ‘व’ बोलने की कोई जगह नहीं है और इसलिए उन्होंने चुनाव को जातिवाद के रंग में रंगने का नाटक किया। आरक्षण को लेकर महीने भर चीखते-चिल्लाते रहे, दिल्ली में उनके दरबारी भी इसी बात को बढ़ाते रहे। इन्होंने एक काल्पनिक भय पैदा किया और आरक्षण के नाम पर हौवा खड़ा किया। उनकी हर बात में बस आरक्षण था। जब एक दिन मुझे लगा कि इनका गुब्बारा बहुत बड़ा हो गया है तो मैंने एक छोटी सी सुई लगा दी और उनका पूरा गुब्बारा नीचे आ गया। उनकी सारी पोल खुल गई है।
यही लालू जी और नीतीश जी ने आरक्षण पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। उन्हें चिंता अपनी कुर्सी की थी और जब मैंने उनका वीडियो निकाल दिया तो पिछले एक हफ़्ते से आरक्षण का नाम लेना भूल गए। बिजली की तो वो कोई बात ही नहीं करते क्योंकि उन्हें डर है कि अगर बोल दिया तो लोग उनसे हिसाब मांगेंगे क्योंकि 2010 में नीतीश जी ने कहा था कि अगर घर-घर बिजली नहीं पहुंचाऊंगा तो 2015 में अगले चुनाव में वोट मांगने नहीं आऊंगा। बिजली नहीं तो वोट नहीं, ऐसे उन्होंने कहा था कि नहीं? उन्होंने अपना वादा तोड़ा है, आपसे धोखा किया है। जो जनता से धोखा कर सकते हैं, जनता उन्हें कभी स्वीकार नहीं करती।
बिहार की जनता जब देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है; कांग्रेस को 35 साल तक दिया और जब लेती है तो चुन-चुन कर साफ़ कर देती है। जब लालू जी को दिया तो जी भर दिया लेकिन जब लालू जी पर गुस्सा आया तो फ़िर किसी को बचने नहीं दिया। अब बारी आई अहंकार की, बिहार अहंकार को बर्दाश्त नहीं कर सकता और अब अहंकार की विदाई की बारी है। नीतीश बाबू ने कहा था कि अगर किसी का भ्रष्टाचार पकड़ा गया तो उसकी मिल्कियत जब्त कर ली जाएगी और उसके घर में स्कूल खोला जाएगा। नीतीश जी रोज इस बात का ढोल पीटते थे। लोगों को क्यों मूर्ख बना रहे हैं? जेडीयू के मंत्री कैमरा के सामने घूस लेते पकड़े गए। ये अभी से ऐसा काम कर रहे हैं तो चुनाव के बाद क्या करेंगे। बिहार बेचने का एडवांस लिया जा रहा है। अब नीतीश बाबू बताएं कि उनका घर कब्ज़े में किया क्या, उनके घर में स्कूल खोला?
भाईयों-बहनों, बिहार में आप लोगों के लिए मेरा तीन सूत्रीय कार्यक्रम है – पढ़ाई, कमाई और दवाई। बिहार के गरीब से गरीब बच्चे को अच्छी एवं सस्ती शिक्षा मिलनी चाहिए। हर मां अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है, लेकिन बिहार में पढ़ाई की इतनी हालत खराब है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए माँ-बाप को अपनी ज़मीन गिरवी रखनी पड़ती है। ये हमें शोभा देता है क्या? इसलिए मेरा संकल्प है, बिहार के बच्चों को सस्ती एवं अच्छी पढ़ाई। मेरा दूसरा सपना है, कमाई; नौजवान के लिए रोजगार। बिहार में नौजवान को अपना राज्य और अपने माँ-बाप को छोड़ना पड़ता है। बिहार के नौजवान को यहीं पर रोजगार का अवसर मिलना चाहिए और ये पलायन बंद होना चाहिए। इसलिए मेरा दूसरा संकल्प है, बिहार के नौजवानों के लिए कमाई। मेरा तीसरा सपना है, दवाई; बुजुर्गों के लिए सस्ती दवाई, दवाखाना और डॉक्टर होना चाहिए।
बिहार राज्य के लिए तीन कार्यक्रम है - बिजली, पानी एवं सड़क। बिजली आएगी तो कारखाने लगेंगे, और इससे रोजगार मिलेगा। बिजली के लिए अकेले दरभंगा को मैंने पौने 400 करोड़ आवंटित कर दिये हैं। बिहार को जो सौभाग्य मिला है, वो किसी और राज्य को नहीं मिला है; बिहार की दो ताक़त है - बिहार का पानी और बिहार की जवानी। ये दोनों पूरे हिन्दुस्तान का भाग्य बदल सकती हैं। किसान को अगर पानी मिल जाए तो वो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। हमारा दूसरा संकल्प है - खेतों में पानी, उद्योगों को पानी और पीने का पानी पहुँचाना। तीसरा मेरा संकल्प है – सड़क; बिहार में सडकों का जाल हो। गाँव ज़िले से, ज़िला राज्य से, राज्य दिल्ली से जुड़ जाए, ऐसा नेटवर्क बनाना है ताकि बिहार का सीधा मार्ग विकास की ओर चल पड़े, इन कामों को लेकर मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ।
विकास ही एक मंत्र है, विकास के लिए मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ। मैं आपसे वोट विकास के लिए मांगता हूँ। पहले चरण से लेकर चौथे चरण तक लगातार मतदान करने वालों की संख्या बढ़ी है और अब पांचवे चरण में आप सारे रिकॉर्ड तोड़ दोगे न? आप सब दस-दस परिवारों से वोट कराओ, भाजपा, एनडीए को वोट कराओ। मेरे साथ बोलिये –
भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!
Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM Modi in Gandhinagar
May 27, 2025
Share
Terrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
We believe in ‘Vasudhaiva Kutumbakam’, we don’t want enemity with anyone, we want to progress so that we can also contribute to global well being: PM
India must be developed nation by 2047,no compromise, we will celebrate 100 years of independence in such a way that whole world will acclaim ‘Viksit Bharat’: PM
Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM
Today we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
Our country has immense potential to bring about a big change, Operation sindoor is now responsibility of 140 crore citizens: PM
We should be proud of our brand “Made in India”: PM
भारत माता की जय! भारत माता की जय!
क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?
भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!
मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्दुस्तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।
|
साथियों,
1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्य प्रशिक्षण होता है, सैन्य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?
साथियों,
यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।
साथियों,
हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।
|
और साथियों,
मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
साथियों,
हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।
और इसलिए साथियों,
एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।
|
और इसलिए साथियों,
जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।
और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।
|
साथियों,
हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।
साथियों,
खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।
उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।
|
साथियों,
ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्लॉक्स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।
साथियों,
आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।
साथियों,
एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।
भाइयों और बहनों,
एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्य है।
|
साथियों,
मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्व संभाले।
हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,
भारत माता की जय! भारत माता की जय!
भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।
भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!