डॉ अविनाश जी, डॉ मालकोंडैया जी और उपस्थित सभी महानुभाव, आज उपस्थित सभी जिन महानुभावों को सम्‍मानित करने का मुझे सौभाग्‍य मिला है, उन सब का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं। उनका क्षेत्र ऐसा है कि वे न तो प्रेस कॉन्‍फ्रेस कर सकते हैं, और न ही दुनिया को यह बता सकते हैं कि वे क्‍या रिसर्च कर रहे हैं और रिसर्च पूरी हो जाने के बाद भी, उन्‍हें दुनिया के सामने अपनी बात खुले रूप से रखने का अधिकार नहीं होता। यह अपने आप में बड़ा कठिन काम है। लेकिन यह तब संभव होता है, जब कोई ऋषि मन से इस कार्य से जूझता है। हमारे देश में हजारों सालों पहले वेदों की रचना हुई और यह आज भी मानव जाति को प्रेरणा देते हैं। लेकिन किसको पता है कि वेदों की रचना किसने की? वे ऋषि भी तो वैज्ञानिक थे, वैज्ञानिक तरीके से समाज जीवन का दर्शन करते थे, दिशा देते थे। वैज्ञानिकों का भी वैसा ही योगदान है। वे एक लेबोरेटरी में तपस्‍या करते हैं। अपने परिवार तक की देखभाल भूल कर, अपने आप को समर्पित कर देते हैं। और तब जाकर मानव कल्‍याण के लिए कुछ चीज दुनिया के सामने प्रस्‍तुत होती है। ऐसी तपस्‍या करने वाले और देश की ताकत को बढ़ावा देने वाले, मानव की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्‍प रखने वाले ये सभी वैज्ञानिक अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं।

बहुत तेजी से दुनिया बदल रही है। युद्ध के रूप-रंग बदल चुके हैं, रक्षा और संहार के सभी पैरामीटर बदल चुके हैं। टेकनोलॉजी जैसे जीवन के हर क्षेत्र को प्री-डोमिनंट्ली ड्राइव कर रही है , पूरी तरह जीवन के हर क्षेत्र में बदल रही है, वैसे ही सुरक्षा के क्षेत्र में भी है और गति इतनी तेज है कि हम एक विषय पर काँसेपचुलाइज़ करते हैं, तो उससे पहले ही दो-कदम आगे कोई प्रॉडक्ट निकल आता है और हम पीछे-के-पीछे रह जाते हैं। इसलिए भारत के सामने सबसे बड़ा चैलेंज जो मैं देख रहा हूं, वो यह है कि हम समय से पहले काम कैसे करे? अगर दुनिया 2020 में इन आयुद्धों को लेकर आने वाली है, तो क्‍या हम 2018 में उसके लिए पूरा प्रबंध करके मैदान में आ सकते हैं? विश्‍व में हमारी स्‍वीकृति, हमारी मांग, ‘किसी ने किया, इसलिए हम करेंगे’ उस में नहीं है| हम विज़ुलाइज़ करें कि जगत ऐसे जाने वाला है और हम इस प्रकार से चलें, तो हो सकता है कि हम लीडर बन जाए और डीआरडीओ को स्थिति को रेस्पोंड करना होगा, डीआरडीओ ने प्रो-एक्टिव होकर एजेंडा सेट करना है। हमें ग्‍लोबल कम्‍युनिटी के लिए एजेंडा सेट करना है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास टेलेंट नहीं है, या हमारे पास रिसोर्स नहीं है। लेकिन हमने इस पर ध्‍यान नहीं दिया है क्योंकि हमारे स्वभाव में ‘अरे चलो चलता है क्या तकलीफ़ है’, ये एटीटियूड है ।

दूसरा जो मुझे लगता है, डीआरडीओ का कंट्रीब्‍यूशन कम नहीं है। इसका कंट्रीब्‍यूशन बहुत महत्‍वपूर्ण है और इसे जितनी बधाई दी जाए, वह कम है। आज इस क्षेत्र में लगे हुए छोटे-मोटे हर व्‍यक्ति अभिनंदन के अधिकारी है। लेकिन कभी उन्‍हें वैज्ञानिक तरीके से भी सोचने की आवश्‍यकता है। अभी मैं अविनाश जी से चर्चा कर रहा था। डीआरडीओ और डीआरडीओ से जुड़े हुए प्राइवेट इंडिविजुअल और कंपनीज़, इनको तो हम अवॉर्ड दे रहे हैं और अच्छा भी है,लेकिन भविष्य के लिए मुझे लगता है आवश्यकता है कि डीआरडीओ एक दूसरी कैटेगिरी के अवार्ड की व्‍यवस्‍था करे, जिसका डीआरडीओ से कोई लेना देना नहीं होगा। जिसने डीआरडीओ के साथ कभी कोई काम नहीं किया है, लेकिन इस फील्‍ड में रिसर्च करने में उन्‍होंने कोई दूसरा कॉन्‍ट्रीब्‍यूशन किया है, किसी प्रोफेसर के रूप में, आईटी के क्षेत्र में। ऐसे लोगों को भी खोजा जाए, परखा जाए तो हमें एक टेलेंट जो आउट ऑफ डीआरडीओ है उनका भी पूल बनाने की हमें संभावना खोजनी चाहिए और इसलिए हमें उस दिशा में सोचना चाहिए।

तीसरा मेरा एक आग्रह है कि हम कितने ही रिसर्च क्‍यों न करें, लेकिन आखिरकार चाहे जल सेना हो, थल सेना हो, या नौसेना हो सबसे पहले नाता सैनिक का है, क्‍योंकि उसी से उसका गुजारा होता है और ऑपरेट भी उसी को करना है। लेकिन सेना के जवान और अफसर जो रोजमर्रा की उस जिंदगी को जीते हैं, काम करते वक्‍त उसके मन में भी बड़े इनोवेटिव आइडियाज आते हैं। जब वो किसी चीज को उपयोग करता है तो उसे लगता है कि इसकी बजाय ऐसा होता तो अच्‍छा होता। उसको लगता है कि लेफ्ट साइड दरवाजा खुलता है तो राइट साइड होता तो और अच्‍छा होता। यह कोई बहुत बड़ा रॉकेट साइंस नहीं होगा। क्‍या हम कभी हमारे तीनों बलों को, जल सेना, थल सेना और नौसेना उनमें से भी जो आज सेवा में रत है, उनको कहा जाए कि आप में कोई इनोवेटिव आइडियाज होंगे तो उनको भी शामिल किया जाएगा। आप जैसे अपना काम करते हैं। जैसे एजुकेशन में बदलाव कैसे आ रहा है। एक टीचर जो अच्‍छे प्रयोगकर्ता है, उनके आगे चलकर आइडियाज, इंस्‍टीट्यूशन में बदल कर आने वाली पीढि़यों के लिए काम आता है। वैसे ही सेना में काम करने वाले टेकनिकल पर्सन और सेवा में रत लोग हैं। हो सकता है पहाड़ में चलने वाली गाड़ी रेगिस्‍तान में न चले तो उसके कुछ आइडियाज होंगे। हमें इसको प्रमोट करना चाहिए और एक एक्‍सटेंशन ऑफ डीआरडीओ टाइप, हमें इवोल्‍व करना चाहिए। अगर यह हम इवोल्‍व करते हैं तो हमारे तीनों क्षेत्रों में काम करने वाले इस प्रकार के टेलेंट वाले जो फौजी है, अफसर है मैं मानता हूं, वे हमें ज्‍यादा प्रेक्टिकल सोल्‍यूशन दे सकते हैं या हमें वो स्‍पेसिफिक रिसर्च करने के लिए वो आइडिया दे सकते हैं कि इस समस्‍या का समाधान डीआरडीओ कर सकता है। उस पर हमें सोचना चाहिए।

चौथा, जो मुझे लगता है - कि हम डीआरडीओ के माध्‍यम से समाज में किस प्रकार से देशभर में इस क्षेत्र में रूचि रखने वाली अच्छे विश्‍वविद्यालयों की पहचान करें, और एक साल के लिए विशेष रूप से इन साइंटिस्‍टों को उन विश्‍वविद्यालयों के साथ अटैच करें? उन विश्‍वविद्यालयों के छात्रों के साथ डायलॉग हों, मिलना-जुलना हो, साल में आठ-दस सिटिंग हों। तो वहाँ जो हमारे नौजवान हैं उनके लिए साइंटिस्‍ट एक बहुत बड़ी इंस्पिरेशन बन जाएगा। जो सोचता था कि मैं अपना करियर यह बनाऊंगा, वो सोचता है कि इन्होने अपना जीवन खपा दिया, चलो मैं भी अपने कैरियर के सपने छोड़ दूँ और इसमे अपना जीवन खपा दूँ तो, हो सकता है वो देश को कुछ देकर जाए।

यही हमारा काम है संस्‍कार-संक्रमण का कि एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन, हमारे इस सामर्थ को कैसे परकोलेट भी करे और डिवेल्प भी करें और जब तक हम मैकेनिज्‍म नहीं बनाएंगे ये संभव नहीं है। यूनिवर्सिटी में हम कन्‍वोकेशन में किसी साइंटिस्‍ट को बुला लें वो एक बात है, लेकिन हम उनके टेलेंट, उनकी तपस्या और उनके योगदान को किस प्रकार से उनके साथ जोड़ें वो आपके बहुत काम आएगा।

क्‍या इन साइंटिस्टों को सेना के लोगों के साथ इन्‍टरेक्‍शन करने का मौका मिलता है ? क्‍योंकि इन्होंने इतनी बड़ी रिसर्च की है। सेना के जवान को मिलने से रक्षा का विश्‍वास पैदा होता है। क्‍या कभी सेना के जवान ने उस ऋषि को देखा है, जिसने उसकी रक्षा के लिए 15 साल लेबोरिटी में जिदंगी गुजारी है। जिस दिन सेना में काम करने वाला व्‍यक्ति उस ऋषि को और उस साइंटिस्‍ट को देखेगा, आप कल्पना कर सकतें हैं उस ऑनर का फल कैसा होगा और इसलिए हमारी पूरी व्‍यवस्‍था एक दायरे से बाहर निकाल करके जिस में ह्यूमन टच हो, एक इंस्पिरेशन हो, उस दिशा में उसको कैसे ले जा सके। मैं मानता हूं कि अभी जिन लोगों का सम्‍मान हुआ, उनसे इंटरेक्‍ट करके देंखे, आपको अनुभव होगा कि इस फंक्‍शन से उनका भी इंस्पिरेशन हाई हो जाएगा कि वो काम करने वाले को भी प्रेरणा देगा और जिसने उनके लिए काम किया है उन जवानो का भी इंस्पिरेशन हाई हो जाएगा कि अच्छा हमारे लिए इतना काम होता है । उसी प्रकार से डीआरडीओ को कुछ लेयर बनाने चाहिए ऐसा मुझे लगता है हालाँकि इसमें मेरा ज्‍यादा अध्‍ययन नहीं है पर एक तो है हाईटेक की तरफ जाना और बहुत बड़ा नया इनोवेशन करना है लेकिन एट द सेम टाइम रोजमर्रा की जिदंगी जीने वाला जो हमारा फौजी है, उसकी लाइफ में कम्‍फर्ट आए। ऐसे साधनों की खोज, उसका निर्माण यह एक ऐसा अवसर है। आज उसका वाटर बैग जो तीन सौ ग्राम का है तो उतना ही अच्छा बैग डेढ सौ ग्राम का कैसे बने, ताकि उसको वजन कम धोना पड़े । आज उसके जूते कितने वेट के हैं, पहाड़ों में एक तकलीफ रहती है, तो रेगिस्‍तान में दूसरी तकलीफ होती है, इसमें भी बहुत रिसर्च करना है। क्या इस दिशा में कभी रिसर्च होता ? क्‍या कभी जूते बनाने वाली कंपनी और डीआरडीओ के साथ इनका इन्‍टरफेस होता है। क्‍या ये रिसर्च करके देते हैं। ये लोग डीआरडीओ को एक लैब से बाहर निकल करके और जो उनकी रोजमर्रा की जिदंगी है। अब देखिए हम इतने इनोवेशन के साथ लोग आएंगे, इतनी नई चीजें देंगे। जो हमारी समय की सेना के जवानों के लिए बहुत ही कम्‍फर्टेबल व्‍यवस्‍था उपलब्‍ध करा सकते हैं, बहुत लाभ कर सकता है। इस दिशा में क्‍या कुछ सोचा जा सकता है।

एक और विषय मेरे मन में आता है - आज डीआरडीओ के साथ करीब 50 लेबो‍रेट्री भिन्‍न- भिन्‍न क्षेत्रों में काम कर रही हैं क्‍या हम तय कर सकते हैं कि मल्‍टी-टैलेंट का उपयोग करने वाली पांच लैब हम ढूंढे 50 में से और हम एक फ़ैसला करेंगें कि 5 लैब ऐसी होंगी, जिसमें नीचे से ऊपर एक भी व्‍यक्ति 35 साल से ऊपर की उम्र का नहीं होगा। सब के सब विलो 35 होंगे। अल्‍टीमेट डिसिजन लेने वाले भी 35 साल से नीचे के होंगे। एक बार हिम्‍मत के साथ हिन्‍दुस्तान की यंगेस्‍ट टीम को हम अवसर दें, और उन्हें बतायें कि दुनिया आगे बढ़ रही है, आप बताओ। मैं विश्‍वास के साथ कहता हूं कि इस देश के टेलेंट में दम है, वो हमें बहुत कुछ नई चीजें दे सकता है।

अब आजकल साईबर सिक्‍योरिटी की बहुत बड़ी लड़ाई हैं। मैं मानता हूं कि वो 20-25 साल का नौजवान बहुत अच्छे ढंग से यह करके दे देगा हमें। क्‍योंकि उसका विकास इस दिशा में हुआ है, क्‍योंकि ये चीजें तुरंत उसके ध्‍यान में आतीं हैं। क्या हम पांच लैब टोटली डेडीकेटड टू 35 ईयर्स बना सकते हैं? डिसिजन मैकिंग प्रोसेस आखिर तक 35 से नीचे के लोगों के हाथों में दे दी जाए। हम रिस्‍क ले लेंगे। हमने बहुत रिस्‍क लिए हैं। एक रिस्‍क और ले लेंगे। आप देखिए एक नई हवा की जरूरत है। एक फ्रेश एयर की जरूरत है। और फ्रेश एयर आएगी। हमें लाभ होगा।

डिफेंस सिक्‍योरिटी को लेकर हमे हमारे सामान्‍य स्‍टुडेंट्स को भी तैयार करना चाहिए। क्‍या कभी हमने सरकार के द्वारा, स्‍कूलों के द्वारा किए गये साइन्स फेयर में कहा है, कि यह साइंस फेयर 2015 विल बी टोटली डेडीकेटड टू डिफेंस रिलेटिड इश्यूस? सब नौजवान खोजेगे, टीचर इन्‍ट्रेस्‍ट लेंगें, स्‍टडीज होंगीं, प्रोजैक्‍ट रिपोर्ट बनेंगे। लाखों की तादात में हमारे स्‍टूडेंस की इन्वाल्वमेंट, डिफेन्स टेक्‍नोलॉजी एक बहुत बड़ा काम हैं, डिफेंस रिसर्च बहुत बड़ा काम है, यह सोचने की खिड़की खुल जाएगी। हो सकता है दो-चार लोग ऐसे भी निकल आएं जिनको मन कर जाए की चलो इसको हम करियर बनायें अपना। हमने देखा है कि आजकल टेक्निकल यूनि‍वर्सिटीज की एक ग्‍लोबल रॉबोट ओलंपिक होता है। राष्ट्र स्तर का भी होता है। क्‍या हम उसको स्‍पेशली डीआरडीओ से लिंक करके रोबोट कॅंपिटिशन टोटली डेडीकेटड टू डिफेन्स बना सकते हैं?

अब देखिए ये जो नौजवान रॉबोर्ट के द्वारा फुटबाल खेलते हैं, रॉबोर्ट के द्वारा क्रिकेट खेलते हैं, वो सब उसमें मज़ा भी लेते हैं, और उसका कॉम्पीटिशन भी होता है। लेकिन उसको 2-3 स्टेप आगे हम सोच सकते हैं। एक नये तरीके से, नयी सोच के साथ, और सभी लोगों को जोड़ कर के हम इस पूरी व्यवस्था को विकसित करें और साथ साथ, समय की माँग है, दुनिया हमारा इंतज़ार नहीं करेगी। हमें ही समय से पहले दौड़ना पड़ेगा और इसलिए, हम जो भी सोचें, जो भी करें, जी- जान से जुट कर के समय से पहले करने का संकल्प करें। वरना कोई प्रॉजेक्ट कन्सीव हुआ 1992 में, और 2014 में "हा, अभी थोड़े दिन लगेंगे" की हालत में होगा, तो ये दुनिया बहुत आगे बढ़ जाएगी। इसलिए, आज डीआरडीओ से संबंधित सभी प्रमुख लोगों से मिलने का मुझे अवसर मिला है, जो इतना उत्तम काम करते हैं, और जिनमें पोटेन्षियल है। लोग कहते हैं कि मोदी जी आपकी सरकार से लोगों को बहुत अपेक्षायें हैं। जो करेगा उसी से तो अपेक्षा होती है, जो नहीं करेगा उस से कौन अपेक्षा करेगा? तो डीआरडीओ से भी मेरी अपेक्षा क्यों है? मेरी अपेक्षा इसलिए है, क्योंकि डीआरडीओ में करने का सामर्थ्य है, ये मैं भली-भाँति अनुभव करता हूँ। आपके अंदर वो सामर्थ्य है और आपने कर के दिखाया है और इसलिए मुझे विश्वास है कि आप लोग यह कर सकते हैं ।

फिर एक बार सभी वैज्ञानिक महोदयो को देश की सेवा करने के लिए उत्तम योगदान करने के लिए, बहुत बहुत शुभकामनायें देता हूँ, बहुत बधाई देता हूँ। धन्यवाद।

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प्रधानमंत्री: स्वच्छता से क्या-क्या फायदे होते हैं?

विद्यार्थी: सर हमें कोई बीमारी नहीं हो सकती उससे, हमेशा हम साफ रहेंगे सर, और हमारा देश अगर साफ रहेगा तो और सबको ज्ञान मिलेगा कि यह जगह साफ रखना है।

प्रधानमंत्री: शौचालय अगर नहीं होता है तो क्या होता है?

विद्यार्थी: सर बीमारियां फैलती हैं।

प्रधानमंत्री: बीमारियां फैलती है...देखिए पहले का समय जब शौचालय नहीं था, 100 में से 60, जिनके घर में शौचालय नहीं था, टॉयलेट नहीं था। तो खुले में जाते थे और सारी बीमारियों का कारण वो बन जाता था I और उसमें सबसे ज्यादा कष्ट माताओं-बहनों को होता था, बेटियों को होता था। जब से हमने यह स्वच्छ भारत अभियान चलाया तो स्कूलों में टॉयलेट बनाएं सबसे पहले, बच्चियों के लिए अलग बनाएं और उसका यह परिणाम हुआ कि आज बच्चियों का ड्रॉप आउट रेट बहुत कम हुआ है, बच्चियां स्कूल में पढ़ रही हैं। तो स्वच्छता का फायदा हुआ कि नहीं हुआ।

विद्यार्थी: Yes Sir.

प्रधानमंत्री: आज किस-किस का जन्म जयंती है?

विद्यार्थी: गांधी जी की और लाल बहादुर शास्त्री जी की।

प्रधानमंत्री: अच्छा आप में से कोई योग करते हैं...अरे वाह इतने सारे। आसन से क्या फायदा होता है?

विद्यार्थी: सर हमारी बॉडी में फ्लैक्सिबिलिटी आ जाती है।

प्रधानमंत्री: फ्लैक्सिबिलिटी और?

विद्यार्थी: सर उससे डिसीज भी कम होता है सर, ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है बहुत।

प्रधानमंत्री: अच्छा आप लोग कभी घर में ये एक कौन सी चीजें खाना पसंद करेंगे। मम्मी बोलती होगी कि सब्जी खाओ, दूध पियो तो कौन-कौन लोग है झगड़ा करते हैं।

विद्यार्थी: सारी सब्जी खाते हैं।

प्रधानमंत्री: सब सारी सब्जी खाते हैं, करेला भी खाती हो।

विद्यार्थी: करेले को छोड़के।

प्रधानमंत्री: अच्छा करेले को छोड़कर।

प्रधानमंत्री: आपको मालूम है सुकन्या समृद्धि योजना क्या है?

विद्यार्थी: Yes Sir.

प्रधानमंत्री: क्या है?

विद्यार्थी: सर आपके द्वारा यह खोली गई एक स्कीम है जो बहुत सारी फीमेल बच्चियों को भी फायदा दे रही है। तो जब हम बर्थ लेते हैं और 10 साल तक हम इसे खोल सकते हैं, तो सर जब हम 18 प्लस के हो जाते हैं तो हमारी पढ़ाई में ये बहुत ज्यादा हेल्प करती है। कोई फाइनेंशली प्रॉब्लम ना हो तो इसमें हम इससे पैसा निकाल सकते हैं।

प्रधानमंत्री: देखिए बेटी का जन्म होते ही सुकन्या समृद्धि का अकाउंट खोला जा सकता है। साल में उस बेटी के मां-बाप एक हजार रूपये बैंक में डालते रहे, साल का एक हजार मतलब महीने का 80-90 रूपया। मान लीजिए 18 साल के बाद उसको कोई अच्छी पढ़ाई के लिए पैसे चाहिए तो उसमें से आधे पैसे ले सकती हैं। और मान लीजिए 21 साल में शादी हो रही है उसके लिए पैसे निकालने हैं, अगर एक हजार रूपया रखें तो उस समय जब निकालेंगे तो करीब-करीब 50 हजार रूपया मिलता है, करीब-करीब 30-35 हजार रुपए ब्याज का मिलता है। और सामान्य दर पर जो ब्याज होता है ना, की बेटियों को ज्यादा ब्याज दिया जाता है बैंक से 8.2 परसेंट।

विद्यार्थी: यह नक्शा लगा रखा है कि स्कूल को हमें साफ करना चाहिए और इसमें बच्चों को साफ करते दिखाया गया है कि बच्चे साफ कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री: एक दिन मैं गुजरात में था। एक स्कूल के टीचर थे, उन्होंने बड़ा अद्भुत काम किया। एक वो इलाका था जहां समुद्र का तट था, पानी खारा था, जमीन भी ऐसी थी, कोई पेड़-पौधे नहीं होते थे। हरियाली की बिल्कुल तृप्ति नहीं थी। तो उन्होंने क्या किया बच्चों को कहा, सबको उन्होंने बोतल दिया बिसलेरी का खाली बोतल, ये तो तेल के कैन आते हैं खाली वो धो करके, साफ करके सब बच्चों को दिया, और कहा कि घर में मां जब खाना खाने के बाद बर्तन साफ करें, तो खाने के बर्तन पानी से जब धोती हैं, वो पानी इकट्ठा करें, और वो पानी इस बोतल में भरके हर दिन स्कूल ले आओ। और हर एक को कह दिया कि ये पेड़ तुम्हारा। अपने घर से जो बोतल में वो अपने किचन का पानी लाएगा वो उसमें डालना होगा पेड़ में। अब मैं जब 5-6 साल के बाद वो स्कूल गया...पूरा स्कूल उससे भी ज्यादा।

विद्यार्थी: ये ड्राई वेस्ट है I अगर इसमें हम सूखा कूड़ा डालेंगे और इसमें गीला कूड़ा डालेंगे, तो ऐसा जगह करेंगे तो खाद बनती है।

प्रधानमंत्री: तो ये करते हैं आप लोग घर में ये?

प्रधानमंत्री: मां तो सब्जी लेने जा रही है और खाली हाथ जा रही है, फिर प्लास्टिक में लेकर आती है तो आप सभी मां से झगड़ा करते हैं कि मम्मा घर से थैला लेकर जाओ, ये प्लास्टिक क्यों लाती हो, गंदगी घर में क्यों लाती हो, ऐसा बताते हैं...नहीं बताते हैं।

विद्यार्थी: सर कपड़े के थैले।

प्रधानमंत्री: बताते हैं?

विद्यार्थी: Yes Sir.

प्रधानमंत्री : अच्छा।

प्रधानमंत्री: यह क्या है? गांधी जी का चश्मा और गांधी जी देखते हैं क्या? कि स्वच्छता कर रहे हो कि नहीं कर रहे हो। आपको याद रहेगा क्योंकि गांधी जी जीवन भर स्वच्छता के लिए काम करते थे। गांधी जी हर बार देख रहे हैं कि स्वच्छता कौन करता, कौन नहीं करता है। क्योंकि गांधी जी जीवन भर स्वच्छता के लिए काम करते थे...पता है ना, वो कहते थे कि मेरे लिए आजादी और स्वच्छता दोनों में से अगर कोई एक चीज पसंद करनी है तो मैं स्वच्छता पसंद करूंगा। यानी वो आजादी से भी ज्यादा स्वच्छता को महत्मय देते थे। अब बताइए हमारे स्वच्छता के अभियान को आगे बढ़ना चाहिए कि नहीं बढ़ना चाहिए?

विद्यार्थी: सर बढ़ाना चाहिए।

प्रधानमंत्री: अच्छा आपको लगता है कि स्वच्छता ये कार्यक्रम होना चाहिए कि स्वच्छता ये आदत होनी चाहिए।

विद्यार्थी: आदत होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री: शाबाश। लोगों को क्या लगता है कि ये स्वच्छता तो मोदी जी का कार्यक्रम है। लेकिन हकीकत ये है कि स्वच्छता एक दिन का काम नहीं है, स्वच्छता एक व्यक्ति का काम नहीं है, स्वच्छता एक परिवार का काम नहीं है। ये जीवन भर, 365 दिन और जितने साल जिंदा रहे, हर दिन करने का काम है। और उसके लिए क्या चाहिए? मन में एक मंत्र चाहिए अगर देश का हर नागरिक तय कर ले कि मैं गंदगी नहीं करूंगा, तो क्या होगा?

विद्यार्थी: तो स्वच्छता का स्थापन होगा।

प्रधानमंत्री: बताइए। तो अब आदत क्या डालनी है। मैं गंदगी नहीं करूंगा, पहली आदत ये है। पक्का।

विद्यार्थी: Yes Sir.