Text of PM’s address at the Civic Reception in Mauritius

Published By : Admin | March 12, 2015 | 18:30 IST

इतनी बारिश और आज Working Day उसके बावजूद भी यह नजारा - मैं आपके प्‍यार के लिए मैं आपका सदा सर्वदा ऋणी रहूंगा। मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि मॉरीशियस ने मुझे जीत लिया है। अपना बना लिया है और जब आपने मुझे अपना बनाया है तो मेरी जिम्‍मेवारी भी बढ़ जाती है। और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं इस जिम्‍मेवारी को निभाने में भारत कोई कमी नहीं रखेगा।

मैं मॉरीशियस के सभी नागरिकों का अभिनंदन करता हूं। दुनिया का कोई भी व्‍यक्ति आज के मॉरीशियस को अगर देखेगा, मॉरीशियस के इतिहास को जानेगा, तो उसके मन में क्‍या विचार आएगा? उसके मन में यही विचार आएगा कि सौ साल पहले जो यहां मजदूर बनकर आए थे, जिनको लाया गया था, उन लोगों ने इस धरती को कैसा नंदनवन बना दिया है! इस देश को कैसी नई ऊंचाईयों पर ले गए हैं! और तब मेहनत तो आपने की है, पसीना तो आपने बहाया है, कष्‍ट तो आपके पूर्वजों ने झेले हैं, लेकिन Credit हमारे खाते में जाती है। क्‍योंकि हर किसी को लगता है कि भई यह कौन लोग हैं? वो हैं जो हिंदुस्‍तान से आए थे ना, वो हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (2)

और दुनिया को हिंदुस्‍तान की पहचान होगी कि दुनिया के लिए जो मजदूर था, जिसे खेतों से उठाकर के लाया गया था। जबरन लाया गया था। वो अगर जी-जान से जुड़ जाता है तो अपने आप धरती पर स्‍वर्ग खड़ा कर देता है। यह काम आपने किया है, आपके पूर्वजों ने किया है और इसलिए एक हिंदुस्‍तानी के नाते गर्व महसूस करता हूं और आपको नमन करता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं, आपके पूर्वजों को प्रणाम करता हूं।

कभी-कभार आम अच्‍छा है या नहीं है, यह देखने के लिए सारे आम नहीं देखने पड़ते। एक-आधा आम देख लिया तो पता चल जाता है, हां भई, फसल अच्‍छी है। अगर दुनिया मारिशियस को देख ले तो उसको विश्‍वास हो जाएगा हिंदुस्‍तान कैसा होगा। वहां के लोग कैसे होंगे। अगर sample इतना बढि़या है, तो godown कैसा होगा! और इसलिए विश्‍व के सामने आज भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हम उस महान विरासत की परंपरा में से पले हुए लोग हैं जो एक ही मंत्र लेकर के चले हैं।

जब दुनिया में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था। जब दुनिया में सुसंस्‍कृ‍त समाज के रूप में भारत की पहचान थी, उस समय भी उस धरती के लोगों ने कभी दुनिया पर कब्‍जा करने की कोशिश नहीं की थी। दूसरे का छीनना यह उसके खून में नहीं था। एक सामान्‍य व्‍यक्ति भी वही भाषा बोलता है जो एक देश का प्रधानमंत्री बोलता है। इतनी विचारों की सौम्यता, सहजता ऐसे नहीं आती है, किताबों से नहीं आती हैं, यह हमारे रक्‍त में भरा पड़ा है, हमारे संस्‍कारों में भरा पड़ा है। और हमारा मंत्र था “वसुधैव कुटुम्‍बकम्”। पूरा विश्‍व हमारा परिवार है इस तत्‍व को लेकर के हम निकले हुए लोग हैं और इसी के कारण आज दुनिया के किसी भी कोन में कोई भारतीय मूल का कोई व्‍यक्ति गया है तो उसने किसी को पराजित करने की कोशिश नहीं की है, हर किसी को जीतने का प्रयास किया है, अपना बनाने का प्रयास किया है।

2014 का साल मॉरिशियस के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत ने बहुत सालों से मिली-जुली सरकारें बना करती थी, गठबंधन की सरकारें बनती थी। एक पैर उसका तो एक पैर इसका, एक हाथ उसका तो एक हाथ इसका। मॉरिशियस का भी वही हाल था। यहां पर भी मिली-जुली सरकार बना करती थी।

2014 में जो हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने सोचा वही मॉरिशियस के नागरिकों ने सोचा। हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने 30 साल के बाद एक पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार बनाई। मॉरिशियस के लोगों ने भी पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार दी। और इसका मूल कारण यह है कि आज की जो पीढ़ी है, वो पीढ़ी बदलाव चाहती है। आज जो पीढ़ी है वो विकास चाहती है, आज जो पीढ़ी है वो अवसर चाहती है, उपकार नहीं। वो किसी के कृपा का मोहताज नहीं है। वो कहता है मेरे भुजा में दम है, मुझे मौका दीजिए। मैं पत्‍थर पर लकीर ऐसी बनाऊंगा जो दुनिया की ज़िन्दगी बदलने के काम आ सकती है। आज का युवा मक्‍खन पर लकीर बनाने का शौकीन नहीं है, वो पत्‍थर पर लकीर बनाना चाहता है। उसकी सोच बदली है उसके विचार बदले है और उसके मन में जो आशाएं आकांक्षाए जगी है, सरकारों का दायित्‍व बनता है वो नौजवानों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राष्‍ट्र को विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाएँ।

और मैं आज जब आपके बीच में आया हूं मेरी सरकार को ज्‍यादा समय तो नहीं हुआ है, लेकिन मैं इतना विश्‍वास से कह रहा हूं कि जिस भारत की तरफ कोई देखने को तैयार नहीं था और देखते भी थे, तो आंख दिखाने के लिए देखते थे। पहली बार आज दुनिया भारत को आंख नहीं दिखा दे रही है, भारत से आंख मिलाने की कोशिश कर रही है। सवा सौ करोड़ का देश, क्‍या दुनिया के भाग्‍य को बदलने का निमित्त नहीं बन सकता? क्‍या ऐसे सपने नहीं संजोने चाहिए? सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, जगत हिताय च । जिस मंत्र को लेकर के हमारे पूर्वजों ने हमें पाला-पौसा है। क्‍या समय की मांग नहीं है, कि हम अपने पुरुषार्थ से, अपने पराक्रम से, अपनी कल्पनाशीलता से जगत को वो चीज़ें दें जिनके लिए जगत सदियों से तरसता रहा है? और मैं विशवास दिलाता हूँ, यह ताकत उस धरती में है। उन संस्कारों में है, जो जगत को समस्यायों के समाधान के लिए रास्‍ता दे सकते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (5)

आज पूरा विश्‍व और विशेषकर के छोटे-छोटे टापुओं पर बसे हुए देश इस बात से चिंतित है कि 50 साल, सौ साल के बाद उनका क्‍या होगा। Climate Change के कारण कहीं यह धरती समंदर में समा तो नहीं जाएगी? सदियों ने पूर्वजों ने परिश्रम करके जिसे नंदनवन बनाया, कहीं वो सपने डूब तो नहीं जाएंगे? सपने चकनाचूर हो नहीं जाएंगे क्‍या? सारी दुनिया Global Warming के कारण चिंतित है। और टापूओं पर रहने वाले छोटे-छोटे देश मुझे जिससे मिलना हुआ उनकी एक गहन चिंता रहती है कि यह दुनिया समझे अपने सुख के लिए हमें बलि न चढ़ा दे, यह सामान्‍य मानव सोचता है। और इसलिए, कौन सा तत्‍व है, कौन सा मार्गदर्शन है, कौन सा नेतृत्‍व है, जो उपभोग की इस परंपरा में से समाज को बचाकर के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय जीवन की प्रशस्ति के लिए आगे आए? जब ऐसे संकट आते हैं तब भारत ही वो ताकत है जिस ताकत ने सदियों पहले... जब महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम में रहते थे, साबरमती नदी पानी से भरी रहती थी, लबालब पानी था। 1925-30 का कालखंड था, लेकिन उसके बावजूद भी अगर कोई महात्‍मा गांधी को पानी देता था और जरूरत से ज्‍यादा देता था, तो गांधी जी नाराज होकर कहते “भाई पानी बर्बाद मत करो, जितना जरूरत का है उतना ही दीजिए, अगर उसको आधे ग्लिास की जरूरत है तो पूरा ग्लिास भरकर मत दीजिए।“ नदी भरी पड़ी थी पानी सामने था, लेकिन सोच स्‍वयं के सुख की नहीं थी, सोच आने वाली पीढि़यों के सुख की थी और इसलिए गांधी हमें प्रशस्‍त करते थे कि हम उतना ही उपयोग करे जितना हमारी जरूरत है। अगर दुनिया गांधी के इस छोटे से सिद्धांत को मान लें कि हम जरूरत से ज्‍यादा उपभोग न करे, तो क्‍या Climate का संकट पैदा होगा क्‍या? बर्फ पिघलेगी क्‍या? समंदर उबलेंगे क्‍या? और मॉरिशियस जैसे देश के सामने जीने-मरने का संकट पैदा होगा क्‍या? नहीं होगा। यह छोटी सी बात।

हम उस परंपरा के लोग हैं जिस परंपरा में प्रकृति से प्रेम करना सिखाया गया है। हमी तो लोग हैं, जिन्‍हें “पृथ्‍वी यह माता है”, यह बचपन से सिखाया जाता है। शायद दुनिया में कोई ऐसी परंपरा नहीं होगी जो “पृथ्‍वी यह माता है” यह संकल्‍प कराती हो। और इतना ही नहीं बालक छोटी आयु में भी जब बिस्‍तर से नीचे पैर रखता है तो मां यह कहती है कि “देखो बेटे, जब बिस्‍तर से जमीन पर पैर रखते हो तो पहले यह धरती मां को प्रणाम करो। उसकी क्षमा मांगों, ताकि तुम उसके सीने पर पैर रख रहे हो।“ यह संस्‍कार थे, यही तो संस्‍कार है, जो धरती माता की रक्षा के लिए प्रेरणा देते थे और धरती माता की रक्षा का मतलब है यह प्रकृति, यह पर्यावरण, यह नदियां, यह जंगल... इसी की रक्षा का संदेश देते हैं। अगर यह बच जाता है, तो Climate का संकट पैदा नहीं होता है। हम ही तो लोग हैं जो नदी को मां कहते हैं। हमारे लिए जितना जीवन में मां का मूल्‍य है, उतना ही हमारे यहां नदी का मूल्‍य है। अगर जिस पल हम यह भूल गए कि नदी यह मां हैं और जब से हमारे दिमाग में घर कर गया कि आखिर नदी ही तो H2O है और क्‍या है। जब नदी को हमने H2O मान लिया, पानी है, H2O... जब नदी के प्रति मां का भाव मर जाता है, तो नदी की रखवाली करने की जिम्‍मेदारी भी खत्‍म हो जाती है।

यह संस्‍कार हमें मिले हैं और उन्‍हीं संस्‍कारों के तहत हम प्रकृति की रक्षा से जुड़े हुए हैं। हमारे पूर्वजों ने हमें कहा है – मनुष्‍य को प्रकृति का दोहन करना चाहिए। कभी आपने बछड़े को उतनी ही दूध पीते देखा होगा, जितना बछड़े को जरूरत होगी। मां को काटने का, गाय को काटने का प्रयास कोई नहीं करता है। और इसलिए प्रकृति का भी दोहन होना चाहिए, प्रकृति को शोषण नहीं होना चाहिए। “Milking of Nature” हमारे यहां कहा गया है। “Exploitation of the Nature is a Crime.” अगर यह विचार और आदर्शों को लेकर के हम चलते हैं, तो हम मानव जिस संकट से जूझ रहा है, उस संकट से बचाने का रास्‍ता दे सकते हैं।

हम वो लोग हैं जिन्‍होंने पूरे ब्रह्माण को एक परिवार के रूप मे माना है। आप देखिए छोटी-छोटी चीजें होती हैं लेकिन जीवन को कैसे बनाती हैं। पूरे ब्रह्माण को परिवार मानना यह किताबों से नहीं, परिवार के संस्‍कारों से समझाया गया है। बच्‍चा छोटा होता है तो मां उसको खुले मैदान में ले जाकर के समझाती है कि “देखो बेटे, यह जो चांद दिखता है न यह चांद जो है न तेरा मामा है”। कहता है कि नहीं कहते? आपको भी कहा था या नहीं कहा था? क्‍या दुनिया में कभी सुना है जो कहता है सूरज तेरा दादा है, चांद तेरा मामा है, यानी पूरा ब्रह्माण तेरा परिवार है। यह संस्‍कार जिस धरती से मिलते हैं, वहां प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं हो सकता है, प्रकृति के साथ समन्‍वय होता है। और इसलिए आज विश्‍व जिस संकट को झेल रहा है, भारतीय चिंतन के आधार पर विश्‍व का नेतृत्व करने का समय आ गया है। Climate बचाने के लिए दुनिया हमें न सिखाये।

दुनिया, जब मॉरिशस कहेगा, ज्‍यादा मानेगी। उसका कारण क्‍या है, मालूम है? क्‍योंकि आप कह सकते हो कि “भई मैं मरने वाला हूं, मैं डूबने वाला हूं”। तो उसका असर ज्‍यादा होता है और इसलिए विश्‍व को जगाना.. मैं इन दिनों कई ऐसे क्षेत्रों में गया। मैं अभी फिजी में गया तो वहां भी मैं अलग-अलग आईलैंड के छोटे-छोटे देशों से मिला था। अब पूरा समय उनकी यही पीड़ा थी, यही दर्द था कोई तो हमारी सुने, कोई तो हमें बचाएं, कोई तो हमारी आने वाली पीढि़यों की रक्षा करे। और जो दूर का सोचते हैं उन्‍होंने आज से शुरू करना पड़ता है।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (3)

भाईयों-बहनों भारत आज विश्‍व का सबसे युवा देश है। 65% Population भारत की 35 साल से कम उम्र की है। यह मॉरिशियस 1.2 Million का है, और हिंदुस्‍तान 1.2 Billion का है। और उसमें 65% जनसंख्‍या 35 साल से कम है। पूरे विश्‍व में युवाशक्ति एक अनिवार्यता बनने वाला है। दुनिया को Workforce की जरूरत पड़ने वाली है। कितना ही ज्ञान हो, कितना ही रुपया हो, कितना ही डॉलर हो, पौंड हो, संपत्ति के भंडार हो, लेकिन अगर युवा पीढ़ी के भुजाओं का बल नहीं मिलता है, तो गाड़ी वहीं अटक जाती है। और इसलिए दुनिया को Youthful Manpower की आवश्‍यकता रहने वाली है, Human Resource की आवश्‍यकता रहने वाली है। भारत आज उस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है कि आने वाले दिनों में विश्‍व को जिस मानवशक्ति की आवश्‍यकता है, हम भारत में ऐसी मानवशक्ति तैयार करें जो जगत में जहां जिसकी जरूरत हो, उसको पूरा करने के लिए हमारे पास वो काबिलियत हो, वो हुनर हो, वो सामर्थ्‍य हो।

और इसलिए Skill Development एक Mission mode में हमने आरंभ किया है। दुनिया की आवश्‍यकताओं का Mapping करके किस देश को आने वाले 20 साल के बाद कैसे लोग चाहिए, ऐसे लोगों को तैयार करने का काम आज से शुरू करेंगे। और एक बार भारत का नौजवान दुनिया में जाएगा तो सिर्फ भुजाएं लेकर के नहीं जाएगा, सिर्फ दो बाहू लेकर के नहीं जाएगा, दिल और दिमाग लेकर के भी जाएगा। और वो दिमाग जो वसुधैव कुटुम्‍बकम् की बात करता है। जगत को जोड़ने की बात करता है।

और इसलिए आने वाले दिनों में फिर एक बार युग का चक्‍कर चलने वाला है, जिस युग के चक्‍कर से भारत का नौजवान विश्‍व के बदलाव में दुनिया में फैलकर के एक catalytic agent के रूप में अपनी भूमिका का निर्माण कर सके, ऐसी संभावनाएं पड़ी है। उन संभावनाओं को एक अवसर मानकर के हिंदुस्‍तान आगे बढ़ना चाहता है। दुनिया में फैली हुई सभी मानवतावादी शक्तियां भारत को आशीर्वाद दें ता‍कि इस विचार के लोग इस मनोभूमिका के लोग विश्‍व में पहुंचे, विश्‍व में फैले और विश्‍व कल्‍याण के मार्ग में अपनी-अपनी भूमिका अदा करे। यह जमाना Digital World है। हर किसी के हाथ में मोबाइल है, हर कोई selfie ले रहा है। Selfie ले या न ले, बहुत धक्‍के मारता है मुझे। जगत बदल चुका है। Selfie लेता हैं, पलभर के अंदर अपने साथियों को पहुंचा देता है “देखो अभी-अभी मोदी जी से मिलकर आ गया।“ दुनिया तेज गति से बदल रही है। भारत अपने आप को उस दिशा में सज्ज कर रहा है और हिंदुस्‍तान के नौजवान जो IT के माध्‍यम से जगत को एक अलग पहचान दी है हिंदुस्‍तान की।

वरना एक समय था, हिंदुस्‍तान की पहचान क्‍या थी? मुझे बराबर याद है मैं एक बार ताइवान गया था। बहुत साल पहले की बात है, ताइवान सरकार के निमंत्रण पर गया था। तब तो मैं कुछ था नहीं, मुख्‍यमंत्री वगैरह कुछ नहीं था, ऐसे ही... जैसे यहां एक बार यहाँ मॉ‍रिशियस आया था। कुछ लोग हैं जो मुझे पुराने मिल गए आज। तो पांच-सात दिन का मेरा Tour था जो उनका Computer Engineer था वो मेरा interpretor था, वहां की सरकार ने लगाया था। तो पांच-सात दिन मैं सब देख रहा था, सुन रहा था, पूछ रहा था, तो उसके मन में curiosity हुई। तो उसने आखिरी एक दिन बाकी था, उसने मुझे पूछा था। बोला कि “आप बुरा न माने तो एक सवाल पूछना चाहता हूं।“ मैंने कहा “क्या?” बोले.. “आपको बुरा नहीं लगेगा न?“ मैंने कहा “पूछ लो भई लगेगा तो लगेगा, तेरे मन में रहेगा तो मुझे बुरा लगेगा।“ फिर “नहीं नहीं..” वो बिचारा भागता रहा। मैंने फिर आग्रह किया “बैठो, बैठो। मुझे बताओ क्‍या हुआ है।“ तो उसने मुझे पूछा “साहब, मैं जानना चाहता हूं क्‍या हिंदुस्‍तान आज भी सांप-सपेरों का देश है क्‍या? जादू-टोना वालों का देश है क्‍या? काला जादू चलता है क्‍या हिंदुस्‍तान में?” बड़ा बिचारा डरते-डरते मुझे पूछ रहा था। मैंने कहा “नहीं यार अब वो जमाना चला गया। अब हम लोगों में वो दम नहीं है। हम अब सांप से नहीं खेल सकते। अब तो हमारा devaluation इतना हो गया कि हम Mouse से खेलते हैं।“ और हिंदुस्‍तान के नौजवान का Mouse आज Computer पर click कर करके दुनिया को डुला देता है। यह ताकत है हमारे में।

हमारे नौजवानों ने Computer पर करामात करके विश्‍व के एक अलग पहचान बनाई है। विश्‍व को भारत की तरफ देखने का नजरिया बदलना पड़ा है। उस सामर्थ्‍य के भरोसे हिंदुस्‍तान को भी हम आगे बढ़ाना चाहते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (1)

एक जमाना था। जब Marx की theory आती थी तो कहते थे “Haves and Have nots” उसकी theory चलती थी। वो कितनी कामगर हुई है, उस विचार का क्‍या हुआ वो सारी दुनिया जानती है मैं उसकी गहराई में नहीं जाना चाहता। लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं आज दुनिया Digital Connectivity से जो वंचित है और जो Digital World से जुड़े हुए हैं, यह खाई अगर ज्‍यादा बढ़ गई, तो विकास के अंदर बहुत बड़ी रूकावट पैदा होने वाली है। इसलिए Digital Access गरीब से गरीब व्‍यक्ति तक होना आने वाले दिनों में विकास के लिए अनिवार्य होने वाला है। हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन है।

हर किसी को दुनिया के साथ जुड़ने की उत्‍सुकता... मुझे याद है मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो एक आदिवासी जंगल में एक तहसील है वहां मेरा जाना नहीं हुआ था। बहुत पिछड़ा हुआ इलाका था interior में था, लेकिन मेरा मन करता था कि ऐसा नहीं होना चाहिए मैं मुख्‍यमंत्री रहूं और यह एक इलाका छूट जाए, तो मैंने हमारे अधिकारियों से कहा कि भाई मुझे वहां जाना है जरा कार्यक्रम बनाइये। खैर बड़ी मुश्किल से कार्यक्रम बना अब वहां तो कोई ऐसा प्रोजेक्‍ट भी नहीं था क्‍या करे। कोई ऐसा मैदान भी नहीं था जहां जनसभा करे, तो एक Chilling Centre बना था। दूध रखने के लिए, जो दूध बेचने वाले लोग होते हैं वो Chilling Centre में दूध देते हैं, वहां Chilling Plant में Chilling होता है फिर बाद में बड़ा Vehicle आता है तो Dairy में ले जाता है। छोटा सा प्रोजेक्‍ट था 25 लाख रुपये का। लेकिन मेरा मन कर गया कि भले छोटा हो पर मुझे वहां जाना है। तो मैं गया और उससे तीन किलोमीटर दूर एक आम सभा के लिए मैदान रखा था, स्‍कूल का मैदान था, वहां सभा रखी गयी। लेकिन जब मैं वहां गया Chilling Centre पर तो 20-25 महिलाएं जो दूध देने वाली थी, वो वहां थी, तो मैंने जब उद्घाटन किया.. यह आदिवासी महिलाएं थी, पिछड़ा इलाका था। वे सभी मोबाइल से मेरी फोटो ले रही थी। अब मेरे लिए बड़ा अचरज था तो मैं कार्यक्रम के बाद उनके पास गया और मैंने उनसे पूछा कि “मेरी फोटो लेकर क्‍या करोगे?” उन्‍होंने जो जवाब दिया, वो जवाब मुझे आज भी प्रेरणा देता है। उन्‍होंने कहा कि “नहीं, नहीं यह तो जाकर के हम Download करवा देंगे।“ यानी वो पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, वो आदिवासी थे, दूध बेचकर के अपनी रोजी-रोटी कमाते थे, लेकिन वहां की महिलाएं हाथ से मोबाइल से फोटो निकाल रही हैं, और मुझे समझा रही है कि हम Download करा देंगे। तब से मैंने देखा कि Technology किस प्रकार से मानवजात के जीवन का हिस्‍सा बनती चली जा रही है। अगर हमने विकास के Design बना लिये हैं तो उस Technology का महत्‍व हमें समझना होगा।

और भारत Digital India का सपना देख कर के चल रहा है। कभी हिंदुस्‍तान की पहचान यह बन जाती थी कोई भी यहां अगर किसी को कहोगे भारत... “अरे छोड़ो यार, भ्रष्‍टाचार है, छोड़ो यार रिश्‍वत का मामला है।“ ऐसा सुनते हैं न? अब सही करना है। अभी-अभी आपने सुना होगा, यह अखबार में बहुत कम आया है। वैसे बहुत सी अच्‍छी चीजें होती है जो अखबार टीवी में कम आती है। एक-आध कोन में कहीं आ जाती है। भारत में कोयले को लेकर के भ्रष्‍टाचार की बड़ी चर्चा हुई थी। CAG ने कहा था एक लाख 76 हजार करोड़ के corruption की बात हुई थी। हमारी सरकार आई और सुप्रीम कोर्ट ने 204 जो खदानें थी उसको रद्द कर दिया। कोयला निकालना ही पाबंदी लग गई। अब बिजली के कारखाने कैसे चलेंगे? हमारे लिए बहुत जरूरी था कि इस काम को आगे बढ़ाएं। हमने एक के बाद एक निर्णय लिए, तीने महीने के अंदर उसमें Auction करना शुरू कर दिया और 204 Coal Blocks खदानें जो ऐसे ही कागज पर चिट्ठी लिखकर के दे रही है यह मदन भाई को दे देना, यह मोहन भाई को दे देना या रज्‍जू भाई को... ऐसा ही दे दिया। तो सुप्रीम ने गलत किया था, हमने उसका Auction किया था। अब तक सिर्फ 20 का Auction हुआ है। 204 में से 20 का Auction हुआ है। और 20 के Auction में दो लाख करोड़ से ज्‍यादा रकम आई है।

Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? अगर हम नीतियों के आधार पर देश चलाएं, पारदर्शिता के साथ चलाएं, तो हम भ्रष्‍टाचार से कोई भी व्‍यवस्‍था को बाहर निकाल सकते हैं और भ्रष्‍टाचार मुक्‍त व्‍यवस्‍थाओं को विकसित कर सकते हैं। हिंदुस्‍तान ने बीड़ा उठाया है, हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

भारत विकास की नई ऊंचाईयों पर जा रहा है। भारत ने एक सपना देखा है “Make In India” हम दुनिया को कह रहे हैं कि आइये हिंदुस्‍तान में पूंजी लगाइये, हिंदुस्‍तान में Manufacturing कीजिए। भारत में आपको Low Cost Manufacturing होगा, Skilled Manpower मिलेगा। Zero loss का माहौल मिलेगा। Redtape की जगह Red Carpet मिलेगा। आइये और आप अपना नसीब आजमाइये और मैं देख रहा हूं आज दुनिया का भारत में बहुत रूचि लगने लगी। दुनिया के सारे देश जिनको पता है कि हां भारत एक जगह है, जहां पूंजी निवेश कर सकते हैं, वहां Manufacturing करेंगे और दुनिया के अंदर Export करेंगे।

बहुत बड़ी संभावनाओं के साथ देश विकास की ऊंचाईयों को पार कर रहा है। मुझे विश्‍वास है कि आप जो सपने देख रहे हो वो कहीं पर भी बैठे होंगे, लेकिन आप आज कहीं पर भी क्‍यों न हो, लेकिन कौन बेटा है जो मां को दुखी देखना चाहता है? सदियों पहले भले वो देश छोड़ा हो, लेकिन फिर भी आपके मन में रहता होगा कि “भारत मेरी मां है। मेरी मां कभी दुखी नहीं होनी चाहिए।“ यह आप भी चाहते होंगे। जो आप चाहते हो। आप यहां आगे बढि़ए, प्रगति कीजिए और आपने जो भारत मां की जिम्‍मेवारी हमें दी है, हम उसको पूरी तरह निभाएंगे ताकि कभी आपको यह चिंता न रहे कि आपकी भारत माता का हाल क्‍या है। यह मैं विश्‍वास दिलाने आया हूं।

20 PM Modi floral tribute at Gandhi Statue at Mahatama Gandhi institute of Mauritius (1)

मैं कल से यहां आया हूं, जो स्‍वागत सम्‍मान दिया है, जो प्‍यार मिला है इसके लिए मैं मॉरीशियस का बहुत आभारी हूं। यहां की सरकार का आभारी हूं, प्रधानमंत्री जी का आभारी हूं, आप सबका बहुत आभार हूं। और आपने जो स्‍वागत किया, जो सम्‍मान दिया इसके लिए मैं फिर एक बार धन्‍यवाद करता हूं। और आज 12 मार्च आपका National Day है, Independence Day है। और 12 मार्च 1930 महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम से चले थे, दांडी की यात्रा करने के लिए। और वो दांडी यात्रा कोई कल्‍पना नहीं कर सकता था कि नमक सत्‍याग्रह पूरी दुनिया के अंदर एक क्रांति ला सकता है। जिस 12 मार्च को दांडी यात्रा का प्रारंभ हुआ था उसी 12 मार्च को महात्‍मा गांधी से जुड़े हुए पर्व से मॉरिशियस की आजादी का पर्व है। मैं उस पर्व के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत बधाई देता हूं।

फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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2025ರ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನದ ಆರಂಭದಲ್ಲಿ ಪ್ರಧಾನಮಂತ್ರಿ ಅವರು ಮಾಡಿದ ಭಾಷಣದ ಕನ್ನಡ ಅನುವಾದ
July 21, 2025

ನಮಸ್ಕಾರ, ಸ್ನೇಹಿತರೇ!

ಮಾಧ್ಯಮ ಕ್ಷೇತ್ರದ ಎಲ್ಲಾ ಸ್ನೇಹಿತರಿಗೂ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನಕ್ಕೆ ಸ್ವಾಗತ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಮುಂಗಾರು ಎಂದರೆ ಹೊಸತನ ಮತ್ತು ಸೃಷ್ಟಿಯ ಸಂಕೇತ. ಇಲ್ಲಿಯವರೆಗೆ ಬಂದಿರುವ ವರದಿಗಳ ಪ್ರಕಾರ, ಇಡೀ ದೇಶದಲ್ಲಿ ಉತ್ತಮ ಮಳೆಯಾಗಿದ್ದು, ಕೃಷಿ ವಲಯಕ್ಕೆ ಲಾಭವಾಗುವ ವಾತಾವರಣ ನಿರ್ಮಾಣವಾಗಿದೆ. ಮಳೆಯು ನಮ್ಮ ರೈತರ ಆರ್ಥಿಕತೆಗೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ, ದೇಶದ ಆರ್ಥಿಕತೆಗೂ, ಗ್ರಾಮೀಣ ಆರ್ಥಿಕತೆಗೂ ಮತ್ತು ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಮನೆಯ ಆರ್ಥಿಕತೆಗೂ ಪ್ರಮುಖ ಪಾತ್ರ ವಹಿಸುತ್ತದೆ. ನಾನು ಪಡೆದಿರುವ ಮಾಹಿತಿಯ ಪ್ರಕಾರ, ಈ ವರ್ಷ ಜಲಾಶಯಗಳಲ್ಲಿ ಸಂಗ್ರಹವಾಗಿರುವ ನೀರಿನ ಪ್ರಮಾಣವು ಕಳೆದ ಹತ್ತು ವರ್ಷಗಳ ದಾಖಲೆಗಿಂತ ಸುಮಾರು ಮೂರು ಪಟ್ಟು ಹೆಚ್ಚಿದೆ. ಇದು ಮುಂಬರುವ ದಿನಗಳಲ್ಲಿ ದೇಶದ ಆರ್ಥಿಕತೆಗೆ ಹೆಚ್ಚಿನ ಪ್ರಯೋಜನ ನೀಡುತ್ತದೆ.

 

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ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಈ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನವು ರಾಷ್ಟ್ರಕ್ಕೆ ಅಪಾರ ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಈ ಅಧಿವೇಶನವು, ದೇಶದ ಪಾಲಿಗೆ ಒಂದು ವಿಜಯೋತ್ಸವವೇ ಆಗಿದೆ. ಈ ಅಧಿವೇಶನವು ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಹೆಮ್ಮೆ ಮತ್ತು ವಿಜಯದ ಸಂಭ್ರಮವಾಗಿದೆ ಎಂದು ಹೇಳುವುದಕ್ಕೆ ಪ್ರಮುಖ ಕಾರಣವೆಂದರೆ, ಅಂತಾರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ನಿಲ್ದಾಣದಲ್ಲಿ (International Space Station) ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಭಾರತದ ತ್ರಿವರ್ಣ ಧ್ವಜ ಹಾರಾಡಿದ್ದು. ಇದು ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಭಾರತೀಯನಿಗೂ ಅಪಾರ ಹೆಮ್ಮೆ ತರುವ ಕ್ಷಣವಾಗಿದೆ. ಈ ಯಶಸ್ವಿ ಪಯಣವು, ದೇಶದಲ್ಲಿ ವಿಜ್ಞಾನ, ತಂತ್ರಜ್ಞಾನ ಮತ್ತು ನಾವೀನ್ಯತೆಯ ಬಗ್ಗೆ ನವೋತ್ಸಾಹ ಮತ್ತು ನವಚೈತನ್ಯವನ್ನು ತುಂಬಿದೆ. ಇಡೀ ಸಂಸತ್ತು – ಲೋಕಸಭೆ ಮತ್ತು ರಾಜ್ಯಸಭೆ ಎರಡೂ – ದೇಶದ ನಾಗರಿಕರೊಂದಿಗೆ ಸೇರಿ, ಈ ಸಾಧನೆಯನ್ನು ಒಕ್ಕೊರಲಿನಿಂದ ಅಭಿನಂದಿಸಲಿವೆ. ಈ ಒಕ್ಕೊರಲ ಶ್ಲಾಘನೆಯು, ಇನ್ನಷ್ಟು ಎತ್ತರವನ್ನು ತಲುಪುವ ಗುರಿ ಹೊಂದಿರುವ ಭಾರತದ ಮುಂಬರುವ ಬಾಹ್ಯಾಕಾಶ ಯೋಜನೆಗಳಿಗೆ ಸ್ಫೂರ್ತಿ ಮತ್ತು ಪ್ರೋತ್ಸಾಹವನ್ನು ಸಹ ನೀಡಲಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಈ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನವು ನಿಜಕ್ಕೂ ವಿಜಯದ ಆಚರಣೆಯಾಗಿದೆ. ಭಾರತದ ಮಿಲಿಟರಿ ಶಕ್ತಿಯ ಸಾಮರ್ಥ್ಯವನ್ನು ಇಡೀ ಜಗತ್ತು ಕಂಡಿದೆ. ಆಪರೇಷನ್ ಸಿಂಧೂರ್ ನಲ್ಲಿ, ಭಾರತೀಯ ಸಶಸ್ತ್ರ ಪಡೆಗಳು ತಮ್ಮ ಉದ್ದೇಶಗಳನ್ನು ನೂರಕ್ಕೆ ನೂರು ಪ್ರತಿಶತ ಯಶಸ್ಸಿನೊಂದಿಗೆ ಸಾಧಿಸಿವೆ. ಕೇವಲ 22 ನಿಮಿಷಗಳಲ್ಲಿ, ಮಿಷನ್ ಶತ್ರುವಿನ ಪ್ರದೇಶದೊಳಗೆ ತನ್ನ ಗುರಿಯನ್ನು ನಾಶಪಡಿಸಿದೆ. ನಾನು ಈ ಬಗ್ಗೆ ಬಿಹಾರದಲ್ಲಿ ಒಂದು ಕಾರ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಘೋಷಿಸಿದ್ದೆ, ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಶಸ್ತ್ರ ಪಡೆಗಳು ಅದನ್ನು ಅಲ್ಪಾವಧಿಯಲ್ಲಿಯೇ ಸಾಧಿಸಿ ತೋರಿಸಿವೆ. ನಮ್ಮ ‘ಮೇಡ್ ಇನ್ ಇಂಡಿಯಾ’ ಸೇನಾ ಶಕ್ತಿಯ ಹೊಸ ಮುಖವು ಜಾಗತಿಕ ಗಮನವನ್ನು ಸೆಳೆದಿದೆ. ಈ ದಿನಗಳಲ್ಲಿ, ನಾನು ಜಾಗತಿಕ ನಾಯಕರನ್ನು ಭೇಟಿಯಾದಾಗ, ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಅಭಿವೃದ್ಧಿಪಡಿಸಲಾಗುತ್ತಿರುವ ಸ್ವದೇಶಿ ನಿರ್ಮಿತ ರಕ್ಷಣಾ ಉಪಕರಣಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಹೆಚ್ಚಿನ ಆಸಕ್ತಿ ವ್ಯಕ್ತವಾಗುತ್ತಿದೆ. ಈ ಅಧಿವೇಶನದಲ್ಲಿ ಸಂಸತ್ತು ಒಕ್ಕೊರಲಿನಿಂದ ವಿಜಯದ ಭಾವನೆಗಳನ್ನು ವ್ಯಕ್ತಪಡಿಸಿದಾಗ, ಅದು ನಮ್ಮ  ಸಶಸ್ತ್ರ ಪಡೆಗಳನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಬಲಪಡಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಅವರಿಗೆ ಸ್ಫೂರ್ತಿ ನೀಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಾನು ದೃಢವಾಗಿ ನಂಬುತ್ತೇನೆ. ಇದು ದೇಶಕ್ಕೆ ಪ್ರೇರಣೆಯಾಗಲಿದೆ ಮತ್ತು ರಕ್ಷಣಾ ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ ಸಂಶೋಧನೆ, ನಾವೀನ್ಯತೆ ಮತ್ತು ಉತ್ಪಾದನೆಗೆ ದೊಡ್ಡ ಉತ್ತೇಜನವನ್ನು ನೀಡಲಿದೆ. ‘ಮೇಡ್ ಇನ್ ಇಂಡಿಯಾ’ ರಕ್ಷಣಾ ಉಪಕರಣಗಳು ಮತ್ತಷ್ಟು ವೇಗವನ್ನು ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳಲಿದ್ದು, ನಮ್ಮ ಯುವಕರಿಗೆ ಹೊಸ ಉದ್ಯೋಗಾವಕಾಶಗಳನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸಲಿವೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಈ ದಶಕವನ್ನು ಶಾಂತಿ ಮತ್ತು ಪ್ರಗತಿಗಳು ಜೊತೆಜೊತೆಯಾಗಿ ಸಾಗುತ್ತಿರುವ ಸಮಯ ಎಂದು ಬಣ್ಣಿಸಬಹುದು. ನಾವು ಹೆಜ್ಜೆಹೆಜ್ಜೆಗೂ ಅಭಿವೃದ್ಧಿಯನ್ನು ಕಾಣುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯ ಬಂದಾಗಿನಿಂದ, ದೇಶವು ಭಯೋತ್ಪಾದನೆಯಾಗಲಿ ಅಥವಾ ನಕ್ಸಲ್‌ ವಾದವಾಗಲಿ, ಹೀಗೆ ವಿವಿಧ ರೀತಿಯ ಹಿಂಸಾಚಾರಗಳಿಂದ ಬಹಳಷ್ಟು ನಲುಗಿದೆ. ಈ ಸಮಸ್ಯೆಗಳಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ಮೊದಲು ಹುಟ್ಟಿಕೊಂಡಿದ್ದರೆ, ಇನ್ನು ಕೆಲವು ನಂತರದಲ್ಲಿ ತಲೆದೋರಿದವು. ಆದರೆ, ಇಂದು ನಕ್ಸಲ್ ವಾದ ಮತ್ತು ಮಾವೋವಾದದ ಪ್ರಭಾವದ ವಲಯವು ವೇಗವಾಗಿ ಕ್ಷೀಣಿಸುತ್ತಿದೆ. ಮಾವೋವಾದ ಮತ್ತು ನಕ್ಸಲ್ ವಾದವನ್ನು ಬುಡಸಮೇತ ಕಿತ್ತೊಗೆಯುವ ದೃಢ ಸಂಕಲ್ಪದೊಂದಿಗೆ, ನಮ್ಮ ರಕ್ಷಣಾ ಪಡೆಗಳು ಹೊಸ ಆತ್ಮವಿಶ್ವಾಸದೊಂದಿಗೆ ವೇಗವಾಗಿ ಯಶಸ್ಸಿನತ್ತ ಮುನ್ನಡೆಯುತ್ತಿವೆ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ನಕ್ಸಲ್ ಪ್ರಭಾವಕ್ಕೆ ಒಳಗಾಗಿದ್ದ ದೇಶದ ನೂರಾರು ಜಿಲ್ಲೆಗಳು ಇಂದು ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯದ ಗಾಳಿಯನ್ನು ಉಸಿರಾಡುತ್ತಿವೆ ಎಂದು ನಾನು ಹೆಮ್ಮೆಯಿಂದ ಹೇಳಬಲ್ಲೆ. ಬಾಂಬ್, ಬಂದೂಕು ಮತ್ತು ಪಿಸ್ತೂಲುಗಳ ಮೇಲೆ ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನವು ಜಯ ಸಾಧಿಸುತ್ತಿದೆ ಎಂಬುದು ನಮಗೆ ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯ. ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನ ವಿಜಯಶಾಲಿಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ‘ರೆಡ್ ಕಾರಿಡಾರ್’ ಎಂದು ಕರೆಯಲ್ಪಡುತ್ತಿದ್ದ ಪ್ರದೇಶಗಳು ಇಂದು 'ಹಸಿರು ಅಭಿವೃದ್ಧಿ'ಯ ವಲಯಗಳಾಗಿ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾಗುತ್ತಿರುವುದು ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿ ಗೋಚರಿಸುತ್ತಿದೆ. ಇದು ದೇಶದ ಉಜ್ವಲ ಭವಿಷ್ಯವನ್ನು ಸಂಕೇತಿಸುತ್ತಿದೆ.

 

 

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ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ರಾಷ್ಟ್ರದ ಸೇವೆ ಮತ್ತು ಕಲ್ಯಾಣಕ್ಕಾಗಿ ಈ ಸದನವನ್ನು ಪ್ರವೇಶಿಸಿರುವ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸಂಸತ್ ಸದಸ್ಯರಿಗೂ, ಒಂದರ ನಂತರ ಒಂದರಂತೆ ನಡೆಯುವ ಇಂತಹ ಘಟನೆಗಳು ಹೆಮ್ಮೆಯ ಕ್ಷಣಗಳಾಗಿವೆ. ಮತ್ತು ಈ ಸಂಸತ್ತಿನ ಅಧಿವೇಶನದಲ್ಲಿ, ಇಡೀ ದೇಶವು ಈ ಹೆಮ್ಮೆಯ ಗಾಥೆಯನ್ನು ಕೇಳಲಿದೆ – ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಸಂಸದರಿಂದ, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷದಿಂದ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

2014ರಲ್ಲಿ ನೀವು ನಮಗೆ ಜವಾಬ್ದಾರಿಯನ್ನು ವಹಿಸಿಕೊಟ್ಟಾಗ, ದೇಶವು 'ಫ್ರಜೈಲ್ ಫೈವ್' (Fragile Five) ಆರ್ಥಿಕತೆಗಳಲ್ಲಿ ಒಂದೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲ್ಪಟ್ಟಿದ್ದ ಹಂತದಲ್ಲಿತ್ತು. 2014ಕ್ಕಿಂತ ಮೊದಲು, ಜಾಗತಿಕ ಆರ್ಥಿಕತೆಯಲ್ಲಿ ನಾವು 10ನೇ ಸ್ಥಾನದಲ್ಲಿದ್ದೆವು. ಇಂದು, ಭಾರತವು ವಿಶ್ವದ ಮೂರನೇ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಆರ್ಥಿಕತೆಯಾಗುವತ್ತ ವೇಗವಾಗಿ ಮುನ್ನಡೆಯುತ್ತಿದೆ. ಈ ದಿನಗಳಲ್ಲಿ, 25 ಕೋಟಿ ಬಡವರನ್ನು ಬಡತನದಿಂದ ಮೇಲೆತ್ತಿರುವುದನ್ನು ಹಲವಾರು ಅಂತಾರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಂಸ್ಥೆಗಳು ವ್ಯಾಪಕವಾಗಿ ಶ್ಲಾಘಿಸುತ್ತಿವೆ. 2014ಕ್ಕಿಂತ ಮೊದಲು ದೇಶದಲ್ಲಿ ಹಣದುಬ್ಬರ ದರವು ಎರಡಂಕಿಯಲ್ಲಿರುತ್ತಿದ್ದ ಕಾಲವಿತ್ತು. ಇಂದು, ಹಣದುಬ್ಬರವು ಸುಮಾರು 2 ಪ್ರತಿಶತಕ್ಕೆ ಇಳಿದಿರುವುದು ಸಾಮಾನ್ಯ ಮನುಷ್ಯನಿಗೆ ನೆಮ್ಮದಿ ಮತ್ತು ಸಮಾಧಾನವನ್ನು ತಂದಿದೆ. ಕಡಿಮೆ ಹಣದುಬ್ಬರ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚಿನ ಬೆಳವಣಿಗೆಯು, ಆರೋಗ್ಯಕರ ಮತ್ತು ಪ್ರಗತಿಪರ ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಪಯಣವನ್ನು ಪ್ರತಿಬಿಂಬಿಸುತ್ತದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

‘ಡಿಜಿಟಲ್ ಇಂಡಿಯಾ’ ಮತ್ತು ‘ಯುಪಿಐ’ ಮೂಲಕ ಭಾರತದ ಹೊಸ ಸಾಮರ್ಥ್ಯಗಳನ್ನು ಜಗತ್ತು ಈಗ ನೋಡುತ್ತಿದೆ ಮತ್ತು ಗುರುತಿಸುತ್ತಿದೆ. ಇವು ಜಾಗತಿಕ ಮಟ್ಟದಲ್ಲಿ ಹೆಚ್ಚಿನ ಆಸಕ್ತಿಯನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸುತ್ತಿವೆ. ‘ಫಿನ್ಟೆಕ್’ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ‘ಯುಪಿಐ’ ತನ್ನದೇ ಆದ ವಿಶಿಷ್ಟ ಗುರುತನ್ನು ಮೂಡಿಸಿದೆ. ರಿಯಲ್‌ ಟೈಮ್ ಡಿಜಿಟಲ್ ವಹಿವಾಟುಗಳಲ್ಲಿ ಭಾರತವು ಇಂದು ವಿಶ್ವದಲ್ಲಿಯೇ ಮುಂಚೂಣಿಯಲ್ಲಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಇತ್ತೀಚೆಗೆ, ಅಂತಾರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಕಾರ್ಮಿಕ ಸಂಘಟನೆಯ (ILO) ಜಾಗತಿಕ ಸಮ್ಮೇಳನವಿತ್ತು, ಅಲ್ಲಿ ಭಾರತವು ಒಂದು ಪ್ರಮುಖ ಮೈಲಿಗಲ್ಲನ್ನು ಸಾಧಿಸಿತು. ILO ಪ್ರಕಾರ, ಭಾರತದಲ್ಲಿ 90 ಕೋಟಿಗೂ ಹೆಚ್ಚು ಜನರು ಈಗ ಸಾಮಾಜಿಕ ಭದ್ರತೆಯ ವ್ಯಾಪ್ತಿಗೆ ಬಂದಿದ್ದಾರೆ. ಇದುವೇ ಒಂದು ಮಹತ್ತರವಾದ ಸಾಧನೆಯಾಗಿದೆ. ಅದೇ ರೀತಿ, ವಿಶ್ವ ಆರೋಗ್ಯ ಸಂಸ್ಥೆಯು (WHO), ಭಾರತವನ್ನು ಟ್ರಕೋಮಾ ಮುಕ್ತ ಎಂದು ಘೋಷಿಸಿದೆ. ಇದು ಮಳೆಗಾಲದಲ್ಲಿ ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ಕಂಡುಬರುವ ಒಂದು ಕಣ್ಣಿನ ಕಾಯಿಲೆಯಾಗಿದೆ. ಸಾರ್ವಜನಿಕ ಆರೋಗ್ಯ ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ ಇದು ಭಾರತದ ಮತ್ತೊಂದು ಮಹತ್ವದ ಸಾಧನೆಯಾಗಿದೆ.

 

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ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಪಹಲ್ಗಾಮ್ ನಲ್ಲಾದ ಕ್ರೂರ ಹತ್ಯೆ, ದೌರ್ಜನ್ಯ ಮತ್ತು ನರಮೇಧವು ಇಡೀ ಜಗತ್ತನ್ನೇ ಬೆಚ್ಚಿಬೀಳಿಸಿತ್ತು. ಭಯೋತ್ಪಾದಕರು ಮತ್ತು ಅವರ ಸೂತ್ರಧಾರರ ಕಡೆಗೆ ಎಲ್ಲರ ಗಮನ ಹರಿಯಿತು. ಆ ಕ್ಷಣದಲ್ಲಿ, ಪಕ್ಷ ಹಿತಾಸಕ್ತಿಗಳನ್ನು ಬದಿಗಿಟ್ಟು, ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಿತಕ್ಕಾಗಿ ಹೆಚ್ಚಿನ ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷಗಳ ಮತ್ತು ರಾಜ್ಯಗಳ ಪ್ರತಿನಿಧಿಗಳು ವಿಶ್ವದಾದ್ಯಂತ ವಿವಿಧ ದೇಶಗಳಿಗೆ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿ, ಭಯೋತ್ಪಾದನೆಯ ಕೇಂದ್ರವಾದ ಪಾಕಿಸ್ತಾನವನ್ನು ಜಗತ್ತಿನ ಮುಂದೆ ಬಯಲು ಮಾಡುವ ಯಶಸ್ವಿ ಅಭಿಯಾನವನ್ನು ನಡೆಸಿದರು. ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಿತಕ್ಕಾಗಿ ಮಾಡಿದ ಈ ಮಹತ್ವದ ಕಾರ್ಯಕ್ಕಾಗಿ ಆ ಎಲ್ಲಾ ಸಂಸತ್ ಸದಸ್ಯರನ್ನು ಮತ್ತು ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷಗಳನ್ನು ಇಂದು ನಾನು ಅಭಿನಂದಿಸಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಅವರ ಪ್ರಯತ್ನಗಳು ದೇಶದಲ್ಲಿ ಒಂದು ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ವಾತಾವರಣವನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸಿದವು. ಭಾರತದ ನಿಲುವನ್ನು ಕೇಳಲು ಮತ್ತು ಸ್ವೀಕರಿಸಲು ಜಗತ್ತು ತನ್ನ ಬಾಗಿಲುಗಳನ್ನು ತೆರೆಯಿತು. ಇದಕ್ಕಾಗಿ ನಮ್ಮ ಸಂಸತ್ ಸದಸ್ಯರು ಮತ್ತು ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷಗಳನ್ನು ಅಭಿನಂದಿಸುವುದು ನನ್ನ ಸೌಭಾಗ್ಯವೆಂದು ನಾನು ಪರಿಗಣಿಸುತ್ತೇನೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ,

ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನ ಭಾವನೆ ಮತ್ತು ಒಕ್ಕೊರಲಿನ ಧ್ವನಿಯು ರಾಷ್ಟ್ರದಲ್ಲಿ ಎಂತಹ ಮಹಾನ್ ಉತ್ಸಾಹವನ್ನು ತುಂಬುತ್ತದೆ ಎಂಬುದು ನಮಗೆ ತಿಳಿದಿದೆ. ಈ ವಿಜಯೋತ್ಸವವು ಅದೇ ಸ್ಪೂರ್ತಿಯೊಂದಿಗೆ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನದಲ್ಲೂ ಪ್ರತಿಧ್ವನಿಸಲಿದೆ. ಇದು ನಮ್ಮ ಸಶಸ್ತ್ರ ಪಡೆಗಳ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ಶ್ಲಾಘಿಸುತ್ತದೆ, ರಾಷ್ಟ್ರದ ಸಾಮರ್ಥ್ಯಗಳನ್ನು ಗೌರವಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು 140 ಕೋಟಿ ಭಾರತೀಯರಿಗೆ ಹೊಸ ಸ್ಫೂರ್ತಿಯ ಸೆಲೆಯಾಗಲಿದೆ. ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಒಟ್ಟಾಗಿ ರಕ್ಷಣಾ ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ ಆತ್ಮನಿರ್ಭರತೆಗಾಗಿ ನಮ್ಮ ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಬಲಪಡಿಸಬೇಕು ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಶಸ್ತ್ರ ಪಡೆಗಳ ಪರಾಕ್ರಮವನ್ನು ಶ್ಲಾಘಿಸಬೇಕು ಎಂದು ನಾನು ದೃಢವಾಗಿ ನಂಬುತ್ತೇನೆ. ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನ ಶಕ್ತಿ ಮತ್ತು ಒಕ್ಕೊರಲಿನ ಬಲವನ್ನು ರಾಷ್ಟ್ರವು ಕಂಡಿದೆ ಎಂದು ಇಂದು ನಾನು ದೇಶದ ಜನರಿಗೆ ಮತ್ತು ಎಲ್ಲಾ ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷಗಳಿಗೆ ಹೇಳಲೇಬೇಕು. ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸಂಸತ್ ಸದಸ್ಯರು ಈ ಸದನದೊಳಗೆ ಈ ಭಾವನೆಯನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ಬಲಪಡಿಸಬೇಕು ಮತ್ತು ಮುಂದುವರಿಸಬೇಕು. ರಾಜಕೀಯ ಪಕ್ಷಗಳು ಬೇರೆ ಬೇರೆಯಾಗಿವೆ, ಪ್ರತಿಯೊಂದಕ್ಕೂ ತನ್ನದೇ ಆದ ಕಾರ್ಯಸೂಚಿ, ತನ್ನದೇ ಆದ ಪಾತ್ರವಿದೆ ಎಂಬ ವಾಸ್ತವವನ್ನು ನಾನು ಒಪ್ಪಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ. ಆದರೆ, ಪಕ್ಷ ಹಿತಾಸಕ್ತಿಗಳಲ್ಲಿ ಮನಸ್ಸುಗಳು ಒಂದಾಗದಿದ್ದರೂ, ರಾಷ್ಟ್ರ ಹಿತಕ್ಕಾಗಿ ಅವು ಒಂದಾಗಲೇಬೇಕು ಅನ್ನುವ ಈ ಸತ್ಯವನ್ನೂ ನಾನು ಒಪ್ಪಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ. ಇದೇ ಭಾವನೆಯೊಂದಿಗೆ, ರಾಷ್ಟ್ರದ ಅಭಿವೃದ್ಧಿಯ ಪಯಣವನ್ನು ಬಲಪಡಿಸುವ, ದೇಶದ ಪ್ರಗತಿಯನ್ನು ಮುನ್ನಡೆಸುವ ಮತ್ತು ಅದರ ನಾಗರಿಕರನ್ನು ಸಬಲೀಕರಣಗೊಳಿಸುವ ಅನೇಕ ಪ್ರಮುಖ ವಿಧೇಯಕಗಳನ್ನು ಈ ಮುಂಗಾರು ಅಧಿವೇಶನಕ್ಕಾಗಿ ಪ್ರಸ್ತಾಪಿಸಲಾಗಿದೆ. ಸದನವು ವಿಸ್ತೃತ ಚರ್ಚೆಗಳನ್ನು ನಡೆಸಿ ಅವುಗಳನ್ನು ಅಂಗೀಕರಿಸುತ್ತದೆ ಎಂದು ನನಗೆ ವಿಶ್ವಾಸವಿದೆ.

ಎಲ್ಲಾ ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸಂಸತ್ ಸದಸ್ಯರಿಗೆ ಅರ್ಥಪೂರ್ಣ ಮತ್ತು ರಚನಾತ್ಮಕ ಚರ್ಚೆಗಳಿಗಾಗಿ ನನ್ನ ಶುಭ ಹಾರೈಕೆಗಳು.

ಧನ್ಯವಾದಗಳು!