Text of PM’s address at the Civic Reception in Mauritius

Published By : Admin | March 12, 2015 | 18:30 IST

इतनी बारिश और आज Working Day उसके बावजूद भी यह नजारा - मैं आपके प्‍यार के लिए मैं आपका सदा सर्वदा ऋणी रहूंगा। मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि मॉरीशियस ने मुझे जीत लिया है। अपना बना लिया है और जब आपने मुझे अपना बनाया है तो मेरी जिम्‍मेवारी भी बढ़ जाती है। और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं इस जिम्‍मेवारी को निभाने में भारत कोई कमी नहीं रखेगा।

मैं मॉरीशियस के सभी नागरिकों का अभिनंदन करता हूं। दुनिया का कोई भी व्‍यक्ति आज के मॉरीशियस को अगर देखेगा, मॉरीशियस के इतिहास को जानेगा, तो उसके मन में क्‍या विचार आएगा? उसके मन में यही विचार आएगा कि सौ साल पहले जो यहां मजदूर बनकर आए थे, जिनको लाया गया था, उन लोगों ने इस धरती को कैसा नंदनवन बना दिया है! इस देश को कैसी नई ऊंचाईयों पर ले गए हैं! और तब मेहनत तो आपने की है, पसीना तो आपने बहाया है, कष्‍ट तो आपके पूर्वजों ने झेले हैं, लेकिन Credit हमारे खाते में जाती है। क्‍योंकि हर किसी को लगता है कि भई यह कौन लोग हैं? वो हैं जो हिंदुस्‍तान से आए थे ना, वो हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (2)

और दुनिया को हिंदुस्‍तान की पहचान होगी कि दुनिया के लिए जो मजदूर था, जिसे खेतों से उठाकर के लाया गया था। जबरन लाया गया था। वो अगर जी-जान से जुड़ जाता है तो अपने आप धरती पर स्‍वर्ग खड़ा कर देता है। यह काम आपने किया है, आपके पूर्वजों ने किया है और इसलिए एक हिंदुस्‍तानी के नाते गर्व महसूस करता हूं और आपको नमन करता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं, आपके पूर्वजों को प्रणाम करता हूं।

कभी-कभार आम अच्‍छा है या नहीं है, यह देखने के लिए सारे आम नहीं देखने पड़ते। एक-आधा आम देख लिया तो पता चल जाता है, हां भई, फसल अच्‍छी है। अगर दुनिया मारिशियस को देख ले तो उसको विश्‍वास हो जाएगा हिंदुस्‍तान कैसा होगा। वहां के लोग कैसे होंगे। अगर sample इतना बढि़या है, तो godown कैसा होगा! और इसलिए विश्‍व के सामने आज भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हम उस महान विरासत की परंपरा में से पले हुए लोग हैं जो एक ही मंत्र लेकर के चले हैं।

जब दुनिया में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था। जब दुनिया में सुसंस्‍कृ‍त समाज के रूप में भारत की पहचान थी, उस समय भी उस धरती के लोगों ने कभी दुनिया पर कब्‍जा करने की कोशिश नहीं की थी। दूसरे का छीनना यह उसके खून में नहीं था। एक सामान्‍य व्‍यक्ति भी वही भाषा बोलता है जो एक देश का प्रधानमंत्री बोलता है। इतनी विचारों की सौम्यता, सहजता ऐसे नहीं आती है, किताबों से नहीं आती हैं, यह हमारे रक्‍त में भरा पड़ा है, हमारे संस्‍कारों में भरा पड़ा है। और हमारा मंत्र था “वसुधैव कुटुम्‍बकम्”। पूरा विश्‍व हमारा परिवार है इस तत्‍व को लेकर के हम निकले हुए लोग हैं और इसी के कारण आज दुनिया के किसी भी कोन में कोई भारतीय मूल का कोई व्‍यक्ति गया है तो उसने किसी को पराजित करने की कोशिश नहीं की है, हर किसी को जीतने का प्रयास किया है, अपना बनाने का प्रयास किया है।

2014 का साल मॉरिशियस के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत ने बहुत सालों से मिली-जुली सरकारें बना करती थी, गठबंधन की सरकारें बनती थी। एक पैर उसका तो एक पैर इसका, एक हाथ उसका तो एक हाथ इसका। मॉरिशियस का भी वही हाल था। यहां पर भी मिली-जुली सरकार बना करती थी।

2014 में जो हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने सोचा वही मॉरिशियस के नागरिकों ने सोचा। हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने 30 साल के बाद एक पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार बनाई। मॉरिशियस के लोगों ने भी पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार दी। और इसका मूल कारण यह है कि आज की जो पीढ़ी है, वो पीढ़ी बदलाव चाहती है। आज जो पीढ़ी है वो विकास चाहती है, आज जो पीढ़ी है वो अवसर चाहती है, उपकार नहीं। वो किसी के कृपा का मोहताज नहीं है। वो कहता है मेरे भुजा में दम है, मुझे मौका दीजिए। मैं पत्‍थर पर लकीर ऐसी बनाऊंगा जो दुनिया की ज़िन्दगी बदलने के काम आ सकती है। आज का युवा मक्‍खन पर लकीर बनाने का शौकीन नहीं है, वो पत्‍थर पर लकीर बनाना चाहता है। उसकी सोच बदली है उसके विचार बदले है और उसके मन में जो आशाएं आकांक्षाए जगी है, सरकारों का दायित्‍व बनता है वो नौजवानों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राष्‍ट्र को विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाएँ।

और मैं आज जब आपके बीच में आया हूं मेरी सरकार को ज्‍यादा समय तो नहीं हुआ है, लेकिन मैं इतना विश्‍वास से कह रहा हूं कि जिस भारत की तरफ कोई देखने को तैयार नहीं था और देखते भी थे, तो आंख दिखाने के लिए देखते थे। पहली बार आज दुनिया भारत को आंख नहीं दिखा दे रही है, भारत से आंख मिलाने की कोशिश कर रही है। सवा सौ करोड़ का देश, क्‍या दुनिया के भाग्‍य को बदलने का निमित्त नहीं बन सकता? क्‍या ऐसे सपने नहीं संजोने चाहिए? सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, जगत हिताय च । जिस मंत्र को लेकर के हमारे पूर्वजों ने हमें पाला-पौसा है। क्‍या समय की मांग नहीं है, कि हम अपने पुरुषार्थ से, अपने पराक्रम से, अपनी कल्पनाशीलता से जगत को वो चीज़ें दें जिनके लिए जगत सदियों से तरसता रहा है? और मैं विशवास दिलाता हूँ, यह ताकत उस धरती में है। उन संस्कारों में है, जो जगत को समस्यायों के समाधान के लिए रास्‍ता दे सकते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (5)

आज पूरा विश्‍व और विशेषकर के छोटे-छोटे टापुओं पर बसे हुए देश इस बात से चिंतित है कि 50 साल, सौ साल के बाद उनका क्‍या होगा। Climate Change के कारण कहीं यह धरती समंदर में समा तो नहीं जाएगी? सदियों ने पूर्वजों ने परिश्रम करके जिसे नंदनवन बनाया, कहीं वो सपने डूब तो नहीं जाएंगे? सपने चकनाचूर हो नहीं जाएंगे क्‍या? सारी दुनिया Global Warming के कारण चिंतित है। और टापूओं पर रहने वाले छोटे-छोटे देश मुझे जिससे मिलना हुआ उनकी एक गहन चिंता रहती है कि यह दुनिया समझे अपने सुख के लिए हमें बलि न चढ़ा दे, यह सामान्‍य मानव सोचता है। और इसलिए, कौन सा तत्‍व है, कौन सा मार्गदर्शन है, कौन सा नेतृत्‍व है, जो उपभोग की इस परंपरा में से समाज को बचाकर के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय जीवन की प्रशस्ति के लिए आगे आए? जब ऐसे संकट आते हैं तब भारत ही वो ताकत है जिस ताकत ने सदियों पहले... जब महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम में रहते थे, साबरमती नदी पानी से भरी रहती थी, लबालब पानी था। 1925-30 का कालखंड था, लेकिन उसके बावजूद भी अगर कोई महात्‍मा गांधी को पानी देता था और जरूरत से ज्‍यादा देता था, तो गांधी जी नाराज होकर कहते “भाई पानी बर्बाद मत करो, जितना जरूरत का है उतना ही दीजिए, अगर उसको आधे ग्लिास की जरूरत है तो पूरा ग्लिास भरकर मत दीजिए।“ नदी भरी पड़ी थी पानी सामने था, लेकिन सोच स्‍वयं के सुख की नहीं थी, सोच आने वाली पीढि़यों के सुख की थी और इसलिए गांधी हमें प्रशस्‍त करते थे कि हम उतना ही उपयोग करे जितना हमारी जरूरत है। अगर दुनिया गांधी के इस छोटे से सिद्धांत को मान लें कि हम जरूरत से ज्‍यादा उपभोग न करे, तो क्‍या Climate का संकट पैदा होगा क्‍या? बर्फ पिघलेगी क्‍या? समंदर उबलेंगे क्‍या? और मॉरिशियस जैसे देश के सामने जीने-मरने का संकट पैदा होगा क्‍या? नहीं होगा। यह छोटी सी बात।

हम उस परंपरा के लोग हैं जिस परंपरा में प्रकृति से प्रेम करना सिखाया गया है। हमी तो लोग हैं, जिन्‍हें “पृथ्‍वी यह माता है”, यह बचपन से सिखाया जाता है। शायद दुनिया में कोई ऐसी परंपरा नहीं होगी जो “पृथ्‍वी यह माता है” यह संकल्‍प कराती हो। और इतना ही नहीं बालक छोटी आयु में भी जब बिस्‍तर से नीचे पैर रखता है तो मां यह कहती है कि “देखो बेटे, जब बिस्‍तर से जमीन पर पैर रखते हो तो पहले यह धरती मां को प्रणाम करो। उसकी क्षमा मांगों, ताकि तुम उसके सीने पर पैर रख रहे हो।“ यह संस्‍कार थे, यही तो संस्‍कार है, जो धरती माता की रक्षा के लिए प्रेरणा देते थे और धरती माता की रक्षा का मतलब है यह प्रकृति, यह पर्यावरण, यह नदियां, यह जंगल... इसी की रक्षा का संदेश देते हैं। अगर यह बच जाता है, तो Climate का संकट पैदा नहीं होता है। हम ही तो लोग हैं जो नदी को मां कहते हैं। हमारे लिए जितना जीवन में मां का मूल्‍य है, उतना ही हमारे यहां नदी का मूल्‍य है। अगर जिस पल हम यह भूल गए कि नदी यह मां हैं और जब से हमारे दिमाग में घर कर गया कि आखिर नदी ही तो H2O है और क्‍या है। जब नदी को हमने H2O मान लिया, पानी है, H2O... जब नदी के प्रति मां का भाव मर जाता है, तो नदी की रखवाली करने की जिम्‍मेदारी भी खत्‍म हो जाती है।

यह संस्‍कार हमें मिले हैं और उन्‍हीं संस्‍कारों के तहत हम प्रकृति की रक्षा से जुड़े हुए हैं। हमारे पूर्वजों ने हमें कहा है – मनुष्‍य को प्रकृति का दोहन करना चाहिए। कभी आपने बछड़े को उतनी ही दूध पीते देखा होगा, जितना बछड़े को जरूरत होगी। मां को काटने का, गाय को काटने का प्रयास कोई नहीं करता है। और इसलिए प्रकृति का भी दोहन होना चाहिए, प्रकृति को शोषण नहीं होना चाहिए। “Milking of Nature” हमारे यहां कहा गया है। “Exploitation of the Nature is a Crime.” अगर यह विचार और आदर्शों को लेकर के हम चलते हैं, तो हम मानव जिस संकट से जूझ रहा है, उस संकट से बचाने का रास्‍ता दे सकते हैं।

हम वो लोग हैं जिन्‍होंने पूरे ब्रह्माण को एक परिवार के रूप मे माना है। आप देखिए छोटी-छोटी चीजें होती हैं लेकिन जीवन को कैसे बनाती हैं। पूरे ब्रह्माण को परिवार मानना यह किताबों से नहीं, परिवार के संस्‍कारों से समझाया गया है। बच्‍चा छोटा होता है तो मां उसको खुले मैदान में ले जाकर के समझाती है कि “देखो बेटे, यह जो चांद दिखता है न यह चांद जो है न तेरा मामा है”। कहता है कि नहीं कहते? आपको भी कहा था या नहीं कहा था? क्‍या दुनिया में कभी सुना है जो कहता है सूरज तेरा दादा है, चांद तेरा मामा है, यानी पूरा ब्रह्माण तेरा परिवार है। यह संस्‍कार जिस धरती से मिलते हैं, वहां प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं हो सकता है, प्रकृति के साथ समन्‍वय होता है। और इसलिए आज विश्‍व जिस संकट को झेल रहा है, भारतीय चिंतन के आधार पर विश्‍व का नेतृत्व करने का समय आ गया है। Climate बचाने के लिए दुनिया हमें न सिखाये।

दुनिया, जब मॉरिशस कहेगा, ज्‍यादा मानेगी। उसका कारण क्‍या है, मालूम है? क्‍योंकि आप कह सकते हो कि “भई मैं मरने वाला हूं, मैं डूबने वाला हूं”। तो उसका असर ज्‍यादा होता है और इसलिए विश्‍व को जगाना.. मैं इन दिनों कई ऐसे क्षेत्रों में गया। मैं अभी फिजी में गया तो वहां भी मैं अलग-अलग आईलैंड के छोटे-छोटे देशों से मिला था। अब पूरा समय उनकी यही पीड़ा थी, यही दर्द था कोई तो हमारी सुने, कोई तो हमें बचाएं, कोई तो हमारी आने वाली पीढि़यों की रक्षा करे। और जो दूर का सोचते हैं उन्‍होंने आज से शुरू करना पड़ता है।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (3)

भाईयों-बहनों भारत आज विश्‍व का सबसे युवा देश है। 65% Population भारत की 35 साल से कम उम्र की है। यह मॉरिशियस 1.2 Million का है, और हिंदुस्‍तान 1.2 Billion का है। और उसमें 65% जनसंख्‍या 35 साल से कम है। पूरे विश्‍व में युवाशक्ति एक अनिवार्यता बनने वाला है। दुनिया को Workforce की जरूरत पड़ने वाली है। कितना ही ज्ञान हो, कितना ही रुपया हो, कितना ही डॉलर हो, पौंड हो, संपत्ति के भंडार हो, लेकिन अगर युवा पीढ़ी के भुजाओं का बल नहीं मिलता है, तो गाड़ी वहीं अटक जाती है। और इसलिए दुनिया को Youthful Manpower की आवश्‍यकता रहने वाली है, Human Resource की आवश्‍यकता रहने वाली है। भारत आज उस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है कि आने वाले दिनों में विश्‍व को जिस मानवशक्ति की आवश्‍यकता है, हम भारत में ऐसी मानवशक्ति तैयार करें जो जगत में जहां जिसकी जरूरत हो, उसको पूरा करने के लिए हमारे पास वो काबिलियत हो, वो हुनर हो, वो सामर्थ्‍य हो।

और इसलिए Skill Development एक Mission mode में हमने आरंभ किया है। दुनिया की आवश्‍यकताओं का Mapping करके किस देश को आने वाले 20 साल के बाद कैसे लोग चाहिए, ऐसे लोगों को तैयार करने का काम आज से शुरू करेंगे। और एक बार भारत का नौजवान दुनिया में जाएगा तो सिर्फ भुजाएं लेकर के नहीं जाएगा, सिर्फ दो बाहू लेकर के नहीं जाएगा, दिल और दिमाग लेकर के भी जाएगा। और वो दिमाग जो वसुधैव कुटुम्‍बकम् की बात करता है। जगत को जोड़ने की बात करता है।

और इसलिए आने वाले दिनों में फिर एक बार युग का चक्‍कर चलने वाला है, जिस युग के चक्‍कर से भारत का नौजवान विश्‍व के बदलाव में दुनिया में फैलकर के एक catalytic agent के रूप में अपनी भूमिका का निर्माण कर सके, ऐसी संभावनाएं पड़ी है। उन संभावनाओं को एक अवसर मानकर के हिंदुस्‍तान आगे बढ़ना चाहता है। दुनिया में फैली हुई सभी मानवतावादी शक्तियां भारत को आशीर्वाद दें ता‍कि इस विचार के लोग इस मनोभूमिका के लोग विश्‍व में पहुंचे, विश्‍व में फैले और विश्‍व कल्‍याण के मार्ग में अपनी-अपनी भूमिका अदा करे। यह जमाना Digital World है। हर किसी के हाथ में मोबाइल है, हर कोई selfie ले रहा है। Selfie ले या न ले, बहुत धक्‍के मारता है मुझे। जगत बदल चुका है। Selfie लेता हैं, पलभर के अंदर अपने साथियों को पहुंचा देता है “देखो अभी-अभी मोदी जी से मिलकर आ गया।“ दुनिया तेज गति से बदल रही है। भारत अपने आप को उस दिशा में सज्ज कर रहा है और हिंदुस्‍तान के नौजवान जो IT के माध्‍यम से जगत को एक अलग पहचान दी है हिंदुस्‍तान की।

वरना एक समय था, हिंदुस्‍तान की पहचान क्‍या थी? मुझे बराबर याद है मैं एक बार ताइवान गया था। बहुत साल पहले की बात है, ताइवान सरकार के निमंत्रण पर गया था। तब तो मैं कुछ था नहीं, मुख्‍यमंत्री वगैरह कुछ नहीं था, ऐसे ही... जैसे यहां एक बार यहाँ मॉ‍रिशियस आया था। कुछ लोग हैं जो मुझे पुराने मिल गए आज। तो पांच-सात दिन का मेरा Tour था जो उनका Computer Engineer था वो मेरा interpretor था, वहां की सरकार ने लगाया था। तो पांच-सात दिन मैं सब देख रहा था, सुन रहा था, पूछ रहा था, तो उसके मन में curiosity हुई। तो उसने आखिरी एक दिन बाकी था, उसने मुझे पूछा था। बोला कि “आप बुरा न माने तो एक सवाल पूछना चाहता हूं।“ मैंने कहा “क्या?” बोले.. “आपको बुरा नहीं लगेगा न?“ मैंने कहा “पूछ लो भई लगेगा तो लगेगा, तेरे मन में रहेगा तो मुझे बुरा लगेगा।“ फिर “नहीं नहीं..” वो बिचारा भागता रहा। मैंने फिर आग्रह किया “बैठो, बैठो। मुझे बताओ क्‍या हुआ है।“ तो उसने मुझे पूछा “साहब, मैं जानना चाहता हूं क्‍या हिंदुस्‍तान आज भी सांप-सपेरों का देश है क्‍या? जादू-टोना वालों का देश है क्‍या? काला जादू चलता है क्‍या हिंदुस्‍तान में?” बड़ा बिचारा डरते-डरते मुझे पूछ रहा था। मैंने कहा “नहीं यार अब वो जमाना चला गया। अब हम लोगों में वो दम नहीं है। हम अब सांप से नहीं खेल सकते। अब तो हमारा devaluation इतना हो गया कि हम Mouse से खेलते हैं।“ और हिंदुस्‍तान के नौजवान का Mouse आज Computer पर click कर करके दुनिया को डुला देता है। यह ताकत है हमारे में।

हमारे नौजवानों ने Computer पर करामात करके विश्‍व के एक अलग पहचान बनाई है। विश्‍व को भारत की तरफ देखने का नजरिया बदलना पड़ा है। उस सामर्थ्‍य के भरोसे हिंदुस्‍तान को भी हम आगे बढ़ाना चाहते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (1)

एक जमाना था। जब Marx की theory आती थी तो कहते थे “Haves and Have nots” उसकी theory चलती थी। वो कितनी कामगर हुई है, उस विचार का क्‍या हुआ वो सारी दुनिया जानती है मैं उसकी गहराई में नहीं जाना चाहता। लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं आज दुनिया Digital Connectivity से जो वंचित है और जो Digital World से जुड़े हुए हैं, यह खाई अगर ज्‍यादा बढ़ गई, तो विकास के अंदर बहुत बड़ी रूकावट पैदा होने वाली है। इसलिए Digital Access गरीब से गरीब व्‍यक्ति तक होना आने वाले दिनों में विकास के लिए अनिवार्य होने वाला है। हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन है।

हर किसी को दुनिया के साथ जुड़ने की उत्‍सुकता... मुझे याद है मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो एक आदिवासी जंगल में एक तहसील है वहां मेरा जाना नहीं हुआ था। बहुत पिछड़ा हुआ इलाका था interior में था, लेकिन मेरा मन करता था कि ऐसा नहीं होना चाहिए मैं मुख्‍यमंत्री रहूं और यह एक इलाका छूट जाए, तो मैंने हमारे अधिकारियों से कहा कि भाई मुझे वहां जाना है जरा कार्यक्रम बनाइये। खैर बड़ी मुश्किल से कार्यक्रम बना अब वहां तो कोई ऐसा प्रोजेक्‍ट भी नहीं था क्‍या करे। कोई ऐसा मैदान भी नहीं था जहां जनसभा करे, तो एक Chilling Centre बना था। दूध रखने के लिए, जो दूध बेचने वाले लोग होते हैं वो Chilling Centre में दूध देते हैं, वहां Chilling Plant में Chilling होता है फिर बाद में बड़ा Vehicle आता है तो Dairy में ले जाता है। छोटा सा प्रोजेक्‍ट था 25 लाख रुपये का। लेकिन मेरा मन कर गया कि भले छोटा हो पर मुझे वहां जाना है। तो मैं गया और उससे तीन किलोमीटर दूर एक आम सभा के लिए मैदान रखा था, स्‍कूल का मैदान था, वहां सभा रखी गयी। लेकिन जब मैं वहां गया Chilling Centre पर तो 20-25 महिलाएं जो दूध देने वाली थी, वो वहां थी, तो मैंने जब उद्घाटन किया.. यह आदिवासी महिलाएं थी, पिछड़ा इलाका था। वे सभी मोबाइल से मेरी फोटो ले रही थी। अब मेरे लिए बड़ा अचरज था तो मैं कार्यक्रम के बाद उनके पास गया और मैंने उनसे पूछा कि “मेरी फोटो लेकर क्‍या करोगे?” उन्‍होंने जो जवाब दिया, वो जवाब मुझे आज भी प्रेरणा देता है। उन्‍होंने कहा कि “नहीं, नहीं यह तो जाकर के हम Download करवा देंगे।“ यानी वो पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, वो आदिवासी थे, दूध बेचकर के अपनी रोजी-रोटी कमाते थे, लेकिन वहां की महिलाएं हाथ से मोबाइल से फोटो निकाल रही हैं, और मुझे समझा रही है कि हम Download करा देंगे। तब से मैंने देखा कि Technology किस प्रकार से मानवजात के जीवन का हिस्‍सा बनती चली जा रही है। अगर हमने विकास के Design बना लिये हैं तो उस Technology का महत्‍व हमें समझना होगा।

और भारत Digital India का सपना देख कर के चल रहा है। कभी हिंदुस्‍तान की पहचान यह बन जाती थी कोई भी यहां अगर किसी को कहोगे भारत... “अरे छोड़ो यार, भ्रष्‍टाचार है, छोड़ो यार रिश्‍वत का मामला है।“ ऐसा सुनते हैं न? अब सही करना है। अभी-अभी आपने सुना होगा, यह अखबार में बहुत कम आया है। वैसे बहुत सी अच्‍छी चीजें होती है जो अखबार टीवी में कम आती है। एक-आध कोन में कहीं आ जाती है। भारत में कोयले को लेकर के भ्रष्‍टाचार की बड़ी चर्चा हुई थी। CAG ने कहा था एक लाख 76 हजार करोड़ के corruption की बात हुई थी। हमारी सरकार आई और सुप्रीम कोर्ट ने 204 जो खदानें थी उसको रद्द कर दिया। कोयला निकालना ही पाबंदी लग गई। अब बिजली के कारखाने कैसे चलेंगे? हमारे लिए बहुत जरूरी था कि इस काम को आगे बढ़ाएं। हमने एक के बाद एक निर्णय लिए, तीने महीने के अंदर उसमें Auction करना शुरू कर दिया और 204 Coal Blocks खदानें जो ऐसे ही कागज पर चिट्ठी लिखकर के दे रही है यह मदन भाई को दे देना, यह मोहन भाई को दे देना या रज्‍जू भाई को... ऐसा ही दे दिया। तो सुप्रीम ने गलत किया था, हमने उसका Auction किया था। अब तक सिर्फ 20 का Auction हुआ है। 204 में से 20 का Auction हुआ है। और 20 के Auction में दो लाख करोड़ से ज्‍यादा रकम आई है।

Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? अगर हम नीतियों के आधार पर देश चलाएं, पारदर्शिता के साथ चलाएं, तो हम भ्रष्‍टाचार से कोई भी व्‍यवस्‍था को बाहर निकाल सकते हैं और भ्रष्‍टाचार मुक्‍त व्‍यवस्‍थाओं को विकसित कर सकते हैं। हिंदुस्‍तान ने बीड़ा उठाया है, हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

भारत विकास की नई ऊंचाईयों पर जा रहा है। भारत ने एक सपना देखा है “Make In India” हम दुनिया को कह रहे हैं कि आइये हिंदुस्‍तान में पूंजी लगाइये, हिंदुस्‍तान में Manufacturing कीजिए। भारत में आपको Low Cost Manufacturing होगा, Skilled Manpower मिलेगा। Zero loss का माहौल मिलेगा। Redtape की जगह Red Carpet मिलेगा। आइये और आप अपना नसीब आजमाइये और मैं देख रहा हूं आज दुनिया का भारत में बहुत रूचि लगने लगी। दुनिया के सारे देश जिनको पता है कि हां भारत एक जगह है, जहां पूंजी निवेश कर सकते हैं, वहां Manufacturing करेंगे और दुनिया के अंदर Export करेंगे।

बहुत बड़ी संभावनाओं के साथ देश विकास की ऊंचाईयों को पार कर रहा है। मुझे विश्‍वास है कि आप जो सपने देख रहे हो वो कहीं पर भी बैठे होंगे, लेकिन आप आज कहीं पर भी क्‍यों न हो, लेकिन कौन बेटा है जो मां को दुखी देखना चाहता है? सदियों पहले भले वो देश छोड़ा हो, लेकिन फिर भी आपके मन में रहता होगा कि “भारत मेरी मां है। मेरी मां कभी दुखी नहीं होनी चाहिए।“ यह आप भी चाहते होंगे। जो आप चाहते हो। आप यहां आगे बढि़ए, प्रगति कीजिए और आपने जो भारत मां की जिम्‍मेवारी हमें दी है, हम उसको पूरी तरह निभाएंगे ताकि कभी आपको यह चिंता न रहे कि आपकी भारत माता का हाल क्‍या है। यह मैं विश्‍वास दिलाने आया हूं।

20 PM Modi floral tribute at Gandhi Statue at Mahatama Gandhi institute of Mauritius (1)

मैं कल से यहां आया हूं, जो स्‍वागत सम्‍मान दिया है, जो प्‍यार मिला है इसके लिए मैं मॉरीशियस का बहुत आभारी हूं। यहां की सरकार का आभारी हूं, प्रधानमंत्री जी का आभारी हूं, आप सबका बहुत आभार हूं। और आपने जो स्‍वागत किया, जो सम्‍मान दिया इसके लिए मैं फिर एक बार धन्‍यवाद करता हूं। और आज 12 मार्च आपका National Day है, Independence Day है। और 12 मार्च 1930 महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम से चले थे, दांडी की यात्रा करने के लिए। और वो दांडी यात्रा कोई कल्‍पना नहीं कर सकता था कि नमक सत्‍याग्रह पूरी दुनिया के अंदर एक क्रांति ला सकता है। जिस 12 मार्च को दांडी यात्रा का प्रारंभ हुआ था उसी 12 मार्च को महात्‍मा गांधी से जुड़े हुए पर्व से मॉरिशियस की आजादी का पर्व है। मैं उस पर्व के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत बधाई देता हूं।

फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Marathi being recognised as a Classical Language is a moment of pride: PM Modi
October 05, 2024
Marathi being recognised as a Classical Language is a moment of pride for everyone: PM
Along with Marathi, Bengali, Pali, Prakrit and Assamese languages ​​have also been given the status of classical languages, I also congratulate the people associated with these languages: PM
The history of Marathi language has been very rich: PM
Many revolutionary leaders and thinkers of Maharashtra used Marathi language as a medium to make people aware and united: PM
Language is not just a medium of communication, it is deeply connected with culture, history, tradition and literature: PM

महाराष्ट्र के गवर्नर सी पी राधाकृष्णन जी, मुख्यमंत्री श्रीमान एकनाथ शिंदे जी, उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जी, अजित पवार जी, केंद्र में मेरे सभी सहयोगी, कई पीढ़ियों पर अपनी गायकी की छाप छोड़ने वाली आशाताई जी, जाने-माने अभिनेता भाई सचिन जी, नामदेव कांबले जी, सदानंद मोरे जी, महाराष्ट्र सरकार के मंत्री भाई दीपक जी, मंगलप्रभात लोढ़ा जी, बीजेपी के मुंबई के अध्यक्ष भाई आशीष जी, अन्य महानुभाव भाइयों और बहनों!

अगदी सुरुवातीलाच महाराष्ट्रातील, महाराष्ट्राबाहेरील आणि, सर्व जगातील मराठी भाषक मंडळींचे मराठी भाषेला अभिजात भाषा म्हणजे, क्लासिकल लँग्वेज चा, दर्जा मिळाल्याबद्दल, अतिशय मनापासून, अभिनंदन करतो।

केंद्र सरकार द्वारा मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिया गया है। आज मराठी भाषा के इतिहास का स्वर्णिम अवसर है और मोरे जी ने बहुत बढ़िया तरीके से इसको sum up किया। इस निर्णय का, इस पल का महाराष्ट्र के लोगों को, मराठी बोलने वाले हर व्यक्ति को दशकों से इंतज़ार था। मुझे खुशी है कि महाराष्ट्र का ये सपना पूरा करने में कुछ करने का सौभाग्य मुझे मिला। आज खुशी के इस पल को साझा करने के लिए मैं आप सबके बीच हूं। मराठी के साथ बंगाली, पाली, प्राकृत और असमिया भाषाओं को भी क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा दिया गया है। मैं इन भाषाओं से जुड़े लोगों को भी बधाई देता हूं।

साथियों,

मराठी भाषा का इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। इस भाषा से ज्ञान की जो धाराएं निकलीं, उन्होंने कई पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया है, और वो आज भी हमें रास्ता दिखाती हैं। इसी भाषा से संत ज्ञानेश्वर ने वेदांत चर्चा से जन-जन को जोड़ा। ज्ञानेश्वरी ने गीता के ज्ञान से भारत की आध्यात्मिक प्रज्ञा को पुनर्जागृत किया। इसी भाषा से संत नामदेव ने भक्ति मार्ग की चेतना को मजबूत किया। इसी तरह संत तुकाराम ने मराठी भाषा में धार्मिक जागरूकता का अभियान चलाया। और संत चोखामेला ने सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों को सशक्त किया।

आज महाराष्ट्र आणि मराठी धर्म वाढविणार्‍या

थोर संतांना मी साष्टांग दंडवत करतो।

मराठी भाषेला हा दर्जा म्हणजे संपूर्ण देशाने

छत्रपती शिवाजी महाराज यांना त्यांच्या राज्याभिषेकाच्या

तीनशे पन्नास वे व्या वर्षात केलेला मानाचा मुजरा आहे।

साथियों,

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास मराठी भाषा के योगदान से समृद्ध होता है। महाराष्ट्र के कई क्रांतिकारी नेताओं और विचारकों ने लोगों को जागरूक और एकजुट करने के लिए मराठी भाषा को माध्यम बनाया। लोकमान्य तिलक ने मराठी समाचार पत्र, केसरी के द्वारा विदेशी सत्ता की जड़ें हिला दी थी। मराठी में दिए गए उनके भाषणों ने जन-जन में स्वराज पाने की ललक जगा दी थी। मराठी भाषा ने न्याय और समानता की लड़ाई को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया। गोपाल गणेश अगरकर ने अपने मराठी समाचार पत्र सुधारक द्वारा सामाजिक सुधारों के अभियान को घर-घर तक पहुंचाया। स्वतंत्रता संग्राम को दिशा देने में गोपाल कृष्ण गोखले जी ने भी मराठी भाषा को माध्यम बनाया।

साथियों,

मराठी साहित्य भारत की वो अनमोल विरासत है, जिसमें हमारी सभ्यता के विकास और सांस्कृतिक उत्कर्ष की गाथाएं सुरक्षित हैं। महाराष्ट्र में मराठी साहित्य के द्वारा ही स्वराज, स्वदेशी, स्वभाषा और स्व-संस्कृति की चेतना का विस्तार हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शुरू हुए गणेश उत्सव और शिव जयंती के कार्यक्रम, वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के विचार, बाबासाहेब आंबेडकर का सामाजिक समता आंदोलन, महर्षि कर्वे का महिला सशक्तिकरण अभियान, महाराष्ट्र का औद्योगीकरण, कृषि सुधार के प्रयास, इन सबकी प्राणशक्ति मराठी भाषा थी। हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता मराठी भाषा से जुड़कर और समृद्ध हो जाती है।

साथियों,

भाषा सिर्फ बातचीत का माध्यम नहीं होती। भाषा का संस्कृति, इतिहास, परंपरा और साहित्य से गहरा जुड़ाव होता है। हम लोक गायन पोवाड़ा का उदाहरण ले सकते हैं। पोवाड़ा के माध्यम से छत्रपति शिवाजी महाराज और दूसरे नायकों की शौर्य गाथाएं कई सदियों के बाद भी हम तक पहुंची हैं। ये आज की पीढ़ी को मराठी भाषा की अद्भुत देन है। आज जब हम गणपति पूजा करते हैं तो हमारे मन में स्वाभाविक रूप से ये शब्द गूंजते हैं, गणपति बाप्पा मोरया। ये केवल कुछ शब्दों का जोड़ नहीं है, बल्कि भक्ति का अनंत प्रवाह है। यही भक्ति पूरे देश को मराठी भाषा से जोड़ती है। इसी तरह श्री विट्ठल के अभंग को सुनने वाले भी स्वत: मराठी से जुड़ जाते हैं।

साथियों,

मराठी भाषा को ये गौरव दिलाने के लिए मराठी साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और असंख्य मराठी प्रेमियों ने लंबा प्रयास किया है। मराठी भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज की मान्यता के रूप में, कई प्रतिभाशाली साहित्यकारों की सेवा का प्रसाद मिला है। इसमें बाळशास्त्री जांभेकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, कृष्णाजी प्रभाकर खाड़िलकर, केशवसूत, श्रीपाद महादेव माटे, आचार्य अत्रे, शांताबाई शेळके, गजानन दिगंबर माडगूळकर, कुसुमाग्रज जैसी विभूतियों का योगदान अतुलनीय है। मराठी साहित्य की परंपरा केवल प्राचीन ही नहीं बल्कि बहुआयामी है। विनोबा भावे, श्रीपाद अमृत डांगे, दुर्गाबाई भागवत, बाबा आमटे, दलित साहित्यकार दया पवार, बाबासाहेब पुरंदरे जैसी कई हस्तियों ने मराठी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैं आज मराठी की सेवा करने वाले पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे, फूला देशपांडे कहूँ तब लोग समझते हैं, डॉ. अरुणा ढेरे, डॉ. सदानंद मोरे, महेश एलकुंचवार, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नामदेव कांबळे समेत सभी साहित्यकारों के योगदान को भी याद करूंगा। आशा बागे, विजया राजाध्यक्ष, डॉ. शरणकुमार लिंबाळे, नाट्य निर्देशक चंद्रकांत कुलकर्णी जैसे कई दिग्गजों ने वर्षों से इसका सपना देखा था।

साथियों,

साहित्य और संस्कृति के साथ मराठी सिनेमा ने भी हमें गौरवान्वित किया है। आज भारत में सिनेमा का जो स्वरूप है, उसका आधार भी व्ही शांताराम और दादा साहब फाल्के जैसी हस्तियों ने तैयार किया था। मराठी रंगमंच ने समाज के शोषित, वंचित वर्ग की आवाज को बुलंद किया है। मराठी रंगभूमि के दिग्गज कलाकारों ने हर मंच पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। मराठी संगीत, लोक संगीत, लोक नृत्य की परंपराएं अपने साथ एक समृद्ध विरासत लेकर आगे बढ़ रही हैं। बालगंधर्व, डॉ. वसंतराव देशपांडे, भीमसेन जोशी, सुधीर फड़के, मोगुबाई कुर्डिकर या फिर बाद के युग में लता दीदी, आशाताई, शंकर महादेवन, अनुराधा पौडवाल जी जैसे दिग्गज लोगों ने मराठी संगीत को एक अलग पहचान दी है। मराठी भाषा की सेवा करने वाले व्यक्तित्वों की संख्या इतनी विशाल है, मैं उनके बारे में बात करूं तो पूरी रात निकल जाएगी।

साथियों,

मेरा सौभाग्य रहा, यहां कुछ लोगों को संकोच हो रहा था कि मराठी बोलें या हिन्‍दी बोलें, मेरा बीच में नाता टूट गया वरना मेरा सौभाग्य था कि मुझे दो या तीन किताबों का मराठी से गुजराती करने का मुझे सौभाग्य मिला है। अब पिछले 40 साल से मेरा संपर्क टूट गया, वरना मैं काफी मात्रा में मराठी में अपनी गाड़ी चला लेता था। लेकिन अभी भी मुझे कोई ज्‍यादा असुविधा नहीं होती है और इसका कारण ये था कि मैं जब प्रारंभिक मेरा जीवन था, तो मैं अहमदाबाद में एक जगन्नाथ जी मंदिर है वहीं रहता था। और वहीं Calico Mill थी पास में ही और Calico Mill में जो मजदूरों के र्क्‍वाटर थे, उसमें एक भिड़े करके एक महाराष्‍ट्र का परिवार रहता था और उनकी शुक्रवार को छुट्टी होती थी। वो staggering रहता था उस समय बिजली-विजली की जरा तकलीफ रहती थी, मैं कोई Political Comment नहीं कर रहा हूं। लेकिन वो दिन ऐसे ही थे। तो शुक्रवार को उनकी छुट्टी होती थी तो मैं शुक्रवार को उनके घर मिलने जाता था। तो मुझे याद है कि उनके घर के पड़ोस में एक छोटी बच्ची थी। वो मेरे से मराठी में बात करती थी। बस उसी ने मेरा गुरु बनकर के मुझे मराठी सिखा दी।

साथियों,

मराठी को क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा मिलने से मराठी भाषा के अध्ययन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रिसर्च और साहित्य संग्रह को बढ़ावा मिलेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत की यूनिवर्सिटीज में मराठी भाषा के अध्ययन की सुविधा मिल सकेगी। केंद्र सरकार के फैसले से मराठी भाषा के विकास के लिए काम करने वाले संगठनों, व्यक्तियों और छात्रों को बढ़ावा मिलेगा। इससे शिक्षा और रिसर्च के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

साथियों,

आजादी के बाद देश में पहली बार ऐसी सरकार बनी है, जो मातृभाषा में पढ़ाई को महत्व देती है। मुझे याद है, मैं बहुत साल पहले एक बार अमेरिका गया तो एक परिवार में मुझे रूकना था। और मुझे उस परिवार की एक आदत मेरे मन को छू गयी। वो तेलगू परिवार था लेकिन उनके घर में नियम था लाइट तो अमेरिकन थी, जीवन तो वहीं का था। लेकिन नियम था कि कुछ भी हो जाए शाम को खाना खाते समय टेबल पर परिवार के सब लोग साथ बैठेंगे और दूसरा था शाम को खाना खाते समय परिवार का एक भी व्यक्ति तेलुगू भाषा के सिवा एक भी भाषा बोलेगा नहीं। उसके कारण वहां जो बच्चे पैदा हुए थे, वो भी तेलुगू बोल लेते थे। मैंने देखा है महाराष्ट्रीयन परिवार में जाएंगे तो आज भी सहज रूप से आपको मराठी भाषा सुनने को मिलेगी। बाकि लोगों के यहां ऐसा नहीं है, छोड़ देते हैं फिर उनको hello-Hi करने में मजा आ जाता है।

साथियों,

नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत अब मराठी में भी मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई संभव हुई है। इतना ही नहीं मैंने सुप्रीम कोर्ट के judges के सामने request की थी। मैंने कहा एक गरीब आदमी आपकी अदालत में आता है और आप उसको अंग्रेजी में judgement देते हैं वो बेचारा क्या समझेगा, क्‍या दिया है आपने? और मुझे खुशी है कि आज हमारे जो judgement हैं, उसका जो operative part है, वो मातृभाषा में दिया जाता है। मराठी में लिखी साइंस, इकोनॉमिक्स, आर्ट, poetry और तमाम विषयों की किताबें उपलब्ध होती रही हैं और बढ़ रही हैं। हमें इस भाषा को vehicle of ideas बनाना है, ताकि ये हमेशा जीवंत बनी रहे। हमारा प्रयास होना चाहिए कि मराठी साहित्य की रचनाएं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, मैं चाहता हूं कि मराठी भाषा ग्लोबल ऑडियंस तक पहुंचे। और आपको मालूम होगा, आपको ये translation भाषा में तो एक भारत सरकार ने भाषिणी ऐप बनाया है। आप जरूर इसका उपयोग कर सकते हैं। इससे बहुत आसानी से आप अपनी चीजों को भारतीय भाषा में interpret कर सकते हैं। ट्रांसलेशन के इस फीचर से भाषा की दीवार खत्म हो सकती है। आप मराठी बोलें, अगर मैं भाषिणी ऐप लेकर के बैठा हूं तो मैं उसको गुजराती में सुन सकता हूं। मैं हिन्दी में सुन सकता हूं। तो ये एक व्यवस्था, टेक्‍नोलॉजी के कारण बहुत आसान हुई है।

साथियों,

आज हम इस ऐतिहासिक अवसर इसकी खुशी तो मना रहे हैं, ये मौका हमारे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी लेकर आया है। मराठी बोलने वाले हर व्यक्ति का दायित्व है कि वो इस सुंदर भाषा को आगे बढ़ाने में योगदान दें। जिस तरह मराठी लोग सरल होते हैं, वैसे ही मराठी भाषा भी बहुत सरल होती है। इस भाषा से ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ें, इसका विस्तार हो, अगली पीढ़ी में इसे लेकर गर्व का बोध हो, इसके लिए हम सबको प्रयास करना चाहिए। आप सबने मेरा स्वागत-सम्मान किया, मैं राज्‍य सरकार का आभारी हूं। ये coincidence था क्योंकि मेरा एक और कार्यक्रम से मेरा आज यहां आना होता था। लेकिन अचानक यहां के साथियों ने मुझे कह दिया कि एक घंटा और दे दीजिए और उसी में से ये कार्यक्रम बन गया। और आप लोग सभी गणमान्य लोग हैं जिनका जीवन इन बातों से जुड़ा हुआ है, उन सबका यहां उपस्थित होना ये अपने आप में मराठी भाषा के महात्मय को उजागर करता है। मैं इसके लिए आप सबका बहुत आभारी हूं। मैं एक बार फिर आप सभी को मराठी भाषा को शास्त्रीय दर्जा मिलने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

महाराष्ट्रातील आणि जगातील सर्व मराठीजनांना

खूप खूप शुभेच्छा देतो।

धन्यवाद।