इतनी बारिश और आज Working Day उसके बावजूद भी यह नजारा - मैं आपके प्‍यार के लिए मैं आपका सदा सर्वदा ऋणी रहूंगा। मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि मॉरीशियस ने मुझे जीत लिया है। अपना बना लिया है और जब आपने मुझे अपना बनाया है तो मेरी जिम्‍मेवारी भी बढ़ जाती है। और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं इस जिम्‍मेवारी को निभाने में भारत कोई कमी नहीं रखेगा।

मैं मॉरीशियस के सभी नागरिकों का अभिनंदन करता हूं। दुनिया का कोई भी व्‍यक्ति आज के मॉरीशियस को अगर देखेगा, मॉरीशियस के इतिहास को जानेगा, तो उसके मन में क्‍या विचार आएगा? उसके मन में यही विचार आएगा कि सौ साल पहले जो यहां मजदूर बनकर आए थे, जिनको लाया गया था, उन लोगों ने इस धरती को कैसा नंदनवन बना दिया है! इस देश को कैसी नई ऊंचाईयों पर ले गए हैं! और तब मेहनत तो आपने की है, पसीना तो आपने बहाया है, कष्‍ट तो आपके पूर्वजों ने झेले हैं, लेकिन Credit हमारे खाते में जाती है। क्‍योंकि हर किसी को लगता है कि भई यह कौन लोग हैं? वो हैं जो हिंदुस्‍तान से आए थे ना, वो हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (2)

और दुनिया को हिंदुस्‍तान की पहचान होगी कि दुनिया के लिए जो मजदूर था, जिसे खेतों से उठाकर के लाया गया था। जबरन लाया गया था। वो अगर जी-जान से जुड़ जाता है तो अपने आप धरती पर स्‍वर्ग खड़ा कर देता है। यह काम आपने किया है, आपके पूर्वजों ने किया है और इसलिए एक हिंदुस्‍तानी के नाते गर्व महसूस करता हूं और आपको नमन करता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं, आपके पूर्वजों को प्रणाम करता हूं।

कभी-कभार आम अच्‍छा है या नहीं है, यह देखने के लिए सारे आम नहीं देखने पड़ते। एक-आधा आम देख लिया तो पता चल जाता है, हां भई, फसल अच्‍छी है। अगर दुनिया मारिशियस को देख ले तो उसको विश्‍वास हो जाएगा हिंदुस्‍तान कैसा होगा। वहां के लोग कैसे होंगे। अगर sample इतना बढि़या है, तो godown कैसा होगा! और इसलिए विश्‍व के सामने आज भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हम उस महान विरासत की परंपरा में से पले हुए लोग हैं जो एक ही मंत्र लेकर के चले हैं।

जब दुनिया में भारत सोने की चिडि़या कहलाता था। जब दुनिया में सुसंस्‍कृ‍त समाज के रूप में भारत की पहचान थी, उस समय भी उस धरती के लोगों ने कभी दुनिया पर कब्‍जा करने की कोशिश नहीं की थी। दूसरे का छीनना यह उसके खून में नहीं था। एक सामान्‍य व्‍यक्ति भी वही भाषा बोलता है जो एक देश का प्रधानमंत्री बोलता है। इतनी विचारों की सौम्यता, सहजता ऐसे नहीं आती है, किताबों से नहीं आती हैं, यह हमारे रक्‍त में भरा पड़ा है, हमारे संस्‍कारों में भरा पड़ा है। और हमारा मंत्र था “वसुधैव कुटुम्‍बकम्”। पूरा विश्‍व हमारा परिवार है इस तत्‍व को लेकर के हम निकले हुए लोग हैं और इसी के कारण आज दुनिया के किसी भी कोन में कोई भारतीय मूल का कोई व्‍यक्ति गया है तो उसने किसी को पराजित करने की कोशिश नहीं की है, हर किसी को जीतने का प्रयास किया है, अपना बनाने का प्रयास किया है।

2014 का साल मॉरिशियस के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत के लिए भी महत्‍वपूर्ण था। भारत ने बहुत सालों से मिली-जुली सरकारें बना करती थी, गठबंधन की सरकारें बनती थी। एक पैर उसका तो एक पैर इसका, एक हाथ उसका तो एक हाथ इसका। मॉरिशियस का भी वही हाल था। यहां पर भी मिली-जुली सरकार बना करती थी।

2014 में जो हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने सोचा वही मॉरिशियस के नागरिकों ने सोचा। हिंदुस्‍तान के नागरिकों ने 30 साल के बाद एक पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार बनाई। मॉरिशियस के लोगों ने भी पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार दी। और इसका मूल कारण यह है कि आज की जो पीढ़ी है, वो पीढ़ी बदलाव चाहती है। आज जो पीढ़ी है वो विकास चाहती है, आज जो पीढ़ी है वो अवसर चाहती है, उपकार नहीं। वो किसी के कृपा का मोहताज नहीं है। वो कहता है मेरे भुजा में दम है, मुझे मौका दीजिए। मैं पत्‍थर पर लकीर ऐसी बनाऊंगा जो दुनिया की ज़िन्दगी बदलने के काम आ सकती है। आज का युवा मक्‍खन पर लकीर बनाने का शौकीन नहीं है, वो पत्‍थर पर लकीर बनाना चाहता है। उसकी सोच बदली है उसके विचार बदले है और उसके मन में जो आशाएं आकांक्षाए जगी है, सरकारों का दायित्‍व बनता है वो नौजवानों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राष्‍ट्र को विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाएँ।

और मैं आज जब आपके बीच में आया हूं मेरी सरकार को ज्‍यादा समय तो नहीं हुआ है, लेकिन मैं इतना विश्‍वास से कह रहा हूं कि जिस भारत की तरफ कोई देखने को तैयार नहीं था और देखते भी थे, तो आंख दिखाने के लिए देखते थे। पहली बार आज दुनिया भारत को आंख नहीं दिखा दे रही है, भारत से आंख मिलाने की कोशिश कर रही है। सवा सौ करोड़ का देश, क्‍या दुनिया के भाग्‍य को बदलने का निमित्त नहीं बन सकता? क्‍या ऐसे सपने नहीं संजोने चाहिए? सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, जगत हिताय च । जिस मंत्र को लेकर के हमारे पूर्वजों ने हमें पाला-पौसा है। क्‍या समय की मांग नहीं है, कि हम अपने पुरुषार्थ से, अपने पराक्रम से, अपनी कल्पनाशीलता से जगत को वो चीज़ें दें जिनके लिए जगत सदियों से तरसता रहा है? और मैं विशवास दिलाता हूँ, यह ताकत उस धरती में है। उन संस्कारों में है, जो जगत को समस्यायों के समाधान के लिए रास्‍ता दे सकते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (5)

आज पूरा विश्‍व और विशेषकर के छोटे-छोटे टापुओं पर बसे हुए देश इस बात से चिंतित है कि 50 साल, सौ साल के बाद उनका क्‍या होगा। Climate Change के कारण कहीं यह धरती समंदर में समा तो नहीं जाएगी? सदियों ने पूर्वजों ने परिश्रम करके जिसे नंदनवन बनाया, कहीं वो सपने डूब तो नहीं जाएंगे? सपने चकनाचूर हो नहीं जाएंगे क्‍या? सारी दुनिया Global Warming के कारण चिंतित है। और टापूओं पर रहने वाले छोटे-छोटे देश मुझे जिससे मिलना हुआ उनकी एक गहन चिंता रहती है कि यह दुनिया समझे अपने सुख के लिए हमें बलि न चढ़ा दे, यह सामान्‍य मानव सोचता है। और इसलिए, कौन सा तत्‍व है, कौन सा मार्गदर्शन है, कौन सा नेतृत्‍व है, जो उपभोग की इस परंपरा में से समाज को बचाकर के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय जीवन की प्रशस्ति के लिए आगे आए? जब ऐसे संकट आते हैं तब भारत ही वो ताकत है जिस ताकत ने सदियों पहले... जब महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम में रहते थे, साबरमती नदी पानी से भरी रहती थी, लबालब पानी था। 1925-30 का कालखंड था, लेकिन उसके बावजूद भी अगर कोई महात्‍मा गांधी को पानी देता था और जरूरत से ज्‍यादा देता था, तो गांधी जी नाराज होकर कहते “भाई पानी बर्बाद मत करो, जितना जरूरत का है उतना ही दीजिए, अगर उसको आधे ग्लिास की जरूरत है तो पूरा ग्लिास भरकर मत दीजिए।“ नदी भरी पड़ी थी पानी सामने था, लेकिन सोच स्‍वयं के सुख की नहीं थी, सोच आने वाली पीढि़यों के सुख की थी और इसलिए गांधी हमें प्रशस्‍त करते थे कि हम उतना ही उपयोग करे जितना हमारी जरूरत है। अगर दुनिया गांधी के इस छोटे से सिद्धांत को मान लें कि हम जरूरत से ज्‍यादा उपभोग न करे, तो क्‍या Climate का संकट पैदा होगा क्‍या? बर्फ पिघलेगी क्‍या? समंदर उबलेंगे क्‍या? और मॉरिशियस जैसे देश के सामने जीने-मरने का संकट पैदा होगा क्‍या? नहीं होगा। यह छोटी सी बात।

हम उस परंपरा के लोग हैं जिस परंपरा में प्रकृति से प्रेम करना सिखाया गया है। हमी तो लोग हैं, जिन्‍हें “पृथ्‍वी यह माता है”, यह बचपन से सिखाया जाता है। शायद दुनिया में कोई ऐसी परंपरा नहीं होगी जो “पृथ्‍वी यह माता है” यह संकल्‍प कराती हो। और इतना ही नहीं बालक छोटी आयु में भी जब बिस्‍तर से नीचे पैर रखता है तो मां यह कहती है कि “देखो बेटे, जब बिस्‍तर से जमीन पर पैर रखते हो तो पहले यह धरती मां को प्रणाम करो। उसकी क्षमा मांगों, ताकि तुम उसके सीने पर पैर रख रहे हो।“ यह संस्‍कार थे, यही तो संस्‍कार है, जो धरती माता की रक्षा के लिए प्रेरणा देते थे और धरती माता की रक्षा का मतलब है यह प्रकृति, यह पर्यावरण, यह नदियां, यह जंगल... इसी की रक्षा का संदेश देते हैं। अगर यह बच जाता है, तो Climate का संकट पैदा नहीं होता है। हम ही तो लोग हैं जो नदी को मां कहते हैं। हमारे लिए जितना जीवन में मां का मूल्‍य है, उतना ही हमारे यहां नदी का मूल्‍य है। अगर जिस पल हम यह भूल गए कि नदी यह मां हैं और जब से हमारे दिमाग में घर कर गया कि आखिर नदी ही तो H2O है और क्‍या है। जब नदी को हमने H2O मान लिया, पानी है, H2O... जब नदी के प्रति मां का भाव मर जाता है, तो नदी की रखवाली करने की जिम्‍मेदारी भी खत्‍म हो जाती है।

यह संस्‍कार हमें मिले हैं और उन्‍हीं संस्‍कारों के तहत हम प्रकृति की रक्षा से जुड़े हुए हैं। हमारे पूर्वजों ने हमें कहा है – मनुष्‍य को प्रकृति का दोहन करना चाहिए। कभी आपने बछड़े को उतनी ही दूध पीते देखा होगा, जितना बछड़े को जरूरत होगी। मां को काटने का, गाय को काटने का प्रयास कोई नहीं करता है। और इसलिए प्रकृति का भी दोहन होना चाहिए, प्रकृति को शोषण नहीं होना चाहिए। “Milking of Nature” हमारे यहां कहा गया है। “Exploitation of the Nature is a Crime.” अगर यह विचार और आदर्शों को लेकर के हम चलते हैं, तो हम मानव जिस संकट से जूझ रहा है, उस संकट से बचाने का रास्‍ता दे सकते हैं।

हम वो लोग हैं जिन्‍होंने पूरे ब्रह्माण को एक परिवार के रूप मे माना है। आप देखिए छोटी-छोटी चीजें होती हैं लेकिन जीवन को कैसे बनाती हैं। पूरे ब्रह्माण को परिवार मानना यह किताबों से नहीं, परिवार के संस्‍कारों से समझाया गया है। बच्‍चा छोटा होता है तो मां उसको खुले मैदान में ले जाकर के समझाती है कि “देखो बेटे, यह जो चांद दिखता है न यह चांद जो है न तेरा मामा है”। कहता है कि नहीं कहते? आपको भी कहा था या नहीं कहा था? क्‍या दुनिया में कभी सुना है जो कहता है सूरज तेरा दादा है, चांद तेरा मामा है, यानी पूरा ब्रह्माण तेरा परिवार है। यह संस्‍कार जिस धरती से मिलते हैं, वहां प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं हो सकता है, प्रकृति के साथ समन्‍वय होता है। और इसलिए आज विश्‍व जिस संकट को झेल रहा है, भारतीय चिंतन के आधार पर विश्‍व का नेतृत्व करने का समय आ गया है। Climate बचाने के लिए दुनिया हमें न सिखाये।

दुनिया, जब मॉरिशस कहेगा, ज्‍यादा मानेगी। उसका कारण क्‍या है, मालूम है? क्‍योंकि आप कह सकते हो कि “भई मैं मरने वाला हूं, मैं डूबने वाला हूं”। तो उसका असर ज्‍यादा होता है और इसलिए विश्‍व को जगाना.. मैं इन दिनों कई ऐसे क्षेत्रों में गया। मैं अभी फिजी में गया तो वहां भी मैं अलग-अलग आईलैंड के छोटे-छोटे देशों से मिला था। अब पूरा समय उनकी यही पीड़ा थी, यही दर्द था कोई तो हमारी सुने, कोई तो हमें बचाएं, कोई तो हमारी आने वाली पीढि़यों की रक्षा करे। और जो दूर का सोचते हैं उन्‍होंने आज से शुरू करना पड़ता है।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (3)

भाईयों-बहनों भारत आज विश्‍व का सबसे युवा देश है। 65% Population भारत की 35 साल से कम उम्र की है। यह मॉरिशियस 1.2 Million का है, और हिंदुस्‍तान 1.2 Billion का है। और उसमें 65% जनसंख्‍या 35 साल से कम है। पूरे विश्‍व में युवाशक्ति एक अनिवार्यता बनने वाला है। दुनिया को Workforce की जरूरत पड़ने वाली है। कितना ही ज्ञान हो, कितना ही रुपया हो, कितना ही डॉलर हो, पौंड हो, संपत्ति के भंडार हो, लेकिन अगर युवा पीढ़ी के भुजाओं का बल नहीं मिलता है, तो गाड़ी वहीं अटक जाती है। और इसलिए दुनिया को Youthful Manpower की आवश्‍यकता रहने वाली है, Human Resource की आवश्‍यकता रहने वाली है। भारत आज उस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है कि आने वाले दिनों में विश्‍व को जिस मानवशक्ति की आवश्‍यकता है, हम भारत में ऐसी मानवशक्ति तैयार करें जो जगत में जहां जिसकी जरूरत हो, उसको पूरा करने के लिए हमारे पास वो काबिलियत हो, वो हुनर हो, वो सामर्थ्‍य हो।

और इसलिए Skill Development एक Mission mode में हमने आरंभ किया है। दुनिया की आवश्‍यकताओं का Mapping करके किस देश को आने वाले 20 साल के बाद कैसे लोग चाहिए, ऐसे लोगों को तैयार करने का काम आज से शुरू करेंगे। और एक बार भारत का नौजवान दुनिया में जाएगा तो सिर्फ भुजाएं लेकर के नहीं जाएगा, सिर्फ दो बाहू लेकर के नहीं जाएगा, दिल और दिमाग लेकर के भी जाएगा। और वो दिमाग जो वसुधैव कुटुम्‍बकम् की बात करता है। जगत को जोड़ने की बात करता है।

और इसलिए आने वाले दिनों में फिर एक बार युग का चक्‍कर चलने वाला है, जिस युग के चक्‍कर से भारत का नौजवान विश्‍व के बदलाव में दुनिया में फैलकर के एक catalytic agent के रूप में अपनी भूमिका का निर्माण कर सके, ऐसी संभावनाएं पड़ी है। उन संभावनाओं को एक अवसर मानकर के हिंदुस्‍तान आगे बढ़ना चाहता है। दुनिया में फैली हुई सभी मानवतावादी शक्तियां भारत को आशीर्वाद दें ता‍कि इस विचार के लोग इस मनोभूमिका के लोग विश्‍व में पहुंचे, विश्‍व में फैले और विश्‍व कल्‍याण के मार्ग में अपनी-अपनी भूमिका अदा करे। यह जमाना Digital World है। हर किसी के हाथ में मोबाइल है, हर कोई selfie ले रहा है। Selfie ले या न ले, बहुत धक्‍के मारता है मुझे। जगत बदल चुका है। Selfie लेता हैं, पलभर के अंदर अपने साथियों को पहुंचा देता है “देखो अभी-अभी मोदी जी से मिलकर आ गया।“ दुनिया तेज गति से बदल रही है। भारत अपने आप को उस दिशा में सज्ज कर रहा है और हिंदुस्‍तान के नौजवान जो IT के माध्‍यम से जगत को एक अलग पहचान दी है हिंदुस्‍तान की।

वरना एक समय था, हिंदुस्‍तान की पहचान क्‍या थी? मुझे बराबर याद है मैं एक बार ताइवान गया था। बहुत साल पहले की बात है, ताइवान सरकार के निमंत्रण पर गया था। तब तो मैं कुछ था नहीं, मुख्‍यमंत्री वगैरह कुछ नहीं था, ऐसे ही... जैसे यहां एक बार यहाँ मॉ‍रिशियस आया था। कुछ लोग हैं जो मुझे पुराने मिल गए आज। तो पांच-सात दिन का मेरा Tour था जो उनका Computer Engineer था वो मेरा interpretor था, वहां की सरकार ने लगाया था। तो पांच-सात दिन मैं सब देख रहा था, सुन रहा था, पूछ रहा था, तो उसके मन में curiosity हुई। तो उसने आखिरी एक दिन बाकी था, उसने मुझे पूछा था। बोला कि “आप बुरा न माने तो एक सवाल पूछना चाहता हूं।“ मैंने कहा “क्या?” बोले.. “आपको बुरा नहीं लगेगा न?“ मैंने कहा “पूछ लो भई लगेगा तो लगेगा, तेरे मन में रहेगा तो मुझे बुरा लगेगा।“ फिर “नहीं नहीं..” वो बिचारा भागता रहा। मैंने फिर आग्रह किया “बैठो, बैठो। मुझे बताओ क्‍या हुआ है।“ तो उसने मुझे पूछा “साहब, मैं जानना चाहता हूं क्‍या हिंदुस्‍तान आज भी सांप-सपेरों का देश है क्‍या? जादू-टोना वालों का देश है क्‍या? काला जादू चलता है क्‍या हिंदुस्‍तान में?” बड़ा बिचारा डरते-डरते मुझे पूछ रहा था। मैंने कहा “नहीं यार अब वो जमाना चला गया। अब हम लोगों में वो दम नहीं है। हम अब सांप से नहीं खेल सकते। अब तो हमारा devaluation इतना हो गया कि हम Mouse से खेलते हैं।“ और हिंदुस्‍तान के नौजवान का Mouse आज Computer पर click कर करके दुनिया को डुला देता है। यह ताकत है हमारे में।

हमारे नौजवानों ने Computer पर करामात करके विश्‍व के एक अलग पहचान बनाई है। विश्‍व को भारत की तरफ देखने का नजरिया बदलना पड़ा है। उस सामर्थ्‍य के भरोसे हिंदुस्‍तान को भी हम आगे बढ़ाना चाहते हैं।

20.5 PM's at civic reception in Mauritius (1)

एक जमाना था। जब Marx की theory आती थी तो कहते थे “Haves and Have nots” उसकी theory चलती थी। वो कितनी कामगर हुई है, उस विचार का क्‍या हुआ वो सारी दुनिया जानती है मैं उसकी गहराई में नहीं जाना चाहता। लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं आज दुनिया Digital Connectivity से जो वंचित है और जो Digital World से जुड़े हुए हैं, यह खाई अगर ज्‍यादा बढ़ गई, तो विकास के अंदर बहुत बड़ी रूकावट पैदा होने वाली है। इसलिए Digital Access गरीब से गरीब व्‍यक्ति तक होना आने वाले दिनों में विकास के लिए अनिवार्य होने वाला है। हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन है।

हर किसी को दुनिया के साथ जुड़ने की उत्‍सुकता... मुझे याद है मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो एक आदिवासी जंगल में एक तहसील है वहां मेरा जाना नहीं हुआ था। बहुत पिछड़ा हुआ इलाका था interior में था, लेकिन मेरा मन करता था कि ऐसा नहीं होना चाहिए मैं मुख्‍यमंत्री रहूं और यह एक इलाका छूट जाए, तो मैंने हमारे अधिकारियों से कहा कि भाई मुझे वहां जाना है जरा कार्यक्रम बनाइये। खैर बड़ी मुश्किल से कार्यक्रम बना अब वहां तो कोई ऐसा प्रोजेक्‍ट भी नहीं था क्‍या करे। कोई ऐसा मैदान भी नहीं था जहां जनसभा करे, तो एक Chilling Centre बना था। दूध रखने के लिए, जो दूध बेचने वाले लोग होते हैं वो Chilling Centre में दूध देते हैं, वहां Chilling Plant में Chilling होता है फिर बाद में बड़ा Vehicle आता है तो Dairy में ले जाता है। छोटा सा प्रोजेक्‍ट था 25 लाख रुपये का। लेकिन मेरा मन कर गया कि भले छोटा हो पर मुझे वहां जाना है। तो मैं गया और उससे तीन किलोमीटर दूर एक आम सभा के लिए मैदान रखा था, स्‍कूल का मैदान था, वहां सभा रखी गयी। लेकिन जब मैं वहां गया Chilling Centre पर तो 20-25 महिलाएं जो दूध देने वाली थी, वो वहां थी, तो मैंने जब उद्घाटन किया.. यह आदिवासी महिलाएं थी, पिछड़ा इलाका था। वे सभी मोबाइल से मेरी फोटो ले रही थी। अब मेरे लिए बड़ा अचरज था तो मैं कार्यक्रम के बाद उनके पास गया और मैंने उनसे पूछा कि “मेरी फोटो लेकर क्‍या करोगे?” उन्‍होंने जो जवाब दिया, वो जवाब मुझे आज भी प्रेरणा देता है। उन्‍होंने कहा कि “नहीं, नहीं यह तो जाकर के हम Download करवा देंगे।“ यानी वो पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, वो आदिवासी थे, दूध बेचकर के अपनी रोजी-रोटी कमाते थे, लेकिन वहां की महिलाएं हाथ से मोबाइल से फोटो निकाल रही हैं, और मुझे समझा रही है कि हम Download करा देंगे। तब से मैंने देखा कि Technology किस प्रकार से मानवजात के जीवन का हिस्‍सा बनती चली जा रही है। अगर हमने विकास के Design बना लिये हैं तो उस Technology का महत्‍व हमें समझना होगा।

और भारत Digital India का सपना देख कर के चल रहा है। कभी हिंदुस्‍तान की पहचान यह बन जाती थी कोई भी यहां अगर किसी को कहोगे भारत... “अरे छोड़ो यार, भ्रष्‍टाचार है, छोड़ो यार रिश्‍वत का मामला है।“ ऐसा सुनते हैं न? अब सही करना है। अभी-अभी आपने सुना होगा, यह अखबार में बहुत कम आया है। वैसे बहुत सी अच्‍छी चीजें होती है जो अखबार टीवी में कम आती है। एक-आध कोन में कहीं आ जाती है। भारत में कोयले को लेकर के भ्रष्‍टाचार की बड़ी चर्चा हुई थी। CAG ने कहा था एक लाख 76 हजार करोड़ के corruption की बात हुई थी। हमारी सरकार आई और सुप्रीम कोर्ट ने 204 जो खदानें थी उसको रद्द कर दिया। कोयला निकालना ही पाबंदी लग गई। अब बिजली के कारखाने कैसे चलेंगे? हमारे लिए बहुत जरूरी था कि इस काम को आगे बढ़ाएं। हमने एक के बाद एक निर्णय लिए, तीने महीने के अंदर उसमें Auction करना शुरू कर दिया और 204 Coal Blocks खदानें जो ऐसे ही कागज पर चिट्ठी लिखकर के दे रही है यह मदन भाई को दे देना, यह मोहन भाई को दे देना या रज्‍जू भाई को... ऐसा ही दे दिया। तो सुप्रीम ने गलत किया था, हमने उसका Auction किया था। अब तक सिर्फ 20 का Auction हुआ है। 204 में से 20 का Auction हुआ है। और 20 के Auction में दो लाख करोड़ से ज्‍यादा रकम आई है।

Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? Corruption जा सकता है या नहीं जा सकता है? अगर हम नीतियों के आधार पर देश चलाएं, पारदर्शिता के साथ चलाएं, तो हम भ्रष्‍टाचार से कोई भी व्‍यवस्‍था को बाहर निकाल सकते हैं और भ्रष्‍टाचार मुक्‍त व्‍यवस्‍थाओं को विकसित कर सकते हैं। हिंदुस्‍तान ने बीड़ा उठाया है, हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

भारत विकास की नई ऊंचाईयों पर जा रहा है। भारत ने एक सपना देखा है “Make In India” हम दुनिया को कह रहे हैं कि आइये हिंदुस्‍तान में पूंजी लगाइये, हिंदुस्‍तान में Manufacturing कीजिए। भारत में आपको Low Cost Manufacturing होगा, Skilled Manpower मिलेगा। Zero loss का माहौल मिलेगा। Redtape की जगह Red Carpet मिलेगा। आइये और आप अपना नसीब आजमाइये और मैं देख रहा हूं आज दुनिया का भारत में बहुत रूचि लगने लगी। दुनिया के सारे देश जिनको पता है कि हां भारत एक जगह है, जहां पूंजी निवेश कर सकते हैं, वहां Manufacturing करेंगे और दुनिया के अंदर Export करेंगे।

बहुत बड़ी संभावनाओं के साथ देश विकास की ऊंचाईयों को पार कर रहा है। मुझे विश्‍वास है कि आप जो सपने देख रहे हो वो कहीं पर भी बैठे होंगे, लेकिन आप आज कहीं पर भी क्‍यों न हो, लेकिन कौन बेटा है जो मां को दुखी देखना चाहता है? सदियों पहले भले वो देश छोड़ा हो, लेकिन फिर भी आपके मन में रहता होगा कि “भारत मेरी मां है। मेरी मां कभी दुखी नहीं होनी चाहिए।“ यह आप भी चाहते होंगे। जो आप चाहते हो। आप यहां आगे बढि़ए, प्रगति कीजिए और आपने जो भारत मां की जिम्‍मेवारी हमें दी है, हम उसको पूरी तरह निभाएंगे ताकि कभी आपको यह चिंता न रहे कि आपकी भारत माता का हाल क्‍या है। यह मैं विश्‍वास दिलाने आया हूं।

20 PM Modi floral tribute at Gandhi Statue at Mahatama Gandhi institute of Mauritius (1)

मैं कल से यहां आया हूं, जो स्‍वागत सम्‍मान दिया है, जो प्‍यार मिला है इसके लिए मैं मॉरीशियस का बहुत आभारी हूं। यहां की सरकार का आभारी हूं, प्रधानमंत्री जी का आभारी हूं, आप सबका बहुत आभार हूं। और आपने जो स्‍वागत किया, जो सम्‍मान दिया इसके लिए मैं फिर एक बार धन्‍यवाद करता हूं। और आज 12 मार्च आपका National Day है, Independence Day है। और 12 मार्च 1930 महात्‍मा गांधी साबरमती आश्रम से चले थे, दांडी की यात्रा करने के लिए। और वो दांडी यात्रा कोई कल्‍पना नहीं कर सकता था कि नमक सत्‍याग्रह पूरी दुनिया के अंदर एक क्रांति ला सकता है। जिस 12 मार्च को दांडी यात्रा का प्रारंभ हुआ था उसी 12 मार्च को महात्‍मा गांधी से जुड़े हुए पर्व से मॉरिशियस की आजादी का पर्व है। मैं उस पर्व के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत बधाई देता हूं।

फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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इस साल का 'गणतंत्र दिवस' बेहद खास है। यह भारतीय गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ है: पीएम मोदी
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस दूरदर्शी थे और साहस उनके स्वभाव में था: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | आज 2025 की पहली ‘मन की बात’ हो रही है | आप लोगों ने एक बात जरूर notice की होगी | हर बार ‘मन की बात’ महीने के आखिरी रविवार को होती है, लेकिन इस बार, हम, एक सप्ताह पहले चौथे रविवार की बजाय तीसरे रविवार को ही मिल रहे हैं | क्योंकि अगले सप्ताह, रविवार के दिन ही ‘गणतंत्र दिवस’ है | मैं सभी देशवासियो को ‘गणतंत्र दिवस’ की अग्रिम शुभकामनाएं देता हूँ |

साथियो,

इस बार का ‘गणतंत्र दिवस’ बहुत विशेष है | ये भारतीय गणतंत्र की 75वीं वर्षगाँठ है | इस वर्ष संविधान लागू होने के 75 साल हो रहे हैं | मैं संविधान सभा के उन सभी महान व्यक्तित्वों को नमन करता हूँ, जिन्होंने हमें हमारा पवित्र संविधान दिया | संविधान सभा के दौरान अनेक विषयों पर लंबी-लंबी चर्चाएं हुईं | वो चर्चाएं संविधान सभा के सदस्यों के विचार, उनकी वो वाणी, हमारी बहुत बड़ी धरोहर है | आज ‘मन की बात’ में मेरा प्रयास है कि आपको कुछ महान नेताओं की original आवाज सुनाऊँ |

साथियो,

जब संविधान सभा ने अपना काम शुरू किया, तो बाबा साहब आंबेडकर ने परस्पर सहयोग को लेकर एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी | उनका ये सम्बोधन English में है | मैं उसका एक अंश आपको सुनाता हूँ -
“So far as the ultimate goal is concerned, I think none of us need have any apprehensions. None of us need have any doubt, but my fear which I must express clearly is this, our difficulty as I said is not about the ultimate future. Our difficulty is how to make the heterogeneous mass that we have today, take a decision in common and march in a cooperative way on that road which is bound to lead us to unity. Our difficulty is not with regard to the ultimate; our difficulty is with regard to the beginning.”

साथियो,

बाबा साहब इस बात पर जोर दे रहे थे कि संविधान सभा एक साथ, एक मत हो, और मिलकर, सर्वहित के लिए काम करे | मैं आपको संविधान सभा की एक और audio clip सुनाता हूँ | ये audio डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी का है, जो हमारी संविधान सभा के प्रमुख थे | आइए डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को सुनते हैं -

“हमारा इतिहास बताता है और हमारी संस्कृति सिखाती है कि हम शांति प्रिय हैं और रहे हैं | हमारा साम्राज्य और हमारी फतह दूसरी तरह की रही है, हमने दूसरो को जंजीरो से, चाहे वो लोहे की हो या सोने की, कभी नहीं बांधने की कोशिश की है | हमने दूसरों को अपने साथ, लोहे की जंजीर से भी ज्यादा मजबूत मगर सुंदर और सुखद रेशम के धागे से बांध रखा है और वो बंधन धर्म का है, संस्कृति का है, ज्ञान का है | हम अब भी उसी रास्ते पर चलते रहेंगे और हमारी एक ही इच्छा और अभिलाषा है, वो अभिलाषा ये है कि हम संसार में सुख और शांति कायम करने में मदद पहुंचा सकें और संसार के हाथों में सत्य और अहिंसा वो अचूक हथियार दे सकें जिसने हमें आज आजादी तक पहुंचाया है | हमारी जिंदगी और संस्कृति में कुछ ऐसा है जिसने हमें समय के थपेड़ों के बावजूद जिंदा रहने की शक्ति दी है | अगर हम अपने आदर्शों को सामने रखे रहेंगे तो हम संसार की बड़ी सेवा कर पाएंगे |”

साथियो,

डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी ने मानवीय मूल्यों के प्रति देश की प्रतिबद्धता की बात कही थी | अब मैं आपको डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आवाज सुनाता हूँ | उन्होंने अवसरों की समानता का विषय उठाया | डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था -

“I hope sir that we shall go ahead with our work in spite of all difficulties and thereby help to create that great India which will be the motherland of not this community or that, not this class or that, but of every person, man, woman and child inhabiting in this great land irrespective of race, caste, creed or community. Everyone will have an equal opportunity, so that he or she can develop himself or herself according to best talent and serve the great common motherland of India.”

साथियो,

मुझे उम्मीद है, आपको भी संविधान सभा की debate से ये original audio सुनकर अच्छा लगा होगा | हम देशवासी को, इन विचारों से प्रेरणा लेकर, ऐसे भारत के निर्माण के लिए काम करना है, जिस पर हमारे संविधान निर्माताओं को भी गर्व हो |

साथियो,

‘गणतंत्र दिवस’ से एक दिन पहले 25 जनवरी को national voter’s day है | ये दिन इसलिए अहम है, क्योंकि इस दिन ‘भारतीय निर्वाचन आयोग’ की स्थापना हुई थी.. Election Commission| हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में हमारे चुनाव आयोग को, लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी को, बहुत बड़ा स्थान दिया है | देश में जब 1951-52 में पहली बार चुनाव हुए, तो कुछ लोगों को संशय था, कि क्या, देश का लोकतंत्र जीवित रहेगा | लेकिन, हमारे लोकतंत्र ने सारी आशंकाओं को गलत साबित किया - आखिर भारत, Mother of Democracy है | बीते दशकों में भी देश का लोकतंत्र सशक्त हुआ है, समृद्ध हुआ है | मैं चुनाव आयोग का भी धन्यवाद दूंगा, जिसने समय-समय पर, हमारी मतदान प्रक्रिया को आधुनिक बनाया है, मजबूत किया है | आयोग ने जन-शक्ति को और शक्ति देने के लिए, तकनीक की शक्ति का उपयोग किया | मैं चुनाव आयोग को निष्पक्ष चुनाव के उनके commitment के लिए बधाई देता हूँ | मैं देशवासियों से कहूँगा कि वो ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में अपने मत के अधिकार का उपयोग करें, हमेशा करें, और देश के Democratic Process का हिस्सा भी बनें और इस Process को सशक्त भी करें |

मेरे प्यारे देशवासियो,

प्रयागराज में महाकुंभ का श्रीगणेश हो चुका है | चिरस्मरणीय जन-सैलाब, अकल्पनीय दृश्य और समता-समरसता का असाधारण संगम ! इस बार कुंभ में कई दिव्य योग भी बन रहे हैं | कुंभ का ये उत्सव विविधता में एकता का उत्सव मनाता है | संगम की रेती पर पूरे भारत के, पूरे विश्व के लोग, जुटते हैं | हजारों वर्षों से चली या रही इस परंपरा में कहीं भी कोई भेदभाव नहीं, जातिवाद नहीं | इसमें भारत के दक्षिण से लोग आते हैं, भारत के पूर्व और पश्चिम से लोग आते हैं | कुंभ में गरीब-अमीर सब एक हो जाते हैं | सब लोग संगम में डुबकी लगाते हैं, एक साथ भंडारों में भोजन करते हैं, प्रसाद लेते हैं - तभी तो ‘कुंभ’ एकता का महाकुंभ है | कुंभ का आयोजन हमें ये भी बताता है कि कैसे हमारी परम्पराएं पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती हैं | उत्तर से दक्षिण तक मान्यताओं को मानने के तरीके एक जैसे ही हैं | एक तरफ प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है, वैसे ही, दक्षिण भू-भाग में, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा और कावेरी नदी के तटों पर पुष्करम होते हैं | ये दोनों ही पर्व हमारी पवित्र नदियों से, उनकी मान्यताओं से, जुड़े हुए हैं | इसी तरह कुंभकोणम से तिरुक्कड-यूर, कूड़-वासल से तिरुचेरई अनेक ऐसे मंदिर हैं, जिनकी परम्पराएं कुंभ से जुड़ी हुई हैं |

साथियो,

इस बार आप सब ने देखा होगा कि कुंभ में युवाओं की भागीदारी बहुत व्यापक रूप में नजर आती है, और ये भी सच है कि जब युवा-पीढ़ी, अपनी सभ्यता के साथ, गर्व के साथ, जुड़ जाती है, तो उसकी जड़ें, और मजबूत होती हैं, और तब उसका स्वर्णिम भविष्य भी सुनिश्चित हो जाता है | हम इस बार कुंभ के digital footprints भी इतने बड़े scale पर देख रहे हैं | कुंभ की ये वैश्विक लोकप्रियता हर भारतीय के लिए गर्व की बात है |

साथियो,

कुछ दिन पहले ही, पश्चिम बंगाल में ‘गंगा सागर’ मेले का भी विहंगम आयोजन हुआ है | संक्रांति के पावन अवसर पर इस मेले में पूरी दुनिया से आए लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है | ‘कुंभ’, ‘पुष्करम’ और ‘गंगा सागर मेला’ - हमारे ये पर्व, हमारे सामाजिक मेल-जोल को, सद्भाव को, एकता को बढ़ाने वाले पर्व हैं | ये पर्व भारत के लोगों को भारत की परंपराओं से जोड़ते हैं, और जैसे हमारे शास्त्रों ने संसार में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारों पर बल दिया है | वैसे ही हमारे पर्वों और परम्पराएं भी आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक, हर पक्ष को भी सशक्त करते हैं |

साथियो,

इस महीने हमने ‘पौष शुक्ल द्वादशी’ के दिन रामलला के प्राण प्रतिष्ठा पर्व की पहली वर्षगांठ मनाई है | इस साल ‘पौष शुक्ल द्वादशी’ 11 जनवरी को पड़ी थी | इस दिन लाखों राम भक्तों ने अयोध्या में रामलला के साक्षात दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया | प्राण प्रतिष्ठा की ये द्वादशी, भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनः प्रतिष्ठा की द्वादशी है | इसलिए पौष शुक्ल द्वादशी का ये दिन एक तरह से प्रतिष्ठा द्वादशी का दिन भी बन गया है | हमें विकास के रास्ते पर चलते हुए, ऐसे ही, अपनी विरासत को भी सहेजना है, उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

2025 की शुरुआत में ही भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं | आज, मुझे ये बताते हुए गर्व है कि एक भारतीय space-tech start-up बेंगलुरू के Pixxel (पिक्सेल) ने भारत का पहला निजी satellite constellation – ‘Firefly’ (फायर-फ्लाई), सफलतापूर्वक launch किया है | यह satellite constellation दुनिया का सबसे High-Resolution Hyper Spectral Satellite Constellation है | इस उपलब्धि ने, न केवल भारत को आधुनिक space technology में अग्रणी बनाया है, बल्कि, यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी एक बड़ा कदम है | ये सफलता हमारे निजी space sector की बढ़ती ताकत और innovation का प्रतीक है | मैं इस उपलब्धि के लिए Pixxel की टीम, ISRO, और IN-SPACe को पूरे देश की ओर से बधाई देता हूं |

साथियो,

कुछ दिन पहले हमारे वैज्ञानिकों ने space sector में ही एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की | हमारे scientists ने satellites की space docking कराई है | जब अंतरिक्ष में दो spacecraft connect किए जाते हैं, तो, इस प्रक्रिया को Space Docking कहते हैं | यह तकनीक अंतरिक्ष में space station तक supply भेजने और crew mission के लिए अहम है | भारत ऐसा चौथा देश बना है, जिसने ये सफलता हासिल की है |

साथियो,

हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष में पौधे उगाने और उन्हें जीवित रखने के प्रयास भी कर रहे हैं | इसके लिए ISRO के वैज्ञानिकों ने लोबिया के बीज को चुना | 30 दिसंबर को भेजे गए ये बीज अंतरिक्ष में ही अंकुरित हुए | ये एक बेहद प्रेरणादायक प्रयोग है जो भविष्य में space में सब्जियां उगाने का रास्ता खोलेगा | ये दिखाता है कि हमारे वैज्ञानिक कितनी दूर की सोच के साथ काम कर रहे हैं |

साथियो,

मैं आपको एक और प्रेरणादायक पहल के बारे में बताना चाहता हूं | IIT मद्रास का ExTeM (एक्सटेम) केंद्र अंतरिक्ष में manufacturing के लिए नई तकनीकों पर काम कर रहा है | ये केंद्र अंतरिक्ष में 3D–Printed buildings, metal foams और optical fibers जैसे तकनीकों पर Research कर रहा है | ये सेंटर, बिना पानी के concrete निर्माण जैसी क्रांतिकारी विधियों को भी विकसित कर रहा है | ExTeM (एक्सटेम) की ये Research, भारत के गगनयान मिशन और भविष्य के Space Station को मजबूती देगी | इससे manufacturing में आधुनिक Technology के भी नए रास्ते खुलेगें |

साथियो,

ये सभी उपलब्धियां इस बात का प्रमाण है कि भारत के वैज्ञानिक और innovators भविष्य की चुनौतियों का समाधान देने के लिए कितने visionary हैं | हमारा देश, आज, Space technology में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है | मैं भारत के वैज्ञानिकों, innovators और युवा उद्यमियों को पूरे देश की ओर से शुभकामनाएँ देता हूं |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आपने कई बार इंसानों और जानवरों के बीच गजब की दोस्ती की तस्वीरें देखी होंगी, आपने जानवरों की वफादारी की कहानियाँ सुनी होंगी | जानवर पालतू हों या जंगल में रहने वाले पशु, इंसानों से उनका नाता कई बार हैरान कर देता है | जानवर भले बोल नहीं पाते, लेकिन उनकी भावनाओं को, उनके हाव-भाव को, इंसान, भली-भांति भांप लेते हैं | जानवर भी प्यार की भाषा को समझते हैं, उसे निभाते भी हैं | मैं आपसे असम का एक उदाहरण साझा करना चाहता हूं | असम में एक जगह है ‘नौगांव’ | ‘नौगांव’ हमारे देश की महान विभूति श्रीमंत शंकरदेव जी का जन्म स्थान भी है | ये जगह बहुत ही सुंदर है | यहाँ हाथियों का भी एक बड़ा ठिकाना है | इस क्षेत्र में कई घटनाएं देखी जा रही थी, जहां हाथियों के झुंड फसलों को बर्बाद कर देते थे, किसान परेशान रहते थे, जिससे आस-पास के करीब 100 गांवों के लोग, बहुत परेशान थे, लेकिन गांववाले, हाथियों की भी मजबूरी समझते थे | उन्हें पता था कि हाथी, भूख मिटाने के लिए, खेतों का रूख कर रहे हैं, इसलिए गांववालों ने इसका समाधान निकालने की सोची | गावंवालों की एक टीम बनी, जिसका नाम था ‘हाथी बंधु’ | हाथी बंधुओं ने सूझ-बूझ दिखाते हुए करीब 800 बीघा बंजर भूमि पर एक अनूठी कोशिश की | यहाँ गांववालों ने आपस में मिल-जुल कर Napier grass लगाई | इस घास को हाथी बहुत पसंद करते हैं | इसका असर ये हुआ कि हाथियों ने खेतों की ओर जाना कम कर दिया | ये हजारों गांववालों के लिए बहुत राहत की बात है | उनका ये प्रयास हाथियों को भी खूब भाया है |

साथियो,

हमारी संस्कृति और विरासत हमें आस-पास के पशु–पक्षियों के साथ प्यार से रहना सिखाती है | ये हम सभी के लिए बहुत खुशी की बात है, कि बीते दो महीनों में, हमारे देश में दो नए Tiger Reserves जुड़े हैं | इनमें से एक है छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास–तमोर पिंगला Tiger Reserve और दूसरा है – MP में रातापानी Tiger Reserve.

मेरे प्यारे देशवासियो,

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था, जिस व्यक्ति में अपने Idea को लेकर जुनून होता है, वही, अपने लक्ष्य को हासिल कर पाता है । किसी Idea को सफल बनाने के लिए हमारा passion और dedication सबसे जरूरी होता है । पूरी लगन और उत्साह से ही innovation, creativity और सफलता का रास्ता अवश्य निकलता है । कुछ दिन पहले ही, स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर, मुझे, ‘Viksit Bharat Young Leaders Dialogue’ का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला । यहां मैंने देश के कोने-कोने से आए युवा-साथियों के साथ अपना पूरा दिन बिताया । युवाओं ने startups, culture, Women, Youth और Infrastructure जैसे कई sectors को लेकर अपने Ideas शेयर किए । यह कार्यक्रम मेरे लिए बहुत यादगार रहा ।

साथियो,

कुछ दिन पहले ही StartUp इंडिया के 9 साल पूरे हुए हैं । हमारे देश में जितने StartUps 9 साल में बने हैं उनमें से आधे से ज्यादा Tier 2 और Tier 3 शहरों से हैं, और जब यह सुनते हैं तो हर हिन्दुस्तानी का दिल खुश हो जाता है यानि हमारा StartUp Culture बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं है । और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि छोटे शहरों के StartUps में आधे से ज्यादा का नेतृत्व हमारी बेटियां कर रही हैं । जब यह सुनने को मिलता है कि अंबाला, हिसार, कांगड़ा, चेंगलपट्टु, बिलासपुर, ग्वालियर और वाशिम जैसे शहर StartUps के Center बन रहे हैं, तो ‘मन’ आनंद से भर जाता है । नागालैंड जैसे राज्य में, पिछले साल StartUps के Registration में 200% से अधिक की वृद्धि हुई है | Waste Management, Non-Renewable Energy, Biotechnology और Logistics ऐसे Sector हैं, जिनसे जुड़े Start-Up सबसे ज्यादा देखे जा रहें हैं । ये Conventional Sectors नहीं हैं लेकिन हमारे युवा-साथी भी तो Conventional से आगे की सोच रखते हैं, इसलिए, उन्हें सफलता भी मिल रही है ।

साथियो,

10 साल पहले जब कोई StartUp के क्षेत्र में जाने की बात करता था, तो उसे, तरह-तरह के ताने सुनने को मिलते थे । कोई ये पूछता था कि आखिर StartUp होता क्या है? तो कोई कहता था कि इससे कुछ होने वाला नहीं है! लेकिन अब देखिए, एक दशक में कितना बड़ा बदलाव आ गया । आप भी भारत में बन रहे नए अवसरों का भरपूर लाभ उठाएं । अगर आप खुद पर विश्वास रखेंगे तो आपके सपनों को भी नई उड़ान मिलेगी ।

मेरे प्यारे देशवासियो,

नेक नियत से निस्वार्थ भावना के साथ किए गए कामों की चर्चा दूर-सुदूर पहुँच ही जाती है । और हमारा ‘मन की बात’ तो इसका बहुत बड़ा Platform है । हमारे इतने विशाल देश में दूर-दराज भी अगर कोई अच्छा काम कर रहा होता है, कर्तव्य भावना को सर्वोपरि रखता है, तो उसके प्रयासों को सामने लाने का, ये, बेहतरीन मंच है । अरुणाचल प्रदेश में दीपक नाबाम जी ने सेवा की अनूठी मिसाल पेश की है । दीपक जी यहां Living-Home चलाते हैं । जहां मानसिक रूप से बीमार, शरीर से असमर्थ लोगों और बुजुर्गों की सेवा की जाती है, यहां पर Drugs की लत के शिकार लोगों की देख-भाल की जाती है । दीपक नाबाम जी ने बिना किसी सहायता के समाज के वंचित लोगों, हिंसा पीड़ित परिवारों, और बेघर लोगों को, सहारा देने का अभियान शुरू किया । आज उनकी सेवा ने एक संस्था का रूप ले लिया है । उनकी संस्था को कई Award से भी सम्मानित किया गया है । लक्षद्वीप के कवरत्ती द्वीप पर Nurse के रूप में काम करने वाली के. हिंडुम्बी जी उनका काम भी बहुत प्रेरित करने वाला है । आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वो 18 वर्ष पहले सरकारी नौकरी से Retire हो चुकी हैं, लेकिन आज भी उसी करुणा, और स्नेह के साथ, लोगों की सेवा में जुटी हैं जैसे वो पहले करती थीं | लक्षद्वीप के ही केजी मोहम्मद जी के प्रयास ये भी अद्भुत हैं | उनकी मेहनत से मिनीकॉय द्वीप का Marine Ecosystem मजबूत हो रहा है | उन्होनें पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई गीत लिखे हैं | उन्हें लक्षद्वीप साहित्य कला अकादमी की तरफ से Best folk song award भी मिल चुका है | केजी मोहम्मद retirement के बाद वहां के museum के साथ जुड़कर भी काम कर रहे हैं |

साथियो,

एक और बड़ी अच्छी खबर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से भी है | निकोबार जिले में virgin coconut oil को हाल ही में GI Tag मिला है | virgin coconut oil उसको GI Tag के बाद एक और नई पहल हुई है | इस oil के उत्पादन से जुड़ी महिलाओं को संगठित कर self help group बनाए जा रहे हैं, उन्हें Marketing और branding की special training भी दी जा रही है | ये हमारे आदिवासी समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है | मुझे विश्वास है, भविष्य में निकोबार का virgin coconut oil दुनिया-भर में धूम मचाने वाला है और इसमें सबसे बड़ा योगदान अंडमान और निकोबार के महिला self help group का होगा |

मेरे प्यारे देशवासियो,

पल-भर के लिए आप एक दृष्य की कल्पना कीजिए- कोलकाता में जनवरी का समय है | दूसरा विश्व युद्ध अपने चरम पर है और इधर भारत में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा उफान पर है | इसकी वजह से शहर में चप्पे-चप्पे पर पुलिसवालों की तैनाती है | कोलकाता के बीचों–बीच एक घर के आस-पास पुलिस की मौजूदगी ज्यादा चौकस है | इसी बीच, लंबा Brown coat, pants और काली टोपी पहने हुए एक व्यक्ति रात के अंधेरे में एक बंगले से car लेकर बाहर निकलता है | मजबूत सुरक्षा वाली कई चौकियों को पार करते हुए वो एक रेलवे स्टेशन गोमो पहुँच जाता है | ये स्टेशन अब झारखंड में है | यहां से एक train पकड़कर वो आगे के लिए निकलता है | इसके बाद अफगानिस्तान होते हुए, वो यूरोप जा पहुंचता है - और यह सब अंग्रेजी हुकूमत के अभेद किलेबंदी के बावजूद होता है |

साथियो,

ये कहानी आपको फिल्मी सीन जैसी लगती होगी | आपको लग रहा होगा, इतनी हिम्मत दिखाने वाला व्यक्ति आखिर किस मिट्टी का बना होगा | दरअसल ये व्यक्ति कोई और नहीं, हमारे देश की महान विभूति, नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे | 23 जनवरी यानि उनकी जन्म-जयंती को अब हम ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाते हैं | उनके शौर्य से जुड़ी इस गाथा में भी उनके पराक्रम की झलक मिलती है | कुछ साल पहले, मैं उनके उसी घर में गया था जहां से वे अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे | उनकी वो car अब भी वहां मौजूद है | वो अनुभव मेरे लिए बहुत ही विशेष रहा | सुभाष बाबू एक visionary थे | साहस तो उनके स्वभाव में रचा-बसा था | इतना ही नहीं, वे बहुत कुशल प्रशासक भी थे | महज 27 साल की उम्र में वो Kolkata Corporation के Chief Executive Officer बने और उसके बाद उन्होंने Mayor की जिम्मेदारी भी संभाली | एक प्रशासक के रूप में भी उन्होंने कई बड़े काम किए | बच्चों के लिए स्कूल, गरीब बच्चों के लिए दूध का इंतजाम और स्वच्छता से जुड़े उनके प्रयासों को आज भी याद किया जाता है | नेताजी सुभाष का रेडियो के साथ भी गहरा नाता रहा है | उन्होंने ‘आजाद हिन्द रेडियो’ की स्थापना की थी, जिस पर उन्हें सुनने के लिए लोग बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे | उनके संबोधनों से, विदेशी शासन के खिलाफ, लड़ाई को, एक नई ताकत मिलती थी | ‘आजाद हिन्द रेडियो’ पर अंग्रेजी, हिन्दी, तमिल, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, पश्तो और उर्दू में news bulletin का प्रसारण होता था | मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नमन करता हूं | देश-भर के युवाओं से मेरा आग्रह है कि वे उनके बारे में अधिक-से-अधिक पढ़ें और उनके जीवन से निरंतर प्रेरणा लें |

साथियो,

‘मन की बात’ का ये कार्यक्रम, हर बार मुझे राष्ट्र के सामूहिक प्रयासों से, आप सब की सामूहिक इच्छाशक्ति से, जोड़ता है | हर महीने मुझे बड़ी संख्या में आपके सुझाव, आपके विचार मिलते हैं और हर बार इन विचारों को देखकर विकसित भारत के संकल्प पर मेरा विश्वास और बढ़ता है | आप सब इसी तरह अपने-अपने काम से भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयास करते रहें | इस बार की ‘मन की बात’ में फिलहाल इतना ही, अगले महीने फिर मिलेंगे - भारतवासियों की उपलब्धियां, संकल्पों और सिद्धियों की नई गाथाओं के साथ, बहुत-बहुत धन्यवाद |

नमस्कार |