मेरे अटल जी

Published By : Admin | August 17, 2018 | 09:09 IST
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अटल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं।

वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वेअटल हैं, वे अब भी हैं। जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है। 

कभी सोचा नहीं था, कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था। सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत आत्माओं ने जन्म लिया है। देश की आज़ादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था -बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं। इंडिया फर्स्ट –भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था।सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी।दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।   

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।  

अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। आंधियों में भी दीये जलाने की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी।

राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया। लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे।

जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया। वे कहते थे, “हम केवल अपने लिए ना जीएं, औरों के लिए भी जीएं...हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी” 

देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे। वेकहते थे गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी हैऔर विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता”। करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था।

आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे - स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्म वीर भी थे।कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं। जहाँ-जहाँ भी गए, स्थाई मित्र बनाये और भारत के हितों की स्थाई आधारशिला रखते गए। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे।

अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था बल्कि जीवन शैली थी। वे देश को सिर्फ एक भूखंड, ज़मीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। “भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैयह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को देश हमेशा याद रखेगा।

 

राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनुकूल अटल रही। भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में। उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना। भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंद-बूंद को, पवित्र और पूजनीय माना।

जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली उतना ही अधिक वह ज़मीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया। प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,

हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना।

गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना

अपने देशवासियों से इतनी सहजता औरसरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।

वेपीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे- “देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोए। उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए।  

यदि भारत उनके रोम रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। इसी वजह से हिरोशिमा जैसी कविताओं का जन्म हुआ। वे विश्व नायक थे। मां भारतीके सच्चे वैश्विक नायक। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध। 

कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, “यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है।”

अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है। यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है।

नए भारत का यही संकल्प, यही भावलिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं।

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ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ನಮ್ಮ ಹೃದಯದಲ್ಲಿ ಉಳಿದಿದ್ದಾರೆ: ಪ್ರಧಾನಿ ಮೋದಿ
April 28, 2023
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ಏಪ್ರಿಲ್ 25 ರ ಸಂಜೆ ಸರ್ದಾರ್ ಪ್ರಕಾಶ್ ಸಿಂಗ್ ಬಾದಲ್ ಜಿ ಅವರ ನಿಧನದ ಸುದ್ದಿಯನ್ನು ಸ್ವೀಕರಿಸಿದಾಗ, ನಾನು ಅಪಾರ ದುಃಖದಿಂದ ತುಂಬಿದ್ದೆ. ಅವರ ನಿಧನದಲ್ಲಿ, ದಶಕಗಳ ಕಾಲ ನನಗೆ ಮಾರ್ಗದರ್ಶನ ನೀಡಿದ ತಂದೆಯ ವ್ಯಕ್ತಿತ್ವವನ್ನು ನಾನು ಕಳೆದುಕೊಂಡಿದ್ದೇನೆ. ಒಂದಕ್ಕಿಂತ ಹೆಚ್ಚು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ, ಅವರು ಭಾರತ ಮತ್ತು ಪಂಜಾಬ್‌ನ ರಾಜಕೀಯವನ್ನು ಅಪ್ರತಿಮ ಎಂದು ವಿವರಿಸಿದರು.

ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಒಬ್ಬ ದೊಡ್ಡ ನಾಯಕ ಎಂದು ವ್ಯಾಪಕವಾಗಿ ಒಪ್ಪಿಕೊಳ್ಳಲಾಗಿದೆ. ಆದರೆ, ಅದಕ್ಕಿಂತ ಮುಖ್ಯವಾಗಿ, ಅವರು ದೊಡ್ಡ ಹೃದಯದ ಮನುಷ್ಯರಾಗಿದ್ದರು. ದೊಡ್ಡ ನಾಯಕನಾಗುವುದು ಸುಲಭ ಆದರೆ ದೊಡ್ಡ ಹೃದಯದ ವ್ಯಕ್ತಿಯಾಗಲು ಇನ್ನೂ ಹೆಚ್ಚಿನ ಅಗತ್ಯವಿರುತ್ತದೆ. ಪಂಜಾಬ್‌ನಾದ್ಯಂತ ಜನರು ಹೇಳುತ್ತಾರೆ - ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್‌ನಲ್ಲಿ ಏನೋ ವಿಭಿನ್ನವಾಗಿತ್ತು! (‘ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಕಿ ಬಾತ್ ಅಲಗ್ ಥಿ’)

ಸರ್ದಾರ್ ಪ್ರಕಾಶ್ ಸಿಂಗ್ ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರು ನಮ್ಮ ಕಾಲದ ಅತ್ಯಂತ ಎತ್ತರದ ಕಿಸಾನ್ ನೇತಾ ಸ್ಥಾನದಲ್ಲಿದ್ದಾರೆ ಎಂದು ವಿಶ್ವಾಸದಿಂದ ಹೇಳಬಹುದು. ಕೃಷಿ ಅವರ ನಿಜವಾದ ಉತ್ಸಾಹವಾಗಿತ್ತು. ಅವರು ಯಾವುದೇ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಮಾತನಾಡುವಾಗ, ಅವರ ಭಾಷಣಗಳು ಸತ್ಯಗಳು, ಇತ್ತೀಚಿನ ಮಾಹಿತಿಗಳು ಮತ್ತು ಬಹಳಷ್ಟು ವೈಯಕ್ತಿಕ ಒಳನೋಟಗಳಿಂದ ತುಂಬಿರುತ್ತವೆ.

ನಾನು 1990 ರ ದಶಕದಲ್ಲಿ ಉತ್ತರ ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಪಕ್ಷದ ಕೆಲಸದಲ್ಲಿ ತೊಡಗಿಸಿಕೊಂಡಾಗ ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಕಟವಾಗಿ ಸಂವಹನ ನಡೆಸಿದೆ. ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರ ಖ್ಯಾತಿಯು ಅವರಿಗೆ ಮುಂಚಿತವಾಗಿತ್ತು - ಅವರು ಪಂಜಾಬ್‌ನ ಕಿರಿಯ ಮುಖ್ಯಮಂತ್ರಿ, ಕೇಂದ್ರ ಸಂಪುಟ ಮಂತ್ರಿ ಮತ್ತು ಪ್ರಪಂಚದಾದ್ಯಂತದ ಕೋಟಿಗಟ್ಟಲೆ ಪಂಜಾಬಿಗಳ ಹೃದಯದ ಮೇಲೆ ಹಿಡಿತ ಸಾಧಿಸಿದ ಒಬ್ಬ ರಾಜಕೀಯ ಪಟು. ಮತ್ತೊಂದೆಡೆ, ನಾನು ಸಾಮಾನ್ಯ ಕಾರ್ಯಕರ್ತನಾಗಿದ್ದೆ. ಆದರೂ, ಅವರ ಸ್ವಭಾವಕ್ಕೆ ಅನುಗುಣವಾಗಿ, ಅವರು ನಮ್ಮ ನಡುವೆ ಅಂತರವನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸಲು ಎಂದಿಗೂ ಬಿಡಲಿಲ್ಲ. ಅವರು ಉಷ್ಣತೆ ಮತ್ತು ದಯೆಯಿಂದ ತುಂಬಿದ್ದರು. ಇವು ಅವನ ಕೊನೆಯ ಉಸಿರಿನವರೆಗೂ ಅವನೊಂದಿಗೆ ಉಳಿದುಕೊಂಡ ಗುಣಲಕ್ಷಣಗಳಾಗಿವೆ. ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ನಿಕಟವಾಗಿ ಸಂವಹನ ನಡೆಸಿದ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರೂ ಅವರ ಬುದ್ಧಿವಂತಿಕೆ ಮತ್ತು ಹಾಸ್ಯಪ್ರಜ್ಞೆಯನ್ನು ನೆನಪಿಸಿಕೊಂಡರು.

1990 ರ ದಶಕದ ಮಧ್ಯ ಮತ್ತು ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ ಪಂಜಾಬ್‌ನ ರಾಜಕೀಯ ವಾತಾವರಣವು ತುಂಬಾ ವಿಭಿನ್ನವಾಗಿತ್ತು. ರಾಜ್ಯವು ಸಾಕಷ್ಟು ಪ್ರಕ್ಷುಬ್ಧತೆಯನ್ನು ಕಂಡಿತ್ತು ಮತ್ತು 1997 ರಲ್ಲಿ ಚುನಾವಣೆಗಳು ನಡೆಯಲಿವೆ. ನಮ್ಮ ಪಕ್ಷಗಳು ಒಟ್ಟಾಗಿ ಜನರ ಬಳಿಗೆ ಹೋದವು ಮತ್ತು ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ನಮ್ಮ ನಾಯಕರಾಗಿದ್ದರು. ಅವರ ವಿಶ್ವಾಸಾರ್ಹತೆಯೇ ಜನರು ನಮಗೆ ಅದ್ಭುತ ಗೆಲುವಿನೊಂದಿಗೆ ಆಶೀರ್ವದಿಸಲು ಪ್ರಮುಖ ಕಾರಣವಾಗಿದೆ. ಅಷ್ಟೇ ಅಲ್ಲ, ನಮ್ಮ ಮೈತ್ರಿಯು ಚಂಡೀಗಢದ ಮುನ್ಸಿಪಲ್ ಚುನಾವಣೆ ಮತ್ತು ನಗರದ ಲೋಕಸಭಾ ಸ್ಥಾನವನ್ನೂ ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿ ಗೆದ್ದಿದೆ. ಅವರ ವ್ಯಕ್ತಿತ್ವ ಹೇಗಿತ್ತು ಎಂದರೆ ನಮ್ಮ ಮೈತ್ರಿ 1997ರಿಂದ 2017ರ ನಡುವೆ 15 ವರ್ಷಗಳ ಕಾಲ ರಾಜ್ಯಕ್ಕೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸಿತ್ತು!

ನಾನು ಎಂದಿಗೂ ಮರೆಯಲಾಗದ ಒಂದು ಉಪಾಖ್ಯಾನವಿದೆ. ಸಿಎಂ ಆಗಿ ಪ್ರಮಾಣ ವಚನ ಸ್ವೀಕರಿಸಿದ ನಂತರ, ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರು ಅಮೃತಸರಕ್ಕೆ ಒಟ್ಟಿಗೆ ಹೋಗುತ್ತೇವೆ, ಅಲ್ಲಿ ನಾವು ರಾತ್ರಿ ನಿಲ್ಲುತ್ತೇವೆ ಮತ್ತು ಮರುದಿನ ನಾವು ಪ್ರಾರ್ಥನೆ ಮತ್ತು ಲಂಗರ್ ತಿನ್ನುತ್ತೇವೆ ಎಂದು ಹೇಳಿದರು. ನಾನು ಗೆಸ್ಟ್ ಹೌಸ್‌ನಲ್ಲಿ ನನ್ನ ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿದ್ದೆ ಆದರೆ, ಅವನಿಗೆ ಈ ವಿಷಯ ತಿಳಿದಾಗ, ಅವನು ನನ್ನ ಕೋಣೆಗೆ ಬಂದು ನನ್ನ ಸಾಮಾನುಗಳನ್ನು ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಲು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಿದನು. ನಾನು ಯಾಕೆ ಹೀಗೆ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೀಯಾ ಎಂದು ಕೇಳಿದೆ, ಅದಕ್ಕೆ ನಾನು ಸಿಎಂಗೆ ಮೀಸಲಾದ ಕೋಣೆಗೆ ಅವರ ಜೊತೆ ಬರಬೇಕು ಮತ್ತು ಅಲ್ಲಿಯೇ ಇರುತ್ತೇನೆ ಎಂದು ಹೇಳಿದರು. ಇದನ್ನು ಮಾಡುವ ಅಗತ್ಯವಿಲ್ಲ ಎಂದು ನಾನು ಅವನಿಗೆ ಹೇಳುತ್ತಿದ್ದೆ ಆದರೆ ಅವನು ಒತ್ತಾಯಿಸಿದನು. ಅಂತಿಮವಾಗಿ, ಇದು ನಿಖರವಾಗಿ ಸಂಭವಿಸಿತು ಮತ್ತು ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಮತ್ತೊಂದು ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿ ಉಳಿದುಕೊಂಡರು. ನನ್ನಂತಹ ಅತ್ಯಂತ ಸಾಮಾನ್ಯ ಕಾರ್ಯಕರ್ತರ ಕಡೆಗೆ ಅವರ ಈ ಹಾವಭಾವವನ್ನು ನಾನು ಯಾವಾಗಲೂ ಗೌರವಿಸುತ್ತೇನೆ.

ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಗೌಶಾಲೆಗಳಲ್ಲಿ ವಿಶೇಷ ಆಸಕ್ತಿಯನ್ನು ಹೊಂದಿದ್ದರು ಮತ್ತು ವಿವಿಧ ಹಸುಗಳನ್ನು ಸಾಕುತ್ತಿದ್ದರು. ನಮ್ಮ ಸಭೆಯೊಂದರಲ್ಲಿ, ಅವರು ನನಗೆ ಗಿರ್‌ನಿಂದ ಹಸುಗಳನ್ನು ಸಾಕುವ ಆಸೆಯನ್ನು ಹೊಂದಿದ್ದರು ಎಂದು ಹೇಳಿದರು. ನಾನು ಅವನಿಗೆ 5 ಹಸುಗಳನ್ನು ವ್ಯವಸ್ಥೆ ಮಾಡಿದ್ದೇನೆ ಮತ್ತು ನಂತರ, ನಾವು ಭೇಟಿಯಾದಾಗ, ಅವರು ನನ್ನೊಂದಿಗೆ ಹಸುಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಮಾತನಾಡುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ಆ ಹಸುಗಳು ಎಲ್ಲ ರೀತಿಯಲ್ಲೂ ಗುಜರಾತಿಗಳು ಎಂದು ತಮಾಷೆ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದರು - ಅವರು ಎಂದಿಗೂ ಕೋಪಗೊಳ್ಳುವುದಿಲ್ಲ, ಕೋಪಗೊಳ್ಳುವುದಿಲ್ಲ ಅಥವಾ ಮಕ್ಕಳು ಆಟವಾಡುವಾಗ ಯಾರನ್ನೂ ಆಕ್ರಮಣ ಮಾಡುವುದಿಲ್ಲ. . ಗುಜರಾತಿಗಳು ತುಂಬಾ ಸೌಮ್ಯವಾಗಿರುವುದರಲ್ಲಿ ಆಶ್ಚರ್ಯವಿಲ್ಲ ಎಂದು ಅವರು ಟೀಕಿಸಿದರು ... ಎಲ್ಲಾ ನಂತರ ಅವರು ಗಿರ್ ಹಸುಗಳ ಹಾಲನ್ನು ಕುಡಿಯುತ್ತಾರೆ.

2001 ರ ನಂತರ, ನಾನು ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರೊಂದಿಗೆ ವಿಭಿನ್ನ ಸಾಮರ್ಥ್ಯದಲ್ಲಿ ಸಂವಹನ ನಡೆಸಿದೆ - ನಾವು ಈಗ ನಮ್ಮ ಆಯಾ ರಾಜ್ಯಗಳ ಮುಖ್ಯಮಂತ್ರಿಗಳಾಗಿದ್ದೇವೆ.

ನೀರಿನ ಸಂರಕ್ಷಣೆ, ಪಶುಸಂಗೋಪನೆ ಮತ್ತು ಹೈನುಗಾರಿಕೆ ಸೇರಿದಂತೆ ಕೃಷಿಗೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಹಲವಾರು ವಿಷಯಗಳಲ್ಲಿ ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರ ಮಾರ್ಗದರ್ಶನವನ್ನು ಸ್ವೀಕರಿಸಲು ನಾನು ಆಶೀರ್ವದಿಸಿದ್ದೇನೆ. ಅವರು ವಿದೇಶದಲ್ಲಿ ನೆಲೆಸಿರುವ ಅನೇಕ ಕಠಿಣ ಪರಿಶ್ರಮಿ ಪಂಜಾಬಿಗಳನ್ನು ಪರಿಗಣಿಸಿ, ಡಯಾಸ್ಪೊರಾ ಸಾಮರ್ಥ್ಯವನ್ನು ಟ್ಯಾಪ್ ಮಾಡುವಲ್ಲಿ ನಂಬಿಕೆ ಇಟ್ಟವರು.

ಒಮ್ಮೆ ಅವರು ನನಗೆ ಅಲಂಗ್ ಶಿಪ್‌ಯಾರ್ಡ್ ಏನೆಂದು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲು ಬಯಸುತ್ತಾರೆ ಎಂದು ಹೇಳಿದರು. ನಂತರ ಅವರು ಅಲ್ಲಿಗೆ ಬಂದು ಇಡೀ ದಿನ ಅಲಂಗ್ ಶಿಪ್‌ಯಾರ್ಡ್‌ನಲ್ಲಿ ಕಳೆದರು ಮತ್ತು ಮರುಬಳಕೆ ಹೇಗೆ ನಡೆಯುತ್ತದೆ ಎಂಬುದನ್ನು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಂಡರು. ಪಂಜಾಬ್ ಕರಾವಳಿಯ ರಾಜ್ಯವಲ್ಲ, ಒಂದು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ, ಅವರಿಗೆ ಶಿಪ್‌ಯಾರ್ಡ್‌ನ ನೇರ ಪ್ರಸ್ತುತತೆ ಇರಲಿಲ್ಲ ಆದರೆ ಹೊಸ ವಿಷಯಗಳನ್ನು ಕಲಿಯುವ ಅವರ ಬಯಕೆಯಿಂದಾಗಿ ಅವರು ಅಲ್ಲಿ ದಿನ ಕಳೆದರು ಮತ್ತು ಕ್ಷೇತ್ರದ ವಿವಿಧ ಅಂಶಗಳನ್ನು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಂಡರು.

2001 ರ ಭೂಕಂಪದ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಹಾನಿಗೊಳಗಾದ ಕಚ್‌ನಲ್ಲಿರುವ ಪವಿತ್ರ ಲಖ್‌ಪತ್ ಗುರುದ್ವಾರದ ದುರಸ್ತಿ ಮತ್ತು ಪುನಃಸ್ಥಾಪನೆಯ ಗುಜರಾತ್ ಸರ್ಕಾರದ ಪ್ರಯತ್ನಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅವರ ಮೆಚ್ಚುಗೆಯ ಮಾತುಗಳನ್ನು ನಾನು ಯಾವಾಗಲೂ ಗೌರವಿಸುತ್ತೇನೆ.

2014 ರಲ್ಲಿ ಕೇಂದ್ರದಲ್ಲಿ ಎನ್‌ಡಿಎ ಸರ್ಕಾರ ಅಧಿಕಾರಕ್ಕೆ ಬಂದ ನಂತರ, ಅವರು ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ತಮ್ಮ ಶ್ರೀಮಂತ ಸರ್ಕಾರಿ ಅನುಭವದ ಆಧಾರದ ಮೇಲೆ ಅಮೂಲ್ಯವಾದ ಒಳನೋಟಗಳನ್ನು ನೀಡಿದರು. ಅವರು ಐತಿಹಾಸಿಕ ಜಿಎಸ್ಟಿ ಸೇರಿದಂತೆ ಹಲವಾರು ಸುಧಾರಣೆಗಳನ್ನು ಬಲವಾಗಿ ಬೆಂಬಲಿಸಿದರು.
ನಮ್ಮ ಸಂವಾದದ ಕೆಲವು ಅಂಶಗಳನ್ನು ನಾನು ಹೈಲೈಟ್ ಮಾಡಿದ್ದೇನೆ. ದೊಡ್ಡ ಮಟ್ಟದಲ್ಲಿ, ನಮ್ಮ ರಾಷ್ಟ್ರಕ್ಕೆ ಅವರ ಕೊಡುಗೆ ಅವಿಸ್ಮರಣೀಯವಾಗಿದೆ. ತುರ್ತು ಪರಿಸ್ಥಿತಿಯ ಕರಾಳ ದಿನಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಜಾಪ್ರಭುತ್ವದ ಮರುಸ್ಥಾಪನೆಗಾಗಿ ಹೋರಾಡಿದ ವೀರ ಸೈನಿಕರಲ್ಲಿ ಒಬ್ಬರು. ಅವರ ಸರ್ಕಾರಗಳು ವಜಾಗೊಂಡಾಗ ಅವರೇ ಅಧಿಪತ್ಯದ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ಉನ್ನತಿ ಅನುಭವಿಸಿದರು. ಮತ್ತು, ಈ ಅನುಭವಗಳು ಪ್ರಜಾಪ್ರಭುತ್ವದಲ್ಲಿ ಅವರ ನಂಬಿಕೆಯನ್ನು ಬಲಗೊಳಿಸಿದವು.

ಪಂಜಾಬ್‌ನಲ್ಲಿ 1970 ಮತ್ತು 1980 ರ ಪ್ರಕ್ಷುಬ್ಧ ಅವಧಿಯಲ್ಲಿ ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಪಂಜಾಬ್ ಅನ್ನು ಮೊದಲ ಮತ್ತು ಭಾರತಕ್ಕೆ ಪ್ರಥಮ ಸ್ಥಾನವನ್ನು ನೀಡಿದರು. ಭಾರತವನ್ನು ದುರ್ಬಲಗೊಳಿಸುವ ಅಥವಾ ಪಂಜಾಬ್‌ನ ಜನರ ಹಿತಾಸಕ್ತಿಗಳನ್ನು ರಾಜಿ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳುವ ಯಾವುದೇ ಯೋಜನೆಯನ್ನು ಅವರು ದೃಢವಾಗಿ ವಿರೋಧಿಸಿದರು, ಅದು ಅಧಿಕಾರವನ್ನು ಕಳೆದುಕೊಂಡರೂ ಸಹ.

ಅವರು ಮಹಾನ್ ಗುರು ಸಾಹಿಬರ ಆದರ್ಶಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸಲು ಆಳವಾಗಿ ಬದ್ಧರಾಗಿರುವ ವ್ಯಕ್ತಿಯಾಗಿದ್ದರು. ಅವರು ಸಿಖ್ ಪರಂಪರೆಯನ್ನು ಸಂರಕ್ಷಿಸಲು ಮತ್ತು ಆಚರಿಸಲು ಗಮನಾರ್ಹ ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದರು. 1984ರ ಗಲಭೆ ಸಂತ್ರಸ್ತರಿಗೆ ನ್ಯಾಯ ದೊರಕಿಸಿಕೊಡುವಲ್ಲಿ ಅವರ ಪಾತ್ರವನ್ನು ಯಾರು ಮರೆಯಲು ಸಾಧ್ಯ?

ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಜನರನ್ನು ಒಗ್ಗೂಡಿಸಿದ ವ್ಯಕ್ತಿ. ಅವರು ಎಲ್ಲಾ ಸಿದ್ಧಾಂತಗಳ ನಾಯಕರೊಂದಿಗೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡಬಹುದು. ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ರಾಜಕೀಯ ಲಾಭ ಅಥವಾ ನಷ್ಟಗಳೊಂದಿಗೆ ಯಾವುದೇ ಸಂಬಂಧವನ್ನು ಎಂದಿಗೂ ಸಂಯೋಜಿಸಲಿಲ್ಲ. ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಐಕ್ಯತೆಯ ಮನೋಭಾವವನ್ನು ಹೆಚ್ಚಿಸಲು ಇದು ವಿಶೇಷವಾಗಿ ಉಪಯುಕ್ತವಾಗಿದೆ.

ಬಾದಲ್ ಸಾಹಬ್ ಅವರ ನಿಧನದಿಂದಾದ ಖಾಲಿತನವನ್ನು  ತುಂಬುವುದು ಕಷ್ಟ. ಇಲ್ಲಿ ಒಬ್ಬ ರಾಜನೀತಿಜ್ಞನಿದ್ದನು, ಅವರ ಜೀವನವು ಅನೇಕ ಸವಾಲುಗಳಿಗೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಿದೆ ಆದರೆ ಅವರು ಅವುಗಳನ್ನು ಜಯಿಸಿ ಫೀನಿಕ್ಸ್ನಂತೆ ಮೇಲೆದ್ದರು. ಅವರು ತಪ್ಪಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ ಆದರೆ ಅವರು ನಮ್ಮ ಹೃದಯದಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ಅವರು ದಶಕಗಳಿಂದ ಮಾಡಿದ ಮಹೋನ್ನತ ಕೆಲಸದ ಮೂಲಕ ಅವರು ಬದುಕುತ್ತಾರೆ.