प्रधानमंत्री ने भारत के महानतम सम्राटों में से एक राजेंद्र चोल-I के सम्मान में एक स्मारक सिक्का जारी किया
राजराजा चोल और राजेंद्र चोल भारत की पहचान और गौरव के प्रतीक हैं: प्रधानमंत्री
चोल साम्राज्य का इतिहास और विरासत हमारे महान राष्ट्र की ताकत और वास्तविक क्षमता को दर्शाती है: प्रधानमंत्री
चोल युग भारतीय इतिहास के स्वर्णिम काल में से एक था; यह काल अपनी दुर्जेय सैन्य शक्ति के लिए विख्यात है: प्रधानमंत्री
राजेंद्र चोल ने गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर की स्थापना की; आज भी इस मंदिर की एक वास्तुशिल्प आश्चर्य के रूप में विश्व भर में प्रशंसा होती है: प्रधानमंत्री
आज, हमारी सरकार काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के जरिए सांस्कृतिक एकता के चोळा-युगीन विचारों को आगे बढ़ा रही है: पीएम
नए संसद भवन के लोकार्पण के दौरान, जिसमें पवित्र सेंगोल स्थापित किया गया है, हमारे शिव आधीनम के संतों ने आध्यात्मिक रूप से आयोजन का नेतृत्व किया: पीएम
चोळा सम्राट शैव परंपरा के प्रमुख निर्माता थे जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया। आज भी, तमिलनाडु शैव परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बना हुआ है: पीएम
चोल काल में भारत ने जो आर्थिक और सैन्य ऊंचाइयां प्राप्त की, वे आज भी हमें प्रेरित करती हैं: प्रधानमंत्री
राजराजा चोल ने एक शक्तिशाली नौसेना बनाई जिसे राजेंद्र चोल ने और मजबूत किया: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में आदि तिरुवथिरई महोत्सव को संबोधित किया। सर्वशक्तिमान भगवान शिव को नमन करते हुए, श्री इलैयाराजा के संगीत और ओधुवरों के पवित्र मंत्रोच्चार के साथ, राजराज चोल की पावन भूमि में दिव्य शिव दर्शन के माध्यम से अनुभव की गई गहन आध्यात्मिक ऊर्जा का स्मरण करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि इस आध्यात्मिक वातावरण ने आत्मा को गहराई से प्रभावित किया है।

सावन के पवित्र महीने के महत्व और बृहदेश्वर शिव मंदिर के निर्माण के 1,000 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर का उल्लेख करते हुए, श्री मोदी ने इस असाधारण क्षण में भगवान बृहदेश्वर शिव के चरणों में उपस्थित होने और इस पूजनीय मंदिर में पूजा-अर्चना करने का सौभाग्य प्राप्त होने की बात कही। उन्होंने ऐतिहासिक बृहदेश्वर शिव मंदिर में 140 करोड़ भारतीयों के कल्याण और राष्ट्र की निरंतर प्रगति के लिए प्रार्थना की और भगवान शिव के पवित्र मंत्र का जाप करते हुए, भगवान शिव का आशीर्वाद सभी पर बरसने की कामना की।

श्री मोदी ने लोगों से आग्रह किया कि वे केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित मानव कल्याण और समृद्धि के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाए गए रोडमैप से जुड़े 1000 वर्षों के इतिहास पर आधारित प्रदर्शनी देखें। उन्होंने चिन्मय मिशन द्वारा आयोजित तमिल गीता एल्बम के विमोचन समारोह में भी भाग लिया और कहा कि यह पहल देश की विरासत को संरक्षित करने के संकल्प को ऊर्जा प्रदान करती है। उन्होंने इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि चोल शासकों ने श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंध बढ़ाए थे। उन्होंने इस संयोग का भी उल्लेख किया कि वे कल ही मालदीव से लौटे हैं और आज तमिलनाडु में इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं।

भगवान शिव का ध्यान करने वालों को उनकी तरह अमर बनाने वाले शास्त्रों का उल्लेख करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि शिव के प्रति अटूट भक्ति में निहित भारत की चोल विरासत अमर है। प्रधानमंत्री ने कहा, "राजराजा चोल और राजेंद्र चोल की विरासत भारत की पहचान और गौरव का पर्याय है।" उन्होंने कहा कि चोल साम्राज्य का इतिहास और विरासत भारत की वास्तविक क्षमता का प्रतीक है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह विरासत एक विकसित भारत के निर्माण की राष्ट्रीय आकांक्षा को प्रेरित करती है। उन्होंने राजेंद्र चोल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उनकी चिरस्थायी विरासत का आभार व्यक्त किया। हाल ही में मनाए गए आदि तिरुवथिरई महोत्सव का उल्लेख करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि आज का यह भव्य कार्यक्रम इसके समापन का प्रतीक है और उन्होंने इस आयोजन में योगदान देने वाले सभी लोगों को बधाई दी।

प्रधानमंत्री ने कहा, "इतिहासकार चोल काल को भारत के स्वर्णिम युगों में से एक मानते हैं, एक ऐसा युग जिसकी अपनी सैन्य शक्ति के लिए विशेष पहचान थी।" उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चोल साम्राज्य ने भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं को आगे बढ़ाया, जिनकी अक्सर वैश्विक आख्यानों में उपेक्षा की जाती है। उन्होंने कहा कि जहां इतिहासकार लोकतंत्र के संदर्भ में ब्रिटेन के मैग्ना कार्टा की बात करते हैं, वहीं चोल साम्राज्य ने कुदावोलाई अमाइप्पु तंत्र के माध्यम से सदियों पहले लोकतांत्रिक चुनाव पद्धतियों को लागू किया था। श्री मोदी ने बताया कि आज वैश्विक चर्चा अक्सर जल प्रबंधन और पारिस्थितिकी संरक्षण पर केंद्रित होती है और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत के पूर्वजों ने इन मुद्दों के महत्व को बहुत पहले ही समझ लिया था। उन्होंने कहा कि जहां कई राजाओं को दूसरे क्षेत्रों से सोना, चांदी या पशुधन प्राप्त करने के लिए याद किया जाता है, वहीं राजेंद्र चोल को पवित्र गंगा जल लाने के लिए जाना जाता है। प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि राजेंद्र चोल ने उत्तर भारत से गंगा जल लाकर दक्षिण में स्थापित किया। उन्होंने "गंगा जलमयं जयस्तंभम्" वाक्यांश का उल्लेख करते हुए बताया कि जल को चोल गंगा झील में प्रवाहित किया जाता था, जिसे अब पोन्नेरी झील के नाम से जाना जाता है।

राजेंद्र चोल द्वारा स्थापित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर, जो आज भी विश्व में वास्तुशिल्प के एक चमत्कार के रूप में जाना जाता है, उसका उल्‍लेख करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि मां कावेरी की भूमि पर गंगा का उत्सव भी चोल साम्राज्य की विरासत है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में, काशी से एक बार फिर गंगा जल तमिलनाडु लाया गया है, और बताया कि इस स्थल पर एक औपचारिक अनुष्ठान भी किया गया। काशी के निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में, प्रधानमंत्री ने मां गंगा के साथ अपने गहरे भावनात्मक जुड़ाव को साझा किया। उन्होंने कहा कि चोल राजाओं से जुड़े प्रयास और कार्यक्रम एक पवित्र प्रयास—“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के प्रतीक है जो इस पहल को एक नई और ऊर्जावान गति प्रदान करते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा, "चोल शासकों ने भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोया था। आज हमारी सरकार चोल युग के उन्हीं आदर्शों को आगे बढ़ा रही है।" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि काशी तमिल संगमम और सौराष्ट्र तमिल संगमम जैसे कार्यक्रम सदियों पुराने एकता के बंधन को और मज़बूत कर रहे हैं। श्री मोदी ने आगे कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तमिलनाडु में गंगईकोंडा चोलपुरम जैसे प्राचीन मंदिरों का संरक्षण कर रहा है। नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर शिव अधीनम के संतों द्वारा आध्यात्मिक मार्गदर्शन के साथ आयोजित समारोह को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिल परंपरा से जुड़े पवित्र सेंगोल को संसद भवन में औपचारिक रूप से स्थापित किया गया है। यह एक ऐसा क्षण है जिसे वह आज भी अत्यंत गर्व के साथ याद करते हैं।

चिदंबरम नटराज मंदिर के दीक्षितों के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए, श्री मोदी ने बताया कि उन्होंने उन्हें उस दिव्य मंदिर से पवित्र प्रसाद भेंट किया। इस मंदिर में भगवान शिव की नटराज रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि नटराज का यह रूप भारत के दर्शन और वैज्ञानिक आधार का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने आगे बताया कि भगवान नटराज की ऐसी ही एक आनंद तांडव मूर्ति दिल्ली के भारत मंडपम में भी सुशोभित है। यहां 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक नेता एकत्रित हुए थे।

प्रधानमंत्री ने श्रद्धेय नयनमार संतों की विरासत, उनके भक्ति साहित्य, तमिल साहित्यिक योगदान और अधीनमों के आध्यात्मिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा- "भारत की शैव परंपरा ने राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चोल सम्राट इस सांस्कृतिक विकास के प्रमुख निर्माता थे और तमिलनाडु जीवंत शैव विरासत का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है"। उन्होंने कहा कि इन तत्वों ने सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में एक नए युग का सूत्रपात किया।

यह देखते हुए कि आज विश्व अस्थिरता, हिंसा और पर्यावरणीय संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, श्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि शैव दर्शन सार्थक समाधानों के मार्ग बताता है। उन्होंने तिरुमूलर की शिक्षाओं का उल्लेख किया, जिन्होंने 'अनबे शिवम', जिसका अर्थ है "प्रेम ही शिव है" लिखा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि विश्व इस विचार को अपना ले, तो कई संकट अपने आप हल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत 'एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य' के आदर्श वाक्य के माध्यम से इस दर्शन को आगे बढ़ा रहा है।

श्री मोदी ने कहा, "आज भारत 'विकास भी, विरासत भी' के मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है और आधुनिक भारत अपने इतिहास पर गर्व करता है।" उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में राष्ट्र ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए मिशन मोड में काम किया है। उन्होंने बताया कि प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां, जिन्हें चुराकर विदेशों में बेच दिया गया था, उन्हें वापस भारत लाया गया है। प्रधानमंत्री ने बताया कि 2014 से अब तक विश्व के विभिन्न देशों से 600 से अधिक प्राचीन कलाकृतियां वापस लाई गई हैं जिनमें से 36 कलाकृतियां विशेष रूप से तमिलनाडु की हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि नटराज, लिंगोद्भव, दक्षिणामूर्ति, अर्धनारीश्वर, नंदीकेश्वर, उमा परमेश्वरी, पार्वती और संबंदर सहित कई बहुमूल्य विरासत वस्तुएं एक बार फिर इस भूमि की शोभा बढ़ा रही हैं।

इस बात पर जोर देते हुए कि भारत की विरासत और शैव दर्शन का प्रभाव अब इसकी भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, श्री मोदी ने याद दिलाया कि जब भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना था, तो निर्दिष्ट चंद्र स्थल का नाम "शिव-शक्ति" रखा गया था और इसे पूरे विश्व ने स्वीकार किया।

प्रधानमंत्री ने कहा, "चोल काल में प्राप्त आर्थिक और सामरिक प्रगति आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है; राजराजा चोल ने एक शक्तिशाली नौसेना की स्थापना की, जिसे राजेंद्र चोल ने और मजबूत किया।" उन्होंने कहा कि चोल काल स्थानीय शासन प्रणालियों के सशक्तीकरण और एक मजबूत राजस्व ढांचे के कार्यान्वयन सहित प्रमुख प्रशासनिक सुधारों का साक्षी बना। उन्होंने कहा कि भारत ने वाणिज्यिक उन्नति, समुद्री मार्गों के उपयोग और कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के माध्यम से सभी दिशाओं में तेजी से प्रगति की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चोल साम्राज्य नए भारत के निर्माण के लिए एक प्राचीन रोडमैप के रूप में कार्य कर रहा है। श्री मोदी ने आगे कहा कि एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए, भारत को एकता को प्राथमिकता देनी चाहिए, अपनी नौसेना और रक्षा बलों को मजबूत करना चाहिए, नए अवसर तलाश करने चाहिए और अपने मूल मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि देश इसी दृष्टि से प्रेरित होकर आगे बढ़ रहा है।

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि आज का भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है, प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्व ने इसे अपनी संप्रभुता के विरुद्ध किसी भी खतरे का भारत द्वारा दृढ़ और निर्णायक जवाब के रूप में देखा है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस ऑपरेशन ने एक स्पष्ट संदेश दिया है—आतंकवादियों और देश के दुश्मनों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के लोगों में एक नया आत्मविश्वास उत्पन्न किया है और पूरा विश्व इसे देख रहा है। इसके बाद श्री मोदी ने राजेंद्र चोल की विरासत और गंगईकोंडा चोलपुरम के निर्माण की एक विचारशील तुलना की। गहरे सम्मान के कारण, इस मंदिर का गोपुरम उनके पिता के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर के गोपुरम से भी नीचा बनाया गया था। अपनी उपलब्धियों के बावजूद, राजेंद्र चोल ने विनम्रता का उदाहरण प्रस्‍तुत किया। प्रधानमंत्री ने कहा, "आज का नया भारत इसी भावना का प्रतीक है—और मज़बूत होते हुए भी वैश्विक कल्याण और एकता के मूल्यों में निहित है।"

भारत की विरासत पर गर्व की भावना को बढ़ावा देने के अपने संकल्प की पुष्टि करते हुए, श्री मोदी ने घोषणा की कि आने वाले समय में तमिलनाडु में राजराजा चोल और उनके पुत्र, प्रख्यात शासक राजेंद्र चोल-I की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। उन्होंने कहा कि ये प्रतिमाएं भारत की ऐतिहासिक चेतना के आधुनिक स्तंभ के रूप में कार्य करेंगी। यह उल्लेख करते हुए कि आज भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक विकसित भारत का नेतृत्व करने के लिए देश को डॉ. कलाम और चोल राजाओं जैसे लाखों युवाओं की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए समापन किया कि ऐसे युवा - जो शक्ति और समर्पण से परिपूर्ण हों - 140 करोड़ भारतीयों के सपनों को साकार करेंगे। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर एक भारत, श्रेष्ठ भारत के संकल्प को आगे बढ़ाएंगे और उन्होंने इस अवसर पर राष्ट्र को शुभकामनाएं दी।

इस कार्यक्रम में पूज्य संतगण, तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर. एन. रवि, केंद्रीय मंत्री डॉ. एल. मुरुगन तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री ने गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान आदि तिरुवथिरई महोत्सव मनाते हुए भारत के महानतम सम्राटों में से एक राजेंद्र चोल-I के सम्मान में एक स्मारक सिक्का जारी किया।

यह विशेष उत्सव राजेंद्र चोल-I के दक्षिण पूर्व एशिया के पौराणिक समुद्री अभियान के 1,000 वर्ष पूरे होने तथा चोल वास्तुकला के एक शानदार उदाहरण, प्रतिष्ठित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण की शुरुआत का भी स्मरण कराता है।

राजेंद्र चोल-I (1014-1044 ई.) भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी शासकों में से एक थे। उनके नेतृत्व में, चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाया। अपने विजयी अभियानों के बाद, उन्होंने गंगईकोंडा चोलपुरम को अपनी राजधानी बनाई और वहाँ उनके द्वारा निर्मित मंदिर 250 वर्षों से भी अधिक समय तक शैव भक्ति, स्मारकीय वास्तुकला और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक रहा। आज, यह मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और अपनी जटिल मूर्तियों, चोल कांस्य प्रतिमाओं और प्राचीन शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है।

आदि तिरुवथिरई उत्सव समृद्ध तमिल शैव भक्ति परंपरा का भी उत्सव मनाता है, जिसका चोलों ने उत्साहपूर्वक समर्थन किया और तमिल शैव धर्म के 63 संत-कवियों - नयनमारों - ने इसे अमर कर दिया। उल्‍लेखनीय है कि राजेंद्र चोल का जन्म नक्षत्र, तिरुवथिरई (आर्द्रा), 23 जुलाई से शुरू हो रहा है, जिससे इस वर्ष का महोत्सव और भी महत्वपूर्ण हो गया है।

 

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भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है: रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान पीएम मोदी
December 05, 2025

Your Excellency, My Friend, राष्ट्रपति पुतिन,
दोनों देशों के delegates,
मीडिया के साथियों,
नमस्कार!
"दोबरी देन"!

आज भारत और रूस के तेईसवें शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। उनकी यात्रा ऐसे समय हो रही है जब हमारे द्विपक्षीय संबंध कई ऐतिहासिक milestones के दौर से गुजर रहे हैं। ठीक 25 वर्ष पहले राष्ट्रपति पुतिन ने हमारी Strategic Partnership की नींव रखी थी। 15 वर्ष पहले 2010 में हमारी साझेदारी को "Special and Privileged Strategic Partnership” का दर्जा मिला।

पिछले ढाई दशक से उन्होंने अपने नेतृत्व और दूरदृष्टि से इन संबंधों को निरंतर सींचा है। हर परिस्थिति में उनके नेतृत्व ने आपसी संबंधों को नई ऊंचाई दी है। भारत के प्रति इस गहरी मित्रता और अटूट प्रतिबद्धता के लिए मैं राष्ट्रपति पुतिन का, मेरे मित्र का, हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

Friends,

पिछले आठ दशकों में विश्व में अनेक उतार चढ़ाव आए हैं। मानवता को अनेक चुनौतियों और संकटों से गुज़रना पड़ा है। और इन सबके बीच भी भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है।परस्पर सम्मान और गहरे विश्वास पर टिके ये संबंध समय की हर कसौटी पर हमेशा खरे उतरे हैं। आज हमने इस नींव को और मजबूत करने के लिए सहयोग के सभी पहलुओं पर चर्चा की। आर्थिक सहयोग को नई ऊँचाइयों पर ले जाना हमारी साझा प्राथमिकता है। इसे साकार करने के लिए आज हमने 2030 तक के लिए एक Economic Cooperation प्रोग्राम पर सहमति बनाई है। इससे हमारा व्यापार और निवेश diversified, balanced, और sustainable बनेगा, और सहयोग के क्षेत्रों में नए आयाम भी जुड़ेंगे।

आज राष्ट्रपति पुतिन और मुझे India–Russia Business Forum में शामिल होने का अवसर मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि ये मंच हमारे business संबंधों को नई ताकत देगा। इससे export, co-production और co-innovation के नए दरवाजे भी खुलेंगे।

दोनों पक्ष यूरेशियन इकॉनॉमिक यूनियन के साथ FTA के शीघ्र समापन के लिए प्रयास कर रहे हैं। कृषि और Fertilisers के क्षेत्र में हमारा करीबी सहयोग,food सिक्युरिटी और किसान कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। मुझे खुशी है कि इसे आगे बढ़ाते हुए अब दोनों पक्ष साथ मिलकर यूरिया उत्पादन के प्रयास कर रहे हैं।

Friends,

दोनों देशों के बीच connectivity बढ़ाना हमारी मुख्य प्राथमिकता है। हम INSTC, Northern Sea Route, चेन्नई - व्लादिवोस्टोक Corridors पर नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे। मुजे खुशी है कि अब हम भारत के seafarersकी polar waters में ट्रेनिंग के लिए सहयोग करेंगे। यह आर्कटिक में हमारे सहयोग को नई ताकत तो देगा ही, साथ ही इससे भारत के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर बनेंगे।

उसी प्रकार से Shipbuilding में हमारा गहरा सहयोग Make in India को सशक्त बनाने का सामर्थ्य रखता है। यह हमारेwin-win सहयोग का एक और उत्तम उदाहरण है, जिससे jobs, skills और regional connectivity – सभी को बल मिलेगा।

ऊर्जा सुरक्षा भारत–रूस साझेदारी का मजबूत और महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। Civil Nuclear Energy के क्षेत्र में हमारा दशकों पुराना सहयोग, Clean Energy की हमारी साझा प्राथमिकताओं को सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण रहा है। हम इस win-win सहयोग को जारी रखेंगे।

Critical Minerals में हमारा सहयोग पूरे विश्व में secure और diversified supply chains सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इससे clean energy, high-tech manufacturing और new age industries में हमारी साझेदारी को ठोस समर्थन मिलेगा।

Friends,

भारत और रूस के संबंधों में हमारे सांस्कृतिक सहयोग और people-to-people ties का विशेष महत्व रहा है। दशकों से दोनों देशों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति स्नेह, सम्मान, और आत्मीयताका भाव रहा है। इन संबंधों को और मजबूत करने के लिए हमने कई नए कदम उठाए हैं।

हाल ही में रूस में भारत के दो नए Consulates खोले गए हैं। इससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क और सुगम होगा, और आपसी नज़दीकियाँ बढ़ेंगी। इस वर्ष अक्टूबर में लाखों श्रद्धालुओं को "काल्मिकिया” में International Buddhist Forum मे भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों का आशीर्वाद मिला।

मुझे खुशी है कि शीघ्र ही हम रूसी नागरिकों के लिए निशुल्क 30 day e-tourist visa और 30-day Group Tourist Visa की शुरुआत करने जा रहे हैं।

Manpower Mobility हमारे लोगों को जोड़ने के साथ-साथ दोनों देशों के लिए नई ताकत और नए अवसर create करेगी। मुझे खुशी है इसे बढ़ावा देने के लिए आज दो समझौतेकिए गए हैं। हम मिलकर vocational education, skilling और training पर भी काम करेंगे। हम दोनों देशों के students, scholars और खिलाड़ियों का आदान-प्रदान भी बढ़ाएंगे।

Friends,

आज हमने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। यूक्रेन के संबंध में भारत ने शुरुआत से शांति का पक्ष रखा है। हम इस विषय के शांतिपूर्ण और स्थाई समाधान के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों का स्वागत करते हैं। भारत सदैव अपना योगदान देने के लिए तैयार रहा है और आगे भी रहेगा।

आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत और रूस ने लंबे समय से कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया है। पहलगाम में हुआ आतंकी हमला हो या क्रोकस City Hall पर किया गया कायरतापूर्ण आघात — इन सभी घटनाओं की जड़ एक ही है। भारत का अटल विश्वास है कि आतंकवाद मानवता के मूल्यों पर सीधा प्रहार है और इसके विरुद्ध वैश्विक एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है।

भारत और रूस के बीच UN, G20, BRICS, SCO तथा अन्य मंचों पर करीबी सहयोग रहा है। करीबी तालमेल के साथ आगे बढ़ते हुए, हम इन सभी मंचों पर अपना संवाद और सहयोग जारी रखेंगे।

Excellency,

मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हमारी मित्रता हमें global challenges का सामना करने की शक्ति देगी — और यही भरोसा हमारे साझा भविष्य को और समृद्ध करेगा।

मैं एक बार फिर आपको और आपके पूरे delegation को भारत यात्रा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ।