Knowledge is immortal and is relevant in every era: PM Modi

Published By : Admin | May 14, 2016 | 13:13 IST
QuoteAt Simhasth Kumbh convention, we are seeing birth of a new effort: PM
QuoteWe belong to a tradition where even a Bhikshuk says, may good happen to every person: PM
QuoteWe should tell the entire world about the organising capacity of an event like the Kumbh: PM
QuoteLets hold Vichar Kumbh every year with devotees...discuss why we need to plant trees, educate girl child: PM

हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, एक समाज के नाते कि हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं। हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है। आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है लेकिन उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई कि हमारी इस महान परंपरा, ये हजारों साल पुरानी संस्कृति, इसके कई पहलू, वो परंपराए किस सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई, किस काल के गर्भ में पैदा हुई, किस विचार मंथन में से बीजारोपण हुआ, वो करीब-करीब अलब्य है और उसके कारण ये कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है।

कोई कहेगा हजार साल पहले, कोई कहेगा 2 हजार साल पहले लेकिन इतना निश्चित है कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। मैं अपने तरीक से जब सोचता हूं तो मुझे लगता है कि कुंभ का मेला, वैसे 12 साल में एक बार होता है और नासिक हो, उज्जैन हो, हरिद्वार हो वहां 3 साल में एक बार होता है प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है। उस कालखंड को हम देखें तो मुझे लगता है कि एक प्रकार से ये विशाल भारत को अपने में समेटने का ये प्रयास ये कुंभ मेले के द्वारा होता था। मैं तर्क से और अनुमान से कह सकता हूं कि समाज वेदता, संत-महंत, ऋषि, मुनि जो हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे। समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे, Innovation करते थे। इन्हें वे हमारे ऋषि जहां भी थे वे बाह्य जगत का भी रिसर्च करते थे और अंतर यात्रा को भी खोजने का प्रयास करते थे तो ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही, सदियों तक चलती रही, हर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही लेकिन संस्कार संक्रमण का काम विचारों के संकलन का काम कालानुरूप विचारों को तराजू पर तौलने की परंपरा ये सारी बातें इस युग की परंपरा में समहित थी, समाहित थी।

एक बार प्रयागराज के कुंभ मेले में बैठते थे, एक Final decision लिया जाता था सबके द्वारा मिलकर के कि पिछले 12 साल में समाज यहां-यहां गया, यहां पहुंचा। अब अगले 12 साल के लिए समाज के लिए दिशा क्या होगी, समाज की कार्यशैली क्या होगी किन चीजों की प्राथमिकता होगी और जब कुंभ से जाते थे तो लोग उस एजेंडा को लेकर के अपने-अपने स्थान पर पहुंचते थे और हर तीन साल के बाद जबकि कभी नासिक में, कभी उज्जैन में, कभी हरिद्वार में कुंभ का मेला लगता था तो उसका mid-term appraisal होता था कि भई प्रयागराज में जो निर्णय हम करके गए थे तीन साल में क्या अनुभव आया और हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते थे।

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30 दिन तक एक ही स्थान पर रहकर के समाज की गतिविधियों, समाज की आवश्यकताएं, बदलता हुआ युग, उसका चिंतन-मनन करके उसमें फिर एक बार 3 साल का करणीय एजेंडा तय होता था। In the light of main Mahakumbh प्रयागराज में होता था और फिर 3 साल के बाद दूसरा जब कुंभ लगता था तो फिर से Review होता था। एक अद्भुत सामाजिक रचना थी ये लेकिन धीरे-धीरे अनुभव ये आता है कि परंपरा तो रह जाती है, प्राण खो जाता है। हमारे यहां भी अनुभव ये आया कि परंपरा तो रह गई लेकिन समय का अभाव है, 30 दिन कौन रहेगा, 45 दिन कौन रहेगा। आओ भाई 15 मिनट जरा डुबकी लगा दें, पाप धुल जाए, पुण्य कमा ले और चले जाए।

ऐसे जैसे बदलाव आय उसमें से उज्जैन के इस कुंभ में संतों के आशीर्वाद से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ है और ये नया प्रयास एक प्रकार से उस सदियों पुरानी व्यवस्था का ही एक Modern edition है और जिसमें वर्तमान समझ में, वैश्विक संदर्भ में मानव जाति के लिए क्या चुनौतियां हैं, मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। बदलते हुए युग में काल बाह्य चीजों को छोड़ने की हिम्मत कैसे आए, पुरानी चीजों को बोझ लेकर के चलकर के आदमी थक जाता है। उन पुरानी काल बाह्य चीजों को छोड़कर के एक नए विश्वास, नई ताजगी के साथ कैसे आगे बढ़ जाए, उसका एक छोटा सा प्रयास इस विचार महाकुंभ के अंदर हुआ है।

जो 51 बिंदु, अमृत बिंदु इसमें से फलित हुए हैं क्योंकि ये एक दिन का समारोह नहीं है। जैसे शिवराज जी ने बताया। देश औऱ दुनिया के इस विषय के जानकार लोगों ने 2 साल मंथन किया है, सालभर विचार-विमर्श किया है और पिछले 3 दिन से इसी पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, संतों की परंपरा को निभाने वाले महान संतों के सानिध्य में इसका चिंतन-मनन हुआ है और उसमें से ये 51 अमृत बिंदु समाज के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। मैं नहीं मानता हूं कि हम राजनेताओं के लिए इस बात को लोगों के गले उतारना हमारे बस की बात है। हम नहीं मानते हैं लेकिन हम इतना जरूर मानते हैं कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग चाहे वो गेरुए वस्त्र में हो या न हो लेकिन त्याग और तपस्था के अधिष्ठान पर जीवन जीते हैं। चाहे एक वैज्ञानिक अपनी laboratory में खपा हुआ हो, चाहे एक किसान अपने खेत में खपा हुआ हो, चाहे एक मजदूर अपना पसीना बहा रहा हे, चाहे एक संत समाज का मार्गदर्शन करता हो ये सारी शक्तियां, एक दिशा में चल पड़ सकती हैं तो कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं और उस दिशा में ये 51 अमृत बिंदु जो है आने वाले दिनों में भारत के जनमानस को और वैश्विक जनसमूह को भारत किस प्रकार से सोच सकता है और राजनीतिक मंच पर से किस प्रकार के विचार प्रभाग समयानुकूल हो सकते हैं इसकी चर्चा अगर आने वाले दिनों में चलेगी, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयास सार्थक होगा।

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हम वो लोग हैं, जहां हमारी छोटी-छोटी चीज बड़ी समझने जैसी है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं। जहां एक भिक्षुक भी भिक्षा मांगने के लिए जाता है, तो भी उसके मिहिल मुंह से निकलता है ‘जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला’। ये छोटी बात नहीं है। ये एक वो संस्कार परम्परा का परिणाम है कि एक भिक्षुक मुंह से भी शब्द निकलता है ‘देगा उसका भी भला जो नहीं देगा उसका भी भला’। यानी मूल चिंतन तत्वभाव यह है कि सबका भला हो सबका कल्याण हो। ये हर प्रकार से हमारी रगों में भरा पड़ा है। हमी तो लोग हैं जिनको सिखाया गया है। तेन तत्तेन भूंजीथा। क्या तर के ही भोगेगा ये अप्रतीम आनन्द होता है। ये हमारी रगों में भरा पड़ा है। जो हमारी रगों में है, वो क्या हमारे जीवन आचरण से अछूता तो नहीं हो रहा है। इतनी महान परम्परा को कहीं हम खो तो नहीं दे रहे हैं। लेकिन कभी उसको जगजोड़ा किया जाए कि अनुभव आता है कि नहीं आज भी ये सामर्थ हमारे देश में पड़ा है।

किसी समय इस देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को आहवान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए। देश को अन्न की जरूरत है। और इस देश के कोटी-कोटी लोगों ने तेन त्यक्तेन भुंजीथा इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके, करके दिखाया था। और कुछ पीढ़ी तो लोग अभी भी जिन्दा हैं। जो लालबहादुर शास्त्री ने कहा था। सप्ताह में एक दिन खाना नहीं खाते हैं। ऐसे लोग आज भी हैं। तेन त्यक्तेन भुंजीथा का मंत्र हमारी रगों में पला है। पिछले दिनों में ऐसे ही बातों-बातों में मैंने पिछले मार्च महीने में देश के लोगों के सामने एक विषय रखा था। ऐसे ही रखा था। रखते समय मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे देश के जनसामान्य का मन इतनी ऊंचाइयों से भरा पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि हम उन ऊंचाईयों को पहुंचने में कम पड़ जाते हैं। मैंने इतना ही कहा था। अगर आप सम्पन्न हैं, आप समर्थ हैं, तो आप रसोई गैस की सब्सिडी क्या जरूरत है छोड़ दीजिये न। हजार-पंद्रह सौ रुपये में क्या रखा है। इतना ही मैंने कहा था। और आज मैं मेरे देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं। एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। तेन त्यक्तेन भुंजीथा । और उसका परिणाम क्या है। परिणाम शासन व्यवस्था पर भी सीधा होता है। हमारे मन में विचार आया कि एक करोड़ परिवार गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ रहे हैं तो इसका हक़ सरकार की तिजोरी में भरने के लिये नहीं बनता है।

ये फिर से गरीब के घर में जाना चाहिए। जो मां लकड़ी का चूल्हा जला कर के एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है। उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर दे कर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे।

यहाँ एक चर्चा में पर्यावरण का मुद्दा है। मैं समझता हूं पांच करोड़ परिवारों में लकड़ी का चूल्हा न जलना ये जंगलों को भी बचाएगा, ये कार्बन को भी कम करेगा और हमारी माताओं को गरीब माताओं के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाएगा। यहां पर नारी की एम्पावरमेंट की बात हुई नारी की dignity की बात हुई है। ये गैस का चूल्हा उसकी dignity को कायम करता है। उसकी स्वास्थ्य की चिंता करता है और इस लिए मैं कहता हूं - तेन त्यक्तेन भुंजीथा । इस मंत्र में अगर हम भरोसा करें। सामान्य मानव को हम इसका विश्वास दिला दें तो हम किस प्रकार का परिवर्तन प्राप्त कर सकते हैं। ये अनुभव कर रहे हैं।

हमारा देश, मैं नहीं मानता हूं हमारे शास्त्रों में ऐसी कोई चीज है, जिसके कारण हम भटक जाएं। ये हमलोग हैं कि हमारी मतलब की चीजें उठाते रहते हैं और पूर्ण रूप से चीजों को देखने का स्वभाव छोड़ दिया है। हमारे यहां कहा गया है – नर करनी करे तो नारायण हो जाए - और ये हमारे ऋषियों ने मुनियों ने कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर भक्ति करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर कथा करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा। संतों ने भी कहा हैः नर करनी करे तो नारायण हो जाए और इसीलिए ये 51 अमृत बिन्दु हमारे सामने है। उसका एक संदेश यही है कि नर करनी करे तो नारायण हो जाए। और इसलिए हम करनी से बाध्य होने चाहिए और तभी तो अर्जुन को भी यही तो कहा था योगः कर्मसु कौशलम्। यही हमारा योग है, जिसमें कर्म की महानता को स्वीकार किया गया है और इसलिए इस पवित्र कार्य के अवसर पर हम उस विचार प्रवाह को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर सकते हैं क्या तमसो मा ज्योतिरगमय। ये विचार छोटा नहीं है। और प्रकाश कौनसा वो कौनसी ज्योति ये ज्योति ज्ञान की है, ज्योति प्रकाश की है। और हमी तो लोग हैं जो कहते हैं कि ज्ञान को न पूरब होता है न पश्चिम होता है। ज्ञान को न बीती हुई कल होती है, ज्ञान को न आने वाली कल होती है। ज्ञान अजरा अमर होता है और हर काल में उपकारक होता है। ये हमारी परम्परा रही है और इसलिए विश्व में जो भी श्रेष्ठ है इसको लेना, पाना, पचाना internalize करना ये हमलोगों को सदियों से आदत रही है।

हम एक ऐसे समाज के लोग हैं। जहां विविधताएं भी हैं और कभी-कभी बाहर वाले व्यक्ति को conflict भी नजर आता है। लेकिन दुनिया जो conflict management को लेकर के इतनी सैमिनार कर रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे। हमलोग हैं inherent conflict management का हमें सिखाया गया है। वरना दो extreme हम कभी भी नहीं सोच सकते थे। हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और हम वो लोग हैं, जो प्रहलाद की भी पूजा करते हैं, जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की थी। इतना बड़ा conflict, एक वो महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा को माना वो भी हमारे पूजनीय और एक दूसरा महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा क का अनादर किया वो भी हमारा महापुरुष।

हम वो लोग हैं जिन्होंने माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर के इच्छा के अनुसार अपना जीवन दे दिया। और उसी प्रकार से हम उस मीरा की भी भक्ति करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी थी। यानी हम किस प्रकार के conflict management को जानने वाले लोग हैं। ये हमारी स्थिति का कारण क्या है और कारण ये है कि हम हठबाधिता से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम दर्शन के जुड़े हुए लोग हैं। और दर्शन, दर्शन तपी तपाई विचारों की प्रक्रिया और जीवन शैली में से निचोड़ के रूप में निकलता रहता है। जो समयानुकूल उसका विस्तार होता जाता है। उसका एक व्यापक रूप समय में आता है। और इसलिए हम उस दर्शन की परम्पराओं से निकले हुए लोग हैं जो दर्शन आज भी हमें इस जीवन को जीने के लिए प्रेरणा देता है।

यहां पर विचार मंथन में एक विषय यह भी रहा – Values, Values कैसे बदलते हैं। आज दुनिया में अगर आप में से किसी को अध्ययन करने का स्वभाव हो तो अध्ययन करके देखिये। दुनिया के समृद्ध-समृद्ध देश जब वो चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो वहां के राजनीतिक दल, वहां के राजनेता उनके चुनाव में एक बात बार-बार उल्लेख करते हैं। और वो कहते हैं – हम हमारे देश में families values को पुनःप्रस्थापित करेंगे। पूरा विश्व, परिवार संस्था, पारिवारिक जीवन के मूल्य उसका महत्व बहुत अच्छी तरह समझने लगा है। हम उसमें पले बड़े हैं। इसलिये कभी उसमें छोटी सी भी इधर-उधर हो जाता है तो पता नहीं चलता है कि कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि values और values यानी वो विषय नहीं है कि आपकी मान्यता और मेरी मान्यता। जो समय की कसौटी पर कस कर के खरे उतरे हैं, वही तो वैल्यूज़ होते हैं। और इसलिए हर समाज के अपने वैल्यूज़ होते हैं। उन values के प्रति हम जागरूक कैसे हों। इन दिनों मैं देखता हूं। अज्ञान के कारण कहो, या तो inferiority complex के कारण कहो, जब कोई बड़ा संकट आ जाता है, बड़ा विवाद आ जाता है तो हम ज्यादा से ज्यादा ये कह कर भाग जाते हैं कि ये तो हमारी परम्परा है। आज दुनिया इस प्रकार की बातों को मानने के लिए नहीं है।

हमने वैज्ञानिक आधार पर अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना पड़ेगा। और इसलिये यही तो कुम्भ के काल में ये विचार-विमर्श आवश्यकता है, जो हमारे मूल्यों की, हमारे विचारों की धार निकाल सके।

हम जानते हैं कभी-कभी जिनके मुंह से परम्परा की बात सुनते हैं। यही देश ये मान्यता से ग्रस्त था कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने संतों ने समुद्र पार नहीं करना चाहिए। विदेश नहीं जाना चाहिए। ये हमलोग मानते थे। और एक समय था, जब समुद्र पार करना बुरा माना जाता था। वो भी एक परम्परा थी लेकिन काल बदल गया। वही संत अगर आज विश्व भ्रमण करते हैं, सातों समुद्र पार करके जाते हैं। परम्पराएं उनके लिए कोई रुकावट नहीं बनती हैं, तो और चीजों में परम्पराएं क्यों रुकावट बननी चाहिए। ये पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए परम्पराओं के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से बदले हुए युग को, बदले हुए समाज को मूल्य के स्थान पर जीवित रखते हुए उसको मोड़ना, बदलना दिशा देना ये हम सबका कर्तव्य बनता है, हम सबका दायित्व बनता है। और उस दायित्व को अगर हम निभाते हैं तो मुझे विश्वास है कि हम समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

आज विश्व दो संकटों से गुजर रहा है। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग दूसरी तरफ आतंकवाद। क्या उपाय है इसका। आखिर इसके मूल पर कौन सी चीजें पड़ी हैं। holier than thou तेरे रास्ते से मेरा रास्ता ज्यादा सही है। यही तो भाव है जो conflict की ओर हमें घसीटता ले चला जा रहा है। विस्तारवाद यही तो है जो हमें conflict की ओर ले जा रहा है। युग बदल चुका है। विस्तारवाद समस्याओं का समाधान नहीं है। हम हॉरीजॉन्टल की तरह ही जाएं समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्टिकल जाने की आवश्यकता है अपने भीतर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है, व्यवस्थाओं को आधुनिक करने की आवश्यकता है। नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए उन मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है और इसलिये समय रहते हुए मूलभूत चिंतन के प्रकाश में, समय के संदर्भ में आवश्यकताओं की उपज के रूप में नई विधाओं को जन्म देना होगा। वेद सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी हमी लोग हैं जिन्होंने वेद के प्रकाश में उपनिषदों का निर्माण किया। उपनिषद में बहुत कुछ है। लेकिन समय रहते हमने भी वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में समृति और स्रुति को जन्म दिया और समृति और स्रुतियां, जो उस कालखंड को दिशा देती है, उसके आधार पर हम चलें। आज हम में किसी को वेद के नाम भी मालूम नहीं होंगे। लेकिन वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में श्रुति और समृति वो आज भी हमें दिशा देती हैं। समय की मांग है कि अगर 21वीं सदी में मानव जाति का कल्याण करना है तो चाहे वेद के प्रकाश में उपनिषद रही हो, उपनिषद के प्रकाश में समृति और श्रुति रही हो, तो समृति और श्रुति के प्रकाश में 21वीं सदी के मानव के कल्याण के लिए किन चीजों की जरूरत है ये 51 अमृत बिन्दु शायद पूर्णतयः न हो कुछ कमियां उसमें भी हो सकती हैं। क्या हम कुम्भ के मेले में ऐसे अमृत बिन्दु निकाल कर के आ सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारा इतना बड़ा समागम। कभी – कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसीके आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

हिन्दुस्तान के हर कोने में दुनिया में रहते हुए भारतीय मूल के लोगों को कोई इनविटेशन कार्ड गया था क्या। कोई फाइवस्टार होटलों का बुकिंग था क्या। एक सिपरा मां नदी के किनारे पर उसकी गोद में हर दिन यूरोप के किसी छोटे देश की जनसंख्या जितने लोग आते हों, 30 दिन तक आते हों। जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।

मैं कभी-कभी कहता हूं हमारे हिंदुस्तान का चुनाव दुनिया के लिए अजूबा है कि इतना बड़ा देश दुनिया के कई देशों से ज्यादा वोटर और हमारा Election Commission आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए सुचारु रूप से पूरा चुनाव प्रबंधन करता है। विश्व के लिए, प्रबंधन के लिए ये सबसे बड़ा case study है, सबसे बड़ा case study है। मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।

हमने अपने वैश्विक रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए दुनिया को जो भाषा समझती है, उस भाषा में रखने की आदत भी समय की मांग है, हम अपनी ही बात को अपने ही तरीके से कहते रहेंगे तो दुनिया के गले नहीं उतरेगी। विश्व जिस बात को जिस भाषा में समझता है, जिस तर्क से समझता है, जिस आधारों के आधार पर समझ पाता है, वो समझाने का प्रयास इस चिंतन-मनन के द्वारा तय करना पड़ेगा। ये जब हम करते हैं तो मुझे विश्वास है, इस महान देश की ये सदियों पुरानी विरासत वो सामाजिक चेतना का कारण बन सकती है, युवा पीढ़ी के आकर्षण का कारण बन सकती है और मैं जो 51 बिंदु हैं उसके बाहर एक बात मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या।

मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए वैज्ञानिक तरीके से और देश भर के विधिवत जनों बुलाकर के, जिनकी धर्म में आस्था न हो, जो परमात्मा में विश्वास न करता हो, उसको भी बुलाकर के जरा बताओ तो भाई और हमारा जो भक्त समुदाय है। उनके सामने विचार-विमर्श हर परंपरा में साल में एक बार 7 दिन अपने-अपने तरीके से अपने-अपने स्थान पर ज्ञानी-विज्ञानी को बुलाकर के विचार-विमर्श हो तो आप देखिए 3 साल के बाद अगला जब हमारा कुंभ का अवसर आएगा और 12 साल के बाद जो महाकुंभ आता है वो जब आएगा आप देखिए ये हमारी विचार-मंथन की प्रक्रिया इतनी sharpen हुई होगी, दुनिया हमारे विचारों को उठाने के लिए तैयार होगी।

जब अभी पेरिस में पुरा विश्व climate को लेकर के चिंतित था, भारत ने एक अहम भूमिका निभाई और भारत ने उन मूल्यों को प्रस्तावित करने का प्रयास किया। एक पुस्तक भी प्रसिद्ध हुई कि प्रकृति के प्रति प्रेम का धार्मिक जीवन में क्या-क्या महत्व रहा है और पेरिस के, दुनिया के सामने life style को बदलने पर बल दिया, ये पहली बार हुआ है।

हम वो लोग हैं जो पौधे में भी परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं जो जल में भी जीवन देखते हैं, हम वो लोग हैं जो चांद और सूरज में भी अपने परिवार का भाव देखते हैं, हम वो लोग हैं जिनको... आज शायद अंतरराष्ट्रीय Earth दिवस मनाया जाता होगा, पृथ्वी दिवास मनाया जाता होगा लेकिन देखिए हम तो वो लोग हैं जहां बालक सुबह उठकर के जमीन पर पैर रखता था तो मां कहती थी कि बेटा बिस्तर पर से जमीन पर जब पैर रखते हो तो पहले ये धरती मां को प्रणाम करो, माफी मांगों, कहीं तेरे से इस धरती मां को पीढ़ा न हो हो जाए। आज हम धरती दिवस मनाते हैं, हम तो सदियों से इस परंपरा को निभाते आए हैं।

हम ही तो लोग हैं जहां मां, बालक को बचपन में कहती है कि देखो ये पूरा ब्रहमांड तुम्हारा परिवार है, ये चाँद जो है न ये चाँद तेरा मामा है। ये सूरज तेरा दादा है। ये प्रकृति को अपना बनाना, ये हमारी विशेषता रही है।

सहज रूप से हमारे जीवन में प्रकृति का प्रेम, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, सहजीवन के संस्कार हमें मिले हैं और इसलिए जिन बिंदुओं को लेकर के आज हम चलना चाहते हैं। उन बिंदुओं पर विश्वास रखते हुए और जो काल बाह्य है उसको छोड़ना पड़ेगा। हम काल बाह्य चीजों के बोझ के बीच जी नहीं सकते हैं और बदलाव कोई बड़ा संकट है, ये डर भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारी ताकत का परिचय देता है। अरे बदलाव आने दो, बदलाव ही तो जीवन होता है। मरी पड़ी जिंदगी में बदलाव नहीं होता है, जिंदा दिल जीवन में ही तो बदलाव होता है, बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। हम सर्वसमावेशक लोग हैं, हम सबको जोड़ने वाले लोग हैं। ये सबको जोड़ने का हमारा सामर्थ्य है, ये कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा अगर हम कमजोर हो गए तो हम जोड़ने का दायित्व नहीं निभा पाएंगे और शायद हमारे सिवा कोई जोड़ पाएगा कि नहीं पाएगा ये कहना कठिन है इसलिए हमारा वैश्विक दायित्व बनता है कि जोड़ने के लिए भी हमारे भीतर जो विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उन गुणों को हमें विकसित करना होगा क्योंकि संकट से भरे जन-जीवन को सुलभ बनाना हम लोगों ने दायित्व लिया हुआ है और हमारी इस ऋषियों-मुनियों की परंपरा ज्ञान के भंडार हैं, अनुभव की एक महान परंपरा रही है, उसके आधार पर हम इसको लेकर के चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि जो अपेक्षाएं हैं, वो पूरी होंगी। आज ये समारोह संपन्न हो रहा है।

मैं शिवराज जी को और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं इतने उत्तम योजना के लिए, बीच में प्रकृति ने कसौटी कर दी। अचानक आंधी आई, तूफान सा बारिश आई, कई भक्त जनों को जीवन अपना खोना पड़ा लेकिन कुछ ही घंटों में व्यवस्थाओं को फिर से ठीक कर दी। मैं उन सभी 40 हजार के करीब मध्य प्रदेश सरकार के छोटे-मोटे साथी सेवारत हैं, मैं विशेष रूप से उनको बधाई देना चाहता हूं कि आपके इस प्रयासों के कारण सिर्फ मेला संपन्न हुआ है, ऐसा नहीं है। आपके इन उत्तम प्रयासों के कारण विश्व में भारत की एक छवि भी बनी है। भारत के सामान्य मानव के मन में हमारा अपने ऊपर एक विश्वास बढ़ता है इस प्रकार के चीजों से और इसलिए जिन 40 हजार के करीब लोगों ने 30 दिन, दिन-रात मेहनत की है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं, मैं उज्जैनवासियों का भी हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं, उन्होंने पूरे विश्व का यहां स्वागत किया, सम्मान किया, अपने मेहमान की तरह सम्मान किया और इसलिए उज्जैन के मध्य प्रदेश के नागरिक बंधु भी अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं, उनको भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और अगले कुंभ के मेले तक हम फिर एक बार अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएं इसी शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, फिर एक बार सभी संतों को प्रणाम और उनका आशीर्वाद, उनका सामर्थ्य, उनकी व्यवस्थाएं इस चीज को आगे चलाएगी, इसी अपेक्षा के साथ सबको प्रणाम।

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আদমপুর বিমানঘাঁটিতে বিমানবাহিনীর সাহসী যোদ্ধাদের সঙ্গে প্রধানমন্ত্রীর মতবিনিময়
May 13, 2025
QuoteInteracted with the air warriors and soldiers, Their courage and professionalism in protecting our nation are commendable: PM
Quote‘Bharat Mata ki Jai’ is not just a slogan, This is the oath of every soldier who puts his life at stake for the honour and dignity of his country: PM
QuoteOperation Sindoor is a trinity of India's policy, intent, and decisive capability: PM
QuoteWhen the Sindoor of our sisters and daughters was wiped away, we crushed the terrorists in their hideouts: PM
QuoteThe masterminds of terror now know that raising an eye against India will lead to nothing but destruction: PM
QuoteNot only were terrorist bases and airbases in Pakistan destroyed, but their malicious intentions and audacity were also defeated: PM
QuoteIndia's Lakshman Rekha against terrorism is now crystal clear,If there is another terror attack, India will respond and it will be a decisive response: PM
QuoteEvery moment of Operation Sindoor stands as a testament to the strength of India's armed forces: PM
QuoteIf Pakistan shows any further terrorist activity or military aggression, we will respond decisively, This response will be on our terms, in our way: PM
QuoteThis is the new India! This India seeks peace, But if humanity is attacked, India also knows how to crush the enemy on the battlefield: PM

ভারতমাতার জয়!
ভারতমাতার জয়!
ভারতমাতার জয়!

সারা বিশ্ব এই স্লোগানের শক্তি উপলব্ধি করেছে। ভারতমাতার জয়, নিছক এক স্লোগান নয়, এটি দেশের প্রত্যেক সৈনিকের শপথবাক্য যাঁরা ভারতমাতার সম্মান ও মর্যাদা রক্ষার্থে তাঁদের জীবনকে বাজি রেখেছেন। যেসব নাগরিক দেশের জন্য বাঁচতে চান, কোনকিছু অর্জন করতে চান, তাঁদের প্রত্যেকের মধ্যে এটি ধ্বনিত হচ্ছে। ভারতমাতার জয় আকাশে-বাতাসে সর্বত্র অনুরণিত হচ্ছে। যখন ভারতের সৈনিকরা মা ভারতী কি জয় বলে স্লোগান দেন, তখন শত্রুর বুক কাঁপে। যখন আমাদের ড্রোন শত্রুর দুর্গের দেওয়ালে আঘাত হেনে তাকে ধ্বংস করে, যখন আমাদের ক্ষেপণাস্ত্র নির্দিষ্ট লক্ষ্যবস্তুতে আঘাত হানে, তখন শত্রুরা শুনতে পায় – ভারতমাতার জয়! যখন রাতের অন্ধকারে আমরা সূর্যের উদয় ঘটাই, তখন শত্রুরা দেখে ভারতমাতার জয়! যখন আমাদের বাহিনী পারমাণবিক অস্ত্রের যুযুর ভয়কে অগ্রাহ্য করে, তখন আকাশ থেকে পাতাল পর্যন্ত একই ধ্বনি অনুরণিত হয় – ভারতমাতার জয়!

বন্ধুগণ,

বাস্তবিকই আপনারা সকলে কোটি কোটি ভারতবাসীকে গর্বিত করেছেন। নতুন ইতিহাস গড়েছেন। আজ এই সকালে আমি আপনাদের কাছে এসেছি। যখন মাটিকে সাহসী পা স্পর্শ করে, তখন সেই মাটি আশীর্বাদধন্য হয়। আর যখন কেউ সেই সাহসীদের দেখার সুযোগ পায়, তখন তাঁর জীবনও আশীর্বাদধন্য হয়ে ওঠে। আর তাই আমি এখানে এত সকালে আপনাদের দেখতে এসেছি। আজ থেকে বহু দশক পরেও যখন ভারতের এই শৌর্য নিয়ে আলোচনা হবে, তখন সবথেকে গুরুত্বপূর্ণ অধ্যায়ের সাক্ষী থাকবেন আপনি এবং আপনার সঙ্গীরা। বর্তমান এই সময়কাল থেকে ভবিষ্যৎ প্রজন্মের কাছে আপনারা সকলে অনুপ্রেরণার নতুন উৎস হিসেবে বিবেচিত হবেন। নায়কদের এই দেশে আজ আমি বিমানবাহিনী, নৌ-বাহিনী এবং সেনাবাহিনী ও বিএসএফ-এর প্রত্যেক সাহসী যোদ্ধাকে প্রণাম জানাই। আপনাদের শৌর্যের কারণেই প্রতিটি প্রান্তে ‘অপারেশন সিন্দুর’-এর আওতায় পৌঁছেছে। পুরো এই অভিযানে প্রত্যেক ভারতবাসী আপনাদের সঙ্গে ছিলেন, প্রত্যেক ভারতবাসী আপনাদের জন্য প্রার্থনা করেছেন। আজ দেশের প্রত্যেক নাগরিক, সৈনিক এবং তাঁদের পরিবারের প্রতি কৃতজ্ঞ এবং চিরঋণী।

বন্ধুগণ,

‘অপারেশন সিন্দুর’ কোনো সাধারণ সামরিক অভিযান নয়। এটি ভারতের নীতি ও সিদ্ধান্তের এক প্রতিফলন। ভারত ভগবান বুদ্ধের যেমন দেশ, একইসঙ্গে গুরু গোবিন্দ সিং-জিরও। গুরু গোবিন্দ সিং-জি বলেছিলেন, “সওয়া লাখ সেবক লড়াই, চি রি ইয়ন তেন বাজ তড়াউ, তবোগু গোবিন্দ সিং নাম কহঁ”। অশুভকে ধ্বংস করে সত্যকে প্রতিষ্ঠা করার জন্য অস্ত্র হাতে তুলে নেওয়া আমাদের ঐতিহ্য। আর তাই, যখন আমাদের মেয়ে এবং বোনেদের সিঁদুর মুছে ফেলা হয়েছিল, আমরা তখন জঙ্গিদের ঘরে ঢুকে তাদের নির্মূল করেছি। কাপুরুষের মতো তারা লুকিয়ে ছিল, কিন্তু তারা ভুলে গেছে যে তারা ভারতীয় সেনাবাহিনীকে চ্যালেঞ্জ জানিয়েছে। আপনারা সামনে থেকে তাদেরকে আক্রমণ করেছেন এবং হত্যা করেছেন, আপনারা জঙ্গিদের সব ঘাঁটি ধ্বংস করেছেন, জঙ্গিদের ন’টি গোপন আস্তানাকে গুঁড়িয়ে দিয়েছেন, ১০০ জনেরও বেশি জঙ্গিকে হত্যা করেছেন, জঙ্গিদের মূল মাথা এখন বুঝেছে যে ভারতের দিকে চোখ রাঙালে ফল একটাই – ধ্বংস! ভারতের নিরপরাধ লোকের রক্তক্ষয়ের পরিণতি একটিই – ধ্বংস, মহাধ্বংস! ভারতীয় সেনাবাহিনী, ভারতীয় বিমানবাহিনী এবং ভারতীয় নৌ-বাহিনী পাকিস্তানের সেনাবাহিনীকে পরাজিত করেছে, এদের ওপরই এই জঙ্গিরা ভরসা করত। আপনারা পাকিস্তানি সেনাবাহিনীকে এই বার্তা দিয়েছেন যে পাকিস্তানে জঙ্গিরা শান্তিতে কোথাও বসে শ্বাস ফেলতে পারবে না। আমরা তাদের বাড়িতে ঢুকব, হত্যা করব এবং পালানোর কোনো সুযোগ দেব না। আমাদের ড্রোন, আমাদের ক্ষেপণাস্ত্রের কারণে পাকিস্তান দীর্ঘদিন ঘুমোতে পারবে না। এগুলির কথা শুধু ভাববে। মহারানা প্রতাপ তাঁর বিখ্যাত ঘোড়া চেতক-এ বসে লিখেছিলেন, “কৌশল দি খলায়া চল ম, উড় গয়া ভয়ানক ভাল ম। নি ভি ক গয়া ওয়াহ দাল ম সরপট দৌড়া করবাল ম”। কিন্তু এই কথাগুলি আজও ভারতের আধুনিক যুদ্ধাস্ত্রের ক্ষেত্রে সমানভাবে প্রযোজ্য।

আমার সাহসী বন্ধুরা,

আপনারা ‘অপারেশন সিন্দুর’-এর মাধ্যমে দেশের আত্মপ্রত্যয় কয়েকগুণ বৃদ্ধি করেছেন। দেশের একতাকে একসূত্রে গেঁথে আপনারা ভারতের সীমান্তকে রক্ষা করেছেন, ভারতের আত্মবিশ্বাসকে নতুন এক উচ্চতায় পৌঁছে দিয়েছেন।

বন্ধুগণ,

আপনারা অভূতপূর্ব, অকল্পনীয়, দুর্দান্ত কিছু কাজ করেছেন। আমাদের বিমানবাহিনী পাকিস্তানে জঙ্গি ঘাঁটিগুলিকে এত নিখুঁতভাবে নিশানা করেছে যা আধুনিক প্রযুক্তি সম্বলিত পেশাদার বাহিনীর পক্ষেই সম্ভব। সীমান্ত জুড়ে বিভিন্ন লক্ষ্যবস্তুকে আঘাত হেনেছেন মাত্র ২০-২৫ মিনিটের মধ্যে। যে দ্রুততার সঙ্গে অব্যর্থভাবে আপনারা এই আঘাত হেনেছেন, তাতে শত্রুপক্ষ বিহ্বল হয়ে পড়েছিল। তারা বুঝতে পারেনি যে তাদের বুক ফুঁড়ে যাচ্ছে।

বন্ধুগণ,

পাকিস্তানের মধ্যে জঙ্গিদের সদর ঘাঁটিতে আমরা আঘাত হেনেছি, জঙ্গিদের ওপরও আক্রমণ শানিয়েছি। কিন্তু, পাকিস্তান যাত্রীবাহী বিমানগুলিকে ব্যবহার করে নতুন এক চক্রান্ত করেছিল। যখন অসামরিক নাগরিকদের নিয়ে বিমান উড়ছে, আপনারা সেটা দেখতে পাচ্ছেন, তার মধ্য দিয়ে কত সতর্কভাবে লক্ষ্যবস্তুকে আঘাত হেনে তাকে ধ্বংস করা হয়েছে, সেই কঠিন মুহূর্তটি আমি বুঝতে পারছি। অসামরিক নাগরিকদের বিমানে আঘাত না হেনে যেভাবে আপনারা যথাযথ জবাব দিয়েছেন, তার জন্য আমি গর্বিত। আমি বলতে পারি, যেভাবে আপনারা আপনাদের নিশানাকে স্থির করেছেন, তার জন্য আমরা গর্বিত। পাকিস্তানে জঙ্গিদের আত্মগোপন করে থাকার জায়গাগুলি এবং বিভিন্ন বিমানঘাঁটিকেই আপনারা ধ্বংস করেননি, তাদের কাপুরুষোচিত নানা উদ্দেশ্য এবং আস্পর্ধাকে চূর্ণ করে দিয়েছেন।

বন্ধুগণ,

‘অপারেশন সিন্দুর’-এর ফলে শত্রুরা আজ হতাশায় ভুগছে। তারা এই বিমানঘাঁটি সহ আমাদের অনেকগুলি বিমানঘাঁটিকে লক্ষ্য করে হামলা চালানোর চেষ্টা চালিয়েছে। বারবার হামলা চালানোর চেষ্টা সত্ত্বেও পাকিস্তানের অসৎ উদ্দেশ্য প্রত্যেকবারই ব্যর্থ হয়েছে। আমাদের শক্তিশালী বিমানবাহিনীর প্রতিরোধ ব্যবস্থার কারণে পাকিস্তানের ড্রোন, ইউএভি, যুদ্ধবিমান এবং ক্ষেপণাস্ত্র ধ্বংস হয়েছে। দেশের প্রতিটি বিমানঘাঁটির সঙ্গে যুক্ত নেতৃবৃন্দকে আমি আন্তরিকভাবে অভিনন্দন জানাই। আন্তরিকভাবে অভিনন্দন জানাই ভারতীয় বিমানবাহিনীর প্রত্যেক যোদ্ধাকে। আপনারা চমৎকার এক কাজ করেছেন।

বন্ধুগণ,

সন্ত্রাসবাদের বিরুদ্ধে ভারতের লক্ষ্মণরেখা এখন অত্যন্ত স্পষ্ট। যদি আবারও জঙ্গি হানা হয় ভারত তার যথাযথ জবাব দেবে। সার্জিকাল স্ট্রাইক, বিমান আক্রমণ এবং এখন অপারেশন সিন্দুর আপনারা দেখেছেন। আমি গতকাল যেমনটা বলেছিলাম, ভারত এখন তিনটি নীতিকে মেনে চলে। যদি ভারতে জঙ্গি হানা হয়, আমরা আমাদের মতো করে তার জবাব দেব, আমরা সেই সময় বাছাই করব। দ্বিতীয়ত, পারমাণবিক বোমার যুযুতে ভারত আর ভয় পাবে না। তৃতীয়ত, জঙ্গি এবং জঙ্গিদের মদতদাতাদের আলাদা করে দেখা হবে না। সারা বিশ্ব ভারতের এই নতুন ব্যবস্থাকে উপলব্ধি করতে পেরেছে।  

বন্ধুগণ,

‘অপারেশন সিন্দুর’-এর প্রতিটি মুহূর্তেই ভারতীয় বাহিনীর ক্ষমতা প্রদর্শিত হয়েছে। এই সময়কালে আমাদের বাহিনীগুলির মধ্যে যে সমন্বয় ঘটানো হয়েছে তা অসাধারণ। সেনাবাহিনী, নৌ-বাহিনী অথবা বিমানবাহিনী – প্রত্যেকের মধ্যে চমৎকার সমন্বয় কাজ করেছে। নৌ-বাহিনী সমুদ্রে তার কতৃত্ব প্রতিষ্ঠা করেছে, সেনাবাহিনী সীমান্তে তার শক্তিশালী উপস্থিতিকে বুঝিয়েছে আর ভারতীয় বিমানবাহিনী সমানভাবে আক্রমণ চালিয়েছে। সীমান্ত সুরক্ষা বাহিনী – বিএসএফ সহ অন্যান্য বাহিনীগুলি তাদের দক্ষতা দেখিয়েছে। সুসংহত বিমান ও সেনাবাহিনীর যৌথ ব্যবস্থাপনা দারুণ কাজ করেছে। আর একেই বলে একতা, যা ভারতীয় বাহিনীগুলির সবথেকে বড় শক্তি হিসেবে বিবেচিত হচ্ছে।

বন্ধুগণ,

‘অপারেশন সিন্দুর’-এ মানবসম্পদের সঙ্গে যন্ত্রের সমন্বয় ঘটানো দারুণ এক কাজ ছিল। ভারতের বিমানবাহিনীর চিরায়ত প্রতিরোধ ব্যবস্থাপনা, এস-৪০০-র মতো শক্তিশালী প্রতিরক্ষা ব্যবস্থাপনা এ দেশকে অপ্রতিরোধ্য শক্তি যুগিয়েছে। আমাদের দেশে তৈরি ‘আকাশ’ সহ অন্যান্য আধুনিক প্রতিরক্ষা ব্যবস্থাপনাও এই প্রক্রিয়ায় সামিল ছিল। বর্তমানে একটি শক্তিশালী সুরক্ষা বলয় ভারতকে রক্ষা করছে। পাকিস্তানের বহু চেষ্টা সত্ত্বেও আমাদের বিমানঘাঁটি সহ প্রতিরক্ষা সংক্রান্ত অন্যান্য ব্যবস্থাপনায় আঘাত হানতে পারেনি। আর এর জন্য সব কৃতিত্ব আপনাদের। আমি আপনাদের প্রত্যেকের জন্য গর্বিত। সীমান্ত অঞ্চলে যে সৈনিকরা মোতায়েন রয়েছেন, যাঁরা এই অভিযানের সঙ্গে যুক্ত ছিলেন – তাঁরা সকলেই এই সাফল্যের দাবিদার।

বন্ধুগণ,

আজ নতুন এবং অত্যাধুনিক প্রযুক্তির কারণে আমাদের দক্ষতা বৃদ্ধি হয়েছে। এই প্রতিযোগিতায় পাকিস্তান সামিল হতে পারবে না। গত এক দশকে বিমানবাহিনী সহ আমাদের প্রতিটি বাহিনীই বিশ্বের শ্রেষ্ঠ প্রযুক্তিগুলি গ্রহণ করেছে। কিন্তু আমরা সকলেই জানি, নতুন প্রযুক্তিগুলির কারণে আরও বড় চ্যালেঞ্জের সম্মুখীন হতে হয়। জটিল এবং অত্যাধুনিক ব্যবস্থাপনাকে দক্ষতার সঙ্গে পরিচালনা করা একটি বড় কৃতিত্ব। আপনারা প্রযুক্তির সঙ্গে বিভিন্ন কৌশলকে যুক্ত করেছেন। আর এই পৃথিবীতে আপনারা যে শ্রেষ্ঠ, তা প্রমাণ করেছেন। ভারতীয় বিমানবাহিনী এখন শত্রুকে পরাজিত করতে শুধু অস্ত্রশস্ত্রকেই কাজে লাগায় না, তথ্য এবং ড্রোনকেও ব্যবহার করে।

বন্ধুগণ,

পাকিস্তান অনুরোধ করার পরই ভারত সামরিক অভিযান স্থগিত করে। পাকিস্তান যদি আবারও জঙ্গিদের কার্যকলাপে মদত দেয় অথবা তার সামরিক বাহিনীর আস্পর্ধা আমরা দেখতে পাই, তাহলে যথাযথ জবাব দেব। আমরা আমাদের মতো করে এই প্রত্যুত্তর দেব। আপনাদের ধৈর্য্য, সাহস্ এবং সতর্ক থাকার কারণেই এই সিদ্ধান্তগুলি নেওয়া সম্ভব হয়েছে। আপনারা এই সাহস, মনোভাব বজায় রেখে চলেছেন। আপনাদের সদা সতর্ক থাকতে হবে, সব সময় প্রস্তুত থাকতে হবে। আমরা শত্রুদেরকে মনে করিয়ে দিচ্ছি, এটি নতুন ভারত। এই ভারত শান্তির পক্ষে, কিন্তু যদি মানবজাতি হামলার সম্মুখীন হয়, তাহলে এই ভারত জানে কিভাবে শত্রুকে ধ্বংস করতে হয়। আর এই সঙ্কল্প নিয়ে আসুন আমরা একযোগে বলি -

ভারতমাতার জয়!
ভারতমাতার জয়!
ভারতমাতার জয়!
বন্দে মাতরম। বন্দে মাতরম।
বন্দে মাতরম। বন্দে মাতরম।
বন্দে মাতরম। বন্দে মাতরম।
বন্দে মাতরম। বন্দে মাতরম।
বন্দে মাতরম।
অনেক অনেক ধন্যবাদ।

প্রধানমন্ত্রী মূল ভাষণটি হিন্দিতে দিয়েছিলেন