Knowledge is immortal and is relevant in every era: PM Modi

Published By : Admin | May 14, 2016 | 13:13 IST
At Simhasth Kumbh convention, we are seeing birth of a new effort: PM
We belong to a tradition where even a Bhikshuk says, may good happen to every person: PM
We should tell the entire world about the organising capacity of an event like the Kumbh: PM
Lets hold Vichar Kumbh every year with devotees...discuss why we need to plant trees, educate girl child: PM

हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, एक समाज के नाते कि हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं। हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है। आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है लेकिन उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई कि हमारी इस महान परंपरा, ये हजारों साल पुरानी संस्कृति, इसके कई पहलू, वो परंपराए किस सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई, किस काल के गर्भ में पैदा हुई, किस विचार मंथन में से बीजारोपण हुआ, वो करीब-करीब अलब्य है और उसके कारण ये कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है।

कोई कहेगा हजार साल पहले, कोई कहेगा 2 हजार साल पहले लेकिन इतना निश्चित है कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। मैं अपने तरीक से जब सोचता हूं तो मुझे लगता है कि कुंभ का मेला, वैसे 12 साल में एक बार होता है और नासिक हो, उज्जैन हो, हरिद्वार हो वहां 3 साल में एक बार होता है प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है। उस कालखंड को हम देखें तो मुझे लगता है कि एक प्रकार से ये विशाल भारत को अपने में समेटने का ये प्रयास ये कुंभ मेले के द्वारा होता था। मैं तर्क से और अनुमान से कह सकता हूं कि समाज वेदता, संत-महंत, ऋषि, मुनि जो हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे। समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे, Innovation करते थे। इन्हें वे हमारे ऋषि जहां भी थे वे बाह्य जगत का भी रिसर्च करते थे और अंतर यात्रा को भी खोजने का प्रयास करते थे तो ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही, सदियों तक चलती रही, हर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही लेकिन संस्कार संक्रमण का काम विचारों के संकलन का काम कालानुरूप विचारों को तराजू पर तौलने की परंपरा ये सारी बातें इस युग की परंपरा में समहित थी, समाहित थी।

एक बार प्रयागराज के कुंभ मेले में बैठते थे, एक Final decision लिया जाता था सबके द्वारा मिलकर के कि पिछले 12 साल में समाज यहां-यहां गया, यहां पहुंचा। अब अगले 12 साल के लिए समाज के लिए दिशा क्या होगी, समाज की कार्यशैली क्या होगी किन चीजों की प्राथमिकता होगी और जब कुंभ से जाते थे तो लोग उस एजेंडा को लेकर के अपने-अपने स्थान पर पहुंचते थे और हर तीन साल के बाद जबकि कभी नासिक में, कभी उज्जैन में, कभी हरिद्वार में कुंभ का मेला लगता था तो उसका mid-term appraisal होता था कि भई प्रयागराज में जो निर्णय हम करके गए थे तीन साल में क्या अनुभव आया और हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते थे।

30 दिन तक एक ही स्थान पर रहकर के समाज की गतिविधियों, समाज की आवश्यकताएं, बदलता हुआ युग, उसका चिंतन-मनन करके उसमें फिर एक बार 3 साल का करणीय एजेंडा तय होता था। In the light of main Mahakumbh प्रयागराज में होता था और फिर 3 साल के बाद दूसरा जब कुंभ लगता था तो फिर से Review होता था। एक अद्भुत सामाजिक रचना थी ये लेकिन धीरे-धीरे अनुभव ये आता है कि परंपरा तो रह जाती है, प्राण खो जाता है। हमारे यहां भी अनुभव ये आया कि परंपरा तो रह गई लेकिन समय का अभाव है, 30 दिन कौन रहेगा, 45 दिन कौन रहेगा। आओ भाई 15 मिनट जरा डुबकी लगा दें, पाप धुल जाए, पुण्य कमा ले और चले जाए।

ऐसे जैसे बदलाव आय उसमें से उज्जैन के इस कुंभ में संतों के आशीर्वाद से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ है और ये नया प्रयास एक प्रकार से उस सदियों पुरानी व्यवस्था का ही एक Modern edition है और जिसमें वर्तमान समझ में, वैश्विक संदर्भ में मानव जाति के लिए क्या चुनौतियां हैं, मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। बदलते हुए युग में काल बाह्य चीजों को छोड़ने की हिम्मत कैसे आए, पुरानी चीजों को बोझ लेकर के चलकर के आदमी थक जाता है। उन पुरानी काल बाह्य चीजों को छोड़कर के एक नए विश्वास, नई ताजगी के साथ कैसे आगे बढ़ जाए, उसका एक छोटा सा प्रयास इस विचार महाकुंभ के अंदर हुआ है।

जो 51 बिंदु, अमृत बिंदु इसमें से फलित हुए हैं क्योंकि ये एक दिन का समारोह नहीं है। जैसे शिवराज जी ने बताया। देश औऱ दुनिया के इस विषय के जानकार लोगों ने 2 साल मंथन किया है, सालभर विचार-विमर्श किया है और पिछले 3 दिन से इसी पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, संतों की परंपरा को निभाने वाले महान संतों के सानिध्य में इसका चिंतन-मनन हुआ है और उसमें से ये 51 अमृत बिंदु समाज के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। मैं नहीं मानता हूं कि हम राजनेताओं के लिए इस बात को लोगों के गले उतारना हमारे बस की बात है। हम नहीं मानते हैं लेकिन हम इतना जरूर मानते हैं कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग चाहे वो गेरुए वस्त्र में हो या न हो लेकिन त्याग और तपस्था के अधिष्ठान पर जीवन जीते हैं। चाहे एक वैज्ञानिक अपनी laboratory में खपा हुआ हो, चाहे एक किसान अपने खेत में खपा हुआ हो, चाहे एक मजदूर अपना पसीना बहा रहा हे, चाहे एक संत समाज का मार्गदर्शन करता हो ये सारी शक्तियां, एक दिशा में चल पड़ सकती हैं तो कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं और उस दिशा में ये 51 अमृत बिंदु जो है आने वाले दिनों में भारत के जनमानस को और वैश्विक जनसमूह को भारत किस प्रकार से सोच सकता है और राजनीतिक मंच पर से किस प्रकार के विचार प्रभाग समयानुकूल हो सकते हैं इसकी चर्चा अगर आने वाले दिनों में चलेगी, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयास सार्थक होगा।


हम वो लोग हैं, जहां हमारी छोटी-छोटी चीज बड़ी समझने जैसी है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं। जहां एक भिक्षुक भी भिक्षा मांगने के लिए जाता है, तो भी उसके मिहिल मुंह से निकलता है ‘जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला’। ये छोटी बात नहीं है। ये एक वो संस्कार परम्परा का परिणाम है कि एक भिक्षुक मुंह से भी शब्द निकलता है ‘देगा उसका भी भला जो नहीं देगा उसका भी भला’। यानी मूल चिंतन तत्वभाव यह है कि सबका भला हो सबका कल्याण हो। ये हर प्रकार से हमारी रगों में भरा पड़ा है। हमी तो लोग हैं जिनको सिखाया गया है। तेन तत्तेन भूंजीथा। क्या तर के ही भोगेगा ये अप्रतीम आनन्द होता है। ये हमारी रगों में भरा पड़ा है। जो हमारी रगों में है, वो क्या हमारे जीवन आचरण से अछूता तो नहीं हो रहा है। इतनी महान परम्परा को कहीं हम खो तो नहीं दे रहे हैं। लेकिन कभी उसको जगजोड़ा किया जाए कि अनुभव आता है कि नहीं आज भी ये सामर्थ हमारे देश में पड़ा है।

किसी समय इस देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को आहवान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए। देश को अन्न की जरूरत है। और इस देश के कोटी-कोटी लोगों ने तेन त्यक्तेन भुंजीथा इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके, करके दिखाया था। और कुछ पीढ़ी तो लोग अभी भी जिन्दा हैं। जो लालबहादुर शास्त्री ने कहा था। सप्ताह में एक दिन खाना नहीं खाते हैं। ऐसे लोग आज भी हैं। तेन त्यक्तेन भुंजीथा का मंत्र हमारी रगों में पला है। पिछले दिनों में ऐसे ही बातों-बातों में मैंने पिछले मार्च महीने में देश के लोगों के सामने एक विषय रखा था। ऐसे ही रखा था। रखते समय मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे देश के जनसामान्य का मन इतनी ऊंचाइयों से भरा पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि हम उन ऊंचाईयों को पहुंचने में कम पड़ जाते हैं। मैंने इतना ही कहा था। अगर आप सम्पन्न हैं, आप समर्थ हैं, तो आप रसोई गैस की सब्सिडी क्या जरूरत है छोड़ दीजिये न। हजार-पंद्रह सौ रुपये में क्या रखा है। इतना ही मैंने कहा था। और आज मैं मेरे देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं। एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। तेन त्यक्तेन भुंजीथा । और उसका परिणाम क्या है। परिणाम शासन व्यवस्था पर भी सीधा होता है। हमारे मन में विचार आया कि एक करोड़ परिवार गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ रहे हैं तो इसका हक़ सरकार की तिजोरी में भरने के लिये नहीं बनता है।

ये फिर से गरीब के घर में जाना चाहिए। जो मां लकड़ी का चूल्हा जला कर के एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है। उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर दे कर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे।

यहाँ एक चर्चा में पर्यावरण का मुद्दा है। मैं समझता हूं पांच करोड़ परिवारों में लकड़ी का चूल्हा न जलना ये जंगलों को भी बचाएगा, ये कार्बन को भी कम करेगा और हमारी माताओं को गरीब माताओं के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाएगा। यहां पर नारी की एम्पावरमेंट की बात हुई नारी की dignity की बात हुई है। ये गैस का चूल्हा उसकी dignity को कायम करता है। उसकी स्वास्थ्य की चिंता करता है और इस लिए मैं कहता हूं - तेन त्यक्तेन भुंजीथा । इस मंत्र में अगर हम भरोसा करें। सामान्य मानव को हम इसका विश्वास दिला दें तो हम किस प्रकार का परिवर्तन प्राप्त कर सकते हैं। ये अनुभव कर रहे हैं।

हमारा देश, मैं नहीं मानता हूं हमारे शास्त्रों में ऐसी कोई चीज है, जिसके कारण हम भटक जाएं। ये हमलोग हैं कि हमारी मतलब की चीजें उठाते रहते हैं और पूर्ण रूप से चीजों को देखने का स्वभाव छोड़ दिया है। हमारे यहां कहा गया है – नर करनी करे तो नारायण हो जाए - और ये हमारे ऋषियों ने मुनियों ने कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर भक्ति करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर कथा करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा। संतों ने भी कहा हैः नर करनी करे तो नारायण हो जाए और इसीलिए ये 51 अमृत बिन्दु हमारे सामने है। उसका एक संदेश यही है कि नर करनी करे तो नारायण हो जाए। और इसलिए हम करनी से बाध्य होने चाहिए और तभी तो अर्जुन को भी यही तो कहा था योगः कर्मसु कौशलम्। यही हमारा योग है, जिसमें कर्म की महानता को स्वीकार किया गया है और इसलिए इस पवित्र कार्य के अवसर पर हम उस विचार प्रवाह को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर सकते हैं क्या तमसो मा ज्योतिरगमय। ये विचार छोटा नहीं है। और प्रकाश कौनसा वो कौनसी ज्योति ये ज्योति ज्ञान की है, ज्योति प्रकाश की है। और हमी तो लोग हैं जो कहते हैं कि ज्ञान को न पूरब होता है न पश्चिम होता है। ज्ञान को न बीती हुई कल होती है, ज्ञान को न आने वाली कल होती है। ज्ञान अजरा अमर होता है और हर काल में उपकारक होता है। ये हमारी परम्परा रही है और इसलिए विश्व में जो भी श्रेष्ठ है इसको लेना, पाना, पचाना internalize करना ये हमलोगों को सदियों से आदत रही है।

हम एक ऐसे समाज के लोग हैं। जहां विविधताएं भी हैं और कभी-कभी बाहर वाले व्यक्ति को conflict भी नजर आता है। लेकिन दुनिया जो conflict management को लेकर के इतनी सैमिनार कर रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे। हमलोग हैं inherent conflict management का हमें सिखाया गया है। वरना दो extreme हम कभी भी नहीं सोच सकते थे। हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और हम वो लोग हैं, जो प्रहलाद की भी पूजा करते हैं, जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की थी। इतना बड़ा conflict, एक वो महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा को माना वो भी हमारे पूजनीय और एक दूसरा महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा क का अनादर किया वो भी हमारा महापुरुष।

हम वो लोग हैं जिन्होंने माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर के इच्छा के अनुसार अपना जीवन दे दिया। और उसी प्रकार से हम उस मीरा की भी भक्ति करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी थी। यानी हम किस प्रकार के conflict management को जानने वाले लोग हैं। ये हमारी स्थिति का कारण क्या है और कारण ये है कि हम हठबाधिता से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम दर्शन के जुड़े हुए लोग हैं। और दर्शन, दर्शन तपी तपाई विचारों की प्रक्रिया और जीवन शैली में से निचोड़ के रूप में निकलता रहता है। जो समयानुकूल उसका विस्तार होता जाता है। उसका एक व्यापक रूप समय में आता है। और इसलिए हम उस दर्शन की परम्पराओं से निकले हुए लोग हैं जो दर्शन आज भी हमें इस जीवन को जीने के लिए प्रेरणा देता है।

यहां पर विचार मंथन में एक विषय यह भी रहा – Values, Values कैसे बदलते हैं। आज दुनिया में अगर आप में से किसी को अध्ययन करने का स्वभाव हो तो अध्ययन करके देखिये। दुनिया के समृद्ध-समृद्ध देश जब वो चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो वहां के राजनीतिक दल, वहां के राजनेता उनके चुनाव में एक बात बार-बार उल्लेख करते हैं। और वो कहते हैं – हम हमारे देश में families values को पुनःप्रस्थापित करेंगे। पूरा विश्व, परिवार संस्था, पारिवारिक जीवन के मूल्य उसका महत्व बहुत अच्छी तरह समझने लगा है। हम उसमें पले बड़े हैं। इसलिये कभी उसमें छोटी सी भी इधर-उधर हो जाता है तो पता नहीं चलता है कि कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि values और values यानी वो विषय नहीं है कि आपकी मान्यता और मेरी मान्यता। जो समय की कसौटी पर कस कर के खरे उतरे हैं, वही तो वैल्यूज़ होते हैं। और इसलिए हर समाज के अपने वैल्यूज़ होते हैं। उन values के प्रति हम जागरूक कैसे हों। इन दिनों मैं देखता हूं। अज्ञान के कारण कहो, या तो inferiority complex के कारण कहो, जब कोई बड़ा संकट आ जाता है, बड़ा विवाद आ जाता है तो हम ज्यादा से ज्यादा ये कह कर भाग जाते हैं कि ये तो हमारी परम्परा है। आज दुनिया इस प्रकार की बातों को मानने के लिए नहीं है।

हमने वैज्ञानिक आधार पर अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना पड़ेगा। और इसलिये यही तो कुम्भ के काल में ये विचार-विमर्श आवश्यकता है, जो हमारे मूल्यों की, हमारे विचारों की धार निकाल सके।

हम जानते हैं कभी-कभी जिनके मुंह से परम्परा की बात सुनते हैं। यही देश ये मान्यता से ग्रस्त था कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने संतों ने समुद्र पार नहीं करना चाहिए। विदेश नहीं जाना चाहिए। ये हमलोग मानते थे। और एक समय था, जब समुद्र पार करना बुरा माना जाता था। वो भी एक परम्परा थी लेकिन काल बदल गया। वही संत अगर आज विश्व भ्रमण करते हैं, सातों समुद्र पार करके जाते हैं। परम्पराएं उनके लिए कोई रुकावट नहीं बनती हैं, तो और चीजों में परम्पराएं क्यों रुकावट बननी चाहिए। ये पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए परम्पराओं के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से बदले हुए युग को, बदले हुए समाज को मूल्य के स्थान पर जीवित रखते हुए उसको मोड़ना, बदलना दिशा देना ये हम सबका कर्तव्य बनता है, हम सबका दायित्व बनता है। और उस दायित्व को अगर हम निभाते हैं तो मुझे विश्वास है कि हम समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

आज विश्व दो संकटों से गुजर रहा है। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग दूसरी तरफ आतंकवाद। क्या उपाय है इसका। आखिर इसके मूल पर कौन सी चीजें पड़ी हैं। holier than thou तेरे रास्ते से मेरा रास्ता ज्यादा सही है। यही तो भाव है जो conflict की ओर हमें घसीटता ले चला जा रहा है। विस्तारवाद यही तो है जो हमें conflict की ओर ले जा रहा है। युग बदल चुका है। विस्तारवाद समस्याओं का समाधान नहीं है। हम हॉरीजॉन्टल की तरह ही जाएं समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्टिकल जाने की आवश्यकता है अपने भीतर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है, व्यवस्थाओं को आधुनिक करने की आवश्यकता है। नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए उन मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है और इसलिये समय रहते हुए मूलभूत चिंतन के प्रकाश में, समय के संदर्भ में आवश्यकताओं की उपज के रूप में नई विधाओं को जन्म देना होगा। वेद सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी हमी लोग हैं जिन्होंने वेद के प्रकाश में उपनिषदों का निर्माण किया। उपनिषद में बहुत कुछ है। लेकिन समय रहते हमने भी वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में समृति और स्रुति को जन्म दिया और समृति और स्रुतियां, जो उस कालखंड को दिशा देती है, उसके आधार पर हम चलें। आज हम में किसी को वेद के नाम भी मालूम नहीं होंगे। लेकिन वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में श्रुति और समृति वो आज भी हमें दिशा देती हैं। समय की मांग है कि अगर 21वीं सदी में मानव जाति का कल्याण करना है तो चाहे वेद के प्रकाश में उपनिषद रही हो, उपनिषद के प्रकाश में समृति और श्रुति रही हो, तो समृति और श्रुति के प्रकाश में 21वीं सदी के मानव के कल्याण के लिए किन चीजों की जरूरत है ये 51 अमृत बिन्दु शायद पूर्णतयः न हो कुछ कमियां उसमें भी हो सकती हैं। क्या हम कुम्भ के मेले में ऐसे अमृत बिन्दु निकाल कर के आ सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारा इतना बड़ा समागम। कभी – कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसीके आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

हिन्दुस्तान के हर कोने में दुनिया में रहते हुए भारतीय मूल के लोगों को कोई इनविटेशन कार्ड गया था क्या। कोई फाइवस्टार होटलों का बुकिंग था क्या। एक सिपरा मां नदी के किनारे पर उसकी गोद में हर दिन यूरोप के किसी छोटे देश की जनसंख्या जितने लोग आते हों, 30 दिन तक आते हों। जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।

मैं कभी-कभी कहता हूं हमारे हिंदुस्तान का चुनाव दुनिया के लिए अजूबा है कि इतना बड़ा देश दुनिया के कई देशों से ज्यादा वोटर और हमारा Election Commission आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए सुचारु रूप से पूरा चुनाव प्रबंधन करता है। विश्व के लिए, प्रबंधन के लिए ये सबसे बड़ा case study है, सबसे बड़ा case study है। मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।

हमने अपने वैश्विक रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए दुनिया को जो भाषा समझती है, उस भाषा में रखने की आदत भी समय की मांग है, हम अपनी ही बात को अपने ही तरीके से कहते रहेंगे तो दुनिया के गले नहीं उतरेगी। विश्व जिस बात को जिस भाषा में समझता है, जिस तर्क से समझता है, जिस आधारों के आधार पर समझ पाता है, वो समझाने का प्रयास इस चिंतन-मनन के द्वारा तय करना पड़ेगा। ये जब हम करते हैं तो मुझे विश्वास है, इस महान देश की ये सदियों पुरानी विरासत वो सामाजिक चेतना का कारण बन सकती है, युवा पीढ़ी के आकर्षण का कारण बन सकती है और मैं जो 51 बिंदु हैं उसके बाहर एक बात मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या।

मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए वैज्ञानिक तरीके से और देश भर के विधिवत जनों बुलाकर के, जिनकी धर्म में आस्था न हो, जो परमात्मा में विश्वास न करता हो, उसको भी बुलाकर के जरा बताओ तो भाई और हमारा जो भक्त समुदाय है। उनके सामने विचार-विमर्श हर परंपरा में साल में एक बार 7 दिन अपने-अपने तरीके से अपने-अपने स्थान पर ज्ञानी-विज्ञानी को बुलाकर के विचार-विमर्श हो तो आप देखिए 3 साल के बाद अगला जब हमारा कुंभ का अवसर आएगा और 12 साल के बाद जो महाकुंभ आता है वो जब आएगा आप देखिए ये हमारी विचार-मंथन की प्रक्रिया इतनी sharpen हुई होगी, दुनिया हमारे विचारों को उठाने के लिए तैयार होगी।

जब अभी पेरिस में पुरा विश्व climate को लेकर के चिंतित था, भारत ने एक अहम भूमिका निभाई और भारत ने उन मूल्यों को प्रस्तावित करने का प्रयास किया। एक पुस्तक भी प्रसिद्ध हुई कि प्रकृति के प्रति प्रेम का धार्मिक जीवन में क्या-क्या महत्व रहा है और पेरिस के, दुनिया के सामने life style को बदलने पर बल दिया, ये पहली बार हुआ है।

हम वो लोग हैं जो पौधे में भी परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं जो जल में भी जीवन देखते हैं, हम वो लोग हैं जो चांद और सूरज में भी अपने परिवार का भाव देखते हैं, हम वो लोग हैं जिनको... आज शायद अंतरराष्ट्रीय Earth दिवस मनाया जाता होगा, पृथ्वी दिवास मनाया जाता होगा लेकिन देखिए हम तो वो लोग हैं जहां बालक सुबह उठकर के जमीन पर पैर रखता था तो मां कहती थी कि बेटा बिस्तर पर से जमीन पर जब पैर रखते हो तो पहले ये धरती मां को प्रणाम करो, माफी मांगों, कहीं तेरे से इस धरती मां को पीढ़ा न हो हो जाए। आज हम धरती दिवस मनाते हैं, हम तो सदियों से इस परंपरा को निभाते आए हैं।

हम ही तो लोग हैं जहां मां, बालक को बचपन में कहती है कि देखो ये पूरा ब्रहमांड तुम्हारा परिवार है, ये चाँद जो है न ये चाँद तेरा मामा है। ये सूरज तेरा दादा है। ये प्रकृति को अपना बनाना, ये हमारी विशेषता रही है।

सहज रूप से हमारे जीवन में प्रकृति का प्रेम, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, सहजीवन के संस्कार हमें मिले हैं और इसलिए जिन बिंदुओं को लेकर के आज हम चलना चाहते हैं। उन बिंदुओं पर विश्वास रखते हुए और जो काल बाह्य है उसको छोड़ना पड़ेगा। हम काल बाह्य चीजों के बोझ के बीच जी नहीं सकते हैं और बदलाव कोई बड़ा संकट है, ये डर भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारी ताकत का परिचय देता है। अरे बदलाव आने दो, बदलाव ही तो जीवन होता है। मरी पड़ी जिंदगी में बदलाव नहीं होता है, जिंदा दिल जीवन में ही तो बदलाव होता है, बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। हम सर्वसमावेशक लोग हैं, हम सबको जोड़ने वाले लोग हैं। ये सबको जोड़ने का हमारा सामर्थ्य है, ये कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा अगर हम कमजोर हो गए तो हम जोड़ने का दायित्व नहीं निभा पाएंगे और शायद हमारे सिवा कोई जोड़ पाएगा कि नहीं पाएगा ये कहना कठिन है इसलिए हमारा वैश्विक दायित्व बनता है कि जोड़ने के लिए भी हमारे भीतर जो विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उन गुणों को हमें विकसित करना होगा क्योंकि संकट से भरे जन-जीवन को सुलभ बनाना हम लोगों ने दायित्व लिया हुआ है और हमारी इस ऋषियों-मुनियों की परंपरा ज्ञान के भंडार हैं, अनुभव की एक महान परंपरा रही है, उसके आधार पर हम इसको लेकर के चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि जो अपेक्षाएं हैं, वो पूरी होंगी। आज ये समारोह संपन्न हो रहा है।

मैं शिवराज जी को और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं इतने उत्तम योजना के लिए, बीच में प्रकृति ने कसौटी कर दी। अचानक आंधी आई, तूफान सा बारिश आई, कई भक्त जनों को जीवन अपना खोना पड़ा लेकिन कुछ ही घंटों में व्यवस्थाओं को फिर से ठीक कर दी। मैं उन सभी 40 हजार के करीब मध्य प्रदेश सरकार के छोटे-मोटे साथी सेवारत हैं, मैं विशेष रूप से उनको बधाई देना चाहता हूं कि आपके इस प्रयासों के कारण सिर्फ मेला संपन्न हुआ है, ऐसा नहीं है। आपके इन उत्तम प्रयासों के कारण विश्व में भारत की एक छवि भी बनी है। भारत के सामान्य मानव के मन में हमारा अपने ऊपर एक विश्वास बढ़ता है इस प्रकार के चीजों से और इसलिए जिन 40 हजार के करीब लोगों ने 30 दिन, दिन-रात मेहनत की है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं, मैं उज्जैनवासियों का भी हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं, उन्होंने पूरे विश्व का यहां स्वागत किया, सम्मान किया, अपने मेहमान की तरह सम्मान किया और इसलिए उज्जैन के मध्य प्रदेश के नागरिक बंधु भी अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं, उनको भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और अगले कुंभ के मेले तक हम फिर एक बार अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएं इसी शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, फिर एक बार सभी संतों को प्रणाम और उनका आशीर्वाद, उनका सामर्थ्य, उनकी व्यवस्थाएं इस चीज को आगे चलाएगी, इसी अपेक्षा के साथ सबको प्रणाम।

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भारत माता की जय,

भारत माता की जय।

मंदार पर्वत// माता जोगिनी // और बाबा बैजनाथ की इस पावन भूमि// मा आप सभी को...जय जोहार। की हाल चाल छै ?

मैं झारखंड में जहां-जहां गया हूं। हर एक रैली अगली रैली का रिकॉर्ड तोड़ देती है। आज जो मैं देख रहा हूं, ये अद्भुत दृश्य है। जिनको राजनीति का हिसाब-किताब करना, ये जिनका कारोबार है, इतना इधर जाएगा तो ये होगा, उधर जाएगा तो ये होगा, ऊपर जाएगा तो ये होगा। इन सबको मैं कह रहा हूं, मेहनत मत करो यार, जरा एक बार झारखंड में चक्कर लगा लो, नतीजा क्या आएगा, पता चल जाएगा।

साथियों,

आपको लगता होगा कि आज मोदी जी क्यों आए हैं। क्या मैं आपसे वोट मांगने आया हूं? आपका प्यार इतना है, आपके आशीर्वाद इतने हैं कि वो तो आप मेरी झोली भर ही देते हैं। लेकिन मैं आज आपको निमंत्रण देने आया हूं। न्योता देने आया हूं। 23 तारीख को चुनाव के नतीजे के बाद बीजेपी-एनडीए सरकार का शपथ समारोह होगा। मैं आप सबको न्योता देने आया हूं उस शपथ समारोह के लिए।

साथियों,

आने वाले नेमान पर्व की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं ! आज झारखंड में पहले चरण का मतदान हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग गाजे-बाजे के साथ, एक लोकतंत्र का उत्सव मनाते हुए जुलूस निकाल रहे हैं। एक-एक पोलिंग बूथ में 10-12 जुलूस निकल रहे हैं और लोग थाली बजाते, घंटी बजाते, गीत गाते-गाते लोकतंत्र का उत्सव मनाने के लिए मतदान करने के लिए निकल पड़े हैं। सुबह से लंबी-लंबी कतारें लग गईं। साथियों, ये खबर ही अपने आप में ताकतवर खबर है। और इसलिए मैं एडवांस में झारखंड के लोगों का आभार भी व्यक्त कर देता हूं। आपके इस समर्थन के लिए, आपके इस प्यार के लिए। और यहां मैं देख रहा हूं हैं, इतनी ही बड़ी संख्या में यहां आपका आना, हम सबको आशीर्वाद देने के लिए आप आए, ये दिखाता है कि झारखंड के लोग जेएमएम सरकार को हटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। और मुझे तो लगता है कि झारखंड का मिजाज इस बार जेएमएम-कांग्रेस की सरकार हटाना, इतना ही नहीं है, इस बार झारखंड का मिजाज उनको कड़ी से कड़ी चुनावी सजा देने का मूड दिखता है मुझे। साथियों, जन-जन में, मन-मन में हर कोने में गांव हो, शहर हो, पहाड़ हो, जंगल हो, पढ़े-लिखे लोग हों, अनपढ़ लोग हों, व्यापारी हो, दुकानदार हो, मजदूर हो, माता हो, बहन हो, नौजवान हो, सब ओर एक ही आवाज गूंज रही है, एक ही आवाज गूंज रही है- रोटी, बेटी और माटी की पुकार, झारखंड में भाजपा-NDA सरकार। रोटी, बेटी और माटी की पुकार...।

साथियों,

गोड्डा की ये भूमि, शक्ति की भूमि है, मां योगिनी की भूमि है। हृदय पीठ भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। शक्ति की इस धरती से मैं झारखंड की माताओं-बहनों का आभार व्यक्त करना चाहता हूं। हमारी सरकार जब भी कोई बड़ी नीति बनाती है या कोई बड़े फैसले लेती है, तो झारखंड की माताओं-बहनों-बेटियों के भी बहुत से आशीर्वाद मिलते हैं। गोड्डा, साहिबगंज और पाकुड़ से भी अनेकों ऐसे आशीर्वाद मिलते रहते हैं। बीते कुछ सालों से यहां की बहनें मुझे लगातार एक बात जरूर बताती है। वे बताती हैं, मोदी जी आप हमारे लिए जो योजनाएं लाते हैं। यहां JMM-RJD और कांग्रेस वाले उनको लूट लेते हैं।

साथियों,

मैंने झारखंड की लाखों बहनों के नाम से पक्के घर देने के लिए पैसा दिया है। वो पैसा मैं सीधे बहनों के खाते में भेजता हूं। लेकिन यहां की सरकार ये पक्का घर आपको मिलने नहीं दे रही है। ये अपनी ही कोई फर्ज़ी स्कीम लेकर आई ताकि उसमें इनके लोगों को कट-कमीशन मिले। इन्होंने यही किया है। मैं आप सभी की परेशानी जानता हूं। आपको बालू नहीं मिलती, गिट्टी नहीं मिलती। ये सबकुछ JMM-कांग्रेस-RJD के लोग बेच कर खा जाते हैं। मैंने पूरे देश की बहनों के लिए घर पर ही अपना नल लगाने की योजना शुरू की। जहां भाजपा-NDA की सरकार है, वहां तो धड़ा-धड़ नल लग रहे हैं। लोगों के घर में पानी पहुंच रहा है। गोड्डा-साहिबगंज की बहनों के घर में नल के लिए भी हमने दिल्ली से पैसा भेजा। लेकिन आपके घर में नल लगा ही नहीं। आपके नल का पैसा भी JMM-कांग्रेस-RJD के लोगों ने हड़प लिया, खा लिया।

साथियों,

यहां की हमारी गांव की, गरीब, आदिवासी, दलित-पिछड़े, हमारे वंचित परिवार की बहनें, उनका चूल्हा जलता रहे, कोई गरीब बच्चा भूखा सो न जाए, इसके लिए मैंने मुफ्त चावल की योजना शुरु की। लेकिन बहनें बताती हैं कि इन्होंने चावल वाली योजना भी नहीं छोड़ा। थाली में भी ये चोरी करना छोड़ते नहीं हैं। और ये लूट का पैसा जा कहां रहा है? ये वही पैसा है जो नोटों के पहाड़ के रूप में हमने टीवी पर देखा है। आप मुझे बताइए, JMM-कांग्रेस को रत्तीभर भी पछतावा होता क्या? इतने सारे रुपये पकड़े जा रहे और जो नहीं पकड़े गए वो तो कहीं दबे पड़े होंगे। वो मैं बाद में हिसाब करने वाला हूं उनका। लेकिन थोड़ा सा भी पछतावा होता कि इतनी चोरी पकड़ी गई, जरा मुंडी नीचे करके जरा अच्छी बात बोलते। ये माफी तो नहीं मांगेंगे, मुझे मालूम है। वो आपके सामने अपने इस पाप के लिए शर्मिंदगी भी महसूस नहीं करेंगे। नोटों के पहाड़, और वो वाला नेता जो जेल गया। देखिए नोटों के पहाड़ वाला नेता जो जेल गया उसके परिवार के सदस्य को ही इन्होंने टिकट दे दिया। मतलब चोरी करने को सर्टिफाई कर दिया। और यह सिर्फ टिकट दिया ऐसा नहीं है वह आपके घाव पर नमक छिड़कने का काम किया है। सीधी-सीधी झारखंड के लोगों को चुनौती है, हमारी आदिवासी माताओं बहनों को चुनौती है। ये सोचते हैं कि JMM-कांग्रेस कुछ भी करें, इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।

मेरे प्यारे भाई-बहनों

झारखंड के भाई-बहनों इनके इस अहंकार को तोड़ना है, इनके इस भ्रम को तोड़ना है। अरे ये लोकतंत्र है, हम मालिक नहीं हैं, मालिक आप हैं। माताओं-बहनों, आप लिख लीजिए, जो अभी झौंपड़ी में रहता है, ऐसे हर परिवार को भाजपा-NDA सरकार पक्का घर देगी। ये मोदी की गारंटी है। झारखंड में गरीब को पक्का घर भी मिलेगा, उसमें पानी का नल भी मिलेगा, और मुफ्त गैस कनेक्शन भी मिलेगा। मैं तो हर बहन के घर का बिजली बिल, ये जो बिजली का बिल होता है ना, आप सबको मैं कहता हूं मेरी कोशिश है कि आज जो बिजली का बिल आता है, आप सोचते हैं यार कैसे रहेंगे, चलो इस बार यह कट करें और पैसे दे दे वरना बिजली कट हो जाएगी। अब मोदी क्या करने वाला है मालूम है, आपका बिजली का बिल जीरो। अब आपको लगेगा मोदी जादू कहां से करेगा, ये जादू नहीं है। हम हर घर को करीब पौने लाख रुपया यानी 75 से 80 हजार रुपया उनको सोलार पैनल लगाने के लिए देंगे। उससे बिजली पैदा होगी, आपकी बिजली तो जीरो बिल वाली, लेकिन अगर ज्यादा बिजली हो गई, आपकी जरूरत से ज्यादा बिजली है तो सरकार आपकी बिजली खरीदेगी। पहले आप सरकार को पैसे देते थे, अब सरकार आपको पैसे देगी, ये काम मोदी कर रहा है। ये हर परिवार उसमें अभी रजिस्ट्री करवा रहे हैं, काम चल रहा है। और इससे मुफ्त बिजली भी मिलेगी और ज्यादा बिजली पैदा हुई तो सरकार उसे खरीदकर आपको पैसे भी देगी, आप कमाई करेंगे।

साथियों,

भाजपा सरकार की पहचान है, हम आपके लिए जीते हैं, हम आपके बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मर मिटते हैं, दिन-रात काम करते हैं और इसलिए जो कहते हैं वो करने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते हैं। अभी ओडिशा में भाजपा ने सुभद्रा योजना घोषित की थी चुनाव के पहले। और छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना की घोषणा की थी। आज मुझे आपको ये हिसाब देते हुए आनंद हो रहा है, मैं अपना रिपोर्ट कार्ड दे रहा हूं कि हमारी उड़ीसा की सरकार ने और छत्तीसगढ़ की सरकार ने सरकार बनते ही माताओं-बहनों के लिए जो योजना बनाई थी सीधे उनके खाते में पैसा जमा करने की, वह योजना लागू हो गई, पैसे उनके खाते में जमा हो गए। अब झारखंड भाजपा ने गोगो दीदी योजना शुरु करने की गारंटी दी है। यहां भाजपा-NDA सरकार बनते ही, हर महीने हजारों रुपए बहनों के खाते में आना शुरू हो जाएंगे।

साथियों,

पहले कांग्रेस, फिर आरजेडी और JMM, इन दलों ने इस क्षेत्र में लंबे समय तक राज किया है। लेकिन आपको इन्होंने क्या दिया है? इन्होंने संथाल परगना को सिर्फ पलायन दिया है, गरीबी दी है, बेरोज़गारी दी है। खुद मुख्यमंत्री इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं। लेकिन यहां के लोगों को काम के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। भारत में रेलवे को डेढ़ सौ साल से ज्यादा का समय हो चुका है। लेकिन गोड्डा में आजादी के 75 साल बाद भी रेल नहीं पहुंच पाई थी। गोड्डा में रेल तब पहुंची, जब आपने मोदी पर भरोसा किया। अब यहां से दर्जनभर से अधिक ट्रेनें चलती हैं। मैं तो बाबा विश्वनाथ की काशी का सांसद हूं। काशी के लोगों ने चुन करके एमपी बनाया है और आप सबने मिलकर के मुझे पीएम बनाया है। और आज जब मैं आपके बीच आया हूं तो मैं गर्व से कह सकता हूं कि अब आप बाबा बैधनाथ के दर्शन करके वंदे भारत ट्रेन में बैठ के सीधे बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जा सकते हैं। एक दिन में दो-दो ज्योतिर्लिंग।

साथियों,

भाजपा-NDA सरकार, इस क्षेत्र में उद्योगों को भी बढ़ावा दे रही है। यहां बिजली के कारखाने लगे हैं। यहां सीमेंट के कारखाने लगे हैं। यहां बड़ी संख्या में रोजगार मिले हैं। साहिबगंज में एक बहुत बड़ा मल्टीमोडल टर्मिनल बना है। इससे यहां नए उद्योगों को बल मिलेगा। JMM-कांग्रेस वालों का उद्योगों का दूर-दूर तक नाता नहीं है। उनका एक ही उद्योग है पेपरलीक उद्योग, उनका उद्योग है माफिया राज फैलाना। उनको माफिया राज फैलाना आता है। ये लोग पेपर लीक माफिया पैदा करते हैं। ये सरकारी भर्ती में घूस और ट्रांस्फर-पोस्टिंग का कारोबार करते हैं। आप चाहते हैं ना ऐसे भ्रष्ट्चारियों को कड़ी सजा मिले? सजा मिलनी चाहिए ना? जरा जोर से बताइए, कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ना? कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ना? आप भाजपा-NDA सरकार बनाइए, युवाओं का भविष्य बर्बाद करने वालों को पाताल से भी खोजकर लाया जाएगा। झारखंड भाजपा ने लाखों युवाओं को सरकारी नौकरी का वादा किया है। हमारे बेटे-बेटियों को अच्छी शिक्षा और भत्ते का वादा किया है। ये सारे वादे भाजपा-एनडीए सरकार जरूर पूरे करेगी। संथाल-परगना की पहचान, पलायन से नहीं बल्कि पर्यटन से हो, ये काम हम करने वाले हैं।

साथियों,

किसानों का कल्याण, हमेशा से भाजपा की प्राथमिकता रहा है। भाजपा-NDA सरकारें जहां भी हैं वहां सिंचाई की सुविधाएं बना रही हैं। जहां पानी कम है, वहां टपक सिंचाई पर बल दिया जा रहा है। ये भाजपा सरकार है, जो छोटे किसानों के खाते में सीधे पैसा भेज रही है। इससे किसानों को बहुत मदद मिल रही है। अब झारखंड भाजपा ने धान किसानों से 3100 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदने की गारंटी दी है। कांग्रेस के समय में सिर्फ 8-10 वन उपज पर ही MSP मिला करता था। भाजपा सरकार अब करीब-करीब 90 वन-उपज पर MSP दिया करती है। झारखंड भाजपा ने भी वन उपज के लिए कई घोषणाएं की हैं। इन सारे प्रयासों से किसानों की आय बढ़ेगी।

साथियों,

झारखंड की ये धरती, सिद्धो-कान्हो, चांद-भैरव, फूलो-झानो, तिलका-मांझी की भूमि है। झारखंड धरती आबा बिरसा मुंडा की भूमि है। दो दिन बाद यानि 15 नवंबर से भाजपा सरकार, धरती आबा की डेढ़ सौवीं जयंति को पूरे धूमधाम से मनाने जा रही है। हम सिद्धो-कान्हो और दूसरे सेनानियों के भव्य स्मारक बनाने जा रहे हैं, रिसर्च सेंटर्स बनाने जा रहे हैं। ये भाजपा-NDA की सरकार है, जिसने पहली बार आदिवासी समाज को इतनी भागीदारी दी। ये भाजपा-NDA ही है, जिसने देश को पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति दीं। द्रौपदी मुर्मू जी के रूप में एक आदिवासी बेटी को राष्ट्रपति बनाया। लेकिन JMM की सहयोगी कांग्रेस ने क्या किया? आदिवासी बेटी को हराने के लिए इन लोगों ने पूरा जोर लगा दिया। और ये भूलना नहीं है।

साथियों,

कांग्रेस हमेशा से ही आदिवासियों की घोर विरोधी रही है। कांग्रेस ने झारखंड आंदोलन के दौरान अनेक आदिवासी माताओं की कोख उजाड़ी है। और ये JMM वाले आज सत्ता के लिए कांग्रेस की ही गोद में जा बैठे हैं। कुर्सी के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। संथाल परगना में तो हम देख रहे हैं कि इन्होंने कैसे रोटी-बेटी और माटी को ही दांव पर लगा दिया है। यहां आदिवासी समाज की संख्या लगातार घट रही है। आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर धोखे से कब्जे करवाए जा रहे हैं। घुसपैठ की समस्या झारखंड में विकराल होती जा रही है। हमें मिलकर झारखंड को तबाह होने से रोकना ही होगा। और मुझे खुशी है, इस बड़े लक्ष्य के लिए भाजपा परिवार का विस्तार हो रहा है। झारखंडी गौरव को बचाने की इस बड़ी लड़ाई में, अब तो सिद्धो-कान्हो के वंशज मंडल मूर्मू जी भी हमारे साथ हैं। और मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे सार्वजनिक रूप से इस महान परंपरा की विरासत, उनका सम्मान करने का अवसर मिला है। मैं उनका भाजपा में स्वागत करता हूं।

साथियों,

कांग्रेस को SC/ST/OBC से हमेशा से नफरत रही है। इसलिए नेहरू जी से लेकर राजीव गांधी तक, इन्होंने आरक्षण का हमेशा विरोध किया। ये लोग कभी नहीं चाहते थे कि SC/ST/OBC एकजुट हो जाएं। इसलिए आजादी के बाद दशकों तक कांग्रेस ने SC/ST/OBC समाज को बांटे रखा। और जैसे ही SC/ST/OBC एकजुट हुए, कांग्रेस कमजोर हो गई। केंद्र सरकार में उसकी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बननी बंद हो गई। अब कांग्रेस, केंद्र में सरकार बनाने के लिए छटपटा रही है। इसलिए उसने SC/ST/OBC की एकता को तोड़ने का, आपको बांटने का खेल खेला है, एक नई साजिश रची है। कांग्रेस SC/ST/OBC की सामूहिक ताकत को कमज़ोर करना चाहती है। जैसे संथाल में अनेकों आदिवासी जातियां हैं। यहां संथाल हैं, पहाड़िया हैं, पहाड़िया में भी अनेक उप-जातियां हैं। यहां कोरा, मुडी-कोरा हैं, लोहरा हैं, महली हैं, ओरांव-धनगर हैं, मुंडा-पातर हैं, खरवार हैं। ऐसी हर जाति जब आदिवासी के रूप में, ST के रूप में एक आवाज़ से कोई बात कहती है, तो उसमें वज़न होता है। लेकिन कांग्रेस इस आदिवासी पहचान को तोड़कर, इसे छोटी-छोटी जातियों में बांटना चाहती है। ये संथाल को पहाड़िया से, कोरा को लोहरा से, महली को ओरांव-धनगर से, मुंडा को खरवार से, ऐसे एक जनजाति को दूसरे से लड़ाने में जुटे हैं, टुकड़े करने में जुटे हैं। इसमें JMM, कांग्रेस का पूरा साथ दे रही है। इससे आदिवासियों की एकता कमज़ोर होगी और कांग्रेस-JMM अपने वोटबैंक की मदद से सत्ता हासिल करेगी। और इसके बाद कांग्रेस द्वारा आपका आरक्षण भी छीन लिया जाएगा। और इसलिए भाई-बहनों एक बात कभी भी मत भूलना और अब तो इसकी ज्यादा जरूरत है। हमें याद रखना है, एक हैं तो सेफ हैं। एक हैं तो... सेफ हैं। एक है तो... सेफ हैं। एक है तो... सेफ हैं।

साथियों,

झारखंड का ये चुनाव, सिर्फ आने वाले 5 सालों के लिए नहीं है। ये आने वाले 25 सालों का भविष्य तय करेगा। 20 नवंबर को अपने बाल-बच्चों के भविष्य के लिए आपको वोट डालना है। आपको रोटी, बेटी और माटी को बचाने के लिए, इन्हें सुरक्षित और समृद्ध बनाने के लिए वोट डालना है। अब कुछ ही दिन बाकी हैं। आप सबसे मेरी प्रार्थना है दिन-रात जुटना है घर-घर जाना है। साथियों, मैंने इतनी सारी रैलियां की हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिलने की मैंने कोशिश की है लेकिन फिर भी हर घर तक तो पहुंच नहीं पाता। अब ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप मोदी बनकर मेरा संदेश पहुंचा दें। संथाल के घर-घर में पहुंचाएं, और हर घर में जाकर कहना, अपने मोदी भाई आए थे और मोदी जी ने आपको जय जोहार कहा है। मेरा जय जोहार पहुंचा देंगे। पक्का पहुंचा देंगे? हर घर से मेरे लिए आशीर्वाद लेंगे? पक्का लेंगे? मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।

मेरे साथ बोलिए,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय ।
बहुत-बहुत धन्यवाद