आज जो अपने जीवन की नई शुरूआत कर रहे हैं ऐसे सारे विद्यार्थी मित्रों और उपस्थित सज्‍जनों,

मैंने विशेष मेहमान कहा, कुछ बच्‍चों को आपने देखा होगा। मैंने एक आग्रह रखा है कि जहां भी Convocation होता है वहां पर उस शहर के 20-25 स्‍कूलों से और वो भी गरीब बच्‍चे जहां पढ़ते हो दो दो बच्‍चों को इस Convocation पर विशेष रूप से निमंत्रित करके बुलाना चाहिए। जब यह बालक इस समारोह को देखते हैं, यह वेशभूषा, यह सब, तो उनके मन में एक संस्‍कार भी जगते हैं और सहज रूप से एक inspiration सा जगता है, उनके मन में भी होता है कि काश मेरे जीवन में भी ऐसा अवसर आए और इसलिए मेरा आग्रह रहता है कि हर University में एक Convocation हो तो गरीब परिवार के 50 बालक....40-50 स्कूलों में से एक-एक दो-दो को जरूर बुलाना चाहिए। उनको यह समारोह में शरीक करना चाहिए। उसमें से एक नई प्रेरणा मिलती है और मैं भी चाहूंगा कि आज जो उर्तीण हुए हैं वो बाद में जरूर पांच मिनट उन बच्‍चों से बात करें। उसने चर्चा करें, अपने अनुभव share करें। आप देखिए आपके माध्‍यम से कितना बड़ा काम हो जाएगा।

आज मुझे कुछ पूर्व Directors का सम्‍मान करने का अवसर मिला। अनेक व्‍यक्ति अपना जीवन जब खपा देते हैं, तब ऐसी संस्‍थाएं विकसित होती हैं। ऐसी व्‍यवस्‍थाएं विकसित होती हैं। पूर्व के जितने भी लोग थे और वर्तमान जितने भी लोग हैं उन सबके प्रयत्‍नों से इस संस्‍था ने एक अंतर्राष्‍ट्रीय अपना स्‍थान बनाया है। मैं उन सबका हृदय से अभिनंदन करता हूं और जिनका स्‍वागत करने का मुझे अवसर मिला मैं अपने आप में गौरव की अनुभूति करता हूं।

मित्रों मेरे मन में एक प्रश्‍न है कि अगर आपने दिमाग लगाया होता तो शायद इस Profession में नहीं आते। यहां आने से पहले आपने दिमाग से नहीं सोचा होगा यह मेरा पूरा विश्‍वास है। फिर आए क्यों? आए इसलिए हैं कि आपने दिमाग से नहीं दिल से सोचा है। काम तो दिमाग का है, लेकिन दिमाग से होने वाला नहीं है। आपने एक ऐसे Profession को तैयार किया है जिसमें दिल से ही आप Patient को ठीक कर पाते हैं, दिमाग से नहीं कर पाते और उस पर मैं कहता हूं कि आपने, आपके दिल ने आपको इस Profession में आने के लिए मजबूर किया है, अपने आपको प्रेरित किया है, आपके भीतर से वो आवाज़ उठी है और आपको लगा है कि भई यह समाज में ये लोग.. कोई तो इनकी सेवा करें और मैं जातना हूं कि यह कठिन काम है।

आप जब पहली बार अस्‍पताल में डिग्री धारण करने के बाद जाएंगे तो Patient तालिया बजाएंगे कि चलो एक और आ गया। उनको तो यही लगेगा कि हमारे जैसा ही कोई आया है, फिर उसके साथ बात करना, समय बिताना, उसको समझना और फिर उसमें विश्‍वास जगाना.. बीमारी दूर करने से पहले विश्‍वास जगाना। एक ऐसा कठिन काम आपने लिया है। लेकिन मुझे विश्‍वास है कि आप, यहां जो आपको शिक्षा-दीक्षा मिली हैं, उस बदौलत और आपके दिल में जो दर्द है उसकी बदौलत आप अवश्‍य इस क्षेत्र में बहुत उत्‍तम प्रकार की सेवा कर पाएंगे।

हमारे देश में Mental Health का जब Symptom दिखने लग जाते हैं, परिवार को लगता है कि यह क्‍या odd कर रहा है, तो सबसे पहले वो मंत्र तंत्र में लग जाते हैं कोई धूपधाप करता हैं, उनको लगता है कि हां यह ठीक हो जाएगा और वहीं से बर्बादी की शुरूआत हो जाती है। अंतस्‍था मरीज को और तबाह कर देती है और परिवार वालों को लगता है हां ऐसा ही कुछ हुआ है, किसी ने कुछ कर दिया है और उसी में उसकी जिंदगी तबाह होना शुरू हो जाती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि मानसिक बीमारी के प्रति देखने का समाज का रवैया कैसा है और उसमें से बदलाव लाना है और ये health related विषय है, ये physical problem है, इसके solution उस रूप से निकल सकते हैं। और बीमारियों को जैसे treat किया जा सकता है, इसे भी किया जा सकता है। यह उसके दिमाग में भरना, उस परिवार के दिमाग में भरना यह भी काफी कठिन होता है।

कुछ ऐसे परिवार होंगे… तो क्या होता होगा...वो नहीं चाहेंगे कि किसी को पता चले कि इसको ऐसी बीमारी है। छुपाते है, डरते हैं, क्‍यों कि समाज में अगर पता चल जाए कि इनके परिवार में एक का दिमाग ऐसा है तो बाकी सोचते है फिर तो सब item ऐसी ही होगी। इस पेड़ पर ऐसे ही फल आए होंगे और इसलिए बाकी कितना ही तंदरूस्‍त क्‍या न हो अच्‍छा डॉक्‍टर बना हो, फिर भी कोई बेटी देने से पचास बार सोचता है कि भई उसका एक भाई तो गड़बड़ है, इसको दे या न दें। यानी सामाजिक दृष्टि से भी एक ऐसी बीमारी है जो एक व्‍यक्ति को नहीं, पूरे परिवार को समाज की नजरों में गिरा देती है। कभी-कभार तो बाबा के समय कुछ हुआ हो grand-father, great grand-father.. और रिश्‍तेदारों को पता हो कि उनके भई एक दादा थे 55-60 साल की आयु में ऐसा हो गया था, तो भी उस परिवार के बच्‍चों को चार-चार पीढ़ी तक यह सुनते रहना पड़ता है...कुछ यार गड़बड़ है। कोई स्‍क्रू ढीला लगता है।

यानी यह एक ऐसा patient है जिसके प्रति अज्ञान, अंधश्रद्धा और जागरूकता यह सारी चीजों ने घेर लिया है और उसमें से हमें एक वैज्ञानिक तरीके से एक patient मानकर, उसकी care करने के लिए समाज के अवरोधों के खिलाफ भी काम करना पड़ता है। बाद में स्थिति ऐसी आती है अगर कोई संभावना वाला व्‍यक्ति हो, थोड़ा समझदार हो, थोड़ा जानता हो चीजें तो फिर वो depression की दवाएं लेना शुरू कर देता है और उसका कोई end नहीं होता, doze बढ़ता ही जाता है और depression भी बढ़ता ही जाता है। यानी व्‍यक्ति स्‍वयं थोड़ा depress हो तो भी इस दिशा में जाता है और ऐसी स्थिति में जब आपके profession को काम करना हो तब वैज्ञानिक तरीकों के साथ-साथ मैंने प्रारंभ में कहा, यह दिल से ही दवाई होती है और इसलिए सामान्‍य डॉक्‍टर से भी ज्‍यादा मान्‍यवीय संवेदनाएं, सामान्‍य डॉक्‍टर से ज्‍यादा patient के प्रति sympathy, इस profession में आवश्‍यक होती है। सिर्फ ज्ञान और अनुभव, इतने से इसमें काम नहीं होता है और उस अर्थ में यहां जो आपको शिक्षा-दीक्षा मिली है। मुझे विश्‍वास है कि आप सफलतापूर्वक आगे बढ़ोगे।

एक स्थिति आपके जीवन में भी ऐसी आएगी.. मैं नहीं चाहता हूं कि आए.. लेकिन आएगी, हंसी-मजाक के तौर पर आएगी लेकिन आएगी। आपकी शादी हो जाएगी और दो-चार, पांच साल के बाद जब पति या पत्‍नी रूठे हुए होंगे तो आपसे क्‍या कहेंगे? आप भी patient जैसे हो हो गए हो। इन patients के साथ रहते रहते आपका भी ऐसा ही हो गया है। यानी ऐसी अवस्‍था में आपको भी काम करना है। आपने यहां शिक्षा-दीक्षा ली है, डॉक्‍टर बनकर के आप समाज में स्‍थान प्राप्‍त करने वाले हैं। आपके मां-बाप ने कितने अरमानों के साथ आपको यहां भेजा होगा, कितनी अपेक्षाओं के साथ भेजा होगा, कितनी कठिनाईयों को झेलते हुए आपको भेजा होगा। मैं आपसे आग्रह करूंगा आपने जो कुछ भी पाया है, आपकी मेहनत तो है ही है। यहां पर शिक्षा-दीक्षा देने वालों की मेहनत भी है, आपके यार-दोस्‍तों का भी कोई न कोई योगदान है। लेकिन उन परिवारजनों ने जिन्‍होंने बड़े आशा, अरमानों के साथ आपको यहां भेजा है। अब तक तो आप विद्यार्थी थे और इसलिए वो भी सोचते थे कि मुझे देना है, लेकिन अब कल से वो भी आपकी तरफ दूसरे नजरिए से देखेंगे। अब तो भई मेरे से हुआ जो हुआ, मैंने तुम्‍हें पढ़ाया, कर्ज करके पढ़ा दिया, सब कर लिया अब तो तुम तुम्‍हारा करो कुछ.. अपेक्षाएं एक नया रूप लेंगी। मैं आशा करता हूं कि आप अपने सामर्थ्‍य से आगे बढ़ करके, अपने माता-पिता की जो आशाएं, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं हैं आपके प्रति उसे पूरा करने की ईश्‍वर आपको पूरी ताकत दें और बिना समय बीते, वे गर्व से जी सकें इस प्रकार से आपका जीवन व्‍यवहार, आपके जीवन की सिद्धियां.. उनके जीवन के उस आधार को और अधिक जीने योग्‍य बना दें ऐसी मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

कभी-कभार हमें यह भी लगता है कि हम यहां पहुंचे, बेंगलुरू तक आ गए.. दो किलोमीटर दूर से, पांच सौ किलोमीटर दूर से, हजार किलोमीटर दूर से पढ़ाई के लिए आ गए। पैसे थे, admission मिल गया था, अच्‍छे marks थे, पढ़ रहा हूं, परमात्‍मा ने दिमाग ठीक दिया है तो अच्‍छी तरह पढ़ लेता हूं। क्‍या कभी सोचा है क्‍या सिर्फ इन कारणों से आप इस जगह पर पहुंचे हैं। अगर आप सोचेंगे तो पता चलेगा कि नहीं। इसका तो स्‍थान बहुत कम है। आपके पैसे, आपका समय, आपकी बुद्धि, आपके परिवार का योगदान, आपके शिक्षकों का योगदान यह कहां जाता है। लेकिन आपको यहां तक पहुंचाने के लिए जिन-जिन लोगों ने योगदान दिया है कभी उनको भी याद कीजिए और जीवन में हर पल याद कीजिए। फिर आपको जीवन कैसे जीना चाहिए, यह सीखने के लिए किसी महापुरूष को याद नहीं करना पड़ेगा, किसी किताब का reference नहीं देखना पड़ेगा। अपने जीवन की ही घटनाएं, आपके जीवन की प्रेरणा बन सकती है। याद कीजिए जिस दिन पहली बार आप बेंगलुरू आए होंगे और कोई ऑटो रिक्‍शा वाला आपको यहां तक ले आया होगा, जरा उसका चेहरा याद कीजिए और यह सोचिए कि आप तो नये आए थे, लेकिन इसने आपसे अधिक पैसे नहीं मांगे थे, उतने ही पैसे लिए थे जितना कि यहां पहुंचने का किराया होता था। आपको याद आएगा कि देखों भई मेरी जिंदगी की शुरूआत जब मैं बेंगलुरू पहली बार आया था, लेकिन एक ऑटो रिक्‍शा वाला था जो मुझे समय जगह पर, सही समय पर पहुंचाया था। क्‍या आपका यहां तक पहुंचने में उसका कोई योगदान नहीं है, अगर उसका योगदान है तो क्‍या मेरी जिंदगी में उस कर्ज को चुकाने का योगदान होना चाहिए कि नहीं? और मैं मानता हूं जिंदगी को आगे बढ़ाने का तरीका यही होता है। हम किस के कारण कहां-कहां पहुंचे हैं। कभी यहां भी पढतें होंगे, कभी थकान भी महसूस होती होगी, exam के दिन होंगे और मन कर गया होगा कि रात को 12 बजे जाकर के कहीं चाय पीएं और hostel से बाहर निकल कर किसी पेड़ के नीचे चाय बेचने वाला बैठा होगा, बिचारा सोया होगा, आपने उसे जगाया होगा कि यार कल exam है जरा चाय पिला दो न और उसने अपनी नींद छोड़कर के आपके लिए चाय बनाई होगी। और वो चाय पीकर के आपने रात को फिर दो घंटा पढ़ा होगा और सुबह आपका पेपर बहुत अच्‍छा गया होगा। क्‍या उस चाय वाले का आपके जीवन में कोई योगदान है कि नहीं है?

मैंने कहने का तात्‍पर्य यह है कि हम जीवन में आगे बढ़ते हैं अपने कारण नहीं अपनों के कारण भी नहीं, अनगिनत लोगों के कारण आगे बढ़ते हैं और जो भी समाज या आखिरी छोर पर बैठे हुए लोगों के कारण बनते हैं और इसलिए जीवन जीते समय, क्‍योंकि दीक्षांत समारोह है, आज अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ आज समाज के उच्‍च स्‍थान पर विराजित होने वाले हैं, तब जिनके कारण हम यहां पहुंचें हैं उनको जीवन में कतई नहीं भूलेंगे। उनके लिए जीने का कुछ पल तो हम प्रयास करेंगे। मुझे विश्‍वास है कि तब जीवन बहुत धन्‍य हो जाता है।

आखिरकार धनी से धनी व्‍यक्ति.. आप जिस profession में हैं ऐसे लोग आपको मिलेंगे, पैसों का ढेर होगा, बच्‍चे होंगे, गाड़ी होगी, बंगला होगा, सब होगा और आपको आकर के कहेंगे कि यार डॉक्‍टर साहब रात को नींद नहीं आती है, पता नहीं क्‍या तकलीफ है। बहुत विचार मंथन चला रहता है, मन शांत नहीं रहता। ऐसे patient आएंगे आपके पास। सब कुछ है धन है, दौलत है, वैभव है, पैसे हैं, सब है.. मतलब यह हुआ इन चीजों से जीवन में सुख नहीं मिलता है, सुख कहीं और से मिलता है और इसलिए स्‍वांत: सुखाय मेरे भीतर के मन को आनंद दें इस प्रकार की जिंदगी जीने का प्रयास मुझे जो ईश्‍वर ने कार्य क्षेत्र दिया है उस कार्य क्षेत्र जिसको मैंने चुना है, और जिन लोगों के लिए मैं जी रहा हूं मेरे लिए यही स्‍वांत: सुखाय है। आप देखिए जिंदगी में कैसे नया रंग भर जाता है। और इसलिए उस उमंग और उत्‍साह के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास अगर हम निरंतर करते रहेंगे, मैं विश्‍वास से कहता हूं कि आप जिस क्षेत्र में आए हैं उस क्षेत्र से आप समाज को अवश्‍य कुछ न कुछ दे सकते हैं।

Patient... हमारे यहां तो कहा है... नर सेवा और नारायण सेवा....सेवा परमोधर्म यहा कहा गया है। और medical profession ऐसा है कि जिसके कार्य को ही सेवा माना गया है। वो पैसे लेकर के करे तो भी पैसे न लेकर के करे तो भी उस काम को सेवा माना गया है। बहुत कम लोग होते हैं जिनको जीवन में सेवा ही सेवा या अवसर मिलता है। आप वो बिरादरी के लोग हैं जिनका जीवन का हर कार्य सेवा माना जाएगा और जब जैसे मंदिर में पूजा करने वाले के लिए कि परमात्‍मा को पूजा करना व्‍यवसाय नहीं है, वो पुजारी की खुद की चेतना जगाने का कार्य होता है, वैसे ही सेवा परमोधर्म है, इस प्रकार से जो patient के प्रति भाव रखता है तो उसके जीवन में उस प्रकार के आनंद की अनुभूति होती है, वो आनंद की अनुभूति आपको भी मिलती रहेगी। मुझे विश्‍वास है कि आपके जीवन में कभी भी थकान महसूस नहीं होगी, कभी रूकावाट नहीं महसूस होगी। कभी यह नहीं लगेगा काश यह न होता तो अच्‍छा होता, जहां होंगे वहीं अच्‍छे की अनुभूति होगी और वही तो जीवन का आनंद होता है।

आप यहां से जाएंगे, समाज आपको देखेगा, सिर्फ patient ही आपको देखेगा ऐसा नहीं समाज भी देखेगा। समाज के कारण हम पहुंचे हैं, उस समाज के लिए हम कुछ न कुछ तो करेंगे। जी-जान से करेंगे, जी-भरकर करेंगे। अगर यह मन का भाव रहा तो हमारा जीवन सफल हो जाता है।

आज मैं इन सभी जो award winners है, जिन्‍होंने विशेष अंक प्राप्‍त किए है उनको भी हृदय से बधाई देता हूं और आज उर्तीण होकर के एक नये जीवन की शुरूआत कर रहे हैं, उनको भी मेरी बहुत-बहुत शुभकामना देता हूं। मुझे आज यहां आने का अवसर मिला, इसलिए मैं आप सबका बहुत आभारी हूं।

धन्‍यवाद।

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नोमोस्कार। लुइटपोरिया राइजोलोई मुर श्रोद्धा अरु मरोम ज़ासिसु!

असम के गर्वनर लक्ष्मण प्रसाद आचार्य जी, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जी, केंद्र में मेरे सहयोगी, हमारे पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल जी, राम मोहन नायडू जी, मुरलीधर मोहोल जी, पबित्रा मार्गेरिटा जी, असम सरकार के मंत्रिगण, अन्य महानुभाव, भाईयों और बहनों।

मैं अपना भाषण शुरू करूं उससे पहले, मैं आप सबसे एक प्रार्थना करता हूं, कि आज विजय का आज का जो दिवस है, एक प्रकार से विकास के उत्सव का दिवस है और ये सिर्फ असम नहीं, पूरे नॉर्थ ईस्ट के विकास का उत्सव है, और इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि अपना मोबाइल फोन निकालिए, उसपर फ्लैश लाईट चालू कीजिए और सब के सब इस विकास उत्सव में भागीदार बनिए। हर एक के मोबाईल फोन का लाईट जलना चाहिए, देखिए तालियों के गूंज से पूरा देश देखेगा, कि असम विकास का उत्सव मना रहा है। जब विकास का प्रकाश पहुंचता है, तो जिंदगी की हर राह नई ऊंचाईयों को छूने लग जाती है। बहुत-बहुत धन्यवाद सबका।

साथियों,

असम की धरती से मेरा लगाव, यहां के लोगों का प्यार और स्नेह, और खासकर असम और पूर्वोत्तर की मेरी माताओं-बहनों का अपनापन, ये मुझे निरंतर प्रेरित करते हैं, पूर्वोत्तर के विकास के हमारे संकल्प को ताकत देते हैं। मैं देख रहा हूं, आज एक बार फिर असम के विकास में नया अध्याय जुड़ रहा है, और ऐसे में भारत रत्न भूपेन दा की पंक्तियां बहुत सटीक हो जाती हैं। लुइदोर पार जिलिकाई टुलिबोलोई, आमी प्रोतिज्ञाबोद्ध! आमी हॉन्कल्पबोद्ध! यानी लुइत नदी का तट उज्जवल होगा, अंधकार की हर दीवार टूटेगी और ये होकर रहेगा, यही हमारा संकल्प है, यही हमारी प्रतिज्ञा है।

साथियों,

भूपेन दा की ये पंक्तियां केवल एक गीत नहीं थी, ये असम को प्यार करने वाली हर महान आत्मा का संकल्प था और आज ये संकल्प हमारे सामने सिद्ध हो रहा है। जैसे असम में विशाल ब्रह्मपुत्र की धाराएं कभी नहीं रूकती, वैसे ही बीजेपी की डबल इंजन सरकार में यहां विकास की धारा भी अनवरत बह रही है। आज लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का उद्धघाटन हमारे इस संकल्प का प्रमाण है। मैं सभी असमवासियों को, देश के लोगों को, इस नई टर्मिनल बिल्डिंग के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहनों और भाईयों,

अब से कुछ देर पहले मुझे गोपीनाथ बोरदोलोई जी की प्रतिमा का अनावरण करने का सौभाग्य मिला है। बोरदोलोई जी असम के पहले मुख्यमंत्री थे, असम का गौरव थे, असम की पहचान, असम का भविष्य और असम के हित उन्होंने कभी भी इससे समझौता नहीं किया। उनकी ये प्रतिमा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी, उनमें असम को लेकर गौरव की भावना जगाएगी।

साथियों,

आधुनिक एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं कनेक्टिविटी का आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चऱ ये किसी भी राज्य के लिए नई संभावनाओं और नए अवसरों के गेटवे होते हैं। ये राज्य के बढ़ते आत्मविश्वास और लोगों के भरोसे के स्तम्भ होते हैं। आप भी जब देखते हैं कि असम में इतने शानदार हाईवे बन रहे हैं एय़रपोर्ट बन रहे हैं तो आप भी कहते हैं- अब जाकर असम के साथ न्याय होना शुरू हुआ है।

वरना साथियों,

काँग्रेस की सरकारों के लिए असम और पूर्वोत्तर का विकास उनके एजेंडे में ही नहीं था। काँग्रेस की सरकारें, और उनमें बैठे लोग कहते थे, असम और पूर्वोत्तर में जाता ही कौन है? काँग्रेस कहती थी, असम को, पूर्वोत्तर को, आधुनिक एयरपोर्ट की, हाइवेज और बेहतर रेलवेज की जरूरत ही क्या है? इसी सोच की वजह से कांग्रेस ने दशकों तक इस पूरे क्षेत्र की उपेक्षा की।

साथियों,

कांग्रेस 6-7 दशक तक जो गलतियां करती रही, और मोदी एक एक करके उसको सुधार रहा है। मोदी कहता है, काँग्रेस वाले नॉर्थईस्ट जाएँ या न जाएँ, मुझे तो नॉर्थईस्ट और असम आते ही अपने लोगों के बीच होने का एहसास होता है। मोदी के लिए असम का विकास, ये जरूरत भी है, ज़िम्मेदारी भी है, और इसकी जवाबदेही भी है।

और इसीलिए साथियों,

बीते 11 वर्षों में असम और नॉर्थईस्ट के लिए लाखों करोड़ रुपए की विकास परियोजनाएं शुरू हुईं हैं। आज असम आगे भी बढ़ रहा है, और नए कीर्तिमान भी गढ़ रहा है। मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि असम भारतीय न्याय संहिता लागू करने में देश में नंबर-1 राज्य बना है। असम ने 50 लाख से ज्यादा स्मार्ट प्री-पेड मीटरलगाकर भी एक नया रिकॉर्ड बनाया है। कांग्रेस के समय में असम में बिना पर्ची, बिना खर्ची के सरकारी नौकरी मिलना असंभव था। लेकिन आज यहां हजारों युवाओं को बिना पर्ची-बिना खर्ची नौकरी मिल रही है। भाजपा की सरकार में असम की संस्कृति को हर मंच पर बढ़ावा दिया जा रहा है। मैं भूल नहीं सकता, जब पिछले साल 13 अप्रैल को गुवाहाटी स्टेडियम में 11 हजार से ज्यादा कलाकारों ने एक साथ बिहू नृत्य किया था। इस घटना को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। ऐसे ही नए रिकॉर्ड बनाते हुए असम तेजी से आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

अब इस नई टर्मिनल बिल्डिंग से गुवाहाटी और असम की क्षमता और ज्यादा बढ़ जाएगी। इस टर्मिनल पर हर साल करीब सवा करोड़ से ज्यादा यात्री सफर कर सकेंगे! यानी, बड़ी संख्या में पर्यटक भी असम आ सकेंगे। श्रद्धालुओं के लिए माँ कामाख्या के दर्शन की सुविधा भी आसान हो जाएगी। इस नए एयरपोर्ट टर्मिनल में कदम रखते ही ये साफ दिखता है विकास भी औऱ विरासत भी, ये मंत्र के मायने क्या हैं? इस एयरपोर्ट को असम की प्रकृति और संस्कृति को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है। टर्मिनल के अंदर हरियाली है। Indoor forest जैसी व्यवस्था है। चारों तरफ प्रकृति से जुड़ा डिजाइन है, यहां आने वाला हर यात्री सुकून महसूस करे। इसकी बनावट में बांस का खास इस्तेमाल किया गया है। बांस असम के जीवन का अभिन्न हिस्सा है, वो यहां मजबूती भी दिखाता है और खूबसूरती भी। और दिल्ली में बैठे हुए भूतकाल की सरकारों को ये बंबू क्या है, इसकी पहचान भी नहीं थी। आप हैरान होंगे, 2014 में आपने मुझे काम दिया उसके पहले हमारे देश में एक कानून था, ये कानून ऐसा था कि आप बंबू को काट नहीं सकते, अब कोई मुझे समझाए भई क्यों? क्योंकि उन्होंने कह दिया बंबू एक ट्री है, वृक्ष है, और जब एक बार वृक्ष कह दिया, तो फिर सारे दरवाजे बंद हो गए। जबकि बंबू दुनिया मानती है, कि ये एक पौधा है और हमने कानून हटाया और ग्रास की कैटेगरी में, जो सचमुच में बंबू की पहचान है उसमें लाया और तब जाकर के आज ये बंबू से इतनी बड़ी भव्य इमारत निर्माण हुई है और आज अगर आप सोशल मीडिया देखोगे, तो दुनिया भर में भारत के एयरपोर्ट की रचनाओं की चर्चा हो रही है।

साथियों,

इनफ्रास्ट्रक्चर के इस विकास का बहुत बड़ा संदेश, भारत की विकास यात्रा की पहचान बन रहा है। इससे उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। निवेशकों को कनेक्टिविटी का भरोसा मिलता है। लोकल प्रोडक्ट्स को दुनिया भर में पहुंचाने का रास्ता खुलता है। और, सबसे बड़ा भरोसा उस युवा को मिलता है, जिसके लिए नए अवसर पैदा होते हैं। और इसलिए आज हम असम को, असीम संभावनाओं की इसी उड़ान पर आगे बढ़ते देख रहे हैं।

साथियों,

आज भारत को देखने का दुनिया का नज़रिया बदला है, और भारत की भूमिका भी बदली है। भारत अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। 11 साल के भीतर-भीतर ये कैसे हुआ?

साथियों,

इसमें बहुत बड़ी भूमिका आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास की है। भारत 2047 की तैयारी कर रहा है, विकसित भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए हम इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस कर रहे हैं। और सबसे अहम बात ये है कि, विकास के इस महान अभियान में देश के हर राज्य की, हर क्षेत्र की भागीदारी है। हम पिछड़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं। देश का हर राज्य एक साथ प्रगति करे, और विकसित भारत के मिशन में अपना योगदान दे, हमारी सरकार इस दिशा में काम कर रही है। और मुझे खुशी है कि आज असम और पूर्वोत्तर हमारे इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं। हमने Act East पॉलिसी के जरिए पूर्वोत्तर को प्राथमिकता दी, और आज, हम असम को भारत के ईस्टर्न गेटवे के रूप में उभरता देख रहे हैं। असम भारत को ASEAN देशों से जोड़ने के लिए ब्रिज की भूमिका निभा रहा है। ये शुरुआत अभी बहुत आगे तक जाएगी। और, असम कई क्षेत्रों में विकसित भारत का इंजन बनेगा।

साथियों,

आज असम और पूरा नॉर्थ ईस्ट भारत के विकास का नया प्रवेशद्वार बन रहा है। मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी के संकल्प ने इस क्षेत्र की दिशा और इसकी दशा, दोनों बदली हैं। असम में नए पुल बनाने की रफ्तार, नए मोबाइल टावर लगाने की स्पीड, विकास के हर काम की गति, सपनों को हकीकत में बदल रही है। ब्रह्मपुत्र पर बने पुलों ने असम की कनेक्टिविटी को नई मजबूती और नया आत्मविश्वास दिया है। आजादी के बाद के 6-7 दशक में यहाँ केवल तीन बड़े पुल बन पाए थे। लेकिन पिछले एक दशक में चार नए मेगा ब्रिज पूरे किए गए हैं, इनके अलावा कई ऐतिहासिक परियोजनाएँ आकार ले रही हैं। बोगीबील और ढोला-सादिया जैसे सबसे लंबे पुलों ने असम को रणनीतिक रूप से और अधिक सशक्त बना दिया है। रेलवे कनेक्टिविटी में भी एक क्रांतिकारी बदलाव आया है। बोगीबील ब्रिज के शुरू होने से अपर असम और देश के बाकी हिस्सों के बीच की दूरी सिमट गई है। गुवाहाटी से न्यू जलपाईगुड़ी तक चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस ने यात्रा के समय को कम कर दिया है। देश में वाटरवेज के विकास का फायदा भी असम को मिल रहा है। कार्गो ट्रैफिक में 140 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, ये इस बात का प्रमाण है कि ब्रह्मपुत्र केवल नदी नहीं, बल्कि आर्थिक शक्ति का प्रवाह है। पांडु में पहली शिप रिपेयर सुविधा विकसित हो रही है, वाराणसी से डिब्रूगढ़ तक चलने वाली गंगा विकास क्रूज़ को लेकर उत्साह है, इससे नॉर्थ ईस्ट, ग्लोबल क्रूज़ टूरिज्म के मानचित्र पर स्थापित हो गया है।

साथियों,

काँग्रेस की सरकारों ने असम और पूर्वोत्तर को विकास से दूर रखने का जो पाप किया था, उसका बहुत बड़ा खामियाजा देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता को उठाना पड़ा। काँग्रेस की सरकारों में हिंसा का दौर दशकों तक फलता फूलता रहा, हम केवल 10-11 साल के भीतर उसे खत्म करने की तरफ बढ़ रहे हैं। पूर्वोत्तर में पहले जहां हिंसा और खून-खराबा होता था, आज वहाँ 4G और 5G टेक्नालजी से डिजिटल कनेक्टिविटी पहुँच रही है। जो जिले, कभी हिंसा ग्रस्त माने जाते थे, आजवो आकांक्षी जिलों के रूप में विकसित हो रहे हैं। आने वाले समय में यही इलाके इंडस्ट्रियल कॉरिडॉर भी बनेंगे। इसीलिए, आज नॉर्थईस्ट को लेकर एक नया भरोसा जगा है। हमें इसे और मजबूती देनी है।

साथियों,

हमें असम और पूर्वोत्तर के विकास में कामयाबी इसलिए भी मिल रही है, क्योंकि हम इस क्षेत्र की पहचान और संस्कृति की सुरक्षा कर रहे हैं। काँग्रेस ने एक और पाप किया था, उसने यहाँ की पहचान को मिटाने की साजिश की थी। और ये षड्यंत्र केवल कुछ वर्षों का नहीं है! काँग्रेस के इस पाप की जड़ें आज़ादी के पहले से जुड़ी हैं। वो समय, जब मुस्लिम लीग और अँग्रेजी हुकूमत मिलकर भारत के विभाजन की जमीन तैयार कर रहे थे, उस समय असम को भी अविभाजित बंगाल का, यानी ईस्ट पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की योजना बनाई गई थी। काँग्रेस उस साजिश का हिस्सा बनने जा रही थी। तब बोरदोलोई जी अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े हो गए थे। उन्होंने असम की पहचान को खत्म करने के इस षड्यंत्र का विरोध किया। और, असम को देश से अलग होने से बचा लिया। भाजपा पार्टी, हमेशा पार्टी लाइन से ऊपर उठकर हर देशभक्त का सम्मान करती है। अटल जी के नेतृत्व में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई, तब उन्हें भारत रत्न दिया गया।

भाइयों बहनों,

बोरदोलोई जी ने आज़ादी के पहले तो असम को बचा लिया था, लेकिन, उनके बाद काँग्रेस ने फिर से असम विरोधी और देश विरोधी काम शुरू कर दिये। काँग्रेस ने अपना वोटबैंक बढ़ाने के लिए मजहबी तुष्टीकरण के षड्यंत्र रचे हैं। बंगाल और असम में अपने वोटबैंक वाले घुसपैठियों को खुली छूट दी गई है। यहाँ की डेमोग्राफी को बदला गया है। इन घुसपैठियों ने हमारे जंगलों पर कब्जा किया, हमारी ज़मीनों पर कब्जा किया। इसका नतीजा ये हुआ कि पूरे असम की सुरक्षा और पहचान दांव पर लग गई है।

साथियों,

आज हिमंत जी की सरकार और उनकी टीम के सभी साथी बहुत मेहनत से, असम के संसाधनों को इस गैर-कानूनी और देशविरोधी अतिक्रमण से मुक्त करा रही है। असम के संसाधन असम के लोगों के काम आयें, इसके लिए हर स्तर पर काम हो रहा है। केंद्र सरकार ने भी घुसपैठ रोकने के लिए सख्ती की है। अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए उनकी पहचान भी कराई जा रही है।

लेकिन भाइयों बहनों,

काँग्रेस पार्टी और इंडी गठबंधन के लोग खुलकर देशविरोधी एजेंडों पर उतर आए हैं। देश का सुप्रीम कोर्ट तक घुसपैठियों को बाहर करने की बात कर चुका है। लेकिन, ये लोग घुसपैठियों के बचाव में बयानबाजी कर रहे हैं। इनके वकील कोर्ट में घुसपैठियों को बसाने की पैरवी कर रहे हैं। चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव के लिए SIR की प्रक्रिया करवा रहा है, तो, इन लोगों को देश के हर कोने में तकलीफ हो रही है। ऐसे लोग, असमिया भाई-बहनों के हितों को नहीं बचाएंगे। ये लोग आपकी जमीन और जंगलों पर किसी और का कब्जा होने देंगे, इनकी देशविरोधी मानसिकता पुराने दौर की हिंसा और अशांति वाले हालात पैदा कर सकती है। और इसलिए मेरे असम के भाई-बहन, हमें बहुत सावधान रहना है। जिस असम की अस्मिता के लिए बोरदोलोई जी जैसे लोगों ने जीवन भर अपना सब कुछ नौछावर किया, हमें उसकी रक्षा करनी है। असम के लोगों को एकजुट रहना है। हमें असम के विकास को डिरेल होने से बचाना है, काँग्रेस के षडयंत्रों को पल-पल, कदम-कदम पर विफल करते रहना है।

साथियों,

आज दुनिया भारत की ओर उम्मीद से देख रही है। भारत के भविष्य का नया सूर्योदय पूर्वोत्तर से ही होना है। इसके लिए, हमें साथ मिलकर अपने सपनों के लिए काम करना होगा। हमें असम के विकास को सबसे आगे रखकर चलना होगा। मुझे विश्वास है, हमारे ये सामूहिक प्रयास असम को नई ऊंचाई पर लेकर जाएंगे। हम विकसित भारत के सपने पूरा करेंगे। और विकसित असम से विकसित भारत का रास्ता बनने वाला है। इसी कामना के साथ मैं एक बार फिर नए टर्मिनल की बधाई देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे साथ बोलिए-

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।