Knowledge is immortal and is relevant in every era: PM Modi

Published By : Admin | May 14, 2016 | 13:13 IST
QuoteAt Simhasth Kumbh convention, we are seeing birth of a new effort: PM
QuoteWe belong to a tradition where even a Bhikshuk says, may good happen to every person: PM
QuoteWe should tell the entire world about the organising capacity of an event like the Kumbh: PM
QuoteLets hold Vichar Kumbh every year with devotees...discuss why we need to plant trees, educate girl child: PM

हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, एक समाज के नाते कि हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं। हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है। आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है लेकिन उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई कि हमारी इस महान परंपरा, ये हजारों साल पुरानी संस्कृति, इसके कई पहलू, वो परंपराए किस सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई, किस काल के गर्भ में पैदा हुई, किस विचार मंथन में से बीजारोपण हुआ, वो करीब-करीब अलब्य है और उसके कारण ये कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है।

कोई कहेगा हजार साल पहले, कोई कहेगा 2 हजार साल पहले लेकिन इतना निश्चित है कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। मैं अपने तरीक से जब सोचता हूं तो मुझे लगता है कि कुंभ का मेला, वैसे 12 साल में एक बार होता है और नासिक हो, उज्जैन हो, हरिद्वार हो वहां 3 साल में एक बार होता है प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है। उस कालखंड को हम देखें तो मुझे लगता है कि एक प्रकार से ये विशाल भारत को अपने में समेटने का ये प्रयास ये कुंभ मेले के द्वारा होता था। मैं तर्क से और अनुमान से कह सकता हूं कि समाज वेदता, संत-महंत, ऋषि, मुनि जो हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे। समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे, Innovation करते थे। इन्हें वे हमारे ऋषि जहां भी थे वे बाह्य जगत का भी रिसर्च करते थे और अंतर यात्रा को भी खोजने का प्रयास करते थे तो ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही, सदियों तक चलती रही, हर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही लेकिन संस्कार संक्रमण का काम विचारों के संकलन का काम कालानुरूप विचारों को तराजू पर तौलने की परंपरा ये सारी बातें इस युग की परंपरा में समहित थी, समाहित थी।

एक बार प्रयागराज के कुंभ मेले में बैठते थे, एक Final decision लिया जाता था सबके द्वारा मिलकर के कि पिछले 12 साल में समाज यहां-यहां गया, यहां पहुंचा। अब अगले 12 साल के लिए समाज के लिए दिशा क्या होगी, समाज की कार्यशैली क्या होगी किन चीजों की प्राथमिकता होगी और जब कुंभ से जाते थे तो लोग उस एजेंडा को लेकर के अपने-अपने स्थान पर पहुंचते थे और हर तीन साल के बाद जबकि कभी नासिक में, कभी उज्जैन में, कभी हरिद्वार में कुंभ का मेला लगता था तो उसका mid-term appraisal होता था कि भई प्रयागराज में जो निर्णय हम करके गए थे तीन साल में क्या अनुभव आया और हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते थे।

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30 दिन तक एक ही स्थान पर रहकर के समाज की गतिविधियों, समाज की आवश्यकताएं, बदलता हुआ युग, उसका चिंतन-मनन करके उसमें फिर एक बार 3 साल का करणीय एजेंडा तय होता था। In the light of main Mahakumbh प्रयागराज में होता था और फिर 3 साल के बाद दूसरा जब कुंभ लगता था तो फिर से Review होता था। एक अद्भुत सामाजिक रचना थी ये लेकिन धीरे-धीरे अनुभव ये आता है कि परंपरा तो रह जाती है, प्राण खो जाता है। हमारे यहां भी अनुभव ये आया कि परंपरा तो रह गई लेकिन समय का अभाव है, 30 दिन कौन रहेगा, 45 दिन कौन रहेगा। आओ भाई 15 मिनट जरा डुबकी लगा दें, पाप धुल जाए, पुण्य कमा ले और चले जाए।

ऐसे जैसे बदलाव आय उसमें से उज्जैन के इस कुंभ में संतों के आशीर्वाद से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ है और ये नया प्रयास एक प्रकार से उस सदियों पुरानी व्यवस्था का ही एक Modern edition है और जिसमें वर्तमान समझ में, वैश्विक संदर्भ में मानव जाति के लिए क्या चुनौतियां हैं, मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। बदलते हुए युग में काल बाह्य चीजों को छोड़ने की हिम्मत कैसे आए, पुरानी चीजों को बोझ लेकर के चलकर के आदमी थक जाता है। उन पुरानी काल बाह्य चीजों को छोड़कर के एक नए विश्वास, नई ताजगी के साथ कैसे आगे बढ़ जाए, उसका एक छोटा सा प्रयास इस विचार महाकुंभ के अंदर हुआ है।

जो 51 बिंदु, अमृत बिंदु इसमें से फलित हुए हैं क्योंकि ये एक दिन का समारोह नहीं है। जैसे शिवराज जी ने बताया। देश औऱ दुनिया के इस विषय के जानकार लोगों ने 2 साल मंथन किया है, सालभर विचार-विमर्श किया है और पिछले 3 दिन से इसी पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, संतों की परंपरा को निभाने वाले महान संतों के सानिध्य में इसका चिंतन-मनन हुआ है और उसमें से ये 51 अमृत बिंदु समाज के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। मैं नहीं मानता हूं कि हम राजनेताओं के लिए इस बात को लोगों के गले उतारना हमारे बस की बात है। हम नहीं मानते हैं लेकिन हम इतना जरूर मानते हैं कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग चाहे वो गेरुए वस्त्र में हो या न हो लेकिन त्याग और तपस्था के अधिष्ठान पर जीवन जीते हैं। चाहे एक वैज्ञानिक अपनी laboratory में खपा हुआ हो, चाहे एक किसान अपने खेत में खपा हुआ हो, चाहे एक मजदूर अपना पसीना बहा रहा हे, चाहे एक संत समाज का मार्गदर्शन करता हो ये सारी शक्तियां, एक दिशा में चल पड़ सकती हैं तो कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं और उस दिशा में ये 51 अमृत बिंदु जो है आने वाले दिनों में भारत के जनमानस को और वैश्विक जनसमूह को भारत किस प्रकार से सोच सकता है और राजनीतिक मंच पर से किस प्रकार के विचार प्रभाग समयानुकूल हो सकते हैं इसकी चर्चा अगर आने वाले दिनों में चलेगी, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयास सार्थक होगा।

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हम वो लोग हैं, जहां हमारी छोटी-छोटी चीज बड़ी समझने जैसी है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं। जहां एक भिक्षुक भी भिक्षा मांगने के लिए जाता है, तो भी उसके मिहिल मुंह से निकलता है ‘जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला’। ये छोटी बात नहीं है। ये एक वो संस्कार परम्परा का परिणाम है कि एक भिक्षुक मुंह से भी शब्द निकलता है ‘देगा उसका भी भला जो नहीं देगा उसका भी भला’। यानी मूल चिंतन तत्वभाव यह है कि सबका भला हो सबका कल्याण हो। ये हर प्रकार से हमारी रगों में भरा पड़ा है। हमी तो लोग हैं जिनको सिखाया गया है। तेन तत्तेन भूंजीथा। क्या तर के ही भोगेगा ये अप्रतीम आनन्द होता है। ये हमारी रगों में भरा पड़ा है। जो हमारी रगों में है, वो क्या हमारे जीवन आचरण से अछूता तो नहीं हो रहा है। इतनी महान परम्परा को कहीं हम खो तो नहीं दे रहे हैं। लेकिन कभी उसको जगजोड़ा किया जाए कि अनुभव आता है कि नहीं आज भी ये सामर्थ हमारे देश में पड़ा है।

किसी समय इस देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को आहवान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए। देश को अन्न की जरूरत है। और इस देश के कोटी-कोटी लोगों ने तेन त्यक्तेन भुंजीथा इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके, करके दिखाया था। और कुछ पीढ़ी तो लोग अभी भी जिन्दा हैं। जो लालबहादुर शास्त्री ने कहा था। सप्ताह में एक दिन खाना नहीं खाते हैं। ऐसे लोग आज भी हैं। तेन त्यक्तेन भुंजीथा का मंत्र हमारी रगों में पला है। पिछले दिनों में ऐसे ही बातों-बातों में मैंने पिछले मार्च महीने में देश के लोगों के सामने एक विषय रखा था। ऐसे ही रखा था। रखते समय मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे देश के जनसामान्य का मन इतनी ऊंचाइयों से भरा पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि हम उन ऊंचाईयों को पहुंचने में कम पड़ जाते हैं। मैंने इतना ही कहा था। अगर आप सम्पन्न हैं, आप समर्थ हैं, तो आप रसोई गैस की सब्सिडी क्या जरूरत है छोड़ दीजिये न। हजार-पंद्रह सौ रुपये में क्या रखा है। इतना ही मैंने कहा था। और आज मैं मेरे देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं। एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। तेन त्यक्तेन भुंजीथा । और उसका परिणाम क्या है। परिणाम शासन व्यवस्था पर भी सीधा होता है। हमारे मन में विचार आया कि एक करोड़ परिवार गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ रहे हैं तो इसका हक़ सरकार की तिजोरी में भरने के लिये नहीं बनता है।

ये फिर से गरीब के घर में जाना चाहिए। जो मां लकड़ी का चूल्हा जला कर के एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है। उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर दे कर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे।

यहाँ एक चर्चा में पर्यावरण का मुद्दा है। मैं समझता हूं पांच करोड़ परिवारों में लकड़ी का चूल्हा न जलना ये जंगलों को भी बचाएगा, ये कार्बन को भी कम करेगा और हमारी माताओं को गरीब माताओं के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाएगा। यहां पर नारी की एम्पावरमेंट की बात हुई नारी की dignity की बात हुई है। ये गैस का चूल्हा उसकी dignity को कायम करता है। उसकी स्वास्थ्य की चिंता करता है और इस लिए मैं कहता हूं - तेन त्यक्तेन भुंजीथा । इस मंत्र में अगर हम भरोसा करें। सामान्य मानव को हम इसका विश्वास दिला दें तो हम किस प्रकार का परिवर्तन प्राप्त कर सकते हैं। ये अनुभव कर रहे हैं।

हमारा देश, मैं नहीं मानता हूं हमारे शास्त्रों में ऐसी कोई चीज है, जिसके कारण हम भटक जाएं। ये हमलोग हैं कि हमारी मतलब की चीजें उठाते रहते हैं और पूर्ण रूप से चीजों को देखने का स्वभाव छोड़ दिया है। हमारे यहां कहा गया है – नर करनी करे तो नारायण हो जाए - और ये हमारे ऋषियों ने मुनियों ने कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर भक्ति करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर कथा करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा। संतों ने भी कहा हैः नर करनी करे तो नारायण हो जाए और इसीलिए ये 51 अमृत बिन्दु हमारे सामने है। उसका एक संदेश यही है कि नर करनी करे तो नारायण हो जाए। और इसलिए हम करनी से बाध्य होने चाहिए और तभी तो अर्जुन को भी यही तो कहा था योगः कर्मसु कौशलम्। यही हमारा योग है, जिसमें कर्म की महानता को स्वीकार किया गया है और इसलिए इस पवित्र कार्य के अवसर पर हम उस विचार प्रवाह को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर सकते हैं क्या तमसो मा ज्योतिरगमय। ये विचार छोटा नहीं है। और प्रकाश कौनसा वो कौनसी ज्योति ये ज्योति ज्ञान की है, ज्योति प्रकाश की है। और हमी तो लोग हैं जो कहते हैं कि ज्ञान को न पूरब होता है न पश्चिम होता है। ज्ञान को न बीती हुई कल होती है, ज्ञान को न आने वाली कल होती है। ज्ञान अजरा अमर होता है और हर काल में उपकारक होता है। ये हमारी परम्परा रही है और इसलिए विश्व में जो भी श्रेष्ठ है इसको लेना, पाना, पचाना internalize करना ये हमलोगों को सदियों से आदत रही है।

हम एक ऐसे समाज के लोग हैं। जहां विविधताएं भी हैं और कभी-कभी बाहर वाले व्यक्ति को conflict भी नजर आता है। लेकिन दुनिया जो conflict management को लेकर के इतनी सैमिनार कर रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे। हमलोग हैं inherent conflict management का हमें सिखाया गया है। वरना दो extreme हम कभी भी नहीं सोच सकते थे। हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और हम वो लोग हैं, जो प्रहलाद की भी पूजा करते हैं, जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की थी। इतना बड़ा conflict, एक वो महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा को माना वो भी हमारे पूजनीय और एक दूसरा महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा क का अनादर किया वो भी हमारा महापुरुष।

हम वो लोग हैं जिन्होंने माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर के इच्छा के अनुसार अपना जीवन दे दिया। और उसी प्रकार से हम उस मीरा की भी भक्ति करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी थी। यानी हम किस प्रकार के conflict management को जानने वाले लोग हैं। ये हमारी स्थिति का कारण क्या है और कारण ये है कि हम हठबाधिता से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम दर्शन के जुड़े हुए लोग हैं। और दर्शन, दर्शन तपी तपाई विचारों की प्रक्रिया और जीवन शैली में से निचोड़ के रूप में निकलता रहता है। जो समयानुकूल उसका विस्तार होता जाता है। उसका एक व्यापक रूप समय में आता है। और इसलिए हम उस दर्शन की परम्पराओं से निकले हुए लोग हैं जो दर्शन आज भी हमें इस जीवन को जीने के लिए प्रेरणा देता है।

यहां पर विचार मंथन में एक विषय यह भी रहा – Values, Values कैसे बदलते हैं। आज दुनिया में अगर आप में से किसी को अध्ययन करने का स्वभाव हो तो अध्ययन करके देखिये। दुनिया के समृद्ध-समृद्ध देश जब वो चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो वहां के राजनीतिक दल, वहां के राजनेता उनके चुनाव में एक बात बार-बार उल्लेख करते हैं। और वो कहते हैं – हम हमारे देश में families values को पुनःप्रस्थापित करेंगे। पूरा विश्व, परिवार संस्था, पारिवारिक जीवन के मूल्य उसका महत्व बहुत अच्छी तरह समझने लगा है। हम उसमें पले बड़े हैं। इसलिये कभी उसमें छोटी सी भी इधर-उधर हो जाता है तो पता नहीं चलता है कि कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि values और values यानी वो विषय नहीं है कि आपकी मान्यता और मेरी मान्यता। जो समय की कसौटी पर कस कर के खरे उतरे हैं, वही तो वैल्यूज़ होते हैं। और इसलिए हर समाज के अपने वैल्यूज़ होते हैं। उन values के प्रति हम जागरूक कैसे हों। इन दिनों मैं देखता हूं। अज्ञान के कारण कहो, या तो inferiority complex के कारण कहो, जब कोई बड़ा संकट आ जाता है, बड़ा विवाद आ जाता है तो हम ज्यादा से ज्यादा ये कह कर भाग जाते हैं कि ये तो हमारी परम्परा है। आज दुनिया इस प्रकार की बातों को मानने के लिए नहीं है।

हमने वैज्ञानिक आधार पर अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना पड़ेगा। और इसलिये यही तो कुम्भ के काल में ये विचार-विमर्श आवश्यकता है, जो हमारे मूल्यों की, हमारे विचारों की धार निकाल सके।

हम जानते हैं कभी-कभी जिनके मुंह से परम्परा की बात सुनते हैं। यही देश ये मान्यता से ग्रस्त था कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने संतों ने समुद्र पार नहीं करना चाहिए। विदेश नहीं जाना चाहिए। ये हमलोग मानते थे। और एक समय था, जब समुद्र पार करना बुरा माना जाता था। वो भी एक परम्परा थी लेकिन काल बदल गया। वही संत अगर आज विश्व भ्रमण करते हैं, सातों समुद्र पार करके जाते हैं। परम्पराएं उनके लिए कोई रुकावट नहीं बनती हैं, तो और चीजों में परम्पराएं क्यों रुकावट बननी चाहिए। ये पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए परम्पराओं के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से बदले हुए युग को, बदले हुए समाज को मूल्य के स्थान पर जीवित रखते हुए उसको मोड़ना, बदलना दिशा देना ये हम सबका कर्तव्य बनता है, हम सबका दायित्व बनता है। और उस दायित्व को अगर हम निभाते हैं तो मुझे विश्वास है कि हम समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

आज विश्व दो संकटों से गुजर रहा है। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग दूसरी तरफ आतंकवाद। क्या उपाय है इसका। आखिर इसके मूल पर कौन सी चीजें पड़ी हैं। holier than thou तेरे रास्ते से मेरा रास्ता ज्यादा सही है। यही तो भाव है जो conflict की ओर हमें घसीटता ले चला जा रहा है। विस्तारवाद यही तो है जो हमें conflict की ओर ले जा रहा है। युग बदल चुका है। विस्तारवाद समस्याओं का समाधान नहीं है। हम हॉरीजॉन्टल की तरह ही जाएं समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्टिकल जाने की आवश्यकता है अपने भीतर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है, व्यवस्थाओं को आधुनिक करने की आवश्यकता है। नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए उन मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है और इसलिये समय रहते हुए मूलभूत चिंतन के प्रकाश में, समय के संदर्भ में आवश्यकताओं की उपज के रूप में नई विधाओं को जन्म देना होगा। वेद सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी हमी लोग हैं जिन्होंने वेद के प्रकाश में उपनिषदों का निर्माण किया। उपनिषद में बहुत कुछ है। लेकिन समय रहते हमने भी वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में समृति और स्रुति को जन्म दिया और समृति और स्रुतियां, जो उस कालखंड को दिशा देती है, उसके आधार पर हम चलें। आज हम में किसी को वेद के नाम भी मालूम नहीं होंगे। लेकिन वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में श्रुति और समृति वो आज भी हमें दिशा देती हैं। समय की मांग है कि अगर 21वीं सदी में मानव जाति का कल्याण करना है तो चाहे वेद के प्रकाश में उपनिषद रही हो, उपनिषद के प्रकाश में समृति और श्रुति रही हो, तो समृति और श्रुति के प्रकाश में 21वीं सदी के मानव के कल्याण के लिए किन चीजों की जरूरत है ये 51 अमृत बिन्दु शायद पूर्णतयः न हो कुछ कमियां उसमें भी हो सकती हैं। क्या हम कुम्भ के मेले में ऐसे अमृत बिन्दु निकाल कर के आ सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारा इतना बड़ा समागम। कभी – कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसीके आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

हिन्दुस्तान के हर कोने में दुनिया में रहते हुए भारतीय मूल के लोगों को कोई इनविटेशन कार्ड गया था क्या। कोई फाइवस्टार होटलों का बुकिंग था क्या। एक सिपरा मां नदी के किनारे पर उसकी गोद में हर दिन यूरोप के किसी छोटे देश की जनसंख्या जितने लोग आते हों, 30 दिन तक आते हों। जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।

मैं कभी-कभी कहता हूं हमारे हिंदुस्तान का चुनाव दुनिया के लिए अजूबा है कि इतना बड़ा देश दुनिया के कई देशों से ज्यादा वोटर और हमारा Election Commission आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए सुचारु रूप से पूरा चुनाव प्रबंधन करता है। विश्व के लिए, प्रबंधन के लिए ये सबसे बड़ा case study है, सबसे बड़ा case study है। मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।

हमने अपने वैश्विक रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए दुनिया को जो भाषा समझती है, उस भाषा में रखने की आदत भी समय की मांग है, हम अपनी ही बात को अपने ही तरीके से कहते रहेंगे तो दुनिया के गले नहीं उतरेगी। विश्व जिस बात को जिस भाषा में समझता है, जिस तर्क से समझता है, जिस आधारों के आधार पर समझ पाता है, वो समझाने का प्रयास इस चिंतन-मनन के द्वारा तय करना पड़ेगा। ये जब हम करते हैं तो मुझे विश्वास है, इस महान देश की ये सदियों पुरानी विरासत वो सामाजिक चेतना का कारण बन सकती है, युवा पीढ़ी के आकर्षण का कारण बन सकती है और मैं जो 51 बिंदु हैं उसके बाहर एक बात मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या।

मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए वैज्ञानिक तरीके से और देश भर के विधिवत जनों बुलाकर के, जिनकी धर्म में आस्था न हो, जो परमात्मा में विश्वास न करता हो, उसको भी बुलाकर के जरा बताओ तो भाई और हमारा जो भक्त समुदाय है। उनके सामने विचार-विमर्श हर परंपरा में साल में एक बार 7 दिन अपने-अपने तरीके से अपने-अपने स्थान पर ज्ञानी-विज्ञानी को बुलाकर के विचार-विमर्श हो तो आप देखिए 3 साल के बाद अगला जब हमारा कुंभ का अवसर आएगा और 12 साल के बाद जो महाकुंभ आता है वो जब आएगा आप देखिए ये हमारी विचार-मंथन की प्रक्रिया इतनी sharpen हुई होगी, दुनिया हमारे विचारों को उठाने के लिए तैयार होगी।

जब अभी पेरिस में पुरा विश्व climate को लेकर के चिंतित था, भारत ने एक अहम भूमिका निभाई और भारत ने उन मूल्यों को प्रस्तावित करने का प्रयास किया। एक पुस्तक भी प्रसिद्ध हुई कि प्रकृति के प्रति प्रेम का धार्मिक जीवन में क्या-क्या महत्व रहा है और पेरिस के, दुनिया के सामने life style को बदलने पर बल दिया, ये पहली बार हुआ है।

हम वो लोग हैं जो पौधे में भी परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं जो जल में भी जीवन देखते हैं, हम वो लोग हैं जो चांद और सूरज में भी अपने परिवार का भाव देखते हैं, हम वो लोग हैं जिनको... आज शायद अंतरराष्ट्रीय Earth दिवस मनाया जाता होगा, पृथ्वी दिवास मनाया जाता होगा लेकिन देखिए हम तो वो लोग हैं जहां बालक सुबह उठकर के जमीन पर पैर रखता था तो मां कहती थी कि बेटा बिस्तर पर से जमीन पर जब पैर रखते हो तो पहले ये धरती मां को प्रणाम करो, माफी मांगों, कहीं तेरे से इस धरती मां को पीढ़ा न हो हो जाए। आज हम धरती दिवस मनाते हैं, हम तो सदियों से इस परंपरा को निभाते आए हैं।

हम ही तो लोग हैं जहां मां, बालक को बचपन में कहती है कि देखो ये पूरा ब्रहमांड तुम्हारा परिवार है, ये चाँद जो है न ये चाँद तेरा मामा है। ये सूरज तेरा दादा है। ये प्रकृति को अपना बनाना, ये हमारी विशेषता रही है।

सहज रूप से हमारे जीवन में प्रकृति का प्रेम, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, सहजीवन के संस्कार हमें मिले हैं और इसलिए जिन बिंदुओं को लेकर के आज हम चलना चाहते हैं। उन बिंदुओं पर विश्वास रखते हुए और जो काल बाह्य है उसको छोड़ना पड़ेगा। हम काल बाह्य चीजों के बोझ के बीच जी नहीं सकते हैं और बदलाव कोई बड़ा संकट है, ये डर भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारी ताकत का परिचय देता है। अरे बदलाव आने दो, बदलाव ही तो जीवन होता है। मरी पड़ी जिंदगी में बदलाव नहीं होता है, जिंदा दिल जीवन में ही तो बदलाव होता है, बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। हम सर्वसमावेशक लोग हैं, हम सबको जोड़ने वाले लोग हैं। ये सबको जोड़ने का हमारा सामर्थ्य है, ये कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा अगर हम कमजोर हो गए तो हम जोड़ने का दायित्व नहीं निभा पाएंगे और शायद हमारे सिवा कोई जोड़ पाएगा कि नहीं पाएगा ये कहना कठिन है इसलिए हमारा वैश्विक दायित्व बनता है कि जोड़ने के लिए भी हमारे भीतर जो विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उन गुणों को हमें विकसित करना होगा क्योंकि संकट से भरे जन-जीवन को सुलभ बनाना हम लोगों ने दायित्व लिया हुआ है और हमारी इस ऋषियों-मुनियों की परंपरा ज्ञान के भंडार हैं, अनुभव की एक महान परंपरा रही है, उसके आधार पर हम इसको लेकर के चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि जो अपेक्षाएं हैं, वो पूरी होंगी। आज ये समारोह संपन्न हो रहा है।

मैं शिवराज जी को और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं इतने उत्तम योजना के लिए, बीच में प्रकृति ने कसौटी कर दी। अचानक आंधी आई, तूफान सा बारिश आई, कई भक्त जनों को जीवन अपना खोना पड़ा लेकिन कुछ ही घंटों में व्यवस्थाओं को फिर से ठीक कर दी। मैं उन सभी 40 हजार के करीब मध्य प्रदेश सरकार के छोटे-मोटे साथी सेवारत हैं, मैं विशेष रूप से उनको बधाई देना चाहता हूं कि आपके इस प्रयासों के कारण सिर्फ मेला संपन्न हुआ है, ऐसा नहीं है। आपके इन उत्तम प्रयासों के कारण विश्व में भारत की एक छवि भी बनी है। भारत के सामान्य मानव के मन में हमारा अपने ऊपर एक विश्वास बढ़ता है इस प्रकार के चीजों से और इसलिए जिन 40 हजार के करीब लोगों ने 30 दिन, दिन-रात मेहनत की है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं, मैं उज्जैनवासियों का भी हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं, उन्होंने पूरे विश्व का यहां स्वागत किया, सम्मान किया, अपने मेहमान की तरह सम्मान किया और इसलिए उज्जैन के मध्य प्रदेश के नागरिक बंधु भी अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं, उनको भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और अगले कुंभ के मेले तक हम फिर एक बार अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएं इसी शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, फिर एक बार सभी संतों को प्रणाम और उनका आशीर्वाद, उनका सामर्थ्य, उनकी व्यवस्थाएं इस चीज को आगे चलाएगी, इसी अपेक्षा के साथ सबको प्रणाम।

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ஆதம்பூர் விமானப்படை தளத்தில் துணிச்சல்மிக்க விமானப் படை வீரர்கள், ராணுவ வீரர்கள் மத்தியில் பிரதமர் ஆற்றிய உரை
May 13, 2025
Quoteவிமானப்படை வீரர்கள் மற்றும் ராணுவ வீரர்களுடன் உரையாடினேன், நமது நாட்டைப் பாதுகாப்பதில் அவர்களின் துணிச்சலும், தொழில்முறையும் பாராட்டத்தக்கது: பிரதமர்
Quote‘பாரத் மாதா கீ ஜெய்’ என்பது வெறும் முழக்கம் அல்ல, இது தமது நாட்டின் கௌரவம், கண்ணியத்திற்காக தமது உயிரைப் பணயம் வைக்கும் ஒவ்வொரு வீரரின் உறுதிமொழி: பிரதமர்
Quoteஆபரேஷன் சிந்தூர் என்பது இந்தியாவின் கொள்கை, நோக்கம் மற்றும் தீர்க்கமான திறன் கொண்ட மூன்று அம்சங்களாகும்: பிரதமர்
Quoteநமது சகோதரிகள் மற்றும் மகள்களின் குங்குமம் அழிக்கப்பட்டபோது, பயங்கரவாதிகளை அவர்களின் மறைவிடங்களில் நாம் அழித்தோம்: பிரதமர்
Quoteஇந்தியா மீது கண் வைப்பது அழிவைத் தவிர வேறொன்றுமில்லை என்பதை பயங்கரவாதத்திற்கு மூளையாக செயல்படுவோருக்கு தற்போது தெரியும்: பிரதமர்
Quoteபாகிஸ்தானில் உள்ள பயங்கரவாத தளங்கள் மற்றும் விமான தளங்கள் அழிக்கப்பட்டது மட்டுமல்லாமல், அவர்களின் தீய நோக்கங்களும், துணிச்சலும் தோற்கடிக்கப்பட்டன: பிரதமர்
Quoteபயங்கரவாதத்திற்கு எதிரான இந்தியாவின் லட்சுமண ரேகை தற்போது தெளிவாக உள்ளது, மற்றொரு பயங்கரவாத தாக்குதல் நடந்தால், இந்தியா பதிலடி கொடுக்கும், அது ஒரு தீர்க்கமான
Quoteஅணு ஆயுத அச்சுறுத்தல்களை இந்தியப் படைகள் தகர்த்தெறியும்போது, 'பாரத் மாதா கி ஜெய்' என்ற செய்தி வானத்திலும் எதிரொலிக்கிறது என்று கூறினார்
Quoteஅவர்களின் தியாகங்களை அங்கீகரித்து, முழு நாட்டின் வீரர்களுக்கும் அவர்களது குடும்பத்தினருக்கும் ஆழ்ந்த நன்றியைத் தெரிவித்தார்.
Quoteநவீன, தொழில்நுட்ப ரீதியாக ஆயுதம் ஏந்திய மற்றும் மிகவும் தொழில்முறை படையால் மட்டுமே இதுபோன்ற நடவடிக்கைகளை மேற்கொள்ள முடியும் என்று அவர் பாராட்டினார்

பாரத் மாதா கி ஜெய்!

பாரத் மாதா கி ஜெய்!

பாரத் மாதா கி ஜெய்!

இந்த முழக்கத்தின் சக்தியை உலகம் தற்போதுதான் கண்டிருக்கிறது. பாரத் மாதா கி ஜெய் என்பது வெறும் முழக்கம் அல்ல, பாரத தாயின் கௌரவம் மற்றும் கண்ணியத்திற்காக தமது உயிரைப் பணயம் வைக்கும் நாட்டின் ஒவ்வொரு ராணுவ வீரரின் சபதமாகும். நாட்டிற்காக வாழ விரும்பும், ஏதாவது சாதிக்க விரும்பும் நாட்டின் ஒவ்வொரு குடிமகனின் குரல் இது. நமது ட்ரோன்கள் எதிரியின் கோட்டையின் சுவர்களை அழிக்கும்போது, ​​நமது ஏவுகணைகள் ஒரு சத்தத்துடன் இலக்கை அடையும்போது, ​​எதிரி கேட்கிறான் - பாரத் மாதா கி ஜெய்! நமது படைகள் அணு ஆயுத அச்சுறுத்தலை முறியடிக்கும் போது, ​​வானத்திலிருந்து உலகம் வரைக்கும் ஒரே ஒரு முழக்கம் மட்டுமே எதிரொலிக்கிறது - பாரத் மாதா கி ஜெய்!

நண்பர்களே,

உண்மையில், நீங்கள் அனைவரும் லட்சக்கணக்கான இந்தியர்களை பெருமைப்படுத்தியுள்ளீர்கள், ஒவ்வொரு இந்தியரையும் பெருமைப்படுத்தியுள்ளீர்கள். நீங்கள் வரலாற்றை உருவாக்கியுள்ளீர்கள். உங்களைப் பார்க்க காலையிலேயே நான் இங்கு வந்துள்ளேன். துணிச்சலானவர்களின் கால்கள் பூமியில் விழும்போது, ​​பூமி ஆசீர்வதிக்கப்படுகிறது, துணிச்சலானவர்களைக் காண ஒரு வாய்ப்பு கிடைக்கும்போது, ​​வாழ்க்கை ஆசீர்வதிக்கப்படுகிறது. அதனால்தான் உங்களைப் பார்க்க நான் இங்கு வந்துள்ளேன். தற்போது முதல் பல ஆண்டுகளுக்குப் பிறகும், இந்தியாவின் இந்த வீரம் பற்றி விவாதிக்கப்படும்போது, ​​அதன் மிக முக்கியமான அத்தியாயம் நீங்களும் உங்கள் நண்பர்களும் தான். நீங்கள் அனைவரும் நிகழ்காலத்திற்கும் எதிர்கால தலைமுறையினருக்கும் ஒரு புதிய உத்வேகமாக மாறிவிட்டீர்கள். இந்த மாவீரர்களின் பூமியிலிருந்து, இன்று நான் விமானப்படை, கடற்படை மற்றும் இராணுவத்தின் அனைத்து துணிச்சலான வீரர்களுக்கும், எல்லைப் பாதுகாப்புப் படையின் நமது துணிச்சலான வீரர்களுக்கும் வணக்கம் செலுத்துகிறேன். உங்கள் வீரத்தின் காரணமாக, ஆபரேஷன் சிந்தூரின் எதிரொலி ஒவ்வொரு பகுதியிலும் கேட்கப்படுகிறது. இந்த முழு நடவடிக்கையிலும், ஒவ்வொரு இந்தியரும் உங்களுடன் நின்றார்கள், ஒவ்வொரு இந்தியரின் பிரார்த்தனையும் உங்களுக்காக செய்யப்படுகிறது. தற்போது நாட்டின் ஒவ்வொரு குடிமகனும் அதன் வீரர்களுக்கும் அவர்களது குடும்பத்தினருக்கும் நன்றியுள்ளவர்களாகவும், அவர்களுக்குக் கடமைப்பட்டவர்களாகவும் உள்ளனர்.

நண்பர்களே,

நீங்கள் அவர்களை முன்பக்கத்திலிருந்து தாக்கி கொன்றீர்கள், பயங்கரவாதத்தின் அனைத்து பெரிய தளங்களையும் அழித்தீர்கள், 9 பயங்கரவாத மறைவிடங்கள் அழிக்கப்பட்டன, 100 க்கும் மேற்பட்ட பயங்கரவாதிகள் கொல்லப்பட்டனர், பயங்கரவாதத்தின் எஜமானர்கள் தற்போது இந்தியாவை நோக்கி கண் வைத்தால் ஒரே ஒரு விளைவு மட்டுமே இருக்கும் என்பதை புரிந்துகொண்டுள்ளனர் -அது அழிவு என்பதாகும்! இந்தியாவில் அப்பாவி மக்களின் இரத்தம் சிந்தினால் ஒரே ஒரு விளைவு மட்டுமே இருக்கும் – அது இழப்பு மற்றும் பெரும் பேரிழப்பாக அமையும் என்பதாகும்

என் துணிச்சல்மிக்க நண்பர்களே,

ஆபரேஷன் சிந்தூர் மூலம், நீங்கள் நாட்டின் தன்னம்பிக்கையை உயர்த்தியுள்ளீர்கள், நாட்டின் ஒற்றுமையை கட்டமைத்துள்ளீர்கள், மேலும் இந்தியாவின் எல்லைகளைப் பாதுகாத்துள்ளீர்கள், இந்தியாவின் சுயமரியாதைக்கு புதிய உச்சத்தை அளித்துள்ளீர்கள்.

நண்பர்களே,

நீங்கள் முன்னெப்போதும் இல்லாத, கற்பனை செய்ய முடியாத, அற்புதமான ஒன்றைச் செய்தீர்கள். பாகிஸ்தானில் உள்ள பயங்கரவாத தளங்களை நமது விமானப்படை குறிவைத்தது. நவீன தொழில்நுட்பத்துடன் கூடிய ஒரு தொழில்முறை படையால் மட்டுமே இதைச் செய்ய முடியும், எல்லையைத் தாண்டிய இலக்குகளை ஊடுருவி, 20-25 நிமிடங்களுக்குள் துல்லியமான இலக்குகளைத் தாக்கினீர்கள். உங்கள் வேகமும் துல்லியமும் எதிரியை அதிர்ச்சிக்குள்ளாக்கும் அளவுக்கு மேம்பட்டதால், அவர்களது இதயம் எப்போது துளைக்கப்பட்டது என்பதை அவர்கள் கூட உணரவில்லை.

நண்பர்களே,

பாகிஸ்தானுக்குள் இருக்கும் பயங்கரவாதத் தலைமையகத்தைத் தாக்கி, பயங்கரவாதிகளைத் தாக்குவதே எங்கள் இலக்கு. ஆனால், பாகிஸ்தான் தனது பயணிகள் விமானங்களைப் பயன்படுத்தித் தீட்டிய சதி பற்றி கூற வேண்டும். பொதுமக்கள் விமானம் பறக்கும் தருணம் எவ்வளவு கடினமாக இருக்கும் என்பதை என்னால் கற்பனை செய்து பார்க்க முடிகிறது, மேலும் நீங்கள் மிகவும் கவனமாக, மிகவும் எச்சரிக்கையுடன் பொதுமக்கள் விமானங்களுக்கு தீங்கு விளைவிக்காமல் இலக்குகளை அழித்ததில் நான் பெருமைப்படுகிறேன், நீங்கள் பொருத்தமான பதிலடி கொடுத்தீர்கள். நீங்கள் அனைவரும் உங்கள் இலக்குகளை அடைந்துவிட்டீர்கள் என்று நான் பெருமையுடன் சொல்ல முடியும்.

நண்பர்களே,

சிந்தூர் நடவடிக்கையால் விரக்தியடைந்த எதிரி, இந்த விமானப்படை தளத்தையும், நமது பல விமானப்படை தளங்களையும் தாக்க பல முறை முயன்றார். அது மீண்டும் மீண்டும் எங்களை குறிவைத்தது, ஆனால் பாகிஸ்தானின் தீய நோக்கங்கள் ஒவ்வொரு முறையும் தோல்வியடைந்தன. பாகிஸ்தானின் ட்ரோன்கள், அதன் UAVகள், பாகிஸ்தானின் விமானங்கள் மற்றும் அதன் ஏவுகணைகள் அனைத்தும் நமது வலுவான வான் பாதுகாப்பின்னால் அழிக்கப்பட்டன. நாட்டின் அனைத்து விமானப்படை தளங்களுடனும் தொடர்புடைய தலைமையை நான் மனதாரப் பாராட்டுகிறேன், இந்திய விமானப்படையின் ஒவ்வொரு விமானப்படை வீரரும், நீங்கள் உண்மையிலேயே மிகச் சிறந்த பணியைச் செய்துள்ளீர்கள்.

நண்பர்களே,

சிந்தூர் நடவடிக்கையின் ஒவ்வொரு தருணமும் இந்தியப் படைகளின் வலிமைக்கு சாட்சியமளிக்கிறது. இந்த நேரத்தில், நமது படைகளின் ஒருங்கிணைப்பு சிறப்பாக இருந்தது. அது இராணுவம், கடற்படை அல்லது விமானப்படை எதுவாக இருந்தாலும், அனைத்தின் ஒருங்கிணைப்பும் மிகப்பெரியதாக இருந்தது. கடற்படை கடலில் தனது ஆதிக்கத்தை நிலைநாட்டியது. இராணுவம் எல்லையை வலுப்படுத்தியது. மேலும் இந்திய விமானப்படை தாக்கியதுடன், தற்காப்பும் செய்தது. எல்லைப் பாதுகாப்பு படை மற்றும் பிற படைகளும் அற்புதமான திறன்களை வெளிப்படுத்தியுள்ளன. ஒருங்கிணைந்த வான் மற்றும் தரைவழி போர் அமைப்புகள் சிறந்த பணியைச் செய்துள்ளன

நண்பர்களே,

சிந்தூர் நடவடிக்கையில், மனிதவளத்துடன், இயந்திரங்களின் ஒருங்கிணைப்பும் அற்புதமானது. பல போர்களைக் கண்ட இந்தியாவின் பாரம்பரிய வான் பாதுகாப்பு அமைப்புகளாக இருந்தாலும் சரி, அல்லது ஆகாஷ் போன்ற நமது உள்நாட்டில் தயாரிக்கப்பட்ட தளங்களாக இருந்தாலும் சரி, எஸ்-400 போன்ற நவீன மற்றும் வலுவான பாதுகாப்பு அமைப்புகள் அவற்றிற்கு முன்னெப்போதும் இல்லாத பலத்தை அளித்துள்ளன. ஒரு வலுவான பாதுகாப்பு கவசம் இந்தியாவின் அடையாளமாக மாறியுள்ளது. பாகிஸ்தானின் பல முயற்சிகள் இருந்தபோதிலும், நமது விமான தளங்கள் அல்லது நமது பிற பாதுகாப்பு உள்கட்டமைப்புகள் பாதிக்கப்படவில்லை. இதற்கான பெருமை உங்கள் அனைவருக்கும் சேரும், மேலும் உங்கள் அனைவரையும் நினைத்து நான் பெருமைப்படுகிறேன், எல்லையில் நிறுத்தப்பட்டுள்ள ஒவ்வொரு வீரரும், இந்த நடவடிக்கையுடன் தொடர்புடைய ஒவ்வொரு நபரும் இதற்காகப் பாராட்டப்பட வேண்டும்.

நண்பர்களே,

தற்போது பாகிஸ்தான் நம்முடன் போட்டியிட முடியாத புதிய மற்றும் அதிநவீன தொழில்நுட்பத்தின் திறன் நம்மிடம் உள்ளது. கடந்த 10 ஆண்டுகளில், விமானப்படை உட்பட நமது அனைத்துப் படைகளும் உலகின் சிறந்த தொழில்நுட்பத்தைப் பெற்றுள்ளன. இந்திய விமானப்படை தற்போது எதிரியை ஆயுதங்களால் மட்டுமல்ல, தரவுகள் மற்றும் ட்ரோன்கள் மூலமும் தோற்கடிப்பதில் நிபுணத்துவம் பெற்றுள்ளது.

நண்பர்களே,

பாகிஸ்தானின் வேண்டுகோளுக்குப் பிறகுதான் இந்தியா தனது இராணுவ நடவடிக்கையை நிறுத்தி வைத்துள்ளது. பாகிஸ்தான் மீண்டும் பயங்கரவாத நடவடிக்கைகளையோ அல்லது இராணுவத் துணிச்சலையோ காட்டினால், அதற்கு நாங்கள் தகுந்த பதிலடி கொடுப்போம். நாம் தொடர்ந்து விழிப்புடன் இருக்க வேண்டும், நாம் தயாராக இருக்க வேண்டும். இது ஒரு புதிய இந்தியா என்பதை எதிரிக்கு நினைவூட்டிக் கொண்டே இருக்க வேண்டும். இந்த இந்தியா அமைதியை விரும்புகிறது, ஆனால், மனித சமுதாயம் தாக்கப்பட்டால், போர்முனையில் எதிரியை எவ்வாறு அழிப்பது என்பதையும் இந்த இந்தியா நன்கு அறிந்திருக்கிறது. இந்த உறுதியுடன், மீண்டும் ஒருமுறை கூறுவோம்

பாரத் மாதா கி ஜெய்.

பாரத் மாதா கி ஜெய்.

பாரத் மாதா கி ஜெய்.

பாரத் மாதா கி ஜெய்.

வந்தே மாதரம். வந்தே மாதரம்.

வந்தே மாதரம். வந்தே மாதரம்.

வந்தே மாதரம். வந்தே மாதரம்.

வந்தே மாதரம். வந்தே மாதரம்.

வந்தே மாதரம்.

மிக்க நன்றி.