QuotePM speaks at the function organized by Rickshaw Sangh in Varanasi
QuotePM launches financial inclusion initiative in Varanasi, calls it a landmark event that would transform lives of people
QuoteThere is a need to increase the pace and scale of outcomes of the initiatives to remove poverty: PM
QuoteEvery person wants his or her child to lead a life better than what they led. Every person wants his or her child lead a life of dignity: PM
QuoteUnion Government is putting emphasis on skill development to help make the poor self-reliant: PM
QuoteEducation is the best way to fight poverty: PM Narendra Modi
QuotePM Modi urges beneficiaries to ensure that their children receive proper education

विशाल संख्या में आए भाईयो और बहनों,

यहां जो कार्यक्रम हो रहा है, ये कार्यक्रम सिर्फ कुछ गरीब परिवारों का जीवन बदलेगा, ऐसा नहीं है। ये कार्यक्रम एक ऐसी शुभ शुरूआत है, जो काशी के भाग्‍य को बदलेगा। यहां के गरीब के जीवन में अगर हम थोड़ा सा आवश्‍यक बदलाव ला ले, समय के आधारित जीवन में technology का प्रवेश करें, तो गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति की पहले जितना परिश्रम करके कमाता था, उससे भी थोड़ा कम परिश्रम करके, वो ज्‍यादा कमा सकता है। आज यहां उस प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं, जिसमें बैंक का सहयोग है, American Foundation का सहयोग है, भारत सरकार बहुत बड़ी मात्रा में इन चीजों को promote कर रही है और गरीब को सबसे पहला प्रयास है कि वो आत्‍मनिर्भर कैसे बने।

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हम करीब-करीब पिछले 40-50 साल से गरीबी हटाओ, इस बात को सुनते आए हैं। हमारे देश में चुनावों में भी गरीबों का कल्‍याण करने वाले भाषण लगातार सुनने को मिलते हैं। हमारे यहां राजनीति करते समय कुछ भी करते हो लेकिन सुबह-शाम गरीबों की माला जपते रहना, ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा से जरा बाहर आने की जरूरत है और बाहर आने का मतलब है कि क्‍या हम प्रत्‍यक्ष रूप से गरीबों को साथ ले करके, गरीबी से मुक्‍ति का अभियान चला सकते हैं क्‍या? अब तक जितने प्रयोग हुए हैं, उन प्रयोगों से जितनी मात्रा में परिणाम चाहिए था, वो देश को मिला नहीं है। गरीब की जिन्‍दगी में भी जिस तेजी से बदलाव आना चाहिए, वो बदलाव हम ला नहीं पाए हैं। मैं किसी सरकार को दोष देना नहीं चाहता हूं, किसी दल को दोष देना नहीं चाहता हूं, लेकिन कुछ अच्‍छा करने की दिशा में एक नए सिरे से गरीबों के कल्‍याण के लिए मूलभूत बातों पर focus करना। वो कौन सी चीजें करें ताकि गरीब जो सचमुच में मेहनत करने को तैयार है, गरीबी की जिन्‍दगी से बाहर निकलने को तैयार है। आप किसी भी गरीब को पूछ लीजिए, उसे पूछिए कि भाई क्‍या आप अपने संतानों को ऐसी ही गरीबी वाली जिन्‍दगी जीएं, ऐसा चाहते हो कि अच्‍छी जिन्‍दगी जीएं चाहते हो। गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति भी ये कहेगा कि मैं मेरे संतानों को विरासत मैं ऐसी गरीबी देना नहीं चाहता। मैं उसे एक ऐसी जिन्‍दगी देना चाहता हूं कि जिसके कारण वो अपने कदमों पर खड़ा रहे, सम्‍मान से जीना शुरू करें और अपनी जिन्‍दगी गौरवपूर्व बताएं, ऐसा हर गरीब मां-बाप की इच्‍छा होती हैं। उसको वो पूरा कैसे करें। आज कभी हालत ऐसी होती है कि वो मजदूरी करता है, लेकिन अगर थोड़ा-सा skill development कर दिया जाए, उसको थोड़ा हुनर सिखा दिया जाए तो पहले अगर वो सौ रुपया कमाता है, थोड़ा हुनर सिखा दिया तो वो 250-300 रुपए कमाना शुरू कर देता है और एक बार हुनर सीखता है तो खुद भी दिमाग लगाकर के उसमें अच्‍छाई करने का प्रयास करता है और इसलिए भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा अभियान चलाया है skill development का, कौशल्‍यवर्धन का। गरीब से गरीब का बच्‍चा चाहे स्‍कूल के दरवाजे तक पहुंचा हो या न पहुंचा हो, या पांचवीं, सातवीं, दसवीं, बारहवीं पढ़कर के छोड़ दी हो, रोजी-रोटी तलाशता हो। अगर उसे कोई चीज सिखा ली जाए तो वो देश की अर्थनीति को भी बल देता है, आर्थिक गतिविधि को भी बल देता है और स्‍वयं अपने जीवन में कुछ कर-गुजरने की इच्‍छा रखता है और इसलिए छोटी-छोटी चीजें ये कैसे develop करे उस दिशा में हमारा प्रयास है।

आज मैं यहां ये सब ई-रिक्‍शा वाले भाइयों से मिला। मैंने उनको पूछा क्‍या करोगे, चला पाओगे क्‍या? तो उन्‍होंने कहा साहब पहले से मेरा confidence level ज्‍यादा है। मैंने कहा क्‍यों? वो मेरा skill development हो गया। उसे skill शब्‍द भी आता था। बोले मेरा skill development हो गया। बोले मेरी training हुई और मेरा पहले से ज्‍यादा विश्‍वास है। पहले मैं pedal वाले रिक्‍शा चलाता था। मैंने कहा speed कितनी रखोगे? बोले साहब मैं कानून का पालन करूंगा और मैं कभी ऐसा न करूं ताकि मेरे परिवार को भी कोई संकट आए और मेरे passenger के परिवार को भी संकट आए, ऐसा मैं कभी होने नहीं दूंगा और काशी की गलियां तो छोटी है तो वैसे भी मुझे संभाल के चलना है। उसकी ये training हुई है। काशी में दुनिया भर के लोग आते हैं। काशी का tourism कैसा हो, काशी कैसा है, काशी के लोग कैसे है? उसका पहला परिचय यात्री को किसके साथ होता है, रिक्‍शा वाले के साथ होता है। वो उसके साथ किस प्रकार से व्‍यवहार करता है, वो उसके प्रति किस प्रकार का भाव रखता है, उसी से उसकी मन में छवि बनती है। अरे भाई, ये तो शहर बहुत अच्‍छा है। यहां के रिक्‍शा वाले भी इतने प्‍यार से हमारी चिन्‍ता करते हैं, वहीं से शुरू होता है और इसलिए यहां जो टूरिस्‍टों के लिए एक स्‍पेशल रिक्‍शा का जो सुशोभन किया गया है, कुछ व्‍यवस्‍थाएं विकसित की गई हैं। मैं उनसे पूछ रहा था, मैंने कहा आप Guide के नाते मुझे सब चीजें बता सकते हों, बोले हां बता सकता हूं। मैं हर चीज बता सकता हूं रिक्‍शा चलाते-चलाते और बोले मुझे विश्‍वास है कि मेरे रिक्‍शा में जो बैठेगा, उसको ये संतोष होगा कि काशी उसको देखने को सहज मिल जाएगा। चीजें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन वे बहुत बड़ा बदलाव लाती है।

आज चाहे pedal रिक्‍शा को आधुनिक कैसे किया जाए, pedal रिक्‍शा से ई-रिक्‍शा की ओर shifting कैसे किया जाए, यात्रियों की सुविधाओं को कैसे स्‍थान दिया जाए, बदलते हुए युग में environment friendly technology का कैसे उपयोग किया जाए? इन सारी बातों का इसके अंदर जोड़ हैं और सबसे बड़ी बात है उनके परिवार की। आज इसमें जो लोग select किए गए हैं, वो वो लोग है, जिनकी खुद की कभी रिक्‍शा नहीं थी। वो बेचारे किराए पर रिक्‍शा लेकर के दिनभर मजदूरी करते थे। 50 रुपया, 60 रुपया उस रिक्‍शा मालिक को उनको देना पड़ता था। बचा-खुचा घर जाकर के ले जाता था। बच्‍चों के लिए डबलरोटी साथ ले जाता था, उसी से रात का गुजारा हो जाता था। इस प्रयोग का सबसे बड़ा लाभ उन गरीब रिक्‍शा वालों को है कि अब उनको वो जो ऊंचे ब्‍याज से पैसे देने पड़ते थे, उससे अब मुक्‍ति हो गई। अब वो जो पैसे होंगे वो बैंक के बहुत ही कम rate से पैसा जमा करेगा और कोई साल के अंदर और कोई दो साल में इस रिक्‍शा का मालिक हो जाएगा। जब उसे पता है, इसका मतलब ये हुआ कि उसकी ये बचत होने वाली है। ये पैसे उसके किसी ओर की जेब में नहीं जाने वाले, खुद की जेब में जाने वाले है ताकि वो एक साल-दो साल के बाद इसका मालिक बन जाने वाला है और मुझे विश्‍वास है कि इस प्रकार की व्‍यवस्‍था के कारण आने वाले दिनों में जितने परिवार है, उनको फिर गरीबी की हालत में रहने की नौबत नहीं आएगी, वो आगे बढ़ेंगे।

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मैंने उनसे पूछा कि बच्‍चों को पढ़ाओगे क्‍या? बोले साहब अब तक तो कभी-कभी मन में रहता था कि कितना पढ़ाऊं, कहां से पैसा लाऊं, लेकिन ये जो आपने व्‍यवस्‍था की है, अब मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं, मैं बच्‍चों को पढ़ाऊंगा। मेरी बात तो ये पांच-छह लोगों के साथ हुई है लेकिन यहां जिन लोगों को आज रिक्‍शा मिल रही है, उन सबसे मेरा आग्रह है कितनी ही तकलीफ क्‍यों न हो, मेरे प्रति नाराजगी व्‍यक्‍त करनी है, तो जरूर करना, आपको हक है। लेकिन बच्‍चों को पढ़ाई से कभी खारिज मत करना, बच्‍चों की पढ़ाई को प्राथमिकता देना। गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने का सबसे बड़ा औजार और सस्‍ते से सस्‍ता औजार कोई है, तो अपनी संतानों को शिक्षा देना। अगर हम अपने बच्‍चों को शिक्षा देंगे, तो दुनिया की कोई ताकत नहीं है जो हमें गरीब रहने के लिए मजबूर कर दे। देखते ही देखते स्थिति बदलना शुरू हो जाएगा। और इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि ये जो नई सुविधाएं जिन-जिन परिवारों को मिल रही हैं, वे अपने बच्‍चों को पढ़ाने के विषय में कोई compromise न करें, अपने बच्‍चों को जरूर पढ़ाएं।

आज मुझे एक परिवार से मिलना हुआ। वो बहन चौराहे पर दरी बिछाकर के सब्‍जी बगैरा बेचती रहती थी, आज उसको एक ठेला मिल गया है। मैंने उसको पूछा क्‍या फर्क पड़ेगा। बोले जी पहले तो मैं जहां बैठती थी कोई आया तो माल ले के जाता था, अब मैं अलग-अलग इलाकों में जाऊंगी, अपना समय पत्रक बना दूंगी कि इस इलाके में सुबह 9 बजे जाना है, इस इलाके में सुबह 10 बजे जाना है इस इलाके में 11 बजे जाना है, तो लोगों को भी पता रहेगा कि मैं कितने बजे वहां माल अपना लेकर जाऊंगी, तो वो जरूर उस समय पर मेरा माल ले लेंगे। अब देखिए अनपढ़ महिला! लेकिन उसे मालूम है कि मैं ऐसा टाईम-टेबल बनाऊंगी कि इस इलाके में 9 बजे जाती हूं तो रोज, हर रोज 9 बजे वहां पहुंच जाऊंगी, इस इलाके में दोपहर को 12 बजे पहुंचती हूं, मतलब 12 बजे पहुंच जाऊंगी। यानी उसको business का perfect management मालूम है। ठेला चलाते-चलाते भी अपनी जिंदगी बदली जा सकती है, इसका विश्‍वास उसके अंदर आया है। ये छोटी-छोटी चीजें हैं, जिसके द्वारा हम एक बहुत बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।

अभी प्रधानमंत्री जन-धन खाते खोलने का जो अभियान चलाया, हमारे देश में सालों से कहा जाता था कि गरीबों के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया है, लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 40-50 साल के बाद भी, बैंक के दरवाजे पर कभी कोई गरीब दिखाई नहीं दिया था और इस देश में कभी उसकी चर्चा भी नहीं थी। इस देश में ऐसा क्‍यों ? ये सवाल इस देश के किसी बुद्धिमान व्‍यक्ति ने किसी राजनेता को नहीं पूछा, किसी सरकार को नहीं पूछा। 50 साल में नहीं पूछा। Taken for granted था। हमने आकर के बीड़ा उठाया कि बैंकों के दरवाजे पर मेरा गरीब होगा, बैंकों के अंदर मेरा गरीब होगा। ये बैंक गरीबों के लिए होगी, बड़ा अभियान उठाया। मैंने 15 अगस्‍त को घोषणा की थी, 26 जनवरी तक पूरा करने का संकल्‍प लिया था और सभी बैंकों ने जी-जान से मेरे साथ जुड़ गए, कंधे से कंधा जुड़ गए और आज देश में करीब 18 करोड़ से ज्‍यादा बैंकों के खाते गरीबों के खुल गए।

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हिन्‍दुस्‍तान में कुल परिवारों में जितने थे करीब-करीब सारे आ गए और हमने तो कहा था कि हम गरीबों का account कोई भी प्रकार का पैसा लेकर कर के नहीं खोलेंगे। बिना पैसे, बैंक खर्चा करेगी फॉर्म का खर्चा होगा, जो होगा करेंगे, गरीबों का एक बार मुफ्त में खाता खोल देंगे। आदत लगेगी उसको धीरे-धीरे और खाते खोल दिए लेकिन देखिए, गरीबों की अमीरी देखिए, सरकार ने तो कहा था एक रुपया नहीं दोगे लेकिन गरीबों ने करीब-करीब 30 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा रकम जमा कर दी है। इसका मतलब ये हुआ कि गरीब को पैसे बचाने की अब इच्‍छा होने लगी है। अगर गरीब को पैसे बचाने की इच्‍छा होगी तो उसके आर्थिक जीवन में बदलाव आना स्‍वाभाविक शुरू हो जाएगा। धीरे-धीरे बैंक के खाते उपयोग करने की आदत भी अब धीरे-धीरे बन रही है। मैं हैरान हूं जिन्‍होंने खाते नहीं खोले कभी, वो आज मेरा हिसाब मांग रहे हैं कि खाते खोल तो दिए हैं, लेकिन उसका उपयोग करने वालों की संख्‍या बढ़ नहीं रही है। जिन्‍होंने खाते तक खोलने की परवाह नहीं की थी, उनको अभी खाते operate हो रहे कि नहीं हो रहे, इसकी चिन्‍ता होने लगी है। अच्‍छा होता, ये काम अगर आपने 40-50 साल पहले कर दिया होता तो आज operate करने का सवाल मुझे नहीं पूछना पड़ता देश के सभी गरीब के खाते हो जाते। लेकिन आपने जो काम 50 साल नहीं किया है वो 50 महीने में मैं पूरा करके रहूंगा, ये मैं बताने आया हूं।

गरीब का भला कैसे हो, अभी काशी के अंदर रक्षाबंधन को सुरक्षाबंधन बनाने का बड़ा अभियान चलाया और मैं काशी की माताओं-बहनों का विशेष रूप से, सार्वजनिक रूप से आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि इस रक्षाबंधन के पर्व पर मुझे इतनी राखियां मिली हैं बनारस से, इतने आशीर्वाद मिले हैं, माताओं-बहनों के, मैं सिर झुकाकर उन सभी माताओं-बहनों को नमन करता हूं। आपने जो मेरे प्रति सद्भाव व्‍यक्‍त किया है, मेरी रक्षा की चिन्‍ता की है और सुरक्षा का बंधन की जो बात कही है, मैं उसके लिए काशी की सभी माताओं-बहनों का ह्दय से बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं। मैं इन सभी महानुभावों का भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि योजना में हमारे साथ, ये partner बने हैं और एक Model के रूप में ये काम आने वाले दिनों में विकसित होगा। अब आप धीरे-धीरे देखिए काशी के अंदर एक नया....और इसके कारण गति आने वाली है, इन चीजों के कारण गति आने वाली है, इन चीजों के कारण शहर की एक नई पहचान बनने वाली है। इन चीजों के कारण सामान्‍य मानव के जीवन में सुविधा का अवसर शुरू होने वाला है।

ऐसी इस योजना के निमित्‍त मैं आज उन सभी बधुंओं को जिन्‍हें आज ये साधन मिल रहे हैं, मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और काशी की आर्थिक प्रगति में गरीब से गरीब व्‍यक्ति की ताकत काम में आए, उस दिशा के प्रयत्‍नों में हमें सफलता मिले, यही भोलेनाथ हम पर आशीर्वाद बरसाएं, इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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वणक्कम चोळा मंडलम!

परम आदरणीय आधीनम मठाधीशगण, चिन्मया मिशन के स्वामीगण, तमिलनाडु के गवर्नर R N रवि जी, कैबिनेट में मेरे सहयोगी डॉ. एल मुरुगन जी, स्थानीय सांसद थिरुमा-वलवन जी, मंच पर मौजूद तमिलनाडु के मंत्री, संसद में मेरे साथी आदरणीय श्री इलैयाराजा जी, सभी ओदुवार्, भक्त, स्टूडेंट्स, कल्चरल हिस्टोरियन्स, और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों! नमः शिवाय

नम: शिवाय वाळघा, नादन ताळ वाळघा, इमैइ पोळुदुम्, येन नेन्जिल् नींगादान ताळ वाळघा!!

मैं देख रहा था कि जब-जब नयनार नागेंद्रन का नाम आता था, चारो तरफ उत्साह के वातावरण से एकदम से माहौल बदल जाता था।

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साथियों,

एक प्रकार से राज राजा की ये श्रद्धा भूमि है। और उस श्रद्धा भूमि में इलैयाराजा ने आज जिस प्रकार से शिवभक्ति में हम सबको डूबो दिया, सावन का मास हो, राज राजा की श्रद्धा भूमि हो और इलैयाराजा की तपस्या हो, कैसा अद्भुत वातावरण, बहुत अद्भुत वातावरण, और मैं तो काशी का सांसद हूं और जब ओम नम: शिवाय सुनता हूं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

साथियों,

शिवदर्शन की अद्भुत ऊर्जा, श्री इलैयाराजा का संगीत, ओदुवार् का मंत्रोच्चार, वाकई ये spiritual experience आत्मा को भाव विभोर देता है।

साथियों,

सावन का पवित्र महीना और बृहदेश्वर शिवमंदिर का निर्माण शुरू होने के, one thousand years का ऐतिहासिक अवसर, ऐसे अद्भुत समय में मुझे भगवान बृहदेश्वर शिव के चरणों में उपस्थित होकर के पूजा करने का सौभाग्य मिला है। मैंने इस ऐतिहासिक मंदिर में 140 करोड़ भारतीयों के कल्याण और भारत की निरंतर प्रगति के लिए प्रार्थना की है। मेरी कामना है- भगवान शिव का आशीर्वाद सबको मिले, नम: पार्वती पतये हर हर महादेव!

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साथियों,

मुझे यहां आने में विलंब हुआ, मैं यहां तो जल्दी पहुंच गया था, लेकिन भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय ने जो अद्भुत प्रदर्शनी लगाई है, ज्ञानवर्धक है, प्रेरक है और हम सब गर्व से भर जाते हैं, कि हजार साल हमारे पूर्वजों ने किस प्रकार से मानव कल्याण को लेकर के दिशा दी। कितनी विशालता थी, कितनी व्यापकता थी, कितनी भव्यता थी, और ये बताया गया मुझे पिछले एक सप्ताह से हजारों लोग ये प्रदर्शनी को देखने के लिए आ रहे हैं। ये दर्शनीय हैं और मैं तो सबको कहूंगा कि इसको आप जरूर देखें।

साथियों,

आज मुझे यहाँ चिन्मय मिशन के प्रयासों से तमिल गीता की एल्बम लॉंच करने का अवसर भी मिला है। ये प्रयास भी विरासत को सहेजने के हमारे संकल्प को ऊर्जा देता है। मैं इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को भी बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूँ।

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साथियों,

चोळा राजाओं ने अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंधों का विस्तार श्रीलंका, मॉलदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक किया था। ये भी एक संयोग है कि मैं कल ही मॉलदीव से लौटा हूं, और आज तमिलनाडु में इस कार्यक्रम का हिस्सा बना हूं।

हमारे शास्त्र कहते हैं- शिव के साधक भी शिव में ही समाहित होकर उनकी ही तरह अविनाशी हो जाते हैं। इसीलिए, शिव की अनन्य भक्ति से जुड़ी भारत की चोळा विरासत भी आज अमर हो चुकी है। राजराजा चोळा, राजेन्द्र चोळा, ये नाम भारत की पहचान और गौरव के पर्याय हैं। चोळा साम्राज्य का इतिहास और विरासत, ये भारत के वास्तविक सामर्थ्य का true potential का उद्घोष है। ये भारत के उस सपने की प्रेरणा है, जिसे लेकर आज हम विकसित भारत के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं। मैं इसी प्रेरणा के साथ, राजेंद्र चोळा द ग्रेट को नमन करता हूं। पिछले कुछ दिनों में आप सभी ने आडी तिरुवादिरइ उत्सव मनाया है। आज उसका समापन इस भव्य कार्यक्रम के रूप में हो रहा है। मैं इसमें सहयोग करने वाले सभी लोगों को बधाई देता हूं।

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साथियों,

इतिहासकार मानते हैं कि चोळा साम्राज्य का दौर भारत के स्वर्णिम युगों में से एक था। इस युग की पहचान उसकी सामरिक ताकत से होती है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में भारत की परंपरा को भी चोळा साम्राज्य ने आगे बढ़ाया था। इतिहासकार लोकतन्त्र के नाम पर ब्रिटेन के मैग्नाकार्टा की बात करते हैं, लेकिन, कई सदी पहले चोळा साम्राज्य में कुडावोलई अमईप् से लोकतान्त्रिक पद्धति से चुनाव होते थे। आज दुनियाभर में water management और ecology preservation की इतनी चर्चा होती है। हमारे पूर्वज बहुत पहले से इनका महत्व समझते थे। हम ऐसे बहुत से राजाओं के बारे में सुनते हैं, जो दूसरी जगहों पर विजय प्राप्त करने के बाद सोना-चांदी या पशुधन लेकर आते थे। लेकिन देखिए, राजेंद्र चोळा की पहचान, वे गंगाजल लाने के लिए हैं, वो गंगाजल ले आए थे। राजेंद्र चोळा ने उत्तर भारत से गंगाजल लाकर दक्षिण में स्थापित किया। “गङ्गा जलमयम् जयस्तम्बम्” उस जल को यहां चोळागंगा येरि, चोळागंगा झील में प्रवाहित किया गया, जिसे आज पोन्नेरी झील के नाम से जाना जाता है।

साथियों,

राजेंद्र चोल ने गंगै-कोंडचोळपुरम कोविल की स्थापना भी की थी। यह मंदिर आज भी विश्व का एक architectural wonder है। ये भी चोळा साम्राज्य की ही देन है, कि मां कावेरी की इस धरती पर मां गंगा का उत्सव मनाया जा रहा है। मुझे बहुत खुशी है कि आज उस ऐतिहासिक प्रसंग की स्मृति में, एक बार फिर गंगाजल को काशी से यहां लाया गया है। अभी यहां मैं जब पूजापाठ करने के लिए गया था, विधिपूर्वक अनुष्ठान सम्पन्न किया गया है, गंगाजल से अभिषेक किया गया है और मैं तो काशी का जनप्रतिनिधि हूं, और मेरा मां गंगा से एक आत्मीय जुड़ाव है। चोळा राजाओं के ये कार्य, उनसे जुड़े ये आयोजन, ये ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के महायज्ञ को नई ऊर्जा, नई शक्ति और नई गति देते हैं।

भाइयों बहनों,

चोळा राजाओं ने भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोया था। आज हमारी सरकार चोळा युग के उन्हीं विचारों को आगे बढ़ा रही है। हम काशी तमिल संगमम् और सौराष्ट्र तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के जरिए एकता के सदियों पुराने सूत्रों को मजबूत बना रहे हैं। गंगै-कोंडचोळपुरम जैसे तमिलनाडु के प्राचीन मंदिरों का भी ASI के जरिए संरक्षण किया जा रहा है। जब देश की नई संसद का लोकार्पण हुआ, तो हमारे शिव आधीनम के संतों ने उस आयोजन का आध्यात्मिक नेतृत्व किया था, सब यहां मौजूद हैं। तमिल संस्कृति से जुड़े पवित्र सेंगोल को संसद में स्थापित किया गया है। मैं आज भी उस पल को याद करता हूं, तो गौरव से भर जाता हूं।

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साथियों,

मैंने अभी चिदंबरम् के नटराज मंदिर के कुछ दीक्षितरों से मुलाकात की है। उन्होंने मुझे इस दिव्य मंदिर का पवित्र प्रसाद भेंट किया, जहां भगवान शिव की नटराज रूप में पूजा होती है। नटराज का ये स्वरूप, ये हमारी philosophy और scientific roots का प्रतीक है। भगवान नटराज की ऐसी ही आनन्द ताण्डव मूर्ति दिल्ली के भारत मंडपम की शोभा भी बढ़ा रही है। इसी भारत मंडपम में जी-20 के दौरान दुनिया भर के दिग्गज नेता जुड़े थे।

साथियों,

हमारी शैव परंपरा ने भारत के सांस्कृतिक निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। चोळा सम्राट इस निर्माण के अहम architect थे। इसीलिए, आज भी शैव परंपरा के जो जीवंत केंद्र हैं, तमिलनाडु उनमें बेहद अहम है। महान नयनमार संतों की लीगेसी, उनका भक्ति लिटरेचर, तमिल लिटरेचर, हमारे पूज्य आधीनमों की भूमिका, उन्होंने सोशल और spiritual फ़ील्ड में एक नए युग को जन्म दिया है।

साथियों,

आज दुनिया जब instability, violence और environment जैसी समस्याओं से जूझ रही है, ऐसे में शैव सिद्धांत हमें solutions का रास्ता दिखाते हैं। आप देखिए, तिरुमूलर ने लिखा था — “अन्बे शिवम्”, अर्थात्, प्रेम ही शिव है। Love is Shiva! आज अगर विश्व इस विचार को adopt करे, तो ज़्यादातर crisis अपने आप solve हो सकती हैं। इसी विचार को भारत आज One World, One Family, One Future के रूप में आगे बढ़ा रहा है।

साथियों,

आज भारत, विकास भी, विरासत भी, इस मंत्र पर चल रहा है। आज का भारत अपने इतिहास पर गर्व करता है। बीते एक दशक में हमने देश की धरोहरों के संरक्षण पर मिशन मोड में काम किया है। देश की ancient statues और artifacts, जिन्हें चुराकर विदेशों में बेच दिया गया था, उन्हें वापस लाया गया है। 2014 के बाद से 600 से ज्यादा प्राचीन कलाकृतियां, मूर्तियां दुनिया के अलग-अलग देशों से भारत वापस आई हैं। इनमें से 36 खासतौर पर हमारे तमिलनाडु की हैं। आज नटराज, लिंगोद्भव, दक्षिणमूर्ति, अर्धनारीश्वर, नंदीकेश्वर, उमा परमेश्वरी, पार्वती, सम्बन्दर, ऐसी कई महत्वपूर्ण धरोहरें अब फिर से इस भूमि की शोभा बढ़ा रही हैं।

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साथियों,

हमारी विरासत और शैव दर्शन की छाप अब केवल भारत तक, या इस धरती तक ही नहीं। जब भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करने वाला पहला देश बना, तो हमने चंद्रमा के उस पॉइंट को भी शिवशक्ति नाम दिया। चंद्रमा के उस अहम हिस्से की पहचान अब शिव-शक्ति के नाम से होती है।

साथियों,

चोळायुग में भारत ने जिस आर्थिक और सामरिक उन्नति का शिखर छूआ है, वो आज भी हमारी प्रेरणा है। राजराजा चोळा ने एक पावरफुल नेवी बनाई। राजेंद्र चोळा ने इसे और सुदृढ़ किया। उनके दौर में कई प्रशासनिक सुधार भी किए गए। उन्होंने लोकल एड्मिनिस्ट्रेटिव सिस्टम को सशक्त बनाया। एक मजबूत राजस्व प्रणाली लागू की गई। व्यापारिक उन्नति, समुद्री मार्गों का इस्तेमाल, कला और संस्कृति का प्रचार, प्रसार, भारत हर दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा था।

साथियों,

चोळा साम्राज्य, नए भारत के निर्माण के लिए एक प्राचीन रोडमैप की तरह है। ये हमें बताता है, अगर हमें विकसित राष्ट्र बनाना है, तो हमें एकता पर ज़ोर देना होगा। हमें हमारी नेवी को, हमारी डिफेंस फोर्सेस को मजबूत बनाना होगा। हमें नए अवसरों को तलाशना होगा। और इस सबके साथ ही, अपने मूल्यों को, उसको भी सहेज कर रखना होगा। और मुझे संतोष है कि देश आज इसी प्रेरणा से आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

आज का भारत, अपनी सुरक्षा को सर्वोपरि रखता है। अभी ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया ने देखा है कि कोई अगर भारत की सुरक्षा और संप्रभुता पर हमला करता है, तो भारत उसे कैसे जवाब देता है। ऑपरेशन सिंदूर ने दिखा दिया है कि भारत के दुश्मनों के लिए, आतंकवादियों के लिए अब कोई ठिकाना सुरक्षित नहीं है। और आज जब मैं हेलीपेड से यहां आ रहा था, 3-4 किलोमीटर का रास्ता काटते हुए, और अचानक मैंने देखा एक बड़ा रोड शो बन गया और हरेक के मुंह से ऑपरेशन सिंदूर का जय-जयकार हो रहा था। ये पूरे देश में ऑपरेशन सिंदूर ने एक नई चेतना जगाई है, नया आत्मविश्वास पैदा किया है और दुनिया को भी भारत की शक्ति को स्वीकार करना पड़ रहा है।

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साथियों,

हम सब जानते हैं कि राजेन्द्र चोळा ने गंगै-कोंडचोळपुरम का निर्माण कराया, तो उसके शिखर को तंजावूर के बृहदेश्वर मंदिर से छोटा रखा। वो अपने पिता के बनाए मंदिर को सबसे ऊंचा रखना चाहते थे। अपनी महानता के बीच भी, राजेंद्र चोळा ने विनम्रता दिखाई थी। आज का नया भारत इसी भावना पर आगे बढ़ रहा है। हम लगातार मजबूत हो रहे हैं, लेकिन हमारी भावना विश्वबंधु की है, विश्व कल्याण की है।

साथियों,

अपनी विरासत पर गर्व की भावना को आगे बढ़ाते हुये आज मैं यहां एक और संकल्प ले रहा हूं। आने वाले समय में हम तमिलनाडु में राजराजा चोळा और उनके पुत्र और महान शासक राजेंद्र चोळा प्रथम की भव्य प्रतिमा स्थापित करेंगे। ये प्रतिमाएं हमारी ऐतिहासिक चेतना का आधुनिक स्तंभ बनेंगी।

साथियों,

आज डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि भी है। विकसित भारत का नेतृत्व करने के लिए हमें डॉक्टर कलाम, चोळा राजाओं जैसे लाखों युवा चाहिए। शक्ति और भक्ति से भरे ऐसे ही युवा 140 करोड़ देशवासियों के सपनों को पूरा करेंगे। हम साथ मिलकर, एक भारत श्रेष्ठ भारत के संकल्प को आगे बढ़ाएँगे। इसी भाव के साथ, मैं एक बार फिर आज के इस अवसर की आप सबको बधाई देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

मेरे साथ बोलिए,

भारत माता की- जय

भारत माता की- जय

भारत माता की- जय

वणक्कम!