माननीय सभापति जी, माननीय राष्‍ट्रपति जी की संयुक्‍त सदन को जो सीख मिली है, उनका जो अभिभाषण हुआ है, वो 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को reflect करता है। मैं इस सदन में माननीय राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर समर्थन देने के लिए आपके बीच प्रस्‍तुत हूं।

45 से ज्‍यादा माननीय सदस्‍यों ने इस अभिभाषण पर अपने विचार रखे हैं। ये वरिष्‍ठजनों का गृह है, अनुभवी महापुरुषों का गृह है। चर्चा को समृद्ध करने का हर किसी का प्रयास रहा है। श्रीमान गुलाम नबी जी, श्रीमान आनंद शर्मा, भूपेन्‍द्र यादव जी, सुधांश त्रिवेदी जी, सुधाकर शेखर जी, रामचंद्र प्रसाद जी, रामगोपाल जी, सतीश चंद्र मिश्रा जी, संजय राउत जी, स्‍वप्‍नदास जी, प्रसन्‍ना आचार्य, ए. नवनीत जी, ऐसे सभी अनेक अपने माननीय सदस्‍यों ने अपने विचार रखे हैं।

जब मैं इन सारे आपके भाषणों की जानकारियां ले रहा था, कई बातें नई-नई उभर करके आई हैं। ये सदन इस बात के लिए गर्व कर सकता है कि एक प्रकार से पिछला सदन सत्र हमारा बहुत ही productive रहा और सभी माननीय सदस्‍यों के सहयोग के कारण ये संभव हुआ। और इसके लिए सदन के सभी मान्‍य सदस्‍य अभिनंदन के अधिकारी हैं।

लेकिन ये अनुभवी और वरिष्‍ठ महानुभावों का सदन है, इसलिए स्‍वाभाविक देश की भी बहुत अपेक्षाएं थीं, ट्रेजरी बेंच पर बैठे हुए लोगों की बहुत अपेक्षाएं थीं और मेरी स्‍वयं की तो बहुत ही अपेक्षाएं थीं कि आपके प्रयास से बहुत अच्‍छी बातें देश के काम के लिए मिलेंगी, अच्‍छा मार्गदर्शन मुझ जैसे नए लोगों को मिलेगा। लेकिन ऐसा लगता है कि ये जो नए दशक में मेरी अपेक्षा थी, उसमें से मुझे निराशा मिली है।

ऐसा लग रहा है कि आप जहां ठहर गए हैं वहां से आगे बढ़ने का नाम ही नहीं लेते, वहीं रुके हुए हैं। और कभी-कभी तो लगता है कि पीछे चले जा रहे हैं। अच्‍छा होता हताशा-निराशा का वातावरण बनाए बिना, नई उमंग, नए विचार, नई ऊर्जा, इसके साथ आप सबसे देश को दिशा मिलती, सरकार को मार्गदर्शन मिलता। लेकिन शायद ठहराव को ही आपने अपना virtue बना दिया है। और इसमें मुझे काका हाथरसी का एक व्‍यंग्‍य काव्‍य याद आता है।

बड़े अच्‍छे ढंग से उन्‍होंने कहा था-

प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो,
बदल रहे अणु, कण-कण देखो
तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो
भाग्यवाद पर अड़े हुए हो।

छोड़ो मित्र ! पुरानी डफली,
जीवन में परिवर्तन लाओ
परंपरा से ऊंचे उठकर,
कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ।

माननीय सभापति जी, चर्चा का प्रारंभ करते हुए जब गुलाम नबी जी बात बता रहे थे, कुछ आक्रोश भी था, सरकार को कई बातों से कोसने का प्रयास भी था, लेकिन वो बहुत स्‍वाभाविक विषय है। लेकिन जब उन्‍होंने कुछ बातें ऐसी कहीं जो बेमेल थीं। अब जैसे उन्‍होंने कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर का फैसला सदन में बिना चर्चा के हुआ। देश ने टीवी पर पूरे दिनभर चर्चा देखी है, सुनी है। ये ठीक है कि 2 बजे तक कुछ लोग वैन में थे लेकिन बाहर से जब खबरें आने लगीं तो सब समझ गए कि भई अब जरा वापस जाना ही अच्‍छा है। देश ने देखा है, व्‍यापक चर्चा हुई है, विस्‍तार से चर्चा हुई है और विस्‍तार से चर्चा होने के बाद निर्णय किए गए हैं और सदन ने निर्णय किया है। सम्‍मानीय सदस्‍यों ने अपने वोट दे करके निर्णय किया है।

लेकिन जब ये बात हम सुनाते हैं तो ये भी याद रखें, और आजाद साहब मैं आपकी यादाश्‍त को जरा ताजा कराना चाहता हूं। पुराने कारनामें इतना जल्‍दी लोग भूलते नहीं हैं। जब तेलंगना बना तब इस सदन का हाल क्‍या था। दरवाजे बंद कर दिए गए थे, टीवी का टेलिकास्‍ट बंद कर दिया गया था। चर्चा को तो कोई स्‍थान ही नहीं बचा था और जिस हालत में वो पारित किया गया था वो कोई भूल नहीं सकता है। और इसलिए हमें आप नसीहत दें आप वरिष्‍ठ हैं, लेकिन फिर भी सत्‍य को भी स्‍वीकार करना होगा।

दशकों के बाद आपको एक नया राज्‍य बनाने का अवसर मिला था। उमंग, उत्‍साह के साथ सबको साथ ले करके आप कर सकते थे। अभी आनंद जी कह रहे थे राज्‍यों को पूछा, फलाने को पूछा, ढिकने को पूछा, बहुत कुछ कह रहे थे। अरे कम से कम आंध्र-तेलंगाना वालों को तो पूछ लेते कि उनकी क्‍या इच्‍छा थी। लेकिन आपने जो किया वो इतिहास है और उस समय, उस समय के प्रधानमंत्री आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने लोकसभा में एक बात कही थी और मैं समझता हूं‍ कि उसको हमें आज याद करना चाहिए।

उन्‍होंने कहा था- Democracy in India is being harmed as a result of the ongoing protest over the Telangana issue. अटल जी की सरकार ने उत्‍तराखंड बनाया, झारखंड बनाया, छत्तीसगढ़ बनाया, पूरे सम्‍मान के साथ, शांति के साथ, सद्भाव के साथ। और आज ये तीनो नए राज्‍य अपने-अपने तरीके से देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख को ले करके जो भी फैसले लिए गए पूरी चर्चा के साथ और लंबी चर्चा के बाद हुआ है।

यहां पर जम्‍मू–कश्‍मीर की स्थि‍ति पर कुछ आंकड़े प्रस्‍तुत किए गए। कुछ आंकड़े मेरे पास भी हैं। मुझे भी लगता है कि इस सदन के सामने मुझे भी वो ब्‍योरा देना चाहिए।

20 जून, 2018- वहां की सरकार जाने के बाद नई व्‍यवस्‍था बनी। गर्वनर रूल लगा था, उसके बाद राष्‍ट्रपति शासन आया और 370 हटाने का भी निर्णय हुआ। और उसके बाद मैं कहना चाहूंगा पहली बार वहां के गरीब सामान्‍य वर्ग को आरक्षण का लाभ मिला।

जम्‍मू-कश्‍मीर में पहली बार पहाड़ी भाषी लोगों को आरक्षण का लाभ मिला।

जम्‍मू-कश्‍मीर में पहली बार महिलाओं को ये अधिकार मिला कि वे अगर राज्‍य के बाहर विवाह करती हैं तो उनकी संपत्ति छीनी नहीं जाएगी।

पहली बार स्‍वतंत्रता के बाद वहां Block development council के इलेक्‍शन हुए।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में RERA का कानून लागू हुआ।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में Startup policy, Trade and Export policy, Logistic policy बनी भी और लागू भी हो गई।

पहली बार, और ये तो देश को आश्‍चर्य होगा, पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो की स्‍थापना हुई।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में अलगाववादियों को सीमा पार से हो रही फंडिंग पर नियंत्रण आया।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में अलगाववादियों के सत्‍कार समागम की परम्‍परा समाप्‍त हो गई।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर में आतंकवाद और आतंकियों के खिलाफ वहां जम्‍मू-कश्‍मीर पुलिस और सुरक्षा बल मिल करके निर्णायक कार्रवाई कर रहे हैं।

पहली बार जम्‍मू-कश्‍मीर के पुलिसकर्मियों को उन भत्‍तों का लाभ मिला है जो अन्‍य केंद्रीय कर्मचारियों को दशकों से मिलते रहे हैं।

पहली बार अब जम्‍मू-कश्‍मीर के पुलिसकर्मी एलटीसी लेकर कन्‍याकुमारी, नॉर्थ-ईस्‍ट या अंडेमान-निकोबार घूमने जा सकते हैं।

आदरणीय सभापति जी, गवर्नर रूल के बाद 18 महीनों में वहां 4400 से अधिक सरपंचों और 35 हजार से ज्यादा पंचों के लिए शांतिपूर्ण चुनाव हुआ।

18 महीनों में जम्मू-कश्मीर में 2.5 लाख शौचालयों का निर्माण हुआ,

18 महीनों में जम्मू-कश्मीर में 3 लाख 30 हजार घरों में बिजली का कनेक्शन दिया गया।

18 महीनों में जम्मू-कश्मीर में 3.5 लाख से ज्यादा लोगों को आयुष्मान योजना के गोल्ड कार्ड दिए जा चुके हैं।

सिर्फ 18 महीनों में जम्मू-कश्मीर में वहां डेढ़ लाख बुजुर्गों, महिलाओं और दिव्यांगों को पेंशन योजना से जोड़ा गया है

आजाद साहब ने ये भी कहा कि विकास तो पहले भी होता था। हमने कभी ऐसा नहीं कहा। लेकिन विकास कैसे होता था मैं जरूर एक उदाहरण देना चाहूंगा।

पीएम आवास योजना के तहत मार्च 2018 तक सिर्फ 3.5 हजार मकान बने थे। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत साढ़े तीन हजार। 2 साल से भी कम समय में इसी योजना के तहत 24 हजार से ज्यादा मकान बने हैं।

अब connectivity सुधारने, स्‍कूलों की स्थिति सुधारने, अस्‍पतालों को आधुनिक बनाने, सिंचाई की स्थिति ठीक करने, टूरिज्‍म बढ़ाने के लिए पीएम पैकेज समेत अन्य कई योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है।

आदरणीय वाइको जी, उनकी एक स्‍टाइल है, बहुत इमोशनल रहते हैं हमेशा। उन्‍होंने कहा कि 5 अगस्त 2019 जम्‍मू-कश्‍मीर के लिए ब्‍लैक डे है। वाइको जी, ये ब्‍लैक डे नहीं है, ये आतंक और अलगाव को बढ़ावा देने वालों के लिए ब्लैक डे सिद्ध हो चुका है। वहां के लाखों परिवारों के लिए एक नया विश्‍वास, एक नई आशा की किरण आज नजर आ रही है।

आदरणीय सभापति जी, यहां पर नॉर्थ-ईस्‍ट की भी चर्चा हुई है। आजाद साहब कह रहे हैं कि नॉर्थ-ईस्‍ट जल रहा है। अगर जलता होता तो सबसे पहले आपने अपने एमपीओ का डेलीगेशन वहां भेजा ही होता और प्रेस कॉन्‍फ्रेंस तो जरूर की होती, फोटो भी निकलवाई होती। और इसलिए मुझे लगता है कि आजाद साहब की जानकारी 2014 के पहले की है। और इसलिए मैं अपडेट करना चाहूंगा कि नॉर्थ-ईस्‍ट अभूतपूर्व शांति के साथ आज भारत की विकास यात्रा का एक अग्रिम भागीदार बना है। 40-40, 50-50 साल से नॉर्थ-ईस्‍ट में जो हिंसक आंदोलन चलते थे, blockade चलते थे और हर कोई जानता है कि कितनी बड़ी चिंता का विषय था। लेकिन आज ये आंदोलन समाप्‍त हुए हैं, blockade बंद हुए हैं और शांति की राहत पर पूरा नॉर्थ-ईस्‍ट आगे बढ़ रहा है।

मैं एक बात का जरूर जिक्र करना चाहूंगा- करीब-करीब 30-25 साल से ब्रू जनजा‍ति की समस्‍या, आप भी वाकिफ हैं, हम भी वाकिफ हैं। करीब 30 हजार लोग अनिश्चितता की जिंदगी जी रहे थे। इतने छोटे से कमरे में, वो भी एक छोटा सा Hut बनाया हुआ temporary. जिसमें 100-100 लोगों को रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। तीन-तीन दशक से ऐसा चल रहा था, यातनाएं कम नहीं हैं। और गुनाह कुछ नहीं था उनका। अब मजा देखिए, नॉर्थ-ईस्‍ट में बहुत-एक आपके ही दल की सरकारें थीं। अब त्रिपुरा में आपके साथी दल की सरकार थी, आपके मित्र थे, प्रिय मित्र। आपने चाहा होता तो मिजोरम सरकार आपके पास थी, त्रिपुरा में आपके मित्र बैठे थे, केन्‍द्र में आप बैठे थे। अगर आप चाहते तो ब्रू जनजाति की समस्‍या का सुखद समाधान ला सकते थे। लेकिन आज, इतने सालों के बाद उस समस्‍या का समाधान और स्‍थाई समाधान करने में हम सफल हुए हैं।

मैं कभी सोचता हूं कि इतनी बड़ी समस्‍या पर इतनी उदासीनता क्‍यों थी? लेकिन अब मुझे समझ में आने लगा है कि उदासीनता का कारण ये था कि ब्रू जाति के जो लोग अपने घर से, गांव से बिछड़ गए थे, उनको बर्बाद कर दिया गया था, उनका दर्द तो असीमित था, लेकिन वोट बहुत सीमित था। और ये वोट का ही खेल था जिसके कारण उनके असीमित दर्द को हम कभी अनुभव नहीं कर पाए और उनकी समस्‍या का हम समाधान नहीं कर पाए। ये हमारा पुराना इतिहास है, हम न भूलें।

हमारी सोच अलग है, हम सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्‍वास इस मंत्र को ले करके पूरी जिम्‍मेदारी और संवेदना के साथ, जो भी हमसे बन सके, हम समस्‍याओं को सुलझाने में लगे हुए हैं। और हम उनकी तकलीफ को समझते हैं। आज बड़ा गर्व कर सकता है देश कि 29 हजार लोगों को अपना घर मिलेगा, अपनी एक पहचान बनेगी, अपनी एक जगह मिलेगी। वो अपने सपने बुन पाएंगे, अपने बच्‍चों के भविष्‍य को वो तय कर पाएंगे। और इसलिए ब्रू जनजाति के प्रति, और ये पूरा नॉर्थ-ईस्ट की समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते हैं।

मैं बोडो के संबंध में विस्‍तार से कहना नहीं चाहता, लेकिन वह भी अपने-आप में एक बहुत-बहुत महत्‍वपूर्ण काम हुआ है। और उसकी विशेषता है सभी हथियारी ग्रुप, सभी हिंसा के रास्‍ते पर गए हुए ग्रुप एक साथ आए थे। और सबने एग्रीमेंट में लिखा है कि इसके बाद बोडो आंदोलन की सभी मांगे समाप्‍त होती हैं, कोई बाकी नहीं है, ये एग्रीमेंट में लिखा है।

श्रीमान सुखेंदु शेखर जी सहित अनेक साथियों ने यहां आर्थिक विषयों पर चर्चा की है। जब ऑल पार्टी मीटिंग हुई थी तब भी मैंने सबसे आग्रह से कहा था, ये सत्र पूरा का पूरा हमें आर्थिक विषयों की चर्चा के लिए समर्पित करना चाहिए। गहन चर्चा होनी चाहिए। सारे पक्ष उजागर हो करके आने चाहिए। और जो भी टेलेंट हम लोगों के सबसे पास है, यहां हो, वहां हो कोई अलग बात है। लेकिन हम मिल करके ऐसी नई चीजें बताएं, ऐसी नई चीजें खोजें, नए रास्‍ते डेवलप करें और आज जो वैश्विक आर्थिक परिस्थिति है, उसका अधिकतम लाभ भारत कैसे ले सकता है, भारत अपनी जड़ें कैसे मजबूत कर सकता है, भारत कैसे अपने आर्थिक हितों का विस्‍तार बढ़ा सकता है, उस पर हम गहन चर्चा करें, ये मैंने ऑल पार्टी मीटिंग में सबके सामने रिकवेस्‍ट की थी। और मैं चाहूंगा इस सत्र को पूरी तरह देश के आर्थिक विषयों पर हमें समर्पित करना चाहिए।

बजट पर चर्चा होनी है, उसको और विस्‍तार से उस पर चर्चा करेंगे और अमृत ही निकलेगा। हो जाए कुछ छींटाकशी हो जाएगी, तू-तू-मैं-मैं हो जाएगी, कुछ आरोप-प्रत्‍यारोप हो जाएंगे, फिर भी मैं समझता हूं उस मंथन से अमृत ही निकलेगा और इसलिए मैं फिर से निमंत्रित करता हूं सबको कि अर्थव्‍यवस्‍था पर, आर्थिक स्थिति पर, आर्थिक नीतियों पर, आर्थिक परिस्थितियों पर और डॉक्‍टर मनमोहन जी जैसे अनुभवी महानुभाव हमारे बीच में हैं, जरूर देश को लाभ मिलेगा। और हमें करना चाहिए, हमारा मन इसके विषय में खुला है।

लेकिन यहां जो अर्थव्‍यवस्‍था के संबंध में चर्चा हुई है, देश को निराश होने का कोई कारण नहीं है। और निराशा फैलाकर कुछ पाने वाले भी नहीं हैं। आज भी देश के अर्थव्‍यवस्‍था के जो बेसि‍क सिद्धांत हैं, मानदंड हैं, उन सारे मानकों में आज भी देश की अर्थव्‍यवस्‍था सशक्‍त है, मजबूत है और आगे जाने की पूरी ताकत रखती है। Inherent ये क्‍वालिटी उसके अंदर है।

और कोई भी देश छोटी सोच से आगे नहीं बढ़ सकता जी। अब देश की युवा पीढ़ी हमसे अपेक्षा करती है कि हम बड़ा सोचें, दूर का सोचें, ज्‍यादा सोचें और ज्‍यादा ताकत से आगे बढ़ें। इसी मूल मंत्र को ले करके 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी को ले करके हम देश को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, जोड़ने का प्रयास करेंगे। निराश करने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। पहले ही दिन हम कह दें, नहीं-नहीं ये तो संभव ही नहीं है। अरे भई जो संभव नहीं है तो फिर क्‍या संभव है वही करना है क्‍या। हर बार हमने इतना ही करना है, कोई दो कदम चलता है वहीं चलना चाहिए क्‍या। अरे कभी तो पांच कदम के लिए हिम्‍मत करें, कभी तो सात कदम के लिए हिम्‍मत करें, कभी तो मेरे साथ आइए।

ये निराशा देश का भला कभी नहीं करती, और इसलिए 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी की बात करने का सुखद परिणाम यह हुआ है कि जो विरोध करते हैं, उन्हें भी 5 ट्रिलियन डॉलर की बात करनी पड़ती है। हर किसी को आधार 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाना पड़ रहा है। ये तो बहुत बड़ा बदलाव हुआ। वरना हम ऐसे ही मामले में खेलते रहते थे। अब दुनिया के सामने खेलने का एक कैनवास तो खड़ा कर दिया है। मानसिकता तो बदली है हमने: और इसलिए और इस ड्रीम को पूरा करने के लिए गांव और शहर में इंफ्रास्ट्रक्चर हो, MSME हो, टेक्‍सटाइल का क्षेत्र हो, जहां रोजगार की संभावना है।

हमने टेक्‍नोलॉजी को बढ़ावा मिले, र्स्‍टाटअप को बढ़ावा मिले। टूरिज्‍म एक बहुत बड़ा अवसर है। हमें जितना पिछले 70 साल में टूरिज्‍म को,भारत को जिस प्रकार से हमें branded करना चाहिए था, किसी न किसी कारण से हम वो मिस कर गए हैं। आज भी अवसर है और आज भारत को भारत की नजर से टूरिज्म को डेवलप करना चाहिए, पश्चिमी नजर से भारत के टूरिज्‍म को हम डेवलप नहीं कर सकते। दुनिया भारत को देखने आने चाहिए। वरना उसको हंसी-खुली की दुनिया देखनी है तो दुनिया में बहुत दिखाते हैं, वो वहां चले जाते हैं।

मेक इन इंडिया पर हमने बल दिया है, उसके सुफल नजर आ रहे हैं। विदेशी निवेश के आंकड़े आप देखते होंगे।

टैक्‍स स्‍ट्रक्‍चर को ले करके सारे प्रोसेस को सरल करने के‍ लिए हमने लगातार प्रयास किया है। और दुनिया में भी ease of doing business ranking की बात हो या भारत में ease of living का विषय हो, हमने एक साथ दोनों को...बैंकिंग सेक्‍टर में मुझे बराबर याद है जब मैं गुजरात में था तो कई बड़े विद्वान जो एक आर्टिकल लिखते थे, वो कहते थे हमारे देश में बैंकों का merger करना चाहिए। और अगर ये हो जाए तो बहुत बड़ा रिफार्म माना जाएगा ये। ऐसा हमने कई बार पढ़ा है। ये सरकार है जिसने कई बैंकों का merger कर दिया, आसानी से कर दिया। और आज ताकतवर बैंकों का सेक्‍टर तैयार हो गया जो आने वाले देश की financial रीढ़ को मजबूती देगा, गति देगा

आज मैन्‍युफैक्‍चरिंग के सेक्‍टर में एक नया दृष्टिकोण भी देखना होगा कि जो बैंकों में पैसे फंसे क्‍या कारण था। मैंने पिछली सरकार के समय पर विस्‍तार से कहा था और मैं बार-बार किसी को भी नीचा दिखाने के लिए प्रयास नहीं करता हूं। देश के सामने जो सत्‍य रखना चाहिए, रख करके मैं आगे बढ़ने में ही अपना लगाता हूं। ऐसी चीजों में अपना समय व्‍यर्थ में गंवाता नहीं हूं, वरना कहने के लिए बहुत कुछ है।

एक विषय ऐसी चर्चा आई कि जीएसटी में बार-बार बदलाव आया। इसको अच्‍छा मानें या बुरा मानें। मैं हैरान हूं, भारत के फैडरल स्‍ट्रक्‍चर की एक बहुत बड़ी अचीवमेंट है जीएसटी की रचना। अब राज्‍यों की भावनाओं का उसमें प्रकटीकरण होता है। कांग्रेसशासित राज्‍यों की तरफ से भी वहां विषय आते हैं। क्‍या हम ये कह करके बंद कर दें कि नहीं हमने जो किया वो फाइनल, सारी बुद्धि भगवान ने हमको ही दी है? हम कोई सुधार नहीं होगा, चलो, ऐसा करेंगे क्‍या? ऐसा हमारा विचार नहीं है, हमारा मत है समयानुकूल परिवर्तन जहां आवश्‍यक है करना चाहिए। इतना बड़ा देश है, इतने बड़े विषय हैं। जब राज्‍यों के बजट आते हैं सेल टैक्‍स में आपने देखा होगा कि बजट पूरा होते-होते सेल टैक्‍स हो या अन्‍य कोई taxes हों, कई चर्चाएं आती हैं और बाद में आखिर में बदलाव भी करने पड़ते हैं राज्‍यों को। अब वो विषय राज्‍यों से हट करके एक हो गया है तो जरा ज्‍यादा लगता है।

देखिए, मैं समझता हूं कि यहां कहा गया है कि जीएसटी बहुत सरल होना चाहिए, ढिकना होना चाहिए था, फलाना होना चाहिए था। मैं जरा पूछना चाहता हूं अगर इतना ही ज्ञान आपके पास था, इतना ही सरल बनाने का क्‍लीयर विजन था तो इसको लटकाए क्यों रखा था भाई। हां, ये भ्रम मत फैलाइए।

मैं बताता हूं, मैं सुनाता हूं, आज आपको सुनना चाहिए। प्रणब दा जब वित्‍तमंत्री थे तब गुजरात आए थे, हमारी विस्‍तार से चर्चा हुई। मैंने उनसे पूछा कि दादा ये technology driven व्‍यवस्‍था है इसके विषय में क्‍या हुआ है। उसके बिना तो चल ही नहीं सकता है। तो दादा ने कहा, ठहरो भाई, तुम्‍हारा सवाल- उन्‍होंने अपने सचिव को बुलाया। और उन्‍होंने कहा, देखो भाई, ये मोदीजी क्‍या कह रहे हैं। तो मैंने कहा कि देखिए भाई ये तो technology driven व्‍यवस्‍था है तो टैक्‍नोलॉजी के बिना तो आगे बढ़ना नहीं है। तो उन्‍होंने कहा, नहीं, अभी-अभी हमने निर्णय किया है और हम किसी कंपनी को हायर करेंगे और हम करने वाले हैं। मैं उस समय की बात कर रहा हूं जब मुझे जीएसटी का कहने आए थे, तब भी ये व्‍यवस्‍था नहीं थी। दूसरी बात, तब मैंने कहा था कि आपको जीएसटी सफल करने के लिए जब मैन्‍युफैक्‍चरिंग स्‍टेट हैं उनकी कठिनाइयों को आपको address करना होगा। तमिलनाडु है, कर्नाटक है, गुजरात है, महाराष्‍ट्र है। By in large they are manufacturing states. जो उपभोग का राज्‍य है, जो कंज्‍यूमर स्‍टेट हैं उनके लिए इतनी मुश्किल नहीं है। और मैं आज बड़े गर्व से कहता हूं कि जब अरुण जेटली वित्‍त मंत्री थे उन्‍होंने इन बातों को address किया, इसका समाधान किया। उसके बाद जीएसटी में पूरा देश साथ चला है।

और इसलिए मैंने जो मुख्‍यमंत्री के नाते जो मुद्दे उठाए थे वो प्रधानमंत्री के नाते उन मुद्दों को सुलझाया है। और सुलझा करके जीएसटी का रास्‍ता प्रशस्‍त किया है।

इतना ही नहीं, अगर हम बदलाव की बात करते हैं तो कभी कहते हैं कि भई बार-बार बदलाव क्‍यों? मैं समझता हूं कि हमारे महापुरुषों ने इतना बड़ा महान संविधान दिया, उसमें भी उन्‍होंने सुधार के लिए रखा है। हर व्‍यवस्‍था में सुधार का हमेशा स्‍वागत होना चाहिए और हम देश हित में हर नए और अच्‍छे सुझावों का स्‍वागत करने वाले विचारों को ले करके चलते हैं।

आदरणीय सभापति जी, भारत की अर्थव्‍यवस्‍था में एक चीज है जो अभी भी बहुत उजागर बहुत कम हुई है, जिसकी तरफ ध्‍यान जाने की आवश्‍यकता है। देश में ये जो बड़ा बदलाव आ रहा है उसमें हमारे टीयर-2, टीयर-3 सिटी बहुत तेजी से proactively contribute कर रहे हैं। आप स्‍पोर्टस में देखिए टीयर-2, टीयर-3 सिटी के बच्‍चे आगे आ रहे हैं। आप शिक्षा में देखिए टीयर-2, टीयर-3 सिटी के बच्‍चे आ रहे हैं, आगे आ रहे हें । स्‍टार्टअप देखिए, टीयर-2, टीयर-3 सिटी में सबसे ज्‍यादा स्‍टार्टअप आगे बढ़ रहे हैं।

और इसलिए हमारा देश का जो आकांक्षी युवा है, जो तामझाम के बोझ में दबा हुआ नहीं है, वो एक बड़ी नई शक्ति के साथ उभर रहा है और हमने इन छोटे शहर, छोटे कस्‍बे, उसकी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में कुछ न कुछ प्रगति आए, उस दिशा में बहुत बारीकी से काम करने की दिशा में प्रयत्‍न‍ किया है।

हमारे देश में डिजिटल ट्रांजक्‍शन, इसी सदन में डिजिटल ट्रांजक्‍शन के जो भाषण हैं, भाषण करने वाले भी अपने भाषण निकाल करके पढ़ेंगे तो उनको आश्‍चर्य होगा कि मैंने ऐसा बोला था? कुछ लोगों ने तो मोबाइल का मजाक उड़ाया था। उन लोगों ने डिजिटल की बैंकिंग, बिलिंग की व्‍यवस्‍था के...यानी मैं हैरान हो गया कि आज छोटे स्‍थानों पर डिजिटल ट्रांजक्‍शन सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है और आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में भी टियर-2, टियर-3सिटी आगे बढ़ रहे हैं। हमारे रेलवे, हमारे हाईवे, हमारे एयरपोर्ट, उसकी पूरी श्रृंखला- अब देखिए उड़ान योजना, अभी-अभी परसों 250वां रूट लॉन्‍च हो गया, two hundred and fifty route within India. कितनी तेजी से हमारी हवाई सफर की व्‍यवस्‍था बदल रही है। और आने वाले दिनों में और अधिक।

हमने बीते पांच वर्ष में, हमारे पास ऑपरेशनल 65 एयरपोर्ट थे, आज 100 को हमने पार कर दिया है। 65 ऑपरेशनल में से 100 ऑपरेशनल कर दिए हैं। और ये सारे उस नए-नए क्षेत्रों की ताकत बढ़ाने वाले हैं।

उसी प्रकार से हमने बीते पांच वर्ष में सिर्फ सरकार ही नहीं बदली, हमने सोच भी बदली है हमने काम करने का तरीका भी बदला है। हमने अप्रोच भी बदली है। अब डिजिटल इंडिया की बात करें। broadband connectivity, अब broadband connectivity की बात आए तो पहले काम शुरू तो हुआ, योजना बन, लेकिन उस योजना का तरीका और सोच की इतनी मर्यादा रही कि सिर्फ 59 ग्राम पंचायत तक broadband connectivity पहुंची। आज पांच वर्ष में सवा लाख से अधिक गांवों में broadband connectivity पहुंच गई है। और सिर्फ broadband पहुंचना ही नहीं, पब्लिक स्‍कूल, गांव और दूसरे दफ्तरों तक और सबसे बड़ी बात कॉमन सर्विस सेंटर, उसको भी चालू किया गया है।

2014 में जब हम आए, तब हमारे देश में 80 हजार कॉमन सर्विस सेंटर थे। आज इनकी संख्‍या बढ़कर 3 लाख 65 हजार कॉमन सर्विस सेंटर की है और गांव का नौजवान इसे चला रहा है। और गांव की आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए वो पूरी तरह टेक्‍नोलॉजी की सेवाएं दे रहा है।

12 लाख से अधिक ग्रामीण युवा अपने ही गांव में रह रहे हैं। शाम को मां-बाप की भी मदद करते है, खेत का भी कभी काम लेते हैं। 12 लाख ग्रामीण युवा इस रोजगार के अंदर नए जुड़ गए हैं।

इस देश को गर्व होगा और होना चाहिए। हमने सरकार की आलोचना करने के लिए डिजिटल ट्रांजेक्‍शन वगैरह की मजाक उड़ाई थी, भीम ऐप इन दिनों विश्‍व का फाइनेंसर डिजिटल ट्रांजेक्‍शन के लिए बहुत ही पॉवरफुल प्‍लेटफॉर्म और secure प्‍लेटफॉर्म के रूप में उसकी स्‍वीकृति बढ़ती चली जा रही है और दुनिया के अनेक देश इस विषय में जानकारी पाने के लिए सीधा संपर्क कर रहे हैं। ये देश के लिए गौरव की बात है ये कोई नरेंद्र मोदी ने नहीं बनाया है। हमारे देश के नौजवानों की बुद्धि प्रतिभा का परिणाम है कि आज डिजिटल ट्रांजेक्‍शन के लिए एक उत्‍तम से उत्‍तम प्‍लेटफॉर्म हमारे पास है।

और इसी जनवरी महीने में, सभापति जी, इसी जनवरी महीने में भीम ऐप से मोबाइल फोन से अपना मनी ट्रांजेक्‍शन दो लाख 16 हजार करोड़ रुपए हुआ है, एक जनवरी में। यानी हमारा देश कैसे बदलाव को स्‍वीकार कर रहा है।

रुपे कार्ड- रूपे कार्ड की शुरूआत आप लोगों को पता है। बहुत कम संख्‍या में, हजारों की संख्‍या में कुछ रुपे कार्ड थे और कहते हैं कि शायद ये डेबिट कार्ड वगैरह की दुनिया में point 6 पर्सेंट हमारा contribution रहा है, आज करीब 50 पर्सेंट पहुंचा है। और आज रुपे डेबिट कार्ड Internationally भी दुनिया के अनेक देशों में उसकी स्‍वीकृति बढ़ती चली जा रही है, तो भारत का रुपे कार्ड, वो अपनी एक जगह बना रहा है, और जो हम सबके लिए गर्व का विषय है।

आदरणीय सभापति जी, इस प्रकार इस सरकार का अप्रोच का एक और भी विषय है- जैसे जलजीवन मिशन। हमने मूलभूत समस्याओं के समाधान को 100 पर्सेंट की दिशा में जाने के लिए प्रयास किए-

टॉयलेट – तो 100 पर्सेंट

घर- तो 100 पर्सेंट

बिजली- तो 100 पर्सेंट

गांव में बिजली- तो 100 पर्सेंट

हमने एक-एक चीजों में से देश को कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने के लिए अप्रोच ले करके हम चल रहे हैं।

हमने घरों में शुद्ध पानी पीने का पहुंचाने का एक बहुत बड़ा अभियान उठाया है और ये मिशन, इसकी विशेषता है कि ये भले केंद्र सरकार का मिशन है, धन केंद्र सरकार खर्च करने वाली है। Driving force केंद्र सरकार होगी, लेकिन actually implement, प्रत्‍यक्ष जिसको हम कह सकें, फर्टिलिजम की माइक्रो यूनिट, हमारा गांव, गांव की बॉडी, वो खुद इसको तय करेगी, वो ही इसकी योजना बनाएगी और उन्‍हीं के द्वारा घर-घर पानी पहुंचाने की व्‍यवस्‍था होगी और इस योजना को भी हम आगे बढ़ा रहे हैं।

हमारे कॉपरेटिव फर्टिलिज्‍म का एक उत्तम उदाहरण- 100 से अधिक esprational district. हमारे देश में वोट बैंक की राजनीति के लिए अगड़ी-पिछड़ी बहुत कुछ किया, लेकिन इस देश के इलाके भी पिछड़े रह गए। उनकी तरफ अगर हमने ध्‍यान देने की जरूरत थी जिसमें हम काफी लेट हो गए। मैंने पढ़ा कि कई ऐसे पैरामीटर्स हैं जिसमें कई राज्‍यों के कुछ जिले पूरी तरह पिछड़े हुए हैं। अगर हम उसको भी ठीक कर लें तो देश की एवरेज बहुत बड़ी मात्रा में सुधर जाएगी। और कभी-कभी तो ऐसा डिस्ट्रिक्‍ट कि जहां अफसर भी रिटायर्ड होने वाला हो, ऐसे ही रखेगा। यानी ऊर्जावान, तेजस्‍वी अफसरों को कोई वहां छोड़ता भी नहीं था। उनको लगता था ये तो गया। हमने उसको बदला है। aspirational 100 से अधिक district को identify किया है, अलग-अलग राज्‍यों के district हैं और राज्‍यों से भी कहा है कि आप भी अपने यहां 50 ऐसे aspirational लोग identify कीजिए और स्‍पेशल फोकस दे करके उनकी प्रशासनकि व्‍यवस्‍था, गवर्नेंस में बदलाव लाइए और उसमें परिवर्तन लाने का प्रयास कीजिए।

आज अनुभव आया है कि district level भी, ये aspiration district एक cooperative federalism का implementing agency के रूप में एक बहुत ही सुखद अनुभव के साथ आगे बढ़ रहा है और एक प्रकार से district के अफसरों के बीच जो कम्‍पीटीशन चलती है ऑनलाइन, हर कोई प्रयास करता है कि वो district टीकाकरण में आगे निकल गया, मैं भी इस हफ्ते काम करूंगा, मैं टीकाकरण में आगे निकलूंगा। यानी एक प्रकार से लोगों की सुविधा बढ़ाने के लिए एक अच्‍छा काम वहां हो रहा है ।

हमने आयुष्‍मान भारत में भी- क्‍योंकि ये district ऐसा है जहां हेल्‍थ की सेवाएं भी उसी प्रकार की हैं। इस बार हमने priority दी है कि वहां हेल्‍थ सेक्‍टर को priority दी जाए ताकि वो क्षेत्र हमारे आगे बढ़ सकें।

आगे आकांक्षी जिले के लोगों में हमारे आदिवासी भाई-बहन हों, हमारे दिव्‍यांग हों, सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ उसको काम करने की दिशा में प्रयास कर रही है।

बीते पांच वर्ष से ही देश के तमाम आदिवासी सेनानियों को सम्‍मानित करने का काम किया जा रहा है। देशभर में आदिवासियों ने देश की आजादी के लिए जो contribution किया है उसको ले करके म्‍यूजियम बने,‍ रिसर्च संस्‍थान बने और देश को बनाने-बचाने में उनकी कितनी बड़ी भूमिका थी, वो एक प्रेरणा का कारण बनेगी, देश को जोड़ने का भी कारण बनेगी, और उसके लिए भी काम हो रहा है।

हमारे आदिवासी बच्चों में कई होनहार बच्चे होतें हैं, उनको अवसर नहीं होता है। स्‍पोर्टस हों, एजुकेशन हो, अगर उनको अवसर मिले। हमने एकलव्य स्कूलों के द्वारा वो उत्‍तम प्रकार के स्‍कूलों की रचना करके ऐसे होनहार बालकों को अवसर देने की दिशा में बहुत बड़ा काम किया है।

आदिवासी बच्‍चों के साथ-साथ करीब 30 हजार सेल्‍फ-हेल्‍प ग्रुप इन्‍‍हीं क्षेत्रों में और वन-धन- जो जंगलों की पैदावार है, उनके लिए भी एमएसपी, उसको बल दे करके उनको भी हमने आगे बढ़ाने की दिशा में काम किया है।

महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण में इन चीजों का बहुत शॉर्ट में उल्‍लेख है। लेकिन हमने देश के इतिहास में पहली बार सैनिक स्‍कूलों में बेटियों के लिए दाखिले की स्‍वीकृति दे दी है। मिलिट्री पुलिस में महिलाओं की नियुक्ति का काम भी जारी है।

देश में महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से 600 से अधिक वन स्‍टॉप सेंटर बनाए जा चुके हैं। देश के हर स्‍कूल में छठी कक्षा से 12वीं कक्षा तक की छात्राओं को सेल्‍फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।

यौन अपराधियों को पहचान करने के लिए एक राष्‍ट्रीय डेटाबेस तैयार किया गया है और जिसमें ऐसे लोगों पर नजर रखनी होगी। इसके अतिरिक्‍त मानव तस्‍करी के विरुद्ध भी एक यूनिट स्‍थापित करने की भी हमने योजना बनाई है।

बच्‍चों पर यौन हिंसा के गंभीर मामलों से निपटने के लिए पोस्‍को कानून में संशोधन कर इसके तहत आने वाले अपराधों का दायरे को भी हमने और जोड़ा गया है ताकि इन अपराधों को हम सजा के दायरे मे ला सकें। ऐसे मामलों में न्‍याय तेजी से मिले, इसलिए देशभर में एक हजार से ज्‍यादा फास्‍ट ट्रेक को कोर्ट बनाए जाएंगे।

आदरणीय सभापति जी, सदन में CAA पर कोई चर्चा हुई है। यहां बार-बार ये बताने की कोशिशें की गई हैं कि अनेक हिस्सों में प्रदर्शन के नाम पर अराजकता फैलाई गई, जो हिंसा हुई, उसी को आंदोलन का अधिकार मान लिया गया। बार-बार संविधान की दुहाई, उसी के नाम पर un-democratic activity को कवर करने का प्रयास हो रहा है। मुझे कांग्रेस की मजबूरी समझ आती है, लेकिन केरल के left front के हमारे जो मित्र हैं, उनको जरा समझना चाहिए। उनको पता होना चाहिए यहां आने से पहले कि केरल के मुख्‍यमंत्री- उन्‍होंने कहा है कि केरल में जो प्रदर्शन हो रहे हैं वो Extremist ग्रुपों का हाथ होने की बात उन्‍होंने विधानसभा में कही है।

यही नहीं, उन्‍होंने कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। जिस अराजकता से आप केरल में परेशान हैं उसका समर्थन आप दिल्‍ली में या देश के अन्‍य हिस्‍सों में कैसे कर सकते हैं।

Citizenship Amendment Act को लेकर जो कुछ भी कहा जा रहा है, वो जो प्रचारित किया जा रहा है, उसको लेकर सभी साथियों को खुद से सवाल पूछना चाहिए। क्‍या देश को misinform करना, misguide करना, इस प्रवृत्ति को हम सबको रोकना चाहिए कि नहीं रोका चाहिए? क्‍या ये हम सबका कर्तव्‍य है कि नहीं है। क्‍या हमें ऐसे कैम्‍पेन का हिस्‍सा बन जाना चाहिए? अब मान लीजिए किसी का राजनीतिक भला होने वाला नहीं है, मान के चलिए। और इसलिए ये रास्‍ता सही नहीं है, मिल-बैठ करके जरा सोचें कि हम सही रास्‍ते पर जा रहे हैं क्‍या। और ये कैसा दोहरा चरित्र है, आप 24 घंटे अल्‍पसंख्‍यकों की दुहाई देते हैं, बहुत शानदार शब्‍दों का उपयोग करके कह रहे हैं, आनंद जी को अभी मैं सुन रहा था। लेकिन अतीत की गलतियों के कारण पड़ोस में अल्‍पसंख्‍यक जो बन गए, उनके विरुद्ध जो चल रहा है, उसकी पीड़ा आपको क्‍यों नहीं हो रही है? देश की अपेक्षा है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर लोगों को डराने के बजाय सही जानकारी दी जाए। ये हम सबका दायित्‍व है। हैरानी की बात ये है विपक्ष के अनेक साथी इन दिनों बहुत उत्‍साहित हो गए हैं। जो कभी silent थे आजकल violent हैं। सभापति जी का असर है। लेकिन मैं आज चाहता हूं कि ये सदन बड़े वरिष्‍ठ लोगों का है तो कुछ महापुरुषों की बातें में आज जरा आपको पढ़कर बताना चाहता हूं।

पहला बयान है-“This House / is of the opinion that /in view of the insecurity/ of the life, property and honour/ of the minority communities /living in the Eastern Wing of Pakistan /and general denial of /all human rights to them /in that part of Pakistan/, the Government of India should /in addition to relaxing restrictions /in migration of people /belonging to the minority communities/ from East Pakistan to Indian Union /also consider steps for/ enlisting the world opinion.”

ये सदन में कही गई बात है। अब आपको लगेगा ये कोई जनसंघ के नेता ही बोल सकते हैं, ये तो कौन बोल सकता है ऐसी बातें। उस समय तो भाजपा था नहीं जनसंघ था। तो उन्‍होंने सोचा होगा जनसंघ वाला बोल सकता है। लेकिन ये वक्‍तव्‍य किसी बीजेपी या जनसंघ के नेता का नहीं है।

उसी महापुरुष का एक दूसरा वाक्‍य मैं बताना चाहता हूं, उन्‍होंने कहा है- “जहाँ तक ईस्ट पाकिस्तान का ताल्लुक है, उसका यह फैसला मालूम होता है की वहां से नॉन मुस्लिम जितने हैं सब निकाल दिए जाये। वह एक इस्लामिक स्टेट है। एक इस्लामिक स्टेट के नाते वो यह सोचता है की यहाँ इस्लाम को मानने वाले ही रह सकते हैं और गैर इस्लामी लोग नहीं रह सकते हैं। लिहाजा, हिन्दू निकाले जा रहे हैं, ईसाई निकाले जा रहे हैं। मैं समझता हूँ की करीब 37 हज़ार से ऊपर क्रिश्चियन्स आज वहां से हिंदुस्तान में आ गए हैं। बुद्धिस्ट भी वहां से निकले जा रहे हैं।“

 

ये भी किसी जनसंघ का या भाजपा के नेता का वाक्‍य नहीं है। और सदन को मैं बताना चाहूंगा ये शब्द उस महापुरुष के हैं जो देश के प्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक रहे हैं, वो श्र द्धेय लाल बहादुर शास्‍त्रीजी के वाक्‍य हैं। अब आप उनको भी communal कह देंगे। आप उनको भी हिन्‍दू और मुस्लिम के डिवाइडर कह देंगे।

ये बयान लाल बहादुर शास्त्री जी ने संसद में 3 अप्रैल, 1964 को दिया था। नेहरू जी उस समय प्रधानमंत्री थे। तब धार्मिक प्रताड़ना की वजह से भारत आ रहे शरणार्थियों पर संसद में चर्चा हो रही थी। उसी दरम्‍यान शास्त्री जी ने ये बात कही थी।

आदरणीय सभापति जी, अब मैं आदरणीय सदन को एक और बयान के बारे में बताता हूं। और ये खास करके मेरे समाजवादी मित्रों को विशेष रूप से समर्पित कर रहा हूं। क्‍योंकि शायद यही हैं जहां से प्रेरणा मिल सकती है। जरा ध्‍यान से सुनें।

“हिंदुस्तान का मुसलमान जिए और पाकिस्तान का हिन्दू जिए। मैं इस बात को बिल्कुल ठुकरता हूँ कि पाकिस्तान के हिन्दू पाकिस्तान के नागरिक हैं इसलिए हमें उन की परवाह नहीं करनी है। पाकिस्तान का हिन्दू चाहे कहाँ का नागरिक हो, लेकिन उसकी रक्षा करना हमारा उतना ही कर्त्तव्य है जितना हिंदुस्तान के हिन्दू या मुसलमान का। “

ये किसने कहा था। ये भी किसी जनसंघ, भाजपा वाले का नहीं है। ये श्रीमान राममनोहर लोहिया जी की बात है। हमारे समाजवादी साथी, हमें मानें या न मानें, लेकिन कम से कम लोहिया जी आप नकारने का काम न करें, यही मेरा उनसे आग्रह है।

आदरणीय सभापति जी, मैं इस सदन में शास्त्री जी का एक और बयान पढ़ना चाहता हूं। ये बयान उन्होंने शरणार्थियों पर राज्य सरकारों की भूमिका के बारे में दिया था। आज वोट बैंक की राजनीति के कारण राज्‍यों के अंदर विधानसभाओं में प्रस्‍ताव करके जिस प्रकार का खेल खेला जा रहा है, लाल बहादुर शास्‍त्री जी के इस भाषण को सुन लीजिए आप। आपको पता चलेगा कि आप कहां जा रहे थे, कहां थे, क्‍या हो गया है आप लोगों का।

सभापति जी, लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा था-

“हमारी तमाम स्टेट गवर्मेंटस ने इसको (refugee settling) राष्ट्रीय प्रश्न के रूप में माना है। इसके लिए हम उनको बधाई देते हैं और ऐसे करते हुए हमें बड़ी ख़ुशी होती है। क्या बिहार और क्या उड़ीसा, क्या मध्यप्रदेश और क्या उत्तरप्रदेश, या महाराष्ट्र या आंध्र, सभी सूबों ने, सभी प्रदेशों ने भारत सरकार को लिखा है की वे इनको अपने यहाँ बसाने के लिए तैयार हैं। किसी ने कहा है पचास हज़ार आदमी, किसी ने कहा है पंद्रह हज़ार फॅमिलीज, किसी ने कहा दस हज़ार फॅमिलीज बसाने की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं।“

शास्त्री जी का ये बयान तब का है जब 1964 में देश में ज्यादातर कांग्रेस की ही सरकारें हुआ करती थीं। आज मगर ये हम अच्‍छा काम ही कर रहे हैं, और आप रोड़े अटका रहे हैं क्‍योंकि आपकी वोट बैंक की राजनीति है।

आदरणीय सभापति जी, मैं एक और उदाहरण देना चाहता हूं-25 नवंबर, 1947 को, देश आजाद होने के कुछ ही महीनों में कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया था। 25 नवंबर, 1947, कांग्रेस वर्किंग कमेटी का प्रस्‍ताव क्‍या कहता है-

“Congress is /further bound to /afford full protection to/all those non-Muslims /from Pakistan /who have crossed the border /and come over to India /or may do so /to save their life /and honour.”

 

ये non-Muslims के लिए अगर आप आज जो भाषा बोल रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी, मैं नहीं मानता हूं कि 25 नवंबर, 1947 को कांग्रेस communal थी, मैं नहीं मानता हूं। और आज अचानक secular हो गई, ऐसा भी मैं नहीं मानता हूं। 25 नवंबर, 1947 आपने non-Muslims लिखने के बजाय आप लिख सकते थे कि पाकिस्‍तान से आने वाले सब लोगों को, क्‍यों नहीं लिखा ऐसा। क्‍यों non-Muslims लिखा?

बंटवारे के बाद जो हिंदु पाकिस्तान में रह गए थे, उनमें से अधिकतर हमारे दलित भाई-बहन थे। और इन लोगों को बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा था-

“I would like to tell /the Scheduled Castes /who happen today to be/ impounded inside Pakistan /to come over to India….”

ये बाबा साहेब आंबेडकर ने भी यही संदेश दिया था। ये सारे बयान जिन महान हस्तियों के हैं, वो इस देश के राष्ट्र निर्माता हैं। क्या वो सभी communal थे? कांग्रेस और उसके साथी देश के राष्ट्र निर्माताओं को भी वोट बैंक की राजनीति के कारण भूलने लगे हैं, ये देश के लिए चिंता का विषय है।

आदरणीय सभापति जी, 1997 में यहां अनेक साथी उपस्थित होंगे। हो सकता है कि सदन में भी कोई हो। ये वो साल था जब से तत्कालीन सरकार के निर्देशों में हिंदू और सिक्खों का इस्तेमाल शुरू हुआ। पहले नहीं होता था, जोड़ा गया है इसको। 2011 में इसमें पाकिस्तान से आने वाले क्रिस्चियन और बुद्धिस्ट शब्‍दों की कैटेगरी को भी बनाया गया। ये सब 2011 में हुआ है।

साल 2003 में लोकसभा में Citizenship amendment Bill प्रस्तुत किया गया।Citizenship amendment Bill 2003 पर जिस Standing Committee of Parliament ने चर्चा की और फिर उसे आगे बढ़ाया, उस कमेटी में कांग्रेस के अनेक सदस्य आज भी यहां हैं, जो उस कमेटी में थे और Standing Committee of Parliament की इसी रिपोर्ट में कहा गया “पड़ोसी देशों द्वारा आ रहे अल्पसंख्यकों को दो हिस्सों में देखा जाए, एक जो religious persecution की वजह से आते हैं और दूसरा- वो अवैध migrants जो civil disturbance की वजह से आते हैं।” इस कमेटी की रिपोर्ट है। आज जब ये सरकार यही बात कर रही है तो इस पर 17 साल बाद हंगामा क्यों हो क्‍यों हो रहा है।

28 फरवरी, सभापति जी, 28 फरवरी 2004 को केंद्र सरकार ने राजस्थान के मुख्यमंत्री की प्रार्थना पर राजस्थान के दो जिलों और गुजरात के 4 जिलों के कलेक्टरों को ये अधिकार दिया गया कि वो पाकिस्तान से आए minority Hindu Community के लोगों को भारतीय नागरिकता दे सकें। ये नियम 2005 और 2006 में भी लागू रहा। 2005 और 06 में आप ही थे। तब वो संविधान की मूल भावना को कोई खतरा नहीं हुआ था, उसके विरुद्ध नहीं था।

आज से 10 साल पहले तक ठीक थीं, था, जिस पर कोई शोर नहीं होता था, आज अचानक आपकी दुनिया बदल गई है। पराजय, पराजय आपको इतना परेशान करता होगा, मैंने कभी सोचा नहीं था।

आदरणीय सभापति जी, एनपीआर की भी काफी चर्चा हो रही है। जनगणना और NPR सामान्य प्रशासनिक गतिविधियां हैं जो देश में पहले भी होती आई हैं। लेकिन जब वोट बैंक पॉलिटिक्स की ऐसी मजबूरी हो तो खुद एनपीआर को 2010 में लाने वाले लोग आज लोगों में भ्रम फैला रहे हैं, विरोध कर रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी, अगर आप सेंसेज भी देखेंगे तो देश आजाद होने के बाद पहले दशक में कुछ सवाल होंगे, दूसरे दशक में कुछ सवाल निकाल दिए होंगे, कुछ जोड़े होंगे। जैसी-जैसी आवश्‍यकता रहती है, हर चीज में ये गवर्नेंस के विष्‍ज्ञय होते हैं, छोटे-मोटे बदलाव होते रहते हैं। हमअफवाहें फैलाने का काम न करें। हमारे देश में पहले मातृभाषा का इतना बड़ा संकट कभी नहीं था। आज सूरत के अंदर उड़ीसा से माइग्रेट हो करके बहुत बड़ी संख्‍या में लोग आए हैं। और गुजरात सरकार ये कहे कि हम उड़िया स्‍कूल नहीं चलाएंगे, तो कब तक चलेगा। मैं मानता हूं कि सरकार के पास जानकारी होनी चाहिए कि कौन, कौन सी मातृभाषा बोलता है, उसके पिताजी कौन सी भाषा बोलते थे, तब जा करके सूरत में उड़िया स्‍कूलों को चालू किया जा सकता है। पहले माइग्रेशन नहीं होता था, आज जब माइग्रेशन होता है तब ये आवश्‍यक होता है।

आदरणीय सभापति जी, पहले हमारे देश में माइग्रेशन बहुत कम मात्रा में होता था। समय रहते-रहते शहरों के प्रति लगाव बढ़ना, शहरों का विकास होना, लोगों के aspiration बदलना, तो पिछले 30-40 साल में हम लगातार देख रहे हैं कि माइग्रेशन नजर आता है। अब ये माइग्रेशन का मैं भी, आज जब तक किन जिलों से ज्‍यादा माइग्रेशन होता है, कौन जिला छोड़कर जा रहे हैं, इसकी जानकारी के बिना उस जिले के development को आप प्राथमिकता नहीं दे सकते।

आपके लिए आवश्‍यक है कि आपने और ये सारे..और दूसरा इतनी अफवाहें फैला रहे हो, लोगों का गुमराह कर रहे हो, आपने तो 2010 में एनपीआर लाए। हम 2014 से यहां बैठे हैं, क्‍या इसी एनपीआर को ले करके किसी के लिए‍ सवालिया निशान हमने खड़ा किया क्‍या, रिकॉर्ड तो हमारे पास है। क्‍यों नहीं है, क्‍यों झूठ बोल रहे हैं? क्‍यों मूर्ख बना रहे हैं? आपके एनपीआर का रिकॉर्ड हमारे पास है। आपके समय का एनपीआर रिकॉर्ड है। इस देश के किसी भी नागरिक को उस एनपीआर के आधार पर प्रताडि़त नहीं किया गया।

इतना ही नहीं, आदरणीय सभापति जी, यूपीए के तत्कालीन गृहमंत्री ने NPR के शुभारंभ के समय हर सामान्य निवासी, Usual resident के NPR में एनरोलमेंट की आवश्यकता पर विशेष बल देते हुये कहा था कि हर किसी को इस प्रयास का हिस्सा बनना चाहिए। उन्होने बाकायदा मीडिया से भी अपील की थी कि मीडिया एनपीआर का प्रचार करे। लोगों को शिक्षित करे, लोग एनपीआर से जुड़ें। तो उस समय के गृहमंत्री ने सार्वजनिक अपील की थी।

यूपीए ने 2010 में NPR लागू करवाया, 2011 में NPR के लिए biometric डेटा भी कलेक्ट करना शुरू कर दिया। आप जब 2014 में सरकार से गए, उस समय तक NPR के तहत करोड़ों नागरिकों की फोटो स्कैन कर रेकॉर्ड मेंटेन करने का काम पूरा कर लिया गया था, और biometric डेटा कलेक्शन का काम प्रगति पर था। ये आपके कार्यकाल की मैं बात बता रहा हूं।

आज जब हमने अपने आपके द्वारा तैयार उन NPR रेकॉर्ड्स को 2015 में अपडेट किया। और इन NPR रेकॉर्ड्स के माध्यम से प्रधानमंत्री जनधन योजना, डाइरैक्ट बेनिफ़िट ट्रान्सफर जैसी सरकार की तमाम योजनाओं में जो छूट गये लाभार्थी थे, उनको शामिल करने के लिए आपके द्वारा तैयार किया गया एनपीआर के रिकॉर्ड का साकारात्‍मक उपयोग हमने किया है और गरीबों को लाभ पहुंचाया है।

लेकिन आज सियासी माहौल बनाकर आप NPR का विरोध कर रहे हैं, और करोड़ों गरीबों को सरकार की इन जनकल्याणकारी योजनाओं का हिस्सा बनने से रोकने का हम पाप रहे हैं। अपने तुच्छ सियासी नैरेटिव के लिए जो भी ये कर रहे हैं, उनकी गरीब विरोधी मानसिकता प्रकट हो रही है।

2020 की जनगणना के साथ साथ हम NPR रेकॉर्ड्स को अपडेट करना चाहते हैं, ताकि गरीबों के लिए चल रही ये योजनाएँ और ज्यादा प्रभावी तरीक़े से और ईमानदारी से उन तक पहुँच सकें। लेकिन क्योंकि अब आप विपक्ष में हैं, तो आपके ही द्वारा शुरू किया गया NPR आपको ही बुरा दिखाई देने लगा है।

सभी राज्यों ने, आदरणीय सभापति जी, सभी राज्‍यों ने NPR को बाकायदा गैजेट नोटिफ़िकेशन जारी कर अप्रूव किया है। अब कुछ राज्यों ने अचानक से यूटर्न ले लिया है और इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं, और जानबूझकर इस के महत्व और गरीबों के लिए इसके फ़ायदों की अनदेखी कर रहे हैं। जिन कामों को आपने 70 सालों में नहीं किया, उन्हें विपक्ष में बैठकर इस प्रकार की बातें करके हमें शोभा नहीं देता है।

लेकिन जिस काम को बाकायदा आप लाये, आगे बढ़ाया, मीडिया में प्रचार करवाया, अब उसे ही अछूत बताकर उसका विरोध करने में जुट गए हो! ये इस बात का सबूत है कि आपके नैरेटिव्स केवल और केवल वोट बैंक की राजनीति के हिसाब से तय होते हैं। अगर तुष्टीकरण का सवाल हो तो विकास और विभाजन में से आप डंके की चोट पर विभाजन का रास्ता पकड़ते हैं।

ऐसे अवसरवादी विरोध से किसी भी दल को लाभ या हानि तो हो सकता है, लेकिन इस से देश को हानि निश्चित रूप से होती है। देश में अविश्वास की स्थिति बनती है। इसलिए मेरा आग्रह रहेगा कि हम सच को, सही स्थिति को ही जनता के बीच ले जाएं।

इस दशक में दुनिया की भारत से बहुत अपेक्षाएं हैं और भारतीयों को हम से बहुत अपेक्षाएं हैं। इन अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए हम सभी के प्रयास 130 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं के अनुरूप होने चाहिए।

ये तभी संभवहै जब राष्ट्रहित के सभी मामलों में ये सदन संगच्छध्वम्,संवदध्वम् सानी साथ चलो, एक सुर में आगे बढ़ो, इस संकल्‍प से चलते हैं। Debates हों, discussions हों और फिर decisions हों।

श्रीमान दिग्विजय सिंह जी ने यहां एक कविता सुनाई, तो मुझे भी एक कविता याद आ गई।

I have No House, Only Open Spaces

Filled with Truth Kindness, Desire and Dreams

Desire to see my country Developed and Great,

Dreams to see Happiness and peace around!!

मुझे भारत के महान सपूत, पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे कलाम की ये पंक्तियां अच्छी लगीं, मुझे ये अच्‍छा लगा और आपको आपकी पसंद की पंक्तियां अच्छी लगीं। वो कहावत भी आपने खूब सुनी होगी जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। अब तय आपको करना है, कि अपनी पसंद बदलें या फिर 21वीं सदी में 20वीं सदी का nostalgia लेकर जीते रहें।

ये नया भारत आगे बढ़ चला है। ये कर्तव्य पथ पर बढ़ चला है और कर्तव्य में ही सारे अधिकारों का सार है, यही तो महात्‍मा गांधीजी का संदेश है।

आइए, हम गांधीजी के बताए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हुए, एक समृद्ध, समर्थ और संकल्पित नए भारत के निर्माण में जुट जाएं। हम सभी के सामूहिक प्रयासों से ही भारत के की हर आकांक्षा, हर संकल्प सिद्ध होगा।

एक बार फिर राष्ट्रपतिजी का और आप सभी सदस्यों का मैं हृदय से बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं और मैं इस भावना के साथ कि देश की एकता और अखंडता को प्राथमिकता देते हुए, भारत के संविधान की उच्‍च भावनाओं का आदर करते हुए हम सब मिल करके चलें, देश को आगे बढ़ाने के लिए हम अपना योगदान दें, इसी भावना के साथ मैं फिर एक बार आदरणीय राष्‍ट्रपति जी का आभार व्‍यक्‍त करता हूं और इस चर्चा को समृद्ध करने वाले सभी आदरणीय सदस्‍यों का भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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PM to visit Assam on 20-21 December
December 19, 2025
PM to inaugurate and lay the foundation stone of projects worth around Rs. 15,600 crore in Assam
PM to inaugurate New Terminal Building of Lokapriya Gopinath Bardoloi International Airport in Guwahati
Spread over nearly 1.4 lakh square metres, New Terminal Building is designed to handle up to 1.3 crore passengers annually
New Terminal Building draws inspiration from Assam’s biodiversity and cultural heritage under the theme “Bamboo Orchids”
PM to perform Bhoomipujan for Ammonia-Urea Fertilizer Project of Assam Valley Fertilizer and Chemical Company Limited at Namrup in Dibrugarh
Project to be built with an estimated investment of over Rs. 10,600 crore and help meet fertilizer requirements of Assam & neighbouring states and reduce import dependence
PM to pay tribute to martyrs at Swahid Smarak Kshetra in Boragaon, Guwahati

Prime Minister Shri Narendra Modi will undertake a visit to Assam on 20-21 December. On 20th December, at around 3 PM, Prime Minister will reach Guwahati, where he will undertake a walkthrough and inaugurate the New Terminal Building of Lokapriya Gopinath Bardoloi International Airport. He will also address the gathering on the occasion.

On 21st December, at around 9:45 AM, Prime Minister will pay tribute to martyrs at Swahid Smarak Kshetra in Boragaon, Guwahati. After that, he will travel to Namrup in Dibrugarh, Assam, where he will perform Bhoomi Pujan for the Ammonia-Urea Project of Assam Valley Fertilizer and Chemical Company Ltd. He will also address the gathering on the occasion.

On 20th December, Prime Minister will inaugurate the new terminal building of Lokapriya Gopinath Bardoloi International Airport in Guwahati, marking a transformative milestone in Assam’s connectivity, economic expansion and global engagement.

The newly completed Integrated New Terminal Building, spread over nearly 1.4 lakh square metres, is designed to handle up to 1.3 crore passengers annually, supported by major upgrades to the runway, airfield systems, aprons and taxiways.

India’s first nature-themed airport terminal, the airport’s design draws inspiration from Assam’s biodiversity and cultural heritage under the theme “Bamboo Orchids”. The terminal makes pioneering use of about 140 metric tonnes of locally sourced Northeast bamboo, complemented by Kaziranga-inspired green landscapes, japi motifs, the iconic rhino symbol and 57 orchid-inspired columns reflecting the Kopou flower. A unique “Sky Forest”, featuring nearly one lakh plants of indigenous species, offers arriving passengers an immersive, forest-like experience.

The terminal sets new benchmarks in passenger convenience and digital innovation. Features such as full-body scanners for fast, non-intrusive security screening, DigiYatra-enabled contactless travel, automated baggage handling, fast-track immigration and AI-driven airport operations ensure seamless, secure and efficient journeys.

On 21st December morning before heading to Namrup, Prime Minister will also visit the Swahid Smarak Kshetra to pay homage to the martyrs of the historic Assam Movement, a six-year-long people’s movement that embodied the collective resolve for a foreigner-free Assam and the protection of the State’s identity.

Later in the day, Prime Minister will perform Bhoomipujan of the new brownfield Ammonia-Urea Fertilizer Project at Namrup, in Dibrugarh, Assam, within the existing premises of Brahmaputra Valley Fertilizer Corporation Limited (BVFCL).

Furthering Prime Minister’s vision of Farmers’ Welfare, the project, with an estimated investment of over Rs. 10,600 crore, will meet fertilizer requirements of Assam and neighbouring states, reduce import dependence, generate substantial employment and catalyse regional economic development. It stands as a cornerstone of industrial revival and farmer welfare.