उपस्थित सभी देशवासियों,

मैं अपनी बात शुरू करने से पहले आज मिले एक दुखद समाचार कि जर्मनी के मूर्धन्य साहित्‍यकार और Nobel prize विजेता श्रीमान गुंटर ग्रास का 87 वर्ष की आयु में आज स्‍वर्गवास हुआ, नोबेल पुरस्‍कार जिनको प्राप्‍त हो, साहित्‍य की जिन्‍होंने सेवा की हो, उनका चिंतन, मनन, हर शब्‍द पीढि़यों तक समाज के लिए शक्ति बनता है। उनकी विदाई के समय मैं सभी भारतवासियों की तरफ से उनको आदरपूर्वक श्रृद्धाजंलि समर्पित करता हूं और उनका जो साहित्‍य है वो आने वाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देता रहेगा। हमारे यहां शब्‍दों को मृत्‍युंजय माना जाता है। शब्‍द कभी मरता नहीं और इसलिए जो साहित्‍य की साधना करते हैं, वे एक प्रकार से अमरत्‍व को प्राप्‍त करते है। मुझे विश्‍वास है कि उनकी जीवनभर की ये तपस्‍या, ये साधना, ये शब्‍द सरिता आने वाले युगों तक न सिर्फ जर्मनी को लेकिन मानवीय मूल्‍यों की चिंता करने वाले हर किसी को प्रे‍रणा देती रहेगी। मैं फिर एक बार उनके प्रति अपना आदर व्‍यक्‍त करता हूं।

मैं कल हेनोवर में था। भारत इस बार हेनोवर fair का partner है। भारत से करीब 400 कम्‍पनियां यहां आई हुई हैं। अब चारों तरफ लोगों को लगता है कि देश विकास की ओर आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार के अवसर भारत को showcase करने के लिए तो काम आते ही आते हैं लेकिन हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। कभी-कभार हम अपने मोहल्‍ले में तो Hercules होते है, लेकिन जरा बाहर निकले तो पता चलता है कि हम कहां खड़े हैं। और इसलिए इस प्रकार के कार्यक्रमों में आने से हमें भी भीतर से एक challenge स्‍वीकार करने का मन बनता है। हमारे भीतर का जज्‍बा जगता है कि भई! क्‍या बात है वो तो आगे निकल रहे हैं, हम क्‍यों नहीं निकल रहे चलों हम भी कुछ करेंगे तो एक प्रकार से ये अंतर्राष्‍ट्रीय कसौटी है, अंतर्राष्‍ट्रीय मानदंडों में हम आगे बढ़ रहे है कि नहीं बढ़ रहे हैं।

मुझे विश्‍वास है कि भारत से जो लोग आए है वे यहां से बहुत कुछ देख करके, सीख करके, समझ करके जाएगें और उसका लाभ भी मिलता है, हमारा लाभ उनको भी मिलता है। मैं आज Madam Chancellor के साथ हेनोवर फेयर में अलग-अलग stalls की मुलाकात कर रहा था तो एक कम्‍पनी ने अपना आधुनिक Technology से screening करने की technology दिखाई कि कार कोई पुर्जा-वुर्जा खराब हुआ हो, तो उनको screen में पता चलता है, तो मैंने पूछा उनको कि ये कार का पुर्जा-वुर्जा तो देख लेते हैं लेकिन क्‍या इस technology का इस्‍तेमाल security के लिए उपयोग हो सकता है क्‍या? तो चौंक गए बोले ये तो हमने सोचा नहीं, बोले हम तुरंत करेंगे। मैंने उनको कहा कि मैं ideas की royalty नहीं लेता हूं। कहने का तात्‍पर्य है कि जब देखते हैं तो पता चलता है कि एक ही चीज अलग दृष्टिकोण से कितनी काम में आती है। वही technology, वही काम वह अलग रूप में किस प्रकार काम में आता है।

और मैं मानता हूं इस विषय में भारत के लोगों की बड़ी expertise है वो बड़ी आसानी से इन चीजों को, अब आप देखिए हमारे तो यहां माताएं-बहनें खाना पकाने में कितना बढि़या प्रयोग करती हैं। अब वो घर में भले ही उसका भारतीयकरण कर दिया होगा, लेकिन वो Chinese dish भी बनाती होगी और pizza भी बनती होगी और Mexican dish भी बनाती होगी। तो हमारे लोगों की एक विशेषता है, वो है चीजों को अपने ढंग से ढालने की। लेकिन ऐसे अवसर पर जाते है तो एक प्रकार से हमारी कसौटी होती है। हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है सामने वालों को भी ध्‍यान में आता है कि हम सोचते थे वैसा भारत नहीं है, भारत में तो कुछ, बहुत कुछ है ये काम भारत में हो रहा है तो उनको भी लगता है कि चलो भई हम भी अपना उस क्षेत्र में जाए, हम भी अपना विस्‍तार करें, विकास करें, एक प्रकार से ये भिन्न-भिन्न situation वाला मामला होता है और मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में भारत की जो विकास यात्रा है उस विकास यात्रा में manufacturing hub भारत बनें।

ये समय की बहुत बड़ी मांग है और अगर हमने ये समय खो दिया तो भारत का बहुत लम्‍बे अरसे तक नुकसान होगा। जब दुनिया में औद्योगिक क्रांति हुई थी उस समय भारत गुलाम था। हमारे पास talent थे, हमारे पास हर प्रकार की क्षमता थी, ढ़ाका का मलमल कितना अगूंठी से पूरा निकलता था। ये चर्चा हम पढ़े हैं, सुने हैं कि सामर्थ्‍य था लेकिन जब Industrial revolution हुआ तब हम गुलाम थे और गुलाम होने के कारण ही हम उस परिस्थिति का लाभ नहीं ले पाए। ऊपर से हमारा जो talent था, हमारे पास जो सामर्थ्‍य था या तो उसको दबोच दिया गया, या तो उसे चोरी करके ले जाया गया और हम वही के वही रह गए। Second revolution आया Communication का, IT revolution आया, IT Revolution में हम आजाद भारत के होने के कारण हमारे 20, 22, 24 साल के नौजवानों ने Computer पर उगलियां घुमाते-घुमाते दुनिया को हिन्‍दुस्‍तान की पहचान करा दी, विश्‍व को भारत का लौहा मानना पड़ा।

IT Revolution ने हमारे देश के नौजवानों की ताकत से दुनिया को अचंभित कर दिया, दुनिया को आश्‍चर्य हुआ। जब अमेरिका के President Clinton हिन्‍दुस्‍तान आए थे, तो उनकी itinerary में राजस्‍थान के गांव थे और घूंगट ओड़ करके बैठी हुई महिलाएं computer पर अपने Cooperative का काम कर रही थीं, वो देख करके परेशान हो गए, उनको आश्‍चर्य हुआ और तब जा करके, वहीं का चुने हुए एक पंच ने उनको पूछा, अब वो बेचारा अपनी भाषा में बोल रहा था और वो लुढ़क करके Security के इधर-उधर करके उसके पास गया होगा कोई क्‍योंकि वो पंचायत का member था, पंचायत का सदस्‍य था और दलित समाज से था वो लुढ़क करके President Clinton के पास पहुंच गया, उस दिन जिन्‍होंने वो Live Telecast देखा होगा उन्‍होंने देखा होगा वो। वो लुढ़के उनके पास पहुंच गया तो गांव वालों को सबको लगने लगा कि यार ये क्‍या आदमी है, उधर क्‍या बात करेगा, उससे उसको कुछ बोलना-वोलना तो आता नहीं है। किसी को लगा कि नहीं वो शायद Visa मांगेगा, किसी को लगा कि नहीं यार अपने बेटे के लिए नौकरी मांगेगा और ताज्‍जुब की बात है वो अनपढ़ इंसान, दलित परिवार का बेटा, जो कि इस गांव की पंचायत का सदस्‍य था वो Clinton से Height में भी बहुत छोटा था, यूं देखता था उसे और आंख में आंख मिला करके उसने पूछा था कि क्‍या आप आज भी हिन्‍दुस्‍तान को पिछड़ा मानते हैं क्‍या, ये पूछा था उसने और Clinton ने जबाव दिया था कि नहीं मैं दुनिया में जहां जाऊंगा, वहां मैं हिन्‍दुस्‍तान की शक्ति के विषय में बताऊंगा और आप देखिए उन्‍होंने फिर हर बार जहां गए इस बात का उल्‍लेख किया और लोगों को कहा कि भारत विषय में जो आप सोचते हैं, अपनी उस सोच बदलिए, वो बोल रहे थे।

कहने का तात्‍पर्य ये है कि हमारे नौजवानों ने ये जो Second Revolution आया, IT Revolution इसमें बहुत कुछ किया। दुनिया में अपनी ताकत का परिचय दिया, लेकिन होता कहां है Silicon valley में जाइएं। वहां 60-70% CEO, IT sector में भारतीय मूल के हैं, लेकिन Google का जन्‍म भारत की गोद में नहीं होता है। किसी और की गोद में होता है और तब सवाल उठता है कि गूगल मेरे यहां क्‍यों पैदा नहीं हुआ। scientist वही थे, साफ्टवेयर इंजीनियर वहीं है, भारत में वो सबसे बड़ी चुनौती है कि हम उस माहौल को तैयार करें जिस माहौल में हमारे पास जो ये Talent है, हमारे जो Brain हैं जो दुनिया में जा करके तो अपना करतब दिखाते है वो हिन्‍दुस्‍तान की धरती में भी अपना करतब दिखाएं।

जर्मनी में भी कितनी बड़ी मात्रा में हमारे Engineering Field के Students हैं, नौजवान हैं, professionals हैं और यहां की कई कम्‍पनियों में उनका बहुत बड़ा Contribution है, बहुत कुछ सीख रहे है, आपके पास Basic knowledge है, आपके पास Experience है, आपके पास innovations के लिए आवश्‍यक Infrastructure मिला हुआ है आप और हम अपनी शक्ति और सामर्थ्‍य का उपयोग कर रहे है। क्‍या अब आपको ये जो मिला है, आपके अपने प्रयासों से मिला है किसी के कारण मिला है ऐसा मैं नहीं कहता हूं आपके अंदर वो जज्‍बा है, वो क्षमता है, वो अवसर मिला है। क्‍या आप भारत के साथ एक सेतु बन सकते है? क्‍या जर्मनी में काम करने वाले हमारे Professionals, खास करके Manufacturing sector में जिनके पास ताकत है, वे हिन्‍दुस्‍तान और जर्मनी के बीच Bridge बन सकते हैं? और Bridge दो देशों का नहीं, Bridge आज जहां है, वहां से आगे पहुंचने का, जो Destination है उस बीच का Bridge बनाना है।

आपके पास देश को बहुत अपेक्षाएं है और हमारी जिम्‍मेवारी भी है, ये हमारा दायित्‍व है। आज हम जहां भी पहुंचे है हमारे देश के किसी न किसी गरीब ने हमारे लिए कुछ तो किया होगा तब जा करके पहुचे होंगे। हर चीज कोई अपने आप बलबूते पर नहीं होती है। अगर ये सामर्थ्‍य है, उस सामर्थ्‍य का उपयोग कैसे हो।

मैं बहुत साल पहले ओलंपिक देखने के लिए अमेरिका गया था। मैं कोई खिलाड़ी-विलाड़ी नहीं हूं, और बाद में दूसरे ही खेल में पड़ गया। लेकिन मुझे इतने बड़े Event का Management क्‍या होता है? वो जरा देखने की मेरी इच्‍छा थी कैसे करते है कैसे Organise करते है? मैं सीखना चाहता था।

बहुत साल पहले की बात है तो अटलांटा की university के कुछ student के साथ मेरा मिलना हुआ। उसमें भारतीय student के साथ भी तो काफी देर बातें हुई। लेकिन बाद में एक कार्यक्रम ऐसा हुआ जिसमें अमेरिका से बाहर से आए हुए कई समाजों के students थे, तो मैंने ऐसे ही पूछा आगे क्‍या सोच रहे हो? और मैं हैरान था कि Chinese student बहुत clear थे। अपने दिमाग में बहूत clear थे। मैंने उनको पूछा आप....आप क्‍या, कैसा, आगे का क्‍या सोच रहे है, आप पढ़ाई के बाद? उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि 10 साल यहां पर किसी न किसी बड़ी कम्‍पनी में काम करेंगे। और फिर बिस्‍तरा-बोरियां गोल करके देश चले जाएंगे।

मैंने कहा क्‍यों ? तो बोले university में पढ़ रहे है, इतना experience नहीं है, लेकिन किसी कम्‍पनी में जब काम करेंगे तब चीजें सीखेंगे और जो भी सीखेंगे वो सब ले करके जाएंगे वापिस और फिर China और हम मिल करके आगे बढ़ेंगे। अब देखिए यानी विद्यार्थी अवस्‍था में भी....! ये मेरी चर्चा अटलांटा university के Chinese student के साथ कभी हुई थी।

कहने का तात्‍पर्य ये है कि हर देश में ये मिज़ाज होता है, ये मिज़ाज है जो इनको आगे ले जाता है। आप लोग खास करके जिनको जर्मनी में ये अवसर मिला है और ज्‍यादातर जर्मनी की पहचान manufacturing sector के साथ जुड़ी हुई है। भारत का भविष्‍य, भारत की पहचान बनाने में IT Revolution ने बहुत बड़ा role अदा किया है। भारत को एक पिछड़ा, अबूत देश मानने वाले को IT Revolution के बाद अपनी सोच बदलनी पड़ी है। लेकिन भारत की सफलता का आधार भारत को हमें manufacturing hub बना करके ही, हम सेकेंड पारी पर पहुंच सकते हैं।

और देश के विकास के लिए मेरे दिमाग में बहुत साफ है कि हमें एक Balanced growth करना पड़ेगा, भारत एक ऐसा देश है कि और इतना बड़ा विशाल देश है कि यहां की कोई चीज़ वहां के मतलब की हो, वो हिसाब बैठता ही नहीं। जब मैं यहां किसी को कहता हूं कि मुझे 2020 तक 50 मिलियन Affordable houses बनाने हैं तो उनके दिमाग में बैठता ही नहीं। उनको लगता है कि एक पूरा नया देश बनाना पड़ेगा। 50 मिलियन houses एक नया देश बनाना पड़ेगा! वो scale उनके दिमाग में बैठता ही नहीं है। लेकिन हमें मालूम है हमारी इतनी बड़ी आवश्‍यकता है और उस अर्थ में हम सोचे तो भारत को विकास के लिए तीन प्रमुख बातों को balance करके ही चलना पड़ेगा, हम एक तरफ लुढ़क नहीं सकते, One third agriculture sector, one third manufacturing sector, one third service sector. तीनों को balance करके आगे बढ़ना है। agriculture sector में भी सिर्फ खेत में कुछ उत्‍पादन करके अटक-सटक नहीं सकते। हमें agriculture sector को आगे बढ़ाना है, तो हमारे लिए आवश्‍यक है कि हम agro-processing को बल दें, agriculture sector में हम technology को आगे लाएं।

आज मैं हेनोवर फेयर में एक उन्‍होंने computer chip का मैंने development देखा। वो चावल को, अच्‍छे चावल - बुरे चावल को अलग करने का काम करता है। अब आने वाले दिनों में यही होने वाला है। अब ये हमें भी हमारे देश के agriculture sector को इन बातों पर पहला, एक प्रति हेक्‍टेयर हमारी productivity कैसे बढ़े, प्रति हेक्‍टेयर productivity बढ़ानी है, तो कौन सी technology, कौन से प्रयोग कैसे काम में आएगे, परम्‍परागत चीजें कैसे काम में आएगी? लेकिन हमारे किसान को affordable हो, हमारा agriculture sector वो तब होगा जब value addition हो।

और हम अच्‍छी तरह जानते है कि कोई किसान बेचारा आम बेचता है तो income कम होती है लेकिन आम में से अगर आचार बना देता है तो आचार के पैसे ज्‍यादा मिलते हैं। आचार भी अगर बढ़िया से बोतल में pack करें तो और ज्‍यादा पैसे मिलते है और pack किया हुआ आचार भी कोई नटी ले करके खड़ी हो जाए तो और ज्‍यादा पैसा मिलता है। An actress , नटी यानी actress वो खड़ी हो जाए तो और ज्‍यादा पैसे मिलते है कि भई ये advertising हो रहा है ये अगर खाती है, तो हम भी खाएं, अब वो खाती है कि नहीं खाती पता नहीं! लेकिन कहने का तात्‍पर्य ये है कि हमारे agro products का value addition. Value addition जितना ज्‍यादा हम कर सकते है अब उसमें technology लगती है, उसमें नई-नई खोज की आवश्‍यकता होती है। global requirement के अनुसार हमको उसको करना पड़ेगा और आज दुनिया में “ready to eat” packaging का मामला चल रहा है। दुनिया के किसी देश में कहां सब्‍जी पैदा हुई है, कहीं कटिंग हुआ होगा, कहीं पकी होगी, कहां पैक हुई होगी और पता नहीं दुनिया के किस देश में जा करके वो खाई जाती होगी। दुनिया काफी बदल चुकी है। हमने हमारे agriculture sector को विश्‍व की ये जो चीजे है इसके साथ जोड़ना है।

चाय में हमने वो सफलता पाई, हम जानते है कि चाय में हमें जो सफलता मिली उसकी बाद दो मूलभूत बातें रही है कि चाय ने व्‍यक्ति के जीवन में एक नई पहचान बनाई है, social relation का वो आधार बन गई, सामाजिक संबंधों के लिए वो एक बड़ा बहुत बड़ा liquidity वाला फोर्स बन गया है। एक प्रकार से और दूसरा उसकी सरलता, उसका पैकेजिंग और कभी किसी ने उससे क्‍या नुकसान होता है इसकी ज्‍यादा चर्चा नहीं की। वो accept हो गया दुनिया में। चाय के बागानों में खेती करने वाले लोग बड़ी-बड़ी कम्‍पनियां बन गई, लेकिन जो बेचारे मजदूर थे वो वहीं रह गए। क्‍योंकि अग्रेजों के जमाने में वो सारे rules and regulation बने थे, उसमें बदलाव आ रहा है, अब। मेरा कहने का तात्‍पर्य है कि हमारे पास इतनी सारी चीजें है हम हमारे agriculture sector में productivity बढ़ाने से ले करके value addition, value addition के साथ-साथ forward linkage , global market कैसे मिले?

भारत में एक छोटा सा राज्‍य है, सिक्किम 6-7 लाख population है, लेकिन वहां 10 लाख टूरिस्‍ट आते हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि हिन्‍दुस्‍तान के किस कोने में क्‍या ताकत पड़ी है? हिमालय की गोद में है, उस तरफ चीन है। उन्‍होने एक initiative लिया छोटा-सा राज्‍य है, organic farming का और उसने global सारे standard पार कर दिए है और आज सिक्किम हिन्‍दुस्‍तान का पहला organic farming का state बन चुका है। अब उनके लिए उनके जो product है उसका global market के लिए दरवाजे खुल गए है। हम कोशिश करना चाहते है कि उनको global market मिले, उनका रुपया डॉलर लेकर आना चाहिए, ये ताकत होनी चाहिए। organic farming में तो ये ही है। जिसमें रुपये में हिन्‍दुस्‍तान से जो माल जाता है, वो दुनिया के बाजार में डॉलर में जाना चाहिए और उस दिशा में काम करने का हमारी कोशिश है। सिक्किम ही नहीं पूरे देश में पूरा नॉर्थ ईस्‍ट नागालैंड, मिजोरम, मेघालय सारे प्रदेश ऐसे है कि जहां पर परम्‍परागत रूप से chemical fertilizers की आदत बहुत कम है। हम उसको organic state के रूप में, organic region के रूप में develop करना चाहते है। तो चीजों को उस प्रकार से हम बल देना चाहते है जिसके कारण उस क्षेत्र में बढ़ा चले।

दूसरा है service sector भारत के पास दुनिया को देने के लिए क्‍या नहीं है। tourism , hospitality, अतिथि देवो: भव: हमारे blood में है। लेकिन विश्‍व में हम tourism..जो कि दुनिया में सबसे तेज गति से, किसी एक व्‍यवसाय का विकास हो रहा है, तो वो टूरिज्‍म है। 3 Trillion dollar का वो बिजनेस है, बहुत बड़ा, लेकिन उसका share हिन्‍दुस्‍तान को कम से कम मिलता है। हमारे भारतीय लोग जो विदेशों में रहते है उनके मन में भी देश के लिए कुछ न कुछ करने का मन करता है क्‍योंकि मुझे कई पूछते है, कई वर्षों से पूछते है कि हम देश के लिए क्‍या कर सकते है। अब तुम्‍हें भगत सिंह बनने की जरूरत नहीं भाई! अब हो गया वो हमारे नसीब में नहीं था। जो भगत सिंह के नसीब में था। देश के लिए मरना हमारे नसीब में नहीं है, हम देश के लिए जी तो सकते हैं। देश के लिए मरने का सौभाग्‍य मिले या न मिले देश के लिए जीने का सौभाग्‍य तो मिलता ही है और इसलिए हमने कहा कि भई कम से कम भारतीय परिवार जो विदेशों में रहते है जहां आप काम करते हैं वहां आप विदेशी लोगों के बीच में है। दुकान चलाते होंगे तो आपके विदेशी ग्राहक होते होंगे, पढ़ते होंगे तो विदेशी टीचर्स होंगे। क्‍या साल में 5 गैर-भारतीय, Non-Indians ऐसे family को हिन्‍दुस्‍तान देखने के लिए आप प्रेरित नहीं कर सकते क्‍या? यहां छोटा-सा काम है। उनको समझाओं कि हमारा देश देखने जैसा है चलो, निकल पड़ो। हमारी जर्मनी में मान लीजिए कि एक लाख लोग रहते है, मान लीजिए 50 हजार परिवार रहते है। अगर हर वर्ष वो पांच परिवार को धक्‍का लगा दे, हिन्‍दुस्‍तान के टूरिज्‍म को कितना आगे बढ़ेगा फिर मुझे Incredible India के advertisement का खर्चा करना पड़ेगा क्‍या? आपसे बढ़ करके Incredible India की पहचान क्‍या हो सकती है? मुझे बताइएं? आप ही तो है Incredible India और क्‍या है? क्‍या उन पत्‍थरों और मूर्तियों में Incredible इंडिया है? उस विरासत के प्रतिनिधि आप है, आप ही Incredible India है। ये मिज़ाज क्‍यों नहीं होना चाहिए?

अगर ये मिज़ाज है, कहने का तात्‍पर्य मेरा है कि Service sector आज पूरी दुनिया में processing work इतना costly हो गया है कि हर कोई outsource कर रहा है। outsource के लिए हिन्‍दुस्‍तान में बहुत संभावनाएं है। आप यहां कई कम्‍पनियां है जो आउटसोर्स करने के लिए चाहती है, उनको जगह दिखा दें , address दे दीजिए भई! ये जगह है, करवा लीजिए।

सर्विस के क्षेत्र में हमारे देश में बहुत संभावनाएं पड़ी है। पूरे विश्‍व को आ‍कर्षित करने की हमारी ताकत है और हमें दुनिया को...हमारी सबसे बड़ी गलती क्‍या हुई है, जो चीज उसको अमेरिका में मिलती है, पेरिस में मिलती है, वो हम हिन्‍दुस्‍तान में परोसने जाते हैं, नहीं करना चाहिए। हमने हमें वो ही परोसना चाहिए जो हमारा है। तभी तो दुनिया हमारे यहां आएगी। हमारी जो विशेषता है उसी से दुनिया को हमें जोड़ना चाहिए। लेकिन हमारी विशेषताओं को साथ हम तब जोड़ पाएंगे, जब हम अपनी विशेषताओं पर गर्व करें। हम नहीं करते, हमें लगता है यार, मुझे याद है मुझे मैं अमरीकन सरकार के एक निमंत्रण पर एक बार गया था, मैं उनको अपने itinerary में लिखा था। मैंने पूछा था सबसे पुरानी चीज मुझे देखनी है तो मुझे दिखाइये, तो उन्‍होंने मुझे क्‍या दिखाया। मुझे वे Pennsylvania ले गये और वहां वाशिंग्‍टन के जमाने का एक बेल है, वो घंटा दिखाया और मुझे बोले यह सबसे पुराना है। मेरे यहां आप आइये आप एजेंता-एलोरा देखिए, आप कोणार्क का सूर्य मंदिर देखिए हजारों साल पुरानी चीजें हैं। हमारे पास क्‍या नहीं है, दुनिया में?

मैं गुजरात में पैदा हुआ, गुजरात में रहा, वहां एक डॉक्‍टर हरि भाई गोदानी थे। स्‍वयं तो professionally doctor थे। लेकिन Archaeology में उनकी बड़ी रूचि थी। उनकी आयु भी बहुत हो गई थी, लेकिन वह कर रहे थे। उस जमाने में यह सारी गाडि़यां तो थीं नहीं, Fiat गाड़ी, और Ambassador, Ambassador सरकारी गाड़ी थी, Fiat नागरिकों की गाड़ी थी। पहचान हो गई थी कि अंबेसडर जा रही होती थी तो सरकार जा रही है, Fiat है तो कोई भला इंसान जा रहा है, तो उनके पास एक Fiat कार थी, वो मुझे कह रहे थे, मैं उनके पास कभी कभी जाया करता था कुछ सीखने को मिले समझने को मिलता था। वे बोले कि मैंने 20 Fiat गाडि़यां बर्बाद कीं Carriage-carrier में। जो भी कमाता था, तो बोले जंगलों में चला जाता था। कच्‍चे रास्‍तों पर चला जाता था और कहीं कोई मूर्ति हो, पत्‍थर हो, तो कोई पुराना पुरातत्‍व का कोई खंडहर हो तो वहां चला जाता था। एक व्यक्ति का Individual collection site किसी सरकार से बड़ा था।

उन्‍होंने मुझे एक दिन अपनी slide दिखाई और मैं हैरान था कि वो slide एक पत्‍थर मूर्ति की Slide थी। आठ सौ साल पुरानी वो मूर्ति थी । कार्बन रेटिंग हुआ था और उसमें एक गर्भवती महिला की एक मूर्ति थी और आधे part में उसके पेट को काट करके एक मूर्ति बनाई गई थी और पेट काट करके बच्‍चा पेट में किस रूप में है, चमड़ी के कितने layers हैं, वो सारा पत्‍थर पर अंकित था। आठ सौ साल पहले पत्‍थर तराशने वाले को पता था कि गर्भ के अन्‍दर बच्‍चा कैसे, किस Position में होता है। चमड़ी के layer कितने होते हैं। आप कल्‍पना कर सकते हो ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने क्‍या कुछ नहीं किया होगा?

लेकिन इस बात को पहुंचाने के लिए, हम एक ऐसे गुलामी के कालखंड से जीवित रहे जैसे हमारा सब बेकार है, हमारा सब बेकार है, जब तक हम ये मानसिकता नहीं बदलेंगे हम हमारे Tourism को बढ़ावा नहीं दे सकते। हमारे पास है, उसके प्रति हमारा गर्व होना चाहिए, अभिमान होना चाहिए। एक बार यह होगा, तो फिर चीजें चलेंगी।

अब आप देखिये, मैं गुजरात का हूं, इसलिए वहां की बात याद आना स्‍वाभाविक है। लोथल, लोथल अहमदाबाद से 80 किलोमीटर एक जगह है। लोथल आपने शायद पढ़ा होगा, याद होगा थोड़ा बहुत आज जाकर के गूगल गुरु से पूछ लीजिए वो बता देगा। पांच हजार साल पुराना Port और Archaeology excavation में सारी चीजें निकलेंगी और वो कहते हैं 84 Countries उसके झंडे वहां लहराते थे। मतलब 84 Countries के साथ, पांच हजार साल पहले उसका व्‍यापार था और दूसरी विशेषता देखिए कि नालंदा, तक्षशिला यूनिवर्सिटी की चर्चा हम जो करते हैं, उसी कालखंड में इतिहास में एक वल्लभी यूनिवर्सिटी की चर्चा होती है। वो वल्लभी यूनिवर्सिटी लोथल से 50 किलोमीटर दूरी पर थी, तात्‍पर्य ये था कि हमारे पूर्वजों को पता था विश्‍व के बच्‍चों को पढ़ने-लिखने के लिए आना है। तो एक पोर्ट चाहिए लोथल और पोर्ट के नजदीक में ही यूनिवर्सिटी चाहिए और अनेक देशों के बच्‍चे वहां पढ़ते थे।

ये सारी बातें आप भी सुनते हैं आपका भी सीना तन जाता होगा कि वाह मैं उस देश का रहने वाला हूं। ये जो गर्व की अनुभूति होती है, वो हमारे सर्विस सेक्‍टर में बल दे सकती है और ये काम हिन्‍दुस्‍तान का नागरिक जितना करेगा उससे ज्‍यादा हिन्‍दुस्‍तान से बाहर गया हुआ करेगा। लेकिन बाहर जाने के बाद, छोड़ो यार! ये तो देश ही है ऐसा। हम ही अपनी मजाक उड़ाएंगे, तो अपने देश का गर्व कभी बढ़ता नहीं है। ये भाव हमारे में पैदा हो तो मुझे विश्‍वास है।

और तीसरा जिस पर मैं बल देना चाहता हूं Manufacturing sector. भारत के पास Manufacturing hub बनने के लिए सब कुछ है। दुनिया में सबसे युवा देश है भारत। विश्‍व का सबसे नौजवान देश। 35 से नीचे भारत की 65 percent population है। और सारी दुनिया बुढ़ापे की आगे बढ़ रही है। ageing बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और भारत जवान होता चला जा रहा है। आने वाले दिनों में average और बढ़ने वाली है। 25 से नीचे की संख्‍या बढ़ने वाली है। अब कभी हमें ये संकट लगता था आज वो सामर्थ्‍य बन गया है। अगर इन नौजवानों के हाथ में हुनर हो, skill हो, manufacturing के लिए बहुत बड़ा अवसर होगा और भारत एक ऐसा manufacturing hub बनें जहां Low cost manufacturing हो।

“Zero Defect-Zero effect” manufacturing हो। “Zero Defect-Zero effect” manufacturing मैं इसलिए कह रहा हूं क्योकि अगर globally competitive होना है तो आपकी हर चीज “zero defect” की होनी चाहिए और सिर्फ product नहीं packaging भी। अगर आपने लिखा है कि 220gm है, तो it must be 220gm. आखिकर credibility है, जो दुनिया में ताकत देती है और इसलिए zero defect के साथ हम manufacturing के sector में globally Competitive अपने आपको कैसे बनाएं और “zero effect”, environment पर इसका कोई असर न हो। उस प्रकार के process को हमें स्‍वीकार करना होगा। क्‍योंकि global warming, climate change ये जो सारी दुनिया चिंता कर रही है। उस समस्‍या से निकलने का रास्‍ता हिन्‍दुस्‍तान ही दिखा सकता है। हमारा काम है कि हम ये जो demographic dividend हमारे पास है, हम skill development करें, manufacturing hub बनें और आज हम दुनिया की कंपनियों को हम आ‍कर्षित करें और ये हम मान के चलें कि low cost manufacturing की ताकत हम लोगों की जितनी है शायद दुनिया में किसी की नहीं है।

Hollywood की फिल्‍म का बनाने का जितना खर्चा होता है, उससे कम खर्चें में हिन्‍दुस्‍तान के नौजवान Mars Mission को पार कर लेते हैं। मंगलयान! अब मुंबई हो, पुणे हो, अहमदाबाद हो, दिल्‍ली हो, लखनऊ हो, एक किलोमीटर का ऑटो रिक्‍शा जाना है तो खर्चा दस रूपये लगता है। हमें mars पर मंगलायन में एक किलोमीटर का सात रूपये खर्चा लगा है। कहने का तात्‍पर्य है कि ये ताकत हमारे देश के talent में है। हम दुनिया को समझा सकते हैं कि low cost manufacturing के लिए India is the best destination और इसलिए हम foreign direct investment चाहते हैं, manufacturing के sector में चाहते हैं। डिफेंस manufacturing, यहां इतने नौजवान हैं कई कंपनियों में काम कर रहे हैं, आपके पास सब कुछ है।

आज भी भारत को रोने के लिए विदेशों पर depend रहना पड़ता है। जब आंदोलन होते हैं, agitation जो tear gas छोड़ा जाता है वो tear gas बाहर से आता है। मैं घर में बैठकर बात कर रहा हूं, ऐसा नहीं कि हमारे पास ताकत नहीं है, अब आता तो है लेकिन कौन मेहनत करें। जी अब आता है, तो कौन मेहनत करे! इस मिजाज को मुझे बदलना है। हम खुद क्‍यों न बनाएं और इसलिए मेरे लिए manufacturing hub बनाना ये सिर्फ आर्थिक कार्यक्रम नहीं है, यह एक स्‍वाभिमान का आंदोलन भी है। आप मुझे बताइये आप अपने पड़ोसी से बार-बार कोई चीज लानी पड़े, तो आप कैसा महसूस कैसा feel करते हो। अपने यहां पुराने जमाने में गांव में रहते हैं तो कभी मेहमान आ गये, तो चीनी लानी है, तो पड़ोसी के घर से एक कटोरी में चीनी ले आते हैं। लेकिन कैसे लाते हैं, साड़ी के नीचे रखकर ले आते हैं इसलिए कि कहीं कोई देख न ले, क्‍यों स्‍वाभिमा!। मन में एक रहता है ठीक है कि चीनी नहीं है मेहमान अचानक आ गये तो चीनी लानी पड़ी। पड़ोस वाला कोई किसी को कहता नहीं था कि देखो मेहमान उसके यहां आते हैं और चीनी मेरे यहां से ले जाते हैं। ऐसा कोई नहीं करता है। कोई नहीं करता, लेकिन स्‍वाभिमान की चिंता रहती है कि ऐसे करके साड़ी में लपेट करके ले आएंगे। भारत भी बाहर से लाते समय, हमारे एक स्‍वाभिमान का issue होना चाहिए। अब मेरा देश दुनिया को देने वाला देश बनेगा, लेने वाला नहीं रहेगा ये दिमाग। और भारत के नौजवानों में ये ताकत है। हमें उन्‍हें अवसर देना है।

अब विकास की तीन चीज जो मैंने आपके सामने रखीं, सरकार के उस दिशा में कदम उठाए। दस महीने के भीतर-भीतर ढ़ेर सारे कदम उठाएं हैं। तेज गति से देश आगे बढ़ रहा है। पिछले दस साल, मैं एक थोड़ा सैम्‍पल देता हूं, दस साल का average था प्रति यानि per day 2km road बन रहा था। दस महीने का average है, per day 11 किलोमीटर road बनता है। काम करने वाली सरकार का क्‍या मतलब होता है? ये होता है।

हर चीज में, अब रेलवे आप कल्‍पना कर सकते हैं रेलवे के विकास की कितनी बड़ी संभावना है। अब लोगों को लगता होगा कि मोदी जर्मनी गये तो क्या करते होंगे? मुझे मालूम नहीं है कि दुनिया के लोग मुझसे क्‍या अपेक्षा करते होंगे? हिन्‍दुस्‍तान में हमारे मीडिया वालों की अलग अपेक्षा रहती है। मैं कल Berlin का रेलवे स्‍टेशन देखने जाने वाला हूं, खैर कोई हिन्‍दुस्‍तान का कोई ऐसा आदमी आया होगा जो स्‍टेशन देखने जाए, मैं आया हूं इसलिए कि मेरे मन में है हिन्‍दुस्‍तान में रेलवे स्‍टेशन की शक्‍ल बदलनी है। आज हमारे शहरों में heart of the city में railway station हैं। आप दिल्‍ली जाइए, लखनऊ जाइये कानपुर जाइये नागपुर जाइये कहीं पर जाइये। और महंगा land लैंड है और भारत में रेलवे प्‍लेटफार्म ही रेलवे स्‍टेशन नहीं होता है और गांव में 20 किलोमीटर रेल चलती है और सोई पड़ी हैं। दिन में दो बार ट्रेन जाती है। बाकी क्‍यों नहीं। क्‍या ऊपर बहुत बड़ा एक नया 20 किलोमीटर लंबा रेल की पटरियों पर शहर खड़ा नहीं हो सकता है क्‍या? स्‍टेशन आधुनिक नहीं बन सकते हैं क्‍या? दस मंजिला रेलवे स्‍टेशन नहीं हो सकते हैं क्‍या? नीचे ट्रेन चलती रहे और ऊपर 50 काम हो सकते हैं जी! विकास कैसे करना है इंफ्रास्‍टक्‍चर कैसे बदलाव करना है। रेलवे पूरा, हमारे दो शहरो को जोड़ने वाली जो ट्रेन है उसकी स्‍पीड को क्‍यों न बढ़ाया जाए। अगर अहमदाबाद से आये, अगर दिल्‍ली से अमृतसर जाना है, तो दिल्‍ली से चंडीगढ़ जाना है, दिल्‍ली से आगरा जाना है, High speed rail बन सकती है। ठीक हैं आज हम दुनिया में जो 300 किलोमीटर speed है वो नहीं होगी। लेकिन अगर हम 60 पर चलते हैं तो 120 तो हो सकते हैं जी। मेरी कोशिश यह है कि अनेक संभावनाओं को आगे बढ़ाना है और जितना हम आगे बढ़ाएंगे । देश नई ऊंचाईयों के द्वारा उससे हमें परिणाम मिलने वाला है।

पूरी दुनिया global warming के लिए चिंता करती है। अब यहां बैठ गये होंगे तो इस बात करने का बड़ा मजा आता होगा। तो मैं आज आपका खास क्‍लास लेना चाहता हूं ताकि अब आप दुनिया को समझा सको हम कौन लोग हैं। पता नहीं सारी दुनिया climate के संबंध में हमें गालियां देती रहती है। बर्बाद करने वाले लोग हमारा जवाब मांग रहे हैं। अगर प्रकृति की सबसे ज्‍यादा सेवा किसी ने की है तो भारतीय समाज ने की है। हम वो लोग है जो नदी को भी मां कहते हैं। पौधे को परमात्‍मा कहते हैं। छोड़ में रण छोड़ ये हम कहते हैं। और हमें ये दुनिया समझा रही है कि ये करो वो न करो भारत ने अपनी भूमिका स्‍पष्‍ट करनी चाहिए। दुनिया के सामने आज विश्‍व जिस संकट से गुजर रहा है। उस समस्‍या का समाधान हमारे सांस्‍कृतिक मूल्‍यों में है। हमारे जीवन के आदर्शों में जुड़ा हुआ है। ये विश्‍वास के साथ जाना चाहिए और ये भारतीय समाज से सर्वाधिक अपेक्षा है।

हमारे यहां महिलाएं जितना व्रत करतीं हैं, हिन्‍दुस्‍तान में सारे व्रत देख लीजिए प्रकृति की पूजा होती है वो। प्रकृति का सम्‍मान करना ये हमारे यहां संस्‍कार में होता है। हमारे यहां बच्‍चा बालक बिस्तर से नीचे उतरता है तो मां उसको सिखाती है कि पहले पृथ्‍वी माता से क्षमा मांगो। अपना पैर रखने से पहले, मैं मां तुझे दुखी कर रहा हूं मैं अपना पैर रख रहा हूं मां पहले पृथ्‍वी माता को प्रणाम करो फिर पैर रखो। ये हमारे संस्‍कृति और संस्‍कार में है। जिस समाज ने इसे संजोया हुआ है, आज विश्‍व को हिसाब देना पड़ रहा है। सूर्य के सात घोड़ों के रथ की कल्‍पना, सूर्य को शक्ति रूप में मानना हमारे यहां माना गया है।

जगदीश चन्‍द्र ने वनस्‍पति में जीवन होता है। ये कहा उसके बाद वनस्‍पति में जीवन आया ये नहीं है हम हजारों साल से पौधे में परमात्‍मा है, ये हम देखने वाले लोग हैं। कहने का तात्‍पर्य है इस विषय में हमारी अपनी mastery है हमारा सामर्थ्‍य है। हम दुनिया के जवाबदेह लोग नहीं है। दुनिया का जवाब हमने मांगना चाहिए कि आप हैं जिन्‍होंने प्रकृति को तबाह किया है। हम वो लोग हैं जो Milking of nature को मानते हैं, exploitation of nature उसे हम crime मानते हैं और इसलिए दुनिया जिन संकटों से गुजर रही है। उसके सामने हमारा तात्विक ताकत है खड़े रहने की, लेकिन जो समस्‍या है उसका समाधान भी ढूंढना पड़ेगा।

भारत ने एक बहुत बड़ा initiative लिया है Renewable energy का। जर्मनी आज इसमें एक model है। खासकर करके solar energy में। भारत ने 175 MW renewable energy का target तय किया है। भारत में giga-watt शब्‍द पहली बार आया है। हम मेगावॉट के ऊपर सोच नहीं पाते थे। पहली बार दस महीने में मेगावॉट से गीगावॉट सोचना तो शुरू कर दिया है। इतना काम तो कर लिया है। 175 गीगावॉट, उसमें से 100 giga-watt सोलर एनर्जी और 75 wind energy तथा biomass energy.....इन चीजों पर बल देना चाहिए। क्‍यों न जर्मनी की कम्‍पनियों को जो कि इस field में हैं, हमारे साथ आयें, manufacturing sector में हमारे लोग क्‍यों न आए? इतना बड़ा scope है वहां बिजनेस का, हम solar panel manufacturing की दिशा में क्‍यों न जाए? हम solar को और cheap करने के लिए innovation कैसे लाए? यहां जर्मनी में रहने वाले लोगों को इसका experience है। आप अपने-अपने experience को हिन्‍दुस्‍तान के साथ साझा कीजिए और स्‍पष्‍ट एरिया है काम करने के लिए कोई बाहर से ढूंढने जाना पड़े ऐसा नहीं है हम इसका फायदा कैसे उठाए?

मैं समझता हूं कि ग्‍लोबल वार्मिंग की समस्या से भी हम लड़ सकते हैं...आजकल हम सुनते है reuse and recycling. मैं समझता हूं कि हमारे यहां हमारे DNA में reuse and recycling , हमारे DNA में है लेकिन दुनिया हमको पढ़ा रही है, आपने देखा होगा अपने यहां गांव में घर में दादी मां रहती है, कपड़े पुराने हो जाएं तो उसमें से ओढ़ने के लिए रजाई बना लेती थी, वो reuse हुआ कि नहीं हुआ? अच्‍छा वो भी फट जाएं तो फिर उसमें से कपड़ों को खोल करके झाडू–पोचा करने के लिए उपयोग करती थी। हुआ कि नहीं हुआ? यानी एक चीज़ का कितना उपयोग करना वो हमारे लोगों की बड़ी expertise थी अब आज reuse and recycling शब्‍द ये हमको बाहर से सुनने पड़ रहे है।

आप देखिए हिन्‍दुस्‍तान के जीवन में परम्‍परागत रूप से reuse and recycling ये हमारी सहज प्रकृति थी। मां भी जब बच्‍चा बड़ा होता था, 12-13 साल का होता था, कपड़े ठीक नहीं होते, वो कपड़े संभाल करके रख देती थी, क्‍यों दूसरे वाले के काम आएंगे और इसके लिए अखबारों में कोई article नहीं छपा था कोई 24 घंटे के टीवी चैनल पर कार्यक्रम नहीं आया था कि ऐसा करो-वैसा करो। किसी ने सिखाया नहीं था ये सहज प्रकृति थी।

लेकिन मैं हैरान हूं हमने अपनी बात दुनिया के सामने सीना तान करके रखी नहीं और विश्‍व हमको डांटता रहा कि carbon emission कम करो, carbon emission कम करो जबकि पूरे विश्‍व में per capita देखा जाए तो हम lowest हैं। फिर भी जवाब हम से मांगा जा रहा है। हम विश्‍वास के साथ खड़े हो जाएं तो climate , global warming इन सारे विषयों को हम दुनिया को रास्‍ता दिखा सके उस ताकत के साथ हम आगे बढ़ना चाहते है।

CoP -21 की मीटिंग अक्‍तूबर में फ्रांस में होने वाली है, सारी दुनिया का ध्‍यान है लेकिन हम उसका एजेंडा set करेंगे। मैं आपको विश्‍वास दिलाने आया हूं भारत एजेंडा set करेगा। और हमारे मूल्‍यों के निशान पर करेंगे हमने दुनिया को दिया है। हम दुनिया से लेने वाले लोग नहीं हैं, हम, ''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।, इन आदर्शों से पैदा हुयीसंस्कृति हैं।

Eat-Drink and Remarry ये परम्‍परा हमारी नहीं है। हमारी परम्‍परा है

''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वायवो वान्ति सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्॥“

जिस परम्‍परा से हम लोग निकले हुए है हम दुनिया को देने के लिए पैदा हुए है हमारे हजारों साल का इतिहास रहा है। इस विश्‍वास के साथ भारत एक नई ऊंचाईयों को पार करें।

और मैं मानता हूं जर्मनी एक ऐसा देश है जिसने भारत को सही स्‍वरूप में विश्‍व के सामने प्रस्‍तुत करने का अभिरत प्रयास किया है और इसके लिए हमें जर्मनी का रिण स्‍वीकार करना चाहिए उनका पब्लिकली थैंक्‍स कहना चाहिए। Maxmuller से ले करके कितने ही महापुरूष देखें है.....एक जमाना था यहां पर रेडियो न्‍यूज संस्‍कृत में हुआ करते थे, जबकि भारत में नहीं होते थे क्‍योंकि वहां पता नहीं वो secularism का ऐसा तूफान खड़ा हुआ है कि उनको संस्‍कृति सुनने में भी secularism खतरे में पड़ जाता है। भारत का सेक्‍युलिजम इतना कच्‍चा नहीं है कि कोई भाषा के कारण वो हिल जाए। गहरी चट्टानों पर खड़ा हुआ हमारा सर्वपंथ-सर्वभाव का,

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।

इस महान आदर्शों को ले करके हम चले हुए लोग हैं वो इसे हिलने वाले लोग नहीं है। हमारा आत्‍मविश्‍वास हिला हुआ नहीं होना चाहिए, उसमें हमें दम होना चाहिए मैं इसी विश्‍वास के साथ आधार पर कहता हूं सवा सौ करोड़ का देश 1/6 population of the world. हम अच्‍छा करेंगे दुनिया का अपने आप अच्‍छा हो जाएगा।

इसी एक भावना के साथ भारत आगे बढ़े, उस दिशा में प्रयास आगे चल रहा है। आप सबसे मिलने का अवसर मिला मुझे खुशी हुई मेरी आप सबको बहुत शुभकामनाएं है आप बहुत प्रगति करें भारत का नाम आप जहां भी हो रोशन करें और मैं आपको एक विश्‍वास दिलाता हूं आपका पासपोर्ट का रंग शायद बदल गया होगा, लेकिन पासपोर्ट के रंग बदलने से हमारे रिश्‍तों के ताने-बाने को कोई असर नहीं होता है। ये आप विश्‍वास कीजिए। हिन्‍दुस्‍तान हमेशा-हमेशा आपका है, आपके लिए है और हो सकता है कि आपके आने वाले योजनाओं के तहत वो आपके बदोलत भी बन जाए।

मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं। धन्यवाद।

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Your Excellency, Prime Minister,
Delegates from both countries,
Friends from the media,
Namaskaar!
Dobar dan!

I extend my heartfelt gratitude to the Prime Minister and the Government of Croatia for the warmth, enthusiasm, and affection with which I have been received in the historic and beautiful city of Zagreb.

This is the first visit of any Indian Prime Minister to Croatia. I am fortunate to have have had this opportunity.

Friends,

India and Croatia are united by shared values such as democracy, the rule of law, pluralism, and equality. It is a happy coincidence that last year, the people of India entrusted me—and the people of Croatia entrusted Prime Minister Andrej Plenković with a third consecutive term in office. With this renewed public mandate, we are committed to tripling the momentum of our bilateral relations during this term.

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A 'Defence Cooperation Plan' will be prepared for long-term cooperation in the defence sector, which will focus on training, military exchanges, and cooperation in the defence industry. Several areas where our economies complement each other have been identified and will be actively pursued.

We have decided to enhance cooperation in many areas to increase bilateral trade and create reliable supply chains. We will promote cooperation in many important areas such as Pharma, Agriculture, Information technology, Clean Technology, Digital technology, Renewable energy, and semiconductors.

We will strengthen cooperation in shipbuilding and cyber-security. Croatian companies have significant opportunities to participate in port modernization, coastal-zone development, and multi-modal connectivity initiatives under India’s Sagarmala project. We have also emphasized joint research and collaboration between our academic institutions and research centers. Additionally, India is committed to sharing its space expertise and experience with Croatia.

Friends,

Our centuries-old cultural ties form the foundation of our mutual affection and goodwill. In the 18th century, Ivan Filip Vezdin was the first to publish Sanskrit grammar in Europe. For the past 50 years, the Department of Indology has been actively functioning at the University of Zagreb.

Today, we have resolved to further strengthen our cultural and people-to-people ties. The term of the MoU for the Hindi Chair at the University of Zagreb has been extended until 2030, and a Cultural Exchange Programme has been outlined for the next five years.

To facilitate the movement of people, the Mobility Agreement will be finalized soon. Croatian companies will be able to benefit from India’s skilled IT manpower. We also discussed ways to enhance tourism between the two countries.

I have clearly experienced the popularity of Yoga here. With June 21 marking the International Day of Yoga, I am confident that, as always, the people of Croatia will celebrate the occasion with great enthusiasm.

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Friends,

We agree that terrorism is an enemy of humanity, and is opposed to everyone who believes in democratic forces. We are deeply grateful to the Prime Minister and the Government of Croatia for their expression of solidarity following the terrorist attack in India on April 22. In such difficult times, the support of our friends holds immense value for us.

We both agree that in today’s global environment, the partnership between India and Europe holds great significance. Croatia’s support and cooperation are extremely important in strengthening our strategic partnership with the European Union.

We both firmly believe that whether in Europe or Asia, solutions cannot be found on the battlefield. Dialogue and diplomacy is the only viable path forward. It is essential to respect the territorial integrity and sovereignty of every nation.

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Friends,

Being here today at 'Banski Dvori' is a special moment for me. It is in this very place that Sakcinski delivered his historic speech in the Croatian language, and today, I feel a sense of pride and contentment in expressing my thoughts in Hindi. He rightly said, 'Language is a bridge,' and today, we are strengthening that bridge.

Once again, I express my heartfelt gratitude to the Prime Minister for the warm and gracious hospitality extended to us during our visit to Croatia. Prime Minister,I also look forward to welcoming you to India soon.

My sincere thanks to all of you.