उपस्थित सभी देशवासियों,

मैं अपनी बात शुरू करने से पहले आज मिले एक दुखद समाचार कि जर्मनी के मूर्धन्य साहित्‍यकार और Nobel prize विजेता श्रीमान गुंटर ग्रास का 87 वर्ष की आयु में आज स्‍वर्गवास हुआ, नोबेल पुरस्‍कार जिनको प्राप्‍त हो, साहित्‍य की जिन्‍होंने सेवा की हो, उनका चिंतन, मनन, हर शब्‍द पीढि़यों तक समाज के लिए शक्ति बनता है। उनकी विदाई के समय मैं सभी भारतवासियों की तरफ से उनको आदरपूर्वक श्रृद्धाजंलि समर्पित करता हूं और उनका जो साहित्‍य है वो आने वाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देता रहेगा। हमारे यहां शब्‍दों को मृत्‍युंजय माना जाता है। शब्‍द कभी मरता नहीं और इसलिए जो साहित्‍य की साधना करते हैं, वे एक प्रकार से अमरत्‍व को प्राप्‍त करते है। मुझे विश्‍वास है कि उनकी जीवनभर की ये तपस्‍या, ये साधना, ये शब्‍द सरिता आने वाले युगों तक न सिर्फ जर्मनी को लेकिन मानवीय मूल्‍यों की चिंता करने वाले हर किसी को प्रे‍रणा देती रहेगी। मैं फिर एक बार उनके प्रति अपना आदर व्‍यक्‍त करता हूं।

मैं कल हेनोवर में था। भारत इस बार हेनोवर fair का partner है। भारत से करीब 400 कम्‍पनियां यहां आई हुई हैं। अब चारों तरफ लोगों को लगता है कि देश विकास की ओर आगे बढ़ रहा है। इस प्रकार के अवसर भारत को showcase करने के लिए तो काम आते ही आते हैं लेकिन हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। कभी-कभार हम अपने मोहल्‍ले में तो Hercules होते है, लेकिन जरा बाहर निकले तो पता चलता है कि हम कहां खड़े हैं। और इसलिए इस प्रकार के कार्यक्रमों में आने से हमें भी भीतर से एक challenge स्‍वीकार करने का मन बनता है। हमारे भीतर का जज्‍बा जगता है कि भई! क्‍या बात है वो तो आगे निकल रहे हैं, हम क्‍यों नहीं निकल रहे चलों हम भी कुछ करेंगे तो एक प्रकार से ये अंतर्राष्‍ट्रीय कसौटी है, अंतर्राष्‍ट्रीय मानदंडों में हम आगे बढ़ रहे है कि नहीं बढ़ रहे हैं।

मुझे विश्‍वास है कि भारत से जो लोग आए है वे यहां से बहुत कुछ देख करके, सीख करके, समझ करके जाएगें और उसका लाभ भी मिलता है, हमारा लाभ उनको भी मिलता है। मैं आज Madam Chancellor के साथ हेनोवर फेयर में अलग-अलग stalls की मुलाकात कर रहा था तो एक कम्‍पनी ने अपना आधुनिक Technology से screening करने की technology दिखाई कि कार कोई पुर्जा-वुर्जा खराब हुआ हो, तो उनको screen में पता चलता है, तो मैंने पूछा उनको कि ये कार का पुर्जा-वुर्जा तो देख लेते हैं लेकिन क्‍या इस technology का इस्‍तेमाल security के लिए उपयोग हो सकता है क्‍या? तो चौंक गए बोले ये तो हमने सोचा नहीं, बोले हम तुरंत करेंगे। मैंने उनको कहा कि मैं ideas की royalty नहीं लेता हूं। कहने का तात्‍पर्य है कि जब देखते हैं तो पता चलता है कि एक ही चीज अलग दृष्टिकोण से कितनी काम में आती है। वही technology, वही काम वह अलग रूप में किस प्रकार काम में आता है।

और मैं मानता हूं इस विषय में भारत के लोगों की बड़ी expertise है वो बड़ी आसानी से इन चीजों को, अब आप देखिए हमारे तो यहां माताएं-बहनें खाना पकाने में कितना बढि़या प्रयोग करती हैं। अब वो घर में भले ही उसका भारतीयकरण कर दिया होगा, लेकिन वो Chinese dish भी बनाती होगी और pizza भी बनती होगी और Mexican dish भी बनाती होगी। तो हमारे लोगों की एक विशेषता है, वो है चीजों को अपने ढंग से ढालने की। लेकिन ऐसे अवसर पर जाते है तो एक प्रकार से हमारी कसौटी होती है। हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है सामने वालों को भी ध्‍यान में आता है कि हम सोचते थे वैसा भारत नहीं है, भारत में तो कुछ, बहुत कुछ है ये काम भारत में हो रहा है तो उनको भी लगता है कि चलो भई हम भी अपना उस क्षेत्र में जाए, हम भी अपना विस्‍तार करें, विकास करें, एक प्रकार से ये भिन्न-भिन्न situation वाला मामला होता है और मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में भारत की जो विकास यात्रा है उस विकास यात्रा में manufacturing hub भारत बनें।

ये समय की बहुत बड़ी मांग है और अगर हमने ये समय खो दिया तो भारत का बहुत लम्‍बे अरसे तक नुकसान होगा। जब दुनिया में औद्योगिक क्रांति हुई थी उस समय भारत गुलाम था। हमारे पास talent थे, हमारे पास हर प्रकार की क्षमता थी, ढ़ाका का मलमल कितना अगूंठी से पूरा निकलता था। ये चर्चा हम पढ़े हैं, सुने हैं कि सामर्थ्‍य था लेकिन जब Industrial revolution हुआ तब हम गुलाम थे और गुलाम होने के कारण ही हम उस परिस्थिति का लाभ नहीं ले पाए। ऊपर से हमारा जो talent था, हमारे पास जो सामर्थ्‍य था या तो उसको दबोच दिया गया, या तो उसे चोरी करके ले जाया गया और हम वही के वही रह गए। Second revolution आया Communication का, IT revolution आया, IT Revolution में हम आजाद भारत के होने के कारण हमारे 20, 22, 24 साल के नौजवानों ने Computer पर उगलियां घुमाते-घुमाते दुनिया को हिन्‍दुस्‍तान की पहचान करा दी, विश्‍व को भारत का लौहा मानना पड़ा।

IT Revolution ने हमारे देश के नौजवानों की ताकत से दुनिया को अचंभित कर दिया, दुनिया को आश्‍चर्य हुआ। जब अमेरिका के President Clinton हिन्‍दुस्‍तान आए थे, तो उनकी itinerary में राजस्‍थान के गांव थे और घूंगट ओड़ करके बैठी हुई महिलाएं computer पर अपने Cooperative का काम कर रही थीं, वो देख करके परेशान हो गए, उनको आश्‍चर्य हुआ और तब जा करके, वहीं का चुने हुए एक पंच ने उनको पूछा, अब वो बेचारा अपनी भाषा में बोल रहा था और वो लुढ़क करके Security के इधर-उधर करके उसके पास गया होगा कोई क्‍योंकि वो पंचायत का member था, पंचायत का सदस्‍य था और दलित समाज से था वो लुढ़क करके President Clinton के पास पहुंच गया, उस दिन जिन्‍होंने वो Live Telecast देखा होगा उन्‍होंने देखा होगा वो। वो लुढ़के उनके पास पहुंच गया तो गांव वालों को सबको लगने लगा कि यार ये क्‍या आदमी है, उधर क्‍या बात करेगा, उससे उसको कुछ बोलना-वोलना तो आता नहीं है। किसी को लगा कि नहीं वो शायद Visa मांगेगा, किसी को लगा कि नहीं यार अपने बेटे के लिए नौकरी मांगेगा और ताज्‍जुब की बात है वो अनपढ़ इंसान, दलित परिवार का बेटा, जो कि इस गांव की पंचायत का सदस्‍य था वो Clinton से Height में भी बहुत छोटा था, यूं देखता था उसे और आंख में आंख मिला करके उसने पूछा था कि क्‍या आप आज भी हिन्‍दुस्‍तान को पिछड़ा मानते हैं क्‍या, ये पूछा था उसने और Clinton ने जबाव दिया था कि नहीं मैं दुनिया में जहां जाऊंगा, वहां मैं हिन्‍दुस्‍तान की शक्ति के विषय में बताऊंगा और आप देखिए उन्‍होंने फिर हर बार जहां गए इस बात का उल्‍लेख किया और लोगों को कहा कि भारत विषय में जो आप सोचते हैं, अपनी उस सोच बदलिए, वो बोल रहे थे।

कहने का तात्‍पर्य ये है कि हमारे नौजवानों ने ये जो Second Revolution आया, IT Revolution इसमें बहुत कुछ किया। दुनिया में अपनी ताकत का परिचय दिया, लेकिन होता कहां है Silicon valley में जाइएं। वहां 60-70% CEO, IT sector में भारतीय मूल के हैं, लेकिन Google का जन्‍म भारत की गोद में नहीं होता है। किसी और की गोद में होता है और तब सवाल उठता है कि गूगल मेरे यहां क्‍यों पैदा नहीं हुआ। scientist वही थे, साफ्टवेयर इंजीनियर वहीं है, भारत में वो सबसे बड़ी चुनौती है कि हम उस माहौल को तैयार करें जिस माहौल में हमारे पास जो ये Talent है, हमारे जो Brain हैं जो दुनिया में जा करके तो अपना करतब दिखाते है वो हिन्‍दुस्‍तान की धरती में भी अपना करतब दिखाएं।

जर्मनी में भी कितनी बड़ी मात्रा में हमारे Engineering Field के Students हैं, नौजवान हैं, professionals हैं और यहां की कई कम्‍पनियों में उनका बहुत बड़ा Contribution है, बहुत कुछ सीख रहे है, आपके पास Basic knowledge है, आपके पास Experience है, आपके पास innovations के लिए आवश्‍यक Infrastructure मिला हुआ है आप और हम अपनी शक्ति और सामर्थ्‍य का उपयोग कर रहे है। क्‍या अब आपको ये जो मिला है, आपके अपने प्रयासों से मिला है किसी के कारण मिला है ऐसा मैं नहीं कहता हूं आपके अंदर वो जज्‍बा है, वो क्षमता है, वो अवसर मिला है। क्‍या आप भारत के साथ एक सेतु बन सकते है? क्‍या जर्मनी में काम करने वाले हमारे Professionals, खास करके Manufacturing sector में जिनके पास ताकत है, वे हिन्‍दुस्‍तान और जर्मनी के बीच Bridge बन सकते हैं? और Bridge दो देशों का नहीं, Bridge आज जहां है, वहां से आगे पहुंचने का, जो Destination है उस बीच का Bridge बनाना है।

आपके पास देश को बहुत अपेक्षाएं है और हमारी जिम्‍मेवारी भी है, ये हमारा दायित्‍व है। आज हम जहां भी पहुंचे है हमारे देश के किसी न किसी गरीब ने हमारे लिए कुछ तो किया होगा तब जा करके पहुचे होंगे। हर चीज कोई अपने आप बलबूते पर नहीं होती है। अगर ये सामर्थ्‍य है, उस सामर्थ्‍य का उपयोग कैसे हो।

मैं बहुत साल पहले ओलंपिक देखने के लिए अमेरिका गया था। मैं कोई खिलाड़ी-विलाड़ी नहीं हूं, और बाद में दूसरे ही खेल में पड़ गया। लेकिन मुझे इतने बड़े Event का Management क्‍या होता है? वो जरा देखने की मेरी इच्‍छा थी कैसे करते है कैसे Organise करते है? मैं सीखना चाहता था।

बहुत साल पहले की बात है तो अटलांटा की university के कुछ student के साथ मेरा मिलना हुआ। उसमें भारतीय student के साथ भी तो काफी देर बातें हुई। लेकिन बाद में एक कार्यक्रम ऐसा हुआ जिसमें अमेरिका से बाहर से आए हुए कई समाजों के students थे, तो मैंने ऐसे ही पूछा आगे क्‍या सोच रहे हो? और मैं हैरान था कि Chinese student बहुत clear थे। अपने दिमाग में बहूत clear थे। मैंने उनको पूछा आप....आप क्‍या, कैसा, आगे का क्‍या सोच रहे है, आप पढ़ाई के बाद? उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि 10 साल यहां पर किसी न किसी बड़ी कम्‍पनी में काम करेंगे। और फिर बिस्‍तरा-बोरियां गोल करके देश चले जाएंगे।

मैंने कहा क्‍यों ? तो बोले university में पढ़ रहे है, इतना experience नहीं है, लेकिन किसी कम्‍पनी में जब काम करेंगे तब चीजें सीखेंगे और जो भी सीखेंगे वो सब ले करके जाएंगे वापिस और फिर China और हम मिल करके आगे बढ़ेंगे। अब देखिए यानी विद्यार्थी अवस्‍था में भी....! ये मेरी चर्चा अटलांटा university के Chinese student के साथ कभी हुई थी।

कहने का तात्‍पर्य ये है कि हर देश में ये मिज़ाज होता है, ये मिज़ाज है जो इनको आगे ले जाता है। आप लोग खास करके जिनको जर्मनी में ये अवसर मिला है और ज्‍यादातर जर्मनी की पहचान manufacturing sector के साथ जुड़ी हुई है। भारत का भविष्‍य, भारत की पहचान बनाने में IT Revolution ने बहुत बड़ा role अदा किया है। भारत को एक पिछड़ा, अबूत देश मानने वाले को IT Revolution के बाद अपनी सोच बदलनी पड़ी है। लेकिन भारत की सफलता का आधार भारत को हमें manufacturing hub बना करके ही, हम सेकेंड पारी पर पहुंच सकते हैं।

और देश के विकास के लिए मेरे दिमाग में बहुत साफ है कि हमें एक Balanced growth करना पड़ेगा, भारत एक ऐसा देश है कि और इतना बड़ा विशाल देश है कि यहां की कोई चीज़ वहां के मतलब की हो, वो हिसाब बैठता ही नहीं। जब मैं यहां किसी को कहता हूं कि मुझे 2020 तक 50 मिलियन Affordable houses बनाने हैं तो उनके दिमाग में बैठता ही नहीं। उनको लगता है कि एक पूरा नया देश बनाना पड़ेगा। 50 मिलियन houses एक नया देश बनाना पड़ेगा! वो scale उनके दिमाग में बैठता ही नहीं है। लेकिन हमें मालूम है हमारी इतनी बड़ी आवश्‍यकता है और उस अर्थ में हम सोचे तो भारत को विकास के लिए तीन प्रमुख बातों को balance करके ही चलना पड़ेगा, हम एक तरफ लुढ़क नहीं सकते, One third agriculture sector, one third manufacturing sector, one third service sector. तीनों को balance करके आगे बढ़ना है। agriculture sector में भी सिर्फ खेत में कुछ उत्‍पादन करके अटक-सटक नहीं सकते। हमें agriculture sector को आगे बढ़ाना है, तो हमारे लिए आवश्‍यक है कि हम agro-processing को बल दें, agriculture sector में हम technology को आगे लाएं।

आज मैं हेनोवर फेयर में एक उन्‍होंने computer chip का मैंने development देखा। वो चावल को, अच्‍छे चावल - बुरे चावल को अलग करने का काम करता है। अब आने वाले दिनों में यही होने वाला है। अब ये हमें भी हमारे देश के agriculture sector को इन बातों पर पहला, एक प्रति हेक्‍टेयर हमारी productivity कैसे बढ़े, प्रति हेक्‍टेयर productivity बढ़ानी है, तो कौन सी technology, कौन से प्रयोग कैसे काम में आएगे, परम्‍परागत चीजें कैसे काम में आएगी? लेकिन हमारे किसान को affordable हो, हमारा agriculture sector वो तब होगा जब value addition हो।

और हम अच्‍छी तरह जानते है कि कोई किसान बेचारा आम बेचता है तो income कम होती है लेकिन आम में से अगर आचार बना देता है तो आचार के पैसे ज्‍यादा मिलते हैं। आचार भी अगर बढ़िया से बोतल में pack करें तो और ज्‍यादा पैसे मिलते है और pack किया हुआ आचार भी कोई नटी ले करके खड़ी हो जाए तो और ज्‍यादा पैसा मिलता है। An actress , नटी यानी actress वो खड़ी हो जाए तो और ज्‍यादा पैसे मिलते है कि भई ये advertising हो रहा है ये अगर खाती है, तो हम भी खाएं, अब वो खाती है कि नहीं खाती पता नहीं! लेकिन कहने का तात्‍पर्य ये है कि हमारे agro products का value addition. Value addition जितना ज्‍यादा हम कर सकते है अब उसमें technology लगती है, उसमें नई-नई खोज की आवश्‍यकता होती है। global requirement के अनुसार हमको उसको करना पड़ेगा और आज दुनिया में “ready to eat” packaging का मामला चल रहा है। दुनिया के किसी देश में कहां सब्‍जी पैदा हुई है, कहीं कटिंग हुआ होगा, कहीं पकी होगी, कहां पैक हुई होगी और पता नहीं दुनिया के किस देश में जा करके वो खाई जाती होगी। दुनिया काफी बदल चुकी है। हमने हमारे agriculture sector को विश्‍व की ये जो चीजे है इसके साथ जोड़ना है।

चाय में हमने वो सफलता पाई, हम जानते है कि चाय में हमें जो सफलता मिली उसकी बाद दो मूलभूत बातें रही है कि चाय ने व्‍यक्ति के जीवन में एक नई पहचान बनाई है, social relation का वो आधार बन गई, सामाजिक संबंधों के लिए वो एक बड़ा बहुत बड़ा liquidity वाला फोर्स बन गया है। एक प्रकार से और दूसरा उसकी सरलता, उसका पैकेजिंग और कभी किसी ने उससे क्‍या नुकसान होता है इसकी ज्‍यादा चर्चा नहीं की। वो accept हो गया दुनिया में। चाय के बागानों में खेती करने वाले लोग बड़ी-बड़ी कम्‍पनियां बन गई, लेकिन जो बेचारे मजदूर थे वो वहीं रह गए। क्‍योंकि अग्रेजों के जमाने में वो सारे rules and regulation बने थे, उसमें बदलाव आ रहा है, अब। मेरा कहने का तात्‍पर्य है कि हमारे पास इतनी सारी चीजें है हम हमारे agriculture sector में productivity बढ़ाने से ले करके value addition, value addition के साथ-साथ forward linkage , global market कैसे मिले?

भारत में एक छोटा सा राज्‍य है, सिक्किम 6-7 लाख population है, लेकिन वहां 10 लाख टूरिस्‍ट आते हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि हिन्‍दुस्‍तान के किस कोने में क्‍या ताकत पड़ी है? हिमालय की गोद में है, उस तरफ चीन है। उन्‍होने एक initiative लिया छोटा-सा राज्‍य है, organic farming का और उसने global सारे standard पार कर दिए है और आज सिक्किम हिन्‍दुस्‍तान का पहला organic farming का state बन चुका है। अब उनके लिए उनके जो product है उसका global market के लिए दरवाजे खुल गए है। हम कोशिश करना चाहते है कि उनको global market मिले, उनका रुपया डॉलर लेकर आना चाहिए, ये ताकत होनी चाहिए। organic farming में तो ये ही है। जिसमें रुपये में हिन्‍दुस्‍तान से जो माल जाता है, वो दुनिया के बाजार में डॉलर में जाना चाहिए और उस दिशा में काम करने का हमारी कोशिश है। सिक्किम ही नहीं पूरे देश में पूरा नॉर्थ ईस्‍ट नागालैंड, मिजोरम, मेघालय सारे प्रदेश ऐसे है कि जहां पर परम्‍परागत रूप से chemical fertilizers की आदत बहुत कम है। हम उसको organic state के रूप में, organic region के रूप में develop करना चाहते है। तो चीजों को उस प्रकार से हम बल देना चाहते है जिसके कारण उस क्षेत्र में बढ़ा चले।

दूसरा है service sector भारत के पास दुनिया को देने के लिए क्‍या नहीं है। tourism , hospitality, अतिथि देवो: भव: हमारे blood में है। लेकिन विश्‍व में हम tourism..जो कि दुनिया में सबसे तेज गति से, किसी एक व्‍यवसाय का विकास हो रहा है, तो वो टूरिज्‍म है। 3 Trillion dollar का वो बिजनेस है, बहुत बड़ा, लेकिन उसका share हिन्‍दुस्‍तान को कम से कम मिलता है। हमारे भारतीय लोग जो विदेशों में रहते है उनके मन में भी देश के लिए कुछ न कुछ करने का मन करता है क्‍योंकि मुझे कई पूछते है, कई वर्षों से पूछते है कि हम देश के लिए क्‍या कर सकते है। अब तुम्‍हें भगत सिंह बनने की जरूरत नहीं भाई! अब हो गया वो हमारे नसीब में नहीं था। जो भगत सिंह के नसीब में था। देश के लिए मरना हमारे नसीब में नहीं है, हम देश के लिए जी तो सकते हैं। देश के लिए मरने का सौभाग्‍य मिले या न मिले देश के लिए जीने का सौभाग्‍य तो मिलता ही है और इसलिए हमने कहा कि भई कम से कम भारतीय परिवार जो विदेशों में रहते है जहां आप काम करते हैं वहां आप विदेशी लोगों के बीच में है। दुकान चलाते होंगे तो आपके विदेशी ग्राहक होते होंगे, पढ़ते होंगे तो विदेशी टीचर्स होंगे। क्‍या साल में 5 गैर-भारतीय, Non-Indians ऐसे family को हिन्‍दुस्‍तान देखने के लिए आप प्रेरित नहीं कर सकते क्‍या? यहां छोटा-सा काम है। उनको समझाओं कि हमारा देश देखने जैसा है चलो, निकल पड़ो। हमारी जर्मनी में मान लीजिए कि एक लाख लोग रहते है, मान लीजिए 50 हजार परिवार रहते है। अगर हर वर्ष वो पांच परिवार को धक्‍का लगा दे, हिन्‍दुस्‍तान के टूरिज्‍म को कितना आगे बढ़ेगा फिर मुझे Incredible India के advertisement का खर्चा करना पड़ेगा क्‍या? आपसे बढ़ करके Incredible India की पहचान क्‍या हो सकती है? मुझे बताइएं? आप ही तो है Incredible India और क्‍या है? क्‍या उन पत्‍थरों और मूर्तियों में Incredible इंडिया है? उस विरासत के प्रतिनिधि आप है, आप ही Incredible India है। ये मिज़ाज क्‍यों नहीं होना चाहिए?

अगर ये मिज़ाज है, कहने का तात्‍पर्य मेरा है कि Service sector आज पूरी दुनिया में processing work इतना costly हो गया है कि हर कोई outsource कर रहा है। outsource के लिए हिन्‍दुस्‍तान में बहुत संभावनाएं है। आप यहां कई कम्‍पनियां है जो आउटसोर्स करने के लिए चाहती है, उनको जगह दिखा दें , address दे दीजिए भई! ये जगह है, करवा लीजिए।

सर्विस के क्षेत्र में हमारे देश में बहुत संभावनाएं पड़ी है। पूरे विश्‍व को आ‍कर्षित करने की हमारी ताकत है और हमें दुनिया को...हमारी सबसे बड़ी गलती क्‍या हुई है, जो चीज उसको अमेरिका में मिलती है, पेरिस में मिलती है, वो हम हिन्‍दुस्‍तान में परोसने जाते हैं, नहीं करना चाहिए। हमने हमें वो ही परोसना चाहिए जो हमारा है। तभी तो दुनिया हमारे यहां आएगी। हमारी जो विशेषता है उसी से दुनिया को हमें जोड़ना चाहिए। लेकिन हमारी विशेषताओं को साथ हम तब जोड़ पाएंगे, जब हम अपनी विशेषताओं पर गर्व करें। हम नहीं करते, हमें लगता है यार, मुझे याद है मुझे मैं अमरीकन सरकार के एक निमंत्रण पर एक बार गया था, मैं उनको अपने itinerary में लिखा था। मैंने पूछा था सबसे पुरानी चीज मुझे देखनी है तो मुझे दिखाइये, तो उन्‍होंने मुझे क्‍या दिखाया। मुझे वे Pennsylvania ले गये और वहां वाशिंग्‍टन के जमाने का एक बेल है, वो घंटा दिखाया और मुझे बोले यह सबसे पुराना है। मेरे यहां आप आइये आप एजेंता-एलोरा देखिए, आप कोणार्क का सूर्य मंदिर देखिए हजारों साल पुरानी चीजें हैं। हमारे पास क्‍या नहीं है, दुनिया में?

मैं गुजरात में पैदा हुआ, गुजरात में रहा, वहां एक डॉक्‍टर हरि भाई गोदानी थे। स्‍वयं तो professionally doctor थे। लेकिन Archaeology में उनकी बड़ी रूचि थी। उनकी आयु भी बहुत हो गई थी, लेकिन वह कर रहे थे। उस जमाने में यह सारी गाडि़यां तो थीं नहीं, Fiat गाड़ी, और Ambassador, Ambassador सरकारी गाड़ी थी, Fiat नागरिकों की गाड़ी थी। पहचान हो गई थी कि अंबेसडर जा रही होती थी तो सरकार जा रही है, Fiat है तो कोई भला इंसान जा रहा है, तो उनके पास एक Fiat कार थी, वो मुझे कह रहे थे, मैं उनके पास कभी कभी जाया करता था कुछ सीखने को मिले समझने को मिलता था। वे बोले कि मैंने 20 Fiat गाडि़यां बर्बाद कीं Carriage-carrier में। जो भी कमाता था, तो बोले जंगलों में चला जाता था। कच्‍चे रास्‍तों पर चला जाता था और कहीं कोई मूर्ति हो, पत्‍थर हो, तो कोई पुराना पुरातत्‍व का कोई खंडहर हो तो वहां चला जाता था। एक व्यक्ति का Individual collection site किसी सरकार से बड़ा था।

उन्‍होंने मुझे एक दिन अपनी slide दिखाई और मैं हैरान था कि वो slide एक पत्‍थर मूर्ति की Slide थी। आठ सौ साल पुरानी वो मूर्ति थी । कार्बन रेटिंग हुआ था और उसमें एक गर्भवती महिला की एक मूर्ति थी और आधे part में उसके पेट को काट करके एक मूर्ति बनाई गई थी और पेट काट करके बच्‍चा पेट में किस रूप में है, चमड़ी के कितने layers हैं, वो सारा पत्‍थर पर अंकित था। आठ सौ साल पहले पत्‍थर तराशने वाले को पता था कि गर्भ के अन्‍दर बच्‍चा कैसे, किस Position में होता है। चमड़ी के layer कितने होते हैं। आप कल्‍पना कर सकते हो ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने क्‍या कुछ नहीं किया होगा?

लेकिन इस बात को पहुंचाने के लिए, हम एक ऐसे गुलामी के कालखंड से जीवित रहे जैसे हमारा सब बेकार है, हमारा सब बेकार है, जब तक हम ये मानसिकता नहीं बदलेंगे हम हमारे Tourism को बढ़ावा नहीं दे सकते। हमारे पास है, उसके प्रति हमारा गर्व होना चाहिए, अभिमान होना चाहिए। एक बार यह होगा, तो फिर चीजें चलेंगी।

अब आप देखिये, मैं गुजरात का हूं, इसलिए वहां की बात याद आना स्‍वाभाविक है। लोथल, लोथल अहमदाबाद से 80 किलोमीटर एक जगह है। लोथल आपने शायद पढ़ा होगा, याद होगा थोड़ा बहुत आज जाकर के गूगल गुरु से पूछ लीजिए वो बता देगा। पांच हजार साल पुराना Port और Archaeology excavation में सारी चीजें निकलेंगी और वो कहते हैं 84 Countries उसके झंडे वहां लहराते थे। मतलब 84 Countries के साथ, पांच हजार साल पहले उसका व्‍यापार था और दूसरी विशेषता देखिए कि नालंदा, तक्षशिला यूनिवर्सिटी की चर्चा हम जो करते हैं, उसी कालखंड में इतिहास में एक वल्लभी यूनिवर्सिटी की चर्चा होती है। वो वल्लभी यूनिवर्सिटी लोथल से 50 किलोमीटर दूरी पर थी, तात्‍पर्य ये था कि हमारे पूर्वजों को पता था विश्‍व के बच्‍चों को पढ़ने-लिखने के लिए आना है। तो एक पोर्ट चाहिए लोथल और पोर्ट के नजदीक में ही यूनिवर्सिटी चाहिए और अनेक देशों के बच्‍चे वहां पढ़ते थे।

ये सारी बातें आप भी सुनते हैं आपका भी सीना तन जाता होगा कि वाह मैं उस देश का रहने वाला हूं। ये जो गर्व की अनुभूति होती है, वो हमारे सर्विस सेक्‍टर में बल दे सकती है और ये काम हिन्‍दुस्‍तान का नागरिक जितना करेगा उससे ज्‍यादा हिन्‍दुस्‍तान से बाहर गया हुआ करेगा। लेकिन बाहर जाने के बाद, छोड़ो यार! ये तो देश ही है ऐसा। हम ही अपनी मजाक उड़ाएंगे, तो अपने देश का गर्व कभी बढ़ता नहीं है। ये भाव हमारे में पैदा हो तो मुझे विश्‍वास है।

और तीसरा जिस पर मैं बल देना चाहता हूं Manufacturing sector. भारत के पास Manufacturing hub बनने के लिए सब कुछ है। दुनिया में सबसे युवा देश है भारत। विश्‍व का सबसे नौजवान देश। 35 से नीचे भारत की 65 percent population है। और सारी दुनिया बुढ़ापे की आगे बढ़ रही है। ageing बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और भारत जवान होता चला जा रहा है। आने वाले दिनों में average और बढ़ने वाली है। 25 से नीचे की संख्‍या बढ़ने वाली है। अब कभी हमें ये संकट लगता था आज वो सामर्थ्‍य बन गया है। अगर इन नौजवानों के हाथ में हुनर हो, skill हो, manufacturing के लिए बहुत बड़ा अवसर होगा और भारत एक ऐसा manufacturing hub बनें जहां Low cost manufacturing हो।

“Zero Defect-Zero effect” manufacturing हो। “Zero Defect-Zero effect” manufacturing मैं इसलिए कह रहा हूं क्योकि अगर globally competitive होना है तो आपकी हर चीज “zero defect” की होनी चाहिए और सिर्फ product नहीं packaging भी। अगर आपने लिखा है कि 220gm है, तो it must be 220gm. आखिकर credibility है, जो दुनिया में ताकत देती है और इसलिए zero defect के साथ हम manufacturing के sector में globally Competitive अपने आपको कैसे बनाएं और “zero effect”, environment पर इसका कोई असर न हो। उस प्रकार के process को हमें स्‍वीकार करना होगा। क्‍योंकि global warming, climate change ये जो सारी दुनिया चिंता कर रही है। उस समस्‍या से निकलने का रास्‍ता हिन्‍दुस्‍तान ही दिखा सकता है। हमारा काम है कि हम ये जो demographic dividend हमारे पास है, हम skill development करें, manufacturing hub बनें और आज हम दुनिया की कंपनियों को हम आ‍कर्षित करें और ये हम मान के चलें कि low cost manufacturing की ताकत हम लोगों की जितनी है शायद दुनिया में किसी की नहीं है।

Hollywood की फिल्‍म का बनाने का जितना खर्चा होता है, उससे कम खर्चें में हिन्‍दुस्‍तान के नौजवान Mars Mission को पार कर लेते हैं। मंगलयान! अब मुंबई हो, पुणे हो, अहमदाबाद हो, दिल्‍ली हो, लखनऊ हो, एक किलोमीटर का ऑटो रिक्‍शा जाना है तो खर्चा दस रूपये लगता है। हमें mars पर मंगलायन में एक किलोमीटर का सात रूपये खर्चा लगा है। कहने का तात्‍पर्य है कि ये ताकत हमारे देश के talent में है। हम दुनिया को समझा सकते हैं कि low cost manufacturing के लिए India is the best destination और इसलिए हम foreign direct investment चाहते हैं, manufacturing के sector में चाहते हैं। डिफेंस manufacturing, यहां इतने नौजवान हैं कई कंपनियों में काम कर रहे हैं, आपके पास सब कुछ है।

आज भी भारत को रोने के लिए विदेशों पर depend रहना पड़ता है। जब आंदोलन होते हैं, agitation जो tear gas छोड़ा जाता है वो tear gas बाहर से आता है। मैं घर में बैठकर बात कर रहा हूं, ऐसा नहीं कि हमारे पास ताकत नहीं है, अब आता तो है लेकिन कौन मेहनत करें। जी अब आता है, तो कौन मेहनत करे! इस मिजाज को मुझे बदलना है। हम खुद क्‍यों न बनाएं और इसलिए मेरे लिए manufacturing hub बनाना ये सिर्फ आर्थिक कार्यक्रम नहीं है, यह एक स्‍वाभिमान का आंदोलन भी है। आप मुझे बताइये आप अपने पड़ोसी से बार-बार कोई चीज लानी पड़े, तो आप कैसा महसूस कैसा feel करते हो। अपने यहां पुराने जमाने में गांव में रहते हैं तो कभी मेहमान आ गये, तो चीनी लानी है, तो पड़ोसी के घर से एक कटोरी में चीनी ले आते हैं। लेकिन कैसे लाते हैं, साड़ी के नीचे रखकर ले आते हैं इसलिए कि कहीं कोई देख न ले, क्‍यों स्‍वाभिमा!। मन में एक रहता है ठीक है कि चीनी नहीं है मेहमान अचानक आ गये तो चीनी लानी पड़ी। पड़ोस वाला कोई किसी को कहता नहीं था कि देखो मेहमान उसके यहां आते हैं और चीनी मेरे यहां से ले जाते हैं। ऐसा कोई नहीं करता है। कोई नहीं करता, लेकिन स्‍वाभिमान की चिंता रहती है कि ऐसे करके साड़ी में लपेट करके ले आएंगे। भारत भी बाहर से लाते समय, हमारे एक स्‍वाभिमान का issue होना चाहिए। अब मेरा देश दुनिया को देने वाला देश बनेगा, लेने वाला नहीं रहेगा ये दिमाग। और भारत के नौजवानों में ये ताकत है। हमें उन्‍हें अवसर देना है।

अब विकास की तीन चीज जो मैंने आपके सामने रखीं, सरकार के उस दिशा में कदम उठाए। दस महीने के भीतर-भीतर ढ़ेर सारे कदम उठाएं हैं। तेज गति से देश आगे बढ़ रहा है। पिछले दस साल, मैं एक थोड़ा सैम्‍पल देता हूं, दस साल का average था प्रति यानि per day 2km road बन रहा था। दस महीने का average है, per day 11 किलोमीटर road बनता है। काम करने वाली सरकार का क्‍या मतलब होता है? ये होता है।

हर चीज में, अब रेलवे आप कल्‍पना कर सकते हैं रेलवे के विकास की कितनी बड़ी संभावना है। अब लोगों को लगता होगा कि मोदी जर्मनी गये तो क्या करते होंगे? मुझे मालूम नहीं है कि दुनिया के लोग मुझसे क्‍या अपेक्षा करते होंगे? हिन्‍दुस्‍तान में हमारे मीडिया वालों की अलग अपेक्षा रहती है। मैं कल Berlin का रेलवे स्‍टेशन देखने जाने वाला हूं, खैर कोई हिन्‍दुस्‍तान का कोई ऐसा आदमी आया होगा जो स्‍टेशन देखने जाए, मैं आया हूं इसलिए कि मेरे मन में है हिन्‍दुस्‍तान में रेलवे स्‍टेशन की शक्‍ल बदलनी है। आज हमारे शहरों में heart of the city में railway station हैं। आप दिल्‍ली जाइए, लखनऊ जाइये कानपुर जाइये नागपुर जाइये कहीं पर जाइये। और महंगा land लैंड है और भारत में रेलवे प्‍लेटफार्म ही रेलवे स्‍टेशन नहीं होता है और गांव में 20 किलोमीटर रेल चलती है और सोई पड़ी हैं। दिन में दो बार ट्रेन जाती है। बाकी क्‍यों नहीं। क्‍या ऊपर बहुत बड़ा एक नया 20 किलोमीटर लंबा रेल की पटरियों पर शहर खड़ा नहीं हो सकता है क्‍या? स्‍टेशन आधुनिक नहीं बन सकते हैं क्‍या? दस मंजिला रेलवे स्‍टेशन नहीं हो सकते हैं क्‍या? नीचे ट्रेन चलती रहे और ऊपर 50 काम हो सकते हैं जी! विकास कैसे करना है इंफ्रास्‍टक्‍चर कैसे बदलाव करना है। रेलवे पूरा, हमारे दो शहरो को जोड़ने वाली जो ट्रेन है उसकी स्‍पीड को क्‍यों न बढ़ाया जाए। अगर अहमदाबाद से आये, अगर दिल्‍ली से अमृतसर जाना है, तो दिल्‍ली से चंडीगढ़ जाना है, दिल्‍ली से आगरा जाना है, High speed rail बन सकती है। ठीक हैं आज हम दुनिया में जो 300 किलोमीटर speed है वो नहीं होगी। लेकिन अगर हम 60 पर चलते हैं तो 120 तो हो सकते हैं जी। मेरी कोशिश यह है कि अनेक संभावनाओं को आगे बढ़ाना है और जितना हम आगे बढ़ाएंगे । देश नई ऊंचाईयों के द्वारा उससे हमें परिणाम मिलने वाला है।

पूरी दुनिया global warming के लिए चिंता करती है। अब यहां बैठ गये होंगे तो इस बात करने का बड़ा मजा आता होगा। तो मैं आज आपका खास क्‍लास लेना चाहता हूं ताकि अब आप दुनिया को समझा सको हम कौन लोग हैं। पता नहीं सारी दुनिया climate के संबंध में हमें गालियां देती रहती है। बर्बाद करने वाले लोग हमारा जवाब मांग रहे हैं। अगर प्रकृति की सबसे ज्‍यादा सेवा किसी ने की है तो भारतीय समाज ने की है। हम वो लोग है जो नदी को भी मां कहते हैं। पौधे को परमात्‍मा कहते हैं। छोड़ में रण छोड़ ये हम कहते हैं। और हमें ये दुनिया समझा रही है कि ये करो वो न करो भारत ने अपनी भूमिका स्‍पष्‍ट करनी चाहिए। दुनिया के सामने आज विश्‍व जिस संकट से गुजर रहा है। उस समस्‍या का समाधान हमारे सांस्‍कृतिक मूल्‍यों में है। हमारे जीवन के आदर्शों में जुड़ा हुआ है। ये विश्‍वास के साथ जाना चाहिए और ये भारतीय समाज से सर्वाधिक अपेक्षा है।

हमारे यहां महिलाएं जितना व्रत करतीं हैं, हिन्‍दुस्‍तान में सारे व्रत देख लीजिए प्रकृति की पूजा होती है वो। प्रकृति का सम्‍मान करना ये हमारे यहां संस्‍कार में होता है। हमारे यहां बच्‍चा बालक बिस्तर से नीचे उतरता है तो मां उसको सिखाती है कि पहले पृथ्‍वी माता से क्षमा मांगो। अपना पैर रखने से पहले, मैं मां तुझे दुखी कर रहा हूं मैं अपना पैर रख रहा हूं मां पहले पृथ्‍वी माता को प्रणाम करो फिर पैर रखो। ये हमारे संस्‍कृति और संस्‍कार में है। जिस समाज ने इसे संजोया हुआ है, आज विश्‍व को हिसाब देना पड़ रहा है। सूर्य के सात घोड़ों के रथ की कल्‍पना, सूर्य को शक्ति रूप में मानना हमारे यहां माना गया है।

जगदीश चन्‍द्र ने वनस्‍पति में जीवन होता है। ये कहा उसके बाद वनस्‍पति में जीवन आया ये नहीं है हम हजारों साल से पौधे में परमात्‍मा है, ये हम देखने वाले लोग हैं। कहने का तात्‍पर्य है इस विषय में हमारी अपनी mastery है हमारा सामर्थ्‍य है। हम दुनिया के जवाबदेह लोग नहीं है। दुनिया का जवाब हमने मांगना चाहिए कि आप हैं जिन्‍होंने प्रकृति को तबाह किया है। हम वो लोग हैं जो Milking of nature को मानते हैं, exploitation of nature उसे हम crime मानते हैं और इसलिए दुनिया जिन संकटों से गुजर रही है। उसके सामने हमारा तात्विक ताकत है खड़े रहने की, लेकिन जो समस्‍या है उसका समाधान भी ढूंढना पड़ेगा।

भारत ने एक बहुत बड़ा initiative लिया है Renewable energy का। जर्मनी आज इसमें एक model है। खासकर करके solar energy में। भारत ने 175 MW renewable energy का target तय किया है। भारत में giga-watt शब्‍द पहली बार आया है। हम मेगावॉट के ऊपर सोच नहीं पाते थे। पहली बार दस महीने में मेगावॉट से गीगावॉट सोचना तो शुरू कर दिया है। इतना काम तो कर लिया है। 175 गीगावॉट, उसमें से 100 giga-watt सोलर एनर्जी और 75 wind energy तथा biomass energy.....इन चीजों पर बल देना चाहिए। क्‍यों न जर्मनी की कम्‍पनियों को जो कि इस field में हैं, हमारे साथ आयें, manufacturing sector में हमारे लोग क्‍यों न आए? इतना बड़ा scope है वहां बिजनेस का, हम solar panel manufacturing की दिशा में क्‍यों न जाए? हम solar को और cheap करने के लिए innovation कैसे लाए? यहां जर्मनी में रहने वाले लोगों को इसका experience है। आप अपने-अपने experience को हिन्‍दुस्‍तान के साथ साझा कीजिए और स्‍पष्‍ट एरिया है काम करने के लिए कोई बाहर से ढूंढने जाना पड़े ऐसा नहीं है हम इसका फायदा कैसे उठाए?

मैं समझता हूं कि ग्‍लोबल वार्मिंग की समस्या से भी हम लड़ सकते हैं...आजकल हम सुनते है reuse and recycling. मैं समझता हूं कि हमारे यहां हमारे DNA में reuse and recycling , हमारे DNA में है लेकिन दुनिया हमको पढ़ा रही है, आपने देखा होगा अपने यहां गांव में घर में दादी मां रहती है, कपड़े पुराने हो जाएं तो उसमें से ओढ़ने के लिए रजाई बना लेती थी, वो reuse हुआ कि नहीं हुआ? अच्‍छा वो भी फट जाएं तो फिर उसमें से कपड़ों को खोल करके झाडू–पोचा करने के लिए उपयोग करती थी। हुआ कि नहीं हुआ? यानी एक चीज़ का कितना उपयोग करना वो हमारे लोगों की बड़ी expertise थी अब आज reuse and recycling शब्‍द ये हमको बाहर से सुनने पड़ रहे है।

आप देखिए हिन्‍दुस्‍तान के जीवन में परम्‍परागत रूप से reuse and recycling ये हमारी सहज प्रकृति थी। मां भी जब बच्‍चा बड़ा होता था, 12-13 साल का होता था, कपड़े ठीक नहीं होते, वो कपड़े संभाल करके रख देती थी, क्‍यों दूसरे वाले के काम आएंगे और इसके लिए अखबारों में कोई article नहीं छपा था कोई 24 घंटे के टीवी चैनल पर कार्यक्रम नहीं आया था कि ऐसा करो-वैसा करो। किसी ने सिखाया नहीं था ये सहज प्रकृति थी।

लेकिन मैं हैरान हूं हमने अपनी बात दुनिया के सामने सीना तान करके रखी नहीं और विश्‍व हमको डांटता रहा कि carbon emission कम करो, carbon emission कम करो जबकि पूरे विश्‍व में per capita देखा जाए तो हम lowest हैं। फिर भी जवाब हम से मांगा जा रहा है। हम विश्‍वास के साथ खड़े हो जाएं तो climate , global warming इन सारे विषयों को हम दुनिया को रास्‍ता दिखा सके उस ताकत के साथ हम आगे बढ़ना चाहते है।

CoP -21 की मीटिंग अक्‍तूबर में फ्रांस में होने वाली है, सारी दुनिया का ध्‍यान है लेकिन हम उसका एजेंडा set करेंगे। मैं आपको विश्‍वास दिलाने आया हूं भारत एजेंडा set करेगा। और हमारे मूल्‍यों के निशान पर करेंगे हमने दुनिया को दिया है। हम दुनिया से लेने वाले लोग नहीं हैं, हम, ''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।, इन आदर्शों से पैदा हुयीसंस्कृति हैं।

Eat-Drink and Remarry ये परम्‍परा हमारी नहीं है। हमारी परम्‍परा है

''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वायवो वान्ति सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्॥“

जिस परम्‍परा से हम लोग निकले हुए है हम दुनिया को देने के लिए पैदा हुए है हमारे हजारों साल का इतिहास रहा है। इस विश्‍वास के साथ भारत एक नई ऊंचाईयों को पार करें।

और मैं मानता हूं जर्मनी एक ऐसा देश है जिसने भारत को सही स्‍वरूप में विश्‍व के सामने प्रस्‍तुत करने का अभिरत प्रयास किया है और इसके लिए हमें जर्मनी का रिण स्‍वीकार करना चाहिए उनका पब्लिकली थैंक्‍स कहना चाहिए। Maxmuller से ले करके कितने ही महापुरूष देखें है.....एक जमाना था यहां पर रेडियो न्‍यूज संस्‍कृत में हुआ करते थे, जबकि भारत में नहीं होते थे क्‍योंकि वहां पता नहीं वो secularism का ऐसा तूफान खड़ा हुआ है कि उनको संस्‍कृति सुनने में भी secularism खतरे में पड़ जाता है। भारत का सेक्‍युलिजम इतना कच्‍चा नहीं है कि कोई भाषा के कारण वो हिल जाए। गहरी चट्टानों पर खड़ा हुआ हमारा सर्वपंथ-सर्वभाव का,

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।

इस महान आदर्शों को ले करके हम चले हुए लोग हैं वो इसे हिलने वाले लोग नहीं है। हमारा आत्‍मविश्‍वास हिला हुआ नहीं होना चाहिए, उसमें हमें दम होना चाहिए मैं इसी विश्‍वास के साथ आधार पर कहता हूं सवा सौ करोड़ का देश 1/6 population of the world. हम अच्‍छा करेंगे दुनिया का अपने आप अच्‍छा हो जाएगा।

इसी एक भावना के साथ भारत आगे बढ़े, उस दिशा में प्रयास आगे चल रहा है। आप सबसे मिलने का अवसर मिला मुझे खुशी हुई मेरी आप सबको बहुत शुभकामनाएं है आप बहुत प्रगति करें भारत का नाम आप जहां भी हो रोशन करें और मैं आपको एक विश्‍वास दिलाता हूं आपका पासपोर्ट का रंग शायद बदल गया होगा, लेकिन पासपोर्ट के रंग बदलने से हमारे रिश्‍तों के ताने-बाने को कोई असर नहीं होता है। ये आप विश्‍वास कीजिए। हिन्‍दुस्‍तान हमेशा-हमेशा आपका है, आपके लिए है और हो सकता है कि आपके आने वाले योजनाओं के तहत वो आपके बदोलत भी बन जाए।

मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं। धन्यवाद।

Explore More
140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day

Popular Speeches

140 crore Indians have taken a collective resolve to build a Viksit Bharat: PM Modi on Independence Day
LIC outperforms private peers in new premium mop-up in August

Media Coverage

LIC outperforms private peers in new premium mop-up in August
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The responsibility of preparing today’s youth for Viksit Bharat rests in the hands of teachers: PM Modi
September 06, 2024
Awardees share their teaching experience with PM and innovative techniques adopted by them to make learning more interesting
The responsibility of preparing today’s youth for Viksit Bharat rests in the hands of teachers: PM
PM discusses the impact of NEP and speaks about the significance of attaining education in one’s mother tongue
PM suggests teachers to teach local folklore to students in different languages to help them get introduced to different languages
PM asks teachers to share their best practices with each other
Teachers can take students on educational tours to explore India's diversity: PM

शिक्षक - माननीय प्रधानमंत्री महोदय, नमो नमः अहम आशा रानी 12 उच्च विद्यालय, चंदन कहरी बोकारो झारखंड त: (संस्कृत में)

महोदय, एक संस्कृत शिक्षिका होने के नाते मेरा यह सपना था कि मैं बच्चों को भारत की उस संस्कृति से अवगत कराऊं जो हमारे उन समस्त संस्कारों का बोध कराती है जिनके माध्यम से हम अपने मूल्यों जीवन आदर्शों का निर्धारण करते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने बच्चों की रुचि संस्कृत में उत्पन्न कर इसे नैतिक शिक्षा का आधार बनाया और विभिन्न श्लोकों के माध्यम से बच्चों को जीवन मूल्यों को सिखाने का प्रयास किया।

प्रधानमंत्री जी – आपने कभी सोचा कि जब आप संस्कृत भाषा के प्रति उनको आकर्षित करते हैं। उसके द्वारा उसको एक ज्ञान के भंडार की तरफ ले जाता है। ये हमारे देश में पढ़ा हुआ है। क्या कभी इन बच्चों को Vedic mathematic क्या है? तो एक संस्कृत टीचर के नाते या कभी आपके टीचर्स कमरे में टीचर्स के बीच में Vedic Mathematic क्या है? कभी चर्चा हुई होगी।

शिक्षक – नहीं महोदय, इसके बारे में स्वयं।

प्रधानमंत्री जी - नहीं हुई, आप कभी कोशिश कीजिए, ताकि क्या होगा अगर आप सबको भी काम आ सकता है। Online Vedic Mathematic की classes भी चलते हैं। यूके में तो already कुछ जगह पर syllabus में है Vedic Mathematic. जिन बच्चों को maths में रुचि नहीं होती है, वो अगर ये थोड़ा सा भी देखेंगे तो उनको लगेगा ये magic है। एक दम से उसका मन कर जाता है सीखने का। तो वो संस्कृत से हमारे देश के जितने भी विषय हैं, उसे उनमें से कुछ तो भी परिचित करवाना वैसा कभी आप कोशिश करें तो।

शिक्षक – मैं ये बहुत अच्छी आपने बताया महोदय, मैं जाकर बताऊंगी।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं हैं आपको।

शिक्षक – धन्यवाद।

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी जी सादर प्रणाम। मैं कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से, कोल्हापूर से वही जिला राजर्षि शाहू जी की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी – ये गला आपका यहां आकर के खराब हुआ कि वैसे ही है।

शिक्षक – नहीं सर आवाज ही ऐसी है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा आवाज ही ऐसी है।

शिक्षक – जी, तो कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से। समालविया स्कूल में कला शिक्षक हूं। कोल्हापूर वही है राजर्षी शाहू की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी - यानी कला में क्या?

शिक्षक – कला में मैं चित्र, नृत्य, नाट्य, संगीत, गीत वादन, शिल्प सभी सिखाता हूं।

प्रधानमंत्री जी – वो तो दिखता है।

शिक्षक – तो मैं प्रायत ऐसा होता है कि बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों के वर्जिन्स सभी तरफ चलते आते हैं तो मेरे स्कूल में मैंने, मैं जब से वहां पर हू 23 साल से मैंने जो अपनी भारतीय संस्कृति है और लोक नृत्य और जो हमारी शास्त्रीय नृत्य उसके आधार पर ही रचना की है। मैंने शिव तांडव स्तोत्र किया है। और वो भी बड़ी तादाद में मैं करता हूं 300-300, 200 लड़कों को लेके, जिसके लिए विश्वक्रम भी हुए हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर भी मैंने किया है वो भी विश्वक्रम में दर्ज हुआ था और मैं शिव तांडव किया है मैंने देवी का हनुमान चालीसा किया है, देवी के रूप का दर्शन किया है तो इस सब तरीके से मैं अपने नृत्य की वजह से

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप तो करते होंगे।

शिक्षक – मैं खुद भी करता हूं और मेरे बच्चे भी करते हैं।

प्रधानमंत्री जी – नहीं वो तो करते होंगे। लेकिन जिन स्टूडेंट्स के लिए आपकी जिंदगी है। उनके लिए क्या करते हैं?

शिक्षक – वही सब करते हैं सर!

प्रधानमंत्री जी – वो क्या करते हैं?

शिक्षक – 300-300, 400 बच्चे एक नृत्य आविष्कार में काम करते हैं। और सिर्फ मेरे स्कूल के ही बच्चे नहीं। मेरे आजू बाजू में slum area है, कुछ सेक्स वर्कर के बच्चे, कुछ व्हील चेयर वाले बच्चे, उनको भी मैं as a Guest Artist के तौर पर लेता हूं।

प्रधानमंत्री जी - लेकिन उन बच्चों को तो आज सिनेमा वाले गीत पसंद आते होंगे।

शिक्षक – जी सर लेकिन मैं उनको बताता हू कि लोकनृत्य में क्या जान है और मेरी, मेरा ये सौभाग्य है कि बच्चे मेरी बात सुनते हैं।

प्रधानमंत्री जी – सुनते हैं

शिक्षक – जी, 10 साल से मैं ये सब कर रहा हूं।

प्रधानमंत्री जी – अब टीचर की नहीं सुनेगा तो बच्चा जाएगा कहां? कितना साल से आप कर रहे हैं?

शिक्षक – Totally मेरे 30 साल हो गए सर।

प्रधानमंत्री जी – बच्चे को जब पढ़ाते हैं और नृत्य के माध्यम से कला तो सिखाते ही होंगे लेकिन उसमे कोई मैसेजिंग देते हो आप? वो क्या देते हो आप?

शिक्षक – जी सामाजिक मैसेज पर मैं बनाता हूं। जैसे कि मैं drunk & drive जो होता है उसके लिए मैं नृत्य नाट्य बिठाया था कि जिसको मैंने प्रदर्शन पूरे शहर में करवाया था। As a पथ नाट्य के स्वरूप में। जैसे ही मैंने दूसरी बार बताया की स्पर्श नाम की एक शॉर्ट फिल्म बनवाई थी। जिसकी पूरी टेक्निकल टीम मेरी स्टूडेंट्स थी।

प्रधानमंत्री जी – तो ये दो दिन से तीन दिन से आप लोग सब जगह पर आपका जाना होता होगा, थक गए होंगे आप लोग। कभी इसके घर, कभी उसके घर, कभी उसके घर ऐसे ही चलता होगा। तो इनसे कोई विशेष परिचय कर लिया क्या आप लोगों ने? कोई लाभ लिया कि नहीं किसी ने?

शिक्षक – जी हैं सर बहुत सारे लोग ऐसे हैं mostly जो higher से हैं वो लोगों ने बोला था कि सर अगर हम आपको बुलाएंगे तो आप हमारे कॉलेज आएंगे।

प्रधानमंत्री जी – मतलब आपने आगे का तय कर लिया है। मतलब आप commercially भी करते हैं कार्यक्रम।

शिक्षक - commercially भी करता हूं लेकिन उसका

प्रधानमंत्री जी – फिर तो आपको बहुत बड़ा मार्केट मिल गया है।

शिक्षक – नहीं सर उसकी भी एक बात बताना चाहूंगा, commercially में जो भी काम करता हूं। मैंने फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ किया है लेकिन मैंने 11 अनाथ बच्चे गोद लिए हुए हैं। मैं उनके लिए commercially काम करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – उनके लिए क्या काम करते हैं आप?

शिक्षक – वो अनाथ आश्रम में थे और उनके लिए कला .......थे तो अनाथ आश्रम की एक पहल होती है कि 10वी के बाद उसको आईटीआई में डाल दो। तो मैंने वो धारणा तोड़ने की कोशिश की तो उन्होंने बोला की नहीं हम लोगों को इसको allow नहीं करते हम लोग। तो मैंने उनको बाहर ले लिया, एक रूम में रख लिया। जैसे – जैसे बच्चे बड़े होते रहे वहां पर आकर। उनकी शिक्षा की, उसमे से दो कला शिक्षक करके काम कर रहे हैं। दो लोग हैं वो नृत्य शिक्षक करके गवर्नमेंट स्कूल में लग गए। मतलब सीबीएसई।

प्रधानमंत्री जी – तो जो ये बढ़िया आप काम करते हैं। ये आखिर में बताते हैं ऐसे कैसे हुआ। ये बहुत बड़ा काम है कि आपके मन में उन बच्चों के प्रति संवेदना जगना और किसी ने छोड़ दिया मैं नहीं छोडूंगा और आपने उनको गोद लिया ये बहुत काम किया है आपने।

शिक्षक – सर इस बात का मेरे जीवन से ताल्लुक है। मैं खुद अनाथालय से हूं। तो इसलिए मुझे लगता है कि जो मुझे नहीं मिला था तो मेरे पास तभी कुछ नहीं था और मेरे संचित के पास से अगर मैं वंचित के लिए कुछ करूं तो ये मेरा परम सौभाग्य है।

प्रधानमंत्री जी – चलिए आपने सिर्फ कला को ही नहीं आपने जीवन को संस्कारों से जिया है। बहुत बड़ी बात है ये।

शिक्षक – जी धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – तो सचमुच में नाम आपका सागर सही है।

शिक्षक – जी सर आपसे सौभाग्य हो आपसे बात करने का ये मेरे सौभाग्य की बात है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बहुत शुभकामनाएं भईया।

शिक्षक – Thank You Sir.

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते जी

शिक्षक – मैं डॉ. अविनाशा शर्मा हरियाणा शिक्षा विभाग में बतोर अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में काम कर रही हूं। माननीय, हरियाणा के जो वंचित समाज के बच्चे हैं। जो ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं जहां अंग्रेजी भाषा उनके लिए सुनना और समझना थोड़ा मुश्किल होता है। उसके लिए मैंने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया है। ये भाषा की प्रयोगशाला न सिर्फ भाषा अंग्रेजी भाषा के लिए तैयार की गई है। बल्कि क्षेत्रीय भाषाएं और मातृभाषा दोनों का ही इसमे समावेश किया गया है। महोदय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 Artificial Intelligence और machine learning के जरिये बच्चों को पढ़ाने के लिए बढ़ावा देती है। इन पहलुओं को देखते हुए मैंने इस भाषा प्रयोगशाला में Artificial Intelligence का भी समावेश किया है। जैसे Generative tools Artificial Intelligence के हैं speakomether और talkpal. उनके जरिये भाषा के शुद्ध उच्चारण बच्चे को सीखते और समझते हैं। मुझे बहुत खुशी हो रही है आपसे साझा करते हुए महोदय। कि मैंने अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व UNESCO, UNICEF, Indonesia और Uzbekistan जैसे क्षेत्रों में देशों में किया और उसका प्रभाव मेरी क्लास रूप तक पहुंचा। आज हरियाणा का एक सरकारी स्कूल ग्लोबल क्लासरूम बन गया है और उसके जरिये बच्चें Indonesia में Columbia University में बैठे हुए Professors और Students के साथ बातचीत करते हैं और अपने अनुभव को साझा करते हैं I

प्रधानमंत्री जी – थोड़ा अनुभव बताएंगे, किस प्रकार से करते हैं आप बाकियों को भी पता चले?

शिक्षक – सर Microsoft Scarpthen एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जिसको मैंने अपने बच्चों से introduce कराया है। Columbia University के Professor’s के साथ बच्चे जब बातचीत करते हैं। उनके कल्चर, उनकी language जो रोजमर्रा में काम आने वाली चीजें हैं, जिस तरह वो अपने academic’s को enhance करते हैं। वो चीजें हमारे बच्चे सीख पा रहे हैं। बहुत खुबसूरत सा मैं एक अनुभव शेयर करना चाहूंगी सर मैं आपसे। मैं जब Uzbekistan गई, तो वहां से जो अनुभव मैंने अपने बच्चों से शेयर किया तो उनको ये समझ में आया कि जिस तरीके से अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है ठीक उसी तरह से उज्बेकिस्तान के लोग अपनी मातृभाषा उज्बेक में बात करते हैं। Russian उनकी Official Language है, राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है तो वो अपने आपको इस विश्व से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अंग्रेजी उनके लिए सिर्फ एक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रह गई है। उनको ये रूचि बढ़ने लग गई है इस भाषा में क्योंकि अब ये नहीं है कि विदेशों में ही अंग्रेजी बोली जाती है। और ये उनके लिए बहुत सहज है। ये उनके लिए उतनी ही challenging है, चुनौतीपूर्ण है जितनी हमारे भारतीय बच्चों के लिए हो सकती है।

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप बच्चों को दुनिया दिखा रही हैं अच्छी बात है लेकिन देश भी दिखा रही हैं क्या?

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – तो हमारे देश की कुछ चीजें जो उनको अंग्रेजी सीखने का जानने का मन कर जाए ऐसा कुछ

शिक्षक – सर मैंने इस प्रयोगशाला में भाषा कौशल विकास पर काम किया है। तो अंग्रेजी भाषा तो एक पाठ्यक्रम की भाषा रही है। But भाषा सीखी कैसे जाती है। क्योंकि मेरे पास जो बच्चे आ रहे हैं वो हरियाणवी परिवेश के हैं। अगर मैं रोहतक में बैठे हुए बच्चे से बात करूं वो नूह में बैठे हुए बच्चे से बिल्कुल different भाषा में बात करता है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा हम जैसे घर में, हमारे पास टेलीफोन पुराने जमाने में वो जो रहता था।

शिक्षक – हां जी।

प्रधानमंत्री जी – डिब्बा वो फोन है। और हमारे घर में कोई गरीब परिवार की कोई महिला घर काम के लिए यहां आती जाती है। इतने में घंटी बजी और वो टेलीफोन उठाती है। वो उठाते ही बोलती है हेलो, वो कैसे सीखी वो?

शिक्षक – यही भाषा का कौशल विकास सर बताया। भाषा सुनने पर और उसका प्रयोग करने पर आती है।

प्रधानमंत्री जी – और इसलिए सचमुच में Language बोलचाल से बहुत जल्दी सीखी जा सकती है। मुझे याद है मैं जब गुजरात में था तो नडियात में मेरे यहां एक महाराष्ट्र का परिवार नौकरी के लिए, वो प्रोफेसर थे नौकरी के लिए आए। उनके साथ उनकी वृद्ध माता जी थीं। अब ये महाशय पूरे दिन भर स्कूल कॉलेजों में रहते थे लेकिन Language में जीरो रहे वो छह महीने के बाद भी। और उनकी माताजी कुछ पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन वो धनाधन गुजराती बोलना शुरू कर दिया। तो मैं एक बार उनके यहां भोजन के लिए गया मैंने पूछा ये नहीं बोली हमारे घर में जो काम वाली है ना उसको और कुछ आता नहीं तो बोली मुझे सीख गया। बोलचाल से सीखा जाता है।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – अब मुझे बराबर याद है मैं जब छोटा था तो मेरे स्कूल में जो टीचर थे। वो थोड़े strict भी थे। और हमें strictness थोड़ी तकलीफ करती थी। लेकिन उन्होंने राजाजी ने जो रामायण, महाभारत लिखी है। तो उसमें से जो रामायण की जो बहुत परिचित वार्ता तो सबको परिचित होती है। तो बड़ा आग्रह करते थे कि राजाजी ने जो रामायण लिखी है। उसको थोड़ा धीरे-धीरे पढ़ना शुरू करो। कथा पता था भाषा पता नहीं थी। लेकिन बहुत जल्दी coordinate करते थे। एक दो शब्द समझ गए तो भी लगता था कि हां ये कहीं सीता माता की कोई चर्चा कर रहे हैं।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए, बहुत बढ़िया।

शिक्षक – Thank You Sir, Thank You.

प्रधानमंत्री जी – हर हर महादेव,

शिक्षक – हर हर महादेव,

प्रधानमंत्री जी – काशी वालों को हर हर महादेव से ही दिन शुरू होता है।

शिक्षक – सर मैं आज आपसे मिलकर बहुत खुश हूं सर। सर मैं कृषि विज्ञान संस्थान में पौधे की रोग के ऊपर मेरा शोध है और उसमे मेरा सबसे बड़ा प्रयास ये है कि जो हम लोग sustainable agriculture की बात करते हैं। वो जमीनी स्तर पर अभी वो उतरे नहीं है पूरे अच्छे से। मेरा इसलिए प्रयास ये है कि हम किसानों को ऐसे तकनीक को हाथ पकड़ाएं जो आसान हो और उसकी अभूतपूर्व परिणाम खेतों में दिखें। और मुझे लगता है इस प्रयास में हमको बच्चों Student’s मेरा और महिलाओं की भागीदारी अहम है। और इसलिए मेरा प्रयास ये है कि मैं स्टूडेंटस के साथ गांव में जाता हूं और किसानों के साथ मैं महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रयास कराता हूं। ताकि ये छोटी-छोटी जो Techniques हम लोग develop किए हैं। उससे sustainability की तरफ हम कदम बढ़ाते हैं। और इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है।

प्रधानमंत्री जी – कुछ बता सकते हैं क्या किया है?

शिक्षक – सर हम लोगों बीज शोधन की तकनीक को perfect किया है। हमने कुछ Local microbes को identify किया है। उससे जब हम बीज को शोधन करते हैं तो जब roots आते हैं सर पहले से ही विकसित root बनते हैं। उससे वो पौधा बहुत स्वस्थ बनते है। उस पौधे में सर बीमारियां कम लगती हैं क्योंकि जड़ इतनी मजबूत हो जाते है, पौधे को वो अंदर से एक ताकत देते हैं कीट और बीमारियों से लड़ने के लिए।

प्रधानमंत्री जी – लैब में करने वाला काम बता रहे हैं। Land पर कैसे करते हैं? Lab to Land. जब आप कह रहे हैं आप खुद जा रहे हैं किसानों के पास। वो कैसे इसको करते हैं और वो कैसे शुरू करते हैं?

शिक्षक – सर हमने एक Powder Formulation बनाया है और इस Powder Formulation को हम किसानों को देते हैं और उनकी हाथों बीज को शोधन करवाते हैं और ये हम प्रयास कई सालों से निरंतर कर रहे हैं। और वाराणसी के आसपास के 12 गांवों में हमने अभी इस कार्य को किये हैं और महिलाओं की अगर संख्या की बात कहें तो तीन हजार से अधिक महिलाएं अभी इस Technology.

प्रधानमंत्री जी – नहीं तो जो ये लोग किसान है वो किसी और किसान को भी तैयार कर सकते हैं?

शिक्षक – बिल्कुल सर, क्योंकि जब Powder लेने के लिए एक किसान आते हैं वो और चार किसानों के लिए साथ में लेकर जाते हैं। और इसका क्योंकि देखा देखी किसान बहुत सिखते हैं और मुझे ये बात की खुशी है कि हमारे जो हम जितने को सिखाये हैं उनसे और कई गुणा लोगों ने अपनाए हैं इसको। अभी पूरा संख्या मेरे पास नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर किस फसल पर प्रभाव हुआ और किस।

शिक्षक – सब्जी और गेहूं पर।

प्रधानमंत्री जी – सब्जी और गेहूं पर, ये जो प्राकृतिक खेती इस पर हमारा बल है। और जो लोग धरती मां को बचाना चाहते हैं। वे सब चिंतित हैं जिस प्रकार से हम इस धरती मां की सेहत के साथ अत्याचार कर रहे हैं। उस मां को बचाना बहुत जरूरी हो गया है। और उसके लिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा उपाय दिखता है। उस दिशा में कोई चर्चा हो रही है वैज्ञानिकों में।

शिक्षक – जी बिल्कुल सर, प्रयास उसी दिशा में है। लेकिन सर किसानों को हम लोग अभी पूरी तरह convince नहीं कर पा रहे कि रसायन को आप प्रयोग न करें। क्योंकि किसान डरते हैं कि हम रसायन का प्रयोग नहीं करने से मेरे फसल में कुछ नुकसान हो जाएगा।

प्रधानमंत्री जी – एक उपाय हो सकता है। मान लीजिए उसके पास चार बीघा जमीन है। तो 25 परसेंट, 1 बीघा में प्रयोग करो, तीन में जो तुम परंपरागत करते हो वो करो। यानि छोटा सा हिस्सा लो, उसको एक प्रकार अलग से तुम इसी पद्धति से करो, तो उसकी हिम्मत आ जाएगी। हां यार थोड़ा नुकसान होगा तो 10 परसेंट, 20 परसेंटहो जाएगा। लेकिन मेरी गाड़ी चलेगी। गुजरात के जो गवर्नर हैं आचार्य देववृत्त जी, वे बहुत की dedicated हैं इस विषय में काफी काम करते हैं। अगर आप वेबसाइट पर जाएंगे क्योंकि आप में से बहुत से लोग हैं जो किसान का background वाले होंगे। तो उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिए बहुत सारा डिटेल बनाया। ये आप जो एलकेएम देख रहे हैं यहां पूरी तरह प्राकृतिक खेती का ही उपयोग होता है हर चीज का। यहां कोई केमिकल allow नहीं है। आचार्य देववृत्त जी ने एक बहुत ही अच्छा formula develop किया। कोई व्यक्ति उसको कर सकता है। गोमूत्र वगैरह का उपयोग करके करते हैं और बहुत अच्छे परिणाम आते हैं। अगर आप उसको भी स्टडी करे आपकी University में क्या हो सकता है तो देखिये।

शिक्षक – जरूर सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं।

शिक्षक – धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – वणक्कम।

शिक्षक – वणक्कम Prime Minister Ji. I am Dhautre Gandimati. I come from Tyagraj Polytechnic College, Salem Tamil Nadu and I have been teaching English in the Polytechnic College for more than 16 years. Most of my polytechnic students hail from rural background. They come from Tamil Medium Schools, So they find it difficult to speak or at least open their mouths in English.

प्रधानमंत्री जी – लेकिन हम लोगों को ये भ्रम है। शायद सब लोगों को यही होगा कि भई यानि तमिलनाडु मतलब सबको अंग्रेजी आती है।

शिक्षक – Obviously Sir, They are rural people who study from the vernacular language medium. So they find it difficult, Sir. For them we teach

प्रधानमंत्री जी – और इसीलिए ये जो नई शिक्षा नीति है उसमे मातृभाषा पर बहुत बल दिया गया है।

शिक्षक – So we are teaching English language Sir and as per NEP 2020 as at least three languages now we have in our mother tongue learning . We have now introduced as an autonomous institution. We have now introduced our mother tongue language also in learning technical education.

प्रधानमंत्री जी – क्या आपमें से कोई है जिसने बहुत हिम्मत के साथ ऐसा प्रयोग किया हो। कि मान लीजिए एक स्कूल में 30 बच्चें हैं वो purely अंग्रेजी भाषा के माध्यम से और उन्ही के बराबर के दूसरे 30 बच्चे वो ही विषय अपनी मातृ भाषा में पढ़ते हैं। तो कौन सबसे आगे जाता है, कौन ज्यादा से ज्यादा जानता है क्या अनुभव आता है आप लोगों का? क्योंकि क्या है मातृभाषा में वो direct चीज को, उसको mentally अंग्रेजी फिर उसको अपनी भाषा में Translate करेगा फिर उसको समझने का प्रयास करेगा, बहुत Energy जाती है उसकी। तो बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने का और बाद में अंग्रेजी एक subject के रूप में बहुत अच्छा पढ़ाना चाहिए। यानि जैसे ये संस्कृत टीचर क्लास में जाती होगी ओर क्लासरूम से बाहर आती होगी संस्कृत के सिवा किसी भी भाषा का प्रयोग नहीं करती होगी आशा है । वैसे ही अंग्रेजी के टीचर को भी क्लासरूम में अंदर जाने से बाहर निकलने तक और कोई Language नहीं बोलनी चाहिए। अंग्रेजी करेंगे तो वो भी उतने ही बढ़िया तरीके से करेंगे। फिर ऐसा नहीं की भई एक वाक्य अंग्रेजी तीन वाक्य मातृ भाषा में पढ़ाएंगे। तो वो बच्चा catch नहीं कर सकता है। अगर हम उतना dedication language के प्रति भी होगा तो बुरा नहीं है और हमें तो अपने बच्चों को आदत डालनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखने का, उनके मन में इच्छा जगनी चाहिए और इसलिए कभी – कभी स्कूल में तय करना चाहिए इस बार हम अपने स्कूल में पांच अलग-अलग राज्यों के गीत सिखाएंगे बच्चों को। पांच गीत एक साल में मुश्किल नहीं हैं। तो पांच भाषा के गीत जान लेंगे कोई असमिया करेगा, कोई मलयालम में करेगा, कोई पंजाबी करेगा, पंजाबी तो खैर कर ही लेते हैं। चलिए बहुत – बहुत शुभकामनाएं। Wish you all the best.

शिक्षक – प्रधानमंत्री जी जी, मेरा नाम उत्पल सैकिया है और मैं असम से हूं। मैं अभी North East Skill Centre Guwahati में Food & Beverage Service में एक प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा हूं। और मैं इधर North East Skill Centre में मेरा अभी छह साल संपन्न हो गया है। और मेरा मार्गदर्शन से अब तक 200 से ज्यादा सत्र सफलतापूर्वक प्रशिक्षित हो गया है। और देश और विदेश में Five Star होटलों में काम।

प्रधानमंत्री जी – कितने समय का कोर्स है आपका?

शिक्षक – एक साल का कोर्स है सर।

प्रधानमंत्री जी – 1 year और Hospitality का जानते हैं

शिक्षक – Hospitality Food & Beverage Services.

प्रधानमंत्री जी – Food & Beverage, उसमें क्या विशेष सिखाते हैं आप?

शिक्षक – हम सिखाते हैं कैसे guests से बातें करते हैं, कैसे Food service होता है, कैसे drink service होता है तो इसके लिए हम क्लासरूम में स्टूडेंट्स को already ready कराते हैं। Different Techniques सिखाते हैं कैसे guests का प्रॉब्लम solve करना है, कैसे tackle करना है वो सब हम सिखाते हैं सर।

प्रधानमंत्री जी – जैसे कुछ उदाहरण बताइये। इन लोगों को घरों में बच्चे ये नहीं खाऊंगा, ये खाऊंगा, ये नहीं खाऊंगा ऐसे करते हैं। तो आप अपनी Technique सिखाइए इनको।

शिक्षक – बच्चों के लिए तो मेरे पास कुछ technique है नहीं लेकिन जो गेस्ट आते हैं जो हमारे पास होटल में आते हैं तो उन लोग को कैसे tackle करना है मतलब politely, humbly उन लोगों को बातें सुनकर।

प्रधानमंत्री जी – यानी ज्यादातर आपका फोकस soft skills पर है।

शिक्षक – हां जी सर, हां जी सर, Soft Skills.

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर वहां से निकले हुए बच्चों को जॉब के लिए एक opportunity कहां रहती है?

शिक्षक – All over India, जैसे कि Delhi हो गया, मुंबई।

प्रधानमंत्री जी – Mainly बडे-बड़े होटल में।

शिक्षक – बड़े-बड़े Hotels में। हमारा मतलब 100 परसेंट placement guaranteed है। Placement Team है, वो लोग देखते हैं।

प्रधानमंत्री जी – आप गुवाहाटी में हैं, अगर मैं हेमंता जी से कहूं कि हेमंता जी के जितने Ministers हैं उनके स्टाफ को आप Train करें और उनके अंदर ये capacity building करें। क्योंकि उनके यहां गेस्ट आते हैं और उसको मालूम नहीं होता है कि इसको बाएं हाथ से पानी दूं या दाहिने हाथ से, तो हो सकता है?

शिक्षक – Definitely हो सकता है।

प्रधानमंत्री जी – देखिए ये बात आपको आश्चर्य होगा। मैं जब गुजरात में था मुख्यमंत्री। तो मेरे यहां एक Hotel Management School था। तो मैंने बड़ा आग्रह किया था कि मेरे जितने Ministers हैं, उनका जो personal staff है उनको Saturday, Saturday, Sunday जाकर के वो सिखाएंगे। तो उन्होंने Volunteer सिखाना तय किया और मेरे यहां जितने अभी बच्चे काम करते हैं या माली काम करता था या cook काम करता था। जितने भी Ministers के यहां सबकी वहां पर 30, 40-40 घंटे के करीब syllabus होता था। उसके बाद उनके performance में से इतना बदलाव आया और घर में जाते ही पता चलता था। कि वाह कुछ नया-नया लग रहा है और तो जो परिवार वाले हैं उनको शायद उतना ध्यान में नहीं होता था, मेरे लिए तो बड़ा आश्चर्य होता था कि यार तुमने कैसे कर दिया ये सब? तो वहां सीख के आता था, तो मैं समझता हूं कभी ये भी करना चाहिए ताकि एक ये बहुत बड़ा ब्रांड बन जाएगा कि भई हां कि एक छोटा सा छोटा जैसे घर में काम करने वालों को भी आते ही कोई नमस्ते कह दे, जैसे टेलीफोन उठाने वाले लोग सरकारी दफ्तर में कुछ लोगों के ट्रेनिंग होते हैं। वो जय हिंद बोल कर उठाएंगे फोन या नमस्ते करके उठाएंगे, कोई हां बोलो क्या कहना है? तो वहीं से बात बिगड़ जाती है। तो आप उसको बराबर ठीक से सिखाते हैं?

शिक्षक : सिखाते हैं सर, सिखाते हैं!

प्रधानमंत्री जी: चलिए, बहुत बहुत बधाई है आपको!

शिक्षक : धन्यवाद सर!

प्रधानमंत्री जी: तो बोरिसागर आपके कुछ थे क्‍या?

शिक्षक : हां थे सर, दादा थे!

प्रधानमंत्री जी: दादा थे? अच्छा! वो हमारे बहुत हास्य लेखक हुआ करते थे। तो आप क्‍या करते हैं?

शिक्षक: सर मैं अम्रेली से प्राइमरी स्कूल में टीचर हूं और वहां पर श्रेष्ठ पाठशाला निर्माण से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण के जीवन मंत्र के साथ पीछे 21 साल से काम कर रहा हूं सर...

प्रधानमंत्री जी: क्या विशेषता क्या है आपकी?

शिक्षक: सर मैं हमारे जो लोकगीत हैं ना...

प्रधानमंत्री जी: कहते हैं आप बहुत पेट्रोल जलाते हैं?

शिक्षक: हां सर वो बाइक पर में हमारा जो प्रवेश उत्सव आपके द्वारा हमारा जो सफल कार्यक्रम रहा शिक्षकों का 2003 से, सर हमारे जो लोकल गरबा गीत हैं, उसको हमें education और गीत में परिवर्तित करके मैं गाता हूं, जैसे पंखेड़ा है हमारा, सर अगर आपकी अनुमति हो तो गा सकता हूं मैं?

प्रधानमंत्री जी: हां, हो जाए!

प्रधानमंत्री जी: ये गुजराती बहुत प्रसिद्ध लोकगीत है।

शिक्षक: yes sir, ये गरबा गीत है।

प्रधानमंत्री जी: उन्होंने इसके वाक्य बदल दिए हैं और वो कह रहे हैं कि बच्चों को ये गीत से बताते हैं कि अरे भई तुम स्‍कूल चलो, पढ़ने के लिए चलो यानी अपने तरीके से वो कर रहे हैं।

शिक्षक: yes sir, और सर 20 भाषा के गीत भी मैं गा सकता हूं।

प्रधानमंत्री जी: 20, अरे वाह!

शिक्षक: अगर मैं केरल के बारे में बच्चों को सिखाता हूं तो, अगर तमिल में सिखाता हूं तो तमिल के दोस्त हैं वा यानि आओ, पधारो वेलकम, अगर मैं मराठी में, अगर कन्नड़ में …………. भारत माता को नमन करता हूं सर! अगर मैं राजस्थानी में इसे गाता हूं ........

प्रधानमंत्री जी: बहुत-बहुत बढ़िया!

शिक्षक: Thank you sir, सर एक भारत श्रेष्ठ भारत, यही मेरा जीवन मंत्र है सर!

प्रधानमंत्री जी: चलिए बहुत-बहुत...

शिक्षक: और सर 2047 में विकसित भारत बनाने के लिए भी और ऊर्जा से काम करूंगा सर।

प्रधानमंत्री जी: Very good.

शिक्षक: Thank you sir.

प्रधानमंत्री जी: उनकी surname मैंने जब देखी तो उनके दादा से मैं परिचित था तो मुझे याद आया आज और उनके दादा बहुत ही अच्छे हास्य लेखक हुआ करते थे मेरे राज्‍य में, बड़ी पहचान थी उनकी लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि आपने उस विरासत को संभाला होगा। मुझे बहुत अच्छा लगा!

साथियों,

मेरी तरफ से कुछ खास आप लोगों को संदेश तो नहीं है पर मैं जरूर कहूंगा कि ये सेलेक्‍शन होना ये बहुत बड़ी पूंजी होती है, लंबे प्रोसेस से निकलता है। पहले क्या होता था मैं इसकी चर्चा नहीं करता हूं, लेकिन आज कोशिश है कि देश में ऐसे होनहार लोग हैं, जो कुछ वो नया कर रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हमसे कोई ज्यादा अच्छे टीचर नहीं होंगे, किसी और विषय में अच्छा नहीं करते होंगे ऐसा नहीं हो सकता। ये तो देश है बहुरत्‍ना वसुंधरा है। कोटि-कोटि टीचर्स ऐसे होंगे जो बहुत उत्तम काम करते होंगे लेकिन हम लोगों की तरफ ध्‍यान गया होगा, हमारी कोई एक विशेषता होगी। जो देश में खासकर के नई शिक्षा नीति के लिए आप लोगों के जो प्रयास हैं वो काम आ सकते हैं। देखिए हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था में जैसे भारत में एक विषय हमारी आर्थिक व्‍यवस्‍था को बहुत ताकत दे सकता है और भारत ने ये मौका गंवा दिया है। हमने फिर से एक बार उसको प्राप्त करना है और वो हमारे स्कूलों से शुरू हो सकता है और वो है टूरिज्‍म I

अब आप कहेंगे कि हम बच्चों को पढ़ाएंगे या टूरिज्‍म करें। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप टूरिज्‍म करें, लेकिन अगर स्‍कूल के अंदर टूर तो जाती ही होगी लेकिन ज्‍यादातर टूर कहां जाती है, जहां टीचर ने जो देखा नहीं है वहां टूर जाती है। स्‍टूडेंट को क्‍या देखना चाहिए, वहां टूर नहीं जाती है। अगर टीचर का उदयपुर रह गया तो फिर कार्यक्रम बनाएंगे कि स्‍कूल इस बार उदयपुर जाएगी और फिर सबसे जो भी पैसे लेने होते हैं, जो टिकट का खर्चा होता है सब कलेक्‍ट करते हैं फिर जाते हैं लेकिन मेरे लिए तो जैसे मां कहती है ना बच्चे को आइसक्रीम खाना है, तो हम लोग कभी सोचकर के जैसे टाइम टेबल बनाते हैं साल भर का आप लोग पूरा काम तय कर लेते हैं किसको करना है, कैसे... क्‍या उसमें हम अभी से कि भई 2024-2025 में 8 या 9 कक्षा के विद्यार्थियों के लिए डेस्‍टिनेशन ये होगा। 9 और 10 के लिए ये होगा and then जो भी तय करें आप... हो सकता है ये स्‍कूल 3 डेस्‍टिनेशन तय करे, हो सकता है स्‍कूल 5 डेस्‍टिनेशन तय करे और उनको साल भर काम देना चाहिए कि अब आपको प्रोजेक्‍ट दिया जाता है कि अगले साल हम केरला जाने वाले हैा, भई 10 स्‍टूडेंट का एक ग्रुप बनेगा जो केरल के सोशल रीति रिवाज उन पर प्रोजेक्‍ट करेगा। 10 स्टूडेंट वहां के धार्मिक परंपरा क्या होती हैं, मंदिर कैसे होते हैं, कितने पुराने हैं, 10 स्टूडेंट हिस्ट्री पर करेंगे, साल भर एक-एक, दो-दो घंटा इस पर डिबेट होती रहे, केरल, केरल, केरल चलता रहे और फिर केरल के लिए निकल पड़ें। आपके बच्चे जब जाएंगे केरला तो वो एक प्रकार से पूरे केरल को आत्मसात करके वापस आएंगे। उनको रहेगा अरे वो मैंने पढ़ा था ना अच्छा ये वो है, वो correlate करेगा।

अब आप सोचिए कि मान लीजिए गोवा ने तय किया कि इस बार हम नॉर्थ ईस्‍ट जाएंगे और मान लीजिए सब स्‍कूल मिलाकर के 1000-2000 बच्‍चे नॉर्थ ईस्‍ट जाते हैं तो उनको तो नॉर्थ ईस्‍ट देखने को मिलेगा। लेकिन नॉर्थ ईस्‍ट के टूरिज्म को फायदा होगा कि नहीं होगा? ये लोग नॉर्थ ईस्‍ट जितने भी होते हैं, तो नॉर्थ ईस्‍ट वालों को लगेगा भई अब इतने लोग आ रहे हैं तो कोई चाय-पान के लिए दुकानें खोलनी पड़ेगी। किसी को लगेगा ये चीज बिकती है चलो ये ज्यादा, तो हां भाई अपना रोजगार बढ़ेगा। भारत इतना बड़ा देश है, हम शिक्षा के साथ और इस बार आपको, आप अपने स्टूडेंट्स को बताइए, अभी ऑनलाइन एक कॉम्पिटिशन चल रहा है और आपके स्कूल के सब बच्चों ने उसमें हिस्सा लेना चाहिए, लेकिन ऐसे ही टिक मार्क नहीं करना चाहिए, थोड़ा स्टडी करके करना चाहिए। अभी कॉम्पीटिशन चल रहा है देखो अपना देश, ऑनलाइन रैंकिंग चल रहा है, लोग वोट कर रहे हैं और उसमें हमारी कोशिश है कि उस राज्य के लोग वोट करके तय करें कि हमारे राज्य में ये नंबर वन पर चीज है जो देखने जैसी है, जाने जैसी है। एक बार आप वोटिंग से जो सेलेक्ट होंगे, तो सरकार कुछ बजट लगाएगी, वहां infrastructure तैयार करेगी और उनको फिर develop करेगी। लेकिन ये टूरिज्‍म कैसे टूरिज्‍म होता है मुद्दा ये होता है कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा... कुछ लोगों का कहना है कि भई टूरिज्‍म नहीं है इसलिए डेवलप नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं कि टूरिज्‍म आएंगे तो डेवलप होगा और इसलिए हम स्‍टूडेंट से शुरू कर सकते हैं ऐसे डेस्‍टिनेशन, योजनाबद्ध तरीके से वहां जाएं, रात्रि को वहां मुकाम करें तो उस स्थान के लोगों को लगेगा कि भई अब रोजगार की संभावना बनेगी, तो होम स्टे बनने लग जाएंगे। ऑटो रिक्‍शा वाले आ जाएंगे यानी अगर हम सिर्फ स्‍कूल में बैठे-बैठे तय करें तो इस देश में 100 टॉप डेस्टिनेशन टूरिज्म के हम 2 साल में तैयार कर सकते हैं। एक टीचर कितना बड़ा revolution ला सकता है, इसका ये उदाहरण है। यानि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में स्कूल के regular काम में, आप करते ही हैं, आप के यहां से टूर जाते ही जाते हैं। लेकिन अध्‍ययन नहीं होता है। जहां जाना है उसका साल भर अध्‍ययन होगा तो वो शिक्षा काम हो गया। जाकर के उस जगह पर जाते हैं तो वहां पर इकोनॉमी को लाभ जो सकता है।

उसी प्रकार से मेरा आपसे आग्रह है कि आपके नजदीक में जहां भी university हो, कभी न कभी आपके 8वी-9वी कक्षा के बच्‍चों का उस university में टूर कराना चाहिए। university से बात करनी चाहिए कि भई हमारी 8वी कक्षा के बच्‍चे आज university देखने आएंगे। मेरा एक नियम था जब मैं गुजरात में था, अब तो कहीं पर university में अगर convocation में बुलाते थे, तो मैं उनसे कहता था कि भई मैं आऊंगा जरूर लेकिन मेरे 50 guests साथ आएंगे। तो university को रहता था कि भई ये कौन 50 guests आएंगे। और जब politician कहता है तो उनको लगता है कि उनके चेले-चपाटे आने वाले होंगे। फिर मैं कहता था कि university के 5-7 किलोमीटर के रेडियस में कोई सरकारी स्‍कूल हो जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हों झुग्गी-झोपड़ी के, ऐसे 50 बच्‍चे मेरे guest होंगे और उनको आपको first row में बिठाना पड़ेगा। अब ये बच्‍चे जब ये convocation देखते हैं, हैं तो बिल्‍कुल गरीब परिवार के बच्‍चे, उनके मन में उसी दिन सपना बो देते हैं। कभी मैं ऐसा टोपा पहन करके, ऐसा कुर्ता पहन करके मैं भी अवार्ड लेने जाऊंगा। ये भाव उसके मन में register हो जाता है। आप भी अगर अपने स्‍कूल के ऐसे बच्‍चों को ऐसी university देखने के लिए ले जाएं, university से बात करें कि साहब आपके यहां इतनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, हम देखना चाहते हैं।

वैसे ही sports के event होते हैं, कभी-कभी हम क्‍या करते हैं जैसे ब्‍लॉक लेवल का sports competition है, तो कौन करेगा वो पी.टी. टीचर जाने, वो खेलने वाला बच्‍चा जानें, जाएगा। सचमुच में पूरे स्‍कूल को sports देखने के लिए जाना चाहिए। भले ही कबड्डी चल रही है, किनारे बैठेंगे, ताली बजाएंगे। कभी-कभी देखते-देखते ही उसमें से खिलाड़ी बनने का मन किसी को जग जाता है। खिलाड़ी को भी लगता है कि यार मैं कोई एकलौता अपने पागलपन के कारण खिलाड़ी नहीं बना हूं। मैं खेल खेल रहा हूं मतलब मैं एक समाज का एक अच्छा प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। उसके अंदर एक भाव जागता है। एक टीचर के नाते मैं ऐसी चीजों को innovate करता रहूं और कोई extra प्रयत्न के बिना जो हैं उसको प्लस वन करना है बस, ये अगर हम कर सकते हैं तो आप देखिए, स्‍कूल का भी नाम बन जाएगा, जो टीचर उसमें काम करते हैं उनके प्रति भी देखने का एक भाव बदल जाएगा। दूसरा, आप लोग कोई ज्‍यादा संख्‍या हैं नहीं लेकिन आप में से सबको पता नहीं होगा कि बाकियों को किस कारण से ये अवार्ड मिला है। पता नहीं होगा, आपको लगता होगा कि मुझे मिला है तो उसको भी मिला होगा। मैं ये करता हूं, मुझे मिलता है, वो भी कुछ करता होगा, मिल गया, ऐसा नहीं... आपकी कोशिश होनी चाहिए इन सबके अंदर ऐसी कौन सी विशेषता है, इन लोगों में ऐसा कौन सा कर्तव्य है जिसके कारण देश का उन पर ध्यान गया है। मैं उसमें से दो चीजें सीख करके जा सकता हूं क्या? आपके लिए ये चार दिन, पांच दिन एक प्रकार से स्टडी टूर है। आपका सम्मान, गौरव हो रहा है वो तो एक है लेकिन अपने से जैसे मैं आप सबसे बात कर रहा हूं, मैं आप लोगों से सीख रहा था। आप लोग कैसे करते हैं, जान रहा था। अब ये मेरे लिए अपने आप को एक बड़ा प्रसन्न करने वाले बात थी और इसलिए मैं कहता हूं कि आपके जितने साथी हैं, दूसरा किसी जमाने में जब हम छोटे थे तब पत्र मित्र, वैसा एक माना हुआ करता था। अब सोशल मीडिया हो गया है, तो वो तो दुनिया चली गई। लेकिन क्‍या आप लोगों का सबका एक व्हाट्सअप्प ग्रुप बन सकता है? सबका! जो लोग, कब से बना है? अच्छा कल ही बना है। चलिए, अच्छा 8-10 दिन हो गए, मतलब एक good beginning है। एक दूसरे से अपने experience शेयर करने चाहिए। अब आपको यहां कोई तमिलनाडु के टीचर से परिचय हुआ है। आपकी टूर तमिलनाडु जाने वाली है, आपके स्कूल की, अभी से उनको कहिए कि जरा बताइए, देखिए आपकी कितनी बड़ी ताकत बन जाएगी। आपको कोई मिलेगा अरे कोई केरल, अरे मैं उसको जानता हूं, जम्‍मू-कश्‍मीर अरे मैं उससे तो परिचित हूं। आप चिंता मत कीजिए, मैं उनको फोन कर देता हूं। इन चीजों का बड़ा प्रभाव होता है और मैं चाहूंगा कि आप लोगों का एक ऐसा समूह बनना चाहिए जिनको लगना चाहिए कि हम तो एक परिवार के हैं। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत तक, इससे बड़ा कोई अनुभव नहीं हो सकता। ऐसी छोटी-छोटी चीजों की अगर तरफ आप ध्‍यान देते हैं, मुझे पक्‍का विश्वास हैं देश की विकास यात्रा में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है।

आप भी सुन-सुन करके थक गए होंगे। शिक्षक ऐसा होता है, शिक्षक वैसा होता है, फिर आपको भी लगता है कि ये बंद करे तो अच्‍छा है यानि मैं मेरे लिए नहीं कह रहा हूं। लेकिन शिक्षक की जब वाह-वाही चलती है ना तो इतनी चलती है तो फिर आपको भी लगता है यार बहुत हो गया। मुझे भी लगता है कि वाह-वाही की जरुरत नहीं है। हम उस विद्यार्थी की तरफ देखें, उस परिवार ने कितने विश्वास के साथ वो बच्चा हमें सुपुर्द किया है। उस परिवार ने हमें बच्‍चा इसलिए सुपुर्द नहीं किया है कि आप उसको कलम पकड़ना सिखाते हैं, कंप्‍यूटर चलाना सिखाते हैं, इसलिए नहीं दिया है आपको वो बच्‍चा कि ताकि आप उसको कुछ syllabus पढ़ाते हैं, इसलिए वो एग्‍जाम में अपना अच्‍छा रिजल्‍ट ले आए, सिर्फ इसलिएए नहीं भेजा है। मां-बाप को लगता है कि जो हम दे रहे हैं उससे आगे हम ज्‍यादा नहीं दे पाएंगे, उसका अगर कोई प्‍लस वन कर सकता है तो उसका टीचर कर सकता है। और इसलिए बच्‍चे की जिंदगी में शिक्षा में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। संस्‍कार में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। उसके habits में correction कौन करेगा प्‍लस वन टीचर करेगा। और इसलिए प्‍लस वन theory वाली हमारी कोशिश होनी चाहिए। उसके घर से जो मिला है मैं उसमें कुछ ज्‍यादा अतिरिक्‍त जोड़ दूंगा। मेरा उसकी जिंदगी में बदलाव लाने का कोई न कोई contribution होगा। अगर ये प्रयास आपकी तरफ से रहे, मुझे विश्‍वास है कि आप बहुत ही सफलतापूर्वक और आप अकेले नहीं, सभी शिक्षकों से बात कीजिए। अपने क्षेत्र के, अपने राज्‍य के शिक्षकों से बात कीजिए। आप लीडरशिप लीजिए और हमारे देश की नई पीढ़ी को तैयार करें क्योंकि आज जिन बच्चों को आप तैयार कर रहे हैं ना, वे जब नौकरी करने योग्य बनेंगे या 25-27 साल की उम्र तक पहुंचेंगे, तब ये देश आज है वैसा नहीं होगा, ये विकसित भारत होगा। आप उस विकसित भारत में retirement का पेंशन लेते होंगे। लेकिन जिसको आज आप तैयार कर रहे हैं, वो उस विकसित भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने वाला एक सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍तित्‍व बनने वाला है। यानि आपके पास कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, ये विकसित भारत, ये कोई सिर्फ मोदी का कार्यक्रम नहीं है।

हम सबको मिलकर के विकसित भारत के लिए ऐसा मानव समूह भी तैयार करना है। ऐसे सामर्थ्यवान नागरिक भी तैयार करने हैं, ऐसे सामर्थ्यवान नौजवान तैयार करने हैं। अगर हमें आगे चलकर के 25-50 गोल्‍ड मेडल अगर खेल-कूद में लाने हैं, कहां से निकलेगा वो खिलाड़ी? जो आपके स्कूल में दिखते हैं ना, उन बच्चों में से निकले वाला है और इसलिए हम उन सपनों को लेकर के और आपके पास बहुत लोग हैं, सपने होते हैं लेकिन उनके सामने इन सपनों का साकार कैसे करें, आप वो लोग हैं आपके मन में जो सपना आए, उस सपने को साकार करने के लिए वो laboratory आपके सामने ही है, raw material आपके सामने ही है, वो बच्‍चे आपके सामने ही हैं। आप अपने सपनों को लेकर के उस प्रयोगशाला में प्रयास करेंगे, आप जो चाहें वो परिणाम लेकर के आएंगे।

मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं!

बहुत-बहुत धन्यवाद!