मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि बहुत ही कम अवधि में मुझे दोबारा नेपाल की भूमि के दर्शन करने का सौभाग्य मिला है। इन दिनों विश्व के कई देशों में मेरा जाना हुआ है। कई वैश्विक स्तर की मीटिंगों में जाना हुआ है, लेकिन नेपाल के साथ मेरी जो स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं, नेपाल ने मुझे जो प्यार दिया है, अपनापन दिया है, वो मैं कभी भूल नहीं सकता हूं। इसके लिए मैं नेपाल का बहुत बहुत आभारी हूं।

आज ये Trauma Center का लोकार्पण हो रहा है। एक प्रकार से ये जीवन रक्षा का अभियान है। First Golden Hour, आकस्मिक परिस्थियों में इंसान की जिदंगी बचाने का बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। उस First Golden Hour में अगर उपयुक्त सुविधा मिल जाए, proper treatment का सहारा मिल जाए, तो इंसान की जिंदगी बचाई जा सकती है। नेपाल और भारत की मैत्री का ये उत्तम नजराना है, जो एक प्रकार से जीवन की सौगात दे रहा है। जो नजराना जीवन की सौगात देता है, वो हमें जड़ों से जोड़ता है, हमें जीवन से जोड़ता है, हमें अरमान से जोड़ता है और हमें अरमान पूरे करने के लिए प्रयास करने की एक शक्ति भी देता है। इसलिए ये Trauma Center भारत और नेपाल के बीच एक जीवंत संबंध का उदाहरण बन रहा है।

आगे भी इस Trauma Center का upgradation करना होगा, technology support की आवश्यकता होगी, human resource development की आवश्यकता होगी। भारत भविष्य में भी इस काम में नेपाल के साथ रहेगा, पूरी सहायता करता रहेगा और हम चाहेंगे कि नेपाल अपने पैरों पर खड़े हो करके..इस Trauma Center को चलाने का उसमें सार्मथ्य आए। वहां तक जो भी मदद चाहिए, भारत खुले दिल से यहां के लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए सदा सर्वदा आपके साथ खड़ा है। और वो हमारे लिए सौभाग्य होगा। एक प्रकार से अपनों की सेवा करने का यह अवसर है और अपने यहाँ तो, सेवा परमोधर्म- ये शास्त्रों ने कहा है। और जिस शास्त्र ने हमें ‘सेवा परमोधर्म’ कहा है, उस शास्त्र से हम दोनों जुड़े हुए हैं। इसलिए एक सेवा का यह प्रकल्प है और मुझे गर्व है कि आज मुझे इस समारोह में लोकार्पण के काम में आने का अवसर मिला। भारत और नेपाल का एक अटूट नाता, एक जीवंत नाता, उसका एक जीवंत स्मारक हमारे सामने आज खड़ा हुआ है।

जब मैं पिछली बार आया था, तब भी मैंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि मैं उस समय तो जनकपुर, मुक्तिनाथ और लुम्बिनी नहीं जा पाया था, मैंने कहा था कि मैं अगली बार आउंगा तो जाउंगा। इस बार भी मेरा इरादा था कि मैं by-road जाउं। By-road जाने का मेरा इरादा इसलिए था कि मैं खुद अनुभव करना चाहता था कि नेपाल से वहां आने वाले लोगों को वहां क्या दिक्कतें होती हैं, क्या तकलीफ होती हैं। भारत से उस तरफ जाने वाले लोगों को क्या दिक्कतें होती हैं, क्या तकलीफ होती हैं। उसे मैं खुद experience करना चाहता था और फिर मैं उसको ठीक करना चाहता था। लेकिन, समयाभाव के कारण मैं इस बार उसको नहीं कर पाया हूं। मैं विषेश रूप से जनकपुर, लुम्बिनी और मुक्तिनाथ - वहां के नागरिकों को जो कष्ट हुआ है, जो निराशा हुई है, मैं भलीभांति उनकी पीड़ा को समझ सकता हूं। लेकिन, मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूं कि निकट भविष्य में जब भी मुझे अवसर मिलेगा मैं आपके बीच आउंगा। आपके प्यार को मैं भली-भांति दूर बैठे-बैठे भी अनुभव कर रहा हूं। और इसलिए वहां के सभी नागरिकों को मैं विश्वास दिलाता हूं। नेपाल के हर नागरिक का भारत पर पूरा अधिकार, भारतीयों पर पूरा अधिकार है, सरकार पर अधिकार है और भारत के प्रधानसेवक पर प्रधान अधिकार है।

मैं जब पिछली बार आया था, और आज मैं आया हूं, सौ दिन भी नहीं हुए हैं। लेकिन जब विश्वास का इजिंन किसी काम को लग जाता है, तो काम कितनी तेजी से होता है, कितना अच्छा हो सकता है, इसका मैं आज अनुभव कर रहा हूं। आज नेपाल और भारत के बीच भरोसे का, विश्वास का एक बहुत बड़ा horse power वाला इजिंन लग गया है, जो विश्वास का इजिंन है, भरोसे का इजिंन है। उसी के कारण 100 दिन के अंदर जिस प्रकार से नेपाल और भारत ने एक के बाद एक निर्णय किए, काम शुरू किया, 25-25, 30-30 साल से रूके हुए काम - ये आज आगे बढ़े हैं। हमारे यहां कहावत है - एक हाथ से ताली नहीं बजती है। ये संभव इसलिए हुआ है कि नेपाल सरकार, नेपाल के सभी राजनीतिक दल, नेपाल के प्रशासनिक व्यवस्था में जुड़े हुए अधिकारी - उन सब ने मिल करके आगे बढ़ने की शुरूआत की। आगे बढ़ाया। छोटी-मोटी रूकावटें आईं तो उन रूकावटों को भी बहुत बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से, उसका निराकरण करते हुए, चीज़ों को ठोस रूप देने का काम किया है। इसलिए मैं आदरणीय प्रधानमंत्री जी का, उनकी सरकार का, सभी राजनीतिक दलों का, प्रशासनिक अधिकारियों का भारत की तरफ से हृदय से अभिनदंन करता हूं, कि उन्होंने ये काम न किया होता तो आज 100 दिन के भीतर भीतर 25-25, 30-30 साल से लटके हुए काम, अटके हुए काम आज पूरे न होते।

मैं आज एक संतोश का भाव अनुभव कर रहा हूं कि मेरी पहली मुलाकात और दूसरी मुलाकात के बीच में तेज़ गति से एक के बाद एक फैसले हुए हैं। ये फैसले नेपाल के जीवन को तो ताकत देने वाले हैं, भारत को बहुत बड़ा संतोश देने वाले हैं। हमारे लिए नेपाल की खुशी, नेपाल का आनंद हमारी मुस्कुराहट का कारण बनता है। अगर नेपाल खुश नहीं तो हिंदूस्तान मुस्कुरा नहीं सकता है। इसलिए हमारे लिए नेपाल की खुशी, ये हमारे लिए संतोश की औषध है। वो संतोश की औषध हमें प्राप्त हुई है, उसके लिए नेपाल से संबंधित सभी जनों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

खासतौर पर Hydro Power. कितने समय से यह लटका हुआ था, कितने विवाद चल रहे थे, आशंकाओं के बादल हर बार छाए रहते थे। लेकिन, यहां के सभी राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार की दूर दृष्टि का परिचय करवाया है, और उसका परिणाम यह हुआ है कि Power Trade Agreement, 900 Megawatt Upper Karnali Project, Pancheshwar Development Authority, 900 मेगावाट क्षमता वाले Arun III Project - यानि एक के बाद एक। शायद 10 साल में एक चीज़ हो जाए तो भी बड़ा आनंद हो जाता है। यहां तो 100 दिन में इतने सारे काम आगे बढ़ गए। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि दो देश मिल करके क्या नहीं कर सकते हैं।

उसी प्रकार से हमने कहा था Transmission Line के संबंध में। हम चाहते थे कि नेपाल को बिजली मिले, ज्यादा बिजली मिले। Transmission Line मज़बूत बनाने के लिए बहुत ही कम समय में काम पूरा हो जाएगा। 125 मेगावाट बिजली और यहां आना शुरू हो जाएगा। इतना ही नहीं, एक नई लाइन तैयार हो रही है, जिसकी क्षमता 1000 मेगावाट की है। अब नेपाल जगमगा उठेगा, ये मेरा पूरा विश्वास है। हमने पिछली बाद कहा था कि एक बिलियन डॉलर - यानि कि 10 हज़ार करोड़ नेपाली रूपयों की कीमत जिसकी होती है - कम ब्याज़ पर और लंबे समय के लिए हम देंगे। आज हम मिल रहे हैं, उसका Final Agreement हो जाएगा। ये भी काम एक प्रकार से आज पूरा हो गया, मान लीजिए।

हम एक Motor Vehicle Agreement पर करार कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि नेपाल और भारत को जोड़ने के लिए ये बहुत ही उत्तम व्यवस्था हो रही है। उसी के तहत आज ही काठमांडू से दिल्ली Regular Bus Service शुरू करने का भी हमें सौभाग्य मिल रहा है। काठमांडू से दिल्ली जब Regular Bus Service शुरू होती है तो यहां के सामान्य मानव के जीवन में वो कितनी बड़ी आर्थिक रूप से सहायता करने वाली सुविधाजनक होती है, उसका आप अंदाज़ लगा सकते हैं।

लेकिन नेपाल और भारत के बीच चलने वाली ये टूरिज्म की दृश्टि से चलने वाली बस में यात्री भी उसका फायदा उठाते हैं, international यात्री भी प्राकृतिक सौदंर्य का अनुभव करने के लिए बस से सफर करना पसंद करते हैं। हम चाहते हैं कि नेपाल का टूरिज़्म भी बढ़े। लेकिन टूरिज़्म बढ़ता है, उसके लिए कुछ सुविधाएं चाहिएं। उसमें एक महत्वपूर्ण सुविधा होती है- connectivity. मैंने मेरे अफसरों को कहा है कि क्या हम - ये जो दिल्ली काठमांडू के बीच बस सर्विस चलेगी - वो बस सेवा Wi-Fi के साथ हो सकती है क्या? अगर Wi-Fi के साथ वो बस सेवा होगी तो टूरिस्ट जरूर पसंद करेगा क्योंकि वो बस में जाता रहेगा, वो दूनिया से अपना connect होता रहेगा, अपना आनंद लेता रहेगा। हमारे अफसरों ने कहा कि “साब मालूम नहीं है, हम ज़रा देखेंगे कि कितना संभव है।“ मैंने कहा तो है, अब देखते हैं technological अगर support मिल गया तो ये काम भी हम करवा देंगे। हम चाहते हैं, व्यवस्थाएं हों, व्यवस्थाएं आधुनिक हों और सुविधाजनक हों।

मैंने एक चिंता जताई थी कि भारत में हमारे नेपाल के लोग बहुत बड़ी मात्रा में हैं। नेपाल और भारत की रिश्तेदारी भी बहुत है, व्यापारिक संबंध भी है और इसलिए, यहां के फोन कॉल बहुत महंगे होते हैं। मैंने कहा था कि अमरीका बात करना सस्ता जाता है लेकिन Nepal-India बात करना महंगा जाता है। मैंने कहा था कि ये सस्ता होना चाहिए। मैं भारत गया, मैंने पूछा, “भई! ये क्या कर रहे हो? क्या हम नहीं मदद कर सकते?” लेकिन जब जाना तो बहुत आश्चर्य हुआ मुझे। भारत में तो इसका रेट सिर्फ 40 पैसा है, लेकिन यहां पर वो रेट शायद 3.50 रूपया है, नेपाल में, नेपाल authority जो है। मैं हैरान हो गया कि “भई अब क्या करूं? मैंने तो कह दिया है।“

मैंने कहा कि “ठीक है, हम कम लेते है। न के बराबर लेते हैं तो भी कुछ कम करें।“ मैंने 35% कम करने का फैसला कर लिया। लेकिन, अब मैं चाहता हूं, नेपाल की जो टेलीफोन सेवा हैं, वो भी उसमें कुछ कम करें ताकि नेपाल के लोगों को, और नेपाल से जुड़े हुए भारत के संबंधों में ये टेलीफोन का खर्चा थोड़ा कम होना चाहिए। मेरी तरफ से जो कर सकता हूं, उतना ज़रूर कर दिया है। मैं चाहूंगा कि यहां उस दिशा में कुछ हो।

Border Infrastructure - खासतौर से road मार्ग से जब हम आते हैं - तो वहां पर कुछ प्रश्न थे, पिछली बार, मैंने उसे तेज़ गति से आगे बढ़ाने के लिए काम किया है। कुछ पुराने contract की भी समस्याएं थीं, उसको भी रद्द करने के लिए कह दिया है। मैं मानता हूं छः महीने के भीतर-भीतर आपको सही रूप में वहां पर प्रगति दिखाई देगी।

एक और बात है, नेपाल और भारत के संबंधों में। एक तो, बहुत बड़ी मात्रा में नेपाल के लोग जो भारत में काम करते हैं, वो यहां आते हैं, भारत के टूरिस्ट यहां आते हैं। एक कठिनाई थी- 500 और 1000 रूपए के नोट। वो प्रतिबंधित थे। हमने नेपाल सरकार को प्रार्थना की थी। और हमने मिल करके एक निर्णय किया है कि अब भारत से 500 रूपए और 1000 रूपए के नोट 25 हज़ार की मर्यादा में, ये हम ला सकते हैं। इसके कारण, भारत में काम करने वाले जो लोग अपने घर वापस आते हैं, उनको साथ में पैसे लाने हों तो उनका सुविधा बनेगी। और जो टूरिस्ट आते हैं, टूरिस्ट के हाथ में भी पैसे रह पाएंगे। तो इस व्यवस्था को भी हमने निर्णय कर लिया है।

एक काम जिसका मेरा स्वयं का बहुत अच्छा अनुभव है। मैं जब गुजरात में काम करता था तो गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते एक महत्वपूर्ण initiative हमने लिया था। हिंदुस्तान में हमने सबसे पहले इस काम को किया था, और वो था soil testing। आमतौर पर हम developing countries में मनुष्य का भी health card नहीं होता है। लेकिन हमने कोशिश की थी कि soil health card बने। किसान के पास जो जमीन है, उस जमीन में क्या गुण हैं, क्या अवगुण हैं, क्या अच्छाईयां हैं, क्या बिमारियां हैं, वो ज़मीन किस crop के लिए उपयुक्त है, किस crop के लिए अनउपयुक्त है, किस ज़मीन पर कौन सी दवाई सूट करेगी, कौन सी दवाई सूट नहीं करेगी - ये सारी चीज़ें soil testing से संभव होती हैं। ये करने से औसत एक एकड़ भूमि में किसान फसल तो ज्यादा कर ही सकता है, लेकिन साथ-साथ, जो फालतू खर्चे होते हैं- गलत दवाईयां डाल देता है, गलत fertilizer डाल देता है, गलत crop डाल देता है, वो सब उसका बच जाता है और करीब-करीब एक एकड़ भूमि में 15-20 हज़ार तो सहज रूप से उसकी मदद हो जाती है। ये soil testing का काम नेपाल में भी हो, ये बात मैंने पिछली बार प्रधानमंत्री जी से मैं जब मिला तो कही थी कि आपको लाभ होगा। तो उन्होंने कहा कि देखेंगे और मुझे लगा कि मैं सुझाव देके चला हूं, वो शोभा नहीं देता है, मुझे कुछ करना चाहिए। तो आज हम एक Mobile soil test laboratory नेपाल को भेंट दे रहे हैं। उसकी पूरी technology दे रहे हैं। उससे पता चलेगा कि निश्चित एरिया में इस प्रकार की जांच हो गई। आप देखिए, उसको अगर बाद में आप चलाएंगे तो बहुत लाभ होगा, तो एक बहुत बड़ा काम।

हमने पिछली बार कहा था कि people-to-people contact. देश जुड़ते हैं, तब जब जन जुड़ता है। और जन भी तब जुड़ता है जब मन जुड़ता है। लेकिन मन जुड़ने की, जन जुड़ने की प्रक्रिया कुछ व्यवस्था के तहत होती है। और इसलिए हम चाहते थे कि जन-जन संपर्क बढ़ना चाहिए। इसीलिए हमने Youth Exchange की बात की थी। मुझे खुशी है कि Youth Exchange Programme में पहली बैच already हिंदुस्तान पहुंची हुई है। इन दिनों कलकत्ता युनिवर्सिटी में वे नौजवान, सारे नेपाल के - वहां का नजारा देख रहे हैं, अभ्यास कर रहे हैं, वहां के लोगों से मिल रहे हैं, बातचीत कर रहे हैं।

तो एक एक चीज़ हम तेजी से कर रहे हैं।

दूसरा, मैंने कहा था - हम नेपाल को e-library देंगे। मुझे खुशी है कि नेपाल सरकार की तरफ से और नेपाल के कुछ प्रमुख लोगों की तरफ से, e-library उनको कैसी चाहिए, उसके बहुत अच्छे सुझाव आए। मैं मानता हूं कि हमारे लिए भी सीखने जैसे अच्छे सुझाव आए। मैं मानता हूं कि ये जो आपका सक्रिय योगदान था, तो e-library का काम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। जैसी आपकी अपेक्षा है, उन आपके सुझावों को संकलित करते हुए, उस e-library को हम प्रारंभ करेंगे। मैं मानता हूं कि वक्त बदल चुका है। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है। जो ज्ञान के उपासक हैं, उनका ये युग आने वाला है। नेपाल और भारत की इस भूखंड की सांस्कृतिक ज्ञान की उपासना की संस्कृति रही है। नेपाल भी ज्ञान की उपासना वाली संस्कृति की विरासत को लेकर चल रहा है और इसलिए e-library उस ज्ञान वर्धन का एक बहुत बड़ा माध्यम बनेगी। ये युग ऐसा है कि जितनी highways की जरूरत है उतनी ही i-ways की जरूरत है। Highways भी चाहिए information-ways भी चाहिए। e-library एक प्रकार से i-ways का काम करेगी और जो हम नेपाल में प्रवेश करने वाले रास्ते ठीक करेंगे, वो highways का काम करेंगे। भारत आपकी highways की भी चिंता करेगा, i-ways की भी चिंता करेगा और उस काम को हम आगे बढ़ाएंगे।

हमारा सुरक्षा सहयोग भी.. बहुत ही एक विश्वास का वातावरण चाहिए। सुरक्षा का काम तब होता है, जब दो देश के बीच में अटूट विश्वास हो, भरोसा हो। और आज भारत और नेपाल के बीच में विश्वास का ताना बाना इतना मजबूत हुआ है कि जिसके कारण रक्षा के क्षेत्र में भी भारत और नेपाल मिल करके काम कर रहे हैं।

आज मेरे लिए खुशी की बात है कि हम एक ‘ध्रुव हेलीकॉप्टर’ जो सेना के काम आएगा, वो आज भारत की तरफ से नेपाल को हम समर्पित कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि नेपाल को एक अच्छा रक्षा कवच मिलेगा, वो एक नई ताकत बनेगा। यहां पर पुलिस एकेडेमी का काम भी, उसका foundation stone, उसकी चिंता भी हम करेंगे।

यानि अनगिनत चीज़ें, सौ दिन के भीतर-भीतर, अनगिनत चीज़ों का एक के बाद एक हो जाना, ये अपने आप में ही दो सरकारों के बीच विश्वास की ताकत कितनी बड़ी गति देती है, कितना बड़ा परिणाम देती है।

मेरा ये सौभाग्य रहा कि पिछली बार जब मैं आया, तब आपकी संविधान सभा को संबोधित करने का मुझे अवसर मिला था। Constituent Assembly को संबोधित करने का अवसर मिला था। एक प्रकार से नेपाल के सभी stake holdres कहिए, नेपाल की सभी क्रीम कहिए - उस सभी विशाल समूह के सामने मैं आया था। तब मैंने कहा था कि नेपाल जितना जल्द अपना सविंधान बनाएगा, उतना ही नेपाल के भविष्य के लिए वो एक नई ताकत मिलेगी। नेपाल के संविधान के निर्मिति में जितना विलंब होगा, वो विलंब नेपाल के लिए अच्छा नहीं होगा। संविधान आप बनाएं, आपके तरीके से बनाइए, आपके निर्णय होंगे, भारत का उसमें कोई दखल नहीं हो सकता, होना भी नहीं चाहिए। लेकिन, आपकी खुशी, हमें मुस्कुराहट देती है और इसलिए भी संविधान का जल्दी बनना बहुत ज़रूरी है। मेरा यह भी आग्रह था कि संविधान के अंदर एक ऐसा गुलदस्ता बने कि नेपाल के हर कोने में रहने वाले व्यक्ति को लगे कि मेरा भी फूल उस गुलदस्ते में है। मेरे फूल की महक भी उस गुलदस्ते में है। कभी मधेसी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? कहीं पहाड़ी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? माओवादी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? ये संविधान ऐसा होना चाहिए कि जिसमें हर किसी की आवाज़ हो, हर किसी के सपने हों, हर किसी के अरमान हों, हर किसी को काम करने का अवसर हो। इस काम में नेपाल की संविधान सभा बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है, लेकिन समय बहुत जा रहा है।

इसलिए मैं आज सार्वजनिक रूप से आज नेपाल के सभी राजनीतिक नेताओं से आग्रह करूंगा कि सविंधान का निर्माण सहमति से ही करने से फायदा होगा। संख्या के बल पर संविधान का निर्माण कभी भी नेपाल का भला नहीं करेगा। सहमति से संविधान बने और आगे चलकर भी - आज भी, भारत का संविधान, इतने वर्ष हो गए, हर वर्ष हम कुछ न कुछ amendment करते ही जाते हैं। और वो amendment दो तिहाई से करते हैं। एक बार सविंधान सहमति से बने, बाद में संसद बने और संसद में दो चार चीज़े जोड़नी, कम करनी लगती हैं, तो आप दो तिहाई बहुमत से ज़रूर कर सकते हैं। लेकिन, पहला प्रारूप अगर सबको अपना नहीं लगता है तो नेपाल को बहुत बड़ी कठिनाई आएगी।

आपके एक मित्र देश के नाते, आपको दुख हो, आपको कठिनाई हो और हमें समझ हो, तो वो स्थिति हम देखना नहीं चाहते हैं। फिर एक बार, आज सार्वजनिक रूप से, जिस प्रकार से ज़िंदगी बचाने के लिए ये Trauma Center काम आ रहा है, उसी प्रकार से नेपाल के सपनों को संवारने के लिए संविधान एक अवसर बन करके आ रहा है। मैं चाहूंगा कि संविधान की पवित्रता, उसी पवित्र भाव से..और मैंने कहा था कि ऋषि-मन होगा तो संविधान बनेगा, संविधान सभा में बैठे हर व्यक्ति का ऋषि-मन होना चाहिए और ऋषि-मन को लेकर संविधान का निर्माण होगा, ये मैंने आग्रह से कहा था।

मैं आज फिर नेपाल की धरती पर आया हूं। मैं विश्वनाथ की धरती पर काम करता हूं, पशुपतिनाथ की धरती पर आया हूं। तो मेरा भी आपको प्रार्थना करने का हक बन जाता है। मैं प्रार्थना करने आया हूं। मैं उसी धरती से आया हूं। बोध गया से मैं आज एक पौधा ले करके आया हूं, जो हमारे एम्बेसेडर लुम्बिनी में जा करके उसको रोपित करने वाले हैं। एक ऐसा संदेश ले करके आया हूं जो हमें सांस्कृतिक प्राणशक्ति देता रहता है और उस भरोसे भी मैं कह सकता हूं कि मैं प्रार्थना करता हूं कि आप संविधान बनाने के काम में विलंब मत कीजिए। सहमति से बनाने का ही प्रयास कीजिए और सारे रास्ते नए संकटों को जन्म देंगे। मैं अयोध्या और जनकपुरी का नाता जानता हूं, इसलिए भी हम लोगों को आपसे प्रार्थना करने का हक बनता है कि आप सहमति से संविधान का निर्माण कीजिए, जल्द कीजिए। लोगों की आशाओं पर आप खरे उतरें।

आप देखिए कि आप लोगों का नेतृत्व नेपाल को कहां से कहां पहुंचाएगा और युग इस भूभाग के भविष्य का है। एशिया के भविष्य का समय है। नेपाल को ये मौका चूकना नहीं चाहिए। विश्व के अंदर एक ताकत बन करके नेपाल ने खड़े होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था नेपाल को एक नई ताकत देगी, नई पहचान देगी, विश्व नेपाल को स्वीकार करने लग जाएगा। ये स्थिति आपके हाथों में है, मौका आपके पास है। 30-40 दिन का समय बचा है। मैं विश्वास करता हूं कि इस काम को आप आगे बढ़ाएंगे।

फिर एक बार, ये Trauma Center यहां के किसी भी पीड़ित को बचाने के काम आएगा, भारतवासियों को बहुत संतोश होगा। हमारे लिए एक प्रकार से ‘सेवा परमोधर्म’, जीव-दया का ये काम हुआ है, एक मन के संतोश के साथ, मुझे इस अवसर पर आने का अवसर मिला, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं। प्रधानमंत्री जी का बहुत बहुत आभारी हूं। उनके परिवार में संकट होने के बाद भी, जिस उमंग और उत्साह के साथ इस पूरे सार्क समिट की आप चिंता कर रहे हैं। पूरा नेपाल अभिनंदन का अधिकारी है। मैं ऐयरपोर्ट से उतरा हूं, मैं देख रहा हूं, क्या उत्साह है, क्या उमंग है। आपने सार्क देशों के सभी नेताओं का दिल जीत लिया है। इन व्यवस्थाओं के लिए नेपाल ने जो ताकत दिखाई है, अपनापन दिखाया है, बहुत बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। प्रधानमंत्री जी को और पूरे नेपाल को मैं हृदय से नमन करता हूं, बहुत बहुत अभिनंदन करता हूं।

धन्यवाद।

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Today, India is becoming the key growth engine of the global economy: PM Modi
December 06, 2025
India is brimming with confidence: PM
In a world of slowdown, mistrust and fragmentation, India brings growth, trust and acts as a bridge-builder: PM
Today, India is becoming the key growth engine of the global economy: PM
India's Nari Shakti is doing wonders, Our daughters are excelling in every field today: PM
Our pace is constant, Our direction is consistent, Our intent is always Nation First: PM
Every sector today is shedding the old colonial mindset and aiming for new achievements with pride: PM

आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।