QuotePeople of India are the smartest. Wonders will happen when skills of all 125 crore people across the country are harnessed: PM Modi
QuoteSwachhta initiative has become closest to people’s heart. People have become more aware about Swachhta & are aspiring for a change: PM
QuoteUrbanisation shall not be considered as an obstacle but an opportunity: PM Narendra Modi
QuoteGone are those days when there were competitions to be poorer. Today, our cities are marching on the path of progress: Modi
QuoteCities shall not be evaluated on the size of its roads or the buildings. Every city has its own distinct identity: PM Narendra Modi
QuoteSmart cities are about modern facilities and becoming centres of development: PM

हमारे देश में ऐसा तो नहीं है कि पहले कोई काम नहीं होता था। ऐसा भी नहीं है कि सरकारें बजट खर्च नहीं करती थी। लेकिन उसके बावजूद भी दुनिया के कई देश हमारे बाद आजाद हुए। बहुत ही कंगाल आर्थिक स्थिति से आए। क्‍या कारण है कि इतने कम समय में दुनिया के कई देश हम से बहुत आगे निकल गए और मैं लगातार यह सवाल अपने आप से पूछता रहता हूं, सोचता रहता हूं और लोगों से विचार-विमर्श करता हूं। पुराने अनुभवों पर जरा Analyse भी करता हूं। यह लगातार मंथन चलता रहता है। और अनुभव यह आया है कि हम जो लोग सरकारों में बैठे हैं, सरकारों में, व्‍यवस्‍थाओं में, लाखों मुलाजिमों की जो फौज है, अफसर है, बाबू है हम सबसे पंचायत प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक, गांव के पटवारी से लेकर कैबिनेट सेक्‍ट्ररी तक हम सब भले लाखों की तादाद में हो, लेकिन हम सबसे ज्‍यादा अगर कोई स्‍मार्ट है तो देश का नागरिक है।

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अगर एक बार देश के इन सवा सौ करोड़ नागरिकों की ताकत को झकझोर दिया जाए, अच्‍छे कामों के लिए झोंक दिया जाए तो सरकरों की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी, अपने आप दुनिया चल पड़ेगी, बहुत तेजी से चल पड़ेगी और इसलिए यह Smart City Concept यह सिर्फ इस काम के लिए इतने पैसे दिये जाएंगे, वो नहीं है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा जनांदोलन है। यह बीते हुए कल के अनुभव के आधार पर उज्‍जवल भविष्‍य की नींव रखने का एक सार्थक प्रयास है और मैं अनुभव कर रहा हूं कि यह प्रयोग सफल रहा है। जब शुरू में हमारे सचिव मेरे पास आते थे, वैंकेया के साथ Department में सर खपाते थे, उनके मन में बड़ी उलझन रहती थी कि शहर कैसे तय करेंगे। और हमारा देश ऐसा है कि आप एक ही शहर में रोड के इस तरफ काम करो तो रोड के उस तरफ वाले लोग आंदोलन करते रहेंगे, यहाँ क्‍यों नहीं। तो यह हमारे देश की एक मास्‍टरी हमने इसमें प्राप्‍त कर ली है। ऐसे में कोई भी शहर select करते, तो पता नहीं कितना भला कर पाते लेकिन बाकियों को नाराज करने के लिए बहुत बड़ा अवसर पैदा हो जाता। 

अभी वसुंधरा जी ने मुझे अभिनंदन दिया, वैंकेया जी को अभिनंदन दिया कि आपने जयपुर और उदयपुर को select किया। मैं वसुंधरा जी से कहना चाहूंगा हमने select नहीं किया है। यह हमें जो आपने अभिनंदन दिया है वो वापस ले लो, लेकिन यह अभिंनदन जयपुर के लागों को दो, उदयपुर के लोगों को दो। वे इस स्‍पर्धा में विजयी हुए हैं। उन्‍होंने इन पैरामीटर को पूरा करने के लिए ताकत दिखाई है, कठिनाईयां झेली है। समय-सीमा में काम पूरा करने के लिए दौड़े हैं।

और आज जिन 20 शहरों के लिए कोई न कोई काम का खाका बन चुका है। कुछ न कुछ काम आरंभ हो चुका है।

बहुत से काम, अभी जो वेंकैया जी गिना रहे थे, उनको एक बड़ी गति मिल रही है। इसका मूल कारण उस इकाई में नेतृत्‍व करने वाले लोग, वहां पर बैठे हुए कॉरपोरेशन के कर्मचारी भाई-बहन और उस नगर के जागरूक नागरिक, उन सबका सामूहिक प्रयास है कि हरेक के मन मे एक इच्‍छा जगी है कि इस बार हिन्‍दुस्‍तान में हमारा शहर भी नंबर एक होना चाहिए।

देश में हम पिछड़े हैं, हम गरीब हैं, इसका competition चलाया गया। पीछे जाने के लिए रास्‍ते कौन-से हैं, वो ढूंढे जा रहे थे। ये सरकार है जो आगे जाने का competition कर रही है, आगे जाने के रास्‍ते तलाश रही है।

मैं आज इस मंच से कुछ मीडिया हाउस का भी अभिनंदन करना चाहता हूं। कई अखबारों ने इस काम को मिशन mode में लिया। उन्‍होंने अपने अखबार के माध्‍यम से उस नगर के नागरिकों को जागृत करने का प्रयास किया। दबाव पैदा किया और ये हुआ है। अभी मैसूर स्‍वच्‍छता में नंबर ले गया तो बैंगलोर के अंदर बड़ा तूफान था, क्‍या हो गया भई! बैंगलोर पीछे क्‍यों रह गया। अब जोर लगाएंगे, बैंगलोर को आगे ले जाएंगे। ये एक माहौल बना है। हमें इस बात को और आगे बढ़ाना है।

हर सब दूर एक स्‍पर्धा का माहौल हो और जन भागीदारी से हो।

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आज, अभी एक प्‍लेटफॉर्म को launch किया गया है। पुणे कैसा बने, ये दिल्‍ली वाला सोच ही नहीं सकता है, जितना कि पुणे वाला सोच सकता है। भुवनेश्‍वर कैसा बने, भुवनेश्‍वर की किस गली में क्‍या काम हो, फुटपाथ कहां हो, साईकिल का रास्‍ता कहां हो, तालाब कहां हो, फुव्‍वारा कहां हो, अस्‍पताल कहां हो, पार्किंग कहां हो, वो भुवनेश्‍वर का निर्णय दिल्‍ली में नहीं हो सकता है। लेकिन अगर वेब पर कोई जोधपुर का idea आएगा तो भुवनेश्‍वर वाला भी देखेगा, यार! ये जोधपुर वालों ने कुछ नया सोचा है, चलो हम भी कुछ अपने भुवनेश्‍वर में नया देखें, कैसा हो सकता है। एक बहुत बड़ा development में participatory approach और वो भी talent pool का एक प्रयास। और यह मैं मानता हूं कि आने वाले दिनों में एक बहुत बड़ा परिवर्तन का कारण बनने वाला है।

स्‍वच्‍छता, हमारे देश में सर्वप्रिय विषय बन गया है। एक जमाना ऐसा था कि सरकारों की वो स्‍कीम popular होती थी जिसमें सरकारी खजाने से कुछ मिलता था। किसी की जेब में कुछ आता था, किसी के पेट में कुछ आता था, किसी के गाँव में कुछ आता था । तब लोग मानते थे हाँ यह कोई अच्छी स्कीम लाये हैं|

पहली बार उसमें बदलाव आया कि जिसमें प्रधानमंत्री कुछ दे नहीं रहा है। ज्‍यादा से ज्‍यादा सलाह दे रहा है और कह रहा है, भई! हम सबको स्‍वच्‍छ रहना चाहिए, स्‍वच्‍छता रखनी चाहिए, घर-शहर से लेकर के शहर स्‍वच्‍छ रहे। सरकार कुछ भी न दे लेकिन जनता कहती है। सारे survey देख लीजिए, मीडिया के लोगों ने जितने survey किए, हरेक में top number पर कोई स्‍कीम लोगों को popular लगी है, वो स्‍वच्‍छता लगी है। इसका मतलब यह हुआ कि अब तक तो हिन्‍दुस्‍तान में सोचा जाता था कि लोगों को कुछ मिले, वहीं लोगों को पसंद होता है, वो सोच|

हमने हमारे देश के सामर्थ्‍यवान लोगों के साथ अन्‍याय किया है, ऐसी सोच बनाकर के.. ये वो लोग नहीं है, मेरे देशवासी, जो कुछ पाने की तलाश में होते हैं, वो तो कहते है कि हमें अवसर दो, हम कुछ करना चाहते हैं। और ये करने का मिजाज है। ये स्‍वच्‍छता का अभियान उस मिजाज का प्रतिबिंब है। जो सामान्‍य मानविकी को लगता है कि नहीं, बहुत हो गया। अब बदलाव लाना है।

एक समय था हमारे देश में। आप पुराने अखबार निकालोगे, कई article पढ़ोगे, analysis देखोगे, urbanisation, इसको एक बहुत बड़ा संकट माना गया है। हर बार ये urbanisation हो रहा है, क्‍या होगा, कैसा होगा, यही चर्चाएं चल रही हैं। मेरा सोचना अलग है। हम urbanisation को समस्‍या न समझे, हम urbanisation को opportunity समझें। ये अवसर है, ये शहरीकरण हो रहा है। इसे हम संकट न समझे, इसे अवसर समझे। अगर संकट समझेंगे तो उसको address करने का हमारा तरीका वही होगा, अरे यार! देखो वहां कुछ लोग बस गए है, अब क्‍या करे, पानी कैसे पहुंचाए, बिजली कैसे पहुंचाए, क्‍या करे यार, इनके बच्‍चों के लिए स्‍कूल का क्‍या करे। दिमाग में सिर दर्द। इसके बजाए हम एक opportunity मानकर के कि 2016 में हमारा पुणे ऐसा है, 2025 में ये संभावना है। भई! इस तरफ आगे बढ़ सकते हैं, इस तरफ आगे बढ़ सकते हैं, आसमान में ऐसे जा सकते हैं, गति ऐसे ला सकते हैं, पानी drainage का इतना जाएगा, ये व्‍यवस्‍था.. ये अभी से सोचना शुरू होगा तो वो अवसर में पलट जाएगा। इसलिए हम इस urbanisation को एक अवसर में पलटना चाहते हैं।

हम मानें या न मानें, शहर की एक वो ताकत होती है जिस पर हमारे आर्थिक क्षेत्र के लोग एक अलग रूप में, terminology में उसको देखते हैं, growth sector कहते हैं। मैं उसको अलग तरीके से देखता हूं। मैं कहता हूं कि अगर गरीबी को पचाने की किसी में सबसे ज्‍यादा ताकत है तो वो शहर में होती है। शहर गरीबी को पचा पाता है और इसी के कारण जहां ज्‍यादा गरीबी होती है, वहां से लोग निकलकर के शहरों की ओर जाते हैं क्‍योंकि उनको एक आशा होती है कि उस शहर में कुछ न कुछ काम तो मिल जाएगा। शाम को खाना खाकर सो पाऊंगा, मॉं-बाप को 50-100 रुपए भेज पाऊंगा, इतना तो मेरा गुजारा हो जाएगा; इस विश्‍वास के साथ वो शहर में आता है और कुछ ही दिनों में, चाहे वो गाड़ी साफ करता होगा, चाहे वो साईकिल में हवा भरता होगा, कुछ भी करता होगा। लेकिन रास्‍ता खोज लेता है। ये इसलिए संभव होता है क्‍योंकि शहर में गरीबी को पचाने की ताकत होती है। अब ये हमारी जिम्‍मेवारी है कि हम शहर को वो ताकत दें, शहर में वो सामर्थ्‍य दे कि वो सर्वाधिक गरीबी को पचा पाए, जल्‍दी से गरीबी को पचा पाए और उसी गरीबी से जो पचाकर के जो ताकत, ऊर्जा पैदा हो, उससे विकास के नए आयाम पैदा करें; इस दिशा में हमने सोचा है।

ये संभव है, ये मुश्‍किल काम नहीं है। हर शहर को इमारतों से, रास्‍तों के साइज से नापा नहीं जा सकता। हर शहर की अपनी एक खूबसूरती होती है। हर शहर की अपनी एक आत्‍मा होती है, हर शहर की अपनी एक पहचान होती है। हम जब स्‍मार्ट सिटी की बात करते हैं, तब उस शहर की पहचान, उसकी आत्‍मा उसको विशेष रूप से बल देने के लिए हम जनता-जनार्दन से सुझाव मांगते हैं। जैसे जयपुर ने अपनी स्‍मार्ट सिटी की जो कल्‍पना की है, उसमें एक विचार उन्‍होंने यह भी रखा है कि हम night time heritage walk का एक नया सिलसिला शुरू करना चाहते हैं। इसका मतलब हुआ, वो सिर्फ बंद घरों के सामने heritage walk थोड़ी होगा, रात के समय टूरिस्‍ट आएंगे तो उनके लिए कोई विशेष बिजली का प्रबंध होगा। उनका समय अच्‍छी तरह बीते, इसके लिए कुछ व्‍यवस्‍था होगी। यानी शहर रात को भी जय-जयकार करना शुरू हो जाएगा, तब वो जयपुर कहलाएगा।

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हर शहर आज भी, अगर बनारस धार्मिक कारणों से तो परिचित होगा लेकिन हिन्‍दुस्‍तान की कोई महिला ऐसी नहीं होगी जिसे बनारस की साड़ी का पता न हो। हर शहर की अपनी एक पहचान होती है। इसलिए 21वीं सदी में हमारी उस पहचान को हम नई ऊर्जा कैसे दे सकते हैं, आधुनिक रंग-रूप से कैसे सजा सकते हैं ताकि आत्‍मा वही रहे, लेकिन कायाकल्‍प होकर के एक सुरेख पहचान बन जाए। ‘स्‍मार्ट सिटी’ इसलिए मैंने कहा कि ये इमारतों का खेल नहीं है। बदली हुई जिन्‍दगी में व्‍यवस्‍थाएं गति चाहती है। कम से कम wastage चाहती है।

आज technology का, एक individual व्‍यक्‍ति अपने स्‍मार्ट मोबाइल फोन से technology का उपयोग कर लेता है। लेकिन ये technology सामूहिक सेवा का माध्‍यम कैसे बने। चंद्रबाबू जी को हमने सुना। किस प्रकार से उन्‍होंने digital world का उपयोग जनसामान्‍य की सेवा के लिए किया है। आज जो पुणे की योजनाएं launch हुई, उसमें digital world का उपयोग, लोक सुखाकारी में कैसे किया जाएगा, उसकी चीजें launch हुई है।

LED bulb का अभियान पूरे देश में चल पड़ा है। हमारे देश में अगर कोई सरकार ये कहे कि हम आने वाले दिनों में एक लाख करोड़ रुपए Energy sector में, बिजली के उत्‍पादन में लगाएंगे। 20 हजार मेगावॉट बिजली उत्‍पादित करेंगे और लोगों को बिजली देंगे। तो मैं कहता हूं जी.. तीन दिन तक अखबारों की headline में आया था, वाह मोदी जी वाह! एक लाख करोड़ रुपए, 20 हजार मेगावॉट बिजली, वाह, वाह। ये होता है न? लेकिन जो LED bulb का अभियान चलाया है, जिस दिन वो संपूर्ण चक्र पूरा हो जाएगा, मेरे देशवासियों आप खुश हो जाएंगे। 20 हजार मेगावॉट बिजली बचेगी। एक लाख करोड़ रुपए बचेंगे और ये मेरे देश के गरीबों का पैसा बचने वाला है।

अब तरीका क्‍या हो? Solar Energy का अभियान आज पुणे शहर तो solar project को already operation कर रहा है और काफी बड़ा लक्ष्‍यार्थ रखा है उन्‍होंने। Roof top Solar, हमारे घरों के ऊपर, छत पर बिजली पैदा हो, घर के उपयोग में आए और जो अधिक बिजली है वो सरकार खरीद ले। आप देखिए बिजली के संकट को कैसे निपटाया जा सकता है, कैसे इसका बदलाव लाया जा सकता है, परिवर्तन कैसे लाया जाए। जब तक हम चीजों को टुकड़ों में सोचते हैं, बदलाव नहीं आता है। Comprehensive होना चाहिए, interconnected होना चाहिए और result oriented होना चाहिए।

हम ये कहें कि स्‍वच्‍छता लेकिन फिर सवाल आता है कि आज जमीन महंगी हो रही है। स्‍वच्‍छता करेंगे तो कूड़ा-कचरा डालेंगे कहां, landfill कहां होंगे, landfill के लिए ले जाना है तो अब तो शहर बढ़ता चला जा रहा है, कितना दूर जाएंगे, कितना transportation का खर्चा होंगा? लेकिन हमारी कोशिश है waste to wealth. Waste में से wealth create करना। पहली बार देश में, urban bodies में से जो कूड़ा-कचरा निकलेगा, उसमें से compost fertilizer बनाना और पहली बार compost fertilizer हमारे किसान खरीदे, उसके लिए जैसे यूरिया में सब्‍सिडी दी जाती थी वैसे अब भारत सरकार ने compost fertilizer में भी सब्‍सिडी देने का निर्णय किया है। इसके कारण ये जो हमारे chemical fertilizer के कारण किसान की जमीन बर्बाद हो रही है, हमारी धरती माता तबाह हो रही है, उसको बचाने का भी काम होगा, शहर में सफाई का भी काम होगा और compost बनने के बाद बेचने से दोनों की win-win situation होगी। उस नगरपालिका को भी कुछ पैसा मिलेगा, उस महानगरपालिका को भी कुछ पैसा मिलेगा।

Solid waste management, liquid waste management, आज पानी का संकट है। कभी-कभी तो हमारे मीडिया के लोग चीजों को कहां से कहां ले जाते हैं कि आप क्रिकेट भी नहीं खेल सकते हैं। जहां भी स्‍टेडियम होंगे, जहां भी क्रिकेट का मैच होता होगा। क्रिकेट का मैच हो या न हो, 365 दिन उनको तो पानी छिड़कना ही पड़ता है। लेकिन देश ने मान लिया कि मैच बंद हो गया तो पानी छिड़कना बंद हो गया। मान लिया देश ने। धन्‍य हो। उनको तो 365 दिन पानी पिलाना ही पड़ता है। तभी तो greenery रहती है, वरना तो उस स्‍टेडियम में कभी दो साल के बाद भी खेल होना संभव नहीं रहेगा। लेकिन अब पता नहीं वो कहां से लाते हैं, नई-नई, बड़ी-बड़ी philosophy चल जाती है और उसके कारण महाराष्‍ट्र का काफी नुकसान भी हुआ। लेकिन solid waste के साथ-साथ liquid waste... हमारा यह जो drainage का पानी है, उसको हम verification, उस पानी का बगीचे में उपयोग, खेत में उपयोग, इस प्रकार के कामों में उपयोग तो भविष्‍य में हम पानी के संकट को अच्‍छी भली-भांति वितरित कर पाएंगे। और इसलिए जनसंख्या की आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए हमें चीजों को देखना पड़ेगा। क्‍यों न हमारे देश के लोगों को International जो norm हैं पानी मिलने के, घर में उपयोग के उस तक हम पहुंच नहीं पाते हैं क्‍या, क्‍यों न पहुंच पाते। हम कोशिश तो करे, शुरू तो करे। एक लीटर, पांच लीटर, सात लीटर पानी बढ़ाते चले।

हम हर व्‍यक्ति को परिवार को मकान देना चाहते हैं। शहरों में झुग्‍गी-झोपड़ी को पुणे ने project लिया है। झुग्‍गी झोपड़ी को Housing Scheme में convert करके उनको मकान देने का। आप देखिए जीवन बदल जाता है। गरीब आदमी को भी, झुग्‍गी-झोपड़ी में रहता है तो सोचने का तरीका एक होता है, लेकिन अगर उसको रहने के लिए छत मिल जाए, मकान मिल जाए, तो वो भी सोचता है कि यह पर्दे लाएं तो चलो अच्‍छा होगा नहीं तो पुरानी साड़ी को लगाकर पर्दा बना दो भई। यह खिड़की ठीक नहीं है। उसका दिमाग शुरू होता है। झुग्‍गी-झोपड़ी में रहता था उसको footrest की जरूरत नहीं थी अब लगता है यार ऐसा करो एक ताड़ को छोटा सा पीस भी तो रखो, घर में कोई आता है तो पैर साफ करके आएगा। उसको लगता है कि यार पैसा बचा लो, दरी लादे मेहमान आएंगे तो बैठने के लिए काम आएगी।

मकान मिलते ही सिर्फ चार दीवारें नहीं मिलती, छत नहीं मिलती, जिंदगी की नई सोच मिल जाती है। उसके भीतर एक expression पैदा होता है और आखिरकार प्रगति का कोई अगर सबसे बड़ी ताकत है, तो योजनाएं नहीं होती हैं सवा सौ करोड़ देशवासियों का expression होता है जो गति लाता है, लक्ष्‍य की पूर्ति का कारण बनता है और देश एक विशालता और भव्‍यता की ओर आगे बढ़ करके अपने आप का डंका बजाता है।

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और इसलिए यह competition का युग है। मैं सभी शहरों को निमंत्रित करता हूं। यह चुनौती है। देश के सभी शहर और सिर्फ उसकी elected body या उसके मुलाजिम नहीं, उस शहर का नागरिक उस चुनौती को स्‍वीकार करे। चाहे स्‍वच्‍छता की स्‍पर्धा होगी, चाहे Smart City में entry पानी होगी, शहर को Smart बनाकर रहना होगा। यह जन भागीदारी से होगा, जन संकल्‍प से होगा। जब मैंने माई गोव डॉट इन पर लोगों से कहा आप इस पर सुझाव दीजिए, आप हैरान होंगे 25 लाख से ज्‍यादा लोगों ने serious nature के सुझाव भेजे हैं। जिसको सरकार को ध्‍यान में लेना पड़े, ऐसे 25 लाख लोगों ने contribution किया। जितनी जन भागीदारी बढ़ती है.. मैंने बीच में मन की बात में एक बार यही कहा था कि हमारे रेलवे स्‍टेशन पर हमारे अपने गांव की पहचान क्‍यों न हो। अंग्रेजों ने हमारे रेलवे स्‍टेशन जब बनाए तो उनके दिमाग में वो पिजा हाउस जैसा था। अमेरिका में आप किसी भी कोने में जाओ एक ही प्रकार के पिजा हाउस होता है। तो हमारे रेलवे स्‍टेशन भी एक ही प्रकार के हैं। आप जाएंगे तो दायीं ओर यह आएगा, बायीं ओर यह.. पक्‍का सा। भारत ऐसा नहीं है। भारत विभिन्‍नताओं से भरा हुआ है। उसे नवीनीकरण चाहिए। मैंने कहा ठीक है दीवारें तोड़ने की जरूरत नहीं है, लेकिन दीवारों के रंग-रूप बदल कर तो शहर की पहचान बना सकते हो। और मैं इतना हैरान हुआ महीने के भीतर-भीतर उस गांव के, नगर के जो भी Artist थे, स्‍कूल के बच्‍चे थे, स्‍कूल का ड्राइंग टीचर था सब लोग रेलवे स्‍टेशन पर पहुंच गए। जो भी अपने पास था वो अपना कलर का काम करने लग गए और इतनी सुंदर दीवारें पेंट की है। छोटे-छोटे रेलवे स्‍टेशनों ने अपनी पहचान बना दी और नगर की पहचान को उन्‍होंने जोड़ दिया है।

आज देश के लोगों को बदलाव चाहिए। बदलाव में वो शरीक होना चाहते हैं, जुड़ना चाहते हैं। यह smart city उसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है। कुछ लोगों को smart शब्‍द सुनते ही बड़ा परेशानी हो रही है। कोई ऐसा करने जा रहे हैं जो कभी सोचा, ऐसा नहीं है जी। मेरी smart की कल्‍पना बड़ी simple है जी लोगों को पीने का पानी sufficient मिले। सोसायटी के पहले वाले मकान को तो मिले और आखिर वाले मकान को न मिले ऐसा तो नहीं होना चाहिए। होता यही है न कि एक इलाके में पानी आता है जो आगे हैं उनको पानी पहुंचता है जो पीछे हैं उनको पानी नहीं पहुंचता है। बिजली सबको मिले, समान रूप से मिले। लोक सुविधा की आवश्‍यकता को आधुनिक ढांचे से परिपूर्ण करना है। यह प्रयास है और जैसा मैंने कहा एक ऐसी आर्थिक गतिविधि का केंद्र बने। Development Environment friendly हो, Green हो। गरीबी को पचाने की ताकत जितनी ज्‍यादा बढ़े, उतना शहर का विकास सही दिशा में है। वो जितनी गरीबी को पचा पाए, अपने आप economy आगे बढ़ेगी। घर में वही मेहमान को खिला सकता है, जो दो टाइम सुख से खा सकता है, वरना मेहमान को कैसे खिला पाएगा और इसलिए शहर भी आर्थिक दृष्टि से वो viable सी होनी चाहिए, वो ताकत होनी चाहिए कि जो बाहर से गरीबी हमारे यहाँ आती रहती है उस गरीबी को संभालने की, पचाने की, उस गरीबी से उसको बाहर निकालने की ताकत इस शहर में होनी चाहिए। तो एक नया बदलाव, नये तरीके से बदलाव, जन भागीदारी से बदलाव उसकी दिशा में प्रयास चला है।

मैंने कुछ दिन पहले क्‍या-क्‍या काम हुआ उसका review किया। मैं सचमुच इतना प्रसन्‍न हो गया कि जनता के भरोसे पर कोई काम करते हैं तो कितनी ताकत होती है, उसका यह उदाहरण है। यह smart city, इतने लोग उसमें जुड़ रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं। सारे Architecture, पहले आप Architecture को कहोगे कि यह काम है तो वो कहेगा कि साहब यह Tender कब निकलने वाला है। आज वो Tender को नहीं पता है, बोलेगा हां-हां, हम भी competition में आएंगे, हम भी करेंगे। पूरा माहौल बदल गया है। तो मैं फिर एक बार श्रीमान वैंकेया नायडू जी, उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। पुणे शहर को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। लेकिन पुणे वाले याद रखे आप शायद डेढ़ मार्क्‍स से नंबर-2 हो गए हैं। सिर्फ डेढ़ मार्क्‍स से पीछे रहे गए। अगर डेढ़ मार्क्‍स आपको ज्‍यादा होता, तो भुवनेश्‍वर की जगह आप होते। आप देखिए कितनी बढि़या competition चल रही है। मैं अगली बार पुणे आऊंगा तो चाहूंगा कि अगली बार जब कोई भी competition हो यह हमरा पुणे होना नंबर वन चाहिए। यह छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत है, यह लोकमान्‍य तिलक की अमानत है और इसलिए उसी मिजाज से हम पुणे को आगे ले जाए और देश के लोगों से मैं कहता हूं आप भी फैसला कीजिए पुणे से पीछे रहना नहीं है। देखिए कितना मजा आता है।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Prime Minister lauds the inscription of ‘Maratha Military Landscapes of India’ on the UNESCO World Heritage List
July 12, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi has expressed immense pride and joy over the inclusion of the Maratha Military Landscapes of India in the prestigious UNESCO World Heritage List.

He noted that the inscribed heritage comprises 12 majestic forts- 11 located in Maharashtra and 1 in Tamil Nadu.

Highlighting the significance of the Maratha Empire, the Prime Minister remarked, “When we speak of the glorious Maratha Empire, we associate it with good governance, military strength, cultural pride and emphasis on social welfare. The great rulers inspire us with their refusal to bow to any injustice.”

He urged citizens to visit these forts to learn about the rich history of the Maratha Empire.

The Prime Minister also shared cherished memories from his 2014 visit to Raigad Fort, including a photograph where he paid tribute to Chhatrapati Shivaji Maharaj.

Responding to the X post of UNESCO about aforesaid recognition, the Prime Minister said;

“Every Indian is elated with this recognition.

These ‘Maratha Military Landscapes’ include 12 majestic forts, 11 of which are in Maharashtra and 1 is in Tamil Nadu.

When we speak of the glorious Maratha Empire, we associate it with good governance, military strength, cultural pride and emphasis on social welfare. The great rulers inspire us with their refusal to bow to any injustice.

I call upon everyone to go visit these forts and learn about the rich history of the Maratha Empire.”

“Here are pictures from my visit to Raigad Fort in 2014. Had the opportunity to bow to Chhatrapati Shivaji Maharaj. Will always cherish that visit.”