The student in us should always be alive: PM Modi at Banaras Hindu University

Published By : Admin | February 22, 2016 | 18:49 IST
People who studied here have contributed through various ways, be it as a doctor, a teacher, a civil servant: PM at BHU
I congratulate those who were conferred their degrees today. I also convey my good wishes to their parents: PM Modi
The student is us has to be alive always: PM Narendra Modi
Being inquisitive is good. We must have the thirst for knowledge: PM Modi
After you receive your certificate, the way the world will look at you changes: PM Modi to students at the BHU convocation
World faces several challenges. We should think about what role India can play in overcoming these challenges: PM

सभी विद्यार्थी दोस्‍तों और उनके अभिभावकों, यहां के सभी faculty के members, उपस्थित सभी महानुभाव!

दीक्षांत समारोह में जाने का अवसर पहले भी मिला है। कई स्‍थानों पर जाने का अवसर मिला है लेकिन एक विश्‍वविद्यालय की शताब्‍दी के समय दीक्षांत समारोह में जाने का सौभाग्‍य कुछ और ही होता है। मैं भारत रत्‍न महामना जी के चरणों में वंदन करता हूं कि 100 वर्ष पूर्व जिस बीज उन्‍होंने बोया था वो आज इतना बड़ा विराट, ज्ञान का, विज्ञान का, प्रेरणा का एक वृक्ष बन गया।

दीर्घदृष्‍टा महापुरुष कौन होते हैं, कैसे होते हैं? हमारे कालखंड में हम समकक्ष व्‍यक्ति को कभी कहें कि यह बड़े दीर्घदृष्‍टा है, बड़े visionary है तो ज्‍यादा समझ में नहीं आता है कि यह दीर्घदृष्‍टा क्‍या होता है visionary क्‍या होता है। लेकिन 100 साल पहले महामना जी के इस कार्य को देखें तो पता चलता है कि दीर्घदृष्‍टा किसे कहते हैं, visionary किसे कहते हैं। गुलामी के उस कालखंड में राष्‍ट्र के भावी सपनों को हृदयस्‍थ करना और सिर्फ यह देश कैसा हो, आजाद हिंदुस्‍तान का रूप-रंग क्‍या हो, यह सिर्फ सपने नहीं है लेकिन उन सपनों को पूरा करने के लिए सबसे प्राथमिक आवश्‍यकता क्‍या हो सकती है? और वो है उन सपनों को साकार करे, ऐसे जैसे मानव समुदाय को तैयार करना है। ऐसे सामर्थ्‍यवान, ऐसे समर्पित मानवों की श्रृंखला, शिक्षा और संस्कार के माध्‍यम से ही हो सकती है और उस बात की पूर्ति को करने के लिए महामना जी ने यह विश्‍वविद्यालय का सपना देखा।

अंग्रेज यहां शासन करते थे, वे भी यूनिवर्सिटियों का निर्माण कर रहे थे। लेकिन ज्‍यादातर presidencies में, चाहे कोलकाता है, मुंबई हो, ऐसे स्‍थान पर ही वो प्रयास करते हैं। अब उस प्रकार से मनुष्‍यों का निर्माण करना चाहते थे, कि जिससे उनका कारोबार लंबे समय तक चलता रहे। महामना जी उन महापुरुषों को तैयार करना चाहते थे कि वे भारत की महान परंपराओं को संजोए हुए, राष्‍ट्र के निर्माण में भारत की आजादी के लिए योग्‍य, सामर्थ्‍य के साथ खड़े रहे और ज्ञान के अधिष्‍ठान पर खड़े रहें। संस्‍कारों की सरिता को लेकर के आगे बढ़े, यह सपना महामना जी ने देखा था।

जो काम महामना जी ने किया, उसके करीब 15-16 साल के बाद यह काम महात्‍मा गांधी ने गुजरात विद्यापीठ के रूप में किया था। करीब-करीब दोनों देश के लिए कुछ करने वाले नौजवान तैयार करना चाहते थे। लेकिन आज हम देख रहे हैं कि महामना जी ने जिस बीज को बोया था, उसको पूरी शताब्‍दी तक कितने श्रेष्‍ठ महानुभावों ने, कितने समर्पित शिक्षाविदों ने अपना ज्ञान, अपना पुरूषार्थ, अपना पसीना इस धरती पर खपा दिया था। एक प्रकार से जीवन के जीवन खपा दिये, पीढ़ियां खप गई। इन अनगिनत महापुरूषों के पुरूषार्थ का परिणाम है कि आज हम इस विशाल वट-वृक्ष की छाया में ज्ञान अर्जित करने के सौभाग्‍य बने हैं। और इसलिए महामना जी के प्रति आदर के साथ-साथ इस पूरी शताब्‍दी के दरमियान इस महान कार्य को आगे बढ़ाने में जिन-जिन का योगदान है, जिस-जिस प्रकार का योगदान है जिस-जिस समय का योगदान है, उन सभी महानुभवों को मैं आज नमन करता हूं।

एक शताब्‍दी में लाखों युवक यहां से निकले हैं। इन युवक-युवतियों ने करीब-करीब गत 100 वर्ष में दरमियान जीवन के किसी न किसी क्षेत्र में जा करके अपना योगदान दिया है। कोई डॉक्‍टर बने हुए होंगे, कोई इंजीनियर बने होंगे, कोई टीचर बने होंगे, कोई प्रोफेसर बने होंगे, कोई सिविल सर्विस में गये होंगे, कोई उद्योगकार बने हुए होंगे और भारत में शायद एक कालखंड ऐसा था कि कोई व्‍यक्ति कहीं पर भी पहुंचे, जीवन के किसी भी ऊंचाई पर पहुंचे जिस काम को करता है, उस काम के कारण कितनी ही प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त क्‍यों न हो, लेकिन जब वो अपना परिचय करवाता था, तो सीना तानकर के कहता था कि मैं BHU का Student हूं।

मेरे नौजवान साथियों एक शताब्‍दी तक जिस धरती पर से लाखों नौजवान तैयार हुए हो और वे जहां गये वहां BHU से अपना नाता कभी टूटने नहीं दिया हो, इतना ही नहीं अपने काम की सफलता को भी उन्‍होंने BHU को समर्पित करने में कभी संकोच नहीं किया। यह बहुत कम होता है क्‍योंकि वो जीवन में जब ऊंचाइयां प्राप्‍त करता है तो उसको लगता है कि मैंने पाया है, मेरे पुरुषार्थ से हुआ, मेरी इस खोज के कारण हुआ, मेरे इस Innovation के कारण हुआ। लेकिन ये BHU है कि जिससे 100 साल तक निकले हुए विद्यार्थियों ने एक स्‍वर से कहा है जहां गये वहां कहा है कि यह सब BHU के बदौलत हो रहा है।

एक संस्‍था की ताकत क्‍या होती है। एक शिक्षाधाम व्‍यक्ति के जीवन को कहां से कहां पहुंचा सकता है और सारी सिद्धियों के बावजूद भी जीवन में BHU हो सके alumni होने का गर्व करता हो, मैं समझता हूं यह बहुत बड़ी बात है, बहुत बड़ी बात है। लेकिन कभी-कभी सवाल होता है कि BHU का विद्यार्थी तो BHU के गौरव प्रदान करता है लेकिन क्‍या भारत के कोने-कोने में, सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में यह BHU के प्रति वो श्रद्धा भाव पैदा हुआ है क्‍या? वो कौन-सी कार्यशैलियां आई, वो कौन से विचार प्रवाह आये, वो कौन-सी दुविधा आई जिसने इतनी महान परंपरा, महान संस्‍था को हिंदुस्‍तान के जन-जन तक पहुंचाने में कहीं न कहीं संकोच किया है। आज समय की मांग है कि न सिर्फ हिंदुस्‍तान, दुनिया देखें कि भारत की धरती पर कभी सदियों पहले हम जिस नालंदा, तक्षशिला बल्लभी उसका गर्व करते थे, आने वाले दिनों में हम BHU का भी हिंदुस्‍तानी के नाते गर्व करते हैं। यह भारत की विरासत है, भारत की अमानत है, शताब्दियों के पुरुषार्थ से निकली हुई अमानत है। लक्षाविद लोगों की तपस्‍या का परिणाम है कि आज BHU यहां खड़ा है और इसलिए यह भाव अपनत्‍व, अपनी बातों का, अपनी परंपरा का गौरव करना और हिम्‍मत के साथ करना और दुनिया को सत्‍य समझाने के लिए सामर्थ्‍य के साथ करना, यही तो भारत से दुनिया की अपेक्षा है।

मैं कभी-कभी सोचता हूं योग। योग, यह कोई नई चीज नहीं है। भारत में सदियों से योग की परंपरा चली आ रही है। सामान्‍य मानविकी व्‍यक्तिगत रूप से योग के आकर्षित भी हुआ है। दुनिया के अलग-अलग कोने में, योग को अलग-अलग रूप में जिज्ञासा से देखा भी गया है। लेकिन हम उस मानसिकता में जीते थे कि कभी हमें लगता नहीं था कि हमारे योग में वह सामर्थ्‍य हैं जो दुनिया को अपना कर सकता है। पिछले साल जब United nation ने योग को अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस के रूप में स्‍वीकार किया। दुनिया के 192 Country उसके साथ जुड़ गये और विश्‍व ने गौरव ज्ञान किया, विश्‍व ने उसके साथ जुड़ने का आनंद लिया। अगर अपने पास जो है उसके प्रति हम गौरव करेंगे तो दुनिया हमारे साथ चलने के लिए तैयार होती हैं। यह विश्‍वास, ज्ञान के अधिष्‍ठान पर जब खड़ा रहता है, हर विचार की कसौटी पर कसा गया होता है, तब उसकी स्‍वीकृति और अधिक बन जाती है। BHU के द्वारा यह निरंतर प्रयास चला आ रहा है।

आज जिन छात्रों का हमें सम्‍मान करने का अवसर मिला, मैं उनको, उनके परिवार जनों को हृदय से बधाई देता हूं। जिन छात्रों को आज अपनी शिक्षा की पूर्ति के बाद दीक्षांत समारोह में डिग्रियां प्राप्‍त हुई हैं, उन सभी छात्रों का भी मैं हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। यह दीक्षांत समारोह है, हम यह कभी भी मन में न लाएं कि यह शिक्षांत समारोह है। कभी-कभी तो मुझे लगता है दीक्षांत समारोह सही अर्थ में शिक्षा के आरंभ का समारोह होना चाहिए। यह शिक्षा के अंत का समारोह नहीं है और यही दीक्षांत समारोह का सबसे बड़ा संदेश होता है कि हमें अगर जिन्‍दगी में सफलता पानी है, हमें अगर जिन्‍दगी में बदलते युग के साथ अपने आप को समकक्ष बनाए रखना है तो उसकी पहली शर्त होती है – हमारे भीतर का जो विद्यार्थी है वो कभी मुरझा नहीं जाना चाहिए, वो कभी मरना नहीं चाहिए। दुनिया में वो ही इस विशाल जगत को, इस विशाल व्‍यवस्‍था को अनगिनत आयामों को पा सकता है, कुछ मात्रा में पा सकता है जो जीवन के अंत काल तक विद्यार्थी रहने की कोशिश करता है, उसके भीतर का विद्यार्थी जिन्‍दा रहता है।

आज जब हम दीक्षांत समारोह से निकल रहे हैं तब, हमारे सामने एक विशाल विश्‍व है। पहले तो हम यह कुछ square किलोमीटर के विश्‍व में गुजारा करते थे। परिचितों से मिलते थे। परिचित विषय से संबंधित रहते थे, लेकिन अब अचानक उस सारी दुनिया से निकलकर के एक विशाल विश्‍व के अंदर अपना कदम रखने जा रहे हैं। ये पहल सामान्‍य नहीं होते हैं। एक तरफ खुशी होती है कि चलिए मैंने इतनी मेहनत की, तीन साल - चार साल - पांच साल इस कैंपस में रहा। जितना मुझसे हो सकता था मैं ले लिया, पा लिया। लेकिन अब निकलते ही, दुनिया का मेरी तरफ नजरिया देखने का बदल जाता है।

जब तक मैं विद्यार्थी था, परिवार, समाज, साथी, मित्र मेरी पीठ थपथपाते रहते थे, नहीं-नहीं बेटा अच्‍छा करो, बहुत अच्‍छा करो, आगे बढ़ो, बहुत पढ़ो। लेकिन जैसे ही सर्टिफिकेट लेकर के पहुंचता हूं तो सवाल उठता है बताओ भई, अब आगे क्‍या करोगे? अचानक, exam देने गया तब तक तो सारे लोग मुझे push कर रहे थे, मेरी मदद कर रहे थे, प्रोत्‍साहित कर रहे थे। लेकिन सर्टिफिकेट लेकर घर लौटा तो सब पूछ रहे थे, बेटा अब बताओ क्‍या? अब हमारा दायित्‍व पूरा हो गया, अब बताओ तुम क्‍या दायित्‍व उठाओगे और यही पर जिन्‍दगी की कसौटी का आरंभ होता है और इसलिए जैसे science में दो हिस्‍से होते हैं – एक होता है science और दूसरा होता है applied science. अब जिन्‍दगी में जो ज्ञान पाया है वो applied period आपका शुरू होता है और उसमें आप कैसे टिकते है, उसमें आप कैसे अपने आप को योग्‍य बनाते हैं। कभी-कभार कैंपस की चारदीवारी के बीच में, क्‍लासरूम की चारदीवारी के बीच में शिक्षक के सानिध्‍य में, आचार्य के सानिध्‍य में चीजें बड़ी सरल लगती है। लेकिन जब अकेले करना पड़ता है, तब लगता है यार अच्‍छा होता उस समय मैंने ध्‍यान दिया होता। यार, उस समय तो मैं अपने साथियों के साथ मास्‍टर जी का मजाक उड़ा रहा था। यार ये छूट गए। फिर लगता है यार, अच्‍छा होता मैंने देखा होता। ऐसी बहुत बातें याद आएगी। आपको जीवन भर यूनिवर्सिटी की वो बातें याद आएगी, जो रह गया वो क्‍या था और न रह गया होता तो मैं आज कहा था? ये बातें हर पल याद आती हैं।

मेरे नौजवान साथियों, यहां पर आपको अनुशासन के विषय में कुलाधिपति जी ने एक परंपरागत रूप से संदेश सुनाया। आप सब को पता होगा कि हमारे देश में शिक्षा के बाद दीक्षा, यह परंपरा हजारों साल पुरानी है और सबसे पहले तैतृक उपनिषद में इसका उल्‍लेख है, जिसमें दीक्षांत का पहला अवसर रेखांकित किया गया है। तब से भारत में यह दीक्षांत की परंपरा चल रही है और आज भी यह दीक्षांत समारोह एक नई प्रेरणा का अवसर बन जाता है। जीवन में आप बहुत कुछ कर पाएंगे, बहुत कुछ करेंगे, लेकिन जैसा मैंने कहा, आपके भीतर का विद्यार्थी कभी मरना नहीं चाहिए, मुरझाना नहीं चाहिए। जिज्ञासा, वो विकास की जड़ों को मजबूत करती है। अगर जिज्ञासा खत्‍म हो जाती है तो जीवन में ठहराव आ जाता है। उम्र कितनी ही क्‍यों न हो, बुढ़ापा निश्‍चित लिख लीजिए वो हो जाता है और इसलिए हर पल, नित्‍य, नूतन जीवन कैसा हो, हर पल भीतर नई चेतना कैसे प्रकट हो, हर पल नया करने का उमंग वैसा ही हो जैसा 20 साल पहले कोई नई चीज करने के समय हुआ था। तब जाकर के देखिए जिन्‍दगी जीने का मजा कुछ और होता है। जीवन कभी मुरझाना नहीं चाहिए और कभी-कभी तो मुझे लगता है मुरझाने के बजाए अच्‍छा होता मरना पसंद करना। जीवन खिला हुआ रहना चाहिए। संकटों के सामने भी उसको झेलने का सामर्थ्‍य आना चाहिए और जो इसे पचा लेता है न, वो अपने जीवन में कभी विफल नहीं जाता है। लेकिन तत्‍कालिक चीजों से जो हिल जाता है, अंधेरा छा जाता है। उस समय यह ज्ञान का प्रकाश ही हमें रास्‍ता दिखाता है और इसलिए ये BHU की धरती से जो ज्ञान प्राप्‍त किया है वो जीवन के हर संकट के समय हमें राह दिखाने का, प्रकाश-पथ दिखाने का एक अवसर देता है।

देश और दुनिया के सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं। क्‍या उन चुनौतियों में भारत अपनी कोई भूमिका अदा कर सकता है क्‍या? क्‍यों न हमारे ये संस्‍थान, हमारे विद्यार्थी आने वाले युगों के लिए मानव जाति को, विश्‍व को, कुछ देने के सपने क्‍यों न देखे? और मैं चाहूंगा कि BHU से निकल रहे छात्रों के दिल-दिमाग में, यह भाव सदा रहना चाहिए कि मुझे जो है, उससे अच्‍छा करू वो तो है, लेकिन मैं कुछ ऐसा करके जाऊं जो आने वाले युगों तक का काम करे।

समाज जीवन की ताकत का एक आधार होता है – Innovation. नए-नए अनुसंधान सिर्फ पीएचडी डिग्री प्राप्‍त करने के लिए, cut-paste वाली दुनिया से नहीं। मैं तो सोच रहा था कि शायद यह बात BHU वालों को तो पता ही नहीं होगी, लेकिन आपको भली-भांति पता है। लेकिन मुझे विश्‍वास है कि आप उसका उपयोग नहीं करते होंगे। हमारे लिए आवश्‍यक है Innovation. और वो भी कभी-कभार हमारी अपनी निकट की स्‍थितियों के लिए भी मेरे मन में एक बात कई दिनों से पीड़ा देती है। मैं दुनिया के कई noble laureate से मिलने गया जिन्‍होंने medical science में कुछ काम किया है और मैं उनके सामने एक विषय रखता था। मैंने कहा, मेरे देश में जो आदिवासी भाई-बहन है, वो जिस इलाके में रहते हैं। उस belt में परंपरागत रूप से एक ‘sickle-cell’ की बीमारी है। मेरे आदिवासी परिवारों को तबाह कर रही है। कैंसर से भी भयंकर होती है और व्‍यापक होती है। मेरे मन में दर्द रहता है कि आज का विज्ञान, आज की यह सब खोज, कैंसर के मरीज के लिए नित्‍य नई-नई चीजें आ रही हैं। क्‍या मेरे इस sickle-cell से पीड़ित, मेरे आदिवासी भाइयो-बहनों के लिए शास्‍त्र कुछ लेकर के आ सकता है, मेरे नौजवान कुछ innovation लेकर के आ सकते हैं क्‍या? वे अपने आप को खपा दे, खोज करे, कुछ दे और शायद दुनिया के किसी और देश में खोज करने वाला जो दे पाएगा, उससे ज्‍यादा यहां वाला दे पाएगा क्‍योंकि वो यहां की रुचि, प्रकृति, प्रवृत्‍ति से परिचित है और तब जाकर के मुझे BHU के विद्यार्थियों से अपेक्षा रहती है कि हमारे देश की समस्‍याएं हैं। उन समस्‍याओं के समाधान में हम आने वाले युग को देखते हुए कुछ दे सकते हैं क्‍या?

आज विश्‍व Global warming, Climate change बड़ा परेशान है। दुनिया के सारे देश अभी पेरिस में मिले थे। CoP-21 में पूरे विश्‍व का 2030 तक 2 डिग्री temperature कम करना है। सारा विश्‍व मशक्‍कत कर रहा है, कैसे करे? और अगर यह नहीं हो पाया तो पता नहीं कितने Island डूब जाएंगे, कितने समुद्री तट के शहर डूब जाएंगे। ये Global warming के कारण पता नहीं क्‍या से क्‍या हो जाएगा, पूरा विश्‍व चिंतित है। हम वो लोग है जो प्रकृति को प्रेम करना, हमारी रगों में है। हम वो लोग है जिन्‍होंने पूरे ब्रह्मांड को अपना एक पूरा परिवार माना हुआ है। हमारे भीतर, हमारे ज़हन में वो तत्‍व ज्ञान तो भरा पड़ा है और तभी तो बालक छोटा होता है तो मां उसे शिक्षा देती है कि देखो बेटे, यह जो सूरज है न यह तेरा दादा है और यह चांद है यह तेरा मामा है। पौधे में परमात्‍मा देखता है, नदी में मां देखता है। ये जहां पर संस्‍कार है, जहां प्रकृति का शोषण गुनाह माना जाता है। Exploitation of the nature is a crime. Milking of the nature यही हमें अधिकार है। यह जिस धरती पर कहा जाता है, क्‍या दुनिया को Global warming के संकट से बचाने के लिए कोई नए आधुनिक innovation के साथ मेरे भारत के वैज्ञानिक बाहर आ सकते हैं क्‍या, मेरी भारत की संस्‍थाएं बाहर आ सकती हैं क्‍या? हम दुनिया को समस्‍याओं से मुक्‍ति दिलाने का एक ठोस रास्‍ता दिखा सकते हैं क्‍या? भारत ने बीड़ा उठाया है, 2030 तक दुनिया ने जितने संकल्‍प किए, उससे ज्‍यादा हम करना चाहते हैं। क्‍योंकि हम यह मानते हैं, हम सदियों से यह मानते हुए आए हैं कि प्रकृति के साथ संवाद होना चाहिए, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं होना चाहिए।

अभी हमने दो Initiative लिए हैं, एक अमेरिका, फ्रांस, भारत और बिल गेट्स का NGO, हम मिलकर के Innovation पर काम कर रहे हैं। Renewal energy को affordable कैसे बनाए, Solar energy को affordable कैसे बनाए, sustainable कैसे बनाए, इस पर काम कर रहे हैं। दूसरा, दुनिया में वो देश जहां 300 दिवस से ज्‍यादा सूर्य की गर्मी का प्रभाव रहता है, ऐसे देशों का संगठन किया है। पहली बार दुनिया के 122 देश जहां सूर्य का आशीर्वाद रहता है, उनका एक संगठन हुआ है और उसका world capital हिन्‍दुस्‍तान में बनाया गया है। उसका secretariat, अभी फ्रांस के राष्‍ट्रपति आए थे, उस दिन उद्घाटन किया गया। लेकिन इरादा यह है कि यह समाज, देश, दुनिया जब संकट झेल रही है, हम क्‍या करेंगे?

हमारा उत्‍तर प्रदेश, गन्‍ना किसान परेशान रहता है लेकिन गन्‍ने के रास्‍ते इथनॉल बनाए, petroleum product के अंदर उसको जोड़ दे तो environment को फायदा होता है, मेरे गन्‍ना किसान को भी फायदा हो सकता है। मेरे BHU में यह खोज हो सकती है कि हम maximum इथनॉल का उपयोग कैसे करे, हम किस प्रकार से करे ताकि मेरे उत्‍तर प्रदेश के गन्‍ने किसान का भी भला हो, मेरे देश के पर्यावरण और मानवता के कल्‍याण का काम हो और मेरा जो vehicle चलाने वाला व्‍यक्‍ति हो, उसको भी कुछ महंगाई में सस्‍ताई मिल जाए। यह चीजें हैं जिसके innovation की जरूरत है।

हम Solar energy पर अब काम कर रहे हैं। भारत ने 175 गीगावॉट Solar energy का सपना रखा है, renewal energy का सपना रखा है। उसमें 100 गीगावॉट Solar energy है, लेकिन आज जो Solar energy के equipment हैं, उसकी कुछ सीमाएं हैं। क्‍या हम नए आविष्‍कार के द्वारा उसमें और अधिक फल मिले, और अधिक ऊर्जा मिले ऐसे नए आविष्‍कार कर सकते हैं क्‍या? मैं नौजवान साथियों को आज ये चुनौतियां देने आया हूं और मैं इस BHU की धरती से हिन्‍दुस्‍तान के और विश्‍व के युवकों को आह्वान करता हूं। आइए, आने वाली शताब्‍दी में मानव जाति जिन संकटों से जूझने वाली है, उसके समाधान के रास्‍ते खोजने का, innovation के लिए आज हम खप जाए। दोस्‍तों, सपने बहुत बड़े देखने चाहिए। अपने लिए तो बहुत जीते हैं, सपनों के लिए मरने वाले बहुत कम होते हैं और जो अपने लिए नहीं, सपनों के लिए जीते हैं वही तो दुनिया में कुछ कर दिखाते हैं।

आपको एक बात का आश्‍चर्य हुआ होगा कि यहां पर आज मेरे अपने personal कुछ मेहमान मौजूद है, इस कार्यकम में। और आपको भी उनको देखकर के हैरानी हुई होगी, ये मेरे जो personal मेहमान है, जिनको मैंने विशेष रूप से आग्रह किया है, यूनिवर्सिटी को कि मेरे इस convocation का कार्यक्रम हो, ये सारे नौजवान आते हो तो उस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए उनको बुलाइए। Government schools सामान्‍य है, उस स्‍कूल के कुछ बच्‍चे यहां बैठे हैं, ये मेरे खास मेहमान है। मैंने उनको इसलिए बुलाया है और मैं जहां-जहां भी अब यूनिवर्सिटी में convocation होते हैं। मेरा आग्रह रहता है कि उस स्‍थान के गरीब बच्‍चे जिन स्‍कूलों में पढ़ते हैं ऐसे 50-100 बच्‍चों को आकर के बैठाइए। वो देखे कि convocation क्‍या होता है, ये दीक्षांत समारोह क्‍या होता है? ये इस प्रकार की वेशभूषा पहनकर के क्‍यों आते हैं, ये हाथ में उनको क्‍या दिया जाता है, गले में क्‍या डाला जाता है? ये बच्‍चों के सपनों को संजोने का एक छोटा-सा काम आज यहां हो रहा है। आश्‍चर्य होगा, सारी व्‍यवस्‍था में एक छोटी-सी घटना है, लेकिन इस छोटी-सी घटना में भी एक बहुत बड़ा सपना पड़ा हुआ है। मेरे देश के गरीब से गरीब बच्‍चे जिनको ऐसी चीजें देखने का अवसर नहीं मिलता है। मेरा आग्रह रहता है कि आए देखे और मैं विश्‍वास से कहता हूं जो बच्‍चे आज ये देखते है न, वो अपने मन में बैठे-बैठे देखते होंगे कि कभी मैं भी यहां जाऊंगा, मुझे भी वहां जाने का मौका मिलेगा। कभी मेरे सिर पर भी पगड़ी होगी, कभी मेरे गले में भी पांच-सात गोल्‍ड मेडल होंगे। ये सपने आज ये बच्‍चे देख रहे हैं।

मैं विश्‍वास करूंगा कि जिन बच्‍चों को आज गोल्‍ड मेडल मिला है, वो जरूर इन स्‍कूली बच्‍चों को मिले, उनसे बातें करे, उनमें एक नया विश्‍वास पैदा करे। यही तो है दीक्षांत समारोह, यही से आपका काम शुरू हो जाता है। मैं आज जो लोग जा रहे हैं, जो नौजवान आज समाज जीवन की अपनी जिम्‍मेवारियों के कदम रखते हैं। बहुत बड़ी जिम्‍मेवारियों की ओर जा रहे हैं। दीवारों से छूटकर के पूरे आसमान के नीचे, पूरे विश्‍व के पास जब पहुंच रहे है तब, यहां से जो मिला है, जो अच्‍छाइयां है, जो आपके अंदर सामर्थ्‍य जगाती है, उसको हमेशा चेतन मन रखते हुए, जिन्‍दगी के हर कदम पर आप सफलता प्राप्‍त करे, यही मेरी आप सब को शुभकामनाएं हैं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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शिक्षक - माननीय प्रधानमंत्री महोदय, नमो नमः अहम आशा रानी 12 उच्च विद्यालय, चंदन कहरी बोकारो झारखंड त: (संस्कृत में)

महोदय, एक संस्कृत शिक्षिका होने के नाते मेरा यह सपना था कि मैं बच्चों को भारत की उस संस्कृति से अवगत कराऊं जो हमारे उन समस्त संस्कारों का बोध कराती है जिनके माध्यम से हम अपने मूल्यों जीवन आदर्शों का निर्धारण करते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने बच्चों की रुचि संस्कृत में उत्पन्न कर इसे नैतिक शिक्षा का आधार बनाया और विभिन्न श्लोकों के माध्यम से बच्चों को जीवन मूल्यों को सिखाने का प्रयास किया।

प्रधानमंत्री जी – आपने कभी सोचा कि जब आप संस्कृत भाषा के प्रति उनको आकर्षित करते हैं। उसके द्वारा उसको एक ज्ञान के भंडार की तरफ ले जाता है। ये हमारे देश में पढ़ा हुआ है। क्या कभी इन बच्चों को Vedic mathematic क्या है? तो एक संस्कृत टीचर के नाते या कभी आपके टीचर्स कमरे में टीचर्स के बीच में Vedic Mathematic क्या है? कभी चर्चा हुई होगी।

शिक्षक – नहीं महोदय, इसके बारे में स्वयं।

प्रधानमंत्री जी - नहीं हुई, आप कभी कोशिश कीजिए, ताकि क्या होगा अगर आप सबको भी काम आ सकता है। Online Vedic Mathematic की classes भी चलते हैं। यूके में तो already कुछ जगह पर syllabus में है Vedic Mathematic. जिन बच्चों को maths में रुचि नहीं होती है, वो अगर ये थोड़ा सा भी देखेंगे तो उनको लगेगा ये magic है। एक दम से उसका मन कर जाता है सीखने का। तो वो संस्कृत से हमारे देश के जितने भी विषय हैं, उसे उनमें से कुछ तो भी परिचित करवाना वैसा कभी आप कोशिश करें तो।

शिक्षक – मैं ये बहुत अच्छी आपने बताया महोदय, मैं जाकर बताऊंगी।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं हैं आपको।

शिक्षक – धन्यवाद।

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी जी सादर प्रणाम। मैं कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से, कोल्हापूर से वही जिला राजर्षि शाहू जी की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी – ये गला आपका यहां आकर के खराब हुआ कि वैसे ही है।

शिक्षक – नहीं सर आवाज ही ऐसी है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा आवाज ही ऐसी है।

शिक्षक – जी, तो कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से। समालविया स्कूल में कला शिक्षक हूं। कोल्हापूर वही है राजर्षी शाहू की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी - यानी कला में क्या?

शिक्षक – कला में मैं चित्र, नृत्य, नाट्य, संगीत, गीत वादन, शिल्प सभी सिखाता हूं।

प्रधानमंत्री जी – वो तो दिखता है।

शिक्षक – तो मैं प्रायत ऐसा होता है कि बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों के वर्जिन्स सभी तरफ चलते आते हैं तो मेरे स्कूल में मैंने, मैं जब से वहां पर हू 23 साल से मैंने जो अपनी भारतीय संस्कृति है और लोक नृत्य और जो हमारी शास्त्रीय नृत्य उसके आधार पर ही रचना की है। मैंने शिव तांडव स्तोत्र किया है। और वो भी बड़ी तादाद में मैं करता हूं 300-300, 200 लड़कों को लेके, जिसके लिए विश्वक्रम भी हुए हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर भी मैंने किया है वो भी विश्वक्रम में दर्ज हुआ था और मैं शिव तांडव किया है मैंने देवी का हनुमान चालीसा किया है, देवी के रूप का दर्शन किया है तो इस सब तरीके से मैं अपने नृत्य की वजह से

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप तो करते होंगे।

शिक्षक – मैं खुद भी करता हूं और मेरे बच्चे भी करते हैं।

प्रधानमंत्री जी – नहीं वो तो करते होंगे। लेकिन जिन स्टूडेंट्स के लिए आपकी जिंदगी है। उनके लिए क्या करते हैं?

शिक्षक – वही सब करते हैं सर!

प्रधानमंत्री जी – वो क्या करते हैं?

शिक्षक – 300-300, 400 बच्चे एक नृत्य आविष्कार में काम करते हैं। और सिर्फ मेरे स्कूल के ही बच्चे नहीं। मेरे आजू बाजू में slum area है, कुछ सेक्स वर्कर के बच्चे, कुछ व्हील चेयर वाले बच्चे, उनको भी मैं as a Guest Artist के तौर पर लेता हूं।

प्रधानमंत्री जी - लेकिन उन बच्चों को तो आज सिनेमा वाले गीत पसंद आते होंगे।

शिक्षक – जी सर लेकिन मैं उनको बताता हू कि लोकनृत्य में क्या जान है और मेरी, मेरा ये सौभाग्य है कि बच्चे मेरी बात सुनते हैं।

प्रधानमंत्री जी – सुनते हैं

शिक्षक – जी, 10 साल से मैं ये सब कर रहा हूं।

प्रधानमंत्री जी – अब टीचर की नहीं सुनेगा तो बच्चा जाएगा कहां? कितना साल से आप कर रहे हैं?

शिक्षक – Totally मेरे 30 साल हो गए सर।

प्रधानमंत्री जी – बच्चे को जब पढ़ाते हैं और नृत्य के माध्यम से कला तो सिखाते ही होंगे लेकिन उसमे कोई मैसेजिंग देते हो आप? वो क्या देते हो आप?

शिक्षक – जी सामाजिक मैसेज पर मैं बनाता हूं। जैसे कि मैं drunk & drive जो होता है उसके लिए मैं नृत्य नाट्य बिठाया था कि जिसको मैंने प्रदर्शन पूरे शहर में करवाया था। As a पथ नाट्य के स्वरूप में। जैसे ही मैंने दूसरी बार बताया की स्पर्श नाम की एक शॉर्ट फिल्म बनवाई थी। जिसकी पूरी टेक्निकल टीम मेरी स्टूडेंट्स थी।

प्रधानमंत्री जी – तो ये दो दिन से तीन दिन से आप लोग सब जगह पर आपका जाना होता होगा, थक गए होंगे आप लोग। कभी इसके घर, कभी उसके घर, कभी उसके घर ऐसे ही चलता होगा। तो इनसे कोई विशेष परिचय कर लिया क्या आप लोगों ने? कोई लाभ लिया कि नहीं किसी ने?

शिक्षक – जी हैं सर बहुत सारे लोग ऐसे हैं mostly जो higher से हैं वो लोगों ने बोला था कि सर अगर हम आपको बुलाएंगे तो आप हमारे कॉलेज आएंगे।

प्रधानमंत्री जी – मतलब आपने आगे का तय कर लिया है। मतलब आप commercially भी करते हैं कार्यक्रम।

शिक्षक - commercially भी करता हूं लेकिन उसका

प्रधानमंत्री जी – फिर तो आपको बहुत बड़ा मार्केट मिल गया है।

शिक्षक – नहीं सर उसकी भी एक बात बताना चाहूंगा, commercially में जो भी काम करता हूं। मैंने फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ किया है लेकिन मैंने 11 अनाथ बच्चे गोद लिए हुए हैं। मैं उनके लिए commercially काम करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – उनके लिए क्या काम करते हैं आप?

शिक्षक – वो अनाथ आश्रम में थे और उनके लिए कला .......थे तो अनाथ आश्रम की एक पहल होती है कि 10वी के बाद उसको आईटीआई में डाल दो। तो मैंने वो धारणा तोड़ने की कोशिश की तो उन्होंने बोला की नहीं हम लोगों को इसको allow नहीं करते हम लोग। तो मैंने उनको बाहर ले लिया, एक रूम में रख लिया। जैसे – जैसे बच्चे बड़े होते रहे वहां पर आकर। उनकी शिक्षा की, उसमे से दो कला शिक्षक करके काम कर रहे हैं। दो लोग हैं वो नृत्य शिक्षक करके गवर्नमेंट स्कूल में लग गए। मतलब सीबीएसई।

प्रधानमंत्री जी – तो जो ये बढ़िया आप काम करते हैं। ये आखिर में बताते हैं ऐसे कैसे हुआ। ये बहुत बड़ा काम है कि आपके मन में उन बच्चों के प्रति संवेदना जगना और किसी ने छोड़ दिया मैं नहीं छोडूंगा और आपने उनको गोद लिया ये बहुत काम किया है आपने।

शिक्षक – सर इस बात का मेरे जीवन से ताल्लुक है। मैं खुद अनाथालय से हूं। तो इसलिए मुझे लगता है कि जो मुझे नहीं मिला था तो मेरे पास तभी कुछ नहीं था और मेरे संचित के पास से अगर मैं वंचित के लिए कुछ करूं तो ये मेरा परम सौभाग्य है।

प्रधानमंत्री जी – चलिए आपने सिर्फ कला को ही नहीं आपने जीवन को संस्कारों से जिया है। बहुत बड़ी बात है ये।

शिक्षक – जी धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – तो सचमुच में नाम आपका सागर सही है।

शिक्षक – जी सर आपसे सौभाग्य हो आपसे बात करने का ये मेरे सौभाग्य की बात है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बहुत शुभकामनाएं भईया।

शिक्षक – Thank You Sir.

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते जी

शिक्षक – मैं डॉ. अविनाशा शर्मा हरियाणा शिक्षा विभाग में बतोर अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में काम कर रही हूं। माननीय, हरियाणा के जो वंचित समाज के बच्चे हैं। जो ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं जहां अंग्रेजी भाषा उनके लिए सुनना और समझना थोड़ा मुश्किल होता है। उसके लिए मैंने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया है। ये भाषा की प्रयोगशाला न सिर्फ भाषा अंग्रेजी भाषा के लिए तैयार की गई है। बल्कि क्षेत्रीय भाषाएं और मातृभाषा दोनों का ही इसमे समावेश किया गया है। महोदय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 Artificial Intelligence और machine learning के जरिये बच्चों को पढ़ाने के लिए बढ़ावा देती है। इन पहलुओं को देखते हुए मैंने इस भाषा प्रयोगशाला में Artificial Intelligence का भी समावेश किया है। जैसे Generative tools Artificial Intelligence के हैं speakomether और talkpal. उनके जरिये भाषा के शुद्ध उच्चारण बच्चे को सीखते और समझते हैं। मुझे बहुत खुशी हो रही है आपसे साझा करते हुए महोदय। कि मैंने अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व UNESCO, UNICEF, Indonesia और Uzbekistan जैसे क्षेत्रों में देशों में किया और उसका प्रभाव मेरी क्लास रूप तक पहुंचा। आज हरियाणा का एक सरकारी स्कूल ग्लोबल क्लासरूम बन गया है और उसके जरिये बच्चें Indonesia में Columbia University में बैठे हुए Professors और Students के साथ बातचीत करते हैं और अपने अनुभव को साझा करते हैं I

प्रधानमंत्री जी – थोड़ा अनुभव बताएंगे, किस प्रकार से करते हैं आप बाकियों को भी पता चले?

शिक्षक – सर Microsoft Scarpthen एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जिसको मैंने अपने बच्चों से introduce कराया है। Columbia University के Professor’s के साथ बच्चे जब बातचीत करते हैं। उनके कल्चर, उनकी language जो रोजमर्रा में काम आने वाली चीजें हैं, जिस तरह वो अपने academic’s को enhance करते हैं। वो चीजें हमारे बच्चे सीख पा रहे हैं। बहुत खुबसूरत सा मैं एक अनुभव शेयर करना चाहूंगी सर मैं आपसे। मैं जब Uzbekistan गई, तो वहां से जो अनुभव मैंने अपने बच्चों से शेयर किया तो उनको ये समझ में आया कि जिस तरीके से अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है ठीक उसी तरह से उज्बेकिस्तान के लोग अपनी मातृभाषा उज्बेक में बात करते हैं। Russian उनकी Official Language है, राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है तो वो अपने आपको इस विश्व से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अंग्रेजी उनके लिए सिर्फ एक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रह गई है। उनको ये रूचि बढ़ने लग गई है इस भाषा में क्योंकि अब ये नहीं है कि विदेशों में ही अंग्रेजी बोली जाती है। और ये उनके लिए बहुत सहज है। ये उनके लिए उतनी ही challenging है, चुनौतीपूर्ण है जितनी हमारे भारतीय बच्चों के लिए हो सकती है।

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप बच्चों को दुनिया दिखा रही हैं अच्छी बात है लेकिन देश भी दिखा रही हैं क्या?

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – तो हमारे देश की कुछ चीजें जो उनको अंग्रेजी सीखने का जानने का मन कर जाए ऐसा कुछ

शिक्षक – सर मैंने इस प्रयोगशाला में भाषा कौशल विकास पर काम किया है। तो अंग्रेजी भाषा तो एक पाठ्यक्रम की भाषा रही है। But भाषा सीखी कैसे जाती है। क्योंकि मेरे पास जो बच्चे आ रहे हैं वो हरियाणवी परिवेश के हैं। अगर मैं रोहतक में बैठे हुए बच्चे से बात करूं वो नूह में बैठे हुए बच्चे से बिल्कुल different भाषा में बात करता है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा हम जैसे घर में, हमारे पास टेलीफोन पुराने जमाने में वो जो रहता था।

शिक्षक – हां जी।

प्रधानमंत्री जी – डिब्बा वो फोन है। और हमारे घर में कोई गरीब परिवार की कोई महिला घर काम के लिए यहां आती जाती है। इतने में घंटी बजी और वो टेलीफोन उठाती है। वो उठाते ही बोलती है हेलो, वो कैसे सीखी वो?

शिक्षक – यही भाषा का कौशल विकास सर बताया। भाषा सुनने पर और उसका प्रयोग करने पर आती है।

प्रधानमंत्री जी – और इसलिए सचमुच में Language बोलचाल से बहुत जल्दी सीखी जा सकती है। मुझे याद है मैं जब गुजरात में था तो नडियात में मेरे यहां एक महाराष्ट्र का परिवार नौकरी के लिए, वो प्रोफेसर थे नौकरी के लिए आए। उनके साथ उनकी वृद्ध माता जी थीं। अब ये महाशय पूरे दिन भर स्कूल कॉलेजों में रहते थे लेकिन Language में जीरो रहे वो छह महीने के बाद भी। और उनकी माताजी कुछ पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन वो धनाधन गुजराती बोलना शुरू कर दिया। तो मैं एक बार उनके यहां भोजन के लिए गया मैंने पूछा ये नहीं बोली हमारे घर में जो काम वाली है ना उसको और कुछ आता नहीं तो बोली मुझे सीख गया। बोलचाल से सीखा जाता है।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – अब मुझे बराबर याद है मैं जब छोटा था तो मेरे स्कूल में जो टीचर थे। वो थोड़े strict भी थे। और हमें strictness थोड़ी तकलीफ करती थी। लेकिन उन्होंने राजाजी ने जो रामायण, महाभारत लिखी है। तो उसमें से जो रामायण की जो बहुत परिचित वार्ता तो सबको परिचित होती है। तो बड़ा आग्रह करते थे कि राजाजी ने जो रामायण लिखी है। उसको थोड़ा धीरे-धीरे पढ़ना शुरू करो। कथा पता था भाषा पता नहीं थी। लेकिन बहुत जल्दी coordinate करते थे। एक दो शब्द समझ गए तो भी लगता था कि हां ये कहीं सीता माता की कोई चर्चा कर रहे हैं।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए, बहुत बढ़िया।

शिक्षक – Thank You Sir, Thank You.

प्रधानमंत्री जी – हर हर महादेव,

शिक्षक – हर हर महादेव,

प्रधानमंत्री जी – काशी वालों को हर हर महादेव से ही दिन शुरू होता है।

शिक्षक – सर मैं आज आपसे मिलकर बहुत खुश हूं सर। सर मैं कृषि विज्ञान संस्थान में पौधे की रोग के ऊपर मेरा शोध है और उसमे मेरा सबसे बड़ा प्रयास ये है कि जो हम लोग sustainable agriculture की बात करते हैं। वो जमीनी स्तर पर अभी वो उतरे नहीं है पूरे अच्छे से। मेरा इसलिए प्रयास ये है कि हम किसानों को ऐसे तकनीक को हाथ पकड़ाएं जो आसान हो और उसकी अभूतपूर्व परिणाम खेतों में दिखें। और मुझे लगता है इस प्रयास में हमको बच्चों Student’s मेरा और महिलाओं की भागीदारी अहम है। और इसलिए मेरा प्रयास ये है कि मैं स्टूडेंटस के साथ गांव में जाता हूं और किसानों के साथ मैं महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रयास कराता हूं। ताकि ये छोटी-छोटी जो Techniques हम लोग develop किए हैं। उससे sustainability की तरफ हम कदम बढ़ाते हैं। और इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है।

प्रधानमंत्री जी – कुछ बता सकते हैं क्या किया है?

शिक्षक – सर हम लोगों बीज शोधन की तकनीक को perfect किया है। हमने कुछ Local microbes को identify किया है। उससे जब हम बीज को शोधन करते हैं तो जब roots आते हैं सर पहले से ही विकसित root बनते हैं। उससे वो पौधा बहुत स्वस्थ बनते है। उस पौधे में सर बीमारियां कम लगती हैं क्योंकि जड़ इतनी मजबूत हो जाते है, पौधे को वो अंदर से एक ताकत देते हैं कीट और बीमारियों से लड़ने के लिए।

प्रधानमंत्री जी – लैब में करने वाला काम बता रहे हैं। Land पर कैसे करते हैं? Lab to Land. जब आप कह रहे हैं आप खुद जा रहे हैं किसानों के पास। वो कैसे इसको करते हैं और वो कैसे शुरू करते हैं?

शिक्षक – सर हमने एक Powder Formulation बनाया है और इस Powder Formulation को हम किसानों को देते हैं और उनकी हाथों बीज को शोधन करवाते हैं और ये हम प्रयास कई सालों से निरंतर कर रहे हैं। और वाराणसी के आसपास के 12 गांवों में हमने अभी इस कार्य को किये हैं और महिलाओं की अगर संख्या की बात कहें तो तीन हजार से अधिक महिलाएं अभी इस Technology.

प्रधानमंत्री जी – नहीं तो जो ये लोग किसान है वो किसी और किसान को भी तैयार कर सकते हैं?

शिक्षक – बिल्कुल सर, क्योंकि जब Powder लेने के लिए एक किसान आते हैं वो और चार किसानों के लिए साथ में लेकर जाते हैं। और इसका क्योंकि देखा देखी किसान बहुत सिखते हैं और मुझे ये बात की खुशी है कि हमारे जो हम जितने को सिखाये हैं उनसे और कई गुणा लोगों ने अपनाए हैं इसको। अभी पूरा संख्या मेरे पास नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर किस फसल पर प्रभाव हुआ और किस।

शिक्षक – सब्जी और गेहूं पर।

प्रधानमंत्री जी – सब्जी और गेहूं पर, ये जो प्राकृतिक खेती इस पर हमारा बल है। और जो लोग धरती मां को बचाना चाहते हैं। वे सब चिंतित हैं जिस प्रकार से हम इस धरती मां की सेहत के साथ अत्याचार कर रहे हैं। उस मां को बचाना बहुत जरूरी हो गया है। और उसके लिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा उपाय दिखता है। उस दिशा में कोई चर्चा हो रही है वैज्ञानिकों में।

शिक्षक – जी बिल्कुल सर, प्रयास उसी दिशा में है। लेकिन सर किसानों को हम लोग अभी पूरी तरह convince नहीं कर पा रहे कि रसायन को आप प्रयोग न करें। क्योंकि किसान डरते हैं कि हम रसायन का प्रयोग नहीं करने से मेरे फसल में कुछ नुकसान हो जाएगा।

प्रधानमंत्री जी – एक उपाय हो सकता है। मान लीजिए उसके पास चार बीघा जमीन है। तो 25 परसेंट, 1 बीघा में प्रयोग करो, तीन में जो तुम परंपरागत करते हो वो करो। यानि छोटा सा हिस्सा लो, उसको एक प्रकार अलग से तुम इसी पद्धति से करो, तो उसकी हिम्मत आ जाएगी। हां यार थोड़ा नुकसान होगा तो 10 परसेंट, 20 परसेंटहो जाएगा। लेकिन मेरी गाड़ी चलेगी। गुजरात के जो गवर्नर हैं आचार्य देववृत्त जी, वे बहुत की dedicated हैं इस विषय में काफी काम करते हैं। अगर आप वेबसाइट पर जाएंगे क्योंकि आप में से बहुत से लोग हैं जो किसान का background वाले होंगे। तो उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिए बहुत सारा डिटेल बनाया। ये आप जो एलकेएम देख रहे हैं यहां पूरी तरह प्राकृतिक खेती का ही उपयोग होता है हर चीज का। यहां कोई केमिकल allow नहीं है। आचार्य देववृत्त जी ने एक बहुत ही अच्छा formula develop किया। कोई व्यक्ति उसको कर सकता है। गोमूत्र वगैरह का उपयोग करके करते हैं और बहुत अच्छे परिणाम आते हैं। अगर आप उसको भी स्टडी करे आपकी University में क्या हो सकता है तो देखिये।

शिक्षक – जरूर सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं।

शिक्षक – धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – वणक्कम।

शिक्षक – वणक्कम Prime Minister Ji. I am Dhautre Gandimati. I come from Tyagraj Polytechnic College, Salem Tamil Nadu and I have been teaching English in the Polytechnic College for more than 16 years. Most of my polytechnic students hail from rural background. They come from Tamil Medium Schools, So they find it difficult to speak or at least open their mouths in English.

प्रधानमंत्री जी – लेकिन हम लोगों को ये भ्रम है। शायद सब लोगों को यही होगा कि भई यानि तमिलनाडु मतलब सबको अंग्रेजी आती है।

शिक्षक – Obviously Sir, They are rural people who study from the vernacular language medium. So they find it difficult, Sir. For them we teach

प्रधानमंत्री जी – और इसीलिए ये जो नई शिक्षा नीति है उसमे मातृभाषा पर बहुत बल दिया गया है।

शिक्षक – So we are teaching English language Sir and as per NEP 2020 as at least three languages now we have in our mother tongue learning . We have now introduced as an autonomous institution. We have now introduced our mother tongue language also in learning technical education.

प्रधानमंत्री जी – क्या आपमें से कोई है जिसने बहुत हिम्मत के साथ ऐसा प्रयोग किया हो। कि मान लीजिए एक स्कूल में 30 बच्चें हैं वो purely अंग्रेजी भाषा के माध्यम से और उन्ही के बराबर के दूसरे 30 बच्चे वो ही विषय अपनी मातृ भाषा में पढ़ते हैं। तो कौन सबसे आगे जाता है, कौन ज्यादा से ज्यादा जानता है क्या अनुभव आता है आप लोगों का? क्योंकि क्या है मातृभाषा में वो direct चीज को, उसको mentally अंग्रेजी फिर उसको अपनी भाषा में Translate करेगा फिर उसको समझने का प्रयास करेगा, बहुत Energy जाती है उसकी। तो बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने का और बाद में अंग्रेजी एक subject के रूप में बहुत अच्छा पढ़ाना चाहिए। यानि जैसे ये संस्कृत टीचर क्लास में जाती होगी ओर क्लासरूम से बाहर आती होगी संस्कृत के सिवा किसी भी भाषा का प्रयोग नहीं करती होगी आशा है । वैसे ही अंग्रेजी के टीचर को भी क्लासरूम में अंदर जाने से बाहर निकलने तक और कोई Language नहीं बोलनी चाहिए। अंग्रेजी करेंगे तो वो भी उतने ही बढ़िया तरीके से करेंगे। फिर ऐसा नहीं की भई एक वाक्य अंग्रेजी तीन वाक्य मातृ भाषा में पढ़ाएंगे। तो वो बच्चा catch नहीं कर सकता है। अगर हम उतना dedication language के प्रति भी होगा तो बुरा नहीं है और हमें तो अपने बच्चों को आदत डालनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखने का, उनके मन में इच्छा जगनी चाहिए और इसलिए कभी – कभी स्कूल में तय करना चाहिए इस बार हम अपने स्कूल में पांच अलग-अलग राज्यों के गीत सिखाएंगे बच्चों को। पांच गीत एक साल में मुश्किल नहीं हैं। तो पांच भाषा के गीत जान लेंगे कोई असमिया करेगा, कोई मलयालम में करेगा, कोई पंजाबी करेगा, पंजाबी तो खैर कर ही लेते हैं। चलिए बहुत – बहुत शुभकामनाएं। Wish you all the best.

शिक्षक – प्रधानमंत्री जी जी, मेरा नाम उत्पल सैकिया है और मैं असम से हूं। मैं अभी North East Skill Centre Guwahati में Food & Beverage Service में एक प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा हूं। और मैं इधर North East Skill Centre में मेरा अभी छह साल संपन्न हो गया है। और मेरा मार्गदर्शन से अब तक 200 से ज्यादा सत्र सफलतापूर्वक प्रशिक्षित हो गया है। और देश और विदेश में Five Star होटलों में काम।

प्रधानमंत्री जी – कितने समय का कोर्स है आपका?

शिक्षक – एक साल का कोर्स है सर।

प्रधानमंत्री जी – 1 year और Hospitality का जानते हैं

शिक्षक – Hospitality Food & Beverage Services.

प्रधानमंत्री जी – Food & Beverage, उसमें क्या विशेष सिखाते हैं आप?

शिक्षक – हम सिखाते हैं कैसे guests से बातें करते हैं, कैसे Food service होता है, कैसे drink service होता है तो इसके लिए हम क्लासरूम में स्टूडेंट्स को already ready कराते हैं। Different Techniques सिखाते हैं कैसे guests का प्रॉब्लम solve करना है, कैसे tackle करना है वो सब हम सिखाते हैं सर।

प्रधानमंत्री जी – जैसे कुछ उदाहरण बताइये। इन लोगों को घरों में बच्चे ये नहीं खाऊंगा, ये खाऊंगा, ये नहीं खाऊंगा ऐसे करते हैं। तो आप अपनी Technique सिखाइए इनको।

शिक्षक – बच्चों के लिए तो मेरे पास कुछ technique है नहीं लेकिन जो गेस्ट आते हैं जो हमारे पास होटल में आते हैं तो उन लोग को कैसे tackle करना है मतलब politely, humbly उन लोगों को बातें सुनकर।

प्रधानमंत्री जी – यानी ज्यादातर आपका फोकस soft skills पर है।

शिक्षक – हां जी सर, हां जी सर, Soft Skills.

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर वहां से निकले हुए बच्चों को जॉब के लिए एक opportunity कहां रहती है?

शिक्षक – All over India, जैसे कि Delhi हो गया, मुंबई।

प्रधानमंत्री जी – Mainly बडे-बड़े होटल में।

शिक्षक – बड़े-बड़े Hotels में। हमारा मतलब 100 परसेंट placement guaranteed है। Placement Team है, वो लोग देखते हैं।

प्रधानमंत्री जी – आप गुवाहाटी में हैं, अगर मैं हेमंता जी से कहूं कि हेमंता जी के जितने Ministers हैं उनके स्टाफ को आप Train करें और उनके अंदर ये capacity building करें। क्योंकि उनके यहां गेस्ट आते हैं और उसको मालूम नहीं होता है कि इसको बाएं हाथ से पानी दूं या दाहिने हाथ से, तो हो सकता है?

शिक्षक – Definitely हो सकता है।

प्रधानमंत्री जी – देखिए ये बात आपको आश्चर्य होगा। मैं जब गुजरात में था मुख्यमंत्री। तो मेरे यहां एक Hotel Management School था। तो मैंने बड़ा आग्रह किया था कि मेरे जितने Ministers हैं, उनका जो personal staff है उनको Saturday, Saturday, Sunday जाकर के वो सिखाएंगे। तो उन्होंने Volunteer सिखाना तय किया और मेरे यहां जितने अभी बच्चे काम करते हैं या माली काम करता था या cook काम करता था। जितने भी Ministers के यहां सबकी वहां पर 30, 40-40 घंटे के करीब syllabus होता था। उसके बाद उनके performance में से इतना बदलाव आया और घर में जाते ही पता चलता था। कि वाह कुछ नया-नया लग रहा है और तो जो परिवार वाले हैं उनको शायद उतना ध्यान में नहीं होता था, मेरे लिए तो बड़ा आश्चर्य होता था कि यार तुमने कैसे कर दिया ये सब? तो वहां सीख के आता था, तो मैं समझता हूं कभी ये भी करना चाहिए ताकि एक ये बहुत बड़ा ब्रांड बन जाएगा कि भई हां कि एक छोटा सा छोटा जैसे घर में काम करने वालों को भी आते ही कोई नमस्ते कह दे, जैसे टेलीफोन उठाने वाले लोग सरकारी दफ्तर में कुछ लोगों के ट्रेनिंग होते हैं। वो जय हिंद बोल कर उठाएंगे फोन या नमस्ते करके उठाएंगे, कोई हां बोलो क्या कहना है? तो वहीं से बात बिगड़ जाती है। तो आप उसको बराबर ठीक से सिखाते हैं?

शिक्षक : सिखाते हैं सर, सिखाते हैं!

प्रधानमंत्री जी: चलिए, बहुत बहुत बधाई है आपको!

शिक्षक : धन्यवाद सर!

प्रधानमंत्री जी: तो बोरिसागर आपके कुछ थे क्‍या?

शिक्षक : हां थे सर, दादा थे!

प्रधानमंत्री जी: दादा थे? अच्छा! वो हमारे बहुत हास्य लेखक हुआ करते थे। तो आप क्‍या करते हैं?

शिक्षक: सर मैं अम्रेली से प्राइमरी स्कूल में टीचर हूं और वहां पर श्रेष्ठ पाठशाला निर्माण से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण के जीवन मंत्र के साथ पीछे 21 साल से काम कर रहा हूं सर...

प्रधानमंत्री जी: क्या विशेषता क्या है आपकी?

शिक्षक: सर मैं हमारे जो लोकगीत हैं ना...

प्रधानमंत्री जी: कहते हैं आप बहुत पेट्रोल जलाते हैं?

शिक्षक: हां सर वो बाइक पर में हमारा जो प्रवेश उत्सव आपके द्वारा हमारा जो सफल कार्यक्रम रहा शिक्षकों का 2003 से, सर हमारे जो लोकल गरबा गीत हैं, उसको हमें education और गीत में परिवर्तित करके मैं गाता हूं, जैसे पंखेड़ा है हमारा, सर अगर आपकी अनुमति हो तो गा सकता हूं मैं?

प्रधानमंत्री जी: हां, हो जाए!

प्रधानमंत्री जी: ये गुजराती बहुत प्रसिद्ध लोकगीत है।

शिक्षक: yes sir, ये गरबा गीत है।

प्रधानमंत्री जी: उन्होंने इसके वाक्य बदल दिए हैं और वो कह रहे हैं कि बच्चों को ये गीत से बताते हैं कि अरे भई तुम स्‍कूल चलो, पढ़ने के लिए चलो यानी अपने तरीके से वो कर रहे हैं।

शिक्षक: yes sir, और सर 20 भाषा के गीत भी मैं गा सकता हूं।

प्रधानमंत्री जी: 20, अरे वाह!

शिक्षक: अगर मैं केरल के बारे में बच्चों को सिखाता हूं तो, अगर तमिल में सिखाता हूं तो तमिल के दोस्त हैं वा यानि आओ, पधारो वेलकम, अगर मैं मराठी में, अगर कन्नड़ में …………. भारत माता को नमन करता हूं सर! अगर मैं राजस्थानी में इसे गाता हूं ........

प्रधानमंत्री जी: बहुत-बहुत बढ़िया!

शिक्षक: Thank you sir, सर एक भारत श्रेष्ठ भारत, यही मेरा जीवन मंत्र है सर!

प्रधानमंत्री जी: चलिए बहुत-बहुत...

शिक्षक: और सर 2047 में विकसित भारत बनाने के लिए भी और ऊर्जा से काम करूंगा सर।

प्रधानमंत्री जी: Very good.

शिक्षक: Thank you sir.

प्रधानमंत्री जी: उनकी surname मैंने जब देखी तो उनके दादा से मैं परिचित था तो मुझे याद आया आज और उनके दादा बहुत ही अच्छे हास्य लेखक हुआ करते थे मेरे राज्‍य में, बड़ी पहचान थी उनकी लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि आपने उस विरासत को संभाला होगा। मुझे बहुत अच्छा लगा!

साथियों,

मेरी तरफ से कुछ खास आप लोगों को संदेश तो नहीं है पर मैं जरूर कहूंगा कि ये सेलेक्‍शन होना ये बहुत बड़ी पूंजी होती है, लंबे प्रोसेस से निकलता है। पहले क्या होता था मैं इसकी चर्चा नहीं करता हूं, लेकिन आज कोशिश है कि देश में ऐसे होनहार लोग हैं, जो कुछ वो नया कर रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हमसे कोई ज्यादा अच्छे टीचर नहीं होंगे, किसी और विषय में अच्छा नहीं करते होंगे ऐसा नहीं हो सकता। ये तो देश है बहुरत्‍ना वसुंधरा है। कोटि-कोटि टीचर्स ऐसे होंगे जो बहुत उत्तम काम करते होंगे लेकिन हम लोगों की तरफ ध्‍यान गया होगा, हमारी कोई एक विशेषता होगी। जो देश में खासकर के नई शिक्षा नीति के लिए आप लोगों के जो प्रयास हैं वो काम आ सकते हैं। देखिए हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था में जैसे भारत में एक विषय हमारी आर्थिक व्‍यवस्‍था को बहुत ताकत दे सकता है और भारत ने ये मौका गंवा दिया है। हमने फिर से एक बार उसको प्राप्त करना है और वो हमारे स्कूलों से शुरू हो सकता है और वो है टूरिज्‍म I

अब आप कहेंगे कि हम बच्चों को पढ़ाएंगे या टूरिज्‍म करें। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप टूरिज्‍म करें, लेकिन अगर स्‍कूल के अंदर टूर तो जाती ही होगी लेकिन ज्‍यादातर टूर कहां जाती है, जहां टीचर ने जो देखा नहीं है वहां टूर जाती है। स्‍टूडेंट को क्‍या देखना चाहिए, वहां टूर नहीं जाती है। अगर टीचर का उदयपुर रह गया तो फिर कार्यक्रम बनाएंगे कि स्‍कूल इस बार उदयपुर जाएगी और फिर सबसे जो भी पैसे लेने होते हैं, जो टिकट का खर्चा होता है सब कलेक्‍ट करते हैं फिर जाते हैं लेकिन मेरे लिए तो जैसे मां कहती है ना बच्चे को आइसक्रीम खाना है, तो हम लोग कभी सोचकर के जैसे टाइम टेबल बनाते हैं साल भर का आप लोग पूरा काम तय कर लेते हैं किसको करना है, कैसे... क्‍या उसमें हम अभी से कि भई 2024-2025 में 8 या 9 कक्षा के विद्यार्थियों के लिए डेस्‍टिनेशन ये होगा। 9 और 10 के लिए ये होगा and then जो भी तय करें आप... हो सकता है ये स्‍कूल 3 डेस्‍टिनेशन तय करे, हो सकता है स्‍कूल 5 डेस्‍टिनेशन तय करे और उनको साल भर काम देना चाहिए कि अब आपको प्रोजेक्‍ट दिया जाता है कि अगले साल हम केरला जाने वाले हैा, भई 10 स्‍टूडेंट का एक ग्रुप बनेगा जो केरल के सोशल रीति रिवाज उन पर प्रोजेक्‍ट करेगा। 10 स्टूडेंट वहां के धार्मिक परंपरा क्या होती हैं, मंदिर कैसे होते हैं, कितने पुराने हैं, 10 स्टूडेंट हिस्ट्री पर करेंगे, साल भर एक-एक, दो-दो घंटा इस पर डिबेट होती रहे, केरल, केरल, केरल चलता रहे और फिर केरल के लिए निकल पड़ें। आपके बच्चे जब जाएंगे केरला तो वो एक प्रकार से पूरे केरल को आत्मसात करके वापस आएंगे। उनको रहेगा अरे वो मैंने पढ़ा था ना अच्छा ये वो है, वो correlate करेगा।

अब आप सोचिए कि मान लीजिए गोवा ने तय किया कि इस बार हम नॉर्थ ईस्‍ट जाएंगे और मान लीजिए सब स्‍कूल मिलाकर के 1000-2000 बच्‍चे नॉर्थ ईस्‍ट जाते हैं तो उनको तो नॉर्थ ईस्‍ट देखने को मिलेगा। लेकिन नॉर्थ ईस्‍ट के टूरिज्म को फायदा होगा कि नहीं होगा? ये लोग नॉर्थ ईस्‍ट जितने भी होते हैं, तो नॉर्थ ईस्‍ट वालों को लगेगा भई अब इतने लोग आ रहे हैं तो कोई चाय-पान के लिए दुकानें खोलनी पड़ेगी। किसी को लगेगा ये चीज बिकती है चलो ये ज्यादा, तो हां भाई अपना रोजगार बढ़ेगा। भारत इतना बड़ा देश है, हम शिक्षा के साथ और इस बार आपको, आप अपने स्टूडेंट्स को बताइए, अभी ऑनलाइन एक कॉम्पिटिशन चल रहा है और आपके स्कूल के सब बच्चों ने उसमें हिस्सा लेना चाहिए, लेकिन ऐसे ही टिक मार्क नहीं करना चाहिए, थोड़ा स्टडी करके करना चाहिए। अभी कॉम्पीटिशन चल रहा है देखो अपना देश, ऑनलाइन रैंकिंग चल रहा है, लोग वोट कर रहे हैं और उसमें हमारी कोशिश है कि उस राज्य के लोग वोट करके तय करें कि हमारे राज्य में ये नंबर वन पर चीज है जो देखने जैसी है, जाने जैसी है। एक बार आप वोटिंग से जो सेलेक्ट होंगे, तो सरकार कुछ बजट लगाएगी, वहां infrastructure तैयार करेगी और उनको फिर develop करेगी। लेकिन ये टूरिज्‍म कैसे टूरिज्‍म होता है मुद्दा ये होता है कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा... कुछ लोगों का कहना है कि भई टूरिज्‍म नहीं है इसलिए डेवलप नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं कि टूरिज्‍म आएंगे तो डेवलप होगा और इसलिए हम स्‍टूडेंट से शुरू कर सकते हैं ऐसे डेस्‍टिनेशन, योजनाबद्ध तरीके से वहां जाएं, रात्रि को वहां मुकाम करें तो उस स्थान के लोगों को लगेगा कि भई अब रोजगार की संभावना बनेगी, तो होम स्टे बनने लग जाएंगे। ऑटो रिक्‍शा वाले आ जाएंगे यानी अगर हम सिर्फ स्‍कूल में बैठे-बैठे तय करें तो इस देश में 100 टॉप डेस्टिनेशन टूरिज्म के हम 2 साल में तैयार कर सकते हैं। एक टीचर कितना बड़ा revolution ला सकता है, इसका ये उदाहरण है। यानि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में स्कूल के regular काम में, आप करते ही हैं, आप के यहां से टूर जाते ही जाते हैं। लेकिन अध्‍ययन नहीं होता है। जहां जाना है उसका साल भर अध्‍ययन होगा तो वो शिक्षा काम हो गया। जाकर के उस जगह पर जाते हैं तो वहां पर इकोनॉमी को लाभ जो सकता है।

उसी प्रकार से मेरा आपसे आग्रह है कि आपके नजदीक में जहां भी university हो, कभी न कभी आपके 8वी-9वी कक्षा के बच्‍चों का उस university में टूर कराना चाहिए। university से बात करनी चाहिए कि भई हमारी 8वी कक्षा के बच्‍चे आज university देखने आएंगे। मेरा एक नियम था जब मैं गुजरात में था, अब तो कहीं पर university में अगर convocation में बुलाते थे, तो मैं उनसे कहता था कि भई मैं आऊंगा जरूर लेकिन मेरे 50 guests साथ आएंगे। तो university को रहता था कि भई ये कौन 50 guests आएंगे। और जब politician कहता है तो उनको लगता है कि उनके चेले-चपाटे आने वाले होंगे। फिर मैं कहता था कि university के 5-7 किलोमीटर के रेडियस में कोई सरकारी स्‍कूल हो जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हों झुग्गी-झोपड़ी के, ऐसे 50 बच्‍चे मेरे guest होंगे और उनको आपको first row में बिठाना पड़ेगा। अब ये बच्‍चे जब ये convocation देखते हैं, हैं तो बिल्‍कुल गरीब परिवार के बच्‍चे, उनके मन में उसी दिन सपना बो देते हैं। कभी मैं ऐसा टोपा पहन करके, ऐसा कुर्ता पहन करके मैं भी अवार्ड लेने जाऊंगा। ये भाव उसके मन में register हो जाता है। आप भी अगर अपने स्‍कूल के ऐसे बच्‍चों को ऐसी university देखने के लिए ले जाएं, university से बात करें कि साहब आपके यहां इतनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, हम देखना चाहते हैं।

वैसे ही sports के event होते हैं, कभी-कभी हम क्‍या करते हैं जैसे ब्‍लॉक लेवल का sports competition है, तो कौन करेगा वो पी.टी. टीचर जाने, वो खेलने वाला बच्‍चा जानें, जाएगा। सचमुच में पूरे स्‍कूल को sports देखने के लिए जाना चाहिए। भले ही कबड्डी चल रही है, किनारे बैठेंगे, ताली बजाएंगे। कभी-कभी देखते-देखते ही उसमें से खिलाड़ी बनने का मन किसी को जग जाता है। खिलाड़ी को भी लगता है कि यार मैं कोई एकलौता अपने पागलपन के कारण खिलाड़ी नहीं बना हूं। मैं खेल खेल रहा हूं मतलब मैं एक समाज का एक अच्छा प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। उसके अंदर एक भाव जागता है। एक टीचर के नाते मैं ऐसी चीजों को innovate करता रहूं और कोई extra प्रयत्न के बिना जो हैं उसको प्लस वन करना है बस, ये अगर हम कर सकते हैं तो आप देखिए, स्‍कूल का भी नाम बन जाएगा, जो टीचर उसमें काम करते हैं उनके प्रति भी देखने का एक भाव बदल जाएगा। दूसरा, आप लोग कोई ज्‍यादा संख्‍या हैं नहीं लेकिन आप में से सबको पता नहीं होगा कि बाकियों को किस कारण से ये अवार्ड मिला है। पता नहीं होगा, आपको लगता होगा कि मुझे मिला है तो उसको भी मिला होगा। मैं ये करता हूं, मुझे मिलता है, वो भी कुछ करता होगा, मिल गया, ऐसा नहीं... आपकी कोशिश होनी चाहिए इन सबके अंदर ऐसी कौन सी विशेषता है, इन लोगों में ऐसा कौन सा कर्तव्य है जिसके कारण देश का उन पर ध्यान गया है। मैं उसमें से दो चीजें सीख करके जा सकता हूं क्या? आपके लिए ये चार दिन, पांच दिन एक प्रकार से स्टडी टूर है। आपका सम्मान, गौरव हो रहा है वो तो एक है लेकिन अपने से जैसे मैं आप सबसे बात कर रहा हूं, मैं आप लोगों से सीख रहा था। आप लोग कैसे करते हैं, जान रहा था। अब ये मेरे लिए अपने आप को एक बड़ा प्रसन्न करने वाले बात थी और इसलिए मैं कहता हूं कि आपके जितने साथी हैं, दूसरा किसी जमाने में जब हम छोटे थे तब पत्र मित्र, वैसा एक माना हुआ करता था। अब सोशल मीडिया हो गया है, तो वो तो दुनिया चली गई। लेकिन क्‍या आप लोगों का सबका एक व्हाट्सअप्प ग्रुप बन सकता है? सबका! जो लोग, कब से बना है? अच्छा कल ही बना है। चलिए, अच्छा 8-10 दिन हो गए, मतलब एक good beginning है। एक दूसरे से अपने experience शेयर करने चाहिए। अब आपको यहां कोई तमिलनाडु के टीचर से परिचय हुआ है। आपकी टूर तमिलनाडु जाने वाली है, आपके स्कूल की, अभी से उनको कहिए कि जरा बताइए, देखिए आपकी कितनी बड़ी ताकत बन जाएगी। आपको कोई मिलेगा अरे कोई केरल, अरे मैं उसको जानता हूं, जम्‍मू-कश्‍मीर अरे मैं उससे तो परिचित हूं। आप चिंता मत कीजिए, मैं उनको फोन कर देता हूं। इन चीजों का बड़ा प्रभाव होता है और मैं चाहूंगा कि आप लोगों का एक ऐसा समूह बनना चाहिए जिनको लगना चाहिए कि हम तो एक परिवार के हैं। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत तक, इससे बड़ा कोई अनुभव नहीं हो सकता। ऐसी छोटी-छोटी चीजों की अगर तरफ आप ध्‍यान देते हैं, मुझे पक्‍का विश्वास हैं देश की विकास यात्रा में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है।

आप भी सुन-सुन करके थक गए होंगे। शिक्षक ऐसा होता है, शिक्षक वैसा होता है, फिर आपको भी लगता है कि ये बंद करे तो अच्‍छा है यानि मैं मेरे लिए नहीं कह रहा हूं। लेकिन शिक्षक की जब वाह-वाही चलती है ना तो इतनी चलती है तो फिर आपको भी लगता है यार बहुत हो गया। मुझे भी लगता है कि वाह-वाही की जरुरत नहीं है। हम उस विद्यार्थी की तरफ देखें, उस परिवार ने कितने विश्वास के साथ वो बच्चा हमें सुपुर्द किया है। उस परिवार ने हमें बच्‍चा इसलिए सुपुर्द नहीं किया है कि आप उसको कलम पकड़ना सिखाते हैं, कंप्‍यूटर चलाना सिखाते हैं, इसलिए नहीं दिया है आपको वो बच्‍चा कि ताकि आप उसको कुछ syllabus पढ़ाते हैं, इसलिए वो एग्‍जाम में अपना अच्‍छा रिजल्‍ट ले आए, सिर्फ इसलिएए नहीं भेजा है। मां-बाप को लगता है कि जो हम दे रहे हैं उससे आगे हम ज्‍यादा नहीं दे पाएंगे, उसका अगर कोई प्‍लस वन कर सकता है तो उसका टीचर कर सकता है। और इसलिए बच्‍चे की जिंदगी में शिक्षा में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। संस्‍कार में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। उसके habits में correction कौन करेगा प्‍लस वन टीचर करेगा। और इसलिए प्‍लस वन theory वाली हमारी कोशिश होनी चाहिए। उसके घर से जो मिला है मैं उसमें कुछ ज्‍यादा अतिरिक्‍त जोड़ दूंगा। मेरा उसकी जिंदगी में बदलाव लाने का कोई न कोई contribution होगा। अगर ये प्रयास आपकी तरफ से रहे, मुझे विश्‍वास है कि आप बहुत ही सफलतापूर्वक और आप अकेले नहीं, सभी शिक्षकों से बात कीजिए। अपने क्षेत्र के, अपने राज्‍य के शिक्षकों से बात कीजिए। आप लीडरशिप लीजिए और हमारे देश की नई पीढ़ी को तैयार करें क्योंकि आज जिन बच्चों को आप तैयार कर रहे हैं ना, वे जब नौकरी करने योग्य बनेंगे या 25-27 साल की उम्र तक पहुंचेंगे, तब ये देश आज है वैसा नहीं होगा, ये विकसित भारत होगा। आप उस विकसित भारत में retirement का पेंशन लेते होंगे। लेकिन जिसको आज आप तैयार कर रहे हैं, वो उस विकसित भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने वाला एक सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍तित्‍व बनने वाला है। यानि आपके पास कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, ये विकसित भारत, ये कोई सिर्फ मोदी का कार्यक्रम नहीं है।

हम सबको मिलकर के विकसित भारत के लिए ऐसा मानव समूह भी तैयार करना है। ऐसे सामर्थ्यवान नागरिक भी तैयार करने हैं, ऐसे सामर्थ्यवान नौजवान तैयार करने हैं। अगर हमें आगे चलकर के 25-50 गोल्‍ड मेडल अगर खेल-कूद में लाने हैं, कहां से निकलेगा वो खिलाड़ी? जो आपके स्कूल में दिखते हैं ना, उन बच्चों में से निकले वाला है और इसलिए हम उन सपनों को लेकर के और आपके पास बहुत लोग हैं, सपने होते हैं लेकिन उनके सामने इन सपनों का साकार कैसे करें, आप वो लोग हैं आपके मन में जो सपना आए, उस सपने को साकार करने के लिए वो laboratory आपके सामने ही है, raw material आपके सामने ही है, वो बच्‍चे आपके सामने ही हैं। आप अपने सपनों को लेकर के उस प्रयोगशाला में प्रयास करेंगे, आप जो चाहें वो परिणाम लेकर के आएंगे।

मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं!

बहुत-बहुत धन्यवाद!