11 राज्यों के 11 पैक्स में 'सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना'की प्रायोगिक परियोजना का उद्घाटन किया
गोदामों और अन्य कृषि बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए देश भर में अतिरिक्त 500 पैक्स की आधारशिला रखी
देश भर में 18,000पैक्समें कम्प्यूटरीकरण के लिए परियोजना का उद्घाटन किया
"सहकारी क्षेत्र मजबूत अर्थव्यवस्था को आकार देने और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देने में सहायक है"
"सहकारिता में दैनिक जीवन से संबंधित सामान्य प्रणाली को बड़ेउद्यमी प्रणाली में बदलने की क्षमता हैऔर यह ग्रामीण तथा कृषि अर्थव्यवस्था का चेहरा बदलने का कारगर तरीका है"
"कृषि और डेयरी सहकारी समितियों में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं"
“विकसित भारत के लिए कृषि प्रणालियों का आधुनिकीकरण जरूरी है”
"भारत कोआत्मनिर्भर बनाए बिना विकसित भारत संभव नहीं है"

देश के गृह एवं सहकारिता मंत्री श्रीमान अमित शाह, कैबिनेट में मेरे साथी अर्जुन मुंडा, श्रीमान पीयूष गोयल जी, राष्ट्रीय सहकारी समितियों के पदाधिकारीगण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

आज ‘भारत मंडपम्’ विकसित भारत की अमृत यात्रा में एक और बड़ी उपलब्धि का साक्षी बन रहा है। ‘सहकार से समृद्धि’ का जो संकल्प देश ने लिया है, उसे साकार करने की दिशा में आज हम और आगे बढ़ रहे हैं। खेती और किसानी की नींव को मजबूत करने में सहकारिता की शक्ति की बहुत बड़ी भूमिका है। इसी सोच के साथ हमने अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। और अब इसी सोच के साथ आज का ये कार्यक्रम हो रहा है। आज हमने अपने किसानों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्टोरेज स्कीम...या भंडारण स्कीम शुरू की है। इसके तहत देश के कोने-कोने में हजारों वेयर-हाउसेस बनाए जाएंगे, हजारों गोदाम बनाए जाएंगे। आज 18 हजार पैक्स के कंप्यूटराइजेशन का बड़ा काम भी पूरा हुआ है। ये सभी काम देश में कृषि इनफ्रास्ट्रक्चर को नया विस्तार देंगे, कृषि को आधुनिक टेक्नालजी से जोड़ेंगे। मैं आप सभी को इन महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम लाने वाले कार्यकर्मों के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं, अनेक – अनेक शुभाकामनाएं देता हूं।

साथियों,

सहकारिता भारत के लिए बहुत प्राचीन व्यवस्था है। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है-अल्पानाम् अपि वस्तूनाम्, संहति: कार्य साधिका॥ अर्थात्, छोटी छोटी वस्तुएं, थोड़े-थोड़े संसाधन भी जब साथ जोड़ दिये जाते हैं, तो उनसे बड़े बड़े कार्य सिद्ध हो जाते हैं। प्राचीन भारत की ग्राम अर्थव्यवस्था में सहकार की यही स्वतः स्फूर्त व्यवस्था काम करती रही है। सहकार ही हमारे आत्मनिर्भर समाज का आधार हुआ करती थी। सहकारिता केवल एक व्यवस्था नहीं है। सहकारिता एक भावना है, सहकारिता एक स्पिरिट है। सहकार की ये स्पिरिट कई बार व्यवस्थाओं और संसाधनों की सीमाओं से परे आश्चर्यजनक परिणाम देती है। सहकार, जीवनयापन से जुड़ी एक सामान्य व्यवस्था को बड़ी औद्योगिक क्षमता में बदल सकता है। ये देश की अर्थव्यवस्था के, खासकर ग्रामीण और कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था के कायाकल्प का एक प्रमाणिक तरीका है। एक अलग मंत्रालय के जरिए हम देश के इस सामर्थ्य को और कृषि क्षेत्र की बिखरी हुई इस ताकत को ही एकत्र करने का भी ये भगीरथ प्रयास है। किसान उत्पाद संघ- FPOs का एक बहुत ही महत्वपूर्ण उदाहरण हमारे सामने है। FPOs के माध्यम से आज गाँव के छोटे किसान भी उद्यमी बन रहे हैं, अपने उत्पादों को विदेशों तक निर्यात कर रहे हैं। हमने देश में 10 हजार FPOs बनाने का लक्ष्य रखा था। एक अलग सहकारिता मंत्रालय होने का नतीजा ये है कि देश में 8 हजार FPOs का गठन already हो चुका है, कार्यरत हो चुके हैं। कई FPOs की सक्सेस स्टोरी की चर्चा आज देश के बाहर भी हो रही है। इसी तरह,एक और संतोषजनक बदलाव ये आया है कि सहकारिता का लाभ अब पशुपालकों और मछली-पालकों तक भी पहुँच रहा है। मछली पालन में आज 25 हजार से ज्यादा सहकारी इकाइयाँ काम कर रही हैं। आने वाले 5 वर्षों में सरकार का लक्ष्य 2 लाख सहकारी समितियाँ बनाने का है। और इनमें एक बड़ी संख्या फ़िशरीज़ सेक्टर की सहकारी समितियों की भी होने जा रही है।

साथियों,

सहकारिता की ताकत क्या होती है, गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में मैंने इस ताकत को अनुभव किया है। गुजरात में अमूल की सफलता की गाथा आज पूरी दुनिया जानती है। हम सब दुनिया भर के बाज़ार में पहुँच चुके लिज्जत पापड़ के बारे में भी जानते हैं। इन सभी आंदोलनों को मुख्य रूप से देश की महिलाओं ने ही लीड किया है। आज देश में भी डेयरी और कृषि में सहकार से किसान जुड़े हैं, उनमें करोड़ों की संख्या में महिलाएं ही हैं। महिलाओं के इसी सामर्थ्य को देखते हुए सरकार ने भी सहकार से जुड़ी नीतियों में उन्हें प्राथमिकता दी है आप जानते हैं कि हाल में ही मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसायटी ऐक्ट में सुधार लाया गया है। इसके तहत मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसायटी के बोर्ड में महिला डायरेक्टर्स का होना अनिवार्य कर दिया गया है। हमारे देश में संसद में अगर नारी शक्ति वंदन अधिनियम पास होता है तो बहुत चर्चा होती है। लेकिन ये उतनी ही ताकत वाला बड़ा महत्वपूर्ण कानून हमनें बनाया है। लेकिन बहुत कम लोग उसकी चर्चा करते हैं।

साथियों,

सहकारिता किसान की व्यक्तिगत समस्याओं का कैसे सामूहिक शक्ति से समाधान करती है, भंडारण भी इसका एक बड़ा उदाहरण है। हमारे यहाँ भंडारण से जुड़े इनफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता था। पिछली सरकारों ने कभी इस जरूरत पर उतना ध्यान नहीं दिया। लेकिन, आज सहकारी समितियों के जरिए इस समस्या को हल किया जा रहा है। दुनिया की, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है, दुनिया की सबसे बड़ी भंडारण योजना के तहत, अगले 5 वर्षों में 700 लाख मीट्रिक टन भंडारण की क्षमता तैयार की जाएगी। इस अभियान में सवा लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आएगा। इस योजना के पूरा होने पर हमारे किसान अपने उत्पादों को अपनी जरूरत के मुताबिक भंडारण में रखकर के स्टोर कर पाएँगे। उन्हें बैंकों से ऋण लेने में भी आसानी होगी। और वो सही समय जब उनको ठीक लगे की हां अब माल बेचने के लिए बाजार ठीक है, सही समय पर अपने उत्पाद को बाज़ार में ले जाकर बेच भी पाएंगे।

साथियों,

विकसित भारत के लिए भारत की कृषि व्यवस्थाओं का आधुनिकीकरण भी उतना ही जरूरी है। हम कृषि क्षेत्र में नई व्यवस्थाएं बनाने के साथ ही पैक्स जैसी सहकारी संस्थाओं को नई भूमिकाओं के लिए तैयार कर रहे हैं। ये समितियां अब प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र का भी काम कर रही हैं। इनके द्वारा हजारों प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र भी संचालित हो रहे हैं। हमने सहकारी समितियों को पेट्रोल और डीजल के रिटेल आउटलेट में भी बदला है। कई समितियों पर LPG सिलिंडर भी मिलने लगे हैं। कई गाँवों में पैक्स पानी समितियों की भूमिका भी निभा रही हैं। यानी, पैक्स की, ऋण समितियों की उपयोगिता भी बढ़ रही है, उनकी आय के साधन भी बढ़ रहे हैं। यही नहीं, सहकारी समितियां अब कॉमन सर्विस सेंटर के तौर पर गाँवों में सैकड़ों सरकारी सुविधाएं भी दे रही हैं। अब कम्प्यूटर के जरिए ये समितियां टेक्नालजी और डिजिटल इंडिया से जुड़े अवसरों को और बड़े स्तर पर किसानों तक पहुंचाएंगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

साथियों,

विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि इसके लिए मैं आप सभी की भूमिका, सहकारी संस्थाओं की भूमिका का महत्व बहुत ज्यादा है इस बात को समझता हूं। इसलिए आप सभी से मेरी अपेक्षा भी कुछ ज्यादा है। और आखिरकार अपेक्षा तो उन्हीं से होती है जो करते हैं, जो नहीं करते उनसे अपेक्षा कौन करेगा। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में आप जितना ज्यादा, और जितना ज्यादा सक्रिय योगदान बढ़ाएंगे, हम अपने लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कर पाएंगे। आत्मनिर्भर भारत बनाए बिना, विकसित भारत बनाना संभव नहीं है। आपके सामर्थ्य, आपकी संगठन क्षमता को देखते हुए मन में बहुत सारे सुझाव आ रहे हैं। सारे तो अभी एक साथ नहीं बताऊंगा आपको। लेकिन कुछ मैं इशारा करना चाहता हूं। जैसे, मेरा सुझाव है कि हमारी को-ऑपरेटिव्स एक लिस्ट बनाएं, कि कौन-कौन सी चीजें ऐसी हैं, जो हम बाहर से लाते हैं, विदेशों से लाते हैं। अब हम इंपोर्ट नहीं करेंगे। सहकारी क्षेत्र इसमें क्या कर सकता है। उनके लिए हमें देश में ही एक सपोर्ट सिस्टम बनाना है। ये जिम्मेदारी सहकारी संस्थाएं बहुत आसानी से ले सकती हैं। अब जैसे, कृषि प्रधान तो देश कहलाए जाते हैं लेकिन ये भी सच्चाई है कि जो कृषि प्रधान देश के रूप में हम पिछले 75 साल से गीत गाते रहते हैं। लेकिन ये दुर्भाग्य देखिए हजारों करोड़ रुपए का खाने का तेल हर वर्ष इंपोर्ट करते हैं। खाने के तेल में हम आत्मनिर्भर कैसे हों, इसी मिट्टी में पैदा हुआ तिलहन , उससे निकला हुआ तेल हमारे नागरिकों के जीवन को अधिक ताकत दे सकता है। और इसके लिए अगर मेरे सहकार क्षेत्र के साथी काम न करें तो कौन करेगा? मैं सही कर रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं, आप ही करेंगे ना, करना चाहिए ना। हमें,अब आप देखिए खाने का तेल भी बाहर से आता है और ऊर्जा के लिए जो तेल चाहिए, गाड़ी चलाने के लिए, ट्रैक्टर चलाने के लिए पेट्रोल,डीजल, ये फ्यूल से जुड़ा अपना इंपोर्ट बिल भी इसको भी हमें कम करना है। इसके लिए हम इथेनॉल को लेकर आज बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। बीते 10 वर्षों में इथेनॉल के प्रोडक्शन, खरीद और ब्लेंडिंग तीनों में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है। आज ये काम ज्यादातर चीनी मिलों के जिम्मे है और सरकारी कंपनियां उनसे इथेनॉल खरीदती हैं। क्या इसमें सहकारी समितियां नहीं आ सकती हैं क्या? जितनी ज्यादा आएंगी, उतना ही इसका स्केल और बढ़ जाएगा। दालों के इंपोर्ट को कम करने के, आप देखिए कृषि प्रधान देश दाल बाहर से लाकर के खाते हैं हम। दालों के इंपोर्ट को कम करने के मामले में भी मेरे सहकारिता क्षेत्र के लोग बहुत बड़ा काम कर सकते हैं, अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। मैन्युफेक्चरिंग से जुड़े भी अनेक छोटे-छोटे सामान हैं, जो हम सभी इंपोर्ट करते हैं लेकिन को-ऑपरेटिव्स की मदद से हम उन्हें देश में ही बना सकते हैं।

साथियों,

आज प्राकृतिक खेती पर हम बहुत बल दे रहे हैं। इसमें भी को-ऑपरेटिव्स बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अन्नदाता को ऊर्जादाता और अन्नदाता को उरवर्कदाता बनाने में भी को-ऑपरेटिव्स की बड़ी भूमिका है। अगर को-ऑपरेटिव उसमें हाथ लगा दे। एक दम तेजी से परिणाम आ जाएगा। अब देखिए रूफ टॉप सोलर हो या फिर खेत की मेढ पर छोटे-छोटे सोलर पैनल लगाने हों, इसमें 50-60 किसान इकट्ठे होकर के एक सहकारी संस्था बना दें, मेड के ऊपर सोलर पेनल लगा दें, और वो सहकारी संस्था बिजली पैदा करे, बिजली बैचे, किसान को भी बैचे, सरकार को भी बैचे आसानी से सहकारी संस्था काम कर सकती है। आजकल हम देख रहे हैं कि गोबरधन योजना में बड़ी-बडी मल्टीनेशनल कंपनियां आ रही हैं। ये ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत बनने जा रहा है। क्या को-ऑपरेटिव्स को इसमें पीछे क्यों रहना चाहिए क्या? वेस्ट टू वेल्थ का काम हो, गोबर से बायो-सीएनजी बनाना हो, जैविक खाद बनाना हो, इन सब में सहकारी संस्थानों का विस्तार हो सकता है। इससे देश का खाद से जुड़ा इंपोर्ट बिल भी कम हो जाएगा। हमारे किसानों के, छोटे उद्यमियों के प्रोडक्ट्स की ग्लोबल ब्रांडिंग के काम में भी आपको आगे आना चाहिए। अब देखिए गुजरात का मैं पहले गुजरात में जो डेयरी थी सब अलग-अलग नाम से काम करते थे। जब से अमूल एक ब्रांड बन गई, डेयरी बहुत हैं, अलग-अलग है। लेकिन अमुल एक ब्रांड बन गई। आज ग्लोबली उसकी आवाज सुनी जाती है। हम भी हमारे अलग-अलग उत्पाद का एक कॉमन ब्रांड बना सकते हैं। हमें अपने मिलेट्स, यानि श्री अन्न इस ब्रांड को, हमारा लक्ष्य होना चाहिए, दुनिया के हर डाइनिंग टेबल पर भारत के ब्रांड का मिलेट्स क्यों न हो। तक पहुंचाना है। इसके लिए को-ऑपरेटिव्स को एक व्यापक एक्शन प्लान बनाकर के आगे आना चाहिए।

साथियों,

गांव की आय बढ़ाने में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। हमने तो डेयरी सेक्टर में एक स्पष्ट बदलाव होते हुए देखा है। अभी पिछले तीन दिन से मैं कहीं न कहीं सहकारी क्षेत्र कार्यक्रम में ही रहता हूं। पहले गया अहमदाबाम में अमूल के 50 साल हुए थे। फिर कल बनारस में था काशी में वहां बनारस डेयरी का उद्धघाटन किया था। बनारस का अनुभव है कि वहां डेयरी सहकारिता के आने से बहनों की पशुपालकों की आय एक दम तेजी से बढ़ रही है। सहकारिता बढ़ने से एक और क्षेत्र में प्रवेश हुआ है। मैंने गुजरात के सहकारिता के लोगों से आग्रह किया था। कि आप शहद की दुनिया में आइये। हमनें श्वेत क्रांति की, अब हम sweet क्रांति करें। और शहद के क्षेत्र में हमारे लोग आगे आए। शहर सेक्टर को किसान आज कितना लाभ उठा रहा है। ये भी आप जानते हैं। पिछले 10 वर्षों में शहद उत्पादन, 75 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर अब लगभग डेढ़ लाख मीट्रिक टन पहुंच चुका है। शहद के एक्सपोर्ट में भी 28 हजार मीट्रिक टन से 80 हजार टन की वृद्धि हुई है, 80 हजार मीट्रिक टन की । इसमें NAFED (नाफेड)और TRIFED (ट्राईफेड) के साथ-साथ राज्यों की को-आपरेटिव संस्थाओं ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। इस दायरे को हमें और अधिक बढ़ाना है।

साथियों,

गुजरात में हमने देखा है कि जब दूध का पैसा सीधा बहनों के बैंक खातों में जाना शुरू हुआ तो उसका एक सार्थक सामाजिक परिवर्तन आया। अब तो हमारी सहकारी समितियां, हमारे पैक्स कंप्यूटराइज हो चुके हैं। इसलिए अब ये सुनिश्चित होना चाहिए कि जो भी काम हो, जो भी पेमेंट्स हों वो डिजिटली हों। विशेष रूप से को-ऑपरेटिव बैंक्स को डिजिटल टेक्नॉलॉजी को आत्मसात करने के लिए तेज़ी से काम करना चाहिए। एक और विषय सॉयल हेल्थ कार्ड का है। हमने मिट्टी की सेहत की जांच के लिए सॉयल टेस्टिंग का इतना बड़ा प्रोग्राम बनाया है। मेरा सहकारी संगठनों से, PACS से आग्रह है कि आप सॉयल टेस्टिंग के छोटे-छोटे लैब्स अपने इलाके में बनाइये किसानों को आदत डालिये कि लगातार वह अपनी जमीन की सेहत देखता रहे, मिट्टी की सेहत देखता रहे। सॉयल टेस्टिंग का नेटवर्क बनाएं।

साथियों,

सहकारिता में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़े, इसको लेकर भी हमें अपने प्रयास बढ़ाने होंगे। और मैं तो सहकारी क्षेत्र जहां पर किसान जुड़े हुए हैं वे काम कर सकते हैं। साथ में उनको कह सकते हैं कि आपको जो डिविडेंड वगैरह मिलता है अब आपको मुफ्त में आपकी संस्था की तरफ से सॉयल टेस्टिंग करके दिया जाएगा, उनको सिखाया जाएगा कि भई तुम सॉयल टेस्टिंग से अनुभव के आधार पर अपनी फसलों पर ध्यान केंद्रित करो।

साथियों,

इससे सहकारिता में नयापन आएगा, एक नई ऊर्जा आएगी। सहकारिता में स्किल डेवलपमेंट की, ट्रेनिंग की, जागरूकता बढ़ाने की भी बहुत अधिक आवश्यकता है। बहुत बदलाव हो चुका है जी और सारी चीजें कागज पर होनी चाहिए। मुंह जुबानी बाते करने वाला जमाला ला गया। और इसके लिए ट्रेनिंग होना बहुत जरूरी है और इसके लिए प्रयास होने चाहिए। PACS को, सहकारी समितियों को एक दूसरे से सीखना भी होगा। बहुत सी सहकारी संस्थाए इनोवेटिव काम करती हैं। कई initiative लेती हैं। देश के कई इलाकों में इसका पता नहीं होता है। क्या हम बेस्ट प्रेक्टिसिस को शेयर करने के लिए कोई कॉमन पोर्टल बना सकते हैं। और सब लोग अपने नए-नए अनुभव, नए-नए तरीके उस पर अपलोड करत जाएं। इन बेस्ट प्रेक्टिसिस को आगे कैसे बढ़ाया जाए इसके लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग की व्यवस्था हो, कोई मॉड्यूल बने। आप जानते हैं कि Aspirational District प्रोग्राम, आकांक्षी जिलों का अभियान उस प्रोग्राम में एक उसकी विशेषता है। Healthy Competition, स्वस्थ स्पर्धा का, रैंकिंग का एक सिस्टम बनाया हुआ है। और दिन में दस बार रैंकिंग में ऊपर नीचे होता रहता है। हर अफसर सोचता है कि मेरा जिला आगे निकल जाए। क्या को-ऑपरेटिव सेक्टर के अलग-अलग वर्टिकल बनाएं हम। एक एक प्रकार की को-ऑपरेटिव का एक वर्टिकल, दूसरे प्रकार की को- ऑपरेटिव का दूसरा वर्टिकल और एक ऐसा मैकेनिज्म बनाएं कि उसमे भी एक Healthy competition round the clock चलती हो। सहाकारी संगठनों में ये स्पर्धा हो बेस्ट पर्फोम करने वालों को ईनाम की व्यवस्था हो। ऐसी सहकारी संस्थाओं से नई चीज बाहर आए। एक बहु बड़ा आंदोलन जिसको सरकार और सहकारी संस्थाएं मिलकर के उसको एक नया रूप रंग दे सकते हैं।

साथियों,

एक बात सहकारी संस्थाओं के साथ एक question mark लेकर के चलती रहती है। सहकारी संगठनों के चुनाव में पारदर्शिता लाना बहुत जरूरी है। इससे लोगों का भरोसा बढ़ेगा। अधिक से अधिक लोग जुड़ेंगे।

साथियों,

सहकारी समीतियों को समृद्धि का आधार बनाने के लिए हमारी सरकार उनके सामने मौजूद रही चुनौतियों को भी कम कर रही है। आपको याद होगा, हमारे यहाँ कंपनियों पर सेस कम लगता था, लेकिन सहकारी समितियों को ज्यादा सेस देना होता था। हमने 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक की आय वाली सहकारी समितियों पर लगने वाले सेस को 12 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया। इससे समितियों के पास काम करने के लिए पूंजी भी बढ़ रही है। उनके लिए एक कंपनी की तरह आगे बढ़ने के रास्ते भी खुले हैं। सहकारी समितियों और कंपनियों के बीच वैकल्पिक टैक्स में भी पहले भेदभाव था। हमने समितियों के लिए न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स को साढ़े 18 प्रतिशत से घटा कर 15 प्रतिशत कर दिया। और कार्पोरेट वर्ल्ड से हमने उसको बराबर लाकर खड़ा कर दिया। एक परेशानी ये भी थी कि सहकारी समितियों को 1 करोड़ से ज्यादा की निकासी पर TDS देना पड़ता था। हमने निकासी की ये सीमा भी बढ़ाकर सालाना 3 करोड़ रुपए कर दी है। इस फायदे का इस्तेमाल अब सदस्यों के हित में हो सकेगा। मुझे विश्वास है, सहकार की दिशा में हमारे ये साझा प्रयास देश के सामूहिक सामर्थ्य से विकास की सभी संभावनाओं को खोलेंगे।

इसी कामना के साथ, आप सभी का मैं बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं! और जैसा अमित भाई ने बताया कि लाखों लोग आज अलग-अलग सैंटर्स में इकट्ठा हुए हैं। मैं उनका भी इतने उत्साह और उमंग के साथ आज के इस महत्वपूर्ण initiative में जुड़ने के लिए उनका भी धन्यवाद करता हूं और उनको भी मैं शुभकामनाएं देता हूं। आईये हम सच्चे अर्थ में सहकारिता की भावना को लेकर के कंधे से कंधा मिलाकर के, कदम से कदम मिलाकर के विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चल पड़ें, एक साथ चलें, एक दिशा में चलें और परिणाम हम प्राप्त करते रहेंगे, बहुत बहुत धन्यवाद।

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