प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम की शुरूआत की
हमें बेटों और बेटियों के बीच भेदभाव को समाप्त करने की जरूरत है: प्रधानमंत्री मोदी
मेडिकल शिक्षा जीवन को बचाने के लिए है न कि बेटियों की हत्या के लिए: प्रधानमंत्री
लड़कियां आज खेल, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छा काम कर रही हैं, कृषि के क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है: पीएम मोदी
हमें पौधे लगाकर बालिकाओं के जन्म का जश्न मनाना चाहिए: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने बालिकाओं के लाभ के लिए सुकन्या समृद्धि खाता का शुभारंभ किया 

विशाल संख्‍या में आए हुए माताओं, बहनों और भाईयों,

आज पानीपत की धरती पर हम एक बहुत बड़ी जिम्‍मेवारी की और कदम रख रहे हैं। यह अवसर किस सरकार ने क्‍या किया और क्‍या नहीं किया? इसका लेखा-जोखा करने के लिए नहीं है। गलती किसकी थी, गुनाह किसका था? यह आरोप-प्रत्यारोप का वक्‍त नहीं है। पानीपत की धरती पर यह अवसर हमारी जिम्‍मेवारियों का एहसास कराने के लिए है। सरकार हो, समाज हो, गांव हो, परिवार हो, मां-बाप हो हर किसी की एक सामूहिक जिम्‍मेवारी है और जब तक एक समाज के रूप में हम इस समस्‍या के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, जागरूक नहीं होंगे, तो हम अपना ही नुकसान करेंगे ऐसा नहीं है बल्कि हम आने वाली सदियों तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक भंयकर संकट को निमंत्रण दे रहे हैं और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों और मैं इस बात के लिए मेनका जी और उनके विभाग का आभारी हूं कि उन्‍होंने इस काम के लिए हरियाणा को पसंद किया। मैं मुख्‍यमंत्री जी का भी अभिनंदन करता हूं कि इस संकट को इन्‍होंने चुनौती को स्‍वीकार किया। लेकिन यह कार्यक्रम भले पानीपत की धरती पर होता हो, यह कार्यक्रम भले हरियाणा में होता हो, लेकिन यह संदेश हिंदुस्‍तान के हर परिवार के लिए है, हर गांव के लिए है, हर राज्‍य के लिए है।

attach Beti bachao beti padhao launch  684  (1)

क्‍या कभी हमने कल्‍पना की है जिस प्रकार की समाज के अवस्‍था हम बना रहे हैं अगर यही चलता रहा तो आने वाले दिनों में हाल क्‍या होगा? आज भी हमारे देश में एक हजार बालक पैदा हो, तो उसके सामने एक हजार बालिकाएं भी पैदा होनी चाहिए। वरना संसार चक्र नहीं चल सकता। आज पूरे देश में यह चिंता का विषय है। यही आपके हरियाणा में झज्जर जिला देख लीजिए, महेंद्रगढ़ जिला देख लीजिए। एक हजार बालक के सामने पौने आठ सौ बच्चियां हैं। हजार में करीब-करीब सवा दौ सौ बच्‍चे कुंवारे रहने वाले हैं। मैं जरा माताओं से पूछ रहा हूं अगर बेटी पैदा नहीं होगी, तो बहू कहां से लाओगे? और इसलिए जो हम चाहते हैं वो समाज भी तो चाहता है। हम यह तो चाहते है कि बहू तो हमें पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटी को पढ़ाना है तो पास बार सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह अन्‍याय कब तक चलेगा, यह हमारी सोच में यह दोगलापन कब तक चलेगा? अगर बहू पढ़ी-लिखी चाहते हैं तो बेटी को भी पढ़ाना यह हमारी जिम्‍मेवारी बनता है। अगर हम बेटी को नहीं पढ़ाऐंगे, तो बहू भी पढ़ी-लिखी मिले। यह अपेक्षा करना अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय है। और इसलिए भाईयों और बहनों, मैं आज आपके बीच एक बहुत बड़ी पीड़ा लेकर आया हूँ। एक दर्द लेकर आया हूँ। क्‍या कभी कल्‍पना की हमने जिस धरती पर मानवता का संदेश होता है, उसी धरती पर मां के गर्भ में बच्‍ची को मौत के घाट उतार दिया जाए।

यह पानीपत की धरती, यह उर्दू साहित्‍य के scholar अलताफ हुसैन हाली की धरती है। यह अलताफ हुसैन हाली इसी पानीपत की धरती से इस शायर ने कहा था। मैं समझता हूं जिस हरियाणा में अलताफ हुसैन जैसे शायर के शब्‍द हो, उस हरियाणा में आज बेटियों का यह हाल देखकर के मन में पीड़ा होती है। हाली ने कहा था....उन्‍होंने कहा था ए मांओ, बहनों बेटियां दुनिया की जन्नत तुमसे हैं, मुल्‍कों की बस्‍ती हो तुम, गांवों की इज्‍जत तुम से हो। आप कल्‍पना कर सकते हैं बेटियों के लिए कितनी ऊंची कल्‍पना यह पानीपत का शायर करता है और हम बेटियों को जन्‍म देने के लिए भी तैयार नही हैं।

भाईयों और बहनों हमारे यहां सदियों से जब बेटी का जन्‍म होता था तो शास्‍त्रों में आर्शीवाद देने की परंपरा थी और हमारे शास्‍त्रों में बेटी को जो आर्शीवाद दिये जाते थे वो आर्शीवाद आज भी हमें, बेटियों की तरफ किस तरह देखना, उसके लिए हमें संस्‍कार देते हैं, दिशा देते हैं। हमारे शास्‍त्रों ने कहा था जब हमारे पूर्वज आर्शीवाद देते थे तो कहते थे – यावद गंगा कुरूक्षेत्रे, यावद तिस्‍तदी मेदनी, यावद गंगा कुरूक्षेत्रे, यावद तिस्‍तदी मेदनी, यावद सीताकथा लोके, तावद जीवेतु बालिका। हमारे शास्‍त्र कहते थे जब तक गंगा का नाम है, जब तक कुरूक्षेत्र की याद है, जब तक हिमालय है, जब तक कथाओं में सीता का नाम है, तब तक हे बालिका तुम्‍हारा जीवन अमर रहे। यह आर्शीवाद इस धरती पर दिये जाते थे। और उसी धरती पर बेटी को बेमौत मार दिया जाए और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों उसके मूल में हमारा मानसिक दारिद्रय जिम्‍मेवार है, हमारे मन की बीमारी जिम्‍मेवार है और यह मन की बीमार क्‍या है? हम बेटे को अधिक महत्‍वपूर्ण मानते हैं और यह मानते हैं बेटी तो पराये घर जाने वाली है। यहां जितनी माताएं-बहनें बैठी हैं। सबने यह अनुभव किया होगा यह मानसिक दारिद्रय की अनुभूति परिवार में होती है। मां खुद जब बच्‍चों को खाना परोसती है। खिचड़ी परोसी गई हो और घी डाल रही हो। तो बेटे को तो दो चम्‍मच घी डालती है और बेटी को एक चम्‍मच घी डालती है और जब, मुझे माफ करना भाईयों और बहनों यह बीमारी सिर्फ हरियाणा की नहीं है यह हमारी देश की मानसिक बीमारी का परिणाम है और बेटी को, अगर बेटी कहे न न मम्‍मी मुझे भी दो चम्‍मच दे दो, तो मां कहते से डरती नहीं है बोल देती है, अरे तुझे तो पराये घर जाना है, तुझे घी खाकर के क्‍या करना है। यह कब तक हम यह अपने-पराये की बात करते रहेंगे और इसलिए हम सबका दायित्‍व है, हम समाज को जगाए।

कभी-कभी जिस बहन के पेट में बच्‍ची होती है वो कतई नहीं चाहती है कि उसकी बेटी को मार दिया जाए। लेकिन परिवार का दबाव, माहौल, घर का वातावरण उसे यह पाप करने के लिए भागीदार बना देता है, और वो मजबूर होती है। उस पर दबाव डाला जाता है और उसी का नतीजा होता है कि बेटियों को मां के गर्भ में ही मार दिया जाता है। हम किसी भी तरह से अपने आप को 21वीं सदी के नागरिक कहने के अधिकारी नही हैं। हम मानसिकता से 18वीं शताब्दी के नागरिक हैं। जिस 18वीं शताब्‍दी में बेटी को “दूध-पीती” करने की परंपरा थी। बेटी का जन्‍म होते ही दूध के भरे बर्तन के अंदर उसे डूबो दिया जाता था, उसे मार दिया जाता था। हम तो उनसे भी गए-बीते हैं, वो तो पाप करते थे गुनाह करते थे। बेटी जन्‍मती थी आंखे खोलकर के पल-दो-पल के लिए अपनी मां का चेहरा देख सकती थी। बेटी जन्‍मती थी, दो चार सांस ले पाती थी। बेटी जन्मती थी, दुनिया का एहसास कर सकती थी। बाद में उस मानसिक बीमारी के लोग उसको दूध के बर्तन में डालकर के मार डालते थे। हम तो उनसे भी गए-बीते हैं। हम तो बेटी को मां का चेहरा भी नहीं देखने देते, दो पल सांस भी नहीं लेने देते। इस दुनिया का एहसास भी नहीं होने देते। मां के गर्भ में ही उसे मार देते हैं। इससे बड़ा पाप क्‍या हो सकता है और हम संवेदनशील नहीं है ऐसा नहीं है।

attach Beti bachao beti padhao launch  684  (6)

कुछ साल पहले इसी हरियाणा में कुरूक्षेत्र जिले में हल्दा हेड़ी गांव में एक टयूबवेल में एक बच्‍चा गिर गया, प्रिंस.. प्रिंस कश्‍यप । और सारे देश के टीवी वहां मौजूद थे। सेना आई थी एक बच्‍चे को बचाने के लिए और पूरा हिंदुस्‍तान टीवी के सामने बैठ गया था। परिवारों में माताएं खाना नहीं पका रही थी। हर पल एक-दूसरे को पूछते थे क्‍या प्रिंस बच गया, क्‍या प्रिंस सलामत निकला टयूबवेल में से? करीब 24 घंटे से भी ज्‍यादा समय हिंदुस्‍तान की सांसे रूक गई थी। एक प्रिंस.. केरल, तमिलनाडु का कोई रिश्‍तेदार नहीं था। लेकिन देश की संवेदना जग रही है। उस बच्‍चे को जिंदा निकले, इसके लिए देशभर की माताएं-बहने दुआएं कर रही थी। मैं जरा पूछना चाहता हूं कि एक प्रिंस जिसकी जिंदगी पर संकट आए, हम बेचैन बन जाते हैं। लेकिन हमारे अड़ोस-पड़ोस में आएं दिन बच्चियों को मां के पेट में मार दिया जाए, लेकिन हमें पीड़ा तक नहीं होती है, तब सवाल उठता है। हमारी संवेदनाओं को क्‍या हुआ है? और इसलिए आज मैं आपके पास आया हूं। हमें बेटियों को मारने का हक नहीं है।

यह सोच है बुढ़ापे में बेटा काम आता है। इससे बड़ी गलतफहमी किसी को नहीं होनी चाहिए। अगर बुढ़ापे में बेटे काम आए होते तो पिछले 50 साल में जितने वृद्धाश्राम खुले हैं, शायद उतने नहीं खुले होते। बेटो के घर में गाड़ियां हो, बंगले हो, लेकिन बांप को वृद्धाश्राम में रहना पड़ता है ऐसी सैकड़ों घटनाएं है और ऐसी बेटियों की भी घटनाएं है। अगर मां-बाप की इकलौती बेटी है तो मेहनत करे, मजदूरी करे, नौकरी करे, बच्‍चों को tuition करे लेकिन बूढ़े मां-बाप को कभी भूखा नहीं रहने देती। ऐसी सैकड़ों बेटियां बाप से भी सेवा करने के लिए, मां-बाप की सेवा करने के लिए अपने खुद के सपनों को चूर-चूर कर देने वाली बेटियों की संख्‍या अनगिनत है और सुखी बेटों के रहते हुए दुःखी मां-बाप की संख्‍या भी अनगिनत है। और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों यह सोच कि बेटा आपका बुढ़ापा संभालेगा, भूल जाइये। अगर आप अपनी संतानों को सामान रूप से संस्‍कारित करके बड़े करोगे, तो आपकी समस्‍याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा।

कभी-कभी लगता है कि बेटी तो पराये घर की है। मैं जरा पूछना चाहता हूं सचमुच में यह सही सोच है क्‍या? अरे बेटी के लिए तो आपका घर पराया होता है जिस घर आप भेजते हो वो पल-दो-पल में उसको अपना बना लेती है। कभी पूछती नहीं है कि मुझे उस गांव में क्‍यों डाला मुझे उस कुटुम्‍ब में क्‍यों डाल दिया? जो भी मिले उसको सर-आंखों पर चढ़ाकर के अपना जीवन वहां खपा देती है और अपने मां-बाप के संस्‍कारों को उजागर करती है। अच्‍छा होता है तो कहती है कि मेरी मां ने सिखाया है, अच्‍छा होता है तो कहती है कि मां-बाप के कारण, मेरे मायके के संस्‍कार के कारण मैं अच्‍छा कर रही हूं। बेटी कहीं पर भी जाएं वहां हमेशा आपको गौरव बढ़े, उसी प्रकार का काम करती है।

मैंने कल्‍पना की, आपने कभी सोचा है यहीं तो हरियाणा की धरती, जहां की बेटी कल्‍पना चावला पूरा विश्‍व जिसके नाम पर गर्व करता है। जिस धरती पर कल्‍पना चावला का जन्‍म हुआ हो, जिसको को लेकर के पूरा विश्‍व गर्व करता हो, उसी हरियाणा में मां के पेट में पल रही कल्‍पना चावलाओं को मार करके हम दुनिया को क्‍या मुंह दिखाएंगे और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों मैं आप आपसे आग्रह करने आया हूं और यह बात देख लीजिए अगर अवसर मिलता है तो बेटे से बेटियां ज्‍यादा कमाल करके दिखाती हैं।

आज भी आपके हरियाणा के और हिंदुस्‍तान के किसी भी राज्‍य के 10th या 12th के result देख लीजिए। first stand में से छह या सात तो बच्चियां होती है जीतने वाली, बेटों से ज्‍यादा नंबर लाती है। आप हिंदुस्‍तान का पूरा education sector देख लीजिए। teachers में 70-75 प्रतिशत महिलाएं शिक्षक के रूप में काम कर रही है। आप health sector देख लीजिए health sector में 60 प्रतिशत से ज्‍यादा, सूश्रूषा के क्षेत्र में बहनें दिखाई देती है। अरे हमारा agriculture sector, पुरूष सीना तान कर न घूमें कि पुरूषों से ही agriculture sector चलता है। अरे आज भी भारत में agriculture और पशुपालन में महिलाओं की बराबरी की हिस्‍सेदारी है। वो खेतों में जाकर के मेहनत करती है,वो भी खेती में पूरा contribution करती हैं और खेत में काम करने वाले मर्दों को संभालने का काम भी वही करती है।

पश्चिम के लोग भले ही कहते हों, लेकिन हमारे देश में महिलाओं का सक्रिय contribution आर्थिक वृद्धि में रहता है। खेलकूद में देखिए पिछले दिनों जितने game हुए, उसमें ईनाम पाने वाले अगर लड़के हैं तो 50 प्रतिशत ईनाम पाने वाली लड़कियां है। gold medal लाने वाली लड़कियां है। खेलकूद हो, विज्ञान हो, व्‍यवसाय हो, सेवा का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, आज महिलाएं रत्‍तीभर भी पीछे नहीं है और यह सामर्थ्‍य हमारी शक्ति में है। और इसलिए मैं आपसे आग्रह करने आया हूं कि हमें बेटे और बेटी में भेद करने वाली बीमारी से निकल जाना चाहिए। “बेटा-बेटी एक समान” यही हमारा मंत्र होना चाहिए और एक बार हमारे मन में बेटा और बेटी के प्रति एक समानता का भाव होगा तो यह पाप करने की जो प्रवृति है वह अपने आप ही रूक जाएगी। और यह बात, इसके लिए commitment चाहिए, संवेदना चाहिए, जिम्‍मेवारी चाहिए।

मैं आज आपके सामने एक बात बताना चाहता हूं। यह बात मेरे मन को छू गई। किसी काम के लिए जब commitment होता है, एक दर्द होता है तो इंसान कैसे कदम उठाता है। हमारे बीच माधुरी दीक्षित जी बैठी है। माधुरी नैने। उनकी माताजी ICU में हैं, वो जिंदगी की जंग लड़ रही है और बेटी पानीपत पहुंची है। और मां कहती है कि बेटी यह काम अच्‍छा है तुम जरूर जाओ। Weather इतना खराब होने के बावजूद भी माधुरी जी अपनी बीमार मां को छोड़कर के आपकी बेटी बचाने के लिए आपके बीच आकर के बैठी है और इसलिए मैं कहता हूं एक commitment चाहिए, एक जिम्‍मेवारी का एहसास चाहिए और यह एक सामूहिक जिम्‍मेवारी में साथ है। गांव, पंचायत, परिवार, समाज के लोग इन सबको दायित्‍व निभाना पड़ेगा और तभी जाकर के हम इस असंतुलन को मिटा सकेंगे। यह रातों-रात मिटने वाला नहीं है। करीब-करीब 50 साल से यह पाप चला है। आने वाले 100 साल तक हमें जागरूक रूप से प्रयास करना पड़ेगा, तब जाकर के शायद स्थिति को हम सुधार पाएंगे। और इसलिए मैंने कहा आज का जो यह पानीपत की धरती पर हम संकल्‍प कर रहे हैं, यह संकल्‍प आने वाली सदियों तक पीढि़यों की भलाई करने के लिए है।

भाईयों बहनों आज यहां भारत सरकार की और योजना का भी प्रांरभ हुआ है – सुकुन्‍या समृद्धि योजना। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं। इसको निरंतर बल देना है और इसलिए उसके लिए सामाजिक सुरक्षा भी चाहिए। यह सुकुन्‍या समृद्धि योजना के तहत 10 साल से कम उम्र की बेटी एक हजार रुपये से लेकर के डेढ़ रुपये लाख तक उसके मां-बाप पैसे बैंक में जमा कर सकते है और सरकार की तरफ से हिंदुस्‍तान में किसी भी प्रकार की परंपरा में ब्‍याज दिया जाता है उससे ज्‍यादा ब्‍याज इस बेटी को दिया जाएगा। उसका कभी Income Tax नहीं लगाया जाएगा और बेटी जब 21 साल की होगी, पढ़ाई पूरी होगी या शादी करने जाती होगी तो यह पैसा पूरा का पूरा उसके हाथ में आएगा और वो कभी मां-बाप के लिए बोझ महसूस नहीं होगी।

attach Beti bachao beti padhao launch  684  (3)

काशी के लोगों ने मुझे अपना MP बनाया है। वहां एक जयापुर पर गांव है। जयापुर गांव ने मुझे गोद लिया है और वो जयापुर गांव मेरी रखवाली करता है, मेरी चिंता करता है। जयपुर में गया था मैंने उनको कहा था कि हमारे गावं में जब बेटी पैदा हो तो पूरे गांव का एक बड़ा महोत्‍सव होना चाहिए। आनंद उत्‍सव होना चाहिए और मैंने प्रार्थना की थी कि बेटी पैदा हो तो पाँच पेड़ बोने चाहिए। मुझे बाद में चिट्ठी आई। मेरे आने के एक-आध महीने बाद कोई एक बेटी जन्‍म का समाचार आया तो पूरे गांव ने उत्‍सव मनाया और उतना ही नहीं सब लोगों ने जाकर के पाँच पेड़ लगाए। मैं आपको भी कहता हूं। आपकी बेटी पैदा हो तो पाँच पेड़ लगाएंगे बेटी भी बड़ी होगी, पेड़ भी बड़ा होगा और जब शादी का समय आएगा वो पाँच पेड़ बेच दोगे न तो भी उसकी शादी का खर्चा यूं ही निकल जाएगा।

भाईयों बहनों बड़ी सरलता से समझदारी के साथ इस काम को हमने आगे बढ़ाना है और इसलिए आज मैं हरियाणा की धरती, जहां यह सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन हिंदुस्‍तान का कोई राज्‍य बाकी नहीं है कि जहां चुनौती नहीं है। और मैं जानता हूं यह दयानंद सरस्‍वती के संस्‍कारों से पली धरती है। एक बार हरियाणा के लोग ठान लें तो वे दुनिया को खड़ी करने की ताकत रखते हैं। मुझको बड़ा बनाने में हरियाणा का भी बहुत बड़ा role है। मैं सालों तक आपके बीच रहा हूं। आपके प्‍यार को भली-भांति में अनुभव करता हूं। आपने मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया। मैं आज आपसे कुछ मांगने के लिए आया हूं। देश का प्रधानमंत्री एक भिक्षुक बनकर आपसे बेटियों की जिंदगी की भीख मांग रहा है। बेटियों को अपने परिवार का गर्व मानें, राष्‍ट्र का सम्‍मान मानें। आप देखिए यह असंतुलन में से हम बहुत तेजी से बाहर आ सकते हैं। बेटा और बेटी दोनों वो पंख है जीवन की ऊंचाईयों को पाने का उसके बिना कोई संभावना नहीं और इसलिए ऊंची उड़ान भी भरनी है तो सपनों को बेटे और बेटी दोनों पंख चाहिए तभी तो सपने पूरे होंगे और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों हम एक जिम्‍मेवारी के साथ इस काम को निभाएं।

मुझे बताया गया है कि हम सबको शपथ लेना है। आप जहां बैठे है वहीं बैठे रहिये, दोनों हाथ ऊपर कर दीजिए और मैं एक शपथ बोलता हूं मेरे साथ आप शपथ बोलेंगे – “मैं शपथ लेता हूं कि मैं लिंग चयन एवं कन्‍या भ्रूण हत्‍या का ‍विरोध करूगा; मैं बेटी के जन्‍म पर खुश होकर सुरक्षित वातारवण प्रदान करते हुए बेटी को सुशिक्षित करूंगा। मैं समाज में बेटी के प्रति भेदभाव खत्‍म करूंगा, मैं “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं” का संदेश पूरे समाज में प्रसारित करूंगा।“

भाई बहनों मैं डॉक्‍टरों से भी एक बात करना चाहता हूं। मैं डॉक्‍टरों से पूछना चाहता हूं कि पैसे कमाने के लिए यही जगह बची है क्‍या? और यह पाप के पैसे आपको सुखी करेंगे क्‍या? अगर डॉक्‍टर का बेटा कुंवारा रह गया तो आगे चलकर के शैतान बन गया तो वो डॉक्‍टर के पैसे किस काम आएंगे? मैं डॉक्‍टरों को पूछना चाहता हूं कि यह आपको दायित्‍व नहीं है कि आप इस पाप में भागीदार नहीं बनेंगे। डॉक्‍टरों को अच्‍छा लगे, बुरा लगे, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि आपकी यह जिम्‍मेवारी है। आपको डॉक्‍टर बनाया है समाज ने, आपको पढ़-लिखकर के तैयार किया है। गरीब के पैसों से पलकर के बड़े हुए हो। आपको पढ़ाया गया है किसी की जिंदगी बचाने के लिए, आपको पढ़ाया गया है किसी की पीड़ा को मुक्‍त करने के लिए। आपको बच्चियों को मारने के लिए शिक्षा नहीं दी गई है। अपने आप को झकझोरिये, 50 बार सोचिए, आपके हाथ निर्दोष बेटियों के खून से रंगने नहीं चाहिए। जब शाम को खाना खाते हो तो उस थाली के सामने देखो। जिस मां ने, जिस पत्‍नी ने, जिस बहन ने वो खाना बनाया है वो भी तो किसी की बेटी है। अगर वो भी किसी डॉक्‍टर के हाथ चढ़ गई होती, तो आज आपकी थाली में खाना नहीं होता। आप भी सोचिए कहीं उस मां, बेटी, बहन ने आपके लिए जो खाना बनाया है, कहीं आपके के खून से रंगे हुए हाथ उस खाने की चपाती पर तो हाथ नहीं लगा रहे। जरा अपने आप को पूछिये मेरे डॉक्‍टर भाईयों और बहनों। यह पाप समाज द्रोह है। यह पाप सदियों की गुनाहगारी है और इसलिए एक सामाजिक दायित्‍व के तहत है, एक कर्तव्‍य के तहत और सरकारें किसकी-किसकी नहीं, यह दोषारोपण करने का वक्‍त नहीं है। हमारा काम है जहां से जग गए हैं, जाग करके सही दिशा में चलना।

मुझे विश्‍वास है पूरा देश इस संदेश को समझेगा। हम सब मिलकर के देश को भविष्‍य के संकट से बचाएंगे और फिर एक बार मैं हरियाणा को इतने बड़े विशाल कार्यक्रम के लिए और हरियाणा इस संदेश को उठा लेगा तो हिंदुस्‍तान तो हरियाणा के पीछे चल पड़ेगा। मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ इस संकल्‍प को लेकर हम जाएंगे। इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए – भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।

Explore More
आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी
India's electronics production rises 6-fold, exports jump 8-fold since 2014: Ashwini Vaishnaw

Media Coverage

India's electronics production rises 6-fold, exports jump 8-fold since 2014: Ashwini Vaishnaw
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर खेल के मैदान तक, साइंस लैब्स से लेकर दुनिया के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म्स तक, भारत ने हर जगह अपनी मजबूत छाप छोड़ी है: पीएम मोदी
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान, देश के हर कोने से माँ भारती के प्रति प्यार और भक्ति की तस्वीरें सामने आईं: पीएम मोदी
वर्ल्ड चैंपियनशिप में पैरा-एथलीटों ने कई मेडल जीतकर यह साबित कर दिया कि जोश और पक्के इरादे के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आ सकती: पीएम मोदी
विज्ञान के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियों, नए इनोवेशन और टेक्नोलॉजी के विस्तार ने दुनिया भर के देशों को बहुत प्रभावित किया है: पीएम मोदी
अगले महीने की 12 तारीख को स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर 'राष्ट्रीय युवा दिवस' मनाया जाएगा: पीएम मोदी
'स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन 2025' के दौरान, छात्रों ने 80 से ज्यादा सरकारी विभागों की 270 से ज्यादा समस्याओं पर काम किया: पीएम मोदी
मणिपुर के मोइरांगथेम ने सोलर पैनल लगाने के लिए एक कैंपेन शुरू किया और इस कैंपेन की वजह से आज उनके इलाके में सैकड़ों घरों में सोलर पावर पहुंच गई है: पीएम मोदी
आज, 'पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना' के तहत, सरकार हर लाभार्थी परिवार को सोलर पैनल लगाने के लिए लगभग 75,000 से 80,000 रुपये दे रही है: पीएम मोदी
'तमिल सीखें - तमिल कराकलम' थीम के तहत, वाराणसी के 50 से ज्यादा स्कूलों में खास कैंपेन चलाए गए: पीएम मोदी
स्वतंत्रता सेनानी पार्वती गिरी जी की जन्म शताब्दी जनवरी 2026 में मनाई जाएगी। आजादी के आंदोलन के बाद पार्वती गिरि जी ने अपना जीवन समाज सेवा और जनजातीय कल्याण को समर्पित कर दिया था: पीएम मोदी
आंध्र प्रदेश सरकार और नाबार्ड मिलकर कारीगरों को नए डिजाइन सिखा रहे हैं, बेहतर स्किल ट्रेनिंग दे रहे हैं और उन्हें नए बाजारों से जोड़ रहे हैं: पीएम मोदी
इस साल, कच्छ रणोत्सव 23 नवंबर को शुरू हुआ और 20 फरवरी तक चलेगा: पीएम मोदी
जब पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल आधुनिक सोच के साथ किया जाता है, तो यह आर्थिक प्रगति का एक बड़ा माध्यम बन सकता है: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | ‘मन की बात’ में आपका फिर से स्वागत है, अभिनंदन है | कुछ ही दिनों में साल 2026 दस्तक देने वाला है, और आज, जब मैं आपसे बात कर रहा हूँ, तो मन में पूरे एक साल की यादें घूम रही हैं - कई तस्वीरें, कई चर्चाएं, कई उपलब्धियां, जिन्होंने देश को एक साथ जोड़ दिया | 2025 ने हमें ऐसे कई पल दिए जिन पर हर भारतीय को गर्व हुआ | देश की सुरक्षा से लेकर खेल के मैदान तक, विज्ञान की प्रयोगशालाओं से लेकर दुनिया के बड़े मंचों तक | भारत ने हर जगह अपनी मजबूत छाप छोड़ी | इस साल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक बन गया | दुनिया ने साफ देखा आज का भारत अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करता | ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान देश के कोने-कोने से माँ भारती के प्रति प्रेम और समर्पण की तस्वीरें सामने आई | लोगों ने अपने-अपने तरीके से अपने भाव व्यक्त किये |

साथियो, यही जज्बा तब भी देखने को मिला, जब ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे हुए | मैंने आपसे आग्रह किया था कि ‘#VandeMataram150’ के साथ अपने संदेश और सुझाव भेजें | देशवासियों ने इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया |

साथियो, 2025 खेल के लिहाज़ से भी एक यादगार साल रहा | हमारी पुरुष Cricket team ने ICC Champions Trophy जीती | महिला Cricket team ने पहली बार विश्व कप अपने नाम किया | भारत की बेटियों ने Women's Blind T20 World Cup जीतकर इतिहास रच दिया | एशिया कप T20 में भी तिरंगा शान से लहराया | पैरा एथलीटों ने विश्व Championship में कई पदक जीतकर ये साबित किया कि कोई बाधा हौंसलों को नहीं रोक सकती | विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी भारत ने बड़ी छलांग लगाई | शुभांशु शुक्ला पहले भारतीय बने, जो International Space Station तक पहुंचे | पर्यावरण संरक्षण और वन्य-जीवों की सुरक्षा से जुड़े कई प्रयास भी 2025 की पहचान बने | भारत में चीतों की संख्या भी अब 30 से ज्यादा हो गई है | 2025 में आस्था, संस्कृति और भारत की अद्वितीय विरासत सब एक साथ दिखाई दी | साल के शुरुआत में प्रयागराज महाकुंभ के आयोजन ने पूरी दुनिया को चकित किया | साल के अंत में अयोध्या में राम मंदिर पर ध्वजारोहण के कार्यक्रम ने हर भारतीय को गर्व से भर दिया | स्वदेशी को लेकर भी लोगों का उत्साह खूब दिखाई दिया | लोग वही सामान खरीद रहे हैं, जिसमें किसी भारतीय का पसीना लगा हो और जिसमें भारत की मिट्टी की सुगंध हो | आज हम गर्व से कह सकते हैं 2025 ने भारत को और अधिक आत्मविश्वास दिया है | ये बात भी सही है इस वर्ष प्राकृतिक आपदाएं हमें झेलनी पड़ी, अनेक क्षेत्रों में झेलनी पड़ी | अब देश 2026 में नई उम्मीदों, नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ने को तैयार है |

मेरे प्यारे देशवासियो, आज दुनिया भारत को बहुत आशा के साथ देख रही है | भारत से उम्मीद की सबसे बड़ी वजह है, हमारी युवा शक्ति | विज्ञान के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां, नए-नए innovation, technology का विस्तार इनसे दुनियाभर के देश बहुत प्रभावित हैं |

साथियो, भारत के युवाओं में हमेशा कुछ नया करने का जुनून है और वो उतने ही जागरूक भी हैं | मेरे युवा साथी कई बार मुझसे यह पूछते हैं कि nation building में वो अपना योगदान और कैसे बढ़ाएं ? वो कैसे अपने ideas share कर सकते हैं | कई साथी पूछते हैं कि मेरे सामने वो अपने ideas का presentation कैसे दे सकते हैं ? हमारे युवा साथियों की इस जिज्ञासा का समाधान है ‘Viksit Bharat Young Leaders Dialogue’ | पिछले साल इसका पहला edition हुआ था, अब कुछ दिन बाद उसका दूसरा edition होने वाला है । अगले महीने की 12 तारीख को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाया जाएगा | इसी दिन ‘Young Leaders Dialogue’ का भी आयोजन होगा और मैं भी इसमें जरूर शामिल होऊंगा | इसमें हमारे युवा Innovation, Fitness, Startup और Agriculture जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने ideas share करेंगे । मैं इस कार्यक्रम को लेकर बहुत ही उत्सुक हूँ |

साथियो, मुझे ये देखकर अच्छा लगा कि इस कार्यक्रम में हमारे युवाओं की भागीदारी बढ़ रही है | कुछ दिनों पहले ही इससे जुड़ा एक quiz competition हुआ | इसमें 50 लाख से अधिक युवा शामिल हुए। एक निबंध प्रतियोगिता भी हुई, जिसमें students ने विभिन्न विषयों पर अपनी बातें रखीं | इस प्रतियोगिता में तमिलनाडु पहले और उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा |

साथियो, आज देश के भीतर युवाओं को प्रतिभा दिखाने के नए- नए अवसर मिल रहे हैं | ऐसे बहुत से platforms विकसित हो रहे हैं, जहां युवा अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार talent दिखा सकते हैं | ऐसा ही एक platform है- ‘Smart India Hackathon’ एक और ऐसा माध्यम जहां ideas, action में बदलते हैं |

साथियो, ‘Smart India Hackathon 2025’ का समापन इसी महीने हुआ है | इस Hackathon के दौरान 80 से अधिक सरकारी विभागों की 270 से ज्यादा समस्याओं पर students ने काम किया | Students ने ऐसे solution दिए, जो real life challenges से जुड़े थे | जैसे traffic की समस्या है | इसे लेकर युवाओं ने ‘Smart Traffic Management’ से जुड़े बहुत ही interesting perspective share किए | Financial Frauds और Digital Arrests जैसी चुनौतियों के समाधान पर भी युवाओं ने अपने ideas सामने रखे | गाँवों में digital banking के लिए Cyber Security Framework पर सुझाव दिया | कई युवा agriculture sector की चुनौतियों के समाधान में जुटे रहे | साथियो, पिछले 7-8 साल में ‘Smart India Hackathon’ में, 13 लाख से ज्यादा students और 6 हजार से ज्यादा Institutes हिस्सा ले चुके हैं | युवाओं ने सैंकड़ों problems के सटीक solutions भी दिए हैं | इस तरह के Hackathons का आयोजन समय-समय पर होता रहता है | मेरा अपने युवा साथियों से आग्रह है कि वे इन Hackathons का हिस्सा जरूर बनें |

साथियो, आज का जीवन Tech-Driven होता जा रहा है और जो परिवर्तन सदियों में आते थे वो बदलाव हम कुछ बरसों में होते देख रहे हैं | कई बार तो कुछ लोग चिंता जताते हैं कि Robots कहीं मनुष्यों को ही न Replace कर दें | ऐसे बदलते समय में Human Development के लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहना बहुत जरूरी है | मुझे ये देखकर बहुत खुशी होती है कि हमारी अगली पीढ़ी अपनी संस्कृति की जड़ों को अच्छी तरह थाम रही है - नई सोच के साथ नए तरीकों के साथ |

साथियो, आपने Indian Institute of Science उसका नाम तो जरूर सुना होगा | Research और Innovation इस संस्थान की पहचान है | कुछ साल पहले वहाँ के कुछ छात्रों ने महसूस किया कि पढ़ाई और Research के बीच संगीत के लिए भी जगह होनी चाहिए | बस यहीं से एक छोटी-सी Music Class शुरू हुई | ना बड़ा मंच, ना कोई बड़ा बजट | धीरे-धीरे ये पहल बढ़ती गई और आज इसे हम ‘Geetanjali IISc’ के नाम से जानते हैं | यह अब सिर्फ एक Class नहीं, Campus का सांस्कृतिक केंद्र है | यहाँ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत है, लोक परंपराएँ हैं, शास्त्रीय विधाएं हैं, छात्र यहाँ साथ बैठकर रियाज़ करते हैं | Professor साथ बैठते हैं, उनके परिवार भी जुड़ते हैं | आज दो-सौ से ज्यादा लोग इससे जुड़े हैं | और खास बात ये कि जो विदेश चले गए, वो भी Online जुड़कर इस Group की डोर थामे हुए हैं |

साथियो, अपनी जड़ों से जुड़े रहने के ये प्रयास सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है | दुनिया के अलग-अलग कोनों और वहाँ बसे भारतीय भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं | एक और उदाहरण जो हमें देश से बाहर ले जाता है - ये जगह है ‘दुबई’ | वहाँ रहने वाले कन्नड़ा परिवारों ने खुद से एक जरूरी सवाल पूछा – हमारे बच्चे Tech-World में आगे तो बढ़ रहें हैं, लेकिन कहीं वो अपनी भाषा से दूर तो नहीं हो रहे हैं? यहीं से जन्म हुआ ‘कन्नड़ा पाठशाले’ का | एक ऐसा प्रयास, जहां बच्चों को ‘कन्नड़ा’ पढ़ाना, सीखना, लिखना और बोलना सिखाया जाता है | आज इससे एक हजार से ज्यादा बच्चे जुड़े हैं | वाकई, कन्नड़ा नाडु, नुडी नम्मा हेम्मे | कन्नड़ा की भूमि और भाषा, हमारा गर्व है |

साथियो, एक पुरानी कहावत है ‘जहां चाह, वहाँ राह’ | इस कहावत को फिर से सच कर दिखाया है मणिपुर के एक युवा मोइरांगथेम सेठ जी ने | उनकी उम्र 40 साल से भी कम है | श्रीमान् मोइरांगथेम जी मणिपुर के जिस दूर-सुदूर क्षेत्र में रहते थे वहाँ बिजली की बड़ी समस्या थी | इस चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने Local Solution पर जोर दिया और उन्हें ये Solution मिला Solar Power में | हमारे मणिपुर में वैसे भी Solar Energy पैदा करना आसान है | तो मोइरांगथेम जी ने Solar Panel लगाने का अभियान चलाया और इस अभियान की वजह से आज उनके क्षेत्र के सैकड़ों घरों में Solar Power पहुंच गई है | खास बात ये है कि उन्होंने Solar Power का उपयोग Health-Care और आजीविका को बेहतर बनाने के लिए किया है | आज उनके प्रयासों से मणिपुर में कई Health Centers को भी Solar Power मिल रही है | उनके इस काम से मणिपुर की नारी-शक्ति को भी बहुत लाभ मिला है | स्थानीय मछुआरों और कलाकारों को भी इससे मदद मिली है |

साथियो, आज सरकार ‘PM सूर्य घर मुफ़्त बिजली योजना’ के तहत हर लाभार्थी परिवार को Solar Panel लगाने के लिए करीब-करीब 75 से 80 हजार रुपए दे रही है | मोइरांगथेम जी के ये प्रयास यूं तो व्यक्तिगत प्रयास हैं, लेकिन Solar Power से जुड़े हर अभियान को नई गति दे रहे हैं | मैं ‘मन की बात’ के माध्यम से उन्हें अपनी शुभकामनाएँ देता हूँ |

मेरे प्यारे देशवासियो, आइए अब जरा हम जम्मू-कश्मीर की तरफ चलते हैं | जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, उसकी एक ऐसी गाथा साझा करना चाहता हूँ, जो आपको गर्व से भर देगी | जम्मू-कश्मीर के बारामूला में, जेहनपोरा नाम की एक जगह है | वहां लोग बरसों से कुछ ऊंचे-ऊंचे टीले देखते आ रहे थे | साधारण से टीले किसी को नहीं पता था कि ये क्या है? फिर एक दिन Archaeologist की नज़र इन पर पड़ी | जब उन्होंने इस इलाके को ध्यान से देखना शुरू किया, तो ये टीले कुछ अलग लगे | इसके बाद इन टीलों का वैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया गया | ड्रोन के ज़रिए ऊपर से तस्वीरें ली गईं, ज़मीन की Mapping की गई | और फिर कुछ हैरान करने वाली बातें सामने आने लगी | पता चला ये टीले प्राकृतिक नहीं हैं | ये इंसान द्वारा बनाई गई किसी बड़ी इमारत के अवशेष हैं | इसी दौरान एक और दिलचस्प कड़ी जुड़ी | कश्मीर से हजारों किलोमीटर दूर, फ़्रांस के एक Museum के Archives में एक पुराना, धुंधला सा चित्र मिला | बारामूला के उस चित्र में तीन बौद्ध स्तूप नजर आ रहे थे | यहीं से समय ने करवट ली और कश्मीर का एक गौरवशाली अतीत हमारे सामने आया | ये करीब दो हजार साल पुराना इतिहास है | कश्मीर के जेहनपोरा का ये बौद्ध परिसर हमें याद दिलाता है, कश्मीर का अतीत क्या था, उसकी पहचान कितनी समृद्ध थी |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे भारत से हजारों किलोमीटर दूर, एक ऐसे प्रयास की बात करना चाहता हूँ, जो दिल को छू लेने वाला है | Fiji में भारतीय भाषा और संस्कृति के प्रसार के लिए एक सराहनीय पहल हो रही है | वहाँ की नई पीढ़ी को तमिल भाषा से जोड़ने के लिए कई स्तरों पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं | पिछले महीने Fiji के राकी-राकी इलाके में वहाँ के एक स्कूल में पहली बार तमिल दिवस मनाया गया | उस दिन बच्चों को एक ऐसा मंच मिला, जहां उन्होंने अपनी भाषा पर खुले दिल से गौरव व्यक्त किया | बच्चों ने तमिल में कविताएँ सुनाई, भाषण दिए और अपनी संस्कृति को पूरे आत्मविश्वास के साथ मंच पर उतारा | साथियो, देश के भीतर भी तमिल भाषा के प्रचार के लिए लगातार काम हो रहा है | कुछ दिन पहले ही मेरे संसदीय क्षेत्र काशी में चौथा ‘काशी तमिल संगमम’ हुआ | अब मैं आपको एक audio clip सुनाने जा रहा हूँ | आप सुनिए और अंदाज़ा लगाइए तमिल बोलने की कोशिश कर रहे ये बच्चे कहां के हैं?

साथियो, अगले महीने हम देश का 77वाँ गणतंत्र दिवस मनाएंगे | जब भी ऐसे अवसर आते हैं, तो हमारा मन स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर जाता है | हमारे देश ने आजादी पाने के लिए लंबा संघर्ष किया है | आजादी के आंदोलन में देश के हर हिस्से के लोगों ने अपना योगदान दिया है | लेकिन, दुर्भाग्य से आजादी के अनेकों नायक-नायिकाओं को वो सम्मान नहीं मिला, जो उन्हें मिलना चाहिए था | ऐसी ही एक स्वतंत्रता सेनानी हैं - ओडिशा की पार्वती गिरि जी | जनवरी 2026 में उनकी जन्म-शताब्दी मनाई जाएगी | उन्होंने 16 वर्ष की आयु में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा लिया था | साथियो, आजादी के आंदोलन के बाद पार्वती गिरि जी ने अपना जीवन समाज सेवा और जनजातीय कल्याण को समर्पित कर दिया था | उन्होंने कई अनाथालयों की स्थापना की | उनका प्रेरक जीवन हर पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा |

“मूँ पार्वती गिरि जिंकु श्रद्धांजलि अर्पण करुछी |”
(मैं पार्वती गिरी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ)

साथियो, ये हमारा दायित्व है कि हम अपनी विरासत को ना भूलें| हम आजादी दिलाने वाले नायक-नायिकाओं की महान गाथा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं | आपको याद होगा जब हमारी आजादी के 75 वर्ष हुए थे, तब सरकार ने एक विशेष website तैयार की थी | इसमें एक विभाग ‘Unsung Heroes’ को समर्पित किया गया था | आज भी आप इस website पर visit करके उन महान विभूतियों के बारे में जान सकते हैं जिनकी देश को आजादी दिलाने में बहुत बड़ी भूमिका रही है |

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ के जरिए हमें समाज की भलाई से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने का एक बहुत अच्छा अवसर मिलता है | आज मैं एक ऐसे मुद्दे पर बात करना चाहता हूँ, जो हम सभी के लिए चिंता का विषय बन गया है | ICMR यानि Indian Council of Medical Research ने हाल ही में एक report जारी की है | इसमें बताया गया है कि निमोनिया और UTI जैसी कई बीमारियों के खिलाफ antibiotic दवाएं कमजोर साबित हो रही हैं | हम सभी के लिए यह बहुत ही चिंताजनक है | report के मुताबिक इसका एक बड़ा कारण लोगों द्वारा बिना सोचे-समझे antibiotic दवाओं का सेवन है | antibiotic ऐसी दवाएं नहीं हैं, जिन्हें यूं ही ले लिया जाए | इनका इस्तेमाल Doctor की सलाह से ही करना चाहिए | आजकल लोग ये मानने लगे हैं कि बस एक गोली ले लो, हर तकलीफ दूर हो जाएगी | यही वजह है कि बीमारियाँ और संक्रमण इन antibiotic दवाओं पर भारी पड़ रहे हैं | मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि कृपया अपनी मनमर्जी से दवाओं का इस्तेमाल करने से बचें | Antibiotic दवाओं के मामले में तो इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है | मैं तो यही कहूँगा - Medicines के लिए Guidance और Antibiotics के लिए Doctors की जरूरत है | यह आदत आपकी सेहत को बेहतर बनाने में बहुत मददगार साबित होने वाली है |

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारी पारंपरिक कलाएं समाज को सशक्त करने के साथ ही लोगों की आर्थिक प्रगति का भी बड़ा माध्यम बन रही हैं | आंध्र प्रदेश के नारसापुरम जिले की Lace Craft (लेस क्राफ्ट) की चर्चा अब पूरे देश में बढ़ रही है | ये Lace Craft (लेस क्राफ्ट) कई पीढ़ियों से महिलाओं के हाथों में रही है | बहुत धैर्य और बारीकी के साथ देश की नारी-शक्ति ने इसका संरक्षण किया है | आज इस परंपरा को एक नए रंग रूप के साथ आगे ले जाया जा रहा है | आंध्र प्रदेश सरकार और NABARD मिलकर कारीगरों को नए design सिखा रहे हैं, बेहतर skill training दे रहे हैं और नए बाजार से जोड़ रहे हैं | नारसापुरम Lace को GI Tag भी मिला है | आज इससे 500 से ज्यादा products बन रहे हैं और ढ़ाई-सौ से ज्यादा गांवों में करीब-करीब 1 लाख महिलाओं को इससे काम मिल रहा है |

साथियो ‘मन की बात’ ऐसे लोगों को सामने लाने का भी मंच है जो अपने परिश्रम से ना सिर्फ पारंपरिक कलाओं को आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि इससे स्थानीय लोगों को सशक्त भी कर रहे हैं | मणिपुर के चुराचांदपुर में Margaret Ramtharsiem जी उनके प्रयास ऐसे ही हैं | उन्होंने मणिपुर के पारंपरिक उत्पादों को, वहाँ के handicraft को, बांस और लकड़ी से बनी चीजों को, एक बड़े vision के साथ देखा और इसी vision के कारण, वो एक handicraft artist से लोगों के जीवन को बदलने का माध्यम बन गईं | आज Margaret जी की unit उसमें 50 से ज्यादा artist काम कर रहे हैं और उन्होंने अपनी मेहनत से दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में, अपने products का एक market भी develop किया है |

साथियो, मणिपुर से ही एक और उदाहरण सेनापति जिले की रहने वाली चोखोने क्रिचेना जी का है | उनका पूरा परिवार परंपरागत खेती से जुड़ा रहा है | क्रिचेना ने इस पारंपरिक अनुभव को एक और विस्तार दिया | उन्होंने फूलों की खेती को अपना passion बनाया | आज वो इस काम से अलग-अलग markets को जोड़ रहीं हैं और अपने इलाके की local communities को भी Empower कर रही हैं | साथियो, ये उदाहरण इस बात का पर्याय है कि अगर पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक vision के साथ आगे बढ़ाएं तो ये आर्थिक प्रगति का बड़ा माध्यम बन जाता है | आपके आसपास भी ऐसी success stories हों, तो मुझे जरूर share करिए |

साथियो, हमारे देश की सबसे खूबसूरत बात ये है कि सालभर हर समय देश के किसी-ना-किसी हिस्से में उत्सव का माहौल रहता है | अलग-अलग पर्व-त्योहार तो हैं ही, साथ ही विभिन्न राज्यों के स्थानीय उत्सव भी आयोजित होते रहते हैं | यानि, अगर आप घूमने का मन बनाएं, तो हर समय, देश का कोई-ना-कोई कोना अपने unique उत्सव के साथ तैयार मिलेगा | ऐसा ही एक उत्सव इन दिनों कच्छ के रण में चल रहा है | इस साल कच्छ रणोत्सव का ये आयोजन 23 नवंबर से शुरू हुआ है, जो 20 फरवरी तक चलेगा | यहाँ कच्छ की लोक संस्कृति, लोक संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प की विविधता दिखाई देती है | कच्छ के सफेद रण की भव्यता देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव है | रात के समय जब सफेद रण के ऊपर चाँदनी फैलती है, वहाँ का दृश्य अपने आप में मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है | रण उत्सव का Tent City बहुत लोकप्रिय है | मुझे जानकारी मिली है कि पिछले एक महीने में अब तक 2 लाख से ज्यादा लोग रणोत्सव का हिस्सा बन चुके हैं और देश के कोने-कोने से आए हैं, विदेश से भी लोग आए हैं | आपको जब भी अवसर मिले, तो ऐसे उत्सवों में जरूर शामिल हों और भारत की विविधता का आनद उठाएं |

साथियो, 2025 में ‘मन की बात’ का ये आखिरी episode है, अब हम साल 2026 में ऐसे ही उमंग और उत्साह के साथ, अपनेपन के साथ अपने ‘मन की बातों’ को करने के लिए ‘मन की बात’ के कार्यक्रम में जरूर जुड़ेंगे | नई ऊर्जा, नए विषय और प्रेरणा से भर देने वाली देशवासियों की अनगिनित गाथाओं ‘मन की बात’ में हम सबको जोड़ती है | हर महीने मुझे ऐसे अनेक संदेश मिलते हैं, जिसमें ‘विकसित भारत’ को लेकर लोग अपना vision साझा करते हैं | लोगों से मिलने वाले सुझाव और इस दिशा में उनके प्रयासों को देखकर ये विश्वास और मजबूत होता है और जब ये सब बातें मेरे तक पहुँचती हैं, तो ‘विकसित भारत’ का संकल्प जरूर सिद्ध होगा | ये विश्वास दिनों दिन मजबूत होता जाता है | साल 2026 इस संकल्प सिद्धि की यात्रा में एक अहम पड़ाव साबित हो, आपका और आपके परिवार का जीवन खुशहाल हो, इसी कामना के साथ इस episode में विदाई लेने से पहले मैं जरूर कहूँगा, ‘Fit India Movement’ आप को भी fit रहना है | ठंडी का ये मौसम व्यायाम के लिए बहुत उपयुक्त होता है, व्यायाम जरूर करें | आप सभी को 2026 की बहुत-बहुत शुभकामनाएं | धन्यवाद | वंदे मातरम् |