भारत अवसरों का देश है: प्रधानमंत्री मोदी
कोविड महामारी से प्रभावी तरीके से निपटना किसी पार्टी या व्यक्ति की सफलता नहीं है, बल्कि राष्ट्र की सफलता है: प्रधानमंत्री मोदी
भारत 'लोकतंत्र की जननी' है: प्रधानमंत्री मोदी
गांव और शहर की खाई को अगर हमें पाटना है तो उसके लिए आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ना होगा : प्रधानमंत्री मोदी
एमएसपी है, एमएसपी था और एमएसपी रहेगा : प्रधानमंत्री मोदी

आदरणीय सभापति जी,

पूरा विश्‍व अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मानव जाति को ऐसे कठिन दौर से गुजरना पड़ेगा। ऐसी चुनौतियों के बीच इस दशक के प्रारंभ में ही हमारे आदरणीय राष्‍ट्रपति जी ने जो संयुक्‍त सदन में अपना उद्बोधन दिया, वह अपने आप में इस चुनौतियों भरे विश्‍व में एक नई आशा जगाने वाला, नया उमंग पैदा करने वाला और नया आत्‍मविश्‍वास पैदा करने वाला राष्‍ट्रपति जी का उद्बोधन रहा, आत्‍मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए एक मार्ग प्रशस्‍त करने वाला राष्‍ट्रपति जी का उद्बोधन रहा।

आदरणीय सभापति जी,

मैं राष्‍ट्रपति जी का तहे दिल से आभार व्‍यक्‍त करने के लिए आज आप सबके बीच खड़ा हूं। राज्‍यसभा में करीब 13-14 घंटे तक 50 से अधिक माननीय सदस्‍यों ने अपने विचार रखे, बहुमूल्‍य विचार रखे, अनेक पहलुओं पर विचार रखे। और इसलिए मैं सभी आदरणीय सदस्‍योंका हृदयपूर्वक आभार भी व्‍यक्‍त करता हूं इस चर्चा को समृद्ध बनाने के लिए। अच्‍छा होता कि राष्‍ट्रपति जी का भाषण सुनने के लिए भी सब होते तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती और हम सबको कभी गिला-शिकवा न रहता कि हमने राष्‍ट्रपति जी का भाषण सुना नहीं था। लेकिन राष्‍ट्रपति जी के भाषण की ताकत इतनी थी कि न सुनने के बावजूद भी बहुत कुछ बोल पाए। ये अपने-आप में उस भाषण की ताकत थी, उन विचारों की ताकत थी, उन आदर्शों की ताकत थी कि जिसके कारण न सुनने के बाद भी बात पहुंच गई। और इसलिए मैं समझता हूं इस भाषण का मूल्‍य अनेक गुना हो जाता है।

आदरणीय सभापति जी,

जैसा मैंने कहा, अनेक चुनौतियों के बीच राष्‍ट्रपति जी का ये दशक का प्रथम भाषण हुआ। लेकिन ये भी सही है कि जब हम पूरे विश्‍व पटल की तरफ देखते हैं, भारत के युवा मन को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आज भारत सच्‍चे अर्थ में एक अवसरों की भूमि है। अनेक अवसर हमारा इंतजार कर रहे हैं। और इसलिए जो देश युवा हो, जो देश उत्‍साह से भरा हुआ हो, जो देश अनेक सपनों को ले करके संकल्‍प के साथ सिद्धि को प्राप्‍त करने के लिए प्रयासरत हो, वो देश इन अवसरों को कभी जाने नहीं दे सकता। हम सबके लिए ये भी एक अवसर है कि हम आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। ये अपने-आप में एक प्रेरक अवसर है। हम जहां भी हों, जिस रूप में हों, मां भारती की संतान के रूप में इस आजादी के 75वें पर्व को हमने प्रेरणा का पर्व बनाना चाहिए। देश को आने वाले वर्षों के लिए तैयार करने के लिए कुछ न कुछ कर गुजरने का होना चाहिएऔर 2047 में देश जब आजादी की शताब्‍दी मनाए तो हम देश को कहां तक ले जाएंगे, इन सपनों को हमें बार-बार हमें देखते रहना चाहिए। आज पूरे विश्‍व की नजर भारत पर है, भारत से अपेक्षाएं भी हैं और लोगों में एक विश्‍वास भी है कि अगर भारत ये कर लेगा, दुनिया की बहुत सी समस्‍याओं का समाधान वहीं से हो जाएगा, ये विश्‍वास आज दुनिया में भारत के लिए बढ़ा है।

आदरणीय सभापति जी,

जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं, तब महाकवि मैथलीशरण गुप्‍त जी की कविता को मैं उद्घोषित करना चाहूंगा। गुप्‍तजी ने कहा था-

अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।

तेरा कर्म क्षेत्र बड़ा है पल-पल है अनमोल,अरे भारत उठ, आखें खोल।।

ये मैथिलीशरण गुप्‍त जी ने लिखा है। लेकिन मैं सोच रहा था इस कालखंड में, 21वीं सदी के आरंभ में अगर उनको लिखना होता तो क्‍या लिखते- मैं कल्‍पना करता था कि वो लिखते-

अवसर तेरे लिए खड़ा है,तू आत्‍मविश्‍वास से भरा पड़ा है।

हर बाधा, हर बंदिश को तोड़, अरे भारत, आत्‍मनिर्भरता के पथ पर दौड़।

आदरणीय सभापति जी,

कोरोना के दौरान किस‍ प्रकार की वैश्विक परिस्थितियां बनीं, कोई किसी की मदद कर सके ये असंभव हो गया। एक देश दूसरे देश को मदद न कर सके। एक राज्‍य दूसरे राज्‍य को मदद न कर सके, यहां तक कि परिवार का एक सदस्‍य दूसरे परिवार के सदस्‍य की मदद न कर सके; वैसा माहौल कोरोना के कारण पैदा हुआ। भारत के लिए तो दुनिया ने बहुत आशंकाएं जताई थीं। विश्‍व बहुत चिंतित था कि अगर कोरोना की इस महामारी में अगर भारत अपने-आप को संभाल नहीं पाया तो न सिर्फ भारत, लेकिन पूरी मानव जाति के लिए इतना बड़ा संकट आ जाएगा ये आशंकाएं सबने जताईं। कोरोड़ों लोग फंस जाएंगे, लाखों लोग मर जाएंगे।हमारे यहां भी डराने के लिए भरपूर बातें भी हुईं। और ये क्‍यों हुआ ये हमारा सवाल नहीं है, क्‍योंकि एक unknown enemy क्‍या कर सकता है, किसी को अंदाज नहीं था। हरेक ने अपने-अपने तरीके से आकलन किया था। लेकिन भारत ने अपने देश के नागरिकों की रक्षा करने के लिए एक unknown enemy से और जिसकी कोई पूर्व परम्‍परा नहीं थी कि ऐसी चीज को ऐसे डील किया जा सकता है, इसके लिए ये प्रोटोकॉल हो सकता है, कुछ पता नहीं था।

एक नए तरीके से, नई सोच के साथ हर किसी को चलना था। हो सकता है कुछ विद्वान, सामर्थ्‍यवान लोगों के कुछ और विचार हो सकता है लेकिन था कि unknown enemy था। और हमें रास्‍तेभी खोजने थे। रास्‍ते बनाने भी थे और लोगों को बचाना भी था। उस समय जो भी ईश्‍वर ने बुद्धि, शक्ति, सामर्थ्‍य दिया इस देश ने उसको करते हुए देश को बचाने में भरसक काम किया। और अब दुनिया इस बात का गौरव करती है कि वाकई भारत ने दुनिया की मानवजाति को बचाने में बहुत बड़ी अहम भूमिका निभाई है। ये लड़ाई जीतने का यश किसी सरकार को नहीं जाता है, न किसी व्‍यक्ति को जाता है, लेकिन हिन्‍दुस्‍तान को तो जाता है। गौरव करने में क्‍या जाता है? विश्‍व के सामने आत्‍मविश्‍वास के साथ बोलने में क्‍या जाता है? इस देश ने किया है। गरीब से गरीब व्‍यक्ति ने इस बात को किया है। उस समय सोशल मीडिया में देखा होगा फुटपाथ पर एक छोटी झोंपड़ी लगा करके बैठी हुई बूढ़ी मां, वो भी घर के बाहर, झोंपड़ी के बाहर दिया जला करके भारत के शुभ के लिए कामना करती थी, हम उसका मजाक उड़ा रहे हैं? उसकी भावनाओं का मखौल उड़ा रहे हैं? समय है, जिसने कभी स्‍कूल का दरवाजा नहीं देखा था उसके मन में भी देश के‍ लिए जो भी देश के लिए दिया जला करके अपने देश की सेवा कर सकता है उसने किया, इस भाव से किया था। और उसने देश में एक सामूहिक शक्ति का जागरण किया था। अपनी शक्ति का, सामर्थ्‍य का परिचय करवाया था। लेकिन उसका भी मजाक उड़ाने में मजा आ रहा है। विरोध करने के लिए कितने मुद्दे हैं जी और करना भी चाहिए। लेकिन ऐसी बातों  में न उलझें जो देश के मनोबल को तोड़ती हैं, जो देश के सामर्थ्‍य को नीचा आंकती हैं, उससे कभी लाभ नहीं होता।

हमारे कोरोना वॉरियर्स, हमारे front line workers, आप कल्‍पना कर सकते हैं जी जब चारों तरफ भय है कि किसी से कोरोना हो जाएगा तो ऐसे समय ड्यूटी करना, अपनी जिम्‍मेदारियों को निभाना ये छोटी चीज नहीं है, इस पर गर्व करना चाहिए, उनका आदर करना चाहिए और इन सबके प्रयासों का परिणाम है ये कि देश ने आज वो करके दिखाया। हम जरा भूतकाल की तरफ देखें, ये आलोचना के लिए नहीं है, उन स्थितियों को हमने जिया है। कभी चेचक की बात होती थी, कितना भय बढ़ जाता था। पोलियो कितना डरावना लगता था, उसकी वैक्‍सीन पाने के लिए क्‍या-क्‍या मेहनत करनी पड़ती थी, कितनी तकलीफें उठानी पड़ती थीं। मिलेगा, कब मिलेगा, कितना मिलेगा, कैसे मिलेगा, कैसे लगाएं, ये दिन हमने बिताएं हैं। ऐसी स्थिति में उन दिनों को अगर याद करें तो पता चलेगा कि आज जिनको Third World Countries में गिना जाता है वो देश मानव जाति के कल्‍याण के लिए वैक्‍सीन ले करके आ जाएं। इतने कम समय में मिशन मोड में हमारे वैज्ञानिक भी जुटे रहे हैं, ये मानव जाति के इतिहास में भारत के योगदान की एक गौरवपूर्ण गाथा है। इसका हम गौरव करें और उसी में से नए आत्‍मविश्‍वास की प्रेरणा भी जगती है। हमने उस नए आत्‍मविश्‍वास की प्रेरणा को जगाने के ऐसे प्रयासों को आज देश गर्व कर सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान इसी मेरे देश में चल रहा है। विश्‍व में तीव्र गति से टीकाकरण आज कहीं हो रहा है तो इसी हम सबकी मां भारत की गोद में हो रहा है। और भारत का ये सामर्थ्‍य कहां नहीं पहुंचा है।

आज कोरोना ने भारत को दुनिया के साथ रिश्‍तों में एक नई ताकत दी है। जब शुरूआत में कौन सी दवाई काम करेगी, वैक्‍सीन नहीं थी तो सारे विश्‍व का ध्‍यान भारत की दवाइयों पर गया। विश्‍व में फार्मेसी के हब के रूप में भारत उभर करके आया। 150 देशों में दवाई पहुंचाने का काम उस सकंटकाल में भी इस देश ने किया है। मानव जाति की रक्षा के लिए हम पीछे नहीं हटे। इतना ही नहीं, इस समय वैक्‍सीन के संबंध में भी विश्‍व बड़े गर्व के साथ कहता है कि हमारे पास भारत की वैक्‍सीन आ गई है। हम सबको मालूम है कि दुनिया के बड़े-बड़े अस्‍पताल में भी बड़े-बड़े लोग भी जब ऑपरेशन कराने जाते हैं कोई बड़े major operation, और ऑपरेशन थिएटरों में जाने के बाद प्रक्रिया शुरू होने से पहले उसकी आंखें ढूंढती कि कोई हिन्‍दुस्‍तानी डॉक्‍टर है कि नहीं है। और जैसे ही टीम के अंदर एकाध भी हिन्‍दुस्‍तानी डॉक्‍टर दिखता है, उसको विश्‍वास हो जाता है कि अब ऑपरेशन ठीक होगा। यही देश ने कमाया है। इसका हमें गौरव होना चाहिए। और इसलिए इसी गौरव को ले करके हमें आगे बढ़ना है।

इस कोरोना में जैसे वैश्विक संबंधों में भारत ने अपनी एक विशिष्‍ट पहचान बनाई है, अपना स्‍थान बनाया है, वैसे ही भारत ने हमारे federal structure को इस कोरोना के कालखंड में हमारी अंतर्भूत ताकत क्‍या है, संकट के समय हम कैसे मिल करके काम कर सकते हैं, एक ही दिशा में सब शक्तियां लगा करके हम कैसे प्रयास कर सकते हैं; ये केंद्र और राज्‍य ने मिलकर करके दिखाया है। मैं राज्‍यों को भी, क्‍योंकि सदन में राज्‍यों की अपनी फ्लेवर होती है और इसलिए इस सदन में तो मैं विशेष रूप से राज्‍यों का भी अभिनंदन करता हूं और cooperative Federalism को ताकत देने का काम, इस कोरोना के संकट को अवसर में बदलने का काम हमारे सभी ने किया है। इसलिए सब कोई अभिनंदन के अधिकारी हैं। यहां पर लोकतंत्र को ले करके काफी उपदेश दिए गए हैं। बहुत कुछ कहा गया है। लेकिन मैं नहीं मानता हूं जो बातें बताई गई हैं, देश को कोई भी नागरिक इस पर भरोसा करेगा। भारत का लोकतंत्र ऐसा नहीं है कि जिसकी खाल हम इस तरह से उधेड़ सकते हैं। ऐसी गलती हम न करें और मैं श्रीमान देरेक़ जी की बात सुन रहा था, बढ़िया-बढ़िया शब्‍दों का प्रयोग हो रहा था।freedom of speech, intimidation, hounding, जब शब्‍द सुन रहा था तो लग रहा कि ये बंगाल की बात बता रहे हैं कि देश की बता रहे हैं? स्‍वाभाविक है चौबीसों घंटे वही देखते हैं, वही सुनते हैं तो वही बात शायद गलती से यहां बता दी होगी। कांग्रेस के हमारे बाजवा साहब भी काफी अच्‍छा बता रहे थे इस बार और इतना लंबा खींच करके बता रहे थे कि मुझे लग रहा था बस अब थोड़ी देर में ये इमरजेंसी तक पहुंच जाएंगे। मुझे लग रहा था थोड़ी देर में, एक कदम बाकी है, वो 84 तक पहुंच जाएंगे, लेकिन वो वहां नहीं गए। खैर, कांग्रेस देश को बहुत निराश करती है, आपने भी निराशकर दिया।

माननीय सभापति जी,

मैं एक कोटइस सदन के सामने रखना चाहता हूं और खास करके लोकतंत्र पर जो शक उठाते हैं, भारत की मूलभूत शक्ति पर जो शक उठाते हैं, उनको तो मैं विशेष आग्रह से कहूंगा कि इसको समझने का प्रयास करें। ‘’हमारा लोकतंत्र किसी भी मायने में western institution नहीं है। ये एक human institution है। भारत का इतिहास लोकतांत्रिक संस्‍थानों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। प्राचीन भारत में 81 गणतंत्रों का वर्णन हमें मिलता है। आज देशवासियों को भारत के राष्‍ट्रवाद पर चौरतफा हो रहे हमले से आगाह करना जरूरी है। भारत का राष्‍ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्‍वार्थी है और न ही आक्रमक है। ये ‘’सत्‍यम शिवम सुंदरम’’के मूल्‍यों से प्रेरित है’’।

आदरणीय सभापति जी,

ये कोटेशन आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस की है। और संयोग है कि 125वीं जयंती आज हम मना रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्‍य इस बात का है कि जाने-अनजाने में हमने नेताजी की इस भावना को, नेताजी के इन विचारों को, नेताजी के इन आदर्शों को भुला दिया है। और उसका परिणाम है कि आज हम ही हमको कोसने लग गए हैं। मैं तो कभी-कभी हैरान हो जाता हूं दुनिया जो कोई हमें शब्‍द पकड़ा देती है, हम उसको पकड़ करके चल पड़ते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी, सुनते हुए हमको भी अच्‍छा लगता है, हां यार भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लेकिन हमने अपनी युवा पीढ़ी को ये सिखाया नहीं कि भारत, ये mother of democracy है। ये लोकतंत्र की जननी है। हम सिर्फ बड़ा लोकतंत्र हैंऐसा नहीं है,ये देश लोकतंत्र की जननी है। ये बात हमें हमारी आने वाली पीढ़ियों को सिखानी होगी और हमें गर्व से ये बात को बोलना होगा क्‍योंकि हमारे पूर्वजों ने विरासत हमें दी है। भारत की शासन व्‍यवस्‍था democratic है, सिर्फ इसी वजह से हम लोकतंत्र देश नहीं हैं। भारत की संस्‍कृति, भारत के संस्‍कार, भारत की परम्‍परा, भारत का मन लोकतांत्रिक है और इसलिए हमारी व्‍यवस्‍था लोकतांत्रिक है। ये हैं, इसलिए ये हैं, ऐसा नहीं है। मूलत: हम लोकतांत्रिक हैं इसलिए हैं। और ये कसौटी भी हो चुकी है देश की।

आपातकाल के उन दिनों को याद कीजिए, न्‍यायपालिका का हाल क्‍या था, मीडिया का क्‍या हाल था, शासन का क्‍या हाल था। सब कुछ जेलखानें में परिवर्तित हो चुका था लेकिन इस देश का संस्‍कारी, देश का जनमन, जो लोकतंत्र की रगो से रंगा हुआ था उसको कोई हिला नहीं पाया था। मौका मिलते ही उसने लोकतंत्र का प्रभावित कर दिया। ये लोगों की ताकत, ये हमारे संस्‍कारों की ताकत है, ये लोकतांत्रिक मूल्‍यों की ताकत है मुद्दा ये नहीं है कि कौन सरकार, कौन सरकार ने बनाई उसकी चर्चा नहीं कर रहा मैं, और न ही मैं ऐसी चीजों में समय लगाने के लिए यहां आपने मुझे बिठाया है। हमें लोकतांत्रिक मूल्‍यों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना है। आत्‍मनिर्भर भारत के संबंध में भी चर्चा हुई। मैं हमारे साथी धर्मेंद्र प्रधान जी के बहुत ही अभ्‍यासपूर्ण और आत्‍मनिर्भर भारत की हमारी दिशा क्‍या है उसका विख्‍यात, विस्‍तृत रूप से उन्‍होंने बयान किया है।  लेकिन एक बात सही है कि आर्थिक क्षेत्र में भी आज भारत की जो एक पहुंच बन रही है। कोरोना काल में दुनिया के लोग निवेश के लिए तरस रहे हैं। सारी बातें बाहर आ गई हैं। लेकिन भारत है जहां रिकार्ड निवेश हो रहा है। सारे तथ्‍य बता रहे है कि अनेक देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। जबकि दुनिया भारत में डबल डिजिटल ग्रोथ का अनुमान लगा रही है। एक तरफ निराशा का माहौल है, तो हिन्‍दुस्‍तान में आशा की किरण नजर आ रही है, ये दुनिया की तरफ से आवाज उठ रही है।

आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड स्‍तर पर है। आज भारत में अन्‍न उत्‍पादन रिकार्ड स्‍तर पर है। भारत आज दुनिया में दूसरा बड़ा देश है जहां पर इंटरनेट यूजर है। भारत में आज हर महीने 4 लाख करोड़ रुपये का लेन‍देन डिजिटल हो रहा है, यूपीआई के माध्‍यम से हो रहा है। याद कीजिए, इसी सदन के भाषण में सुन रहा था... दो साल, तीन साल पहले... लोगों के पास मोबाइल कहां है, ठिकना कहां है, लोग डिजिटल कैसे करेंगे, ये देश की ताकत देखिए... हर महीने 4 लाख करोड़ रुपये भारत मोबाइल फोन के निर्माता के रूप में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बना है। भारत में रिकार्ड संख्‍या में स्‍टार्टअपस, यूनीकॉर्न और जिसका विश्‍व में जय-जयकार होने लगा है। इसी धरती पर हमारी युवा पीढ़ी कर रही है।  Renewal Energy के क्षेत्र में विश्‍व के पहले पांच देशों में हमनें अपनी जगह बना ली है और आने वाले दिनों में हम ऊपर ही चढ़ के जाने वाले हैं। जल हो, थल हो, नभ हो, अंतरिक्ष हो....भारत हर क्षेत्र में अपनी रक्षा के लिए, अपने सामर्थ्‍य के साथ खड़ा है। सर्जिक्‍ल स्‍ट्राइक हो या air स्‍ट्राइक भारत की capability को दुनिया ने देखा है।        

आदरणीय सभापति जी,

2014 में पहली बार जब मैं इस सदन में आया था, इस परिसर में आया था और जब मुझे नेता के रूप में चुना गया था तो मेरे पहले भाषण में मैंने कहा था कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित है। मैं आज दोबारा आने के बाद भी यही बात दोहरा रहा हूं। और हम न हमारी direction बदली है न हमने dilute किया है न divert किया है उसी मिजाज के साथ हम काम कर रहे हैं क्‍योंकि  इस देश में आगे बढ़ने के लिए हमें गरीबी से मुक्‍त होना ही होगा। हमें प्रयासों को जोड़ते ही जाना होगा। पहले के प्रयास हुए होंगे तो उसमें और जोड़ना ही पड़ेगा हम रूक नहीं सकते। जितना कर लिया बहुत है... नहीं रूक सकते, हमें और करना ही होगा। आज मुझे खुशी है कि जो मूलभूत आवश्‍यकता है ease of living के लिए है और जिसमें से आत्‍मविश्‍वास पैदा होता है और एक बार गरीब के मन में आत्‍मविश्‍वास भर गया तो गरीब खुद गरीबी की चुनौती को ताकत देने के साथ खड़ा हो जाएगा, गरीब किसी की मदद का मोहताज नहीं रहेगा। ये मेरा अनुभव है। मुझे खुशी है 10 करोड़ से ज्‍यादा शौचालय बने हैं, 41 करोड़ से ज्‍यादा लोगों के खाते खुल गए हैं। 2 करोड़ से अधिक गरीबों के घर बने हैं। 8 करोड़ से अधिक मुफ्त गैस के कनेक्‍शन दिए गए हैं। पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज गरीब के जिंदगी में बहुत बड़ी ताकत बनकर आया है। ऐसी अनेक योजनाएं जो गरी‍बों के जीवन में बदलाव ला रही हैं। नया विश्‍वास पैदा कर रही हैं।      

आदरणीय सभापति जी,

चुनौतियां है, अगर चुनौतियां न होती ऐसा कहीं कुछ नजर नहीं आएगा, दुनिया समृद्ध से भी समृद्ध देश हो उसमें भी चुनौतियां होती है, उसकी चुनौतियां अलग प्रकार की होती है, हमारी अलग प्रकार की हैं। लेकिन तय हमें ये करना है कि हम समस्‍या का हिस्‍सा बनना चाहते हैं या हम समाधान का हिस्‍सा बनना चाहते हैं। बस ये पतली सी  रेखा है अगर हम समस्‍या का हिस्‍सा बने तो राजनीति तो चल जाएगी लेकिन अगर हम समाधान का माध्‍यम बनते हैं तो राष्‍ट्रनीति को चार चांद लग जाते हैं। हमारा दायित्‍व है हमें वर्तमान पीढ़ी के लिए भी सोचना है, हमें भावी पीढ़ी के लिए भी सोचना है। समस्‍याएं हैं लेकिन मुझे विश्‍वास है कि हम साथ मिलकर के काम करेंगे, आत्‍मविश्‍वास से काम करेंगे तो हम स्थितियों से भी बदलेंगेऔर हम इच्छित परिणाम भी प्राप्‍त कर सकेंगे.. ये मेरा पक्‍का विश्‍वास है। 

आदरणीय सभापति जी,

सदन में किसान आंदोलन की भरपूर चर्चा हुई है, ज्‍यादा से ज्‍यादा समय जो बाते बताई गईं वो आंदोलन के संबंध में बताई गईं। किस बात को लेकर आंदोलन है उस बात पर सब मौन रहे। आंदोलन कैसा है, आंदोलन के साथ क्‍या हो रहा है। ये सारी बाते बहुत बताई गई उसका भी महत्‍व है लेकिन जो मूलभूत बात है... अच्‍छा होता कि उसकी विस्‍तार से चर्चा होती। जैसे हमारे माननीय कृषि मंत्री जी ने बहुत ही अच्‍छे ढंग से सवाल जो पूछे हैं उन सवालों के जवाब तो नहीं मिलेंगे मुझे पता है लेकिन उन्‍होंने बहुत ही अच्‍छे ढंग से इस विषय की चर्चा की है। मैं आदरणीय देवगोड़ा जी का बहुत आभारी हूं उन्‍होंने इस पूरी चर्चा को एक गांभीर्य दिया और उन्‍होंने सरकार के जो अच्‍छे प्रयास हैं उसकी सराहना भी की है क्‍योंकि वो किसानों के लिए  समर्पित रहे हैं जीवन भर और उन्‍होंने सरकार के प्रयासों के साथ सराहना भी किया और उन्‍होंने अच्‍छे सुझाव भी दिए। मैं आदरणीय देवगोड़ा जी का ह्दय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं।   

आदरणीय सभापति जी,

खेती की मूलभूत समस्‍या क्‍या है? उसकी जड़े कंहा हैं? मैं आज पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी ने जो विस्‍तार से जो बताया था उसी का जिक्र करना चाहता हूं... बहुत लोग हैं जो चौधरी चरण सिंह ही की विरासत संभालने का गर्व करते हैं वो जरूर इस बात का समझने का शायद प्रयास करेंगे। वो अक्‍सर 1971 जो एग्रीकल्‍चर से सेंसस हुआ था उसका जिक्र उनकी भाषा में जरूर आता था।  चौधरी चरण सिंह जी ने क्‍या कहा था... उनका Quote है किसानों का सेंससलिया गया तो 33 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास जमीन 2 बीघे से कम है, 2 बीघे नहीं है, 2 बीघे तक है, 2 बीघे से कम है। 18 फीसदी जो किसान कहलाते हैं उनके पास 2 बीघे से 4 बीघे जमीन है यानी आधा हेक्‍टेयर से एक हेक्‍टेयर... ये 51 फीसदी किसान है ये चाहे कितनी मेहनत करे...अपनी थोड़ी सी जमीन पर इनकी गुजर ईमानदारी से हो नहीं सकती। ये चौधरी चरण सिंह जी का quoteहै। छोटे किसानों की दयनीय स्थिति चौधरी चरण सिंह जी के लिए हमेशा बहुत ही पीढ़ा देती थी। वह हमेशा उसकी चिंता करते थे। अब हम आगे देखेगें... ऐसा किसान जिनके पास एक हेक्‍टेयर से भी कम जमीन होती है। 1971 में वे 51 प्रतिशत थे आज 68 प्रतिशत हो चुके हैं। यानी देश में ऐसे किसानों की संख्‍या बढ़ रही है जिनके पास बहुत थोड़ी सी जमीन है आज लघु और सीमांत किसानों को मिलाएं तो 86 प्रतिशत से भी ज्‍यादा किसान के पास 2 हेक्‍टेयर से भी कम जमीन है। और ऐसे किसानों की संख्‍या 12 करोड़ है। क्‍या इन 12 करोड़ किसानों के प्रति हमारी कोई जिम्‍मेवारी नहीं है, क्‍या देश की कोई जिम्‍मेवारी नहीं है। क्‍या हमने कभी हमारी योजनाओं के केंद्र में इन 12 करोड़ किसानों को रखना पड़ेगा कि नहीं रखना पड़ेगा। ये सवाल का जवाब चौधरी चरण सिंह जी हमारे लिए छोड़कर गए हैं... हमें जवाब को ढूंढना होगा हमें चौधरी चरण सिंह जी को सच्‍ची श्रद्धांजलि देने के लिए भी इस काम के लिए जिसको जो सूझे.. जिसको जो मौका मिले सबको करना होगा तब  जाकर हम कर सकते हैं।

अब पहले की सरकारों की सोच में छोटा किसान था क्‍या?अगर एक बार हम सोचेंगे तो ध्‍यान आएगा मैं आलोचना के लिए नहीं कह रहा हूं लेकिन हमनें सचमुच में.... हम सबको सोचने की आवश्‍यकता है। जब हम चुनाव आते ही एक कार्यक्रम करते हैं कर्जमाफी वो किसान का कार्यक्रम है... वोट का कार्यक्रम है वो तो हिन्‍दुस्‍तान हर कोई भली-भांति जानता है। लेकिन जब कर्जमाफी करते हैं...जब छोटा किसान उससे वंचित रहता है। उसके नसीब में कुछ नहीं आता है। क्‍योंकि कर्जमाफी... जो बैंक से लोन लेता है उसके लिए होता है.. छोटा किसान का बेचारे का बैंक में खाता नहीं... वो कहां लोन लेने जाएगा। हमनें छोटे किसान के लिए नहीं किया है... भले ही हमने राजनीति कर ली  हो। एक दो एकड़ जमीन वाले किसान जिसके पास बैंक का खाता भी नहीं है ना वो कर्ज लेता है न कर्जमाफी का फायदा उसको मिलता है। उसी प्रकार से पहले की फसल बीमा योजना क्‍या थी... एक प्रकार से वो बीमा जो बैंक गारंटी के रूप में काम करता था। और वो भी छोटे किसान के लिए तो नसीब भी नहीं होता था। वो भी उन्‍हीं किसानों के लिए होता था जो बैंक से लोन होता था उसका इंश्‍योरेंस होता था बैंक वालों को भी विश्‍वास हो जाता था, काम चल जाता था।

आज 2 हेक्‍टेयर से कम कितने किसान होंगे जो बैंक से लोन लेंगे... सिंचाई की सुविधा भी छोटे किसान के नसीब में नहीं है, बड़े किसान तो बड़ा-बड़ा पंप लगा देते थे, ट्यूबवेल कर देते थे, बिजली भी ले लेते थे, और बिजली मुफ्त मिल जाती थी, उनका काम चल जाता था। छोटे किसान के लिए तो सिंचाई के लिए भी दिक्‍कत थी। वो तो ट्यूबवेल लगा ही नहीं सकता था कभी-कभी तो उसको बड़े किसान से पानी खरीदना पड़ता था और जो दाम मांगे वो दाम देना पड़ता था। यूरिया.... बड़े किसान को यूरिया प्राप्‍त करने में कोई प्राबल्‍म नहीं था। छोटा किसान को रात-रात लाइन में खड़ा रहना पड़ता था। उसमें डंडे चलते थे और कभी-कभी तो बेचारा यूरिया के बिना घर वापस लौट जाता था। हम छोटे किसानों के हाल जानते हैं... 2014 के बाद हमनें कुछ परिवर्तन किए, हमनें फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ा दिया ताकि किसान...छोटा किसान भी उसका फायदा ले सके और बहुत मामली रकम से ये काम शुरू किया और पिछले 4-5 साल में फसल बीमा योजना के तहत 90 हजार करोड़ रुपये उसके क्‍लेम किसानों को मिले हैं। कर्जमाफी से भी आंकड़ा बड़ा हो जाता है जी।

फिर किसान क्रेडिट कार्ड देखिए। कार्ड हमारे यहां किसान क्रेडिट कार्ड हुए लेकिन बड़े किसानों तक गए और वो बैंक से बहुत ही काम ब्याज पर कुछ राज्यों में तो जीरो परसेंट ब्याज पर उनको मिल जाते थे पैसे और उनका कोई कोई धंधा व्‍यापार होता था पैसा वहां भी लग जाते थे। छोटे किसान के नसीब में ये नहीं था हमने तय किया हिन्‍दुस्‍तान के हर किसान को क्रेडिट कार्ड देंगें इतना ही नहीं हमने उनका दायरा fisherman तक भी बढ़ा दिया ताकि वो भी इसका फायदा उठा सके। और पौने दो करोड़ से ज्‍यादा किसानों तक ये किसान क्रेडिट कार्ड का फ़ायदा पहुंच चुका है और बाकी भी राज्‍यों से आग्रह कर रहे हैं कि लगातार उसको आगे बढ़ाए ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा किसान इसका लाभ उठा सके। और राज्‍यों की मदद जितनी ज्‍यादा मिलेगी उतना ज्‍यादा ही काम हो जाएगा। उसी प्रकार से हम एक योजना ले आए... प्रधानमंत्री किसान सम्‍मान निधि योजना। इसके माध्यम से रक़म  सीधे किसान के खाते में. जाती है।  और ये गरीब किसान के पास जिसके पास कभी इस प्रकार की मदद नहीं पहुंची है। दस करोड़ ऐसे परिवार हैं जिनको इसका लाभ मिल चुका है।

अगर बंगाल में राजनीति आड़े न आती तो बंगाल के किसान भी अगर जुड़ गए होते तो ये आंकड़ा उससे भी ज्‍यादा होता और अब तक 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपया इन किसानों के खाते में गया होता। ये गरीब छोटे किसान है उनके पास गया। हमारी सभी योजनाओं के केंद्र बिंदु soil health card हमनें 100 प्रतिशत soil health card की बात कहीताकि हमारे छोटे किसान को उसकी जमीन कैसी है, कौन सी उपज के लिए है। हमनें 100 प्रतिशत soil health card के लिए काम किया उसी प्रकार से हमने यूरिया का neem coated urea 100 प्रतिशत दिया।100 प्रतिशत के पीछे इरादा हमारा यही था किगरीब से गरीब किसान तक भी यूरिया पहुंचने में रूकावट न हो यूरिया divert होता बंद हो और उसमें हम समझते हुए छोटे और सीमांत किसानों के लिए पहली बार पेंशन की सुविधा की योजना लेकर के आए और मैं देख रहा हूं कि धीरे-धीरे हमारे छोटे किसान भी आ रहे हैं। उसी प्रकार से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना.... प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ये सिर्फ एक रोड नहीं है ये किसानों कीगांव की जिंदगी को बदलने का एक बहुत बड़ा यश रेखा होती है। और हमने उस पर भी बल दिया पहली बार हमनें किसान रेल की कल्‍पना की छोटा किसान का माल बिकता नहीं था आज किसान रेल के कारण गांव का किसान रेलवे के माध्‍यम से मुबंई के बाजार में अपना माल बेचने लगा, फल और सब्‍जी बेचने लगा है। उसका लाभ हो रहा है। छोटे किसान को फायदा हो रहा है। किसान उड़ान योजना.... किसान उड़ान योजना के द्वारा हवाई जहाज से जैसे हमारे north east इतनी बढि़या-बढि़या चीजें लेकिन ट्रांसपोर्टेशन सिस्‍टम के अभाव में वहां का किसान हमारा benefit नहीं ले पाता था। आज उसको किसान उड़ान योजना का लाभ मिल रहा है। छोटे किसानों की परेशानियों से हर कोई परिचित है... समय-समय पर उनके सशक्तिकरण की मांग भी उठी है।

हमारे आदरणीय शरद पवार जी और कांग्रेस के भी हर किसी ने... हर सरकार ने कृषि सुधारों की वकालत की है। कोई पीछे नहीं है क्‍योंकि हर एक को लगता है कि कर पाए न पाए ये अलग बात है। लेकिन ये होना चाहिए, ये बात हर एक की निकली हुई है और ये आज नहीं जब भी जो जहां थे सबने की हुई है। और शरद पवार जी ने तो एक बयान भी दिया कि मैं सुधारों के पक्ष में हूं ठीक है पद्धति के संबंध में उनके मन में सवाल है लेकिन सुधारों का विरोध नहीं किया है। और इसलिए मैं समझता हूं कि हमें इस विषय में हमारे साथी श्रीमान सिंधिया जी ने बहुत ही अच्‍छे ढंग से कई पहलुओं पर इस कानून को लेकर यहां पर....ये सारी बाते पिछले दो दशक से लगातार चल रही हैं ऐसा नहीं है कि कोई हमारे आने के बाद ही चली। हर ने कहा है और हर एक ने कहा है कि अब समय आ गया है हो जाएगा। अब समय आ गया है ये ठीक है. कि कोई कॉमा फुलस्टोप अलग हो सकते लेकिन कोई ये दावा नहीं कर सकता है कि भई हमारे समय की बहुत ही बढि़या थी, मैं भी दावा नहीं कर सकता हूं कि हमारी समय की सोच ही बहुत बढि़या है दस साल के बाद कोई सोच आ ही नहीं सकती। ऐसा नहीं होता है ये समाज जीवन परिवर्तनशील होता है।

आज के समय जो हमे ठीक लगा चलो चले वहां भी सुधार करगें... नई चीजों को जोड़ेगें ये तो प्रगति का रास्‍ता होता है जी... रूकावटें डालने से प्रगति कहां होती है जी... और इसलिए लेकिन मैं हैरान हूं अचानक यूटर्न ले लिया ऐसा क्‍या हो गया ठीक है अब आंदोलन के मुद्दे को लेकर के इस सरकार को घेर लेते हैं लेकिन साथ-साथ किसानों को भी कहते हैं कि भाई बदलाव बहुत जरूरी है बहुत साल हो गए अब नई चीजों को लेना पड़ेगा। तो देश आगे बढ़ता है लेकिन अब मुझे लगता है कि राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि अपने ही विचार छूट जाते हैं। लेकिन ये जो सब कर रहे हैं अच्‍छा है आदरणीय डॉक्‍टर मनमोहन सिंह जी यहां मौजूद हैं मैं उन्‍ही का एक quote आज पढ़ना चाहता हूं। हो सकता है जो यूटर्न कर रहे हैं मेरी बात माने या न माने मनमोहन सिंह जी की बात तो जरूरत मानेंगे there are other rigidities because of the whole marketing regime setup in the 1930’s which prevent our farmers from selling their produce where they get the highest rate of return. It is our intention to remove.... It is our intention to remove all those handicaps which come in the way of India realizingits vast potential as one large common market. ये आदरणीय मनमोहन सिंह जी का कोट है। आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने किसान को उपज बेचने की आजादी दिलाने, भारत को एक कृषि बाजार दिलाने के संबंध में अपना इरादा व्‍यक्‍त किया था। और वो काम हम कर रहे हैं। और आप लोगों को गर्व होना चाहिए... देखिए... आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने कहा था... वो मोदी को करना पड़ रहा है। अरे गर्व कीजिए.... और मजा ये है कि जो लोग political बयानबाजी करते हैं उछल-उछलकरके उनके राज्‍यों में भी जब उनको मौका मिला है इसी में से आधा-अधूरा कुछ न कुछ किया ही किया है। हर किसी ने यहां जो विरोध में दल है उनकी भी जहां सरकारें हैं वहां आधा-अधूरा कुछ न कुछ तो किया ही है। कि उनको भी ये मालूम है कि रास्‍ता तो यही है। और मैंने देखा इस चर्चा में लॉ का जो स्पिरिट है उसपर चर्चा नहीं हुई है शिकायत यही है तरीका ठीक नहीं था, इसको जल्‍दी कर दिया वो तो जब परिवार में शादी होती है तो भी फूफी नाराज होकर कहती है कि मुझे कहां बुलाया था, वो तो रहता है। इतना बड़ा परिवार है तो रहता ही है।

हम कुछ बातों की और भी ध्‍यान दें अब देखिए... दूध उत्‍पादन... किन्हीं बंधनों में बंधा हुआ नहीं है। ना पशुपालक बंधनों में बंध हुआ है ना दूध बंधनों में बंधा हुआ है लेकिन मजा देखिए.. दूध के क्षेत्र में या तो प्राइवेट या को-ऑपरेटिव दोनों ने एक ऐसी मिलकर मजबूत चेन बनाई है दोनों मिलकर के इस काम को कर रहे हैं। और एक बेहतरीन सप्‍लाई चेन हमारे देश में बनी है। इसको हमने और जो अच्‍छा है उसकों हमने.....और ये मेरे काल में नहीं बना है। आप इस पर गर्व कर सकते हैं मेरे काम से पहले बना हुआ है। हमें गर्व करना चाहिए। फल सब्‍जी से जुड़े व्‍यवसाय में ज्‍यादातर बाजारों को सीधा संपर्क रहता है बाजारों में दखल हट गई है, इसका लाभ मिल रहा है। क्‍या डेयरी वाले सफल सब्‍जी खरीदने वाले उद्यमी, पशुपालको या  किसान की जमीन पर कब्‍जा हो जाता है उन के पशुओं पर कब्‍जा हो जाता है, नहीं होता है। दूध बिकता है, पशु नहीं बिकता है जी, हमारे देश में डेयरी उद्योग का योगदान है, कृषि अर्थव्‍यवस्‍था के कुल मूल्‍य में 28 प्रतिशत से भी ज्‍यादा है। यानी इतना बड़ा हम एग्रीकल्‍चर की चर्चाएं करते हैं, इस पहलू को हम भूल जाते हैं। 28 प्रतिशत contribution है। और करीब-करीब आठ लाख करोड़ों रुपयों का कारोबार है। जितने रुपये का दूध होता है उसका मूल्‍य अनाज और दाल दोनों मिला दें तो उसका ज्‍यादा है। हम कभी इस subject पर देखते ही नहीं हैं। पशुपालकों को पूरी आजादी, अनाज और दाल पैदा करने वाले छोटे और सीमांत किसानों को.... जैसे पशुपालक को आजादी मिली है, इनको आजादी क्यों नहीं मिलनी चाहिए? अब इन सवालों के जवाब हम ढूंढेगे तो हम सही रास्‍ते पर चलेगें।

आदरणीय सभापति जी,

ये बात सही है जैसा हम लोगों का स्‍वभाव रहा है घर में भी थोड़ा सा भी परिवर्तन करना हो तो घर में भी एक तनाव हो जाता है। चेयर यहां क्‍यों रखी, टेबल यहां क्‍यों रखी.... घर में भी होता है। इतना बड़ा देश है और जिस प्रकार की परंपराओं से हम पले-बढ़ है तो ये एक मैं स्‍वभाविक मानता हूं कि जब भी कोई नई चीज आती है तो थोड़ा बहुत रहता ही है हमारे यहां कुछ असंमंजस की स्थिति भी रहती है। लेकिन जरा वो दिन याद कीजिए जब हरित क्रांति की बाते होती थी। हरित क्रांति के समय जो कृषि सुधार हुए तब भी जो आशंकाए हुई, जो आंदोलन हुए, ये well documented है, और ये देखने जैसा है। कृषि सुधार के लिए सख्‍त फैसले लेने के उस दौर में शास्‍त्री जी का हाल ये था कि अपने साथियों में से कोई कृषि मंत्री बनने तक को तैयार नहीं होता था। क्‍योंकि लगता था कि ऐसा है कि हाथ जल जाएंगे और किसान नाराज हो जाएंगे तो बिल्‍कुल राजनीति समाप्‍त हो जाएगी। ये शास्‍त्री जी के समय की घटनाएं हैं, और अंत में शास्‍त्री जी को, श्री सुब्रमण्यम जी को कृषि मंत्री बनाना पड़ा था और उन्‍होंने रिफॉर्मस की बाते की, योजना आयोग ने भी उसका विरोध किया था, मजा देखिए.... योजना आयोग ने भी विरोध किया था, वित्‍त मंत्रालय सहित पूरी कैबिनेट के अंदर भी विरोध का स्‍वर उठा था। लेकिन देश की भलाई के लिए शास्‍त्री जी आगे बढ़े और लेफ्टपार्टी जो आज भाषा बोलते हैं। वही उस समय भी बोलते थे। वे यही कहते थे कि अमेरिका के इशारे पर शास्‍त्री जी ये कर रहे हैं।  अमेरिका के इशारे पर कांग्रेस ये कर रही हैं। सारा दिन... आज मेरे खाते में जमा है न वो पहले आपके बैक अकाउंट में था। सब कुछ अमेरिका के एजेंट कह दिया जाता था हमारे कांग्रेस के नेताओं को। ये सब कुछ लेफ्ट पर जो आज भाषा बोलते हैं वो उस समय भी उन्‍होंने यही भाषा बोली थी। कृषि सुधारों को छोटे किसानों को बरबाद करने वाला बताया गया था। देशभर में हजारों प्रदर्शन आयोजित हुए थे। बड़ा मुवमेंट चला था। इसी माहौल में भी लालबहादुर शास्‍त्री जी और उसके बाद की सरकार जो करती रही उसी का परिणाम है कि जो हम कभी PL-480 मंगवाकर के खाते थे आज देश अपने किसान ने अपनी मिट्टी से पैदा की चीजें खाते हैं। रिकार्ड उत्‍पादन के बावजूद भी हमारे कृषि क्षेत्र में समस्‍याएं हैं कोई ये तो मना नहीं कर सकता समस्‍याएं नहीं हैं लेकिन समस्‍याओं का समाधान हम सबको मिलकर के करना होगा। और मैं मानता हूं कि अब समय ज्‍यादा इंतजार नहीं करेगा।

हमारे रामगोपाल जी ने बहुत ही अच्‍छी बात कही... उन्‍होंनें कहा कि कोरोना लॉकडाउन में भी हमारे किसानों ने रिकार्ड उत्‍पादन किया है। सरकार ने भी बीज, खाद, सारी चीजें कोरोना काल में भी पहुंचाने में कोई कमी नहीं होने दी, कोई संकट नहीं आने दिया और उसका सामूहिक परिणाम मिला कि देश के पास ये भंडार भरा रहा। उपज की रिकार्ड खरीदी भी इस कोरोना काल में ही हुई। तो मैं समझता हूं कि हमने नए-नए उपाय खोज करके आगे बढ़ना होगा और जैसा मैंने कहा कि कोई भी, कई कानून है हर कानून में दो साल बाद पांच साल के बाद, दो महीने, तीन महीने के बाद सुधार करते ही करते हैं। हम कोई स्‍टेटिक अवस्‍था में जीने वाले थोड़े ही हैं जी... जब अच्‍छे सुझाव आते हैं तो अच्‍छे सुधार भी आते हैं। और सरकार भी अच्‍छे सुझावों को और सिर्फ हमारी नहीं हर सरकार ने अच्‍छे सुझावों को स्‍वीकारा है यही तो लोकतांत्रिक परंपरा है। और इसलिए अच्‍छा करने के लिए अच्‍छे सुझावों के साथ अच्‍छे सुझावों की तैयारी के साथ हम सबको आगे बढ़ना चाहिए। मैं आप सबको निमंत्रण देता हूं। आइए हम देश को आगे ले जाने के लिए, कृषि क्षेत्र की समस्‍याओं का समाधान करने के लिए, आंदोलनकारियों को समझाते हुए हमने देश को आगे ले जाना होगा। हो सकता है कि शायद आज नहीं तो कल जो भी यहां होगा किसी न किसी को ये काम करना ही पड़ेगा। आज मैंने किया है गालियां मेरे खाते में जाने दो... लेकिन ये अच्‍छा करने में आज जुड़ जाओ। बुरा हो मेरे खाते में, अच्‍छा हो आपके खाते में... आओ मिलकर के चलें। और मैं  लगातार हमारे कृषि मंत्री जी लगातार किसानों से बातचीत कर रहे हैं। लगातार मीटिंगें हो रही हैं। और अभी तक कोई तनाव पैदा नहीं हुआ है। एक दूसरे की बात को समझने और समझाने का प्रयास चल रहा है। और हम लगातार आंदोलन से जुड़े लोगों से प्रार्थना करते हैं कि आंदोलन करना आपका हक है। लेकिन इस प्रकार से बुजूर्ग लोग वहां बैठे ये ठीक नहीं। आप उन सबको ले जाइए। आप आंदोलन को खत्‍म कीजिए आगे बढ़ने के लिए मिल बैठ करके चर्चा करेंगे रास्‍ते खुले हैं। ये सब हमने कहा है मैं आज भी ये सदन के माध्‍यम से भी निमंत्रण देता हूं।

आदरणीय सभापति जी,

ये बात निश्चित है कि हमारी खेती को खुशहाल बनाने के लिए फैसले लेने का ये समय है ये समय को हमें गंवाना नहीं देना चाहिए। हमें आगे बढ़ना चा‍हिए.. देश को पीछे नहीं ले जाना चाहिए। पक्ष हो विपक्ष हो, आंदोलनरत साथी हो, इन सुधारों को हमें मौका देना चाहिए। और एक बार देखना चाहिए कि इस परिवर्तन से हमें लाभ होता है कि नहीं होता है। कोई कमी हो तो उसको ठीक करेंगे, और कहीं ढिलाई हो तो उसको कसेंगे। ऐसा तो है नहीं कि सब दरवाजे बंद कर दिए बस... इसलिए मैं कहता हूं... मैं विश्‍वास दिलाता हूं कि मंडिया अधिक आधुनिक बने, अधिक प्रतिस्‍पर्धी होगी, इस बार बजट में भी हमने उसके लिए प्रावधान किया है। इतना ही नहीं एमएसपी है , एमएसपी था, एमएसपी रहेगा। ये सदन की पवित्रता समझे हम.... जिन 80 करोड़ से अधिक लोगों को सस्‍ते में राशन दिया जाता है। वो भी continue रहें। इसलिए मेहरबानी करके भ्रम फैलाने के काम में हम न जुड़ें। क्‍योंकि हमको देश ने एक विशिष्‍ट जिम्‍मेवारी दी है। किसानों की आय बढ़ाने के जो दूसरे उपाय हैं उन पर भी हमें बल देने की जरूरत है। आबादी बढ़ रही है परिवार के अंदर, सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ रही है। जमीन के टुकड़े होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कुछ न कुछ ऐसा करना ही होगा ताकि किसानों पर बोझ कम हो, और हमारे किसान के परिवार के लोग भी रोजी-रोटी कमाने के लिए, उनके लिए हम और अवसर उपलब्‍ध करा सकें। इनकी तकलीफों को दूर करने के लिए हमनें काम करना होगा और मैं मानता हूं कि हम अगर देर कर देंगे। हम अगर अपने ही राजनीतिक समीकरणों में फंसे रहेगें तो हम किसानों को अंधकार की तरफ धकेल देंगे। कृपा करके हमें उज्‍ज्‍वल किसानों के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए इससे बचना चाहिए। मैं सबसे प्रार्थना करता हूं। हमें इस बात की चिंता करनी होगी।

आदरणीय सभापति जी,

डेयरी और पशुपालन हमारे कृषि क्षेत्र के साथ बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि हमारा किसान परिपक्‍व हो इसी प्रकार इसी हमने foot and mounth disease के लिए एक बहुत बड़ा अभियान चलाया जो पशुपालक, किसान को जो किसानी से जुड़ा हुआ रहता है उसको भी लाभ होगा। हमनें fisheries को भी एक अलग बल दिया, अलग Ministries बनाई और 20 हजार करोड़ रुपये मत्‍स्‍य संपदा योजना के लिए लगाया है। ताकि ये पूरे क्षेत्र को एक नया बल मिले। sweet revolution में बहुत संभावना है और इसलिएभारत ने उसके लिए बहुत जमीन की जरूरत नहीं है अपने ही खेत के कोने में वो कर दे तो भी साल में 40-50 हजार, लाख रुपया, दो लाख रुपया कमा लेगा वो। और इसलिए हम sweet शहद के लिए हनी के लिए, उसी प्रकार से bee wax दुनिया में bee wax की मांग है। भारत bee wax exportकर सकता है। हमने उसके लिए माहौल बनाया और किसान के खेत में ही छोटी किसान होगा तो वो एक नई कमाई कर सकता है, हमें उसको जोड़ना होगा। और मधुमक्‍खी पालन के लिए सैंकड़ों एकड़ जमीन की जरूरत नहीं है। वो आराम से अपने यहां कर सकता है। सोलर पंप... सोलर हम कहते हैं अन्‍नदाता ऊर्जादाता बने उसके खेत में ही सोलर सिस्‍टम से ऊर्जा पैदा करे, सोलर पंप चलाए अपनी पानी की आवश्‍यकता को पूरी करे। उसके खर्च को, बोझ को कम करे। और फसल एक लेता है तो दो ले, दो लेता है तो तीन ले। थोड़ा पैटर्न में बदल करना है तो बदल कर सके। इस दिशा में हम जा सकते हैं। और एक बात है, भारत की ताकत ऐसी समस्‍याओं के समाधान के समाधान करने की और नए रास्‍ते खोजने की रही है, आगे भी खुलेंगे। लेकिन कुछ लोग हैं जो भारत अस्थिर रहे, अशांत रहे, इसकी लगातार कोशिशें कर रहे हैं। हमें इन लोगों को जानना होगा।

हम ये न भूलें कि पंजाब के साथ क्‍या हुआ। जब बंटवारा हुआ, सबसे ज्‍यादा भुगतना पड़ा पजाब को। जब 84 के दंगे हुए, सबसे ज्‍यादा आंसू बहे पंजाब के, सबसे ज्‍यादा दर्दनाक घटनाओं का शिकार होना पड़ा पंजाब को। जो जम्‍मू–कश्‍मीर में हुआ, निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया गया। जो नार्थ-ईस्‍ट में होता रहा, आए दिन बम-बंदूक और गोलियों का कारोबार चलता रहा। ये सारी चीजों ने देश कोकिसी न किसी रूप में बहुत नुकसान किया है। इसके पीछे कौन ताकते हैं, हर समय, हर सरकारों ने इसको देखा है, जाना है, परखा है। और इसलिए उन्‍हें उस जज्‍बे से इन सारी समस्‍याओं के समाधान के लिए हम तेजी से आगे बढ़े हैं और हम ये न भूलें कि कुछ लोग, हमारे खास करके पंजाब के, खास करके सिख भाइयोंके दिमाग में गलत चीजें भरने में लगे हैं। ये देश हर सिख के लिए गर्व करता है। देश के लिए क्‍या कुछ नहीं किया है इन्‍होंने। उनका जितना हम आदर करनें, उतना कम है। गुरुओं की महान परम्‍पराओं में ….मेरा भाग्‍यरहा हैपंजाब की रोटी खाने का अवसर मिला है मुझे। जीवन के महत्‍वपूर्ण वर्ष मैंने पंजाब में बिताए हैं, इसलिए मुझे मालूम है। और इसलिए जो भाषा कुछ लोग उनके लिए बोलते हैं, उनको गुमराह करने का जो लोग प्रयास करते हैं, इससे कभी देश का भला नहीं होगा। और इसलिए हमें इस दिशा में चिंता करने की आवश्‍यकता है।

आदरणीय सभापति महोदय,

हम लोग कुछ शब्‍दों से बड़े परिचित हैं- श्रमजीवी, बुद्धिजीवी, ये सारे शब्‍दों से परिचित हैं। लेकिन मैं देख रहा हूं कि पिछले कुछ समय से देश में एक नई जमात पैदा हुई है, एक नई बिरादरी सामने आई है और वो हैं आंदोलनजीवी। ये जमात आप देखोगे- वकीलों का आंदोलन है, वो वहां नजर आएंगे; स्‍टूडेंट का आंदोलन है, वो वहां नजर आएंगे; मजदूरों का आंदोलन है, वो वहां नजर आएंगे, कभी पर्दे के पीछे कभी पर्दे के आगे। एक पूरी टोली है ये जो आंदोलनजीवी है। वो आंदोलन के बिना जी नहीं सकते हैं और आंदोलन में से जीने के लिए रास्‍ते खोजते रहते हैं। हमें ऐसे लोगों को पहचानना होगा, जो सब जगह पर पहुंच करके और बड़ा ideological stand दे देते हैं, गुमराह कर देते हैं, नए-नए तरीके बता देते हैं। देश आंदोलनजीवी लोगों से बचे, इसके लिए हम सबको...और ये उनकी ताकत है...उनका क्‍या है, खुद खड़ी नहीं कर सकते चीजें, किसी की चल रही हैं तो जाकर बैठ जाते हैं। वो अपना...जितने दिन चले, चल जाता है उनका। ऐसे लोगों को पहचानने की बहुत आवश्‍यकता है। ये सारे आंदोलनजीवी परजीवी होते हैं। और यहां पर सब लोगों को मेरी बातों से आनंद इसलिए होगा कि आप जहां-जहां सरकारें चलाते होंगे, आपको भी ऐसे परजीवी आंदोलनजीवियों का अनुभव होता होगा। और इसलिए, उसी प्रकार से एक नया चीज मैं चीज देख रहा हूं। देश प्रगति कर रहा है, हम FDI की बात कर रहे हैं, Foreign Direct Investment. लेकिन मैं देख रहा हूं इन दिनों एक नया एफडीआई मैदान में आया है। ये नए एफडीआई से देश को बचाना है। एफडीआई चाहिए, Foreign Direct Investment. लेकिन ये जो नया एफडीआई नजर में आ रहा है, ये नए एफडीआई से जरूर बचना होगा और ये नया एफडीआई है Foreign DestructiveIdeology, और इसलिए इस एफडीआई से देश को बचाने के लिए हमें और जागरूक रहने की जरूरत है।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे देश के विकास के लिए ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था- इसका अपना एक मूल्‍य है। ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था हमारे आत्‍मनिर्भर भारत का एक अहम स्‍तंभ है। आत्‍मनिर्भर भारत, ये किसी सरकार का कार्यक्रम नहीं हो सकता है और होना भी नहीं चाहिए। ये 130 करोड़ देशवासियों का संकल्‍प होना चाहिए। हमें गर्व होना चाहिए और इसमें कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए। और महात्‍मा गांधी जैसे महापुरुषों ने हमें ये ही रास्‍ता दिखाया था। अगर हम वहां से थोड़े हट गए हैं तो वापिस उस पटरी पर आने की जरूरत है और आत्‍मनिर्भर भारत के रास्‍ते पर हमको बढ़ना ही होगा। गांव और शहर की खाई को अगर पाटना है तो उसके लिए भी हमें आत्‍मनिर्भर भारत की ओर बढ़ना ही होगा। और मुझे विश्‍वास है कि हम उन बातों को ले करके जब आगे बढ़ रहे हैं तो हमारे देश के सामान्‍य मानवी का विश्‍वास बढ़े। जैसे अभी प्रश्‍नोत्‍तर काल के अंदर जल-जीवन मिशन की चर्चा हो रही थी- इतने कम समय में तीन करोड़ परिवारों तक घर में पीने का पानी पहुंचाने का, नल कनेक्‍शन देने का काम हो चुका है। आत्‍मनिर्भरता तभी संभव जब अर्थव्‍यवस्‍था में सभी की भागीदारी हो। हमारी सोनल बहन ने अपने भाषण में बहनों-बेटियों की भागीदारी पर फोकस करने की उन्‍होंने विस्‍तार से चर्चा की।

कोरोना काल में चाहे राशन हो, आर्थिक मददहो या मुफ्त गैस सिलेंडर- सरकार ने हर तरह से एक प्रकार से हमारी माताओं-बहनों को असुविधा न हो, इसकी पूरी चिंता करने का प्रयास किया है और उन्‍होंने एक शक्ति बन करके इन चीजों को संभालने में मदद भी की है। जिस तरह इस मुश्किल परिस्थि‍ति में हमारे देश की नारी शक्ति ने बड़े धैर्य के साथ परिवार को संभाला, परिस्थितियों को संभाला है; कोरोना की इस लड़ाई में हर परिवार की मातृ शक्ति की बहुत बड़ी भूमिका रही है। और उनका मैं जितना धन्‍यवाद करूं, उतना कम है। बहनों-बेटियों का हौसला और मैं समझता हूं आत्‍मनिर्भर भारत में अहम भूमिका हमारी माताएं-बहनें निभाएंगी, ये मुझे पूरा विश्‍वास है। आज युद्ध क्षेत्र में भी हमारी बेटियों की भागीदारी बढ़ रही है। नए-नए जो लेबर कोर्ट बनाए हैं, उसमें भी बेटियों के लिए हर सेक्‍टर में काम करने के लिए समान वेतन का हक दिया गया है। मुद्रा योजना से 70 प्रतिशत जो लोन लिया गया है, वो हमारी बहनों के द्वारा लिया गया है यानि एक प्रकार से ये एडीशन है। करीब 7 करोड़ महिलाओं की सहभागिता से  60 लाख से ज्‍यादा self helpgroup आज आत्‍मनिर्भर भारत के प्रयासों को एक नई ताकत दे रहे हैं।

भारत की युवा शक्ति पर हम जितना जोर लगाएंगे, हम जितने अवसर उनको देंगे, मैं समझता हूं कि वो हमारे देश के लिए, भविष्‍य के लिए, उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए एक मजबूत नींव बनेंगे। जो राष्‍ट्रीय एजुकेशन पॉलिसी आई है, उस राष्‍ट्रीय एजुकेशन पॉलिसी में भी हमारी युवा पीढ़ी के लिए नए अवसर देने का प्रयास हुआ है। और मुझे खुशी है कि एक लंबासमय लगाया एजुकेशन पॉलिसी पर चर्चा में, लेकिन उसकी स्‍वीकृति जिस प्रकार से देश में हुई है, एक नया विश्‍वास पैदा किया है। और मुझे विश्‍वास है कि ये नई एजुकेशन पॉलिसी, नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति हमारे देश के एक नए तरीके से पढ़ने का एक नए तरीक़े के विचार का आगमन है।

हमारा MSME सेक्‍टर- रोजगार के सबसे ज्‍यादा अवसर MSME को मिल रहे हैं। और जब कोरोना काल में जो stimulus की बात हुई, उसमें भी MSMEs पर पूरा ध्‍यान दिया गया और उसी का परिणाम है कि आर्थिक रिकवरी में आज हमारे MSMEs बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं और हम इसको आगे बढ़ा रहे हैं।

हम लोग प्रारंभ से ‘सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्‍वास’का मंत्र ले करके चल रहे हैं। और उसी का परिणाम है कि नॉर्थ-ईस्‍ट हो या नक्‍सल प्रभावित क्षेत्र, धीरे-धीरे वहां हमारी समस्‍याएं कम होती जा रही हैं और समस्‍याएं कम होने के कारण सुख और शांति का अवसर पैदा होने के कारण विकास की मुख्‍य धारा में ये हमारे सभी साथियों को आने का अवसर मिल रहा है और भारत के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य में Eastern India बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा, ये मैं साफ देख रहा हूं। और उसको हम पूरी मजबूती से लाएंगे।

मैं आदरणीय गुलाम नबी जी को सुन रहा था। वैसे भी बड़ी मृदुलता, सौम्‍यता और कभी भी कटु शब्‍द का उपयोग न करना, ये गुलाम नबी जी की विशेषता रही है। और मैं मानता हूं कि हम सभी जो सांसदगण हैं, उन्‍होंने उनसे ये सीखने जैसी चीज है और ये मैं उनका आदर भी करता हूं। और उन्‍होंने जम्‍मू-कश्‍मीर में जो चुनाव हुए, उसकी तारीफ भी की। उन्‍होंने कहा कि बहुत लंबे समय से और उन्‍होंने ये भी कहा कि मेरे दिल में जम्‍मू-कश्‍मीर विशेष है और स्‍वाभाविक भी है, उनके दिल में ये होना पूरे हिन्‍दुस्‍तान के दिल में जम्‍मू-कश्‍मीर उसी भाव से भरा पड़ा है।  

जम्‍मू-कश्‍मीर आत्‍मनिर्भर बनेगा, उस दिशा में हमारा- वहां पंचायत के चुनाव हुए, बीडीसी के चुनाव हुए, डीडीसी के चुनाव हुए, और उन सबकी सराहना गुलाम नबी जी ने की है। इस प्रशंसा के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं। लेकिन मुझे डर लगता है, आपने प्रशंसा की। मुझे विश्‍वास है कि आपकी पार्टी वाले इसको उचित spirit मेंलेंगे,गलती से जी-23 की राय मान करके कहीं उलटा न कर दें।

आदरणीय सभापति महोदय,

कोरोना के चुनौतीपूर्ण दौर में सीमा पर भी चुनौती देने की कोशिश हुई। हमारे वीर जवानों के हौसले और कुशलता ने सटीक जवाब दिया है। हर हिन्‍दुस्‍तानी को इस बात पर गर्व है। मुश्किल परिस्थितियों में भी हमारे जवान डट करके खड़े रहे हैं। तमाम साथियों ने भी हमारे जवानों के शौर्य की सराहना की है, मैं उनका आभारी हूं। एलएसी पर जो स्थिति बनी है उस पर भारत का रुख बहुत स्‍पष्‍ट है और देश इसको भलीभांति देख भी रहा है और गर्व भी कर रहा है।Border Infrastructure और Border Security को लेकर हमारी प्रतिबद्धता में किसी प्रकार की ढील आने का सवाल ही नहीं होता है,गुंजाइश ही नहीं है, और जो लोग हमारा लालन-पालन और हमारे विचारों का को, हमारे उद्देश्य को देखते हैं वो कभी इस विषय में हमसे सवाल ही नहीं करेंगे, उनको मालूम है हम इसके लिए डटे हुए रहने वाले लोग हैं। और इसलिए हम इन विषयों में कहीं पर भी पीछे नहीं हैं।

आदरणीय सभापति जी,

इस सदन की उत्‍तम चर्चा के लिए मैं सबका धन्‍यवाद करते हुए आखिर में एक मंत्र का उल्‍लेख करते हुए अपनी वाणी को विराम दूंगा। हमारे यहां वेदों में एक महान विचार प्राप्‍त होता है। वो हम सबके लिए, 36 करोड़ देशवासियों के लिए ये मंत्र अपने-आप में बहुत बड़ी प्रेरणा है। वेदों का ये मंत्र कहता है-

"अयुतो अहं अयुतो मे आत्मा अयुतं मे, अयुतं चक्षुअयुतं श्रोत्रम|"

यानी मैं एक नहीं हूं, मैं अकेला नहीं हूं, मैं अपने साथ करोड़ों मानवों को देखता हूं, अनुभव करता हूं। इसलिए मेरी आत्मिक शक्ति करोड़ों की है। मेरे साथ करोड़ों की दृष्टि है, मेरे साथ कराड़ों की श्रवण शक्ति, कर्म शक्ति भी है

आदरणीय सभापति जी,

वेदों की इसी भावना से, इसी चेतना से 130 करोड़ से अधिक देशवासियों वाला भारत सबको साथ ले करके आगे बढ़ रहा है। आज 130 करोड़ देशवासियों के सपने आज हिन्‍दुस्‍तान के सपने हैं। आज 130 करोड़ देशवासियों की आकांक्षाएं इस देश की आकांक्षाएं हैं। आज 130 करोड़ देशवासियों का भविष्‍य भारत के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य की गारंटी है। और इसलिए आज जब देश नीतियां बना रहा है, प्रयास कर रहा है, तो वो केवल तत्‍कालीन हानि लाभ के लिए नहीं लेकिन एक लंबे दूरगामी और 2047 में देश जब आजादी का शतक मनाएगा, तब देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपनों को ले करके ये नींव रखी जा रही है। और मुझे विश्‍वास है कि इस काम को हम पूरा करने में अवश्‍य सफल होंगे।

मैं फिर एक बार आदरणीय राष्‍ट्रपति जी के उद्बोधन के‍ लिए मैं उनका आदरपूर्वक धन्‍यवाद करते हुए, उनका अभिनंदन करते हुए सदन में भी जिस तरह चर्चा हुईऔर मैं सच बताता हूं, चर्चा का स्‍तर भी अच्‍छा था, वातावरण भी अच्‍छा था। ये ठीक है कि किसे कितने लाभ होते हैं, मुझ पर भी कितना हमला हुआ, हर प्रकार से जो भी कहा जा सकता है कहा, लेकिन मुझे बहुत आनंद हुआ कि मैं कम से कम आपके काम तो आया। देखिए आपके मन में एक तो कोरोना के कारण ज्‍यादा जाना-आना होता नहीं होता, फंसे रहते होंगे, और घर में भी खिच-खिच चलती होगी। अब इतना गुस्‍सा यहां निकाल दिया तो आपका मन कितना हल्‍का हो गया। आप घर के अंदर कितनी खुशी चैन से समय बिताते होंगे। तो ये आनंद जो आपको मिला है, इसके लिए मैं काम आया, ये भी मैं अपना सौभाग्‍य मानता हूं, और मैं चाहूंगा ये आनंद लगातार लेते रहिए। चर्चा करते रहिए, लगातार चर्चा करते रहिए। सदन को जीवंत बनाकर रखिए, मोदी है, मौका लीजिए।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद

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Narendra Modi: The Go-To Man in Times of Crises
November 29, 2023

“I salute the determination of all those involved in this rescue campaign. Their courage and resolve have given a new life to our fellow workers. Everyone involved in this mission has set a remarkable example of humanity and teamwork,” PM Modi said in a telephonic conversation with the rescued workers who were successfully pulled out of a collapsed tunnel in Uttarakhand.

41 workers had been trapped in the Silkyara tunnel for the past 17 days. The rescue operation, involving both advanced machinery and ingenious manual skill, lasted over 400 hours. The remarkable resilience displayed by the trapped workers, the dedicated rescue team, and the overarching administrative efforts collectively exemplify an impressive showcase of grit and perseverance.

This massive operation led by the central and state rescue teams is another example of Modi government’s deep commitment to the principles of federalism. It is also a masterclass in effective and timely mobilisation of resources to address the needs of citizens facing distressing situations.

Operation Ganga: Safely Evacuating Over 20,000 Indian Students from Ukraine
However, this is not something that we are seeing for the first time. Operation Ganga, a monumental effort to evacuate over 22,000 Indian students from Ukraine amidst a war, stands as a remarkable achievement. The mission entailed pooling of substantial resources, the provision of humanitarian assistance and the creation of a safe passage for students to return home. Prime Minister Modi was involved in every intricate detail of the operation—right from logistics to the diplomatic reach-out. In addition, to personally coordinate the entire rescue mission, four Union Ministers were dispatched to four neighbouring countries to Ukraine. On the home front, efforts were made to assuage the concerns of every parent, ensuring they were reassured about the swift and secure return of their children.

This is the Modi government’s ‘whole-of-government’ approach, where swift coordination between diverse ministries, government departments and public agencies leads to coherent action giving exceptional results.

The Machchhu Dam Disaster of 1979
However, the groundwork for Prime Minister Modi's mass mobilization approach was established during the early years of his public service. A striking and pioneering instance of this approach emerged during the Machchhu dam failure, commonly known as the Morbi disaster. It came to known as history’s biggest dam-related disaster unleashing a flood of water through the city of Morbi in 1979, leading to over 25,000 casualties and earning the unfortunate distinction of being the worst dam burst according to the Guinness Book of World Records.

At that time, Narendra Modi, an RSS Karyakarta in Gujarat, undertook extraordinary efforts to assist those affected on the ground. He leveraged the organisational strength of the RSS by mobilising the karyakartas in the time of crisis. He did not stop there. In the demoralizing aftermath, Narendra Modi, in his inimitable style, penned an inspirational letter to motivate the youth in Morbi to rebuild their lives.

The monumental relief efforts in Morbi spanned over a span of over two months, during which Narendra Modi who was an RSS Sangathak in Gujarat, demonstrated exemplary leadership, by personally taking charge and remaining at the forefront until the last bus taking volunteers home departed. Along with RSS volunteers, he assessed the situation and created a detailed plan through which teams were assigned specific tasks to address the different problems arising from the tragedy. Governments can take time before they can choose a course of action. But the 29-year-old worker Narendra Modi, pursued a singular course of action - reaching the people and find ways to alleviate their suffering.

2001 Gujarat Earthquake

Another compelling instance of Narendra Modi's commitment to mobilizing every available resource for swift and effective resolution, is the handling of the devastating 2001 earthquake that shook the state of Gujarat. Even before assuming role as Gujarat’s Chief Minister, Narendra Modi, then a BJP karyakarta, immediately rushed to ground zero to aid the affected.

During the aftermath of the massive earthquake in Bhuj, where Narendra Modi had no official role in the Gujarat government or the party hierarchy, he leveraged his personal network in the Sangh and mobilised the BJP's cadre to provide assistance to the earthquake victims. Witnessed by all, he rode pillion on a motorcycle to assess the damage and come up with potential remediation measures. Collaborating with non-profit organizations, organizing relief camps, distributing food, and coordinating support collection nationwide and internationally, Narendra Modi displayed how far he can go to assist those in need, irrespective of any formal power or position.

Upon assuming the role of Chief Minister shortly after, Modi chose to spend Diwali in 2001 in Bhuj, in solidarity with the earthquake victims. Shortly afterward, CM Modi displayed sensitive leadership when he organized a mass worship offering to Mother Earth, alleviating fears caused by the earthquake.

When faced with the monumental task of rehabilitation, Chief Minister Narendra Modi left no stone unturned in mobilizing the state’s government machinery. In the face of officials estimating a rehabilitation period of at least three years, Narendra Modi, not aloof of ground realities in Gujarat and conscious of the urgency for those who had become homeless and destitute, issued a straightforward directive: Kutch should stand on its feet again in three months. As the first anniversary of the earthquake of 26 January 2002 approached, Kutch not only stood on its feet but also started regaining momentum.

The Uttarakashi Tunnel Rescue materialized into reality only through decisive leadership at the helm which demonstrated a profound concern for those at the grassroots level. India stood to benefit from the hands-on experiences of the Prime Minister, who has witnessed and managed several many disasters and crisis as a RSS swayamsevak, a BJP karyakarta, and later as the head of the state in Gujarat and India.

Today, we see that this personal abilitiy of PM Modi has transformed into institutional power. This ‘whole-of-government’ approach has transformed the governance paradigm in India, and today one can proudly say that it was an all of government, all of India operation.