Full Text of Prime Minister Shri Narendra Modi’s Speech at Ranchi, Jharkhand

Published By : Admin | August 21, 2014 | 20:50 IST

झारखंड के प्‍यारे भाइयों-बहनों, कुछ समय पहले चुनाव अभियान के दौरान बार-बार मेरा झारखंड आना हुआ था। और मैंने विकास के विषय में हर बार आपके सामने बातें रखीं। मैं झारखंड के नागरिकों का ह्दय से अभिनंदन करता हूं कि आपने विकास के मार्ग को चुना है। आपने हमें भारी समर्थन दिया है। और मैं झारखंड वासियों को विश्‍वास दिलाने आया हूं कि आपने मुझे जो प्‍यार दिया है, जो समर्थन दिया है, जो शक्ति दी है, इसके लिए मैं झारखंड का अंत:करण पूर्वक आभार व्‍यक्‍त करता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं। लेकिन झारखंड के मेरे प्‍यारे भाईयों-बहनों, सिर्फ आभार व्‍यक्‍त करके मैं अपना कर्तव्‍य पूर्ण नहीं मानता। आपने जो प्‍यार दिया है, उसे मैं ब्‍याज समेत लौटाने आया हूं। और विकास के माध्‍यम से, मैं यह प्‍यार आपको ब्‍याज समेत लौटाने वाला हूं।

झारखंड में हिन्‍दुस्‍तान के सभी राज्‍यों में सबसे समृद्ध राज्‍य बनने की क्षमता है। अगर मैं गुजरात के अनुभव से कहूं तो गुजरात से भी अनेक गुना आगे बढ़ने की ताकत झारखंड राज्‍य में है। जिस राज्‍य के पास इतनी प्राकृतिक संपदा हो, जिस राज्‍य के पास ऐसे कतर्व्‍यवान नौजवान हो, जिस राज्‍य के पास बिरसा मुंडा जैसे महापुरूषों की त्‍याग और तपस्या की परंपरा हो, वह राज्‍य पीछे रहने के लिए पैदा हुआ ही नहीं है।

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने झारखंड राज्‍य बनाया। इस सपने के साथ बनाया था कि विपुल प्राकृतिक संपदाओं से भरा यह राज्‍य न सिर्फ झारखंड का भला करेगा, बल्कि पूरे हिन्‍दुस्‍तान का भाग्‍य बदलने के लिए झारखंड एक अहम भूमिका निभा सकता है। इन सपनों के साथ, इस आशा के साथ झारखंड का निर्माण हुआ था।

भाइयों-बहनों, झारखंड की स्थिति हमें मंजूर नहीं है। हमें इसे बदलना है। मिल-जुल करके बदलना है। विकास की अनेक योजनाओं को ले कर झारखंड को प्रगति की नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया जा सकता है। आज यहां कुछ योजनाओं का लोकापर्ण करने का मुझे सौभाग्‍य मिला है और कुछ योजनाओं के शिलान्‍यास का भी सौभाग्‍य मिला है। मैं हैरान हूं - यहां पर कर्णपुर में यह सूपरथर्मल पावर प्रोजेक्‍ट - अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका शिलान्‍यास किया था। और इसके बाद, वह वहीं का वहीं पड़ा है। आप मुझे बताइये भाइयों, यह आप के साथ अन्‍याय है या नहीं है? यह अन्‍याय जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए? मुझे लगता है कि वाजपेयी जी ने जहां काम छोड़ा है, उसे आगे बढ़ाना शायद मेरे ही भाग्‍य में लिखा हुआ है। करीब 15 हजार करोड़ रुपये की लागत से यह बिजली का कारखाना बनेगा। न सिर्फ झारखंड का अंधेरा छंटेगा, हिन्‍दुस्‍तान में जहां-जहां अंधेरा है, उस अंधेरे को हटाने का काम भी इस झारखंड की धरती से होगा।

भाइयों-बहनों, आज मुझे यहां रांची-सीपत ट्रांसमिशन लाईन के लोकार्पण का भी अवसर मिला है। यह ट्रांसमिशन लाईन सिर्फ बिजली को ले जाएगी ऐसा नहीं है, यह ट्रांसमिशन लाईन सिर्फ बिजली को यहां लाएगी ऐसा नहीं है। यह ट्रांसमिशन लाईन पूरब को पश्चिम के साथ जोड़ने वाली लाईन है। यह सिर्फ ऊर्जा को वहन करने वाली नहीं, यहां के जन-जन में ऊर्जा पैदा करने वाली एक नई ताकत के रूप में यहां आई है। और उसके कारण विकास की एक नई ऊर्जा सारे पूर्वी भारत को प्राप्‍त हो, इसमें बड़ी अहम भूमिका झारखंड निभाने वाला है। मैं पहले से ही मानता हूं, अगर हम भारत को महान बनाना चाहते है, अगर हम भारत को विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाना चाहते है, तो हमारी भारत माता का कोई भी हिस्‍सा दुर्बल नहीं होना चाहिए। आज हम देखते हैं, भारत के पश्चिमी छोर पर कुछ न कुछ आर्थिक गतिविधियां नजर आती है। लेकिन भारत का पूरा पूर्वी छोर, मध्‍य से पूरब की तरफ देखें, वहां के लोग विकास की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरीबी ने उनके सपनों को चूर-चूर करके रखा हुआ है। दिल्‍ली में आपने जिस सरकार को बिठाया है, उस सरकार का सपना है- पश्चिम हो या पूरब, उत्‍तर हो या दक्षिण, भारत का विकास संतुलित होना चाहिए। पूरब को भी उसका फायदा मिलना चाहिए और पूरब में विकास की संभावनाएं बढ़नी चाहिए। ये जो ट्रांसमिशन लाईन है, वह भविष्‍य में झारखंड के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली है। यहां जो बिजली पैदा होगी, वह जब हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में पहुंचेगी तो झारखंड की आर्थिक स्थिति में भी उसके कारण बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है।

कल हमारी कैबिनेट की मीटिंग थी। उस कैबिनेट की मीटिंग में हमने एक महत्‍वपूर्ण निर्णय किया। मैं नहीं जानता हूं कि वह खबर झारखंड के अखबारों में छपी है कि नहीं छपी है, लेकिन मैं जहां दिल्‍ली से निकला, वहां तो कोई ज्‍यादा मुझे नजर नहीं आई। एक-आध कोने में, एक-आध दो लाईन मुझे दिखाई दे रही थी। सामान्‍य रूप से भारत सरकार से कुछ लेना हो तो मुख्‍यमंत्रियों को इतने चक्कर काटने पढ़ते हैं, इतनी बार जाना पड़ता है, इतनी रिक्‍वेस्‍ट करनी पड़ती है, एमपीज़ को जाना पड़ता है, डेलिगेशन लेके जाना पड़ता है। और वहां वे सुनते हैं, फिर कहते हैं, “आपकी बात बहुत अच्‍छी है। हम जरूर देखेंगे।” ये दोबारा जाते हैं, तो फिर कहते हैं, “अच्‍छा वह रह गया फिर देखेंगे।” ये देखते ही देखते 10 साल चले गए।

भाइयों-बहनों, दिल्‍ली में बैठी हुई सरकार का एक कन्विक्‍शन है, यह हमारा विश्‍वास है अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो हमें राज्‍यों को आगे बढ़ाना पड़ेगा। हम राज्‍यों के प्रति उदासीन रह करके, राज्‍यों की उपेक्षा करके, कभी भी भारत को आगे बढ़ा नहीं सकते। और इसलिए दिल्‍ली में बैठी हुई सरकार सभी राज्‍यों के विकास में सहायक होना चाहती है, मददगार होना चाहती है। राज्‍यों की उंगली पकड़ करके साथ चलने का प्रयास करना चा‍हती है। और इसलिए कल कैबिनेट में हमने एक महत्‍वपूर्ण फैसला किया: खनिज संपदा की रॉयल्‍टी का। और उसके कारण झारखंड को करीब-करीब 400 करोड़ रुपये का फायदा होगा। और एक बार नहीं, हर वर्ष होगा। और इसके लिए हेमंत सोरेन जी को कभी दिल्‍ली नहीं आना पड़ा। न कभी मेरे पास आना पड़ा, न कभी मेमोरंडम देना पड़ा। हम सामने से ले करके आए हैं। क्‍यों? क्‍योंकि हमारा विश्‍वास है, सबने मिल करके देश को आगे बढ़ाना है। जन-जन की ताकत को जोड़ करके हमें आगे बढ़ाना है।

भाईयों-बहनों, आज एक ऑयल टर्मिनल का भी लोकार्पण हुआ है। और इसके कारण इस पूरे क्षेत्र में ऑयल पहुंचाने की सुविधा बढ़ने वाली है। लेकिन जो महत्‍वपूर्ण बात मुझे कहनी है, आने वाले दिनों में गैस बेस्‍ड इकोनॉमी का महात्‍म्‍य बढ़ने वाला है। देश में गैस ग्रिड बने, डोमेस्टिक उपयोग के लिए, ट्रांसपोर्टेशन के लिए, ऊर्जा के लिए, उद्योग के लिए गैस को सर्वाधिक उपयोग की दिशा में कैसे जाएं, गैस पहुंचाने के लिए नेटवर्क कैसे तैयार हो, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं। और उसी प्रयास के तहत जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया गैस पाईपलाईन – आने वाले दिनों में ये काम भी ये सरकार अपने हाथ में लेने वाली है। और उसके कारण हमारे पूर्वी हिन्‍दुस्‍तान के गोरखपुर हो, पटना हो, वाराणसी हो, जमशेदपुर हो, दुर्गापुर हो, कोलकाता हो – इन शहरों में पाईप से घर-घर गैस पहुंचाने का हमारा मकसद है। अब गैस सिलिंडर के लिए हमारी माताओं-बहनों को इंतजार न करना पड़े। जैसे नल में पानी आता है, वैसे नल में गैस भी आने लग जाए, इस काम को हम करना चाहते हैं।

भाईयों-बहनों, यहां के नौजवानों के पास टैलेंट है। यहां पर औद्योगिक विकास की भारी संभावना है। अगर न संभावना होती, तो कभी किसी ने जमशेदपुर न बनाया होता। यहां ताकत पड़ी है, लेकिन बीच के कालखंड में सब अटक गया। यहां पर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स गुड्स के निर्माण के लिए बहुत संभावनाएं हैं। भारत सरकार – यहां के नौजवानों को रोजगार मिले, इलेक्ट्रिक गुड्स मेन्‍यूफैक्‍चरिंग का यहां काम हो – उसको प्राथमिकता देना चाहती है। और उसके कारण – आज छोटे-छोटे इलेक्ट्रिक गुड्स भी विदेश से लाने पड़ते हैं – वह लाना बंद होगा, और भारत की आवश्‍यकता की पूर्ति में झारखंड का भी कोर्इ-न-कोई योगदान हो – उस दिशा में हम आगे जाने वाले हैं। झारखंड के नौजवानों को अच्‍छी शिक्षा मिले इसलिए रांची में बहुत ही जल्‍द इंडियन इस्‍टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्‍नॉलोजी, आईआईआईटी, इसका काम भी बहुत ही जल्‍द हम प्रारंभ करने वाले हैं। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि झारखंड को आधुनिक बनाने की दिशा में हम कितना योगदान कर सकते हैं।

15 अगस्‍त को लाल किले की प्राचीर से मैंने एक बात कहीं थी, डिजीटल इंडिया की। वक्‍त बदल चुका है। अगर टेलीफोन थोड़े समय के लिए अगर बंद हो जाए, कनेक्टिविटी अगर थोड़े समय के लिए बंद हो जाए तो आप परेशान हो जाते हैं, कि नहीं हो जाते हैं? मोबाइल फोन की बैटरी डिस्‍चार्ज हो जाए तो परेशान हो जाते है कि नहीं हो जाते हैं? मोबाइल फोन के बिना जिंदगी गुजारना आज संभव है क्‍या? झारखंड जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में भी मोबाइल फोन ने इतनी जगह बना ली है, जिंदगी में। क्‍या कारण हैं? कारण है टेक्‍नॉलोजी। उसके कारण आई हुई सरलता। क्‍या हमारे पूरी शासन व्‍यवस्‍था में ऐसी सरलता हम ला सकते है या नहीं ला सकते हैं? सामान्‍य मानव के लिए सरकार उसकी हथेली में होनी चाहिए, यह हमारा सपना है। सरकार दिल्‍ली में न हो, सरकार रांची में न हो, सरकार हिन्‍दुस्‍तान के नागरिक की हथेली में हो। यह काम है डिजी‍टल इंडिया का। आपके मोबाइल फोन में पूरी की पूरी सरकार लाई जा सकती है। आप अपने मोबाइल फोन से सरकार में क्‍या काम है, कहां काम है, कैसे काम है, इस काम को कर सकते हैं – इतना टेक्‍नॉलोजी और विज्ञान का विकास हुआ है। लेकिन भारत इसमें बहुत पीछे है। बहुत कुछ करना बाकी है। लेकिन कहीं से तो शुरूआत करनी चाहिए। और इसलिए डिजीटल इंडिया का सपना पूरा करने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये की लागत से, पूरी शासन व्‍यवस्‍था, उसका सरलीकरण हो। डिजीटल फोर्म में इजिली अवेलबल हो।

सामान्‍य से सामान्‍य मानव, सरकार के किसी भी पुर्जे तक तुरंत पहुंच पाए, घर बैठे पहुंच पाए – ऐसी व्‍यवस्‍था हो। सामान्‍य नागरिक को अपनी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए जैसे उसे गैस पाईपलाईन से गैस मिलता है, पानी की पाईपलाईन से पानी मिलता है, उसी प्रकार से डिजीटल के द्वारा इंफोरमेशन भी मिले, इस प्रकार का प्रबंध करने की कल्‍पना के साथ आज झारखंड की धरती से इस डिजीटल इंडिया के लिए कुछ प्रकल्‍प का प्रारंभ हुआ है। जिसमें ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट है, जिसमें इलेक्‍ट्रॉनिक पार्ट की कल्‍पना है, जिसमें नेटवर्क और अधिक ताकतवर बनाने की कल्‍पना है। इन प्रयासों का परिणाम यह होगा कि झारखंड भी डिजीटल वर्ल्‍ड की दुनिया में बहुत ही तेजी से अपनी जगह बना लेगा।

भाईयों-बहनों, एक के बाद एक, ये सरकार इतनी तेज गति से क्‍यों चल रही है? एक के बाद एक महत्‍वपूर्ण निर्णय क्‍यों कर पा रही है? मेरे झारखंड के बहनों-भाइयों, इसलिए कर पाई है कि देश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ दिल्‍ली में एक सरकार को चुना है। अगर हमें भी पूर्ण बहुमत न मिला होता, अस्थिरता होती, गठजोड़ की दुनिया होती तो, शायद आज जिस विश्‍वास के साथ मैं एक के बाद एक कदम उठा रहा हूं, शायद नहीं उठा पाता। पूर्ण बहुमत का महात्‍म्‍य मैं समझता हूं। देश भी समझता है। स्थिर शासन का महत्‍व मैं समझता हूं, झारखंड के लोग भी समझते हैं। और भाईयों-बहनों, अब झारखंड एक महत्‍वपूर्ण उमर के दौर से गुजर रहा है। झारखंड की उमर हो गई है, 13-14 साल। परिवार में भी बेटा या बेटी, जब 13 या 14 साल के हो जाते हैं, तो मां-बाप उसकी स्‍पेशल केयर करते हैं। ज्‍यादा उनकी चिंता करते हैं। अच्‍छी स्‍कूल मिले, अच्‍छा कालेज मिले, अच्‍छे दोस्‍त मिले, उनका सही डेवलपमेंट हो। क्‍योंकि ये एज ऐसी होती है, उसमें बेटे या बेटी के जीवन में जो होगा, उसी की धरोहर पर उसकी पूरी जिंदगी बनती है। व्‍यक्ति के जीवन में 13 से 18 साल की उमर का जैसा महत्‍व होता है, वैसा ही महत्‍व राज्‍य के जीवन में भी होता है। और इसलिए अब झारखंड उस महत्‍वपूर्ण उमर के दौर में प्रवेश कर रहा है।

आपको तय करना है – जब झारखंड 18 साल का हो, तब झारखंड कैसा होना चाहिए? इस महत्‍वपूर्ण समय में झारखंड कैसा हो? झारखंड के सपने कैसे हो? झारखंड की योजनाएं कैसी हो? उन योजनाओं को चलाने वाली व्‍यवस्‍था कैसी हो? इस पर गंभीरता से सोचने का समय, ये झारखंड की जनता के पास आया है। और इसलिए भाइयों-बहनों, ये झारखंड के महत्‍वपूर्ण वर्ष, विकास के वर्ष में हम बने रहें। झारखंड की ये 13 से 18 साल की उमर का दौर, झारखंड को नई ऊंचाईयों को प्राप्‍त करने वाला बने। नए सपने हो, नई ऊर्जा हो, उसे प्राप्‍त करने के लिए सवा तीन करोड़ झारखंड वासियों का अनगिनत पुरूषार्थ हो। तो भाइयों-बहनों, जिस बिरसा मुंडा को ले कर के हम सीना तान कर के घूम रहे हैं, वही झारखंड की जनता देश के सामने सीना तान कर के खड़ी हो सकती है और उस काम को करने के लिए मैं आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए:

भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।

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The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi
December 03, 2024
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केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी श्रीमान अमित शाह, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया जी, राज्यसभा के मेरे साथी सासंद सतनाम सिंह संधू जी, उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों।

चंडीगढ़ आने से लगता है कि अपनों के बीच आ गया हूं। चंडीगढ़ की पहचान शक्ति-स्वरूपा माँ चंडीका नाम से जुड़ी है। माँ चंडी, यानी शक्ति का वह स्वरूप जिससे सत्य और न्याय की स्थापना होती है। यही भावना भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे प्रारूप का आधार भी है। एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं.. तब, संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का प्रभाव प्रारंभ होना, उसका प्रभाव में आना, ये एक बहुत बड़ी शुरुआत है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में ये ठोस प्रयास है। ये कानून कैसे अमल में लाये जाएंगे, अभी मैं इसका Live Demo देख रहा था। और मैं भी यहां सबसे आग्रह करता हूं कि समय निकालकर के इस Live Demo का जरूर देखें। Law के Students देखें, Bar के साथी देखें, Judiciary के भी साथियों को अगर सुविधा हो, वे भी देखें। मैं इस अवसर पर, सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता के लागू होने की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

देश की नई न्याय संहिता अपने आपमें जितना समग्र दस्तावेज़ है, इसको बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक रही है। इसमें देश के कितने ही महान संविधानविदों और कानूनविदों की मेहनत जुड़ी है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर जनवरी 2020 में सुझाव मांगे थे। इसमें देश के मुख्य न्यायधीशों का सुझाव और मार्गदर्शन रहा। इनमें हाइ-कोर्ट्स के चीफ़ जस्टिसेस उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। देश का सुप्रीम कोर्ट, 16 हाइकोर्ट, judicial academies, अनेकों law institutions, सिविल सोसाइटी के लोग, अन्य बुद्धिजीवी....इन सबने वर्षों तक मंथन किया, संवाद किया, अपने अनुभवों को पिरोया, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देश की जरूरतों पर चर्चा की गई। आज़ादी के 7 दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो challenges आए, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, futuristic parameter पर उसे कसा गया...तब भारतीय न्याय संहिता अपने इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए देश के सुप्रीम कोर्ट का, honorable judges का, देश की सभी हाइ-कोर्ट्स का, विशेषकर हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ। मैं Bar का भी धन्यवाद करता हूँ कि जिन्होंने आगे आकर इस न्याय संहिता की ownership ली है, Bar के सभी साथी बहुत-बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। मुझे भरोसा है, सबके सहयोग से बनी भारत की ये न्याय संहिता भारत की न्याय यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

साथियों,

हमारे देश ने 1947 में आज़ादी हासिल की थी। आप कल्पना करिए, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ, पीढ़ियों के इंतज़ार के बाद, लक्ष्यावदी लोगों के बलिदानों के बाद, जब आज़ादी की सुबह आई...तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कितना उत्साह था, देशवासियों ने भी सोचा था...अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी क़ानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार का, उनके शोषण का ज़रिया ये कानून ही तो थे। ये कानून बनाए भी तब गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 1857 में और मेरे नौजवान साथियों को मैं कहूंगा- याद रखिए, 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया। उस 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थीं, देश के हर कौने में बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। तब जाकर के, उसके जवाब में, अंग्रेज़ 1860 में, 3 साल के बाद इंडियन पीनल कोड, यानी IPC लेकर आए। फिर कुछ साल बाद इंडियन एविडेंस एक्ट लाया गया। और फिर CRPC का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इन क़ानूनों की सोच और मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, गुलाम रखा जाए, और दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद...दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और penal mindset के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे, मंडराते रहे। और जिनका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता था। समय-समय पर इन क़ानूनों में छोटे-मोटे सुधार करने के प्रयास हुए, लेकिन इनका चरित्र वही बना रहा। आजाद देश में गुलामों के लिए बने कानूनों को क्यों ढोया जाए? ये सवाल ना हमने खुद से पूछा, ना शासन कर रहे लोगों ने इस पर विचार करने की ज़रूरत समझी। गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को, भारत की विकास यात्रा को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।

साथियों,

देश अब उस colonial माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र के सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो....इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। और इसीलिए, मैंने 15 अगस्त को लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता इसके जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता ‘of the people, by the people, for the people' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।

साथियों,

न्याय संहिता समानता, समरसता और सामाजिक न्याय के विचारों से बुनी गई है। हम हमेशा से सुनते आए हैं कि, कानून की नज़र में सब बराबर होते हैं। लेकिन, व्यवहारिक सच्चाई कुछ और ही दिखाई देती है। गरीब, कमजोर व्यक्ति कानून के नाम से डरता था। जहां तक संभव होता था, वो कोर्ट-कचहरी और थाने में कदम रखने से डरता था। अब भारतीय न्याय संहिता समाज के इस मनोविज्ञान को बदलने का काम करेगी। उसे भरोसा होगा कि देश का कानून समानता की, equality की गारंटी है। यही...यही सच्चा सामाजिक न्याय है, जिसका भरोसा हमारे संविधान में दिलाया गया है।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता...हर पीड़ित के प्रति संवेदनशीलता से परिपूर्ण है। देश के नागरिकों को इसकी बारीकियों का पता चलना ये भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए मैं चाहूंगा, आज यहां चंडीगढ़ में दिखाए Live Demo को हर राज्य की पुलिस को अपने यहां प्रचारित, प्रसारित करना चाहिए। जैसे शिकायत के 90 दिनों के भीतर पीड़ित को केस की प्रगति से संबंधित जानकारी देनी होगी। ये जानकारी SMS जैसी डिजिटल सेवाओं के जरिए सीधे उस तक पहुंचेगी। पुलिस के काम में बाधा डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ एक्शन लेने की व्यवस्था बनाई गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय संहिता में एक अलग चैप्टर रखा गया है। वर्क प्लेस पर महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, घर और समाज में उनके और बच्चों के अधिकार, भारतीय न्याय संहिता ये सुनिश्चित करती है कि कानून पीड़िता के साथ खड़ा हो। इसमें एक और अहम प्रावधान किया गया है। अब महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में पहली हियरिंग से 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने ही होंगे। सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर-भीतर फैसला भी सुनाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। ये भी तय किया गया है कि किसी केस में 2 बार से अधिक स्थगन, एडजर्नमेंट नहीं लिया जा सकेगा।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- सिटिज़न फ़र्स्ट! ये कानून नागरिक अधिकारों के protector बन रहे हैं, ‘ease of justice’ का आधार बन रहे हैं। पहले FIR करवाना भी कितना मुश्किल होता था। लेकिन अब ज़ीरो FIR को भी कानूनी रूप दे दिया गया है, अब उसे कहीं से भी केस दर्ज कराने की सहूलियत मिली है। FIR की कॉपी पीड़ित को दी जाए, उसे ये अधिकार दिया गया है। अब आरोपी के ऊपर कोई केस अगर हटाना भी है, तो तभी हटेगा जब पीड़ित की सहमति होगी। अब पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से हिरासत में नहीं ले सकेगी। उसके परिजनों को सूचित करना, ये भी न्याय संहिता में अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता का एक और पक्ष है...उसकी मानवीयता, उसकी संवेदनशीलता अब आरोपी को बिना सजा बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। अब 3 वर्ष से कम सजा वाले अपराध के मामले में गिरफ़्तारी भी हायर अथॉरिटी की सहमति से ही हो सकती है। छोटे अपराधों के लिए अनिवार्य जमानत का प्रावधान भी किया गया है। साधारण अपराधों में सजा की जगह Community Service का विकल्प भी रखा गया है। ये आरोपी को समाज हित में, सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के नए अवसर देगा। First Time Offenders के लिए भी न्याय संहिता बहुत संवेदनशील है। देश के लोगों को ये जानकर भी खुशी होगी कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया है...जो पुराने क़ानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं, एक नई व्यवस्था, नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तिकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है।

साथियों,

न्याय की पहली कसौटी है- समय से न्याय मिलना। हम सब बोलते और सुनते भी आए हैं- justice delayed, justice denied! इसीलिए, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने त्वरित न्याय की तरफ बड़ा कदम उठाया है। इसमें जल्दी चार्जशीट फाइल करने और जल्दी फैसला सुनाने को प्राथमिकता दी गई है। किसी भी केस में हर चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा तय की गई है। ये व्यवस्था देश में लागू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इसे परिपक्व होने के लिए अभी समय चाहिए। लेकिन, इतने कम अंतराल में ही जो बदलाव हमें दिख रहे हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो जानकारियां मिल रही हैं...वे वाकई बहुत संतोष देने वाली हैं, उत्साहजनक है। आप लोग तो यहां भली-भांति जानते हैं, हमारे इस चंडीगढ़ में ही वाहन चोरी, व्हीकल की चोरी करने के एक केस में FIR होने के बाद आरोपी को सिर्फ 2 महीने 11 दिन में अदालत से सजा सुना दी, उसको सजा मिल गई। क्षेत्र में अशांति फैलाने के एक और आरोपी को अदालत ने सिर्फ 20 दिन में पूरी सुनवाई के बाद सजा भी सुना दी। दिल्ली में भी एक केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 60 दिन का समय लगा...आरोपी को 20 साल की सजा सुनाई गई। बिहार के छपरा में भी एक मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे और आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई। ये फैसले दिखाते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की ताकत क्या है, उसका प्रभाव क्या है। ये बदलाव दिखाता है कि जब सामान्य नागरिकों के हितों के लिए समर्पित सरकार होती है, जब सरकार ईमानदारी से जनता की तकलीफ़ों को दूर करना चाहती है, तो बदलाव भी होता है, और परिणाम भी आते हैं। मैं चाहूंगा कि देश में इन फैसलों की ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो ताकि हर भारतीय को पता चले कि न्याय के लिए उसकी शक्ति कितनी बढ़ गई है। इससे अपराधियों को भी पता चलेगा कि अब तारीख पर तारीख के दिन लद गए हैं।

साथियों,

नियम या कानून तभी प्रभावी रहते हैं, जब समय के मुताबिक प्रासंगिक हों। आज दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है। अपराध और अपराधियों के तोर-तरीके बदल गए हैं। ऐसे में 19वीं शताब्दी में जड़ें जमाए कोई व्यवस्था कैसे व्यावहारिक हो सकती थी? इसीलिए, हमने इन क़ानूनों को भारतीय बनाने के साथ-साथ आधुनिक भी बनाया है। यहां अभी हमने देखा भी कि अब Digital Evidence को भी कैसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में रखा गया है। जांच के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ ना हो, इसके लिए पूरे प्रोसेस की वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया गया है। नए कानूनों को लागू करने के लिए ई-साक्ष्य, न्याय श्रुति, न्याय सेतु, e-Summon Portal जैसे उपयोगी साधन तैयार किए गए हैं। अब कोर्ट और पुलिस की तरफ से सीधे फोन पर, electronic mediums से सम्मन सर्व किए जा सकते हैं। विटनेस के स्टेटमेंट की audio-video recording भी की जा सकती है। डिजिटल एविडेंस भी अब कोर्ट में मान्य होंगे, वो न्याय का आधार बनेंगे। उदाहरण के तौर पर, चोरी के मामले में फिंगर प्रिंट का मिलान, बलात्कार के मामलों में DNA sample का मिलान, हत्या के केस में पीड़ित को लगी गोली और आरोपी के पास से जब्त की गई बंदूक के साइज़ का मैच....विडियो एविडेंस के साथ ये सब कानूनी आधार बनेंगे।

साथियों,

इससे अपराधी के पकड़े जाने तक अनावश्यक समय बर्बाद नहीं होगा। ये बदलाव देश की सुरक्षा के लिए भी उतने ही जरूरी थे। डिजिटल साक्ष्यों और टेक्नोलॉजी के इंटिग्रेशन से हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी ज्यादा मदद मिलेगी। अब नए क़ानूनों में आतंकवादी या आतंकी संगठन कानून की जटिलताओं का फायदा नहीं उठा सकेंगे।

साथियों,

नई न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता से हर विभाग की productivity बढ़ेगी और देश की प्रगति को गति मिलेगी। कानूनी अड़चनों के कारण जो भ्रष्टाचार को बल मिलता था, उस पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। ज़्यादातर विदेशी निवेशक पहले भारत में इसलिए निवेश नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कोई मुकदमा हुआ तो उसी में वर्षों निकल जाएंगे। जब ये डर खत्म होगा, तो निवेश बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साथियों,

देश का कानून नागरिकों के लिए होता है। इसलिए, कानूनी प्रक्रियाएँ भी पब्लिक की सुविधा के लिए होनी चाहिए। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में process ही punishment बन गया था। एक स्वस्थ समाज में कानून का संबल होना चाहिए। लेकिन, IPC में केवल कानून का डर ही एकमात्र तरीका था। वो भी, अपराधी से ज्यादा ईमानदार लोगों को, जो बेचारे विक्टिम हैं, उनको डर रहता था। यहाँ तक की, सड़क पर किसी का एक्सिडेंट हो जाए तो लोग मदद करने से घबराते थे। उन्हें लगता था कि उल्टा वो खुद पुलिस के पचड़े में फंस जाएंगे। लेकिन अब मदद करने वालों को इन परेशानियों से मुक्त कर दिया गया है। इसी तरह, हमने अंग्रेजी शासन के 1500 से ज्यादा कानून, पुराने कानूनों को भी खत्म किया। जब ये कानून खत्म हुये, तब लोगों को हैरानी हुई थी कि क्या देश में ऐसे-ऐसे कानून हम ढ़ो रहे थे, ऐसे-ऐसे कानून बने थे।

साथियों,

हमारे देश में कानून नागरिक सशक्तिकरण का माध्यम बनें, इसके लिए हम सबको अपना नज़रिया व्यापक बनाना चाहिए। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ कुछ क़ानूनों की तो खूब चर्चा हो जाती है। चर्चा होनी भी चाहिए लेकिन, कई अहम कानून हमारे विमर्श से वंचित रह जाते हैं। जैसे, आर्टिकल-370 हटा, इस पर खूब बात हुई। तीन तलाक पर कानून आया, उसकी खूब चर्चा हुई। इन दिनों वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े कानून पर बहस चल रही है। हमें चाहिए, हम इतना ही महत्व उन क़ानूनों को भी दें जो नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान बढ़ाने के लिए बने हैं। अब जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है। देश के दिव्यांग हमारे ही परिवारों के सदस्य हैं। लेकिन, पुराने क़ानूनों में दिव्यांगों को किस कैटेगरी में रखा गया था? दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिन्हें कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही सबसे पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया। उन्हें कमजोर फील कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिया। 2016 में हमने Rights of Persons with Disabilities Act लागू करवाया। ये केवल दिव्यांगों से जुड़ा कानून नहीं था। ये समाज को और ज्यादा संवेदनशील बनाने का अभियान भी था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी इतने बड़े बदलाव की नींव रखने जा रहा है। इसी तरह, ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानून, Mediation act, GST Act, ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जिन पर सकारात्मक चर्चा आवश्यक है।

साथियों,

किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं। और, देश का कानून नागरिकों की ताकत होता है। इसीलिए, जब भी कोई बात होती है, तो लोग गर्व से कहते हैं कि- I am a law abiding citizen. कानून के प्रति नागरिकों की ये निष्ठा राष्ट्र की बहुत बड़ी पूंजी होती है। ये पूंजी कम न हो, देशवासियों का विश्वास बिखरे ना...ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। इसलिए, मैं चाहता हूं कि हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी नए प्रावधानों को जाने, उनकी भावना को समझे। विशेष रूप से मैं देश की सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूँ, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता...प्रभावी ढंग से लागू हो, उनका जमीन पर असर दिखे, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को सक्रिय होकर काम करना होगा। और मेरा फिर कहना है...नागरिकों को अपने इन अधिकारों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी होनी चाहिए। हमें मिलकर इसके लिए प्रयास करना है। क्योंकि, ये जितना प्रभावी तरीके से लागू होंगे, हम देश को उतना ही बेहतर भविष्य दे पाएंगे। ये भविष्य आपके भी और आपके बच्चों का जीवन तय करने वाला है, आपके सर्विस satisfaction को तय करने वाला है। मुझे विश्वास है, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे। इसी के साथ, आप सभी को, सभी देशवासियों को एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूं, और चंडीगढ़ का ये शानदार माहौल, आपका प्यार, आपका उत्साह उसको सलाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!