महात्मा मंदिर, गांधीनगर

मंच पर विराजमान मंत्रे परिषद के मेरे साथी, राज्य के शिक्षा मंत्री श्रीमान भूपेन्द्र सिंह जी, प्रो. वसुबेन, इस कार्यक्रम को विशेषरूप से सहयोग दे रहे हैं ऐसे इटली के एम्बैसेडर हिज़ एक्सेलेन्सि डेनियल मानुसिनि, प्रो. दिनेश सिंह जी, प्रो. राजन वेलुकर जी, प्रो. चार्ल्सो जुकोस्‍की, प्रो. लता रामचन्द्र, डॉ. किशोर सिंह जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी विद्वज जनों और विद्यार्थी मित्रों, मैं गुजरात की धरती पर आप सभी का बहुत-बहुत स्वातगत करता हूं..!

जिस स्थान पर हमारा ये कार्यक्रम चल रहा है, इस महात्मा मंदिर का निर्माण उस दौरान हुआ था, जब 2010 में हम गुजरात का गोल्डन जुबली ईयर मना रहे थे। उस समय हमने सोचा था कि ये गांधीनगर है तो गांधीजी की याद में भी यहां कुछ व्यवस्थाएं विकसित होनी चाहिए। आपको जानकर आनंद और आश्चर्य होगा कि हमारे देश में भी ऐसा निर्माण 182 दिनों में हो सकता है..! हमने इस महात्मा मंदिर का प्रमुख हिस्सा 2010 में कुल 182 दिनों में तैयार करके, 2011 में वाईब्रेंट समिट यहां आयोजित की थी। कहने का तात्प‍र्य यह है कि हमारे देश के पास अपार क्षमताएं हैं, विपुल संभावनाएं हैं और ढ़ेर सारी आकांक्षाएं हैं, आवश्यमकता है कि उसे समझें, उसे जोड़ें और देशवासी इसके लिए जुट जाएं, तो सब कुछ संभव होगा..!

हम लगातार विचार-विमर्श का प्रयास कर रहे हैं और हमारा एक कन्वींक्शन है कि देश के भिन्ने-भिन्न भागों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, देश के विद्वजनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, दुनिया से भी बहुत कुछ सीखकर हमारे देश के काम लाया जा सकता है। यह अवसर हम सभी गुजरात वालों के लिए सीखने का अवसर है, जानने का अवसर है, समझने का अवसर है और आप सभी हमें ज्ञान देने के लिए, शिक्षा देने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में आएं हैं, इसलिए मैं विशेष रूप से आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं..!

एक प्रकार से भारत का युवा मन, भारत की शिक्षा का स्वरूप, एक लघु रूप में आज इस महात्मा मंदिर में इक्ट्ठा हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में संघ शासित प्रदेश और राज्य‍ मिलाकर कुल 33 राज्यों से लोग आएं हैं और इस समारोह में शरीक हुए हैं। हिंदुस्तान के 100 से अधिक वाइस चांसलर और डायरेक्टर इस समारोह में मौजूद हैं। इस समिति में 84 ऐसे स्कॉ‍लर और इनोवेटर आएं है जिनकी विश्व में गणना होती है, उन सभी ने यहां आकर कॉन्फ्रेंस के भिन्न-भिन्न हिस्सों को सम्बोधित किया है। 1500 से अधिक प्रोफेसर और टीचर्स इसमें शरीक हुए हैं। गुजरात के 1500 और गुजरात के बाहर से 3000 से ज्यादा विद्यार्थी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा, इस समिट में तकरीबन 40 देशों के 200 से अधिक छात्र भी मौजूद हैं। शिक्षा को लेकर किए गए इस प्रयास मे लोगों की उपस्थिति को देखा जाए तो भी, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह प्रयास कितना महत्वपूर्ण है। मैं इस प्रयास में सहयोग देने वाले, इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों को, यूर्नीवर्सिटी के सभी साथियों और देश के अन्य कोनों से मदद करने वाले सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

भाईयों-बहनों, हम सभी लम्बे अरसे से एक बात सुनते आ रहे हैं और बोलते भी आ रहे हैं -“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा... कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...” आखिर वो कौन सी बात है, कभी तो सोचें, क्या कारण है कि हजारों साल पुरानी परम्परा, हजारों साल पुराना ये समाज आज तक है, ये हस्ती मिटी क्यों नहीं..! हमले कम नहीं हुए है, संकट कम नहीं आए, दुविधाएं भी आई, प्रलोभन भी था, सब कुछ हुआ, लेकिन इसके बावजूद भी हस्ती मिटती नहीं हमारी, इसका कारण क्या है..? मित्रों, इस बात के कई कारण कई लोग बता सकते हैं और वह हो भी सकते हैं, लेकिन मैं जो कारण देख रहा हूं, वह यह है कि हमारे पूर्वजों ने जो इंवेस्टमेंट किया था, वह ह्यूमन वेल्थ के लिए किया था, उन्होने मानव समाज के निर्माण के लिए शक्ति जुटाई थी, हर युग में, हर समाज में, हर नेतृत्व में, निरंतर विकास किया था, व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया गया था और व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा-दीक्षा, गुरू-शिष्य, संस्कार-संक्रमण जैसी उत्तम परम्पाराओं को विकसित किया था, जिसके कारण एक ऐसे समाज की रचना हुई, जो ज्ञान पर आधारित था, उसके सारे पैरामीटर डायनामिक थे, वे बदलाव को स्वीकार करने वाली व्यवस्था वाले थे, युगानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने वाला समाज बनाया, ये ज्ञान की परम्प्रावाली हमारी जो विरासत है, इन्ही के भरोसे हम कह सकते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी..! और इसलिए अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई और चालाकी से इसी पर वार करने की कोशिश की थी। लॉर्ड मैकॉले ने उस काल में शिक्षा व्यावस्थाओं और पम्पराओं पर हमला बोला था, बाकी किसी ने हमें हिलाया-डुलाया और ड़राया नहीं, लेकिन ये एक ऐसा इंजेक्शन हो गया, जिसने हमारी भीतर की शक्ति को झकझोर डाला..!

समय की मांग थी कि देश की आजादी के बाद विश्व को क्या चाहिए, आने वाला कल कैसा होगा, समाज कैसा होना चाहिए, क्याक ये देश विश्व को कुछ देने का सामर्थ्ये रखता है या नहीं, क्या इस देश को विश्व को कुछ देने का मन बनाना चाहिए या नहीं, क्या‍ ऐसे बड़े सपने सजोने चाहिए या नहीं, अगर इन सभी मूलभूत बातों को उठाया होता और उसी को लेकर हम आगे चले होते, और हमारी पुरानी विरासत की अच्छा ईयों को आगे बढ़ाते हुए, उसमें आवश्यक आधुनिकताओं के बदलाव को स्वीकार करते हुए हम नवीन व्यवस्थाओं को विकसित करने का प्रयास करते, तो आज हम विश्व को कुछ दे पाने के योग्य बन जाते..! भाईयों-बहनों, अभी भी वक्त है, कुछ कठिनाईयां जरूर होगी लेकिन रास्ते अभी भी खोजे जा सकते है, मंजिलें अभी भी पार की जा सकती हैं और मानव जाति की कल्यांण के लिए नई ऊर्जा का स्त्रोत हमारी भारत मां की पवित्र भूमि बन सकती है, ऐसे सपने हमें संजोने चाहिए..!

आज कठिनाई क्या हुई है, कभी हम सोचें कि हमारा शिशु मंदिर का बालक, यूर्नीवर्सिटी में रिसर्च करने तक की यात्रा में क्याम कोई लिंक है..? हर जगह पर हमें बिखराव नजर आता है..! अगर पूरी विकास यात्रा इंटीग्रल नहीं है, अगर वो सर्किल के रूप में है, छोटा सर्कल, बड़ा सर्कल, उससे बड़ा सर्कल.... तो मेरी समझ के मुताबिक वह मनुष्यै के विकास से नहीं जुड़ेगा। अगर वह छोटे सर्कल में है तो वहीं रहेगा, बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, उससे बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, और उसी में घूमता रहेगा। अगर हम एक छोर से शुरू करें, और राउंड करते-करते उसी सर्कल को बढ़ाते चलें, व्यक्तित्व का विस्तार करते चलें, जो व्यूक्ति से लेकर समूह तक, समूह से समाज तक, समाज से समष्टि तक अगर उस यात्रा को आगे बढ़ाया जाएं तो उससे व्यक्तित्व का विकास होगा। हम वो लोग हैं, जो कहते हैं कि ‘नर करणी करे तो नारायण हो जाए’, हमारे यहां ऐसा नहीं माना जाता है कि ईश्वर पैदा होते हैं, हमारे यह माना जाता है कि हमारी सोच में इतना सामर्थ्य‍ है कि व्यक्ति के विकास को ईश्वर की ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है..!

हमें आवश्याकता है कि नई व्यवस्थाओं को विकसित किया जाए। हमने एक छोटा प्रयास किया, हम सभी जानते है कि हमारे देश में एक व्यंवस्था है जो अंग्रेजों के ज़माने से आई होगी, वो यह है कि जब भी हम स्कूल से पढ़कर निकलते हैं तो हमें एक कैरेक्टार सर्टिफिकेट दिया जाता है, और हम जहां भी जाते हैं वह कैरेक्टैर सर्टिफिकेट दिखाते रहते हैं। और देश के करोड़ों-करोड़ों नागरिकों के कैरेक्टर सर्टिफिकेट के शब्दे एक ही प्रकार के हैं, एक ही सॉफ्टवेयर से निकले हुए कैरेक्टोर सर्टिफिकेट हैं..! देने वाले को भी पता है क्यों दे रहा है और लेने वाले को भी पता है क्यों ले रहा है, फिर भी गाड़ी चल रही है, क्या किसी ने सवाल पूछा कि ये क्यों..? आखिर इसका क्या, उपयोग है..? और अगर सर्टिफिकेट मिल गया तो क्या मान लिया जाए कि वह व्यक्ति सही है..? मैनें अभी हमारी सरकार में एक सुझाव दिया है और उस पर काम चल रहा है कि क्यूं न हम बालक को एप्टीट्यूड सर्टिफिकेट दें..! जब वह स्कूल में पढ़ता है तो कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो उसका लगातार आर्ब्जूवेशन करता रहे, इसके लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए, बारी-बारी से उनसे संवाद करके पता किया जाए, उनकी दिनचर्या को देखा जाए, उनकी फैमिली को देखा जाए, तो इससे उसके बारे में पता चला चलेगा, जैसे-कि यह बच्चा बड़ा साहसी है, ये इसका एप्टीट्यूड है, और उसे उसी क्षेत्र में प्रेरित किया जाए, जैसे कि सेना के जवानों से मिलवाया जाए, कभी आर्मी कैन्टान्मेंट में ले जाया जाए, ऐसे बच्चों का टूर प्रोग्राम भी वहीं रखा जाएं तो इससे उसे लगेगा कि हां यार, जिन्दगी ऐसे बनानी चाहिए..! स्कूल के दस बच्चें हैं जिनके हाथ में कोई भी चीज आई तो वह चीजों को तोड़-फोड़ कर देखते हैं कि इसके अंदर क्या है, मतलब उसका एप्टीट्यूड रिसर्च करने वाला है, वह जानना-समझना चाहता है, तो ऐसे बच्चों को इक्ट्ठा करके उनका प्रोग्राम किसी अच्छी मैनुफैक्चरिंग कम्पनी जहां ऐसे रिसर्च होते हों, वहां ले जाओं तो वह बड़ा मन से देखेगें..! लेकिन हमारे यहां टूर प्रोग्राम होता है तो एक साथ सब उदयपुर देखने जाएंगे, सब ताजमहल देखने जाएंगे..! कहने का तात्प्र्य यह है कि हम माइंड एप्लाई ही नहीं करते, चलती है गाड़ी तो चलने दो..! क्या इसके लिए भी पार्लियामेंट में कानून बनाना पड़ेगा, कोई संशोधन करना पड़ेगा..? ऐसा नहीं है, मित्रों। हमने सिलेबस को बल दिया है, आवश्याकता है कि हम एक-एक बच्चेको सेलिब्रिटी मानें और उसके जीवन पर बल दें तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

मित्रों, समाज और इन व्यवस्था ओं का डिस्कंनेक्टक कैसा हुआ है..! शायद चार-छ: महीने पहले की बात होगी, मैं रात को देर से आया तो सोचा कि दिन भर की क्या खबरें होगी इसलिए टीवी ऑन किया, एक टीवी चैनल पर विवाद चल रहा था - किसी स्कूल में बच्चे सफाई का काम कर रहे थे, झाडू-पोछा कर रहे थे, अपना स्कूल साफ कर रहे थे, और विवाद इस बात पर था कि बच्चों से ऐसा काम क्यों लिया जाता है..? मैं हैरान था, हमारे देश में तो गांधी जी भी कहते थे कि श्रम हमारी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए, उससे सारी चीजें करवानी चाहिए, तभी एक बालक तैयार होगा और हमारे देश का वर्तमान मीडिया इस बात पर बहस कर रहा था..! श्रम कार्य, हमारे देश में शिक्षा का हिस्सा था, लेकिन आज माना जाता है कि ये शिक्षा के व्यापारी लोग बच्चों का शोषण करते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं... परन्तु यदि हमें व्याक्तित्व का विकास करना हो, तो समाज को भी प्रशिक्षित करना पड़ेगा कि इसका क्या‍ महत्व है, क्या जरूरत है..! मैं इसे नहीं मानता हूं। जैसे हमारी पूरी सृष्टि की जो रचना है, तो हमारी मैथोलॉजी में जो कॉन्सेप्ट है, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात है, जिस प्रकार सृष्टि में तीनों का होना जरूरी है उसी प्रकार, शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, के विकास में सिर्फ हेड से काम नहीं चलेगा, सिर्फ दिमाग में सब भरा जाएगा तो वह रोबोट की तरह कहीं उगलता रहेगा और उससे आगे दुनिया नहीं चलेगी, इसलिए सिर्फ हेड नहीं बल्कि हेड, हार्ट और हैंड, तीनों का मेल होना जरूरी है जैसे पूरी सृष्टि के लिए ब्रह्मा, विष्णु , महेश जरूरी है..! व्यक्ति की ऊर्मियां, उसकी भावनाएं, उसके भीतर पड़ी हुई ललक, उसके हृदय का स्पंदन, ये सब उसके व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसका हेड जितना सामर्थ्य्वान होगा, जितना फर्टाइल होगा, जितना इनोवेटिव होगा, जितना क्रिएटिव होगा, वह एक ताकत के रूप में उभरेगा, लेकिन अगर उसके हैंड बेकार है, उनमें कौशल नहीं है, अगर वह किसी के काम नहीं आते हैं, किसी के काम में जुड़ते नहीं है, तो उस व्यक्ति और एक अच्छी किताब के बीच कोई फर्क नहीं है..! हमें इंसान किताब के रूप में नहीं बल्कि जीती-जागती व्यवस्था के रूप में चाहिए, जो व्यवस्था!ओं को विकसित करने का हिस्सा बनना चाहिये। इसलिए, हमें हमारी शिक्षा को उस तराजु पर तौलने की आवश्यकता है कि वह मनुष्य के इस रूप को बनाने में सक्षम है या नहीं..!

प्राइमरी स्कूल में जो बच्चे होते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं, कुछ सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते हैं, कुछ हॉयर सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते है, कुछ कॉलेज में जाते हैं, और कॉलेज में भी कुछ इसलिए जाते हैं कि जाएं तो जाएं कहां...। इसके बाद, वो कहीं नौकरी के लिए जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है, डिग्री है, वो सब ठीक है, लेकिन क्या तुम्हे ये आता है..? तो छात्र बोलता है कि नहीं, हमें कॉलेज में ये तो नहीं सिखाया गया। फिर उस छात्र को लगता है कि मैनें अपनी जिन्देगी क्यों खराब की, चार साल कॉलेज में क्यों गया..? हमारी शिक्षा व्यवस्था से उस प्रकार का जीवन तैयार हों, उस प्रकार की शख्सियत तैयार हों, उस प्रकार की शक्ति तैयार हों, जिसे समाज खोजता हो..! लोग ऐसा कहें कि अरे मेरे यहां आओ, मुझे जरूरत है, तुम काम करो, तुम्हारे पास ताकत है, हम मिलकर कुछ करेगें... ये स्थिति हमें पैदा करनी चाहिए। और हमारी कोशिश यह है कि व्यक्तित्व को उस दिशा में ले जाना चाहिए..!

उसी प्रकार से, हमारे देश में व्हाइट कॉलर जॉब ने हमारा बहुत नुकसान किया है, लोगों की सोच बन गई है कि छोटा-मोटा काम करना बुरा है, हालांकि अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है, यूथ को लगने लगा है कि वह कुछ नया करें, अलग करें, अच्छा करें। हम समाज का ये स्वभाव कैसे बनाएं, कि ऑफिस में फाइलों में साइन करने के बजाय, या बैंकों में चेकबुक पर काम करने के बजाय भी तो दुनिया में कोई काम हो सकता है..! एक बार मैं एक एग्रीकल्चर के कार्यक्रम में गया था, हमारे कृषि विभाग का एक कार्यक्रम था, जिसमें किसानों को अवॉर्ड देना था। मैनें जाने से पहले सोचा कि सब वयोवृद्ध, तपोवृद्ध लोग होगें। उस दिन मुझे लगभग 35 कृषिकारों को अवॉर्ड देना था, और उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उसमें से कम से कम 27-28 किसान, 35 से कम आयु वाले जींस-पैंट पहने हुए किसान थे, मन को बहुत आनंद हुआ कि नई पीढ़ी में भी बदलाव आया है..! कुछ दिनों पहले, मुझसे विदेश से एक-दो लड़के मिलने आए थे, वो बोले कि वह कुछ करना चाहते हैं। मैनें कहा कि क्या सोचा है..? वो बोले कि वह तबेला खोलेंगे, गाय-भैंस रखेगें, उनका लालन-पालन करेगें और दुध का मार्केट कैप्चर करूंगा। मैनें कहा गुजरात में क्या करोगे, यहां अमूल है, जो दिनेश सिंह की रगों तक पहुंच गया है..! उसने कहा कि मैं करूंगा और करके दिखाउंगा..! मित्रों, ये जो मन की रचना तैयार होती है वह सिर्फ किताबों से नहीं होती है, हमें वो एन्वॉयरमेंट तैयार करना पड़ेगा। क्या हमने वो माहौल तैयार किया है..? हमारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में, हमारे कॉलेज में, जहां सभी आपस में ये बातें करते हैं कि किसने कितनी सेंचुरी मारी, किसने कितने रन बनाएं और उसी में सारा समय जाता है। कौन सा फिल्मं शो चल रहा है, अगले फ्राइडे कौन सी मूवी आएगी, किसने ज्यादा कमाई की, नई फैशन में क्या आया है... छात्र इसी बारे में बातें करते हैं और उनका सारा समय इसी में जाता है..! क्या कैम्पस में दुनिया कहां जा रही है, जगत में किस प्रकार की आधुनिक, आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तकनीकी आ रही है और उनका क्या प्रभाव है, क्या ऐसी सहज बातों का माहौल बनता है..? लेकिन एक-आध प्रोफेसर ऐसा होता है जो माहौल बदल देता है, जिसके कारण बदलाव आता है। कहा जाता है कि एक समय में वाराणसी का माहौल ऐसा था, कि लोग आते-जाते शास्त्र में बात करते थे, जीवन की समस्याओं की चर्चा भी शास्त्रों को वर्णित करके करते थे, शास्त्र बहुत सहज रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गया था, इसी कारण सदियों बाद भी वाराणसी उसकी पंडिताई के लिए जाना जाता है और उस समय ये सब कुछ इंफॉर्मल था। क्यों न हम ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित करने की दिशा में एक एन्वॉयरमेंट डेपलप करें..!

सारी दुनिया जानती है कि 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंर्फोमेशन टेक्नो्लॉजी आई और रेवोल्यूशन हुआ, उसने जीवन पर बहुत बड़ा इम्पे्क्टा डाल दिया। 21 वीं सदी में ईटी यानि एन्वॉहयरमेंट टेक्नोलॉजी का प्रभाव रहने वाला है। क्या अभी से हमने अपने आपको ईटी के लिए तैयार किया है..? क्या हमारे इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स, हमारा मैनुफैक्चकरिंग सेक्टर, हमारे रिसर्चर ईटी के लिए तैयार हैं..? सारी दुनिया में एन्वॉयरमेंट टेक्नोहलॉजी एक पैरामीटर बन रहा है। क्या हमारे पास ऐसा बुद्धिधन है, जो एन्वॉयरमेंट टेक्नोलॉजी में पूरे विश्व को लीड़ कर सकें, उसे नए रास्ते दिखाएं..? अगर आईटी के माध्यम से हम जगत में अपनी जगह बना पाए हैं, तो इंजीनियरिंग स्किल के माध्यम से 21 वीं सदी में ईटी के क्षेत्र में भी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं, दुनिया की आवश्य्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं..!

आईटीआई, टेक्नोलॉजी फील्ड़ में स्किल डेवलपमेंट में शिक्षा के स्तर पर सबसे छोटी ईकाई होती है। हमने अपने राज्य में आईटीआई में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। हमारे राजेन्द्र् जी इंटरडिसीप्लेन के विषय के बारे में अभी कह रहे थे, कुछ चीज़ें कैसे बदलाव लाती हैं, और हमने इसमें प्रतिष्ठा देने के विषय में एक छोटा सा प्रयोग किया है। जो बच्चे 7 वीं कक्षा, 8 वी कक्षा में होते हैं और आगे पढ़ नहीं पाते हैं, उनका मन नहीं लगता है या संजोग नहीं हो पाता, और वह रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ काम सीखते हैं जैसे प्लैम्बर, टर्नर, फिटर, वायरमैन, आदि, और कोई सलाह देता है तो आईटीआई में चले जाते हैं कि इनमें से कुछ बन जाएंगे। वहां जाने के बाद, उसके अंदर मैच्योरिटी आती है, उसे लगता है कि स्कूल छूट गया तो अपना जीवन बर्बाद कर दिया, अब उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन व्यवस्था ऐसा होती है कि दरवाजे बंद हो जाते हैं। उसे मन में इच्छा जग जाती है लेकिन हम उसकी इच्छा के अनुसार कोई व्यवस्थां विकसित नहीं करते हैं। इसी को लेकर हमने एक छोटा सा प्रयास किया, कि जिस बच्चेने 7 वीं, 8 वीं, और 9 वीं से कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है और मान लीजिए कि वह दो साल आईटीआई करता है, तो हम उसे 10 वीं पास मानते हैं और उसे सर्टिफिकेट दे देते हैं..! पहले वो छात्र आईटीआई कहने से शर्माता था, कोई पूछता था कि क्याऔ पढ़ते हो, तो वह दूसरे विषय पर ही बात करने लगता था, उसे शर्म आती थी, लेकिन इस बदलाव को करने के बाद, छात्र में कॉन्फीडेंस बढ़ा, वो कहने लगा कि नहीं 10 वीं पास हूं। जो छात्र 10 वीं के बाद आईटीआई में जाता है और दो साल आईटीआई करता है उसे हमने 12 वीं पास के बराबर दर्जा दे दिया, वो कहने लगा कि हां मैने, 12 वीं पास किया है। 12 वीं के बराबर होने के नाते, उसके लिए डिप्लोमा इंजीनियरिंग के दरवाजे हमने खोल दिए, यूं तो उसके स्कूल 8 वीं में ही छोड़ दिया था, लेकिन इस आईटीआई और उसके एप्टीट्यूट के कारण उसे अवसर मिल गया और वह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में चला गया। और उसकी इन विषयों में रूचि होने के कारण, 8 वीं में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इंजीनियरिंग की ओर चला गया, डिग्री की ओर चला गया..! मित्रों, हमें दरवाजे खोलने होगें..! 8वीं, 9वीं, 10 वीं के कारणों से जिन छात्रों का जीवन रूक गया है, उसको रूकने नहीं देना होगा। हमें ऐसे छात्रों के लिए दरवाजे खोलने होगें, उन्हे अवसर देना होगा..! इसके लिए यहां हमारे शिक्षाशास्त्री बैठे हैं, हम इस बदलाव को कैसे एडॉप्ट कर सकते हैं, और उसे एडॉप्टए करने के बाद, उसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं..? क्यों न हम बच्चों को उनके एप्टीट्यूड के हिसाब से काम दें..! मैने गुजरात सरकार में एक प्रयोग किया है, वैसे सरकारी व्यवस्थां में इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, जो मेरे अंदर ज्या्दा ही है..! सरकार में पद्धति ऐसी होती है कि हर अफसर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक निर्धारित दायरे में अपना-अपना काम करता है और उसी दायरे में सोचता है, धीरे-धीरे वह रोबोट जैसा हो जाता है, उसे मालूम होता है कि दिन में 6 फाइल आने वाली हैं और उसे ऐसा-ऐसा करना है..! इसको लेकर हमने छोटा सा प्रयोग किया, हमने अफसरों के लिए ‘स्वान्त: सुखाय्’ नाम का एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें सरकारी कामकाज के अलावा, उसके मन को आनंद देने वाले किसी एक काम को वो चुनें और करें। इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं कि हमारे सैं‍कड़ों सरकारी अधिकारियों ने उनकी निर्धारित नौकरी के अलावा, अपनी पसंद का एक काम लिया, उसमें जी-जान से जुट गए, और वह इतने इनोवेटिव होते हैं, इतने रिर्सोस मोबिलाइज़ करते हैं और साल-दो साल में उस काम को पूरा करते हैं। जब ट्रांसफर हो जाता है, तो ट्रांसफर होने के बाद भी अपने यार, दोस्तो और रिश्तेोदार आते हैं तो उनको साथ लेकर जाते हैं और बताते हैं कि मैं जब यहां कलेक्टबर था, तो ये काम किया था। इससे उसके जीवन को अत्यंत संतोष मिलता है, क्योंकि उसके एप्टीमट्यूट के अनुकूल उसे एक अवसर मिलता है, दिया जाता है..! अगर ऐसा परिवर्तन कट्टर सरकारी व्यवस्था में हो सकता है तो शिक्षा में आसानी से हो सकता है, ये मेरा मत है..!

इसलिए मित्रों, ये जो हमारा मंथन है, जो मोदी कह रहा है वो अल्टीमेट नहीं हो सकता है और न होना चाहिए, लेकिन इस ज्योत को जलाने की शुरूआत की जाए, इसे जलाया जाए, इसे स्पार्क किया जाए..! मिलें, बैठें और सपना देखें, 21 वीं सदी में विश्व को कुछ देने का सामर्थ्य देखें..! लोग कहते है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है, इसका मतलब क्यां है..? इसके बारे में कुछ तो डिफाइन करो, हिंदुस्तान की सदी कैसे है, क्यों है..? परन्तु यदि हम पुरातन काल में देखें कि जब-जब मानव जाति ज्ञान के युग में जी रही थी, हर बार हिंदुस्तान ने मानव जाति का नेतृत्व किया था। 21 वीं सदी भी नॉलेज की सदी है, ज्ञान की सदी है और अगर यह ज्ञान की सदी है, तो हम लोग इसमें काफी कुछ कॉन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं और हमें लीड करना चाहिए। हमारी दूसरी पॉजीटिव शक्ति यह है कि हम विश्व में सबसे युवा देश हैं। वी आर द यंगेस्ट नेशन..! हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। जिस देश के पास इतनी जवानी भरी हो, वो देश क्या नहीं कर सकता है..! डेमोग्रफिक डिवीडेंट हमारी सबसे बड़ी ताकत है..! हमारे देश के नौजवान आईटी के माध्यम से दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत रखते हैं..! ये जो हमारी डेमोग्राफिक स्ट्रेंथ है, डेमोग्रफिक डिवीडेंट है, अगर ऐसे नौजवानों को हुनर मिले, कौशल मिले, सामर्थ्य मिले, अवसर मिले, तो वह नौजवान पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा सकता है..! हमारा तीसरा सशक्त पहलू यह है कि हम एक वाईब्रेंट डेमोक्रेटिक देश हैं। ये लोकतंत्र हमारे देश की बहुत बड़ी अमानत है..! विश्व भर में चल रही स्पर्धा में हमारे पास ये चीज ऐसी है जिसके कारण हम पहले से एक कदम आगे होने की ताकत रखते हैं। अगर इन सपनों को लेकर, हम आगे की नई पीढ़ी को तैयार करने के लिए इस पर ध्यान दें कि कॉलेज की सोच कैसे बदलें, यूनिवर्सिटी की सोच कैसे बदलें, हमारी शिक्षा व्यवस्था की सोच कैसे बदलें, तो बेहतर होगा..! हमें सिर्फ नौकरशाहों को पैदा करने के लिए इतना बड़ा शिक्षा का क्षेत्र चलाने की क्या जरूरत है..? हमें तो समाज के निर्माताओं को तैयार करना है, युग निर्माताओं को तैयार करना है, आने वाली पीढि़यों को तैयार करने का काम करना है, और इस बदलाव को लेकर हम अपनी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सोचें..!

मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाला मंथन और पिछले 7 दिनों से इस संदर्भ में चल रहे प्रयासों से हमें कुछ न कुछ अमृत मिलेगा..! ये कोई टोकन काम नहीं है, हम लगातार इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। पहले यूनीवर्सिटी के स्तृर पर काम किया, पिछले वाइब्रेंट समिति में पूरे विश्व से 45 यूनीवर्सिटी को बुलाकर एक वर्कशॉप किया। उसके बाद, लॉर्ड भीखु पारेख जैसे लोगों को बुलाकर एक इनहाउस मंथन का काम किया और आज इस स्तर पर कार्य कर रहे हैं। यानी कि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, ये अचानक से काम शुरु नहीं किया है। इसके बाद भी हम और आगे जाएंगे, आगे सोचेंगे और कदम उठाएंगे। हमारी कोशिश है कि हम गुजरात में कुछ करना है। गुजरात कुछ सीखना चाहता है, देश के बुद्धिजीवियों को हमने कुछ सीखने के लिए बुलाया है। हम शिक्षाशास्त्री नहीं है, इसलिए अपने मन के विचारों को आप सभी के सामने रखने और आपसे सीखने के लिए बुलाया है। इससे कहीं तो कुछ शुरू होगा और कहीं भी कुछ भी शुरू होने पर परिवर्तन आ सकता है, और उसी के प्रयास के हिस्से के रूप में हम आएं हैं..!

हमें सेंटर फॉर एक्सीलेंसी की ओर बल देना होगा। मैने देखा है कभी-कभी गांव का एक किसान एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी के सांइटिस्ट से ज्यादा बढि़या काम करता है। गांव में खेती करने वाला किसान, लेबोरेट्री में काम करने वाले सांइटिस्ट‍ से अगर दो कदम आगे है तो दोनों को साथ में जोड़ने की जरूरत है..! एक वेटेनेरी डॉक्टर से ज्यादा, पशुओं का पालन करने वाली अनपढ महिला जानती होगी कि पशुओं की केयर कैसे करनी चाहिए, उसकी देखभाल कैसे की जाएं की वह ज्यादा दूध दे, वो ज्यादा जिन्देगी कैसे जिएं, तो इसमें भी दोनों को जोड़ने की जरूरत है..! अगर हम इन चीजों पर बल देगें तो बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक बार फिर से यहां आने वाले सभी लोगों का स्वागत करता हूं..! लता जी तो गला खराब होने के कारण बोल नहीं पा रही है, उसके बाद भी इस कार्यक्रम में शरीक हुई, मैं उनका विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी का स्वागत करते हुए, बहुत-बहुत धन्यउवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

Explore More
প্রত্যেক ভারতীয়ের রক্ত ফুটেছে: মন কি বাত অনুষ্ঠানে প্রধানমন্ত্রী মোদী

জনপ্রিয় ভাষণ

প্রত্যেক ভারতীয়ের রক্ত ফুটেছে: মন কি বাত অনুষ্ঠানে প্রধানমন্ত্রী মোদী
Building AI for Bharat

Media Coverage

Building AI for Bharat
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
রোজগার মেলার আওতায় ৫১,০০০-এরও বেশি নিয়োগপত্র বিতরণ অনুষ্ঠানে প্রধানমন্ত্রীর ভাষণের মূল অংশ
July 12, 2025
Today, more than 51 thousand youths have been given appointment letters, Through such employment fairs, millions of young people have already secured permanent jobs in the Government , Now these young people are playing a significant role in nation-building: PM
The world acknowledges today that India possesses two infinite powers, One is demography, the other is democracy, In other words, the largest youth population and the largest democracy: PM
The ecosystem of startups, innovation, and research being built in the country today is enhancing the capabilities of the nation's youth: PM
The Government's focus is also on creating new employment opportunities in the private sector with the recently approved new scheme,the Employment Linked Incentive Scheme: PM
Today, one of India's greatest strengths is our manufacturing sector, A large number of new jobs are being created in manufacturing: PM
To boost the manufacturing sector, the Mission Manufacturing has been announced in this year's budget: PM
A report from the International Labour Organization - ILO states that over the past decade, more than 90 crore citizens of India have been brought under the ambit of welfare schemes: PM
Today, major global institutions like the World Bank are praising India, India is being ranked among the top countries with the highest equality in the world: PM

নমস্কার!

কেন্দ্রীয় সরকারে যুবকদের স্থায়ী চাকরি প্রদানের জন্য আমাদের অভিযান অব্যাহত রয়েছে। আর এটাই আমাদের পরিচয়, কোনওরকম সুপারিশ কিংবা উৎকোচ ছাড়াই কর্মসংস্থান । আজ ৫১ হাজারেরও বেশি যুবক-যুবতীকে নিয়োগপত্র দেওয়া হয়েছে। এখন পর্যন্ত, লক্ষ লক্ষ যুবক এই ধরনের কর্মসংস্থান মেলার মাধ্যমে ভারত সরকারে স্থায়ী চাকরি পেয়েছে। এখন এই তরুণরা জাতি গঠনে বড় ভূমিকা পালন করছে। আজও, আপনাদের অনেকেই ভারতীয় রেলে দায়িত্ব পালন শুরু করছেন, অনেক সহকর্মী এখন দেশের নিরাপত্তার রক্ষী হয়ে উঠবেন, ডাক বিভাগে নিযুক্ত সহকর্মীরা প্রতিটি গ্রামে সরকারি সুযোগ-সুবিধা পৌঁছে দেবেন, কিছু সহকর্মী সকলের জন্য স্বাস্থ্য মিশনের সৈনিক হবেন, অনেক যুবক আর্থিক অন্তর্ভুক্তির ইঞ্জিনকে ত্বরান্বিত করবেন এবং অনেক সহকর্মী ভারতের শিল্প উন্নয়নে নতুন গতি সঞ্চার করবেন। আপনাদের বিভাগগুলো আলাদা, কিন্তু লক্ষ্য একটাই এবং সেই লক্ষ্যটা কী, আমাদের বারবার মনে রাখতে হবে, লক্ষ্য একটাই, বিভাগ যাই হোক না কেন, কাজ যাই হোক না কেন, পদ যাই হোক না কেন, ক্ষেত্র যাই হোক না কেন, লক্ষ্য একটাই – জাতির সেবা। নীতি এক – নাগরিক প্রথম, নাগরিক প্রথম। দেশের মানুষের সেবা করার জন্য আপনার কাছে একটি বিশাল প্ল্যাটফর্ম রয়েছে। আপনাদের জীবনের এই গুরুত্বপূর্ণ পর্যায়ে এত বড় সাফল্য অর্জনের জন্য আমি আপনাদের, সকল তরুণদের অভিনন্দন জানাই। আপনাদের এই নতুন যাত্রার জন্য আমি আপনাদের সকলকে শুভকামনা জানাই।

বন্ধুগণ,

আজ বিশ্ব স্বীকার করে যে ভারতের দুটি সীমাহীন শক্তি রয়েছে। একটি হলো ডেমোগ্রাফি, অন্যটি হলো গণতন্ত্র। অর্থাৎ, বৃহত্তম যুব জনসংখ্যা এবং বৃহত্তম গণতন্ত্র। যুবসমাজের এই শক্তি আমাদের সবচেয়ে বড় পুঁজি এবং ভারতের উজ্জ্বল ভবিষ্যতের সবচেয়ে বড় গ্যারান্টি। আর আমাদের সরকার এই মূলধনকে সমৃদ্ধির উৎস হিসেবে গড়ে তোলার জন্য দিনরাত কাজ করে যাচ্ছে। আপনারা সবাই জানেন, মাত্র একদিন আগে আমি পাঁচটি দেশ পরিদর্শন করে ফিরে এসেছি। ভারতের যুবশক্তির প্রতিধ্বনি প্রতিটি দেশেই শোনা গিয়েছিল। এই সময়ের মধ্যে যে চুক্তিগুলি হয়েছে তা দেশে এবং বিদেশে ভারতের যুবসমাজের জন্য উপকারী হবে। প্রতিরক্ষা, ওষুধ, ডিজিটাল প্রযুক্তি, জ্বালানি, বিরল মাটির খনিজ এবং এই জাতীয় অনেক ক্ষেত্র, এই ক্ষেত্রগুলিতে করা চুক্তিগুলি আগামী দিনে ভারতের জন্য অনেক উপকারী হবে, ভারতের উৎপাদন এবং পরিষেবা ক্ষেত্র একটি বড় অগ্রগতি লাভ করবে।

বন্ধুগণ,

,
সময়ের পরিবর্তনের পাশাপাশি, একবিংশ শতাব্দীতে চাকরির ধরণও পরিবর্তিত হচ্ছে, নতুন নতুন ক্ষেত্রও উদ্ভূত হচ্ছে। সেজন্যেই গত দশকে ভারত তার যুবসমাজকে এর জন্য প্রস্তুত করার দিকে মনোনিবেশ করেছে। এখন এর জন্য গুরুত্বপূর্ণ সিদ্ধান্ত নেওয়া হয়েছে, আধুনিক চাহিদার কথা মাথায় রেখে আধুনিক নীতিও তৈরি করা হয়েছে। আজ দেশে স্টার্ট-আপ, উদ্ভাবন এবং গবেষণার যে বাস্তুতন্ত্র তৈরি হচ্ছে, তা দেশের যুবসমাজের সক্ষমতা বৃদ্ধি করছে। আজ যখন আমি দেখি তরুণরা তাঁদের নিজস্ব স্টার্ট-আপ শুরু করতে চান, তখন আমার আত্মবিশ্বাসও বেড়ে যায়। আর এক্টু আগেই আমাদের ডঃ জিতেন্দ্র সিং জি স্টার্টআপগুলি সম্পর্কে কিছু পরিসংখ্যান বিস্তারিতভাবে আপনাদের সঙ্গে শেয়ার করেছেন। আমি আনন্দিত যে আমার দেশের যুবসমাজ দ্রুততা এবং শক্তির সাথে একটি বৃহৎ দৃষ্টিভঙ্গি নিয়ে এগিয়ে চলেছেন; তাঁরা নতুন কিছু করতে চান।

বন্ধুগণ,

ভারত সরকার বেসরকারি ক্ষেত্রে নতুন কর্মসংস্থানের সুযোগ তৈরির উপরও জোর দেয়। সম্প্রতি সরকার একটি নতুন প্রকল্প অনুমোদন করেছে, যার নাম কর্মসংস্থান-সংযুক্ত উৎসাহভাতা প্রকল্প। এই প্রকল্পের আওতায়, সরকার বেসরকারি ক্ষেত্রে প্রথমবারের মতো কর্মসংস্থান পাওয়া যুবকদের ১৫,০০০ টাকা দেবে। অর্থাৎ প্রথম চাকরির প্রথম বেতনে সরকার অবদান রাখবে। এর জন্য সরকার প্রায় ১ লক্ষ কোটি টাকার বাজেট করেছে। এই প্রকল্পটি প্রায় ৩.৫ কোটি নতুন কর্মসংস্থান তৈরিতে সাহায্য করবে।

বন্ধুগণ,

আজ, আমাদের উৎপাদন ক্ষেত্র ভারতের একটি প্রধান শক্তি। উৎপাদন ক্ষেত্রে বিপুল সংখ্যক নতুন কর্মসংস্থান তৈরি হচ্ছে। উৎপাদন ক্ষেত্রকে গতিশীল করার জন্য, এই বছরের বাজেটে ‘মিশন উৎপাদন’ ঘোষণা করা হয়েছে। বিগত বছরগুলিতে, আমরা ‘মেক ইন ইন্ডিয়া’ অভিযানকে আরও জোরদার করেছি। শুধুমাত্র পিএলআই প্রকল্পের মাধ্যমে দেশে ১১ লক্ষেরও বেশি কর্মসংস্থান তৈরি হয়েছে। গত কয়েক বছরে মোবাইল ফোন এবং ইলেকট্রনিক্স ক্ষেত্র অভূতপূর্বভাবে প্রসারিত হয়েছে। আজ, প্রায় ১১ লক্ষ কোটি টাকার ইলেকট্রনিক্স উৎপাদন হচ্ছে, ১১ লক্ষ কোটি টাকা। এটিও গত ১১ বছরে ৫ গুণেরও বেশি বেড়েছে। আগে দেশে ২-৪টি মোবাইল ফোন উৎপাদন ইউনিট ছিল, মাত্র ২-৪টি। এখন ভারতে মোবাইল ফোন উৎপাদনের সঙ্গে সম্পর্কিত প্রায় ৩০০টি ইউনিট রয়েছে। আর লক্ষ লক্ষ যুবক এতে কাজ করছে। একই রকম আরেকটি ক্ষেত্র আছে এবং অপারেশন সিন্দুরের পরে, এটি নিয়ে অনেক আলোচনা হচ্ছে, এটি অত্যন্ত গর্বের সঙ্গে আলোচনা হচ্ছে এবং তা হল - প্রতিরক্ষা উৎপাদন। প্রতিরক্ষা উৎপাদনেও ভারত নতুন রেকর্ড তৈরি করছে। আমাদের প্রতিরক্ষা উৎপাদন ১.২৫ লক্ষ কোটি টাকারও বেশি পৌঁছেছে। লোকোমোটিভ ক্ষেত্রে ভারত আরেকটি বড় মাইলফলক অর্জন করেছে। ভারত বিশ্বের বৃহত্তম লোকোমোটিভ প্রস্তুতকারক দেশ হয়ে উঠেছে, বিশ্বের সর্বোচ্চ। লোকোমোটিভ, রেল কোচ, মেট্রো কোচ, আজ ভারত বিশ্বের অনেক দেশে প্রচুর পরিমাণে এগুলি রপ্তানি করছে। আমাদের অটোমোবাইল ক্ষেত্রও অভূতপূর্ব প্রবৃদ্ধি অর্জন করছে।

গত ৫ বছরেই এই খাতে প্রায় ৪০ বিলিয়ন ডলারের এফডিআই বা প্রত্যক্ষ বিদেশি বিনিয়োগ এসেছে। তার মানে নতুন নতুন কোম্পানি তৈরি হয়েছে, নতুন কারখানা স্থাপিত হয়েছে, নতুন কর্মসংস্থান তৈরি হয়েছে এবং একই সঙ্গে যানবাহনের চাহিদাও অনেক বেড়েছে, ভারতে যানবাহনের রেকর্ড বিক্রি হয়েছে। বিভিন্ন ক্ষেত্রে দেশের এই অগ্রগতি, এই উৎপাদন রেকর্ডগুলি কেবল এভাবেই তৈরি হয়, এই সব তখনই সম্ভব যখন আরও বেশি সংখ্যক যুবক-যুবতি চাকরি পাচ্ছেন। তরুণরা ঘাম ঝরিয়েছেন, তাঁদের মস্তিষ্ক কাজ করছেন, তাঁরা কঠোর পরিশ্রম করেন, দেশের তরুণরা কর্মসংস্থান পেয়েছেন এবং এই আশ্চর্যজনক কৃতিত্বও দেখিয়েছেন। এখন, একজন সরকারি কর্মচারী হিসেবে, দেশের উৎপাদন ক্ষেত্রের এই গতি যাতে অব্যাহত থাকে তা নিশ্চিত করার জন্য আপনাকে যথাসাধ্য চেষ্টা করতে হবে। যেখানেই দায়িত্ব পান, আপনাদের অনুপ্রেরণা হিসেবে কাজ করা উচিত, মানুষকে উৎসাহিত করা উচিত, বাধা দূর করা উচিত। আপনি নিজের কাজে যত বেশি সরলতা আনবেন, দেশের অন্যান্য মানুষও তত বেশি সুযোগ-সুবিধা পাবে।

বন্ধুগণ,

আজ আমাদের দেশ, এবং যে কোনও ভারতীয় অত্যন্ত গর্বের সাথে বলতে পারেন, বিশ্বের তৃতীয় বৃহত্তম অর্থনীতিতে পরিণত হওয়ার দিকে দ্রুত এগিয়ে চলেছে। এটা আমার যৌবনের ঘামের অলৌকিক ঘটনা। গত ১১ বছরে দেশ প্রতিটি ক্ষেত্রেই অগ্রগতি করেছে। সম্প্রতি আন্তর্জাতিক শ্রম সংস্থা (আইএলও) থেকে একটি খুব ভালো প্রতিবেদন বেরিয়ে এসেছে - এটি একটি চমৎকার প্রতিবেদন। এই প্রতিবেদনে বলা হয়েছে যে গত দশকে ভারতের ৯০ কোটিরও বেশি নাগরিককে কল্যাণমূলক প্রকল্পের আওতায় আনা হয়েছে। এক অর্থে, সামাজিক নিরাপত্তার পরিধি গণনা করা হয়। এবং এই প্রকল্পগুলির সুবিধাগুলি কেবল কল্যাণের মধ্যে সীমাবদ্ধ নয়। এর ফলে বিপুল সংখ্যক নতুন কর্মসংস্থানও তৈরি হয়েছে। উদাহরণস্বরূপ, আমি আপনাদের একটি ছোট উদাহরণ দেই – আমাদের প্রধানমন্ত্রী আবাসন প্রকল্প রয়েছে। এখন, প্রধানমন্ত্রী আবাস যোজনার আওতায় ৪ কোটি নতুন বাড়ি তৈরি করা হয়েছে এবং ৩ কোটি নতুন বাড়ি তৈরির প্রক্রিয়া চলছে। এত বাড়ি তৈরি হচ্ছে, রাজমিস্ত্রি, শ্রমিক এবং কাঁচামাল থেকে শুরু করে পরিবহন ক্ষেত্রের ছোট দোকানদার, পণ্য পরিবহনকারী ট্রাক চালকদের কাজ, আপনি কল্পনা করতে পারেন কত কর্মসংস্থান তৈরি হয়েছে। এর মধ্যে সবচেয়ে আনন্দের বিষয় হল, আমাদের গ্রামে বেশিরভাগ কর্মসংস্থানের সুযোগ তৈরি হয়েছে, তাই এখন আর গ্রাম ছেড়ে যেতে হচ্ছে না। একইভাবে, দেশে ১২ কোটি নতুন শৌচাগার তৈরি করা হয়েছে। এই কারণে, নির্মাণের পাশাপাশি, প্লাম্বার, কাঠমিস্ত্রি এবং আমাদের বিশ্বকর্মা সম্প্রদায়ের লোকেদের জন্য অনেক চাকরির সুযোগ তৈরি হয়েছে। এটিই কর্মসংস্থান বৃদ্ধি করে এবং প্রভাবও তৈরি করে। একইভাবে, আজ উজ্জ্বলা যোজনার আওতায় দেশে ১০ কোটিরও বেশি নতুন, আমি আপনাদের যা বলছি, নতুন এলপিজি সংযোগ দেওয়া হয়েছে। এখন এর জন্য প্রচুর পরিমাণে বোতলজাতকরণ কারখানা তৈরি করা হয়েছে। গ্যাস সিলিন্ডার প্রস্তুতকারকরা কাজ পেয়েছেন, কর্মসংস্থানও তৈরি হয়েছে, গ্যাস সিলিন্ডার এজেন্সি মালিকরা কাজ পেয়েছেন। প্রতিটি বাড়িতে গ্যাস সিলিন্ডার পৌঁছে দেওয়ার জন্য প্রয়োজনীয় কর্মীদের নতুন কর্মসংস্থানের সুযোগ তৈরি হয়েছে। তুমি প্রতিটি কাজ এক এক করে নিলে, অনেক ধরণের কর্মসংস্থানের সুযোগ তৈরি হয়। এই সমস্ত জায়গায় লক্ষ লক্ষ মানুষ নতুন কর্মসংস্থান পেয়েছে।

বন্ধুগণ,

আমি আরেকটি প্রকল্প নিয়েও আলোচনা করতে চাই। এখন আপনারা এই প্রকল্পটি জানেন, এর মানে হল বলা হয় যে পাঁচটি আঙুলই ঘিয়ে ডোবানো, অথবা বলা হয় যে এটা দুই হাতে লাড্ডু রাখার মতো। প্রধানমন্ত্রী সূর্য ঘর বিনামূল্যে বিদ্যুৎ প্রকল্প। সরকার আপনার বাড়ির ছাদে বা একটি ছাদের উপরে সৌরবিদ্যুৎ কেন্দ্র স্থাপনের জন্য একটি পরিবারকে গড়ে ₹৭৫,০০০ এরও বেশি অর্থ প্রদান করছে। এর মাধ্যমে প্রত্যেকে নিজেদের বাড়ির ছাদে একটি সৌরবিদ্যুৎ কেন্দ্র স্থাপন করে। একরকমভাবে, তাঁদের বাড়ির ছাদ একটি ছোটো বিদ্যুৎ কারখানায় পরিণত হয়, এটি বিদ্যুৎ উৎপাদন করে। বাড়ির মালিক নিজেই বিদ্যুৎ ব্যবহার করেন, যদি অতিরিক্ত বিদ্যুৎ থাকে তবে তিনি তা বিক্রি করেন। এর ফলে বিদ্যুৎ বিল শূন্য হচ্ছে এবং টাকা সাশ্রয় হচ্ছে। এই প্রকল্পগুলি স্থাপনের জন্য, প্রকৌশলী এবং প্রযুক্তিবিদদের প্রয়োজন। সৌর প্যানেল তৈরির জন্য কারখানা স্থাপন, কাঁচামাল এবং তার পরিবহনের জন্য কারখানা স্থাপন আর এটি মেরামতের জন্য একটি সম্পূর্ণ নতুন শিল্প তৈরি করা হচ্ছে। আপনি কল্পনা করতে পারেন? আমাদের প্রতিটি প্রকল্পই মানুষের জন্য ভালো করছে, কিন্তু প্রধানমন্ত্রী সূর্য ঘর বিনামূল্যে বিদ্যুৎ প্রকল্পর ফলে লক্ষ লক্ষ নতুন কর্মসংস্থান তৈরি হচ্ছে।

বন্ধুগণ,


নমো ড্রোন দিদি অভিযানও তেমনি আমাদের গ্রামের বোন ও কন্যাদের আয় বৃদ্ধি করেছে আর গ্রামীণ এলাকায় নতুন কর্মসংস্থানের সুযোগও তৈরি করেছে। এই প্রকল্পের আওতায় লক্ষ লক্ষ গ্রামীণ বোনকে ড্রোন পাইলট হিসেবে প্রশিক্ষণ দেওয়া হচ্ছে। প্রাপ্ত প্রতিবেদনগুলি থেকে জানা যায় যে, আমাদের ড্রোন সিস্টার্স, আমাদের গ্রামের মা ও বোনেরা, যারা ড্রোনের মাধ্যমে কৃষিকাজে সহায়তা প্রদানের জন্য চুক্তি গ্রহণ করেন, তারা প্রতিটি কৃষি মৌসুমে লক্ষ লক্ষ টাকা আয় করতে শুরু করেছেন। শুধু তাই নয়, এটি দেশে ড্রোন তৈরির সঙ্গে সম্পর্কিত নতুন ক্ষেত্রকে অনেক শক্তি যোগাচ্ছে। কৃষি হোক বা প্রতিরক্ষা, আজ ড্রোন তৈরি দেশের যুবসমাজের জন্য নতুন সুযোগ তৈরি করছে।

বন্ধুগণ,

দেশে ৩ কোটি লক্ষপতি দিদি তৈরির অভিযান চলছে। এর মধ্যে ১.৫ কোটি বোন ইতিমধ্যেই লক্ষপতি হয়ে গেছেন। আর আপনারা জানেন যে, লক্ষপতি দিদি হওয়ার অর্থ হল, তার আয় বছরে কমপক্ষে ১ লক্ষ টাকার বেশি হওয়া উচিত এবং এটি কেবল একবার নয়, প্রতি বছর হওয়া উচিত, তবেই তিনি আমার লক্ষপতি দিদি। ১.৫ কোটি লক্ষপতি দিদি, এখন যদি আপনারা গ্রামে যান, তাহলে কিছু কথা শুনতে পাবে, ব্যাংক সখি, বীমা সখি, কৃষি সখি, পশু সখি, আমাদের গ্রামের মা-বোনেরাও এরকম অনেক প্রকল্পে কর্মসংস্থান পেয়েছেন। একইভাবে, প্রধানমন্ত্রী স্বনিধি প্রকল্পের আওতায়, প্রথমবারের মতো, ফুটপাতে হকারদের সঙ্গে কাজ করা লোকদের দিকে সাহায্যের হাত বাড়িয়ে দেওয়া হয়েছিল। এর আওতায় লক্ষ লক্ষ সহকর্মী কর্মসংস্থান পেয়েছেন এবং ডিজিটাল পেমেন্টের কারণে, আজকাল আমাদের সমস্ত রাস্তার বিক্রেতারা নগদ অর্থ গ্রহণ করেন না, তারা ইউপিআই ব্যবহার করেন। কেন? কারণ তাঁরা ব্যাংক থেকে তাৎক্ষণিকভাবে অতিরিক্ত টাকা পেয়ে যান। ব্যাংকের আস্থা বৃদ্ধি পায়। তার কোনও কাগজের প্রয়োজন নেই। তার মানে একজন রাস্তার বিক্রেতা আজ আত্মবিশ্বাস এবং গর্বের সঙ্গে এগিয়ে যাচ্ছেন।

প্রধানমন্ত্রী বিশ্বকর্মা প্রকল্পটি একবার দেখুন। এর আওতায় আমাদের পূর্বপুরুষের কাজ, ঐতিহ্যবাহী কাজ, পারিবারিক কাজকে আধুনিকীকরণ করা হচ্ছে, এতে নতুনত্ব আনা হচ্ছে, নতুন প্রযুক্তি আনা হচ্ছে, নতুন সম্পদ আনা হচ্ছে, এতে কর্মরত কারিগর, শিল্পী এবং পরিষেবা প্রদানকারীদের প্রশিক্ষণ দেওয়া হচ্ছে। ঋণ দেওয়া হচ্ছে, আধুনিক সরঞ্জাম দেওয়া হচ্ছে। আমি আপনাদের এমন অসংখ্য প্রকল্পের কথা বলতে পারি। এমন অনেক প্রকল্প রয়েছে যা দরিদ্রদের উপকার করেছে এবং যুবকদের কর্মসংস্থানের ব্যবস্থাও করেছে। এই ধরণের অনেক প্রকল্পের প্রভাব হল যে মাত্র ১০ বছরে দেশের ২৫ কোটি মানুষ দারিদ্র্য থেকে বেরিয়ে এসেছে। যদি কর্মসংস্থান না থাকত, পরিবারে যদি আয়ের কোন উৎস না থাকত, তাহলে আমার দরিদ্র ভাইবোনেরা, যাঁরা তিন-চার প্রজন্ম ধরে দারিদ্র্যের মধ্যে জীবনযাপন করছিলেন, তাঁরা মৃত্যুকেই তাদের জীবনের প্রতিটি দিন কাটানোর একমাত্র উপায় হিসেবে দেখতেন, আমি খুব ভয় পেতাম। কিন্তু আজ এই প্রকল্পটি এতটাই শক্তিশালী হয়ে উঠেছে যে আমার ২৫ কোটি দরিদ্র ভাইবোন দারিদ্র্যকে জয় করেছে। তিনি বিজয়ী হয়ে উঠেছেন। আর আমি আমার এই ২৫ কোটি ভাইবোনের সাহসের প্রশংসা করি, যারা দারিদ্র্যকে পিছনে ফেলে এসেছেন। তিনি সরকারি প্রকল্পের সুযোগ নিয়ে সাহসের সঙ্গে এগিয়ে গেছেন এবং বসে কাঁদেননি। তিনি দারিদ্র্যকে উপড়ে ফেলেছিলেন এবং পরাজিত করেছিলেন। এখন আপনি কল্পনা করতে পারেন যে এই ২৫ কোটি মানুষের মনে কতটা নতুন আত্মবিশ্বাস তৈরি হবে। একবার একজন ব্যক্তি সংকট থেকে বেরিয়ে আসার পর, নতুন শক্তির উৎপত্তি হয়। আমার দেশেও একটি নতুন শক্তি এসেছে, যা দেশকে এগিয়ে নিয়ে যাওয়ার ক্ষেত্রে খুবই কার্যকর হবে। আর দেখুন, এটা শুধু সরকারই বলছে না। আজ, বিশ্বব্যাংকের মতো বৃহৎ আন্তর্জাতিক প্রতিষ্ঠানগুলি এই কাজের জন্য প্রকাশ্যে ভারতের প্রশংসা করছে। ভারতকে বিশ্বের কাছে একটি মডেল হিসেবে উপস্থাপন করছে। ভারত বিশ্বের সর্বোচ্চ সমতার দেশগুলির মধ্যে শীর্ষে স্থান পাচ্ছে। তার মানে বৈষম্য দ্রুত হ্রাস পাচ্ছে। আমরা সমতার দিকে এগিয়ে যাচ্ছি। বিশ্ব এখন এটিও লক্ষ্য করছে।

 উন্নয়নের এই মহাযজ্ঞ, দরিদ্রদের কল্যাণ এবং কর্মসংস্থান সৃষ্টির যে লক্ষ্য নিয়ে এগিয়ে চলেছে, আজ থেকে তা এগিয়ে নিয়ে যাওয়ার দায়িত্ব আপনাদের। সরকার যেন বাধা না হয়, সরকারের উচিত উন্নয়নের প্রবক্তা হওয়া। প্রতিটি মানুষের সামনে এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ আছে। হাত ধরা আমাদের কাজ। আর বন্ধুরা, আপনারা তো তরুণ। আপনাদের উপর আমার অনেক আস্থা আছে। আপনাদের কাছ থেকে আমার প্রত্যাশা হল, আপনাদের যেখানেই দায়িত্ব দেওয়া হোক না কেন, প্রথমেই আপনারা এই দেশের নাগরিক হিসেবে, সহনাগরিকদের সাহায্য করুন এবং তাদের সমস্যা থেকে মুক্তির পথ দেখান, দেশ দ্রুত এগিয়ে যাবে। আপনাদের ভারতের অমৃত কালের অংশ হতে হবে। আগামী ২০-২৫ বছর আপনাদের ক্যারিয়ারের জন্য গুরুত্বপূর্ণ, কিন্তু আপনারা এমন একটা সময়ে আছেন, যখন আগামী ২০-২৫ বছর দেশের জন্য খুবই গুরুত্বপূর্ণ। উন্নত ভারত গড়ার জন্য এই ২৫ বছর অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ণ। অতএব, আপনাদের কাজ, আপনাদের দায়িত্ব, আপনাদের লক্ষ্যগুলোকে একটি উন্নত ভারতের সংকল্পের সঙ্গে একীভূত করতে হবে। 'নাগরিক দেবো ভব' মন্ত্রটি আমাদের শিরা-উপশিরায় প্রবাহিত হওয়া উচিত, আমাদের হৃদয় ও মনে থাকা উচিত, আমাদের আচরণে দৃশ্যমান হওয়া উচিত।

আর আমি নিশ্চিত বন্ধুরা, কারণ, গত ১০ বছরে দেশকে এগিয়ে নিয়ে যাওয়ার ক্ষেত্রে এই যুবশক্তিই আমার পাশে দাঁড়িয়েছে। দেশের মঙ্গলের জন্য আমার প্রতিটি কথা রাখতে তাঁরা যথাসাধ্য চেষ্টা করেছেন। আমি যেখানেই ছিলাম, সেখান থেকেই এটা করেছি।আপনাদের একটা সুযোগ আছে, আপনাদের কাছ থেকে অনেক প্রত্যাশা আছে। আপনাদের দায়িত্ব আরও বড়, আমি নিশ্চিত যে আপনারা তা করবেন। আমি আবারও আপনাদের অনেক অনেক অভিনন্দন জানাই। আপনাদের পরিবারের সদস্যদের প্রতি আমার শুভকামনা জানাই। আপনাদের পরিবারেরও উজ্জ্বল ভবিষ্যৎ কামনা করি। আপনিও জীবনে অনেক উন্নতি করুন। আইজিওটঅট(iGOT) প্ল্যাটফর্মে গিয়ে নিজেকে ক্রমাগত আপগ্রেড করতে থাকুন। একবার জায়গা খুঁজে পেলে, চুপ করে বসে থাকবেন না, বড় স্বপ্ন দেখবেন না, অনেক দূর যাওয়ার কথা ভাববেন না। কাজ করে, নতুন জিনিস শিখে এবং নতুন ফলাফল অর্জন করে অগ্রগতি অর্জন করুন। আপনার অগ্রগতিতে দেশের গর্ব হবে, আপনার অগ্রগতিতে সন্তুষ্টি থাকবে। আর তাই আজ যখন আপনারা নতুন জীবন শুরু করছেন, আমি আপনাদের সঙ্গে কথা বলতে এসেছি, আপনাদের শুভকামনা জানাতে এসেছি,  এবং অনেক স্বপ্ন পূরণ করতে এসেছি কারণ আপনারা এখন আমার সঙ্গী হচ্ছেন। আমার ঘনিষ্ঠ সহচরদের একজন হিসেবে আমি আপনাদের প্রত্যেককে স্বাগত জানাই। আপনাদের সকলকে অনেক ধন্যবাদ। অনেক অনেক শুভেচ্ছা।

প্রধানমন্ত্রীর মূল ভাষণটি ছিল হিন্দিতে