महात्मा मंदिर, गांधीनगर

मंच पर विराजमान मंत्रे परिषद के मेरे साथी, राज्य के शिक्षा मंत्री श्रीमान भूपेन्द्र सिंह जी, प्रो. वसुबेन, इस कार्यक्रम को विशेषरूप से सहयोग दे रहे हैं ऐसे इटली के एम्बैसेडर हिज़ एक्सेलेन्सि डेनियल मानुसिनि, प्रो. दिनेश सिंह जी, प्रो. राजन वेलुकर जी, प्रो. चार्ल्सो जुकोस्‍की, प्रो. लता रामचन्द्र, डॉ. किशोर सिंह जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी विद्वज जनों और विद्यार्थी मित्रों, मैं गुजरात की धरती पर आप सभी का बहुत-बहुत स्वातगत करता हूं..!

जिस स्थान पर हमारा ये कार्यक्रम चल रहा है, इस महात्मा मंदिर का निर्माण उस दौरान हुआ था, जब 2010 में हम गुजरात का गोल्डन जुबली ईयर मना रहे थे। उस समय हमने सोचा था कि ये गांधीनगर है तो गांधीजी की याद में भी यहां कुछ व्यवस्थाएं विकसित होनी चाहिए। आपको जानकर आनंद और आश्चर्य होगा कि हमारे देश में भी ऐसा निर्माण 182 दिनों में हो सकता है..! हमने इस महात्मा मंदिर का प्रमुख हिस्सा 2010 में कुल 182 दिनों में तैयार करके, 2011 में वाईब्रेंट समिट यहां आयोजित की थी। कहने का तात्प‍र्य यह है कि हमारे देश के पास अपार क्षमताएं हैं, विपुल संभावनाएं हैं और ढ़ेर सारी आकांक्षाएं हैं, आवश्यमकता है कि उसे समझें, उसे जोड़ें और देशवासी इसके लिए जुट जाएं, तो सब कुछ संभव होगा..!

हम लगातार विचार-विमर्श का प्रयास कर रहे हैं और हमारा एक कन्वींक्शन है कि देश के भिन्ने-भिन्न भागों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, देश के विद्वजनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, दुनिया से भी बहुत कुछ सीखकर हमारे देश के काम लाया जा सकता है। यह अवसर हम सभी गुजरात वालों के लिए सीखने का अवसर है, जानने का अवसर है, समझने का अवसर है और आप सभी हमें ज्ञान देने के लिए, शिक्षा देने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में आएं हैं, इसलिए मैं विशेष रूप से आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं..!

एक प्रकार से भारत का युवा मन, भारत की शिक्षा का स्वरूप, एक लघु रूप में आज इस महात्मा मंदिर में इक्ट्ठा हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में संघ शासित प्रदेश और राज्य‍ मिलाकर कुल 33 राज्यों से लोग आएं हैं और इस समारोह में शरीक हुए हैं। हिंदुस्तान के 100 से अधिक वाइस चांसलर और डायरेक्टर इस समारोह में मौजूद हैं। इस समिति में 84 ऐसे स्कॉ‍लर और इनोवेटर आएं है जिनकी विश्व में गणना होती है, उन सभी ने यहां आकर कॉन्फ्रेंस के भिन्न-भिन्न हिस्सों को सम्बोधित किया है। 1500 से अधिक प्रोफेसर और टीचर्स इसमें शरीक हुए हैं। गुजरात के 1500 और गुजरात के बाहर से 3000 से ज्यादा विद्यार्थी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा, इस समिट में तकरीबन 40 देशों के 200 से अधिक छात्र भी मौजूद हैं। शिक्षा को लेकर किए गए इस प्रयास मे लोगों की उपस्थिति को देखा जाए तो भी, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह प्रयास कितना महत्वपूर्ण है। मैं इस प्रयास में सहयोग देने वाले, इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों को, यूर्नीवर्सिटी के सभी साथियों और देश के अन्य कोनों से मदद करने वाले सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

भाईयों-बहनों, हम सभी लम्बे अरसे से एक बात सुनते आ रहे हैं और बोलते भी आ रहे हैं -“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा... कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...” आखिर वो कौन सी बात है, कभी तो सोचें, क्या कारण है कि हजारों साल पुरानी परम्परा, हजारों साल पुराना ये समाज आज तक है, ये हस्ती मिटी क्यों नहीं..! हमले कम नहीं हुए है, संकट कम नहीं आए, दुविधाएं भी आई, प्रलोभन भी था, सब कुछ हुआ, लेकिन इसके बावजूद भी हस्ती मिटती नहीं हमारी, इसका कारण क्या है..? मित्रों, इस बात के कई कारण कई लोग बता सकते हैं और वह हो भी सकते हैं, लेकिन मैं जो कारण देख रहा हूं, वह यह है कि हमारे पूर्वजों ने जो इंवेस्टमेंट किया था, वह ह्यूमन वेल्थ के लिए किया था, उन्होने मानव समाज के निर्माण के लिए शक्ति जुटाई थी, हर युग में, हर समाज में, हर नेतृत्व में, निरंतर विकास किया था, व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया गया था और व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा-दीक्षा, गुरू-शिष्य, संस्कार-संक्रमण जैसी उत्तम परम्पाराओं को विकसित किया था, जिसके कारण एक ऐसे समाज की रचना हुई, जो ज्ञान पर आधारित था, उसके सारे पैरामीटर डायनामिक थे, वे बदलाव को स्वीकार करने वाली व्यवस्था वाले थे, युगानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने वाला समाज बनाया, ये ज्ञान की परम्प्रावाली हमारी जो विरासत है, इन्ही के भरोसे हम कह सकते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी..! और इसलिए अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई और चालाकी से इसी पर वार करने की कोशिश की थी। लॉर्ड मैकॉले ने उस काल में शिक्षा व्यावस्थाओं और पम्पराओं पर हमला बोला था, बाकी किसी ने हमें हिलाया-डुलाया और ड़राया नहीं, लेकिन ये एक ऐसा इंजेक्शन हो गया, जिसने हमारी भीतर की शक्ति को झकझोर डाला..!

समय की मांग थी कि देश की आजादी के बाद विश्व को क्या चाहिए, आने वाला कल कैसा होगा, समाज कैसा होना चाहिए, क्याक ये देश विश्व को कुछ देने का सामर्थ्ये रखता है या नहीं, क्या इस देश को विश्व को कुछ देने का मन बनाना चाहिए या नहीं, क्या‍ ऐसे बड़े सपने सजोने चाहिए या नहीं, अगर इन सभी मूलभूत बातों को उठाया होता और उसी को लेकर हम आगे चले होते, और हमारी पुरानी विरासत की अच्छा ईयों को आगे बढ़ाते हुए, उसमें आवश्यक आधुनिकताओं के बदलाव को स्वीकार करते हुए हम नवीन व्यवस्थाओं को विकसित करने का प्रयास करते, तो आज हम विश्व को कुछ दे पाने के योग्य बन जाते..! भाईयों-बहनों, अभी भी वक्त है, कुछ कठिनाईयां जरूर होगी लेकिन रास्ते अभी भी खोजे जा सकते है, मंजिलें अभी भी पार की जा सकती हैं और मानव जाति की कल्यांण के लिए नई ऊर्जा का स्त्रोत हमारी भारत मां की पवित्र भूमि बन सकती है, ऐसे सपने हमें संजोने चाहिए..!

आज कठिनाई क्या हुई है, कभी हम सोचें कि हमारा शिशु मंदिर का बालक, यूर्नीवर्सिटी में रिसर्च करने तक की यात्रा में क्याम कोई लिंक है..? हर जगह पर हमें बिखराव नजर आता है..! अगर पूरी विकास यात्रा इंटीग्रल नहीं है, अगर वो सर्किल के रूप में है, छोटा सर्कल, बड़ा सर्कल, उससे बड़ा सर्कल.... तो मेरी समझ के मुताबिक वह मनुष्यै के विकास से नहीं जुड़ेगा। अगर वह छोटे सर्कल में है तो वहीं रहेगा, बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, उससे बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, और उसी में घूमता रहेगा। अगर हम एक छोर से शुरू करें, और राउंड करते-करते उसी सर्कल को बढ़ाते चलें, व्यक्तित्व का विस्तार करते चलें, जो व्यूक्ति से लेकर समूह तक, समूह से समाज तक, समाज से समष्टि तक अगर उस यात्रा को आगे बढ़ाया जाएं तो उससे व्यक्तित्व का विकास होगा। हम वो लोग हैं, जो कहते हैं कि ‘नर करणी करे तो नारायण हो जाए’, हमारे यहां ऐसा नहीं माना जाता है कि ईश्वर पैदा होते हैं, हमारे यह माना जाता है कि हमारी सोच में इतना सामर्थ्य‍ है कि व्यक्ति के विकास को ईश्वर की ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है..!

हमें आवश्याकता है कि नई व्यवस्थाओं को विकसित किया जाए। हमने एक छोटा प्रयास किया, हम सभी जानते है कि हमारे देश में एक व्यंवस्था है जो अंग्रेजों के ज़माने से आई होगी, वो यह है कि जब भी हम स्कूल से पढ़कर निकलते हैं तो हमें एक कैरेक्टार सर्टिफिकेट दिया जाता है, और हम जहां भी जाते हैं वह कैरेक्टैर सर्टिफिकेट दिखाते रहते हैं। और देश के करोड़ों-करोड़ों नागरिकों के कैरेक्टर सर्टिफिकेट के शब्दे एक ही प्रकार के हैं, एक ही सॉफ्टवेयर से निकले हुए कैरेक्टोर सर्टिफिकेट हैं..! देने वाले को भी पता है क्यों दे रहा है और लेने वाले को भी पता है क्यों ले रहा है, फिर भी गाड़ी चल रही है, क्या किसी ने सवाल पूछा कि ये क्यों..? आखिर इसका क्या, उपयोग है..? और अगर सर्टिफिकेट मिल गया तो क्या मान लिया जाए कि वह व्यक्ति सही है..? मैनें अभी हमारी सरकार में एक सुझाव दिया है और उस पर काम चल रहा है कि क्यूं न हम बालक को एप्टीट्यूड सर्टिफिकेट दें..! जब वह स्कूल में पढ़ता है तो कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो उसका लगातार आर्ब्जूवेशन करता रहे, इसके लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए, बारी-बारी से उनसे संवाद करके पता किया जाए, उनकी दिनचर्या को देखा जाए, उनकी फैमिली को देखा जाए, तो इससे उसके बारे में पता चला चलेगा, जैसे-कि यह बच्चा बड़ा साहसी है, ये इसका एप्टीट्यूड है, और उसे उसी क्षेत्र में प्रेरित किया जाए, जैसे कि सेना के जवानों से मिलवाया जाए, कभी आर्मी कैन्टान्मेंट में ले जाया जाए, ऐसे बच्चों का टूर प्रोग्राम भी वहीं रखा जाएं तो इससे उसे लगेगा कि हां यार, जिन्दगी ऐसे बनानी चाहिए..! स्कूल के दस बच्चें हैं जिनके हाथ में कोई भी चीज आई तो वह चीजों को तोड़-फोड़ कर देखते हैं कि इसके अंदर क्या है, मतलब उसका एप्टीट्यूड रिसर्च करने वाला है, वह जानना-समझना चाहता है, तो ऐसे बच्चों को इक्ट्ठा करके उनका प्रोग्राम किसी अच्छी मैनुफैक्चरिंग कम्पनी जहां ऐसे रिसर्च होते हों, वहां ले जाओं तो वह बड़ा मन से देखेगें..! लेकिन हमारे यहां टूर प्रोग्राम होता है तो एक साथ सब उदयपुर देखने जाएंगे, सब ताजमहल देखने जाएंगे..! कहने का तात्प्र्य यह है कि हम माइंड एप्लाई ही नहीं करते, चलती है गाड़ी तो चलने दो..! क्या इसके लिए भी पार्लियामेंट में कानून बनाना पड़ेगा, कोई संशोधन करना पड़ेगा..? ऐसा नहीं है, मित्रों। हमने सिलेबस को बल दिया है, आवश्याकता है कि हम एक-एक बच्चेको सेलिब्रिटी मानें और उसके जीवन पर बल दें तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

मित्रों, समाज और इन व्यवस्था ओं का डिस्कंनेक्टक कैसा हुआ है..! शायद चार-छ: महीने पहले की बात होगी, मैं रात को देर से आया तो सोचा कि दिन भर की क्या खबरें होगी इसलिए टीवी ऑन किया, एक टीवी चैनल पर विवाद चल रहा था - किसी स्कूल में बच्चे सफाई का काम कर रहे थे, झाडू-पोछा कर रहे थे, अपना स्कूल साफ कर रहे थे, और विवाद इस बात पर था कि बच्चों से ऐसा काम क्यों लिया जाता है..? मैं हैरान था, हमारे देश में तो गांधी जी भी कहते थे कि श्रम हमारी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए, उससे सारी चीजें करवानी चाहिए, तभी एक बालक तैयार होगा और हमारे देश का वर्तमान मीडिया इस बात पर बहस कर रहा था..! श्रम कार्य, हमारे देश में शिक्षा का हिस्सा था, लेकिन आज माना जाता है कि ये शिक्षा के व्यापारी लोग बच्चों का शोषण करते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं... परन्तु यदि हमें व्याक्तित्व का विकास करना हो, तो समाज को भी प्रशिक्षित करना पड़ेगा कि इसका क्या‍ महत्व है, क्या जरूरत है..! मैं इसे नहीं मानता हूं। जैसे हमारी पूरी सृष्टि की जो रचना है, तो हमारी मैथोलॉजी में जो कॉन्सेप्ट है, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात है, जिस प्रकार सृष्टि में तीनों का होना जरूरी है उसी प्रकार, शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, के विकास में सिर्फ हेड से काम नहीं चलेगा, सिर्फ दिमाग में सब भरा जाएगा तो वह रोबोट की तरह कहीं उगलता रहेगा और उससे आगे दुनिया नहीं चलेगी, इसलिए सिर्फ हेड नहीं बल्कि हेड, हार्ट और हैंड, तीनों का मेल होना जरूरी है जैसे पूरी सृष्टि के लिए ब्रह्मा, विष्णु , महेश जरूरी है..! व्यक्ति की ऊर्मियां, उसकी भावनाएं, उसके भीतर पड़ी हुई ललक, उसके हृदय का स्पंदन, ये सब उसके व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसका हेड जितना सामर्थ्य्वान होगा, जितना फर्टाइल होगा, जितना इनोवेटिव होगा, जितना क्रिएटिव होगा, वह एक ताकत के रूप में उभरेगा, लेकिन अगर उसके हैंड बेकार है, उनमें कौशल नहीं है, अगर वह किसी के काम नहीं आते हैं, किसी के काम में जुड़ते नहीं है, तो उस व्यक्ति और एक अच्छी किताब के बीच कोई फर्क नहीं है..! हमें इंसान किताब के रूप में नहीं बल्कि जीती-जागती व्यवस्था के रूप में चाहिए, जो व्यवस्था!ओं को विकसित करने का हिस्सा बनना चाहिये। इसलिए, हमें हमारी शिक्षा को उस तराजु पर तौलने की आवश्यकता है कि वह मनुष्य के इस रूप को बनाने में सक्षम है या नहीं..!

प्राइमरी स्कूल में जो बच्चे होते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं, कुछ सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते हैं, कुछ हॉयर सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते है, कुछ कॉलेज में जाते हैं, और कॉलेज में भी कुछ इसलिए जाते हैं कि जाएं तो जाएं कहां...। इसके बाद, वो कहीं नौकरी के लिए जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है, डिग्री है, वो सब ठीक है, लेकिन क्या तुम्हे ये आता है..? तो छात्र बोलता है कि नहीं, हमें कॉलेज में ये तो नहीं सिखाया गया। फिर उस छात्र को लगता है कि मैनें अपनी जिन्देगी क्यों खराब की, चार साल कॉलेज में क्यों गया..? हमारी शिक्षा व्यवस्था से उस प्रकार का जीवन तैयार हों, उस प्रकार की शख्सियत तैयार हों, उस प्रकार की शक्ति तैयार हों, जिसे समाज खोजता हो..! लोग ऐसा कहें कि अरे मेरे यहां आओ, मुझे जरूरत है, तुम काम करो, तुम्हारे पास ताकत है, हम मिलकर कुछ करेगें... ये स्थिति हमें पैदा करनी चाहिए। और हमारी कोशिश यह है कि व्यक्तित्व को उस दिशा में ले जाना चाहिए..!

उसी प्रकार से, हमारे देश में व्हाइट कॉलर जॉब ने हमारा बहुत नुकसान किया है, लोगों की सोच बन गई है कि छोटा-मोटा काम करना बुरा है, हालांकि अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है, यूथ को लगने लगा है कि वह कुछ नया करें, अलग करें, अच्छा करें। हम समाज का ये स्वभाव कैसे बनाएं, कि ऑफिस में फाइलों में साइन करने के बजाय, या बैंकों में चेकबुक पर काम करने के बजाय भी तो दुनिया में कोई काम हो सकता है..! एक बार मैं एक एग्रीकल्चर के कार्यक्रम में गया था, हमारे कृषि विभाग का एक कार्यक्रम था, जिसमें किसानों को अवॉर्ड देना था। मैनें जाने से पहले सोचा कि सब वयोवृद्ध, तपोवृद्ध लोग होगें। उस दिन मुझे लगभग 35 कृषिकारों को अवॉर्ड देना था, और उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उसमें से कम से कम 27-28 किसान, 35 से कम आयु वाले जींस-पैंट पहने हुए किसान थे, मन को बहुत आनंद हुआ कि नई पीढ़ी में भी बदलाव आया है..! कुछ दिनों पहले, मुझसे विदेश से एक-दो लड़के मिलने आए थे, वो बोले कि वह कुछ करना चाहते हैं। मैनें कहा कि क्या सोचा है..? वो बोले कि वह तबेला खोलेंगे, गाय-भैंस रखेगें, उनका लालन-पालन करेगें और दुध का मार्केट कैप्चर करूंगा। मैनें कहा गुजरात में क्या करोगे, यहां अमूल है, जो दिनेश सिंह की रगों तक पहुंच गया है..! उसने कहा कि मैं करूंगा और करके दिखाउंगा..! मित्रों, ये जो मन की रचना तैयार होती है वह सिर्फ किताबों से नहीं होती है, हमें वो एन्वॉयरमेंट तैयार करना पड़ेगा। क्या हमने वो माहौल तैयार किया है..? हमारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में, हमारे कॉलेज में, जहां सभी आपस में ये बातें करते हैं कि किसने कितनी सेंचुरी मारी, किसने कितने रन बनाएं और उसी में सारा समय जाता है। कौन सा फिल्मं शो चल रहा है, अगले फ्राइडे कौन सी मूवी आएगी, किसने ज्यादा कमाई की, नई फैशन में क्या आया है... छात्र इसी बारे में बातें करते हैं और उनका सारा समय इसी में जाता है..! क्या कैम्पस में दुनिया कहां जा रही है, जगत में किस प्रकार की आधुनिक, आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तकनीकी आ रही है और उनका क्या प्रभाव है, क्या ऐसी सहज बातों का माहौल बनता है..? लेकिन एक-आध प्रोफेसर ऐसा होता है जो माहौल बदल देता है, जिसके कारण बदलाव आता है। कहा जाता है कि एक समय में वाराणसी का माहौल ऐसा था, कि लोग आते-जाते शास्त्र में बात करते थे, जीवन की समस्याओं की चर्चा भी शास्त्रों को वर्णित करके करते थे, शास्त्र बहुत सहज रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गया था, इसी कारण सदियों बाद भी वाराणसी उसकी पंडिताई के लिए जाना जाता है और उस समय ये सब कुछ इंफॉर्मल था। क्यों न हम ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित करने की दिशा में एक एन्वॉयरमेंट डेपलप करें..!

सारी दुनिया जानती है कि 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंर्फोमेशन टेक्नो्लॉजी आई और रेवोल्यूशन हुआ, उसने जीवन पर बहुत बड़ा इम्पे्क्टा डाल दिया। 21 वीं सदी में ईटी यानि एन्वॉहयरमेंट टेक्नोलॉजी का प्रभाव रहने वाला है। क्या अभी से हमने अपने आपको ईटी के लिए तैयार किया है..? क्या हमारे इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स, हमारा मैनुफैक्चकरिंग सेक्टर, हमारे रिसर्चर ईटी के लिए तैयार हैं..? सारी दुनिया में एन्वॉयरमेंट टेक्नोहलॉजी एक पैरामीटर बन रहा है। क्या हमारे पास ऐसा बुद्धिधन है, जो एन्वॉयरमेंट टेक्नोलॉजी में पूरे विश्व को लीड़ कर सकें, उसे नए रास्ते दिखाएं..? अगर आईटी के माध्यम से हम जगत में अपनी जगह बना पाए हैं, तो इंजीनियरिंग स्किल के माध्यम से 21 वीं सदी में ईटी के क्षेत्र में भी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं, दुनिया की आवश्य्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं..!

आईटीआई, टेक्नोलॉजी फील्ड़ में स्किल डेवलपमेंट में शिक्षा के स्तर पर सबसे छोटी ईकाई होती है। हमने अपने राज्य में आईटीआई में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। हमारे राजेन्द्र् जी इंटरडिसीप्लेन के विषय के बारे में अभी कह रहे थे, कुछ चीज़ें कैसे बदलाव लाती हैं, और हमने इसमें प्रतिष्ठा देने के विषय में एक छोटा सा प्रयोग किया है। जो बच्चे 7 वीं कक्षा, 8 वी कक्षा में होते हैं और आगे पढ़ नहीं पाते हैं, उनका मन नहीं लगता है या संजोग नहीं हो पाता, और वह रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ काम सीखते हैं जैसे प्लैम्बर, टर्नर, फिटर, वायरमैन, आदि, और कोई सलाह देता है तो आईटीआई में चले जाते हैं कि इनमें से कुछ बन जाएंगे। वहां जाने के बाद, उसके अंदर मैच्योरिटी आती है, उसे लगता है कि स्कूल छूट गया तो अपना जीवन बर्बाद कर दिया, अब उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन व्यवस्था ऐसा होती है कि दरवाजे बंद हो जाते हैं। उसे मन में इच्छा जग जाती है लेकिन हम उसकी इच्छा के अनुसार कोई व्यवस्थां विकसित नहीं करते हैं। इसी को लेकर हमने एक छोटा सा प्रयास किया, कि जिस बच्चेने 7 वीं, 8 वीं, और 9 वीं से कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है और मान लीजिए कि वह दो साल आईटीआई करता है, तो हम उसे 10 वीं पास मानते हैं और उसे सर्टिफिकेट दे देते हैं..! पहले वो छात्र आईटीआई कहने से शर्माता था, कोई पूछता था कि क्याऔ पढ़ते हो, तो वह दूसरे विषय पर ही बात करने लगता था, उसे शर्म आती थी, लेकिन इस बदलाव को करने के बाद, छात्र में कॉन्फीडेंस बढ़ा, वो कहने लगा कि नहीं 10 वीं पास हूं। जो छात्र 10 वीं के बाद आईटीआई में जाता है और दो साल आईटीआई करता है उसे हमने 12 वीं पास के बराबर दर्जा दे दिया, वो कहने लगा कि हां मैने, 12 वीं पास किया है। 12 वीं के बराबर होने के नाते, उसके लिए डिप्लोमा इंजीनियरिंग के दरवाजे हमने खोल दिए, यूं तो उसके स्कूल 8 वीं में ही छोड़ दिया था, लेकिन इस आईटीआई और उसके एप्टीट्यूट के कारण उसे अवसर मिल गया और वह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में चला गया। और उसकी इन विषयों में रूचि होने के कारण, 8 वीं में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इंजीनियरिंग की ओर चला गया, डिग्री की ओर चला गया..! मित्रों, हमें दरवाजे खोलने होगें..! 8वीं, 9वीं, 10 वीं के कारणों से जिन छात्रों का जीवन रूक गया है, उसको रूकने नहीं देना होगा। हमें ऐसे छात्रों के लिए दरवाजे खोलने होगें, उन्हे अवसर देना होगा..! इसके लिए यहां हमारे शिक्षाशास्त्री बैठे हैं, हम इस बदलाव को कैसे एडॉप्ट कर सकते हैं, और उसे एडॉप्टए करने के बाद, उसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं..? क्यों न हम बच्चों को उनके एप्टीट्यूड के हिसाब से काम दें..! मैने गुजरात सरकार में एक प्रयोग किया है, वैसे सरकारी व्यवस्थां में इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, जो मेरे अंदर ज्या्दा ही है..! सरकार में पद्धति ऐसी होती है कि हर अफसर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक निर्धारित दायरे में अपना-अपना काम करता है और उसी दायरे में सोचता है, धीरे-धीरे वह रोबोट जैसा हो जाता है, उसे मालूम होता है कि दिन में 6 फाइल आने वाली हैं और उसे ऐसा-ऐसा करना है..! इसको लेकर हमने छोटा सा प्रयोग किया, हमने अफसरों के लिए ‘स्वान्त: सुखाय्’ नाम का एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें सरकारी कामकाज के अलावा, उसके मन को आनंद देने वाले किसी एक काम को वो चुनें और करें। इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं कि हमारे सैं‍कड़ों सरकारी अधिकारियों ने उनकी निर्धारित नौकरी के अलावा, अपनी पसंद का एक काम लिया, उसमें जी-जान से जुट गए, और वह इतने इनोवेटिव होते हैं, इतने रिर्सोस मोबिलाइज़ करते हैं और साल-दो साल में उस काम को पूरा करते हैं। जब ट्रांसफर हो जाता है, तो ट्रांसफर होने के बाद भी अपने यार, दोस्तो और रिश्तेोदार आते हैं तो उनको साथ लेकर जाते हैं और बताते हैं कि मैं जब यहां कलेक्टबर था, तो ये काम किया था। इससे उसके जीवन को अत्यंत संतोष मिलता है, क्योंकि उसके एप्टीमट्यूट के अनुकूल उसे एक अवसर मिलता है, दिया जाता है..! अगर ऐसा परिवर्तन कट्टर सरकारी व्यवस्था में हो सकता है तो शिक्षा में आसानी से हो सकता है, ये मेरा मत है..!

इसलिए मित्रों, ये जो हमारा मंथन है, जो मोदी कह रहा है वो अल्टीमेट नहीं हो सकता है और न होना चाहिए, लेकिन इस ज्योत को जलाने की शुरूआत की जाए, इसे जलाया जाए, इसे स्पार्क किया जाए..! मिलें, बैठें और सपना देखें, 21 वीं सदी में विश्व को कुछ देने का सामर्थ्य देखें..! लोग कहते है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है, इसका मतलब क्यां है..? इसके बारे में कुछ तो डिफाइन करो, हिंदुस्तान की सदी कैसे है, क्यों है..? परन्तु यदि हम पुरातन काल में देखें कि जब-जब मानव जाति ज्ञान के युग में जी रही थी, हर बार हिंदुस्तान ने मानव जाति का नेतृत्व किया था। 21 वीं सदी भी नॉलेज की सदी है, ज्ञान की सदी है और अगर यह ज्ञान की सदी है, तो हम लोग इसमें काफी कुछ कॉन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं और हमें लीड करना चाहिए। हमारी दूसरी पॉजीटिव शक्ति यह है कि हम विश्व में सबसे युवा देश हैं। वी आर द यंगेस्ट नेशन..! हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। जिस देश के पास इतनी जवानी भरी हो, वो देश क्या नहीं कर सकता है..! डेमोग्रफिक डिवीडेंट हमारी सबसे बड़ी ताकत है..! हमारे देश के नौजवान आईटी के माध्यम से दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत रखते हैं..! ये जो हमारी डेमोग्राफिक स्ट्रेंथ है, डेमोग्रफिक डिवीडेंट है, अगर ऐसे नौजवानों को हुनर मिले, कौशल मिले, सामर्थ्य मिले, अवसर मिले, तो वह नौजवान पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा सकता है..! हमारा तीसरा सशक्त पहलू यह है कि हम एक वाईब्रेंट डेमोक्रेटिक देश हैं। ये लोकतंत्र हमारे देश की बहुत बड़ी अमानत है..! विश्व भर में चल रही स्पर्धा में हमारे पास ये चीज ऐसी है जिसके कारण हम पहले से एक कदम आगे होने की ताकत रखते हैं। अगर इन सपनों को लेकर, हम आगे की नई पीढ़ी को तैयार करने के लिए इस पर ध्यान दें कि कॉलेज की सोच कैसे बदलें, यूनिवर्सिटी की सोच कैसे बदलें, हमारी शिक्षा व्यवस्था की सोच कैसे बदलें, तो बेहतर होगा..! हमें सिर्फ नौकरशाहों को पैदा करने के लिए इतना बड़ा शिक्षा का क्षेत्र चलाने की क्या जरूरत है..? हमें तो समाज के निर्माताओं को तैयार करना है, युग निर्माताओं को तैयार करना है, आने वाली पीढि़यों को तैयार करने का काम करना है, और इस बदलाव को लेकर हम अपनी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सोचें..!

मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाला मंथन और पिछले 7 दिनों से इस संदर्भ में चल रहे प्रयासों से हमें कुछ न कुछ अमृत मिलेगा..! ये कोई टोकन काम नहीं है, हम लगातार इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। पहले यूनीवर्सिटी के स्तृर पर काम किया, पिछले वाइब्रेंट समिति में पूरे विश्व से 45 यूनीवर्सिटी को बुलाकर एक वर्कशॉप किया। उसके बाद, लॉर्ड भीखु पारेख जैसे लोगों को बुलाकर एक इनहाउस मंथन का काम किया और आज इस स्तर पर कार्य कर रहे हैं। यानी कि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, ये अचानक से काम शुरु नहीं किया है। इसके बाद भी हम और आगे जाएंगे, आगे सोचेंगे और कदम उठाएंगे। हमारी कोशिश है कि हम गुजरात में कुछ करना है। गुजरात कुछ सीखना चाहता है, देश के बुद्धिजीवियों को हमने कुछ सीखने के लिए बुलाया है। हम शिक्षाशास्त्री नहीं है, इसलिए अपने मन के विचारों को आप सभी के सामने रखने और आपसे सीखने के लिए बुलाया है। इससे कहीं तो कुछ शुरू होगा और कहीं भी कुछ भी शुरू होने पर परिवर्तन आ सकता है, और उसी के प्रयास के हिस्से के रूप में हम आएं हैं..!

हमें सेंटर फॉर एक्सीलेंसी की ओर बल देना होगा। मैने देखा है कभी-कभी गांव का एक किसान एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी के सांइटिस्ट से ज्यादा बढि़या काम करता है। गांव में खेती करने वाला किसान, लेबोरेट्री में काम करने वाले सांइटिस्ट‍ से अगर दो कदम आगे है तो दोनों को साथ में जोड़ने की जरूरत है..! एक वेटेनेरी डॉक्टर से ज्यादा, पशुओं का पालन करने वाली अनपढ महिला जानती होगी कि पशुओं की केयर कैसे करनी चाहिए, उसकी देखभाल कैसे की जाएं की वह ज्यादा दूध दे, वो ज्यादा जिन्देगी कैसे जिएं, तो इसमें भी दोनों को जोड़ने की जरूरत है..! अगर हम इन चीजों पर बल देगें तो बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक बार फिर से यहां आने वाले सभी लोगों का स्वागत करता हूं..! लता जी तो गला खराब होने के कारण बोल नहीं पा रही है, उसके बाद भी इस कार्यक्रम में शरीक हुई, मैं उनका विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी का स्वागत करते हुए, बहुत-बहुत धन्यउवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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भारत माता की जय!

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे वरिष्ठ सहयोगी और लखनऊ के सांसद, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी, यूपी भाजपा के अध्यक्ष और केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान पंकज चौधरी जी, प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक जी, उपस्थित अन्य मंत्रीगण, जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों,

आज लखनऊ की ये भूमि, एक नई प्रेरणा की साक्षी बन रही है। इसकी विस्तार से चर्चा करने से पहले, मैं देश और दुनिया को क्रिसमस की शुभकामनाएं देता हूं। भारत में भी करोड़ों इसाई परिवार आज उत्सव मना रहे हैं, क्रिसमस का ये उत्सव, सभी के जीवन में खुशियां लाए, ये हम सभी की कामना है।

साथियों,

25 दिसंबर का ये दिन, देश की दो महान विभूतियों के जन्म का अद्भुत सुयोग लेकर भी आता है। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी, भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी, इन दोनों महापुरुषों ने भारत की अस्मिता, एकता और गौरव की रक्षा की, और राष्ट्र निर्माण में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

साथियों,

आज 25 दिसंबर को ही महाराजा बिजली पासी जी की भी जन्म-जयंती है। लखनऊ का प्रसिद्ध बिजली पासी किला यहां से अधिक दूर नहीं है। महाराजा बिजली पासी ने, वीरता, सुशासन और समावेश की जो विरासत छोड़ी, उसको हमारे पासी समाज ने गौरव के साथ आगे बढ़ाया है। ये भी संयोग ही है कि, अटल जी ने ही वर्ष 2000 में महाराजा बिजली पासी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।

साथियों,

आज इस पावन दिन, मैं महामना मालवीय जी, अटल जी और महाराजा बिजली पासी को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं, उनका वंदन करता हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले मुझे, यहां राष्ट्र प्रेरणा स्थल का लोकार्पण करने का सौभाग्य मिला है। ये राष्ट्र प्रेरणा स्थल, उस सोच का प्रतीक है, जिसने भारत को आत्मसम्मान, एकता और सेवा का मार्ग दिखाया है। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी और अटल बिहारी वाजपेयी जी, इनकी विशाल प्रतिमाएं जितनी ऊंची हैं, इनसे मिलने वाली प्रेरणाएं उससे भी अधिक बुलंद हैं। अटल जी ने लिखा था, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। ये राष्ट्र प्रेरणा स्थल, हमें संदेश देता है कि हमारा हर कदम, हर पग, हर प्रयास, राष्ट्र-निर्माण के लिए समर्पित हो। सबका प्रयास ही, विकसित भारत के संकल्प को सिद्ध करेगा। मैं, लखनऊ को, उत्तर प्रदेश को, पूरे देश को, इस आधुनिक प्रेरणा-स्थली की बधाई देता हूं। और जैसा अभी बताया गया और वीडियों में भी दिखाया गया, कि जिस जमीन पर ये प्रेरणा स्थल बना है, उसकी 30 एकड़ से ज्यादा जमीन पर कई दशकों से कूड़े-कचरे का पहाड़ जमा हुआ था। पिछले तीन वर्ष में इसे पूरी तरह खत्म किया गया है। इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी श्रमिकों, कारीगरों, योजनाकारों, योगी जी और उनकी पूरी टीम को भी मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश को दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाई है। ये डॉक्टर मुखर्जी ही थे, जिन्होंने भारत में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान के विधान को खारिज कर दिया था। आजादी के बाद भी, जम्मू-कश्मीर में ये व्यवस्था, भारत की अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। भाजपा को गर्व है कि, हमारी सरकार को आर्टिकल 370 की दीवार गिराने का अवसर मिला। आज भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में भी पूरी तरह लागू है।

साथियों,

स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग मंत्री के रूप में, डॉक्टर मुखर्जी ने भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखी थी। उन्होंने देश को पहली औद्योगिक नीति दी थी। यानी भारत में औद्योगीकरण की बुनियाद रखी थी। आज आत्मनिर्भरता के उसी मंत्र को हम नई बुलंदी दे रहे हैं। मेड इन इंडिया सामान आज दुनियाभर में पहुंच रहा है। यहां यूपी में ही देखिए, एक तरफ, एक जनपद एक उत्पाद का इतना बड़ा अभियान चल रहा है, छोटे-छोटे उद्योगों, छोटी इकाइयों का सामर्थ्य बढ़ रहा है। दूसरी तरफ, यूपी में बहुत बड़ा डिफेंस कॉरिडोर बन रहा है। ऑपरेशन सिंदूर में दुनिया ने जिस ब्रह्मोस मिसाइल का जलवा देखा, वो अब लखनऊ में बन रही है। वो दिन दूर नहीं जब यूपी का डिफेंस कॉरिडोर, दुनियाभर में डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग के लिए जाना जाएगा।

साथियों,

दशकों पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अंत्योदय का एक सपना देखा था। वे मानते थे कि भारत की प्रगति का पैमाना, अंतिम पंक्ति में खड़े 'अंतिम व्यक्ति' के चेहरे की मुस्कान से मापा जाएगा। दीनदयाल जी ने 'एकात्म मानववाद' का दर्शन भी दिया, जहाँ शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा, सबका विकास हो। दीन दयाल जी के सपने को मोदी ने अपना संकल्प बनाया है। हमने अंत्योदय को सैचुरेशन यानी संतुष्टिकरण का नया विस्तार दिया है। सैचुरेशन यानी हर ज़रूरतमंद, हर लाभार्थी को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के दायरे में लाने का प्रयास। जब सैचुरेशन की भावना होती है, तो भेदभाव नहीं होता, और यही तो सुशासन है, यही सच्चा सामाजिक न्याय है, यही सच्चा सेकुलरिज्म है। आज जब देश के करोड़ों नागरिकों को, बिना भेदभाव, पहली बार पक्का घर, शौचालय, नल से जल, बिजली और गैस कनेक्शन मिल रहा है, करोड़ों लोगों को पहली बार मुफ्त अनाज और मुफ्त इलाज मिल रहा है। पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास हो रहा है, तो पंडित दीन दयाल जी के विजन के साथ न्याय हो रहा है।

साथियों,

बीते दशक में करोड़ों भारतीयों ने गरीबी को परास्त किया है, गरीबी को हराया है। ये इसलिए संभव हुआ, क्योंकि भाजपा सरकार ने, जो पीछे छूट गया था, उसे प्राथमिकता दी, जो अंतिम पंक्ति में था, उसे प्राथमिकता दी।

साथियों,

2014 से पहले करीब 25 करोड़ देशवासी ऐसे थे, जो सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में थे, 25 करोड़। आज करीब 95 करोड़ भारतवासी, इस सुरक्षा कवच के दायरे में हैं। उत्तर प्रदेश में भी बड़ी संख्या में लोगों को इसका लाभ मिला है। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। जैसे बैंक खाते सिर्फ कुछ ही लोगों के होते थे, वैसे ही, बीमा भी कुछ ही संपन्न लोगों तक सीमित था। हमारी सरकार ने अंतिम व्यक्ति तक बीमा सुरक्षा पहुंचाने का बीड़ा उठाया। इसके लिए प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना बनाई, इससे मामूली प्रीमियम पर दो लाख रुपए का बीमा सुनिश्चित हुआ। आज इस स्कीम से 25 करोड़ से ज्यादा गरीब जुड़े हैं। इसी तरह, दुर्घटना बीमा के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना चल रही है। इससे भी करीब 55 करोड़ गरीब जुड़े हैं। ये वो गरीब देशवासी हैं, जो पहले बीमा के बारे में सोच भी नहीं पाते थे।

साथियों,

आपको जानकार के हैरानी होगी, इन योजनाओं से करीब-करीब 25 हजार करोड़ रुपए का क्लेम, इन छोटे-छोटे परिवार के छोटे-छोटे जिंदगी के गुजारे करने वाले, मेरे सामान्य गरीब परिवारों तक 25 हजार करोड़ रूपयों का लाभ पहुंचा है। यानी संकट के समय ये पैसा गरीब परिवारों के काम आया है।

साथियों,

आज अटल जी की जयंती का ये दिन सुशासन के उत्सव का भी दिन है। लंबे समय तक, देश में गरीबी हटाओ जैसे नारों को ही गवर्नेंस मान लिया गया था। लेकिन अटल जी ने, सही मायने में सुशासन को ज़मीन पर उतारा। आज डिजिटल पहचान की इतनी चर्चा होती है, इसकी नींव बनाने का काम अटल जी की सरकार ने ही किया था। उस समय जिस विशेष कार्ड के लिए काम शुरु हुआ था, जो आज आधार के रूप में, विश्व विख्यात हो चुका है। भारत में टेलिकॉम क्रांति को गति देने का श्रेय भी अटल जी को ही जाता है। उनकी सरकार ने जो टेलिकॉम नीति बनाई, उससे घर-घर तक फोन और इंटरनेट पहुंचाना आसान हुआ, और आज भारत, दुनिया में सबसे अधिक मोबाइल और इंटरनेट यूज़र वाले देशों में से एक है।

साथियों,

आज अटल जी जहां होंगे, इस बात से प्रसन्न होंगे कि, बीते 11 वर्षों में भारत, दुनिया का दूसरा बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है। और जिस यूपी से वो सांसद रहे, वो यूपी आज भारत का नंबर वन मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग राज्य है।

साथियों,

कनेक्टिविटी को लेकर अटल जी के विजन ने, 21वीं सदी के भारत को शुरुआती मजबूती दी। अटल जी की सरकार के समय ही, गांव-गांव तक सड़कें पहुंचाने का अभियान शुरु किया गया था। उसी समय स्वर्णिम चतुर्भुज, यानी हाईवे के विस्तार पर काम शुरु हुआ था।

साथियों,

साल 2000 के बाद से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत अब तक करीब 8 लाख किलोमीटर सड़कें गांवों में बनी हैं। और इनमें से करीब 4 लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कें पिछले 10-11 साल में बनी हैं।

और साथियों,

आज आप देखिए, आज हमारे देश में अभूतपूर्व गति से एक्सप्रेस-वे बनाने का काम कितनी तेजी से चल रहा है। हमारा यूपी भी एक्सप्रेस-वे स्टेट के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। वो अटल जी ही थे, जिन्होंने दिल्ली में मेट्रो की शुरुआत की थी। आज देश के 20 से ज्यादा शहरों में मेट्रो नेटवर्क, लाखों लोगों का जीवन आसान बना रहा है। भाजपा-NDA सरकार ने सुशासन की जो विरासत बनाई है, उसे आज भाजपा की केंद्र और राज्य की सरकारें, नए आयाम, नया विस्तार दे रही है।

साथियों,

डॉक्टर मुखर्जी, पंडित दीन दयाल जी, अटल जी, इन तीन महापुरुषों की प्रेरणा, उनके विजनरी कार्य, ये विशाल प्रतिमाएं, विकसित भारत का बहुत बड़ा आधार है। आज इनकी प्रतिमाएं, हमें नई ऊर्जा से भर रही हैं। लेकिन हमें ये नहीं भूलना है कि, आज़ादी के बाद, भारत में हुए हर अच्छे काम को कैसे एक ही परिवार से जोड़ने की प्रवृत्ति पनपी। किताबें हों, सरकारी योजनाएं हों, सरकारी संस्थान हों, गली, सड़क, चौराहे हों, एक ही परिवार का गौरवगान, एक ही परिवार के नाम, उनकी ही मूर्तियां, यही सब चला। भाजपा ने देश को एक परिवार की बंधक बनी इस पुरानी प्रवृत्ति से भी बाहर निकाला है। हमारी सरकार, मां भारती की सेवा करने वाली हर अमर संतान, हर किसी के योगदान को सम्मान दे रही है। मैं कुछ उदाहरण आपको देता हूं, आज नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा, दिल्ली के कर्तव्य पथ पर है। अंडमान में जिस द्वीप पर नेताजी ने तिरंगा फहराया, आज उसका नाम नेताजी के नाम पर है।

साथियों,

कोई नहीं भूल सकता कि कैसे बाबा साहेब आंबेडकर की विरासत को मिटाने का प्रयास हुआ, दिल्ली में कांग्रेस के शाही परिवार ने ये पाप किया, और यहां यूपी में सपा वालों ने भी यही दुस्साहस किया, लेकिन भाजपा ने बाबा साहेब की विरासत को मिटने नहीं दिया। आज दिल्ली से लेकर लंदन तक, बाबा साहेब आंबेडकर के पंचतीर्थ उनकी विरासत का जयघोष कर रहे हैं।

साथियों,

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सैकड़ों रियासतों में बंटे हमारे देश को एक किया था, लेकिन आज़ादी के बाद, उनके काम और उनके कद, दोनों को छोटा करने का प्रयास किया गया। ये भाजपा है जिसने सरदार साहेब को वो मान-सम्मान दिया, जिसके वो हकदार थे। भाजपा ने ही सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाई, एकता नगर के रूप में एक प्रेरणा स्थली का निर्माण किया। अब हर साल वहां 31 अक्टूबर को देश राष्ट्रीय एकता दिवस का मुख्य आयोजन करता है।

साथियों,

हमारे यहां दशकों तक आदिवासियों के योगदान को भी उचित स्थान नहीं दिया गया। हमारी सरकार ने ही भगवान बिरसा मुंडा का भव्य स्मारक बनाया, अभी कुछ सप्ताह पहले ही छत्तीसगढ़ में शहीद वीर नारायण सिंह आदिवासी म्यूजियम का लोकार्पण हुआ है।

साथियों,

देशभर में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, यहीं उत्तर प्रदेश में ही देखें तो, महाराजा सुहेलदेव का स्मारक, तब बना जब भाजपा सरकार बनी। यहाँ निषादराज और प्रभु श्रीराम की मिलन स्थली को अब जाकर के मान-सम्मान मिला। राजा महेंद्र प्रताप सिंह से लेकर चौरी-चौरा के शहीदों तक, मां भारती के सपूतों के योगदान को भाजपा सरकार ने ही पूरी श्रद्धा और विन्रमता से याद किया है।

साथियों,

परिवारवाद की राजनीति की एक विशिष्ट पहचान होती है, ये असुरक्षा से भरी हुई होती है। इसलिए, परिवारवादियों के लिए, दूसरों की लकीर छोटी करना मजबूरी हो जाता है, ताकि उनके परिवार का कद बड़ा दिखे और उनकी दुकान चलती रहे। इसी सोच ने भारत में राजनीतिक छुआछूत का चलन शुरु किया। आप सोचिए, आज़ाद भारत में अनेक प्रधानमंत्री हुए, लेकिन राजधानी दिल्ली में जो म्यूजियम था, उसमें अनेक पूर्व प्रधानमंत्रियों को नजर अंदाज किया गया। इस स्थिति को भी भाजपा ने, एनडीए ने ही बदला है। आज आप दिल्ली जाते हैं, तो भव्य प्रधानमंत्री संग्रहालय आपका स्वागत करता है वहां आज़ाद भारत के हर प्रधानमंत्री, चाहे कार्यकाल कितना भी छोटा रहा हो, सबको उचित सम्मान और स्थान दिया गया है।

साथियों,

कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने राजनीतिक रूप से भाजपा को हमेशा अछूत बनाए रखा। लेकिन भाजपा के संस्कार हमें सबका सम्मान करना सिखाते हैं। बीते 11 वर्षों में भाजपा सरकार के दौरान, एनडीए सरकार के दौरान, नरसिम्हा राव जी और प्रणब बाबू को भारत रत्न दिया गया है। ये हमारी सरकार है जिसने मुलायम सिंह यादव जी और तरुण गोगोई जी जैसे अनेक नेताओं को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया है। कांग्रेस से, यहां समाजवादी पार्टी से कोई भी ऐसी उम्मीद तक नहीं कर सकता। इन लोगों के राज में तो भाजपा के नेताओं को सिर्फ अपमान ही मिलता था।

साथियों,

भाजपा की डबल इंजन सरकार का बहुत अधिक फायदा उत्तर प्रदेश को हो रहा है। उत्तर प्रदेश, 21वीं सदी के भारत में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। और मेरा सौभाग्य है कि मैं यूपी से सांसद हूं। आज मैं बहुत गर्व से कह सकता हूं, कि उत्तर प्रदेश के मेहनतकश लोग एक नया भविष्य लिख रहे हैं। कभी यूपी की चर्चा खराब कानून व्यवस्था को लेकर होती थी, आज यूपी की चर्चा विकास के लिए होती है। आज यूपी देश के पर्यटन मानचित्र पर तेज़ी से उभर रहा है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर, काशी विश्वनाथ धाम, ये दुनिया में यूपी की नई पहचान के प्रतीक बन रहे हैं। और राष्ट्र प्रेरणा स्थल जैसे आधुनिक निर्माण, उत्तर प्रदेश की नई छवि को और अधिक रोशन बनाते हैं।

साथियों,

हमारा उत्तर प्रदेश, सुशासन, समृद्धि, सच्चे सामाजिक न्याय के मॉडल के रूप में और बुलंदी हासिल करे, इसी कामना के साथ आप सभी को फिर से राष्ट्र प्रेरणा स्थल की बधाई। मैं कहूंगा डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आप कहेंगे अमर रहे, अमर रहे। मैं कहूं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी, आप कहें अमर रहे, अमर रहे। मैं कहूं अटल बिहारी वाजपेयी जी, आप कहें अमर रहे, अमर रहे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी - अमर रहे, अमर रहे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी - अमर रहे, अमर रहे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी - अमर रहे, अमर रहे।

पंडित दीनदयाल जी - अमर रहे, अमर रहे।

पंडित दीनदयाल जी - अमर रहे, अमर रहे।

पंडित दीनदयाल जी - अमर रहे, अमर रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी - अमर रहे, अमर रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी - अमर रहे, अमर रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी - अमर रहे, अमर रहे।

भारत माता की जय!

वन्दे मातरम्।

वन्दे मातरम्।

बहुत-बहुत धन्यवाद।