PM Narendra Modi’s Africa visit aimed at enhancing India’s ties with African mainland
PM Narendra Modi to visit Mozambique, South Africa, Tanzania and Kenya
PM Narendra Modi to meet South African President Jacob Zuma, attend India-South Africa business meet
PM Modi to reach out to Indian Community in South Africa
Share your ideas for the PM’s community programme now! Download the ‘Narendra Modi Mobile App’
PM Modi to meet Tanzanian President Dr. John Magufuli, chalk out ways for bettering India-Tanzania ties
PM Narendra Modi to visit Kenya, meet President President Uhuru Kenyatta, take up trade & commercial ties for discussion
Prime Minister Modi to interact with students at the Nairobi University
Download the ‘Narendra Modi Mobile App’ now and contribute your insights for the PM’s community event in Nairobi!

Following is the text of Prime Minister Shri Narendra Modi’s statement prior to his departure to Mozambique, South Africa, Tanzania and Kenya.

“On Thursday, 7th July I will be in Mozambique. The aim of my visit is to increase cooperation and boost cultural linkages. I will meet President Filipe Nyusi and hold extensive talks with him.

My other programmes include a meeting with Ms. Veronica Macamo, the President of the National Assembly and a visit to the S&T Park, Maluana where I will interact with students.

I will also interact with the Indian community briefly.

On the evening of 7th July, I will reach Pretoria in South Africa. South Africa is an important strategic partner, with whom our ties are historical and deep-rooted. My programmes in South Africa will span across Pretoria, Johannesburg, Durban and Pietermaritzburg. History is witness to how Mahatma Gandhi’s stay in South Africa impacted him and the history of the world. He went to South Africa as a lawyer seeking work and returned to India as a strong voice for humanitarian values, who would go on to shape the history of humankind.

I will have the honour to visit Phoenix Settlement and Pietermaritzburg Station, two places very closely associated with Mahatma Gandhi’s stay in South Africa. A visit to South Africa is incomplete without remembering the beloved Madiba. I will also be honoured to visit the Constitutional Hill and Nelson Mandela Foundation where I would pay my tributes to an icon of human history, who made his country and the world a much better place.

During my visit, I will meet President Zuma. I will also be meeting Mr. Cyril Ramaphosa, the Deputy President.

In an effort to boost our economic ties, I will speak at the India-South Africa business meet. Other programmes include a meeting with the Alumni Network in Durban and a reception hosted by the Mayor of Durban, at Durban City Hall.

South Africa is home to a vibrant Indian community, that has made South Africa their home for years. I will interact with the Indian community a programme in Johannesburg on 8th July. I invite you to share your ideas and inputs for my speech, through the ‘Narendra Modi Mobile App.’

On Sunday 10th July I will be in Tanzania for a brief but crucial visit to give an impetus to ties with Tanzania, a valued friend in Africa.

There will be extensive talks with President Dr. John Magufuli where we will chalk out the road ahead for bettering India-Tanzania relations in a wide range of areas. I will also be meeting ‘Solar Mamas’, a group of rural women solar engineers from Africa who have been trained under GOI-supported programmes to fabricate, install, use, repair and maintain solar lanterns and household solar lighting systems in their villages.

I will interact with the Indian community as well.

I will begin my Kenya visit on the evening of 10th July. India-Kenya ties have stood the test of time. Both our nations have had very strong people-to-people ties and both nations have successfully fought colonialism in the previous century.

My deliberations with President Uhuru Kenyatta will revolve around how India and Kenya can grow their bilateral cooperation. I envision better trade, commercial and cultural exchanges between India and Kenya. The potential is immense and together we seek to harness it.

In Nairobi, I will offer floral tributes to Mahatma Gandhi, who is widely revered in Kenya. I shall also pay tributes to Mzee Jomo Kenyatta, the first president of Kenya and a towering political figure of Africa.

The meeting of the India-Kenya business forum will be an important forum to elaborate more on the economic aspect of our relationship with Kenya.

A programme that I am keenly looking forward to join is an interaction with students at the Nairobi University.

In order to deepen ties with the diaspora, I will address a community programme on 10th July. There is also a meeting with Bharatwallah Alumni Association during the visit. Another programme is the handing over of ambulances and a model of Bhabhatron.”

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November 07, 2025
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During the colonial era, Vande Mataram became the proclamation of the resolve that India would be free, and the chains of bondage would be broken by the hands of Maa Bharati: PM
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Whenever the national flag unfurls, these words rise instinctively from our hearts— Bharat Mata ki Jai! Vande Mataram!: PM

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम, ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। वंदे मातरम, ये एक शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की आराधना है। वंदे मातरम, ये एक शब्द हमें इतिहास में ले जाता है। ये हमारे आत्मविश्वास को, हमारे वर्तमान को, आत्मविश्वास से भर देता है, और हमारे भविष्य को ये नया हौंसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं, ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके। ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जो हम भारतवासी पा ना सकें।

साथियों,

वंदे मातरम के सामूहिक गान का ये अद्भुत अनुभव, ये वाकई अभिव्यक्ति से परे है। इतनी सारी आवाजों में एक लय, एक स्वर, एक भाव, एक जैसा रोमांच, एक जैसा प्रवाह, ऐसा तारतम्य, ऐसी तरंग, इस ऊर्जा ने ह्दय को स्पंदित कर दिया है। भावनाओं से भरे इसी माहौल में, मैं अपनी बात को आगे बढ़ा रहा हूं। मंच पर उपस्थित कैबिनेट के मेरे सहयोगी गजेंद्र सिंह शेखावत, दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी, अन्य सभी महानुभाव, भाइयों और बहनों।

आज हमारे साथ देश के सभी कोने से लाखों लोग जुड़े हुए हैं, मैं उनको भी मेरी तरफ से वंदे मातरम से शुभकामनाएं देता हूं। आज 7 नवंबर का दिन बहुत ऐतिहासिक है, आज हम वंदे मातरम के 150वें वर्ष का महाउत्सव मना रहे हैं। ये पुण्य अवसर हमें नई प्रेरणा देगा, कोटि-कोटि देशवासियों को नई ऊर्जा से भर देगा। इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज वंदे मातरम पर एक विशेष कॉइन और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं। मैं देश के लक्ष्यावदी महापुरुषों को, मां भारती के संतानों को वंदे मातरम, इस मंत्र के लिए जीवन खपाने के लिए आज श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं, और देशवासियों को इस अवसर पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं सभी देशवासियों को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं भी देता हूं।

साथियों,

हर गीत, हर काव्य का अपना एक मूल भाव होता है, उसका अपना एक मूल संदेश होता है। वंदे मातरम का मूल भाव क्या है? वंदे मातरम का मूल भाव है- भारत, मां भारती। भारत की शाश्वत संकल्पना, वो संकल्पना जिसने मानवता के प्रथम पहर से खुद को गढ़ना शुरू कर दिया। जिसने युगों-युगों को एक-एक अध्याय के रूप में पढ़ा। अलग-अलग दौर में अलग-अलग राष्ट्रों का निर्माण, अलग-अलग ताकतों का उदय, नई-नई सभ्यताओं का विकास, शून्य से शिखर तक उनकी यात्रा, और शिखर से पुनः शून्य में उनका विलय, बनता बिगड़ता इतिहास, दुनिया का बदलता भूगोल, भारत ने ये सब कुछ देखा है। इंसान की इस अनंत यात्रा से हमने सीखा और समय-समय पर नए निष्कर्ष निकाले। हमने उनके आधार पर अपनी सभ्यता के मूल्यों और आदर्शों को तराशा, उसे गढ़ा। हमने, हमारे पूर्वजों ने, हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, हमारे आचार्यों ने, भगवंतों ने, हमारे देशवासियों ने अपनी एक सांस्कृतिक पहचान बनाई। हमने ताकत और नैतिकता के संतुलन को बराबर समझा। और तब जाकर, भारत एक राष्ट्र के रूप में वो कुन्दन बनकर उभरा जो अतीत की हर चोट सहता भी रहा और सहकर भी अमरत्व को प्राप्त कर गया।

भाइयों-बहनों,

भारत की ये संकल्पना, उसके पीछे की वैचारिक शक्ति है। उठती-गिरती दुनिया से अलग अपना स्वतंत्र अस्तित्व बोध, ये उपलब्धि, और लयबद्ध, लिपिबद्ध होना, लयबद्ध होना, और तब जाकर के ह्दय की गहराई से, अनुभवों के निचोंड़ से, संवेदनाओं की असीमता को प्राप्त कर करके वंदे मातरम जैसी रचना मिलती है। और इसलिए, गुलामी के उस कालखंड में वंदे मातरम इस संकल्प का उद्घोष बन गया था, और वो उद्घोष था- भारत की आज़ादी का। माँ भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियाँ टूटेंगी, और उसकी संताने स्वयं अपने भाग्य की भाग्य विधाता बनेंगी।

साथियों,

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था- “बंकिमचंद्र की आनंदमठ केवल उपन्यास नहीं है, ये स्वाधीन भारत का एक स्वप्न है”। आप देखिए, आनंदमठ में वंदे मातरम का प्रसंग, वंदे मातरम की एक-एक पंक्ति के, बंकिम बाबू के एक-एक शब्द के, उसके हर भाव के, अपने गहरे निहितार्थ थे, निहितार्थ हैं। ये गीत गुलामी के कालखंड में रचना तो जरूर हो गई उस समय, लेकिन उसके शब्द कुछ वर्षों की गुलामी के साये में कभी भी कैद नहीं रहें। वो गुलामी की स्मृतियों से आज़ाद रहें। इसलिए, वंदे मातरम हर दौर में, हर कालखंड में प्रासंगिक है, इसने अमरता को प्राप्त किया है। वंदे मातरम की पहली पंक्ति है- “सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम्, सस्यश्यामलाम् मातरम्।” अर्थात्, प्रकृति के दिव्य वरदान से सुशोभित हमारी सुजलाम् सुफलाम् मातृभूमि को नमन।

साथियों,

यही तो भारत की हजारों साल पुरानी पहचान रही है। यहाँ की नदियां, यहाँ के पहाड़, यहाँ के वन, वृक्ष और यहां की उपजाऊ मिट्टी, ये धरती हमेशा सोना उगलने की ताकत रखती है। सदियों तक दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियाँ सुनती रही थी। कुछ ही शताब्दी पहले तक, ग्लोबल GDP का करीब एक चौथाई हिस्सा भारत के पास था।

लेकिन भाइयों-बहनों,

जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की थी, तब भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर जा चुका था। विदेशी आक्रमणकारियों ने, उनके हमले, लूटपाट अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियाँ, उस समय हमारा देश गरीबी और भुखमरी के चंगुल में कराह रहा था। तब भी, बंकिम बाबू ने, उस बुरे हालात के स्थितियों में भी, चारों तरफ दर्द था, विनाश था, शोक था, सबकुछ डूबता हुआ नज़र आ रहा था, ऐसे समय बंकिम बाबू ने समृद्ध भारत का आह्वान किया। क्योंकि, उन्हें विश्वास था कि मुश्किलें कितनी भी क्यों ना हों, भारत अपने स्वर्णिम दौर को पुनर्जीवित कर सकता है। और इसलिए उन्होंने आह्वान किया, वंदे मातरम।

साथियों,

गुलामी के उस कालखंड में भारत को नीचा और पिछड़ा बताकर जिस तरह अंग्रेज़ अपनी हुकूमत को justify करते थे, इस प्रथम पंक्ति ने उस दुष्प्रचार को पूरी तरह से ध्वस्त करने का काम किया। इसलिए, वंदे मातरम केवल आज़ादी का गान ही नहीं बना, बल्कि आज़ाद भारत कैसा होगा, वंदे मातरम ने वो ‘सुजलाम सुफलाम सपना’ भी करोड़ों देशवासियों के सामने प्रस्तुत किया।

साथियों,

आज ये दिन हमें वंदे मातरम की असाधारण यात्रा और उसके प्रभाव को जानने का अवसर भी देता है। जब सन् 1875 में बंकिम बाबू ने बंगदर्शन में “वंदे मातरम्” प्रकाशित किया था, तो कुछ लोगों को लगता था कि ये तो केवल एक गीत है। लेकिन, देखते ही देखते वंदे मातरम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का, कोटि-कोटि जनों का स्वर बन गया। एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की जबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था। आप देखिए, आज़ादी की लड़ाई का शायद ही ऐसा कोई अध्याय होगा, जिससे वंदे मातरम किसी न किसी रूप से जुड़ा नहीं था। 1896 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम गाया। 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ। ये देश को बांटने का अंग्रेजों का एक खतरनाक एक्सपेरिमेंट था। लेकिन, वंदे मातरम उन मंसूबों के आगे चट्टान बनकर के खड़ा हो गया। बंगाल के विभाजन के विरोध में सड़कों पर एक ही आवाज़ थी- वंदे मातरम।

साथियों,

बरिसाल अधिवेशन में जब आंदोलनकारियों पर गोलियाँ चलीं, तब भी उनके होंठों पर वही मंत्र था, वही शब्द थे- वंदे मातरम! भारत के बाहर रहकर आज़ादी के लिए काम कर रहे वीर सावरकर जैसे स्वतंत्र सेनानी, वो जब आपस में मिलते थे, तो उनका अभिवादन वंदे मातरम से ही होता था। कितने ही क्रांतिकारियों ने फांसी के तख्त पर खड़े होकर भी वंदे मातरम बोला था। ऐसी कितनी ही घटनाएँ, इतिहास की कितनी ही तारीखें, इतना बड़ा देश, अलग-अलग प्रांत और इलाके, अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग, उनके आंदोलन, लेकिन जो नारा, जो संकल्प, जो गीत हर जबान पर था, जो गीत हर स्वर में था, वो था- वंदे मातरम।

इसलिए, भाइयों-बहनों,

1927 में महात्मा गांधी ने कहा था- "वंदे मातरम हमारे सामने संपूर्ण भारत का ऐसा चित्र उपस्थित कर देता है, जो अखंड है।"श्री अरबिंदो ने वंदे मातरम को एक गीत से भी आगे, उसे एक मंत्र कहा था। उन्होंने कहा- ये एक ऐसा मंत्र है जो आत्मबल जगाता है। भीकाजी कामा ने भारत का जो ध्वज तैयार करवाया था, उसमें बीच में भी लिखा था- “वंदे मातरम”

साथियों,

हमारा राष्ट्र ध्वज समय के साथ कई बदलावों से गुजरा, लेकिन तब से लेकर आज तक हमारे तिरंगे तक, देश का झण्डा जब भी फहरता है, तो हमारे मुंह से अनायास निकलता है- भारत माता की जय! वंदे मातरम! इसीलिए, आज जब हम उस राष्ट्रगीत के 150 वर्ष मना रहे हैं, तो ये देश के महान नायकों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है। और ये उन लाखों बलिदानियों को भी श्रद्धापूर्वक नमन है, जो वंदे मारतम का आह्वान करते हुए, फांसी के तख्त पर झूलते हुए, जो वंदे मातरम बोलते हुए, कोड़ों की मार सहते रहे, जो वंदे मातरम का मंत्र जपते हुए बर्फ की सिल्लियों पर अडिग रहे।

साथियों,

आज हम 140 करोड़ देशवासी ऐसे सभी नाम-अनाम-गुमनाम राष्ट्र के लिए जीने-मरने वालों को श्रद्धांजलि देते हैं। जो वंदे मारतम कहते हुए देश के लिए बलिदान हो गए, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में कभी दर्ज ही नहीं हो पाए।

साथियों,

हमारे वेदों ने हमें सिखाया है- "माता भूमिः, पुत्रोऽहं पृथिव्याः"॥ अर्थात्, ये धरती हमारी माँ है, ये देश हमारी माँ है। हम इसी की संतानें हैं। भारत के लोगों ने वैदिक काल से ही राष्ट्र की इसी स्वरूप में कल्पना की, इसी स्वरूप में आराधना की है। इसी वैदिक चिंतन से वंदे मातरम ने आज़ादी की लड़ाई में नई चेतना फूंकी।

साथियों,

राष्ट्र को एक geopolitical entity मानने वालों के लिए राष्ट्र को माँ मानने का विचार हैरानी भरा हो सकता है। लेकिन, भारत अलग है। भारत में माँ जननी भी है, और माँ पालनहारिणी भी है। अगर संतान पर संकट आ जाए, तो माँ संहारकारिणी भी है। इसलिए, वंदे मातरम कहता है- अबला केन मा एत बले। बहुबल-धारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदल-वारिणीं मातरम्॥ वंदे मातरम, अर्थात् अपार शक्ति धारण करने वाली भारत माँ, संकटों से पार भी कराने वाली, और शत्रुओं का विनाश भी कराने वाली है। राष्ट्र को माँ, और माँ को शक्ति स्वरूपा नारी मानने का ये विचार, इसका एक प्रभाव ये भी हुआ कि हमारा स्वतन्त्रता संग्राम, स्त्री-पुरुष, सबकी भागीदारी का संकल्प बन गया। हम फिर से ऐसे भारत का सपना देख पाये, जिसमें महिलाशक्ति राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे खड़ी दिखाई देगी।

साथियों,

वंदे मातरम, आज़ादी के परवानों का तराना होने के साथ ही, इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हमें इस आज़ादी की रक्षा कैसे करनी है, बंकिम बाबू के पूरे मूल गीत की पंक्तियाँ हैं- त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी कमला कमल-दल-विहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् नमामि कमलाम् अमलां अतुलाम् सुजलां सुफलाम् मातरम्, वंदेमातरम! अर्थात्, भारत माता विद्यादायिनी सरस्वती भी है, समृद्धि दायिनी लक्ष्मी भी हैं, और अस्त्र-शास्त्रों को धारण करने वाली दुर्गा भी हैं। हमें ऐसे ही राष्ट्र का निर्माण करना है, जो ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में शीर्ष पर हो, जो विद्या और विज्ञान की ताकत से समृद्धि के शीर्ष पर हो, और जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर भी हो।

साथियों,

बीते वर्षों में दुनिया भारत के इसी स्वरूप का उदय देख रही है। हमने विज्ञान और टेक्नोलॉजी की फील्ड में अभूतपूर्व प्रगति की। हम दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरे। और, जब दुश्मन ने आतंकवाद के जरिए भारत की सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया, तो पूरी दुनिया ने देखा, नया भारत मानवता की सेवा के लिए अगर कमला और विमला का स्वरूप है, तो आतंक के विनाश के लिए ‘दश प्रहरण-धारिणी दुर्गा’ भी बनना जानता है।

साथियों,

वंदे मातरम से जुड़ा एक और विषय है, जिसकी चर्चा करना उतना ही आवश्यक है। आज़ादी की लड़ाई में वंदे मातरम की भावना ने पूरे राष्ट्र को प्रकाशित किया था। लेकिन दुर्भाग्य से, 1937 में वंदे मातरम के महत्वपूर्ण पदों को, उसकी आत्मा के एक हिस्से को अलग कर दिया गया था। वंदे मातरम को तोड़ दिया गया था, उसके टुकड़े किए गए थे। वंदे मातरम के इस विभाजन ने देश के विभाजन के बीज भी बो दिये थे। राष्ट्र निर्माण का ये महामंत्र, इसके साथ ये अन्याय क्यों हुआ? ये आज की पीढ़ी को भी जानना जरूरी है। क्योंकि वही विभाजनकारी सोच देश के लिए आज भी चुनौती बनी हुई है।

साथियों,

हमें इस सदी को भारत की सदी बनाना है। ये सामर्थ्य भारत में है, ये सामर्थ्य भारत के 140 करोड़ लोगों में है। हमें इसके लिए खुद पर विश्वास करना होगा। इस संकल्प यात्रा में हमें पथभ्रमित करने वाले भी मिलेंगे, नकारात्मक सोच वाले लोग हमारे मन में शंका-संदेह पैदा करने का प्रयास भी करेंगे। तब हमें आनंद मठ का वो प्रसंग याद करना है, आनंद मठ में जब संतान भवानंद वंदे मातरम गाता है, तो एक दूसरा पात्र तर्क-वितर्क करता है। वह पूछता है कि तुम अकेले क्या कर पाओगे? तब वंदे मातरम से प्रेरणा मिलती है, जिस माता के इतने करोड़ पुत्र-पुत्री हों, उसके करोड़ों हाथ हों, वो माता अबला कैसे हो सकती है? आज तो भारत माता की 140 करोड़ संतान हैं। उसके 280 करोड़ भुजाएं हैं। इनमें से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा तो नौजवान हैं। दुनिया का सबसे बड़ा डेमोग्राफिक एडवांटेज हमारे पास है। ये सामर्थ्य इस देश का है, ये सामर्थ्य माँ भारती का है। ऐसा क्या है, जो आज हमारे लिए असंभव है? ऐसा क्या है, जो हमें वंदे मातरम के मूल सपने को पूरा करने से रोक सकता है?

साथियों,

आज आत्मनिर्भर भारत के विज़न की सफलता, मेक इन इंडिया का संकल्प, और 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ते हमारे कदम, देश जब ऐसे अभूतपूर्व समय में नई उपलब्धियां हासिल करता है, तो हर देशवासी के मुंह से निकलता है- वंदे मातरम! आज जब भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बनता है, जब नए भारत की आहट अंतरिक्ष के सुदूर कोनों तक सुनाई देती है, तो हर देशवासी कह उठता है- वंदे मातरम! आज जब हम हमारी बेटियों को स्पेस टेक्नोलॉजी से लेकर स्पोर्ट्स तक में शिखर पर पहुँचते देखते हैं, आज जब हम बेटियों को फाइटर जेट उड़ाते देखते हैं, तो गौरव से भरा हर भारतीय का नारा होता है- वंदे मातरम!

साथियों,

आज ही हमारे फौज के जवानों के लिए वन रैंक वन पेंशन लागू होने के 11 वर्ष हुए हैं। जब हमारी सेनाएं, दुश्मन के नापाक इरादों को कुचल देती हैं, जब आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवादी आतंक की कमर तोड़ी जाती है, तो हमारे सुरक्षाबल एक ही मंत्र से प्रेरित होते हैं, और वो मंत्र है – वंदे मातरम!

साथियों,

मां भारती के वंदन की यही स्पिरिट हमें विकसित भारत के लक्ष्य तक ले जाएगी। मुझे विश्वास है, वंदे मातरम का मंत्र, हमारी इस अमृत यात्रा में, माँ भारती की कोटि-कोटि संतानों को निरंतर शक्ति देगा, प्रेरणा देगा। मैं एक बार फिर सभी देशवासियों को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर ह्दय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। और देशभर से मेरे साथ जुड़े हुए आप सबसे बहुत-बहुत धन्यवाद करते हुए, मेरे साथ खड़े होकर के पूरी ताकत से, हाथ ऊपर करके बोलिए–

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

बहुत-बहुत धन्यवाद!