यहां के राजयपाल श्रीमान कातीकल शंकर नारायणन जी, मुख्यमंत्री श्रीमान पृथ्वीराज जी, मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्री नितिन गडकरी जी, श्री पीयूष गोयल जी, यहां के नौजवान सांसद भाई शरद जी, श्री विनोद तांबरे जी, ऊर्जा सचिव श्री पी के सिन्हा जी, श्री आर पी सिंह, श्री आर एन नायक और विशाल संख्या में आए हुए सोलापुर के भाइयो-बहनो।
तीन महीना पूर्व मी आला होता (तीन महीने पहले मैं यहां आया था)
क्या सोलापुर के लोगों में उत्साह की कमी नहीं है क्या सोलापुर के प्यार पे शत शत नमन। ऐसा लगता है, सोलापुर ने मुझे अपना बना लिया। लेकिन मैं सोलापुर वासियों को ये विश्वास दिलाता हूं कि चुनाव के समय जब मैं यहां आया था और आपने जो भरपूर प्यार दिया था, और इतने कम समय में में दुबारा आया हूं। और मैं देख रहा हूं आपका प्यार बढ़ता ही जा रहा है। सोलापुर के मेरे भाइयों-बहनों, मैं इस प्यार को ब्याज समेत लौटाउंगा। विकास करके लौटाउंगा।
सोलापुर की पहचान टैक्सटाइल के साथ जुड़ी हुई है। टैक्सटाइल के क्षेत्र में सोलापुर के लोग कई नए प्रयोग करते हैं। लेकिन उन प्रयोगों को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय फलक पे जो स्थान मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा है। टैक्सटाइल उद्योग एक ऐसा उद्योग है जो सर्वाधिक रोजगार देने वाला उद्योग है। गरीब से गरीब को रोजगार देने वाला क्षेत्र है। और दिल्ली में बिठाई हुई आपकी सरकार नौजवानों को रोजगार देने के लिए प्रतिबद्ध है। नौजवान को अगर रोजगार मिल जाए तो इस देश के आशाओं को पूर्ण करने की ताकत हमारे नौजवानों में है, हमारी युवा पीढ़ी में है और उसके लिए हमारे युवकों की क्षमता बढ़े, उनके हाथ में हुनर हो, उनके कौशल्य में वृद्धि हो, हमारा नौजवान सामर्थवान बने और सामर्थवान नौजवान से उनके कर्तव्यों से, उनके पुरूषार्थ से हमारा राष्ट्र समृद्ध बने, ये सपना लेकर हम योजनाएं बनाते हैं और जिसका लाभ भारत में जहां-जहां टैक्सटाइल उद्योग की संभावनाएं पड़ी हैं, जहां-जहां टैक्सटाइल उद्योग की पुरानी नींव पड़ी है, उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देकर के टैक्सटाइल उद्योग को बढ़ावा देने का हमारा सपना है और इसका लाभ शोलापुर को भी मिलेगा, सोलापुर के नौजवानों को भी मिलेगा
आज दो महत्वपूर्ण कार्यों के लिए मुझे सोलापुर की धरती पर फिर से आने का सौभाग्य मिला है। हमारे देश में कई चुनाव इस मुद्दे पर लड़े गए और मुद्दा हुआ करता था बीएसपी। में बीएसपी पार्टी का नाम नहीं कह रहा हूं। बीएसपी -बिजली, सड़क, पानी। अगर हम इंफ्रास्ट्रक्चर को महत्व देते हैं, उसको अगर प्राथमिकता देते हैं, तो लोगों में इतना पुरूषार्थ पड़ा हुआ है तो मिट्टी में से सोना बना सकते हैं। अगर किसान को पानी मिला जाए तो किसान सोना पैदा कर सकता है। और इसलिए तो इस सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना का एक बड़ा अभियान उठाया है मन में। एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए उपयोगी इंफ्रास्ट्रक्चर पर बल देना। कृषि क्षेत्र में पानी पहुंचाने को प्राथमिकता देना। उसी प्रकार से देश का औद्योगिक विकास, देश के सामान्य नागरिक के जीवन में क्वालिटी आफ लाइफ में परिवर्तन आए। आज गांव में डाक्टर रहने के लिए तैयार नहीं हैं, शिक्षक रहने को तैयार नहीं, सरकारी मुलाजिम रहने को तैयार नहीं। वह शाम होने से पहले ही भाग जाता है, शहर में चला जाता है, क्यों, क्योंकि गांवमें बिजली नहीं है। बिजली नहीं तो टीवी नहीं चलता है। इंटरनेट नहीं है। तो डाक्टर का इस स्थिति में रहने को मन नहीं करता। हमारी सरकार का सपना है सात दिवस 365 दिवस, 24 घंटे बिजली गांवों में कैसे मिले। आज इस सपने को पूरा करने के लिए एक तरफ बिजली का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा, दूसरी तरफ बिजली पहुंचाने का प्रबंध करना पड़ेगा और जन भागीदारी से महत्वपूर्ण काम भी करना पड़ेगा, वह है बिजली बचाओ।
कुछ लोगों को लगता है कि सेना में भर्ती होंगे, तभी देश सेवा होगी। चुनाव लड़कर के एमएलए, एमपी बनेंगे, मंत्री बनेंगे, तभी देश सेवा होगी। मेरे भाइयो-बहनो, अगर हम बिजली बचाने में योगदान करें, तो भी वह देश की बहुत बड़ी सेवा है। मैं तो चाहता हूं कि सभी विद्यार्थी देश सेवा का एक काम अपने जिम्मे लें। हर विद्यार्थी कर सकता है। हर महीने अपने घर पे जो बिजली का बिल आता है, हर विद्यार्थी उसे देखें और जब भोजन करते हैं, तब माता-पिता, भाई-बहन सबके सामने चर्चा करें, बिजली का बिल दिखा कर के। और तय करें कि इस महीने अगर 100 रुपये का बिजली का बिल आता है तो अगले महीने बिजली का बिल 90 रुपये आ जाए, यह परिवार संकल्प करें और इस काम को विद्यार्थी कर सकता है। एक विद्यार्थी भी अपने घर में महीने में दस दस रुपये का बिल बचाएगा, घर के लोगों को भी लगेगा, वाह अपना बेटा बहुत छोटा है लेकिन कितना बड़ा काम करता है। हमने तो कभी सोचा ही नहीं कि चलो भई बिजली का बिल कम हो, इसके लिए कुछ करें। गरीब परिवार को हर महीने 10 रुपये, 20 रुपये, 25 रुपये बिल बच जाता है तो वह गरीब के लिए काम आता है। बच्चों को दूध पिलाने के लिए काम आता है। लेकिन यह तब बनता है, बिजली बचाना ये हमारा स्वभाव बने। बिजली बचाना- यह हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य बने। क्योंकि बिजली बनाने पर जितना खर्च होता है, उससे कम खर्चे में बिजली बचा कर हम देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। और मैं देशवासियों का आह्वान करता हूं । अगर हमें भारत को आगे ले जाना हैं, गरीब की झोपड़ी में भी बिजली का दीया जले, यह हम सबका अगर सपना है तो हम भी बिजली बचाने का प्रण लें, शपथ लें। और बिजली बचाने से औरों को जितना फायदा होगा, उससे ज्यादा हम परिवार वालों को होगा। और मुझे यह विश्वास है कि मेरी यह बात स्कूल में, कालेज में, शिक्षकों में, परिवारों में पहुंचेगी और आने वाले दिनों में बिजली बचत के अभियान में हम सफल होंगे। उसी प्रकार से हमारे देश में सब जगह बिजली के कारखाने नहीं लग पाये। कुछ राज्य हैं जो प्रगतिशील हैं, उन्होंने इस काम में प्रगति की है। एक जमाना था, महाराष्ट्र भी बिजली के उत्पादन में हिन्दुस्तान में बहुत आगे था। पर बाद की हालत का तो मैं वर्णन करना नहीं चाहता। लेकिन मुख्यमंत्री जी ने जो कहा, वह सही है। पूरे देश में इंधन न होने के कारण बिजली के कारखाने बंद पड़े हैं। उनकी पीड़ा सही है। लेकिन यह पीड़ा मुख्यमंत्री जी आज व्यक्त कर रहे हैं। मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो दो साल तक इस पीड़ा को मैं व्यक्त करता रहा था। लेकिन मेरे में उस समय कहने का अवसर था, पृथ्वीराज के लिए बोलना जरा मुश्किल था, लेकिन मैं बोलता था। लेकिन भाइयो-बहनो, अब जिम्मेदारी हमारी है। हम जिम्मेदारियों से भागने वाले लोग नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अटका हुआ है, कोयला चोरी का। जांच-पड़ताल चल रही है। लेकिन हम नई नीतियों को लेकर के जल्द से जल्द कोयले के खदानों में तेज गति से काम चले, इसके लिए प्रयासरत हैं। कोयले के खदानों में इनवायरामेंट के नुकसान के बिना, जंगलों में नुकसान किये बिना, आधुनिक टेक्नोलोजी से कोयला निकालना चाहते हैं। जल्द से जल्द कोयला भी पहुंचेगा, बिजली भी पैदा होगी। बिजली हिन्दुस्तान के कोने कोने में जाएगी।
भाइयो-बहनो, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, हम गुजरात में 24 घंटे, 365 दिन गांव को भी बिजली देते थे। वहां बिजली का जाना, यह पता ही नहीं है लोगों को। हमारे पास अतिरिक्त बिजली थी, इसके बावजूद भी, वह बिजली देश के काम नहीं आती थी। बिजली के कारखाने हमें बंद करने पड़ते थे। क्योंकि बिजली ले जाने के लिए जो ट्रांसमिशन लाइन चाहिए, वह नहीं थी। ट्रांसमिशन लाइन नहीं होने के कारण बिजली नहीं जाती थी। एक बार दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मुझे कहा, मोदी जी हमारे यहां चुनाव आ रहा है। दिल्ली में अंधेरा हमें परेशान करता है। आप कुछ बिजली दीजिए। मैंने कहा, में राजनीति बीच में नहीं लाता हूं, मैं प्रबंध करता हूं। मैं मीटिंग में था, आधे घंटे में मैंने उनको जवाब दिया, आपको जितनी बिजली चाहिए, आप ले सकते हैं। मैंने हमारे अफसरों से बात करना, उनके अफसरों से मिला देना, फोन पर सारा कारोबार चला। दूसरे दिन मैंने पूछा, सब हो गया, तो मुख्यमंत्री जी ने कहा- मोदी जी आप तो तैयार हैं पर बिजली लाने के लिए मेरे पास तार नहीं है। तार नहीं होने के कारण दिल्ली अंधेरे में रह गई। भाइयों-बहनों आज हमारे लिए यह बिजली के ट्रासंमिशन लाइन के द्वारा पूरे देश को जोड़ना आवश्यक है। जिस इलाके में बिजली नहीं है, वहां बिजली पहुंचाना आवश्यक है और वही महत्वपूर्ण काम उत्तर को पश्चिम से जोड़ना, पश्चिम को पूरब से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण काम, जिसका आज उद्घाटन आपके सोलापुर की धरती से राष्ट्र को समर्पित किया जा रहा है। दक्षिण भारत, जहां बिजली की जरूरत है, महाराष्ट्र में जहां बिजली की जरूरत है, जिन राज्यों के पास अतिरिक्त बिजली है, उसको पहुंचाने के लिए एक ग्रिड काम आने वाली है। उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।
भाइयो-बहनो, गुजरात में एक सरदार सरोवर डैम नर्मदा योजना, जिसकी भागीदारी महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान चारों की है। लेकिन पिछले सात साल से दिल्ली सरकार की परमिशन नहीं मिलती है। नर्मदा डैम के काम को ऊचाई नहीं मिल रही थी और इसके कारण हमने हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाया हुआ था, बिजली पैदा करने के लिए, पानी कम होने के कारण जितनी बिजली पैदा होनी चाहिए, नहीं होती थी। पूरी क्षमता का उपयोग करना है तो डैम का काम पूरा होना जरूरी था। लेकिन राजनीतिक कारणों से डैम की ऊंचाई बढ़ाने की हमें अनुमति नहीं मिलती थी। सात साल से दिल्ली से हमारा झगड़ा चलता रहता था। नई सरकार बनने के बाद दस दिन में ही ये परमिशन दे दी। डैम की हाइट बढ़ाने का काम चल रहा है, लेकिन इससे महाराष्ट्र का क्या। आपको जानकर के खुशी होगी, इसके कारण अब बिजली पूरी क्षमता से पैदा होगी। उसके कारण महाराष्ट्र को हर वर्ष 400 करोड़ रुपये की बिजली मुफ्त में मिलेगी। ये काम आज से 7 साल पहले हो सकता था। यह काम अगर हो गया होता तो आज पृथ्वीराज जी गर्व के साथ महाराष्ट्र में बिजली पहुंचा सकते थे, लेकिन नहीं हुआ।
भाइयो-बहनो, ऐसे कई रुके हुए काम अब मेरे करने के दिन आए हैं। आज पुणे-सोलापुर हाईवे का भी शिलान्यास हो रहा है। आगे चल कर के यह आपको कर्नाटक से भी जोड़ेगा। इसके कारण , नितिन जी अभी कह रहे थे, अमेरिका के प्रेसिडेंट का उल्लेख करते थे। दुनिया में जहां-जहां विकास हुआ है, आप अगर उसका अध्ययन करेंगे तो सबसे पहले उस देश ने हिम्मत करके और कठिनाइयां झेल कर के, दो काम और रह जाए तो रह जाए, उसकी चिंता किए बिना इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दी। खास करके रोड नेटवर्क को प्राथमिकता दी। और रोड नेटवर्क को प्राथमिकता देने के कारण उन राष्ट्रों के विकास में बहुत बड़ी तेजी आई। साउथ कोरिया इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। साउथ कोरिया हमारे महाराष्ट्र से भी छोटा है। आर्थिक हालत बहुत खराब थी। लेकिन 30 वर्ष पहले वहां के शासकों ने पूरे साउथ कोरिया के बीच में से बहुत बड़ा रोड बना लिया। बहुत आंदोलन हुआ, लोगों ने विरोध किया सरकार का, कि इतने पैसे गंवा रहे हैं। खाने को पैसे नहीं हैं, गरीब देश है, भुखमरी है और आप रोड बना रहे हैं। सरकार बहुत मक्कमल थी, रोड बना दिया। देखते ही देखते रोड ने कोरिया की स्थति को बदल दिया और वो कोरिया, हिन्दुस्तान के बाद आजाद हुआ था, इतनी तेजी से आगे बढ़ा कि आज से दस-पंद्रह साल पहले कोरिया के अंदर ओलंपिक गेम को आयोजित करने का सामर्थ्य दिखाया था। एक रोड से सारी सोच बदल गई।
भाइयो-बहनो, रोड बनाने में इतनी ताकत होती है। रोड, रास्ता सिर्फ आपको ले जाता है, ऐसा नहीं है, आपकी सोच को भी बदल देता है। और यह सही है संपत्ति से रोड नहीं बनते हैं, रोड बनाने से संपत्ति बनती है। और इसलिए जितने अच्छे मार्गों के माध्यम से हम देश के हर कोने को जोड़ेंगे, उतना अच्छा। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक और बड़ा काम किया था, गोल्डन चर्तुभुज बनाया था। बाद में वह काम अटक गया। लेकिन पूरे देश में उस रास्ते के नेटवर्क ने एक नया विश्वास पैदा किया था। नितिन जी के नेतृत्व में हम उस काम को भी तेज गति से आगे बढ़ाने वाले हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सडक योजना, जो वाजपेयी जी लाए थे, उस सड़क योजना के कारण गांव गांव को जोड़ने की सुविधा में गति आई थी। उसी प्रकार से रोड नेटवर्क हों, रेल नेटवर्क हो, उसे भी बढ़ाना है। इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता देते हुए इस देश के कोने कोने में हर एक क्षेत्र को जोड़ना है। और जब इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ता है तो रोजगारी की संभावनाएं भी बहुत बढ़ती है। रोड बनाने में रोजगार मिलता है। सिर्फ ऐसा ही नहीं है, रोड में लगने वाला सामान जहां से आता है, उन कारखानों में रोगजार मिलता है। ट्रांसपोर्ट में भी रोजगार मिलता है। एक प्रकार से बेरोजगारी भगाने के लिए एक बड़ा माध्यम बन जाता है। और इसलिए ये रोड नेटवर्क, हम इन इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण भी स्ट्रेटेजिकली महत्वपूर्ण करने वाले हैं।
ऐसे नहीं, एक तरफ तो हम टूरिज्म बढ़ाने की बात करें लेकिन रास्ते वाला जो डिपार्टमेंट है, उसका कोई कंट्रीव्यूशन ही नहीं हो तो टूरिज्म कैसे बढ़ेगा। अगर टूरिज्म बढ़ाने के लिए अच्छे रोड नेटवर्क की जरूरत है तो उसको प्राथमिकता दे कर के उस रोड नेटवर्क को पूरा किया जाएगा। देश, आज से 20-25 साल पहले रेल-रोड नेटवर्क से संतुष्ट हो जाता था। लेकिन देश 21 वीं सदी में सिर्फ रेल और रोड के माध्यम से संतुष्ट नहीं हो सकता। आज देश को हाईवेज भी चाहिए, आईवेज भी चाहिए। आईवेज का मेरा मतलब है इंफोरमेशन हाईवेज। इंफोरमेशन टेक्नोलोजी के माध्यम से, ब्राडबैंड कनेक्टिविटी के माध्यम से, इंटरनेट कनेक्टिविटी के माध्यम से गांव गांव जुड़ना चाहिए। नए युग की आवश्यकता है। गैस गिड चाहिए, वाटर ग्रिड चाहिए। बिजली की ग्रिड चाहिए। हर प्रकार से एक रूप का इंफ्रास्ट्रक्चर का माडल आज समय की मांग है। और उसी की पूर्ति की दिशा में आज एक कदम जो उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाला है, महाराष्ट्र से कर्नाटक को जोड़ने वाला है। चाहे बिजली के माध्यम से हो, चाहे रोड नेटवर्क के माध्यम से हो, यह जोड़ने के अभियान के हिस्से के स्वरूप में आज मुझे सोलापुर आने का सौभाग्य मिला है। मैं आपके प्यार के लिए बहुत-बहुत आभारी हूं और मैं विश्वास करता हूं कि यह काम बहुत तेज गति से आगे बढ़ेगा और सोलापुर के विकास तथा इस क्षेत्र के विकास में, हिन्दुस्तान के दक्षिणी छोर में बिजली की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह सारे प्रयास सुखकर परिणाम देंगे।
इसी विश्वास के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।