PM Narendra Modi attends the Visitors' Conference at Rashtrapati Bhavan
Society is becoming technology driven. It is essential to understand the importance of this & look towards affordable technology: PM
Our focus must now be on innovation. It is the key to achieve one's dreams: PM Modi
Institutions of higher education should give primacy to innovation in learning: PM Narendra Modi
Finding solutions to challenges like global warming & converting waste to wealth are key to rise of India: PM Modi
Science is universal but technology must be local: PM Modi
The biggest strength of #MakeInIndia is human capital. Skill development is extremely vital: PM
Our President is a walking talking university. He is an ocean of knowledge: PM Narendra Modi

परम आदरणीय राष्‍ट्रपति जी, मंत्रिपरिषद के मेरे साथी, उपस्‍थित सभी वरिष्‍ठ महानुभाव। मैं आदरणीय राष्‍ट्रपति जी का बहुत आभारी हूं कि आपने इस व्‍यवस्‍था को प्राणवान बनाया। वरना आना-मिलना, कुछ इधर से कुछ उधर से और फिर Bye bye. इस ritual से बाहर इस व्‍यवस्‍था को निकाल करके इसमें प्राण भरने की कोशिश हुई है और समय की मांग के अनुसार उसमें participation, involvement, coordination इस पर अधिक बल दिया गया है। ये जो व्‍यवस्‍था विकसित हुई है और उसके मंथन में से जो अमृत प्राप्‍त हो रहा है वो भविष्‍य में राष्‍ट्र की विकास यात्रा के रोड मैप को तैयार करेगा। उसमें ज्ञान और अनुभव के सामर्थ्‍य को जोड़ेगा और समय सीमा में परिवर्तन लाने के प्रयासों को बल देगा। मैं हमेशा सोचता हूं कि प्राथमिक शिक्षा व्‍यक्‍ति के जीवन के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। प्राथमिक शिक्षा इंसान को जड़ों से जोड़ती है लेकिन higher education आसमान छूने के अरमान जगाती है और इसलिए जितना महत्‍मय प्राथमिक शिक्षा के माध्‍यम से जीवन को तैयार करना, प्राथमिक शिक्षा के माध्‍यम से जड़ों से जोड़ना, उतना ही higher education के माध्‍यम से आसमान को छूने वाले अरमान कैसे जगे। अगर प्राथमिक शिक्षा व्‍यक्‍ति घरतर पर ज्‍यादा बल देती है तो higher education राष्‍ट्र घरतर का आधार बनती है।

राष्‍ट्र कैसे शक्‍तिशाली बनेगा उसका एक road map, उसकी एक blue print इस कालखंड में तैयार होती है और उस अर्थ में आप लोगों का योगदान, आपके द्वारा institutions का योगदान, राष्‍ट्र के विकास की यात्रा को, राष्‍ट्र निर्माण के प्रयासों को समयानुकूल जिन ताकतों की आवश्‍यकता है उसको जोड़ने के लिए काम आता है। शायद इसके पूर्व की कोई शताब्‍दी ऐसी नहीं होगी जिस पर technology का इतना प्रभाव रहा हो। एक प्रकार से पूरा समाज जीवन technology driven हुआ है और तब जाकर के हमारे लिए भी आवश्‍यक होता है कि technology के इस महत्‍मय को स्‍वीकार करते हुए, भविष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए हम affordable technology की तरफ आगे कैसे बढ़े? हम sustainable technology पर बल कैसे दे और ये करना है तो हमें innovation पर बल देना होगा। Millions of million challenges are there. लेकिन जैसा अभी बताया गया कि Billions minds are also there. लेकिन जब तक वो mind innovation के साथ नहीं जुड़ता है वो अगर सिर्फ उपभोक्‍ता ही बना रहता है तो मैं नहीं मानता हूं कि इतने सारे mind को हम खुराक भी दे पाएंगे, उसको जो दिमागी खुराक चाहिए वो भी नहीं दे पाएंगे और इसलिए हम भाग्‍यवान है कि हमारे पास Billions of Billion mind है। लेकिन जब तक हम innovation के लिए कोई अगर हम proper environment नहीं देते हैं, mechanism develop नहीं करते हैं। resource mobilise नहीं करते हैं तो कभी-कभी विचार धरे के धरे रह जाते हैं और इसलिए सपनों को साकार करने का एक मार्ग होता है innovation. हमारी institutions innovation को प्राथमिकता देने में कितनी कामयाब हो रही है।

अब आज Global Warming, Environment ये सारे issues की चर्चा हो रही है दुनिया में। कुछ लोगों के लिए Global Warming एक चिंता का विषय है, तो कुछ लोगों के लिए Global Warming एक market का कारण है। उन्‍होंने उसको एक market opportunity में convert करने की सोची है। वे चाहते हैं कि हम technology में innovation करेंगे और Global Warming के नाम पर दुनिया की market को capture करेंगे। भारत जैसे देश के लिए ये आवश्‍यकता बन जाती है कि हम भावी पीढ़ी की रक्षा के लिए क्‍या वो innovation दुनिया के सामने ला सकते हैं। जो अच्‍छा भी हो और सस्‍ता भी हो और सामान्‍य मानविकी के जीवन के साथ सहजता से adoptable हो। अगर ये व्‍यवस्‍थाएं हम विकसित करते हैं तब तो ये Billions of Billion people एक कदम चलकर के भी climate change की इतनी बड़ी समस्‍या के समाधान के लिए रास्‍ते खोज सकते हैं।

आज दुनिया में एक culture develop हुआ – throw away culture. लेकिन दुनिया में जो संकट पैदा हुआ है उसके कारण अब throw away culture चिंता का कारण बना है और उसके कारण reuse कैसे करना, recycle कैसे करना, इस पर मंथन चल रहे हैं। भारत जैसा इतना बड़ा देश, हम waste को wealth में create करने के लिए क्‍या innovation कर सकते हैं। मान लिजिए हमें 50 million मकान बनाने हैं। आज जिस material के आधार पर मकान बना रहे हैं क्‍या हम उतने मकान बनाने के लिए material provide कर सकते हैं। हम जानते हैं इन दिनों नदी की रेत बालू smuggling होता है। एक राज्‍य दूसरे राज्‍य में smuggling करता है क्‍योंकि उसको construction के लिए रेत उपलब्‍ध नहीं है। environment के कारण भी ऐसे हैं कि रेत लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। तब जाकर के हमारे innovation के लिए सबसे बड़ी challenge है कि हम मकानों की रचना में किस material को provide करेंगे। जो हमारे पास waste पड़ा होगा। वो ही well creation का कारण बनेगा। हम innovation को कैसे लाएं। हम कभी कभी बाहरी तथा उधारी चीजों को तुरंत adopt कर देते हैं। जिस जगह पर मुश्किल से सप्‍ताह में एक दिन सूरज के दर्शन होते हैं वो जब मकान की रचना करेगा जो चारों तरफ शीशे लगाएगा ताकि कहीं से किरण मिल जाए कहीं चली न जाए मेरे नसीब में आ जाए। लेकिन हम भी वेसा करेंगे तो हमें क्‍या करना पड़ता है कि एक curtain लगाओ, दो curtain लगाओ, पांच curtain लगाओ, temperature, यानी हममें हमारे requirement के अनुसार हमारे architecture को develop करना पड़ेगा। जब तक हम हमारे requirement के अनुसार हमारे architecture को develop नहीं करते हैं और हम borrow की गई व्‍यवस्‍था को स्‍वीकार करेंगे। तो शायद हम संकट को बढ़ाने के लिए हिससेदार बनेंगे और इसलिए Science is universal but technology must be local ये जब तक हम apply नहीं करते हैं अब मान लीजिए मुझे असम के अन्‍दर पानी निकालना या पानी पहुंचाना है तो मैं 50 बार सोचूंगा कि मुझे स्‍टील की पाइप की जरूरत है क्‍या वहां और मेरा answer है कि स्‍टील की पाइप के बिना bamboo को पाइप में convert कर कर के पानी पहुंचाया जा सकता है और स्‍टील से उसकी लाइफ ज्‍यादा होती है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि मुझे वहां बांबू से काम चलता है तो मुझे स्‍टील ले जाने की क्‍या जरूरत है और इसलिए समाज जीवन की जो स्‍वाभाविक आवश्‍यकताएं हैं। उसको हम कैसे उस प्रकार से उपयोग करें। हम एक virtual platform तैयार कर सकते हैं क्‍या, एक वेबसाइड इन प्रिंट हमारे सामने आई है। हम एक ऐसा virtual platform तैयार करें जो globally इस प्रकार के सहज प्रयोग हो रहे हैं। उनको हम invite करेंगे। हम उस पर seminar करें चर्चा करें और उसमें हो सकता है कुछ चीजें हमारे लिए sparking point बनें। हमें कुछ करने के लिए प्रेरणा दे सकते हैं। क्‍या हम इसका उपयोग कर सकते हैं। अगर हम इस प्रकार से लोगों को जोड़ते हैं तो अधिक प्रयास करते हैं तो परिणाम मिलता है। हमारी institutions आज हम जानते हैं जो हमारे यहां student आते हैं तो वे किस प्रकार से आते हैं। एक चिंता का विषय है कि ज्‍यादातर student जो अब हमारे पास पहुंच रहे हैं। वे entrance exam कैसे पार करना उसी में उनकी mastery होती है। वे उस प्रकार के classes को attend करते हैं। जो आपको exam पार कराने का रास्‍ता दिखाते हैं और उसके कारण हम उनकी real talent और capability से अनभिज्ञ रह जाते हैं। वो admission ले लेता है और उसको मालूम है कि हमारा base ऐसा है कि पाइपलाइन के इस दौर के अन्‍दर प्रवेश कर गया तो दूसरी तरफ निकलना ही निकलना है। दूसरा कोई रास्‍ता ही नहीं है। हमारे यहां कोई आईएस अफसर 24सौ घंटे पढ़ाई करके exam पास करके अन्‍दर आ गया तो उधर सेक्रेटरी बन कर ही निकलेगा। ये जो स्थिति है और इसलिए हमें लगातार हमारे यहां रैंकिंग करने की पद्धति बदल सकते हैं क्‍या। वरना हम investment करते जाएं, समाज का है मैं सरकार की बात नहीं कर रहा हूं। हम investment करते जाएं लेकिन ultimate product जो हैं वो हमारे काम न आएं उसका तो हम गुजारा कर लें। लेकिन वह खुद का गुजारा तो टीचर बन के भी कर लेता है। आज हमारा देश इतनी बड़ी मात्रा में डिफेंस equipment import करता है। देश का बहुत बड़ा बजट डिफेंस सेक्‍टर में लगा है। क्‍या मेरे देश की technical institutions वो research और innovation में lead नहीं कर सकते हैं कि जो डिफेंस equipment manufacturing के लिए जो resource mobilisation है उसमें सबसे बड़ी ताकत है talent of human resource. उस human resource की capability इतनी हो कि दुनिया के किसी भी डिफेंस manufacturing वाले लोग हैं उसको यह पहले ध्‍यान में आना चाहिए the best talent is here. मैं manufacturing में ही करूंगा और मुझे cheap talent मिल जाती है तो मैं ग्‍लोबल मार्केट के अन्‍दर affordable रूप में खड़ा हो जाऊंगा। मैं मार्केट में खड़ा हो जाऊंगा और इसका मतलब यह हुआ कि मुझे अगर मेरे देश की defence requirement के लिए इतना import है तो अगर मेरी इतनी institutions मिलकर करके तय करें तब हिन्‍दुस्‍तान के दस साल के अन्‍दर defence equipment इम्‍पोर्ट करने में हम 50% कम कर देंगे। मैं समझता हूं कि भारत सरकार को इतना बजट बचेगा कि इसी education system को बढ़ावा देने में कोई हर्ज नहीं होगा। कितना बड़ा फायदा होगा। हम आत्‍मनिर्भर बनेंगे और इसलिए हम लोगों को जब तक ये हम नहीं सोचते कि हमारी आवश्‍यकताएं क्‍या हैं।

आज solar energy की तरफ सबका ध्‍यान गया है। 175 Gigawatt बहुत बड़ा ambitious plan है। दुनिया के किसी भी देश के व्‍यक्‍ति के साथ जब भारत 175 Gigawatt renewal energy की बात करता है तो पांच मिनट तो समझ नहीं पाता है कि मैं Megawatt बोल रहा हूं कि Gigawatt बोल रहा हूं। उनको अचरज हो रहा है। क्‍या कोई देश इतना बड़ा initiative ले सकता है। लेकिन अगर हम technology में innovation करें। हम solar manufacturing में solar के equipment manufacturing में हम नए innovation कर करके हम maximum power generation की दिशा में कैसे जा सकते हैं, हम उसको और cost effective कैसे बना सकते हैं, हम कितनी बड़ी देश की सेवा कर सकते हैं?

अभी मैं एक science magazine देख रहा था। पढ़-वढ़ तो पाता नहीं हूं ज्‍यादा तो उसमें एक चीज मेरे ध्‍यान में आई हैं। एक प्रयोग चल रहा है wind energy के संबंध में। तो जो wind turbines है अब वो हवा में जो humidity है उसको भी capture कर रहे हैं। अब वो wind के कारण power तो generate करते हैं, लेकिन उसी व्‍यवस्‍था से वो humidity को capture करके उसमें से पानी में convert करते हैं और एक wind mill 24 घंटे में 10,000 लीटर sweet water हवा में से लेकर के दे सकता है। मतलब कि मान लीजिए रेगिस्‍तान के इलाके के गांव हैं अगर वहां हमारी ऐसी wind mill लगती है जहां wind velocity भी है और अगर मैं 10,000 लीटर sweet water देता हूं मतलब मैं health के सारे problems का solution करता हूं, जीवन जीने की quality of life में बदलाव लाता हूं। क्‍या मैं multiple activity वाली मेरी technology, एक में से अनेक लाभ इस दिशा में हम कुछ कर सकते हैं और हमारे पास हमारे नौजवान है। दुनिया के किसी भी देश में जाए तो इस प्रकार के पराक्रम कर सकते हैं। क्‍या हम भारत में वो अवसर दे सकते हैं? हमारी सभी institutions, वे अपना in house incubation centre को कैसे develop करे और corporate world को उसकी partnership कैसे दी जाए? ताकि corporate world की जो आवश्‍यकता है जो commercial में जाने वाले हैं, अगर incubation centre with education institution होगा और ये तीनों का अगर मेलजोल होगा तो मैं समझता हूं कि हम नए-नए research के लिए commercial field में जाने के लिए तुरंत निर्णय कर सकते हैं और एक-दूसरे को बल दे सकते हैं।

हम ‘मेक इन इंडिया’ की बात करते हैं। ‘मेक इन इंडिया की सबसे बड़ी ताकत क्‍या है? Raw material हमारे हैं, ऐसा हम दावा नहीं कर सकते। लेकिन हमारे पास human capital इतना strong हमारा base है कि हम ‘मेक इन इंडिया’ के लिए दुनिया में claim कर सकते हैं और उसके लिए skill development चाहिए। हम जिन विषयों पर काम करे, मान लिजिए मेरी petroleum university है। gas base economy की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। अगर gas base economy की दिशा में मेरा देश आगे बढ़ रहा है तो मुझे छोटे से गांव में भी गैस से संबंधित जो technology, repairing, pipe repairing, safety majors इसके लिए छोटे-छोटे लोगों की जरूरत पड़ेगी। क्‍या हमारी institutions आखिरी छोर पर हमें किस प्रकार के human resource development चाहिए उसका syllabus तैयार करके skill development करने वाली institution तक उसको linkage करे तो मेरी university professional लोगों को तैयार करेगी, मेरी university expert साइंटिस्‍टों को तैयार करेगी, technicians को तैयार करेगी। लेकिन back up के लिए मुझे जिस प्रकार के human resource की जरूरत होगी वो भी simultaneous तैयार होगा। कितना बड़ा बदलाव आ सकता है, लेकिन हमारा काम टुकड़ों में होता है। जब तक हम holistic approach नहीं करते, integrated approach नहीं करते हैं तब ये टुकड़ों से जो व्‍यवस्‍था बनती है तो हमारी कठिनाई बढ़ जाती है और इसलिए हमारे लिए ये भी आवश्‍यक है। जिस प्रकार से कोई देश in isolation नहीं चल सकता, उसी प्रकार से कोई institution in isolation नहीं चल सकता। हमारे लिए आवश्‍यक है कि समग्र दुनिया कहां जा रही है, उस दुनिया में हम कहां जा सकते हैं, उस जगह पर पहुंचने के लिए हमारे wage and means क्‍या है, हमारे resources क्‍या है, हमारी capability क्‍या है। और उसमें हम five year plan बना करके, ten year plan बना करके इन चीजों पर focus करेंगे, हम इतना पहुंचेंगे, तब तो जा करके होगा। otherwise मुझे याद है मैं जब नया-नया गुजरात में CM बना, तो मेरा focus था ITIs एक प्रकार का वो technology word का शिशु मंदिर है। बाल मंदिर कह दीजिए। मैंने उस पर focus किया, तो मैं हैरान था। वहां पर जो Auto mobile के courses थे, वो courses चल रहे थे जो गाडि़यां बनती ही नहीं है। अब कार वैसी available नहीं है, लेकिन आपका student बेचारा admission ले करके एक साल भर उन चीजों को पढ़ता है। यानी कि हमें यह बदलाव लाने के लिए आप जहां पर है वहां से पीछे क्‍या हो सकता है, आप बहुत बड़ा contribution कर सकते हैं।

यह जो Imprint के माध्‍यम से आप बहुत बड़ा contribution कर सकते हैं। और इसलिए हम एक नये vision के साथ एक लम्‍बी सोच के साथ इन चीजों को कैसे करें और हम लोग भाग्‍यवान है कि हमारे राट्रपति जी स्‍वयं में अपने आप में एक चलती-फिरती university है। कोई मुझे पूछे कि प्रधानमंत्री बनने का आपका सबसे बड़ा फायदा क्‍या है, तो मैं कहूंगा सबसे बड़ा मेरा फायदा है राष्‍ट्रपति जी के निकट जाने का। जब भी मिलता हूं, ज्ञान का भंडार होता है। मैं सच बताता हूं जी। इतनी चीजें बारीकी से बताते हैं वो। उसके साथ उनका experience होता है। आप लोगों के सीधा-सीधा उनका मार्गदर्शन है आपको। उनके मार्गदर्शन में आप लोगों का काम करना है। मैं नहीं मानता हूं कि अब कोई हमें रोक सकता है। Sky is the limit, अब आप राष्‍ट्रपति जी के आदेशों के अनुसार इच्‍छा के अनुसार चीजों को करेंगे, मैं मानता हूं राट्र लाभांवित होगा। मेरी आप सबको बहुत शुभकामनाएं हैं। मैं राष्‍ट्रपति जी का बहुत आभारी हूं कि मुझे आप सबके बीच आने का अवसर दिया। बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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भारत माता की जय!

भारत माता की जय!

अमरावती आणि वर्ध्यासह महाराष्ट्रातील तमाम नागरिकअन्ना माझा नमस्कार !

दो दिन पहले ही हम सबने विश्वकर्मा पूजा का उत्सव मनाया है। और आज, वर्धा की पवित्र धरती पर हम पीएम विश्वकर्मा योजना की सफलता का उत्सव मना रहे हैं। आज ये दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि 1932 में आज ही के दिन महात्मा गांधी जी ने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान शुरू किया था। ऐसे में विश्वकर्मा योजना के एक साल पूर्ण होने का ये उत्सव,विनोबा भावे जी की ये साधना स्थली, महात्मा गांधी जी की कर्मभूमि, वर्धा की ये धरती, ये उपलब्धि और प्रेरणा का ऐसा संगम है, जो विकसित भारत के हमारे संकल्पों को नई ऊर्जा देगा। विश्वकर्मा योजना के जरिए हमने श्रम से समृद्धि, इसका कौशल से बेहतर कल का जो संकल्प लिया है, वर्धा में बापू की प्रेरणाएँ हमारे उन संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने का माध्यम बनेंगी। मैं इस योजना से जुड़े सभी लोगों, देश भर के सभी लाभार्थियों को इस अवसर पर बधाई देता हूं।

साथियों,

आज अमरावती में पीएम मित्र पार्क की आधारशिला भी रखी गई है। आज का भारत अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को वैश्विक बाज़ार में टॉप पर ले जाने के लिए काम कर रहा है। देश का लक्ष्य है- भारत की टेक्सटाइल सेक्टर के हजारों वर्ष पुराने गौरव को पुनर्स्थापित करना। अमरावती का पीएम मित्र पार्क इसी दिशा में एक और बड़ा कदम है। मैं इस उपलब्धि के लिए भी आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।

साथियों,

हमने विश्वकर्मा योजना की पहली वर्षगांठ के लिए महाराष्ट्र को चुना, हमने वर्धा की इस पवित्र धरती को चुना, क्योंकि विश्वकर्मा योजना केवल सरकारी प्रोग्राम भर नहीं है। ये योजना भारत के हजारों वर्ष पुराने कौशल को विकसित भारत के लिए इस्तेमाल करने का एक रोडमैप है। आप याद करिए, हमें इतिहास में भारत की समृद्धि के कितने ही गौरवशाली अध्याय देखने को मिलते हैं। इस समृद्धि का बड़ा आधार क्या था? उसका आधार था, हमारा पारंपरिक कौशल! उस समय का हमारा शिल्प, हमारी इंजीनियरिंग, हमारा विज्ञान! हम दुनिया के सबसे बड़े वस्त्र निर्माता थे। हमारा धातु-विज्ञान, हमारी मेटलर्जी भी विश्व में बेजोड़ थी। उस समय के बने मिट्टी के बर्तनों से लेकर भवनों की डिजाइन का कोई मुकाबला नहीं था। इस ज्ञान-विज्ञान को कौन घर-घर पहुंचाता था? सुतार, लोहार, सोनार, कुम्हार, मूर्तिकार, चर्मकार, बढ़ई-मिस्त्री ऐसे अनेक पेशे, ये भारत की समृद्धि की बुनियाद हुआ करते थे। इसीलिए, गुलामी के समय में अंग्रेजों ने इस स्वदेशी हुनर को समाप्त करने के लिए भी अनेकों साजिशें की। इसलिए ही वर्धा की इसी धरती से गांधी जी ने ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा दिया था।

लेकिन साथियों,

ये देश का दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद की सरकारों ने इस हुनर को वो सम्मान नहीं दिया, जो दिया जाना चाहिए था। उन सरकारों ने विश्वकर्मा समाज की लगातार उपेक्षा की। जैसे-जैसे हम शिल्प और कौशल का सम्मान करना भूलते गए, भारत प्रगति और आधुनिकता की दौड़ में भी पिछड़ता चला गया।

साथियों,

अब आज़ादी के 70 साल बाद हमारी सरकार ने इस परंपरागत कौशल को नई ऊर्जा देने का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमने ‘पीएम विश्वकर्मा’ जैसी योजना शुरू की। विश्वकर्मा योजना की मूल भावना है- सम्मान, सामर्थ्य और समृद्धि! यानी, पारंपरिक हुनर का सम्मान! कारीगरों का सशक्तिकरण! और विश्वकर्मा बंधुओं के जीवन में समृद्धि, ये हमारा लक्ष्य है।

और साथियों,

विश्वकर्मा योजना की एक और विशेषता है। जिस स्केल पर, जिस बड़े पैमाने पर इस योजना के लिए अलग-अलग विभाग एकजुट हुए हैं, ये भी अभूतपूर्व है। देश के 700 से ज्यादा जिले, देश की ढाई लाख से ज्यादा ग्राम पंचायतें, देश के 5 हजार शहरी स्थानीय निकाय, ये सब मिलकर इस अभियान को गति दे रहे हैं। इस एक वर्ष में ही 18 अलग-अलग पेशों के 20 लाख से ज्यादा लोगों को इससे जोड़ा गया। सिर्फ साल भर में ही 8 लाख से ज्यादा शिल्पकारों और कारीगरों को स्किल ट्रेनिंग, Skill upgradation मिल चुकी है। अकेले महाराष्ट्र में ही 60 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग मिली है। इसमें, कारीगरों को modern machinery और digital tools जैसी नई टेक्नॉलजी भी सिखाई जा रही है। अब तक साढ़े 6 लाख से ज्यादा विश्वकर्मा बंधुओं को आधुनिक उपकरण भी उपलब्ध कराए गए हैं। इससे उनके उत्पादों की क्वालिटी बेहतर हुई है, उनकी उत्पादकता बढ़ी है। इतना ही नहीं, हर लाभार्थी को 15 हजार रुपए का ई-वाउचर दिया जा रहा है। अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बिना गारंटी के 3 लाख रुपए तक लोन भी मिल रहा है। मुझे खुशी है कि एक साल के भीतर-भीतर विश्वकर्मा भाइयों-बहनों को 1400 करोड़ रुपए का लोन दिया गया है। यानि विश्वकर्मा योजना, हर पहलू का ध्यान रख रही है। तभी तो ये इतनी सफल है, तभी तो ये लोकप्रिय हो रही है।

और अभी मैं हमारे जीतन राम मांझी जी प्रदर्शनी का वर्णन कर रहे थे। मैं प्रदर्शनी देखने गया था। मैं देख रहा था कितना अद्भुत काम परंपरागत रूप से हमारे यहां लोग करते हैं। और जब उनको नए आधुनिक technology tool मिलते हैं, training मिलते हैं, उनको अपना कारोबार बढ़ाने के लिए seed money मिलता है, तो कितना बड़ा कमाल करते हैं वो अभी मैं देखकर आया हूं। और यहां जो भी आप आए हैं ना, मेरा आपसे भी आग्रह है, आप ये प्रदर्शनी जरूर देखें। आपको इतना गर्व होगा कि कितनी बड़ी क्रांति आई है।

साथियों,

हमारे पारंपरिक कौशल में सबसे ज्यादा भागीदारी SC, ST और OBC समाज के लोगों की रही है। अगर पिछली सरकारों ने विश्वकर्मा बंधुओं की चिंता की होती, तो इस समाज की कितनी बड़ी सेवा होती। लेकिन, काँग्रेस और उसके दोस्तों ने SC, ST, OBC को जानबूझकर के आगे नहीं बढ़ने दिया। हमने सरकारी सिस्टम से काँग्रेस की इस दलित, पिछड़ा विरोधी सोच को खत्म किया है। पिछले एक साल के आंकड़े बताते हैं कि आज विश्वकर्मा योजना का सबसे ज्यादा लाभ SC, ST और OBC समाज उठा रहा है। मैं चाहता हूं- विश्वकर्मा समाज, इन पारंपरिक कार्यों में लगे लोग केवल कारीगर बनकर न रह जाएँ! बल्कि मैं चाहता हूं, वे कारीगर से ज्यादा वो उद्यमी बनें, व्यवसायी बनें, इसके लिए हमने विश्वकर्मा भाई-बहनों के काम को MSME का दर्जा दिया है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट और एकता मॉल जैसे प्रयासों के जरिए पारंपरिक उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है। हमारा लक्ष्य है कि ये लोग अपने बिज़नस को आगे बढ़ाएँ! ये लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों की सप्लाई चेन का हिस्सा बनें।

इसलिए,

ONDC और GeM जैसे माध्यमों से शिल्पकारों, कारीगरों और छोटे कारोबारियों को अपना बिज़नेस बढ़ाने में मदद का रास्ता बन रहा है। ये शुरुआत बता रही है, जो वर्ग आर्थिक प्रगति में पीछे छूट रहा था, वो विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अहम रोल निभाएगा। सरकार का जो स्किल इंडिया मिशन है, वो भी इसे सशक्त कर रहा है। कौशल विकास अभियान के तहत भी देश के करोड़ों नौजवानों की आज की जरूरतों के हिसाब से स्किल ट्रेनिंग हुई है। स्किल इंडिया जैसे अभियानों ने भारत की स्किल को पूरी दुनिया में पहचान दिलानी शुरू कर दी थी। और हमारे स्किल मंत्रालय, हमारी सरकार बनने के बाद हमने अलग स्किल मंत्रालय बनाया और हमारे जैन चौधरी जी आज स्किल मंत्रालय का कारोबार देखते हैं। उनके नेतृत्व में इसी साल, फ्रांस में World Skills पर बहुत बड़ा आयोजन हुआ था। हम ओलम्पिक की तो चर्चा बहुत करते हैं। लेकिन उस फ्रांस में अभी एक बहुत बड़ा आयोजन हुआ। इसमें स्किल को लेकर के हमारे छोटे-छोटे काम करने वाले कारीगरों को और उन लोगों को भेजा गया था। और इसमें भारत ने बहुत सारे अवार्ड अपने नाम किए हैं। ये हम सबके लिए गर्व का विषय है।

साथियों,

महाराष्ट्र में जो अपार औद्योगिक संभावनाएं हैं, उनमें टेक्सटाइल इंडस्ट्री भी एक है। विदर्भ का ये इलाका, ये हाई क्वालिटी कपास के उत्पादन का इतना बड़ा केंद्र रहा है। लेकिन, दशकों तक काँग्रेस और बाद में महा-अघाड़ी सरकार ने क्या किया? उन्होंने कपास को महाराष्ट्र के किसानों की ताकत बनाने की जगह उन किसानों को बदहाली में धकेल दिया। ये लोग केवल किसानों के नाम पर राजनीति और भ्रष्टाचार करते रहे। समस्या का समाधान देने के लिए काम तब तेजी से आगे बढ़ा, जब 2014 में देवेन्द्र फडणवीस जी की सरकार बनी थी। तब अमरावती के नांदगाव खंडेश्वर में टेक्सटाईल पार्क का निर्माण हुआ था। आप याद करिए, तब उस जगह के क्या हाल थे? कोई उद्योग वहाँ आने को तैयार नहीं होता था। लेकिन, अब वही इलाका महाराष्ट्र के लिए बड़ा औद्योगिक केंद्र बनता जा रहा है।

साथियों,

आज पीएम-मित्र पार्क पर जिस तेजी से काम हो रहा है, उससे डबल इंजन सरकार की इच्छाशक्ति का पता चलता है। हम देश भर में ऐसे ही 7 पीएम मित्र पार्क स्थापित कर रहे हैं। हमारा विज़न है- Farm to Fibre, Fibre to Fabric, Fabric to Fashion, Fashion to Foreign यानी, विदर्भ के कपास से यहीं हाई-क्वालिटी फ़ैब्रिक बनेगा। और यहीं पर फ़ैब्रिक से फ़ैशन के मुताबिक कपड़े तैयार किए जाएंगे। ये फ़ैशन विदेशों तक एक्सपोर्ट होगा। इससे किसानों को खेती में होने वाला नुकसान बंद होगा। उन्हें उनकी फसल की अच्छी कीमत मिलेगी, उसमें value addition होगा। अकेले पीएम मित्र पार्क से ही यहाँ 8-10 हजार करोड़ रुपए के निवेश की संभावना है। इससे विदर्भ और महाराष्ट्र में युवाओं के लिए रोजगार के एक लाख से ज्यादा नए अवसर बनेंगे। यहाँ दूसरे उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा। नई supply chains बनेंगी। देश का निर्यात बढ़ेगा, आमदनी बढ़ेगी।

और भाइयों और बहनों,

इस औद्योगिक प्रगति के लिए जो आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी चाहिए, महाराष्ट्र उसके लिए भी तैयार हो रहा है। नए हाइवेज, एक्सप्रेसवेज़, समृद्धि महामार्ग, वॉटर और एयर कनेक्टिविटी का विस्तार, महाराष्ट्र नई औद्योगिक क्रांति के लिए कमर कस चुका है।

साथियों,

मैं मानता हूँ, महाराष्ट्र की बहु-आयामी प्रगति का अगर कोई पहला नायक है, तो वो है- यहाँ का किसान! जब महाराष्ट्र का, विदर्भ का किसान खुशहाल होगा, तभी देश भी खुशहाल होगा। इसीलिए, हमारी डबल इंजन सरकार मिलकर किसानों की समृद्धि के लिए काम कर रही हैं। आप देखिए पीएम-किसान सम्मान निधि के रूप में केंद्र सरकार 6 हजार रुपए किसानों के लिए भेजती है, महाराष्ट्र सरकार उसमें 6 हजार रुपए और मिलाती है। महाराष्ट्र के किसानों को अब 12 हजार रुपया सालाना मिल रहा है। फसलों के नुकसान की कीमत किसान को न चुकानी पड़े, इसके लिए हमने 1 रुपए में फसल बीमा देना शुरू किया है। महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे जी की सरकार ने किसानों का बिजली बिल भी ज़ीरो कर दिया है। इस क्षेत्र में सिंचाई की समस्या के समाधान के लिए हमारी सरकार के समय से ही कई प्रयास शुरू हुये थे। लेकिन, बीच में ऐसी सरकार आ गई जिसने सारे कामों पर ब्रेक लगा दिया। इस सरकार ने फिर से सिंचाई से जुड़े प्रोजेक्ट्स को गति दी है। इस क्षेत्र में करीब 85 हजार करोड़ रुपए की लागत से वैनगंगा-नलगंगा नदियों को जोड़ने की परियोजना को हाल ही में मंजूरी दी गई है। इससे नागपुर, वर्धा, अमरावती, यवतमाल, अकोला, बुलढाणा इन 6 जिलों में 10 लाख एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधा मिलेगी।

साथियों,

हमारे महाराष्ट्र के किसानों की जो मांगें थीं, उन्हें भी हमारी सरकार पूरा कर रही है। प्याज पर एक्सपोर्ट टैक्स 40 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। खाद्य तेलों का जो आयात होता है, उस पर हमने 20 प्रतिशत टैक्स लगा दिया है। Refined सोयाबीन, सूर्यमुखी और पाम ऑयल पर कस्टम ड्यूटी को साढ़े 12 प्रतिशत से बढ़ाकर साढ़े 32 प्रतिशत कर दिया गया है। इसका बहुत फायदा हमारे सोयाबीन उगाने वाले किसानों को होगा। जल्द ही इन सब प्रयासों के परिणाम भी हमें देखने को मिलेंगे। लेकिन, इसके लिए हमें एक सावधानी भी बरतनी होगी। जिस काँग्रेस पार्टी और उसके दोस्तों ने किसानों को इस हालत में पहुंचाया, बर्बाद किया, हमें उन्हें फिर मौका नहीं देना है। क्योंकि, काँग्रेस का एक ही मतलब है- झूठ, धोखा और बेईमानी! इन्होंने तेलंगाना में चुनाव के समय किसानों से लोन माफी जैसे बड़े-बड़े वादे किए। लेकिन, जब इनकी सरकार बनी, तो किसान लोन माफी के लिए भटक रहे हैं। कोई उनकी सुनने वाला नहीं है। महाराष्ट्र में हमें इनकी धोखेबाज़ी से बचकर रहना है।

साथियों,

आज जो काँग्रेस हम देख रहे हैं, ये वो काँग्रेस नहीं है जिससे कभी महात्मा गांधी जी जैसे महापुरूष जुड़े थे। आज की काँग्रेस में देशभक्ति की आत्मा दम तोड़ चुकी है। आज की काँग्रेस में नफरत का भूत दाखिल हो गया है। आप देखिए, आज काँग्रेस के लोगों की भाषा, उनकी बोली, विदेशी धरती पर जाकर उनके देशविरोधी एजेंडे, समाज को तोड़ना, देश को तोड़ने की बात करना, भारतीय संस्कृति और आस्था का अपमान करना, ये वो काँग्रेस है, जिसे टुकड़े-टुकड़े गैंग और अर्बन नक्सल के लोग चला रहे हैं। आज देश की सबसे बेईमान और सबसे भ्रष्ट कोई पार्टी है, तो वो पार्टी कांग्रेस पार्टी है। देश का सबसे भ्रष्ट परिवार कोई है, तो वो कांग्रेस का शाही परिवार है।

साथियों,

जिस पार्टी में हमारी आस्था और संस्कृति का जरा सा भी सम्मान होगा, वो पार्टी कभी गणपति पूजा का विरोध नहीं कर सकती। लेकिन आज की कांग्रेस को गणपति पूजा से भी नफरत है। महाराष्ट्र की धरती गवाह है, आज़ादी की लड़ाई में लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में गणपति उत्सव भारत की एकता का उत्सव बन गया था। गणेश उत्सव में हर समाज, हर वर्ग के लोग एक साथ जुड़ते थे। इसीलिए, काँग्रेस पार्टी को गणपति पूजा से भी चिढ़ है। मैं गणेश पूजन कार्यक्रम में चला गया, तो काँग्रेस का तुष्टिकरण का भूत जाग उठा, कांग्रेस गणपति पूजा का विरोध करने लगी। तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस कुछ भी कर रही है। आपने देखा है, कर्नाटक में तो काँग्रेस सरकार ने गणपति बप्पा को ही सलाखों के पीछे डाल दिया। गणपति की जिस मूर्ति की लोग पूजा कर रहे थे, उसे पुलिस वैन में कैद करवा दिया। महाराष्ट्र गणपतीची आराधना करीत होता आणि कर्नाटकात गणपतीची मूर्ती पोलिस वैन मद्धे होती?

साथियों,

पूरा देश गणपति के इस अपमान को देखकर आक्रोशित है। मैं हैरान हूँ, इस पर कांग्रेस के सहयोगियों के मुंह पर भी ताला लग गया है। उन पर भी काँग्रेस की संगत का ऐसा रंग चढ़ा है कि गणपति के अपमान का भी विरोध करने की उनमें हिम्मत नहीं बची है।

भाइयों बहनों,

हमें एकजुट होकर काँग्रेस के इन पापों का जवाब देना है। हमें परंपरा और प्रगति के साथ खड़ा होना है। हमें सम्मान और विकास के एजेंडे के साथ खड़ा होना है। हम साथ मिलकर महाराष्ट्र की अस्मिता को बचाएंगे। हम सब साथ मिलकर महाराष्ट्र का गौरव और बढ़ाएंगे। हम महाराष्ट्र के सपनों को पूरा करेंगे। इसी भाव के साथ, इतनी बड़ी तादाद में आकर के, इस महत्वपूर्ण योजनाओं को आपने जो, उसकी ताकत को समझा है। इन योजनाओं का विदर्भ के जीवन पर, हिन्दुस्तान के सामान्य व्यक्ति के जीवन पर कैसा प्रभाव होना है, ये आपकी विराट सभा के कारण मैं इसे महसूस कर रहा हूं। मैं एक बार फिर सभी विश्वकर्मा साथियों को विदर्भ के और महाराष्ट्र के सभी मेरे भाई-बहनों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

मेरे साथ बोलिये-

भारत माता की जय,

दोनों हाथ ऊपर कर करके पूरी ताकत से-

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

बहुत-बहुत धन्यवाद।