PM Narendra Modi attends the Visitors' Conference at Rashtrapati Bhavan
Society is becoming technology driven. It is essential to understand the importance of this & look towards affordable technology: PM
Our focus must now be on innovation. It is the key to achieve one's dreams: PM Modi
Institutions of higher education should give primacy to innovation in learning: PM Narendra Modi
Finding solutions to challenges like global warming & converting waste to wealth are key to rise of India: PM Modi
Science is universal but technology must be local: PM Modi
The biggest strength of #MakeInIndia is human capital. Skill development is extremely vital: PM
Our President is a walking talking university. He is an ocean of knowledge: PM Narendra Modi

परम आदरणीय राष्‍ट्रपति जी, मंत्रिपरिषद के मेरे साथी, उपस्‍थित सभी वरिष्‍ठ महानुभाव। मैं आदरणीय राष्‍ट्रपति जी का बहुत आभारी हूं कि आपने इस व्‍यवस्‍था को प्राणवान बनाया। वरना आना-मिलना, कुछ इधर से कुछ उधर से और फिर Bye bye. इस ritual से बाहर इस व्‍यवस्‍था को निकाल करके इसमें प्राण भरने की कोशिश हुई है और समय की मांग के अनुसार उसमें participation, involvement, coordination इस पर अधिक बल दिया गया है। ये जो व्‍यवस्‍था विकसित हुई है और उसके मंथन में से जो अमृत प्राप्‍त हो रहा है वो भविष्‍य में राष्‍ट्र की विकास यात्रा के रोड मैप को तैयार करेगा। उसमें ज्ञान और अनुभव के सामर्थ्‍य को जोड़ेगा और समय सीमा में परिवर्तन लाने के प्रयासों को बल देगा। मैं हमेशा सोचता हूं कि प्राथमिक शिक्षा व्‍यक्‍ति के जीवन के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। प्राथमिक शिक्षा इंसान को जड़ों से जोड़ती है लेकिन higher education आसमान छूने के अरमान जगाती है और इसलिए जितना महत्‍मय प्राथमिक शिक्षा के माध्‍यम से जीवन को तैयार करना, प्राथमिक शिक्षा के माध्‍यम से जड़ों से जोड़ना, उतना ही higher education के माध्‍यम से आसमान को छूने वाले अरमान कैसे जगे। अगर प्राथमिक शिक्षा व्‍यक्‍ति घरतर पर ज्‍यादा बल देती है तो higher education राष्‍ट्र घरतर का आधार बनती है।

राष्‍ट्र कैसे शक्‍तिशाली बनेगा उसका एक road map, उसकी एक blue print इस कालखंड में तैयार होती है और उस अर्थ में आप लोगों का योगदान, आपके द्वारा institutions का योगदान, राष्‍ट्र के विकास की यात्रा को, राष्‍ट्र निर्माण के प्रयासों को समयानुकूल जिन ताकतों की आवश्‍यकता है उसको जोड़ने के लिए काम आता है। शायद इसके पूर्व की कोई शताब्‍दी ऐसी नहीं होगी जिस पर technology का इतना प्रभाव रहा हो। एक प्रकार से पूरा समाज जीवन technology driven हुआ है और तब जाकर के हमारे लिए भी आवश्‍यक होता है कि technology के इस महत्‍मय को स्‍वीकार करते हुए, भविष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए हम affordable technology की तरफ आगे कैसे बढ़े? हम sustainable technology पर बल कैसे दे और ये करना है तो हमें innovation पर बल देना होगा। Millions of million challenges are there. लेकिन जैसा अभी बताया गया कि Billions minds are also there. लेकिन जब तक वो mind innovation के साथ नहीं जुड़ता है वो अगर सिर्फ उपभोक्‍ता ही बना रहता है तो मैं नहीं मानता हूं कि इतने सारे mind को हम खुराक भी दे पाएंगे, उसको जो दिमागी खुराक चाहिए वो भी नहीं दे पाएंगे और इसलिए हम भाग्‍यवान है कि हमारे पास Billions of Billion mind है। लेकिन जब तक हम innovation के लिए कोई अगर हम proper environment नहीं देते हैं, mechanism develop नहीं करते हैं। resource mobilise नहीं करते हैं तो कभी-कभी विचार धरे के धरे रह जाते हैं और इसलिए सपनों को साकार करने का एक मार्ग होता है innovation. हमारी institutions innovation को प्राथमिकता देने में कितनी कामयाब हो रही है।

अब आज Global Warming, Environment ये सारे issues की चर्चा हो रही है दुनिया में। कुछ लोगों के लिए Global Warming एक चिंता का विषय है, तो कुछ लोगों के लिए Global Warming एक market का कारण है। उन्‍होंने उसको एक market opportunity में convert करने की सोची है। वे चाहते हैं कि हम technology में innovation करेंगे और Global Warming के नाम पर दुनिया की market को capture करेंगे। भारत जैसे देश के लिए ये आवश्‍यकता बन जाती है कि हम भावी पीढ़ी की रक्षा के लिए क्‍या वो innovation दुनिया के सामने ला सकते हैं। जो अच्‍छा भी हो और सस्‍ता भी हो और सामान्‍य मानविकी के जीवन के साथ सहजता से adoptable हो। अगर ये व्‍यवस्‍थाएं हम विकसित करते हैं तब तो ये Billions of Billion people एक कदम चलकर के भी climate change की इतनी बड़ी समस्‍या के समाधान के लिए रास्‍ते खोज सकते हैं।

आज दुनिया में एक culture develop हुआ – throw away culture. लेकिन दुनिया में जो संकट पैदा हुआ है उसके कारण अब throw away culture चिंता का कारण बना है और उसके कारण reuse कैसे करना, recycle कैसे करना, इस पर मंथन चल रहे हैं। भारत जैसा इतना बड़ा देश, हम waste को wealth में create करने के लिए क्‍या innovation कर सकते हैं। मान लिजिए हमें 50 million मकान बनाने हैं। आज जिस material के आधार पर मकान बना रहे हैं क्‍या हम उतने मकान बनाने के लिए material provide कर सकते हैं। हम जानते हैं इन दिनों नदी की रेत बालू smuggling होता है। एक राज्‍य दूसरे राज्‍य में smuggling करता है क्‍योंकि उसको construction के लिए रेत उपलब्‍ध नहीं है। environment के कारण भी ऐसे हैं कि रेत लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। तब जाकर के हमारे innovation के लिए सबसे बड़ी challenge है कि हम मकानों की रचना में किस material को provide करेंगे। जो हमारे पास waste पड़ा होगा। वो ही well creation का कारण बनेगा। हम innovation को कैसे लाएं। हम कभी कभी बाहरी तथा उधारी चीजों को तुरंत adopt कर देते हैं। जिस जगह पर मुश्किल से सप्‍ताह में एक दिन सूरज के दर्शन होते हैं वो जब मकान की रचना करेगा जो चारों तरफ शीशे लगाएगा ताकि कहीं से किरण मिल जाए कहीं चली न जाए मेरे नसीब में आ जाए। लेकिन हम भी वेसा करेंगे तो हमें क्‍या करना पड़ता है कि एक curtain लगाओ, दो curtain लगाओ, पांच curtain लगाओ, temperature, यानी हममें हमारे requirement के अनुसार हमारे architecture को develop करना पड़ेगा। जब तक हम हमारे requirement के अनुसार हमारे architecture को develop नहीं करते हैं और हम borrow की गई व्‍यवस्‍था को स्‍वीकार करेंगे। तो शायद हम संकट को बढ़ाने के लिए हिससेदार बनेंगे और इसलिए Science is universal but technology must be local ये जब तक हम apply नहीं करते हैं अब मान लीजिए मुझे असम के अन्‍दर पानी निकालना या पानी पहुंचाना है तो मैं 50 बार सोचूंगा कि मुझे स्‍टील की पाइप की जरूरत है क्‍या वहां और मेरा answer है कि स्‍टील की पाइप के बिना bamboo को पाइप में convert कर कर के पानी पहुंचाया जा सकता है और स्‍टील से उसकी लाइफ ज्‍यादा होती है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि मुझे वहां बांबू से काम चलता है तो मुझे स्‍टील ले जाने की क्‍या जरूरत है और इसलिए समाज जीवन की जो स्‍वाभाविक आवश्‍यकताएं हैं। उसको हम कैसे उस प्रकार से उपयोग करें। हम एक virtual platform तैयार कर सकते हैं क्‍या, एक वेबसाइड इन प्रिंट हमारे सामने आई है। हम एक ऐसा virtual platform तैयार करें जो globally इस प्रकार के सहज प्रयोग हो रहे हैं। उनको हम invite करेंगे। हम उस पर seminar करें चर्चा करें और उसमें हो सकता है कुछ चीजें हमारे लिए sparking point बनें। हमें कुछ करने के लिए प्रेरणा दे सकते हैं। क्‍या हम इसका उपयोग कर सकते हैं। अगर हम इस प्रकार से लोगों को जोड़ते हैं तो अधिक प्रयास करते हैं तो परिणाम मिलता है। हमारी institutions आज हम जानते हैं जो हमारे यहां student आते हैं तो वे किस प्रकार से आते हैं। एक चिंता का विषय है कि ज्‍यादातर student जो अब हमारे पास पहुंच रहे हैं। वे entrance exam कैसे पार करना उसी में उनकी mastery होती है। वे उस प्रकार के classes को attend करते हैं। जो आपको exam पार कराने का रास्‍ता दिखाते हैं और उसके कारण हम उनकी real talent और capability से अनभिज्ञ रह जाते हैं। वो admission ले लेता है और उसको मालूम है कि हमारा base ऐसा है कि पाइपलाइन के इस दौर के अन्‍दर प्रवेश कर गया तो दूसरी तरफ निकलना ही निकलना है। दूसरा कोई रास्‍ता ही नहीं है। हमारे यहां कोई आईएस अफसर 24सौ घंटे पढ़ाई करके exam पास करके अन्‍दर आ गया तो उधर सेक्रेटरी बन कर ही निकलेगा। ये जो स्थिति है और इसलिए हमें लगातार हमारे यहां रैंकिंग करने की पद्धति बदल सकते हैं क्‍या। वरना हम investment करते जाएं, समाज का है मैं सरकार की बात नहीं कर रहा हूं। हम investment करते जाएं लेकिन ultimate product जो हैं वो हमारे काम न आएं उसका तो हम गुजारा कर लें। लेकिन वह खुद का गुजारा तो टीचर बन के भी कर लेता है। आज हमारा देश इतनी बड़ी मात्रा में डिफेंस equipment import करता है। देश का बहुत बड़ा बजट डिफेंस सेक्‍टर में लगा है। क्‍या मेरे देश की technical institutions वो research और innovation में lead नहीं कर सकते हैं कि जो डिफेंस equipment manufacturing के लिए जो resource mobilisation है उसमें सबसे बड़ी ताकत है talent of human resource. उस human resource की capability इतनी हो कि दुनिया के किसी भी डिफेंस manufacturing वाले लोग हैं उसको यह पहले ध्‍यान में आना चाहिए the best talent is here. मैं manufacturing में ही करूंगा और मुझे cheap talent मिल जाती है तो मैं ग्‍लोबल मार्केट के अन्‍दर affordable रूप में खड़ा हो जाऊंगा। मैं मार्केट में खड़ा हो जाऊंगा और इसका मतलब यह हुआ कि मुझे अगर मेरे देश की defence requirement के लिए इतना import है तो अगर मेरी इतनी institutions मिलकर करके तय करें तब हिन्‍दुस्‍तान के दस साल के अन्‍दर defence equipment इम्‍पोर्ट करने में हम 50% कम कर देंगे। मैं समझता हूं कि भारत सरकार को इतना बजट बचेगा कि इसी education system को बढ़ावा देने में कोई हर्ज नहीं होगा। कितना बड़ा फायदा होगा। हम आत्‍मनिर्भर बनेंगे और इसलिए हम लोगों को जब तक ये हम नहीं सोचते कि हमारी आवश्‍यकताएं क्‍या हैं।

आज solar energy की तरफ सबका ध्‍यान गया है। 175 Gigawatt बहुत बड़ा ambitious plan है। दुनिया के किसी भी देश के व्‍यक्‍ति के साथ जब भारत 175 Gigawatt renewal energy की बात करता है तो पांच मिनट तो समझ नहीं पाता है कि मैं Megawatt बोल रहा हूं कि Gigawatt बोल रहा हूं। उनको अचरज हो रहा है। क्‍या कोई देश इतना बड़ा initiative ले सकता है। लेकिन अगर हम technology में innovation करें। हम solar manufacturing में solar के equipment manufacturing में हम नए innovation कर करके हम maximum power generation की दिशा में कैसे जा सकते हैं, हम उसको और cost effective कैसे बना सकते हैं, हम कितनी बड़ी देश की सेवा कर सकते हैं?

अभी मैं एक science magazine देख रहा था। पढ़-वढ़ तो पाता नहीं हूं ज्‍यादा तो उसमें एक चीज मेरे ध्‍यान में आई हैं। एक प्रयोग चल रहा है wind energy के संबंध में। तो जो wind turbines है अब वो हवा में जो humidity है उसको भी capture कर रहे हैं। अब वो wind के कारण power तो generate करते हैं, लेकिन उसी व्‍यवस्‍था से वो humidity को capture करके उसमें से पानी में convert करते हैं और एक wind mill 24 घंटे में 10,000 लीटर sweet water हवा में से लेकर के दे सकता है। मतलब कि मान लीजिए रेगिस्‍तान के इलाके के गांव हैं अगर वहां हमारी ऐसी wind mill लगती है जहां wind velocity भी है और अगर मैं 10,000 लीटर sweet water देता हूं मतलब मैं health के सारे problems का solution करता हूं, जीवन जीने की quality of life में बदलाव लाता हूं। क्‍या मैं multiple activity वाली मेरी technology, एक में से अनेक लाभ इस दिशा में हम कुछ कर सकते हैं और हमारे पास हमारे नौजवान है। दुनिया के किसी भी देश में जाए तो इस प्रकार के पराक्रम कर सकते हैं। क्‍या हम भारत में वो अवसर दे सकते हैं? हमारी सभी institutions, वे अपना in house incubation centre को कैसे develop करे और corporate world को उसकी partnership कैसे दी जाए? ताकि corporate world की जो आवश्‍यकता है जो commercial में जाने वाले हैं, अगर incubation centre with education institution होगा और ये तीनों का अगर मेलजोल होगा तो मैं समझता हूं कि हम नए-नए research के लिए commercial field में जाने के लिए तुरंत निर्णय कर सकते हैं और एक-दूसरे को बल दे सकते हैं।

हम ‘मेक इन इंडिया’ की बात करते हैं। ‘मेक इन इंडिया की सबसे बड़ी ताकत क्‍या है? Raw material हमारे हैं, ऐसा हम दावा नहीं कर सकते। लेकिन हमारे पास human capital इतना strong हमारा base है कि हम ‘मेक इन इंडिया’ के लिए दुनिया में claim कर सकते हैं और उसके लिए skill development चाहिए। हम जिन विषयों पर काम करे, मान लिजिए मेरी petroleum university है। gas base economy की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। अगर gas base economy की दिशा में मेरा देश आगे बढ़ रहा है तो मुझे छोटे से गांव में भी गैस से संबंधित जो technology, repairing, pipe repairing, safety majors इसके लिए छोटे-छोटे लोगों की जरूरत पड़ेगी। क्‍या हमारी institutions आखिरी छोर पर हमें किस प्रकार के human resource development चाहिए उसका syllabus तैयार करके skill development करने वाली institution तक उसको linkage करे तो मेरी university professional लोगों को तैयार करेगी, मेरी university expert साइंटिस्‍टों को तैयार करेगी, technicians को तैयार करेगी। लेकिन back up के लिए मुझे जिस प्रकार के human resource की जरूरत होगी वो भी simultaneous तैयार होगा। कितना बड़ा बदलाव आ सकता है, लेकिन हमारा काम टुकड़ों में होता है। जब तक हम holistic approach नहीं करते, integrated approach नहीं करते हैं तब ये टुकड़ों से जो व्‍यवस्‍था बनती है तो हमारी कठिनाई बढ़ जाती है और इसलिए हमारे लिए ये भी आवश्‍यक है। जिस प्रकार से कोई देश in isolation नहीं चल सकता, उसी प्रकार से कोई institution in isolation नहीं चल सकता। हमारे लिए आवश्‍यक है कि समग्र दुनिया कहां जा रही है, उस दुनिया में हम कहां जा सकते हैं, उस जगह पर पहुंचने के लिए हमारे wage and means क्‍या है, हमारे resources क्‍या है, हमारी capability क्‍या है। और उसमें हम five year plan बना करके, ten year plan बना करके इन चीजों पर focus करेंगे, हम इतना पहुंचेंगे, तब तो जा करके होगा। otherwise मुझे याद है मैं जब नया-नया गुजरात में CM बना, तो मेरा focus था ITIs एक प्रकार का वो technology word का शिशु मंदिर है। बाल मंदिर कह दीजिए। मैंने उस पर focus किया, तो मैं हैरान था। वहां पर जो Auto mobile के courses थे, वो courses चल रहे थे जो गाडि़यां बनती ही नहीं है। अब कार वैसी available नहीं है, लेकिन आपका student बेचारा admission ले करके एक साल भर उन चीजों को पढ़ता है। यानी कि हमें यह बदलाव लाने के लिए आप जहां पर है वहां से पीछे क्‍या हो सकता है, आप बहुत बड़ा contribution कर सकते हैं।

यह जो Imprint के माध्‍यम से आप बहुत बड़ा contribution कर सकते हैं। और इसलिए हम एक नये vision के साथ एक लम्‍बी सोच के साथ इन चीजों को कैसे करें और हम लोग भाग्‍यवान है कि हमारे राट्रपति जी स्‍वयं में अपने आप में एक चलती-फिरती university है। कोई मुझे पूछे कि प्रधानमंत्री बनने का आपका सबसे बड़ा फायदा क्‍या है, तो मैं कहूंगा सबसे बड़ा मेरा फायदा है राष्‍ट्रपति जी के निकट जाने का। जब भी मिलता हूं, ज्ञान का भंडार होता है। मैं सच बताता हूं जी। इतनी चीजें बारीकी से बताते हैं वो। उसके साथ उनका experience होता है। आप लोगों के सीधा-सीधा उनका मार्गदर्शन है आपको। उनके मार्गदर्शन में आप लोगों का काम करना है। मैं नहीं मानता हूं कि अब कोई हमें रोक सकता है। Sky is the limit, अब आप राष्‍ट्रपति जी के आदेशों के अनुसार इच्‍छा के अनुसार चीजों को करेंगे, मैं मानता हूं राट्र लाभांवित होगा। मेरी आप सबको बहुत शुभकामनाएं हैं। मैं राष्‍ट्रपति जी का बहुत आभारी हूं कि मुझे आप सबके बीच आने का अवसर दिया। बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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शिक्षक - माननीय प्रधानमंत्री महोदय, नमो नमः अहम आशा रानी 12 उच्च विद्यालय, चंदन कहरी बोकारो झारखंड त: (संस्कृत में)

महोदय, एक संस्कृत शिक्षिका होने के नाते मेरा यह सपना था कि मैं बच्चों को भारत की उस संस्कृति से अवगत कराऊं जो हमारे उन समस्त संस्कारों का बोध कराती है जिनके माध्यम से हम अपने मूल्यों जीवन आदर्शों का निर्धारण करते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने बच्चों की रुचि संस्कृत में उत्पन्न कर इसे नैतिक शिक्षा का आधार बनाया और विभिन्न श्लोकों के माध्यम से बच्चों को जीवन मूल्यों को सिखाने का प्रयास किया।

प्रधानमंत्री जी – आपने कभी सोचा कि जब आप संस्कृत भाषा के प्रति उनको आकर्षित करते हैं। उसके द्वारा उसको एक ज्ञान के भंडार की तरफ ले जाता है। ये हमारे देश में पढ़ा हुआ है। क्या कभी इन बच्चों को Vedic mathematic क्या है? तो एक संस्कृत टीचर के नाते या कभी आपके टीचर्स कमरे में टीचर्स के बीच में Vedic Mathematic क्या है? कभी चर्चा हुई होगी।

शिक्षक – नहीं महोदय, इसके बारे में स्वयं।

प्रधानमंत्री जी - नहीं हुई, आप कभी कोशिश कीजिए, ताकि क्या होगा अगर आप सबको भी काम आ सकता है। Online Vedic Mathematic की classes भी चलते हैं। यूके में तो already कुछ जगह पर syllabus में है Vedic Mathematic. जिन बच्चों को maths में रुचि नहीं होती है, वो अगर ये थोड़ा सा भी देखेंगे तो उनको लगेगा ये magic है। एक दम से उसका मन कर जाता है सीखने का। तो वो संस्कृत से हमारे देश के जितने भी विषय हैं, उसे उनमें से कुछ तो भी परिचित करवाना वैसा कभी आप कोशिश करें तो।

शिक्षक – मैं ये बहुत अच्छी आपने बताया महोदय, मैं जाकर बताऊंगी।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं हैं आपको।

शिक्षक – धन्यवाद।

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी जी सादर प्रणाम। मैं कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से, कोल्हापूर से वही जिला राजर्षि शाहू जी की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी – ये गला आपका यहां आकर के खराब हुआ कि वैसे ही है।

शिक्षक – नहीं सर आवाज ही ऐसी है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा आवाज ही ऐसी है।

शिक्षक – जी, तो कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से। समालविया स्कूल में कला शिक्षक हूं। कोल्हापूर वही है राजर्षी शाहू की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी - यानी कला में क्या?

शिक्षक – कला में मैं चित्र, नृत्य, नाट्य, संगीत, गीत वादन, शिल्प सभी सिखाता हूं।

प्रधानमंत्री जी – वो तो दिखता है।

शिक्षक – तो मैं प्रायत ऐसा होता है कि बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों के वर्जिन्स सभी तरफ चलते आते हैं तो मेरे स्कूल में मैंने, मैं जब से वहां पर हू 23 साल से मैंने जो अपनी भारतीय संस्कृति है और लोक नृत्य और जो हमारी शास्त्रीय नृत्य उसके आधार पर ही रचना की है। मैंने शिव तांडव स्तोत्र किया है। और वो भी बड़ी तादाद में मैं करता हूं 300-300, 200 लड़कों को लेके, जिसके लिए विश्वक्रम भी हुए हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर भी मैंने किया है वो भी विश्वक्रम में दर्ज हुआ था और मैं शिव तांडव किया है मैंने देवी का हनुमान चालीसा किया है, देवी के रूप का दर्शन किया है तो इस सब तरीके से मैं अपने नृत्य की वजह से

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप तो करते होंगे।

शिक्षक – मैं खुद भी करता हूं और मेरे बच्चे भी करते हैं।

प्रधानमंत्री जी – नहीं वो तो करते होंगे। लेकिन जिन स्टूडेंट्स के लिए आपकी जिंदगी है। उनके लिए क्या करते हैं?

शिक्षक – वही सब करते हैं सर!

प्रधानमंत्री जी – वो क्या करते हैं?

शिक्षक – 300-300, 400 बच्चे एक नृत्य आविष्कार में काम करते हैं। और सिर्फ मेरे स्कूल के ही बच्चे नहीं। मेरे आजू बाजू में slum area है, कुछ सेक्स वर्कर के बच्चे, कुछ व्हील चेयर वाले बच्चे, उनको भी मैं as a Guest Artist के तौर पर लेता हूं।

प्रधानमंत्री जी - लेकिन उन बच्चों को तो आज सिनेमा वाले गीत पसंद आते होंगे।

शिक्षक – जी सर लेकिन मैं उनको बताता हू कि लोकनृत्य में क्या जान है और मेरी, मेरा ये सौभाग्य है कि बच्चे मेरी बात सुनते हैं।

प्रधानमंत्री जी – सुनते हैं

शिक्षक – जी, 10 साल से मैं ये सब कर रहा हूं।

प्रधानमंत्री जी – अब टीचर की नहीं सुनेगा तो बच्चा जाएगा कहां? कितना साल से आप कर रहे हैं?

शिक्षक – Totally मेरे 30 साल हो गए सर।

प्रधानमंत्री जी – बच्चे को जब पढ़ाते हैं और नृत्य के माध्यम से कला तो सिखाते ही होंगे लेकिन उसमे कोई मैसेजिंग देते हो आप? वो क्या देते हो आप?

शिक्षक – जी सामाजिक मैसेज पर मैं बनाता हूं। जैसे कि मैं drunk & drive जो होता है उसके लिए मैं नृत्य नाट्य बिठाया था कि जिसको मैंने प्रदर्शन पूरे शहर में करवाया था। As a पथ नाट्य के स्वरूप में। जैसे ही मैंने दूसरी बार बताया की स्पर्श नाम की एक शॉर्ट फिल्म बनवाई थी। जिसकी पूरी टेक्निकल टीम मेरी स्टूडेंट्स थी।

प्रधानमंत्री जी – तो ये दो दिन से तीन दिन से आप लोग सब जगह पर आपका जाना होता होगा, थक गए होंगे आप लोग। कभी इसके घर, कभी उसके घर, कभी उसके घर ऐसे ही चलता होगा। तो इनसे कोई विशेष परिचय कर लिया क्या आप लोगों ने? कोई लाभ लिया कि नहीं किसी ने?

शिक्षक – जी हैं सर बहुत सारे लोग ऐसे हैं mostly जो higher से हैं वो लोगों ने बोला था कि सर अगर हम आपको बुलाएंगे तो आप हमारे कॉलेज आएंगे।

प्रधानमंत्री जी – मतलब आपने आगे का तय कर लिया है। मतलब आप commercially भी करते हैं कार्यक्रम।

शिक्षक - commercially भी करता हूं लेकिन उसका

प्रधानमंत्री जी – फिर तो आपको बहुत बड़ा मार्केट मिल गया है।

शिक्षक – नहीं सर उसकी भी एक बात बताना चाहूंगा, commercially में जो भी काम करता हूं। मैंने फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ किया है लेकिन मैंने 11 अनाथ बच्चे गोद लिए हुए हैं। मैं उनके लिए commercially काम करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – उनके लिए क्या काम करते हैं आप?

शिक्षक – वो अनाथ आश्रम में थे और उनके लिए कला .......थे तो अनाथ आश्रम की एक पहल होती है कि 10वी के बाद उसको आईटीआई में डाल दो। तो मैंने वो धारणा तोड़ने की कोशिश की तो उन्होंने बोला की नहीं हम लोगों को इसको allow नहीं करते हम लोग। तो मैंने उनको बाहर ले लिया, एक रूम में रख लिया। जैसे – जैसे बच्चे बड़े होते रहे वहां पर आकर। उनकी शिक्षा की, उसमे से दो कला शिक्षक करके काम कर रहे हैं। दो लोग हैं वो नृत्य शिक्षक करके गवर्नमेंट स्कूल में लग गए। मतलब सीबीएसई।

प्रधानमंत्री जी – तो जो ये बढ़िया आप काम करते हैं। ये आखिर में बताते हैं ऐसे कैसे हुआ। ये बहुत बड़ा काम है कि आपके मन में उन बच्चों के प्रति संवेदना जगना और किसी ने छोड़ दिया मैं नहीं छोडूंगा और आपने उनको गोद लिया ये बहुत काम किया है आपने।

शिक्षक – सर इस बात का मेरे जीवन से ताल्लुक है। मैं खुद अनाथालय से हूं। तो इसलिए मुझे लगता है कि जो मुझे नहीं मिला था तो मेरे पास तभी कुछ नहीं था और मेरे संचित के पास से अगर मैं वंचित के लिए कुछ करूं तो ये मेरा परम सौभाग्य है।

प्रधानमंत्री जी – चलिए आपने सिर्फ कला को ही नहीं आपने जीवन को संस्कारों से जिया है। बहुत बड़ी बात है ये।

शिक्षक – जी धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – तो सचमुच में नाम आपका सागर सही है।

शिक्षक – जी सर आपसे सौभाग्य हो आपसे बात करने का ये मेरे सौभाग्य की बात है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बहुत शुभकामनाएं भईया।

शिक्षक – Thank You Sir.

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते जी

शिक्षक – मैं डॉ. अविनाशा शर्मा हरियाणा शिक्षा विभाग में बतोर अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में काम कर रही हूं। माननीय, हरियाणा के जो वंचित समाज के बच्चे हैं। जो ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं जहां अंग्रेजी भाषा उनके लिए सुनना और समझना थोड़ा मुश्किल होता है। उसके लिए मैंने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया है। ये भाषा की प्रयोगशाला न सिर्फ भाषा अंग्रेजी भाषा के लिए तैयार की गई है। बल्कि क्षेत्रीय भाषाएं और मातृभाषा दोनों का ही इसमे समावेश किया गया है। महोदय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 Artificial Intelligence और machine learning के जरिये बच्चों को पढ़ाने के लिए बढ़ावा देती है। इन पहलुओं को देखते हुए मैंने इस भाषा प्रयोगशाला में Artificial Intelligence का भी समावेश किया है। जैसे Generative tools Artificial Intelligence के हैं speakomether और talkpal. उनके जरिये भाषा के शुद्ध उच्चारण बच्चे को सीखते और समझते हैं। मुझे बहुत खुशी हो रही है आपसे साझा करते हुए महोदय। कि मैंने अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व UNESCO, UNICEF, Indonesia और Uzbekistan जैसे क्षेत्रों में देशों में किया और उसका प्रभाव मेरी क्लास रूप तक पहुंचा। आज हरियाणा का एक सरकारी स्कूल ग्लोबल क्लासरूम बन गया है और उसके जरिये बच्चें Indonesia में Columbia University में बैठे हुए Professors और Students के साथ बातचीत करते हैं और अपने अनुभव को साझा करते हैं I

प्रधानमंत्री जी – थोड़ा अनुभव बताएंगे, किस प्रकार से करते हैं आप बाकियों को भी पता चले?

शिक्षक – सर Microsoft Scarpthen एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जिसको मैंने अपने बच्चों से introduce कराया है। Columbia University के Professor’s के साथ बच्चे जब बातचीत करते हैं। उनके कल्चर, उनकी language जो रोजमर्रा में काम आने वाली चीजें हैं, जिस तरह वो अपने academic’s को enhance करते हैं। वो चीजें हमारे बच्चे सीख पा रहे हैं। बहुत खुबसूरत सा मैं एक अनुभव शेयर करना चाहूंगी सर मैं आपसे। मैं जब Uzbekistan गई, तो वहां से जो अनुभव मैंने अपने बच्चों से शेयर किया तो उनको ये समझ में आया कि जिस तरीके से अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है ठीक उसी तरह से उज्बेकिस्तान के लोग अपनी मातृभाषा उज्बेक में बात करते हैं। Russian उनकी Official Language है, राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है तो वो अपने आपको इस विश्व से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अंग्रेजी उनके लिए सिर्फ एक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रह गई है। उनको ये रूचि बढ़ने लग गई है इस भाषा में क्योंकि अब ये नहीं है कि विदेशों में ही अंग्रेजी बोली जाती है। और ये उनके लिए बहुत सहज है। ये उनके लिए उतनी ही challenging है, चुनौतीपूर्ण है जितनी हमारे भारतीय बच्चों के लिए हो सकती है।

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप बच्चों को दुनिया दिखा रही हैं अच्छी बात है लेकिन देश भी दिखा रही हैं क्या?

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – तो हमारे देश की कुछ चीजें जो उनको अंग्रेजी सीखने का जानने का मन कर जाए ऐसा कुछ

शिक्षक – सर मैंने इस प्रयोगशाला में भाषा कौशल विकास पर काम किया है। तो अंग्रेजी भाषा तो एक पाठ्यक्रम की भाषा रही है। But भाषा सीखी कैसे जाती है। क्योंकि मेरे पास जो बच्चे आ रहे हैं वो हरियाणवी परिवेश के हैं। अगर मैं रोहतक में बैठे हुए बच्चे से बात करूं वो नूह में बैठे हुए बच्चे से बिल्कुल different भाषा में बात करता है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा हम जैसे घर में, हमारे पास टेलीफोन पुराने जमाने में वो जो रहता था।

शिक्षक – हां जी।

प्रधानमंत्री जी – डिब्बा वो फोन है। और हमारे घर में कोई गरीब परिवार की कोई महिला घर काम के लिए यहां आती जाती है। इतने में घंटी बजी और वो टेलीफोन उठाती है। वो उठाते ही बोलती है हेलो, वो कैसे सीखी वो?

शिक्षक – यही भाषा का कौशल विकास सर बताया। भाषा सुनने पर और उसका प्रयोग करने पर आती है।

प्रधानमंत्री जी – और इसलिए सचमुच में Language बोलचाल से बहुत जल्दी सीखी जा सकती है। मुझे याद है मैं जब गुजरात में था तो नडियात में मेरे यहां एक महाराष्ट्र का परिवार नौकरी के लिए, वो प्रोफेसर थे नौकरी के लिए आए। उनके साथ उनकी वृद्ध माता जी थीं। अब ये महाशय पूरे दिन भर स्कूल कॉलेजों में रहते थे लेकिन Language में जीरो रहे वो छह महीने के बाद भी। और उनकी माताजी कुछ पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन वो धनाधन गुजराती बोलना शुरू कर दिया। तो मैं एक बार उनके यहां भोजन के लिए गया मैंने पूछा ये नहीं बोली हमारे घर में जो काम वाली है ना उसको और कुछ आता नहीं तो बोली मुझे सीख गया। बोलचाल से सीखा जाता है।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – अब मुझे बराबर याद है मैं जब छोटा था तो मेरे स्कूल में जो टीचर थे। वो थोड़े strict भी थे। और हमें strictness थोड़ी तकलीफ करती थी। लेकिन उन्होंने राजाजी ने जो रामायण, महाभारत लिखी है। तो उसमें से जो रामायण की जो बहुत परिचित वार्ता तो सबको परिचित होती है। तो बड़ा आग्रह करते थे कि राजाजी ने जो रामायण लिखी है। उसको थोड़ा धीरे-धीरे पढ़ना शुरू करो। कथा पता था भाषा पता नहीं थी। लेकिन बहुत जल्दी coordinate करते थे। एक दो शब्द समझ गए तो भी लगता था कि हां ये कहीं सीता माता की कोई चर्चा कर रहे हैं।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए, बहुत बढ़िया।

शिक्षक – Thank You Sir, Thank You.

प्रधानमंत्री जी – हर हर महादेव,

शिक्षक – हर हर महादेव,

प्रधानमंत्री जी – काशी वालों को हर हर महादेव से ही दिन शुरू होता है।

शिक्षक – सर मैं आज आपसे मिलकर बहुत खुश हूं सर। सर मैं कृषि विज्ञान संस्थान में पौधे की रोग के ऊपर मेरा शोध है और उसमे मेरा सबसे बड़ा प्रयास ये है कि जो हम लोग sustainable agriculture की बात करते हैं। वो जमीनी स्तर पर अभी वो उतरे नहीं है पूरे अच्छे से। मेरा इसलिए प्रयास ये है कि हम किसानों को ऐसे तकनीक को हाथ पकड़ाएं जो आसान हो और उसकी अभूतपूर्व परिणाम खेतों में दिखें। और मुझे लगता है इस प्रयास में हमको बच्चों Student’s मेरा और महिलाओं की भागीदारी अहम है। और इसलिए मेरा प्रयास ये है कि मैं स्टूडेंटस के साथ गांव में जाता हूं और किसानों के साथ मैं महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रयास कराता हूं। ताकि ये छोटी-छोटी जो Techniques हम लोग develop किए हैं। उससे sustainability की तरफ हम कदम बढ़ाते हैं। और इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है।

प्रधानमंत्री जी – कुछ बता सकते हैं क्या किया है?

शिक्षक – सर हम लोगों बीज शोधन की तकनीक को perfect किया है। हमने कुछ Local microbes को identify किया है। उससे जब हम बीज को शोधन करते हैं तो जब roots आते हैं सर पहले से ही विकसित root बनते हैं। उससे वो पौधा बहुत स्वस्थ बनते है। उस पौधे में सर बीमारियां कम लगती हैं क्योंकि जड़ इतनी मजबूत हो जाते है, पौधे को वो अंदर से एक ताकत देते हैं कीट और बीमारियों से लड़ने के लिए।

प्रधानमंत्री जी – लैब में करने वाला काम बता रहे हैं। Land पर कैसे करते हैं? Lab to Land. जब आप कह रहे हैं आप खुद जा रहे हैं किसानों के पास। वो कैसे इसको करते हैं और वो कैसे शुरू करते हैं?

शिक्षक – सर हमने एक Powder Formulation बनाया है और इस Powder Formulation को हम किसानों को देते हैं और उनकी हाथों बीज को शोधन करवाते हैं और ये हम प्रयास कई सालों से निरंतर कर रहे हैं। और वाराणसी के आसपास के 12 गांवों में हमने अभी इस कार्य को किये हैं और महिलाओं की अगर संख्या की बात कहें तो तीन हजार से अधिक महिलाएं अभी इस Technology.

प्रधानमंत्री जी – नहीं तो जो ये लोग किसान है वो किसी और किसान को भी तैयार कर सकते हैं?

शिक्षक – बिल्कुल सर, क्योंकि जब Powder लेने के लिए एक किसान आते हैं वो और चार किसानों के लिए साथ में लेकर जाते हैं। और इसका क्योंकि देखा देखी किसान बहुत सिखते हैं और मुझे ये बात की खुशी है कि हमारे जो हम जितने को सिखाये हैं उनसे और कई गुणा लोगों ने अपनाए हैं इसको। अभी पूरा संख्या मेरे पास नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर किस फसल पर प्रभाव हुआ और किस।

शिक्षक – सब्जी और गेहूं पर।

प्रधानमंत्री जी – सब्जी और गेहूं पर, ये जो प्राकृतिक खेती इस पर हमारा बल है। और जो लोग धरती मां को बचाना चाहते हैं। वे सब चिंतित हैं जिस प्रकार से हम इस धरती मां की सेहत के साथ अत्याचार कर रहे हैं। उस मां को बचाना बहुत जरूरी हो गया है। और उसके लिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा उपाय दिखता है। उस दिशा में कोई चर्चा हो रही है वैज्ञानिकों में।

शिक्षक – जी बिल्कुल सर, प्रयास उसी दिशा में है। लेकिन सर किसानों को हम लोग अभी पूरी तरह convince नहीं कर पा रहे कि रसायन को आप प्रयोग न करें। क्योंकि किसान डरते हैं कि हम रसायन का प्रयोग नहीं करने से मेरे फसल में कुछ नुकसान हो जाएगा।

प्रधानमंत्री जी – एक उपाय हो सकता है। मान लीजिए उसके पास चार बीघा जमीन है। तो 25 परसेंट, 1 बीघा में प्रयोग करो, तीन में जो तुम परंपरागत करते हो वो करो। यानि छोटा सा हिस्सा लो, उसको एक प्रकार अलग से तुम इसी पद्धति से करो, तो उसकी हिम्मत आ जाएगी। हां यार थोड़ा नुकसान होगा तो 10 परसेंट, 20 परसेंटहो जाएगा। लेकिन मेरी गाड़ी चलेगी। गुजरात के जो गवर्नर हैं आचार्य देववृत्त जी, वे बहुत की dedicated हैं इस विषय में काफी काम करते हैं। अगर आप वेबसाइट पर जाएंगे क्योंकि आप में से बहुत से लोग हैं जो किसान का background वाले होंगे। तो उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिए बहुत सारा डिटेल बनाया। ये आप जो एलकेएम देख रहे हैं यहां पूरी तरह प्राकृतिक खेती का ही उपयोग होता है हर चीज का। यहां कोई केमिकल allow नहीं है। आचार्य देववृत्त जी ने एक बहुत ही अच्छा formula develop किया। कोई व्यक्ति उसको कर सकता है। गोमूत्र वगैरह का उपयोग करके करते हैं और बहुत अच्छे परिणाम आते हैं। अगर आप उसको भी स्टडी करे आपकी University में क्या हो सकता है तो देखिये।

शिक्षक – जरूर सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं।

शिक्षक – धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – वणक्कम।

शिक्षक – वणक्कम Prime Minister Ji. I am Dhautre Gandimati. I come from Tyagraj Polytechnic College, Salem Tamil Nadu and I have been teaching English in the Polytechnic College for more than 16 years. Most of my polytechnic students hail from rural background. They come from Tamil Medium Schools, So they find it difficult to speak or at least open their mouths in English.

प्रधानमंत्री जी – लेकिन हम लोगों को ये भ्रम है। शायद सब लोगों को यही होगा कि भई यानि तमिलनाडु मतलब सबको अंग्रेजी आती है।

शिक्षक – Obviously Sir, They are rural people who study from the vernacular language medium. So they find it difficult, Sir. For them we teach

प्रधानमंत्री जी – और इसीलिए ये जो नई शिक्षा नीति है उसमे मातृभाषा पर बहुत बल दिया गया है।

शिक्षक – So we are teaching English language Sir and as per NEP 2020 as at least three languages now we have in our mother tongue learning . We have now introduced as an autonomous institution. We have now introduced our mother tongue language also in learning technical education.

प्रधानमंत्री जी – क्या आपमें से कोई है जिसने बहुत हिम्मत के साथ ऐसा प्रयोग किया हो। कि मान लीजिए एक स्कूल में 30 बच्चें हैं वो purely अंग्रेजी भाषा के माध्यम से और उन्ही के बराबर के दूसरे 30 बच्चे वो ही विषय अपनी मातृ भाषा में पढ़ते हैं। तो कौन सबसे आगे जाता है, कौन ज्यादा से ज्यादा जानता है क्या अनुभव आता है आप लोगों का? क्योंकि क्या है मातृभाषा में वो direct चीज को, उसको mentally अंग्रेजी फिर उसको अपनी भाषा में Translate करेगा फिर उसको समझने का प्रयास करेगा, बहुत Energy जाती है उसकी। तो बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने का और बाद में अंग्रेजी एक subject के रूप में बहुत अच्छा पढ़ाना चाहिए। यानि जैसे ये संस्कृत टीचर क्लास में जाती होगी ओर क्लासरूम से बाहर आती होगी संस्कृत के सिवा किसी भी भाषा का प्रयोग नहीं करती होगी आशा है । वैसे ही अंग्रेजी के टीचर को भी क्लासरूम में अंदर जाने से बाहर निकलने तक और कोई Language नहीं बोलनी चाहिए। अंग्रेजी करेंगे तो वो भी उतने ही बढ़िया तरीके से करेंगे। फिर ऐसा नहीं की भई एक वाक्य अंग्रेजी तीन वाक्य मातृ भाषा में पढ़ाएंगे। तो वो बच्चा catch नहीं कर सकता है। अगर हम उतना dedication language के प्रति भी होगा तो बुरा नहीं है और हमें तो अपने बच्चों को आदत डालनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखने का, उनके मन में इच्छा जगनी चाहिए और इसलिए कभी – कभी स्कूल में तय करना चाहिए इस बार हम अपने स्कूल में पांच अलग-अलग राज्यों के गीत सिखाएंगे बच्चों को। पांच गीत एक साल में मुश्किल नहीं हैं। तो पांच भाषा के गीत जान लेंगे कोई असमिया करेगा, कोई मलयालम में करेगा, कोई पंजाबी करेगा, पंजाबी तो खैर कर ही लेते हैं। चलिए बहुत – बहुत शुभकामनाएं। Wish you all the best.

शिक्षक – प्रधानमंत्री जी जी, मेरा नाम उत्पल सैकिया है और मैं असम से हूं। मैं अभी North East Skill Centre Guwahati में Food & Beverage Service में एक प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा हूं। और मैं इधर North East Skill Centre में मेरा अभी छह साल संपन्न हो गया है। और मेरा मार्गदर्शन से अब तक 200 से ज्यादा सत्र सफलतापूर्वक प्रशिक्षित हो गया है। और देश और विदेश में Five Star होटलों में काम।

प्रधानमंत्री जी – कितने समय का कोर्स है आपका?

शिक्षक – एक साल का कोर्स है सर।

प्रधानमंत्री जी – 1 year और Hospitality का जानते हैं

शिक्षक – Hospitality Food & Beverage Services.

प्रधानमंत्री जी – Food & Beverage, उसमें क्या विशेष सिखाते हैं आप?

शिक्षक – हम सिखाते हैं कैसे guests से बातें करते हैं, कैसे Food service होता है, कैसे drink service होता है तो इसके लिए हम क्लासरूम में स्टूडेंट्स को already ready कराते हैं। Different Techniques सिखाते हैं कैसे guests का प्रॉब्लम solve करना है, कैसे tackle करना है वो सब हम सिखाते हैं सर।

प्रधानमंत्री जी – जैसे कुछ उदाहरण बताइये। इन लोगों को घरों में बच्चे ये नहीं खाऊंगा, ये खाऊंगा, ये नहीं खाऊंगा ऐसे करते हैं। तो आप अपनी Technique सिखाइए इनको।

शिक्षक – बच्चों के लिए तो मेरे पास कुछ technique है नहीं लेकिन जो गेस्ट आते हैं जो हमारे पास होटल में आते हैं तो उन लोग को कैसे tackle करना है मतलब politely, humbly उन लोगों को बातें सुनकर।

प्रधानमंत्री जी – यानी ज्यादातर आपका फोकस soft skills पर है।

शिक्षक – हां जी सर, हां जी सर, Soft Skills.

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर वहां से निकले हुए बच्चों को जॉब के लिए एक opportunity कहां रहती है?

शिक्षक – All over India, जैसे कि Delhi हो गया, मुंबई।

प्रधानमंत्री जी – Mainly बडे-बड़े होटल में।

शिक्षक – बड़े-बड़े Hotels में। हमारा मतलब 100 परसेंट placement guaranteed है। Placement Team है, वो लोग देखते हैं।

प्रधानमंत्री जी – आप गुवाहाटी में हैं, अगर मैं हेमंता जी से कहूं कि हेमंता जी के जितने Ministers हैं उनके स्टाफ को आप Train करें और उनके अंदर ये capacity building करें। क्योंकि उनके यहां गेस्ट आते हैं और उसको मालूम नहीं होता है कि इसको बाएं हाथ से पानी दूं या दाहिने हाथ से, तो हो सकता है?

शिक्षक – Definitely हो सकता है।

प्रधानमंत्री जी – देखिए ये बात आपको आश्चर्य होगा। मैं जब गुजरात में था मुख्यमंत्री। तो मेरे यहां एक Hotel Management School था। तो मैंने बड़ा आग्रह किया था कि मेरे जितने Ministers हैं, उनका जो personal staff है उनको Saturday, Saturday, Sunday जाकर के वो सिखाएंगे। तो उन्होंने Volunteer सिखाना तय किया और मेरे यहां जितने अभी बच्चे काम करते हैं या माली काम करता था या cook काम करता था। जितने भी Ministers के यहां सबकी वहां पर 30, 40-40 घंटे के करीब syllabus होता था। उसके बाद उनके performance में से इतना बदलाव आया और घर में जाते ही पता चलता था। कि वाह कुछ नया-नया लग रहा है और तो जो परिवार वाले हैं उनको शायद उतना ध्यान में नहीं होता था, मेरे लिए तो बड़ा आश्चर्य होता था कि यार तुमने कैसे कर दिया ये सब? तो वहां सीख के आता था, तो मैं समझता हूं कभी ये भी करना चाहिए ताकि एक ये बहुत बड़ा ब्रांड बन जाएगा कि भई हां कि एक छोटा सा छोटा जैसे घर में काम करने वालों को भी आते ही कोई नमस्ते कह दे, जैसे टेलीफोन उठाने वाले लोग सरकारी दफ्तर में कुछ लोगों के ट्रेनिंग होते हैं। वो जय हिंद बोल कर उठाएंगे फोन या नमस्ते करके उठाएंगे, कोई हां बोलो क्या कहना है? तो वहीं से बात बिगड़ जाती है। तो आप उसको बराबर ठीक से सिखाते हैं?

शिक्षक : सिखाते हैं सर, सिखाते हैं!

प्रधानमंत्री जी: चलिए, बहुत बहुत बधाई है आपको!

शिक्षक : धन्यवाद सर!

प्रधानमंत्री जी: तो बोरिसागर आपके कुछ थे क्‍या?

शिक्षक : हां थे सर, दादा थे!

प्रधानमंत्री जी: दादा थे? अच्छा! वो हमारे बहुत हास्य लेखक हुआ करते थे। तो आप क्‍या करते हैं?

शिक्षक: सर मैं अम्रेली से प्राइमरी स्कूल में टीचर हूं और वहां पर श्रेष्ठ पाठशाला निर्माण से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण के जीवन मंत्र के साथ पीछे 21 साल से काम कर रहा हूं सर...

प्रधानमंत्री जी: क्या विशेषता क्या है आपकी?

शिक्षक: सर मैं हमारे जो लोकगीत हैं ना...

प्रधानमंत्री जी: कहते हैं आप बहुत पेट्रोल जलाते हैं?

शिक्षक: हां सर वो बाइक पर में हमारा जो प्रवेश उत्सव आपके द्वारा हमारा जो सफल कार्यक्रम रहा शिक्षकों का 2003 से, सर हमारे जो लोकल गरबा गीत हैं, उसको हमें education और गीत में परिवर्तित करके मैं गाता हूं, जैसे पंखेड़ा है हमारा, सर अगर आपकी अनुमति हो तो गा सकता हूं मैं?

प्रधानमंत्री जी: हां, हो जाए!

प्रधानमंत्री जी: ये गुजराती बहुत प्रसिद्ध लोकगीत है।

शिक्षक: yes sir, ये गरबा गीत है।

प्रधानमंत्री जी: उन्होंने इसके वाक्य बदल दिए हैं और वो कह रहे हैं कि बच्चों को ये गीत से बताते हैं कि अरे भई तुम स्‍कूल चलो, पढ़ने के लिए चलो यानी अपने तरीके से वो कर रहे हैं।

शिक्षक: yes sir, और सर 20 भाषा के गीत भी मैं गा सकता हूं।

प्रधानमंत्री जी: 20, अरे वाह!

शिक्षक: अगर मैं केरल के बारे में बच्चों को सिखाता हूं तो, अगर तमिल में सिखाता हूं तो तमिल के दोस्त हैं वा यानि आओ, पधारो वेलकम, अगर मैं मराठी में, अगर कन्नड़ में …………. भारत माता को नमन करता हूं सर! अगर मैं राजस्थानी में इसे गाता हूं ........

प्रधानमंत्री जी: बहुत-बहुत बढ़िया!

शिक्षक: Thank you sir, सर एक भारत श्रेष्ठ भारत, यही मेरा जीवन मंत्र है सर!

प्रधानमंत्री जी: चलिए बहुत-बहुत...

शिक्षक: और सर 2047 में विकसित भारत बनाने के लिए भी और ऊर्जा से काम करूंगा सर।

प्रधानमंत्री जी: Very good.

शिक्षक: Thank you sir.

प्रधानमंत्री जी: उनकी surname मैंने जब देखी तो उनके दादा से मैं परिचित था तो मुझे याद आया आज और उनके दादा बहुत ही अच्छे हास्य लेखक हुआ करते थे मेरे राज्‍य में, बड़ी पहचान थी उनकी लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि आपने उस विरासत को संभाला होगा। मुझे बहुत अच्छा लगा!

साथियों,

मेरी तरफ से कुछ खास आप लोगों को संदेश तो नहीं है पर मैं जरूर कहूंगा कि ये सेलेक्‍शन होना ये बहुत बड़ी पूंजी होती है, लंबे प्रोसेस से निकलता है। पहले क्या होता था मैं इसकी चर्चा नहीं करता हूं, लेकिन आज कोशिश है कि देश में ऐसे होनहार लोग हैं, जो कुछ वो नया कर रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हमसे कोई ज्यादा अच्छे टीचर नहीं होंगे, किसी और विषय में अच्छा नहीं करते होंगे ऐसा नहीं हो सकता। ये तो देश है बहुरत्‍ना वसुंधरा है। कोटि-कोटि टीचर्स ऐसे होंगे जो बहुत उत्तम काम करते होंगे लेकिन हम लोगों की तरफ ध्‍यान गया होगा, हमारी कोई एक विशेषता होगी। जो देश में खासकर के नई शिक्षा नीति के लिए आप लोगों के जो प्रयास हैं वो काम आ सकते हैं। देखिए हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था में जैसे भारत में एक विषय हमारी आर्थिक व्‍यवस्‍था को बहुत ताकत दे सकता है और भारत ने ये मौका गंवा दिया है। हमने फिर से एक बार उसको प्राप्त करना है और वो हमारे स्कूलों से शुरू हो सकता है और वो है टूरिज्‍म I

अब आप कहेंगे कि हम बच्चों को पढ़ाएंगे या टूरिज्‍म करें। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप टूरिज्‍म करें, लेकिन अगर स्‍कूल के अंदर टूर तो जाती ही होगी लेकिन ज्‍यादातर टूर कहां जाती है, जहां टीचर ने जो देखा नहीं है वहां टूर जाती है। स्‍टूडेंट को क्‍या देखना चाहिए, वहां टूर नहीं जाती है। अगर टीचर का उदयपुर रह गया तो फिर कार्यक्रम बनाएंगे कि स्‍कूल इस बार उदयपुर जाएगी और फिर सबसे जो भी पैसे लेने होते हैं, जो टिकट का खर्चा होता है सब कलेक्‍ट करते हैं फिर जाते हैं लेकिन मेरे लिए तो जैसे मां कहती है ना बच्चे को आइसक्रीम खाना है, तो हम लोग कभी सोचकर के जैसे टाइम टेबल बनाते हैं साल भर का आप लोग पूरा काम तय कर लेते हैं किसको करना है, कैसे... क्‍या उसमें हम अभी से कि भई 2024-2025 में 8 या 9 कक्षा के विद्यार्थियों के लिए डेस्‍टिनेशन ये होगा। 9 और 10 के लिए ये होगा and then जो भी तय करें आप... हो सकता है ये स्‍कूल 3 डेस्‍टिनेशन तय करे, हो सकता है स्‍कूल 5 डेस्‍टिनेशन तय करे और उनको साल भर काम देना चाहिए कि अब आपको प्रोजेक्‍ट दिया जाता है कि अगले साल हम केरला जाने वाले हैा, भई 10 स्‍टूडेंट का एक ग्रुप बनेगा जो केरल के सोशल रीति रिवाज उन पर प्रोजेक्‍ट करेगा। 10 स्टूडेंट वहां के धार्मिक परंपरा क्या होती हैं, मंदिर कैसे होते हैं, कितने पुराने हैं, 10 स्टूडेंट हिस्ट्री पर करेंगे, साल भर एक-एक, दो-दो घंटा इस पर डिबेट होती रहे, केरल, केरल, केरल चलता रहे और फिर केरल के लिए निकल पड़ें। आपके बच्चे जब जाएंगे केरला तो वो एक प्रकार से पूरे केरल को आत्मसात करके वापस आएंगे। उनको रहेगा अरे वो मैंने पढ़ा था ना अच्छा ये वो है, वो correlate करेगा।

अब आप सोचिए कि मान लीजिए गोवा ने तय किया कि इस बार हम नॉर्थ ईस्‍ट जाएंगे और मान लीजिए सब स्‍कूल मिलाकर के 1000-2000 बच्‍चे नॉर्थ ईस्‍ट जाते हैं तो उनको तो नॉर्थ ईस्‍ट देखने को मिलेगा। लेकिन नॉर्थ ईस्‍ट के टूरिज्म को फायदा होगा कि नहीं होगा? ये लोग नॉर्थ ईस्‍ट जितने भी होते हैं, तो नॉर्थ ईस्‍ट वालों को लगेगा भई अब इतने लोग आ रहे हैं तो कोई चाय-पान के लिए दुकानें खोलनी पड़ेगी। किसी को लगेगा ये चीज बिकती है चलो ये ज्यादा, तो हां भाई अपना रोजगार बढ़ेगा। भारत इतना बड़ा देश है, हम शिक्षा के साथ और इस बार आपको, आप अपने स्टूडेंट्स को बताइए, अभी ऑनलाइन एक कॉम्पिटिशन चल रहा है और आपके स्कूल के सब बच्चों ने उसमें हिस्सा लेना चाहिए, लेकिन ऐसे ही टिक मार्क नहीं करना चाहिए, थोड़ा स्टडी करके करना चाहिए। अभी कॉम्पीटिशन चल रहा है देखो अपना देश, ऑनलाइन रैंकिंग चल रहा है, लोग वोट कर रहे हैं और उसमें हमारी कोशिश है कि उस राज्य के लोग वोट करके तय करें कि हमारे राज्य में ये नंबर वन पर चीज है जो देखने जैसी है, जाने जैसी है। एक बार आप वोटिंग से जो सेलेक्ट होंगे, तो सरकार कुछ बजट लगाएगी, वहां infrastructure तैयार करेगी और उनको फिर develop करेगी। लेकिन ये टूरिज्‍म कैसे टूरिज्‍म होता है मुद्दा ये होता है कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा... कुछ लोगों का कहना है कि भई टूरिज्‍म नहीं है इसलिए डेवलप नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं कि टूरिज्‍म आएंगे तो डेवलप होगा और इसलिए हम स्‍टूडेंट से शुरू कर सकते हैं ऐसे डेस्‍टिनेशन, योजनाबद्ध तरीके से वहां जाएं, रात्रि को वहां मुकाम करें तो उस स्थान के लोगों को लगेगा कि भई अब रोजगार की संभावना बनेगी, तो होम स्टे बनने लग जाएंगे। ऑटो रिक्‍शा वाले आ जाएंगे यानी अगर हम सिर्फ स्‍कूल में बैठे-बैठे तय करें तो इस देश में 100 टॉप डेस्टिनेशन टूरिज्म के हम 2 साल में तैयार कर सकते हैं। एक टीचर कितना बड़ा revolution ला सकता है, इसका ये उदाहरण है। यानि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में स्कूल के regular काम में, आप करते ही हैं, आप के यहां से टूर जाते ही जाते हैं। लेकिन अध्‍ययन नहीं होता है। जहां जाना है उसका साल भर अध्‍ययन होगा तो वो शिक्षा काम हो गया। जाकर के उस जगह पर जाते हैं तो वहां पर इकोनॉमी को लाभ जो सकता है।

उसी प्रकार से मेरा आपसे आग्रह है कि आपके नजदीक में जहां भी university हो, कभी न कभी आपके 8वी-9वी कक्षा के बच्‍चों का उस university में टूर कराना चाहिए। university से बात करनी चाहिए कि भई हमारी 8वी कक्षा के बच्‍चे आज university देखने आएंगे। मेरा एक नियम था जब मैं गुजरात में था, अब तो कहीं पर university में अगर convocation में बुलाते थे, तो मैं उनसे कहता था कि भई मैं आऊंगा जरूर लेकिन मेरे 50 guests साथ आएंगे। तो university को रहता था कि भई ये कौन 50 guests आएंगे। और जब politician कहता है तो उनको लगता है कि उनके चेले-चपाटे आने वाले होंगे। फिर मैं कहता था कि university के 5-7 किलोमीटर के रेडियस में कोई सरकारी स्‍कूल हो जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हों झुग्गी-झोपड़ी के, ऐसे 50 बच्‍चे मेरे guest होंगे और उनको आपको first row में बिठाना पड़ेगा। अब ये बच्‍चे जब ये convocation देखते हैं, हैं तो बिल्‍कुल गरीब परिवार के बच्‍चे, उनके मन में उसी दिन सपना बो देते हैं। कभी मैं ऐसा टोपा पहन करके, ऐसा कुर्ता पहन करके मैं भी अवार्ड लेने जाऊंगा। ये भाव उसके मन में register हो जाता है। आप भी अगर अपने स्‍कूल के ऐसे बच्‍चों को ऐसी university देखने के लिए ले जाएं, university से बात करें कि साहब आपके यहां इतनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, हम देखना चाहते हैं।

वैसे ही sports के event होते हैं, कभी-कभी हम क्‍या करते हैं जैसे ब्‍लॉक लेवल का sports competition है, तो कौन करेगा वो पी.टी. टीचर जाने, वो खेलने वाला बच्‍चा जानें, जाएगा। सचमुच में पूरे स्‍कूल को sports देखने के लिए जाना चाहिए। भले ही कबड्डी चल रही है, किनारे बैठेंगे, ताली बजाएंगे। कभी-कभी देखते-देखते ही उसमें से खिलाड़ी बनने का मन किसी को जग जाता है। खिलाड़ी को भी लगता है कि यार मैं कोई एकलौता अपने पागलपन के कारण खिलाड़ी नहीं बना हूं। मैं खेल खेल रहा हूं मतलब मैं एक समाज का एक अच्छा प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। उसके अंदर एक भाव जागता है। एक टीचर के नाते मैं ऐसी चीजों को innovate करता रहूं और कोई extra प्रयत्न के बिना जो हैं उसको प्लस वन करना है बस, ये अगर हम कर सकते हैं तो आप देखिए, स्‍कूल का भी नाम बन जाएगा, जो टीचर उसमें काम करते हैं उनके प्रति भी देखने का एक भाव बदल जाएगा। दूसरा, आप लोग कोई ज्‍यादा संख्‍या हैं नहीं लेकिन आप में से सबको पता नहीं होगा कि बाकियों को किस कारण से ये अवार्ड मिला है। पता नहीं होगा, आपको लगता होगा कि मुझे मिला है तो उसको भी मिला होगा। मैं ये करता हूं, मुझे मिलता है, वो भी कुछ करता होगा, मिल गया, ऐसा नहीं... आपकी कोशिश होनी चाहिए इन सबके अंदर ऐसी कौन सी विशेषता है, इन लोगों में ऐसा कौन सा कर्तव्य है जिसके कारण देश का उन पर ध्यान गया है। मैं उसमें से दो चीजें सीख करके जा सकता हूं क्या? आपके लिए ये चार दिन, पांच दिन एक प्रकार से स्टडी टूर है। आपका सम्मान, गौरव हो रहा है वो तो एक है लेकिन अपने से जैसे मैं आप सबसे बात कर रहा हूं, मैं आप लोगों से सीख रहा था। आप लोग कैसे करते हैं, जान रहा था। अब ये मेरे लिए अपने आप को एक बड़ा प्रसन्न करने वाले बात थी और इसलिए मैं कहता हूं कि आपके जितने साथी हैं, दूसरा किसी जमाने में जब हम छोटे थे तब पत्र मित्र, वैसा एक माना हुआ करता था। अब सोशल मीडिया हो गया है, तो वो तो दुनिया चली गई। लेकिन क्‍या आप लोगों का सबका एक व्हाट्सअप्प ग्रुप बन सकता है? सबका! जो लोग, कब से बना है? अच्छा कल ही बना है। चलिए, अच्छा 8-10 दिन हो गए, मतलब एक good beginning है। एक दूसरे से अपने experience शेयर करने चाहिए। अब आपको यहां कोई तमिलनाडु के टीचर से परिचय हुआ है। आपकी टूर तमिलनाडु जाने वाली है, आपके स्कूल की, अभी से उनको कहिए कि जरा बताइए, देखिए आपकी कितनी बड़ी ताकत बन जाएगी। आपको कोई मिलेगा अरे कोई केरल, अरे मैं उसको जानता हूं, जम्‍मू-कश्‍मीर अरे मैं उससे तो परिचित हूं। आप चिंता मत कीजिए, मैं उनको फोन कर देता हूं। इन चीजों का बड़ा प्रभाव होता है और मैं चाहूंगा कि आप लोगों का एक ऐसा समूह बनना चाहिए जिनको लगना चाहिए कि हम तो एक परिवार के हैं। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत तक, इससे बड़ा कोई अनुभव नहीं हो सकता। ऐसी छोटी-छोटी चीजों की अगर तरफ आप ध्‍यान देते हैं, मुझे पक्‍का विश्वास हैं देश की विकास यात्रा में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है।

आप भी सुन-सुन करके थक गए होंगे। शिक्षक ऐसा होता है, शिक्षक वैसा होता है, फिर आपको भी लगता है कि ये बंद करे तो अच्‍छा है यानि मैं मेरे लिए नहीं कह रहा हूं। लेकिन शिक्षक की जब वाह-वाही चलती है ना तो इतनी चलती है तो फिर आपको भी लगता है यार बहुत हो गया। मुझे भी लगता है कि वाह-वाही की जरुरत नहीं है। हम उस विद्यार्थी की तरफ देखें, उस परिवार ने कितने विश्वास के साथ वो बच्चा हमें सुपुर्द किया है। उस परिवार ने हमें बच्‍चा इसलिए सुपुर्द नहीं किया है कि आप उसको कलम पकड़ना सिखाते हैं, कंप्‍यूटर चलाना सिखाते हैं, इसलिए नहीं दिया है आपको वो बच्‍चा कि ताकि आप उसको कुछ syllabus पढ़ाते हैं, इसलिए वो एग्‍जाम में अपना अच्‍छा रिजल्‍ट ले आए, सिर्फ इसलिएए नहीं भेजा है। मां-बाप को लगता है कि जो हम दे रहे हैं उससे आगे हम ज्‍यादा नहीं दे पाएंगे, उसका अगर कोई प्‍लस वन कर सकता है तो उसका टीचर कर सकता है। और इसलिए बच्‍चे की जिंदगी में शिक्षा में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। संस्‍कार में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। उसके habits में correction कौन करेगा प्‍लस वन टीचर करेगा। और इसलिए प्‍लस वन theory वाली हमारी कोशिश होनी चाहिए। उसके घर से जो मिला है मैं उसमें कुछ ज्‍यादा अतिरिक्‍त जोड़ दूंगा। मेरा उसकी जिंदगी में बदलाव लाने का कोई न कोई contribution होगा। अगर ये प्रयास आपकी तरफ से रहे, मुझे विश्‍वास है कि आप बहुत ही सफलतापूर्वक और आप अकेले नहीं, सभी शिक्षकों से बात कीजिए। अपने क्षेत्र के, अपने राज्‍य के शिक्षकों से बात कीजिए। आप लीडरशिप लीजिए और हमारे देश की नई पीढ़ी को तैयार करें क्योंकि आज जिन बच्चों को आप तैयार कर रहे हैं ना, वे जब नौकरी करने योग्य बनेंगे या 25-27 साल की उम्र तक पहुंचेंगे, तब ये देश आज है वैसा नहीं होगा, ये विकसित भारत होगा। आप उस विकसित भारत में retirement का पेंशन लेते होंगे। लेकिन जिसको आज आप तैयार कर रहे हैं, वो उस विकसित भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने वाला एक सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍तित्‍व बनने वाला है। यानि आपके पास कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, ये विकसित भारत, ये कोई सिर्फ मोदी का कार्यक्रम नहीं है।

हम सबको मिलकर के विकसित भारत के लिए ऐसा मानव समूह भी तैयार करना है। ऐसे सामर्थ्यवान नागरिक भी तैयार करने हैं, ऐसे सामर्थ्यवान नौजवान तैयार करने हैं। अगर हमें आगे चलकर के 25-50 गोल्‍ड मेडल अगर खेल-कूद में लाने हैं, कहां से निकलेगा वो खिलाड़ी? जो आपके स्कूल में दिखते हैं ना, उन बच्चों में से निकले वाला है और इसलिए हम उन सपनों को लेकर के और आपके पास बहुत लोग हैं, सपने होते हैं लेकिन उनके सामने इन सपनों का साकार कैसे करें, आप वो लोग हैं आपके मन में जो सपना आए, उस सपने को साकार करने के लिए वो laboratory आपके सामने ही है, raw material आपके सामने ही है, वो बच्‍चे आपके सामने ही हैं। आप अपने सपनों को लेकर के उस प्रयोगशाला में प्रयास करेंगे, आप जो चाहें वो परिणाम लेकर के आएंगे।

मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं!

बहुत-बहुत धन्यवाद!