Text of PM's address at Parivartan Rally in Muzaffarpur, Bihar

Published By : Admin | July 25, 2015 | 19:23 IST
Bihar must be free from unemployment and Goonda Raaj: PM
Bihar cannot go back to the era of loot and Jungle Raaj, says PM Modi
PM Modi urges people of Bihar to vote wisely and elect a stable BJP Government

भारत माता की जय

कुछ लोग दूसरी मंजिल पर हैं, कुछ लोग तीसरी मंजिल पर हैं, कोई गिर जाएगा तो मैं क्या जवाब दूंगा भैया। एक बार नई सरकार बनने दो आप और नई उंचाईयों पर पहुँचने वाले हो। विश्वास रखिये लेकिन अभी कम-से-कम नीचे उतर जाईये। मुझे चिंता रहेगी कुछ हो गया तो मैं बहुत दुखी हो जाऊंगा।

मंच पर विराजमान केंद्र सरकार में मेरे साथी, श्रीमान अनंत कुमार जी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, श्रीमान मंगल पांडेय जी, राज्य के पूर्व उप-मुख्यमंत्री, श्रीमान सुशील कुमार मोदी जी, विधानसभा के नेता, श्री नंद किशोर यादव जी, भाजपा के प्रभारी श्री भूपेन्द्र यादव जी, केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी, श्रीमान राधामोहन सिंह जी, श्री रविशंकर प्रसाद जी, श्री धर्मेन्द्र प्रधान जी, श्रीमान राजीव प्रताप रूडी जी, श्रीमान गिरिराज जी, श्रीमान राम विलास पासवान जी, और हमारे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जिनका चेहरा सदाय हँसता रहता है, ऐसे हमारे जीतन राम मांझी जी, मेरे साथी, श्रीमान उपेन्द्र कुशवाहा जी, हम सबके मार्गदर्शक, हमारे सबसे पुराने वरिष्ठ नेता, डॉ. सी पी ठाकुर जी, हमारे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, श्रीमान गोपाल नारायण जी, श्रीमान शकुनी चौधरी जी, सांसद श्री अरुण कुमार जी, पूर्व सांसद श्रीमान एम के सिंह, राज्य के पूर्व मंत्री डॉ. प्रेम कुमार जी। बिहार के कोना कोना से आईल हमार भाई और बहन लोग, तोहरा सबके शत शत प्रणाम।

जब मेरे से यहाँ इस कार्यक्रम के लिए समय माँगा गया, मैं कल्पना नहीं कर सकता था कि ऐसा हुजूम मुझे देखने को मिलेगा। जहाँ भी मेरी नज़र पहुँच रही है, माथे ही माथे नज़र आ रहे हैं और सबसे बड़ी बात मुझे जो आपका ज़ज्बा नज़र आ रहा है। सारे पॉलिटिकल पंडित ये एक कार्यक्रम देख लें नतीजा साफ दिखता है अगली सरकार किसकी बनने वाली है। भाईयों-बहनों, जब हम पहले सोशल मीडिया में कभी ट्वीट करते थे तो यहाँ के एक नेता बड़ा मज़ाक उड़ाते थे और वो कहते थे, चहकते हैं, चहकते हैं, और ये चहकना, बड़ा मखौल उड़ाते थे। आज उन्होंने भी चहकने का रास्ता पसंद कर लिया और आज जब मैं उतरा तो उन्होंने ट्वीट किया था कि 14 महीने के बाद आप बिहार आ रहे हैं, आपका स्वागत है। मुख्यमंत्री जी, स्वागत के लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ। वक्त कैसे बदलता है और बदले हुए वक़्त का अंजाम कैसा होता है। वो भी एक वक़्त था, वो कहा करते थे कि हमारे पास एक मोदी है, दूसरे मोदी की क्या जरुरत है। बिहार में आपको आने की क्या आवश्यकता है। आप बिहार मत आईये और आज देखिये, अपनों का विरह कितना परेशान करता है अपनों की दूरी कैसी बेचैन बनाती है। पिछले दस साल के जो प्रधानमंत्री थे, वो दस साल में एक बार हवाई निरीक्षण करने आये थे और मेरा 14 महीने का विरह भी यहाँ के मुख्यमंत्री को परेशान कर रहा है, दुखी कर रहा है। एक-एक दिन कितना भारी गया होगा उनका। अपनों से जब इतना प्यार होता है, इतना लगाव होता है तो उनकी दूरी मुश्किल ही करती है। लेकिन आप चिंता मत कीजिये, मैं अब आ गया हूँ आपको अब ज्यादा विरह झेलना नहीं पड़ेगा।

भाईयों-बहनों, मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, आप जवाब दोगे, आपको लगता है बिहार में बदलाव होना चाहिए? हालात बदलने चाहिए? स्थिति बदलनी चाहिए? अंधेरे से उजाला होना चाहिए? बेरोजगारी से रोजगारी आनी चाहिए? गुंडागर्दी से मुक्ति चाहिए? सुख-शांति की जिंदगी चाहिए? भाईयों-बहनों, अगर ये चाहिए तो मुझे सेवा करने का अवसर दीजिए। मुझे आपकी सेवा करने का मौका दीजिए और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि देश की आजादी से बिहार के लोगों ने जो सपने सजोये हैं, मैं 60 महीने के भीतर आपको पूरे करके दूंगा। मैं आपको वादा करता हूँ हम जिम्मेवारी से भागने वाले लोग नहीं हैं, हम जिम्मेवारियों को लेने वाले लोग हैं। मैं कभी-कभार समझ सकता हूँ कि एकाध व्यक्ति के प्रति हमारी राजी-नाराजी हो, मैं यह भी समझ सकता हूँ कि किसी का चेहरा हमें पसंद न आता हो, मैं ये भी समझता हूँ कि हमारे राजनीतिक भविष्य में शायद कहीं टकराव नज़र आता हो, लेकिन भाई इतना मैं बुरा था तो एक कमरे में आकर के एक चांटा मर देते, गला घोंट देते। आपने एक व्यक्ति के प्रति गुस्से में आकर के पूरे बिहार की विकास यात्रा का गला घोंट दिया। क्या ये लोकतंत्र होता है? क्या लोकतंत्र के ये तौर-तरीके होते हैं? मैं समझता हूँ कि राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, राजी-नाराजी हो सकती है। अरे गुस्सा निकालने के लिए आकर के मेरा गला भी घोंट देते लेकिन मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि आपने हमारे साथ क्या किया। मुझे दुःख इस बात का है कि आपने बिहार की जनता के साथ क्या किया।

यहाँ के लोग जंगलराज से मुक्ति के लिए आपके पीछे खड़े हो गए, और आज फिर से आप बिहार को उसी जंगलराज की ओर घसीट रहे हो। आप मुझे बताईये मेरे भाईयों-बहनों, क्या बिहार में वो जंगलराज के दिन दोबारा चाहिए? वो मौत का खेल दोबारा चाहिए? ये गुंडागर्दी दोबारा चाहिए? ये लूट-खसोट चाहिए दोबारा? मेरे बिहार के भाईयों-बहनों को इस हालात में छोड़ा नहीं जा सकता और इसलिए भाईयों-बहनों, ये चुनाव किसकी सरकार बने, किसकी न बने, इसके लिए नहीं है। ये चुनाव बिहार के नौजवानों का भविष्य तैयार करने के लिए है, ये चुनाव बिहार के किसानों का भाग्य बदलने के लिए है, ये चुनाव बिहार की माताओं-बहनों की सुरक्षा के लिए है और इसलिए भाईयों-बहनों, विकास के रास्ते पर गए बिना बिहार का भला नहीं होगा। और इसलिए मैं आज आग्रह करने आया हूँ कि आप आईये, अपने हर किसी को आजमा लिया है, हर प्रकार के मॉडल आप देख चुके हो, एक बार हमें भी आजमा कर के देखो। एक बार हमारे एनडीए के मेरे साथियों को बिहार की जनता का सेवा करने का अवसर दीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ आज देखिये, हमारी दिल्ली सरकार का जरा लेखा-जोखा लीजिये। मैं नहीं जानता हूँ कि यहाँ के पॉलिटिकल पंडितों ने कभी हिसाब लगाया है या नहीं। दिल्ली में मोदी की सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री, सबसे महत्वपूर्ण मंत्री, सबसे महत्वपूर्ण डिपार्टमेंट अगर किसी के पास है तो मेरे इन बिहार के नेताओं के पास है। एक प्रकार से बिहार के नेता आज पूरे हिंदुस्तान को चला रहे हैं। ये ताकत बिहार को कहाँ से कहाँ ले जा सकती है, इसका आप अंदाज कर सकते हैं।

भाईयों-बहनों, आपने मुझे पांच साल के लिए चुनकर के भेजा है और बिहार ने तो भारी समर्थन किया है। मैं बिहार की जनता को शत-शत वंदन करता हूँ, आपने मुझे जो समर्थन दिया है। मुझे बताईये, जो लोग यह कहते रहे हैं कि हम मोदी को बिहार में घुसने नहीं देंगे, हम मोदी को बिहार आने नहीं देंगे, हमें मोदी की बिहार में जरुरत नहीं है, अगर ऐसे लोग सरकार बनाएंगे और केंद्र से कोई नाता ही नहीं रखेंगे तो बिहार का भला होगा क्या? क्या इस देश में एक सरकार दूसरी सरकार से लड़ती रहे? इससे किसी राज्य का भला होगा क्या? ये लड़ाई वाली सरकारें चाहिए या कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने वाली सरकार चाहिए? भाईयों-बहनों, मैं दिल्ली में बैठकर के, जो भी पूरे देशभर में संसाधन है, एक बार सेवा का अवसर दीजिए आपके काम आते हैं कि नहीं आते, आप देख लीजिये।

मैं तो यहाँ हैरान हूँ मेरा जन्म गुजरात की धरती पर हुआ था। द्वारकाधीश गुजरात में है, भगवान श्रीकृष्ण गुजरात के लोगों के आराध्य हैं। यदुवंश की उत्तम परंपरा को निभाने का काम गुजरात की धरती पर सदियों से होता आया है लेकिन हम जिस कृष्ण के पुजारी हैं, मैं जरा पूछना चाहता हूँ, मुझे श्रीकृष्ण की एक बात बराबर याद रहती है जब वो बालक थे और कालीनाग के कारण लोग परेशान थे तो बालक कृष्ण ने ताकत दिखाकर के कालीनाग का शिरच्छेद कर दिया था। कालीनाग को ख़त्म किया था कि नहीं किया था और आज यदुवंश की बातें करने वाले लोग रो रहे हैं कि उन्हें जहर पीना पड़ रहा है। अरे कृष्ण का वंशज जहर पीता नहीं, बल्कि कालीनाग के वंश को ही ख़त्म कर देता है। यही तो उसकी ताकत होती है और आपने तो जहर पीया क्योंकि आपका स्वार्थ है। अपने बेटे-बेटियों के लिए आपको कुछ इंतजाम करना है लेकिन आपने सभी यदुवंशियों को जहर पीने के लिए मजबूर क्यों किया? उनको जहर पीने के लिए मजबूर क्यों किया? क्या गुनाह है उनका? और इसलिए मैं तो हैरान हूँ, अख़बारों में पढ़ते हैं, यहाँ पर क्या चर्चा चल रही है, यहाँ के किसानों का भला होगा कि नहीं होगा, चर्चा नहीं हो रही है; नौजवानों को रोजगार मिलेगा कि नहीं मिलेगा, चर्चा नहीं हो रही है; गुंडागर्दी खत्म होगी कि नहीं होगी चर्चा नहीं हो रही है; उद्योग-कारखाने लगेंगे कि नहीं लगेंगे, चर्चा नहीं हो रही है; गाँव में बिजली आएगी कि नहीं आएगी, चर्चा नहीं हो रही है; किसानों को पानी मिलेगा कि नहीं मिलेगा, चर्चा नहीं हो रही है। चर्चा क्या हो रही है, कौन सांप है, कौन सांप नहीं है, कौन जहर पीता है, कौन जहर पिलाता है। अरे भाई ये तुम दोनों तय कर लो कि सांप कौन है, जहर कौन है, कौन जहर पिलाता है, कौन जहर पीता है। आप दोनों का अंदरूनी मामला है एक कमरे में बैठकर के तय कर लो। बिहार की जनता को जहर पीने के लिए मजबूर मत करो। ये आपको अंदरूनी मामला है बिहार की जनता को तो पीने का पानी चाहिए। बिहार के नौजवान को रोजगार चाहिए। बिहार में उद्योगों का विकास चाहिए। बिहार में सड़कें चाहिए।

भाईयों-बहनों, बिहार में चुनाव तो अब आया है। ये पिछले चुनाव में जब वोट लेने निकले थे, अभी राम विलास जी बता रहे थे, उन्होंने अपने भाषण में भी कहा। उन्होंने आपको कहा था कि 2015 में अगर मैं आपको बिजली न पहुंचाऊं तो मैं वोट मांगने के लिए नहीं आऊंगा ऐसा कहा था? याद करो कहा था? बिजली नहीं दूंगा तो वोट नहीं मांगूंगा, ऐसा कहा था? उन्होंने कहा था ना? बिजली आई? बिजली आई? नहीं आई न, वो वोट मांगने आये कि नहीं आये? आपका भरोसा तोड़ा कि नहीं तोड़ा? आपकी पीठ में छूरा भोंका कि नहीं भोंका? अरे हमारी छोडो, आपकी पीठ में छूरा भोंकना जिन लोगों के कारनामे रहे हैं, ऐसे लोगों पर दोबारा भरोसा नहीं किया जा सकता। और इसलिए भाईयों-बहनों, मैं आज आपसे आग्रह करने आया हूँ, बिहार का भाग्य बदलने के लिए। बिहार के पास न सिर्फ़ बिहार का भाग्य बदलने का बल्कि पूरे हिंदुस्तान का भाग्य बदलने की ताकत है। इतने प्राकृतिक संसाधन हैं, इतने उत्तम प्रकार का मानव बल है, इतनी महान शक्ति का स्त्रोत है। जो सदियों पहले पूरा देश जिस धरती के लिए गर्व करता था, उस धरती के संतानों में आज भी वो ताकत है हिंदुस्तान को गर्व दिलाने की और इसे मुझे पुनः वापस लाना है और इसलिए मैं आपके पास आया हूँ।

भाईयों-बहनों, ये सब परेशानियां ज्यादा-से-ज्यादा 100 दिन हैं। 100 दिन के बाद बिहार की जनता इनकी छुट्टी कर देगी। बिहार की जनता अब इस प्रकार के लोगों को कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं तो हैरान हूँ। एक बार मैं पटना आया था। हमारी पार्टी की कार्यसमिति की मीटिंग थी और यहाँ के मुख्यमंत्री ने हमको खाने पर बुलाया था। अब हमारी थाली उन्होंने छीन ली। भोजन पर बुला कर के कभी कोई थाली छीन लेता है क्या? ये लालू जी कह रहे हैं, मैं आज जहर पी रहा हूँ, मैंने तो उस दिन भी जहर पीया था और तब मेरे मन को जरा चोट पहुंची थी। क्या राजनीति में इतनी छुआछूत? सार्वजनिक जीवन के ये संस्कार कि टेबल पर परोसी हुई थाली खींच लेना, मेरे मन को बड़ी चोट पहुंची थी, मैंने कभी बोला नहीं न ही मैंने कभी मन में इसका मलाल रखा, चलो ठीक है भाई लेकिन जब जीतन राम मांझी पर जुल्म हुआ तो मैं बेचैन हो गया। मुझे लगा कि अरे मोदी की क्या औकाद है, उसकी तो थाली खींच ली, एक चाय वाले के बेटे की थाली खींच लें, एक गरीब के बेटे की थाली खींच लें लेकिन एक महादलित की तो सारी की सारी पूँजी ले ली, सारा पुण्य खींच कर के ले लिया। भाईयों और बहनों, तब मुझे लगा कि शायद डीएनए में ही कुछ गड़बड़ है क्योंकि लोकतंत्र का डीएनए ऐसा नहीं होता है। लोकतंत्र का डीएनए अपने विरोधियों को भी आदर और सत्कार देने का होता है लेकिन इन्होंने जो लोकतंत्र सीखा और चलाया है, उसमें जॉर्ज फ़र्नान्डिस का क्या हुआ? इसी धरती से जुड़े थे, उनके साथ क्या किया गया? सुशील मोदी जो कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे उनके साथ क्या किया? ये सारे नेता जो कभी न कभी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, उनके साथ क्या किया? क्या आप अब भी लोकतंत्र के इस डीएनए को नहीं समझ पाएंगे क्या? क्या ऐसे लोगों को माफ़ करेंगे क्या?

भाईयों-बहनों, और इसलिए आज मैं आग्रह से कहने आया हूँ कि बिहार को हम ऐसे तत्वों के भरोसे नहीं छोड़ सकते। बिहार में दोबारा जंगलराज नहीं आने देंगे ये बिहार की जनता को शपथ लेनी चाहिए। आरजेडी का पूरा अर्थ मालूम है क्या? आरजेडी का पूरा अर्थ मालूम है क्या? आरजेडी का पूरा अर्थ होता है – रोजाना जंगलराज का डर, आरजेडी का मतलब होता है – रोजाना जंगलराज का डर। क्या ये रोजाना जंगलराज का डर चाहिए आपको? इस डर से मुक्ति चाहिए कि नहीं चाहिए? और इसलिए भाईयों-बहनों, ये चुनाव रोजाना जंगलराज के डर से मुक्ति का चुनाव है और इसलिए मैं यह कहने आया हूँ। आप देखिये पहले भी सरकारें हुईं, बिहार के साथ क्या हुआ है और हम बिहार के साथ क्या करेंगे। आज मैं अनेक कार्यक्रमों का उद्घाटन करके आया हूँ, शिलान्यास करके आया हूँ, हज़ारों-करोड़ की सौगात बिहार की धरती को देकर के आया हूँ।

भाईयों-बहनों, एक झूठ फैलाया जा रहा है तेरहवें फाइनेंस कमीशन और चौदहवें फाइनेंस कमीशन के संबंध में। 2010 से 2015, किसकी सरकार थी आपको मालूम है, उस सरकार ने बिहार को फाइनेंस कमीशन के माध्यम से जो पैसा दिया, वो था करीब-करीब ढेढ़ लाख करोड़। अब 2015 से 2020, हमारी बारी है, हमने क्या देना तय किया, पौने चार लाख करोड़ रुपये। पहले क्या मिलता था - ढेढ़ लाख करोड़, अब कितना मिलेगा - पौने चार लाख करोड़ रुपये। बिहार की जनता की झोली में पौने चार लाख करोड़ रुपये आएंगे। मुझे बताईये कि विकास के काम आगे बढ़ेंगे कि नहीं बढ़ेंगे? इन्होने वादा किया था कि बिजली नहीं तो वोट नहीं। उन्होंने तो कुछ किया नहीं और न कभी मेरे पास आकर के कहा। लेकिन मेरी सरकार बनने के बाद मैं जब विदेश यात्रा के लिए गया तो सबसे पहले मैं भूटान गया। बहुत छोटा देश है बिहार से तो बहुत कम आबादी है, बहुत कम पटना से भी कम। भूटान में जाकर कौन सा करार किया – भूटान के अन्दर भारत सरकार धन लगाएगी और पानी से पैदा होने वाली बिजली, जल विद्युत् के लिए करार किया, शिलान्यास किया और इस तरह भूटान में जो बिजली पैदा होगी, उसका सबसे ज्यादा हिस्सा ये मेरी बिहार की जनता को मिलेगा। ये निर्णय हमने किया और सरकार बनने के बाद मेरी पहली विदेश यात्रा में हमने यह काम किया। दूसरी विदेश यात्रा मेरी नेपाल की थी। नेपाल में भी जल विद्युत् का करार किया और वहां से बिजली बन करके कहाँ आएगी, इसी इलाके में आएगी। मुझे बताईये, आज इतना बड़ा बिहार, 300 मेगावाट बिजली के भी आप मालिक नहीं हो जबकि आपको 5000 मेगावाट बिजली की जरुरत है। इन सरकारों ने केवल 300 मेगावाट बिजली बनाई है, बाकि बिजली ये बना पाएंगे क्या? इतने सालों में जो बिजली नहीं दे पाए, वो अब दे पाएंगे क्या? मैं वादा करता हूँ, मेरा अनुभव है और मैंने करके दिखाया है। मैं बिहार में 24 घंटे घरों में बिजली देने का वादा करने आया हूँ। और बिजली आती है तो अकेली बिजली नहीं आती। बिजली आती है तो सिर्फ़ घर में रोशनी आती है, ऐसा नहीं है। बिजली आती है तो इसके साथ जीवन बदलना शुरू हो जाता है। अगर बच्चों को पढ़ाई करनी है, कंप्यूटर सीखना है तो बिजली आने के साथ वो भी शुरू हो जाता है। अरे मोबाइल फ़ोन चार्ज करना हो तो भी दूसरे गाँव जाना पड़ता है। जाना पड़ता है ना? मोबाइल फ़ोन कितना ही महंगा क्यों न लाए हो लेकिन आपके काम नहीं आता है क्योंकि पटना में बैठी हुई सरकार आपको बिजली नहीं देती है। मुझे बताईये, आपको भी अच्छे टीवी शो देखने का मन करता है कि नहीं करता है? सास भी कभी बहू थी, देखने को मन करता है कि नहीं करता है; टीवी पर अच्छे गाने सुनने का मन करता है कि नहीं करता है? अगर बिजली नहीं होगी तो कहाँ से देखोगे? इन्होने आपको पिछली सदी में धकेल करके रखा है। बिहार को उन्होंने आधुनिक नहीं बनने दिया है। बिजली आएगी, कारखाने लगेंगे। हम कारखाने लगाना चाहते हैं, हम उद्योग लगाना चाहते हैं।

आज बिहार का एक संतान, एक युवा मेरी सरकार में मंत्री है और मैंने उसे इतना बड़ा काम दिया है, स्किल डेवलपमेंट का। ये स्किल डेवलपमेंट बिहार का भाग्य बदलने वाला है, यह मैं आपको कहने आया हूँ। यहाँ उद्योग लगे, यहाँ के नौजवानों का स्किल डेवलपमेंट हो और यहाँ का जीवन बदल जाए, बिहार के नौजवान को बिहार में अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़कर रोजी-रोटी कमाने कहीं जाना न पड़े, ऐसा बिहार बनाने का मेरा इरादा है और उसके लिए मुझे आपको आशीर्वाद चाहिए और वो आशीर्वाद लेने के लिए मैं आया हूँ। भाईयों-बहनों, आज वक़्त इतना बदल चुका है, रोड कनेक्टिविटी चाहिए, रेल कनेक्टिविटी चाहिए, एयर कनेक्टिविटी चाहिए। लेकिन अब जैसे-जैसे युग बदला है लोग कहते हैं हमें तो गैस ग्रिड चाहिए। चाहिए कि नहीं चाहिए? सूरत में मेरे यहाँ बिहार के लोग रहते हैं, वो जब यहाँ वापिस आते हैं तो यहाँ झगड़ा होता है जब वो कहते हैं कि जैसे यहाँ नलके में पानी आता है ना वैसे गुजरात में नलके में गैस आता है। यहाँ के लोग भरोसा नहीं करते। बिहार के लोग जब मुझे मिलते है तो बताते हैं कि मोदी जी मेरे गाँव के लोग तो मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि ऐसा भी होता है। बिहार के भाईयों-बहनों, वो दिन अब दूर नहीं है जब मैं पटना तक शुरुआत करूँगा और सैंकड़ों किमी गैस की लंबी पाइपलाइन लगा करके पटना में घरों में गैस देना प्रारंभ कर दूंगा और आगे बिहार के और स्थानों पर भी गैस जाएगा। रसोईघर में टैब चालू करते ही गैस आएगा। अब गैस का सिलिंडर लेने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। किसी दलाल को पैसा नहीं देना पड़ेगा। ये काम हम करते हैं और हजारों करोड़ रूपया लगता है इन कामों के लिए। आज मैं इसका शिलान्यास करके आया हूँ। काम शुरू हो जाएगा, बजट मंजूर कर दिया है। आपके यहाँ बरौनी में फ़र्टिलाइज़र का कारखाना बंद पड़ा हुआ है। यहाँ के नौजवानों को रोजगार चाहिए कि नहीं चाहिए? रोजगार मिलने चाहिए कि नहीं मिलने चाहिए? अगर कारखाने नहीं होंगे तो रोजगार कहाँ से मिलेगा और इसलिए हमने उस फ़र्टिलाइज़र का कारखाना, जो बंद पड़ा था, उसको चालू करने का निर्णय किया है ताकि यहाँ के किसानों को सस्ता खाद मिल जाए और यहाँ के नौजवान को रोजगार मिल जाए। और करीब 5 हजार करोड़ रूपया लगने वाला है, कोई कम पैसा नहीं है यह।

भाईयों-बहनों, कुछ लोग होते हैं जो वादे की खातिर वादे करते हैं, फिर वादे भुला देने की कोशिश करते हैं और इनको वादे की याद दिला दें तो मुकर जाने की आदत रहती है। जैसे आपको कहा गया था कि बिजली दूंगा तभी तो वोट मांगने आऊंगा। मैं भी चुनाव के समय यहाँ आया था। मैंने भी वादे किये थे लेकिन मैं वादे भुलाने के लिए नहीं आया हूँ। मैंने जो वादे किये थे, उन वादों को मैं खुद दोबारा याद करने यहाँ आया हूँ और मुकर जाने का तो सवाल ही नहीं उठता है। लोकसभा के चुनाव में पटना की धरती पर जब बम धमाके चल रहे थे, लोग मौत के घाट उतार दिये जा रहे थे, हिंसा के मातम से लोकतंत्र का गला दबोचा जा रहा था, उस समय बम धमाकों के बीच डरे बिना, विचलित हुए बिना, गुस्सा व्यक्त किये बिना, नाराजगी व्यक्त किये बिना पूरे शांत मन से उस सभा को मैंने संबोधित किया था। मौत अंगड़ाई ले रहा था उस मैदान में, लेकिन पूरी स्वस्थता के साथ मैंने बिहार की जनता से संवाद किया था और ऐसे संकट की घड़ी में भी मैंने कहा था कि दिल्ली में जब हमारी सरकार बनेगी और जब पूरी योजना बनने लगेगी, हम बिहार को 50 हजार करोड़ रुपये का पैकेज देंगे। आपको याद है, नहीं है न? मैंने ये वादा किया था और आज जब मैं बिहार की धरती पर आया हूँ तो मैं आपको मैं कहता हूँ, वो वादा मैं निभाऊंगा और सिर्फ़ 50 हजार करोड़ से बात बनेगी नहीं अब तो क्योंकि दिल्ली सरकार में बैठने के बाद बिहार को मैंने बारीकी से अध्ययन किया है। बिहार में क्या अच्छा हो सकता है, उस पर मैं सोचने लगा, बिहार के सभी नेताओं से बातचीत करने लगा, सुझाव लेने लगा और मेरे मन में धीरे-धीरे एक समृद्ध बिहार का चित्र बनने लगा, एक विकास वाले बिहार का चित्र खड़ा होने लगा। मुझे लगा ये अगर सपना मुझे पूरा करना है तो 50 हजार करोड़ से पूरा नहीं होगा और इसलिए मैंने उससे भी ज्यादा बड़ा पैकेज देने का विचार कर लिया है। लेकिन अभी पार्लियामेंट चालू है मेरे जुबान पर थोड़ा ताला लगा हुआ है। मैं बोल नहीं पा रहा हूँ लेकिन जैसे ही पार्लियामेंट समाप्त हो जाएगी, मैं आपको खुद आकर बता दूंगा कि कितना बड़ा पैकेज आपको मिलने वाला है।

आजकल कुछ ऐसे झूठ फैलाये जाते हैं, किसी ने हमसे माँगा नहीं था लेकिन जब बजट आया तो हमारा सपना था बिहार को आगे ले जाने का, बिहार में औद्योगिक क्रांति लाने का, बिहार के नौजवानों को रोजगार मिले, इसलिए हमने बजट के अन्दर एक योजना बनाई स्पेशल स्टेटस वाला राज्य, उसमें सबसे फायदा होने वाली बातें कौन सी हैं और हमने पाया कि स्पेशल स्टेटस में दो बड़ी महत्वपूर्ण बातें हैं। हमने तय किया कि जो सबसे बड़ा फायदा है, वो बिहार को मिलना चाहिए और इसलिए हमने बिहार के लिए, नए इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट करने के लिए 15% इन्वेस्टमेंट अलाउंस और 15% का एडिशनल डेप्रिसिएशन अलाउंस इसमें रिडक्शन की हमने घोषणा कर दी और मैं समझता हूँ कि हिंदुस्तान में स्पेशल केटेगरी का इतना बड़ा लाभ, बिहार अगर दम हो तो ले सकता है। कितना बड़ा लाभ मिलेगा, इसका आप अंदाज कर सकते हो। बिहार के नौजवानों को कितना रोजगार मिल सकता है, इसका आप अंदाज कर सकते हो।

भाईयों-बहनों, अभी तो ये शुरुआत है लेकिन मैं जो ये नजारा देख रहा हूँ इससे मुझे साफ लगता है कि जैसे लोकसभा में अपने मेरा साथ दिया, विधानसभा में उससे भी बढ़कर आप मेरा साथ दोगे। बिहार में इस बार आप निर्णय कर लीजिये कि दो-तिहाई बहुमत के साथ ही सरकार बनाएंगे। दो-तिहाई बहुमत के साथ ही एक मजबूत सरकार बनाईये। मुझे बताईये कि किसी ट्रेक्टर को एक इंजन लगा हो तो ज्यादा तेज चलता है कि दो इंजन लगा हो तो ज्यादा तेज चलता है? बताईये, कितने इंजन चाहिए? आपने दिल्ली में तो आपने इंजन दे दिया है अब बिहार में इंजन दे दीजिए। दो इंजन से बिहार की गाड़ी ऐसी तेज चलेगी भाईयों कि पिछले 60 सालों में जो नहीं हुआ, वो तेज गति से हमारी विकास की यात्रा आगे बढ़ेगी। इसी एक संकल्प के साथ मैं एक बार फिर एनडीए के मेरे सभी साथियों का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ और बिहार का भाग्य बदलेगा इस विश्वास के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।                  

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कार्यक्रम में उपस्थित खेल मंत्री मनसुख मांडविया जी, मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य, भाजपा के सांसद, एनडीए के सांसद, अन्य जनप्रतिनिधिगण, खिलाड़ियों के कोच, खिलाड़ियों के माता-पिता, उनके परिवारगण और देश के कोने-कोने में उपस्थित सभी खिलाड़ी और खेल प्रेमी। सभी प्यारे भाइयों और बहनों, आप सभी का बहुत-बहुत अभिनंदन है।

अभी मैं इस प्रतियोगिता के कुछ प्रतिभागी खिलाड़ियों से बात कर रहा था। उनका जोश, उनका जज़्बा, उनका उत्साह, उनके शब्दों में मुझे भारत के सामर्थ्य के दर्शन हो रहे थे। जो विश्वास मुझे इन खिलाड़ियों के भीतर दिख रहा था, आज भारत के करोड़ों युवा उसी विश्वास से भरे हुए हैं। इसलिए स्टार्टअप, स्पेस, साइंस और स्पोर्ट्स। भारत के युवाओं ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रखा है।

मेरे युवा साथियों,
आज सांसद खेल महोत्सव एक जनआंदोलन बन चुका है। अब देखिए, देशभर में 290 से अधिक सांसदों के इस कार्यक्रम का योजना करना, लाखों नौजवानों को जोड़ना और एक करोड़ से ज्यादा युवा खिलाड़ियों द्वारा इसमें रजिस्ट्री करवाना। देश के हर कोने की हिस्सेदारी है और शहरों से लेकर गांव तक, हर पृष्ठभूमि के युवाओं की सहभागिता ये दिखाता है कि इसका स्केल कितना बड़ा है। काशी का सांसद होने के नाते मैं अपने क्षेत्र में, मेरे संसदीय क्षेत्र काशी में इस खेल महोत्सव के आयोजन से बहुत करीबी से जुड़ा रहा हूं और आज भी मैं देख रहा हूं कि मेरे सामने सब बैठे हुए हैं। इसके अलावा अनेकों बार मैंने अलग-अलग सांसदों के खेल महोत्सव का शुभारंभ करने का काम भी किया है। और मुझे ये देखकर खुशी होती है कि युवाओं ने सांसद खेल महोत्सव प्लेटफॉर्म के जरिए नए-नए कीर्तिमान गढ़े हैं। इस साल भी कई हफ्तों तक चले इस विशाल आयोजन ने युवाओं के लिए एक मजबूत मंच का काम किया है। अनेक दिव्यांग खिलाड़ियों को भी इसमें आगे बढ़ने का मौका मिला है। मैं आप सभी खिलाड़ियों को और देश के युवाओं को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,
सांसद खेल महोत्सव का स्केल जितना बड़ा है, उतना ही बड़ा इसका इंपैक्ट भी है। आज इससे देश को हजारों की संख्या में प्रतिभाशाली खिलाड़ी मिल रहे हैं और साथ ही साथ ये महोत्सव युवा निर्माण से राष्ट्र निर्माण, युवा निर्माण से राष्ट्र निर्माण के मंत्र का एक मजबूत स्तंभ भी बन रहा है। क्योंकि जीत और हार से अलग खेलों में हमें जो स्पोर्ट्स स्पिरिट, जो खेल भावना सीखने को मिलती है। उस स्पोर्ट्स स्पिरिट से, उस भावना से ही सक्षम और अनुशासित युवाओं का निर्माण होता है। और ऐसे सक्षम अनुशासित युवा ही राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करते हैं। मुझे खुशी है कि सांसद खेल महोत्सव के जरिए देश के युवाओं में इस भावना का निरंतर विकास हो रहा है।

साथियों,
सांसद खेल महोत्सव की एक और खास बात है और वो है समाज की सोच बदलने में अहम भूमिका निभाना। आज देश के कोने-कोने से छोटे-छोटे गांवों से दूर-सुदूर इलाकों से कितने ही ऐसे उदाहरण आ रहे हैं, जो पूरे देश को प्रेरित करते हैं। कहीं छोटे से गांव में कोई बेटा फुटबॉल के साथ अपना पसीना बहा रहा है। कहीं कोई दिव्यांग खिलाड़ी चुनौतियों को छोटा बनाकर बुलंदियों को छू रहा है। कहीं किसी स्पोर्ट्स ग्राउंड पर कोई बिटिया अपने सपनों को पूरा करने में लगी है। और सांसद खेल महोत्सव ऐसे खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दे रहा है।

साथियों,
यह उसी समाज के उदाहरण है, जहां कुछ साल पहले तक घर के लोग बच्चे के ज्यादा खेलने पर उसे डांटते-फटकारते थे। तब खेलने को समय की बर्बादी समझा जाता था। फिर समाज में एक दशक के भीतर-भीतर ये बदलाव कैसे हुआ? ये बदलाव इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि आज समाज को माता-पिता को भी एहसास हुआ है कि खेलने से जीवन बर्बाद नहीं होता। अब वह समझते हैं कि उनके बेटे-बेटी खेल में आगे बढ़कर केवल अपनी और परिवार की ही नहीं, पूरे गांव और समाज की किस्मत बदल सकते हैं।

साथियों,
आज खेलों में अवसर सीमित नहीं, असीमित अवसर है। आज देश में एक ऐसा इको सिस्टम बना है, जहां खिलाड़ियों का सिलेक्शन पहुंच के आधार पर नहीं, परिचय के आधार पर नहीं, पहचान के आधार पर नहीं। आज खेल को मैदान से लेकर के बाहर देखना हो प्रतिभा के आधार पर होता है। प्रतिभा को महत्व दिया जाता है। 2014 से पहले खेल विभाग में टीम सिलेक्शन में और स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर में खेलों के नाम पर जो गड़बड़ी होती थी आज वह सब कुछ बंद हो चुकी है। गरीब से गरीब परिवार का बच्चा भी आज कम उम्र में ही शिखर तक पहुंच सकता है। अभी कल ही आपने देखा होगा। 15-20 साल के नौजवानों ने खेल के मैदान में किसी ने 32 बॉल में सेंचुरी बना दी। किसी ने 30-35 गेंद में बना दी, किसी ने 35-40 बॉल में बना दी। यह है युवाओं की ताकत।

साथियों
आज केंद्र सरकार देश के आप सभी युवा खिलाड़ियों को हर स्तर पर सपोर्ट कर रही है। हम अपनी युवा प्रतिभाओं के लिए खेलने के ज्यादा से ज्यादा मौके बना रहे हैं। खेलो इंडिया, स्कूल गेम्स, यूथ गेम्स, यूनिवर्सिटी गेम्स और सांसद खेल महोत्सव इन सबसे प्रतिभाओं की पहचान हो रही है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की टीमें हर कोने में जाकर नए खेल सितारे खोज रही हैं। आज हमारे देश के टियर टू और टियर थ्री शहरों में विश्वस्तरीय खेल सुविधाएं बन रही है। खिलाड़ियों की डाइट से लेकर उनकी ट्रेनिंग, कोचिंग, हर फिटनेस तक की हर सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। आप देखिए 2014 से पहले देश का स्पोर्ट्स बजट सिर्फ, सिर्फ 1200 करोड़ रूपये से भी कम था। आज यह बढ़कर 3000 करोड़ रूपये से अधिक हो चुका है। टॉप्स योजना के जरिए खिलाड़ियों को 25,000 रुपये से लेकर 50,000 हजार रूपये तक हर महीने मदद दी जा रही है।

साथियों,
इन सारे प्रयासों का देश को लाभ भी होता दिख रहा है। स्पोर्ट्स में बीते कुछ वर्ष भारत के लिए नए रिकॉर्ड्स, नई उपलब्धियों के वर्ष रहे हैं। आप देखिए 65 साल बाद वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भारत ने 26 मेडल जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया। भारत ने टोक्यो ओलंपिक में सात मेडल जीतकर एक नई शुरुआत की। पैरा ओलंपिक में भारत ने पेरिस में 29 मेडल जीतकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। एशियन गेम्स में भारत ने 100 से अधिक मेडल जीतकर अपने खेल इतिहास का अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन किया। आज भारत के खिलाड़ी रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। नए मानक गढ़ रहे हैं और भारत को ग्लोबल स्पॉटिंग मैप पर नई ऊंचाई दे रहे हैं।

साथियों,
अब हमें ग्लोबल स्पोर्ट्स इवेंट से टेबल टॉप करने को अपना टारगेट बनाना है। आने वाले समय में भारत बड़े-बड़े स्पोर्ट्स इवेंट्स को होस्ट करने जा रहा है। 2030 में भारत अहमदाबाद में कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित करेगा। तब पूरी दुनिया की नजर भारत पर होगी। आप जैसे युवा खिलाड़ियों के लिए यह एक बड़ा मौका होगा। यही नहीं 2036 में स्पोर्ट्स के सबसे बड़े आयोजन यानी ओलंपिक्स की मेजबानी के लिए भी भारत प्रयासरत है। 2036 ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व वो युवा करेंगे, जो आज 10 या 12 साल के हैं। हमें अभी से उसे तलाशना है। तराशना है और राष्ट्रीय पटल पर उसे लेकर आना है। सांसद खेल महोत्सव इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसलिए मैं आज सभी सांसदों से भी कहूंगा। यह आपकी बड़ी जिम्मेदारी है। आप अपने क्षेत्रों में ऐसी प्रतिभाओं को खोजो, जो राष्ट्रीय स्तर पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और खेलते-खेलते ओलंपिक्स में भी भारत का नाम रोशन कर ले। आप उन्हें हर संभव मदद दें। उनका मार्गदर्शन करें। सरकार की योजनाओं का उनको लाभ मिले। ऐसे आयोजनों के साथ-साथ देश की तमाम योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने में जनप्रतिनिधि बहुत मदद कर सकते हैं। ऐसे किसी खिलाड़ी की सफलता मेरे संसदीय क्षेत्र के अनुभव से मैं कहता हूं। जब एक खिलाड़ी, एक बच्चा, एक बेटी कुछ करके आते हैं ना पूरे क्षेत्र में एक बड़ा गौरव का वातावरण बन जाता है। आपको भी उसका फायदा मिलेगा। एक सांसद के रूप में मैं आपको भी, मैं पक्का कहता हूं क्योंकि मैंने यह अनुभव किया है। एक सांसद के नाते मैं देख रहा हूं कि जब मैं काशी में इन सारी चीजों के जुड़ता हूं। इन बेटे-बेटियों से जुड़ता हूं। बहुत कुछ मुझे सीखने को मिलता है। आपको भी मिलेगा। और वैसे भी मैं इन दिनों देखता हूं, हमारे जो सांसद मेरे जो साथी सांसद हैं और जो खेल महोत्सव में बड़ी रुचि से जुड़े हैं, उन्हें युवाओं से जैन जी से करीब से जुड़ने का बहुत बड़ा अवसर मिल जाता है। इससे उन्हें जैन जी को जानने-समझने का और बेहतर तरीके से एक सुविधा पैदा हो जाती है। मौका मिल जाता है। कई सांसद जब मुझसे पार्लियामेंट में मिलते हैं तो बढ़-चढ़कर के खेल महोत्सव के अनुभव मुझे जरूर बताते हैं। मैं चाहूंगा हर सांसद इससे जुड़े। अपने क्षेत्र में ऐसी प्रतियोगिता कराएं।

साथियों,
आप सब जानते हैं खेलों में हमें सबसे पहले जिस चीज की जरूरत होती है वह है आत्मविश्वास। ये आत्मविश्वास लगातार मिली जीत से नहीं आता। यह आत्मविश्वास आता है हारकर जीतने के जुनून से। गिरना, संभलना, फिर उठना, हार से हताशा को अलग करने की कला सीखना। जब हम यह सीखते हैं तो जीवन के प्रति दृष्टिकोण और व्यापक हो जाता है। हम एक बेहतर नागरिक के रूप में, बेहतर समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाते हैं। सांसद खेल महोत्सव जैसे आयोजन हमें इस दिशा में भी प्रेरित करते हैं।

साथियों,
आज मैं देश के हर खिलाड़ी से कहना चाहता हूं आप केवल अपनी जीत के लिए नहीं खेल रहे हैं। आप देश के लिए खेल रहे हैं। आप तिरंगे के मान-सम्मान के लिए खेल रहे हैं। मेरा हर माता-पिता से भी निवेदन है अपने बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित कीजिए। खेलने के लिए अवसर दीजिए। उन्हें खेलने के लिए खुले मैदान में भेजिए आप। उंगली पकड़ कर के ले जाइए। क्योंकि खेल केवल सीखने का हिस्सा नहीं है। खेलना स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क की भी अनिवार्य शर्त है। आप सब ने महसूस किया होगा। कुछ घरों में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी खूब आगे होते हैं। जबकि कुछ घरों में केवल पढ़ाई को ही बोझ की तरह बच्चों पर डाल दिया जाता है। दोनों घरों के माहौल में एक स्वाभाविक फर्क पैदा हो जाता है। जो बच्चे खेलते हैं, वह ज्यादा एनर्जेटिक रहते हैं, खुश रहते हैं। उसका सकारात्मक असर घर के वातावरण पर भी पड़ता है। जहां बच्चे खेलों से दूर होते हैं। सिकुड़ते जाते हैं। अकेले-अकेले हो जाते हैं। तनावग्रस्त अवस्था में बच्चा पहुंच जाता है और घर का माहौल भी बोझिल बन जाता है। बिगड़ने लगता है। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का समन्वय बहुत जरूरी है। जब बच्चे खेलेंगे तो वह फिट भी होंगे और हिट भी होंगे। वह बेहतर परिवार का बेहतर वातावरण बनाने का एक कैटेलिक एजेंट बन जाता है और उसको भविष्य में बेहतर समाज का नियंता बनने का भी अवसर मिल जाता है। इसलिए एक माता-पिता के रूप में ये आपकी पारिवारिक जिम्मेदारी तो है ही। एक नागरिक के रूप में ये हम सभी का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भी है।

साथियों,
मुझे विश्वास है हम सबके सामूहिक प्रयास वैश्विक अवसरों पर भारत की साख बढ़ाएंगे। मैं एक बार फिर सांसद खेल महोत्सव में हिस्सा लेने वाले हमारे युवा खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देता हूं। खेलते रहिए,
खिलते रहिए और खिलखिलाते भी रहिए। बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार।