उपस्थित सभी वरिष्‍ठ महानुभाव, और उज्‍बेकिस्‍तान में भारत की महान परम्‍परा, संस्‍कृति और उज्‍बेकिस्‍तान की महान संस्‍कृति और परम्‍परा के बीच आदान-प्रदान करना, एक सेतु बनाना इसका जो अविरल प्रयास चल रहा है उसके साथ जुड़े हुए आप सभी महानुभावों का मुझे आज दर्शन करने का अवसर मिला है।

यहां पर जो सांस्‍कृतिक कार्यक्रम प्रस्‍तुत किया गया है उज्‍बेक की बेटियों ने, और मैं देख रहा था कि उन्‍होंने सिर्फ practice नहीं की है, एक प्रकार से साधना की है और उत्‍तम प्रदर्शन सिर्फ उनके हाथ-पैर नहीं हिल रहे थे उनका मन-मंदिर भी जुड़ रहा था, ऐसा मैं अनुभव कर रहा था।

कल मेरी प्रधानमंत्रीजी और राष्‍ट्रपतिजी के साथ बहुत विस्‍तार से बातचीत हुई है। कल जब हम रात को खाना खा रहे थे, वहां संगीत की योजना की गई थी instrumental तो सारे western थे लेकिन बहुत अच्‍छी प्रयत्‍न करके भारतीय गीतों को प्रस्‍तुत करने का बहुत ही सफल प्रयास किया। मैंने राष्‍ट्रपति जी को बधाई दी और मुझे आश्‍चर्य हुआ कि राष्‍ट्रपति जी को राजधानी के विषय में मालूम था, कौन सा गीत बजाया जाएगा वो पहले से बताते थे, फिर उन्‍होंने मुझे गर्व से कहा - और प्रधानमंत्री जी ने भी कहा - कि हम हमारे यहां सभी गांवों में संगीत स्‍कूल का आग्रह करते हैं। कुछ मात्रा में हमने पिछले पांच साल में संगीत स्‍कूल खोले हैं और आगे भी इन स्‍कूलों को बढ़ाना चाहते हैं और यह भी बताया कि भारतीय संगीत के प्रति सभी की रूचि बहुत बढ़ रही है, और संगीत के माध्‍यम से संस्‍कार करने का हम एक प्रयास कर रहे हैं। अगर युद्ध से मुक्ति चाहिए तो संगीत व्‍यक्ति को कभी भी हिंसा की ओर जाने नहीं देता है। ये बातें कल मुझे राष्‍ट्रपति जी ने सुनकर के बहुत ही आनन्‍द आया।

व्यक्तित्‍व के विकास के लिए अनेक पहलुओं की चर्चा हुई। Personality development में इन बातों को सिखाया जाता है। लेकिन मैं मानता हूं कि Personality के development में भाषा की बहुत बड़ी ताकत है। आपको किसी और देश का व्‍यक्ति मिल जाए, और आपकी भाषा में पहला शब्‍द अगर वह बोल दें तो आप देखेगें बिना कोई पहचान, बिना कोई जानकारी आप एकदम स्‍तब्‍ध हो जाते हैं, खुल जाते हैं - ये ताकत होती है भाषा में। अगर कोई विदेशी व्‍यक्ति हम भारतीयों को मिले तो नमस्‍ते बोल देंगे ऐसा लगता है कि हमें कोई अपना मिल गया।

भाषा को जो बचाता है, भाषा को संभालता है, भाषा का जो संबोधन करता है, वह देश अपने भविष्‍य को तो ताकतवर बनाता ही है, लेकिन वह अपने भव्‍य भाल से उसका essence लगातार लेता रहता है। भाषा ऐसी खिड़की है कि उस भाषा को अगर जानें तो फिर उस भाषा में उपलब्‍ध ज्ञान के सागर में डुबकी लगाने का अवसर मिलता है, आनन्‍द मिलता है।

हमारे यहां कहते हैं “पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा?” पानी को जिसके साथ मिलाओ उसका रंग वैसा ही हो जाता है। भाषा को भी हर पल एक नया संगी-साथी मिल जाता है। भाषा को मित्र बना कर देखिए। भाषा उस हवा के झोंके जैसा होता है जो जिस बगीचे से गुजरे जिन फूलों को स्पर्श करके वो हवा चले, तो हमें उसी की महक आती है।

भाषा जहां-जहां से गुजरती है वहां की महक अपने साथ ले चलती है। जिस युग से गुजरती है, उस युग की महक लेकर जाती है, जिस इलाके से गुजरती है उस इलाके की महक साथ ले जाती है। जिस परपंरा से गुजरती है परंपरा की महक साथ ले जाती है और हर महक एक प्रकार से जीवन के ऐसे बगीचे को सुंगधित कर देती है यह भाषा, जहां पर हर प्रकार की महक हम महसूस करते हैं।

भाषा का आर्थिक स्थिति के साथ सीधा-सीधा नाता है। जिनकी आर्थिक समृद्धि होती है, उनकी भाषा के पंख बड़े तेज उड़ते हैं। दुनिया के सारे लोग उस भाषा को जानना चाहते हैं, समझना चाहते हैं क्‍योंकि आर्थिक व्यापार के लिए सुविधा होती है। आर्थिक अनुष्‍ठान बन जाती है भाषा, और मैं देखता हूं कि आने वाले दिनों में हिन्दुस्तान की भाषाओं का महत्‍व बढ़ने वाला है क्‍योंकि भारत आर्थिक उन्‍नति पर जैसे-जैसे जाएगा दुनिया उससे जुड़ना चाहेगी।

भाषा अगर एक वस्तु होती, एक इकाई होती - और अगर मानो उसको डीएनए test किया जाता तो मैं यह मानता हूं कि ये सबसे बड़ी चीज हाथ लगती, कि भाषा का हृदय बड़ा विशाल होता है, उसके DNA से पता चलता। क्‍योंकि भाषा सबको अपने में समाहित कर लेती है। उसे कोई बंधन नहीं होता। न रंग का बंधन होता है, न काल का बंधन होता है, न क्षेत्र विशेष का बंधन होता है। इतना विशाल हृदय होता है भाषा का जो हर किसी को अपने में समाहित कर लेता है। Inclusive.

मैं एक बार रशिया के एक इलाके में गया था - अगर मैं “Tea” बोलूं तो उनको समझ में नहीं आता था, “चाय” बोलूं तो समझ आता था। “Door” बोलूं तो समझ नहीं आता था, “द्वार” बोलूं तो समझ आता था। इतने सारे... जैसे हमारे यहां तरबूज बोलते है, watermelon. वो भी तरबूज बोलते हैं। यानी की किस प्रकार से भाषा अपने आप में सबको समाविष्ट कर लेती है। आपके यहां भी अगर कोई “दुतार” बजाता है, तो हमारे यहाँ “सितार” बजाता है। आपके यहां कोई “तम्‍बूर” बजाता है, तो हमारे यहां “तानपूरा” बजाता है, आपके यहां कोई “नगारे” बजाता है तो हमारे यहां “नगाड़े” बजाता है। इतनी समानता है इसका कारण है कि भाषा का हृदय विशाल है, वो हर चीज को अपने में समाहित कर लेती है।

आप कितने ही बड़े विद्वान हो, कितने ही बड़े भाषा शास्त्री हों, लेकिन ईश्‍वर हमसे एक कदम आगे है। हम हर भाषा का post-mortem कर सकते हैं। उसकी रचना कैसी होती है, ग्रामर कैसा होता है, कौन-सा शब्‍द क्‍यों ऐसा दिखता है - सब कर सकते है। लेकिन मानव की मूल संपदा को प्रकट करने वाली दो चीजें हैं, जो ईश्‍वर ने दी है। दुनिया की किसी भी भूभाग, किसी भी रंग के व्‍यक्ति, किसी भी युग के व्‍यक्ति में, दो भाषाओं में समानता है। एक है “रोना”, दूसरा है “हँसना” - हर किसी की रोने की एक भाषा है, और हंसने की भी एक ही भाषा है। कोई फर्क नहीं है और अभी तक कोई पंडित उनका व्‍याकरण नहीं खोल पाया है।

आज के युग में दो राष्‍ट्रों के संबंध सिर्फ सरकारी व्‍यवस्‍थाओं के तहत सीमित नहीं है। दो राष्‍ट्रों के संबंधों की मजबूती के आधार people-to-people contact होता है। और people-to-people contact का आधार सांस्‍कृतिक आदान-प्रदान, एक-दूसरे की परम्‍पराओं को, इतिहास को, संस्‍कृति को जानना, जीना ये बहुत बड़ी ताकत होता है। आपका ये प्रयास भारत और उज्‍बेकिस्‍तान के साथ people-to-people contact बढ़ाने का एक बहुत बड़ा platform है, बहुत बड़ा प्रयास है। ये संबंध बड़े गहरे होते है और बड़े लम्‍बे अरसे तक रहते है। सरकारें बदलें व्‍यवस्‍थाएं बदलें, नेता बदले लेकिन ये नाता कभी बदलता नहीं है। जो नाता आप जोड़ रहे है, आपके प्रयासों से इसको मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं।

Central Asia की पाँचों देशों की एक साथ यात्रा करने का सौभाग्‍य शायद ही... एक साथ यात्रा करने का सौभाग्‍य बहुत कम लोगों को मिलता होगा। मुझे वो सौभाग्‍य मिला है और Central Asia की करीब 5 देशों की यात्रा, पहली उज्‍बेकिस्‍तान की यात्रा से प्रारम्‍भ हुआ। ये मेरा सार्वजनिक रूप से इस यात्रा का अंतिम कार्यक्रम है। मैं बड़े संतोष और गर्व के साथ कहता हूं कि यह यात्रा बहुत ही सफल रही है। लंबे अर्से तक सुफल देने वाली यात्रा रही है, और आने वाले दिनों में भारत और उज्‍बेकिस्‍तान के आर्थिक-सामूहिक संबंध और गहरे होते जाएंगे, जो दोनों देशों को ताकत देंगे, इस region को ताकत देंगे, और इस region के साथ भारत मिल करके मानवजात के कल्‍याण के लिए सामान्‍य मानव के उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए उत्‍तम से उत्‍तम काम करते रहेंगे। इस विश्‍वास के साथ मैं फिर एक बार उजबेक्सितान के राष्‍ट्रपति जी का, प्रधानमंत्री जी का, यहां की जनता-जनार्दन का और इस समारोह में इतना उत्‍तम कार्यक्रम बनाने के लिए मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं और जो शब्दकोष का निर्माण हुआ है वो शब्‍दकोष आने वाले दिनों में नई पीढि़यों को काम आएगा।

आज technology का युग है। Internet के द्वारा online हम language सीख सकते है। हम सुन करके भी language सीख करते है, audio से भी सीख सकते है। एक प्रकार से आज अपनी हथेली में विश्‍व को जानने, समझने, पहचानने का आधार बन गया है। मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में हमारे ये जो सारे प्रयास चल रहे है इसमें technology भी जुड़ेगी और technology के माध्‍यम से हम खुद audio system से भी अपनी भाषाओं को कैसे सीखें - Audio हो, Visual हो, written text हो एक साथ सभी चीजें हो गई तो pick up करने में बड़ी सुविधा रहती है। उसकी दिशा में भी आवश्‍यक जो भी मदद भारत को करनी होगी, भारत अवश्‍य मदद करेगा।

फिर एक बार मैं आप सबका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

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आत्मनिर्भरता के साथ स्पेस लक्ष्यों को प्राप्त करना ही भारत की सफलता का मार्ग: पीएम मोदी
August 19, 2025
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प्रधानमंत्री - आप लोग जब इतनी बड़ी यात्रा करके वापस पहुंचे हैं…

शुभांशु शुक्ला – जी सर।

प्रधानमंत्री - तो आपको कुछ चेंज फील होता होगा, जैसे मैं समझाना चाहता हूं, वो किस प्रकार से अनुभव करते हैं आप लोग?

शुभांशु शुक्ला - सर जब ऊपर भी जाते हैं तो वहां का जो वातावरण है, एनवायरमेंट है वो अलग है, ग्रेविटी नहीं है।

प्रधानमंत्री - आप चाहते हैं उसमें तो सीटिंग अरेंजमेंट वैसा ही रहता है...

शुभांशु शुक्ला - वैसा ही रहता है सर।

प्रधानमंत्री – और पूरे 23-24 घंटे उसी में निकालना पड़ता है?

शुभांशु शुक्ला - हां सर, लेकिन एक बार जब आप अंतरिक्ष में पहुंच जाते हैं, तो आप अपना सीट खोलके, अपना harness खोलके आप उसी कैप्सूल में आप नो ग्राउंड आप जा सकते हैं, इधर-उधर चीजें कर सकते हैं।

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प्रधानमंत्री - इतनी जगह है उसमें?

शुभांशु शुक्ला - बहुत तो नहीं है सर, लेकिन थोड़ी बहुत है।

प्रधानमंत्री - मतलब आपका फाइटर जेट का कॉकपिट है उससे तो ज्यादा अच्छा है।

शुभांशु शुक्ला - उससे भी ज्यादा अच्छा है सर। बट पहुंचने के बाद सर काफी कुछ चेंजेस होते हैं जैसे सर पूरा आपका हार्ट स्लो हो जाता है, तो वो कुछ बदलाव होते हैं, और वो, लेकिन 4-5 दिन में बॉडी आपकी use to हो जाती है, वहां आप नॉर्मल हो जाते हैं। और फिर जब वापस आते हैं, तो फिर वही, दोबारा से वही सारे चेंजेस, आप चल नहीं सकते, वापस आते हैं तो, चाहे आप कितने भी स्वस्थ हो। मुझे बुरा नहीं लग रहा था, मैं ठीक था, लेकिन फिर भी जब पहला कदम रखा तो मैं मतलब गिर रहा था, तो लोगों ने पकड़ रखा था मुझे। फिर दूसरा, तीसरा, हालांकि कि मालूम है कि चलना है, लेकिन वो ब्रेन जो है, उसको टाइम लगता है वापस समझने में कि अच्छा अब ये नया एनवायरमेंट है, नया वातावरण है।

प्रधानमंत्री – यानी सिर्फ बॉडी का ट्रेनिंग नहीं है, माइंड का ट्रेनिंग ज्यादा है?

शुभांशु शुक्ला – माइंड का ट्रेनिंग है सर, बॉडी में ताकत है, मांसपेशियों में ताकत है, लेकिन वो ब्रेन की rewiring होनी है, उसको दोबारा से ये समझना है कि ये नया एनवायरमेंट है, अब इसमें आपको चलने के लिए इतनी ताकत लगेगी, या इतना एफर्ट लगेगा। वो वापस ये समझते हैं सर।

प्रधानमंत्री - सबसे ज्यादा समय से वहां कौन था, कितने समय तक?

शुभांशु शुक्ला - इस समय सबसे ज्यादा समय लोग एक टाइम पर करीब 8 महीने तक लोग रह रहे हैं सर, इसी मिशन से शुरू हुआ है कि 8 महीने तक रहेंगे।

प्रधानमंत्री - अभी वहां जो लोग मिले आपको...

शुभांशु शुक्ला – हां, उनमें से कुछ लोग हैं जो कि दिसंबर में वापस आएंगे।

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प्रधानमंत्री - और आप मूंग और मेथी का महत्व क्या है?

शुभांशु शुक्ला - बहुत अच्छा है सर, मैं इस बात से बहुत सरप्राइज था कि लोगों को इसके बारे में पता नहीं था, इन चीजों के बारे में, food बहुत बड़ा चैलेंज है सर एक स्पेस स्टेशन पर, जगह कम है, कार्गो महंगा है, आप कम से कम जगह में ज्यादा से ज्यादा कैलोरीज और न्यूट्रिशन आपको पैक करने की हमेशा कोशिश रहती है, और हर तरह से प्रयोग चल रहे हैं सर, और इनको उगाना बहुत सिंपल है, बहुत ज्यादा रिसोर्स नहीं चाहिए स्पेस स्टेशन में, छोटा सा एक आप डिश में थोड़ा सा पानी डालकर उनको छोड़ दीजिए और वो बहुत अच्छे से 8 दिन बाद वो स्प्राउट्स आना शुरू हो गए थे सर। स्टेशन में ही मुझे देखने को मिले। तो हमारी जो ये जो हमारी कंट्री की ये जो सीक्रेट्स हैं, मैं बोलूंगा सर, जैसे ही हमें ये मौका मिला कि हम माइक्रो ग्रेविटी रिसर्च में पहुंच पाए, ये वहां पहुंच रहे हैं। और क्या पता कि ये हमारी फूड सिक्योरिटी प्रॉब्लम को सॉल्व करे, क्योंकि एस्ट्रोनॉट्स के लिए तो एक तरह से है ही सर स्टेशन में, लेकिन अगर वहां सॉल्व होती है, तो ये पृथ्वी पर भी उन लोगों के लिए फूड सिक्योरिटी की प्रॉब्लम सॉल्व करने में हमारी मदद कर सकती हैं सर।

प्रधानमंत्री – पहला इस बार एक कोई भारतीय आया, तो भारतीय को देखकर के उनके मन में क्या रहता है, क्या पूछते हैं, क्या बात करते हैं, ये बाकी जो दुनिया के देश के लोग होते हैं?

शुभांशु शुक्ला – जी सर। मेरा पर्सनल अनुभव जो रहा है पिछले एक साल में, मैं तो जहां भी गया, जिससे भी मिला, सभी लोग बहुत खुश हुए मुझसे मिलके, बहुत एक्साइटेड थे, बात करने में आकर मुझसे पूछने में कि मतलब आप लोग क्या कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात ये थे कि सबको इसके बारे में मालूम था कि भारत स्पेस के क्षेत्र में क्या कर रहा है। सबको ये इस बारे में जानकारी थी, और सब मुझसे ज्यादा तो कई लोग थे जो गगनयान के बारे में इतना एक्साइटेड थे, जो आकर मुझसे पूछते थे कि आपका मिशन कब जा रहा है, एंड मेरे ही क्रूमेट जो मेरे साथ थे, मुझसे साइन करवाके लिखकर लेकर गए हैं कि जब भी आपका गगनयान जाएगा, आप हमें इनवाइट करेंगे लॉन्च के लिए, और उसके बाद जल्दी से जल्दी हमें आपके vehicle में बैठकर जाना है। तो मुझे लगता है सर कि बहुत ज्यादा उत्साह है।

प्रधानमंत्री – वो सारे आपको tech जीनियस के रूप में बुलाते थे, क्या कारण था?

शुभांशु शुक्ला – नहीं सर, वो लोग मुझे लगता है कि बहुत kind हैं, और जो इस तरह से बोलते हैं। बट मेरी जो ट्रेनिंग रही है सर, मेरी जो एयरफोर्स में ट्रेनिंग रही है, और उसके बाद हमने Test पायलट की ट्रेनिंग ली सर। तो मैं एयरफोर्स में जब गया था, तो मुझे लगा था कि पढ़ाई नहीं करनी पड़ेगी, बट मुझे इसके बाद बहुत पढ़ाई करनी पड़ी थी, मुझे पता नहीं है और Test पायलट बनने के बाद तो ये काइंड ऑफ एक इंजीनियरिंग का डिसिप्लिन बन जाता है सर। इसमें भी ट्रेनिंग ली, हमारे साइंटिस्ट ने हमको पढ़ाया है दो-तीन-चार साल, तो मुझे लगता है कि हम लोग काफी अच्छे से तैयार थे, इस मिशन के लिए जब पहुंचे।

प्रधानमंत्री - मैंने जो आपको होमवर्क कहा था, तो उसका क्या प्रोग्रेस हुआ है?

शुभांशु शुक्ला - बहुत अच्छा प्रोग्रेस हुआ है सर, और लोग काफी हंसे थे मेरे साथ, मैं उस मीटिंग के बाद उन्होंने मुझे चिढ़ाया भी था कि आपके प्रधानमंत्री ने आप होमवर्क दिया। हां, दिया तो है और बहुत जरूरी है सर हमें इस बात का आभास करना, मैं गया ही इसलिए था। मिशन तो एक सक्सेसफुल हुआ है सर, हम लोग वापस आ गए हैं। लेकिन ये मिशन अंत नहीं है, मिशन तो शुरुआत है तो।

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प्रधानमंत्री - ये तो मैंने उस दिन भी कहा था।

शुभांशु शुक्ला - आपने उस दिन बोला था...

प्रधानमंत्री – ये हमारा पहला पहला कदम है।

शुभांशु शुक्ला - पहला कदम है सर। तो इस पहल कदम का main जो उद्देश्य था, वो यही था कि हम कितना कुछ इससे सीखकर हम वापस ला सकते हैं सर।

प्रधानमंत्री - देखिए सबसे बड़ा काम होगा हमारे सामने एक बहुत बड़ा एस्ट्रोनॉट का पूल होना चाहिए हमारे पास। हमारे सामने 40-50 लोग रेडी इस प्रकार का, आप अब तक तो शायद बहुत कम बच्चों के मन में होता होगा, हां यार ये कुछ अच्छा है, लेकिन अब आपके आने के बाद शायद वो विश्वास भी बहुत बढ़ेगा, आकर्षण भी बढ़ेगा।

शुभांशु शुक्ला – सर जब मैं छोटा था राकेश शर्मा सर पहली बार गए थे 1984 में, पर एस्ट्रोनॉट बनने का सपना कभी मेरे मन में नहीं आया, क्योंकि हमारे पास कोई प्रोग्राम नहीं था, कुछ भी नहीं था सर। बट मैं जब इस बार गया सर स्टेशन में तो तीन बार मैंने बच्चों से बात की, एक बार लाइव इवेंट था सर, और दो बार रेडियो के थ्रू उनसे बात हुई। और तीनों इवेंट में सर एक बच्चा था हर इवेंट में जिसने ये पूछा कि सर मैं कैसे एस्ट्रोनॉट बन सकता हूं। तो मुझे लगता है कि ये अपने आप में हमारे देश के लिए बहुत बड़ी सफलता है सर, कि आज के भारत में वो उसको सपने देखने की जरूरत नहीं है, उसको मालूम है कि ये पॉसिबल है, हमारे पास ऑप्शन है, और हम बन सकते हैं। और आपने जैसा कहा सर कि ये जिम्मेदारी है मेरी, मुझे लगता है, मुझे बहुत मौका मिला कि मैं अपने देश को रिप्रेजेंट कर पाया हूं, और अब ये मेरी जिम्मेदारी है कि अब मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को यहां तक पहुंचाऊ।

प्रधानमंत्री – अब स्पेस स्टेशन और गगनयान…

शुभांशु शुक्ला – सर।

प्रधानमंत्री – दो हमारे बड़े मिशन हैं...

शुभांशु शुक्ला – सर।

प्रधानमंत्री – उसमें आपका एक्सपीरियंस बहुत काम आएगा।

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शुभांशु शुक्ला - मुझे लगता है सर कहीं न कहीं हमारे लिए एक बहुत बड़ा मौका है, स्पेशली सर, क्योंकि जिस तरह के कमिटमेंट हमारी गवर्नमेंट आपके द्वारा जो है स्पेस प्रोग्राम को sustained budget every year in spite of failures जैसे कि चंद्रयान-2 सर सक्सेसफुल नहीं हुआ, उसके बाद भी हमने कहा कि नहीं, हम आगे बढ़ेंगे, चंद्रयान-3 सक्सेसफुल हुआ। ऐसे ही failure होने के बाद भी अगर इतना सपोर्ट मिल रहा है, और ये पूरी दुनिया देख रही है सर। तो कहीं ना कहीं सर हमारी इसमें क्षमता भी है, और इसमें पोजीशन भी है, तो हम यहां पर एक लीडरशिप रोल एक्वायर कर सकते हैं सर। और बहुत बड़ा एक टूल होगा, अगर एक ऐसा स्पेस स्टेशन जो Led by Bharat, but बाकी लोग आकर उसका हिस्सा बने, मैंने सुनी सर आपने जो Aatmnirbharta in Space Manufacturing वाली आपने बात की थी सर। तो ये सारी चीजें एक ही तरह से जुड़ी हुई हैं, जो विजन आपने, जो अभी दिया है हमें ये गगनयान का और BAS का, और फिर मूनलैंडिंग का सर, बहुत बड़ा एक, बहुत बड़ा ये ड्रीम है सर।

प्रधानमंत्री – हम अगर आत्मनिर्भर बनकर करेंगे, तो अच्छा करेंगे।

शुभांशु शुक्ला – बिल्कुल सर।

शुभांशु शुक्ला – मैंने काफी सारी चीजें सर स्पेस पे फोटोग्राफ वगैरह कोशिश की भारत की लेने की, तो ये भारत यहां से शुरू है, सर ये ट्रायंगल ये बेंगलुरू है सर, ये हैदराबाद क्रॉस हो रहा है और ये जो फ्लैश आप देख रहे हैं सर ये सारी बिजली चमक रही है सर, ये जो पहाड़ों में भरा है सर। और ये क्रॉस होती है जो डार्क एरिया आता है सर ये हिमालय है। और ये ऊपर की तरफ जो जा रहे हैं सर ये तारे हैं सारे और ये क्रॉस करते ही ये पीछे से सूरज आ रहा है सर।