अंतरराष्ट्रीय सिंधी सम्मेलन

Published By : Admin | December 16, 2011 | 15:29 IST

सिंधु भवन, अहमदाबाद

१६ दिसंबर, २०११

 

मुझे अच्छा लगा कि आप सब के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। मित्रों, मैं मन से आप लोगों का बहुत आदर करता हूँ, आप लोगों का बहुत सम्मान करता हूँ और मनोमन मेरे मन में, मेरे दिल में, एक पूज्य भाव आप लोगों के लिये है। और वह इसलिए नहीं है कि मैं मुख्यमंत्री हूँ इसलिए ऐसा कहना पड़ता है, ऐसा नहीं है। इसके पीछे एक तर्क है, एक हकीकत है। पूरी मानवजात की सांस्कृतिक विकास यात्रा की ओर जब नजर करते हैं और इसके मूल की तरफ़ जब जाते हैं तो एक जगह पर आ करके रूकते हैं, जहाँ से मानव संस्कृति की विकास की यात्रा का आरम्भ हुआ था। वो जगह वो है जहाँ आपके पूर्वजों ने पराक्रम किया था। आप उस महान विरासत के अंश हैं। आपके पूर्वजों ने वे महान काम किये हैं और इसके कारण मेरे दिल में उस परंपरा के प्रति पूज्य भाव है और आप उसके प्रतिनिधि हैं तो सहज रूप से उसका प्रकटीकरण आपकी ओर होता है।

सिंधु ओर सरस्वती के किनारे पर पूरे मानवजात के कल्याण के लिये हमेशा हमेशा सोचा गया। मैं जब विद्यार्थी काल में धोलावीरा देखने गया था। हड़प्पन संस्कृति, मोहें-जो-दरो... और वहाँ की बारीकीयों को वहाँ के लोग मुझे समझा रहे थे, तो मन में इतना बड़ा गर्व होता था कि हमारे पूर्वज कितना लंबा सोचते थे। वहाँ की एक एक ईंट, एक एक पथ्थर इन सिंधु संस्कृति की परंपरा के उन महान सपूतों के पराक्रम की गाथा कहता है। आज दुनिया में ओलिंपिक गेम्स की चर्चा होती है और बड़े बड़े खेल के मैदान, बड़े बड़े स्टेडियम की चर्चा होती है। आप में से यहाँ बैठे हुए कई लोग होंगे जिनको आप ही के पूर्वजों के उस पराक्रम की ओर देखने का शायद सौभाग्य नहीं मिला होगा। अगर आप धोलावीरा जायेंगे तो वहाँ पायेंगे कि वहाँ ५००० साल पहले कितना बड़ा स्टेडियम था और खेलकूद के कितने बड़े समारोह होते थे, उसके सारे चिह्न आज भी वहाँ मौजूद हैं। यानि इन्हें क्या विशालता से देखते होंगे..! आज पूरी दुनिया मे साइनेज की कल्पना है भाई, गली इस तरफ जाती है तो वहाँ लिखा होता है गली का नाम, एरो करके लिखा होता है, साइनेजीस होते है। और साइनेजीस की किसके लिये जरूरत होती है? आप किसी छोटे गाँव में जाओ, तो वहाँ साइनेजीस नहीं होते कि भाई, यहाँ जाओ तो यहाँ पटेलों का मोहल्ला है, यहाँ बनिये का महोल्ला है... ऐसा कुछ लिखा नहीं होता है। क्योंकि गाँव छोटा होता है, सबको पता होता है, क्या कुछ है, इसलिए कोई बोर्ड लगाने की जरूरत नहीं पडती। ५००० साल पहले धोलावीरा दुनिया का पहला शहर था जहाँ साइनेजीस थे, आज भी मौजूद हैं। क्या कारण होगा? कारण दो होंगे, एक, वो एक बहुत बड़ा शहर होगा और दुसरा, वहाँ पर देश-विदेश के लोग आते-जाते होंगे, और तभी तो इन चीज़ों की जरूरत पडी होंगी। ५००० साल पहले ऐसी विरासत, आप कल्पना कर सकते हैं, भाईयों। क्या कभी आप को फील होता है? और मैं चाहूँगा की जब हम इस प्रकार का समारोह कर रहे हैं और इस महान परंपरा के गौरव गान गाते हुए हम इकठ्ठे हुए हैं, तो हमारी नयी पीढ़ी को उस इतिहास और संस्कृति का परिचय कराने के लिये कुछ कार्यक्रम हो तो शायद नयी पीढ़ी तक ये बात पहुंचेगी।

मित्रों, मेरा यहाँ मुख्यमंत्री के नाम पे कम, आप के अपने एक साथी के नाम पर बात करने का मेरा मूड़ करता है। मुझे बहुत बार लगता है कि मैं... क्यूंकि यहाँ अहमदाबाद में आधे से अधिक सिंधी परिवार होंगे जिसके घर मैंने रोटी खाई होगी। क्योंकि मैं ३५ साल तक उसी प्रकार का जीवन जीता था, अनेक परिवारों मे मेरा जाना और उन्हीं की रोटी खाना, ये मेरा... और इसलिए मैंने काफी निकटता से इन सब चीज़ों को देखा है। लेकिन आज कभी सिंधी परिवार में जाता हूँ तो बच्चे पास्ता और पिज़्ज़ा के आसपास चलते हैं तो मेरे मन में होता है की मीठा लोल्ला, तीखा लोल्ला, पकवान कौन खिलायेगा? आप सोचिये, ये अब चला जा रहा है। मेरे सिंधी परिवारो में से ये सब चीजे नष्ट हो रही है। क्या ये हमारी जिम्मेवारी नहीं हैं कि हम इन विरासत को बचायें? मैं कई बार मेरे मित्रों से कहता हूँ कि भईया, अहमदबाद में कभी तो सिंधी फूड फेस्टीवल करो। ये नरेन्द्र सारी दुनिया को खिलाता है लेकिन वो सिंधी खाना नहीं खिलाता है। मैंने कहा न कि मुख्यमंत्री के नाम पर नहीं, अपनों के नाते आप के बीच बातें कर रहा हूँ। क्योंकि मैं इतना मिलजुल कर के आप लोगों के बीच पला बड़ा हूँ, इसलिए मुझे पता है। आप युवा पीढ़ी को जा के कहिये, उसे पूछिये कि सिंधी परंपरा का पहनाव क्या था? क्या पहनते थे? दुनिया बदली है, काफी वेस्टर्नाइज़ेशन आप के अन्दर घुस गया हे, मुझे क्षमाँ करना। सिंधी भाषा मे बोलनेवाले परिवार कम होते जा रहे है। माँ-बेटा भी अंग्रेज़ी में बोल रहे हैं। मित्रों, दुनिया के अंदर अपनी मातृभाषा, अपना रहन-सहन, अपना पहेनाव इसको जो संभालता है, वो उसमें फिर से एक बार जान भरने की ताकत रखता है। और एक समाज के नाते जो आप भटके हुए हैं, तो मेरी एक प्रार्थना होगी कि एक बार संकल्प करके जायें कि हमारे घर में हम सिंधी क्यों न बोलें। हम अमरीका में हों, हम हाँगकाँग में रहते हों, हम चाइना गये हों, कहीं पर भी गये हों... क्यों न बोलें? और सिंधी भाषा की, अपनी भाषा की इक ताकत होती है। मुझे अडवाणीजी एक बार सुना रहे थे, बेनजीर भुट्टो यहाँ आई थी, तो उनकी फॉर्मल मीटिंग थी, सारे प्रोटोकॉल होते हैं, लेकिन जैसे ही अडवाणीजी को देखा, बेनजीर सिंधी में चालू हो गई और पूरे माहोल में उन दोनों के बीच में इतना अपनापन था, इतनी खुल कर के बातें हो रही थी... अब देखिये, ये भाषा की कितनी ताकत होती है अगर हम उसको खो देंगे... व्यवसाय के लिये अंग्रेजी की जरूरत होंगी तो ज़रूर इस्तेमाल किजिये, ओर दस भाषायें सीखें, कौन मना करता है? सीखनी भी चाहिये, ये हमारे सुरेशजी के साथ आप बैठिये, वो गुजराती बोलेंगे तो पता नहीं चलता कि वो एक सिंधी भाषा भी जानते होंगे, इतनी बढ़िया गुजराती बोलते हैं। बहुत अच्छी गुजराती बोलते हैं वो, एक शब्द इधर उधर नहीं होगा। मैं प्रसन्न हूँ इस बात से। लेकिन ये मेरे मन में है, यहाँ देखिये ये सिंधी सम्मेलन है, किसी के भी शरीर पर सिंधी कपडे नहीं हैं। इसे आप आलोचना मत समझिये, भईया, इसे आप आलोचना मत समझिये। ये आप की विरासत है, आप की ताकत है, आप इसको क्यों खो रहे हो? मुझे दर्द हो रहा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि कभी तो ऐसा हो कि सब सिंधी पहनावे में आयें। देखिये, मॉरिशस में १५०-२०० साल पहले हमारे लोग गये थे। मजदूर के नाते गये थे, मजदूर भी नहीं गुलाम के नाते गये थे। उनको हथकड़ियाँ पहना करके जहाजों मे डाल डाल के ले गये थे। लेकिन वो जाते समय अपने साथ रामायण ले गये, तुलसीकृत रामायण, और उनके पास कुछ नहीं था। मॉरिशस में गये, दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहाँ वो गये, यह एक सहारा था उनके पास। आज २०० साल के बाद भी आप जायें, बहुत सारी चीज़ों का बदलाव आया होगा तो भी एक उस रामायण अपने पास होने के कारण इस मिट्टी के साथ उनका नाता वैसा का वैसा रहा है। उन्होनें अपने नाम नहीं बदले हैं, उन्होनें रामायण की चौपाई का गान अविरत चालू रखा है और उसी के कारण उनका नाता... वरना २०० साल में कितनी पीढ़ीयां बदल जाती हैं। यहाँ तो वो लोग मौजूद हैं जिसने वह सिंधु संस्कृति को भी देखा है और बाद मे वह बुरे दिन भी देखे हैं और बाद में हिंदुस्तान में आकर अपना नसीब अजमाया, पूरी पीढ़ी मौजूद है। लेकिन ५० साल के बाद कौन होगा? कौन कहेगा कि तुम्हारे पूर्वजों के पराक्रम वहाँ हुआ करते थे, कौन कहेगा? और इसलिए भाईयों-बहनों, मेरा मत है, वो समाज, वो जाति, वो देश जो इतिहास को भूल जाता है, वो कभी भी इतिहास का निर्माण नहीं कर सकता है। इतिहास वही बना सकते हैं जो इतिहास को जीना जानते हो। जो इतिहास को दफना देते है, वो सिर्फ चादर औढाने से ज्यादा जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते। और इसलिए एक ऐसी महान विरासत जिसके आप संतान हैं, उसको बचाइये, इसको प्यार किजिये। और अगर हम अपनी विरासत को प्यार न करें तो हम कैसे चाहेंगे कि हमारा पडोसी हमारी विरासत को प्यार करे? और ये जजबा किसी के खिलाफ नहीं होता है। हम अपनी अच्छाइयों पर गर्व करें इसका मतलब किसी के लिये दु:ख होने का और किसी का बुरा दिखाने का कोई कारण नहीं होता है। हमें गर्व होना चाहिये, कितना उज्जवल इतिहास है..!

प लोगों को कच्छ में जाने का अवसर मिले तो जरूर जाइये। आपने कथा सुनी होंगी, कच्छ के अंदर ४०० साल पहले एक मेकण दादा करके हुआ करते थे। हिंगलाज माता के दर्शन के लिये लोग जाते थे और रण के अंदर पानी के अभाव के कारण कभी कभी रण में ही मर जाते थे। और यात्री भी बड़ा कष्ट उठा कर के रण को पार करत्ते हुए हिंगलाज माता के दर्शन के लिये सिंध की ओर जाते थे। तो वो अपने पास एक गधा और एक कुत्ता रखते थे और वो ऐसे ट्रेइन्ड थे की वो रण में देखते थे कि कहीं कोइ मनुष्य़ परेशान तो नहीं है। वो गधा और कुत्ता रण में जा करके पानी पहुंचाते थे और जरूरत पडी तो उसको उठा करके वहाँ ले आते थे। और वो नसीबवाले थे कि उस रेगिस्तान के किनारे पर उनके पास एक कुंआ था जिसमें शुध्ध मीठा पानी रहता था, आज भी मौजूद है, कभी जाएं तो आप। भूकंप में वो जगह खत्म हो गई थी, हमने फिर से उसको दुबारा बनाया है, दुबारा उसको बनाया है। ४०० साल पहले मेकण दादा ने जो लिखा था वो आज भी उपलब्ध है, उसने एक बात लिखी थी कि एक दिन ऐसा आयेगा... एक इन्सान ४०० साल पहले लिख के गया है, सिंध और गुजरात की सीमा पर बैठा हुआ चौकीदार था, वो मेकण दादा लिखकर गये हैं कि एक दिन ऐसा आयेगा जब सिंधु, सरस्वती और नर्मदा तीनो एक होंगे। तब किसने सोचा था की नर्मदा पर सरदार सरोवर डेम बनेगा और सरदार सरोवर से नर्मदा का पानी सिंध के किनारे तक पहुंचेगा, किसने सोचा था? और आप लोगों को जानकारी होगी, सिंधु नदी में अब बाढ़ आती है तो पाकिस्तान के उस छोर पर समुद्र के पहले एक डेम बना हुआ है, तो सिंधु का पानी ओवरफ्लो होता है और ओवरफ्लो होता है तो अधिकतम पानी हमारे रेगिस्तान में, हिंदुस्तान में गुजरात की तरफ आता है। और वो जगह आप देखें तो मीलों चौड़ा पट है, जहाँ ये पानी आता है लेकिन दुर्भाग्य ये है की वो खारा, नमकीन एकदम समुद्र जैसा पानी हो जाता है, काम में नहीं आता है। लेकिन मैं रेगिस्तान में जहाँ वो पानी आता है, उस जगह के दर्शन करने के लिये गया था और बाद में मैंने भारत सरकार को चिठ्ठी लिखी थी की क्या पाकिस्तान से बात नहीं हो सकती है? कि जो ये फ्ल्ड वोटर है, जो ये समुद्र में जाता है उसको अगर केनाल से इस तरफ ले आयें तो मेरे मेकण दादा का जो सपना था, सिंधु, सरस्वती, नर्मदा को इकठ्ठा करना, हम कर के दिखायेंगे। मित्रों, ये विरासत है जिस पर हमें गर्व होना चाहिये, और हमें उसके साथ जुडना चाहिये।

भाईयों-बहनों, मैं इस समाज का आदर करता हूँ इसका एक कारण और भी है। आप कल्पना कर सकते हो कि १९४७ के वो दिन कैसे होंगे, जब देश का विभाजन हुआ, सब कुछ उजड गया, सब कुछ तबाह हो गया और ईश्वर के भरोसे आप यहाँ आये थे। क्यों आये थे? आप यहाँ क्यों आये थे, मित्रों? कुछ लेने के लिये, कुछ पाने के लिये? क्या नहीं था आपके पास? आप इसलिए आये की इस मिट्टी को आप प्यार करते थे, इस महान विरासत को आप प्यार करते थे। आप आपके पूर्वजों की इस महान संस्कृति छोडने को तैयार नहीं थे, इसलिए आपने कष्ट झेले हैं। क्या ये स्पिरिट आपके बच्चों में पर्कोलेट हो रहा है? अगर नहीं होता है तो कमी हमारे पूर्वजो की नहीं है, कमी हमारी वर्तमान पीढ़ी की है और इसलिए गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। मित्रों, मैं बचपन में मेरे गाँव में एक सिंधी सज्जन को देखा करता था। उस समय उनकी आयु में तो छोटा था, उस समय उनकी आयु करीब ६०-६५ साल होंगी। आर्थिक स्थिति बड़ी खराब थी उनकी... पूरा चेहरा मुझे आज भी बराबर याद है। एकदम दुबला पतला शरीर, कपडों का कोई ठिकाना नहीं, वो बस स्टेशन पर हमेशा दिखते थे और अपने हाथ में पापड या चोकलेट या बिस्कीट पैसेन्जर को एक ट्रे जैसा रखते थे और बेचते थे। मैं जब तक मेरे गाँव में रहा तब तक वो जिंदा थे और मैंने हमेशा उनको यही काम करते देखा। वो एक द्रश्य मेरे मन को आज भी छूता है। कितनी गरीबी थी उनकी, इतनी कंगालियत से जीवन गुजारते थे, शरीर भी साथ नहीं देता था। मेरा गाँव छोटा था, वहाँ बिस्किट कौन खायेगा? चोकलेट कौन खायेगा? कौन खर्चा करेगा? लेकिन उसके बावजूद भी अपने व्यावसायिक स्पिरिट के साथ बस स्टेशन पे जा के खडे हो जाते थे, कुछ बेचकर के कुछ कमाने की कोशिश करते थे लेकिन मैने कभी भी उनको भीख मांगते हुए देखा नहीं। बहुत कम समाज होते हैं जिसमे ये ताकत होती है। और सिंधी समाज के अंदर जीनेटिक्स सिस्टम मे ताकत पडी है, स्वाभिमान की। वो कभी भीख नहीं माँगते..! आप उस विरासत के धनी हैं। ये परंपरा अपने बच्चों पर कैसे पहुंचे, उन लोगों को हम कैसे तैयार करें?

मित्रों, व्यावसायिक क्षमता। हमारे गोपालदास भोजवानी यहाँ बैठे हैं, जब मैं छोटा था तो हम कभी कभी उनकी दुकान पर जा कर बैठा करते थे। तो एक बात हमारे ध्यान में आई थी, आज वो परंपरा है कि नहीं वो मुझे मालूम नहीं। लेकिन मैं
सोश्यो-इकनॉमिक द्रष्टि से कई लोगों के सामने अपने विषय को रख चुका हूँ, कई जगह पर बोला हूँ। अब वो परंपरा है कि नहीं, मुझे मालूम नहीं पर उस समय तो मैंने अपनी आंखो से देखा है। कोई भी सिंधी युवक या कोई व्यक्ति अपना नया व्यवसाय जब शरू करता था तो यार, दोस्त, रिश्तेदार सब उदघाटन के समय आते थे, उसको एक लिफाफा देते थे। उस लिफाफे पर कुछ लिखा हुआ नहीं होता था, लेकिन उसमें कुछ न कुछ धन हुआ करता था, पैसे होते थे। और जो भी आता था उसको देता था। मैने जरा बड़ी बारीकी से पूछा कि ये क्या चल रहा है? तो मेरे ध्यान मे आया की ये परंपरा है समाज में, कि कोई भी एसा नया व्यवसाय करता है तो समाज के लोग मिलने आते हैं और उनको कुछ न कुछ पैसे देते हैं, जो उनको बिजनेस करने के लिए पूंजी के रूप में काम आते हैं। और बाद में कहीं ऐसा अवसर हो तो खुद भी अपने तरीके से जाकर के देके आता है। लेकिन देनेवाले का नाम नहीं होता है। मित्रों, ये जो परंपरा मैने देखी है, अपने ही स्वजन को, अपने ही जाति के व्यक्ति को व्यावसायिक क्षेत्र में अपने पैरो पर खड़ा करने के लिये कितना बढिया सोशल इकोनोमी का कन्सेप्ट था। ये अपने आप में शायद दुनिया में बहुत रेरेस्ट है। हमारे यहाँ शादियों मे होता है, कि शादियों मे इस प्रकार से देते हैं तो शादी के समय खर्च होता है तो चलो, उस परिवार को मदद हो जायेगी, उनका काम निकल जायेगा। लेकिन व्यवसाय मे ये परंपरा मैं सिंधी परिवारो की दुकानों के उदघाटन में जब जाया करता था तब देखता था। और उसमे मुझे लगता है की सोशल इकोनोमी की कितनी बढिया थिंकिंग हमारे पूर्वजों ने बढ़ा कर के हमको दी है..! कोई भी, कोई भी डूबेगा नहीं, हर कोई उसे हाथ पकडकर के उपर लाने की कोशिश करेगा, ऐसी महान परंपरा रही है।

मैं अभी श्रीचंदजी को पूछ रहा था की सिंधी टी.वी. चेनल है क्या कोई? मुझे तो मालूम है, मैंने उनको क्यूं पूछा होगा वो आप को मालूम होना चाहिये ना? मुझे तो मालूम है... नहीं, छोटा मोटा कार्यक्रम होना अलग बात है, वो पूरी चेनल नहीं है, छोटे कार्यक्रम चलते हैं। नहीं, मैने सही जगह पर सवाल पूछ लिया था। अब उन्होंने कहा है कि जमीन दीजिये। वो व्यापारी आदमी है, ये हमारा डिवैल्यूऐशन क्यों कर रहे हो, हिन्दूजाजी? पूरा गुजरात आपका है, मेरे भाईयों-बहनों, पूरा गुजरात आपका है। पूरा गुजरात आपके हवाले है, मौज किजिये..! लेकिन मुंबई से हमारे कुछ बंधु, शायद यहाँ आये होंगे तो, नारायण सरोवर के पास एक ऐसा ही सिंधु सस्कृति परंपरा का कल्चरल सेन्टर बनाने के लिये मुंबई के ही हमारे कुछ मित्र आगे आये हैं और उनको हमने जमीन दी है, बहुत बड़ी मात्रा में। और नारायण सरोवर, यानि एक प्रकार से आज के भारत का वो आखरी छोर है और पाकिस्तान की सीमा के पास पडता है, वहाँ एक काफी अच्छा एक कल्चरल सेन्टर बनेगा, उस दिशा मे काम चल रहा है, उसका लाभ होगा, बहुत बड़ा काम उसके कारण होनेवाला है। जी हाँ, बैठे हैं यहाँ पर... वो काम काफ़ी अच्छा होगा, मुझे विश्वास है।

प लोग गुजरात के विषय में भलीभांति इस बात को जानते हैं कि गुजरात ने काफ़ी तरक्की की है, प्रगति की है। सब को भोजन करना होगा न, कि गुजरात की कथा सुनाएं..? आवाज़ नहीं आ रही है। हाँ, सिंधी बहुत देर से खाना खाते हैं, मैं भी कभी जब दिन भर काम करता था और देर हो जाये तो आप के ही वहाँ खाना खाता था, मैं सिंधी घर में जाता था, कुछ न कुछ मिल जाता था। नहीं, आज की डेट में तो जरूर खा लीजिये। देखिये, बाइ ऐन्ड लार्ज गुजरात की छवि ये रही है कि हम एक ट्रेडर्स स्टेट थे और ट्रेडर्स स्टेट के नाते` हम लोग क्या करते थे? एक जगह से माल लेते थे, दुसरी जगह पे देते थे, और बीच में मलाई निकाल लेते थे। यही था, व्यापारी लोग क्या करेंगे? उसमें से उसका ट्रान्सफोर्मेशन हुआ। आज गुजरात इन्डस्ट्रीअल स्टेट बना है। और इस इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में गुजरात ने जो प्रगति की ऊंचाईयों को पार किया है, अगर कोई गुजरात को एक सैम्पल के रूप में देखें तो उसको विश्वास हो जायेगा कि अगर गुजरात में हो सकता है तो पूरे हिंदुस्तान मे भी हो सकता है और हमारा देश महान बन सकता है। क्योंकि हम वो ही लोग हैं, हिंदुस्तान के कोने कोने में हम एक ही प्रकार के लोग हैं। वो ही कानून है, वो ही व्यवस्था है। तरक्की हो सकती है और प्रगति कर सकते हैं, ये गुजरात ने उदाहरण दिया है।

क समय था, हमारे १६०० कि.मी. के समुद्र किनारे को हम बोझ मानते थे। हम मानते थे अरे भाई, यहाँ क्या होगा? ये पानी, ये खारा पानी, पीने के लिये पानी नहीं... गाँव छोड छोड करके, कच्छ और सौराष्ट्र के लोग गाँव छोड छोड करके चले जाते थे। गाँव के गाँव खाली होते थे। हमने उसे बोझ माना था। मित्रों, हमने आज उस समुंदर को ओपर्च्युनिटी में कन्वर्ट कर दिया है। कभी जो बोझ लगता था उस को हमने अवसर में पलटा और १६०० कि.मी. के समुद्र किनारे पर ४० से अधिक बंदर, एक पूरा नेट्वर्क खड़ा किया है। और पूरे हिंदुस्तान का टोटल जो कार्गो है, प्राइवेट कार्गो, उसका ८५% कार्गो हेन्डलिंग गुजरात के समुद्र किनारे पर होता है।

च्छ। २००१ में भयानक भूकंप आया, ऐसा लगता था की अब गुजरात खत्म हो जायेगा। और वो भीषण भूकंप था, १३,००० से अधिक लोग मारे गये थे, लाखों मकान ध्वस्त हो गये थे, सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर खत्म हो चुका था। स्कूल, कोलेज कुछ नहीं, अस्पताल तक नहीं बचे थे। ईश्वर ऐसा रूठा था जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। एक प्रकार से गुजरात मौत की चादर ओढ़ कर के सोया था और सारा देश मानता था कि अब गुजरात खड़ा नहीं होगा। मित्रों, वर्ल्ड बैंक का रिकॉर्ड कहता है की समृद्ध देश को भी भूकंप जैसी आपदा के बाद बहार निकलना है तो ७ साल लग जाते हैं, मिनिमम ७ साल। मित्रों, गुजरात ३ साल के भीतर भीतर दौडने लग गया। एक समय था जब कच्छ का ग्रोथ नेगेटिव था, ईवन पोप्युलेशन भी। लोग बाहर चले जाते थे, जनसंख्या कम होती जा रही थी। आज कच्छ जो २००१ में मौत की चादर ओढ़ के सोया था, वो आज हिंदुस्तान का फास्टेस्ट ग्रोइंग डिस्ट्रिक्ट है, फास्टेस्ट ग्रोइंग इन दस साल में कच्छ के अंदर २० कि.मी. के रेडियस में, मुंद्रा के आसपास २० कि.मी. के रेडियस में, ८००० मेगावॉट बिजली का उत्पादन का काम शरू हो चूका है, यानि बिजली पैदा होना शुरु हो गई है। विदिन २० कि.मी. रेडियस। हिंदुस्तान के कई राज्य होंगे की पूरे राज्य के पास ८००० मेगावॉट बिजली नहीं होंगी। यहाँ २० कि.मी. के रेडियस में ८००० मेगावॉट बिजली का उत्पादन..! अंजार के पास १५ कि.मी. रेडियस में स्टील पाइप का उत्पादन होता है और दुनियाँ की सबसे ज्यादा स्टील पाइप मॅन्युफेक्चरिंग इस १५ कि.मी. रेडियस में अंजार में होगा।

मित्रों, गुजरात एक ऐसा प्रदेश है जिसके पास रॉ मटिरियल नहीं है, माइन्स और मिनरल्स हमारे पास नहीं है, आयर्न ऑर हमारे पास नहीं है... लेकिन स्टील का सबसे ज्यादा उत्पादन हम करते हैं। हमारे पास डाइमंड के खदान नहीं है, लेकिन दुनिया के अंदर १० में से ९ डाइमंड हमारे यहाँ तैयार होते हैं। दुनिया की कोई नटी ऐसी नहीं होगी जिसके शरीर पर डायमंड हो और मेरे गुजराती का हाथ न लगा हो। ईश्वर ने हमें नहीं दिया, हमें वो सौभाग्य नहीं मिला, हमारे पास नहीं है। हमारे पास कोयला नहीं है, हमारे पास पानी नहीं है, उसके बाद भी हिंदुस्तान में गुजरात एक अकेला ऐसा राज्य है जो २४ अवर्स, २४x७ बिजली घर घर पहुंचाता है, २४ घंटे बीजली मिलती है। मेरे यहाँ कभी ५ मिनट भी बिजली चली जाये न, तो बहुत बड़ी खबर बन जाती है कि मोदी के राज्य में आज ५ मिनट अंधेरा हो गया..! हिंदुस्तान के और राज्य ऐसे है की जहाँ बिजली आये तो खबर बनती है कि मंगल को बिजली आयी थी..! मित्रों, विकास के पैमाने में इतना बड़ा फर्क है।

फार्मास्युटीकल दुनिया में, करीब ४५% दवाईयों का उत्पादन गुजरात मे होता है। दुनिया के हर देश में हम उसे एक्सपॉर्ट करते हैं। अब हम केमिकल की दुनियाँ में थे, आप लोगों को कभी दहेज जाने का अवसर मिले, हिंदुस्तान का एकमात्र लिक्विड केमिकल का पोर्ट है हमारे पास और एक नया एस.आई.आर. जहाँ बना है हमारा, दहेज में। शंघाई की बराबरी कर रहा है, उसकी तुलना होती है, शंघाई जैसे दहेज के केमिकल पोर्ट हैं हमारे और एस.आई.आर. अब वहाँ बन रहा है। तो हमारी गुजरात की पहचान ज्यादातर केमिकल के प्रोडक्शन की दुनिया में थी, अब उसमें से हम इंजीनीयरिंग फिल्ड मे गये हैं। और जब ‘नैनो’ यहाँ आयी तो दुनिया को पहली बार पता चला कि गुजरात नाम की भी कोई जगह है, वरना कोई जानता नहीं था। और मित्रों, नैनो तो अभी अभी आई है और परिणाम ये हुआ है की शायद गाड़ियों की कंपनीयों के जितने जाने-माने नाम हैं, वो सारी की सारी गुजरात मे आ रही हैं। आनेवाले दिनों में हम ५ मिलियन कार्स बनायेंगे गुजरात में, ५ मिलियन कार्स। आप कल्पना कर सकते हैं कि यहाँ ईकोनोमी किस प्रकार से काम करती होगी, किस तेजी से हम लोग आगे बढ़ते होंगे..! औद्योगिक विकास के अंदर हमने एक और क्षेत्र में पदार्पण किया है।

पूरा विश्व ग्लोबल वॉर्मिंग की चर्चा कर रहा है, क्लाइमेट चेन्ज की चर्चा कर रहा है। दुनिया मे चार सरकार ऐसी है जिसका अपना क्लाइमेट चेन्ज डिपार्टमेन्ट है और सरकार उस हिसाब से काम करती है। पूरे विश्व मे चार, उस चार में एक सरकार है, गुजरात की सरकार। हमारा अलग क्लाइमेट चेन्ज डिपार्टमेन्ट है और हम एन्वायरमेन्ट फ्रेन्ड्ली डेवलपमेन्ट पर बल दे रहे हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि गुजरात जिस प्रकार से तरक्की कर रहा है, तो मानव जीवन की भी रक्षा होनी चाहिए और दोनों का मेल होना चाहिये। और उसमे हमने इनिश्येटीव लिया है, सोलार एनर्जी का। मित्रों, मैं बड़े गर्व के साथ कहता हूँ कि आज गुजरात दुनिया का सोलार कैपिटल’ बन गया है, वी आर दी वर्ल्ड कैपिटल ऑफ सोलार एनर्जी। आनेवाले दिनों में सोलार एनर्जी के क्षेत्र में, सोलार एनर्जी इक्वीपमेन्ट मेन्युफेक्चरिंग के क्षेत्र में, हमारा रुतबा रहने वाला है और भविष्य में हम इसको और आगे बढ़ाने वाले हैं। रूफ-टॉप सोलार सिस्टम के लिये हम पोलिसी ला रहे हैं। जो भी मकान बनायेगा, उस के छत पे सोलार सिस्टम होगी, सरकार उसके साथ बिजली खरीदने के लिये तय करेगी क्योंकि दुनिया मे जिस प्रकार से पेट्रोलियम के दाम और कोयले के दाम बढ़ते जा रहे हैं, तो बिजली का बहुत बड़ा संकट पैदा हो सकता है। और मित्रों, मैं विश्वास से कहता हूँ, कितना ही संकट क्यों न आये, गुजरात इस संकट से बच जायेगा। और एनर्जी के बिना विकास रूक जायेगा, जहाँ भी ये संकट होगा, विकास रूक जायेगा। लेकिन हमने इसके लिये काफी सोच कर काम किया है। हम बायोफ्युअल में बहुत काम कर रहे हैं इन दिनों। और मित्रों, बायोफ्युअल में काम कर रहे हैं तो एक दिन ऐसा आयेगा कि आज हम खाड़ी के तेल पर जिंदगी गुजार रहे हैं, एक दिन ऐसा आयेगा कि झाड़ी के तेल से हमारा काम चल जायेगा। बायोफ्युअल होगा तो खेत में तेल पैदा होगा। हम उस दिशा में बहुत बड़ी मात्रा में काम कर रहे हैं और एक मंत्र ले कर के चल रहे हैं कि अब खाड़ी का तेल नहीं झाड़ी का तेल चाहिये। उस दिशा में हम काम कर रहे हैं, उससे बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है, ऐसी स्थिति बनने वाली है।

मित्रों, एक जमाना ऐसा था की हमारे ४००० गाँव ऐसे थे कि जहाँ फरवरी महिने के बाद करीब ६ महिने तक टैंकर से पानी जाता था। जब तक टैंकर गाँव मे नहीं आता था, पीने का पानी उपलब्ध नहीं होता था। ये हालत गुजरात की इस इक्कीसवीं सदी में २००१-०२ मे थी। हमने नर्मदा योजना की पाइप लाइन से पीने का पानी गाँव मे पहुंचाने की योजना बनाई और १४०० कि.मी. पाइप लाइन हमने ७०० दिनों में लगा दी, ७०० दिनों में १४०० कि.मी. पाइप लाइन। हमारे देश मे आदत ऐसी है की एक शहर के अंदर २ इंच की पाइप लगाते है तो भी ३-३ साल तक, ४-४ साल तक काम चलता है और गढ्ढे वैसे के वैसे होते हैं। क्यों? तो बोले पानी की पाइप लाइन लगानी है। हमने ७०० दिनों में १४०० कि.मी. पाइप लाइन लगाई और पाइप की साइज़ ऐसी है कि आप परिवार के साथ मारूती कार में बैठ कर उस पाइप में से गुजर सकते हैं, उस साइज की पाइप है। ७०० दिनों में १४०० कि.मी. पाइप लाइन। गुजरात अकेला राज्य है देश मे जहाँ २२०० कि.मी. का गैस ग्रिड है। मेरे यहाँ घरों में किचन में टेप से गैस मिलता है, बोटल, सिलिन्डर की जरूरत नहीं पडती। कई शहरों में हुआ है, और भी अनेक शहरों में आगे बढ़ने वाला है। यानि हमने इन्फ़्रास्ट्रक्चर के नये रूप को पकडा है। पहले इन्फ़्रास्ट्रक्चर का रूप होता था कि कोई रोड बन जाये, बस स्टोप बन जाये, धीरे धीरे आया कि रेल्वे स्टेशन हो जाये, थोडा आगे आये तो एअरपोर्ट हो जाये... हमारे इन्फ़्रास्ट्रक्चर की सोच इक्कीसवीं सदी को ध्यान मे रखते हुए गैस ग्रिड, पानी की ग्रिड... उस दिशा में है। और दूसरा एक काम हमने जो किया है, वो है ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क। हम दुनिया मे ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क की लैंथ के संबंध में दुनिया में नं. १ पर हैं। और मित्रों, मानव संस्कृति की विकास यात्रा जो रही है इसमे बहुत बड़ा बदलाव आया है। एक जमाना था, जहाँ नदी होती थी, वहाँ मानव संस्कृति का विकास होता था। फिर एक बदलाव आया, जहाँ से हाईवेज गुजरते थे उसके बगल में मानव संस्कृति विकास करने लग जाती थी। अब तो लोग मंदिर भी बनाते हैं तो हाईवे के पास बनाते हैं, ताकि क्लायन्ट को तकलीफ न हो। लेकिन वक्त बदल रहा है मित्रों, अब जहाँ से ऑप्टिकल फायबर गुजरता होगा, वहीं पर मानव वस्ती रहने वाली है। और गुजरात एक ऐसा स्टेट है जहाँ दुनिया में लैंथ वाइज़ सब से बड़ा ऑप्टिकल फायबर नेटवर्क है। पिछले बजट के अंदर, २०११-१२ के बजट में, भारत सरकार ने अपने बजट में कहा कि वे हिंदुस्तान में ३००० गाँव में ब्रॉड बैंड कनेक्टिविटी का पायलट प्रोजेक्ट करेंगे। ये दिल्ली की भारत सरकार थी, यहाँ कोई किसी दल से जुड़े मित्र हों तो मुझे क्षमा करना, मैं किसी दल की आलोचना नहीं करता हूँ। लेकिन भारत सरकार ने ये घोषणा की थी बजेट के समय कि ३००० गाँव मे ब्रॉड बैंड कनेक्टिविटी का पायलट प्रोजेक्ट करेंगे। भाईयों-बहनों, आपको ये जानकर आनन्द होगा कि गुजरात के १८,००० गाँव में तीन साल से ब्रॉड बैंड कनेक्टिविटी है और उसके कारण आज मैं मेरे गांधीनगर से किसी भी गाँव में वीडियो कॉन्फरन्स से बात कर सकता हूँ, हम गाँव के दूर सूदूर स्कूलों के अंदर लॉंग डिस्टन्स एज्युकेशन से पढ़ा सकते हैं, एक अच्छा टीचर गांधीनगर में बैठ कर के ५०० कि.मी. की दूरी के गाँव की स्कूल के बच्चों को पढ़ा सकता है, ये नेटवर्क गुजरात में है..!

म तौर पर राज्य केन्द्र से कुछ न कुछ माँगते रहते हैं। हमेशा अखबार में आता रहता है कि रोड के लिये माँग की, फलाने के लिये माँग की, अस्पताल के लिये पैसे माँगे, गेहूँ ज्यादा माँगे, कहीं आता है कि नमक हम को दो, ये भी आता है... तो ये है हमारे देश में। लेकिन गुजरात क्या माँगता है? गुजरात का माँगने का दायरा ही कुछ और है। मैंने एक साल पहले प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखी थी। मैंने कहा साहब, हमारे सेटलाइट इतने हैं, मुझे ये सेटलाइट का उपयोग करने का अधिकार दिजिये, ये चिठ्ठी लिखी थी मैंने। क्योंकि मेरे यहाँ टेक्नोलोजी का इतना उपयोग हो रहा है कि मुझे इस नेटवर्क की आवश्यकता है। और मित्रों, मुझे खुशी है कि तीन दिन पहले भारत सरकार ने हमें सेटलाइट में से एक ट्रांसपोंडर, यानि ३६ मेगा हर्ट्ज़, इतनी यूटिलिटी का हमें अधिकार दिया है। आज मेरे यहाँ लॉंग डिस्टन्स के लिये एक चेनल चला पाता हूँ, अब मैं चौदह चेनल चला पाउंगा, चौदह। आप कल्पना कर सकते हैं कि विकास को किस ऊँचाइयों और किस दायरे पर मैं ले जा रहा हूँ..! हमारे यहाँ कितने बड़े कैन्वस पर काम हो रहा है। मैंने कुछ ही चीज़ों की आप को थोड़ी झलक दी है।

मित्रों, हम कुछ काम ऐसे करते हैं जिनको सुनकर के आप को हैरानी होगी। इस दस साल में गुजरात में मिल्क प्रोडक्शन में ६०% ग्रोथ है, केन यू इमेजिन? ६०% ग्रोथ है। और उसके पीछे जो मेहनत की इसका परिणाम आया है। हमारे यहाँ पशु आरोग्य मेला हम करते हैं। और किसी पशु को ३ कि.मी. से ज्यादा जाना न पडे, क्योंकि जब बीमार पशु को उस से ज्यादा ले जाना क्राइम है, ईश्वर का अपराध है। तो हम करीब ३०००-३५०० केटल कैम्प लगाते हैं, उनकी हेल्थ के चेक-अप के लिये। और ये हम लगातार करते हैं पिछले सात साल से। और वेक्सीनेशन, दवाईयां, उसकी देखभाल... इसका परिणाम यह हुआ है कि आम तौर पर जैसे ठंड ज्यादा हो गयी तो हमें ज़ुकाम हो जाता है, बारिश ज्यादा हो गयी तो हमें ज़ुकाम हो जाता है, वैसे पशु को भी होता है। कुछ डिज़ीज़ ऐसे होते हैं कि थोडा सा भी वेदर चेन्ज होगा तो पशु को भी हो जाता है। लेकिन रेग्युलर देखभाल के कारण मेरे राज्य में से ११२ डिज़ीज़ ऐसे थे, वो आज टोटली इरेडिकेट हो गये, खत्म हो गये मेरे राज्य से और इसका पशु की हेल्थ पर बहुत बड़ा प्रभाव हुआ। इतना ही नहीं, हम पशु की केयर कैसी करते हैं..? हमारे यहाँ मोतीया बिंदु का ऑपरेशन होता है, कैटरेक्ट का ऑपरेशन होता है और कुछ गरीब इलाक़ों में तो लोग चेरिटी के नाते नेत्र यज्ञ करते हैं और गरीब लोगों को मुफ्त में नेत्रमणि लगाने का काम करते हैं। हम सब ने सुना है कैटरेक्ट ऑपरेशन का, नेत्रबिंदु के ऑपरेशन, नेत्रमणि का ऑपरेशन सुना है... आज पहली बार मैं आप को सुना रहा हूँ कि सारे विश्व के अंदर गुजरात अकेला राज्य ऐसा है जहाँ मैं केटल के कैटरेक्ट का ऑपरेशन करता हूँ। पशु के नेत्रमणि के ऑपरेशन मेरे राज्य मे होते हैं, मेरे राज्य मे पशु की डेन्टल ट्रीटमेन्ट होती है, इतनी बारीकी से केयर करने के कारण आज मिल्क प्रोड्क्शन मे हम यहाँ पहुंचे हैं। और मित्रों, जो यहाँ सिंगापुर से आये होंगे उन्हें मैं विश्वास से कहता हूँ कि आज अगर आप सिंगापुर में इंडियन स्टाइल की चाय पीते होंगे, तो लिख करके रखिये, दूध मेरे गुजरात का होगा। मित्रों, हमने एग्रीकल्चर सेक्टर में जो काम किया है, आज दुनिया के किसी भी देश में अगर भिंडी की सब्जी खाते हो, आप लिख कर रखना वो भिंडी मेरे बारडोली से आयी होगी। मित्रों, एक जमाना था जब गीर की केसर प्रसिद्ध थी। आज कच्छ की केसर, कच्छ जो रेगिस्तान था... कच्छ के अंदर मैंगो का उत्पादन होता है और आज मेरी कच्छ की केसर दुनिया के देशों मे एक्सपोर्ट होती है।

मित्रों, दस साल के भीतर भीतर क्या किया जा सकता है इसका सिर्फ एक छोटा सा सैम्पल मैने दिखाया है आप को, पूरी फिल्म देखनी होगी तो महीने भर की कथा लगानी पडेगी। सभी क्षेत्रों मे विकास हुआ है और विकास यहीं एक मंत्र है। और भाईयों-बहनों, सारी समस्याओं का समाधान विकास है, सारे संकटो का समाधान विकास है, उसी एक मंत्र को ले करके हम चल रहे हैं।

मुझे आप सब के बीच आने का अवसर मिला, मैं आप का आभारी हूँ। शुरू में जो मैंने बातें बतायी थीं, सिर्फ आपके प्रति अतिशय प्रेम होने के कारण, आपके प्रति मेरे मन मे भीतर से आदरभाव है उसी के चलते मेरी आप सब से फिर एक बार प्रार्थना है, इस महान परंपरा को नष्ट मत होने देना, इस संस्कृति को नष्ट मत होने देना। आप बच्चों में ये भाषा, ये संस्कार, ये खान-पान इस को जीवित रखने की कोई न कोई योजना हो जाये तो मैं मानता हूँ कि देश की बहुत बड़ी सेवा होगी।

 

हुत बहुत धन्यवाद..!

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भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है: पीएम मोदी
December 06, 2025
भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है: प्रधानमंत्री
मंदी, अविश्वास और विखंडन की दुनिया में, भारत विकास और विश्वास लाता है और एक सेतु-निर्माता की भूमिका निभाता है: प्रधानमंत्री
आज, भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रमुख विकास इंजन बन रहा है: प्रधानमंत्री
भारत की नारी शक्ति अद्भुत काम कर रही है, हमारी बेटियां आज हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं: प्रधानमंत्री
हमारी गति स्थिर है, हमारी दिशा एकरूप है, हमारा इरादा हमेशा राष्ट्र प्रथम है: प्रधानमंत्री
आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है: प्रधानमंत्री

आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।