दिल्ली में ओडिशा पर्व में भाग लेकर प्रसन्न हूं, राज्य भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और देश-दुनिया भर में प्रशंसा-प्राप्त सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध है: प्रधानमंत्री
ओडिशा की संस्कृति ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को बहुत मजबूत किया है, जिसमें राज्य के बेटे-बेटियों ने बहुत बड़ा योगदान दिया है: प्रधानमंत्री
हम भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में उड़िया साहित्य के योगदान के कई उदाहरण देख सकते हैं: प्रधानमंत्री
ओडिशा की सांस्कृतिक समृद्धि, वास्तुकला और विज्ञान हमेशा से ही विशेष रहे हैं, हमें इस स्थान की हर पहचान को दुनिया तक पहुंचाने के लिए लगातार अभिनव कदम उठाने होंगे: प्रधानमंत्री
हम ओडिशा के विकास के लिए हर क्षेत्र में तेजी से काम कर रहे हैं, यहां बंदरगाह आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं: प्रधानमंत्री
ओडिशा भारत में खनन और धातु का प्रमुख केंद्र है, जो इस्पात, एल्युमीनियम और ऊर्जा क्षेत्रों में इसकी स्थिति को बहुत मजबूत बनाता है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार ओडिशा में कारोबार करने में आसानी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है: प्रधानमंत्री
आज ओडिशा का अपना स्वयं का विजन और रोडमैप है, अब निवेश को प्रोत्साहित किया जाएगा और रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में ‘ओडिशा पर्व 2024’ समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कार्यक्रम में आये ओडिशा के सभी भाई-बहनों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस वर्ष स्वभाव कवि गंगाधर मेहर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष है। प्रधानमंत्री ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने इस अवसर पर भक्त दासिया भौरी, भक्त सालबेगा और उड़िया भागवत के लेखक श्री जगन्नाथ दास को भी श्रद्धांजलि अर्पित की।

श्री मोदी ने कहा, “ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की भूमि रही है।” उन्होंने कहा कि संतों और विद्वानों ने सरल महाभारत, उड़िया भागवत जैसे महान साहित्य को आम लोगों तक पहुंचाकर सांस्कृतिक समृद्धि को पोषित करने में महान भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ से संबंधित व्यापक साहित्य मौजूद है। महाप्रभु जगन्नाथ की एक गाथा को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान जगन्नाथ ने युद्ध का नेतृत्व सबसे आगे रहकर किया था और भगवान की सादगी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने युद्ध के मैदान में प्रवेश करते समय मणिका गौदिनी नामक एक भक्त के हाथों से दही खाया था। उन्होंने कहा कि उपरोक्त गाथा से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, श्री मोदी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि अगर हम अच्छे इरादे से काम करते हैं, तो भगवान स्वयं उस काम का नेतृत्व करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भगवान हमेशा हमारे साथ हैं और हमें कभी भी यह महसूस नहीं करना चाहिए कि हम किसी भी विकट परिस्थिति में अकेले रह गए हैं।

ओडिशा के कवि भीम भोई की एक पंक्ति 'चाहे कितना भी दर्द क्यों न सहना पड़े, दुनिया को अवश्य बचाया जाना चाहिए' को दोहराते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह ओडिशा की संस्कृति रही है। श्री मोदी ने कहा कि पुरी धाम ने 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना को मजबूत किया। उन्होंने कहा कि ओडिशा के वीर सपूतों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर देश को दिशा दिखाई। उन्होंने कहा कि हम पाइका क्रांति के शहीदों का कर्ज कभी नहीं चुका सकते। श्री मोदी ने कहा कि यह सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला।

इस बात को दोहराते हुए कि पूरा देश इस समय उत्कल केसरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को याद कर रहा है, श्री मोदी ने कहा कि सरकार उनकी 125वीं जयंती बड़े पैमाने पर मना रही है। प्रधानमंत्री ने अतीत से लेकर अब तक ओडिशा द्वारा देश को दिए गए कुशल नेतृत्व का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मु जी भारत की राष्ट्रपति हैं और यह हम सभी के लिए बहुत गर्व की बात है। उन्होंने आगे कहा कि उनकी प्रेरणा से ही आज भारत में जनजाति कल्याण के लिए हजारों करोड़ रुपये की योजनाएं लागू की जा रही हैं और इन योजनाओं का लाभ न केवल ओडिशा, बल्कि पूरे भारत के जनजाति समाज को मिल रहा है।

ओडिशा को नारी शक्ति की भूमि बताते हुए और माता सुभद्रा के रूप में इसकी शक्ति का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही मुझे ओडिशा की मेरी माताओं और बहनों के लिए सुभद्रा योजना शुरू करने का सौभाग्य मिला, जिसका लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा।

श्री मोदी ने भारत की समुद्री शक्ति को नया आयाम देने में ओडिशा के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कल ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ, जिसे कार्तिक पूर्णिमा के दिन कटक में महानदी के तट पर भव्य तरीके से आयोजित किया गया था। इसके अलावा, श्री मोदी ने कहा कि बाली जात्रा भारत की समुद्री शक्ति का प्रतीक है। अतीत के नाविकों के साहस की सराहना करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि वे आज के आधुनिक तकनीक के अभाव के बावजूद, समुद्र पार करने में पर्याप्त साहस रखते थे। उन्होंने कहा कि व्यापारी इंडोनेशिया में बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानों पर जहाजों से यात्रा करते थे, जिससे व्यापार को बढ़ावा देने और विभिन्न स्थानों तक संस्कृति की पहुंच को बढ़ाने में मदद मिली। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि आज विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने में ओडिशा की समुद्री ताकत की महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ओडिशा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए 10 वर्षों के निरंतर प्रयासों के बाद आज ओडिशा के लिए एक नए भविष्य की उम्मीद जगी है। ओडिशा के लोगों को उनके अभूतपूर्व आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देते हुए श्री मोदी ने कहा कि इससे इस उम्मीद को नया साहस मिला है। सरकार के बड़े सपने हैं और सरकार ने बड़े लक्ष्य निर्धारित किए हैं। उन्होंने कहा कि ओडिशा 2036 में राज्य का शताब्दी वर्ष मनाएगा, उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास ओडिशा को देश के मजबूत, समृद्ध और तेजी से बढ़ते राज्यों में से एक बनाना है।

इस बात का उल्लेख करते हुए कि एक समय था, जब ओडिशा जैसे राज्यों सहित भारत के पूर्वी हिस्से को पिछड़ा माना जाता था, श्री मोदी ने कहा कि वे भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का इंजन मानते हैं। इसलिए, सरकार ने पूर्वी भारत के विकास को प्राथमिकता दी है और आज पूरे पूर्वी भारत में परिवहन-संपर्क, स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़े सभी कामों में तेजी लाई गई है। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आज ओडिशा को केंद्र सरकार द्वारा 10 साल पहले दिए जाने वाले बजट से तीन गुना अधिक बजट मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक बजट दिया गया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार ओडिशा के समग्र विकास के लिए हर क्षेत्र में तेज गति से काम कर रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "ओडिशा में बंदरगाह आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं।" इसलिए, धामरा, गोपालपुर, अस्तरंगा, पलुर और सुवर्णरेखा में बंदरगाहों का विकास करके व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा को भारत का खनन और धातु का केंद्र बताते हुए श्री मोदी ने कहा कि इसने इस्पात, एल्युमीनियम और ऊर्जा क्षेत्रों में ओडिशा की स्थिति मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके ओडिशा में समृद्धि के नए द्वार खोले जा सकते हैं।

ओडिशा में काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होने का उल्लेख करते हुए श्री मोदी ने कहा कि सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि ये उत्पाद बड़े बाजारों तक पहुंचें और इससे किसानों को लाभ मिले। उन्होंने कहा कि ओडिशा के समुद्री खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में विस्तार की भी काफी संभावनाएं हैं और सरकार का प्रयास ओडिशा समुद्री खाद्य को एक ऐसा ब्रांड बनाना है, जिसकी वैश्विक बाजार में पर्याप्त मांग हो।

इस बात पर जोर देते हुए कि सरकार का प्रयास ओडिशा को निवेशकों के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बनाना है, प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ओडिशा में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ावा दिया जा रहा है। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ओडिशा में नई सरकार बनते ही पहले 100 दिनों के भीतर 45 हजार करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी गई। उन्होंने कहा कि आज ओडिशा के पास अपना विजन और रोडमैप है, जो निवेश को बढ़ावा देगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।

श्री मोदी ने उल्लेख किया कि ओडिशा की क्षमता का सही दिशा में उपयोग करके इसे विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाया जा सकता है। इस बात पर जोर देते हुए कि ओडिशा अपनी रणनीतिक स्थिति से लाभ उठा सकता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि वहां से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचना आसान है। श्री मोदी ने कहा, "ओडिशा पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था" और आने वाले समय में वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में ओडिशा का महत्व और बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि सरकार राज्य से निर्यात बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ओडिशा में शहरीकरण को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार बड़ी संख्या में गतिशील और अच्छी तरह से आपस में जुड़े शहरों के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार ओडिशा के दूसरे स्तर की शहरों के लिए भी नई संभावनाएं पैदा कर रही है, खासकर पश्चिमी ओडिशा के जिलों में, जहां नयी अवसंरचना के विकास से नए अवसरों का सृजन हो सकता है।

उच्च शिक्षा क्षेत्र का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने कहा कि ओडिशा देश भर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है और यहां कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थान हैं, जिन्होंने राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने कहा कि ये प्रयास राज्य में स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा दे रहे हैं।

ओडिशा हमेशा से अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण विशिष्ट रहा है, इस बात पर प्रकाश डालते हुए श्री मोदी ने कहा कि ओडिशा के कला-रूप, चाहे वह ओडिसी नृत्य हो या ओडिशा की पेंटिंग हो या पट्टचित्रों में दिखाई देने वाली जीवंतता हो या आदिवासी कला का प्रतीक सौरा पेंटिंग हो, सभी को आकर्षित करते हैं। उन्होंने कहा कि ओडिशा में संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाड़ बुनकरों की शिल्पकला देखने को मिलती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम जितना अधिक कला और शिल्पकला का प्रसार और संरक्षण करेंगे, उतना ही ओडिया लोगों के प्रति सम्मान बढ़ेगा।

ओडिशा की वास्तुकला और विज्ञान की समृद्ध विरासत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कोणार्क के सूर्य मंदिर, लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे प्राचीन मंदिरों के विज्ञान, वास्तुकला और विशालता ने अपनी उत्कृष्टता और शिल्प कौशल से सभी को चकित कर दिया है।

ओडिशा को पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं वाला प्रदेश बताते हुए श्री मोदी ने कहा कि इन संभावनाओं को जमीन पर उतारने के लिए कई आयामों पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी एक ऐसी सरकार है, जो ओडिशा की विरासत और उसकी पहचान का सम्मान करती है। पिछले साल जी-20 के एक सम्मेलन के ओडिशा में आयोजित होने का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने कहा कि सरकार ने कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने सूर्य मंदिर की भव्य झांकी पेश की। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार और मंदिर का रत्न भंडार खोल दिया गया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ओडिशा की हर पहचान के बारे में दुनिया को बताने के लिए और अधिक अभिनव कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बाली जात्रा को और अधिक लोकप्रिय बनाने तथा अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे बढ़ावा देने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित किया जा सकता है तथा इसे मनाया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि ओडिसी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिसी दिवस मनाने के साथ-साथ विभिन्न आदिवासी विरासतों के उत्सव के लिए दिवस मनाने पर भी विचार किया जा सकता है। श्री मोदी ने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, जिससे लोगों में पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसरों के बारे में जागरूकता पैदा होगी। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है, जो ओडिशा के लिए एक बड़ा अवसर सिद्ध होगा।

दुनिया भर में लोगों द्वारा अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भूलने की बढ़ती प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए, श्री मोदी ने प्रसन्नता व्यक्त की कि उड़िया समुदाय, चाहे वह कहीं भी रहता हो, हमेशा अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और अपने त्योहारों के प्रति बहुत उत्साही रहा है। उन्होंने कहा कि गुयाना की उनकी हाल की यात्रा ने इस बात की पुष्टि की है कि मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे लोगों को उनकी मातृभूमि से जोड़े रखती है। उन्होंने कहा कि लगभग दो सौ साल पहले, सैकड़ों मजदूर भारत से चले गए, लेकिन वे अपने साथ रामचरित मानस ले गए और आज भी वे भारत की धरती से जुड़े हुए हैं। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि विकास और परिवर्तन होने पर भी, अपनी विरासत के संरक्षण का लाभ सभी तक पहुँच सकता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह, ओडिशा को भी नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि आज के आधुनिक युग में, अपनी जड़ों को मजबूत करते हुए आधुनिक परिवर्तनों को आत्मसात करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ओडिशा महोत्सव जैसे कार्यक्रम इसके लिए एक माध्यम बन सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि ओडिशा पर्व जैसे कार्यक्रमों को आने वाले वर्षों में और भी अधिक विस्तारित किया जाना चाहिए और इसे केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रखना चाहिए। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि इस उत्सव में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए तथा स्कूलों और कॉलेजों की भागीदारी भी बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने दिल्ली में अन्य राज्यों के लोगों से इसमें भाग लेने और ओडिशा को और करीब से जानने का आग्रह किया।

अपने संबोधन के समापन पर श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि आने वाले समय में इस उत्सव के रंग, जनभागीदारी का एक प्रभावी मंच बनकर ओडिशा के साथ-साथ भारत के कोने-कोने तक पहुंचेंगे।

इस अवसर पर केंद्रीय रेल, सूचना एवं प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव और केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, उड़िया समाज के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे

पृष्ठभूमि

ओडिशा पर्व नई दिल्ली स्थित ट्रस्ट ओडिया समाज द्वारा आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसके माध्यम से वे ओडिया विरासत के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में बहुमूल्य सहयोग प्रदान कर रहे हैं। परंपरा को जारी रखते हुए इस वर्ष ओडिशा पर्व 22 से 24 नवंबर तक आयोजित किया गया। इसमें ओडिशा की समृद्ध विरासत को रंग-बिरंगे सांस्कृतिक रूपों के साथ प्रदर्शित किया गया तथा राज्य के जीवंत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक लोकाचार को प्रदर्शित किया गया। विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख विशेषज्ञों और प्रतिष्ठित पेशेवरों के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी या सम्मेलन भी आयोजित किया गया।

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श्री नारायण गुरु के आदर्श पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ी पूंजी हैं: पीएम मोदी
June 24, 2025
श्री नारायण गुरु के आदर्श पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ी पूंजी हैं: प्रधानमंत्री
भारत को ऐसे असाधारण संतों, ऋषियों और समाज सुधारकों का आशीर्वाद प्राप्त है, जो समाज में परिवर्तनकारी बदलाव लाए: प्रधानमंत्री
श्री नारायण गुरु ने सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त समाज की कल्पना की थी, आज परिपूर्णता का दृष्टिकोण अपनाकर देश भेदभाव की हर संभावना को खत्म करने के लिए काम कर रहा है: प्रधानमंत्री
स्किल इंडिया जैसे मिशन युवाओं को सशक्त बना रहे हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत को सशक्त बनाने के लिए हमें आर्थिक, सामाजिक और सैन्य हर मोर्चे पर आगे बढ़ना होगा। आज देश इसी राह पर आगे बढ़ रहा है: प्रधानमंत्री

ब्रह्मर्षि स्वामी सच्चिदानंद जी, श्रीमठ स्वामी शुभंगा-नंदा जी, स्वामी शारदानंद जी, सभी पूज्य संतगण, सरकार में मेरे साथी श्री जॉर्ज कुरियन जी, संसद के मेरे साथी श्री अडूर प्रकाश जी, अन्य सभी वरिष्ठ महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

पिन्ने एनडे ऐल्ला, प्रियपेट्ट मलयाली सहोदिरि सहोदरन मार्कु, एनडे विनीतमाय नमस्कारम्।

आज ये परिसर देश के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना को याद करने का साक्षी बन रहा है। एक ऐसी ऐतिहासिक घटना, जिसने न केवल हमारे स्वतन्त्रता आंदोलन को नई दिशा दी, बल्कि स्वतन्त्रता के उद्देश्य को, आज़ाद भारत के सपने को ठोस मायने दिये। 100 साल पहले श्रीनारायण गुरु और महात्मा गांधी की वो मुलाकात, आज भी उतनी ही प्रेरक है, उतनी ही प्रासंगिक है। 100 साल पहले हुई वो मुलाकात, सामाजिक समरसता के लिए, विकसित भारत के सामूहिक लक्ष्यों के लिए, आज भी ऊर्जा के बड़े स्रोत की तरह है। इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं श्रीनारायण गुरु के चरणों में प्रणाम करता हूं। मैं गांधी जी को भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

भाइयों बहनों,

श्रीनारायण गुरु के आदर्श पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ी पूंजी हैं। जो लोग देश और समाज की सेवा के संकल्प पर काम करते हैं, श्रीनारायण गुरु उनके लिए प्रकाश स्तंभ की तरह हैं। आप सभी जानते हैं कि समाज के शोषित-पीड़ित-वंचित वर्ग से मेरा किस तरह का नाता है। और इसलिए आज भी मैं जब समाज के शोषित, वंचित वर्ग के लिए बड़े निर्णय लेता हूँ, तो मैं गुरुदेव को जरूर याद करता हूँ। 100 साल पहले के वो सामाजिक हालात, सदियों की गुलामी के कारण आईं विकृतियाँ, लोग उस दौर में उन बुराइयों के खिलाफ बोलने से डरते थे। लेकिन, श्रीनारायण गुरु ने विरोध की परवाह नहीं की, वो कठिनाइयों से नहीं डरे, क्योंकि उनका विश्वास समरसता और समानता में था। उनका विश्वास सत्य, सेवा और सौहार्द में था। यही प्रेरणा हमें ‘सबका साथ, सबका विकास’ का रास्ता दिखाती है। यही विश्वास हमें उस भारत के निर्माण के लिए ताकत देता है, जहां अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति हमारी

पहली प्राथमिकता है।

साथियों,

शिवगिरी मठ से जुड़े लोग और संतजन भी जानते हैं कि श्रीनारायण गुरु में और शिवगिरी मठ में मेरी कितनी अगाध आस्था रही है। मैं भाषा तो नहीं समझ पा रहा था, लेकिन पूज्य सच्चिदानंद जी जो बातें बता रहे थे, वो पुरानी सारी बातें याद कर रहे थे। और मैं भी देख रहा था कि उन सब बातों पर आप बड़े भाव विभोर होकर के उसके साथ जुड़ जाते थे। और मेरा सौभाग्य है कि मठ के पूज्य संतों ने हमेशा मुझे अपना स्नेह दिया है। मुझे याद है, 2013 में, तब तो मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था, जब केदारनाथ में प्राकृतिक आपदा आई थी, तब शिवगिरी मठ के कई पूज्य संत वहाँ फंस गए थे, कुछ भक्त जन भी फंस गए थे। शिवगिरी मठ ने वहाँ फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत सरकार का संपर्क नहीं किया था, प्रकाश जी बुरा मत मानना, शिवगिरी मठ ने मैं एक राज्य का मुख्यमंत्री था, मुझे आदेश दिया और इस सेवक पर भरोसा किया, कि भई ये काम तुम करो। और ईश्चर की कृपा से सभी संत सभी भक्तजन को सुरक्षित मैं ला पाया था।

साथियों,

वैसे भी मुश्किल समय में हमारा सबसे पहला ध्यान उसकी ओर जाता है, जिसे हम अपना मानते हैं, जिस पर हम अपना अधिकार समझते हैं। और मुझे खुशी है कि आप अपना अधिकार मुझ पर समझते हैं। शिवगिरी मठ के संतों के इस अपनेपन से ज्यादा आत्मिक सुख की बात मेरे लिए और क्या होगी?

साथियों,

मेरा आप सबसे एक रिश्ता काशी का भी है। वर्कला को सदियों से दक्षिण की काशी भी कहा जाता है। और काशी चाहे उत्तर की हो या दक्षिण की, मेरे लिए हर काशी मेरी काशी ही है।

साथियों,

मुझे भारत की आध्यात्मिक परंपरा, ऋषियों-मुनियों की विरासत, उसे करीब से जानने और जीने का सौभाग्य मिला है। भारत की ये विशेषता है कि हमारा देश जब भी मुश्किलों के भंवर में फँसता है, कोई न कोई महान विभूति देश के किसी कोने में जन्म लेकर समाज को नई दिशा दिखाती है। कोई समाज के आध्यात्मिक उत्थान के लिए काम करता है। कोई सामाजिक क्षेत्र में समाज सुधारों को गति देता है। श्रीनारायण गुरु ऐसे ही महान संत थे। निवृत्ति पंचकम्’ और ‘आत्मोपदेश शतकम्’ जैसी उनकी रचनाएँ, ये अद्वैत और आध्यात्म के किसी भी स्टूडेंट के लिए गाइड की तरह हैं।

साथियों,

योग और वेदान्त, साधना और मुक्ति श्रीनारायण गुरु के मुख्य विषय थे। लेकिन, वो जानते थे कि कुरीतियों में फंसे समाज का आध्यात्मिक उत्थान उसके सामाजिक उत्थान से ही संभव होगा। इसलिए उन्होंने आध्यात्म को समाज-सुधार और समाज-कल्याण का एक माध्यम बनाया। और श्रीनारायण गुरु के ऐसे प्रयासों से गांधी जी ने भी प्रेरणा पाई, उनसे मार्गदर्शन लिया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे विद्वानों को भी श्रीनारायण गुरु से चर्चा का लाभ मिला।

साथियों,

एक बार किसी ने श्रीनारायण गुरु की आत्मोपदेश शतकम् रमण महर्षि जी को सुनाई थी। उसे सुनकर रमण महर्षि जी ने कहा था- "अवर एल्लाम तेरीन्जवर"। यानी- वो सब कुछ जानते हैं! और उस दौर में, जब विदेशी विचारों के प्रभाव में भारत की सभ्यता, संस्कृति और दर्शन को नीचा दिखाने के षड्यंत्र हो रहे थे, श्रीनारायण गुरु ने हमें ये अहसास कराया कि कमी हमारी मूल परंपरा में नहीं है। हमें अपने आध्यात्म को सही अर्थों में आत्मसात करने की जरूरत है। हम नर में श्रीनारायण को, जीव में शिव को देखने वाले लोग हैं। हम द्वैत में अद्वैत को देखते हैं। हम भेद में भी अभेद देखते हैं। हम विविधता में भी एकता देखते हैं।

साथियों,

आप सभी जानते हैं, श्रीनारायण गुरु का मंत्र था- “ओरु जाति, ओरु मतम्, ओरु दैवम्, मनुष्यनु।” यानी, पूरी मानवता की एकता, जीव मात्र की एकता! ये विचार भारत की जीवन संस्कृति का मूल है, उसका आधार है। आज भारत उस विचार को विश्व कल्याण की भावना से विस्तार दे रहा है। आप देखिए, अभी हाल ही में हमने विश्व योग दिवस मनाया। इस बार योग दिवस की थीम थी- Yoga for

One Earth, One Health. यानी, एक धरती, एक स्वास्थ्य! इसके पहले भी भारत ने विश्व कल्याण के लिए One World, One Health जैसा initiative शुरू किया है। आज भारत sustainable development की दिशा में One Sun, One Earth, One grid जैसे ग्लोबल मूवमेंट को भी लीड कर रहा है। आपको याद होगा, 2023 में भारत ने जब G-20 समिट को होस्ट किया था, हमने उसकी भी थीम रखी थी- "One Earth, One Family, One Future". हमारे इन प्रयासों में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना जुड़ी हुई है। श्रीनारायण गुरु जैसे संतों की प्रेरणा जुड़ी हुई है।

साथियों,

श्रीनारायण गुरु ने एक ऐसे समाज की परिकल्पना की थी- जो भेदभाव से मुक्त हो! मुझे संतोष है कि आज देश सैचुरेशन अप्रोच पर चलते हुए भेदभाव की हर गुंजाइश को खत्म कर रहा है। लेकिन आप 10-11 साल पहले के हालात को याद करिए, आज़ादी के इतने दशक बाद भी करोड़ों देशवासी कैसा जीवन जीने को मजबूर थे? करोड़ों परिवारों के सिर पर छत तक नहीं थी! लाखों गांवों में पीने का साफ पानी नहीं था, छोटी-छोटी बीमारी में भी इलाज कराने का विकल्प नहीं, गंभीर बीमारी हो जाए, तो जीवन बचाने का कोई रास्ता नहीं, करोड़ों गरीब, दलित, आदिवासी, महिलाएं मूलभूत मानवीय गरिमा से वंचित थे! और, ये करोड़ों लोग, इतनी पीढ़ियों से इन कठिनाइयों में जीते चले आ रहे थे, कि उनके मन में बेहतर जिंदगी की उम्मीद तक मर चुकी थी। जब देश की इतनी बड़ी आबादी ऐसी पीड़ा और निराशा में थी, तब देश कैसे प्रगति कर सकता था? और इसलिए, हमने सबसे पहले संवेदनशीलता को सरकार की सोच में ढाला! हमने सेवा को संकल्प बनाया! इसी का परिणाम है कि, हम पीएम आवास योजना के तहत, करोड़ों गरीब-दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित परिवारों को पक्के घर दे पाये हैं। हमारा लक्ष्य हर गरीब को उसका पक्का घर देने का है। और, ये घर केवल ईंट सीमेंट का ढांचा नहीं होता, उसमें घर की संकल्पना साकार होती है, तमाम जरूरी सुविधाएं होती हैं। हम चार दीवारों वाली ईमारत नहीं देते, हम सपनों को संकल्प में बदलने वाला घर देते हैं।

इसीलिए, पीएम आवास योजना के घरों में गैस, बिजली, शौचालय जैसी हर सुविधा सुनिश्चित की जा रही है। जलजीवन मिशन के तहत हर घर तक पानी पहुंचाया जा रहा है। ऐसे आदिवासी इलाकों में, जहां कभी सरकार पहुंची ही नहीं, आज वहाँ विकास की गारंटी पहुँच रही है। आदिवासियों में, उसमें भी जो अतिपिछड़े आदिवासी हैं, हमने उनके लिए पीएम जनमन योजना शुरू की है। उससे आज कितने ही इलाकों की तस्वीर बदल रही है। इसका परिणाम ये है कि, समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति में भी नई उम्मीद जगी है। वो न केवल अपना जीवन बदल रहा है, बल्कि वो राष्ट्रनिर्माण में भी अपनी मजबूत भूमिका देख रहा है।

साथियों,

श्रीनारायण गुरु ने हमेशा महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया था। हमारी सरकार भी Women Led Development के मंत्र के साथ आगे बढ़ रही है। हमारे देश में आज़ादी के इतने साल बाद भी ऐसे कई क्षेत्र थे, जिनमें महिलाओं की एंट्री ही बैन थी। हमने इन प्रतिबंधों को हटाया, नए-नए क्षेत्रों में महिलाओं को अधिकार मिले, आज स्पोर्ट्स से लेकर स्पेस तक हर फील्ड में बेटियाँ देश का नाम रोशन कर रही हैं। आज समाज का हर वर्ग, हर तबका, एक आत्मविश्वास के साथ विकसित भारत के सपने को, उसमें अपना योगदान कर रहा है। स्वच्छ भारत मिशन, पर्यावरण से जुड़े अभियान, अमृतसरोवर का निर्माण, मिलेट्स को लेकर जागरूकता जैसे अभियान, हम जनभागीदारी की भावना से आगे बढ़ रहे हैं, 140 करोड़ देशवासियों की ताकत से आगे बढ़ रहे हैं।

साथियों,

श्रीनारायण गुरु कहते थे- विद्या कोंड प्रब्बुद्धर आवुका संगठना कोंड शक्तर आवुका, प्रयत्नम कोंड संपन्नार आवुका"। यानि, “Enlightenment through education, Strength through organization, Prosperity through industry.” उन्होंने खुद भी इस विज़न को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण संस्थाओं की नींव रखी थी। शिवगिरी में ही गुरुजी ने शारदा मठ की स्थापना की थी। माँ सरस्वती को समर्पित ये मठ, इसका संदेश है कि शिक्षा ही वंचितों के लिए उत्थान और मुक्ति का माध्यम बनेगी। मुझे खुशी है कि गुरुदेव के उन प्रयासों का आज भी लगातार विस्तार हो रहा है। देश के कितने ही शहरों में गुरुदेव सेंटर्स और श्रीनारायण कल्चरल मिशन मानव हित में काम कर रहे हैं।

साथियों,

शिक्षा, संगठन और औद्योगिक प्रगति से समाज कल्याण के इस विज़न की स्पष्ट छाप, आज हम देश की नीतियों और निर्णयों में भी देख सकते हैं। हमने इतने दशक बाद देश में नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी लागू की है। नई एजुकेशन पॉलिसी न केवल शिक्षा को आधुनिक और समावेशी बनाती है, बल्कि मातृभाषा में पढ़ाई को भी बढ़ावा देती है। इसका सबसे बड़ा लाभ पिछड़े और वंचित तबके को ही हो रहा है।

साथियों,

हमने पिछले एक दशक में देश में इतनी बड़ी संख्या में नई IIT, IIM, AIIMS जैसे संस्थान खोले हैं, जितने आज़ादी के बाद 60 वर्षों में नहीं खुले थे। इसके कारण आज उच्च शिक्षा में गरीब और वंचित युवाओं के लिए नए अवसर खुले हैं। बीते 10 साल में आदिवासी इलाकों में 400 से ज्यादा एकलव्य आवासीय स्कूल खोले गए हैं। जो जनजातीय समाज कई पीढ़ियों से शिक्षा से वंचित थे, उनके बच्चे अब आगे बढ़ रहे हैं।

भाइयों बहनों,

हमने शिक्षा को सीधे स्किल और अवसरों से जोड़ा है। स्किल इंडिया जैसे मिशन देश के युवाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। देश की औद्योगिक प्रगति, प्राइवेट सेक्टर में हो रहे बड़े reforms, मुद्रा योजना, स्टैंडअप योजना, इन सबका भी सबसे बड़ा लाभ दलित, पिछड़ा और आदिवासी समाज को हो रहा है।

साथियों,

श्री नारायण गुरु एक सशक्त भारत चाहते थे। भारत के सशक्तिकरण के लिए हमें आर्थिक, सामाजिक और सैन्य, हर पहलू में आगे रहना है। आज देश इसी रास्ते पर चल रहा है। भारत तेज़ी से दुनिया की

तीसरे नंबर की इकॉनॉमी बनने की तरफ बढ़ रहा है। हाल में दुनिया ने ये भी देखा है कि भारत का सामर्थ्य क्या है। ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की कठोर नीति को दुनिया के सामने एकदम स्पष्ट कर दिया है। हमने दिखा दिया है कि भारतीयों का खून बहाने वाले आतंकियों के लिए कोई भी ठिकाना सुरक्षित नहीं है।

साथियों,

आज का भारत देशहित में जो भी हो सकता है और जो भी सही है, उसके हिसाब से कदम उठाता है। आज सैन्य ज़रूरतों के लिए भी भारत की विदेशों पर निर्भरता लगातार कम हो रही है। हम डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर हो रहे हैं। और इसका प्रभाव हमने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी देखा है। हमारी सेनाओं ने भारत में बने हथियारों से दुश्मन को 22 मिनट में घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। मुझे विश्वास है, आने वाले समय में मेड इन इंडिया हथियारों का डंका पूरी दुनिया में बजेगा।

साथियों,

देश के संकल्पों को पूरा करने के लिए हमें श्रीनारायण गुरु की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाना है। हमारी सरकार भी इस दिशा में सक्रियता के साथ काम कर रही है। हम शिवगिरी सर्किट का निर्माण करके श्रीनारायण गुरु के जीवन से जुड़े तीर्थ स्थानों को जोड़ रहे हैं। मुझे विश्वास है, उनके आशीर्वाद, उनकी शिक्षाएँ अमृतकाल की हमारी यात्रा में देश को रास्ता दिखाती रहेंगी। हम सब एक साथ मिलकर

विकसित भारत के सपने को पूरा करेंगे। श्रीनारायण गुरू का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, इसी कामना के साथ, मैं शिवगिरी मठ के सभी संतों को फिर से नमन करता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद! नमस्कारम्!