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बांग्लादेश भवन भारत और बांग्लादेश के बीच सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है: प्रधानमंत्री मोदी
गुरुदेव टैगोर भारत और बांग्लादेश के बीच एक महत्तवपूर्ण कड़ी: पीएम मोदी
गुरुदेव टैगोर का विश्वव्यापी मानवतावाद के मूलमंत्र में केंद्र सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मार्गदर्शक सिद्धांत की झलक मिलती है:प्रधानमंत्री

मित्र राष्ट्र बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जी, सम्माननीय अतिथिगण, मुखयमंत्री जी, गवर्नर साहब, साथियों।

'बांग्लादेश भवन' भारत और बांग्लादेश के सांस्कृतिक बंधुत्व का प्रतीक है। यह भवन दोनों देशों के करोड़ों लोगों के बीच कला, भाषा, संस्कृति, शिक्षा, पारिवारिक रिश्तों और अत्याचार के खिलाफ साझा संघर्षों से मजबूत हुए रिश्तों का भी प्रतीक है। इस भवन के निर्माण के लिए मैं शेख हसीना जी का और बांग्लादेश की जनता का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं।

गुरुदेव टैगोर, जो भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के राष्ट्रीय गान के रचयिता हैं, उनकी कर्मभूमि पर, रमज़ान के पावन महीने में, इस भवन का उद्घाटन बहुत खुशी का अवसर है।

साथियों, इस विश्वविद्यालय व इस पवित्र भूमि का इतिहास बांग्लादेश की आज़ादी, भारत की आज़ादी, और उपनिवेशकाल में बंगाल के विभाजन से भी पुराना है। यह हमारी उस साझा विरासत का प्रतीक है जिसे न तो अंग्रेज बांट पाए और ना ही विभाजन की राजनीति। इस साझा विरासत के गंगासागर की अनगिनत लहरें दोनों देशों के तटों को समान रुप से स्पर्श करती हैं। हमारी समानताएं हमारे सम्बन्धों के मजबूत सूत्र हैं।

बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को जितना सम्मान बांग्लादेश में मिलता है उतना ही हिंदुस्तान की धरती पर भी मिलता है। स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के लिए जो भावना भारत में है, ठीक वैसी ही बांग्लादेश में भी देखने को मिलती है।

विश्व कवि टैगोर की कविताएं और गीत बांग्लादेश के गांव-गांव में गूंजते हैं, तो काज़ी नज़रूल इस्लाम जी की रचनाएं यहां पश्चिम बंगाल के गली-कूचों में भी सुनने को मिलती है ।

बांग्लादेश की कई गणमान्य विभूतियों के नाम इस विश्वविद्यालय से जुड़े हुए हैं। इनमें रिजवाना चौधरी बन्न्या, अदिति मोहसिन, लिली इस्लाम, लीना तपोशी, शर्मीला बनर्जी, और निस्सार हुसैन जैसी हस्तियाँ शामिल हैं ।

गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की दूरदृष्टी का परिणाम यह संस्था हमारी राजनीतिक सीमाओं और बंधनों से परे है। गुरुदेव स्वयं एक स्वतन्त्र विचार के व्यक्ति थे, जिन्हें किन्ही सीमाओं के बंधनों ने नहीं बांधा । वे जितने भारत के हैं, उतने ही बांग्लादेश के भी हैं। गगन हरकारा और लालन फ़क़ीर के बंगाली लोक संगीत से उनका परिचय बांग्लादेश की धरती पर ही हुआ था। अमार शोनार बांग्ला की धुन के लिए उन्हें गगन हरकारा से प्रेरणा मिली थी। बौल संगीत का प्रभाव रविन्द्र संगीत में साफ़ सुनाई देता है।

खुद बंगबंधु भी गुरुदेव के विचारों और उनकी कला के बहुत बड़े प्रशंसक थे। यह टैगोर के Universal Humanism का ही विचार था जिसने बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को प्रभावित किया था। गुरुदेव का ‘शोनार बांग्ला’ बंगबंधु के मंत्रमुग्ध कर देने वाले भाषणों का एक अहम हिस्सा था। टैगोर के Universal Humanism का विचार ही हमारे लिए भी प्रेरणा है। हमने अपने शब्दों में उसे 'सबका साथ, सबका विकास' के मूलमंत्र में परिलक्षित किया है।

साथियों, आने वाली पीढ़ियाँ, वे चाहे बांग्लादेश की हों या फिर भारत की, वे इन समृद्ध परंपराओं, इन महान आत्माओं के बारे में जानें और समझें, इसके लिए हम सबको प्रयास करते रहना होगा। हमारी सरकार के सभी सम्बन्धित अंग, जैसे भारत का उच्चायोग तथा अन्य संगठन और व्यक्ति, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद इस काम में लगे हुए हैं।

आज जैसे यहां पर 'बांग्लादेश भवन' का लोकार्पण किया गया है, वैसे ही बांग्लादेश के कुश्तिया जिले में गुरुदेव टैगोर के निवास “कुठीबाड़ी” के renovation का जिम्मा हमने उठाया है।

साथियों,इस साझा विरासत और रबीन्द्र संगीत की मधुरता ने हमारे संबंधों को अमृत से सींचा है और हमें सुख-दुःख के एक सूत्र में पिरोया है। यही कारण है कि बांग्लादेश की मुक्ति के लिए संघर्ष भले ही सीमा के उस पार हुआ हो, लेकिन प्रेरणा के बीज इसी धरती पर पड़े हैं। अत्याचारी सत्ता ने अपने स्वार्थ के लिए घाव भले ही बांग्लादेश के लोगों को दिए हों, लेकिन पीड़ा इस तरफ महसूस की गई। यही कारण है कि जब बंगबंधु ने मुक्ति का बिगुल बजाया तो करोड़ों भारतीयों की भावना भी उस मुहिम के साथ स्वत: जुड़ गई। अत्याचार और आतंक के खिलाफ हमारे साझा संकल्प और उसका इतिहास इस भवन के जरिए भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

साथियों, मुझे याद है कि पिछले वर्ष उस समय कितना भावुक वातावरण बन गया था जब दिल्ली में भारतीय सैनिकों को बांग्लादेश ने सम्मानित किया था। ये उन 1661 भारतीय सैनिकों का सम्मान ही नहीं था जिन्होंने बांग्लादेश की आजादी के लिए बलिदान दिया था, बल्कि ये उन करोड़ों भावनाओं का भी सम्मान था जो इस पूरे संघर्ष में बांग्लादेश के एक-एक मुक्ति योद्धाओं के साथ जुडी हुई थी। ऐसा बहुत कम होता है जब पड़ोसी देश एक दूसरे के सैनिकों को इस प्रकार का सम्मान देते हैं।

साथियों, पिछले कुछ वर्षों से भारत और बांग्लादेश के संबंधों का शोनाली अध्याय लिखा जा रहा है। Land boundary व समुद्री सीमाओं जैसे जटिल द्विपक्षीय विषय, जिन्हें सुलझाना किसी समय लगभग असंभव माना जाता था, वे अब सुलझ चुके हैं। चाहे सड़क हो, रेल हो या अंतर्देशीय जलमार्ग हों, या फ़िर coastal shipping, हम connectivity के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। 1965 से बंद पड़ी connectivity की राहें एक बार फ़िर खोली जा रही हैं, और connectivity के नए आयाम भी विकसित हो रहे हैं।

पिछले साल ही कोलकाता से खुलना के बीच air conditioned train service शुरु की गई। इसको हमने बंधन का नाम दिया है, यानि मैत्री। और बंधन के रास्ते पर हम अपने रिश्तों को आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत से बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति निरंतर हो रही है। अभी यह 600 मेगावाट है। इस साल इसको बढ़ाकर 1100 मेगावाट करने का लक्ष्य है।

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में internet का एक connection बांग्लादेश से भी आ रहा है। बांग्लादेश के विकास के लिए जो प्राथमिकताएं प्रधानमंत्री शेख हसीना जी ने चुनी हैं, उनमें सहयोग के लिए भारत ने 8 billion dollars की lines of credit का प्रावधान किया है। इनके क्रियान्वयन में अच्छी प्रगति है, projects की पहचान हो चुकी है और कुछ के लिए तो credit भी दे दिया गया है।

बांग्लादेश Space Technology में भी आगे बढ़ रहा है। हाल में ही बांग्लादेश ने अपना पहला Satellite, बंगबंधु, launch किया है। इसके लिए भी प्रधानमंत्री जी और बांग्लादेश की जनता को बहुत-बहुत बधाई। आज भारत में हम Space Technology का इस्तेमाल गरीब का जीवन स्तर ऊपर उठाने और सिस्टम में Transparency लाने के लिए कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि भविष्य में Space Technology के क्षेत्र में भी हम दोनों देशों के बीच सहयोग के नए द्वार खुलेंगे।

मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना जी और हमारे बीच लगातार संपर्क से दोनों देशों के बीच सहयोग को और ऊर्जा मिल रही है। वो पिछले वर्ष भी भारत आईं थीं और इस कार्यक्रम में भी उनकी स्वयं की उपस्थिति, इस कार्यक्रम की गरिमा और बढ़ा रही है।

साथियों, हमारी आशांएं और आकांक्षाएं जितनी समान हैं उतनी ही हमारी चुनौतियां भीं हैं। जलवायु परिवर्तन का संकट हमारे सामने है। लेकिन अगर दहकता हुआ सूरज हमारे लिए चुनौतियां लाने वाला है, वहीं अवसर भी उसी की रोशनी से पैदा होते हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना जी ने 2021 तक बांग्लादेश के लिए Power To All का विजन रखा है। और यहां भारत में हमने अगले साल तक देश के हर घर तक बिजली कनेक्शन पहुंचाने का target रखा है। हम देश के हर गांव तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पहले ही पूरा कर चुके हैं। हमारे संकल्प समान हैं, और उन्हें सिद्ध करने की राह भी एक-सी है।

साथियों, भारत ने International Solar Alliance का Initiative लिया है। दुनिया के कई देश इस Alliance का हिस्सा बन चुके हैं। यह Alliance दुनिया भर में solar power की capacity को explore करेगा और अलग-अलग देशों को funding का एक mechanism भी तैयार करेगा। मुझे प्रसन्नता है कि बांग्लादेश भी Solar Alliance का हिस्सा है। इस वर्ष मार्च में दिल्ली में International Solar Alliance का summit हुआ। हमें बहुत प्रसन्नता हुई कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति उस summit में शामिल हुए। ये दिखाता है कि सीमा के दोनों तरफ चुनौतियों को अवसरों में बदलने के लिए सहयोग की इच्छा कितनी प्रबल है।

पिछले महीने मैं बांग्लादेश के 100 सदस्यीय युवा प्रतिनिधिमंडल से मिला था। मैंने पाया कि उनकी आकांक्षाएं, उनके सपने, भारत के युवाओं की आकांक्षाओं और सपनों जैसी ही हैं। और दोनों देशों के विकास के लिए, हमारे युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए, हम साथ मिल कर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

आज जब प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश विकास की नई राह पर चल पड़ा है। आज जब बांग्लादेश ने developing economy का स्तर प्राप्त करने के सभी मानदंड पूरे कर लिए हैं तो जितना गर्व बांग्लादेश को है, उतना ही गर्व सारे भारत को भी है।

बांग्लादेश ने अपने सोशल सेक्टर में जिस तरह की प्रगति की है, गरीबों का जीवन आसान बनाने का काम किया है, मैं मानता हूँ वो हम भारत के लोगों के लिए भी प्रेरणा दे सकता है, ऐसा अद्भुत काम किया है।

साथियों, आज भारत और बांग्लादेश की विकास यात्रा के सूत्र, एक सुंदर हार की तरह एक दूसरे से गुंथ रहे हैं। दुनिया के कुछ हिस्सों में जिस तरह अनिश्चितता का माहौल बना है, विश्व में स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में एक ध्रुव सत्य हमारे सामने आया है, और वो है, प्रगति और समृद्धि के लिए, शांति और स्थिरता के लिए, सुख और सद्भाव के लिए, भारत और बांग्लादेश की मैत्री और हमारा आपसी सहयोग। इस सहयोग का विकास केवल द्विपक्षीय स्तर पर ही नहीं हुआ है। Bimstec जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए हमारे सहयोग ने क्षेत्रीय प्रगति और कनेक्टिविटी को भी बढ़ावा दिया है।

Friends, इन क्षेत्र की प्रगति में हर देश की प्रगति निहित है। समय के इस कालखंड में ये हम सभी के लिए एक अवसर की तरह आया है। आज भारत और बांग्लादेश, जिस मित्रता के साथ आगे बढ़ रहे हैं, एक दूसरे के विकास में सहयोग कर रहे हैं, वो दूसरों के लिए भी एक सबक है, एक मिसाल है, एक अध्ययन का भी विषय है।

साथियों, प्रधानमंत्री शेख हसीना जी ने बांग्लादेश को 2041 तक विकसित देश बनाने का जो लक्ष्य रखा है वह उनकी दूरदृष्टि और बंगबंधु, उस परम्परा का प्रतीक है, जो की हर बांग्लादेशी के हित की लगातार चिन्ता करती है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत का पूर्ण सहयोग बना रहेगा।

शेख हसीना जी के यहां आने पर, मैं एक बार फिर आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी को बांग्लादेश भवन के उद्घाटन की पुन: बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ। धन्यवाद।

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तमिलनाडु हर युग में भारतीय राष्ट्रवाद का गढ़ रहा है : पीएम मोदी
May 27, 2023
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“Tamil Nadu has been a bastion of Indian nationalism”
“Under the guidance of Adheenam and Raja Ji we found a blessed path from our sacred ancient Tamil Culture - the path of transfer of power through the medium of Sengol”
“In 1947 Thiruvaduthurai Adheenam created a special Sengol. Today, pictures from that era are reminding us about the deep emotional bond between Tamil culture and India's destiny as a modern democracy”
“Sengol of Adheenam was the beginning of freeing India of every symbol of hundreds of years of slavery”
“it was the Sengol which conjoined free India to the era of the nation that existed before slavery”
“The Sengol is getting its deserved place in the temple of democracy”

नअनैवरुक्कुम् वणक्कम्

ऊँ नम: शिवाय, शिवाय नम:!

हर हर महादेव!

सबसे पहले, विभिन्न आदीनम् से जुड़े आप सभी पूज्य संतों का मैं शीश झुकाकर अभिनंदन करता हूं। आज मेरे निवास स्थान पर आपके चरण पड़े हैं, ये मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। ये भगवान शिव की कृपा है जिसकी वजह से मुझे एक साथ आप सभी शिव भक्तों के दर्शन करने का मौका मिला है। मुझे इस बात की भी बहुत खुशी है कि कल नए संसद भवन के लोकार्पण के समय आप सभी वहां साक्षात आकर के आशीर्वाद देने वाले हैं।

पूज्य संतगण,

हम सभी जानते हैं कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम में तमिलनाडु की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वीरमंगई वेलु नाचियार से लेकर मरुदु भाइयों तक, सुब्रह्मण्य भारती से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जुड़ने वाले अनेकों तमिल लोगों तक, हर युग में तमिलनाडु, भारतीय राष्ट्रवाद का गढ़ रहा है। तमिल लोगों के दिल में हमेशा से मां भारती की सेवा की, भारत के कल्याण की भावना रही है। बावजूद इसके, ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की आजादी में तमिल लोगों के योगदान को वो महत्व नहीं दिया गया, जो दिया जाना चाहिए था। अब बीजेपी ने इस विषय को प्रमुखता से उठाना शुरू किया है। अब देश के लोगों को भी पता चल रहा है कि महान तमिल परंपरा और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक तमिलनाडु के साथ क्या व्यवहार हुआ था।

जब आजादी का समय आया, तब सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक को लेकर प्रश्न उठा था। इसके लिए हमारे देश में अलग-अलग परंपराएं रही हैं। अलग-अलग रीति-रिवाज भी रहे हैं। लेकिन उस समय राजाजी और आदीनम् के मार्गदर्शन में हमें अपनी प्राचीन तमिल संस्कृति से एक पुण्य मार्ग मिला था। ये मार्ग था- सेंगोल के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण का। तमिल परंपरा में, शासन चलाने वाले को सेंगोल दिया जाता था। सेंगोल इस बात का प्रतीक था कि उसे धारण करने वाले व्यक्ति पर देश के कल्याण की जिम्मेदारी है और वो कभी कर्तव्य के मार्ग से विचलित नहीं होगा। सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर तब 1947 में पवित्र तिरुवावडुतुरै आदीनम् द्वारा एक विशेष सेंगोल तैयार किया गया था। आज उस दौर की तस्वीरें हमें याद दिला रही हैं कि तमिल संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र के रूप में भारत की नियति के बीच कितना भावुक और आत्मीय संबंध रहा है। आज उन गहरे संबंधों की गाथा इतिहास के दबे हुए पन्नों से बाहर निकलकर एक बार फिर जीवंत हो उठी है। इससे उस समय की घटनाओं को समझने का सही दृष्टिकोण भी मिलता है। और इसके साथ ही, हमें ये भी पता चलता है कि सत्ता के हस्तांतरण के इस सबसे बड़े प्रतीक के साथ क्या किया गया।

मेरे देशवासियों,

आज मैं राजाजी और विभिन्न आदीनम् की दूरदर्शिता को भी विशेष तौर पर नमन करूंगा। आदीनम के एक सेंगोल ने, भारत को सैकड़ों वर्षों की गुलामी के हर प्रतीक से मुक्ति दिलाने की शुरुआत कर दी थी। जब भारत की आजादी का प्रथम पल आया, आजादी का प्रथम पल, वो क्षण आया, तो ये सेंगोल ही था, जिसने गुलामी से पहले वाले कालखंड और स्वतंत्र भारत के उस पहले पल को आपस में जोड़ दिया था। इसलिए, इस पवित्र सेंगोल का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है कि ये 1947 में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना था। इस सेंगोल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसने गुलामी के पहले वाले गौरवशाली भारत से, उसकी परंपराओं से, स्वतंत्र भारत के भविष्य को कनेक्ट कर दिया था। अच्छा होता कि आजादी के बाद इस पूज्य सेंगोल को पर्याप्त मान-सम्मान दिया जाता, इसे गौरवमयी स्थान दिया जाता। लेकिन ये सेंगोल, प्रयागराज में, आनंद भवन में, Walking Stick यानि पैदल चलने पर सहारा देने वाली छड़ी कहकर, प्रदर्शनी के लिए रख दिया गया था। आपका ये सेवक और हमारी सरकार, अब उस सेंगोल को आनंद भवन से निकालकर लाई है। आज आजादी के उस प्रथम पल को नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना के समय हमें फिर से पुनर्जीवित करने का मौका मिला है। लोकतंत्र के मंदिर में आज सेंगोल को उसका उचित स्थान मिल रहा है। मुझे खुशी है कि अब भारत की महान परंपरा के प्रतीक उसी सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। ये सेंगोल इस बात की याद दिलाता रहेगा कि हमें कर्तव्य पथ पर चलना है, जनता-जनार्दन के प्रति जवाबदेह बने रहना है।

पूज्य संतगण,

आदीनम की महान प्रेरक परंपरा, साक्षात सात्विक ऊर्जा का प्रतीक है। आप सभी संत शैव परंपरा के अनुयायी हैं। आपके दर्शन में जो एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना है, वो स्वयं भारत की एकता और अखंडता का प्रतिबिंब है। आपके कई आदीनम् के नामों में ही इसकी झलक मिल जाती है। आपके कुछ आदीनम् के नाम में कैलाश का उल्लेख है। ये पवित्र पर्वत, तमिलनाडु से बहुत दूर हिमालय में है, फिर भी ये आपके हृदय के करीब है। शैव सिद्धांत के प्रसिद्ध संतों में से एक तिरुमूलर् के बारे में कहा जाता है कि वो कैलाश पर्वत से शिव भक्ति का प्रसार करने के लिए तमिलनाडु आए थे। आज भी, उनकी रचना तिरुमन्दिरम् के श्लोकों का पाठ भगवान शिव की स्मृति में किया जाता है। अप्पर्, सम्बन्दर्, सुन्दरर् और माणिक्का वासगर् जैसे कई महान संतों ने उज्जैन, केदारनाथ और गौरीकुंड का उल्लेख किया है। जनता जनार्दन के आशीर्वाद से आज मैं महादेव की नगरी काशी का सांसद हूं, तो आपको काशी की बात भी बताऊंगा। धर्मपुरम आदीनम् के स्वामी कुमारगुरुपरा तमिलनाडु से काशी गए थे। उन्होंने बनारस के केदार घाट पर केदारेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। तमिलनाडु के तिरुप्पनन्दाळ् में काशी मठ का नाम भी काशी पर रखा गया है। इस मठ के बारे में एक दिलचस्प जानकारी भी मुझे पता चली है। कहा जाता है कि तिरुप्पनन्दाळ् का काशी मठ, तीर्थयात्रियों को बैकिंग सेवाएं उपलब्ध कराता था। कोई तीर्थयात्री तमिलनाडु के काशी मठ में पैसे जमा करने के बाद काशी में प्रमाणपत्र दिखाकर वो पैसे निकाल सकता था। इस तरह, शैव सिद्धांत के अनुयायियों ने सिर्फ शिव भक्ति का प्रसार ही नहीं किया बल्कि हमें एक दूसरे के करीब लाने का कार्य भी किया।

पूज्य संतगण,

सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद भी तमिलनाडु की संस्कृति आज भी जीवंत और समृद्ध है, तो इसमें आदीनम् जैसी महान और दिव्य परंपरा की भी बड़ी भूमिका है। इस परंपरा को जीवित रखने का दायित्व संतजनों ने तो निभाया ही है, साथ ही इसका श्रेय पीड़ित-शोषित-वंचित सभी को जाता है कि उन्होंने इसकी रक्षा की, उसे आगे बढ़ाया। राष्ट्र के लिए योगदान के मामले में आपकी सभी संस्थाओं का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है। अब उस अतीत को आगे बढ़ाने, उससे प्रेरित होने और आने वाली पीढ़ियों के लिए काम करने का समय है।

पूज्य संतगण,

देश ने अगले 25 वर्षों के लिए कुछ लक्ष्य तय किए हैं। हमारा लक्ष्य है कि आजादी के 100 साल पूरे होने तक एक मजबूत, आत्मनिर्भर और समावेशी विकसित भारत का निर्माण हो। 1947 में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका से कोटि-कोटि देशवासी पुन: परिचित हुए हैं। आज जब देश 2047 के बड़े लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है तब आपकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो गई है। आपकी संस्थाओं ने हमेशा सेवा के मूल्यों को साकार किया है। आपने लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का, उनमें समानता का भाव पैदा करने का बड़ा उदाहरण पेश किया है। भारत जितना एकजुट होगा, उतना ही मजबूत होगा। इसलिए हमारी प्रगति के रास्ते में रुकावटें पैदा करने वाले तरह-तरह की चुनौतियां खड़ी करेंगे। जिन्हें भारत की उन्नति खटकती है, वो सबसे पहले हमारी एकता को ही तोड़ने की कोशिश करेंगे। लेकिन मुझे विश्वास है कि देश को आपकी संस्थाओं से आध्यात्मिकता और सामाजिकता की जो शक्ति मिल रही है, उससे हम हर चुनौती का सामना कर लेंगे। मैं फिर एक बार, आप मेरे यहां पधारे, आप सबने आशीर्वाद दिये, ये मेरा सौभाग्य है, मैं फिर एक बार आप सबका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, आप सबको प्रणाम करता हूँ। नए संसद भवन के लोकार्पण के अवसर पर आप सब यहां आए और हमें आशीर्वाद दिया। इससे बड़ा सौभाग्य कोई हो नहीं सकता है और इसलिए मैं जितना धन्यवाद करूँ, उतना कम है। फिर एक बार आप सबको प्रणाम करता हूँ।

ऊँ नम: शिवाय!

वणक्कम!