प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले भी संयुक्त राष्ट्र में देश-दुनिया का ध्यान खींचने वाले भाषण दिए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने उसके मंच पर जिस आत्मविश्वास से भारत के अधिकारों की बात रखी, वह अपने आप में अभूतपूर्व है। उन्होंने कोरोना के इस संकट काल में जिस अंदाज में संयुक्त राष्ट्र की अकर्मण्यता पर खरी-खरी सुनाई, उसने दुनिया के अनेक देशों की आवाज बुलंद की है। सच्चे अर्थों में यह 130 करोड़ भारतीयों की मजबूत आवाज बनकर उभरी। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जिस संगठन के निर्माण और उसके मकसद को कामयाब बनाने में भारत ने हर कदम पर अपना भरपूर योगदान दिया हो, उसे संयुक्त राष्ट्र की संरचना और निर्णय-प्रक्रिया से कब तक बाहर रखा जा सकता है? मुझे लगता है कि आज तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इतनी सशक्त आवाज में विश्व के सामने अपनी बात नहीं रखी।

 

प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही कहा कि 75 साल पहले जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र का निर्माण हुआ, उस समय दुनिया एकदम अलग थी, उसके समीकरण अलग थे, उसके मुद्दे अलग थे और उसकी जरूरतें भी अलग थीं। दुनिया दूसरे महायुद्ध की विभीषिका से उबर रही थी, नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु हमले से न सिर्फ जापान, बल्कि सारी दुनिया में डर का माहौल था। युद्ध के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई थी। दुनिया के मानचित्र से उपनिवेशवाद खत्म हो रहा था। भारत अपनी आजादी के लिए निर्णायक मोड़ पर खड़ा था। ऐसे समय संयुक्त राष्ट्र की जरूरतें एकदम जुदा थीं। तब से अब तक दुनिया काफी बदल चुकी है। पिछले 75 वर्षों में हमने शीतयुद्ध का द्विध्रुवीय दौर भी देखा और उसका अवसान भी। भारत और चीन जैसे देशों का उभार भी देखा। सोवियत संघ का विघटन और जर्मनी का एकीकरण भी देखा। अनेक गुलाम देशों को आजाद होते देखा। इस कालखंड में अनेक देशों ने गृहयुद्ध झेले। दो या दो से अधिक देशों के बीच अनेक छोटे-बड़े युद्ध भी हुए।

संयुक्त राष्ट्र के जन्म के समय दस्तखत करने वाले सिर्फ 50 देश थे, आज संख्या बढ़कर 193 हो गई

1945 में जब संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ था, तब उसके चार्टर पर दस्तखत करने वाले सिर्फ 50 देश थे। आज उनकी संख्या 193 हो गई है, लेकिन उसकी संरचना में कोई बदलाव नहीं आया है। सुरक्षा परिषद के वीटो शक्ति संपन्न पांच देश आज भी वही हैं, जो तब थे। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पिछले सात महीनों से सारी दुनिया कोरोना की विभीषिका से जूझ रही है, पर संयुक्त राष्ट्र उदासीन है। उसका एक आनुषंगिक संगठन विश्व स्वास्थ्य संगठन कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रहा है। आज वह विश्वास के संकट से गुजर रहा है। लंबे अरसे से उसमें सुधार का इंतजार हो रहा है। इसी कारण पीएम मोदी ने कहा कि कम से कम 75वें साल में संयुक्त राष्ट्र को ऐसे पुनर्गठित किया जाए कि दुनिया में संतुलन कायम हो और यह संगठन सशक्त बने।

प्रधानमंत्री ने कहा- हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं

भारत के पक्ष को मजबूती से रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य से तनिक भी अलग नहीं है। हम जन कल्याण से जग कल्याण चाहते हैं। भारत दुनिया की शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही वह मानवता के दुश्मनों के खात्मे के लिए भी संयुक्त राष्ट्र के साथ है। एक संस्थापक देश होने के नाते भारत संयुक्त राष्ट्र पर अगाध विश्वास रखता है। दुनिया में खुशहाली कायम करने के लिए जब भी जरूरत हुई, भारत ने आगे बढ़कर साथ दिया। संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर भारत ने कम से कम 50 बार अपनी शांति सेनाएं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भेजीं। दुनिया में भारतीय वीरों ने सबसे अधिक कुर्बानियां दीं हैं। 

मोदी ने देश की तरक्की के लिए रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म का नारा दिया

भारत ने पिछले छह वर्षों में जिस तरह विश्व में अपनी जगह बनाई और अपनी जनता के हित के लिए सैकड़ों जन-कल्याण योजनाएं लागू कीं, उसकी भी झलक प्रधानमंत्री ने दुनिया के सामने रखी। देश की तरक्की के लिए प्रधानमंत्री ने रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म का नारा दिया। इसका आशय है-पहले सुधारों की परिकल्पना, उसके बाद उन्हें लागू करना और फिर बदलाव करना। भारत ने पांच साल में 40 करोड़ गरीब जनता को बैंकिंग प्रक्रिया से जोड़ा। 60 करोड़ लोगों को खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त किया। 15 करोड़ घरों में पानी पहुंचाने और छह लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का संकल्प लिया है। स्वच्छता के लिए देशव्यापी अभियान चलाया है। आज देश टीबी से लगभग मुक्त होने के रास्ते पर चल पड़ा है। करोड़ों लोग मुफ्त चिकित्सा का लाभ ले रहे हैं। गरीबों को सस्ती दरों पर औषधियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। यह सब यूं ही नहीं हुआ।

अस्थायी सदस्य चुने जाने के लिए 190 देशों में से 187 ने भारत के पक्ष में मतदान किया

आत्मनिर्भर भारत का सपना देश के प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाना चाहता है। इसी में दुनिया की भी भलाई है। भारत की तरक्की में दुनिया की तरक्की है। इसीलिए भारत संयुक्त राष्ट्र की तरक्की के लिए अपने योगदान के बदले उसकी प्रक्रिया में अपनी भूमिका मांग रहा है। 2021 से वह सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनेगा। वह आठवीं बार अस्थायी सदस्य चुना गया है। दुनिया में भारत की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अस्थायी सदस्य चुने जाने के लिए 190 देशों में से 187 ने भारत के पक्ष में मतदान किया।

 

भारत ने संयुक्त राष्ट्र की समृद्धि और विकास योजनाओं को अपने यहां लागू किया

जितनी तेजी से भारत ने संयुक्त राष्ट्र की समृद्धि और विकास योजनाओं को अपने यहां लागू किया है, उतना शायद ही किसी ने किया हो। भारत दुनिया के परमाणु संपन्न देशों में है। साथ ही वह परमाणु अप्रसार के लिए भी वचनबद्ध है। दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र होने के नाते आज दुनिया के तमाम ताकतवर आर्थिक संगठनों का वह सक्रिय सदस्य है। दुनिया के 18 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं।

 

जी-4 सहित कई ताकतवर संगठनों ने की संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग

संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य देशों में सबसे अधिक यूरोप के हैं, जबकि उनकी कुल आबादी दुनिया की पांच प्रतिशत है। अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है। इसीलिए जी-4 सहित कई ताकतवर संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग की है।

पीएम मोदी ने जिस तरह संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखी, उसका कई देशों ने किया समर्थन

 

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखी, उसका अनेक देशों ने समर्थन किया है। अमेरिका और यूरोप के देश आज भारत के साथ हैं। एक ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को सचेत कर दिया है, तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार होना ही चाहिए।

 

लेखक का नाम : जेपी नड्डा

डिस्कलेमर :

यह आर्टिकल पहली बार Jagran में पब्लिश हुआ था।

यह उन कहानियों या खबरों को इकट्ठा करने के प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव पर उपाख्यान / राय / विश्लेषण का वर्णन करती हैं।

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September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)