प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के प्रति आरएसएस के योगदान को रेखांकित करते हुए विशेष रूप से डिजाइन किया गया स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया
एक शताब्दी पहले हुई आरएसएस की स्थापना राष्ट्रीय चेतना की स्थायी भावना दर्शाती है, जो हर युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए उभरी है: प्रधानमंत्री
मैं परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं: प्रधानमंत्री
आरएसएस के स्वयंसेवक राष्ट्र की सेवा और समाज को सशक्त बनाने के लिए अथक रूप से समर्पित रहे हैं: प्रधानमंत्री
आज जारी किया गया स्मारक टिकट एक श्रद्धांजलि है, जो 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में गर्व से मार्च करने वाले आरएसएस स्वयंसेवकों का स्मरण कराता है: प्रधानमंत्री
अपनी स्थापना से ही आरएसएस राष्ट्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता रहा है : प्रधानमंत्री
आरएसएस की शाखा प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत है, जहां 'मैं' से 'हम' की यात्रा आरंभ होती है: प्रधानमंत्री
आरएसएस के एक शताब्दी के कार्य की नींव राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य, व्यक्तिगत विकास के एक स्पष्ट मार्ग और शाखा की गतिशील कार्यप्रणाली पर टिकी हुई है: प्रधानमंत्री
आरएसएस ने अनगिनत बलिदान दिए हैं, 'राष्ट्र पहले' और एक लक्ष्य - 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के सिद्धांत से निर्देशित है : प्रधानमंत्री
संघ के स्वयंसेवक समाज के प्रति दृढ़ और प्रतिबद्ध बने रहते हैं और उनकी संवैधानिक मूल्यों में आस्था है : प्रधानमंत्री
संघ देशभक्ति और सेवा का प्रतीक है : प्रधानमंत्री
दूसरों के दुख को कम करने के लिए व्यक्तिगत कष्ट सहना प्रत्येक स्वयंसेवक की पहचान है: प्रधानमंत्री
संघ ने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों में आत्म-सम्मान और सामाजिक जागरूकता का संचार किया है : प्रधानमंत्री
पंच परिवर्तन प्रत्येक स्वयंसेवक को राष्ट्र की चुनौतियों का सामना करने और उन पर विजय पाने के लिए प्रेरित करता है : प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबोले जी, केंद्रीय मंत्री श्री गजेंद्र शेखावत जी, दिल्ली के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी स्वयंसेवक, अन्य सभी वरिष्ठ महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

कल हमारे एक पुराने स्वयंसेवक और संघ के हर मोड़ पर कहीं ना कहीं उनका स्थान रहा है, ऐसे विजय कुमार मल्होत्रा जी को हमने खो दिया। मैं सबसे पहले उनको आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं।

साथियों,

आज महानवमी है। आज देवी सिद्धिदात्री का दिन है। मैं सभी देशवासियों को नवरात्रि की बधाई देता हूं। कल विजयदशमी का महापर्व है, अन्याय पर न्याय की जीत, असत्य पर सत्य की जीत, अंधकार पर प्रकाश की जीत, विजयदशमी भारतीय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है। ऐसे महान पर्व पर 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना, ये कोई संयोग नहीं था। ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनरुत्थान था, जिसमें राष्ट्र चेतना समय-समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्‍य अवतार है।

साथियों,

यह हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है। मैं आज इस अवसर पर राष्ट्र सेवा के संकल्प को समर्पित कोटि-कोटि स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं देता हूं, अभिनंदन करता हूं। मैं संघ के संस्थापक हम सभी के आदर्श परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

साथियों,

संघ की 100 वर्ष की इस इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में आज भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं। 100 रुपए के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिन्ह है और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद-मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि और समर्पण भाव से उसे नमन करते स्वयंसेवक दिखाई देते हैं। भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। इस सिक्के के ऊपर संघ का बोधवाक्य भी अंकित है “राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम”!

साथियों,

आज जो विशेष स्मृति डाक टिकट जारी हुआ है, उसकी भी अपनी एक महत्ता है, हम सभी जानते हैं, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड की कितनी अहमियत होती है। 1963 में, आरएसएस के स्वयंसेवक भी 26 जनवरी की उस राष्ट्रीय परेड में शामिल हुए थे और उन्होंने आन-बान-शान से राष्ट्र भक्ति की धुन पर कदम ताल किया था। इस टिकट में उसी ऐतिहासिक क्षण की स्मृति है।

साथियों,

संघ के स्वयंसेवक जो अनवरत रूप से देश की सेवा में जुटे हैं, समाज को सशक्त कर रहे हैं, इसकी भी झलक इस स्मारक डाक टिकट में है। मैं इन स्मृति सिक्कों और डाक टिकट के लिए देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

जिस तरह विशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ के किनारे भी और संघ की धारा में भी सैकड़ों जीवन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं। जैसे एक नदी जिन रास्तों से बहती है, उन क्षेत्रों को, वहां की भूमि को, वहां के गांवों को सुजलाम सुफलाम बनाती हुई अपने जल से समृद्ध करती है, वैसे ही संघ ने इस देश के हर क्षेत्र, समाज के हर आयाम उसको स्पर्श किया है। यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्र प्रवाह प्रबल है।

साथियों,

जिस तरह एक नदी कई धाराओं में खुद को प्रकट करती है, हर धारा अलग-अलग क्षेत्र को पोषित करती है, संघ की यात्रा भी ऐसी ही है। संघ के अलग-अलग संगठन भी जीवन के हर पक्ष से जुड़कर राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षा हो, कृषि हो, समाज कल्याण हो, आदिवासी कल्याण हो, महिला सशक्तिकरण हो, कला और विज्ञान का क्षेत्र हो, हमारा श्रमिक भाई-बहन हो, समाज जीवन के ऐसे कई क्षेत्रों में संघ निरंतर कार्य कर रहा है और इस यात्रा की भी एक विशेषता रही है। संघ की एक धारा अनेक धारा तो बनी, मल्टीप्लाई तो होती गई, लेकिन उनमें कभी विरोधाभास पैदा नहीं हुआ, डिवीजन नहीं हुआ, क्योंकि हर धारा का विभिन्न क्षेत्र में काम करने वाले हर संगठन का उद्देश्य एक ही है, भाव एक ही है, राष्ट्र प्रथम, नेशन फर्स्ट!

साथियों,

अपने गठन के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विराट उद्देश्य लेकर चला और यह उद्देश्य रहा राष्ट्र निर्माण, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघ ने जो रास्ता चुना, वह था व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण और इस रास्ते पर सतत चलने के लिए जो कार्य पद्धति चुनी, वह थी नित्य नियमित चलने वाली शाखा।

साथियों,

परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी जानते थे कि हमारा राष्ट्र तभी सशक्त होगा, जब हर नागरिक के भीतर राष्ट्र के प्रति दायित्व का बोध जागृत होगा। हमारा राष्ट्र तभी ऊंचा उठेगा, जब भारत का हर नागरिक राष्ट्र के लिए जीना सीखेगा। इसलिए वह व्यक्ति निर्माण में निरंतर जुटे रहे और उनका तरीका भी कुछ अलग ही था। परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी से हमने बार-बार सुना है, वह कहते थे जैसा है, वैसा लेना है। जैसा चाहिए, वैसा बनाना है। लोक संग्रह का डॉक्टर साहब का यह तरीका कुछ-कुछ अगर समझना है, तो हम कुम्हार को याद करते हैं। जैसे कुम्हार ईंट पकाता है, तो जमीन की सामान्य सी मिट्टी से शुरू करता है। कुम्हार मिट्टी को लाता है, उस पर मेहनत करता है, उसे आकार देकर तपाता है, खुद भी तपता है, मिट्टी को भी तपाता है। फिर उन ईंटों को इकट्ठा करके उनसे भव्य इमारत बनाता है, ऐसे ही डॉक्टर साहब बिल्कुल सामान्य लोगों को चुनते थे, फिर उनको सिखाते थे, विजन देते थे, उनको गढ़ते थे, इस तरह वह देश के लिए समर्पित स्वयंसेवक तैयार करते थे। इसलिए संघ के बारे में कहा जाता है कि इसमें सामान्य लोग मिलकर असामान्य अभूतपूर्व कार्य करते हैं।

साथियों,

व्यक्ति निर्माण की यह सुंदर प्रक्रिया हम आज भी संघ की शाखाओं में देखते हैं। संघ शाखा का मैदान एक ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां से स्वयंसेवक की अहम से वयम की यात्रा शुरू होती है। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की यज्ञ वेदी हैं। इन शाखाओं में व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास होता है। स्वयंसेवकों के मन में राष्ट्र सेवा का भाव और साहस दिन प्रतिदिन पनपता रहता है। उनके लिए त्याग और समर्पण सहज हो जाता है, श्रेय के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है और उन्हें सामूहिक निर्णय और सामूहिक कार्य का संस्कार मिलता है।

साथियों,

राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा जैसी सरल जीवंत कार्य पद्धति यही संघ की 100 वर्षों की यात्रा का आधार बने हैं। इन्हीं स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को गढ़ा, जो विभिन्न क्षेत्रों में देश को अपना सर्वोत्तम दे रहे हैं, देश को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं, समर्पण से, सेवा से और राष्ट्र के उत्कर्ष की साधना से!

साथियों,

संघ जब से अस्तित्व में आया है, संघ के लिए देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही है, इसलिए जिस कालखंड में जो बड़ी चुनौती देश के सामने आई, संघ ने उस कालखंड के अंदर अपने आप को झोंक दिया, संघ उससे जूझता रहा। आजादी की लड़ाई के समय देखें, तो परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी समेत अनेक कार्यकर्ता ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। डॉक्टर साहब कई बार जेल तक गए, आजादी के लड़ाई के कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों को संघ संरक्षण देता रहा, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करता रहा। 1942 में, जब चिमूर में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन हुआ, तो उसमें अनेक स्वयंसेवकों को अंग्रेजों के भीषण अत्याचार का सामना करना पड़ा। आजादी के बाद भी हैदराबाद में निजाम के अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष से लेकर गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन और दादरा नगर हवेली की मुक्ति तक संघ ने कितने ही बलिदान दिए और भाव एक ही रहा- राष्ट्र प्रथम। लक्ष्य एक ही रहा- एक भारत, श्रेष्ठ भारत।

साथियों,

राष्ट्र साधना किसी यात्रा में ऐसा नहीं है कि संघ पर हमले नहीं हुए, संघ के खिलाफ साजिशें नहीं हुईं। हमने देखा है, कैसे आजादी के बाद भी संघ को कुचलने का प्रयास हुआ। मुख्यधारा में आने देने का और उसे न आने से रोकने के अनगिनत षड्यंत्र हुए। परम पूज्य गुरु जी को झूठे केस में फँसाया गया, उन्हें जेल तक भेज दिया गया। लेकिन जब पूज्य गुरु जी जेल से बाहर आए, तो उन्होंने सहज रूप से कहा और शायद इतिहास की तारीख में यह भाव, यह शब्द एक बहुत बड़ी प्रेरणा है, तब परम पूज्य गुरु जी ने बहुत सहजता से कहा था, कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल भी जाती है, लेकिन हम दांत नहीं तोड़ देते। क्योंकि दांत भी हमारे हैं, जीभ भी हमारी हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, जिन्हें जेल में इतनी यातनाएं दी गईं, जिन पर भांति-भांति के अत्याचार हुए, उसके बाद भी परम पूज्य गुरु जी के मन में कोई रोष नहीं था, कोई दुर्भावना नहीं थी। यही परम पूज्य गुरु जी का ऋषि तुल्य व्यक्तित्व था। उनकी यही वैचारिक स्पष्टता संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक के जीवन का मार्गदर्शन बनीं। इसी ने समाज के प्रति एक एकात्मता और आत्मीयता के संस्कारों को सशक्त किया और इसीलिए चाहे संघ पर प्रतिबंध लगे, चाहे षड्यंत्र हुए, झूठे मुकदमे हुए, संघ के स्वयंसेवकों ने कभी कटुता को स्थान नहीं दिया, क्योंकि वह जानते हैं हम समाज से अलग नहीं हैं, समाज हम सबसे ही तो बना है, जो अच्छा है, वह भी हमारा है, जो कम अच्छा है, वह भी हमारा है।

साथियों,

और दूसरी बात जिसने कभी कटुता को जन्म नहीं दिया, वह है प्रत्येक स्वयंसेवक का लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों में अडिग विश्वास, जब देश पर इमरजेंसी थोपी गई तो इसी एक विश्वास ने हर स्वयंसेवक को ताकत दी, उसे संघर्ष करने की क्षमता दी। इन्हीं दो मूल्‍यों, समाज के साथ एक एकात्मता और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति आस्था ने संघ के इस स्वयंसेवकों को हर संकट में स्थितप्रज्ञ बना करके रखा, समाज के प्रति संवेदनशील बनाए रखा। इसलिए समाज के अनेक थपेड़े झेलते हुए भी संघ आज तक विराट वट वृक्ष की तरह अडिग खड़ा है। देश और समाज की सेवा में निरंतर कार्य कर रहा है। अभी यहां हमारे एक स्वयंसेवक ने इतनी सुंदर प्रस्तुति दी, शून्य से एक शतक बने, अंक की मनभावना भारती की जय-विजय हो, ले हृदय में प्रेरणा, कर रहे हम साधना, मातृ-भू आराधना और उस गीत का संदेश था, हमने देश को ही देव माना है और हमने देह को ही दीप बनाकर के जलने का सीखा है। वाकई यह अद्भुत था।

साथियों,

प्रारंभ से संघ राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की, संघ के ही स्वयंसेवक अपनी सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े थे। यह केवल राहत नहीं था, यह राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का कार्य था।

साथियों,

1956 में, गुजरात के कच्छ के अंजार में बहुत बड़ा भूकंप आया था। तबाही इतनी बड़ी थी, चारों ओर विनाश का दृश्य था। उस समय भी संघ के स्वयंसेवक राहत और बचाव में जुटे थे। तब परम पूज्य गुरु जी ने गुजरात के वरिष्ठ संघ के प्रचारक वकील साहब को जो उस समय गुजरात का कार्य संभालते थे, उन्हें एक पत्र लिखा था, उन्होंने लिखा था किसी दूसरे के दुख को दूर करने के लिए नि:स्वार्थ भाव से खुद कष्ट उठाना, एक श्रेष्ठ हृदय का परिचायक है।

साथियों,

खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना, यह हर स्वयंसेवक की पहचान है। याद करिए, 1962 के युद्ध का वह समय, संघ के स्‍वयंसेवकों ने दिन-रात खड़े रहकर सेना की मदद की, उनका हौसला बढ़ाया, सीमा पर बसे गांवों में मदद पहुंचाई। 1971 में लाखों शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से भारत की धरती पर आए, उनके पास ना घर था ना साधन, उस कठिन घड़ी में स्वयंसेवकों ने उनके लिए अन्‍न जुटाया, आश्रय दिया, स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाईं, उनके आंसुओं को पोछा, उनकी पीड़ा को साझा किया।

साथियों,

एक बार और हम जानते हैं, 1984 सिखों के खिलाफ जो कत्‍लेआम चलाया गया था, अनेक सिख परिवार संघ के स्वयंसेवकों के घरों में आकर के आश्रय ले रहे थे। यह स्वयं सेवकों का स्वभाव रहा है।

साथियों,

एक बार पूर्व राष्ट्रपति डॉक्‍टर एपीजे अब्दुल कलाम चित्रकूट गए थे। वहां उन्होंने नाना जी देशमुख जी जिस कार्य को कर रहे थे, उस आश्रम स्थान को देखा था, वहां के सेवा कार्य देखें, वह हैरान रह गए थे। उसी प्रकार से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी भी जब नागपुर गए, तो वह भी संघ के अनुशासन, संघ की सादगी, उसको देखकर बहुत प्रभावित हुए थे।

साथियों,

आज भी आप देखे, पंजाब की बाढ़, हिमाचल-उत्तराखंड की आपदा, केरल के वायनाड की त्रासदी, हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं। कोरोना काल में तो पूरी दुनिया ने संघ के साहस और सेवा भाव का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा है।

साथियों,

अपनी 100 वर्ष की इस यात्रा में संघ का एक बड़ा काम ये रहा है, उसने समाज के अलग-अलग वर्गों में आत्मबोध जगाया, स्वाभिमान जगाया और इसके लिए संघ देश के उन क्षेत्रों में भी कार्य करता रहा है, जो दुर्गम हैं, जहां पहुंचना सबसे कठिन है। हमारे देश में लगभग 10 करोड़ आदिवासी भाई-बहन हैं, जिनके कल्याण के लिए संघ लगातार प्रयासरत है। लंबे समय तक सरकारों ने उन्हें प्राथमिकता नहीं दी, लेकिन संघ ने उनकी संस्कृति, उनके पर्व, उत्सव, उनकी भाषा और परंपराओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम, आदिवासी समाज के सशक्तिकरण का स्तंभ बनकर के उभरे हैं। आज हमारे आदिवासी भाई-बहनों में जो आत्मविश्वास आया है, वह उनके जीवन को बदल रहा है।

साथियों,

संघ दशकों से आदिवासी परंपराओं, आदिवासी रीति-रिवाजों, आदिवासी मूल्यों को सहेजने संवारने में अपना सहयोग देता रहा है, अपना कर्तव्य निभा रहा है, उसकी तपस्या ने भारत की सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। मैं देश के दूर-सुदूर, कोने-कोने में आदिवासियों का जीवन आसान बनाने में लगे संघ के लाखों स्वयंसेवकों की भी सराहना करूंगा।

साथियों,

समाज में सदियों से घर कर चुकी जो बीमारियाँ हैं, जो ऊंच-नीच की भावना है, जो कुप्रथाएं हैं, छुआछूत जैसी गंदगी भरी पड़ी है, ये हिन्दू समाज की बहुत बड़ी चुनौती रही हैं। ये एक ऐसी गंभीर चिंता है, जिस पर संघ लगातार काम करता रहा है। एक बार महात्मा गांधी जी वर्धा में संघ के शिविर में गए थे। उन्होंने भी संघ में समता, ममता, समरसता, समभाव, ममभाव, ये जो कुछ भी देखा, उसकी खुलकर तारीफ की थी और आप देखिए, डॉक्टर साहब से लेकर आज तक संघ की हर महान विभूति ने, हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। परम पूज्य गुरु जी ने निरंतर ‘न हिन्दू पतितो भवेत्’ की भावना को आगे बढ़ाया। यानी, हर हिन्दू एक ही परिवार है। कोई भी हिन्दू कभी पतित या नीचा नहीं हो सकता। पूज्य बाला साहब देवरस जी के शब्द भी हम सबको याद हैं, वो कहते थे- छुआछूत अगर पाप नहीं, तो दुनिया में कोई पाप नहीं है! सरसंघचालक रहते हुए पूज्य रज्जू भैया जी और पूज्य सुदर्शन जी ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया। वर्तमान सरसंघचालक आदरणीय मोहन भागवत जी ने भी समरसता के लिए समाज के सामने स्पष्ट लक्ष्य रखा है और गांव-गांव तक इस बात की ज्योत जगाई है, क्या है वो? उन्होंने कहा- एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान, इसे लेकर संघ देश के कोने-कोने में गया है। कोई भेदभाव नहीं, कोई मतभेद नहीं, कोई मनभेद नहीं, यही समरसता का आधार है, यही सर्वसमावेशी समाज का संकल्प है और संघ इसी को निरंतर नई शक्ति दे रहा है, नई ऊर्जा दे रहा है।

साथियों,

जब 100 साल पहले संघ अस्तित्व में आया था, तो उस समय की आवश्यकताएं, उस समय के संघर्ष कुछ और थे। तब हमें सैकड़ों वर्षों की राजनीतिक गुलामी से मुक्ति पानी थी, अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करनी थी। लेकिन आज 100 वर्ष बाद, जब भारत विकसित होने की तरफ बढ़ रहा है, जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने जा रहा है, जब देश और देश का बहुत बड़ा गरीब वर्ग गरीबी को परास्त करके, गरीबी को पराजित करके आगे आ रहा है, जब हमारे युवाओं के लिए नए-नए सेक्टर्स में नए अवसर बन रहे हैं, जब ग्लोबल डिप्लोमेसी से क्लाइमेट पॉलिसीज़ तक, भारत विश्व में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। तब आज के समय की चुनौतियां अलग हैं, संघर्ष भी अलग हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने की साजिशें, डेमोग्राफी में बदलाव के षड़यंत्र, एक प्रधानमंत्री के नाते मैं नम्रतापूर्वक कहूंगा कि मुझे बहुत संतोष है कि हमारी सरकार इन चुनौतियों से तेजी से निपट रही है। वहीं एक स्वयंसेवक के नाते मुझे ये भी खुशी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ना केवल इन चुनौतियों की पहचान की है, बल्कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप भी बनाया है। अभी माननीय दत्तात्रेय जी ने जिन चीजों का उल्लेख किया, मैं अपने तरीके से फिर से एक बार उसका उल्लेख करना चाहूंगा

साथियों,

संघ के पंच परिवर्तन, स्व बोध, सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण, ये संकल्प हर स्वयंसेवक के लिए देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को परास्त करने की बहुत बड़ी प्रेरणा हैं।

साथियों,

स्व बोध, यानी स्वयं का बोध, स्व बोध यानि गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर अपनी विरासत पर गर्व करना, स्वभाषा पर गर्व करना, स्व बोध यानि स्वदेशी, आत्मनिर्भर होना और मेरे देशवासियों ये बात समझकर चलिए, आत्मनिर्भर ये विकल्प के तौर पर नहीं है, ये अनिवार्यता के रूप में है। हमें स्वदेशी के अपने मूल मंत्र को समाज का संकल्प बनाना है। हमें वोकल फॉर लोकल के अभियान को, उसकी सफलता के लिए, वोकल फॉर लोकल, ये हमारा निरंतर एक नई ऊर्जा प्रदान करने वाला घोषवाक्य होना चाहिए, प्रयास होना चाहिए।

साथियों,

संघ ने सामाजिक समरसता को हमेशा अपनी प्राथमिकता बनाए रखा है। सामाजिक समरसता यानी, वंचित को वरीयता देकर सामाजिक न्याय की स्थापना करना, देश की एकता को बढ़ाना। आज राष्ट्र के सामने ऐसे संकट खड़े हो रहे हैं, जो हमारी एकता, हमारी संस्कृति और हमारी सुरक्षा पर सीधा प्रहार कर रहे हैं। अलगाववादी सोच, क्षेत्रवाद, कभी जाति, कभी भाषा को लेकर विवाद, कभी बाहरी शक्तियों द्वारा भड़काई गई विभाजनकारी प्रवृत्तियाँ, ये सब अनगिनत चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं। भारत की आत्मा हमेशा विविधता में एकता ही रही है। अगर इस सूत्र को तोड़ा गया, तो भारत की शक्ति भी कमजोर होगी। और इसलिए हमें इस सूत्र को निरंतर जीना है, उसे मजबूती देनी है।

साथियों,

सामाजिक समरसता को आज डेमोग्राफी में बदलाव के षड़यंत्र से, घुसपैठियों से भी बड़ी चुनौती मिल रही है। ये हमारी आंतरिक सुरक्षा और भविष्य की शांति से भी जुड़ा हुआ प्रश्न है। और इसलिए मैंने लाल किले से डेमोग्राफी मिशन की घोषणा की है। हमें इस चुनौती से सतर्क रहना है, इसका डटकर मुकाबला करना है।

साथियों,

कुटुम्ब प्रबोधन, आज समय की मांग है, जो समाज शास्त्र के सदियों से चली आई पंडितों की भाषा है, उनका कहना है, हजारों साल तक भारत के जीवन में ये जो प्राण शक्ति रही है, उसके अंदर एक कारण उसकी परिवार संस्था है। भारतीय समाज व्यवस्था की सबसे मजबूत इकाई अगर कोई है, तो भारतीय समाज में पनपी हुई एक मजबूत परिवार व्यवस्था है। कुटुम्ब प्रबोधन यानी, उस परिवार संस्कृति का पोषण, जो भारतीय सभ्यता का आधार है, जो भारतीय संस्कृति से प्रेरित है, जो जड़ों से जुड़े हैं। परिवार के मूल्य, बुजुर्गों का सम्मान, नारी शक्ति का आदर, नौजवानों में संस्कार, अपने परिवार के प्रति दायित्वों को निभाना, उसे समझना, उस दिशा में परिवार को, समाज को जागरूक करना बहुत ही आवश्यक है।

साथियों,

अलग-अलग कालखंड में जो भी देश आगे बढ़ा, उसमें नागरिक शिष्टाचार की बहुत बड़ी भूमिका रही है। नागरिक शिष्टाचार अर्थात कर्तव्य की भावना, नागरिक कर्तव्य का बोध हर देशवासी में हो, स्वच्छता को बढ़ावा, देश की संपत्ति का सम्मान, नियमों और कानूनों का सम्मान, हमें इसे लेकर आगे बढ़ना है। हमारे संविधान की भावना है, नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करें, हमें संविधान की इसी भावना को निरंतर सशक्त करना है।

साथियों,

पर्यावरण की रक्षा, वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत जरूरी है। ये पूरी मानवता के भविष्य से जुड़ा विषय है। हमें इकोनॉमी के साथ ही इकॉलॉजी की भी चिंता करनी है। जल संरक्षण, ग्रीन एनर्जी, क्लीन एनर्जी, ये सारे अभियान इसी दिशा में हैं।

साथियों,

संघ के ये पंच परिवर्तन, ये वो साधन हैं, जो देश का सामर्थ्य बढ़ाएंगे, जो देश को विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद करेंगे, जो 2047 तक विकसित भारत के निर्माण का आधार होंगे।

साथियों,

2047 का भारत तत्व ज्ञान और विज्ञान, सेवा और समरसता से गढ़ा हुआ वैभवशाली भारत हो। यही संघ की दृष्टि है, यही हम सब स्वयंसेवकों की साधना है और यही हमारा संकल्प है।

साथियों,

हमें हमेशा-हमेशा याद रखना है- संघ बना है, राष्ट्र के प्रति अटूट आस्था से। संघ चला है, राष्ट्र के प्रति अगाध सेवा के भाव से। संघ तपा है, त्याग और तपस्या की अग्नि में। संघ निखरा है, संस्कार और साधना के संगम से। संघ खड़ा है, राष्ट्रधर्म को जीवन का परम धर्म मानकर के, संघ जुड़ा है, भारत माता की सेवा के विराट स्वप्न से।

साथियों,

संघ का आदर्श है, संस्कृति की जड़ें गहरी और सशक्त हों। संघ का प्रयास है, समाज में आत्मविश्वास और आत्म गौरव हो। संघ का लक्ष्य है, हर हृदय में जनसेवा की ज्योति प्रज्वलित हो। संघ का दृष्टिकोण है, भारतीय समाज सामाजिक न्याय का प्रतीक बने। संघ का ध्येय है, विश्व मंच पर भारत की वाणी और भी प्रभावी बने। संघ का संकल्प है, भारत का भविष्य सुरक्षित और उज्ज्वल बने। मैं एक बार फिर आप सभी को इस ऐतिहासिक अवसर की बधाई देता हूं। कल विजयदशमी का पावन पर्व है, हम सबके जीवन में विजयदशमी का एक विशेष महत्व है, मैं उसके लिए भी आप सबको शुभकामनाएं देते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!

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