प्रशासक

Published By : Admin | May 15, 2014 | 16:18 IST

बीजेपी के सर्वोत्कृष्ट संगठन मैन से शासन-कला में भारत के सबसे उम्दा कलाकार के रूप में नरेन्द्र मोदी का उद्भव साहस और दृढ संकल्प की एक कहानी कहता है।

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7 अक्टूबर 2001 को नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। एक राजनीतिक कार्यकर्ता और आयोजक से उनके बहुत जल्द एक प्रशासक में बदलने और सरकार चलाने के अनुभव ने उन्हें पद के लिए प्रशिक्षित होने का समय दिया। श्री मोदी को प्रशासकीय मामलों का मार्गनिर्देशन करना पड़ा, बीजेपी के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना पड़ा और साथ ही पहले दिन से ही एक विरोधी राजनीतिक वातावरण का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि उनके पार्टी सहयोगियों ने भी उन्हें एक बाहरी व्यक्ति समझा जिसे प्रशासन का कोई ज्ञान नहीं है। लेकिन उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

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पहले सौ दिन

गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी के पहले सौ दिन दिखाते हैं कि कैसे अपनी जिम्मेदारियों से परिचित होते हुए श्री मोदी ने प्रशासन को सुधारने की एक अपरम्परागत प्रणाली की भी शुरुआत की और बीजेपी की यथास्थिति को बदलने के लिए ऐसे विचारों को प्रस्तुत किया जो ज़रा हट के हैं। इन्हीं सौ दिनों में हमने नरेन्द्र मोदी को गुजरात में प्रशासनिक लालफीताशाही में कटौती करने के लिए नौकरशाहों के साथ काम करते और कच्छ में आए विनाशकारी भूकंप के बाद पुनर्वास प्रयासों को तेज करने के लिए प्रक्रियाओं को सरल करते हुए देखा।

पहले सौ दिनों ने नरेन्द्र मोदी के सिद्धांतों- फिजूलखर्ची ख़त्म करना, उदाहरण देकर नेतृत्व करना, एक अच्छा श्रोता और एक तेजी से सीखने वाला बनना, को समझने में भी मदद की। पहले सौ दिन समावेशी मूल्य प्रणाली में उनके विश्वास को भी प्रकट करते हैं, जो कि इस बात से ज़ाहिर है कि वे लड़कियों को शिक्षा देने और उन गाँवों को विकास के लिए धनराशि देकर प्रोत्साहित करने को प्राथमिकता देते हैं जो प्रतियोगिता के ऊपर आम सहमति को चुनते हैं।

आखिर में, सत्ता में आये पहले तीन महीनों में, उन्होंने अपने राज्य में लोगों को सशक्त किया और उन्हें प्रशासन में साझेदार बनाया. उन्होंने भूकंप पीड़ितों के साथ कच्छ में दिवाली मनाई और पुनर्वास प्रयासों को मिशन मोड में आगे बढाया. श्री मोदी ने दिखाया कि कैसे गुजरात पूरी तरह से विकास और सुशासन की राजनीति पर ध्यान देकर एक संकट से जल्दी से संभल सकता है.

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विकास और प्रशासन का एक उदाहरण के तौर पर एक वाइब्रेंट गुजरात के निर्माण का रास्ता नरेन्द्र मोदी के लिए आसान नहीं था। ये रास्ता प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों मुश्किलों और चुनौतियों से भरा था, कुछ तो उनकी खुद की पार्टी के अन्दर से भी थीं। लेकिन उनके मजबूत नेतृत्व ने उन्हें मुश्किल हालातों में भी टिकाये रखा। इससे पहले कि नरेन्द्र मोदी बिजली सुधार के कार्य को शुरू करते 2002 की घटनाओं ने उनकी परीक्षा ले ली।

जिंदगियों के दुर्भाग्यपूर्ण नुक्सान और गुजरात की बहाली की क्षमता को लेकर विश्वास की कमी ने किसी कमज़ोर व्यक्ति को जिम्मेदारियों को छोड़ने और दफ्तर से इस्तीफ़ा देने को मजबूर कर दिया होता। हालाँकि नरेन्द्र मोदी एक अलग नैतिक तंतु से बने थे। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की तीव्र आलोचना का सामना किया और साथ ही सुशासन के अपने उद्देश्य को आगे बढाने के लिए राजनीतिक विरोधियों के भारी दबाव को भी सहा।.

और वहां प्रकाश था: ज्योतिग्राम योजना

गुजरात के बिजली सेक्टर को सुधारने के लिए ज्योतिग्राम की शुरुआत एक उदाहरण है कि कैसे श्री नरेन्द्र मोदी ने भारी राजनीतिक विरोधों के बीच मजबूत नेतृत्व का प्रदर्शन किया। ज्योतिग्राम पूरे गुजरात में बहुत बड़े शहरों से दूर-दराज के आदिवासी गाँवों तक चौबीसों घंटे बिजली पहुँचाने का एक क्रांतिकारी विचार था।

किसान तुरंत ही इस योजना के विरोध में खड़े हो गए। किसान लॉबियों के साथ कई उच्च स्तर की मुलाकातों के बाद भी नरेन्द्र मोदी चौबीसों घंटे बिजली मुहैय्या कराने के अपने सपने पर कायम रहे और इस तरह उन्होंने ज्योतिग्राम की राज्यव्यापी सफलता को सुनिश्चित किया। ज्योतिग्राम के ज़रिये नरेन्द्र मोदी ने दिखा दिया कि सुशासन को लेकर उनकी समावेशी पद्धति और उनका नेतृत्व मिलकर समाज के हर तबके की किस्मत बदल सकता है। आज तक “सबका साथ, सबका विकास” उनका नारा रहा है।

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राजनीति के ऊपर सरकार

नरेन्द्र मोदी ने हमेशा ही प्रशासन को राजनीति से ज़रूरी माना है। वे कभी भी राजनीतिक मतभेदों को विकास से जुडी चुनौतियों का समाधान ढूढने के रास्ते में नहीं आने देते हैं। सरदार सरोवर परियोजना का समापन और जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने ये सुनिश्चित किया कि नर्मदा का पानी गुजरात में बहे, ये दिखाता है कि सुशासन में आम सहमति और समझ का संतुलन चाहिए होता है।

श्री मोदी ने योजना को तेजी से आगे बढाने के लिए चतुराई से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के पडोसी राज्यों के साथ समझौता किया और इस प्रक्रिया में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को अपनी पहल के समर्थन में शामिल किया, ऐसी हिस्सेदारी आज के राजनीतिक माहौल में मुश्किल से ही देखने को मिलती है।

पीने के पानी और सिंचाई दोनों के लिए जल प्रबंधन का विकेंद्रीकरण करके श्री मोदी ने दिखा दिया कि सरकार का काम बड़ी-बड़ी परियोजनाएं बनाना ही नहीं है बल्कि सेवा पहुँचाने तक की ज़िम्मेदारी को पूरा करना भी है।.

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प्रगति से एक क्लिक दूर

नरेंद्र मोदी द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन पर फोकस और उसके विस्तार पर ध्यान देने से यह समझने में मदद मिलती है, कि क्यों पिछले दशक में उनके ज्यादातर प्रयास सही तरीके से सर्विस डिलीवरी के संबंध में थे।

यह विविध क्षेत्रों जैसे ई-न्यायालयों में भू-स्थानिक मानचित्रण तथा ‘स्वागत’ जैसे उपक्रमों में प्रौद्योगिकी के अभिनव प्रयोग से साबित होता है।

श्री मोदी अपने ATVT जैसे विकेंद्रीकरण के प्रयासों के लिए जाने जाते रहे हैं। नरेंद्र मोदी का यह दृढ़ विश्वास है कि ज्यादा कानून बनाने की बजाय कार्य किए जाएं। यह इससे भी परिलक्षित होता है कि कैसे सिंगल विंडो सिस्टम से इंडस्ट्री लाभान्वित हुई, जिसको पर्यावरण क्लीयरेंस जैसे मामलों में पारदर्शिता और कुशलता से मदद मिली।

सफलता के तीन स्तंभ

नरेंद्र मोदी ने गुजरात की सफलता की कहानी कृषि, इंडस्ट्री और सेवाओं के आधार पर रखी। उनके कार्यकाल के दौरान गुजरात के कृषि क्षेत्र में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उन्होंने कृषि महोत्सव जैसे उपक्रमों से राज्य के किसानों के जीवन को रूपांतरित किया। उनके द्विवार्षिक वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन से रेकॉर्ड निवेश हुआ, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए। उनके नेतृत्व में गुजरात, मीडियम और स्माल-स्केल इंडस्ट्रीज के लिए स्वर्ग बनकर उभरा।

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संस्थानों का महत्व

एक प्रशासक के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी की क्षमताओं का दो बार परीक्षण हुआ। वर्ष 2006 में सूरत में भयंकर बाढ़ के दौरान और फिर वर्ष 2008 में गुजरात के कई शहरों में हुए आतंकी हमलों के दौरान। दोनों ही अवसरों पर मोदी के सर्वोत्तम संस्थागत प्रयासों ने अंतर पैदा किया।

आपदा प्रबंधन का संस्थागत दृष्टिकोण, जिसने 2001-2002 में कच्छ में पुनर्वास प्रयासों के दौरान आकार लिया, वह हिंद महासागर में आई सूनामी और उत्तराखंड में विनाशकारी बाढ़ के दौरान भी कारगर रहा ।

कानून प्रवर्तन के लिए संस्थागत दृष्टिकोण की सहायता से नरेंद्र मोदी की निगरानी में गुजरात पुलिस ने रेकार्ड समय में 2008 बम विस्फोट मामले को सुलझाया। प्रशासन और शासन के क्षेत्रों में एक असली नेता की निशानी वह संस्थागत विरासत है, जिसे वह पीछे छोड़ता है। इस मामले में नरेंद्र मोदी की प्रगतिशील सोच से विभिन्न संस्थानों की स्थापना हुई।
श्री मोदी की संस्थागत विरासत से यह दृढ़ विश्वास परिलक्षित होता है कि सुशासन केवल आज की समस्याओं के समाधान के बारे में ही नहीं है, बल्कि इसका संबंध भविष्य की आशंका और चुनौतियों के लिए तैयारी रहने से भी है।.

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अभिसरण ( कन्वर्जेंस) में भरोसा

जबकि श्री नरेन्द्र मोदी भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में पद संभालने के लिए तैयार है, प्रशासन और शासन के लिए उनका दृष्टिकोण अपने संसृत सोच के साथ है। श्री मोदी का दर्शन "न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन" जो उनके लिए एक पंच-अमृत का निर्माण है, यह एक साझा मिशन से सरकारी कार्यों में मंत्रालयों और विभागों के बीच दीवारों को नष्ट करने से जाहिर होता है।

श्री मोदी के अनुसार भारत में सरकार के लिए मौलिक चुनौती संसृत सोच और निष्पादन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण है। पिछले कुछ वर्षों में श्री मोदी के विभिन्न प्रयासों में - अगली पीढ़ी के शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों के विकास से लेकर, एक प्रशासन और शासन को एकाग्र करने के एक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। यह अभिसरण आने वाले वर्षों में भारत को अच्छी स्थिति में लाएगा।

वर्ष 2001 से लेकर 2015 के दौरान भारत में गवर्नेंस के बेहतरीन प्रैक्टिसनर के तौर पर नरेंद्र मोदी का विकास राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में उनकी सरकार द्वारा प्राप्त किए गए विभिन्न पुरस्कारों से परिलक्षित होता है।.

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साल 2001 से 2013 के बीच श्री नरेंद्र मोदी ने शासन की दिशा में बेहतरीन काम किया और यह उनकी सरकार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिले पुरस्कारों में दिखाई देता है।

प्रशंसापत्र

""हर कोई जानता है कि मोदी एक मजबूत नेता और कुशल प्रशासक हैं, मेरी शुभकामनाएं और प्रार्थना हमेशा उनके साथ हैं। मैं उनके सुखद भविष्य की कामना करता हूँ और आशा करता हूं कि भारत के लिए उनके सभी सपनें और योजनाएं, सच हों" - रजनीकांत, सुपरस्टार

"मैंने नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है, वह एक अच्छे इंसान हैं, उन्होंने गुजरात में अच्छा काम किया है" - एच एच श्री श्री रवि शंकर जी, आध्यात्मिक नेता और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक

"नरेन्द्रभाई मेरे भाई की तरह है हम सब उन्हें प्रधानमंत्री बनने देखना चाहते हैं। दीवाली के शुभ अवसर पर, मुझे आशा है कि हमारी इच्छाएं सच हो जाएंगी" – लता मंगेशकर, प्रसिद्ध गायक

"अभी देश के महत्वपूर्ण कार्यालयों में ईमानदार व्यक्तियों की जरूरत है। एक शब्द में कहा जाए तो हमें नरेंद्र मोदी की जरूरत है।" - श्री अरुण शौरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पत्रकार और लेखक

"श्री नरेंद्र मोदी को भगवान ने उचित समय पर हमारे पास भेजा है। वह अगले प्रधानमंत्री बनेंगे और देश का नाम रोशन करेंगे।" - श्री चो रामास्वामी, संपादक, “तुगलक”

भारत के 14 वें प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी के साथ भारत के सबसे सफलतम मुख्यमंत्रियों और प्रशासकों में से एक होने का समृद्ध अनुभव है।.

 

डिस्कलेमर :

यह उन कहानियों या खबरों को इकट्ठा करने के प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव पर उपाख्यान / राय / विश्लेषण का वर्णन करती हैं।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)