राष्ट्रीय सुरक्षा सहलाहकार श्री अजीत डोवल जी, चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ जनरल दलबीर सिंह जी, लेफ्टिनेंट जनरल हुडा जी, एयर मार्शल सोमन जी और उपस्थित थल सेना और नभ सेना के सभी जांबाज अधिकारी एवं जवानों, आपको संबोधन करने का सौभाग्य मिला है जिसके साथ एक पराक्रमी जवान का नाम जुड़े हुआ है और सेना में पद से ज्यादा पराक्रम से सम्मान होता है।
सेना में पदित व्यवस्था रहती है लेकिन पराक्रम एक परंपरा रहती है और उस परंपरा को जो उत्तम तरीके से निभाते हैं, उस परंपरा के लिए पल-पल जीते हैं और प्रति पल उस पल के इंतजार में रहते हैं जब कि देश के लिए काम आएं। ये असामान्य भावना होती है। जीवन में एक ही तड़प हो, कि देश के लिए काम आएं। जो सेना का जवान निवृत्त होता है अब निवृत्ति के बाद कभी उससे मिलने का मौका मिले, पूछते हैं कि भई कैसा रहा कार्यकाल। अगर उसने, जीवन पे संकट झेलने का अवसर नहीं मिला है तो उसको रिटायर होने के बाद भी बेचैनी महसूस होती है। उसको लगता है, यार काम तो किया है, रोज परेड करते थे सभी, लेकिन काम नहीं आए। और काम का मतलब सेना के जवान के दिल में सिर्फ मारना नहीं होता है, सिर्फ मरना नहीं होता है, किसी के जीने के लिए जिंदगी खपा देना यही तो उसका सबसे बड़ा, बड़ा इंसप्रेशन होता है।
जितना सम्मान आप सबका है उससे अनेक गुणा सम्मान उस मां का है जिस मां ने आपको जन्म दिया है। मैं उन सभी माताओं को भी नमन करता हूं, जिसने मां भारती की रक्षा के लिए ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया है, संस्कार दिए हैं और जीने-मरने के लिए प्रेरणा दी है। कौन मां होती है जिसके दिल में ये भाव हो कि मैंने उसको जन्म तो दिया है लेकिन उसका जीवन मेरे काम आए न आए, भारत मां के लिए तो जरूर आए, मुझसे भी बढ़कर उसकी मां भारत मां है, ये असामान्य प्रेरणा मां देती है और इसलिए आपका जीवन सिर्फ सीमाओं का सुरक्षा करता है, ऐसा नहीं है। आपका जीवन सवा सौ करोड़ सपनों की भी सुरक्षा का विश्वास देता है। और उस सवा सौ करोड़ के सपनें क्या हैं? हमारी भारत माता विश्व गुरू बने, हमारी भारत माता जगत जननी बने। हमारे सवा सौ करोड़ भाई-बहन सुख-चैन की जिंदगी जीयें, गरीब से गरीब का बच्चा भी रात को भूखा न सो जाए, जीवन में कम से कम एक छत तो हो, सुलभ शिक्षा हो, और इसलिए आप सब सीमा के लिए नहीं हैं। आप सब सिर्फ भौगोलिक व्यवस्था की सुरक्षा के लिए नहीं हैं।
आपका जीवन परोक्ष रूप से कोटि-कोटि जीवनों की विकास की गारंटी देता है। और जब तक देश में शांति और सुरक्षा नहीं होगी, विकास असंभव होता है। विकास की पूर्व शर्त होती है शांति, सुरक्षा, भाईचारा, सदभावना। हमारी सेना भाईचारे की एक मिसाल है। न भाषा के भेद होते हैं, न ऊंच-नीच के भेद होते हैं, न अपना-पराया महसूस होता है। फौजी कहते ही एक अपनेपन का अहसास होता है। और ये रातोरात नहीं आता है। एक व्यवस्था के तहत संस्कार किए जाते हैं। हर पल इस संस्कार को जागरुक रखा जाता है, तब जाकर के आता है।
सेना भी तब तक सक्षम नहीं हो सकती हैं जब तक उसके पीछे की सारी व्यवस्थाएं सक्षम न हो। और पीछे की व्यवस्थाएं मतलब सिर्फ कैन्टोनमेंट नहीं होता है, सिर्फ सरकार नहीं होती है। जिस गांव में वो पैदा हुआ है उस परिवार तक पीछे की सारी व्यवस्था सुदृढ़ हो। जवान को पता होना चाहिए, विश्वास होना चाहिए कि मेरे बाद मेरा देश मेरे परिवार की चिंता करेगा। कोई कमी नहीं रखेगा, ये उसको भरोसा होना चाहिए। और राष्ट्र का और सरकारों का ये दायित्व होता है कि भरोसे को कभी आंच नहीं आनी चाहिए। कभी भी सीमा पर बैठे जवान के मन में सवालिया निशान नहीं खड़ा होना चाहिए।
मैं राजनीतिक क्षेत्र में संगठन का कार्य करता था। मैं ये चुनावी राजनीति और सत्ता की दुनिया में बहुत देर से आया। मैंने अपना जीवन इस प्रकार कैडर तैयार करने में लगाया। और मैं, कभी मेरी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जब संबोधन करता था, तो मैं एक बात उनको बताता था, क्यों कि अब चुनाव राजनीति में रहता है, टिकट लेने की इच्छाएं रहती हैं, टिकट नहीं मिलती हैं तो मन परेशान रहता है, फिर कभी-कभी विकृति भी आ जाती हैं, कभी गलत करने का भी मन कर जाता है। ये राजनीतिक क्षेत्र का एक स्वभाव रहता है। तो मैं कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण में कहता था, और मुझे मन करता है आज आपको भी वो सुनाऊ। मैं उनको कहता था कि सेना का जवान राखी के त्यौहार पर बहन से राखी बंधवाने के लिए छुट्टी लेकर के अपने घर जाता चाहता है। लास्ट मूवमेंट छुट्टी मिली है। वो अपना विस्तरा गोल करके उठा करके भागता है। जो भी ट्रक मिल गया, टेंपो मिल गया, कहीं नजदीक के रेलवे स्टेशन पर पहुंचता है। जो पैसेंजर हैं उसको अंदर घुसने नहीं देते, आरक्षण नहीं है। और हमेशा रोज का झगड़ा होता है, जम्मू स्टेशन पर आप देखो, रोज का झगड़ा होता है। पैसेंजर फौजी को जाने नहीं देते। उसको बैठने के लिए जगह नहीं मिलती है, क्योंकि यहां के लोगों को रोज की आदत है। बेचारा खड़ा-खड़ा चौबीस घंटे, तीस घंटे, छत्तीस घंटे ट्रेन में खड़ा-खड़ा बिना आरक्षण अपने घर जाता है। किसी न किसी कारण से ट्रेन कहीं छूट जाती है। बहुत सपने ले करके बहन से राखी बंधवाने निकला है लेकिन एक दिन देर से पहुंचता है। उधर बहन प्रतीक्षा कर रही है, ट्रेन में सफर कर रहे जवान के मन में बहन का चित्र है। राखी दिखती है, पहुंच नहीं पाता है, मन में पीड़ा होती है। जब घर पहुंचता है, मां, बेटी, बहन सब रो रहे हैं, राखी बंधवा पाए तो खुशी होती है। मां बीमार होती है, छुटि्टयां बढ़ाने के लिए कोशिश करता है, छुट्टी बढ़ती नहीं है, वापिस आता है। मां का ऑपरेशन करना है, दुबारा जाता है। ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों के घर-घर भटकता है। डॉक्टर कहता है पहले एडवांस में इतना पैसा दो। जेब में पैसा नहीं है। मन में गुस्सा आता है, डॉक्टर कैसा है, मैं फौजी हूं, देश के लिए मर रहा हूं, मेरी मां मर रही है वो ऑपरेशन नहीं कर रहा है। बच्चा स्कूल जाना चाहता है स्कूल वाला एडमिशन नहीं देता है। इतनी फीस दो तभी शायद एडमिशन फौज में रहा है तो मन करता है मैं तो भले ही सामान्य स्कूल में पढ़ा, लेकिन बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा। फीस के पूरे पैसे नहीं, स्कूल एडमीशन देता नहीं। मन में गुस्सा आता है, ये कैसा डॉक्टर है, ये कैसी स्कूल है, ये कैसी रेल, जो मुझे राखी के दिन पहुंचाती नहीं। मां के ऑपरेशन के लिए नहीं पहुंचाती। मां का ऑपरेशन नहीं होता, मां मर जाती है। कितनी निगेटिव चीजें उसके मन पर सवार होती हैं। एक के बाद एक घटनाओं का अगर वो हिसाब लगाए तो लगता है, क्या, मैं इसके लिए मरूं ? ये जो मेरे बच्चों को स्कूल का एडमिशन देते हैं, क्या इनके लिए मरूं, ये वो लोग, जब मेरी मां मर रही थी, अस्पताल में ऑपरेशन नहीं कर रहे थे, उनके लिए मरूं ? ये सब होने के बावजूद सेना के जवान की ताकत देखिए, उसका मिजाज देखिए, उसका संस्कार देखिए, जब जरूरत पढ़ती है, बिगुल बजता है तो कंधे पर बंदूक उठाकर के ‘भारत मां की जय’ करके निकल पढ़ता है। कभी सोचता नहीं है कि डॉक्टर ने मेरी मां के साथ क्या किया था, स्कूल के टीचर ने मेरे बच्चे के साथ क्या किया था, राखी के दिन मां के, बहन के पास पहुंचा था कि नहीं पहुंचा था, कभी सोचता नहीं है, निकल पड़ता है। ‘भारत मां की जय’ करके टूट पड़ता है। ये छोटी चीज नहीं है। ये सामान्य चीज नहीं है। और तब मैं राजनैतिक कार्यकर्ताओं को कहा करता था कि कभी हम उस सेना के जवान से प्रेरणा लें, कुछ भी नहीं मिलता है, कभी आदर-सत्कार-सम्मान भी नहीं मिलता है लेकिन जरूरत पड़ी तो कंधे पर बंदूक उठा करके ‘भारत माता की जय’ करके चल पड़ता है। ये मिजाज, ये ताकत, किसी भी राष्ट्र के सम्मान संरक्षा के लिए, स्वाभिमान के लिए, गौरव के लिए अनिवार्य होती है। और भारत इस बात का गर्व करता है कि हमारे पास ऐसी फौज है।
जल हो, थल हो, नभ हो, ऐसे वीरवती, पराक्रमी, तपस्वी, त्यागी जवानों की शृंखला है जिसका नाम लेते ही सीना तन जाता है। ऐसे जवानों के बीच आता हूं, मुझे भी देश के लिए और कुछ ज्यादा करने की प्रेरणा मिलती है। मैं यहां आपको कहने के लिए नहीं आता हूं, मैं बीच-बीच चला जाता हूं आप लोगों के बीच मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो अकसर मैं दिवाली मनाने के लिए सीमा पर चला जाता था। इसलिए नहीं कि मुझे उनको कुछ कहना है, इसलिए कि इनके बीच जा करके देशभक्ति की मेरी बैट्री भी जरा ज्यादा चार्ज हो जाती है। मैं तो चार्जिंग के लिए आया हूं। आपका जीवन हमें चार्जिंग करता है, हमें प्रेरणा देता है। सेना के जवान समाज के साथ भी उनका तालमेल चाहते हैं, दूरी नहीं चाहते। और वो एक ताकत देती है। अगर सेना के जवानों का लेह-लद्दाख के जनता के साथ तालमेल न होता और एक गाय-बकरी चराने वाला, ताशी नागिया, उससे कोई सेना का अधिकारी की भेंट न हुई होती, तो करगिल में पाकिस्तान की घुसपैठ का पता शायद कई दिनों तक नहीं चलता। एक गाय-भैंस-बकरी चराने वाले व्यक्ति ने सेना के जवानों के संपर्क के कारण जानकारी दी और देश जग गया और युद्ध हम जीत गए।
आज युद्ध सीमा पर होते, करीब-करीब बंद हो गए हैं। हमारा दुभार्ग्य है कि हमारे पड़ोसी की मानसिकता ने, युद्ध करने की तो ताकत खो दी है लेकिन प्राक्सी वार के माध्यम से निर्दोष नागरिकों को मारने का सिलसिला चला रहा है। कितने निर्दोष लोगों को मार दिया जा रहा है। युद्ध में जितने जवान शहीद हुए, उससे ज्यादा जवान इन बुझदिलों की गोलियों से मरने के लिए मजबूर हो गए। ये प्राक्सी वार, ये संकट सिर्फ भारत का नहीं, पूरे विश्व का हो गया है। और इसलिए विश्व में जितना सैन्य शक्ति के ताकत की जरूरत खड़ी हुई है, उतनी ही मानवतावादी ताकतों का इकट्ठा आना आवश्यक हो गया है। विश्व की मानवतावादी शक्तियां जितनी एकत्र आएंगी, हिंसा पर उतारू लोगों को जितना अलग-थलग करेगी और मानवतावादी शक्तियां मिल करके उन शक्तियों को परास्त करेगी, मानवतावादी विचार की, मानवतावादी प्रकृति की, मानवतावादी शक्ति की, मानवतावादी परंपरा की सुरक्षा के लिए हम समर्पित हैं। और इसके लिए भारत वचनबद्ध है, भारत कतर्व्यबद्ध है, भारत प्रतिबद्ध है और उसी विश्वास के साथ आगे बढ़ना है।
आपने नया बजट देखा होगा, ‘वन बैंक, वन पेंशन’ का हमारा कमिटमेंट आपको खुशी जरूर देता होगा। आजादी के बाद देश का जवान प्रतिक्षा कर रहा था कि नेशनल वार मेमोरियल बनेंगे। मैं आपको वादा करता हूं, बनेगा, बड़े गौरव से, बड़े शान से बनेगा, और हिंदुस्तान के कोटि-कोटि जन उसमें से प्रेरणा लेंगे। ये लोग जो हमारे लिए जीये, हमारे लिए मरे। ये सदा सर्वदा प्रेरणा देता रहेगा। सेना आधुनिक बने, सेना को भी संसाधनों की कमी महसूस न हो, भारत सुरक्षा के क्षेत्र में स्वावलंबी बने। मैंने बजट में हमने बहुत बड़ा डिसिजन लिया है। सुरक्षा के लिए आवश्यक सब इंतजाम भारत में तैयार क्यों न हों, हमें बाहर से क्यों लाना पड़े। और डिफेंस में एफडीआईआई आए, बाहर से टेक्नालॉजी आए, यहीं पर निर्माण कार्य हो। सेना के हमारे निवर्तमान जवान, उसमें इंजीनियर भी हैं, टेक्निकल स्टॉफ भी हैं, स्किलड पर्सन हैं। मैं डिफेंस मैनुफैक्चर्स सिस्टम में निवृत्ति के बाद भी इनकी ताकत कैसे काम में लगे, विदेशी धन कैसे लगे और उत्तम से उत्तम सुरक्षा का संविधान हम कैसे तैयार करें, उस दिशा में हम बहुत योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। अब मुझे विश्वास है हम जो चाहते हैं वो सुफल हमें मिलेंगे।
मैं फिर एक इस भवन जिनके नाम पर मैं इस वीर जवान के माध्यम से सभी शहीदों के प्रति अपना आदर भाव और नमन व्यक्त करता हूं। आप सबके कर्तव्य, कौशलता और साहस का मैं गर्व करता हूं और आपके एक मुखिया के रूप में, एक साथी के रूप में आपको ये विश्वास दिलाता हूं, ये देश आपके लिए है, आपके बीच में है, आपके सामर्थ्य के लिए सदा-सर्वदा गर्व करता है, करता रहेगा। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। मेरे साथ-साथ बोलिए- भारत माता की जय, वंदे मतरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम।