मैं राष्‍ट्रपति जी का बहुत आभारी हूं कि मुझे आप सबसे मिलने का अवसर मिला और राष्‍ट्रपति जी का ये इनीशिएटिव है, खास करके शिक्षा क्षेत्र के लिए और मैं देख रहा हूं कि लगातार वो इस विषय की चिंता भी कर रहे हैं, सबसे बात कर रहे हैं, और बहुत विगिरसली, इस काम के पीछे समय दे रहे हैं। उनका ये प्रयास, उनका मार्गदर्शन आने वाले दिनों के, और आने वाली पीढि़यों के लिए बहुत ही उपकारक होगा, ऐसा मेरा विश्‍वास है। हमारे देश में आईआईटी ने एक प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त की है। जिस कालखंड में इसका प्रारंभ हुआ, जिन प्रारंभिक लोगों ने इसको जिस रूप में इस्‍टे‍बलिश किया, उसकी एक ग्‍लोबल छवि बनी हुई है, और आज विद्यार्थी जगत में भी, और पेरेंट में भी एक रहता है कि बेटा आईआईटी में एडमिशन ले और एक प्रकार से आप का ब्रांडिंग हो चुका है। अब कोई ब्रांडिंग के लिए आपको ज्‍यादा कुछ करना पड़े, ऐसी स्थिति नहीं है। लेकिन कभी-कभी संकट लगता है कि इस ब्रांड को बचायें कैसे? और इसके कुछ लिए कुछ पारामीटर्स तय करना चाहिए ताकि कहीं कोई इरोजन न हो और कोशिश यह हो कि ज्‍यादा अपग्रेडेशन होता रहे।

आपका मैंने एजेंडा आज देखा, जितने विषय अपने सोचे हैं, उतने अगर आप तय करते हैं, तो मुझे नहीं लगता है कि आने वाले दस साल तक आपको कोई नए विचार की जरूरत पड़ेगी या कोई कमियां महसूस होगी, काम के लिए। इतना सारा एजेंडा आपने रखा है आज। ग्‍लोबल रैंकिंग से लेकर के आईआईटियन के उपयोग तक की सारी इसकी रेंज है। एक, मुझे ऐसा लगता है कि एक तो हमें ग्‍लोबल रैंकिंग के लिए जरूर कुछ कर लेना चाहिए क्‍योंकि आइसोलेटेड वर्ल्‍ड में हम रह नहीं सकते। लेकिन एक बार हमारे अपने पारामीटर तय करके, देश की अंदरूनी व्‍यवस्‍था में हम कोई रैंकिंग की व्‍यवस्‍था विकसित कर सकते हैं क्‍या? वही हमको फिर आगे हमें ग्‍लोबल रैंकिंग की तरफ ले जाएगा। हमीं कुछ पारामीटर तय करें कि हमारी सारी आईआईटी उस पारामीटर से नीचे नहीं होंगी, और इससे ऊपर जाने का जो प्रयास करेगा, उसकी रैंकिंग की व्‍यवस्‍था होगी, रेगुलरली उसकी मानिटरिंग की व्‍यवस्‍था होगी। और उसकी जब प्रक्रिया बनती है तो एक कांस्‍टेंट इनबिल्‍ट सिस्‍टम डेवलप कर सकते हैं जो हमें इंप्रूवमेंट की तरफ ले जाता है।

दूसरा एक मुझे विचार आता है कि आईआईटियन्‍स होना, ये अपने आप में एक बड़े गर्व की बात है, रिटायरमेंट के बाद भी वह बड़ा गर्व करता है। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है आईआईटी की, उसका हर स्‍टूडेंट जीवन के किसी भी काल में आईआईटियन होने का गर्व करता है। ये बहुत ही बड़ी हमारी पूंजी है। आईआईटी अलूमनी का हम उपयोग क्‍या करते हैं ? डू यू हैव अवर ऑन रीजन? वो हमारे कैम्‍पस के लिए कोई आर्थिक मदद करें, कभी आयें, अपने जीवन में बहुत ऊंचाइयां प्राप्‍त किये हैं तो अपने स्‍टूडेंट्स को आकर अपने विचार शेयर करें, इंस्‍पायर करें।

मैं समझता हूं कि इससे थोड़ा आगे जाना चाहिए। हम अलूमनी पर फोकस करें और उनसे आग्रह करें कि साल में कितने वीक वो हमारे स्‍टूडेंट्स के लिए देंगे। उनके रुपये-डॉलर से ज्‍यादा उनका समय बहुत कीमती है। कोई जरूरी नहीं है कि वह जिस आईआईटी से निकला है, वहीं आए। इंटरचेंज होना चाहिए। एक्‍सपीरियेंस शेयर करने का अवसर मिलना चाहिए। यह अपने आपमें बेहतरीन अनुभव है, क्‍योंकि स्‍टूडेंट जीवन से बाहर जाने के बाद 20 साल , 25 साल में उन्‍होंने दुनिया देखी है। कुछ आईआईटियन्‍स होंगे जो अपने आप में कुछ करते होंगे, मेरे पास डाटा नहीं है। करते होंगे।

लेकिन, मैंने डाक्‍टरों को देखा है, दुनिया के भिन्‍न-भिन्‍न देशों में अपना स्‍थान बनाने के बाद वह डॉक्‍टर वहां इकट्ठे होकर एक टीम बनाते है। एक दूसरे के उपयोगी हों, ऐसी टीम बनाते है। टीम बना करके हिन्‍दुस्‍तान में आ करके रिमोटेस्‍ट से रिमोट एरिया में वह चले जाते हैं। 15 दिन के लिए कैंप लगाते हैं, मेडिकल चेकअप करते हैं, आपरेशन्‍स करते हैं, एक-आध दिन वह स्‍टूडेंट्स को वो सिखाने के लिए चले जाते हैं। कई ऐसे डाक्‍टरों की टीमें हैं जो ऐसी काम करती है। क्‍या आईआईटी अलुमनी की ऐसी टीमें बन सकती है?

दूसरा मुझे लगता है कि आईआईटी अलुमनी की एक मैपिंग करें, कि हमारे जो पुराने स्‍टूडेंट्स थे, उनकी आज किस विषय में किसकी क्‍या कैपिबिलिटी है। हम उनका ग्रुपिंग करें। मान लीजिए कि आज वो कुछ आईआईटी के स्‍टूडेंट्स दुनिया में कहीं न कहीं हेल्‍थ सेक्‍टर में काम कर रहे हैं। हेल्‍थ सेक्‍टर से जुड़े हुए आईआईटियन्‍स को बुलाकर के उनका नॉलेज जो है, उनके एक्‍सपर्टीज जो हैं, हिन्‍दुस्‍तान में हेल्‍थ सेक्‍टर में वो कैसे कंट्रीब्‍यूट कर सकते हैं। उनके आईडियाज, उनका समय, उनकी योजनाएं, एक बहुत बड़ी जगह है, जिनको हम जोड़ सकते हैं। उसका हमें प्रयास करना चाहिए।

मुझे लगता है, हर बच्‍चा आईआईटी में नहीं जा पाएगा और अकेले आईआईटी से देश बन नहीं पाएगा। इस बात को हमें स्‍वीकार करना होगा। आज आईआईटीज की वो ताकत नहीं है कि रातें-रात हम कैनवास बहुत बड़ा कर दें। फैकल्‍टी भी नहीं मिलती है। क्‍या आईआईटीज हमारी, अपने नजदीकी एक या दो कॉलेज को अडॉप्‍ट कर सकती है ? और वो अपना समय देना, स्‍टूडेंट्स भेजना, सीनियर स्‍टूडेंट्स भेजना, प्रोफेसर भेजना, उनको कभी यहां बुलाना, उनकी क्‍वालिटी इम्‍प्रूवमेंट में आईआईटी क्‍या भूमिका निभा सकता है? बड़ी सरलता से किया जा सकता है। अगर हमारे आईआईटियन अपने नजदीक के एक-दो इंजीनियरिंग कॉलेज को ले लें तो हो सकता है कि आज हम 15 होंगे तो हम 30-40 जगह पर अपना एक छोटा-छोटा इम्‍प्रूवेंट कर सकते हैं। हो सकता है कि वहां से बहुत स्‍टूडेंट्स होंगे जो किसी न किसी कारण से आईआईटी में एडमिशन नहीं ले पाये होंगे लेकिन उनमें टैलेंट की कमी नहीं होगी। अगर थोड़ा उनको अवसर मिल जाए तो हो सकता है कि वो स्‍टूडेंट भी देश के काम आ जाएं।

एक बात मैं कई दिनों से अनुभव करता हूं कि हमें ग्‍लोबल टैलेंट पुल पर सोचना चाहिए। मैं ग्‍लोबल टैलेंट की बात इसलिए करता हूं कि सब जगह फैकल्‍टी इज ए इश्‍यू । सब जगह फैकल्‍टी ‍मिलती नहीं है। क्‍या दुनिया में जो लोग इन-इन विषयों को पढ़ाते थे, अब रिटायर हो गये, उन रिटायर लोगों का एक टैलेंट पूल बनाएं और उनके यहां जब विंटर हों, क्‍योंकि उनके लिए वेदर को झेलना बहुत मुश्किल होता है, उस समय हम उनको ऑफर करें कि आइए इंडिया में तीन महीने, चार महीने रहिए। वी विल गिव यू द बेस्‍ट वेदर और हमारे बच्‍चों को पढ़ाइये। वी बिल गिव यू द पैकेज। अगर हम इस प्रकार के एक पूरा टैलेंट पूल ग्‍लोबल बनाते हैं, और वहां जब विंटर हो, क्‍योंकि वह जिस एज ग्रूप में हैं, वहां की विंटर उन्‍हें परेशान करती है। इकोनोमिकली वो इतना साउंड नहीं हैं कि दस नौकर रख पायें घर में। वो सब उन्‍हें खुद से करना पड़ता है। उनको मिलते नहीं नौकर। वह अगर हिंदुस्‍तान आए तो हम अच्‍छी फेसिलिटी दें और मैं मानता हूं कि उसकी कैपिसिटी है हमारे स्‍ट्रडेंट को पढ़ाने की और एक फ्रेश एयर हमें मिलेगी। हम इस ग्‍लोबल टेलेंट पूल को बना कर के अगर हम लाते हैं। कहीं से शुरू करें, दो, पांच, सात से, आप देखिए धीरे-धीरे-धीरे और नॉट नेसेसिरली आईआईटी, और भी इंस्‍टीट्यूशंस हैं, जिसको इस प्रकार के लोगों की आवश्‍यकता है। इस पर हम सोच सकते हैं। मैं मानता हूं कि साइंस इज यूनिवर्सल बट टेक्‍नोलॉजी मस्‍ट बी लोकल। और यह काम आईआईटियन्‍स कर सकते हैं।

मैं एक बार नॉर्थ ईस्‍ट गया, अब नॉर्थ ईस्‍ट के लोग, कुएं से पानी निकालना है, तो पाइपलाइन का उपयोग नहीं करते हैं, बंबू का उपयोग करते हैं। मतलब उसने, जो भी वैज्ञानिक सोच बनी होगी, बंबू लाइफलोंग चलता है, उसको रिप्‍लेस भी नहीं करना पड़ता है। उसमें जंग भी नहीं लगती है, ऐसी बहुत सी चीजें हैं। हम आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों को उपलब्‍ध व्‍यवस्‍थाओं के साथ जोड़कर के, हमारे सामान्‍य जीवन में क्‍वालिटेटिव चेंज लाने के लिए, हम रिसर्च का काम, प्रोजेक्‍ट अपने यहां ले सकते हैं क्‍या ? हम ज्‍यादा कंट्रीब्‍यूट कर पाएंगे, ऐसा मुझे लगता है।

आईआईटी में जो बैच आते हैं, उसी वर्ष उसके लिए प्रोजेक्‍ट तय होने चाहिए। पांच प्रोजेक्‍ट लें, छह प्रोजेकट लें, 10 प्रोजेक्‍ट लें। 10-10 का ग्रुप बना दें, लाइक माइंडेड। जब वो एजुकेशन पूरा करे, तब तक एक ही प्रोजेक्‍ट पर काम करे। मैं मानता हूं, वे पढ़ते ही पढ़ते ही देश को काफी कुछ कंट्रीब्‍यूट कर के जाएंगे। मान लीजिए, किसी ने ले लिया रूरल टॉयलेट। रूरल टॉयलेट करना है तो क्‍या होगा, पानी नहीं है, क्‍या व्‍यवस्‍था करेंगे। किस प्रकार के डिजाइन होंगे, कैसे काम करेंगे, वो अपना पढ़ाई पूरी करते-करते इतने इनोवेशन के साथ वो देगा, कॉस्‍ट इफेक्टिव कैसे हो, यूटिलिटी वाइज अच्‍छा कैसे हो, मल्‍टीपल यूटीलिटी में उसका बेस्‍ट उपयोग कैसे होगा, सारी चीजें वह सोचना शुरू कर देगा। लेकिन हम प्रारंभ में ही तय करें कि 25 प्रोजेक्‍ट है, यू विल सलेक्‍ट, उसका एक एक ग्रुप बन जाए। वह अपना काम करते रहें। मैं समझता हूं कि हर बैच जाते समय देश को 5-10 चीजें देकर जाएंगे। जो बाद में, हो सकता है कि एक इनक्‍यूबेशन सेंटर की जरूरत पड़ेगी, हो सकता है कि एक कर्मशियल मॉडल की जरूरत पड़ेगी, यह तो एक्‍सटेंशन उसका आगे बढ़ सकता है। लेकिन यह परमानेंट कंट्रीब्‍यूशन होगा।

दूसरा ये होगा कि जो बाइ इन लार्ज आज कैरिअर ओरिएंटेड जीवन हो चुका है और कैरिअर का आधार भी डॉलर और पाउंड के तराजू पर तौला जाता है, सटिसफेक्‍शन लेवल के साथ जुड़ा हुआ नहीं है, ईट इज ट्रेजेडी ऑफ द कंट्री। लेकिन ये अगर करेगा, तो उसके मन में जॉब से भी बढ़कर, कैरिअर से भी बढ़कर, एक सटिसफेक्‍शन लेवल की एक रूचि बनेगी। उसका एक मॉल्डिंग होगा। हम उस पर यदि कुछ बल देते हैं तो करना चाहिए। मैंने 15 अगस्‍त को एक बात कही थी, जो प्राइवेट में काम करता है, तो कहते हैं, जॉब करता है, सरकार में जो काम करता है सर्विस करता है। यह जॉब कल्‍चर से सर्विस कल्‍चर से लाने का एनवायरमेंट हम आईआईटी में बनाएं। देश के लिए कुछ तो करना चाहिए। आज देखिए, डिफेंस सेक्‍टर, इतना अरबों-खरबों रुपये का हम इंपोर्ट करते हैं। मैं नहीं मानता है कि हमारे देश के पास ऐसे टेलेंट नहीं है, जो यह न बना पाएं। अश्रु गैस, बाहर से इमपोर्ट करते हैं, क्‍या हम नहीं बना सकते ? यू विल बी सरप्राइज, हमारी जो केरेंसी है, केरेंसी की इंक हम इंपोर्ट करते हैं और छापते है हम गांधी जी की तस्‍वीर।

यह चैलेंजेज क्‍यों न उठाएं हम, क्‍यों न उठाएं ? मैं मानता हूं कि एक-एक चीज को उठाकर के हम अब उसके लिए कोई एक व्‍यक्ति बनाएं, आप खुद सोच लें तो सैकड़ों चीज हो जाए, मान लीजिए डिफेंस में है, हो सकता है कि हम कम पड़ जाते हैं। बहुत बड़ी चीजें रिसर्च करके हम नहीं दे पाते है। हेल्‍थ सेक्‍टर में ले लीजिए, एक थर्मामीटर भी हम बाहर से इमपोर्ट करते है।

हेल्‍थ आज टोटली टेक्‍नोलॉजी आधारित हो गई है। अन्‍य का रोल 10 परसेंट है, तो 90 परसेंट रोल टेक्‍नोलॉजी का है। अगर टेक्‍नोलॉजी का रोल हेल्थ सेक्‍टर को रिप्‍लेस कर रही है तो वाट इज अवर इनिशिएटिव? मैं जब गुजरात में जब था, तो एक डॉक्‍टर को जानता था, जिन्‍होंने हर्ट के लिए स्‍टैंट बनाया था, इंजीनियरिंग के स्‍टूडेंट को लेकर के। मार्केट में स्‍टैंट की जो कीमत थी, उसके मुकाबले उसने जो स्‍टैंट बनाया था उसकी 10 परसेंट कीमत थी और फूल प्रूफ हो चुका है, 10 साल हो गए हैं, देयर इज नो कम्‍पलेंट एट ऑल। एक डॉक्‍टर ने अपने प्रोफेशन के साथ-साथ हर्ट के लिए स्‍टैंट बनाया – हि इज हार्ट सर्जन, लेकिन इस काम को किया, अपने आइडियाज से इंजीनियरिंग फील्‍ड के लोगों को बुलाया। एंड ही इज ट्राइंग हिज लेवल बेस्‍ट कि हमारा इंटरफेस हो सकता है क्‍या ? मेडिकल फैक‍ल्‍टी एंड आईआईटियन्‍स और स्‍पेशियली इक्‍विपमेंट मैन्‍यूफैक्‍चरिंग में भारत को हेल्‍थ सेक्‍टर के लिए अपनी बनाई हुई चीजें क्‍यों न मिले ? इस चैलेंज को मैं समझता हूं, हमारे आईआईटियंस उठा सकते है।

आज भी हमारे देश में लाखों लोगों के पास छत नहीं है, रहने के लिए। हमारी कल्‍पना है कि भारत जब आजादी के 75 साल मनाए तो कम से कम देश में बिना छत के कोई परिवार न हो। क्‍या यह काम करना है तो बहुत गति से मकानों का निर्माण कैसे हो ? जो मकान बनें वे सस्‍टेन करने की दृष्टि से बहुत अच्‍छा बने। मैटिरियल भी बेस्‍ट से बेस्‍ट उपयोग करने की आदत कैसे बने, इन सारी चीजों को लेकर के, क्‍या आईआईटी की तरफ से मॉडल आ सकते हैं क्‍या। डिजाइंस आ सकते हैं क्‍या? मैटिरियल, उसका स्‍ट्रक्‍चर, सारी चीजें आ सकती है। हम समस्‍याओं को खोजने का प्रयास करे।

दुनिया में जैसे हम आईआईटी के लिए गर्व कर सकते हैं, भारत एक बात पर गर्व कर सकता है, लेकिन पता नहीं कि हमने उसको पर्दें के पीछे डालकर रखा हुआ है। और वे है हमारी रेलवे। हम दुनिया के सामने अकेले हमारे रेलवे की ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग कर सकते हैं। अकेला इतना बड़ा नाम है, इतना बड़ा नेटवर्क, इतना डेली लोगों का आना-जाना, इतने टेलेंट का, मैं मानता हूं कि सामान्‍य से सामान्‍य व्‍यक्ति से हाईली क्‍वालिफाईड इंसान, सबका सिंक्रोनाइज एक्टिविटी है। लेकिन हमने उस रूप में देखा नहीं है। इसी रेलवे को अति आधुनिक, एक्जिस्टिंग व्‍यवस्‍था को, बुलट ट्रेन वगैरह तो जब होगी, तब होगी लेकिन एक्जिस्टिंग व्‍यवस्‍था यूजर फ्रेंडली कैसे बने, सारी व्‍यवस्‍था को हम विकसित कैसे करें, टेक्‍नोलॉजी इनपुट कैसे दें, उन्‍हीं व्‍यवस्‍थाओं को कैसे हम बढ़ाएं ?

छोटी-छोटी चीजें हैं, हम बदलाव कर सकते हैं।, आज हमारा रेलवे ट्रैक पर जो डिब्‍बा होता है, 16 टन का होता है। उसका अपना ही बियरिंग कैपिसिटी है। क्‍या आईआईटियन उसको छह टन का बना सकते हैं? फिर भी सेफ्टी हो आप कल्‍पना करके बता सकते हैं, कैपेसिटी कितनी बढ़ जाएगी। नई रेल की बजाए इसकी कैपेसिटी बढ़ जाएगी। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि हम भारत की आवश्‍यकताओं को सिर्फ किताबी बात नहीं आईआईटी से निकलने वाला और समाज को एक साथ कुछ न कुछ देकर जाएगा। इस विश्‍वास के साथ हम कुछ कर सकते हैं।

मैं मानता हूं कि हमारे देश में दो चीजों पर हम कैसे बढ रहे हैं और जो सामान्‍य मानविकी जीवन में भी है, एक साइंस ऑफ थिकिंग और एक आर्ट ऑफ लिविंग। यह कम्‍बीनेशन देखिए, इवन आईआईटी के स्‍टूडेंट को भी पूछना, प्रवोक करना है।

एक घटना सुनिए, बड़ी घटना है। एक साइंटिस्‍ट एक यूनिवर्सिटी में गए। स्‍टूडेंट्स भी बड़े उनसे अभिभूत थे, बहुत ही ओवर क्राउडेड रूम हो गया था। उन्‍होंने पूछा, भाई, हमें अगर आगे बढ़ना है, तो आब्‍जर्ब करने की आदत बढ़ना चाहिए। तो समझा रहे थे, हम देखते हैं, लेकिन आब्‍जर्ब नहीं करते और साइंटिफिक टेंपर वहीं से आता है। तो उसने कहा कि ऐसा करो भाई, एक टेस्‍ट ट्यूब लेकर के कोई नौजवान बाथरूम में जाओ, और उसमें अपना यूरिन ले कर के आओ। उन्‍होंने एक स्‍टूडेंट को भेजा, वह बाथरूम गया, टेस्‍ट ट्यूब में यूरिन ले कर आया। यूरिन लिया। यूरिन में अपनी अंगुली डाली, और फिर मुंह में डाली। सारे स्‍टूडेंट्स परेशान, यह कैसा साइंसटिस्‍ट है, दूसरे का यूरिन अपने मुंह में डालता है। हरेक के मुंह से – हैं ए ए ए – बड़ा निगेटिव आवाज निकली। फिर ये हंस पड़े। बोलो, आपको अच्‍छा नहीं लगा ना। क्‍यों, क्‍योंकि आपने आब्‍जर्ब नहीं किया। आपने सिर्फ देखा। मैंने टेस्‍ट ट्यूब में ये अंगुली डाली थी, और मुंह में ये (दूसरी अंगुली) लगाई थी। बोले, अगर आप आब्‍जर्ब करने की आदत नहीं डालते हैं, सिर्फ देखते हैं, तो आप शायद उस साइंटिफिक टेंपर को इवाल्‍व नहीं कर सकते हैं, अपने आप में। मेरा कहने का तात्‍पर्य यह है कि इन चीजों को कैसे करें। और एक विषय है, आखिर में अपनी बात समाप्‍त करूंगा।

हमारे देश में बहुत से लोग होते हैं, जो स्‍कूल-कॉलेज कहीं नहीं गए, पर बहुत चीजें नई वो इनोवेट करते हैं। बहुत चीजें बनाते हैं। क्‍या हम, जिस इलाके में हमारे आईआईटी हों, कम से कम उस इलाके के 800-1000 गावों में ऐसे लोग हैं क्‍या? किसान भी अपने तरीके से व्‍यवस्‍था को नया डाइमेंशन दे देता है। थोड़ा सा मोडिफाई कर देता है। कभी हमारे स्‍टूडेंट्स को प्रोजेक्‍ट्स देना चाहिए, यदि हमारे किसान ने यह काम कर दिया है, तो तुम इसे साइंटिफिकली परफेक्‍ट कैसे कर सकते हो, फुलप्रुफ कैसे विकसित कर सकते हो ? क्‍योंकि बड़ी खोज की शुरूआत, एक स्‍पार्क् से होती है। यह स्‍पार्क् कोई न कोई प्रोवाइड करता है। हम अगर उनको एक प्रोजेक्‍ट दें, हर आईआईटी को ऐसे 25 लोगों को ढूढ़ना है जो अपने तरीके से जीवन में कुछ न कुछ करते हैं, कुछ न कुछ कर दिया है। उन 25 को कभी बुलाइए, उनके एक्‍सपीरियेंस स्‍टूडेंट़स के साथ शेयर कीजिए। वह पढ़ा लिखा नहीं है, उनको भाषा भी नहीं आती है। लेकिन वो उनको नई प्रेरणा देगा।

अहमबदाबाद आईआईएम में मिस्‍टर अनिल गुप्‍ता इस दिशा में कुछ न कुछ करते रहते हैं। लेकिन यह बहुत बड़ी मात्रा में आईआईटी स्‍टूडेंट के द्वारा किया जा सकता है। ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिसको लेकर के बात समझता हूं, हम करें तो माने एक अलग इाडमेंशन पर ही अपनी बातें रखने का प्रयास किया है। लेकिन कई दिशाओं पर आप चर्चा करने वाले हैं। और मुझे विश्‍वास है, आईआईटी ने इस देश को बहुत कुछ दिया है, और बहुत कुछ देने की क्षमता भी है। सिर्फ उसको उपयोग में कैसे लायें, इस दिशा में प्रयास करें।

मैं फिर से एक बार राष्‍ट्रपति जी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि इस प्रकार का अवसर मिला।

थैंक्‍यू।

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राजस्थान के राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागड़े जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री भजनलाल जी शर्मा, राजस्थान सरकार के मंत्रिगण, सांसदगण, विधायकगण, इंडस्ट्री के साथी, विभिन्न ऐंबेसेडेर्स, दूतावासों के प्रतिनिधि, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

राजस्थान की विकास यात्रा में, आज एक और अहम दिन है। देश और दुनिया से बड़ी संख्या में डेलीगेट्स, इन्वेस्टर्स यहां पिंक सिटी में पधारे हैं। यहां उद्योग जगत के भी अनेक साथी मौजूद हैं। राइजिंग राजस्थान समिट में आप सभी का अभिनंदन है। मैं राजस्थान की बीजेपी सरकार को इस शानदार आय़ोजन के लिए बधाई दूंगा।

साथियों,

आज दुनिया का हर एक्सपर्ट, हर इन्वेस्टर भारत को लेकर बहुत ही उत्साहित है। Reform-Perform-Transform के मंत्र पर चलते हुए, भारत ने जो विकास किया है, वो हर क्षेत्र में नजर आता है। आजादी के बाद के 7 दशक में भारत दुनिया की ग्यारहवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन पाया था। उसके सामने पिछले 10 वर्ष में भारत 10th largest economy से 5th largest इकोनॉमी बना है। बीते 10 वर्षों में भारत ने अपनी इकोनॉमी का साइज़ करीब-करीब डबल किया है। बीते 10 वर्षों में भारत का एक्सपोर्ट भी करीब-करीब डबल हो गया है। 2014 से पहले के दशक की तुलना में बीते दशक में FDI भी दोगुना से अधिक हुआ है। इस दौरान भारत ने इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च करीब 2 ट्रिलियन रुपए से बढ़ाकर 11 ट्रिलियन तक पहुंचा दिया है।

साथियों,

डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी, डिजिटल डेटा और डिलिवरी की पावर क्या होती है, ये भारत की सफलता से पता चलता है। भारत जैसे डायवर्स देश में, डेमोक्रेसी इतनी फल-फूल रही है, इतनी सशक्त हो रही है, ये अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। डेमोक्रेटिक रहते हुए, मानवता का कल्याण, ये भारत की फिलॉसॉफी के कोर में है, ये भारत का मूल चरित्र है। आज भारत की जनता, अपने डेमोक्रेटिक हक के माध्यम से भारत में स्टेबल गवर्नमेंट के लिए वोट दे रही है।

साथियों,

भारत के इन पुरातन संस्कारों को हमारी डेमोग्राफी यानि युवाशक्ति आगे बढ़ा रही है। आने वाले अनेक सालों तक भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में रहने वाला है। भारत में युवाओं का सबसे बड़ा पूल होने के साथ ही सबसे बड़ा स्किल्ड युवा वर्ग भी होगा। इसके लिए सरकार, एक के बाद एक कई फैसले ले रही है।

साथियों,

बीते दशक में भारत की युवाशक्ति ने अपने सामर्थ्य में एक और आयाम जोड़ा है। ये नया आयाम है, भारत की टेक पावर, भारत की डेटा पावर। आप सभी जानते हैं कि आज हर सेक्टर में टेक्नोलॉजी का, डेटा का कितना महत्व है। ये सदी टेक ड्रिवन, डेटा ड्रिवेन सदी है। बीते दशक में भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या करीब 4 गुना बढ़ी है। डिजिटल ट्रांजेक्शन्स में तो नए रिकॉर्ड बन रहे हैं, और ये तो अभी शुरुआत है। भारत, दुनिया को डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डेटा की असली ताकत दिखा रहा है। भारत ने दिखाया है कि कैसे डिजिटल टेक्नोलॉजी का डेमोक्रेटाइजेशन, हर क्षेत्र, हर वर्ग को फायदा पहुंचा रहा है। भारत का UPI, भारत का बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम सिस्टम, GeM, गवर्नमेंट ई-मार्केट प्लेस, ONDC- Open Network for Digital Commerce, ऐसे कितने ही प्लेटफॉर्म्स हैं, जो डिजिटल इकोसिस्टम की ताकत को दिखाते हैं। इसका बहुत बड़ा लाभ, और बहुत बड़ा प्रभाव हम यहां राजस्थान में भी देखने जा रहे हैं। मेरा हमेशा से विश्वास रहा है- राज्य के विकास से देश का विकास। जब राजस्थान विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचेगा तो देश को भी नई ऊंचाई मिलेगी।

साथियों,

क्षेत्रफल के हिसाब से राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य है। और राजस्थान के लोगों का दिल भी उतना ही बड़ा है। यहां के लोगों का परिश्रम, उनकी ईमानदारी, कठिन से कठिन लक्ष्य को पाने की इच्छाशक्ति, राष्ट्र प्रथम को सर्वोपरि रखने की भावना, देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा, ये आपको राजस्थान की रज-रज में, कण-कण में दिखाई देती है। आजादी के बाद की सरकारों की प्राथमिकता, ना देश का विकास था, औऱ ना ही देश की विरासत। इसका बहुत बड़ा राजस्थान नुकसान उठा चुका है। लेकिन आज हमारी सरकार विकास भी, विरासत भी इस मंत्र पर चल रही है। औऱ इसका बहुत बड़ा लाभ राजस्थान को हो रहा है।

साथियों,

राजस्थान, राइजिंग तो है ही, Reliable भी है। राजस्थान Receptive भी है और समय के साथ खुद को Refine करना भी जानता है। चुनौतियों से टकराने का नाम है- राजस्थान, नए अवसरों को बनाने का नाम है- राजस्थान। राजस्थान के इस R-Factor में अब एक और पहलू जुड़ चुका है। राजस्थान के लोगों ने यहां भारी बहुमत से बीजेपी की Responsive और Reformist सरकार बनाई है। बहुत ही कम समय में यहां भजन लाल जी और उनकी पूरी टीम ने शानदार काम करके दिखाया है। कुछ ही दिन में राज्य सरकार अपने एक साल भी पूरे करने जा रहा है। भजन लाल जी जिस कुशलता और प्रतिबद्धता के साथ राजस्थान के तेज़ विकास में जुटे हैं, वो प्रशंसनीय है। गरीब कल्याण हो, किसान कल्याण हो, युवाओं के लिए नए अवसरों का निर्माण हो, सड़क, बिजली, पानी के काम हों, राजस्थान में हर प्रकार के विकास, उससे जुड़े हुए सारे कार्य तेज़ी से हो रहे हैं। क्राइम और करप्शन को कंट्रोल करने में जो तत्परता यहां सरकार दिखा रही है, उससे नागरिकों और निवेशकों में नया उत्साह आया है।

साथियों,

राजस्थान के Rise को औऱ ज्यादा फील करने के लिए राजस्थान के Real potential को Realise करना बहुत जरूरी है। राजस्थान के पास natural resources का भंडार है। राजस्थान के पास आधुनिक कनेक्टिविटी का नेटवर्क है, एक समृद्ध विरासत है, एक बहुत बड़ा लैंडमास है और बहुत ही समर्थ युवा शक्ति भी है। यानि रोड से लेकर रेलवेज तक, हॉस्पिटैलिटी से हैंडीक्राफ्ट तक, फार्म से लेकर फोर्ट तक राजस्थान के पास बहुत कुछ है। राजस्थान का ये सामर्थ्य, राज्य को इन्वेस्टमेंट के लिए बहुत ही attractive destination बनाता है। राजस्थान की एक और विशेषता है। राजस्थान में सीखने का गुण है, अपना सामर्थ्य बढ़ाने का गुण है। और इसीलिए तो अब यहाँ रेतीले धोरों में भी पेड़, फलों से लद रहे हैं, जैतून और जेट्रोपा की खेती का काम बढ़ रहा है। जयपुर की ब्लू पॉटरी, प्रतापगढ़ की थेवा ज्वेलरी और भीलवाड़ा का टेक्सटाइल इनोवेशन...इनकी अलग ही शान है। मकराना के मार्बल और कोटा डोरिया की पूरी दुनिया में पहचान है। नागौर में, नागौर के पान मेथी की खुशबू भी निराली है। और आज की बीजेपी सरकार, हर जिले के सामर्थ्य को पहचानते हुए काम कर रही है।

साथियों,

आप भी जानते हैं भारत के खनिज भंडार का बहुत बड़ा हिस्सा राजस्थान में है। यहां जिंक, लेड, कॉपर, मार्बल, लाइमस्टोन, ग्रेनाइट, पोटाश जैसे अनेक मिनरल्स के भंडार हैं। ये आत्मनिर्भर भारत की मजबूत नींव हैं। राजस्थान, भारत की एनर्जी सिक्योरिटी में बहुत बड़ा कंट्रीब्यूटर है। भारत ने इस दशक के अंत तक 500 गीगावॉट रीन्युएबल एनर्जी कैपेसिटी बनाने का टारगेट रखा है। इसमें भी राजस्थान बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। भारत के सबसे बड़े सोलर पार्क्स में से अनेक पार्क यहां पर बन रहे हैं।

साथियों,

राजस्थान, दिल्ली और मुंबई जैसे economy के दो बड़े सेंटर्स को जोड़ता है। राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के पोर्ट्स को, नॉर्दन इंडिया से जोड़ता है। आप देखिए दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का 250 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान में है। इससे राजस्थान के अलवर, भरतपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, टोंक, बूंदी और कोटा ऐसे जिलों को बहुत फायदा होगा। Dedicated freight corridor जैसे आधुनिक रेल नेटवर्क का 300 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान में है। ये कॉरिडोर, जयपुर, अजमेर, सीकर, नागौर और अलवर जिलों से होकर गुजरता है। कनेक्टिविटी के इतने बड़े प्रोजेक्ट्स का सेंटर होने के कारण राजस्थान निवेश के लिए बेहतरीन डेस्टिनेशन है। खासतौर पर ड्राय पोर्ट्स और लॉजिस्टिक्स सेक्टर के लिए तो यहां अपार संभावनाएं हैं। हम यहाँ मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क का विकास कर रहे हैं। यहां लगभग दो दर्जन Sector Specific इंडस्ट्रियल पार्क बनाए जा रहे हैं। दो एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स का निर्माण भी हुआ है। इससे राजस्थान में इंडस्ट्री लगाना आसान होगा, इंडस्ट्रियल कनेक्टिविटी और बेहतर होगी।

साथियों,

भारत के समृद्ध फ्यूचर में हम टूरिज्म का बहुत बड़ा पोटेंशियल देख रहे हैं। भारत में नेचर, कल्चर, एडवेंचर, कॉन्फ्रेंस, डेस्टिनेशन वेडिंग और हैरिटेज टूरिज्म सबके लिए असीम संभावनाएं हैं। राजस्थान, भारत के टूरिज्म मैप का प्रमुख केंद्र है। यहां इतिहास भी है, धरोहरें भी हैं, विशाल मरुभूमि और सुंदर झीलें भी हैं। यहां के गीत-संगीत और खान-पान उसके लिए तो जितना कहे, उतना कम है। Tour, Travel और Hospitality Sector को जो चाहिए, वो सब राजस्थान में है। राजस्थान दुनिया के उन चुनिंदा स्थानों में से एक है, जहां लोग शादी-ब्याह जैसे जीवन के पलों को यादगार बनाने के लिए राजस्थान आना चाहते हैं। राजस्थान में wild life tourism का भी बहुत अधिक स्कोप है। रणथंभौर हो, सरिस्का हो, मुकुंदरा हिल्स हो, केवलादेव हो ऐसे अनेक स्थान हैं, जो वाइल्ड लाइफ को पसंद करने वालों के लिए स्वर्ग हैं। मुझे खुशी है कि राजस्थान सरकार अपने टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स, हैरिटेज सेंटर्स को बेहतर कनेक्टिविटी से जोड़ रही है। भारत सरकार ने लगभग अलग-अलग थीम सर्किट्स से जुड़ी योजनाएं भी शुरू की हैं। 2004 से 2014 के बीच, 10 साल में भारत में 5 करोड़ के आस-पास विदेशी टूरिस्ट आए थे। जबकि, 2014 से 2024 के बीच भारत में 7 करोड़ से ज्यादा विदेशी टूरिस्ट आए हैं, और आप ध्यान दीजिए, इन 10 वर्षों में पूरी दुनिया के तीन-चार साल तो कोरोना से लड़ने में निकल गए थे। कोरोना काल में टूरिज्म ठप्प पड़ा था। इसके बावजूद, भारत में आने वाले टूरिस्ट्स की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ी है। भारत ने अनेक देशों के टूरिस्ट्स को ई-वीजा की जो सुविधा दी है, उससे विदेशी मेहमानों को बहुत मदद मिल रही है। भारत में आज डोमेस्टिक टूरिज्म भी नए रिकॉर्ड बना रहा है, उड़ान योजना हो, वंदे भारत ट्रेने हों, प्रसाद स्कीम हो, इन सभी का लाभ राजस्थान को मिल रहा है। भारत के वाइब्रेंट विलेज जैसे कार्यक्रमों से भी राजस्थान को बहुत फायदा हो रहा है। मैंने देशवासियों से वेड इन इंडिया का आह्वान किया है। इसका फायदा भी राजस्थान को होना तय है। राजस्थान में हेरिटेज टूरिज्म, फिल्म टूरिज्म, इको टूरिज्म, रूरल टूरिज्म, बॉर्डर एरिया टूरिज्म इसे बढ़ाने की अथाह संभावनाएं हैं। इन क्षेत्रों में आपका निवेश, राजस्थान के टूरिज्म सेक्टर को ताकत देगा और आपका बिजनेस भी बढ़ाएगा।

साथियों,

आप सभी ग्लोबल सप्लाई और वैल्यू चेन से जुड़ी चुनौतियों से परिचित हैं। आज दुनिया को एक ऐसी अर्थव्यवस्था की ज़रूरत है, जो बड़े से बड़े संकट के दौरान भी मजबूती से चलती रहे, उसमें रुकावटें ना आए। इसके लिए भारत में व्यापक मैन्युफेक्चरिंग बेस का होना बहुत ज़रूरी है। ये सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया की इकोनॉमी के लिए भी आवश्यक है। अपने इसी दायित्व को समझते हुए, भारत ने मैन्युफेक्चरिंग में आत्मनिर्भरता का एक बहुत बड़ा संकल्प लिया है। भारत, अपने मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत low cost manufacturing पर बल दे रहा है। भारत के पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, भारत की दवाएं और वैक्सीन्स, भारत का इलेट्रॉनिक्स सामान इसमें भारत की रिकॉर्ड मैन्युफेक्चरिंग से दुनिया को बहुत बड़ा फायदा हो रहा है। राजस्थान से भी बीते वर्ष, करीब-करीब चौरासी हज़ार करोड़ रुपए का एक्सपोर्ट हुआ है, 84 thousand crore rupees। इसमें इंजीनियरिंग गुड्स, जेम्स और ज्वेलरी, टेक्सटाइल्स, हैंडीक्राफ्ट्स, एग्रो फूड प्रोडक्ट्स शामिल हैं।

साथियों,

भारत में मैन्युफेक्चरिंग बढ़ाने में PLI स्कीम का रोल भी लगातार बढ़ता जा रहा है। आज Electronics, Speciality Steel, Automobiles और auto components, Solar PVs, Pharmaceutical drugs...इन सेक्टर्स में बहुत अधिक उत्साह है। PLI स्कीम के कारण करीब सवा लाख करोड़ रुपए का इंवेस्टमेंट आया है, करीब 11 लाख करोड़ रुपए के प्रॉडक्ट बने हैं और एक्सपोर्ट्स में 4 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। लाखों युवाओं को नए रोजगार भी मिले हैं। यहां राजस्थान में भी ऑटोमोटिव और ऑटो कॉम्पोनेंट इंडस्ट्री का अच्छा बेस तैयार हो चुका है। यहां इलेक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफेक्चरिंग के लिए बहुत संभावनाएं हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफेक्चरिंग के लिए भी जो ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, वो भी राजस्थान में उपलब्ध है। मैं सभी निवेशकों से आग्रह करूंगा, इन्वेस्टर्स से आग्रह करूंगा, राजस्थान के मैन्युफेक्चरिंग पोटेंशियल को भी ज़रूर एक्सप्लोर करें।

साथियों,

राइजिंग राजस्थान की बहुत बड़ी ताकत है- MSMEs.. MSMEs के मामले में राजस्थान, भारत के टॉप 5 राज्यों में से एक है। यहां इस समिट में MSMEs पर अलग से एक कॉन्क्लेव भी होने जा रहा है। राजस्थान के 27 लाख से ज्यादा छोटे और लघु उद्योग, लघु उद्योगों में काम करने वाले 50 लाख से ज्यादा लोग, राजस्थान के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। मुझे खुशी है कि राजस्थान में नई सरकार बनते ही कुछ ही समय में नई MSMEs पॉलिसी लेकर आ गई। भारत सरकार भी अपनी नीतियों और निर्णयों से MSMEs को लगातार मजबूत कर रही है। भारत के MSMEs सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ग्लोबल सप्लाई और वैल्यू चेन को सशक्त करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। हमने कोरोना के दौरान देखा जब दुनिया में फार्मा से जुड़ी सप्लाई चेन क्राइसिस में आई गई तो भारत के फार्मा सेक्टर ने दुनिया की मदद की। ये इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारत का फार्मा सेक्टर बहुत मजबूत है। ऐसे ही हमें भारत को बाकी प्रोडक्ट्स की मैन्युफेक्चरिंग का बहुत स्ट्रॉन्ग बेस बनाना है। और इसमें हमारे MSMEs का बड़ा रोल होने जा रहा है।

साथियों,

हमारी सरकार ने MSMEs की परिभाषा बदली है, ताकि उन्हें ग्रोथ के और अधिक अवसर मिल सकें। केंद्र सरकार ने करीब 5 करोड़ MSMEs को formal economy से जोड़ा है। इससे इन उद्योगों के लिए access to credit आसान हुआ है। हमने एक क्रेडिट गारंटी लिंक्स स्कीम भी बनाई है। इसके तहत छोटे उद्योगों को करीब 7 लाख करोड़ रुपए की मदद दी गई है। बीते दशक में MSMEs के लिए क्रेडिट फ्लो, दो गुना से अधिक बढ़ चुका है। साल 2014 में जहां ये करीब 10 लाख करोड़ रुपए होता था, आज ये 22 लाख करोड़ रुपए से ऊपर जा चुका है। इसका राजस्थान भी बहुत बड़ा लाभार्थी रहा है। MSMEs की ये बढ़ती ताकत, राजस्थान के विकास को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी।

साथियों,

हम आत्मनिर्भर भारत के नए सफर पर चल चुके हैं। आत्मनिर्भर भारत का अभियान, ये विजन ग्लोबल है और उसका इंपैक्ट भी ग्लोबल है। सरकार के स्तर पर हम, whole of the Government approach के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इंडस्ट्रियल ग्रोथ के लिए भी हम हर सेक्टर, हर फैक्टर को एक साथ बढ़ावा दे रहे हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि सबका प्रयास की यही भावना, विकसित राजस्थान बनाएगी, विकसित भारत बनाएगी।

साथियों,

यहां देश और दुनिया से अनेक डेलीगेट्स आए हैं, बहुत सारे साथियों की ये पहली भारत यात्रा होगी, हो सकता है राजस्थान की भी उनकी पहली यात्रा हो। आखिरी में, मैं यही कहूंगा, स्वदेश लौटने से पहले आप राजस्थान को, भारत को ज़रूर एक्सप्लोर करें। राजस्थान के रंग-बिरंगे बाज़ारों का शॉपिंग एक्सपीरियंस, यहां के लोगों की ज़िंदादिली, ये सब कुछ आप कभी भी नहीं भूलेंगे। एक बार फिर सभी निवेशकों को, राइजिंग राजस्थान के संकल्प को, आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद।