Shri Narendra Modi's address at the Vivekananda NMO Conference

Published By : Admin | February 16, 2013 | 13:58 IST

मंच पर बिराजमान एन.एम.ओ. के सभी पदाधिकारी, भारत के भिन्न-भिन्न भागों से आए हुए सभी प्रतिनिधि बंधु और नौजवान मित्रों..!

हम लोग एक ही अखाड़े से आए हैं और इसलिए हम सबको अपनी भाषा का पता है, भावनाओं का पता है, रास्ता भी मालूम है, लक्ष्य का भी पता है और इसलिए कौन किसको क्या कहे, कौन किससे क्या सुने..? और इसलिए मैं कुछ ना भी बोलूं तो भी बात पहुँच जाएगी। मैं अनुमान लगा सकता हूँ कि मेरे यहाँ आने से पहले सुबह से अब तक आपने क्या किया होगा और मैं ये भी अनुमान लगा सकता हूँ कि कल क्या करोगे। मैं ये भी अंदाज कर सकता हूँ कि अगले अधिवेशन का आपका ऐजेन्डा क्या होगा, क्योंकि हम सब लोग एक ही अखाड़े से आए हैं..!

मित्रों, स्वामी विवेकानंद जी की जब बात होती है तो एक बात उभर करके आती है कि वो परिस्थिति के बहावे में बहने वाले शख्सियत नहीं थे। जिन लोगों ने स्वामी विवेकानंद जी को पढ़ा होगा और जिन्होंने उस कार्यकाल की समाज व्यवस्था के सूत्रधारों को पढ़ा होगा, तो वे भलीभाँति अंदाजा लगा सकते हैं कि विवेकानंद जी को कोई काम सरलता से करने का सौभाग्य ही नहीं मिला था। हर पल, हर छोटी बात के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था। कोई चीज उन्हें सहज मिली नहीं थी और जब मिली तब स्वीकार्य नहीं थी। यह उनकी एक और विशेषता थी। रामकृष्ण परमहंस मिले, तो उनको भी उन्होंने सहज रूप से स्वीकार्य नहीं किया, उनकी भी उन्होंने कसौटी की..! काली के पास गए, रामकृष्ण देव की ताकत थी कि काली मिली, लेकिन स्वीकार करने से इनकार कर दिया। तो एक ऐसी शख्सियत की तरफ हम जाएं। हम जीवन में संघर्ष के लिए कितने कटिबद्घ हैं, कितने प्रतिबद्घ हैं..! थोड़ा सा भी हवा का रूख बदल जाए तो कहीं बैचेनी तो नहीं अनुभव करते, ऐसा तो नहीं लगता आपको कि यार, अब क्या होगा, हालात तो कुछ अनुकूल नहीं हैं..! तो मित्रों, वो जिंदगी नहीं जी सकते हैं, और जो खुद जिंदगी नहीं जी सकते वो औरों को जिंदगी जीने की ताकत कैसे दे सकते हैं..! और डॉक्टर का काम होता है औरों को जिंदगी जीने की ताकत देना। कोई डॉक्टर नहीं चाहेगा कि उसका पेशेन्ट हमेशा उस पर निर्भर रहे। डॉक्टर और वकील में यही तो फर्क होता है..! और वहीं पर सोचने की प्रवृति में अंतर नजर आता है। और अगर हमने उसको आत्मसात किया... मित्रों, जो सफल डॉक्टर है, उसका बंगला कितना बड़ा है, घर के आगे गाड़ियाँ कितनी खड़ी हैं, बैंक बैलेंस कैसा है... उसके आधार पर कभी भी किसी डॉक्टर की सफलता का निर्धारण नहीं हुआ है। डॉक्टर की सफलता का निर्धारण इस बात पर हुआ है कि उसने कितनी जिंदगी को बचाया, कितनों को नया जीवन दिया, किसी असाध्य रोग के मरीज के लिए उसने जिंदगी कैसे खपा दी, एक डिज़ीज़ के लिए चैन कैसे खोया..! मित्रों, इसलिए अगर मैं एन.एम.ओ. से जुड़ा हुआ हूँ, राष्ट्रीय भावना से भरा हुआ हूँ, सुबह-शाम दिन-रात भारत माँ की जय कहता हूँ, लेकिन भारत माँ के ही अंश रूप एक मरीज जो मेरे पास खड़ा है, वो मरीज सिर्फ एक इंसान नहीं है, मेरी भारत माँ का जीता-जागता अंश है और उस मरीज की सेवा ही मेरी भारत माँ की सेवा है, ये भाव जब तक भीतर प्रकटता नहीं है तब तक एन.एम.ओ. की भावना ने मेरी रगो में प्रवेश नहीं किया है..!

मित्रों, अभी देश 1962 की लड़ाई के पचास साल को याद कर रहा था। मीडिया में उसकी चर्चा चल रही थी। कौन दोषी, कौन अपराधी, किसकी गलती, क्या गलती... इसी पर डिबेट चल रहा था। मित्रों, अगर पचास साल के बाद भी इस पीढी को एक कसक हो, एक दर्द हो, एक पीड़ा हो कि कभी उस लड़ाई में हम हारे थे, हमारी मातृभूमि को हमने गंवाया था, तो उसमें विजय को प्राप्त करने के बीज भी मौजूद होते हैं। मित्रों, जिस स्वामी विवेकानंद जी की हम बात करते रहते हैं, जो सदा सर्वदा हमें प्रेरणा देते रहते हैं, लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि जब आज उनके 150 साल मना रहे हैं और 125 साल पहले 25 साल की आयु में जिस नौजवान संन्यासी ने एक सपना देखा था कि मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगदगुरू के स्थान पर विराजमान होगी, मैं उसका भव्य, दिव्य रूप खुद देख रहा हूँ..! ये विवेकानंद जी ने 25 साल की आयु में दुनिया के सामने डंके की चोट पर कहा था। किसके भरोसे कहा था..? उन्होंने व्याख्यायित किया था कि इस देश के नौजवान ये परस्थिति पैदा करेंगे..! 150 साल मनाते समय क्या दिल में कसक है, दिल में दर्द है, पीड़ा है कि ऐसे महापुरुष जिसके प्रति हमारी इतनी भक्ति होने के बावजूद भी, 25 साल की आयु में जिन शब्दों को उन्होंने कहा था, 125 साल उन शब्दों को बीत गए, वो सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ, क्या उसकी पीड़ा है, दर्द है..? पीढ़ियाँ पूरी हो गई, हम भी आए हैं और चले जाएंगे, क्या वो सपना अधूरा रहेगा..? अगर वो सपना अधूरा रहना ही है तो 150 साल मनाने से शायद ये कर्मकांड हो जाएगा और इसलिए मैं चाहता हूँ कि 150 साल जब मना रहे हैं तब, हम कुछ पा सकें या ना पा सकें, कुछ परिस्थितियां पलट सकें या ना पलट सकें, लेकिन कम से कम दिल में एक दर्द तो पैदा करें, एक कसक तो पैदा करें कि हमने समय गंवा दिया..!

मित्रों, ये महापुरूष ने जीवन के अंतकाल के आखिरी समय में कहा था कि समय की माँग है कि आप अपने भगवान को भूल जाओ, अपने ईष्ट देवता को भूल जाओ। अपने परमात्मा, अपने ईश्वर को डूबो दो। एकमात्र भारत माता की पूजा करो। एक ही ईष्ट देवता हो..! और पचास साल के लिए करो। और विवेकानंद जी के ऐसा कहने के ठीक पचास साल के बाद 1947 में ये देश आजाद हुआ था। मित्रों, कल्पना करो कि 1902 में जब स्वामी विवेकानंद जी ने ये बात कही थी, उस समय आज का मीडिया होता तो क्या होता..? आज के विवेचक होते तो क्या होता..? आज के आलोचक होते तो क्या होता..? चर्चा यही होती कि ये कैसा व्यक्ति है, जिसने ऐजेंडा बदल दिया और सिद्घांतो को छोड़ दिया..! जिस भगवान के लिए पांच-पांच हजार साल से एक कल्पना करके पीढ़ियों तक जो समाज चला, ये कह रहे हैं कि इसको छोड़ दो..! ये तो डूबो देगा देश को और संस्कृति को। सब छोड़ने के लिए कह रहा है, सब भगवान को छोड़ने के लिए कह रहा है..! पता नहीं उन पर क्या-क्या बीतती और बीती भी होगी, थोड़ा बहुत तो तब भी किया ही होगा..! हम जिस परिवार से आ रहे हैं, जिस परंपरा से आ रहे हैं, क्या हम इसमें से कुछ सबक सीखने के लिए तैयार हैं..? अगर सबक सीखने की ताकत होगी तो रास्ते अपने आप मिल जाएगें और मंजिल भी मिल जाएगी..! लेकिन इसके लिए बहुत बड़ा साहस लगता है दोस्तों, बहुत बड़ा साहस लगता है। अपनी बनी बनाई दुनिया को छोड़ कर के निकलने के लिए एक बहुत बड़ी ताकत चाहिए और अगर वो ताकत खो दें, तो हम शरीर से तो जिंदा होंगे लेकिन प्राण-शक्ति का अभाव होगा..! इसलिए जब विवेकानंद जी को याद करते हैं तब उस सामर्थ्य के आविष्कार की आवश्यकता है। उस सामर्थ्य को लेकर के जीना, सपनों को देखना, सपनों को साकार करना, उस सामर्थ्यता की आवश्यकता है।

आप एक डॉक्टर के नाते काम कर रहे हैं। आने वाले दिनों में जो विद्यार्थी मित्र हैं, वे डॉक्टर बनने वाले हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए आपने क्या कुछ नहीं छोड़ा होगा..! दसवीं कक्षा में इतने मार्क्स लाने के लिए कितनी रात जगे होंगे..! 12वीं के लिए माँ-बाप को रात-रात दौड़ाया होगा। देखिए पेपर्स कहाँ गए हैं, देखिए रिजल्ट क्या आ रहा है..! डोनेशन से सीट मिले तो कहाँ मिले, मेरिट पर मिले तो कहाँ मिले..! कोई बात नहीं, एम.बी.बी.एस. नहीं तो डेन्टल ही सही..! अरे, वो भी ना मिले तो कोई बात नहीं, फिज़ीयोथेरेपी सही..! ना जाने कितने-कितने सपने बुने होंगे..! और अब एक बार वहाँ प्रवेश कर गए..! मैं मेडिकल स्टूडेंट्स से प्रार्थना करता हूँ कि आप सोचिए कि 12वीं की एक्जाम तक की आपकी मन:स्थिति, रिजल्ट आने तक की आपकी मन:स्थिति या मेडिकल कॉलेज में एंट्रेंस तक की मन:स्थिति... जिन भावनाओं के कारण, जिन प्रेरणा के कारण आप रात-रात भर मेहनत करते थे, क्या मेडिकल में प्रवेश पाने के बाद वो ऊर्जा जिंदा है, दोस्तों..? वो प्रेरणा आपको पुरूषार्थ करने के लिए ताकत देती है..? अगर नहीं देती है तो फिर आप भी कहीं पैसे कमाने का मशीन तो नहीं बन जाओगे, दोस्तों..? इतनी तपस्या करके जिस चीज को आपने पाया है, ये अगर धन और दौलत को इक्कठा करने का एक मशीन बन जाए तो

मित्रों, 10, 11, 12वीं कक्षा की आपकी जो तपस्या है, आपके लिए आपके माँ-बाप रात-रात भर जगे हैं, आपके छोटे भाई ने भी टी.वी. नहीं देखा, क्यों..? मेरी बड़ी बहन के 12वीं के एक्जाम हैं। आपकी माँ उसके सगे भाई की शादी में नहीं गई, क्यों..? बेटी की 12वीं की एक्जाम है। मित्रों, कितना तप किया था..! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ दोस्तों, उस तप को कभी भूलना मत। इस चीज को पाने के लिए जो कष्ट आपने झेला है, हो सकता है वो कष्ट खुद ही आपके अंदर समाज के प्रति संवेदना जगाने का कारण बन जाए, आपको बाहर से किसी ताकत की आवश्यकता नहीं रहे..! मित्रों, एक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास जब एक मरीज आता है, तो उस ऑर्थोपेडिक डॉक्टर को तय करना होगा कि उस मरीज में उसे इंसान नजर आता है कि हड्डियाँ नजर आती हैं..! मित्रों, अगर उसे हड्डियाँ नजर आती हैं तो बड़े एक्सपर्ट डॉक्टर के रूप में उसकी हड्डियाँ ठीक करके उसे वापिस भेज भी देगा, लेकिन अगर इंसान नजर आएगा तो उसका जीवन सफल हो जाएगा।

मित्रों, जीवन किस प्रकार से बदल रहा है, जीवन के मूल्य किस प्रकार से बदल रहे हैं..! अर्थ प्रधान जीवन बनता जा रहा है और अर्थ प्रधान जीवन के कारण स्थितियाँ क्या बनी हैं..? डॉक्टर ने गलत इंजेक्शन दे दिया, हाथ को काटना पड़ा, हाथ चला गया... ठीक है, दो लाख का इन्श्योरेंस है, दो लाख का बीमा मंजूर हो जाएगा..! एक आंख चली गई, ढाई लाख का बीमा मंजूर हो जाएगा..! एक्सीडेंट हुआ, एक पैर कट गया... पाँच लाख मिल जाएंगे..! मित्रों, क्या ये शरीर, ये अंग-उपांग रूपयों के तराजू से तोले जा सकते हैं..? हाथ कटा दो लाख, पैर कटा पाँच लाख, आँख चली गई डेढ लाख दे दो..! मित्रों, आँख चली जाती है तो सिर्फ एक अंग नहीं जाता है, जिंदगी का प्रकाश चला जाता है। पैर कटने से शरीर का एक अंग नहीं जाता है, पैर कटता है तो जिंदगी की गति रूक जाती है। क्या जीवन को उस नजर से देखने का प्रयास किया है हमने..? और इसलिए मित्रों, सामान्य मानवी के मन में डॉक्टर की कल्पना क्या है..? सामान्य मानवी डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानता है, सामान्य मानवी मानता है कि जैसे भगवान मेरी जिंदगी बचाता है, वैसे ही अगर डॉक्टर के भरोसे मेरी जिंदगी रख दूँ तो हो सकता है कि वो मेरी जिंदगी बचा ले..! आप एक पेशेंट को बचाते हैं ऐसा नहीं है, आप कईयों के सपनों को संजो देते हैं, जब किसी कि जिंदगी बचाते हैं..! लेकिन ये महात्मा गांधी की तस्वीर वाली नोट से नहीं होता है, महात्मा गांधी के जीवन को याद रखने से होता है और ये भाव जगाने का काम एन.एम.ओ. के द्वारा होता है।

मित्रों, मुझे भूतकाल में गुजरात के एन.एम.ओ. के कुछ मित्रों से बातचीत करने का अवसर मिला है और विशेष कर के ये जब नार्थ-ईस्ट जाकर के आते हैं तो उनके पास कहने के लिए इतना सारा होता है, जैसे कंप्यूटर के ऊपर आप किसी स्विच पर क्लिक करो और सारी दुनिया उतर आती है, वैसे ही उनको पूछो कि नार्थ-ईस्ट कैसा रहा तो समझ लीजिए आपका दो-तीन घंटा आराम से बीत जाएगा..! वो हर गली-मोहल्ले की बात बताता है। मित्रों, नार्थ-ईस्ट के मित्रों को हमसे कितना लाभ होता होगा उसका मुझे अंदाजा नहीं है, लेकिन उनके कारण जाने वाले को लाभ होता होगा ये मुझे पूरा भरोसा है। अपनों को ही जब अलग-अलग रूप में देखते हैं, मिलते हैं, जानते हैं, उनकी भावनाओं को समझते हैं तो वो हमारी पूंजी बन जाती है, वो हमारी अपनी ऊर्जा शक्ति के रूप में कन्वर्ट हो जाती है और उसको लेकर के हम अगर आगे चलते हैं तो हमें एक नई ताकत मिलती है।

मित्रों, कभी-कभी हमारी विफलता का एक कारण ये होता है कि हमें अपने आप पर आस्था नहीं होती है, हमें खुद पर भरोसा नहीं होता है और ज्यादातर समस्या की जड़ में ये प्रमुख कारण होता है। अगर आपको अपनी ही बात पर आस्था नहीं हो और आप चाहो कि दुनिया इसको माने तो ये संभव नहीं है। होमियोपैथी डॉक्टर बन गया क्योंकि वहाँ एडमिशन नहीं मिला था। लेकिन क्योंकि अब डॉक्टर का लेबल लग गया है तो मैं होमियोपैथी नहीं, अब तो मैं जनरल प्रेक्टिस करूंगा और एलोपैथी का भी उपयोग करूँगा..! अगर मेरी ही मेरी स्ट्रीम पर आस्था नहीं है, तो मैं कैसे चाहूँगा की और पेशेंट भी होमियोपैथी के लिए आएँ..! मैं आयुर्वेद का डॉक्टर बन गया। पता था कि उसमें तो हमारा नंबर लगने वाला नहीं है तो पहले से ही संस्कृत लेकर रखी थी..! मुझे जानकारियाँ हैं ना..? मैं सही बोल रहा हूँ ना..? आप ही की बात बता रहा हूँ ना..? नहीं, आपकी नहीं है, जो बाहर है उनकी है..! आयुर्वेद डॉक्टर का बोर्ड लगा दिया, फिर इंजेक्शन शुरू..! हमारी अपनी चीजों पर हमारी अगर आस्था नहीं है तो हम जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते। मैं एन.एम.ओ. से जुड़े मित्रों से आग्रह करूंगा कि जिस रास्ते को हमने जीवन में पाया है, जहाँ हम पहुंचे हैं उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाना भी हमारा काम है।

मित्रों, ये तो अच्छा हुआ है कि पूरी दुनिया में होलिस्टिक हैल्थ केयर का एक माहौल बना हुआ है। साइड इफैक्ट ना हो इसकी कान्शसनेस आई है और इसके कारण लोगों ने ट्रेडिशनल मार्ग पर जाना शुरू किया है और उसका बेनिफिट भी मिला है सबको। लेकिन व्यावसायिक सफलता एक बात है, श्रद्धा दूसरी बात है। और कभी-कभी डॉक्टर को तो श्रद्घा चाहिए, लेकिन पेशेंट को भी श्रद्घा चाहिए..! मैं जब संघ के प्रचारक के नाते शाखा का काम देखता था, तो बड़ौदा जिले में मेरा दौरा चल रहा था। वहां एक चलामली करके एक छोटा सा स्थान है, तो वहाँ एक डॉक्टर परिवार था जो संघ से संपर्क रखता था तो वहाँ हम जाते थे और उन्हीं के यहाँ रहते थे। वहाँ सभी ट्राइबल पेशेंट आते थे और सबसे पहले इंजेक्शन की माँग करते थे। और उनकी ये सोच थी कि डॉक्टर अगर इन्जेक्शन नहीं देता है तो डॉक्टर निकम्मा है, इसको कुछ भी आता नहीं है..! ये उनकी सोच थी और इन लोगों को भी उसको इंजेक्शन की जरूरत हो, ना हो, कुछ भी हो, मगर इंजेक्शन देना ही पड़ता था..! कभी-कभी पेशेंट की मांग को भी उनको पूरा करना पड़ता है। मित्रों, मेरे कहने का मतलब ये था कि हमें इन चीजों पर श्रद्घा होना बहुत जरूरी है। एक पुरानी घटना हमने सुनी थी कि पुराने जमाने में जो वैद्यराज होते थे, वो अपना सारा सामान लेकर के भ्रमण करते रहते थे। और अगर उनको पता हो कि इस इलाके में इतनी जड़ी-बूटियों का क्षेत्र है तो उसी गाँव में महीना, छह महीना, साल भर रहना और जड़ी-बूटियों का अभ्यास करना, दवाइयाँ बनाना, प्रयोग करना, उसमें से ट्रेडिशन डेवलप करना, फिर वहां से दूसरे इलाके में जाना, वहां करना... पुराने जमाने में वैद्यराज की जिंदगी ऐसी ही हुआ करती थी। एक बार एक गाँव में एक वैद्यराज आए तो एक पेशेंट उनको मिला, उसकी कुछ चमडी की बिमारी थी, कुछ कठिनाइ थी, कुछ ठीक नहीं हो रहा था। वैद्यराज जी को उसने कहा कि मैं तो बहुत दवाई कर-कर के थक गया, दुनिया भर की जड़ी-बूटी खा-खा कर मर रहा हूँ, मेरा तो कोई ठिकाना नहीं रहा है और मैं बहुत परेशान रहता हूँ..! तो वैद्यराज जी ने कहा कि अच्छा भाई, कल आना..! हफ्ते भर रोज आए-बुलाए, कोई दवाई नहीं देते थे, केवल बात करते रहते थे..! आखिर उसने कहा कि वैद्यराज जी, आप मुझे बुलाते हो लेकिन कोई दवाई वगैरह तो करो..! बोले भाई, दवाई तो है मेरे पास लेकिन उसके लिए परहेज की बड़ी आवश्यकता है, तुम करोगे..? तो बोला अरे, मैं इतना जिंदगी में परेशान हो चुका हूँ, जो भी परहेज है उसे मैं स्वीकार कर लूंगा..! तो वैद्यराज बोले कि चलो मैं दवाई शुरू करता हूँ। तो उन्होंने दवाई शुरू की और परहेज में क्या था..? रोज खिचडी और कैस्टर ऑइल, ये ही खाना। खिचड़ी और कैस्टर ऑयल मिला कर के खाना..! अब आपको सुन कर भी कैसा लग रहा है..! तो उसने कहा कि ठीक है। अब वो एक-दो महीना उसकी दवाई चली और उतने में वो वैद्यराज जी को लगा कि अब किसी दूसरे इलाके में जाना चाहिए, तो वो चल पड़े और उसको बता दिया कि ये ये जड़ी-बूटियाँ हैं, ऐसे-ऐसे दवाई बनाना और ऐसे तुमको करना है..! बीस साल के बाद वो वैद्यराज जी घूमते घूमते उस गाँव में वापस आए। वापिस आए तो वो जो पुराना मरीज था उसको लगा कि हाँ ये ही वो वैद्यराज है जो पहले आए थे। तो उसने जा कर के उनको साष्टांग प्रणाम किया। साष्टांग प्रणाम किया तो वैद्यराज जी ने सोचा कि ये कौन सा भक्त मिल गया जो मुझे साष्टांग  प्रणाम कर रहा है..! तो बोले भाई, क्या बात है..? तो उसने पूछा कि आपने मुझे पहचाना..? बोले नहीं भाई, नहीं पहचाना..! अरे, आप बीस साल पहले इस गाँव में आए थे और आपने एक मरीज को ऐसी-ऐसी दवाई दी थी, मैं वही हूँ और मेरा सारा रोग चला गया और मैं ठीक-ठाक हूँ..! तो वैद्यराज जी ने पूछा कि अच्छा भाई, वो परहेज तूने रखी..? अरे साब, परहेज को छोड़ो, आज भी वही खाता हूँ..! मित्रों, उस वैद्यराज की आस्था कितनी और इस पेशेंट की तपश्चर्या कितनी और उसके कारण परिणाम कितना मिला, आप अंदाज लगा सकते हैं। और इसलिए हम जिस क्षेत्र में हैं उस क्षेत्र को हमें उस प्रकार से देखना होगा।

मित्रों, हमारे यहाँ विवेकानंद जी की जब बात आती है तो दरिद्र नारायण की सेवा, ये सहज बात निकल कर आती है। आज हम स्वामी विवेकानंद जी के 150 वर्ष मना रहे हैं तब हम विवेकानंद जी की उसी भावना को अपने शब्दों में प्रकट करके आगे बढ़ सकते हैं क्या? विवेकानंद जी के लिए जितना माहात्म्य दरिद्र नारायण की सेवा का था, एक डॉक्टर के नाते मेरे लिए भी दर्दी नारायण है, ये दर्दी नारायण की सेवा करना और दर्दी ही भगवान का रूप है, ये भाव लेकर के अगर हम आगे बढ़ते हैं तो मुझे विश्वास है कि जीवन में हमें सफलता का आंनद और संतोष मिलेगा। विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती हमारे जीवन को मोल्ड करने के लिए एक बहुत बड़ा अवसर बन कर के रहेगी।

बहुत सारे मित्रों गुजरात के बाहर से आए हैं। कई लोग होंगे जिन्होंने गुजरात पहली बार देखा होगा। और अब आपको कभी अगर अमिताभ बच्चन जी मिल जाए तो उन्हें जरूर कहना कि हमने भी कुछ दिन गुजारे थे गुजरात में..! आप आए हैं तो जरूर गिर के लायन देखने के लिए चले जाइए, आए हैं तो सोमनाथ और द्वारका देखिए, कच्छ का रन देखिए..! इसलिए देखिए क्योंकि मेरा काम है मेरे राज्य के टूरिज्म को डेवलप करना..! और हम गुजरातियों के ब्लड में बिजनेस होता है, तो मैं आया हूँ तो बिजनेस किये बिना जा नहीं सकता। मेरा इन दिनों का बिजनेस यही है कि आप मेरे गुजरात में टूरिज्म का मजा लिजीए, आप गुजरात को देखिए, सिर्फ इस कमरे में मत बैठे रहिए। अधिवेशन के बाद जाइए, बीच में से मत जाइए..!

बहुत-बहुत धन्यवाद, मित्रों..!

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East Asia Summit is a key pillar of India’s Act East Policy: PM Modi in Vientiane
October 11, 2024

Your Majesty,

Excellencies,

NAMASKAR.

First of all, I express my deep condolences to those affected by "Typhoon Yagi."

During this challenging time, we have provided humanitarian assistance through Operation Sadbhav.

Friends,

India has consistently supported the unity and centrality of ASEAN. ASEAN is also pivotal to India's Indo-Pacific vision and Quad cooperation. There are important similarities between India’s "Indo-Pacific Oceans Initiative" and the "ASEAN Outlook on Indo-Pacific." A free, open, inclusive, prosperous, and rules-based Indo-Pacific is crucial for the peace and progress of the entire region.

The peace, security, and stability in the South China Sea are in the interest of the entire Indo-Pacific region.

We believe that maritime activities should be conducted in accordance with UNCLOS. Ensuring freedom of navigation and airspace is essential. A robust and effective Code of Conduct should be developed. And, it should not impose restrictions on the foreign policies of regional countries.

Our approach should focus on development and not expansionism.

Friends,

We endorse ASEAN's approach to the situation in Myanmar and support the Five-Point Consensus. Furthermore, we believe it is crucial to sustain humanitarian assistance and implement suitable measures for the restoration of democracy. We believe that, Myanmar should be engaged rather than isolated in this process.

As a neighbouring country, India will continue to uphold its responsibilities.

Friends,

The most negatively affected countries, due to ongoing conflicts in various parts of the world, are those from the Global South. There is a collective desire for the restoration of peace and stability in regions such as Eurasia and the Middle East as soon as possible.

I come from the land of Buddha, and I have repeatedly stated that this is not the age of war. Solutions to problems cannot be found in the battlefield.

It is essential to respect sovereignty, territorial integrity, and international laws. With a humanitarian perspective, we must place a strong emphasis on dialogue and diplomacy

In fulfilling its responsibilities as a VISHWABANDHU, India will continue to make every effort to contribute in this direction.

Terrorism also poses a serious challenge to global peace and security. To combat it, forces that believe in humanity must come together and work in tandem.

And, we must strengthen mutual cooperation in the areas of cyber, maritime, and space.

Friends,

The revival of Nalanda was a commitment we made at the East Asia Summit. This June, we fulfilled that commitment by inaugurating the new campus of Nalanda University. I invite all the countries present here to participate in the 'Heads of Higher Education Conclave' to be held at Nalanda.

Friends,

The East Asia Summit is a key pillar of India’s Act East Policy.

I extend my heartfelt congratulations to Prime Minister Sonexay Siphandone for the excellent organisation of today's summit.

I extend my best wishes to Malaysia as the next Chair and assure them of India's full support for a successful presidency.

Thank you very much.