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I would like to begin by acknowledging the traditional owners of this land on which we stand today and pay my respect to their elders in past and present.

यहां उपस्थित, यहां के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के सभी महानुभाव और मेरे प्यायरे देशवासियों,

यह स्वागत, यह सम्मान, यह उत्साह, यह उमंग, इसका हकदार मोदी नहीं हैं। सवा सौ करोड़ देशवासी यह उनके हकदार हैं। यह स्वागत, यह सम्मान, यह प्यार भारत माता के उन सवा सौ करोड़ संतानों के चरणों में समर्पित करता हूं। मैं देख रहा हूं कि बहुत लोग अभी बाहर हैं अंदर आ ही नहीं पाए। यह जो, ये जो नजारा सिडनी में दिखाई दे रहा है। यह नजारा पूरे हिंदुस्तान को आंदोलित कर रहा है।

कभी स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों को याद करते हैं, तो हम कल्पना नहीं कर सकते कि हमारे यह महापुरूष कितने दीर्घदृष्टा थे। आजादी के पहले ठीक 50 साल पहले स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि 50 साल के लिए भारत के लोग अपने देवी-देवताओं को भूल जाएं। कोई कल्पना कर सकता है कि एक संन्यासी और जो खुद आध्यात्मिक जीवन को लेकर के चल पड़ा था। जिसने गुरूदेव रामकृष्ण परमहंस को अपना जीवन आहूत कर दिया था, जिसके लिए ईश्वर साक्षात्कार जीवन का मकसद रहा था, वो संन्यासी देश आजादी के 50 साल पहले कह रहा है, 50 साल के लिए आप अपने देवी देवताओं को भूल जाओ और सिर्फ, सिर्फ भारत माता की पूजा करो। दुनिया में फिर एक बार भारत माता की जय करो। उस महापुरूष के शब्दों के ताकत देखिए। ठीक उस 50 साल के बाद भारत आजाद हो गया।

मेरी तरह यहां बहुत लोग ऐसे है जिनका जन्म आजाद हिंदुस्तान में हुआ है और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं पहला ऐसा प्रधानमंत्री हूं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुआ है और तब जाकर के मुझे ज्यादा ही जिम्मेदारी का एहसास होता है, क्योंकि मेरे जैसे आप में से बहुत लोग हैं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं। हमें देश की आजादी के लिए लड़ने का सौभाग्य नहीं मिला है। हमें भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए फांसी के तख्तं पर चढ़ने का नसीब नहीं हुआ है। हमें भारत के सम्मान और गौरव के लिए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जवानी खपाने का सौभाग्य नहीं मिला है और हमारे भीतर एक दर्द होना चाहिए, एक कसक होनी चाहिए कि हम आजादी की जंग में नहीं थे। हम देश के लिए मर तो नहीं सके, लेकिन आजादी के बाद पैदा हुए हैं, तो देश के लिए जी तो सकते हैं। हर किसी के नसीब में देश के लिए मरना नहीं होता है। देश के लिए जीना हर किसी के नसीब में होता है और इसलिए हमारा संकल्प रहना चाहिए। हम जीएंगे तो भी देश के लिए, जूझेंगे, तो भी देश के लिए और यही भाव आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में जगा है।

आजकल तो हिंदुस्तान से रात को निकले सुबह ऑस्ट्रेलिया पहुंच जाते हैं लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को यहां आने में 28 साल लगे हैं। मैं आपको विश्वास दिलाने आया हूं। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले मेरे देशवासियों अब आप को कभी 28 साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा। जितना हक हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदुस्तानियों का है, उतना ही हक यहां पर रहने वाले मेरे देशवासियों का है। सिडनी खूबसूरत शहर है, ऑस्ट्रेलिया एक खूबसूरत देश है और न ऑस्ट्रेलिया और न ही इंडिया क्रिकेट के बिना जी सकते हैं; क्रिकेट ने हमें जोड़ा है। लेकिन इससे पहले हमारी ऐसी सांस्कृतिक विरासत रही है, इतिहास की ऐसी घटनाएं रही है जिसने हमें अटूट रूप से जोड़ा हुआ है और ऑस्ट्रेलिया-भारत common value को share करते हैं। लोकतंत्र हम दोनों देशों की धरोहर है और विश्व लोकतांत्रिक शक्तियों को आज गौरव के भाव से देखता है। भारत के दीर्घदृष्टा महापुरूषों का यह बहुत बड़ा योगदान रहा कि आजाद हिंदुस्तान में लोकतंत्र की मजबूत नींव हमारे पूर्व के सभी महापुरूषों ने डाली और उसी का परिणाम है और लोकतंत्र की ताकत देखिए; अगर लोकतंत्र की ऊंचाई न होती, तो क्या मैं यहां होता। भारत के लोकतंत्र की उस ताकत को हम पहचानें तो जहां सामान्यय से सामान्यर इंसान भी अगर सच्ची निष्ठा और श्रद्धा के साथ देश के लोगों के लिए जीना तय करता है तो देश उसके लिए मरना तय करता है। कभी-कभार हम शास्त्रों में पढ़ते थे कि फलाने भगवान सहस्त्रबाहू थे; एक हजार भुजाएं थी; ऐसा तो नहीं यहां लटकाई होगी। इसका मतलब यह था, उनके पास ऐसे 500 लोग थे जो 1000 भुजाओं के कारण ईश्वर भी अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण कर पाते थे, योजनाओं को पूर्ण कर पाते थे। परमात्मा के पास तो सहस्त्रबाहू थे, लेकिन भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हैं, ढ़ाई सौ करोड़। जिस देवी के पास, जिस भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हो और उसमें भी, दो सौ करोड़ भुजाएं तो 35 साल से कम आयु की है। हिंदुस्तांन नौजवान है। युवा शक्ति से भरा हुआ है। युवा के मन में, आंखों में सपने होते हैं, नेक इरादे होते हैं, मजबूत संकल्प शक्ति होती है और वे पत्थर पर लकीर करने का भी सामर्थ्य रखते हैं। और उसी के भरोसे मैं विश्वास दिलाता हूं जो स्वामी विवेकानंद ने दूसरा सपना देखा था, उस महापुरूष ने कहा था कि मैं मेरे आंखों के सामने देख रहा हूं.... जिस महापुरूष ने जीवन के अंतकाल में 50 साल के बाद जो सपना देखा वो चरितार्थ हुआ। उस महापुरूष ने दूसरा सपना देखा था और स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि मेरे आंख के सामने भारत मां का वो रूप देख हूं, उस जगत जननी का रूप देख रहा हूं, फिर एक बार मेरी भारत माता विश्व गुरू के स्थान पर विराजमान हो, वो विश्व का नेतृत्व करती होगी। वो विश्व की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति का सामर्थ्य रखती होगी। मेरी स्वामी विवेकानंद जी की इस दीर्घदृष्टा पर आपार श्रद्धा है और इसलिए मैं भी विश्वास से कहता हूं कि विवेकानंद जी कभी गलत नहीं हो सकते। ऐसी ऊर्जा से भरा हुआ हमारा देश है और मैं छह महीने के मेरे बहुत अल्पकाल के समय का मेरा अनुभव है। इतने बड़े हिंदुस्तान में छह महीने कुछ नहीं होते हैं। लेकिन छह महीने के अनुभव से मैं कह सकता हूं कि देश के सामान्यन मानव ने जो सपने देखे हैं, उन सपनों को पूरा करने के लिए आशीर्वाद भारत मां दे रही है और वो सपने पूरा होने का सामर्थ्य है। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, जो भरोसा मेरा है, आपका है क्या? आपको विश्वास है यह देश फिर से उठ खड़ा होगा? यह देश ताकतवर बनेगा? हम सामर्थ्य के साथ मानवजाति की सेवा कर पाएंगे। विश्व को संकटों से मुक्ति दिलाने का देश में सामर्थ्य होगा। अगर आपकी वाणी में जो ताकत है, वो सामान्य मानव की ताकत, वो वाणी, कभी ईश्वर की वाणी बन जाती है। वो ईश्वर के आर्शीवाद बन जाते हैं। मुझे कोई कारण नहीं लगता भाई और बहनों, कोई कारण मुझे नहीं लगता है कि हमारा देश अब पीछे रह जाए। मुझे कोई कारण नहीं लगता। नियति ने उसका आगे जाना तय कर लिया है। अब हम ढाई सौ करोड़ भुजाओं ने संकल्प करना है। कि हमारी भुजाओं से हर काम वही होगा, जो भारत मां के कल्यापण के लिए होगा। सवा सौ देशवासियों के कल्याण के लिए होगा। विश्व के दुखियारों के लिए होगा। एक बार उन संकल्पों को लेकर चलते हैं, तो उन संकल्पों की पूर्ति भी अपने आप होती है।

ऑस्ट्रे्लिया के जीवन में कोई भी भारतवासी गर्व करता है। यहां दो सौ साल पहले भारत से कुछ परिवार आए थे, दो सौ साल पहले। और भारतीयों का यहां का जीवन हर हिंदुस्तानी को गर्व करा रहा है, गर्व दे रहा है। अब ऑस्ट्रेंलिया को अपना बना लिया है। आपके वाणी से, वर्तनी से, विचार से, व्यवहार से जिन मूल्यों को लेकर के आप जी रहे हैं उसके कारण ऑस्ट्रेलिया का भी हर नागरिक हमसे अपनापन महसूस करता है और मैं मानता हूं एक भारतीय के नाते यही हमारा सबसे बड़ा दायित्व होता है कि जो हमारी कर्मभूमि हो, उस कर्मभूमि के साथ हमारा लगाव भी इतना होना चाहिए, हमारा समर्पण भी इतना होना चाहिए और जो आज हमारे भारतीय भाई-बहन ऑस्ट्रेलिया की धरती पर कर रहे हैं।

मैं यहां आने से पहले कुछ चीजें देख रहा था मुझे देखकर के इतना आनंद हुआ और मैं आज सबका उल्लेच तो नहीं कर पाऊंगा। जिनका उल्लेख रह जाए, वो मुझे क्षमा करें। वो अगर कमी है, तो मेरी कमी है। उनके पराक्रम की कमी नहीं है। आप देखिए 1964 में जो टोक्यो में ओलंपिक गेम हुआ। उसमें मूल भारतीय Bakhtawar Singh Samrai उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Bakhtawar ji का यह उस समय ओलंपिक टाइम में ऑस्ट्रेलिया की तरफ से एक भारतीय का प्रतिनिधित्व करना, मैं इसे छोटी बात नहीं मानता हूं। इतना ही नहीं यहां पर बहुत बड़ी तादाद में एंग्लो इंडियन रहते हैं। भारत से आए, यहां पर बसे। Julian Pearce जिनका जन्म जबलपुर में हुआ था और ओलंपिक में हॉकी को represent किया था उन्हों ने, ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Rex Sellers, Stuart Clark, ये दोनों एंग्लो इंडियन थे। भारत से आए थे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया को क्रिकेट की दुनिया में उन्हों ने अपनी जगह बना दी थी, यह उनका योगदान था। Lisa Sthalekar पुणे में जन्मी और महिलाओं की क्रिकेट की दुनिया में 2013 तक 1000 रन बनाना और 100 विकेट लेने का उसका रिकॉर्ड है। एक भारतीय मूल की बेटी ऑस्ट्रेलिया की तरफ से खेल रही है। अक्षय वैंकटेश भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियन 12 साल की उम्र में international physics Olympiad and international maths Olympiad, उसमें विश्व में अपना डंका बजा दिया था। ऑस्ट्रेहलिया का नाम रोशन किया। यहीं के हमारे, यह सामर्थ्य वान लोग.. Mathai Varghese भारतीय मूल के थे, via अफ्रीका यहां ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। mathematician के नाते उन्होंने अपना नाम बनाया था। Tharini Mudaliar साउथ अफ्रीका में जन्मी मूल भारतीय और actor or singer के रूप में पूरे ऑस्ट्रेलिया में जानी जाने लगी। Indira Naidoo मूल भारतीय की ऑस्ट्रेलियन एक लेखिका के रूप में, एक journalist के रूप में और यूएन में सेवाएं देने के रूप में आज भी हर भारतीय के नामों पर गर्व कर सकता है। इसके सिवा भी बहुत सारे नाम होंगे जो भारतीय मूल के लोग हैं। जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अपने आप को खपा दिया, ऐसा समर्पित कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के जीवन का भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया का नाम रोशन हो, उसमें उनका योगदान रहा है और यही हमारी ताकत है। एक भारतीयता के गौरव के लिए भारतीय होने के नाते विश्व में हम जहां हो, वहां के लोगों का हम प्रेम सम्पादन करें। मिलजुल कर अपने जीवन को बनाने में, हम उनका योगदान करें। हमारे पास जो श्रेष्ठ है, वो जगत को काम आए और उसी के लिए माध्यम बने और भूमिका से जो आप भूमिका अदा कर रहे हैं। इसलिए मैं आप सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं आप सबका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।

मुझे मालूम है, चुनाव तो हिंदुस्तान में चल रहे थे। आप की उंगली पर तो टीका लगने वाला नहीं था। आपका तो मतदान होना नहीं था। लेकिन मुझे मालूम है वो चुनाव का कोई पल ऐसा नहीं था,जिससे आप जुड़े नहीं थे। कोई परिवार ऐसा नहीं था, जब चुनाव के नतीजे आने वाले थे, उस रात तय करके बैठा था, अब तो सोना नहीं है। यह जो भारत में राजनीतिक परिवर्तन के लिए विश्व भर में फैले हुए भारतीय समुदाय का जो उमंग था। वो उमंग कौन जीते, कौन हारे इसके लिए नहीं था। किसकी सत्ता बने, किसकी न बने, इसके लिए नहीं था। उसके दिल में एक दर्द था, एक आग थी, पीढ़ा थी कि मैं दुनिया में जहां बैठा हूं, मेरा देश कब ऐसा बनेगा। उसके लिए चुनाव उज्जवल भारत के भविष्य के सपनों से जुड़ा हुआ था। उसके लिए चुनाव राजनीतिक उठा-पटक का खेल नहीं था। जय और पराजय का खेल नहीं था। उसके दिल में तो एक ही आवाज थी भारत माता की जय। उसके मन में एक ही भाव था भारत माता की जय और भारत माता की जय का मतलब होता है- भारत के जो कोटि-कोटि लोग जो आज भी गरीबी में जिंदगी गुजार रहे हैं, कितने परिवार है, जिनको आज बिजली तक मुहैया नहीं है। आजादी के इतने सालों के बाद पीने का शुद्ध पानी न मिले, बिजली मुहैया न हो, इतना ही नहीं शौचालय तक नहीं है। कई लोगों के मन में बहुत बड़े-बड़े काम करने के सपने होते हैं। वो सपने उनको मुबारक। मुझे तो छोटे-छोटे काम करने हैं, छोटे-छोटे लोगों के लिए करने है और छोटे लोगों को बड़ा बनाने के लिए करने हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं, आज के युग में बैंकिंग सिस्टम से अलग रह करके अर्थ कि, आर्थिक व्य़वस्था की मुख्यधारा के बाहर रहकर के कोई आर्थिक विकास में भागीदार बन सकता है क्या? हर किसी के लिए bank account इतनी सामान्य बात है। हमारे देश में बैंकों राष्ट्रीयकरण हुआ था और यह सपना देखा गया था गरीब से गरीब व्यक्ति बैंक में जा पाएगा। आपने भी किसी गरीब को बैंक में नहीं देखा होगा। जब हिंदुस्तान में थे कभी देखा था।

अब मैंने सपना देखा है कि मैं चाहता हूं, गरीब का बैंक में खाता हो। मैंने प्रधानमंत्री जनधन योजना बनाई, क्योंकि मैं चाहता हूं कि देश भी आर्थिक विकास यात्रा में गरीब से गरीब का हिस्सा जुड़ना चाहिए, वो इस व्यवस्था के साथ परिचित होना चाहिए, उसे कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए। करीब 75 मिलियन लोग जिनका बैंक अकाउंट है उन परिवारों की मैं बात कर रहा हूं। व्यक्ति नहीं परिवार। एक परिवार में पांच लोग गिने तो आप अंदाज कर सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या होगी।

मैंने रिजर्व बैंक से कहा कि यह काम करना है। कर सकते है क्या? रिजर्व बैंक ने कहा कि मोदी जी हो तो सकता है, लेकिन.... अब प्रधानमंत्री को मना तो कोई करता नहीं। लेकिन उनको तरीके मालूम होते हैं। उन्होंने कहा तीन साल लगेंगे। मैंने कहा भाई तीन साल के बाद क्या सूरज कम उगेगा। मैंने हमारे वित्त मंत्रालय को पूछा, मैंने कहा कि भाई यह काम करना है बताओ क्या करोगे, रिजर्व बैंक तो तीन साल कह रही है। बोले नहीं-नहीं दो साल में कर देंगे। उनको लगा अब मोदी जी खुश हो जाएंगे। वो तीन कह रहे थे तो हमने दो कह दिया तो गाड़ी चल पड़ेगी। मैंने मेरे आफिस के लोगों को बुलाया, पीएमओ को। मैंने कहा भाई यह रिजर्व बैंक कह रही है तीन साल, डिपार्टमेंट कह रहा है दो साल.. आप क्या कह रहे हैं। मैंने कहा बोले एक साल तो लगेगा। अब हमने सबको सुन लिया और हमने कहा, 15 अगस्त को लालकिले पर से बोल दिया, मैंने कहा मुझे यह काम डेढ़ सौ दिन में पूरा करना है।

पिछले 68 years में एक साल में औसत एक करोड़ बैंक अकाउंट खुलते थे, 10 मिलियन। हमने ठान ली कि काम करना है। Last Ten week में Ten week में 71 मिलियन account खुल चुके। सरकार वो ही, मुलाजिम वही, दफ्तर वही, फाइल वही, आदत वही, लोग भी वही। काम हुआ कि नहीं हुआ। हो सकता है कि नहीं हो सकता। इतना ही नहीं देश के गरीब लोगों की ईमानदारी देखिए। देश के गरीबों की ईमानदारी देखिए और मैं आज उनका इस धरती से प्रणाम करता हूं। हमने कहा था मुझे गरीबों का Bank account खोलकर के मुख्य धारा में लाना है। अब उसके पास तो बेचारे को बैंक खाता खोलने के लिए पांच रुपये दस रुपया भी नहीं है। तो हम ने नियम बनाया जीरो balance से Bank account खुलेगा। लेकिन आप सब गर्व कर सकते हो। account खोलना था ऐसे गरीब परिवार के लोगों ने, मन में सोचा- नहीं, नहीं मुफ्त में क्यों कर रहे हैं। बोले मोदी जी ने तो कह दिया, ऐसा नहीं करेंगे। हमारा भी कोई जिम्मा होता है और मेरे दोस्तों आपको जानकर के खुशी होगी कि 70 मिलियन जो Bank Account खुले हैं Ten week में खुले हैं। पांच हजार करोड़ रुपये इन्होंने जमा कराए। five thousand crore rupees... किसी ने सौ रूपया, किसी ने दो सौ रूपया, उसको लगता है कि मैं मुख्य धारा से जुड़ रहा हूं।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है दोस्तों कि एक बार.. हम हमारे देश के लोगों की ताकत को कम न आंके, हमारे देश की व्यवस्थाओं की ताकत को कम न आंके, हम व्यवस्थाओं पर भरोसा करें, देशवासियों पर भरोसा करें और उनको सही दिशा में ले जाने के लिए अगर उंगली पकड़कर के चलने की कोशिश करें, वो हमसे भी आगे दौड़ने के लिए तैयार होते हैं। मैंने उनको कहा है 26 जनवरी फाइनल डेट। पूरा करना है काम। लगे है। सारे बैंक employee लगे हुए हैं। काम कर रहे हैं।

02 अक्तूरबर से मैंने काम उठाया है – “स्वच्छ भारत” का। आप मुझे बताइये, दुनिया के किसी भी देश में जाते हैं और वहां की स्वच्छता देखते हैं तो सबसे पहले हमारे देश के गली-मोहल्ले याद आते हैं कि नहीं आते। हम यहां आकर के कभी गंदगी करते हैं क्या? लेकिन भारत में जाते ही.. ये सिर्फ व्यावस्थाओं के कारण ही समस्याएं नहीं हैं। मैं जानता हूं कठिन काम है। महात्मा गांधी भी इस काम के लिए बहुत आग्रह करते थे लेकिन क्या बहुत कठिन काम है? क्या बिल्कुल हाथ ही नहीं लगाना चाहिए? दूर भागना चाहिए क्या? आलोचना सहने की तैयारी चाहिए कि नहीं चाहिए? भाईयों-बहनों मैंने एक बहुत बड़ा संकट मोल लिया है, जानबूझ करके मोल लिया।

जो लोग 1857 के स्व़तंत्रता संग्राम में लड़ पड़े थे, शहीद हो गए थे, उनको अपने देश की आजादी जीते जी देखने को नहीं मिली थी, लेकिन वो अगर यह सोचते कि मेरे जीते जी आजादी मिले तभी तो मैं मरने को तैयार होऊं! तो कभी आजादी नहीं मिल सकती। अगर सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें तो दुनिया के सामने हमारी जो यह छवि बिगड़ी हुई है उसको भी बराबर साफ-सुथरा बना सकते हैं और इसलिए मैंने इस काम को उठा लिया। शौचालय बनाने में लगा हूं। बताइये! देश का प्रधानमंत्री यह काम कर रहा है – शौचालय बनाओ ! खास करके हमारी माताओं-बहनों की dignity.. गांव के अंदर आज भी खुले में शौचालय जाना पड़ रहा है, मन में दर्द होता है, शर्मिंदगी महसूस होती है। मैं आपसे भी अनुरोध करता हूं, ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया होगा। आप पूंजीपति नहीं होंगे, लेकिन दो टाइम अच्छे ढंग से खाना तो जरूर खा सकते होंगे। आप भी अपने गांव में, जहां के आप मूल रहने वाले हैं, इस काम में कुछ योगदान दे सकते हैं तो जरूर दीजिए। मैं आपको निमंत्रण देता हूं। स्वच्छता जो है, वो ऐसा क्षेत्र है..क्योंकि गंदगी है, जो बीमारियों को लाती है और जब बीमारी आती है तो औसत, एवरेज एक गरीब परिवार को करीब-करीब छह से सात हजार रुपये का बोझ आ जाता है, बीमारी के टाइम। अगर हम स्वच्छता अभियान लेते हैं तो गरीबों की इससे बड़ी कोई सेवा नहीं होती है और इसलिए आपके दिल में भारत के लिए सेवा करने का कोई भी भाव आए, उस भाव का प्रकटीकरण इस स्वच्छता अभियान के माध्यम से हो सकता है।

मैं बहुत पहले जब ऑस्ट्रेलिया आया था, तब काफी मेरा मिलना-जुलना हुआ, कई बार आना हुआ है, यहां के लोगों से मिलता था, बात करता था। मुझे कई लोग पूछते थे कि ऑस्ट्रेलिया से आप क्या सीखेंगे? अब क्या कहे कि हमं ऑस्ट्रेलिया से क्या सीखना चाहिए? एक बात मेरे मन को हमेशा छूती थी, और वो थी –dignity of labour; यहां के चरित्र में है, जिस आदर के साथ वो डॉक्टर से बात करता है, उतने ही आदर से वो ड्राइवर के साथ बात करता है। कोई scientist के तौर पर काम करता है तो weekend पर ड्राइविंग करने चला जाता है और टैक्सी चलाता है। यह dignity of labour! यह ऑस्ट्रेलिया से सीखने वाला विषय है। स्वरच्छता के माध्यम से मैं इस बात को गर्व देना चाहता हूं, गौरव देना चाहता हूं, कि सफाई करना, यह कूड़ा-कचरा उठाना, यह below dignity नहीं है, बहुत इज्जत वाला काम है। भारत में हम लोगों का स्वाभाव क्या हो गया है? अगर कोई अपने घर कूड़ा-कचरा उठाने के लिए आ जाए, तो हम क्या कहते हैं, कचरा वाला आया है। हकीकत में वो कचरे वाला नहीं है, वो सफाई वाला है। लेकिन हम.. हमारे सोचने के तरीके में ऐसी गड़बड़ हो गई है, हमारी Terminology इतनी बदल गई है कि जो सचमुच में सफाई का काम करता है, उसको भी हम कचरे वाला कहते हैं। यह स्थिति बदलनी है और इसलिए .. और मैंने देखा है, आज हिंदुस्तान में उद्योग जगत के लोग हों, सिने जगत के लोग हों, शिक्षा जगत के लोग हों, राजनीति जगत के लोग हों, सबने गौरव के साथ इस काम में शरीक होने का बीड़ा उठाया है और मैं सबका अभिनंदन करता हूं। काम कठिन है। दिवाली में भी अगर अपने दो कमरे का घर भी साफ करना है तो हफ्ता निकल जाता है, तो इतना बड़ा हिंदुस्तान साफ करना है तो समय लगता है और इसलिए हमने कहा है 2019.. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती आ रही है। महात्मा गांधी ने हमें आजादी दी है, हम गांधी को क्या दें? कम से कम साफ-सुथरा हिंदुस्तान तो उनके चरणों में धरे हम। इतना तो करें। 2019 तक इस बात को मैं आगे बढ़ाना चाहता हूं और यही चीजें हैं!

अगर बीमारी जाती है तो गरीब को फायदा होता है लेकिन स्वच्छता आती है तो Tourism इतनी तेजी से बढ़ेगा, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। हिंदुस्तान के पास क्या नहीं है, दुनिया को देने के लिए, दिखाने के लिए। पूरे विश्व के पास जितना है, उतना अकेले एक हिंदुस्तान के पास है। हिम्मत के साथ अगर हम जुट जाएं तो लोग आ जाएंगे, लेकिन वो मिजाज भी तो चाहिए, वो दम भी तो चाहिए। अपने आप पर भरोसा भी तो होना चाहिए। इतनी पुरातन चीजें हमारे पास हैं, विश्व को हम आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन शुरूआत ही ऐसी होती है – यार! पता नहीं! .. और बात वहीं अटक जाती हैं।

दुनिया से हम इंवेस्टमेंट चाहते हैं। मेक इंडिया का अभियान लेकर के बैठे हैं। मैं चाहता हूं, विश्व भारत की धरती पर आए, मैन्यूफैक्चैरिंग सेक्टर में आए, क्योंकि हमारा मकसद एक है – हमारे देश के नौजवान को रोजगार मिले। हमारी सारी नीतियों के केंद्र बिंदु में नौजवानों के लिए रोजगार है। job creation कैसे हो? और इसके लिए हम दुनिया को कह रहे हैं – आइये, भारत में पूंजी लगाइये। जिस देश के पास इतने नौजवान हो, वो देश के नौजवान अपने कौशल के द्वारा, अपने सामर्थ्य के द्वारा दुनिया को क्या कुछ नहीं दे सकते हैं। इसलिए मेक इन इंडिया अभियान हमने चलाया है और उसके लिए नियमों में, कानूनों में, व्यवस्थाओं में बदलाव ला रहे हैं। Good Governance सबसे बड़ी आवश्यकता है, लेकिन पूंजी निवेश के लिए भी कोई आएगा तो सबसे पहले उसके साथ जो लोग आते हैं, CEO आएगा, Top Managers लाएगा और Managerial skills वाले पूछते हैं quality of life का क्या है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था, तो हम चाहते थे कि जापान हम से जुड़े, जापान के लोग हमारे यहां आएं। हमारे ध्यान में आया कि बाकी सब होगा, लेकिन golf नहीं होगा तो जापान नहीं आएगा। अब गुजरात वालों को गिल्ली-डंडा मालूम है, golf मालूम नहीं। आखिरकार हमने प्राइवेट पार्टी को कहा कि भई golf के लिए कोई व्यवस्था करो अब, मुझे investment चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी पूंजी निवेश के लिए आता है, तो वो उसके अपने लोगों के लिए, managerial लोगों के लिए quality of life चाहता है। यह भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वो उस quality of life के लिए लोगों को ऑफर करे, ताकि पूंजी निवेश के साथ उसके जो लोग आएं, उनके जीवन को भी एक स्तर से रहने का अवसर मिले, अच्छी शिक्षा मिले, अच्छी Health care मिले, अच्छा जीवन जीने का अवसर मिले, यह सारी चीजें जुड़ी हुई है। हम सिर्फ सरकार की नीतियां बनाए और लोगों को कहें कि यह टैक्स, फ्री करेंगे, वो फ्री करेंगे, यह मुफ्त में देंगे, आप आ जाइये, दुनिया आती नहीं है, उसके लिए व्यवस्थाएं विकसित करनी पड़ती है, environment बनाना होता है। मेक इन इंडिया हमने उस दिशा में प्रयास शुरू किया है।

भारत की रेल पर हम सब गर्व कर सकते हैं। लेकिन वहीं अटकी पड़ी है। न नया एक किलोमीटर रेल की पटरी डाली जाती है, न उसकी स्पीड बढ़ती है, न पैसेंजरों के लिए जगह बढ़ती है। पैसेंजर बढ़ रहे हैं, तो अंदर नहीं, तो ऊपर बैठते हैं। क्या इन स्थितियों के उपाय नहीं है क्या? उपाय हैं। बड़ी हिम्मत के साथ हमने निर्णय किया है, रेलवे में 100% Foreign Direct Dnvestment लाएंगे। दुनिया में जो लोग इसके जानकार हैं, मैं निमंत्रित करता हूँ; आएंगे। भारत में रेलवे के विस्तार के लिए इतनी संभावना है, रेलवे के विकास के लिए इतनी संभावना है, रेलवे में Technology upgradation की इतनी संभावना है और सवा सौ करोड़ देशवासियों का मार्केट! छोटी बात नहीं है। दुनिया में कई देश ऐसे हैं, जहां रेलवे होगी, passenger नहीं मिलते होंगे जी।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है मित्रों कि हम नीतिगत बदलाव ला रहे हैं, जिन बदलावों के कारण भारत के सामान्य मानव, के जीवन में बदलाव के लिए, विकास की नई ऊंचाईयों को पार करने के लिए हम आगे बढ़ेंगे। अब इतना बड़ा रेलवे का नेटवर्क है, लेकिन रेलवे में आज तक क्या होता था? जिसको भी नौकरी चाहिए, अखबार में advertisement आता है, वह apply करता था। apply करने के बाद रेलवे वाले उसको छह महीना, एक साल ट्रेनिंग देते थे। आप जानते हैं कि सरकारी स्तर पर training होती है तो फिर क्या। होता है, फिर वो रेलवे में नौकरी पर लग जाता था तो फिर वो रेलवे का क्या हाल होता होगा। हमने कहा कि रेलवे अपनी खुद चार युनिवर्सिटी बनाए, जिसको रेलवे में नौकरी करनी है वो युनिवर्सिटी में पढ़ाई करे और पढ़ाई के दरम्यान ही उसके अंदर वो ताकत आ जाए कि वो उत्तंम से उत्तम रेलवे की सेवा करे, Technology up gradation हो, रेलवे का expansion हो ।

At the same time, Human Resource Development भी होना चाहिए। इस के लिए जो एक और काम हमने उठाया है। दुनिया को बहुत बड़े work force की जरूरत होने वाली है। आज जो दुनिया तेज गति से दौड़ रही है ना, वो बुढ़ापे में आ गई है। आज दुनिया के कई देश है, जिसके पास आर्थिक सामर्थ्य है लेकिन work force नहीं हैं और सिर्फ Technology के माध्यम से जीवन संभव नहीं है। कितनी ही Technology लाएं लेकिन proper work force की जरूरत हरेक को रहने वाली है और हम भाग्यवान हैं। सारी दुनिया को जितनी work force की जरूरत है वो पहुंचाने के लिए हमारे लोगों ने भरपूर काम किया है। लेकिन वो अधूरा है। skill development आवश्यक है, skill development नहीं होगा.. विश्व को जिस प्रकार के work force की जरूरत है उस work force के लिए हम अभी से plan नहीं करते। हम दुनिया का मैपिंग करना चाहते हैं कि 2020 में किस देश में किस प्रकार के लोगों की जरूरत पड़ेगी। नर्सिंग, आज भी दुनिया को जरूरत है, maths and science के Teacher, आज भी दुनिया को जरूरत है। क्या भारत वहां से डायमंड भी export करें क्या? James and jewelry भी export करें क्या? आलू टमाटर भी export करें क्या? अगर हम दुनिया में best quality के टीचर export करते हैं, पूरी दुनिया को हम अपनी बना सकते हैं। सारे विश्व को इसकी जरूरत है। सारे विश्व को best quality teachers की जरूरत है, लेकिन उसके लिए Human Resource Development पर ध्यान भारत में देना पड़ता है। पांच साल लगें, दस साल लगें, 15 साल लगें लेकिन ऐसी मानव ताकत को तैयार करें जो विश्व की जरूरतों की पूर्ति के लिए हो। हमारे नौजवान को रोजगार मिलेगा। विश्वर का कल्याण होगा और भारत की जय-जयकार होगी।

विकास की नई ऊंचाईयों को अगर पार करना है, मेरे नौजवान साथियों भारत में अपना पूरा ध्यान भारत की युवा शक्ति पर केंद्रित करने की जरूरत है। युवा शक्ति के भरोसे, उनके सामर्थ्य के भरोसे, उनके talent के भरोसे दुनिया के अंदर भारत का लोहा मनवाने के लिए सामर्थ्यवान बन सकते हैं।

अब दुनिया जमीनी लड़ाई से चलने वाली नहीं है। हार जीत जमीनी लड़ाईयों से नहीं होने वाली। वो समय बीत चुका है। अब बाहुबल से नहीं, दुनिया बुद्धिबल से चलने वाली है। धनबल से भी ज्याहदा बुद्धिबल काम करने वाला है और उसके लिए सामर्थ्यवान नागरिकों को तैयार करना, सामर्थ्यवान नागरिकों के भरोसे विश्व की आवश्यकताओं को ध्याक में रखते हुए, भारत को अपने आप को सजग करना होगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं मेरे भाइयों-बहनों मैं जानता हूं, यह प्यार, यह आशीर्वाद, यह जय जयकार, इसके भीतर अपेक्षाएं पड़ी हैं, आकांक्षाएं पड़ी हैं लेकिन आपका सपना मेरा सपना है। आपकी इच्छाएं-आकांक्षाएं मेरी इच्छाएं-आकांक्षाएं हैं। आप जिस रूप में भारत को देखना चाहते हैं, मैं भी उसी रूप में भारत को बनाना चाहता हूं। फर्क इतना है कि पहले लगता था कि सरकारें देश बनाएंगी, मैं मानता हूं कि सरकारें देश नहीं बना सकती और नहीं बनाना चाहिए। देश बनता है देशवासियों के कारण, देश बनता है देशवासियों की शक्ति के कारण और अगर हम देशवासियों को अपनी शक्ति का भरपूर उपयोग करने का मौका दें, रूकावटें न डाले, सरकार इतना ही करें न.. हट जाए। आपको हैरानी होगी, पहले की सरकारें इस बात का गर्व करती थीं कि हमने यह कानून बनाया, हमने ढिकना कानून बनाया, हमने फलाना कानून बनाया, आपने सुना होगा सब चुनावों में। मेरी गाड़ी उलटी है। उनको कानून बनाने में मजा आता था, मुझे कानून खत्म करने में आनंद आता है। ऐसा बोझ बना दिया, ऐसा बोझ बना दिया है.. अरे जरा खिड़की खोलो भाई! लोगों को जीने दो! खुली हवा मिलने दो, खिलने लगेगा देश। इसलिए मैं कहता हूं कि देश के नागरिकों पर मुझे भरोसा है, नागरिकों के सामर्थ्य पर भरोसा है और उन्हीं के भरोसे देश आगे बढ़ने वाला है, सरकारों के भरोसे देश नहीं चल सकता है और न चलना चाहिए, इस विचार का, मैं इंसान हूं।

आप लोग जब यहां आएं होंगे, आप जब पढ़ते होंगे तो आपको अपनी Mark- sheet को certify कराने के लिए किसी politician के पास मोहर लगवाने जाना पड़ा होगा, किसी गजेटेड ऑफिसर के यहां जाना पड़ा होगा। सुबह कतार लगी होगी उसके घर के सामने और कोई पहचान के बिना काम होता नहीं है। यह सब आपने अनुभव किया होगा। मेरी समझ में नहीं आता है कि जीरोक्स। का जमाना है, क्या वो गजेटेड ऑफिसर या वो कॉरपोरेटर या वो MLA.. क्या वो certify करे तभी हम सच्चे हैं? लेकिन अंग्रेजों के जमाने से यह चल रहा था, मैंने आ करके निकाल दिया। मैंने कहा भई, तुम खुद ही लिख दो कि यह मेरा है, मैं मान लूंगा। अरे! सवा सौ करोड़ देशवासियों पर भरोसा तो करो, भई! अपनों पर हम भरोसा नहीं करेंगे, तो अपने हम पर भरोसा क्यों करेंगे। मैंने उन सारे नियमों को निकाल दिया। हां! जब नौकरी लगेगी तो तुम original certificate ला करके दिखा देना, बात पूरी हो गई।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम हमारे देशवासियों पर विश्वास करें। आशंकाएं न करें। अपने आप ही माहौल बदलना शुरू हो जाता है। अगर मैंने गरीबों पर भरोसा न किया होता, तो मेरे गरीब हिंदुस्तान के बैंकों में पांच हजार करोड़ रुपया नहीं लगाते दोस्तो!

इसलिए हम भरोसा कर करके, समाज की शक्ति को जोड़ करके, देशवासियों की ताकत को जोड़ करके, हम देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारा किसान सुखी हो, हमारी माताओं-बहनों को सम्मान मिले, गौरव से जीएं, हर क्षेत्र में dignity.. अभी मैंने एक प्रोग्राम लॉन्च किया है – श्रमेव जयते! हम सत्यमेव जयते से तो परिचित थे, मैंने कहा – श्रमेव जयते... dignity of labour , इसको बहुत आगे बढ़ा रहा हूं।

लेकिन मुझे विश्वास है भाइयों कि आपने जो मुझे प्यार दिया है उस प्यार के माध्यम से कुछ जानकारी आपको दे दूं, ताकि.. कुछ बात, आपके लिए भी बात होनी चाहिए न। आपकी भी शिकायत होगी साहब, embassy में कोई पूछता नहीं है, कोई फोन नहीं उठाता, ईमेल करते हैं तो कोई जवाब नहीं देता हैं और फिर.. छोड़ो यार! मोदी जी आए, लेकिन कुछ हुआ नहीं। यही होता है न। निराशा इतनी है, इतने बुरे दिन देखे हैं कि मन में यह होता है कि यार.. लेकिन व्यवस्थाएं बदली जा सकती है। एक निर्णय - मैं जब अमेरिका गया था, तो मैंने कुछ बातें कही थीं, लेकिन उस समय Medison Square में जो बातें कही थीं, वहां जो लोग इक्ट्ठे हुए थे, उनको भरोसा नहीं था, क्यों कि मेरे पहले भी बहुत लोग बोल करके गए होंगे। दूध का जला छांछ फूंक कर पीता है लेकिन भाइयों बहनों मैंने अमेरिका में जो कहा था, मैंने आ करके उसको एक के बाद एक लागू करना शुरू कर दिया। जिनके पास पीआईओ कार्ड है, उन सबको आजीवन वीजा मिल जाएगा। अब, embassy वाले ने फोन उठाया, नहीं उठाया, ईमेल का जवाब दिया, नहीं दिया, हम गए तब मिला, नहीं मिला- सब दूर। एक और काम है, क्योंकि यह झगड़ा चल रहा है कि पीआईओ को वो ले करके चले या ओसीआई उसको ले करके चले.. तो ओसीआई वाला और पीआईओ वाला, दोनों के यहां अलग-अलग treatment होती है। मैंने वहां घोषणा की थी कि हम दोनों को एक कर देंगे।

इस बार प्रवासी भारतीय दिवस अहमदाबाद में होने वाला है। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस का विशेष महत्व होने वाला है। 1915, जनवरी महीने में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका से भारत वापस आए थे। एक प्रवासी भारतीय के रूप में साउथ अफ्रीका से 1915, जनवरी में महात्मा गांधी वापस आए थे। महात्मा गांधी का हिंदुस्तान वापस आने को 2015, जनवरी में 100 साल पूरे हो रहे है। इसलिए प्रवासी भारतीय दिवस में महात्मा गांधी की शताब्दी मनाए जाने का अवसर है और विश्व में रहने वाले हर भारतीय को.. जैसे महात्मा गांधी के दिल में देश के लिए कुछ करने की ललक थी, यह ललक हर हिंदुस्तानी के दिल में, वो दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, वो जलती रहे, जगती रहे। इस तरह इस योजना को आगे बढ़ाते हुए.. इसलिए यह पीआईओ और ओसीआई को एक करने का तय किया है कि 8-9 जनवरी, 2015 जब प्रवासी भारतीय दिवस होगा, उसके पहले मेरी सरकार इस काम को पूरा कर देगी। तारीख के साथ बता रहा हूं मैं।

पहले हमारे यहां से जो लोग आते थे, आप लोगों को पता होगा, पुलिस थाने जाना पड़ता था कि मैं ‘वही’ हूं और यह पुलिस वाला तय करता था कि अच्छा़, अच्छा ‘वही’ हैं आप। क्या‘–क्या.. मैं हैरान हूं जी! हमने तय कर दिया है किसी को जाना नहीं पड़ेगा। छुट्टी! और इसको लागू कर दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी चीजें बना करके रखी है.. और इस तरह से मैंने मुक्ति का अभियान चलाया है भाईयों। सिडनी में, हमारी embassy का एक हिस्सा यहां भी है, वहां का cultural center, आज ही मैंने सूचना दी है, फरवरी तक मैं उसको functional करना चाहता हूं और यह होगा!

एक मेरी वेबसाइट है, आप में से किसी को interest हो तो mygov.in अगर शिकायत हो तो लिखिए उस पर। सुझाव है तो भी लिखिए और आप देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो भी लिखिए। फरवरी में यह cultural center शुरू हो जाए, इसके लिए मैं आगे बढ़ने वाला हूं।

एक और महत्वपूर्ण निर्णय करना है, जो शायद आपको.. भारत में जो Tourism बढ़ाने के लिए हम चाहते हैं, हम भी ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों को कह सकते हैं –Visa on Arrival. यह सुविधा बहुत जल्द आपको प्राप्त हो जाए, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

मैंने काफी समय ले लिया, मैं समझता हूं। आप लोग special train ले करके आए हैं। कोई कल्पना कर सकता है! आज working day! और यह जमावड़ा! ऊपर तो मेरी नजर भी नहीं पहुंच पा रही है। मैं आपके प्यार के लिए बहुत-बहुत आभारी हूं और यह आशीर्वाद बने रहें, प्यार बना रहे।

मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं परिश्रम करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। ईश्वर ने जितनी बुद्धि, समय, शक्ति दी है वो आपको समर्पित है, देशवासियों को समर्पित है। लेकिन यह निश्चित है कि हम सबको मिलकर देश को बनाना है। देश ने हमें बहुत कुछ दिया है। हमें भी देश को कुछ देना है। आज हम जो कुछ भी है, किसी न किसी गरीब की कृपा है, तब हम यहां है, हमने उसे लौटाना है। ईश्वर भी प्रसन्न होता है, जब हम किसी के काम आते हैं।

मैं फिर एक बार, इतनी बड़ी संख्या में आप आए, सम्मान दिया, प्यार दिया, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं। मेरे साथ आज पूरी ताकत से बोलिए और मेरा भी मन करता है कि बोल लूं– भारत माता की जय! भारत माता की जय!

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India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection: PM Modi
June 05, 2023
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“On one hand, we have banned single-use plastic while on the other hand, plastic waste processing has been made mandatory”
“India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection”
“In the last 9 years, the number of wetlands and Ramsar sites in India has increased almost 3 times as compared to earlier”
“Every country in the world should think above vested interests for protection of world climate”
“There is nature as well as progress in the thousands of years old culture of India,”
“The basic principle of Mission LiFE is changing your nature to change the world”
“This consciousness towards climate change is not limited to India only, the global support for the initiative is increasing all over the world”
“Every step taken towards Mission LiFE will become a strong shield for the environment in the times to come

Namaskar!

I extend my heartfelt wishes to all of you, our country, and the world on World Environment Day. The theme for this year's Environment Day is the campaign to get rid of single-use plastic. I am pleased that India has been consistently working on this issue for the past 4-5 years, much before the global initiative. As early as 2018, India initiated action on two levels to get rid of single-use plastic. On one hand, we imposed a ban on single-use plastic, and on the other hand, we made plastic waste processing mandatory. As a result, approximately 30 lakh tons of plastic packaging in India are now being compulsorily recycled. This accounts for 75 per cent of the total annual plastic waste generated in India. Today, around 10,000 producers, importers, and brand owners are actively participating in this endeavour.

Friends,

In the 21st century, India is marching forward with a clear roadmap for climate change and environmental conservation. India has struck a balance between present requirements and future vision. On one hand, we have provided necessary assistance to the poorest of the poor, making earnest efforts to fulfil their needs; on the other hand, we have also taken significant steps in addressing future energy requirements.

Over the past nine years, India has placed unprecedented focus on green and clean energy. Solar power has gained significant momentum, and LED bulbs have reached a larger number of households, saving money for our people, especially the poor and middle class, while also protecting the environment. Electricity bills have consistently reduced. India's leadership has been recognized globally even during this global pandemic. Amidst this global pandemic, India has initiated the Mission Green Hydrogen. Additionally, India has taken significant steps towards natural farming and organic agriculture to protect soil and water from chemical fertilizers.

Brothers and sisters,

Continuing the campaign for a green future and a green economy, today marks the beginning of two more initiatives. Over the past nine years, the number of wetlands and Ramsar sites in India has increased by nearly threefold compared to earlier. Today, the ‘Amrit Dharohar Yojana’ has been launched. This scheme will ensure the conservation of these Ramsar sites through community participation. These Ramsar sites will become centers of eco-tourism and serve as a source of green jobs for thousands of people in the future. The second initiative is related to the long coastline of the country and the population residing there. Through the "Mishti Yojana," the country's mangrove ecosystem will be revived and protected. This will help restore mangrove cover in nine states of the country. It will also contribute to raising the sea level and reducing the impact of coastal areas from disasters like cyclones, thus improving livelihoods and lives in these coastal regions.

Friends,

It is crucial for every nation in the world to rise above self-interests and think about the protection of the world climate. The model of development in major and modern countries for a long time is highly contentious. In this development model, the focus was largely on first developing our own countries and then considering the environment later. As a result, while these countries have achieved their development goals, the entire world has had to bear the cost of their progress. Even today, developing and underdeveloped countries are suffering the consequences of the wrong policies of some developed nations. For decades, no one, no country questioned or stopped this approach of certain developed countries. I am pleased that today India has raised the question of climate justice in front of every such nation.

Friends,

India's ancient culture encompasses both nature and progress. Inspired by this ideology, India today focuses on ecology as much as it emphasizes the economy. While India is investing unprecedentedly in its infrastructure, it continues to maintain a strong focus on the environment. On the one hand, while India has expanded its 4G and 5G connectivity, on the other hand, it has simultaneously increased its forest cover. On the one hand, while India has constructed four crore homes for the poor, on the other hand, India has also recorded significant growth in wildlife and wildlife sanctuaries. On the one hand, India is running the Jal Jeevan Mission, while on the other hand, it has also created over 50,000 Amrit Sarovars (water bodies) for water security. On the one hand, while India has become the world's fifth-largest economy, on the other hand, India is also among the top five countries in renewable energy. On the one hand, while India is stepping up agricultural exports, on the other hand, India is simultaneously promoting a campaign for 20% ethanol blending in petrol. On the one hand, while India has established organizations like the Coalition for Disaster Resilient Infrastructure (CDRI), on the other hand, it has also announced the International Big Cat Alliance. It is a significant step towards the conservation of big cats.

Friends,

I am personally very pleased that Mission LiFE, which stands for Lifestyle for the Environment, is becoming a global public movement, a people's movement. When I launched Mission LiFE last year in Kevadia-Ekta Nagar, Gujarat, there was a curiosity among the people. Today, this mission is spreading awareness about adopting a lifestyle change to tackle climate change. Just a month ago, a campaign was launched for Mission LiFE. I am told that nearly two crore people have joined it in less than 30 days. With the spirit of ‘Giving Life to My City’, rallies have been organized and quiz competitions have taken place. Lakhs of schoolchildren and their teachers have become part of this campaign through eco-clubs. Lakhs of colleagues have embraced the mantra of Reduce, Reuse, Recycle in their daily lives. Changing habits is the fundamental principle of Mission LiFE, which aims to bring about a transformation in the world. Mission LiFE is crucial for the future generations and the bright future of humanity.

Friends,

This awareness is not limited to just our country, but support for India's initiative is growing worldwide. I made another appeal to the global community last year on World Environment Day. The appeal was to share innovative solutions for bringing climate-friendly behavioural change among individuals and communities. The solutions that should be measurable and scalable! It is a matter of great satisfaction that colleagues from nearly 70 countries around the world have shared their thoughts. Among them are students, researchers, experts from various domains, professionals, NGOs, and ordinary citizens. Some of the participants have been rewarded today for their exceptional ideas. I congratulate all the award winners wholeheartedly.

Friends,

Every step taken towards Mission LiFE will become a strong shield for the environment across the globe in the times to come. The collection of thought leadership for LiFE has also been released today. I believe that our commitment to green growth will become even more powerful and sustainable with such efforts. Once again, I extend my heartfelt greetings and best wishes to everyone on World Environment Day.

Thanks!