I would like to begin by acknowledging the traditional owners of this land on which we stand today and pay my respect to their elders in past and present.

यहां उपस्थित, यहां के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के सभी महानुभाव और मेरे प्यायरे देशवासियों,

यह स्वागत, यह सम्मान, यह उत्साह, यह उमंग, इसका हकदार मोदी नहीं हैं। सवा सौ करोड़ देशवासी यह उनके हकदार हैं। यह स्वागत, यह सम्मान, यह प्यार भारत माता के उन सवा सौ करोड़ संतानों के चरणों में समर्पित करता हूं। मैं देख रहा हूं कि बहुत लोग अभी बाहर हैं अंदर आ ही नहीं पाए। यह जो, ये जो नजारा सिडनी में दिखाई दे रहा है। यह नजारा पूरे हिंदुस्तान को आंदोलित कर रहा है।

कभी स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों को याद करते हैं, तो हम कल्पना नहीं कर सकते कि हमारे यह महापुरूष कितने दीर्घदृष्टा थे। आजादी के पहले ठीक 50 साल पहले स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि 50 साल के लिए भारत के लोग अपने देवी-देवताओं को भूल जाएं। कोई कल्पना कर सकता है कि एक संन्यासी और जो खुद आध्यात्मिक जीवन को लेकर के चल पड़ा था। जिसने गुरूदेव रामकृष्ण परमहंस को अपना जीवन आहूत कर दिया था, जिसके लिए ईश्वर साक्षात्कार जीवन का मकसद रहा था, वो संन्यासी देश आजादी के 50 साल पहले कह रहा है, 50 साल के लिए आप अपने देवी देवताओं को भूल जाओ और सिर्फ, सिर्फ भारत माता की पूजा करो। दुनिया में फिर एक बार भारत माता की जय करो। उस महापुरूष के शब्दों के ताकत देखिए। ठीक उस 50 साल के बाद भारत आजाद हो गया।

मेरी तरह यहां बहुत लोग ऐसे है जिनका जन्म आजाद हिंदुस्तान में हुआ है और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं पहला ऐसा प्रधानमंत्री हूं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुआ है और तब जाकर के मुझे ज्यादा ही जिम्मेदारी का एहसास होता है, क्योंकि मेरे जैसे आप में से बहुत लोग हैं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं। हमें देश की आजादी के लिए लड़ने का सौभाग्य नहीं मिला है। हमें भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए फांसी के तख्तं पर चढ़ने का नसीब नहीं हुआ है। हमें भारत के सम्मान और गौरव के लिए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जवानी खपाने का सौभाग्य नहीं मिला है और हमारे भीतर एक दर्द होना चाहिए, एक कसक होनी चाहिए कि हम आजादी की जंग में नहीं थे। हम देश के लिए मर तो नहीं सके, लेकिन आजादी के बाद पैदा हुए हैं, तो देश के लिए जी तो सकते हैं। हर किसी के नसीब में देश के लिए मरना नहीं होता है। देश के लिए जीना हर किसी के नसीब में होता है और इसलिए हमारा संकल्प रहना चाहिए। हम जीएंगे तो भी देश के लिए, जूझेंगे, तो भी देश के लिए और यही भाव आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में जगा है।

आजकल तो हिंदुस्तान से रात को निकले सुबह ऑस्ट्रेलिया पहुंच जाते हैं लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को यहां आने में 28 साल लगे हैं। मैं आपको विश्वास दिलाने आया हूं। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले मेरे देशवासियों अब आप को कभी 28 साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा। जितना हक हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदुस्तानियों का है, उतना ही हक यहां पर रहने वाले मेरे देशवासियों का है। सिडनी खूबसूरत शहर है, ऑस्ट्रेलिया एक खूबसूरत देश है और न ऑस्ट्रेलिया और न ही इंडिया क्रिकेट के बिना जी सकते हैं; क्रिकेट ने हमें जोड़ा है। लेकिन इससे पहले हमारी ऐसी सांस्कृतिक विरासत रही है, इतिहास की ऐसी घटनाएं रही है जिसने हमें अटूट रूप से जोड़ा हुआ है और ऑस्ट्रेलिया-भारत common value को share करते हैं। लोकतंत्र हम दोनों देशों की धरोहर है और विश्व लोकतांत्रिक शक्तियों को आज गौरव के भाव से देखता है। भारत के दीर्घदृष्टा महापुरूषों का यह बहुत बड़ा योगदान रहा कि आजाद हिंदुस्तान में लोकतंत्र की मजबूत नींव हमारे पूर्व के सभी महापुरूषों ने डाली और उसी का परिणाम है और लोकतंत्र की ताकत देखिए; अगर लोकतंत्र की ऊंचाई न होती, तो क्या मैं यहां होता। भारत के लोकतंत्र की उस ताकत को हम पहचानें तो जहां सामान्यय से सामान्यर इंसान भी अगर सच्ची निष्ठा और श्रद्धा के साथ देश के लोगों के लिए जीना तय करता है तो देश उसके लिए मरना तय करता है। कभी-कभार हम शास्त्रों में पढ़ते थे कि फलाने भगवान सहस्त्रबाहू थे; एक हजार भुजाएं थी; ऐसा तो नहीं यहां लटकाई होगी। इसका मतलब यह था, उनके पास ऐसे 500 लोग थे जो 1000 भुजाओं के कारण ईश्वर भी अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण कर पाते थे, योजनाओं को पूर्ण कर पाते थे। परमात्मा के पास तो सहस्त्रबाहू थे, लेकिन भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हैं, ढ़ाई सौ करोड़। जिस देवी के पास, जिस भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हो और उसमें भी, दो सौ करोड़ भुजाएं तो 35 साल से कम आयु की है। हिंदुस्तांन नौजवान है। युवा शक्ति से भरा हुआ है। युवा के मन में, आंखों में सपने होते हैं, नेक इरादे होते हैं, मजबूत संकल्प शक्ति होती है और वे पत्थर पर लकीर करने का भी सामर्थ्य रखते हैं। और उसी के भरोसे मैं विश्वास दिलाता हूं जो स्वामी विवेकानंद ने दूसरा सपना देखा था, उस महापुरूष ने कहा था कि मैं मेरे आंखों के सामने देख रहा हूं.... जिस महापुरूष ने जीवन के अंतकाल में 50 साल के बाद जो सपना देखा वो चरितार्थ हुआ। उस महापुरूष ने दूसरा सपना देखा था और स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि मेरे आंख के सामने भारत मां का वो रूप देख हूं, उस जगत जननी का रूप देख रहा हूं, फिर एक बार मेरी भारत माता विश्व गुरू के स्थान पर विराजमान हो, वो विश्व का नेतृत्व करती होगी। वो विश्व की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति का सामर्थ्य रखती होगी। मेरी स्वामी विवेकानंद जी की इस दीर्घदृष्टा पर आपार श्रद्धा है और इसलिए मैं भी विश्वास से कहता हूं कि विवेकानंद जी कभी गलत नहीं हो सकते। ऐसी ऊर्जा से भरा हुआ हमारा देश है और मैं छह महीने के मेरे बहुत अल्पकाल के समय का मेरा अनुभव है। इतने बड़े हिंदुस्तान में छह महीने कुछ नहीं होते हैं। लेकिन छह महीने के अनुभव से मैं कह सकता हूं कि देश के सामान्यन मानव ने जो सपने देखे हैं, उन सपनों को पूरा करने के लिए आशीर्वाद भारत मां दे रही है और वो सपने पूरा होने का सामर्थ्य है। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, जो भरोसा मेरा है, आपका है क्या? आपको विश्वास है यह देश फिर से उठ खड़ा होगा? यह देश ताकतवर बनेगा? हम सामर्थ्य के साथ मानवजाति की सेवा कर पाएंगे। विश्व को संकटों से मुक्ति दिलाने का देश में सामर्थ्य होगा। अगर आपकी वाणी में जो ताकत है, वो सामान्य मानव की ताकत, वो वाणी, कभी ईश्वर की वाणी बन जाती है। वो ईश्वर के आर्शीवाद बन जाते हैं। मुझे कोई कारण नहीं लगता भाई और बहनों, कोई कारण मुझे नहीं लगता है कि हमारा देश अब पीछे रह जाए। मुझे कोई कारण नहीं लगता। नियति ने उसका आगे जाना तय कर लिया है। अब हम ढाई सौ करोड़ भुजाओं ने संकल्प करना है। कि हमारी भुजाओं से हर काम वही होगा, जो भारत मां के कल्यापण के लिए होगा। सवा सौ देशवासियों के कल्याण के लिए होगा। विश्व के दुखियारों के लिए होगा। एक बार उन संकल्पों को लेकर चलते हैं, तो उन संकल्पों की पूर्ति भी अपने आप होती है।

ऑस्ट्रे्लिया के जीवन में कोई भी भारतवासी गर्व करता है। यहां दो सौ साल पहले भारत से कुछ परिवार आए थे, दो सौ साल पहले। और भारतीयों का यहां का जीवन हर हिंदुस्तानी को गर्व करा रहा है, गर्व दे रहा है। अब ऑस्ट्रेंलिया को अपना बना लिया है। आपके वाणी से, वर्तनी से, विचार से, व्यवहार से जिन मूल्यों को लेकर के आप जी रहे हैं उसके कारण ऑस्ट्रेलिया का भी हर नागरिक हमसे अपनापन महसूस करता है और मैं मानता हूं एक भारतीय के नाते यही हमारा सबसे बड़ा दायित्व होता है कि जो हमारी कर्मभूमि हो, उस कर्मभूमि के साथ हमारा लगाव भी इतना होना चाहिए, हमारा समर्पण भी इतना होना चाहिए और जो आज हमारे भारतीय भाई-बहन ऑस्ट्रेलिया की धरती पर कर रहे हैं।

मैं यहां आने से पहले कुछ चीजें देख रहा था मुझे देखकर के इतना आनंद हुआ और मैं आज सबका उल्लेच तो नहीं कर पाऊंगा। जिनका उल्लेख रह जाए, वो मुझे क्षमा करें। वो अगर कमी है, तो मेरी कमी है। उनके पराक्रम की कमी नहीं है। आप देखिए 1964 में जो टोक्यो में ओलंपिक गेम हुआ। उसमें मूल भारतीय Bakhtawar Singh Samrai उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Bakhtawar ji का यह उस समय ओलंपिक टाइम में ऑस्ट्रेलिया की तरफ से एक भारतीय का प्रतिनिधित्व करना, मैं इसे छोटी बात नहीं मानता हूं। इतना ही नहीं यहां पर बहुत बड़ी तादाद में एंग्लो इंडियन रहते हैं। भारत से आए, यहां पर बसे। Julian Pearce जिनका जन्म जबलपुर में हुआ था और ओलंपिक में हॉकी को represent किया था उन्हों ने, ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Rex Sellers, Stuart Clark, ये दोनों एंग्लो इंडियन थे। भारत से आए थे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया को क्रिकेट की दुनिया में उन्हों ने अपनी जगह बना दी थी, यह उनका योगदान था। Lisa Sthalekar पुणे में जन्मी और महिलाओं की क्रिकेट की दुनिया में 2013 तक 1000 रन बनाना और 100 विकेट लेने का उसका रिकॉर्ड है। एक भारतीय मूल की बेटी ऑस्ट्रेलिया की तरफ से खेल रही है। अक्षय वैंकटेश भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियन 12 साल की उम्र में international physics Olympiad and international maths Olympiad, उसमें विश्व में अपना डंका बजा दिया था। ऑस्ट्रेहलिया का नाम रोशन किया। यहीं के हमारे, यह सामर्थ्य वान लोग.. Mathai Varghese भारतीय मूल के थे, via अफ्रीका यहां ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। mathematician के नाते उन्होंने अपना नाम बनाया था। Tharini Mudaliar साउथ अफ्रीका में जन्मी मूल भारतीय और actor or singer के रूप में पूरे ऑस्ट्रेलिया में जानी जाने लगी। Indira Naidoo मूल भारतीय की ऑस्ट्रेलियन एक लेखिका के रूप में, एक journalist के रूप में और यूएन में सेवाएं देने के रूप में आज भी हर भारतीय के नामों पर गर्व कर सकता है। इसके सिवा भी बहुत सारे नाम होंगे जो भारतीय मूल के लोग हैं। जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अपने आप को खपा दिया, ऐसा समर्पित कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के जीवन का भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया का नाम रोशन हो, उसमें उनका योगदान रहा है और यही हमारी ताकत है। एक भारतीयता के गौरव के लिए भारतीय होने के नाते विश्व में हम जहां हो, वहां के लोगों का हम प्रेम सम्पादन करें। मिलजुल कर अपने जीवन को बनाने में, हम उनका योगदान करें। हमारे पास जो श्रेष्ठ है, वो जगत को काम आए और उसी के लिए माध्यम बने और भूमिका से जो आप भूमिका अदा कर रहे हैं। इसलिए मैं आप सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं आप सबका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।

मुझे मालूम है, चुनाव तो हिंदुस्तान में चल रहे थे। आप की उंगली पर तो टीका लगने वाला नहीं था। आपका तो मतदान होना नहीं था। लेकिन मुझे मालूम है वो चुनाव का कोई पल ऐसा नहीं था,जिससे आप जुड़े नहीं थे। कोई परिवार ऐसा नहीं था, जब चुनाव के नतीजे आने वाले थे, उस रात तय करके बैठा था, अब तो सोना नहीं है। यह जो भारत में राजनीतिक परिवर्तन के लिए विश्व भर में फैले हुए भारतीय समुदाय का जो उमंग था। वो उमंग कौन जीते, कौन हारे इसके लिए नहीं था। किसकी सत्ता बने, किसकी न बने, इसके लिए नहीं था। उसके दिल में एक दर्द था, एक आग थी, पीढ़ा थी कि मैं दुनिया में जहां बैठा हूं, मेरा देश कब ऐसा बनेगा। उसके लिए चुनाव उज्जवल भारत के भविष्य के सपनों से जुड़ा हुआ था। उसके लिए चुनाव राजनीतिक उठा-पटक का खेल नहीं था। जय और पराजय का खेल नहीं था। उसके दिल में तो एक ही आवाज थी भारत माता की जय। उसके मन में एक ही भाव था भारत माता की जय और भारत माता की जय का मतलब होता है- भारत के जो कोटि-कोटि लोग जो आज भी गरीबी में जिंदगी गुजार रहे हैं, कितने परिवार है, जिनको आज बिजली तक मुहैया नहीं है। आजादी के इतने सालों के बाद पीने का शुद्ध पानी न मिले, बिजली मुहैया न हो, इतना ही नहीं शौचालय तक नहीं है। कई लोगों के मन में बहुत बड़े-बड़े काम करने के सपने होते हैं। वो सपने उनको मुबारक। मुझे तो छोटे-छोटे काम करने हैं, छोटे-छोटे लोगों के लिए करने है और छोटे लोगों को बड़ा बनाने के लिए करने हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं, आज के युग में बैंकिंग सिस्टम से अलग रह करके अर्थ कि, आर्थिक व्य़वस्था की मुख्यधारा के बाहर रहकर के कोई आर्थिक विकास में भागीदार बन सकता है क्या? हर किसी के लिए bank account इतनी सामान्य बात है। हमारे देश में बैंकों राष्ट्रीयकरण हुआ था और यह सपना देखा गया था गरीब से गरीब व्यक्ति बैंक में जा पाएगा। आपने भी किसी गरीब को बैंक में नहीं देखा होगा। जब हिंदुस्तान में थे कभी देखा था।

अब मैंने सपना देखा है कि मैं चाहता हूं, गरीब का बैंक में खाता हो। मैंने प्रधानमंत्री जनधन योजना बनाई, क्योंकि मैं चाहता हूं कि देश भी आर्थिक विकास यात्रा में गरीब से गरीब का हिस्सा जुड़ना चाहिए, वो इस व्यवस्था के साथ परिचित होना चाहिए, उसे कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए। करीब 75 मिलियन लोग जिनका बैंक अकाउंट है उन परिवारों की मैं बात कर रहा हूं। व्यक्ति नहीं परिवार। एक परिवार में पांच लोग गिने तो आप अंदाज कर सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या होगी।

मैंने रिजर्व बैंक से कहा कि यह काम करना है। कर सकते है क्या? रिजर्व बैंक ने कहा कि मोदी जी हो तो सकता है, लेकिन.... अब प्रधानमंत्री को मना तो कोई करता नहीं। लेकिन उनको तरीके मालूम होते हैं। उन्होंने कहा तीन साल लगेंगे। मैंने कहा भाई तीन साल के बाद क्या सूरज कम उगेगा। मैंने हमारे वित्त मंत्रालय को पूछा, मैंने कहा कि भाई यह काम करना है बताओ क्या करोगे, रिजर्व बैंक तो तीन साल कह रही है। बोले नहीं-नहीं दो साल में कर देंगे। उनको लगा अब मोदी जी खुश हो जाएंगे। वो तीन कह रहे थे तो हमने दो कह दिया तो गाड़ी चल पड़ेगी। मैंने मेरे आफिस के लोगों को बुलाया, पीएमओ को। मैंने कहा भाई यह रिजर्व बैंक कह रही है तीन साल, डिपार्टमेंट कह रहा है दो साल.. आप क्या कह रहे हैं। मैंने कहा बोले एक साल तो लगेगा। अब हमने सबको सुन लिया और हमने कहा, 15 अगस्त को लालकिले पर से बोल दिया, मैंने कहा मुझे यह काम डेढ़ सौ दिन में पूरा करना है।

पिछले 68 years में एक साल में औसत एक करोड़ बैंक अकाउंट खुलते थे, 10 मिलियन। हमने ठान ली कि काम करना है। Last Ten week में Ten week में 71 मिलियन account खुल चुके। सरकार वो ही, मुलाजिम वही, दफ्तर वही, फाइल वही, आदत वही, लोग भी वही। काम हुआ कि नहीं हुआ। हो सकता है कि नहीं हो सकता। इतना ही नहीं देश के गरीब लोगों की ईमानदारी देखिए। देश के गरीबों की ईमानदारी देखिए और मैं आज उनका इस धरती से प्रणाम करता हूं। हमने कहा था मुझे गरीबों का Bank account खोलकर के मुख्य धारा में लाना है। अब उसके पास तो बेचारे को बैंक खाता खोलने के लिए पांच रुपये दस रुपया भी नहीं है। तो हम ने नियम बनाया जीरो balance से Bank account खुलेगा। लेकिन आप सब गर्व कर सकते हो। account खोलना था ऐसे गरीब परिवार के लोगों ने, मन में सोचा- नहीं, नहीं मुफ्त में क्यों कर रहे हैं। बोले मोदी जी ने तो कह दिया, ऐसा नहीं करेंगे। हमारा भी कोई जिम्मा होता है और मेरे दोस्तों आपको जानकर के खुशी होगी कि 70 मिलियन जो Bank Account खुले हैं Ten week में खुले हैं। पांच हजार करोड़ रुपये इन्होंने जमा कराए। five thousand crore rupees... किसी ने सौ रूपया, किसी ने दो सौ रूपया, उसको लगता है कि मैं मुख्य धारा से जुड़ रहा हूं।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है दोस्तों कि एक बार.. हम हमारे देश के लोगों की ताकत को कम न आंके, हमारे देश की व्यवस्थाओं की ताकत को कम न आंके, हम व्यवस्थाओं पर भरोसा करें, देशवासियों पर भरोसा करें और उनको सही दिशा में ले जाने के लिए अगर उंगली पकड़कर के चलने की कोशिश करें, वो हमसे भी आगे दौड़ने के लिए तैयार होते हैं। मैंने उनको कहा है 26 जनवरी फाइनल डेट। पूरा करना है काम। लगे है। सारे बैंक employee लगे हुए हैं। काम कर रहे हैं।

02 अक्तूरबर से मैंने काम उठाया है – “स्वच्छ भारत” का। आप मुझे बताइये, दुनिया के किसी भी देश में जाते हैं और वहां की स्वच्छता देखते हैं तो सबसे पहले हमारे देश के गली-मोहल्ले याद आते हैं कि नहीं आते। हम यहां आकर के कभी गंदगी करते हैं क्या? लेकिन भारत में जाते ही.. ये सिर्फ व्यावस्थाओं के कारण ही समस्याएं नहीं हैं। मैं जानता हूं कठिन काम है। महात्मा गांधी भी इस काम के लिए बहुत आग्रह करते थे लेकिन क्या बहुत कठिन काम है? क्या बिल्कुल हाथ ही नहीं लगाना चाहिए? दूर भागना चाहिए क्या? आलोचना सहने की तैयारी चाहिए कि नहीं चाहिए? भाईयों-बहनों मैंने एक बहुत बड़ा संकट मोल लिया है, जानबूझ करके मोल लिया।

जो लोग 1857 के स्व़तंत्रता संग्राम में लड़ पड़े थे, शहीद हो गए थे, उनको अपने देश की आजादी जीते जी देखने को नहीं मिली थी, लेकिन वो अगर यह सोचते कि मेरे जीते जी आजादी मिले तभी तो मैं मरने को तैयार होऊं! तो कभी आजादी नहीं मिल सकती। अगर सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें तो दुनिया के सामने हमारी जो यह छवि बिगड़ी हुई है उसको भी बराबर साफ-सुथरा बना सकते हैं और इसलिए मैंने इस काम को उठा लिया। शौचालय बनाने में लगा हूं। बताइये! देश का प्रधानमंत्री यह काम कर रहा है – शौचालय बनाओ ! खास करके हमारी माताओं-बहनों की dignity.. गांव के अंदर आज भी खुले में शौचालय जाना पड़ रहा है, मन में दर्द होता है, शर्मिंदगी महसूस होती है। मैं आपसे भी अनुरोध करता हूं, ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया होगा। आप पूंजीपति नहीं होंगे, लेकिन दो टाइम अच्छे ढंग से खाना तो जरूर खा सकते होंगे। आप भी अपने गांव में, जहां के आप मूल रहने वाले हैं, इस काम में कुछ योगदान दे सकते हैं तो जरूर दीजिए। मैं आपको निमंत्रण देता हूं। स्वच्छता जो है, वो ऐसा क्षेत्र है..क्योंकि गंदगी है, जो बीमारियों को लाती है और जब बीमारी आती है तो औसत, एवरेज एक गरीब परिवार को करीब-करीब छह से सात हजार रुपये का बोझ आ जाता है, बीमारी के टाइम। अगर हम स्वच्छता अभियान लेते हैं तो गरीबों की इससे बड़ी कोई सेवा नहीं होती है और इसलिए आपके दिल में भारत के लिए सेवा करने का कोई भी भाव आए, उस भाव का प्रकटीकरण इस स्वच्छता अभियान के माध्यम से हो सकता है।

मैं बहुत पहले जब ऑस्ट्रेलिया आया था, तब काफी मेरा मिलना-जुलना हुआ, कई बार आना हुआ है, यहां के लोगों से मिलता था, बात करता था। मुझे कई लोग पूछते थे कि ऑस्ट्रेलिया से आप क्या सीखेंगे? अब क्या कहे कि हमं ऑस्ट्रेलिया से क्या सीखना चाहिए? एक बात मेरे मन को हमेशा छूती थी, और वो थी –dignity of labour; यहां के चरित्र में है, जिस आदर के साथ वो डॉक्टर से बात करता है, उतने ही आदर से वो ड्राइवर के साथ बात करता है। कोई scientist के तौर पर काम करता है तो weekend पर ड्राइविंग करने चला जाता है और टैक्सी चलाता है। यह dignity of labour! यह ऑस्ट्रेलिया से सीखने वाला विषय है। स्वरच्छता के माध्यम से मैं इस बात को गर्व देना चाहता हूं, गौरव देना चाहता हूं, कि सफाई करना, यह कूड़ा-कचरा उठाना, यह below dignity नहीं है, बहुत इज्जत वाला काम है। भारत में हम लोगों का स्वाभाव क्या हो गया है? अगर कोई अपने घर कूड़ा-कचरा उठाने के लिए आ जाए, तो हम क्या कहते हैं, कचरा वाला आया है। हकीकत में वो कचरे वाला नहीं है, वो सफाई वाला है। लेकिन हम.. हमारे सोचने के तरीके में ऐसी गड़बड़ हो गई है, हमारी Terminology इतनी बदल गई है कि जो सचमुच में सफाई का काम करता है, उसको भी हम कचरे वाला कहते हैं। यह स्थिति बदलनी है और इसलिए .. और मैंने देखा है, आज हिंदुस्तान में उद्योग जगत के लोग हों, सिने जगत के लोग हों, शिक्षा जगत के लोग हों, राजनीति जगत के लोग हों, सबने गौरव के साथ इस काम में शरीक होने का बीड़ा उठाया है और मैं सबका अभिनंदन करता हूं। काम कठिन है। दिवाली में भी अगर अपने दो कमरे का घर भी साफ करना है तो हफ्ता निकल जाता है, तो इतना बड़ा हिंदुस्तान साफ करना है तो समय लगता है और इसलिए हमने कहा है 2019.. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती आ रही है। महात्मा गांधी ने हमें आजादी दी है, हम गांधी को क्या दें? कम से कम साफ-सुथरा हिंदुस्तान तो उनके चरणों में धरे हम। इतना तो करें। 2019 तक इस बात को मैं आगे बढ़ाना चाहता हूं और यही चीजें हैं!

अगर बीमारी जाती है तो गरीब को फायदा होता है लेकिन स्वच्छता आती है तो Tourism इतनी तेजी से बढ़ेगा, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। हिंदुस्तान के पास क्या नहीं है, दुनिया को देने के लिए, दिखाने के लिए। पूरे विश्व के पास जितना है, उतना अकेले एक हिंदुस्तान के पास है। हिम्मत के साथ अगर हम जुट जाएं तो लोग आ जाएंगे, लेकिन वो मिजाज भी तो चाहिए, वो दम भी तो चाहिए। अपने आप पर भरोसा भी तो होना चाहिए। इतनी पुरातन चीजें हमारे पास हैं, विश्व को हम आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन शुरूआत ही ऐसी होती है – यार! पता नहीं! .. और बात वहीं अटक जाती हैं।

दुनिया से हम इंवेस्टमेंट चाहते हैं। मेक इंडिया का अभियान लेकर के बैठे हैं। मैं चाहता हूं, विश्व भारत की धरती पर आए, मैन्यूफैक्चैरिंग सेक्टर में आए, क्योंकि हमारा मकसद एक है – हमारे देश के नौजवान को रोजगार मिले। हमारी सारी नीतियों के केंद्र बिंदु में नौजवानों के लिए रोजगार है। job creation कैसे हो? और इसके लिए हम दुनिया को कह रहे हैं – आइये, भारत में पूंजी लगाइये। जिस देश के पास इतने नौजवान हो, वो देश के नौजवान अपने कौशल के द्वारा, अपने सामर्थ्य के द्वारा दुनिया को क्या कुछ नहीं दे सकते हैं। इसलिए मेक इन इंडिया अभियान हमने चलाया है और उसके लिए नियमों में, कानूनों में, व्यवस्थाओं में बदलाव ला रहे हैं। Good Governance सबसे बड़ी आवश्यकता है, लेकिन पूंजी निवेश के लिए भी कोई आएगा तो सबसे पहले उसके साथ जो लोग आते हैं, CEO आएगा, Top Managers लाएगा और Managerial skills वाले पूछते हैं quality of life का क्या है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था, तो हम चाहते थे कि जापान हम से जुड़े, जापान के लोग हमारे यहां आएं। हमारे ध्यान में आया कि बाकी सब होगा, लेकिन golf नहीं होगा तो जापान नहीं आएगा। अब गुजरात वालों को गिल्ली-डंडा मालूम है, golf मालूम नहीं। आखिरकार हमने प्राइवेट पार्टी को कहा कि भई golf के लिए कोई व्यवस्था करो अब, मुझे investment चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी पूंजी निवेश के लिए आता है, तो वो उसके अपने लोगों के लिए, managerial लोगों के लिए quality of life चाहता है। यह भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वो उस quality of life के लिए लोगों को ऑफर करे, ताकि पूंजी निवेश के साथ उसके जो लोग आएं, उनके जीवन को भी एक स्तर से रहने का अवसर मिले, अच्छी शिक्षा मिले, अच्छी Health care मिले, अच्छा जीवन जीने का अवसर मिले, यह सारी चीजें जुड़ी हुई है। हम सिर्फ सरकार की नीतियां बनाए और लोगों को कहें कि यह टैक्स, फ्री करेंगे, वो फ्री करेंगे, यह मुफ्त में देंगे, आप आ जाइये, दुनिया आती नहीं है, उसके लिए व्यवस्थाएं विकसित करनी पड़ती है, environment बनाना होता है। मेक इन इंडिया हमने उस दिशा में प्रयास शुरू किया है।

भारत की रेल पर हम सब गर्व कर सकते हैं। लेकिन वहीं अटकी पड़ी है। न नया एक किलोमीटर रेल की पटरी डाली जाती है, न उसकी स्पीड बढ़ती है, न पैसेंजरों के लिए जगह बढ़ती है। पैसेंजर बढ़ रहे हैं, तो अंदर नहीं, तो ऊपर बैठते हैं। क्या इन स्थितियों के उपाय नहीं है क्या? उपाय हैं। बड़ी हिम्मत के साथ हमने निर्णय किया है, रेलवे में 100% Foreign Direct Dnvestment लाएंगे। दुनिया में जो लोग इसके जानकार हैं, मैं निमंत्रित करता हूँ; आएंगे। भारत में रेलवे के विस्तार के लिए इतनी संभावना है, रेलवे के विकास के लिए इतनी संभावना है, रेलवे में Technology upgradation की इतनी संभावना है और सवा सौ करोड़ देशवासियों का मार्केट! छोटी बात नहीं है। दुनिया में कई देश ऐसे हैं, जहां रेलवे होगी, passenger नहीं मिलते होंगे जी।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है मित्रों कि हम नीतिगत बदलाव ला रहे हैं, जिन बदलावों के कारण भारत के सामान्य मानव, के जीवन में बदलाव के लिए, विकास की नई ऊंचाईयों को पार करने के लिए हम आगे बढ़ेंगे। अब इतना बड़ा रेलवे का नेटवर्क है, लेकिन रेलवे में आज तक क्या होता था? जिसको भी नौकरी चाहिए, अखबार में advertisement आता है, वह apply करता था। apply करने के बाद रेलवे वाले उसको छह महीना, एक साल ट्रेनिंग देते थे। आप जानते हैं कि सरकारी स्तर पर training होती है तो फिर क्या। होता है, फिर वो रेलवे में नौकरी पर लग जाता था तो फिर वो रेलवे का क्या हाल होता होगा। हमने कहा कि रेलवे अपनी खुद चार युनिवर्सिटी बनाए, जिसको रेलवे में नौकरी करनी है वो युनिवर्सिटी में पढ़ाई करे और पढ़ाई के दरम्यान ही उसके अंदर वो ताकत आ जाए कि वो उत्तंम से उत्तम रेलवे की सेवा करे, Technology up gradation हो, रेलवे का expansion हो ।

At the same time, Human Resource Development भी होना चाहिए। इस के लिए जो एक और काम हमने उठाया है। दुनिया को बहुत बड़े work force की जरूरत होने वाली है। आज जो दुनिया तेज गति से दौड़ रही है ना, वो बुढ़ापे में आ गई है। आज दुनिया के कई देश है, जिसके पास आर्थिक सामर्थ्य है लेकिन work force नहीं हैं और सिर्फ Technology के माध्यम से जीवन संभव नहीं है। कितनी ही Technology लाएं लेकिन proper work force की जरूरत हरेक को रहने वाली है और हम भाग्यवान हैं। सारी दुनिया को जितनी work force की जरूरत है वो पहुंचाने के लिए हमारे लोगों ने भरपूर काम किया है। लेकिन वो अधूरा है। skill development आवश्यक है, skill development नहीं होगा.. विश्व को जिस प्रकार के work force की जरूरत है उस work force के लिए हम अभी से plan नहीं करते। हम दुनिया का मैपिंग करना चाहते हैं कि 2020 में किस देश में किस प्रकार के लोगों की जरूरत पड़ेगी। नर्सिंग, आज भी दुनिया को जरूरत है, maths and science के Teacher, आज भी दुनिया को जरूरत है। क्या भारत वहां से डायमंड भी export करें क्या? James and jewelry भी export करें क्या? आलू टमाटर भी export करें क्या? अगर हम दुनिया में best quality के टीचर export करते हैं, पूरी दुनिया को हम अपनी बना सकते हैं। सारे विश्व को इसकी जरूरत है। सारे विश्व को best quality teachers की जरूरत है, लेकिन उसके लिए Human Resource Development पर ध्यान भारत में देना पड़ता है। पांच साल लगें, दस साल लगें, 15 साल लगें लेकिन ऐसी मानव ताकत को तैयार करें जो विश्व की जरूरतों की पूर्ति के लिए हो। हमारे नौजवान को रोजगार मिलेगा। विश्वर का कल्याण होगा और भारत की जय-जयकार होगी।

विकास की नई ऊंचाईयों को अगर पार करना है, मेरे नौजवान साथियों भारत में अपना पूरा ध्यान भारत की युवा शक्ति पर केंद्रित करने की जरूरत है। युवा शक्ति के भरोसे, उनके सामर्थ्य के भरोसे, उनके talent के भरोसे दुनिया के अंदर भारत का लोहा मनवाने के लिए सामर्थ्यवान बन सकते हैं।

अब दुनिया जमीनी लड़ाई से चलने वाली नहीं है। हार जीत जमीनी लड़ाईयों से नहीं होने वाली। वो समय बीत चुका है। अब बाहुबल से नहीं, दुनिया बुद्धिबल से चलने वाली है। धनबल से भी ज्याहदा बुद्धिबल काम करने वाला है और उसके लिए सामर्थ्यवान नागरिकों को तैयार करना, सामर्थ्यवान नागरिकों के भरोसे विश्व की आवश्यकताओं को ध्याक में रखते हुए, भारत को अपने आप को सजग करना होगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं मेरे भाइयों-बहनों मैं जानता हूं, यह प्यार, यह आशीर्वाद, यह जय जयकार, इसके भीतर अपेक्षाएं पड़ी हैं, आकांक्षाएं पड़ी हैं लेकिन आपका सपना मेरा सपना है। आपकी इच्छाएं-आकांक्षाएं मेरी इच्छाएं-आकांक्षाएं हैं। आप जिस रूप में भारत को देखना चाहते हैं, मैं भी उसी रूप में भारत को बनाना चाहता हूं। फर्क इतना है कि पहले लगता था कि सरकारें देश बनाएंगी, मैं मानता हूं कि सरकारें देश नहीं बना सकती और नहीं बनाना चाहिए। देश बनता है देशवासियों के कारण, देश बनता है देशवासियों की शक्ति के कारण और अगर हम देशवासियों को अपनी शक्ति का भरपूर उपयोग करने का मौका दें, रूकावटें न डाले, सरकार इतना ही करें न.. हट जाए। आपको हैरानी होगी, पहले की सरकारें इस बात का गर्व करती थीं कि हमने यह कानून बनाया, हमने ढिकना कानून बनाया, हमने फलाना कानून बनाया, आपने सुना होगा सब चुनावों में। मेरी गाड़ी उलटी है। उनको कानून बनाने में मजा आता था, मुझे कानून खत्म करने में आनंद आता है। ऐसा बोझ बना दिया, ऐसा बोझ बना दिया है.. अरे जरा खिड़की खोलो भाई! लोगों को जीने दो! खुली हवा मिलने दो, खिलने लगेगा देश। इसलिए मैं कहता हूं कि देश के नागरिकों पर मुझे भरोसा है, नागरिकों के सामर्थ्य पर भरोसा है और उन्हीं के भरोसे देश आगे बढ़ने वाला है, सरकारों के भरोसे देश नहीं चल सकता है और न चलना चाहिए, इस विचार का, मैं इंसान हूं।

आप लोग जब यहां आएं होंगे, आप जब पढ़ते होंगे तो आपको अपनी Mark- sheet को certify कराने के लिए किसी politician के पास मोहर लगवाने जाना पड़ा होगा, किसी गजेटेड ऑफिसर के यहां जाना पड़ा होगा। सुबह कतार लगी होगी उसके घर के सामने और कोई पहचान के बिना काम होता नहीं है। यह सब आपने अनुभव किया होगा। मेरी समझ में नहीं आता है कि जीरोक्स। का जमाना है, क्या वो गजेटेड ऑफिसर या वो कॉरपोरेटर या वो MLA.. क्या वो certify करे तभी हम सच्चे हैं? लेकिन अंग्रेजों के जमाने से यह चल रहा था, मैंने आ करके निकाल दिया। मैंने कहा भई, तुम खुद ही लिख दो कि यह मेरा है, मैं मान लूंगा। अरे! सवा सौ करोड़ देशवासियों पर भरोसा तो करो, भई! अपनों पर हम भरोसा नहीं करेंगे, तो अपने हम पर भरोसा क्यों करेंगे। मैंने उन सारे नियमों को निकाल दिया। हां! जब नौकरी लगेगी तो तुम original certificate ला करके दिखा देना, बात पूरी हो गई।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम हमारे देशवासियों पर विश्वास करें। आशंकाएं न करें। अपने आप ही माहौल बदलना शुरू हो जाता है। अगर मैंने गरीबों पर भरोसा न किया होता, तो मेरे गरीब हिंदुस्तान के बैंकों में पांच हजार करोड़ रुपया नहीं लगाते दोस्तो!

इसलिए हम भरोसा कर करके, समाज की शक्ति को जोड़ करके, देशवासियों की ताकत को जोड़ करके, हम देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारा किसान सुखी हो, हमारी माताओं-बहनों को सम्मान मिले, गौरव से जीएं, हर क्षेत्र में dignity.. अभी मैंने एक प्रोग्राम लॉन्च किया है – श्रमेव जयते! हम सत्यमेव जयते से तो परिचित थे, मैंने कहा – श्रमेव जयते... dignity of labour , इसको बहुत आगे बढ़ा रहा हूं।

लेकिन मुझे विश्वास है भाइयों कि आपने जो मुझे प्यार दिया है उस प्यार के माध्यम से कुछ जानकारी आपको दे दूं, ताकि.. कुछ बात, आपके लिए भी बात होनी चाहिए न। आपकी भी शिकायत होगी साहब, embassy में कोई पूछता नहीं है, कोई फोन नहीं उठाता, ईमेल करते हैं तो कोई जवाब नहीं देता हैं और फिर.. छोड़ो यार! मोदी जी आए, लेकिन कुछ हुआ नहीं। यही होता है न। निराशा इतनी है, इतने बुरे दिन देखे हैं कि मन में यह होता है कि यार.. लेकिन व्यवस्थाएं बदली जा सकती है। एक निर्णय - मैं जब अमेरिका गया था, तो मैंने कुछ बातें कही थीं, लेकिन उस समय Medison Square में जो बातें कही थीं, वहां जो लोग इक्ट्ठे हुए थे, उनको भरोसा नहीं था, क्यों कि मेरे पहले भी बहुत लोग बोल करके गए होंगे। दूध का जला छांछ फूंक कर पीता है लेकिन भाइयों बहनों मैंने अमेरिका में जो कहा था, मैंने आ करके उसको एक के बाद एक लागू करना शुरू कर दिया। जिनके पास पीआईओ कार्ड है, उन सबको आजीवन वीजा मिल जाएगा। अब, embassy वाले ने फोन उठाया, नहीं उठाया, ईमेल का जवाब दिया, नहीं दिया, हम गए तब मिला, नहीं मिला- सब दूर। एक और काम है, क्योंकि यह झगड़ा चल रहा है कि पीआईओ को वो ले करके चले या ओसीआई उसको ले करके चले.. तो ओसीआई वाला और पीआईओ वाला, दोनों के यहां अलग-अलग treatment होती है। मैंने वहां घोषणा की थी कि हम दोनों को एक कर देंगे।

इस बार प्रवासी भारतीय दिवस अहमदाबाद में होने वाला है। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस का विशेष महत्व होने वाला है। 1915, जनवरी महीने में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका से भारत वापस आए थे। एक प्रवासी भारतीय के रूप में साउथ अफ्रीका से 1915, जनवरी में महात्मा गांधी वापस आए थे। महात्मा गांधी का हिंदुस्तान वापस आने को 2015, जनवरी में 100 साल पूरे हो रहे है। इसलिए प्रवासी भारतीय दिवस में महात्मा गांधी की शताब्दी मनाए जाने का अवसर है और विश्व में रहने वाले हर भारतीय को.. जैसे महात्मा गांधी के दिल में देश के लिए कुछ करने की ललक थी, यह ललक हर हिंदुस्तानी के दिल में, वो दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, वो जलती रहे, जगती रहे। इस तरह इस योजना को आगे बढ़ाते हुए.. इसलिए यह पीआईओ और ओसीआई को एक करने का तय किया है कि 8-9 जनवरी, 2015 जब प्रवासी भारतीय दिवस होगा, उसके पहले मेरी सरकार इस काम को पूरा कर देगी। तारीख के साथ बता रहा हूं मैं।

पहले हमारे यहां से जो लोग आते थे, आप लोगों को पता होगा, पुलिस थाने जाना पड़ता था कि मैं ‘वही’ हूं और यह पुलिस वाला तय करता था कि अच्छा़, अच्छा ‘वही’ हैं आप। क्या‘–क्या.. मैं हैरान हूं जी! हमने तय कर दिया है किसी को जाना नहीं पड़ेगा। छुट्टी! और इसको लागू कर दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी चीजें बना करके रखी है.. और इस तरह से मैंने मुक्ति का अभियान चलाया है भाईयों। सिडनी में, हमारी embassy का एक हिस्सा यहां भी है, वहां का cultural center, आज ही मैंने सूचना दी है, फरवरी तक मैं उसको functional करना चाहता हूं और यह होगा!

एक मेरी वेबसाइट है, आप में से किसी को interest हो तो mygov.in अगर शिकायत हो तो लिखिए उस पर। सुझाव है तो भी लिखिए और आप देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो भी लिखिए। फरवरी में यह cultural center शुरू हो जाए, इसके लिए मैं आगे बढ़ने वाला हूं।

एक और महत्वपूर्ण निर्णय करना है, जो शायद आपको.. भारत में जो Tourism बढ़ाने के लिए हम चाहते हैं, हम भी ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों को कह सकते हैं –Visa on Arrival. यह सुविधा बहुत जल्द आपको प्राप्त हो जाए, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

मैंने काफी समय ले लिया, मैं समझता हूं। आप लोग special train ले करके आए हैं। कोई कल्पना कर सकता है! आज working day! और यह जमावड़ा! ऊपर तो मेरी नजर भी नहीं पहुंच पा रही है। मैं आपके प्यार के लिए बहुत-बहुत आभारी हूं और यह आशीर्वाद बने रहें, प्यार बना रहे।

मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं परिश्रम करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। ईश्वर ने जितनी बुद्धि, समय, शक्ति दी है वो आपको समर्पित है, देशवासियों को समर्पित है। लेकिन यह निश्चित है कि हम सबको मिलकर देश को बनाना है। देश ने हमें बहुत कुछ दिया है। हमें भी देश को कुछ देना है। आज हम जो कुछ भी है, किसी न किसी गरीब की कृपा है, तब हम यहां है, हमने उसे लौटाना है। ईश्वर भी प्रसन्न होता है, जब हम किसी के काम आते हैं।

मैं फिर एक बार, इतनी बड़ी संख्या में आप आए, सम्मान दिया, प्यार दिया, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं। मेरे साथ आज पूरी ताकत से बोलिए और मेरा भी मन करता है कि बोल लूं– भारत माता की जय! भारत माता की जय!

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शिक्षक - माननीय प्रधानमंत्री महोदय, नमो नमः अहम आशा रानी 12 उच्च विद्यालय, चंदन कहरी बोकारो झारखंड त: (संस्कृत में)

महोदय, एक संस्कृत शिक्षिका होने के नाते मेरा यह सपना था कि मैं बच्चों को भारत की उस संस्कृति से अवगत कराऊं जो हमारे उन समस्त संस्कारों का बोध कराती है जिनके माध्यम से हम अपने मूल्यों जीवन आदर्शों का निर्धारण करते हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर मैंने बच्चों की रुचि संस्कृत में उत्पन्न कर इसे नैतिक शिक्षा का आधार बनाया और विभिन्न श्लोकों के माध्यम से बच्चों को जीवन मूल्यों को सिखाने का प्रयास किया।

प्रधानमंत्री जी – आपने कभी सोचा कि जब आप संस्कृत भाषा के प्रति उनको आकर्षित करते हैं। उसके द्वारा उसको एक ज्ञान के भंडार की तरफ ले जाता है। ये हमारे देश में पढ़ा हुआ है। क्या कभी इन बच्चों को Vedic mathematic क्या है? तो एक संस्कृत टीचर के नाते या कभी आपके टीचर्स कमरे में टीचर्स के बीच में Vedic Mathematic क्या है? कभी चर्चा हुई होगी।

शिक्षक – नहीं महोदय, इसके बारे में स्वयं।

प्रधानमंत्री जी - नहीं हुई, आप कभी कोशिश कीजिए, ताकि क्या होगा अगर आप सबको भी काम आ सकता है। Online Vedic Mathematic की classes भी चलते हैं। यूके में तो already कुछ जगह पर syllabus में है Vedic Mathematic. जिन बच्चों को maths में रुचि नहीं होती है, वो अगर ये थोड़ा सा भी देखेंगे तो उनको लगेगा ये magic है। एक दम से उसका मन कर जाता है सीखने का। तो वो संस्कृत से हमारे देश के जितने भी विषय हैं, उसे उनमें से कुछ तो भी परिचित करवाना वैसा कभी आप कोशिश करें तो।

शिक्षक – मैं ये बहुत अच्छी आपने बताया महोदय, मैं जाकर बताऊंगी।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं हैं आपको।

शिक्षक – धन्यवाद।

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी जी सादर प्रणाम। मैं कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से, कोल्हापूर से वही जिला राजर्षि शाहू जी की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी – ये गला आपका यहां आकर के खराब हुआ कि वैसे ही है।

शिक्षक – नहीं सर आवाज ही ऐसी है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा आवाज ही ऐसी है।

शिक्षक – जी, तो कोल्हापुर से हूं महाराष्ट्र से। समालविया स्कूल में कला शिक्षक हूं। कोल्हापूर वही है राजर्षी शाहू की जन्म भूमि।

प्रधानमंत्री जी - यानी कला में क्या?

शिक्षक – कला में मैं चित्र, नृत्य, नाट्य, संगीत, गीत वादन, शिल्प सभी सिखाता हूं।

प्रधानमंत्री जी – वो तो दिखता है।

शिक्षक – तो मैं प्रायत ऐसा होता है कि बॉलीवुड या हिंदी फिल्मों के वर्जिन्स सभी तरफ चलते आते हैं तो मेरे स्कूल में मैंने, मैं जब से वहां पर हू 23 साल से मैंने जो अपनी भारतीय संस्कृति है और लोक नृत्य और जो हमारी शास्त्रीय नृत्य उसके आधार पर ही रचना की है। मैंने शिव तांडव स्तोत्र किया है। और वो भी बड़ी तादाद में मैं करता हूं 300-300, 200 लड़कों को लेके, जिसके लिए विश्वक्रम भी हुए हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर भी मैंने किया है वो भी विश्वक्रम में दर्ज हुआ था और मैं शिव तांडव किया है मैंने देवी का हनुमान चालीसा किया है, देवी के रूप का दर्शन किया है तो इस सब तरीके से मैं अपने नृत्य की वजह से

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप तो करते होंगे।

शिक्षक – मैं खुद भी करता हूं और मेरे बच्चे भी करते हैं।

प्रधानमंत्री जी – नहीं वो तो करते होंगे। लेकिन जिन स्टूडेंट्स के लिए आपकी जिंदगी है। उनके लिए क्या करते हैं?

शिक्षक – वही सब करते हैं सर!

प्रधानमंत्री जी – वो क्या करते हैं?

शिक्षक – 300-300, 400 बच्चे एक नृत्य आविष्कार में काम करते हैं। और सिर्फ मेरे स्कूल के ही बच्चे नहीं। मेरे आजू बाजू में slum area है, कुछ सेक्स वर्कर के बच्चे, कुछ व्हील चेयर वाले बच्चे, उनको भी मैं as a Guest Artist के तौर पर लेता हूं।

प्रधानमंत्री जी - लेकिन उन बच्चों को तो आज सिनेमा वाले गीत पसंद आते होंगे।

शिक्षक – जी सर लेकिन मैं उनको बताता हू कि लोकनृत्य में क्या जान है और मेरी, मेरा ये सौभाग्य है कि बच्चे मेरी बात सुनते हैं।

प्रधानमंत्री जी – सुनते हैं

शिक्षक – जी, 10 साल से मैं ये सब कर रहा हूं।

प्रधानमंत्री जी – अब टीचर की नहीं सुनेगा तो बच्चा जाएगा कहां? कितना साल से आप कर रहे हैं?

शिक्षक – Totally मेरे 30 साल हो गए सर।

प्रधानमंत्री जी – बच्चे को जब पढ़ाते हैं और नृत्य के माध्यम से कला तो सिखाते ही होंगे लेकिन उसमे कोई मैसेजिंग देते हो आप? वो क्या देते हो आप?

शिक्षक – जी सामाजिक मैसेज पर मैं बनाता हूं। जैसे कि मैं drunk & drive जो होता है उसके लिए मैं नृत्य नाट्य बिठाया था कि जिसको मैंने प्रदर्शन पूरे शहर में करवाया था। As a पथ नाट्य के स्वरूप में। जैसे ही मैंने दूसरी बार बताया की स्पर्श नाम की एक शॉर्ट फिल्म बनवाई थी। जिसकी पूरी टेक्निकल टीम मेरी स्टूडेंट्स थी।

प्रधानमंत्री जी – तो ये दो दिन से तीन दिन से आप लोग सब जगह पर आपका जाना होता होगा, थक गए होंगे आप लोग। कभी इसके घर, कभी उसके घर, कभी उसके घर ऐसे ही चलता होगा। तो इनसे कोई विशेष परिचय कर लिया क्या आप लोगों ने? कोई लाभ लिया कि नहीं किसी ने?

शिक्षक – जी हैं सर बहुत सारे लोग ऐसे हैं mostly जो higher से हैं वो लोगों ने बोला था कि सर अगर हम आपको बुलाएंगे तो आप हमारे कॉलेज आएंगे।

प्रधानमंत्री जी – मतलब आपने आगे का तय कर लिया है। मतलब आप commercially भी करते हैं कार्यक्रम।

शिक्षक - commercially भी करता हूं लेकिन उसका

प्रधानमंत्री जी – फिर तो आपको बहुत बड़ा मार्केट मिल गया है।

शिक्षक – नहीं सर उसकी भी एक बात बताना चाहूंगा, commercially में जो भी काम करता हूं। मैंने फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ किया है लेकिन मैंने 11 अनाथ बच्चे गोद लिए हुए हैं। मैं उनके लिए commercially काम करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – उनके लिए क्या काम करते हैं आप?

शिक्षक – वो अनाथ आश्रम में थे और उनके लिए कला .......थे तो अनाथ आश्रम की एक पहल होती है कि 10वी के बाद उसको आईटीआई में डाल दो। तो मैंने वो धारणा तोड़ने की कोशिश की तो उन्होंने बोला की नहीं हम लोगों को इसको allow नहीं करते हम लोग। तो मैंने उनको बाहर ले लिया, एक रूम में रख लिया। जैसे – जैसे बच्चे बड़े होते रहे वहां पर आकर। उनकी शिक्षा की, उसमे से दो कला शिक्षक करके काम कर रहे हैं। दो लोग हैं वो नृत्य शिक्षक करके गवर्नमेंट स्कूल में लग गए। मतलब सीबीएसई।

प्रधानमंत्री जी – तो जो ये बढ़िया आप काम करते हैं। ये आखिर में बताते हैं ऐसे कैसे हुआ। ये बहुत बड़ा काम है कि आपके मन में उन बच्चों के प्रति संवेदना जगना और किसी ने छोड़ दिया मैं नहीं छोडूंगा और आपने उनको गोद लिया ये बहुत काम किया है आपने।

शिक्षक – सर इस बात का मेरे जीवन से ताल्लुक है। मैं खुद अनाथालय से हूं। तो इसलिए मुझे लगता है कि जो मुझे नहीं मिला था तो मेरे पास तभी कुछ नहीं था और मेरे संचित के पास से अगर मैं वंचित के लिए कुछ करूं तो ये मेरा परम सौभाग्य है।

प्रधानमंत्री जी – चलिए आपने सिर्फ कला को ही नहीं आपने जीवन को संस्कारों से जिया है। बहुत बड़ी बात है ये।

शिक्षक – जी धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – तो सचमुच में नाम आपका सागर सही है।

शिक्षक – जी सर आपसे सौभाग्य हो आपसे बात करने का ये मेरे सौभाग्य की बात है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बहुत शुभकामनाएं भईया।

शिक्षक – Thank You Sir.

शिक्षक – माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते जी

शिक्षक – मैं डॉ. अविनाशा शर्मा हरियाणा शिक्षा विभाग में बतोर अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में काम कर रही हूं। माननीय, हरियाणा के जो वंचित समाज के बच्चे हैं। जो ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं जहां अंग्रेजी भाषा उनके लिए सुनना और समझना थोड़ा मुश्किल होता है। उसके लिए मैंने एक प्रयोगशाला का निर्माण किया है। ये भाषा की प्रयोगशाला न सिर्फ भाषा अंग्रेजी भाषा के लिए तैयार की गई है। बल्कि क्षेत्रीय भाषाएं और मातृभाषा दोनों का ही इसमे समावेश किया गया है। महोदय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 Artificial Intelligence और machine learning के जरिये बच्चों को पढ़ाने के लिए बढ़ावा देती है। इन पहलुओं को देखते हुए मैंने इस भाषा प्रयोगशाला में Artificial Intelligence का भी समावेश किया है। जैसे Generative tools Artificial Intelligence के हैं speakomether और talkpal. उनके जरिये भाषा के शुद्ध उच्चारण बच्चे को सीखते और समझते हैं। मुझे बहुत खुशी हो रही है आपसे साझा करते हुए महोदय। कि मैंने अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व UNESCO, UNICEF, Indonesia और Uzbekistan जैसे क्षेत्रों में देशों में किया और उसका प्रभाव मेरी क्लास रूप तक पहुंचा। आज हरियाणा का एक सरकारी स्कूल ग्लोबल क्लासरूम बन गया है और उसके जरिये बच्चें Indonesia में Columbia University में बैठे हुए Professors और Students के साथ बातचीत करते हैं और अपने अनुभव को साझा करते हैं I

प्रधानमंत्री जी – थोड़ा अनुभव बताएंगे, किस प्रकार से करते हैं आप बाकियों को भी पता चले?

शिक्षक – सर Microsoft Scarpthen एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जिसको मैंने अपने बच्चों से introduce कराया है। Columbia University के Professor’s के साथ बच्चे जब बातचीत करते हैं। उनके कल्चर, उनकी language जो रोजमर्रा में काम आने वाली चीजें हैं, जिस तरह वो अपने academic’s को enhance करते हैं। वो चीजें हमारे बच्चे सीख पा रहे हैं। बहुत खुबसूरत सा मैं एक अनुभव शेयर करना चाहूंगी सर मैं आपसे। मैं जब Uzbekistan गई, तो वहां से जो अनुभव मैंने अपने बच्चों से शेयर किया तो उनको ये समझ में आया कि जिस तरीके से अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है ठीक उसी तरह से उज्बेकिस्तान के लोग अपनी मातृभाषा उज्बेक में बात करते हैं। Russian उनकी Official Language है, राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी उनकी अकादमिक भाषा है तो वो अपने आपको इस विश्व से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अंग्रेजी उनके लिए सिर्फ एक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रह गई है। उनको ये रूचि बढ़ने लग गई है इस भाषा में क्योंकि अब ये नहीं है कि विदेशों में ही अंग्रेजी बोली जाती है। और ये उनके लिए बहुत सहज है। ये उनके लिए उतनी ही challenging है, चुनौतीपूर्ण है जितनी हमारे भारतीय बच्चों के लिए हो सकती है।

प्रधानमंत्री जी – नहीं आप बच्चों को दुनिया दिखा रही हैं अच्छी बात है लेकिन देश भी दिखा रही हैं क्या?

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – तो हमारे देश की कुछ चीजें जो उनको अंग्रेजी सीखने का जानने का मन कर जाए ऐसा कुछ

शिक्षक – सर मैंने इस प्रयोगशाला में भाषा कौशल विकास पर काम किया है। तो अंग्रेजी भाषा तो एक पाठ्यक्रम की भाषा रही है। But भाषा सीखी कैसे जाती है। क्योंकि मेरे पास जो बच्चे आ रहे हैं वो हरियाणवी परिवेश के हैं। अगर मैं रोहतक में बैठे हुए बच्चे से बात करूं वो नूह में बैठे हुए बच्चे से बिल्कुल different भाषा में बात करता है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा हम जैसे घर में, हमारे पास टेलीफोन पुराने जमाने में वो जो रहता था।

शिक्षक – हां जी।

प्रधानमंत्री जी – डिब्बा वो फोन है। और हमारे घर में कोई गरीब परिवार की कोई महिला घर काम के लिए यहां आती जाती है। इतने में घंटी बजी और वो टेलीफोन उठाती है। वो उठाते ही बोलती है हेलो, वो कैसे सीखी वो?

शिक्षक – यही भाषा का कौशल विकास सर बताया। भाषा सुनने पर और उसका प्रयोग करने पर आती है।

प्रधानमंत्री जी – और इसलिए सचमुच में Language बोलचाल से बहुत जल्दी सीखी जा सकती है। मुझे याद है मैं जब गुजरात में था तो नडियात में मेरे यहां एक महाराष्ट्र का परिवार नौकरी के लिए, वो प्रोफेसर थे नौकरी के लिए आए। उनके साथ उनकी वृद्ध माता जी थीं। अब ये महाशय पूरे दिन भर स्कूल कॉलेजों में रहते थे लेकिन Language में जीरो रहे वो छह महीने के बाद भी। और उनकी माताजी कुछ पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन वो धनाधन गुजराती बोलना शुरू कर दिया। तो मैं एक बार उनके यहां भोजन के लिए गया मैंने पूछा ये नहीं बोली हमारे घर में जो काम वाली है ना उसको और कुछ आता नहीं तो बोली मुझे सीख गया। बोलचाल से सीखा जाता है।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – अब मुझे बराबर याद है मैं जब छोटा था तो मेरे स्कूल में जो टीचर थे। वो थोड़े strict भी थे। और हमें strictness थोड़ी तकलीफ करती थी। लेकिन उन्होंने राजाजी ने जो रामायण, महाभारत लिखी है। तो उसमें से जो रामायण की जो बहुत परिचित वार्ता तो सबको परिचित होती है। तो बड़ा आग्रह करते थे कि राजाजी ने जो रामायण लिखी है। उसको थोड़ा धीरे-धीरे पढ़ना शुरू करो। कथा पता था भाषा पता नहीं थी। लेकिन बहुत जल्दी coordinate करते थे। एक दो शब्द समझ गए तो भी लगता था कि हां ये कहीं सीता माता की कोई चर्चा कर रहे हैं।

शिक्षक – बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए, बहुत बढ़िया।

शिक्षक – Thank You Sir, Thank You.

प्रधानमंत्री जी – हर हर महादेव,

शिक्षक – हर हर महादेव,

प्रधानमंत्री जी – काशी वालों को हर हर महादेव से ही दिन शुरू होता है।

शिक्षक – सर मैं आज आपसे मिलकर बहुत खुश हूं सर। सर मैं कृषि विज्ञान संस्थान में पौधे की रोग के ऊपर मेरा शोध है और उसमे मेरा सबसे बड़ा प्रयास ये है कि जो हम लोग sustainable agriculture की बात करते हैं। वो जमीनी स्तर पर अभी वो उतरे नहीं है पूरे अच्छे से। मेरा इसलिए प्रयास ये है कि हम किसानों को ऐसे तकनीक को हाथ पकड़ाएं जो आसान हो और उसकी अभूतपूर्व परिणाम खेतों में दिखें। और मुझे लगता है इस प्रयास में हमको बच्चों Student’s मेरा और महिलाओं की भागीदारी अहम है। और इसलिए मेरा प्रयास ये है कि मैं स्टूडेंटस के साथ गांव में जाता हूं और किसानों के साथ मैं महिलाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रयास कराता हूं। ताकि ये छोटी-छोटी जो Techniques हम लोग develop किए हैं। उससे sustainability की तरफ हम कदम बढ़ाते हैं। और इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है।

प्रधानमंत्री जी – कुछ बता सकते हैं क्या किया है?

शिक्षक – सर हम लोगों बीज शोधन की तकनीक को perfect किया है। हमने कुछ Local microbes को identify किया है। उससे जब हम बीज को शोधन करते हैं तो जब roots आते हैं सर पहले से ही विकसित root बनते हैं। उससे वो पौधा बहुत स्वस्थ बनते है। उस पौधे में सर बीमारियां कम लगती हैं क्योंकि जड़ इतनी मजबूत हो जाते है, पौधे को वो अंदर से एक ताकत देते हैं कीट और बीमारियों से लड़ने के लिए।

प्रधानमंत्री जी – लैब में करने वाला काम बता रहे हैं। Land पर कैसे करते हैं? Lab to Land. जब आप कह रहे हैं आप खुद जा रहे हैं किसानों के पास। वो कैसे इसको करते हैं और वो कैसे शुरू करते हैं?

शिक्षक – सर हमने एक Powder Formulation बनाया है और इस Powder Formulation को हम किसानों को देते हैं और उनकी हाथों बीज को शोधन करवाते हैं और ये हम प्रयास कई सालों से निरंतर कर रहे हैं। और वाराणसी के आसपास के 12 गांवों में हमने अभी इस कार्य को किये हैं और महिलाओं की अगर संख्या की बात कहें तो तीन हजार से अधिक महिलाएं अभी इस Technology.

प्रधानमंत्री जी – नहीं तो जो ये लोग किसान है वो किसी और किसान को भी तैयार कर सकते हैं?

शिक्षक – बिल्कुल सर, क्योंकि जब Powder लेने के लिए एक किसान आते हैं वो और चार किसानों के लिए साथ में लेकर जाते हैं। और इसका क्योंकि देखा देखी किसान बहुत सिखते हैं और मुझे ये बात की खुशी है कि हमारे जो हम जितने को सिखाये हैं उनसे और कई गुणा लोगों ने अपनाए हैं इसको। अभी पूरा संख्या मेरे पास नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर किस फसल पर प्रभाव हुआ और किस।

शिक्षक – सब्जी और गेहूं पर।

प्रधानमंत्री जी – सब्जी और गेहूं पर, ये जो प्राकृतिक खेती इस पर हमारा बल है। और जो लोग धरती मां को बचाना चाहते हैं। वे सब चिंतित हैं जिस प्रकार से हम इस धरती मां की सेहत के साथ अत्याचार कर रहे हैं। उस मां को बचाना बहुत जरूरी हो गया है। और उसके लिए प्राकृतिक खेती एक अच्छा उपाय दिखता है। उस दिशा में कोई चर्चा हो रही है वैज्ञानिकों में।

शिक्षक – जी बिल्कुल सर, प्रयास उसी दिशा में है। लेकिन सर किसानों को हम लोग अभी पूरी तरह convince नहीं कर पा रहे कि रसायन को आप प्रयोग न करें। क्योंकि किसान डरते हैं कि हम रसायन का प्रयोग नहीं करने से मेरे फसल में कुछ नुकसान हो जाएगा।

प्रधानमंत्री जी – एक उपाय हो सकता है। मान लीजिए उसके पास चार बीघा जमीन है। तो 25 परसेंट, 1 बीघा में प्रयोग करो, तीन में जो तुम परंपरागत करते हो वो करो। यानि छोटा सा हिस्सा लो, उसको एक प्रकार अलग से तुम इसी पद्धति से करो, तो उसकी हिम्मत आ जाएगी। हां यार थोड़ा नुकसान होगा तो 10 परसेंट, 20 परसेंटहो जाएगा। लेकिन मेरी गाड़ी चलेगी। गुजरात के जो गवर्नर हैं आचार्य देववृत्त जी, वे बहुत की dedicated हैं इस विषय में काफी काम करते हैं। अगर आप वेबसाइट पर जाएंगे क्योंकि आप में से बहुत से लोग हैं जो किसान का background वाले होंगे। तो उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिए बहुत सारा डिटेल बनाया। ये आप जो एलकेएम देख रहे हैं यहां पूरी तरह प्राकृतिक खेती का ही उपयोग होता है हर चीज का। यहां कोई केमिकल allow नहीं है। आचार्य देववृत्त जी ने एक बहुत ही अच्छा formula develop किया। कोई व्यक्ति उसको कर सकता है। गोमूत्र वगैरह का उपयोग करके करते हैं और बहुत अच्छे परिणाम आते हैं। अगर आप उसको भी स्टडी करे आपकी University में क्या हो सकता है तो देखिये।

शिक्षक – जरूर सर।

प्रधानमंत्री जी – चलिए बहुत शुभकामनाएं।

शिक्षक – धन्यवाद सर।

प्रधानमंत्री जी – वणक्कम।

शिक्षक – वणक्कम Prime Minister Ji. I am Dhautre Gandimati. I come from Tyagraj Polytechnic College, Salem Tamil Nadu and I have been teaching English in the Polytechnic College for more than 16 years. Most of my polytechnic students hail from rural background. They come from Tamil Medium Schools, So they find it difficult to speak or at least open their mouths in English.

प्रधानमंत्री जी – लेकिन हम लोगों को ये भ्रम है। शायद सब लोगों को यही होगा कि भई यानि तमिलनाडु मतलब सबको अंग्रेजी आती है।

शिक्षक – Obviously Sir, They are rural people who study from the vernacular language medium. So they find it difficult, Sir. For them we teach

प्रधानमंत्री जी – और इसीलिए ये जो नई शिक्षा नीति है उसमे मातृभाषा पर बहुत बल दिया गया है।

शिक्षक – So we are teaching English language Sir and as per NEP 2020 as at least three languages now we have in our mother tongue learning . We have now introduced as an autonomous institution. We have now introduced our mother tongue language also in learning technical education.

प्रधानमंत्री जी – क्या आपमें से कोई है जिसने बहुत हिम्मत के साथ ऐसा प्रयोग किया हो। कि मान लीजिए एक स्कूल में 30 बच्चें हैं वो purely अंग्रेजी भाषा के माध्यम से और उन्ही के बराबर के दूसरे 30 बच्चे वो ही विषय अपनी मातृ भाषा में पढ़ते हैं। तो कौन सबसे आगे जाता है, कौन ज्यादा से ज्यादा जानता है क्या अनुभव आता है आप लोगों का? क्योंकि क्या है मातृभाषा में वो direct चीज को, उसको mentally अंग्रेजी फिर उसको अपनी भाषा में Translate करेगा फिर उसको समझने का प्रयास करेगा, बहुत Energy जाती है उसकी। तो बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने का और बाद में अंग्रेजी एक subject के रूप में बहुत अच्छा पढ़ाना चाहिए। यानि जैसे ये संस्कृत टीचर क्लास में जाती होगी ओर क्लासरूम से बाहर आती होगी संस्कृत के सिवा किसी भी भाषा का प्रयोग नहीं करती होगी आशा है । वैसे ही अंग्रेजी के टीचर को भी क्लासरूम में अंदर जाने से बाहर निकलने तक और कोई Language नहीं बोलनी चाहिए। अंग्रेजी करेंगे तो वो भी उतने ही बढ़िया तरीके से करेंगे। फिर ऐसा नहीं की भई एक वाक्य अंग्रेजी तीन वाक्य मातृ भाषा में पढ़ाएंगे। तो वो बच्चा catch नहीं कर सकता है। अगर हम उतना dedication language के प्रति भी होगा तो बुरा नहीं है और हमें तो अपने बच्चों को आदत डालनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा भाषाएं सीखने का, उनके मन में इच्छा जगनी चाहिए और इसलिए कभी – कभी स्कूल में तय करना चाहिए इस बार हम अपने स्कूल में पांच अलग-अलग राज्यों के गीत सिखाएंगे बच्चों को। पांच गीत एक साल में मुश्किल नहीं हैं। तो पांच भाषा के गीत जान लेंगे कोई असमिया करेगा, कोई मलयालम में करेगा, कोई पंजाबी करेगा, पंजाबी तो खैर कर ही लेते हैं। चलिए बहुत – बहुत शुभकामनाएं। Wish you all the best.

शिक्षक – प्रधानमंत्री जी जी, मेरा नाम उत्पल सैकिया है और मैं असम से हूं। मैं अभी North East Skill Centre Guwahati में Food & Beverage Service में एक प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा हूं। और मैं इधर North East Skill Centre में मेरा अभी छह साल संपन्न हो गया है। और मेरा मार्गदर्शन से अब तक 200 से ज्यादा सत्र सफलतापूर्वक प्रशिक्षित हो गया है। और देश और विदेश में Five Star होटलों में काम।

प्रधानमंत्री जी – कितने समय का कोर्स है आपका?

शिक्षक – एक साल का कोर्स है सर।

प्रधानमंत्री जी – 1 year और Hospitality का जानते हैं

शिक्षक – Hospitality Food & Beverage Services.

प्रधानमंत्री जी – Food & Beverage, उसमें क्या विशेष सिखाते हैं आप?

शिक्षक – हम सिखाते हैं कैसे guests से बातें करते हैं, कैसे Food service होता है, कैसे drink service होता है तो इसके लिए हम क्लासरूम में स्टूडेंट्स को already ready कराते हैं। Different Techniques सिखाते हैं कैसे guests का प्रॉब्लम solve करना है, कैसे tackle करना है वो सब हम सिखाते हैं सर।

प्रधानमंत्री जी – जैसे कुछ उदाहरण बताइये। इन लोगों को घरों में बच्चे ये नहीं खाऊंगा, ये खाऊंगा, ये नहीं खाऊंगा ऐसे करते हैं। तो आप अपनी Technique सिखाइए इनको।

शिक्षक – बच्चों के लिए तो मेरे पास कुछ technique है नहीं लेकिन जो गेस्ट आते हैं जो हमारे पास होटल में आते हैं तो उन लोग को कैसे tackle करना है मतलब politely, humbly उन लोगों को बातें सुनकर।

प्रधानमंत्री जी – यानी ज्यादातर आपका फोकस soft skills पर है।

शिक्षक – हां जी सर, हां जी सर, Soft Skills.

प्रधानमंत्री जी – ज्यादातर वहां से निकले हुए बच्चों को जॉब के लिए एक opportunity कहां रहती है?

शिक्षक – All over India, जैसे कि Delhi हो गया, मुंबई।

प्रधानमंत्री जी – Mainly बडे-बड़े होटल में।

शिक्षक – बड़े-बड़े Hotels में। हमारा मतलब 100 परसेंट placement guaranteed है। Placement Team है, वो लोग देखते हैं।

प्रधानमंत्री जी – आप गुवाहाटी में हैं, अगर मैं हेमंता जी से कहूं कि हेमंता जी के जितने Ministers हैं उनके स्टाफ को आप Train करें और उनके अंदर ये capacity building करें। क्योंकि उनके यहां गेस्ट आते हैं और उसको मालूम नहीं होता है कि इसको बाएं हाथ से पानी दूं या दाहिने हाथ से, तो हो सकता है?

शिक्षक – Definitely हो सकता है।

प्रधानमंत्री जी – देखिए ये बात आपको आश्चर्य होगा। मैं जब गुजरात में था मुख्यमंत्री। तो मेरे यहां एक Hotel Management School था। तो मैंने बड़ा आग्रह किया था कि मेरे जितने Ministers हैं, उनका जो personal staff है उनको Saturday, Saturday, Sunday जाकर के वो सिखाएंगे। तो उन्होंने Volunteer सिखाना तय किया और मेरे यहां जितने अभी बच्चे काम करते हैं या माली काम करता था या cook काम करता था। जितने भी Ministers के यहां सबकी वहां पर 30, 40-40 घंटे के करीब syllabus होता था। उसके बाद उनके performance में से इतना बदलाव आया और घर में जाते ही पता चलता था। कि वाह कुछ नया-नया लग रहा है और तो जो परिवार वाले हैं उनको शायद उतना ध्यान में नहीं होता था, मेरे लिए तो बड़ा आश्चर्य होता था कि यार तुमने कैसे कर दिया ये सब? तो वहां सीख के आता था, तो मैं समझता हूं कभी ये भी करना चाहिए ताकि एक ये बहुत बड़ा ब्रांड बन जाएगा कि भई हां कि एक छोटा सा छोटा जैसे घर में काम करने वालों को भी आते ही कोई नमस्ते कह दे, जैसे टेलीफोन उठाने वाले लोग सरकारी दफ्तर में कुछ लोगों के ट्रेनिंग होते हैं। वो जय हिंद बोल कर उठाएंगे फोन या नमस्ते करके उठाएंगे, कोई हां बोलो क्या कहना है? तो वहीं से बात बिगड़ जाती है। तो आप उसको बराबर ठीक से सिखाते हैं?

शिक्षक : सिखाते हैं सर, सिखाते हैं!

प्रधानमंत्री जी: चलिए, बहुत बहुत बधाई है आपको!

शिक्षक : धन्यवाद सर!

प्रधानमंत्री जी: तो बोरिसागर आपके कुछ थे क्‍या?

शिक्षक : हां थे सर, दादा थे!

प्रधानमंत्री जी: दादा थे? अच्छा! वो हमारे बहुत हास्य लेखक हुआ करते थे। तो आप क्‍या करते हैं?

शिक्षक: सर मैं अम्रेली से प्राइमरी स्कूल में टीचर हूं और वहां पर श्रेष्ठ पाठशाला निर्माण से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण के जीवन मंत्र के साथ पीछे 21 साल से काम कर रहा हूं सर...

प्रधानमंत्री जी: क्या विशेषता क्या है आपकी?

शिक्षक: सर मैं हमारे जो लोकगीत हैं ना...

प्रधानमंत्री जी: कहते हैं आप बहुत पेट्रोल जलाते हैं?

शिक्षक: हां सर वो बाइक पर में हमारा जो प्रवेश उत्सव आपके द्वारा हमारा जो सफल कार्यक्रम रहा शिक्षकों का 2003 से, सर हमारे जो लोकल गरबा गीत हैं, उसको हमें education और गीत में परिवर्तित करके मैं गाता हूं, जैसे पंखेड़ा है हमारा, सर अगर आपकी अनुमति हो तो गा सकता हूं मैं?

प्रधानमंत्री जी: हां, हो जाए!

प्रधानमंत्री जी: ये गुजराती बहुत प्रसिद्ध लोकगीत है।

शिक्षक: yes sir, ये गरबा गीत है।

प्रधानमंत्री जी: उन्होंने इसके वाक्य बदल दिए हैं और वो कह रहे हैं कि बच्चों को ये गीत से बताते हैं कि अरे भई तुम स्‍कूल चलो, पढ़ने के लिए चलो यानी अपने तरीके से वो कर रहे हैं।

शिक्षक: yes sir, और सर 20 भाषा के गीत भी मैं गा सकता हूं।

प्रधानमंत्री जी: 20, अरे वाह!

शिक्षक: अगर मैं केरल के बारे में बच्चों को सिखाता हूं तो, अगर तमिल में सिखाता हूं तो तमिल के दोस्त हैं वा यानि आओ, पधारो वेलकम, अगर मैं मराठी में, अगर कन्नड़ में …………. भारत माता को नमन करता हूं सर! अगर मैं राजस्थानी में इसे गाता हूं ........

प्रधानमंत्री जी: बहुत-बहुत बढ़िया!

शिक्षक: Thank you sir, सर एक भारत श्रेष्ठ भारत, यही मेरा जीवन मंत्र है सर!

प्रधानमंत्री जी: चलिए बहुत-बहुत...

शिक्षक: और सर 2047 में विकसित भारत बनाने के लिए भी और ऊर्जा से काम करूंगा सर।

प्रधानमंत्री जी: Very good.

शिक्षक: Thank you sir.

प्रधानमंत्री जी: उनकी surname मैंने जब देखी तो उनके दादा से मैं परिचित था तो मुझे याद आया आज और उनके दादा बहुत ही अच्छे हास्य लेखक हुआ करते थे मेरे राज्‍य में, बड़ी पहचान थी उनकी लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि आपने उस विरासत को संभाला होगा। मुझे बहुत अच्छा लगा!

साथियों,

मेरी तरफ से कुछ खास आप लोगों को संदेश तो नहीं है पर मैं जरूर कहूंगा कि ये सेलेक्‍शन होना ये बहुत बड़ी पूंजी होती है, लंबे प्रोसेस से निकलता है। पहले क्या होता था मैं इसकी चर्चा नहीं करता हूं, लेकिन आज कोशिश है कि देश में ऐसे होनहार लोग हैं, जो कुछ वो नया कर रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हमसे कोई ज्यादा अच्छे टीचर नहीं होंगे, किसी और विषय में अच्छा नहीं करते होंगे ऐसा नहीं हो सकता। ये तो देश है बहुरत्‍ना वसुंधरा है। कोटि-कोटि टीचर्स ऐसे होंगे जो बहुत उत्तम काम करते होंगे लेकिन हम लोगों की तरफ ध्‍यान गया होगा, हमारी कोई एक विशेषता होगी। जो देश में खासकर के नई शिक्षा नीति के लिए आप लोगों के जो प्रयास हैं वो काम आ सकते हैं। देखिए हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था में जैसे भारत में एक विषय हमारी आर्थिक व्‍यवस्‍था को बहुत ताकत दे सकता है और भारत ने ये मौका गंवा दिया है। हमने फिर से एक बार उसको प्राप्त करना है और वो हमारे स्कूलों से शुरू हो सकता है और वो है टूरिज्‍म I

अब आप कहेंगे कि हम बच्चों को पढ़ाएंगे या टूरिज्‍म करें। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप टूरिज्‍म करें, लेकिन अगर स्‍कूल के अंदर टूर तो जाती ही होगी लेकिन ज्‍यादातर टूर कहां जाती है, जहां टीचर ने जो देखा नहीं है वहां टूर जाती है। स्‍टूडेंट को क्‍या देखना चाहिए, वहां टूर नहीं जाती है। अगर टीचर का उदयपुर रह गया तो फिर कार्यक्रम बनाएंगे कि स्‍कूल इस बार उदयपुर जाएगी और फिर सबसे जो भी पैसे लेने होते हैं, जो टिकट का खर्चा होता है सब कलेक्‍ट करते हैं फिर जाते हैं लेकिन मेरे लिए तो जैसे मां कहती है ना बच्चे को आइसक्रीम खाना है, तो हम लोग कभी सोचकर के जैसे टाइम टेबल बनाते हैं साल भर का आप लोग पूरा काम तय कर लेते हैं किसको करना है, कैसे... क्‍या उसमें हम अभी से कि भई 2024-2025 में 8 या 9 कक्षा के विद्यार्थियों के लिए डेस्‍टिनेशन ये होगा। 9 और 10 के लिए ये होगा and then जो भी तय करें आप... हो सकता है ये स्‍कूल 3 डेस्‍टिनेशन तय करे, हो सकता है स्‍कूल 5 डेस्‍टिनेशन तय करे और उनको साल भर काम देना चाहिए कि अब आपको प्रोजेक्‍ट दिया जाता है कि अगले साल हम केरला जाने वाले हैा, भई 10 स्‍टूडेंट का एक ग्रुप बनेगा जो केरल के सोशल रीति रिवाज उन पर प्रोजेक्‍ट करेगा। 10 स्टूडेंट वहां के धार्मिक परंपरा क्या होती हैं, मंदिर कैसे होते हैं, कितने पुराने हैं, 10 स्टूडेंट हिस्ट्री पर करेंगे, साल भर एक-एक, दो-दो घंटा इस पर डिबेट होती रहे, केरल, केरल, केरल चलता रहे और फिर केरल के लिए निकल पड़ें। आपके बच्चे जब जाएंगे केरला तो वो एक प्रकार से पूरे केरल को आत्मसात करके वापस आएंगे। उनको रहेगा अरे वो मैंने पढ़ा था ना अच्छा ये वो है, वो correlate करेगा।

अब आप सोचिए कि मान लीजिए गोवा ने तय किया कि इस बार हम नॉर्थ ईस्‍ट जाएंगे और मान लीजिए सब स्‍कूल मिलाकर के 1000-2000 बच्‍चे नॉर्थ ईस्‍ट जाते हैं तो उनको तो नॉर्थ ईस्‍ट देखने को मिलेगा। लेकिन नॉर्थ ईस्‍ट के टूरिज्म को फायदा होगा कि नहीं होगा? ये लोग नॉर्थ ईस्‍ट जितने भी होते हैं, तो नॉर्थ ईस्‍ट वालों को लगेगा भई अब इतने लोग आ रहे हैं तो कोई चाय-पान के लिए दुकानें खोलनी पड़ेगी। किसी को लगेगा ये चीज बिकती है चलो ये ज्यादा, तो हां भाई अपना रोजगार बढ़ेगा। भारत इतना बड़ा देश है, हम शिक्षा के साथ और इस बार आपको, आप अपने स्टूडेंट्स को बताइए, अभी ऑनलाइन एक कॉम्पिटिशन चल रहा है और आपके स्कूल के सब बच्चों ने उसमें हिस्सा लेना चाहिए, लेकिन ऐसे ही टिक मार्क नहीं करना चाहिए, थोड़ा स्टडी करके करना चाहिए। अभी कॉम्पीटिशन चल रहा है देखो अपना देश, ऑनलाइन रैंकिंग चल रहा है, लोग वोट कर रहे हैं और उसमें हमारी कोशिश है कि उस राज्य के लोग वोट करके तय करें कि हमारे राज्य में ये नंबर वन पर चीज है जो देखने जैसी है, जाने जैसी है। एक बार आप वोटिंग से जो सेलेक्ट होंगे, तो सरकार कुछ बजट लगाएगी, वहां infrastructure तैयार करेगी और उनको फिर develop करेगी। लेकिन ये टूरिज्‍म कैसे टूरिज्‍म होता है मुद्दा ये होता है कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा... कुछ लोगों का कहना है कि भई टूरिज्‍म नहीं है इसलिए डेवलप नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं कि टूरिज्‍म आएंगे तो डेवलप होगा और इसलिए हम स्‍टूडेंट से शुरू कर सकते हैं ऐसे डेस्‍टिनेशन, योजनाबद्ध तरीके से वहां जाएं, रात्रि को वहां मुकाम करें तो उस स्थान के लोगों को लगेगा कि भई अब रोजगार की संभावना बनेगी, तो होम स्टे बनने लग जाएंगे। ऑटो रिक्‍शा वाले आ जाएंगे यानी अगर हम सिर्फ स्‍कूल में बैठे-बैठे तय करें तो इस देश में 100 टॉप डेस्टिनेशन टूरिज्म के हम 2 साल में तैयार कर सकते हैं। एक टीचर कितना बड़ा revolution ला सकता है, इसका ये उदाहरण है। यानि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में स्कूल के regular काम में, आप करते ही हैं, आप के यहां से टूर जाते ही जाते हैं। लेकिन अध्‍ययन नहीं होता है। जहां जाना है उसका साल भर अध्‍ययन होगा तो वो शिक्षा काम हो गया। जाकर के उस जगह पर जाते हैं तो वहां पर इकोनॉमी को लाभ जो सकता है।

उसी प्रकार से मेरा आपसे आग्रह है कि आपके नजदीक में जहां भी university हो, कभी न कभी आपके 8वी-9वी कक्षा के बच्‍चों का उस university में टूर कराना चाहिए। university से बात करनी चाहिए कि भई हमारी 8वी कक्षा के बच्‍चे आज university देखने आएंगे। मेरा एक नियम था जब मैं गुजरात में था, अब तो कहीं पर university में अगर convocation में बुलाते थे, तो मैं उनसे कहता था कि भई मैं आऊंगा जरूर लेकिन मेरे 50 guests साथ आएंगे। तो university को रहता था कि भई ये कौन 50 guests आएंगे। और जब politician कहता है तो उनको लगता है कि उनके चेले-चपाटे आने वाले होंगे। फिर मैं कहता था कि university के 5-7 किलोमीटर के रेडियस में कोई सरकारी स्‍कूल हो जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हों झुग्गी-झोपड़ी के, ऐसे 50 बच्‍चे मेरे guest होंगे और उनको आपको first row में बिठाना पड़ेगा। अब ये बच्‍चे जब ये convocation देखते हैं, हैं तो बिल्‍कुल गरीब परिवार के बच्‍चे, उनके मन में उसी दिन सपना बो देते हैं। कभी मैं ऐसा टोपा पहन करके, ऐसा कुर्ता पहन करके मैं भी अवार्ड लेने जाऊंगा। ये भाव उसके मन में register हो जाता है। आप भी अगर अपने स्‍कूल के ऐसे बच्‍चों को ऐसी university देखने के लिए ले जाएं, university से बात करें कि साहब आपके यहां इतनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, हम देखना चाहते हैं।

वैसे ही sports के event होते हैं, कभी-कभी हम क्‍या करते हैं जैसे ब्‍लॉक लेवल का sports competition है, तो कौन करेगा वो पी.टी. टीचर जाने, वो खेलने वाला बच्‍चा जानें, जाएगा। सचमुच में पूरे स्‍कूल को sports देखने के लिए जाना चाहिए। भले ही कबड्डी चल रही है, किनारे बैठेंगे, ताली बजाएंगे। कभी-कभी देखते-देखते ही उसमें से खिलाड़ी बनने का मन किसी को जग जाता है। खिलाड़ी को भी लगता है कि यार मैं कोई एकलौता अपने पागलपन के कारण खिलाड़ी नहीं बना हूं। मैं खेल खेल रहा हूं मतलब मैं एक समाज का एक अच्छा प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। उसके अंदर एक भाव जागता है। एक टीचर के नाते मैं ऐसी चीजों को innovate करता रहूं और कोई extra प्रयत्न के बिना जो हैं उसको प्लस वन करना है बस, ये अगर हम कर सकते हैं तो आप देखिए, स्‍कूल का भी नाम बन जाएगा, जो टीचर उसमें काम करते हैं उनके प्रति भी देखने का एक भाव बदल जाएगा। दूसरा, आप लोग कोई ज्‍यादा संख्‍या हैं नहीं लेकिन आप में से सबको पता नहीं होगा कि बाकियों को किस कारण से ये अवार्ड मिला है। पता नहीं होगा, आपको लगता होगा कि मुझे मिला है तो उसको भी मिला होगा। मैं ये करता हूं, मुझे मिलता है, वो भी कुछ करता होगा, मिल गया, ऐसा नहीं... आपकी कोशिश होनी चाहिए इन सबके अंदर ऐसी कौन सी विशेषता है, इन लोगों में ऐसा कौन सा कर्तव्य है जिसके कारण देश का उन पर ध्यान गया है। मैं उसमें से दो चीजें सीख करके जा सकता हूं क्या? आपके लिए ये चार दिन, पांच दिन एक प्रकार से स्टडी टूर है। आपका सम्मान, गौरव हो रहा है वो तो एक है लेकिन अपने से जैसे मैं आप सबसे बात कर रहा हूं, मैं आप लोगों से सीख रहा था। आप लोग कैसे करते हैं, जान रहा था। अब ये मेरे लिए अपने आप को एक बड़ा प्रसन्न करने वाले बात थी और इसलिए मैं कहता हूं कि आपके जितने साथी हैं, दूसरा किसी जमाने में जब हम छोटे थे तब पत्र मित्र, वैसा एक माना हुआ करता था। अब सोशल मीडिया हो गया है, तो वो तो दुनिया चली गई। लेकिन क्‍या आप लोगों का सबका एक व्हाट्सअप्प ग्रुप बन सकता है? सबका! जो लोग, कब से बना है? अच्छा कल ही बना है। चलिए, अच्छा 8-10 दिन हो गए, मतलब एक good beginning है। एक दूसरे से अपने experience शेयर करने चाहिए। अब आपको यहां कोई तमिलनाडु के टीचर से परिचय हुआ है। आपकी टूर तमिलनाडु जाने वाली है, आपके स्कूल की, अभी से उनको कहिए कि जरा बताइए, देखिए आपकी कितनी बड़ी ताकत बन जाएगी। आपको कोई मिलेगा अरे कोई केरल, अरे मैं उसको जानता हूं, जम्‍मू-कश्‍मीर अरे मैं उससे तो परिचित हूं। आप चिंता मत कीजिए, मैं उनको फोन कर देता हूं। इन चीजों का बड़ा प्रभाव होता है और मैं चाहूंगा कि आप लोगों का एक ऐसा समूह बनना चाहिए जिनको लगना चाहिए कि हम तो एक परिवार के हैं। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत तक, इससे बड़ा कोई अनुभव नहीं हो सकता। ऐसी छोटी-छोटी चीजों की अगर तरफ आप ध्‍यान देते हैं, मुझे पक्‍का विश्वास हैं देश की विकास यात्रा में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है।

आप भी सुन-सुन करके थक गए होंगे। शिक्षक ऐसा होता है, शिक्षक वैसा होता है, फिर आपको भी लगता है कि ये बंद करे तो अच्‍छा है यानि मैं मेरे लिए नहीं कह रहा हूं। लेकिन शिक्षक की जब वाह-वाही चलती है ना तो इतनी चलती है तो फिर आपको भी लगता है यार बहुत हो गया। मुझे भी लगता है कि वाह-वाही की जरुरत नहीं है। हम उस विद्यार्थी की तरफ देखें, उस परिवार ने कितने विश्वास के साथ वो बच्चा हमें सुपुर्द किया है। उस परिवार ने हमें बच्‍चा इसलिए सुपुर्द नहीं किया है कि आप उसको कलम पकड़ना सिखाते हैं, कंप्‍यूटर चलाना सिखाते हैं, इसलिए नहीं दिया है आपको वो बच्‍चा कि ताकि आप उसको कुछ syllabus पढ़ाते हैं, इसलिए वो एग्‍जाम में अपना अच्‍छा रिजल्‍ट ले आए, सिर्फ इसलिएए नहीं भेजा है। मां-बाप को लगता है कि जो हम दे रहे हैं उससे आगे हम ज्‍यादा नहीं दे पाएंगे, उसका अगर कोई प्‍लस वन कर सकता है तो उसका टीचर कर सकता है। और इसलिए बच्‍चे की जिंदगी में शिक्षा में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। संस्‍कार में प्‍लस वन कौन करेगा? टीचर करेगा। उसके habits में correction कौन करेगा प्‍लस वन टीचर करेगा। और इसलिए प्‍लस वन theory वाली हमारी कोशिश होनी चाहिए। उसके घर से जो मिला है मैं उसमें कुछ ज्‍यादा अतिरिक्‍त जोड़ दूंगा। मेरा उसकी जिंदगी में बदलाव लाने का कोई न कोई contribution होगा। अगर ये प्रयास आपकी तरफ से रहे, मुझे विश्‍वास है कि आप बहुत ही सफलतापूर्वक और आप अकेले नहीं, सभी शिक्षकों से बात कीजिए। अपने क्षेत्र के, अपने राज्‍य के शिक्षकों से बात कीजिए। आप लीडरशिप लीजिए और हमारे देश की नई पीढ़ी को तैयार करें क्योंकि आज जिन बच्चों को आप तैयार कर रहे हैं ना, वे जब नौकरी करने योग्य बनेंगे या 25-27 साल की उम्र तक पहुंचेंगे, तब ये देश आज है वैसा नहीं होगा, ये विकसित भारत होगा। आप उस विकसित भारत में retirement का पेंशन लेते होंगे। लेकिन जिसको आज आप तैयार कर रहे हैं, वो उस विकसित भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने वाला एक सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍तित्‍व बनने वाला है। यानि आपके पास कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, ये विकसित भारत, ये कोई सिर्फ मोदी का कार्यक्रम नहीं है।

हम सबको मिलकर के विकसित भारत के लिए ऐसा मानव समूह भी तैयार करना है। ऐसे सामर्थ्यवान नागरिक भी तैयार करने हैं, ऐसे सामर्थ्यवान नौजवान तैयार करने हैं। अगर हमें आगे चलकर के 25-50 गोल्‍ड मेडल अगर खेल-कूद में लाने हैं, कहां से निकलेगा वो खिलाड़ी? जो आपके स्कूल में दिखते हैं ना, उन बच्चों में से निकले वाला है और इसलिए हम उन सपनों को लेकर के और आपके पास बहुत लोग हैं, सपने होते हैं लेकिन उनके सामने इन सपनों का साकार कैसे करें, आप वो लोग हैं आपके मन में जो सपना आए, उस सपने को साकार करने के लिए वो laboratory आपके सामने ही है, raw material आपके सामने ही है, वो बच्‍चे आपके सामने ही हैं। आप अपने सपनों को लेकर के उस प्रयोगशाला में प्रयास करेंगे, आप जो चाहें वो परिणाम लेकर के आएंगे।

मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं!

बहुत-बहुत धन्यवाद!