उपस्थित सभी देवियों और सज्जनों,
समाज में कैसे-कैसे नर-रत्न पैदा हुए हैं, महापुरूष पैदा हुए हैं, जिसके कारण हम सबको उत्तम विरासत प्राप्त हुई है। अगर आज यह समारोह यहां नहीं हुआ होता तो शायद नार्थ में रहने वाले कई लोग होंगे, जिनको यह पता तक नहीं होता कि अयंकाली जी कौन थे और इस देश का दुर्भाग्य रहा है, इसने किसी कारणवश, समाज के लिए जीने-जूझने वाले लोगों को भुला दिया है। शायद हम सबका दायित्व बनता है कि हमारे सभी महान पूर्वजों और उनके जीवन से प्रेरणा ले के नई पीढ़ी को संस्कारित करने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए।
पूरे केरल में ओणम का पर्व मनाया जा रहा है। मैं आज, सभी मेरे केरल के भाइयों-बहनों को ओणम की शुभकामनाएं देता हूं। आज 8 सितंबर है, इसका महात्मय मुझे बड़ा महत्वपूर्ण लगता है, क्योंकि 8 सितंबर को महात्मा अयंकाली का जन्म हुआ, लेकिन उसी केरल की धरती पर दूसरे महान समाज सुधारक नारायण गुरू जी का भी जन्म हुआ। आज केरल के जीवन में दो संगठनों, केपीएमस और एसएनडीपी, उनकी मर्जी के बिना न कोई समाज नीति चल सकती है, न कोई राजनीति चल सकती है। लेकिन, वो उसका एक अलग पहलू है। आज हम जब आज केरल के महान समाज सुधारक, महान संत अयंकाली जी की 152वीं जयंति पर मिले हैं। मेरा यह सौभाग्य रहा कि मैं पिछले बार केरल में केपीएमएस के निमंत्रण पर एक कार्यक्रम में गया था और शायद हम जिस विचारधारा में पले हुए लोग हैं, उसमें शायद मैं पहला था, जिसको आपके यहां आने का सौभाग्य मिला था।
उस समय “कायल सभा” की शताब्दी का समारोह प्रारंभ हो रहा था। एक प्रकार से अब वो कायल शताब्दी की पूर्णाहुति का ही कालखंड है। उसमें भी मुझे आने का सौभाग्य मिला है। आप कल्पना कर सकते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी को केरल पर इतना गुस्सा क्यों आया था। क्या वो केरल को प्यार नहीं करते थे? क्या केरल की भूमि उनको अपनी नहीं लगती थी? लेकिन केरल की जो समाज व्यवस्था बन गयी थी और जिस प्रकार से वहां दलितों पर जुल्म होता था, दलितों के साथ अन्याय होता था, इसने स्वामी विवेकानंद जी को बेचैन कर दिया था। उन्हें लगा, ये क्या समाज है, ये क्या कर रहे हैं ये लोग। सर्वाधिक गुस्से में स्वामी विवेकानंद थे और उसी गुस्से में से उनके मन से ये उदगार निकले थे।
हमारे देश का, आजादी का ये आंदोलन देखें तो उस सारे आजादी के आंदोलन में 19वीं शताब्दी की घटनाओं का बहुत महत्व है। 19वीं शताब्दी में हमारे देश में, हिन्दुस्तान के हर कोने में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा हुआ। कोई न कोई सांस्कृतिक आंदोलन चला। एक प्रकार से 20वीं शताब्दी का आजादी के आंदोलन की पीठिका, 19वीं शताब्दी के समाज सुधारक आंदलोनों से हुई, सांस्कृतिक चेतना से हुई। 1200 साल की गुलामी के अंदर अपना सब कुछ भुला चुके समाज को फिर से एक बार प्राणवान बनाने का प्रयास उस समय महापुरूषों ने किया।
उसी कालखंड में केरल में अयंकाली जी की समाज सुधार और संघर्ष की गतिविधि नारायण गुरू का शिक्षा आंदोलन और उसी समय डा. पलप्पु, मन्नायु पद्मनाभन, पंडित करप्पन, स्वामी वागपट्टानंदन, ऐसे एक से एक दिग्गज केरल की धरती पर सामाजिक चेतना को जगाने में लगे थे।
लेकिन, 1913 में महात्मा गांधी हिन्दुस्तान लौटे, उससे पहले संत अयंकाली जी ने एक कायल सभा के द्वारा एक अद्भुत सत्याग्रह किया गया था। हम नार्थ के लोगों को मालूम नहीं है, लेकिन केरल के दलित समाज को जागृत करने के लिए उनके अधिकारों के लिए, उस समय शासकों ने वहां के, अन्य लोगों ने, वहां के समाज के अगुवा लोगों ने, ये करने से मना कर दिया। ये कहा कि तुम्हें जमीन की इंच की जगह नही मिलेगी, सम्मेलन करने के लिए। उस जमाने में एक दलित मां का बेटा, सारा समाज सामने हो तो क्या करता, चुप हो जाता, बैठ जाता?
अयंकाली जी चुप नहीं हुए। उन्होंने ठान ली कि मैं इस जुल्म के खिलाफ संघर्ष करूंगा। उन्होंने रास्ता खोजा। उन्होंने सब नावें इकट्ठी की, नौकाएं इकट्ठी की और समुद्र के अंदर एक नौकाओं के द्वारा एक विशाल जगह बना दी और नाव में सभा की उन्होंने। वह कायल सभा जो कही जाती है, 1913 के हर प्रतिबंध के बीच, समुंदर के अंदर। जमीन नहीं देते हो तो आप जानें, दुनिया जाने। परमात्मा ने मुझे जगह दी है समुन्दर को चीर कर के मैं वहां जायूँगा, लेकिन मैं हक़ों की लड़ाई लडूंगा, ये मिजाज अयंकाली जी ने बताया। समुन्दर में नाव इक्कठी कर कर के, नौकायें इक्कठी करके, वहीं उन्ही नौकायों में मंच बनाया, नाव में ही श्रोता आये और उन्होने सत्याग्रह किया था।
महात्मा गाँधी 1915 में हिंदुस्तान आये थे और बाद में महात्मा गाँधी ने जब अयंकाली जी की इस शक्ति को देखा तो, महात्मा गाँधी जी ने स्वयं संत अयंकाली जी को मिलने गये थे। लेकिन, हम जब इतिहास के पन्नों को देखतें हैं तो ये चीजें हमे मिलती नहीं। पता नहीं, क्या कारण है? इसे क्यों ओझल कर दिया गया है! समाज सुधार के आंदोलन के रूप में, जो बातें हमने बाबा साहेब आम्बेडकर से सुनी हैं, जो हमे पढ़ने को मिलती है, अयंकाली जी की बातो में वो सारी बाते उस समय मिलती थी, 19वीं शताब्दी में। इतना ही नहीं, आज ह्यूमन राइट्स से सम्बंधित दुनिया में जितने भी डॉक्युमेंट्स हैं, यूएन से लेकर, कहीं पे भी, अगर उन डॉक्युमेंट्स को आप अयंकाली जी ने 19वीं शताबदी में जिन बातों को कहा था, उसको अगर हम जोड़ेंगे, तो बहुत सी बाते वो मिलेंगी, जो 19वीं शताबदी में अयंकाली जी ने कही थी जिन बातों को आज विश्व में ह्यूमन राइट्स की बातों के साथ जोड़ा गया।
इतना ही नहीं, केरल में तो हम जानते हैं, दक्षिण में तो स्थिति ये थी की अगर किसी दलित को जाना है तो पीछे झाडू लगाना पड़ता था, उसके पद-चिन्ह ना रह पायें, ये पागलपन उस जमाने में था। कोई दलित बैलगाड़ी नहीं रख सकता था। बैलगाड़ी मे बैठ नहीं सकता था, वो दिन थे। तब अयंकाली जी ने सत्याग्रह किया था। उन्होने तय किया, जिस रास्ते पर प्रतिबंध है उस रास्ते पर मैं जाउंगा, बैलगाड़ी ले कर के जाउंगा और अयंकाली जी गये, बहुत बड़ा संघर्ष हुआ, मारपीट हुई, कुछ लोगों को चोटे पहुंची, लेकिन वो झुके नहीं। समाज को जगाने के लिये वो निरंतर प्रयास करते रहे।
आज जितने भी मजदूर आंदोलन चल रहे हैं, उन सभी मजदूर आंदोलनो को भी अगर कोई सच्चाई सीखनी है तो, अयंकाली जी से सीखने को मिलेगी।
उन्होंने कृषि मजदूरों को आज़ादी दिलाने का आंदोलन चलाया था। जो कृषि मजदूर थे, उनके लिये काम का समय तय हो, उनके लिये वेतन तय हो, उनके बच्चों को सरकारी स्कूल मे एडमिशन का अधिकार मिले, महिलायों के लिये मजदूरी का प्रकार अलग हो, इन सारे विषयों की लड़ाई लड़ कर के विजय प्राप्त की थी, अयंकाली जी ने। वे एक प्रकार से समाज सुधारक भी थे, लेकिन साथ-साथ समाज के हकों के लिये संघर्ष करना और उन्हें हक दिलाना, ये उस समय अयंकाली जी ने किया था और कृषि जीवन के अंदर अनेक अधिकार पाने में सुविधा मिली थी। आज केरल में जो शिक्षा की जो स्थिति है, अगर इसका गर्व हम करतें हैं, तो हमे इस बात का भी गर्व करना होगा की दो महापुरुष विशेष रूप से, जिन्होंने केरल में शिक्षा की जोत जलाई थी, एक संत अयंकाली जी और दूसरे नारायण गुरु जी। उस समय दलित, शोषित, पीड़ित, वंचित, पिछड़े, इनके लिये शिक्षा, ये उनका प्राथमिक विषय रहा था और उसके कारण केरल के समाज जीवन में इतना बड़ा बदलाव आया, इतना परिवर्तन आया।
हम हिन्दुस्तान की आज़ादी के आंदोलन की जब चर्चा करतें हैं, तो 1930 की दांडी यात्रा को एक टर्निंग प्वाइंट के रूप में देखते हैं। मैं समझाता हूं, आज़ादी के आंदोलन में 1930 की दांडी यात्रा एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट है, तो दलित उद्धार के आंदोलन में 1913 का कायल सम्मेलन, ये टर्निंग प्वाइंट है। बाबा साहब कहते थे- संगठित बनो, संघर्ष करो, शिक्षित बनो। संत अयंकाली जी ने भी इन्हीं तीन मंत्रों को ले कर के समाज को सशक्त बनाने का काम किया था। उस अर्थ में ऐसे महापुरूष, जिन्होंने समाज के हकों के लिए लड़ाई लड़ी, समाज के अंदर चेतना जगाई, लेकिन कभी समग्रतया समाज जीवन में दरार पैदा होने का प्रयास होने नहीं दिया। सामाजिक एकता को कभी आंच न आए, इसके लिए वह प्रयारत रहे। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। बाबा साहब अंबेदकर का जीवन देखिए, दलित उद्धार के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन दलितों के अंदर नफरत की आग जलाने का प्रयास कभी बाबा साहब अंबेदकर ने नहीं किया। यही तो दिव्य दृष्टि होती है और वही अयंकाली जी का था कि उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ना तय माना लेकिन, समाज के प्रति प्रेम, उसमें कभी कटुता को जन्म न आए, इसके लिए एक जागरूक प्रयास किया और उसका परिणाम है कि समाज के ताने-बाने बचे रहते हैं।
समाज जीवन में, यह विविधताओं भरा देश है। विविधता में एकता, यह हमारे भारत की विशेषता है। ये भारत के सौंदर्य को बढ़ाने वाले, हमारी विरासत हैं। उन विविधता में एकता को बनाये रखते हुए, सामाजिक एकता के मूल मंत्र को कोई आंच न आए। लेकिन उसके साथ कोई वंचित न रह जाए। किसी से अन्याय न हो, ये व्यवस्थाओं के ऊपर बल देना, यह हर समय की मांग होती है।
कभी-कभी मुझे लगता है, लोग चर्चा करते हैं, ये 5000 साल हो गए, इस संस्कृति को, परंपरा को। ये कैसे इतना चल रहा है। दुनिया में कई संस्कृतियां नष्ट हो गईं, क्या कारण है? अगर हम देखें तो इस समाज की एक विशेषता है। हर युग में हमारे देश में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा हुए हैं। उन समाज सुधारकों ने अपने ही समाज की बुराइयों या कमियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।
महात्मा गांधी ने आजादी का आंदोलन लड़ा, लेकिन साथ-साथ ही हिंदू समाज में जो अस्पृष्यता थी, उसके खिलाफ भी उन्होंने जंग छेड़ा, लड़ाई लड़ी। राजाराम मोहन राय समाज जीवन के लिए अनेक काम किए, लेकिन समाज में महिलाओं के खिलाफ जो अन्याय हो रहा था, उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। हम भाग्यशाली हैं एक प्रकार से, सदियों से हम देखें, कोई युग ऐसा नहीं गया है, कि हमारे भीतर कोई बुराइयां आई है तो हमारे भीतर ही कोई महापुरूष पैदा हुआ है। उसने हमें उन बुराइयों से मुक्ति के लिए कभी डांटा है तो कभी झकझोरा है, कभी शिक्षित किया है और हमें सुधार करने के लिए रास्ता दिखाया है और हम टिके हैं, उसका कारण यह है कि हमारे यहां एक ऑटो पायलट व्यवस्था है। हमारे भीतर से ही ऐसे महापुरूष पैदा होते हैं, जो हमारी कमियों को दूर करके, हमें सशक्त करने का निरंतर प्रयास करते हैं। हम इसलिए भाग्यवान हैं, कि जो काल बाह्य चीजें हैं, जो किसी समय उपयोगी रही होगी लेकिन, समय रहते निकम्मी रह गई होगी। अगर हमें ऐसे संत नहीं मिले होते, ऐसे समाज सुधारक नहीं मिले होते, तो वहीं चीजें हमारे लिए बोझ बन जाती। हमारे यहां ऐसे महापुरूष पैदा हुए, जिन्होंने हमें उस काल बाह्य चीजों से मुक्ति दिलाई। आधुनिक बनने की दिशा दी। नवचेतना जगाने का प्रयास किया।
एक समाज के रूप में हम स्थगितता को लेकर हम जीने वाले, पनपे हुए लोग नहीं हैं। हम नित्य नूतन प्रयास करने वाले लोग हैं और हर सदी में हुआ है। उस प्रयास करने वाले महापुरूषों में अनेक महापुरूषों का जैसे स्मरण होता है, संत अयंकाली जी का भी होता है। आजादी के आंदोलन में सारे हिन्दुस्तान की तरफ नजर करना, समाज सुधारक, भक्ति आंदोलन चेतना आंदोलन, हर कोने में महापुरूषों की भरमार थी। आजादी के लिए पहले समाज को साशक्त करने के लिए उन्होंने मेहनत की थी। उसी पीठिका का परिणाम था कि 20वीं शताब्दी में हम पूरी ताकत के साथ आजादी के लिए सफलता की ओर आगे बढे और उसकी पीठिका तैयार करने में अयंकाली जैसे अनेक महापुरूषों ने, नारायण गुरू स्वामी जैसे अनेक महापुरूषों ने प्रयास किया था जिस पर परिणाम लाभदायक रहा।
समाज में आजादी के बाद दलित, पीडि़त, शोषितों से मुक्ति के लिए हम बाबा साहब अंबेडकर के जितने आभारी हों, उतने कम हैं। भारत के संविधान में एक ऐसी व्यवस्था दी है, जिसके कारण हमें अपना हक पाने का अवसर मिला है। ये भारत के संविधान निर्माता सब मिल कर के दलितों का, पीडि़तों का, शोषितों का कल्याण हो, उसकी चिंता की है। लेकिन हमें कभी एक समाज के नाते, इतने में ही संतुष्ट हो कर के चलेगा क्या? एक समाज के अग्र वर्ग का बेटा, उसको बैंक में नौकरी मिल जाए, एक दलित मां का बेटा, उसको नौकरी मिल जाए। दोनों को समानता मिलेगी। लेकिन इससे समाज की एकता हो जाती है क्या। नहीं होती है। इसलिए सिर्फ समानता के स्टेशन पर हमारी गाड़ी अटक गई तो हमें जहां जाना है, वहां हम कभी पहुंच नहीं पाएंगे। इसलिए सिर्फ समता से काम नहीं चलता है।सब समाजों के लिये समता हो, इन से काम नहीं चलता है, समता के आगे भी एक यात्रा है, और उस यात्रा के अंतिम मंजिल है समरसता।
समता पर सब कुछ बन गए, दलित का बेटा भी डॉक्टर बन गया, ब्राह्मण का भी बेटा भी डॉक्टर बन गया, दोनों डॉक्टरी कर रहे हैं, लेकिन फिर भी अगर समरसता नहीं है तो कुछ न कुछ कमी महसूस होती है । ये समरसता कब आती है, संविधान की व्यवस्था से, कानून की व्यवस्था से, हकों की लड़ाई लड़ते-लड़ते समता तो मिल सकती, लेकिन समरसता पाने के लिये समाज मे एक सतत निरन्तर, जागरूक समाज का प्रयासकरना पड़ता है । और इसलिये दो मूल बातों को ले करके चलना पड़ता है, सम-भाव+मम-भाव=समरसता। समता प्लस ममता इज इक्वल टू समरसता। समता है, लेकिन अगर ममता नहीं है तो समाज एक रस नहीं बन सकता। सम-भाव है, लेकिन मम-भाव नहीं है, ये भी मेरा है, मेरा ही भाई है, उसकी और मेरी रगों में एक ही खून है, ये भाव जब तक पैदा नहीं होता, तब तक समरसता नहीं आती है ।
इसलिये, हमे सम-भाव की यात्रा को मम-भाव से जोडना है, हमें समता की यात्रा को ममता की यात्रा के साथ जोड़ना है। समता और ममता के भाव को जोड़ कर के ही हम समरसता की यात्रा को आगे बड़ा सकते हैं । तभी जा करके समाज में किसी के प्रति कटुता पैदा नहीं होगी, किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, किसी को अपने हकों के लिये लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी, सहज रूप से उसे प्राप्त होगा । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आने वाला युग समरसता की यात्रा का युग है ।
इसे परिपूर्ण करना, समाज का शासकों का, सुधारकों का, शिक्षकों का, संस्कृतिक नेतृत्व करने वालों का, सबका सामूहिक दायित्व है ।
भारत "बहुरत्न वसुंधरा" है । हर युग में ऐसे लोग मिले हैं जिन्होने साहित्यों को पैदा किया है, इन साहित्यों का लाभ हमें अवश्य मिलेगा।
मैं फिर एक बार परम पूज्य अयंकाली जी, उनके उन महान कामों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूँ, उनके चरणों में नमन करता हूँ, और केपीएमएस के द्वारा ये जो निरन्तर प्रयास चले हैं, मैं उन सब को बहुत हृदय से अभिनन्दन देता हूँ । राजनीतिक दृष्टि से कभी हमारा और उनका मेल नहीं रहा, लेकिन जो प्यार् मुझे केपीएमएस से मिला है, हमेशा मिला है और बाबू तो हमारे लिये, मैंने देखा है, हमेशा, प्यार लिये रहते हैं। ये प्यार बना रहेगा।
मुझे आज आप के बीच आने का अवसर मिला, दिल्ली के इस महत्वपूर्ण ओडिटोरियम में , कभी किसी ने सोचा होगा, 152 साल पहले पैदा हुये एक संत को, इस महत्वपूर्ण भवन में हम लोगों को श्रद्धांजलि देने का सौभाग्य प्राप्त होगा। यही तो बताता है कि ये समरसता की यात्रा का युग है, और इस समरसता की यात्रा को हम सब मिल कर आगे बढायेंगे।
फिर एक बार आप सब को मेरी शुभकामनाएं। फिर एक बार ओणम की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद ।
अमृतकाल का ये पहला बजट विकसित भारत के विराट संकल्प को पूरा करने के लिए एक मजबूत नींव का निर्माण करेगा। ये बजट वंचितों को वरीयता देता है। ये बजट आज की Aspirational Society- गांव-गरीब, किसान, मध्यम वर्ग, सभी के सपनों को पूरा करेगा।
मैं वित्त मंत्री निर्मला जी औऱ उनकी टीम को इस ऐतिहासिक बजट के लिए बधाई देता हूं।
साथियों,
परंपरागत रूप से, अपने हाथ से, औज़ारों और टूल्स से कड़ी मेहनत कर कुछ न कुछ सृजन करने वाले करोड़ों विश्वकर्मा इस देश के निर्माता हैं। लोहार, सुनार, कुम्हार, सुथार, मूर्तिकार, कारीगर, मिस्त्री अनगिनत लोगों की बहुत बड़ी लिस्ट है। इन सभी विश्वकर्माओं की मेहनत और सृजन के लिए देश इस बजट में पहली बार अनेक प्रोत्साहन योजना लेकर आया है। ऐसे लोगों के लिए ट्रेनिंग, टेक्नॉलॉजी, क्रेडिट और मार्केट सपोर्ट की व्यवस्था की गई है। पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान यानि पीएम विकास, करोड़ों विश्वकर्माओं के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लायेगा।
साथियों,
शहरी महिलाओं से लेकर गांव में रहने वाली महिलायें हों, कारोबार रोजगार में व्यस्त महिलायें हों, या घर के काम में व्यस्त महिलायें हों, उनके जीवन को आसान बनाने के लिए बीते वर्षों में सरकार ने अनेक कदम उठाएँ हैं। जल जीवन मिशन हो, उज्जवला योजना हो, पीएम-आवास योजना हो, ऐसे अनेक कदम इन सबको बहुत बड़ी ताकत के साथ आगे बढ़ाया जाएगा। उसके साथ-साथ महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप, एक बहुत बड़ा सामर्थ्यवान क्षेत्र आज भारत में बहुत बड़ी जगह aquire कर चुका है, उनको अगर थोड़ा सा बल मिल जाए तो वो miracle कर सकते हैं। और इसलिए women self help group, उनके सर्वांगीण विकास के लिए नई पहल इस बजट में एक नया आयाम जोड़ेगी। महिलाओं के लिए एक विशेष बचत योजना भी शुरू की जा रही है। और जन धन अकाउंट के बाद ये विशेष बचत योजना सामान्य परिवार की गृहिणी माताओं-बहनों को बहुत बड़ी ताकत देने वाली है।
ये बजट, सहकारिता को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की धुरी बनाएगा। सरकार ने को-ऑपरेटिव सेक्टर में दुनिया की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना बनाई है-स्टोरेज कपेसिटी। बजट में नए प्राइमरी को-ऑपरेटिव्स बनाने की एक महत्वाकांक्षी योजना का भी ऐलान हुआ है। इससे खेती के साथ-साथ दूध और मछली उत्पादन के क्षेत्र का विस्तार होगा, किसानों, पशुपालकों और मछुआरों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिलेगी।
साथियों,
अब हमें डिजिटल पेमेंट्स की सफलता को एग्रीकल्चर सेक्टर में दोहराना है। इसलिए इस बजट में हम डिजिटल एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर की एक बहुत बड़ी योजना लेकर आए हैं। आज दुनिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर मना रही है। भारत में मिलेट्स के अनेक प्रकार हैं, अनेक नाम हैं। आज जब मिलेट्स, घर-घर में पहुंच रहा है, पूरी दुनिया में पॉपुलर हो रहा है, तो उसका सर्वाधिक लाभ भारत के छोटे किसानों के नसीब में है, और इसलिए आवश्यकता है कि एक नए तरीके से उसको आगे ले जाया जाए। इसकी एक नई पहचान, विशेष पहचान आवश्यक है। इसलिए अब इस सुपर-फूड को श्री-अन्न की नई पहचान दी गई है, इसके प्रोत्साहन के लिए भी अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। श्री-अन्न को दी गई प्राथमिकता से देश के छोटे किसानों, हमारे आदिवासी भाई-बहन जो किसानी करते हैं, उनको आर्थिक सम्बल मिलेगा और देशवासियों को एक स्वस्थ जीवन मिलेगा।
साथियों,
ये बजट Sustainable Future के लिए, Green Growth, Green Economy, Green Energy, Green Infrastructure, और Green Jobs को एक अभूतपूर्व विस्तार देगा। बजट में हमने टेक्नॉलॉजी और न्यू इकॉनॉमी पर बहुत अधिक बल दिया है। Aspirational भारत, आज रोड, रेल, मेट्रो, पोर्ट, water ways, हर क्षेत्र में आधुनिक इंफ़्रास्ट्रक्चर चाहता है, Next Generation Infrastructure चाहिए। 2014 की तुलना में इंफ़्रास्ट्रक्चर में निवेश पर 400 परसेंट से ज्यादा की वृद्धि की गई है। इस बार इंफ़्रास्ट्रक्चर पर दस लाख करोड़ का अभूतपूर्व investment, भारत के विकास को नई ऊर्जा और तेज गति देगा। ये निवेश, युवाओं के लिए रोज़गार के नए अवसर पैदा करेगा, एक बहुत बड़ी आबादी को आय के नए अवसर उपलब्ध कराएगा। इस बजट में Ease of Doing Business के साथ-साथ हमारे उद्योगों के लिए क्रेडिट सपोर्ट और रिफॉर्मस् के अभियान को आगे बढ़ाया गया है। MSMEs के लिए 2 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त ऋण की गारंटी की व्यवस्था की गई है। अब presumptive tax की लिमिट बढ़ने से MSMEs को grow करने में मदद मिलेगी। बड़ी कंपनियों द्वारा MSMEs को समय पर पेमेंट मिले, इसके लिए नई व्यवस्था बनाई गई है।
साथियों,
बहुत तेजी से बदलते भारत में मध्यम वर्ग, विकास हो या व्यवस्था हो, साहस हो या संकल्प लेने का सामर्थ्य को जीवन के हर क्षेत्र में आज भारत का माध्यम वर्ग एक प्रमुख धारा बना हुआ है। समृद्ध और विकसित भारत के सपनों को पूरा करने के लिए मध्यम वर्ग एक बहुत बड़ी ताकत है। जैसे भारत की युवा शक्ति ये भारत का विशेष सामर्थ्य है, वैसे ही बढ़ता हुआ भारत का माध्यम वर्ग भी एक बहुत बड़ी शक्ति है। मध्यम वर्ग को सशक्त बनाने के लिए हमारी सरकार ने बीते वर्षों में अनेकों निर्णय लिए और Ease of Living को सुनिश्चित किया है। हमने टैक्स रेट को कम किया है, साथ ही प्रॉसेस को simplify, transparent और फ़ास्ट किया है। हमेशा मध्यम वर्ग के साथ खड़ी रहने वाली हमारी सरकार ने मध्यम वर्ग को टैक्स में बड़ी राहत दी है। इस सर्व-स्पर्शी और विकसित भारत के निर्माण को गति देने वाले बजट के लिए मैं फिर एक बार निर्मला जी और उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं और देशवासियों को भी बहुत बधाई के साथ-साथ मैं आहवाहन करता हूँ, आइए अब नया बजट आपके सामने है, नए संकल्पों को लेकर के चल पड़ें। 2047 में समृद्ध भारत, समर्थ भारत, हर प्रकार से सम्पन्न भारत हम बनाकर रहेंगे। आइए इस यात्रा को हम आगे बढ़ाएँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।