“Aadi Mahotsav is presenting a grand picture of India’s tribal heritage during the Azadi Ka Amrit Mahotsav”
“India of the 21st Century is moving with the mantra of ‘Sabka Saath Sabka Vikas”
“Welfare of tribal society is also a matter of personal relationship and emotions for me”
“I have seen tribal traditions closely, lived them and learnt a lot from them”
“The country is moving with unprecedented pride with regard to its tribal glory”
“Education of tribal children in any corner of the country is my priority”
“The country is soaring to new heights because the government is prioritizing the development of the deprived”

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे साथी अर्जुन मुंडा जी, फग्गन सिंह कुलस्ते जी, श्रीमती रेणुका सिंह जी, डॉक्टर भारती पवार जी, बिशेश्वर टुडू जी, अन्य महानुभाव, और देश के अलग-अलग राज्यों से आए मेरे सभी आदिवासी भाइयों और बहनों! आप सभी को आदि महोत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

आज़ादी के अमृत महोत्सव में आदि महोत्सव देश की आदि विरासत की भव्य प्रस्तुति कर रहा है। अभी मुझे मौका मिला देश की आदिवासी परंपरा की इस गौरवशाली झांकी को देखने का। तरह-तरह के रस, तरह-तरह के रंग! इतनी खूबसूरत पोशाकें, इतनी गौरवमयी परम्पराएँ! भिन्न-भिन्न कलाएं, भिन्न-भिन्न कलाकृतियाँ! भांति-भांति के स्वाद, तरह-तरह का संगीत, ऐसा लग रहा है जैसे भारत की अनेकता, उसकी भव्यता, कंधे से कंधा मिलाकर एक साथ खड़ी हो गई है।

ये भारत के उस अनंत आकाश की तरह है, जिसमें उसकी विविधताएँ इंद्रधनुष के रंगों की तरह उभर करके सामने आ जाती हैं। और इंद्रधनुष की एक और विशेषता भी है। ये अलग-अलग रंग जब एक साथ मिलते हैं, तो प्रकाश पुंज बनता है जो विश्व को दृष्टि भी देता है, और दिशा भी देता है। ये अनंत विविधताएं जब ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के सूत्र में पिरोतीं हैं, तब भारत का भव्य स्वरूप दुनिया के सामने आता है। तब, भारत अपने सांस्कृतिक प्रकाश से विश्व का मार्गदर्शन करता है।

ये आदि महोत्सव ‘विविधता में एकता’ हमारे उस सामर्थ्य को नई ऊंचाई दे रहा है। ये ‘विकास और विरासत’ के विचार को और अधिक जीवंत बना रहा है। मैं अपने आदिवासी भाई-बहनों को और आदिवासी हितों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।

साथियों,

21वीं सदी का भारत, सबका साथ, सबका विकास के मंत्र पर चल रहा है। जिसे पहले दूर-सुदूर समझा जाता था, अब सरकार दिल्ली से चलकर उसके पास जाती है। जो पहले खुद को दूर-सुदूर समझता था, अब सरकार उसे मुख्यधारा में ला रही है। बीते 8-9 वर्षों में आदिवासी समाज से जुड़े आदि महोत्सव जैसे कार्यक्रम देश के लिए एक अभियान बन गए हैं। कितने ही कार्यक्रमों का मैं खुद भी हिस्सा बनता हूँ। ऐसा इसलिए, क्योंकि आदिवासी समाज का हित मेरे लिए व्यक्तिगत रिश्तों और भावनाओं का विषय भी है। जब मैं राजनीतिक जीवन में नहीं था, एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप, संगठन के कार्यकर्ता के रूप में काम करता था, तो मुझे अनेकों राज्‍यों में और उसमें भी हमारे जनजातीय समूह के बीच जाने का अवसर मिलता था।

मैंने देश के कोने-कोने में आदिवासी समाजों के साथ, आदिवासी परिवारों के साथ कितने ही सप्ताह बिताए हैं। मैंने आपकी परम्पराओं को करीब से देखा भी है, उसे जिया भी है, और उनसे बहुत कुछ सीखा भी है। गुजरात में भी उमरगाम से अंबाजी तक गुजरात की पूरी पूर्वी पट्टी, उस आदिवासी पट्टे में जीवन के अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण वर्ष मेरे आदिवासी भाई-बहनों की सेवा में लगाने का मुझे सौभाग्‍य मिला था। आदिवासियों की जीवनशैली ने मुझे देश के बारे में, हमारी परम्‍पराओं के बारे में, हमारी विरासत के बारे में बहुत कुछ सिखाया है। इसलिए, जब मैं आपके बीच आता हूँ, तो एक अलग ही तरह का अपनत्व मुझे फील होता है। आपके बीच अपनों से जुड़ने का अहसास होता है।

साथियों,

आदिवासी समाज को लेकर आज देश जिस गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ है। मैं जब विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से मिलता हूँ, और उन्हें उपहार देता हूं तो मेरी कोशिश होती है कि उसमें कुछ न कुछ तो मेरे आदिवासी भाई-बहनों द्वारा बनाए गए कुछ न कुछ उपहार होने चाहिए।

आज भारत पूरी दुनिया के बड़े-बड़े मंचों पर जाता है तो आदिवासी परंपरा को अपनी विरासत और गौरव के रूप में प्रस्तुत करता है। आज भारत विश्व को ये बताता है कि क्लाइमेट चेंज, ग्‍लोबल वार्मिंग, ऐसे जो ग्लोबल चैलेंजेज़ हैं ना, अगर उसका समाधान आपको चाहिए, आइए मेरी आदिवासी परम्‍पराओं की जीवन शैली देख लीजिए, आपको रास्‍ता मिल जाएगा। आज जब sustainable development की बात होती है, तो हम गर्व से कह सकते हैं कि दुनिया को हमारे आदिवासी समाज से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। हम कैसे पेड़ों से, जंगलों से, नदियों से, पहाड़ों से हमारी पीढ़ियों का रिश्ता जोड़ सकते हैं, हम कैसे प्रकृति से संसाधन लेकर भी उसे संरक्षित करते हैं, उसका संवर्धन करते हैं, इसकी प्रेरणा हमारे आदिवासी भाई-बहन हमें लगातार देते रहते हैं और, यही बात आज भारत पूरे विश्व को बता रहा है।

साथियों,

आज भारत के पारंपरिक, और ख़ासकर जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले प्रॉडक्ट्स की डिमांड लगातार बढ़ रही है। आज पूर्वोत्तर के प्रॉडक्ट्स विदेशों तक में एक्सपोर्ट हो रहे हैं। आज बैम्बू से बने उत्पादों की लोकप्रियता में तेजी से वृद्धि हो रही है। आपको याद होगा, पहले की सरकार के समय बैम्बू को काटने और उसके इस्तेमाल पर कानूनी प्रतिबंध लगे हुये थे। हम बैंम्बू को घास की कैटेगरी में ले आए और उस पर सारे जो प्रतिबंध लगे थे, उसको हमने हटा दिया। इससे बैम्बू प्रॉडक्ट्स अब एक बड़ी इंडस्ट्री का हिस्सा बन रहे हैं। ट्राइबल प्रॉडक्ट्स ज्यादा से ज्यादा बाज़ार तक आयें, इनकी पहचान बढ़े, इनकी डिमांड बढ़े, सरकार इस दिशा में भी लगातार काम कर रही है।

वनधन मिशन का उदाहरण हमारे सामने है। देश के अलग-अलग राज्यों में 3 हजार से ज्यादा वनधन विकास केंद्र स्थापित किए गए हैं। 2014 से पहले ऐसे बहुत कम, लघु वन उत्पाद होते थे, जो MSP के दायरे में आते थे। अब ये संख्या बढ़कर 7 गुना हो गई है। अब ऐसे करीब 90 लघु वन उत्पाद हैं, जिन पर सरकार मिनिमम सपोर्ट एमएसपी प्राइस दे रही है। 50 हजार से ज्यादा वनधन स्वयं सहायता समूहों के जरिए लाखों जनजातीय लोगों को इसका लाभ हो रहा है। देश में जो स्वयं सहायता समूहों का एक बड़ा नेटवर्क तैयार हो रहा है, उसका भी फायदा आदिवासी समाज को हुआ है। 80 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह, सेल्फ़ हेल्प ग्रुप्स, इस समय अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं। इन समूहों में सवा करोड़ से ज्यादा ट्राइबल मेम्बर्स हैं, उसमें भी हमारी माताएं-बहनें हैं। इसका भी बड़ा लाभ आदिवासी महिलाओं को मिल रहा है।

भाइयों और बहनों,

आज सरकार का जोर जनजातीय आर्ट्स को प्रमोट करने, जनजातीय युवाओं के स्किल को बढ़ाने पर भी है। इस बार के बजट में पारंपरिक कारीगरों के लिए पीएम-विश्वकर्मा योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई है। PM-विश्वकर्मा के तहत आपको आर्थिक सहायता दी जाएगी, स्किल ट्रेनिंग दी जाएगी, अपने प्रॉडक्ट की मार्केटिंग के लिए सपोर्ट किया जाएगा। इसका बहुत बड़ा लाभ हमारी युवा पीढ़ी को होने वाला है। और साथियों, ये प्रयास केवल कुछ एक क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं। हमारे देश में सैकड़ों आदिवासी समुदाय हैं। उनकी कितनी ही परम्पराएँ और हुनर ऐसे हैं, जिनमें असीम संभावनाएं छिपी हैं। इसलिए, देश में नए जनजातीय शोध संस्थान भी खोले जा रहे हैं। इन प्रयासों से ट्राइबल युवाओं के लिए अपने ही क्षेत्रों में नए अवसर बन रहे हैं।

साथियों,

जब मैं 20 साल पहले गुजरात का मुख्यमंत्री बना था, तो मैंने वहां एक बात नोट की थी। वहां आदिवासी बेल्ट में जो भी स्कूल थे, इतना बड़ा आदिवासी समुदाय था, लेकिन पिछली सरकारों को आदिवासी क्षेत्रों में साइंस स्ट्रीम के स्‍कूल बनाने में प्राथमिकता नहीं थी। अब सोचिए, जब आदिवासी बच्चा साइंस ही नहीं पढ़ेगा तो डॉक्टर-इंजीनियर कैसे बनता? इस चुनौती का समाधान हमने उस पूरे बैल्‍ट में आदिवासी क्षेत्र के स्कूलों में साइंस की पढ़ाई का इंतजाम करके किया। आदिवासी बच्चे, देश के किसी भी कोने में हों, उनकी शिक्षा, उनका भविष्य ये मेरी प्राथमिकता है।

आज देश में एकलव्य मॉडल अवासीय विद्यालयों की संख्या में 5 गुना की वृद्धि हुई है। 2004 से 2014 के बीच 10 वर्षों में केवल 90 एकलव्य आवासीय स्कूल खुले थे। लेकिन, 2014 से 2022 तक इन 8 वर्षों में 500 से ज्यादा एकलव्य स्कूल स्वीकृत हुये हैं। वर्तमान में, इनमें 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है। 1 लाख से ज्यादा जन-जातीय छात्र-छात्राएँ इन नए स्कूलों में पढ़ाई भी करने लगे हैं। इस साल के बजट में ऐसे स्कूलों में करीब-करीब 40 हजार से भी ज्यादा शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती की भी घोषणा की गई है। अनुसूचित जनजाति के युवाओं को मिलने वाली स्कॉलरशिप में भी दो गुने से ज्यादा की बढ़ोतरी की गई है। इसका लाभ 30 लाख विद्यार्थियों को मिल रहा है।

साथियों,

आदिवासी युवाओं को भाषा की बाधा के कारण बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता था। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई के विकल्प भी खोल दिये गए हैं। अब हमारे आदिवासी बच्चे, आदिवासी युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे, आगे बढ़ सकेंगे।

साथियों,

देश जब आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को अपनी प्राथमिकता देता है, तो प्रगति के रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। हमारी सरकार वंचितों को वरीयता, यही मंत्र को लेकर देश विकास के लिए नए आयाम छू रहा है। सरकार जिन आकांक्षी जिलों, आकांक्षी ब्लॉक्स को विकसित करने का अभियान चला रही है, उसमें ज्यादातर आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं।

इस साल के बजट में अनुसूचित जनजातियों के लिए दिया जाने वाला बजट भी 2014 की तुलना में 5 गुना बढ़ा दिया गया है। आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा रहा है। आधुनिक connectivity बढ़ने से पर्यटन और आय के अवसर भी बढ़ रहे हैं। देश के हजारों गांव, जो कभी वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित थे, उन्हें अब 4G connectivity से जोड़ा जा रहा है। यानी, जो युवा अलग-थलग होने के कारण अलगाववाद के जाल में फंस जाते थे, वो अब इंटरनेट और इन्फ्रा के जरिए मुख्यधारा से कनेक्ट हो रहे हैं। ये ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ इसकी वो मुख्‍य धारा है जो दूर-सुदूर देश के हर नागरिक तक पहुंच रही है। ये आदि और आधुनिकता के संगम की वो आहट है, जिस पर नए भारत की बुलंद इमारत खड़ी होगी।

साथियों,

बीते 8-9 वर्षों में आदिवासी समाज की यात्रा इस बदलाव की साक्षी रही है कि देश, कैसे समानता और समरसता को प्राथमिकता दे रहा है। आजादी के बाद 75 वर्षों में पहली बार देश का नेतृत्व एक आदिवासी के हाथ में है। पहली बार एक आदिवासी महिला, राष्ट्रपति जी के रूप में सर्वोच्च पद पर भारत का गौरव बढ़ा रही हैं। पहली बार आज देश में आदिवासी इतिहास को इतनी पहचान मिल रही है।

हम सब जानते हैं कि देश की आज़ादी की लड़ाई में हमारे जनजातीय समाज का कितना बड़ा योगदान रहा है, उन्होंने कितनी बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन, दशकों तक इतिहास के उन स्वर्णिम अध्यायों पर, वीर-वीरांगनाओं के उन बलिदानों पर पर्दा डालने के प्रयास होते रहे। अब अमृत महोत्सव में देश ने अतीत के उन भूले-बिसरे अध्यायों को देश के सामने लाने का बीड़ा उठाया है।

पहली बार देश ने भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने की शुरुआत की है। पहली बार अलग-अलग राज्यों में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी म्यूज़ियम्स खोले जा रहे हैं। पिछले साल ही मुझे झारखंड के रांची में भगवान बिरसा मुंडा को समर्पित Museum के लोकार्पण का अवसर मिला था। ये देश में पहली बार हो रहा है, लेकिन इसकी छाप आने वाली कई पीढ़ियों में दिखाई देगी। ये प्रेरणा देश को कई सदियों तक दिशा देगी।

साथियों,

हमें हमारे अतीत को सहेजना है, वर्तमान में कर्तव्य भावना को शिखर पर ले जाना है, और भविष्य के सपनों को साकार करके ही रहना है। आदि महोत्सव जैसे आयोजन इस संकल्प को आगे बढ़ाने का एक मजबूत माध्यम हैं। हमें इसे एक अभियान के रूप में आगे बढ़ाना है, एक जन-आंदोलन बनाना है। ऐसे आयोजन अलग-अलग राज्यों में भी ज्यादा से ज्यादा होने चाहिए।

साथियों,

इस वर्ष पूरा विश्व भारत की पहल पर इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर भी मना रहा है। मिलेट्स जिसे हम आमतौर की भाषा में मोटे अनाज के रूप में जानते हैं, और सदियों से हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के मूल में ये मोटा अनाज था। और हमारे आदिवासी भाई-बहन के खानपान का वो प्रमुख हिस्सा रहा है। अब भारत ने ये मोटा अनाज जो एक प्रकार से सुपर फूड है, इस सुपर फूड को श्रीअन्न की पहचान दी है। जैसे श्रीअन्न बाजरा, श्रीअन्न ज्वार, श्रीअन्न रागी, ऐसे कितने ही नाम हैं। यहाँ के महोत्सव के फूड स्टॉल्स पर भी हमें श्रीअन्न का स्वाद और सुगंध देखने को मिल रहे हैं। हमें आदिवासी क्षेत्रों के श्रीअन्न का भी ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करना है।

इसमें लोगों को स्वास्थ्य का लाभ तो होगा ही, आदिवासी किसानों की आय भी बढ़ेगी। मुझे भरोसा है, अपने इन प्रयासों से हम साथ मिलकर विकसित भारत के सपने को साकार करेंगे। और जब मैं आज मंत्रालय ने दिल्‍ली में इतना बड़ा आयोजन किया है। देशभर के हमारे आदिवासी भाई-बहन अने‍क विविधतापूर्ण चीजें बना करके यहां लाए हैं। खास करके खेत में उत्‍पादित उत्‍तम चीजें यहां ले करके आए हैं। मैं दिल्‍लीवासियों को, हरियाणा के नजदीक के गुरुग्राम वगैरह के इलाके के लोगों को, उत्‍तर प्रदेश के नोएडा-गाजियाबाद के लोगों को आज यहां से सार्वजनिक रूप से आग्रह करता हूं, जरा दिल्‍लीवासियों को विशेष आग्रह करता हूं कि आप बड़ी तादाद में आइए। आने वाले कुछ दिन ये मेला खुला रहने वाला है। आप देखिए दूर-सुदूर जंगलों में इस देश की कैसी-कैसी ताकतें देश का भविष्‍य बना रही हैं।

जो लोग health conscious हैं, जो डाइनिंग टेबल की हर चीज में बहुत ही सतर्क हैं, विशेष करके ऐसी माताओं-बहनों से मेरा आग्रह है कि आप आइए, हमारे जंगलों की जो पैदावारें हैं, वो शारीरिक पोषण के लिए कितनी समृद्ध हैं, आप देखिए। आपको लगेगा और भविष्‍य में आप लगातार वहीं से मंगवाएंगे। अब जैसे यहां हमारे नॉर्थ-ईस्‍ट की हल्‍दी है, खास करके हमारे मेघालय से। उसके अंदर जो न्यूट्रिशनल वैल्‍यूज हैं वैसी हल्‍दी शायद दुनिया में कहीं नहीं है। अब जब लेते हैं, पता चलता है तो लगता है, हां अब हमारे किचन में यही हल्‍दी हम उपयोग करेंगे। और इसलिए मेरा विशेष आग्रह है दिल्‍ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जो यहां के पास-पास में हैं वो यहां आएं और मैं तो चाहूंगा दिल्‍ली दम दिखाए कि मेरे आदिवासी भाई-बहन जो चीजें लेकर आए हैं एक भी चीज उनको वापस ले जाने का मौका नहीं मिलना चाहिए। सारी की सारी यहाँ बिक्री हो जानी चाहिए। उनको एक नया उत्‍साह मिलेगा, हमें एक संतोष मिलेगा।

आइए, हम मिल करके इस आदि महोत्‍सव को चिरस्मरणीय बना दें, यादगार बना दें, बहुत सफल बना करके रखें। आप सबको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!

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PM Modi shares Sanskrit Subhashitam emphasising the importance of Farmers
December 23, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, shared a Sanskrit Subhashitam-

“सुवर्ण-रौप्य-माणिक्य-वसनैरपि पूरिताः।

तथापि प्रार्थयन्त्येव कृषकान् भक्ततृष्णया।।”

The Subhashitam conveys that even when possessing gold, silver, rubies, and fine clothes, people still have to depend on farmers for food.

The Prime Minister wrote on X;

“सुवर्ण-रौप्य-माणिक्य-वसनैरपि पूरिताः।

तथापि प्रार्थयन्त्येव कृषकान् भक्ततृष्णया।।"