नमस्ते। मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि किस विषय पर बोलूं और आप क्या सुनना चाहते होंगे. फिजी की यह मेरी पहली मुलाकात है, और भारत की प्रधानमंत्री की 33 साल के बाद मुलाकात है। यहां के जीवन में ऐसे कई मूल्य हैं जो हमें और भारत को जोड़ते हैं और यह भारत का भी दायित्व बनता है और फिजी का भी दायित्व बनता है कि हम उन मूल्यों को जितना अधिक बढ़ावा दें, उन मूल्यों को जितनी अधिक ताकत दें, उतना हमारी विशालता में भी फर्क पड़ेगा और हमारी ताकत में भी बढ़ोतरी होगी।

लोकतंत्र। Democracy. आज दुनिया में उसका जो मूल्य है, उसको जो महत्म्य है, किसी न किसी रूप में दुनिया के सभी देश लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ने के लिए मजबूर हुए हैं। कुछ लोग चाहते हुए करते होंगे, कुछ लोग मजबूरन करते होंगे, लेकिन आज विश्व में एक वातावरण बना है कि अगर वैश्विक प्रवाह में हमें अपनी जगह बनानी है तो लोकतंत्र दुनिया के साथ जुड़ने का एक सबसे सरल रास्ता बन गया है। फिजी ने बहुत उतार-चढ़ाव देखें हैं, लेकिन एक खुशी की बात है कि कुछ महीने पहले लोकतांत्रिक ढंग से आपने अपनी सरकारी चुनी है। फिर एक बार फिजी ने लोकतंत्र में अपनी आस्था प्रकट की है और जब फिजी लोकतंत्र में आस्था प्रकट करता है, तब वो सिर्फ फिजी तक समिति नहीं रहता है। लोकतंत्र एक ऐसी ताकत है जो फिजी को विश्व के लोकतांत्रिक फलक पर उसकी जगह बना देता है, और लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है, जहां हर एक को अपना जीवन, अपना लक्ष्य, अपने इरादे, अपने सपने, उसे साकार करने का रास्ता चुनने का हक रहता है। वो अपनी जिंदगी के फैसले एक राष्ट्र के रूप में भी एक सामूहिक मन के साथ कर सकता है। अगर कोई गलती भी हो जाए तो लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है कि उस में सुधार की पूरी संभावना रहती है।

मैं आशा करूंगा कि फिजी ने जो लोकतंत्र के मार्ग को स्वीकार किया है, वो और फले-फूले-खिले। यहां का मन भी लोकतंत्रिक बने, व्यवस्थाएं भी लोकतांत्रिक बने और न सिर्फ फिजी.. इस भू-भग के और छोटे-छोटे कई टापू है, देश है, उनके जीवन पर भी फिजी की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का प्रभाव पैदा हो और मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में यहां का लोकतंत्र और अधिक मजबूत होगा, और अधिक सामर्थ्यवान होगा।

दुनिया में एक क्षेत्र पर आज सर्वाधिक ध्यान केंद्रित हो रहा है और वो है - ज्ञान, शिक्षा। दुनिया इस बात को मानती है कि 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और अगर 21वीं सदी ज्ञान की सदी है, तो 21वीं सदी में जो भी आगे बढ़ना चाहता है, जो भी अपनी जगह बनाना चाहता है, वो गरीब से गरीब देश क्यों न हो, अमीर से अमीर देश क्यों न हो। ताकतवर देश क्यों न हो, लेकिन उसे भी ज्ञान अर्जित करने के मार्ग पर जाना पड़ेगा, ज्ञान के आधार पर आगे बढ़ना पड़ेगा। और ज्ञान के फलक इतने विस्तृत हो रहे हैं। पूरा ब्राह्माण ज्ञान पिपासुओं के लिए एक पूरा खुला मैदान है और पूरे ब्रह्माण की जो स्थिति है उसमें आज मनुष्य जो जानता है वेा शायद एक प्रतिशत भी नहीं जानता होगा। अभी तो और कुछ जानना बाकी है। और उसके लिए ज्ञान हो, रिचर्स हो, प्रयोग हो। इस पर जितना बल मिलता है उतना ही जीवन नई ऊंचाईयों को प्राप्त करता है और हमारी universities, हमारे शिक्षा के दान एक तो उनका रास्ता यह हो सकता है। जो किताबों में है वो परोसते चल जाए। पीढ़ी दर पीढ़ी हम देते चले जाए। हमारे दादा जो कितना पढ़ते थे, हम भी वही पढ़े और हमारे पोते जो पढ़ने वाले हैं हम भी उनके लिए छोड़ कर चले जाए। तो वो जीवन की स्थगितता होती है, एक रूकावट आ जाती है। लेकिन हर पीढ़ी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ खोज करके जाती है, नये आविष्कार करके जाती है। कुछ नया प्राप्त करके दुनिया को देने का सामर्थ्य रखती है।

तो खोज करने वाली जो पीढ़ी है, वो क्षेत्र के लोग हैं, वो relevant बने रहते हैं, नहीं तो वो भी irrelevant हो जाते हैं। और इसलिए universities का काम रहता है कि मूलभूत तत्वों को तो जरूरत हमें पढ़ाना पड़ेगा, लेकिन मूलभूत तत्वों को पढ़ने-पढ़ाने के बाद उन्हीं मूलभूत तत्वों के आधार पर नये आविष्कार की और कैसे चला जाए? नई खोज के लिए कैसे चला जाए? मानव कल्याण की जो आवश्यकतायें है, वो आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम क्या कर सकते है?

विश्व ने पिछले 200 साल में जितने अविष्कार किए हैं, उससे ज्यादा गत 30-40 साल में किये है। जगत पूरी तरह बदल चुका है। नये आविष्कारों ने जीवन को समेट लिया है। हम कल्पना कर सकते हैं 20 साल पहले मोबाइल फोन का क्या रोल था और आज क्या रोल है। एक information technology ने जीवन को कैसे बदल दिया। जीवन की तरफ देखने का दृष्टिकोण कैसे बदल गया, जीवन जानने के रास्ते कैसे बदल गए। एक अविष्कार पूरे युग को कैसे बदल देता है, यह हमारे सामने हुई घटना है। क्योंकि हम उस जीवन को भी जानते हैं जबकि मोबाइल फोन या connectivity नहीं थी और हम उस जीवन को भी जानते हैं जो उसके बिना जीने के लिए मुकश्किल कर देता है। उन दोनों चीजों के हम साक्षी है। अब ऐसे अवस्था के लोग हैं जो दोनों के बीच ऐसे खड़े हैं जो कल भी देखा है और आने वाले कल की संभावना भी देख रहे हैं और यही हमें प्रेरणा देती है। और इसलिए universities वो सिर्फ ज्ञान परोसने के केंद्र नहीं होते हैं, universities ज्ञान अर्जित करने के केंद्र बनते हैं, सम्बोधन करने के केंद्र बनते हैं और मुझे विश्वास है भले ही यह university नहीं हो, लेनिक यह नई university भी आने वाले दिनों में एक पूरे region के लिए, यहां की पूरी समस्याओं के लिए, सामान्य मानव के जीवन में बदलाव लाने के लिए वो कौन सा सामर्थ्य पड़ा हुआ है। जिस सामर्थ्य को तब तक हमने छुआ नहीं है, उस सामर्थ्य को कैसे छुआ जाए? और उसमें हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं, इसकी दिशा में अगर प्रयास होता है तो मैं मानता हूं कि university गया, काम सार्थक हो जाता है।

भारत में नई सरकार बनी है। अभी तो इस सरकार की उम्र छह महीने है। लेकिन भारत सिर्फ भारत के लिए नहीं जी सकता है। न ही भारत का निर्माण सिर्फ भारत के लिए बना है। हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, महापुरूषों ने यह हमेशा कहा है कि भारत एक वैश्विक दायित्व को लेकर पैदा हुआ है। उसका जीव मात्र के लिए जगत मात्र के लिए कोई-न-काई दायित्व है। और उस दायित्व को पूरा करने के लिए उस देश को पहले सज्य होना पड़ता है। अपने आप को सामर्थ्यवान बनाना पड़ता है। भारत वो देश नहीं है कि वहां के करोड़ो-करोड़ो नागरिक भरने के लिए देश चलाया जाए। भारत वो देश है जिसने विश्व को कुछ देने की जिम्मेदारी उसके सिर पर है। वो क्या देगा, कब देगा, कैसे देगा, कौन देगा - यह तो समय ही तय करेगा। लेकिन उसका कोई वैश्विक दायित्व है इस बात में किसी को कोई आशंका नहीं है।

दुनिया कहती है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। और कुछ लोग कहते हैं कि एशिया में.. कुछ लोगों को लगता है कि चीन की सदी है। किसी को लगता है कि हिंदुस्तान की सदी है। लेकिन इस बात में किसी को कोई दुविधा नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। अगर 21वीं सदी ज्ञान की सदी है, और 21वीं सदी एशिया की सदी है तो फिर तो भारत की जिम्मेदारी और बढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन क्योंकि जब-जब मानवजात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत विश्व गुरु के स्थान पर रहा है। पूरा पाँच हजार साल का इतिहास देखा जाए। सोने की चिडि़या कहलाता था। ज्ञान युग - उसका नेतृत्व हमेशा भारत ने किया है। शायद बाहुबल में वो काम नहीं आया होगा, धनबल में भी काम नहीं आया होगा, लेकिन जब ज्ञान के बल के सामर्थ्य की बात आती है तो भारत हमेशा आगे निकल चुका है। और इसलिए भारत का दायित्व बनता है कि वो ज्ञान के माध्यम से और नई विधाओं का आविष्कार करके दुनिया के सामने अपनी ताकत को दिखाए। और भारत में सामर्थ्य है। तभी भारत ने मंगलयान में सफलता प्राप्त की। कुछ लोगों को लगता होगा कि भई लोग चंद्र पर जा रहे हैं अब मंगल पर गए उसमें क्या है, लेकिन पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाले हम अकेले हैं। और आज diesel और petrol के दाम इतने है कि एक किलोमीटर कहीं जाना है तो कम से कम दस रुपये खर्चा होता है। हमें मंगलयान पहुंचने में एक किलोमीटर का सिर्फ सात रुपया खर्चा हुआ है।

यह संभव इसलिए होता है कि युवा शक्ति में सामर्थ्य है और भारत ने इसे एक सौभाग्य भी माना है, एक जिम्मेवारी भी मानी है और एक अवसर भी माना है। सौभाग्य यह है कि हम उस युग के अंदर है, जबकि दुनिया में हिंदुस्तान सबसे जवान है। 65% जनसंख्या हिंदुस्तान की 35 साल से कम उम्र की है। जिस देश में 800 मिलियन लोग जो 35 साल से कम उम्र के हैं, जबकि सारी दुनिया में सबसे ताकतवर देश भी बूढ़े होते चले जा रहे हैं, तो यह एक अवसर है, पूरे मानव जात की सेवा करने के लिए हिन्दुस्तान के नौजवान के पास अवसर है। उसे अपने आप को सज्य करना होगा। और हमारी सरकार का प्रयास यह है कि हमारी युवा शक्ति को अवसर दें। और इसमें बहुत बड़ा अभियान चलाया है - Skill India. दुनिया को जो work force की जरूरत है उस प्रकार का Human Resource Development कैसे हो, Skill Development कैसे हो? हर भुजा में हुनर कैसे हो? ताकि वो दुनिया को कुछ-न-कुछ दे सके। और ये हुनर ही तो है जिसके कारण सदियों पहले भारतीय दुनिया के कोने-कोने में पहुंचे थे - आपके पूर्वज Fiji भी तो आए थे।

वो हुनर, वो सामर्थ्य, विश्व के आवश्यकताओं के अनुसार हो हुनर। विश्व पर बोझ बनने के लिए नहीं। विश्व के भले-भलाई के लिए इस युवा शक्ति को Skill Development के माध्यम से सजय करना, जोड़ना, उसका एक Global Exposure बने। उसका सोचने का दायर Global बने। वे वैश्विक परिवेश में सोचने लगे। वे वैश्विक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने आप को सज्य करने के लिए आतुर हो। ऐसी एक व्यवस्था को बनाने का प्रयास हमने प्रारंभ किया है, और मुझे पूरा भरोसा है कि ये जिम्मेदारी हिन्दुस्तान निभाएगा। दुनिया की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत इस काम को कर पाएगा।

एक जमाना था शिक्षा का महत्व था। अक्षर ज्ञान का महत्व था। पढ़ने-पढ़ाने का महत्व था। लेकिन वो युग बहुत पीछे रह गया है। आज कितने ही पढ़े-लिखे क्यों न हों, लेकिन अगर आप Information Technology और Computer से अनभिज्ञ हैं, अगर आपको अज्ञान है, तो कोई आपकों शिक्षित मानने को तैयार नहीं है। परिभाषा बदल गई है। और ये नई Technology की गति इतनी तेज है कि अगर आप Computer पर काम कर रहे हैं और अगर आपकी माता जी देखें, या दादी मां देखे, तो गर्व करें, कि “वाह बेटा तूझे इतना कुछ सारा आता है! कैसे करते हो?” लेकिन अगर आपका दस साल का पोता देख ले तो कहता है “क्या दादा! आपको कुछ नहीं आता है!” ये इतना अंतर है दो पीढ़ी में कि जिस काम के लिए आपकी दादी मां गर्व करती है कि मेरा पोता बहुत अच्छा जानता है, उसी व्यक्ति को उसी काम करता हुआ देख करके पोता कहता है कि “दादा तुम्हें कुछ नहीं आता है। आप अनपढ़ हो।“

आप कल्पना कर सकते हैं तीन पीढ़ी मौजूद हों तब कितने दायरे में ज्ञान विज्ञान और technology ने कितना बड़ा दायरा बदल दिया है। और तब जा करके, हम उससे अछूते नहीं रह सकते हैं। एक समय था गरीब और अमीर के बीच की खाई की चर्चा हुआ करती थी। Haves and have-nots की चर्चा हुआ करती दुनिया के अंदर। आने वाले उन दिनों में चर्चा होने वाली है Digital Divide की। और पूरा विश्व अगर Digital Divide का शिकार बन गया, तो जो पीछे रह गया है उसको आगे जाने में दम उखड़ जाएगा। और इसलिए कैसे भी करके दुनिया को इस Digital Divide के संकट से बचाना पड़ेगा। भारत ने कोशिश की है - Digital India का सपना देखा है। जैसे एक सपना देखा Skill India, दूसरा सपना देखा है Digital India. आधुनिक से आधुनिक विज्ञान, आधुनिक से आधुनिक टेक्नोलॉजी उसकी वहां अंगुलियां पर होनी चाहिए। वो सामर्थ्य में से होना चाहिए।

और भारतवासियों के संबंध में लोगों का देखने का दृष्टिकोण बहुत अलग है। मुझे एक घटना बराबर स्मरण आती है। मैं एक बार Taiwan गया था। Taiwan में जो उनका interpreter था, वो Computer Engineer था। और मेरी कोई वहां 7-8 दिन की वहां tour थी, तो मेरे साथ रहता था। वो Taiwanese Chinese language जो लोग उपयोग करते है, वह बोलता है तो मुझे वह interpret करता था, वही काम करता था। 24 घंटों मेरे साथ रहता था, तो धीरे-धीरे दोस्ती हो गई। दोस्ती हो गई तो एक दिन फिर हिम्मत करके उसने मुझसे पूछा, आखिर दिनों में, कि “मैं आपके एक बात पूंछू? आपको बुरा नहीं लगेगा न?”

मैंने कहा, “नहीं नहीं आप पूछिए।“

“नहीं-नहीं, आपको बुरा लग जाएगा।“

बेचारा संकोच कर रहा था पूछ नहीं रहा था। मैंने कहा “बताइए न क्या पूछना है?”

उसने कहा कि “हमने सुना है, पढ़ा है, कि हिन्दुस्तान तो जादू टोना करने वालों लोगों का देश है। Black Magic वालों का देश है। सांप-सपेरों का देश है।“

बोला “सचमुच में ऐसा देश है?”

मैंने कहा “मुझे देखकर क्या लगता है? मैं तो कोई जादू-वादू तो करता नहीं हूं।“

उसने कहा “नहीं, आपको देखने के बाद ही मन करता है कि पूंछू कि क्या है”

मैंने कहा “तुम्हारा सवाल सही है। एक ज़माना था, हमारे पूर्वज सांप-सपेरे की दुनिया में जीते थे। लेकिन अब हमारा बड़ा devaluation हो गया है। अब हमारे में वो सांप वाली ताकत रही नहीं। और इसलिए हम अब mouse से खेलते हैं।“

और हिन्दुस्तान का नवजान mouse पर उंगली दबार कर दुनिया को हिलाने की ताकत रखता है आज – ये सामर्थ्य हमने पैदा किया है। ये नया Digital World है। उसमें भारत के नवजानों ने अपना कमाल दिखाई है। लेकिन इतने से ही सीना तानकर रहने से काम नहीं चलने वाला है। हमने आने वाली शताब्दी के अनुसार को सज्य करना होगा, और वो हम अगर कर पाते हैं तो और नई ऊंचाईयों को पार करना होगा। और वो हम अगर कर पाते हैं तो हम विश्व को बहुत कुछ दे सकते हैं। हमारा प्रयास उस दिशा में है। हमने एक ऐसा अभियान चलाया है जो यहां हिन्दुस्तान के लोग रहते हैं उनकों जरूर मन को पसंद आया होगा। और वो है स्वच्छता का अभियान. Cleanliness. आपके बच्चें हिन्दुस्तान आने की बात होती होगी तो कहते होंगे "नहीं!" उनका नाक सिकुड जाता होगा। हम ऐसा देश बनाएंगे, आपके बच्चों को वहां आने का मन कर जाए। उसको नाक सिकुड़ने की इच्छा नहीं होगी। उसको आने का मन कर जाएगा ऐसा देश बनाना है। और उस दिशा में प्रयास कर रहे हैं।

आज सुबह में आया, यहां के सरकार ने बहुत ही स्वागत किया सम्मान किया। हमने कुछ घोषणाएं की हैं, कुछ निर्णय किए हैं। एक तो भारत की तरफ दुनिया का बहुत ध्यान है सारी दुनिया भारत की तरफ देख रही है - जाना चाहती हैं आना चाहती हैं। लेकिन आपको कभी-कभी लगता होगा कि अस्पताल जाना अच्छा है, embassy जाना बुरा है। मैं भले ही Fiji में पहली बार आया हूं, लेकिन आपकी पीड़ा का मुझे पता रहता है। लेकिन आप सज्जन लोग हैं इसलिए शिकायत करते नहीं हैं।

हमने निर्णय किया है, कि अब फिजी से और यह Pacific महासागर के टापूओं से आने वाले लोगों के लिए Visa-On-Arrival. बाते छोटी-छोटी होती है, लेकिन वो ही बदलाव लाती है। और उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

आज भारत ने यह भी कहा है कि फिजी मैं Small or Medium Level की जो industries हैं, उनको upgrade करने के लिए Five Million American Dollar फिजी को हम देंगे। फिजी के नागरिकों को भारत scholarships देती है, यहां के students को, यहां के Trainees को - हमने निर्णय किया है कि वो संख्या अब double कर दी जाएगी।

जो समुद्री तट पर रहने वाले देश हैं। भारत के पास भी बहुत बड़ा समुद्री तट है और जब Global Warming की चर्चा होती है तो समुद्री तट पर रहने वाले सबसे ज्यादा चिंतित होते हैं और कभी पढ़ ले Nostradamus की आघाई तो उनको तो कल ही दिखता है, कल ही डूबने वाला है। और कभी अख़बार में आ जाता है कि दो मीटर समुद्र चढ़ जाने वाला है और कभी तीन मीटर, तो वो सोचता है कि मेरा घर तो दूर ले जाओ भाई। एक बहुत बड़ा तनाव रहता है। और उसमें भी एक बार ज्यादा ही waves में उछाल आया तो यार लगता है कि अब तो आया, मौत सामने दिखती है। Global Warming की चिंता है। दुनिया को चिंता है। और ऐसी जगह पर रहने वालों को ज्यादा चिंता है। भारत भी उसमें से एक है। इसकी समस्या का समाधान खोजना पड़ेगा। हमारी जीवनशैली को बदलना पड़ेगा। Exploitation of the nature - यह crime है यह हमें स्वीकार करना पड़ेगा। Milking of nature - इतना ही मनुष्य को अधिकार है। Exploitation of the nature - मनुष्य को अधिकार नहीं है। तो जो बिगड़ा सो बिगड़ा, लेकिन आगे न बिगाड़े - यह जिम्मेवारी हमने निभानी होगी। पूरे विश्व को निभानी होगी। लेकिन जो बिगड़ा है उसको भी बनाने की कोशिश करनी होगी। और इसलिए इस बार हमने तय किया है - One million American dollar से एक Adaption Fund के रूप में एक fund बनाया जाएगा, ताकि इस भू-भाग में Technologically upgradation करके इस Global Warming के दु:भाव से कैसे बचा जा सके, यहाँ के जीवन को कैसे रक्षा मिले, उस दिशा में काम करने का हमने निर्णय किया है।

Global Warming की चर्चा करता हैं तो energy एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सबसे ज्यादा चिंता का विषय रहता है। और उसके लिए हमने तय किया है कि renewal energy हो, solar energy हो, wind energy हो, इसकी generation के लिए, इस प्रोजेक्ट को करने के लिए 70 Million American dollar का line of credit देने का।

फिजी की Parliament की Library आधुनिक बने, E-Library बने, उसकी जिम्मेवारी भी भारत लेगा ताकि, हां, उस Library का उपयोग हर कोई कर सके।

यहां राजदूत भवन बनाने का सोचा है। आप लोग मिलकर देखिए, बनाइये, हम लोग आपके साथ रहेंगे।

तो कई ऐसी बाते हैं जिसको ले करके हम देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का प्रयास... और वो मोदी नहीं कर रहा है, यह सवा सौ करोड़ देशवासी कर रहे हैं। हर हिंदुस्तानी के मन में जज्बा पैदा हुआ है - उसको लगता है “नहीं, मेरा देश ऐसा नहीं रहना चाहिए” । और कभी कभी तो लगता है कि लोग बहुत आगे है, सरकार बहुत पीछे है। लेकिन जिस तेज गति से आज देश चल पड़ा है। वो चलता रहेगा और भारत लोकतांत्रिक मूल्य के कारण, वसुधैव कुटुंभकम की भावना के कारण “सर्वे भवंतु सुखीना, सर्वे संतु निरमाहया” यह भाव के कारण, जिसकी सोच, जिसके विचार-आचार में यह चिंतन पडा है, वो अगर ताकतवर होता है, तो फिजी का भी भला होता है, इस उपखंड का भी भला होता है, मानवजाति का भी भला होता है। हरेक की भलाई में काम आने वाला देश बन सकता है। तो मैंने प्रारंभ में कहा था – वैश्विक दायित्व को निभाने के लिए राष्ट्र को तैयार होना चाहिए। और जिस दिशा में दुनिया जा रहा रही है, उसमें लगता है कि भारत मूलभूत चिंतन के द्वारा विश्व की बहुत बड़ी सेवा कर सकता है। और उस दिशा में काम करने का प्रयास चल रहा है।

मुझे आप सब के बीच आने का अवसर मिला। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। university को मैं मेरी शुभकामनाएं देता हूं। मैं चाहूंगा कि यहां से भी ऐसे रत्न पैदा हो, जो पूरी मानवजात की सेवा करने का सामर्थ्य रखते हो - ऐसी यहां की शिक्षा- दीक्षा बने।

बहुत-बहुत शुभकमानाएं।

धन्यवाद।

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उज्जनिर रायज केने आसे? आपुनालुकोलोई मुर अंतोरिक मोरोम आरु स्रद्धा जासिसु।

असम के गवर्नर लक्ष्मण प्रसाद आचार्य जी, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा जी, केंद्र में मेरे सहयोगी और यहीं के आपके प्रतिनिधि, असम के पूर्व मुख्यमंत्री, सर्बानंद सोनोवाल जी, असम सरकार के मंत्रीगण, सांसद, विधायक, अन्य महानुभाव, और विशाल संख्या में आए हुए, हम सबको आशीर्वाद देने के लिए आए हुए, मेरे सभी भाइयों और बहनों, जितने लोग पंडाल में हैं, उससे ज्यादा मुझे वहां बाहर दिखते हैं।

सौलुंग सुकाफा और महावीर लसित बोरफुकन जैसे वीरों की ये धरती, भीमबर देउरी, शहीद कुसल कुवर, मोरान राजा बोडौसा, मालती मेम, इंदिरा मिरी, स्वर्गदेव सर्वानंद सिंह और वीरांगना सती साध`नी की ये भूमि, मैं उजनी असम की इस महान मिट्टी को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।

साथियों,

मैं देख रहा हूँ, सामने दूर-दूर तक आप सब इतनी बड़ी संख्या में अपना उत्साह, अपना उमंग, अपना स्नेह बरसा रहे हैं। और खासकर, मेरी माताएँ बहनें, इतनी विशाल संख्या में आप जो प्यार और आशीर्वाद लेकर आईं हैं, ये हमारी सबसे बड़ी शक्ति है, सबसे बड़ी ऊर्जा है, एक अद्भुत अनुभूति है। मेरी बहुत सी बहनें असम के चाय बगानों की खुशबू लेकर यहां उपस्थित हैं। चाय की ये खुशबू मेरे और असम के रिश्तों में एक अलग ही ऐहसास पैदा करती है। मैं आप सभी को प्रणाम करता हूँ। इस स्नेह और प्यार के लिए मैं हृदय से आप सबका आभार करता हूँ।

साथियों,

आज असम और पूरे नॉर्थ ईस्ट के लिए बहुत बड़ा दिन है। नामरूप और डिब्रुगढ़ को लंबे समय से जिसका इंतज़ार था, वो सपना भी आज पूरा हो रहा है, आज इस पूरे इलाके में औद्योगिक प्रगति का नया अध्याय शुरू हो रहा है। अभी थोड़ी देर पहले मैंने यहां अमोनिया–यूरिया फर्टिलाइज़र प्लांट का भूमि पूजन किया है। डिब्रुगढ़ आने से पहले गुवाहाटी में एयरपोर्ट के एक टर्मिनल का उद्घाटन भी हुआ है। आज हर कोई कह रहा है, असम विकास की एक नई रफ्तार पकड़ चुका है। मैं आपको बताना चाहता हूँ, अभी आप जो देख रहे हैं, जो अनुभव कर रहे हैं, ये तो एक शुरुआत है। हमें तो असम को बहुत आगे लेकर के जाना है, आप सबको साथ लेकर के आगे बढ़ना है। असम की जो ताकत और असम की भूमिका ओहोम साम्राज्य के दौर में थी, विकसित भारत में असम वैसी ही ताकतवर भूमि बनाएंगे। नए उद्योगों की शुरुआत, आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, Semiconductors, उसकी manufacturing, कृषि के क्षेत्र में नए अवसर, टी-गार्डेन्स और उनके वर्कर्स की उन्नति, पर्यटन में बढ़ती संभावनाएं, असम हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। मैं आप सभी को और देश के सभी किसान भाई-बहनों को इस आधुनिक फर्टिलाइज़र प्लांट के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। मैं आपको गुवाहटी एयरपोर्ट के नए टर्मिनल के लिए भी बधाई देता हूँ। बीजेपी की डबल इंजन सरकार में, उद्योग और कनेक्टिविटी की ये जुगलबंदी, असम के सपनों को पूरा कर रही है, और साथ ही हमारे युवाओं को नए सपने देखने का हौसला भी दे रही है।

साथियों,

विकसित भारत के निर्माण में देश के किसानों की, यहां के अन्नदाताओं की बहुत बड़ी भूमिका है। इसलिए हमारी सरकार किसानों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए दिन-रात काम कर रही है। यहां आप सभी को किसान हितैषी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। कृषि कल्याण की योजनाओं के बीच, ये भी जरूरी है कि हमारे किसानों को खाद की निरंतर सप्लाई मिलती रहे। आने वाले समय में ये यूरिया कारख़ाना यह सुनिश्चित करेगा। इस फर्टिलाइज़र प्रोजेक्ट पर करीब 11 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। यहां हर साल 12 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा खाद बनेगी। जब उत्पादन यहीं होगा, तो सप्लाई तेज होगी। लॉजिस्टिक खर्च घटेगा।

साथियों,

नामरूप की ये यूनिट रोजगार-स्वरोजगार के हजारों नए अवसर भी बनाएगी। प्लांट के शुरू होते ही अनेकों लोगों को यहीं पर स्थायी नौकरी भी मिलेगी। इसके अलावा जो काम प्लांट के साथ जुड़ा होता है, मरम्मत हो, सप्लाई हो, कंस्ट्रक्शन का बहुत बड़ी मात्रा में काम होगा, यानी अनेक काम होते हैं, इन सबमें भी यहां के स्थानीय लोगों को और खासकर के मेरे नौजवानों को रोजगार मिलेगा।

लेकिन भाइयों बहनों,

आप सोचिए, किसानों के कल्याण के लिए काम बीजेपी सरकार आने के बाद ही क्यों हो रहा है? हमारा नामरूप तो दशकों से खाद उत्पादन का केंद्र था। एक समय था, जब यहां बनी खाद से नॉर्थ ईस्ट के खेतों को ताकत मिलती थी। किसानों की फसलों को सहारा मिलता था। जब देश के कई हिस्सों में खाद की आपूर्ति चुनौती बनी, तब भी नामरूप किसानों के लिए उम्मीद बना रहा। लेकिन, पुराने कारखानों की टेक्नालजी समय के साथ पुरानी होती गई, और काँग्रेस की सरकारों ने कोई ध्यान नहीं दिया। नतीजा ये हुआ कि, नामरूप प्लांट की कई यूनिट्स इसी वजह से बंद होती गईं। पूरे नॉर्थ ईस्ट के किसान परेशान होते रहे, देश के किसानों को भी तकलीफ हुई, उनकी आमदनी पर चोट पड़ती रही, खेती में तकलीफ़ें बढ़ती गईं, लेकिन, काँग्रेस वालों ने इस समस्या का कोई हल ही नहीं निकाला, वो अपनी मस्ती में ही रहे। आज हमारी डबल इंजन सरकार, काँग्रेस द्वारा पैदा की गई उन समस्याओं का समाधान भी कर रही है।

साथियों,

असम की तरह ही, देश के दूसरे राज्यों में भी खाद की कितनी ही फ़ैक्टरियां बंद हो गईं थीं। आप याद करिए, तब किसानों के क्या हालात थे? यूरिया के लिए किसानों को लाइनों में लगना पड़ता था। यूरिया की दुकानों पर पुलिस लगानी पड़ती थी। पुलिस किसानों पर लाठी बरसाती थी।

भाइयों बहनों,

काँग्रेस ने जिन हालातों को बिगाड़ा था, हमारी सरकार उन्हें सुधारने के लिए एडी-चोटी की ताकत लगा रही है। और इन्होंने इतना बुरा किया,इतना बुरा किया कि, 11 साल से मेहनत करने के बाद भी, अभी मुझे और बहुत कुछ करना बाकी है। काँग्रेस के दौर में फर्टिलाइज़र्स फ़ैक्टरियां बंद होती थीं। जबकि हमारी सरकार ने गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी, रामागुंडम जैसे अनेक प्लांट्स शुरू किए हैं। इस क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। आज इसी का नतीजा है, हम यूरिया के क्षेत्र में आने वाले कुछ समय में आत्मनिर्भर हो सके, उस दिशा में मजबूती से कदम रख रहे हैं।

साथियों,

2014 में देश में सिर्फ 225 लाख मीट्रिक टन यूरिया का ही उत्पादन होता था। आपको आंकड़ा याद रहेगा? आंकड़ा याद रहेगा? मैं आपने मुझे काम दिया 10-11 साल पहले, तब उत्पादन होता था 225 लाख मीट्रिक टन। ये आंकड़ा याद रखिए। पिछले 10-11 साल की मेहनत में हमने उत्पादन बढ़ाकर के करीब 306 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है। लेकिन हमें यहां रूकना नहीं है, क्योंकि अभी भी बहुत करने की जरूरत है। जो काम उनको उस समय करना था, नहीं किया, और इसलिए मुझे थोड़ा एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ रही है। और अभी हमें हर साल करीब 380 लाख मीट्रिक टन यूरिया की जरूरत पड़ती है। हम 306 पर पहुंचे हैं, 70-80 और करना है। लेकिन मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं, हम जिस प्रकार से मेहनत कर रहे हैं, जिस प्रकार से योजना बना रहे हैं और जिस प्रकार से मेरे किसान भाई-बहन हमें आशीर्वाद दे रहे हैं, हम हो सके उतना जल्दी इस गैप को भरने में कोई कमी नहीं रखेंगे।

और भाइयों और बहनों,

मैं आपको एक और बात बताना चाहता हूं, आपके हितों को लेकर हमारी सरकार बहुत ज्यादा संवेदनशील है। जो यूरिया हमें महंगे दामों पर विदेशों से मंगाना पड़ता है, हम उसकी भी चोट अपने किसानों पर नहीं पड़ने देते। बीजेपी सरकार सब्सिडी देकर वो भार सरकार खुद उठाती है। भारत के किसानों को सिर्फ 300 रुपए में यूरिया की बोरी मिलती है, उस एक बोरी के बदले भारत सरकार को दूसरे देशों को, जहां से हम बोरी लाते हैं, करीब-करीब 3 हजार रुपए देने पड़ते हैं। अब आप सोचिए, हम लाते हैं 3000 में, और देते हैं 300 में। यह सारा बोझ देश के किसानों पर हम नहीं पड़ने देते। ये सारा बोझ सरकार खुद भरती है। ताकि मेरे देश के किसान भाई बहनों पर बोझ ना आए। लेकिन मैं किसान भाई बहनों को भी कहूंगा, कि आपको भी मेरी मदद करनी होगी और वह मेरी मदद है इतना ही नहीं, मेरे किसान भाई-बहन आपकी भी मदद है, और वो है यह धरती माता को बचाना। हम धरती माता को अगर नहीं बचाएंगे तो यूरिया की कितने ही थैले डाल दें, यह धरती मां हमें कुछ नहीं देगी और इसलिए जैसे शरीर में बीमारी हो जाए, तो दवाई भी हिसाब से लेनी पड़ती है, दो गोली की जरूरत है, चार गोली खा लें, तो शरीर को फायदा नहीं नुकसान हो जाता है। वैसा ही इस धरती मां को भी अगर हम जरूरत से ज्यादा पड़ोस वाला ज्यादा बोरी डालता है, इसलिए मैं भी बोरी डाल दूं। इस प्रकार से अगर करते रहेंगे तो यह धरती मां हमसे रूठ जाएगी। यूरिया खिला खिलाकर के हमें धरती माता को मारने का कोई हक नहीं है। यह हमारी मां है, हमें उस मां को भी बचाना है।

साथियों,

आज बीज से बाजार तक भाजपा सरकार किसानों के साथ खड़ी है। खेत के काम के लिए सीधे खाते में पैसे पहुंचाए जा रहे हैं, ताकि किसान को उधार के लिए भटकना न पड़े। अब तक पीएम किसान सम्मान निधि के लगभग 4 लाख करोड़ रुपए किसानों के खाते में भेजे गए हैं। आंकड़ा याद रहेगा? भूल जाएंगे? 4 लाख करोड़ रूपया मेरे देश के किसानों के खाते में सीधे जमा किए हैं। इसी साल, किसानों की मदद के लिए 35 हजार करोड़ रुपए की दो योजनाएं नई योजनाएं शुरू की हैं 35 हजार करोड़। पीएम धन धान्य कृषि योजना और दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, इससे खेती को बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

हम किसानों की हर जरूरत को ध्यान रखते हुए काम कर रहे हैं। खराब मौसम की वजह से फसल नुकसान होने पर किसान को फसल बीमा योजना का सहारा मिल रहा है। फसल का सही दाम मिले, इसके लिए खरीद की व्यवस्था सुधारी गई है। हमारी सरकार का साफ मानना है कि देश तभी आगे बढ़ेगा, जब मेरा किसान मजबूत होगा। और इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

साथियों,

केंद्र में हमारी सरकार बनने के बाद हमने किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा से पशुपालकों और मछलीपालकों को भी जोड़ दिया था। किसान क्रेडिट कार्ड, KCC, ये KCC की सुविधा मिलने के बाद हमारे पशुपालक, हमारे मछली पालन करने वाले इन सबको खूब लाभ उठा रहा है। KCC से इस साल किसानों को, ये आंकड़ा भी याद रखो, KCC से इस साल किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद दी गई है। 10 लाख करोड़ रुपया। बायो-फर्टिलाइजर पर GST कम होने से भी किसानों को बहुत फायदा हुआ है। भाजपा सरकार भारत के किसानों को नैचुरल फार्मिंग के लिए भी बहुत प्रोत्साहन दे रही है। और मैं तो चाहूंगा असम के अंदर कुछ तहसील ऐसे आने चाहिए आगे, जो शत प्रतिशत नेचुरल फार्मिंग करते हैं। आप देखिए हिंदुस्तान को असम दिशा दिखा सकता है। असम का किसान देश को दिशा दिखा सकता है। हमने National Mission On Natural Farming शुरू की, आज लाखों किसान इससे जुड़ चुके हैं। बीते कुछ सालों में देश में 10 हजार किसान उत्पाद संघ- FPO’s बने हैं। नॉर्थ ईस्ट को विशेष ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने खाद्य तेलों- पाम ऑयल से जुड़ा मिशन भी शुरू किया। ये मिशन भारत को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर तो बनाएगा ही, यहां के किसानों की आय भी बढ़ाएगा।

साथियों,

यहां इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में हमारे टी-गार्डन वर्कर्स भी हैं। ये भाजपा की ही सरकार है जिसने असम के साढ़े सात लाख टी-गार्डन वर्कर्स के जनधन बैंक खाते खुलवाए। अब बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ने की वजह से इन वर्कर्स के बैंक खातों में सीधे पैसे भेजे जाने की सुविधा मिली है। हमारी सरकार टी-गार्डन वाले क्षेत्रों में स्कूल, रोड, बिजली, पानी, अस्पताल की सुविधाएं बढ़ा रही है।

साथियों,

हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ आगे बढ़ रही है। हमारा ये विजन, देश के गरीब वर्ग के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया है। पिछले 11 वर्षों में हमारे प्रयासों से, योजनाओं से, योजनाओं को धरती पर उतारने के कारण 25 करोड़ लोग, ये आंकड़ा भी याद रखना, 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। देश में एक नियो मिडिल क्लास तैयार हुआ है। ये इसलिए हुआ है, क्योंकि बीते वर्षों में भारत के गरीब परिवारों के जीवन-स्तर में निरंतर सुधार हुआ है। कुछ ताजा आंकड़े आए हैं, जो भारत में हो रहे बदलावों के प्रतीक हैं।

साथियों,

और मैं मीडिया में ये सारी चीजें बहुत काम आती हैं, और इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं मैं जो बातें बताता हूं जरा याद रख के औरों को बताना।

साथियों,

पहले गांवों के सबसे गरीब परिवारों में, 10 परिवारों में से 1 के पास बाइक तक होती नहीं थी। 10 में से 1 के पास भी नहीं होती थी। अभी जो सर्वे आए हैं, अब गांव में रहने वाले करीब–करीब आधे परिवारों के पास बाइक या कार होती है। इतना ही नहीं मोबाइल फोन तो लगभग हर घर में पहुंच चुके हैं। फ्रिज जैसी चीज़ें, जो पहले “लग्ज़री” मानी जाती थीं, अब ये हमारे नियो मिडल क्लास के घरों में भी नजर आने लगी है। आज गांवों की रसोई में भी वो जगह बना चुका है। नए आंकड़े बता रहे हैं कि स्मार्टफोन के बावजूद, गांव में टीवी रखने का चलन भी बढ़ रहा है। ये बदलाव अपने आप नहीं हुआ। ये बदलाव इसलिए हुआ है क्योंकि आज देश का गरीब सशक्त हो रहा है, दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीब तक भी विकास का लाभ पहुंचने लगा है।

साथियों,

भाजपा की डबल इंजन सरकार गरीबों, आदिवासियों, युवाओं और महिलाओं की सरकार है। इसीलिए, हमारी सरकार असम और नॉर्थ ईस्ट में दशकों की हिंसा खत्म करने में जुटी है। हमारी सरकार ने हमेशा असम की पहचान और असम की संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। भाजपा सरकार असमिया गौरव के प्रतीकों को हर मंच पर हाइलाइट करती है। इसलिए, हम गर्व से महावीर लसित बोरफुकन की 125 फीट की प्रतिमा बनाते हैं, हम असम के गौरव भूपेन हजारिका की जन्म शताब्दी का वर्ष मनाते हैं। हम असम की कला और शिल्प को, असम के गोमोशा को दुनिया में पहचान दिलाते हैं, अभी कुछ दिन पहले ही Russia के राष्ट्रपति श्रीमान पुतिन यहां आए थे, जब दिल्ली में आए, तो मैंने बड़े गर्व के साथ उनको असम की ब्लैक-टी गिफ्ट किया था। हम असम की मान-मर्यादा बढ़ाने वाले हर काम को प्राथमिकता देते हैं।

लेकिन भाइयों बहनों,

भाजपा जब ये काम करती है तो सबसे ज्यादा तकलीफ काँग्रेस को होती है। आपको याद होगा, जब हमारी सरकार ने भूपेन दा को भारत रत्न दिया था, तो काँग्रेस ने खुलकर उसका विरोध किया था। काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा था कि, मोदी नाचने-गाने वालों को भारत रत्न दे रहा है। मुझे बताइए, ये भूपेन दा का अपमान है कि नहीं है? कला संस्कृति का अपमान है कि नहीं है? असम का अपमान है कि नहीं है? ये कांग्रेस दिन रात करती है, अपमान करना। हमने असम में सेमीकंडक्टर यूनिट लगवाई, तो भी कांग्रेस ने इसका विरोध किया। आप मत भूलिए, यही काँग्रेस सरकार थी, जिसने इतने दशकों तक टी कम्यूनिटी के भाई-बहनों को जमीन के अधिकार नहीं मिलने दिये! बीजेपी की सरकार ने उन्हें जमीन के अधिकार भी दिये और गरिमापूर्ण जीवन भी दिया। और मैं तो चाय वाला हूं, मैं नहीं करूंगा तो कौन करेगा? ये कांग्रेस अब भी देशविरोधी सोच को आगे बढ़ा रही है। ये लोग असम के जंगल जमीन पर उन बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाना चाहते हैं। जिनसे इनका वोट बैंक मजबूत होता है, आप बर्बाद हो जाए, उनको इनकी परवाह नहीं है, उनको अपनी वोट बैंक मजबूत करनी है।

भाइयों बहनों,

काँग्रेस को असम और असम के लोगों से, आप लोगों की पहचान से कोई लेना देना नहीं है। इनको केवल सत्ता,सरकार और फिर जो काम पहले करते थे, वो करने में इंटरेस्ट है। इसीलिए, इन्हें अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए ज्यादा अच्छे लगते हैं। अवैध घुसपैठियों को काँग्रेस ने ही बसाया, और काँग्रेस ही उन्हें बचा रही है। इसीलिए, काँग्रेस पार्टी वोटर लिस्ट के शुद्धिकरण का विरोध कर रही है। तुष्टीकरण और वोटबैंक के इस काँग्रेसी जहर से हमें असम को बचाकर रखना है। मैं आज आपको एक गारंटी देता हूं, असम की पहचान, और असम के सम्मान की रक्षा के लिए भाजपा, बीजेपी फौलाद बनकर आपके साथ खड़ी है।

साथियों,

विकसित भारत के निर्माण में, आपके ये आशीर्वाद यही मेरी ताकत है। आपका ये प्यार यही मेरी पूंजी है। और इसीलिए पल-पल आपके लिए जीने का मुझे आनंद आता है। विकसित भारत के निर्माण में पूर्वी भारत की, हमारे नॉर्थ ईस्ट की भूमिका लगातार बढ़ रही है। मैंने पहले भी कहा है कि पूर्वी भारत, भारत के विकास का ग्रोथ इंजन बनेगा। नामरूप की ये नई यूनिट इसी बदलाव की मिसाल है। यहां जो खाद बनेगी, वो सिर्फ असम के खेतों तक नहीं रुकेगी। ये बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक पहुंचेगी। ये कोई छोटी बात नहीं है। ये देश की खाद जरूरत में नॉर्थ ईस्ट की भागीदारी है। नामरूप जैसे प्रोजेक्ट, ये दिखाते हैं कि, आने वाले समय में नॉर्थ ईस्ट, आत्मनिर्भर भारत का बहुत बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा। सच्चे अर्थ में अष्टलक्ष्मी बन के रहेगा। मैं एक बार फिर आप सभी को नए फर्टिलाइजर प्लांट की बधाई देता हूं। मेरे साथ बोलिए-

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

और इस वर्ष तो वंदे मातरम के 150 साल हमारे गौरवपूर्ण पल, आइए हम सब बोलें-

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।