Our tribal communities have faced several challenges. But, they are blessed with the strength to overcome any obstacle: PM
Tribal communities should get their rights. No one has right to snatch their lands: PM
With Vanbandhu Kalyan Yojana, we want to ensure that the tribal communities are not deprived of their priorities: PM Modi
If there is someone who saved the forests it is our tribal community: PM Modi

देश के इतिहास में पहली बार, देश के कोने कोने से आए हुए आदिवासी भाइयों और बहनों के बीच राजधानी दिल्ली में दीपावली मनाई जाएगी। करीब चार दिन दिल्ली इस बात को अनुभव करेगा कि भारत कितना विशाल है, भारत कितनी विविधताओं से भरा हुआ है और जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे आदिवासी भाई बहनों में कितना सामर्थ्य है कितनी शक्ति है। देश के लिए कुछ न कुछ करने के लिए दूर-सुदूर जंगलों में रहते हुए भी वो कितना बड़ा योगदान दे रहे हैं ये दिल्ली पहली बार अनुभव करेगा।

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। 'बीस गांव- बोली बदल जाए' ये हमारे यहां पुरानी कहावत है लेकिन हमने यहां उसकी झलक देखी। झलक भर ही थी, अगर देश भर से आए सभी आदिवासी कलाकारों को देखना होता तो शायद सुबह से शाम तय ये मेला यहां चलता रहता, तब भी शायद पूरा नहीं होता। कभी कभी शहर में रहने वाले लोगों पर छोटी सी भी मुसीबत आ जाए, उनकी इच्छा के विपरीत कुछ हो जाए, कल्पना के अनुकूल परिणाम न मिले, तो न जाने कितनी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, डिप्रेशन में चले जाते हैं और कुछ लोग तो आत्महत्या करने का रास्ता भी चुन लेते हैं। जरा मेरे इन आदिवासी भाइयों बहनों को देखिए, अगर अभाव की बात करें तो डगर डगर पर अभाव उन इलाकों में होता है, जिंदगी को हर पल जूझना पड़ता है। जिंदगी जीने के अवसर कम और जूझने में समय ज्यादा लगता है। लेकिन उसके बावजूद भी उन्होंने जिंदगी जीने का कैसा तरीका बनाया है - हर पल खुशी, हर पल नाचना-गाना, समूह में जीना, कदम से कदम मिलाकर चलना ये आदिवासी समाज ने अपने जेहन में उतार के रखा हुआ है। वे कठिनाइयों को भी जीना जानते हैं। कठिनाइयों में से भी जिंदगी में जुनून भरने का वो माद्दा रखते हैं।

मेरा ये सौभाग्य रहा कि जवानी के उत्तम वर्ष मुझे आदिवासियों के बीच सामाजिक कार्यों में खपाने का अवसर मिला था। आदिवासी जीवन को बहुत निकटता से देखने का मुझे सौभाग्य मिला है। जब आप बातें करते हो तो घंटे भर में बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से कोई शिकायत निकाल पाते हो। वे शिकायत करना जानते ही नहीं हैं। संकटों में जीना, अभाव के बीच आनंद को कैसे उभारना, ये हम शहर में रहने वालों को अगर सीखना है तो मेरे आदिवासी भाइयों से बड़ा कोई गुरु नहीं हो सकता है।

कला और संगीत इनको अद्भुत देन होती है। अपनी बोली, अपनी परंपरा, अपनी वेशभूषा, उसमें भी समय अनुकूल नए रंग भरते जाना लेकिन अपनेपन को खोने नहीं देना ऐसी कला शायद ही कोई बता सकता है। ये सामर्थ्य अपने देश का है। ये सामर्थ्य हमारी जनशक्ति का परिचायक है और इसलिए भारत जैसे विशाल देश में इन विविधताओं को संजोए रखना, इन विविधताओं का आदर करना, इनका समन्वय करना और इन विविधताओं में भारत की एकता को गुलाबी फूल के रूप में अनुभव करना, यही देश की ताकत को बढ़ाता है।

हम लोगों को ज्यादा पता कभी होता नहीं है, जंगल की सामान्य चीजों से, जैसे अगर बांस ही ले लिया जाए, हमारे आदिवासी भाई बांस में से ऐसी ऐसी चीजें बनाते हैं कि फाइव स्टार होटल में उसे जगह मिल जाए तो मेहमान चकित रह जाते हैं कि वाह कैसे बना होगा? किसी मशीन से बना होगा क्या? जंगलों में आदिवासियों के द्वारा जो उत्पादित चीजें होती हैं जो सामान्य जीवन में काम आती हैं लेकिन उसकी जितनी बड़ी मात्रा में मार्केटिंग होनी चाहिए, ब्रांडिंग होनी चाहिए, आर्थिक दृष्टि से नए अवसर को पैदा करने वाला होना चाहिए, उस दिशा में हमें अभी भी बहुत करना बाकी है।

सारे देश से आदिवासी आए हैं। अपने इन उत्पादों को लेकर भी आए हैं। देश के कोने कोने में आदिवासी भाई बहन कैसी-कैसी चीजें उत्पादित करते हैं और हमारे घरों में, व्यापार में, दुकान में, सजावट में कैसे उसका उपयोग हो सकता है, उसके लिए बहुत बड़ा अवसर प्रगति मैदान में उपलब्ध हुआ है। जितनी बड़ी मात्रा में हम खरीद करेंगे वो जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासी भाई बहनों के जीवन में आर्थिक रूप से ताकत देगा। अवसर मात्र ये ही नहीं है कि दिल्ली सिर्फ उनके गीत संगीत को अनुभव करे, बल्कि उनके आर्थिक सामर्थ्य की जो ताकत है, उसको भी हम भली-भांति समझें और उस आर्थिक ताकत को बल दें, उस दिशा में हम प्रयास करें।

मुझे कुछ समय पहले सिक्किम जाने का अवसर मिला। वहां एक युवक युवती से मेरा परिचय हुआ। पहनावे से तो लगता था कि वे किसी बड़े शहर से आए हुए हैं। मैं उनके पास गया मैंने पूछा तो दोनों कह रहे थे दोनों अलग राज्यों से थे, दोनों अलग-अलग आईआईएम में पढ़े लिखे थे। मैंने कहा, यहां सिक्किम देखने आए हो क्या? उन्होंने कहा, “जी नहीं, हम तो डेढ़ साल से यहां रह रहे हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद हम सिक्किम चले आए और यहां पहाड़ों में रहने वाले जो हमारे गरीब किसान भाई हैं जो चीजें उत्पादित करते हैं उसकी हम पैकेजिंग करते हैं, ब्रांडिंग करते हैं और हम विदेशों में भेजने का काम करते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं? आईआईएम में पढ़े लिखे दो बच्चे उस ताकत को जान गए और उन्होंने अपना एक बहुत बड़ा स्टार्टअप वहां खड़ा कर दिया। दुनिया के बाजारों में वहां से प्रोडक्ट पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं।

अगर कोई जाता वहां तो पता नहीं चलता कि इतना सामर्थ्य पड़ा हुआ है? आज भी दुनिया में धीरे धीरे होलिस्टिक हेल्थकेयर की तरफ लोगों का ध्यान जाने लगा है। पारंपरिक चिकित्सा की तरफ दुनिया आकर्षित होने लगी है। हम आदिवासी भाइयों के बीच जाएं तो जंगलों से जड़ी बूटी लेकर के तुरंत दवाई बनाकर आपको दे देते हैं, “अच्छा भाई बुखार है चिंता मत करो घंटे भर में ठीक हो जाएगा”, और वो जड़ी बूटी से रस निकालकर के पिला देते हैं। ये कौन सी विधा इनके पास है?

ये परंपरागत सामर्थ्य है जिसे हमें पहचानना, आधुनिक स्वरूप में ढालना, दुनिया जिस मेडिकल साइंस को समझती है उसमें उसको प्रतिबिंबित करना है। ये हमारी मेडिसिन जिसके धनी हमारे आदिवासी भाई बहन हैं, उनके माध्यम से हमें इस सारी शक्ति को जानने पहचानने और विश्व के सामने रखने का एक बहुत बड़ा अवसर है। ऐसे लोग भी यहां आए हैं जिन्हें जंगल में पड़ी हुई जड़ी-बूटियों के अंदर की औषधीय ताकत की पहचान है। उन चीजों का क्या उपयोग हो सकता है, उसे वो दिखा सकते हैं।

अभी यहां गुजरात के कलाकार अपनी कला दिखा रहे थे। एक डांग जिला है वहां, छोटा सा, आदिवासी बस्ती है। मैं बहुत वर्षों पहले वहां काम करता था। तब तो मेरा राजनीति से कोई लेना देना भी नहीं था। बीच में जब मुख्यमंत्री के तौर पर मेरा वहां जाना होता था तो मैं हैरान था, वहां एक अन्न पैदा होता है - नागली। ये आयरन रिच होता है। हमारे यहां कुपोषण, खासकर महिलाओं को जो समस्या रहती है, जिनमें आयरन की कमी होती है उकी पूर्ति के लिए नागली आयरन से भरपूर होता है। लेकिन आज से 30-35 साल पहले जब मैं जाता था तो काले रंग की नागली होती थी और उसकी जो रोटी बनाते थे, वो काली बनती थी। जब मेरा मुख्यमंत्री के तौर पर जाना हुआ तो मैंने स्वाभाविक कहा, हम तो नागली खाएंगे आए हैं तो, लेकिन इस बार वो नागली की रोटी सफेद थी। मुझे जरा आश्चर्य हुआ। दरअसल उन आदिवासियों ने उसमें कोई न कोई रिसर्च करके उसे काली से सफेद नागली के रूप में उत्पादित करने की दिशा में सफलता पाई थी।

यानी जो बड़े बड़े साइंटिस्ट जेनेटिक्स इंजीनियरिंग करते हैं, मेरा आदिवासी भाई जेनेटिक हस्तक्षे से परिवर्तन ला सकता है। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि कितना सामर्थ्य पड़ा हुआ है। इस सामर्थ्य को हमें पहचानने की आवश्यकता है। हमारे देश में इतनी बड़ी आदिवासी जनसंख्या है लेकिन भारत सरकार में जनजातियों के लिए कोई अलग मंत्रालय नहीं था। मैं आज जब बड़े जनजातीय समुदाय के बीच खड़ा हूं तब बड़े आदरपूर्वक भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन करना चाहता हूं, उनका अभिनंदन करना चाहता हूं कि आजादी के पचास साल बाद पहली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार बनी तब पहली बार जनजाति के लिए देश में अलग मंत्रालय बना और हमारे जुएल जी उसके पहले मंत्री हिंदुस्तान में बने।

तब से लेकर के जनजातीय क्षेत्रों के विकास, जनजातीय समुदायों के विकास, जनजातीय समाज की शक्ति को पहचानना, उसकी सामर्थ्य देने पर अलग अलग प्रकार के प्रकल्प चल रहे हैं। धन खर्च होता है लेकिन परिणाम नजर क्यों नहीं आता है? और सका मूल कारण यह है कि जब तक हम हमारी योजनाएं, खासकर जनजातीय समुदायों में, दिल्ली के एयर कंडीशन कमरों में बैठकर के या राज्यों की राजधानी के एयर कंडीशन कमरों में बैठकर हम उसके ख़ाके तैयार करेंगे तो जनजातीय समुदायों में हम जो चाहते हैं वो बदलाव हीं आ सकता है वो बदलाव तब आता है कि नीचे से ऊपर जनजातीय समुदाय अपने इलाके में क्या चाहता है, उसकी प्राथमिकता क्या है, उसके आधार पर अगर बजट का आवंटन होगा और समय सीमा में उन प्रकल्पों को पूरा करने के लिए, उन जनजातीय समुदायों को हिस्सेदार बनाने दिया जाएगा तो आप देखेंगे कि देखते ही देखते बदलाव आना शुरू हो जाएगा।

हम भारत सरकार की वन बंधु कल्याण योजना लाए हैं। आज जनजातीय समुदाय के बीच करीब सरकार के 28 से ज्यादा विभाग काम का कोई न कोई जिम्मा लेकर बैठे हैं और होता क्या है? एक विभाग एक गांव में काम करता है, दूसरा विभाग दूसरे गांव में काम करता है, न कोई परिवर्तन दिखता है न कोई प्रभाव नजर आता है। और इसलिए वन बंधु कल्याण योजना के अंतर्गत इन सभी विभागों की योजनाएं.. योजनाएं चलती रहें लेकिन केंद्रित रूप से उन जनजातीय समुदाओं की आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए प्रकल्पों को लागू करे, उस पर एक बड़ा काम चल रहा है, जिसके अच्छे परिणाम नजर आ रहे हैं अब जनजातीय समुदाय भागीदार हो रहा है वो निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बन रहा है। ये मूलभूत परिवर्तन है और इसके कारण धन का सही-सही उपयोग, उसके विकास के लिए होना है

हमारे देश में कभी बड़े-बड़े लोगों को लगता है, बड़े-बड़े पर्यावरणविद् मिलते हैं तो कहते हैं जंगलों की रक्षा करनी है, वनों की रक्षा करनी है मैं अनुभव के साथ कता हूं अगर वनों को किसी ने बचाया है तो मेरे जनजातीय समुदायों ने बचाया है वो सब दे देगा लेकिन जंगल को तबाह नहीं होने देगा ये उसके संस्कार में होता है अगर हमें जंगलों की रक्षा करनी है तो जनजातीय समुदायों से बड़ा हमारा कोई रक्षक नहीं हो सकता है। इस विचार को प्राथमिकता देना के लिए हमारा प्रयास है

सालों से, पीढ़ियों से, जंगल को बचाए रखते हुए अपना पेट पालने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में वो खेती करता है उसके पास कोई कागज है, न लिखा-पट्टी है, न किसी का कुछ दिया हुआ है, जो है वो  सदियों से अपने पूर्वजों का परिणाम है लेकिन अब सरकारें बदल रही हैं, संविधान, कानून, नियम और उसके कारण कभी-कभी जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे आदिवासी भाइयों को परेशानी झेलनी पड़ती है भारत सरकार लगातार राज्यों के सहयोग से आदिवासियों को जमीन के पट्‌टे देने का बड़ा अभियान चला रही है और दिवासियों को उनका हक मिलना चाहिए। ये हमारी प्राथमिकता है। आदिवासियों की जमीन छीनने का इस देश में किसी को अधिकार नहीं होना चाहिए, किसी को अवसर नहीं होना चाहिए, ये हमारी प्रतिबद्धता है। और उस दिशा में सरकार कठोर से कठोर कार्रवाही करने के पक्ष में हैं और उसको हम कर रहे हैं।

उसी प्रकार से आदिवासियों को जमीन का हक भी मिलना चाहिए क्योंकि जमीन ही उसकी जिंदगी है, जंगल ही उसकी जिंदगी है, जंगल ही उसका ईश्वर है,  उपासना है, उससे उसको अलग नहीं किया जा सकता। हमारे देश में प्राकृतिक संपदा है चाहे कोयला है, चाहे लौह अयस्क हों और अन्य प्राकृतिक संपदाएं हों, ज्यादातर हमारी प्राकृतिक संपदाएं और जंगल और जनजातीय समुदाय तीनों साथ-साथ हैं। जहां जंगल हैं वहां जनजातीय समुदाय हैं और उन जंगलों में ही प्राकृतिक संपदाएं हैं। अब कोयले के बिना तो चलना नहीं उसे तो निकालना ही पड़ेगा लौह अयस्क के बिना चलना नहीं, उसे निकालना तो पड़ेगा देश को आगे बढ़ाना है तो संपदा का वैल्यू एडिशन करना ही पड़ेगा। लेकिन वो जनजातीय समुदाय का शोषण करके नहीं होना चाहिए, उनके हकों को अबाधित रखते हुए होना चाहिए। पहली बार पिछले बजट में भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया जिसका सीधा-सीधा लाभ जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले हमारे जनजातीय समुदाय को मिला हमने क्या किया? ये जंगलों से जो भी प्राकृतिक संपदा निकलती है, जो खनिज संपदा निकलती हैं उस पर कुछ प्रतिशत टैक्स लगाया, उस टैक्स का एक फाउंडेशन बनाया हर जिले का अलग फाउंडेशन। उस जिले के सरकारी अधिकारी उसके मुखिया रखे गए। और सरकार ने फैसला किया कि इस फाउंडेशन में जो पैसे आएंगे, वो उसी इलाके के जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए खर्च किए जाएगा। स्कूल भी बनेंगे तो उनके लिए बनेंगे, अस्पताल बनेगा तो उनके लिए बनेगा, रोड बनेगा तो उनके लिए बनेगा, धर्मशाला बनेगी तो उनके लिए बनेगी। उन्हीं समुदायों के लिए

जब मुझे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मिले डॉ. रमन सिंह, उन्होंने कहा, मोदी जी ऐसा बड़ा निर्णय आपने किया है कि हमारे जो सात जिले हैं, उन सात जिलों में इस टैक्स के कारण इतने पैसे आने वाले हैं कि आज जो आम बजट खर्च करते हैं उससे अनेक गुना ज्यादा वो पैसे होंगे। एक समय ऐसा आएगा कि हमें इन सात जिलों में राज्य की तिजोरी से एक पैसा नहीं देना पड़ेगा। इतने पैसे जनजातीय समुदाय के लिए खर्च होने वाले हैं। हजारों-करोड़ रुपये का लाभ इस फाउंडेशन से मिलेगा। जबकि पहले वहां से कोयला भी चला जाता था, लौह अयस्क भी चला जाता था लेकिन वहां रहने वाले जनजातीय समुदाय को लाभ नहीं मिलता था। अब सीधा लाभ उसको मिलेगा उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

हम एक बात को महत्व दे रहे हैं हमें हमारे जंगलों को बचाना है, अपने जनजातीय समुदाय की जमीन को बचाना है, उनके जो आर्थिक आय के साधन हैं उनको भी सुरक्षित रखना है इसलिए हम आधुनिक तकनीक के द्वारा अंडरग्रांउड माइनिंग को बल देना चाहते हैं ताकि ऊपर जंगल वैसा का वैसा रहे, जिंदगी वैसी की वैसी रहे। नीचे जमीन में गहरे जाकर कोयला वगैरह निकाला जाए ताकि वहां के जीवन को कोई तकलीफ न हो। उसी आधुनिक तकनीक की दिशा में भारत सरकार प्रतिबद्ध है

दूसरा, आधुनिक तकनीक के द्वारा कोल गैसिफिकेशन करना, यानी भूगर्भ में ही कोयले से गैस बनाकर उसे निकाला जाए ताकि वहां के पर्यावरण को भी कोई नुकसान न हो, वहां के हमारे जनजातीय समुदाय को भी कोई नुकसान न हो।

ऐसे अनेक प्रकल्प जिनके द्वारा जनजातीय समुदाय का कल्याण करने का हमारा प्रयास है। सरकार ने एक रर्बन (ग्रामीण-शहरी) मिशन हाथ में लिया है। इस मिशन के द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में जहां जनजातीय समुदाय रहते हैं वहां पर नए ग्रोथ सेंटर तैयार किए जा रहे हैं। जहां आर्थिक गतिविधि के केंद्र विकसित हों आज भी आदिवासियों के अलग-अलग जगह बाजार लगते हैं। वो वहां जाते हैं, अपना माल बेचते हैं और बदले में दूसरा माल लेकर आते हैं। बार्टर सिस्टम आज भी जंगलों में चलता हैलेकिन हम चाहते हैं कि 50-100 आदिवासी गांवों के बीच में एक-एक नया विकास केंद्र विकसित हो। जो आने वाले दिनों में आर्थिक गतिविधि का केंद्र बने।गल बगल के गांवों के लोग अपने उत्पादों को वहां बेचने के लिए आएं। अच्छी शिक्षा का वो केंद्र बने। अच्छे आरोग्य की सेवाओं का वो केंद्र बने। और अगल बगल के 50-100 जो गांव हैं जो आसानी से उस व्यवस्था का उपयोग करें।

वो स्थान ऐसे हों जहां आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हों। कभी शहर का शिक्षक जाने को तैयार नहीं होता आदिवासी बस्ती में, कभी डॉक्टर जाने को तैयार नहीं होता। ऐसे में इन रर्बन सेंटर पर वो सुविधाएं हों ताकि हमारे शहर के लोगों को वहां सरकारी नौकरी मिलती है तो वहां रहकर काम करना पसंद करें। ऐसे 100 से ज्यादा आदिवासी इलाकों में रर्ब सेंटर खड़े करने का हमारा प्रयास है जो नए आर्थिक ग्रोथ सेंटर के रूप में काम करेंगे। जहां पर वहां के जीवन की आत्मा जनजातीय जीवन की होगी, लेकिन वहां सुविधाएं जो शहर के लोगों को मिलती हैं वो सारी उपलब्ध होंगी। ऐसे ग्रोथ सेंटर का एक जाल बिछाने की दिशा में भारत सरकार काम कर रही है.

आज देश भर से आए हुए मेरे आदिवासी जनजातीय समुदायों के भाइयों बहनों, दिल्ली में आपका ये अनुभव आनंद उमंग से भरा हुआ हो, आप अपनी जो कला, कृतियां और उत्पाद लेकर आए हैं वो दिल्ली वासियों के दिल में जगह बना लें, व्यापारियों के दिल में जगह बना ले, एक नए आर्थिक क्षेत्र के द्वार खुल जाए, ये दीपावली आपकी जिंदगी में और नया प्रकाश लाने वाली बने, विकास का प्रकाश लेकर आए, ऐसी दिवाली के लिए मैं आप सबको शुभकमाएं देता हूं। और आप सब इस पावन त्योहार के निमित्त यहां इतनी बड़ी संख्या में आशीर्वाद देने के लिए आए, मैं सिर झुकाकर, आपको नमन करते हुए, अपनी वाणी को विराम देता हूं

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PM congratulates the Indian women’s team on winning the Kho Kho World Cup
January 19, 2025

The Prime Minister Shri Narendra Modi today congratulated the Indian women’s team on winning the first-ever Kho Kho World Cup.

He wrote in a post on X:

“Congratulations to the Indian women’s team on winning the first-ever Kho Kho World Cup! This historic victory is a result of their unparalleled skill, determination and teamwork.

This triumph has brought more spotlight to one of India’s oldest traditional sports, inspiring countless young athletes across the nation. May this achievement also pave the way for more youngsters to pursue this sport in the times to come.”